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जियाउद्दीन बरनी /Ziauddin Barani (1286- 1359)

 जियाउद्दीन बरनी (1286- 1359)



  • जीवन परिचय-

  • जन्म-1286

  • बरनी का जन्म दिल्ली के सुल्तान बलबन के शासन के अंतिम वर्ष 1286 में हुआ था|

  • बरनी ने स्वयं अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ व ‘फतवा-ए जहांदीरी’ में कहता है कि उनका जन्म एक कुलीन परिवार में 1286 में हुआ|


  • पिता- 

  • मुइद-उलमुल्क

  • इन्होंने अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में विभिन्न पदों पर राजनीतिक कार्य किए|


  • बरनी एक प्रसिद्ध इतिहासकार एवं राजनीतिक विचारक रहे हैं|

  • ये मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल में 17 साल तक तुगलक का दरबारी, विश्वासपात्र, करीबी दोस्त रहा| तथा अनेक राजनीतिक एवं प्रशासनिक पदों पर कार्य किया|

  • तुगलक के शासन काल में बरनी को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था|

  • लेकिन मुहम्मद बिन तुगलक के उत्तराधिकारी सुल्तान फिरोज तुगलक ने बरनी की शाही पदवी छीन ली तथा जेल में डाल दिया था|

  • 1359 ई. में शाही स्थिति व संपत्ति छीन लिए जाने के बाद 73 वर्ष की आयु में अत्यंत गरीब तथा लाचारी की हालत में इनका दिल्ली में देहांत हो गया 

  • मध्य युग का यह महान इतिहासकार व राजनीतिक चिंतन जब मरा तो उसके पास कफन तक पैसे नहीं थे|

  • बरनी, शेख निजामुद्दीन औलिया के भक्त ( मुरीद) व अमीर खुसरो के मित्र थे|


  • बरनी की रचनाएं-  

  1. तारीख ए फिरोजशाही

  • यह इतिहास व ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है|

  • इस पुस्तक का प्रारंभ सुल्तान ग्यासुद्दीन बलबन से होता है तथा इसमें कुल 8 सुल्तानों के ऐतिहासिक वृतांत का वर्णन है|

  1. सुल्तान ग्यासुद्दीन बलबन

  2. सुल्तान मुईजुद्दीन कैकुबाद 

  3. सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी

  4. सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी

  5. सुल्तान कुतुबुद्दीन

  6. सुल्तान ग्यासुद्दीन तुगलक 

  7. सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक

  8. सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक


  1. फतवा-ए-जहांदरी-

  • इसमें बरनी का राजनीतिक चिंतन है|

  • इस पुस्तक में फारसी विद्वानों के साथ-साथ यूनानी विचारक प्लेटो व अरस्तु का भी उल्लेख है|

  • इसमें बरनी का ‘आदर्श शासक’ का विचार है|

  • बरनी का आदर्श शासक- महमूद गजनवी| यह गजनवी को ही सच्चा बादशाह मानता था|

  • यह पुस्तक फिरोजशाह तुगलक को समर्पित है|

  • इसमें बरनी फिरोज शाह के समक्ष एक आदर्श रखना चाहता है|

  • फतवा-ए-जहांदारी तथा तारीख-ए-फिरोजशाही ग्रंथों की शुरुआत बरनी सुल्तान फिरोज की चापलूसी से की तथा समाप्ति उसकी कटु आलोचना से की| 


  • इन ग्रंथों की रचना बरनी ने तीन उद्देश्यों से की थी

  1. सुल्तान फिरोज तुगलक तथा उसकी गतिविधियों का समर्थन

  2. आनंदावस्था की प्राप्ति 

  3. भावी उच्चकुल पाठकों का ज्ञानवर्धन


  • अन्य रचनाएं-

  • सना-ए -मुहम्मदी

  • सलात-ए -कबीर

  • इनायत-ए-इलाही

  • मासिर-ए-सादात

  • तारीख-ए-बर्मकियान

  • हसरतनामा


  • आदर्श शासक एवं राज्य

  • बरनी, महमूद गजनवी को अनुपम तथा आदर्श बादशाह मानता है और बाद के सभी मुस्लिम बादशाह महमूद गजनवी की संतान है| अतः सभी मुसलमान बादशाहो को गजनवी का अनुसरण करना चाहिए|

  • बरनी एक कट्टर मुसलमान था| वह आदर्श शासक को ‘काफिरों के विनाश’ का मंत्र देता है|

  • बरनी के अनुसार बुद्धिमान बादशाह वह है, जो ईर्ष्या-द्वेष रखने वालों और दुष्टतो की धूर्तता तथा विश्वासघात से सुरक्षित रहें|

  • इनके मत में बादशाह स्वयं को, तथा राज्य को कुरान के अनुसार संरक्षित रखें|

  • आदर्श बादशाह शरीयत का पालन करें| बादशाह को दीनपनाह (इस्लाम की रक्षा करने वाला)  होना चाहिए|

  • बादशाह को अपनी राजधानी, नगरों, प्रदेशों और कस्बों में कठोर स्वभाव वाले मुहतसिब (गैर- इस्लामी बातों को रोकने वाला अधिकारी) और निष्ठुर दाद (सुल्तान की अनुपस्थिति में दीवाने मजलिस का अध्ययन और काजी के फैसलों का पालन करने वाला) नियुक्त करें ताकि दुराचारों को रोका जा सके|

  • बादशाह धार्मिक पदों पर सावधानी से नियुक्त करें|

  • बादशाह द्वारा समयानुसार आतंक का प्रदर्शन करना चाहिए तथा उसे न्यायप्रिय होना चाहिए| इससे इस्लाम की उन्नति होती है|

  • बादशाह को हशम (सेना तथा परिजन) की अधिकता एवं एकता बनाएं रखना चाहिए|

  • बादशाह को बाजार भाव सस्ते रखने चाहिए, ताकि सर्वसाधारण को संतोष व सुख मिल सके|

  • अकाल में प्रजा की  सहायता करें तथा क्रय विक्रय पर नियंत्रण रखें|


  • शासक की स्थिति व कार्य- 

  • बरनी सुल्तान की निरंकुश सत्ता में आस्था रखते हैं|

  • सुल्तान संपूर्ण सत्ता का प्रयोग अपने विवेक से करता है| तथा उसकी कार्यकारी एवं न्यायिक शक्तियां असीमित होती हैं|

  • बरनी का शासक तलवार के बल पर सत्ता हासिल करता है तथा तलवार की ताकत पर ही सत्तारूढ़ होता है|

  • बरनी के शब्दों में “राजतंत्र आतंक, शक्ति तथा सत्ता के अलावा कुछ भी नहीं है|”

  • बरनी के मत बादशाही का अर्थ- प्रभुत्व है|  प्रभुत्व के कारण ही वह बादशाह कहलाता है|

  • बरनी की बादशाही आधुनिक संप्रभुता के समान है|

  • बरनी के  मत में बादशाही खुदा की नियामत (उपहार) है| बादशाही उसी समय तक स्थापित रह सकती हैं, जब तक कि लोगों का बादशाह पर विश्वास हो|  इस तरह बरनी राजसत्ता के लिए ‘वैधता’ को आवश्यक मानता है|

  • बरनी के शब्दों में “जनता का विश्वास खो देने वाले शासक को पद छोड़ देना चाहिए|


  • बरनी ने संप्रभु के लिए तीन कार्य आवश्यक माने हैं-

  1. शरीयत को लागू करना

  2. अनैतिक व पापपूर्ण कार्यों पर नियंत्रण

  3. न्याय उपलब्ध करवाना|


  • विपरीत के जोड़े का सिद्धांत-

  • बरनी के मत में इस विश्व में प्रत्येक वस्तु विपरीतो के जोड़े के रूप में खुदा ने पैदा की है| जैसे- सत्य व असत्य, शांति व अव्यवस्था, अच्छा व बुरा, दिन व रात, प्रकाश व अंधकार|

  • बादशाह में विरोधी गुणों की प्रधानता होनी चाहिए| उसमें क्रोध व कृपा, ऐश्वर्य तथा दया, कठोरता व नम्रता, अभिमान व विनिम्रता एक साथ होने चाहिए| यह बरनी का विचार मैक्यावली के समान है|

  • यहां बरनी ने अरस्तु के मध्यम मार्ग का समर्थन किया है| उनके मत में हर प्रकार से मध्यमवर्ग श्रेष्ठतम नीति है, जो शरीयत और ग्रीक विज्ञान दोनों के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकती है|

  • विपरीतो के इस विश्व में पैगंबर ने राजा को यह कर्तव्य सौंपा है कि वह सत्य की स्थापना करें|

  • बरनी के शब्दों में “विपरीतो विश्व में राजा द्वारा सत्य को केंद्र में स्थापित किया जाना चाहिए| सत्य को केंद्र में स्थापित करने का वास्तविक अर्थ सत्य की असत्य पर विजय हो|”


  • बरनी के राजनीतिक सिद्धांत के तीन मुख्य लक्ष्य-

  1. भारतीय मुस्लिम साम्राज्य को सुदृढ़ करना|

  2. राजशक्ति का स्वरुप कल्याणकारी हो|

  3. मुस्लिम सल्तनता की वैधता व लोकप्रियता को बढ़ाना|


  • इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए विस्तृत सुझाव बरनी ने अपनी पुस्तक ‘फतवा-ए-जहांदरी’ मे दिए हैं|


  • आदर्श सुल्तान के लिए बरनी की 24 हिदायतें (नसीहते)- 

  • बरनी अपने शासकीय ज्ञान, अनुभवो,तथा स्मृतियों के आधार पर अपनी पुस्तक ‘फतवा ए जहांदरी’ में शासक को 24 हिदायतें दी हैं|

  • इन हिदायतो पर चलकर सुल्तान अपनी सल्तनत को सुरक्षित एवं समृद्ध रख सकते हैं तथा  अपनी सल्तनत का विस्तार कर सकते हैं|


  • ये 24 हिदायतें निम्न है

  1. निजी सुरक्षा सुनिश्चित करना

  2. शरीयत पर आधारित निजी तथा सार्वजनिक आचरण

  3. विद्वान व शुभचिंतक परामर्शदाताओ पर भरोसा

  4. सही तथा पक्का इरादा

  • बरनी “सही तथा पक्का इरादा अथवा ‘अज्म-ए-दुरस्त’ राजशाही की आधारशीला तथा पोशाक है|


  1. न्याय के मार्ग पर चलना तथा उस पर चलने के लिए औरों को भी प्रोत्साहित करना|

  2. अधिकारियों एवं विद्वानों की श्रेणियां, कार्यों तथा गुणों के अनुकूल हो|

  3. विशाल, सशक्त, सुदृढ़ तथा वफादार शाही सेना का निर्माण तथा संतुष्ठी

  4. इमानदार, सत्यनिष्ठ एवं विश्वसनीय अफसरों की नियुक्ति तथा निगरानी|

  5. मूल्य नियंत्रण तथा करदाता की क्षमता अनुसार कर भार

  6. धार्मिक एवं शासन संबंधी गतिविधियों में उचित समय लगाना|

  7. राजकाज शरीयत पर आधारित हो|

  8. शासन- व्यवस्था को न्याय पर आधारित रखना|

  9. दया एवं दंड के समुचित अवसरों की जानकारी रखना|

  10. आचरणसंहिता तथा कानूनो (जवाबित) का पालन खुद भी करें और लोगों से भी कराये|

  11. व्यवहार में दृढ़ संकल्प होना चाहिए|

  12. आपातकाल से निपटने के लिए उसे परंपरागत तथा नए तौर-तरीकों दोनों को ही अपनाना चाहिए|

  13. सत्ता के नैतिक आधारों के अनुकूल संतुलित व्यवहार|

  14. राजा तथा उसके अधिकारी परस्पर विरोधी गुणों से संपन्न हो|

  15. पदाधिकारी उच्चकुलीन, धार्मिक, गुणवान व वफादार हो|

  16. राजा को अपनी  प्रभुता तथा प्रधानता बनाएं रखनी चाहिए|

  17. केवल वंशानुगत गुणावगुण वाले लोग पदाधिकारी हो|

  18. पूर्व शाही परिवारों, उनके मित्रों व समर्थकों की रक्षा करें|

  19. अपने को व अपनी प्रजा को दूगुर्णो से परे रखें|

  20. सुल्तान विनयशील हो तथा विनम्र हो|


  • अरस्तु बनाम बरनी-

  • बरनी ने अपनी कृति ‘फतवा-ए-जहांदरी’ में अरस्तु की पॉलिटिक्स का अनेक बार जिक्र किया है|

  • अरस्तु की तरह बरनी भी व्यक्तियों की स्वभाविक विषमता को स्वीकार करते हैं|

  • अरस्तु की तरह बरनी का भी मत है कि कुछ लोग शासन करने के लिए तथा कुछ उनके आदेशों का पालन करने के लिए जन्म लेते है|


  • कौटिल्य बनाम बरनी

  • जहां बरनी के विचार में इस्लामिक अनुयायिको की प्रमुखता है, वहां कौटिल्य के चिंतन में धार्मिक कर्मकांडो को पर्याप्त महता दी गई है|

  • बरनी की शासन व्यवस्था इस्लामी अनुयायियों को एक सीमा तक दंड से मुक्त करती है, वहीं  कौटिल्य की शासन व्यवस्था में चारों वर्णों के लिए दंड का अलग-अलग प्रावधान है|

  • बरनी तथा कौटिल्य दोनों ने उच्च कुलीन वर्गीय, समृद्ध, श्रेष्ठ, गुणवान, निष्ठावान तथा योग्य व्यक्तियों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करने की सलाह दी है|

  • दोनों ने राज्य की सुरक्षा, स्थायित्व एवं विस्तार पर बल दिया है|


  • असमानताएं- 

  • जहां बरनी दिल्ली सल्तनत को इस्लामिक राज्य के रूप में स्थायित्व प्रदान करना चाहते हैं, वहां कौटिल्य भारतीय उपमहाद्वीप में एक सुदृढ़ सुरक्षित राज्य स्थापित करना चाहते हैं|

  • जहां बरनी के राज्य का आधार इस्लामी शरीयत था वही कौटिल्य का राज्य त्रयी, अन्वीक्षिकी , वार्ता, दंडनीति पर आधारित था|

  • बरनी की कृतियां उनकी स्वयं की स्मृति एवं अनुभवों पर आधारित है वही कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अनेक पूर्ववर्ती ग्रंथों के उदाहरण मिलते हैं|


  • राजनीति और नैतिकता-

  • बरनी के मत में शासन को व्यक्तिगत और राजननीतिक दोनों जीवन में कुरान व शरीयत में उल्लेखित नैतिकता व धार्मिकता का पालन करना चाहिए|

  • आवश्यकता पड़ने पर नैतिकता व धार्मिकता का त्याग कर देना चाहिए, जिससे राज्य की सुरक्षा संभव हो सके|


  • विधि- 

  • बरनी ने विधि को दो रूपों में बांटा है- 

  1. शरीअत- पैगंबर साहब की शिक्षा एवं आचरण पर आधारित है|

  2. ज़वाबित- सुल्तान द्वारा बनाई गयी विधियां 

 

  • अधिकारी तंत्र- 

  • नौकरशाही का सबसे प्रमुख पद वजीर होता था, जिसका कार्य राजस्व वसूलना था|

  • वजीर की सहायता के लिए नायब, मुंसिफ, मुमालिक, मुस्तावफी आदि थे|

  • केंद्र सरकार को दीवाने वजारात कहा जाता था, जिसका प्रमुख वजीर होता था|

  • प्रांत स्तर का शासन मुफ्ती अथवा वलि के द्वारा नियंत्रित किया जाता था| इसके नीचे दीवान था, जिसे प्रांत का वजीर भी कहा जाता है|

  • ग्रामीण स्तर या स्थानीय स्तर की सरकार को परगना कहा जाता था, जिसका प्रधान मुकदम होता था|


  • न्याय प्रणाली-

  • न्यायाधीशों की नियुक्ति स्वयं सुल्तान करता था|

  • सुल्तान अपील का सर्वोच्च न्यायालय था|

  • मुख्य न्यायाधीश- काजी-उल-कुजात

  • प्रांतीय न्यायधीश- सदर-उल-मुल्क 

  • धार्मिक मामलों को हल करते समय सुल्तान मुफ्ती और सदर-उल-मुल्क की सहायता लेता था| वहीं आर्थिक एवं भौतिक मामलों के लिए काजी-उल-कुजात की सहायता देता था|


  • कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

  • बरनी की रुचि राजनीतिक सिद्धांत निर्माण की न होकर केवल दिल्ली सल्तनत को मजबूत वैध बनाने की थी|

  • बरनी का विचार मुख्यतः ‘राज्य शिल्प व शासन कला’ से संबंधित है| इस कारण ‘फतवा ए  जहादरी’ के राज्यशिल्प की तुलना कौटिल्य के अर्थशास्त्र से की जाती है|

  • बरनी ने राजनीतिक चिंतन में पूर्ण सत्तावाद व राजतंत्र का समर्थन करते हुए राज्य की सुरक्षा, स्थिरता व सुदृढ़ता को सर्वोच्च साध्य माना है|

  • बरनी ने अरस्तु की तरह राज्य को स्वाभाविक व प्राकृतिक माना है तथा अरस्तु के राजनीतिक दर्शन का इस्लामीकरण कर देता है|

  • बरनी ब्राह्मणों का घोर विरोधी था तथा उन्हें काफिर कहता था|

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