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स्थानीय सरकार / Sthaaneey Sarakaar / Local Government || In Hindi || BY Nirban PK Sir

     स्थानीय सरकार (Local Government)


    • स्थानीय सरकार-

    • पंचायती राज

    • शहरी स्थानीय स्वशासन



    पंचायती राज-

    • भारत में पंचायती राज शुरू करने का श्रेय चोल शासकों को दिया जाता है|

    • 1870 में लार्ड मेयो ने पंचायतों को शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा|

    • लार्ड मेयो को आर्थिक विकेंद्रीकरण का जनक कहा जाता है|

    • 1882 में लार्ड रिपन ने स्थानीय संस्थाओं की मजबूती के लिए एक प्रस्ताव रखा, जिसके आधार पर ताल्लुका बोर्ड व ताल्लुका परिषद की स्थापना की गई|

    • इसलिए लार्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है तथा इस प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन का मैग्नाकार्टा कहा जाता है|

    • लार्ड रिपन को भारत का उद्धारक भी कहा जाता है|

    • 1919 के भारत शासन अधिनियम में पंचायत राज को आंशिक रूप से राज्य सूची का विषय बनाया गया|

    • स्थानीय स्वशासन को वैधानिक रूप 1919 के भारत शासन अधिनियम द्वारा दिया गया|

    • Note- 1919 में स्थानीय शासन को हस्तांतरित विषयों में रखा गया| इस पर कानून बनाने की शक्ति प्रांतीय विधायिकाओ को दी गई|

    • 1935 के भारत शासन अधिनियम में पंचायती राज पूर्ण रूप से राज्य सूची का विषय बना|

    • वर्तमान में पंचायती राज अनुसूचित 7 के अनुसार राज्य सूची का विषय है| स्थानीय स्वशासन प्रविष्टि संख्या 5 पर दर्ज है| 


    • महात्मा गांधी के अनुसार भारत की आत्मा गांवो में निवास करती है, अतः गांवो को स्वराज्य की नींव बनाना चाहिए| 

    • महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक ‘माई पिक्चर ऑफ फ्री इंडिया’ में ग्राम स्वराज की धारणा का प्रतिपादन किया है|

    • नेहरू “गांव के लोगों को व पंचायतों को अधिकार दो, वे हजार गलतियां करेंगे, पर घबराने की आवश्यकता नहीं है|”

    • अंबेडकर पंचायती राज व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि वे इन्हें जातीय प्रभुत्व व शोषण का भावी आधार मानते थे|

    • भारत विश्व का एक मात्र देश है, जहां केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय सरकार तीनों का उल्लेख संविधान में है|

    • अनुच्छेद 40 में राज्यों द्वारा ग्राम पंचायतों के गठन का उल्लेख है| 

    • स्थानीय स्वशासन को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण, तीसरी सरकार अथवा जिला सरकार भी कहा जाता है|

    • स्थानीय स्वशासन भारतीय नवाचार है| 



    पंचायती राज का विकास-

    • ग्रामीण विकास में जन सहभागिता बढ़ाने के लिए 2 अक्टूबर 1952 को नेहरू द्वारा के एम मुंशी की सिफारिश पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम लागू किया गया| 

    • 1953 में राष्ट्रीय विस्तार सेवा कार्यक्रम शुरू किया| इस कार्यक्रम के लिए अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन ने आर्थिक सहायता दी थी| 

    • इन दोनों कार्यक्रमों की जांच हेतु 1957 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया| 

    • बलवंत राय मेहता ने इन दोनों कार्यक्रमों में अत्यधिक प्रशासनिक हस्तक्षेप तथा जनसहभागिता के अभाव को इनकी असफलता का कारण बताया| 


    • बलवंत राय मेहता समिति (1957)-

    • 1957 में इन कार्यक्रमों की समीक्षा के लिए बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति गठित की गई|

    • अध्यक्ष- बलवंत राय मेहता

    • गठन- जनवरी 1957

    • रिपोर्ट- समिति ने नवंबर 1957 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण (स्वायत्तता) की योजना प्रस्तुत की| इस रिपोर्ट का शीर्षक लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण था|

    • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शब्द का प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति बलवंत राय मेहता ही थे, इस कारण बलवंत राय मेहता को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का जनक कहा जाता है| 

    • बलवंत राय मेहता को पंचायती राज का शिल्पकार कहा जाता है|


    • इसमें त्रिस्तरीय पंचायती राज पद्धति के लिए कहा गया| 

    • त्रिस्तरीय पंचायत राज -

    • गांव स्तर- ग्राम पंचायत 

    • ब्लॉक स्तर- पंचायत समिति

    • जिला स्तर- जिला परिषद


    • पंचायत समिति स्तर यानी मध्यवर्ती स्तर पंचायती राज का मुख्य आधार होगा| 

    • ग्राम पंचायत के चुनाव प्रत्यक्ष तथा पंचायत समिति और जिला परिषद का चुनाव अप्रत्यक्ष होना चाहिए| 

    • पंचायत समिति कार्यकारी निकाय तथा जिला परिषद सलाहकारी, समन्वयकारी, पर्यवेक्षणकारी निकाय होना चाहिए| 

    • जिला परिषद का अध्यक्ष- जिलाधिकारी होना चाहिए| 

    • सभी योजनाएं व विकास कार्य इन संस्थाओं को सौंपे जाये तथा पर्याप्त आय के स्रोत मिलने चाहिए| 

    • महिलाओं के ⅓ आरक्षण की सिफारिश की|

    • समिति की सिफारिशों को राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा 12 जनवरी 1958 को स्वीकार किया गया| 

    • इस समिति की सिफारिश पर 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने पंचायती राज उद्घाटन किया| 

    • पंचायती राज को लागू करने वाला राजस्थान पहला राज्य बना| 

    • दूसरा राज्य आंध्रप्रदेश था, जिसने 11 अक्टूबर 1959 को पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया|

    • 11 अक्टूबर 1959 को आंध्र प्रदेश भारत का पहला राज्य बना, जहां पंचायत राज संस्थाओं के चुनाव हुए| 

    • नेहरू ने कहा कि “पंचायती राज लोकतंत्र की प्रथम पाठशाला है|” 

    • पंडित नेहरू को पंचायती राज का जनक कहा जाता है|

    • अशोक मेहता समिति (1977)-

    • गठन- जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार ने दिसंबर 1977 अशोक मेहता समिति गठित की| 

    • अध्यक्ष- अशोक मेहता

    • रिपोर्ट- अगस्त 1978 में सौंपी

    • इस समिति ने पतनोन्मुखी पंचायती राज को पुनर्जीवित और मजबूत करने के लिए 132 सिफारिशें प्रस्तुत की| 


    प्रमुख सिफारिशें-

    • द्विस्तरीय पंचायती राज्य की सिफारिश

    • जिला स्तर पर- जिला परिषद

    • जिला स्तर के नीचे- मंडल पंचायत


    • Note- मंडल पंचायत में 15000 से 20000 जनसंख्या वाले गांवों के समूह होने चाहिए| 

    • राज्य स्तर के नीचे विकेंद्रीकरण के लिए जिला प्रथम बिंदु होना चाहिए| 

    • जिला परिषद कार्यकारी निकाय होना चाहिए, राज्य स्तर पर योजना और विकास के लिए जिम्मेदार हो| 

    • पंचायती चुनाव के सभी स्तरों पर राजनीतिक पार्टियों की भागीदारी होनी चाहिए| 

    • पंचायती राज संस्थाओं को कराधान की शक्ति दी जाय| 

    • जनसंख्या के आधार पर S.C व ST का आरक्षण होना चाहिए| 

    • राज्य मंत्रिपरिषद में एक पंचायती राज्य मंत्री हो|

    • केंद्र सरकार ने अशोक मेहता समिति की सिफारिशें मंजूर नहीं की, परंतु 3 राज्यों कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार ने मेहता समिति की सिफारिशें लागू की|


    • G.V K. राव समिति (1985)-

    • ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए योजना आयोग द्वारा 1985 में इस समिति का गठन किया गया| 

    • अध्यक्ष- G.V.K राव

    • इस समिति ने पंचायती राज संस्थाओं को बिना जड़ की घास कहा है, क्योंकि पंचायती राज के दफ्तरशाही व्यवस्था व नौकरशाही व्यवस्था में फंसने के कारण विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध हो गयी है| 


    इस समिति ने पंचायती राज को मजबूत और पुनर्जीवित करने की लिए निम्न सिफारिशें दी-

    • चार स्तरीय पंचायती राज-

    • राज्य स्तर- राज्य विकास परिषद

    • जिला स्तर- जिला परिषद

    • मंडल स्तर- मंडल पंचायत

    • ग्राम स्तर- ग्राम पंचायत

    • जिला परिषद को लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए| 

    • नियमित चुनाव की सिफारिश की|

    • जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में जिला विकास आयुक्त के पद का सृजन किया जाना चाहिए|

    • ग्रामीण क्षेत्रों की विकास प्रक्रिया में ब्लॉक विकास अधिकारी (BDO) आधार स्तंभ होना चाहिए|


    • L.M (लक्ष्मीमल) सिंघवी समिति (1986)-

    • 1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा “लोकतंत्र के विकास के लिए पंचायती राज्य संस्थाओं का पुनरुद्धार” पर इस समिति का गठन किया गया| 


    • प्रमुख सिफारिशें -

    • पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाय|  

    • गांवो के समूह के लिए न्याय पंचायतों की स्थापना की जाय| 

    • इस समिति में ग्राम सभा को महत्वपूर्ण बताया और इसे प्रत्यक्ष लोकतंत्र की मूर्ति कहा| 

    • इस समिति ने नियमित निर्वाचन व पंचायतों को शासन का तीसरा स्तर घोषित करने की सिफारिश की|


    • P.K थुंगन समिति [1988]-

    • इस समिति ने पंचायती राज व्यवस्था को शक्तिशाली बनाने हेतु उन्हें संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की| 

    • त्रिस्तरीय पंचायती राज हो तथा पंचायतों का 5 वर्ष निश्चित कार्यकाल हो|

    • जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण हो तथा महिलाओं के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की जाए|

    • प्रत्येक राज्य में एक वित्त आयोग का गठन किया जाए| 


    • गाडगिल समिति (1988)-

    • कांग्रेस पार्टी ने 1988 में गाडगिल की अध्यक्षता में एक ‘नीति कार्यक्रम समिति’ का गठन किया| 

    • इसे ‘पंचायती राज संस्थाओं को प्रभावी कैसे बनाया जाए’ पर रिपोर्ट देने के लिए गठित किया गया था| 

    • इस समिति ने निम्न अनुशंसाएं दी-

    • पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए| 

    • पंचायत के तीनो स्तरों के सदस्यों का सीधा निर्वाचन हो तथा पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया जाए| 

    • पंचायती राज्य संस्थाओं की जिम्मेदारी हो कि, वे पंचायत क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए योजनाएं बनाये तथा उन्हें कार्यान्वित करें| 

    • पंचायती राज संस्थाओं को कर व शुल्क लगाने, वसूलने तथा जमा करने का अधिकार हो| 

    • एक राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाए तथा एक चुनाव आयोग की स्थापना की जाए| 


    • राजीव गांधी सरकार-

    • L.M सिंघवी व P.K थुंगन समिति के आधार पर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने के लिए 64 वा संविधान संशोधन विधेयक 1989 लोकसभा में पेश किया गया| 

    • यह विधेयक लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया| 


    • V.P सरकार- 

    • पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत करने पर विचार करने के लिए 1 जून 1990 को V.P सिंह की अध्यक्षता में राज्यों के मुख्यमंत्रियों का 2 दिन का सम्मेलन हुआ| 

    • सम्मेलन के आधार पर सितंबर 1990 में लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया, लेकिन सरकार गिरने से विधेयक समाप्त हो गया| 


    • नरसिम्हाराव सरकार-

    • नरसिम्हा राव के समय कांग्रेस सरकार ने फिर से पंचायती राज संस्था को संवैधानिक दर्जा देने के लिए 1991 में एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया| 

    • दिसंबर 1991 में यह विधेयक प्रवर समिति को सौंपा, जिसके अध्यक्ष नाथूराम मिर्धा थे| 

    • यह विधेयक 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के रूप में पारित हुआ, जो 24 अप्रैल 1993 को प्रभाव में आया| 

    • 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है| 

    • विधेयक-

    • लोकसभा में पारित- 22 दिसंबर 1992

    • राज्यसभा में पारित- 23 दिसंबर 1992

    • 17 राज्यों द्वारा इसका अनुमोदन किया गया अर्थात यह संसद के विशेष बहुमत एवं  आधे से अधिक राज्यों द्वारा अनुमोदित किया गया|

    • राष्ट्रपति की स्वीकृति- 20 अप्रैल 1993

    • तत्कालीन राष्ट्रपति- शंकर दयाल शर्मा

    • तत्कालीन प्रधानमंत्री- नरसिम्हा राव (कांग्रेस)


    Note- सर्वप्रथम इसके प्रावधान कर्नाटक राज्य में लागू हुए| 


    • 73वां संविधान संशोधन अधिनियम 1992-

    • इस अधिनियम के द्वारा संविधान में एक नया भाग- IX (भाग 9) जोड़ा गया, जिसे ‘पंचायतें’ नाम दिया गया| 

    • अनुच्छेद 243 से 243O ( 243 से 243ण) 16 नये अनुच्छेद जोड़े गये| 

    • 11 वीं अनुसूची जोड़ी गयी | 

    • इस अधिनियम के द्वारा पंचायती राज्य को संवैधानिक दर्जा दिया गया|

    • अनुच्छेद 40 को व्यवहारिक रूप दिया गया|

    • यह अधिनियम प्रतिनिधि लोकतंत्र को भागीदारी लोकतंत्र में बदलता है|

    • इस अधिनियम के विषयों को दो भागों में बांटा गया-

    1. अनिवार्य विषय

    2. ऐच्छिक विषय

    • ग्यारहवीं अनुसूची में पंचायत राज्य के लिए 29 कार्यकारी विषय/ मद है| 

    • इसमें राज्यों के लिए यह अनिवार्य था, कि अधिनियम लागू होने से अधिकतम 1 वर्ष के भीतर अधिनियम के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं का गठन करना होगा| 


    अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं

    • ग्राम सभा (243A)

    • ग्राम पंचायत स्तर पर

    •  अनुच्छेद 243A के तहत ग्राम सभा का गठन किया गया| 

    •  इसके सदस्य ग्राम पंचायत के सभी मतदाता होंगे|

     

    Note- ग्राम पंचायत एक गांव या एक से अधिक गांवो से मिलकर बनती है| 


    ग्राम सभा की बैठक-

    • वर्ष में कम से कम दो बैठक 

    • क्योंकि दो बैठकों के मध्य 6 माह से ज्यादा अंतर नहीं हो सकता है| 

    • अध्यक्ष- सरपंच


    कार्य- 

    • प्रथम बैठक में ग्राम पंचायत के अगले वर्ष के लिए कार्य योजना तैयार करना|

    • दूसरी बैठक में ग्राम पंचायत के पिछले कार्यों की जांच अर्थात सामाजिक अंकेक्षण करती है| 

    • गणपूर्ति- कुल सदस्यों का 1/10

    • ग्राम सभा को प्रत्यक्ष लोकतंत्र का उदाहरण तथा लघु संसद कहा जाता है| 

    Note- 2009 में भीलवाड़ा पहला जिला है, जहां नरेगा का सामाजिक अंकेक्षण हुआ| 


    • त्रिस्तरीय प्रणाली (243 B)

    • इस अधिनियम द्वारा सभी राज्यों के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली का प्रावधान किया गया| 

    • लेकिन 20 लाख या कम जनसंख्या वाले राज्यों को माध्यमिक स्तर पर पंचायतों के गठन में करने की छूट है | 


    • ग्राम पंचायत-

    • यह त्रिस्तरीय पंचायती राज्य का आधार है तथा सरपंच व वार्ड पंचों से मिलकर बनती है|

    • बैठक 15 दिन में एक बार, जिसका कोरम 1/3 होता है|

    • उपसरपंच के चुनाव के लिए आयोजित बैठक ग्राम पंचायत की पहली बैठक होती है| इस चुनाव में सरपंच भी मत देता है तथा उसके मत का मूल्य 2 के बराबर माना जाता है|


    • अविश्वास प्रस्ताव-

    • उपसरपंच व सरपंच को इसके द्वारा हटाया जाता है|

    • पहले 2 वर्ष तक यह प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है|

    • प्रस्ताव लाने हेतु 1/3 सदस्यों का समर्थन आवश्यक होता है|

    • पारित करने हेतु न्यूनतम 3/4 समर्थन आवश्यक होता है|

    • यदि प्रस्ताव असफल हो जाए तो 1 वर्ष तक वापस नहीं लाया जा सकता है तथा अंतिम 1 वर्ष में भी प्रस्ताव नहीं लाया जाता है|


    • पंचायत समिति-

    • एक लाख की जनसंख्या पर इसका गठन होता है, इस जनसंख्या पर 15 वार्ड होते हैं|

    • पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य अपने में से प्रधान व उपप्रधान का चुनाव करते हैं|


    • जिला परिषद-

    • किसी जिले की चार लाख ग्रामीण जनसंख्या पर इसका गठन होता है| इस जनसंख्या पर 17 वार्ड होते हैं|

    • एक लाख अतिरिक्त जनसंख्या पर दो अतिरिक्त वार्ड होते हैं|

    • जिला परिषद के निर्वाचित सदस्य अपने में से जिला प्रमुख व उप जिला प्रमुख का चुनाव करते हैं|


    • ग्राम पंचायत के चुनाव को छोड़कर अन्य संस्थाओं के चुनाव दलीय आधार पर होते हैं|

    • दसवीं अनुसूची के अंतर्गत दल बदल कानून यहां लागू नहीं होता है|


    • सदस्य एवं अध्यक्षों का चुनाव- [243C]

    • ग्राम, माध्यमिक, जिला स्तर (तीनों स्तरों) के सभी सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष होगा अर्थात सीधे लोगों के द्वारा चुने जाएंगे| 

    • माध्यमिक एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से सदस्यों द्वारा किया जाएगा|

    • ग्राम स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राज्य विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाएगा| 


    • आरक्षण (243D)

    • अनु 243D- जनसंख्या के आधार पर SC व ST को आरक्षण तीनों स्तर पर होगा| 

    • OBC का आरक्षण राज्य विधान मंडल निर्धारित करेगी| 

    • महिलाओं को 1/3 स्थानों का आरक्षण दिया जाएगा| 

    • Note- 110वां संशोधन विधेयक के द्वारा 1/2 आरक्षण का प्रस्ताव लाया गया है| 

    • Note- अरुणाचल प्रदेश में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण नहीं है, इसे 83वे संविधान संशोधन 2000 द्वारा हटाया गया था|

    • हालांकि संविधान संशोधन नहीं हुआ है, लेकिन 19 राज्य राजस्थान सहित महिलाओं के लिए 50% आरक्षण का प्रावधान कर चुके है| 


    • कार्यकाल (243E)-

    • तीनों स्तरों पर- प्रथम बैठक से 5 वर्ष

    • 5 वर्ष से पहले विघटन किया जा सकता है| 

    • कार्यकाल पूर्ण होने से पहले या विघटित होने के 6 माह में नए चुनाव कराये जाने चाहिए| 

    • समय से पूर्व विघटन पर नयी पंचायत शेष कार्यकाल के लिए गठित होगी| 

    • विघटन पर कार्यकाल छह माह शेष है, तो शेष कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाने आवश्यक नहीं है|


    • सदस्यता के लिए निर्हरताये (243 F)-

    1. न्यूनतम आयु 21 वर्ष नहीं है, तो निर्हर होगा| 

    2. अन्य निर्हरताओ का निर्धारण राज्य विधानमंडल करेगी|  


    • शक्तियां व कार्य (243G)-

    • राज्य विधानमंडल विधि द्वारा पंचायतों को ऐसे कार्य प्रदान करेगा, जो स्वायत्तशासी संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक है|

    • निम्न कार्य होंगे-

    1. आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना|

    2. ग्यारहवीं अनुसूची में सम्मिलित विषयों में, जो राज्य विधानमंडल द्वारा सौंपे जाये|


    • राज्य वित्त आयोग का गठन (243 I)-

    • राज्य का राज्यपाल इस संशोधन के प्रारंभ के एक वर्ष के भीतर, उसके बाद प्रत्येक 5 वर्ष में वित्त आयोग का गठन करेगा|

    • वित्त आयोग पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा|

    • राज्य वित्त आयोग संवैधानिक निकाय है| 


    • लेखा परीक्षण (243 J)-

    • राज्य विधानमंडल विधि बनाकर पंचायत के लेखो-खातों की देखभाल व परीक्षण के लिए उपबंध कर सकती है| 

     

    • राज्य निर्वाचन आयोग- [243 K]

    • यह एक सदस्यीय आयोग है, जिसको राज्य निर्वाचन आयुक्त कहते हैं|

    • नियुक्ति- राज्यपाल

    • कार्यकाल- 5 वर्ष या 65 वर्ष आयु तक|

    • राज्य निर्वाचन आयुक्त सीनियर IAS अधिकारी होता है|

    • पद से हटाना- H.C के न्यायधीश को हटाए जाने वाली प्रक्रिया से|

    • कार्य- यह पंचायती राज संस्थाओं और नगरपालिकाओ का चुनाव कराता है|


    • केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होना (अनुच्छेद 243L)

    • इस संबंध में राष्ट्रपति निर्देश दे सकता है|

    • भारत का राष्ट्रपति किसी भी संघ राज्य क्षेत्र में अपवादो अथवा संशोधनों के साथ लागू करने के निर्देश दे सकता है|


    • इस भाग का कतिपय क्षेत्रो में लागू न होना (243M)-

    • नागालैंड, मेघालय, मिजोरम में

    • मणिपुर के ऐसे पर्वतीय क्षेत्रों में, जिनमे किसी विधि के अधीन जिला परिषदे है| 

    • पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के ऐसे पर्वतीय क्षेत्र, जहां किसी विधि के अधीन दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद विद्यमान हैं|



    • Note-

    • 73वे संविधान संशोधन 1992 के प्रावधान नागालैंड, मेघालय, मिजोरम में लागू नहीं होते है|

    • 73वा संविधान संशोधन1992 पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग में लागू नहीं होता है|

    • मणिपुर के स्वायत्तशासी क्षेत्र में यह लागू नहीं होता है|

    • पश्चिमी बंगाल में 1963 से 1973 तक ही 4 स्तरीय थी, उसके बाद से अब तक त्रिस्तरीय है| चार स्तरीय प्रणाली है- ग्राम पंचायत, अंचल पंचायत, आंचलिक परिषद, जिला परिषद

    • दिल्ली में अभी तक पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं है| 

    • अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड में बुनियादी स्तर पर प्रशासनिक इकाई के रूप में जनजातीय परिषदे है|

    • द्विस्तरीय पंचायती राज 3 राज्यों गोवा, सिक्किम, मणिपुर तथा तीन संघ शासित क्षेत्रों दमन दीव व दादरा नगर हवेली, पुडुचेरी तथा लक्षदीप में है|

    • अंडमान निकोबार, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर व लद्दाख में त्रिस्तरीय पंचायती राज है|

    • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के प्रवर्तन में आने से जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख संघ क्षेत्रों पर भाग 9 लागू होने से वहां अब पंचायतों के तीन स्तर होंगे|



    • राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों में मध्यवर्ती या खंड स्तर पर पंचायतों के नाम-

    • पंचायत समिति- बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा, पश्चिमी बंगाल, अंडमान निकोबार, चंडीगढ़|

    • आंचलिक समिति- असम

    • जनपद पंचायत- छत्तीसगढ़

    • तालुका पंचायत- गुजरात, कर्नाटक

    • ब्लॉक विकास बोर्ड- जम्मू-कश्मीर, लद्दाख

    • क्षेत्र पंचायत- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड

    • जनपद समिति- मध्य प्रदेश

    • पंचायत यूनियन काउंसिल- तमिलनाडु


    • PESA-1996 पेसा अधिनियम (विस्तार अधिनियम)

    • भूरिया समिति की सिफारिश पर यह अधिनियम पारित किया गया|

    • 1994 में अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज लागू करने हेतु दिलीप सिंह भूरिया समिति का गठन किया गया था|

    • यह अधिनियम पांचवी अनुसूची में वर्णित अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होता है|

    • पूरा नाम - Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act 1996

    • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996

    • PESA Act भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की पारंपरिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सूनिश्चित करने के लिए भारत सरकार द्वारा लागू कानून है|

    • पेसा अधिनियम पहले नो राज्यों, फिर तेलंगाना के निर्माण के बाद 10 राज्यों में लागू है| 

    • पेसा अधिनियम के तहत रीति-रिवाजों, परंपराओं व सामुदायिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभा को विशिष्ट शक्तियां दी गई है| 


    • पेसा अधिनियम के उद्देश्य-

    1. संविधान के भाग 9 के पंचायतों से जुड़े प्रावधानों को जरूरी संशोधन के साथ अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करना|

    2. जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना|

    3. जनजातीय समुदायों की परंपराओं एवं रिवाजों की सुरक्षा तथा संरक्षण करना|


    • न्यायालय हस्तक्षेप पर रोक-

    • अनुच्छेद 243O के तहत न्यायालय पंचायतों के निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन, उन क्षेत्रों में सीट आवंटन आदि में दखलअंदाजी नहीं कर सकता|


    • ऐच्छिक प्रावधान-

    • 73 वे संविधान संशोधन अधिनियम के कुछ प्रावधानों को लागू करना या न करना राज्य की इच्छा पर छोड़ा गया है, ये प्रावधान निम्न है-

    1. पंचायत राज संस्थाओं का नामकरण

    2. सांसद व विधायकों को पंचायती राज संस्थाओं में प्रतिनिधित्व देना|

    3. पिछड़े वर्गों (OBC) को आरक्षण

    4. पंचायती राज्य संस्थाओं को विभिन्न शक्तियां, कार्य, वित्तीय अधिकार आदि देना|



    • 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है|

    • Note- संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की शक्ति राष्ट्रपति को है| राष्ट्रपति ऐसा आदेश संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करके समय-समय पर ऐसे आदेश जारी करता है|


    • Note- राजस्थान के 8 जिले (बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं प्रतापगढ़ संपूर्ण जिले, पाली, उदयपुर,  राजसमंद, चित्तौड़गढ़ और सिरोही आंशिक रूप से) के 5697 गांवो, जिनमें 50% से ज्यादा अनुसूचित जनजाति की आबादी के कारण अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए हैं|

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