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संयुक्त राज्य अमेरिका का संघीय न्यायालय / Sanyukt Raajy Amerika ka Sangheey Nyaayaalay /United States Federal Court BY Nirban PK Sir || In Hindi

    संयुक्त राज्य अमेरिका का संघीय न्यायालय 

    • अमेरिकी संविधान की तीसरी धारा में यह व्यवस्था की गई है कि "न्याय-सम्बन्धी शक्ति एक सर्वोच्च न्यायालय और उन अन्य नीचे के न्यायालयों में निहित होगी। जिनकी स्थापना व प्रतिष्ठा कांग्रेस विधि द्वारा समय-समय पर करेगी।" 

    • इस अनुच्छेद के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना को 'आदेशित' (Mandatory) बनाया गया और अधीनस्थ न्यायालयों की स्थापना का उत्तरदायित्व कांग्रेस के विवेक पर छोड़ दिया गया। 


    संघीय न्यायालय का संगठन-


    • संघीय न्यायालय निम्नांकित दो प्रकार के हैं-

    1. व्यवस्थापिका न्यायालय

    2. संवैधानिक न्यायालय


    1. व्यवस्थापिका न्यायालय (Legislative Courts)- 

    • ये वे न्यायालय हैं, जिनकी स्थापना कांग्रेस अपनी विधायिनी शक्ति द्वारा करती है। 

    • इन न्यायालयों द्वारा संविधान की तीसरी धारा में उल्लिखित न्यायिक शक्ति का उपभोग नहीं किया जाता| 

    • इनका कार्य तो उन कानूनों के क्रियान्वयन में प्रशासन को सहयोग देना है, जिन्हें कांग्रेस अपनी निहित शक्ति अथवा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करने के लिए निर्मित करती है| 

    • कोलम्बिया जिला तथा उन प्रदेशों के लिए, जिन पर संयुक्त राज्य अमेरिका का अधिशासन है, कांग्रेस द्वारा व्यवस्थापिका न्यायालयों की स्थापना की गई है। 


    • इन व्यवस्थापिका न्यायालयों के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं- 


    1. दावा न्यायालय (Court of Claims)-1855 में स्थापित इस न्यायालय में संघीय शासन के विरुद्ध नागरिकों के दावों की सुनवाई होती है। 

    2. आयात-निर्यात शुल्क न्यायालय (Court of Customs)- इसमें आयात-निर्यात शुल्क एकत्रित करने वाले अधिकारियों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनी जाती हैं। 

    3. आयात-निर्यात तथा पेटेण्ट्स अपील न्यायालय (Court of Customs and Patents Appeal)- यह न्यायालय आयात-निर्यात शुल्क और पेटेण्ट्स के निर्णयों की सुनवाई तथा सीमा-कर आयोग की आज्ञाओं के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई करता है। 

    4. कर न्यायालय (Tax Court)- इसमें कर सम्बन्धी विवादों की सुनवाई होती है।


    1. संवैधानिक न्यायालय (Constitutional Courts)-

    • इन न्यायालयों की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 3 द्वारा की गई है। 

    • ये न्यायालय निम्नांकित तीन श्रेणियों में विभक्त हैं-

    1. जिला न्यायालय

    2. संघीय अपील न्यायलय

    3. सर्वोच्च न्यायालय


    1. जिला न्यायालय

    • संघीय न्यायालयों में से सबसे नीचे स्तर के न्यायालय हैं। 

    • प्रत्येक राज्य में एक जिला न्यायालय का होना अनिवार्य है। 

    • इनके न्यायाधीशों की नियुक्ति अटार्नी जनरल (Attorney General) की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जिस पर सीनेट की स्वीकृति आवश्यक है। 

    • सामान्यतः जिला-न्यायालयों में एक ही न्यायाधीश अभियोगों का निर्णय करता है| 

    • किन्तु यदि अभियोग में संघीय परिनियमों की सांविधानिकता को चुनौती दी गई हो तो तीन न्यायाधीशों द्वारा निर्णय आवश्यक है। 

    • इसके निर्णय के विरुद्ध अपील सीधी सर्वोच्च न्यायालय को की जा सकती है।


    1. संघीय अपील न्यायालय

    • संघीय अपील न्यायालयों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय के कार्यभार को हल्का करना है। 

    • पहले इनके न्यायाधीश न्याय-कार्य के लिए दौरा करते थे, किन्तु अब ऐसा बहुत कम होता है। 

    • प्रत्येक संघीय अपील के न्यायालय में तीन से लेकर छ: न्यायाधीश होते हैं|

    • इनका न्याय-क्षेत्र अपील सम्बन्धी है। इनमें जिला न्यायालयों और संघीय अभिकरणों के निर्णयों के विरुद्ध अपील की जाती है। 

    • सर्वोच्च न्यायालय को उनके निर्णय के पुनरावलोकन का अधिकार है। 


    1. सर्वोच्च न्यायालय-

    • न्यायालयों की व्यवस्था में सबसे उच्च स्तर का न्यायालय है। 

    • इसकी व्यवस्था स्वयं संविधान में की गई है। 

    • इसकी स्थापना 1789 के न्यायापालिका-अधिनियम द्वारा की गई थी। 



    व्यवस्थापिका न्यायालयों और संवैधानिक न्यायालयों में प्रमुख अन्तर-

    1. दोनों की उत्पत्ति के स्रोत भिन्न हैं| उनके द्वारा सुनवाई किये जाने वाले मामले भी भिन्न होते हैं| व्यवस्थापिका न्यायालय उन मामलों की सुनवाई करते हैं, जिनका सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, सार्वजनिक धन का व्यय, करों की वसूली आदि से होता है। सांविधानिक न्यायालय उन विवादों का निर्णय करते हैं, जिनकी चर्चा संविधान के तीसरे अनुच्छेद में की गई है। 

    2. सांविधानिक न्यायालयों के न्यायाधीश आजीवन न्यायाधीश रह सकते हैं, जबकि व्यवस्थापिका न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति निश्चित अवधि के लिए होती है|



    सर्वोच्च न्यायालय


    संगठन (Organisation)-

    • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 9 है, जिनमें 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 8 अन्य न्यायाधीश हैं। 

    • न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है, किन्तु इन नियुक्तियों की पुष्टि सीनेट द्वारा होना आवश्यक है| 

    • सीनेट इन नियुक्तियों को अस्वीकृत कर सकती है। 

    • न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति प्रायः न्यायालय के वर्गीय, धार्मिक एवं दलीय स्वरूप को ध्यान में रखता है। 

    • न्यायाधीश जब तक सदाचारी रहते हैं, अपने पद पर बने रहते हैं। 

    • इनका कार्यकाल जीवन पर्यंत होता है| 

    • यदि किसी न्यायाधीश ने 10 वर्ष तक निरन्तर सर्वोच्च न्यायालय की सेवा की है, तो 70 वर्ष की आयु प्राप्त होने पर पूर्ण वेतन सहित वह अवकाश ग्रहण कर सकता है। 

    • अमेरिका के न्यायाधीशों पर इस प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं है कि वे राजनीति में भाग न लें, किन्तु यथार्थ में वे राजनीतिक गतिविधियों से पृथक् ही रहते हैं। 

    • इनके वेतन का निर्धारण कांग्रेस द्वारा किया जाता है, जो न्यायाधीशों के कार्यकाल में कम नहीं किया जा सकता है। यह वेतन आयकर रहित नहीं है।

    • किसी भी न्यायाधीश को उसकी इच्छा के विरुद्ध त्यागपत्र देने को विवश नहीं किया जा सकता, किन्तु यदि यह रिश्वत लेने, संगीन अपराध करने तथा दुराचरण सम्बन्धी कृत्य करता है तो उसे महाभियोग (Impeachment) द्वारा हटाया जा है। 

    • न्यायाधीश स्वेच्छा से अपने पद को त्याग सकते हैं|


    योग्यता-

    • न्यायाधीशों की योग्यता के सम्बन्ध में संविधान मौन है। 

    • किन्तु प्रायः ऐसे व्यक्ति को न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है जो ख्याति प्राप्त वकील, कानून के प्राध्यापक सार्वजनिक व्यक्ति तथा प्रशासकीय अभिकरणों के परामर्शदाता रह चुके हों। 


    सर्वोच्च न्यायालय की कार्य-प्रणाली- 

    • सर्वोच्च न्यायालय का कार्य अक्तूबर में प्रारम्भ होता है और मई के मध्य तक समाप्त हो जाता है। 

    • इस प्रकार केवल आठ महीने कार्य होता है| 

    • शीत और पतझड़ के समय दो सप्ताह की छुट्टी रहती है|

    • मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को मुकदमा सुने जाते है। 

    • शनिवार को न्यायाधीश आपस में मिलकर उन पर विचार-विनियम करते हैं। 

    • निर्णय बहुमत से लिया जाता है और सोमवार को सुनाया जाता है | 

    • मुकदमे की सुनवाई तथा निर्णय के लिए 6 न्यायाधीशो की गणपूर्ति (Quorum) आवश्यक है। 

    • सर्वोच्च न्यायालय के विचारों तथा निर्णयों को 'संयुक्त राज्य रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित किया जाता है, जो सांविधानिक कानून के ऐतिहासिक और वर्तमान विकास का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। 


    सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ एवं कार्य- 

    • सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र और कार्य निम्नलिखित है-

    1. प्रारम्भिक अथवा मौलिक क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction) 

    2. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction) 

    3. न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार (Power of Judicial Review) 

    4. संविधान तथा नागरिक अधिकारों का संरक्षक तथा अभिरक्षक (Custodian and Guardian of the Constitution and the Rights of Citizens) 

    5. अन्य अधिकार (Miscellaneous Powers) 


    1. प्रारम्भिक अधिकार-क्षेत्र (Original Jurisdiction)-

    • सर्वोच्च न्यायालय का प्रारम्भिक अधिकार-क्षेत्र अत्यन्त सीमित है । 

    • संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि "उन सब मामलों में जिनका सम्बन्ध राजदूतों से, राज्य के मंत्रियो से अथवा अन्य दौत्य अधिकारियों से है और उन सब मामलों में जिनमें कोई राज्य एक पक्ष है, सर्वोच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र प्रारम्भिक होगा।" 

    • यद्यपि कांग्रेस इस अधिकार-क्षेत्र को घटा-बढ़ा नहीं सकती, फिर भी वह कानून और अपने विवेक के अन्तर्गत उक्त मामलों के लिए नीचे के न्यायालयों में सुनवाई की अनुमति दे सकती है|


    1. अपीलीय अधिकार क्षेत्र (Appellate Jurisdiction)-

    • सर्वोच्च न्यायालय में अधिकांश मुकदमे पुनर्विचार अर्थात् अपील के लिए आते हैं। 

    • अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय में उन सभी मामलों की अपील नहीं हो सकती, जिनमें निम्न न्यायालयों के निर्णय से किसी पक्ष को असन्तोष हो। 

    • साथ ही ऐसा भी नहीं है, कि राज्यों के उच्चतम न्यायालयों के सभी निर्णयों के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सके। 

    • सर्वोच्च न्यायालय के अपील सम्बन्धी न्याय-क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए मुनरो ने लिखा है कि "केवल निम्न स्थिति के अतिरिक्त किसी भी पक्ष को राज्य के संघीय न्याय क्षेत्र के विरुद्ध अपील करने का अधिकार नहीं है। जिसमें-

    1. राज्य के उच्चतम न्यायालय ने राज्य के किसी ऐसे कानून को वैध घोषित कर दिया हो, जिस पर संघीय संविधान के विरुद्ध होने का आरोप लगा हो| 

    2. जिसने किसी संघीय कानून अथवा सन्धि को अवैध घोषित कर दिया हो|


    • फिर भी उन मामलों में, जिनमें राज्य के उच्चतम न्यायालय ने अपील की अनुमति दे दी हो, अपील सीधी सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकती है। 

    • स्पष्ट है कि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार केवल सांविधानिक मामलों में है और साधारण मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील तभी होती है, जबकि राज्य के उच्चतम न्यायालय ने इसकी अनुमति दे दी हो|


    1. न्यायिक पुनरीक्षा या पुनरावलोकन का अधिकार (Power of Judicial Review)-

    • संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति ने उसकी प्रतिष्ठा और महत्त्व को अद्वितीय बना दिया।

    • इस शक्ति के अधीन वह संविधान की व्याख्या करता है और कांग्रेस तथा राज्यों की व्यवस्थापिकाओं के कानूनों एवं अन्य प्रशासनिक आदेशों की वैधानिकता एवं अवैधानिकता का निर्णय करता है। 

    • Note- सर्वोच्च न्यायालय को अकेले पुनरावलोकन व समीक्षा का अधिकार प्राप्त नहीं है। प्रत्येक राज्य के उच्चतम न्यायालय को यह निर्धारित करने का अधिकार है कि राज्य का अमुक कानून संविधान के अनुकूल है अथवा नहीं और संघीय जिला न्यायालय तथा अपील न्यायालय दोनों किसी संघीय कानून, राज्य कानून या राज्य के संविधान की किसी भी व्यवस्था को संघीय संविधान के प्रतिकूल घोषित कर उसके कार्यान्वयन को अमान्य कर सकते हैं। 

    • लेकिन संघीय संविधान के विरुद्ध होने के सब अभियोगों का अन्तिम निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही किया जाता है। 

    • यद्यपि ऐसे मामले संघीय निम्न न्यायालयों और राज्य के उच्च न्यायालयों में भी प्रस्तुत किए जा सकते हैं, परन्तु उनका निर्णय अन्तिम नहीं होता, उनके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। 

    • प्रो. ब्रोगन के अनुसार "सर्वोच्च न्यायालय की सत्ता को हम एक राजनीतिक संस्था और एक ऐसे तृतीय सदन के रूप में समझ सकते हैं जो कार्यपालिका और विधानमण्डल के कार्यों को विशेष सिद्धान्त के अनुसार नियमित करता है|


    1. संविधान, नागरिक अधिकारों का रक्षक एवं अभिभावक

    • जस्टिस हूज (Justice Hugues) "अमरीकी जनता संविधान के अधीन तो है, किन्तु संविधान वही है जो न्यायाधीश कहते हैं।" 

    • सर्वोच्च न्यायालय अमेरिकी जनता के अधिकारों, स्वतंत्रताओं तथा संविधान का रक्षक एवं संघीय व्यवस्था का अभिभावक है। 

    • यह संविधान की अन्तिम व्याख्या कर उसका अन्तिम निर्णय करता है|

    • जेम्स बैक (James Beck) ने कहा है, "सर्वोच्च न्यायालय केवल एक न्यायालय मात्र नहीं है, वरन् यह विशेष अर्थों में एक सतत संविधान-निर्मात्री सभा है।" 

    • जस्टिस फ्रैंकफर्टर (Justice Frankfurter) के शब्दों में, "सर्वोच्च न्यायालय ही संविधान है|"

    • व्हीयर का मत है कि "संविधान को नवीन समाज की आवश्यकताओं के अनुसार ढालना सर्वोच्च न्यायालय का ही कार्य है।" 

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    1. अन्य अधिकार- 

    • सर्वोच्च न्यायालय अन्य छोटे-छोटे कार्य भी करता है। उदाहरणार्थ, निम्न श्रेणी के कर्मचारियों, जैसे- संदेशवाहक, स्टेनोग्राफर आदि की नियुक्ति करता है, दीवानी एवं फौजदारी कार्य-विशेषज्ञों का निर्देशन करता है और अपनी आज्ञाओं को लागू करता है। इस कार्य को आदेश (Writs) के माध्यम से किया जाता है। 

    • सर्वोच्च न्यायालय के कार्यों के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि उसे परामर्श देने का अधिकार नहीं है, जो कि भारतीय सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है। 



    न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का आधार या प्रकृति-

    • कुछ विचारकों के अनुसार न्यायिक पुनरावलोकन की इस शक्ति का कोई सांविधानिक आधार नहीं है । संविधान निर्माताओं का भी ऐसा कोई विचार नहीं था कि न्यायपालिका को इस प्रकार की शक्ति प्रदान की जाये | 

    • राष्ट्रपति जैफरसन ने कहा था कि यदि न्यायपालिका कांग्रेस एवं राष्ट्रपति, अर्थात् व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका के कार्यों का पुनरावलोकन करने के अधिकार का प्रयोग करती है तो न केवल यह शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का ही उल्लंघन है, वरन् संविधान निर्माताओं के विचारों का भी अनादर है।”


    • परन्तु अधिकांश विचारकों का मत है कि संविधान की दो धाराओं में न्यायपालिका की न्यायिक पुनरावलोकन शक्ति अप्रत्यक्ष रूप में निहित है, जिसका उपयोग करते हुए वह कांग्रेस एवं राष्ट्रपति के कार्यों का, पुनरावलोकन कर सकता है। ये दो धाराएँ हैं-

    1. संविधान की चौथी धारा की दूसरी उपधारा- संविधान की चौथी धारा की दूसरी उपधारा में उल्लिखित है कि “यह संविधान और संयुक्त राज्य के वे कानून, जो उसके अनुसार बनाए जाएँ एवं वे सन्धियाँ जो संयुक्त राज्य के अधिकार के अन्तर्गत की गई हों या की जाएँ, देश के सर्वोच्च कानून होंगे।"

    2. संविधान की तीसरी धारा की दूसरी उपधारा- संविधान की धारा तीन की उपधारा दो में कहा गया है कि "कानून और औचित्य के अनुसार न्यायपालिका की शक्ति के क्षेत्र में वे सभी मामले आएँगे जो इस संविधान, संयुक्त राज्य के कानूनों एवं उनके अन्तर्गत की गई अथवा की जाने वाली सन्धियों के अन्तर्गत उत्पन्न हो|”


    • संविधान की चौथी धारा स्पष्टतः प्रतिपादित करती है कि संविधान को देश का सर्वोच्च आधारभूत कानून माना जाना चाहिए। तीसरी धारा का आशय है कि वे सभी मामले, जो उस आधारभूत कानून के अन्तर्गत उत्पन्न होंगे, न्यायिक शक्ति के क्षेत्राधिकार में होंगे । 

    • इस प्रकार इन दोनों ही धाराओं के निष्कर्ष रूप में यह देखना न्यायपालिका का कर्तव्य है कि संविधान की सर्वोच्चता कायम रहे और किसी भी प्रकार उसका उल्लंघन न हो। 

    • न्यायपालिका अपने इस कार्य को उचित रूप से तभी सम्पादित कर सकती है, जब वह संविधान और व्यवस्थापिका के कानूनों को अवैधानिक घोषित करने में सक्षम हो। 

    • न्यायिक पुनरावलोकन की इस शक्ति का संविधान की धारा 6 (खण्ड 8) द्वारा भी समर्थन होता है, जिसमे कहा गया है कि "संविधान और इसके अन्तर्गत निर्मित संयुक्त राज्य के समस्त कानून तथा संयुक्त राज्य की ओर से की गई या की जाने वाल समस्त सन्धियाँ इस देश के सर्वोच्च कानून होंगे।" 

    • संविधान के उपबन्धों के अतिरिक्त संविधान-निर्माताओं तथा विधिवेत्ताओं ने भी संघीय न्यायालय की पुनरावलोकन शक्ति को मान्यता दी है। 

    • 1803 में अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मार्शल ने 'मारबरी बनाम मैडीसन' नामक प्रसिद्ध मुकदमे में न्यायिक पुनरवलोकन की शक्तियों की स्पष्ट रूप से व्याख्या की और अपना निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि संविधान समस्त देश का सर्वोच्च कानून है तथा न्यायाधीशों का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वे इसी के अनुरूप निर्णय दें एवं जब कभी कांग्रेस द्वारा पारित कोई अधिनियम देश के सर्वोच्च कानून, अर्थात् संविधान के विरुद्ध पाया जाए तो न्यायालय का कर्तव्य है कि वह संविधान को प्राथमिकता दे। 

    • इस निर्णय के बाद से ही अमेरिकी न्यायपालिका को न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त हो गया। 


    न्यायिक पुनरावलोकन का प्रभाव-

    • संयुक्त राज्य अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति ने बहुत अधिक प्रभावित किया है। इन प्रभावों को निम्नानुसार विश्लेषित किया जा सकता है-

    1. इस शक्ति के आधार पर ही सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य विधान-मण्डलों और संघीय कांग्रेस द्वारा निर्मित सैकड़ों नियमों को अवैधानिक घोषित कर न्यायिक सर्वोच्चता का सिद्धान्त प्रतिष्ठित किया है।

    2. इसके आधार पर ही राज्यों की तुलना में संघ की स्थिति सुदृढ़ हो गई है और साथ ही इस शक्ति ने राज्यों के अधिकारों की रक्षा करने में भी सहायता प्रदान की है। 

    3. इसका व्यापक प्रभाव राज्य के पुलिस अधिकार पर पड़ता है, जिसमें सार्वजनिक सुरक्षा, जन-कल्याण, स्वास्थ्य, नैतिकता आदि सामाजिक विषय निहित हैं। 

    4. इसने सामाजिक विधायन के क्षेत्र में संघीय सरकार के अधिकारों को प्रभावित किया है। 

    5. इस शक्ति के बल पर सर्वोच्च न्यायालय ने केवल संविधान की आत्मा और भाषा का ही निर्वचन नहीं किया है, बल्कि नीतियों का निर्धारण भी किया है। इसलिए न्यायाधीशों को 'संविधान का नया निर्माता’ तक कह दिया गया है। 


    न्यायिक पुनरावलोकन की आलोचना-

    1. सर्वोच्च न्यायालय ने इस शक्ति के आधार पर व्यवस्थापिका के कार्यों को इतना अधिक अपना लिया है कि प्रतिनिधि सभा जनता की इच्छा को स्वतंत्र रूप से व्यक्त नहीं कर सकती। ब्रोगन के शब्दों में "सर्वोच्च न्यायालय कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका के कार्यों को एक तृतीय सदन के रूप में नियमित करने लगा है और अपने मौलिक कार्यों को समुचित ढंग से नहीं निभा पाता।”

    2. इस शक्ति के बल पर राज्यों के विभिन्न कानूनों की वैधता पर विचार करते समय सर्वोच्च न्यायालय इनके सामान्य औचित्य पर भी विचार कर लेता है। यह उचित नहीं है, क्योंकि उसको तो केवल उनकी वैधता-अवैधता पर ही विचार करना चाहिए। 

    3. सर्वोच्च न्यायालय की नीति में अथवा इसके निर्णयों में एकरूपता का अभाव रहा है। ऐसा देखा गया है कि संघीय न्यायालय के निर्णय कभी उदार रहे हैं तो कभी संकीर्ण और कभी संघ के पक्ष में। 

    4. न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था आधुनिक सामाजिक और आर्थिक अवस्थाओं के लिए अनुपयुक्त है। न्यायिक पुनर्वीक्षा की शक्ति की सहायता से कई अवसरों पर न्यायपालिका निहित स्वार्थों का संरक्षण करती है और प्रगतिशील एवं लोकतंत्रात्मक नीतियों का विरोध कर कुलीनतंत्र का पक्ष लेती है। 

    5. न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति के बल पर कांग्रेस द्वारा कठोर परिश्रम से निर्मित विधि न्यायपालिका द्वारा कभी-कभी अवांछित रूप में नष्ट कर दी जाती है। 

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