राज्यपाल (Governor)
- संविधान के भाग- 6 में अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य की कार्यपालिका का वर्णन है| 
- राज्य की कार्यपालिका में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद, और राज्य का महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) आदि शामिल है| 
- संविधान के भाग- 6 में राज्य सरकार के बारे में बताया गया| 
- अनुच्छेद 152- भाग 6 में र्राज्य पद के अंतर्गत जम्मू कश्मीर राज्य नहीं है| 
- राज्यपाल का उल्लेख भाग- 6 में अनुच्छेद 153 से 162 तक है| 
- राज्यपाल राज्य का कार्यकारी/ संवैधानिक प्रमुख होता है तथा केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है| 
- पद का प्रावधान (अनु- 153) 
- सामान्यतः प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होता है| 
- लेकिन 7वें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 के अनुसार एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है| 
- नियुक्ति (अनु- 155) 
- राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र के द्वारा की जाती है| (कनाडा मॉडल पर आधारित) 
- अर्थात राज्यपाल न तो जनता द्वारा प्रत्यक्ष और न ही राष्ट्रपति की तरह अप्रत्यक्ष चुना जाता है| 
- कार्यकाल/ पदाविधि (अनु- 156) 
- 156 (1) राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत 
- 156 (3) सामान्यतः पद ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष तक| 
- लेकिन कार्यकाल पूरा हो जाने पर भी उत्तराधिकारी के पद ग्रहण तक पद पर कार्य करता रहेगा| 
- Note- कार्यकाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत होने के कारण राष्ट्रपति राज्यपाल को 5 वर्ष पहले भी हटा सकता है, लेकिन राष्ट्रपति राज्यपाल को किस आधार पर हटाएगा, इसका सविधान में उल्लेख नहीं है| 
- त्यागपत्र [अनु 156 (2)] 
- राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख के द्वारा| 
- योग्यता/ अहर्ता अनु (157) 
- भारत का नागरिक हो| 
- न्यूनतम आयु 35 वर्ष हो| 
- दो परंपराएं- 
- वह संबंधित राज्य का न होना चाहिए| 
- राष्ट्रपति राज्यपाल की नियुक्ति में मुख्यमंत्री से परामर्श करेगा| 
- शर्तें (158)- 
- संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य नही होना चाहिए| 
- कोई लाभ का पद धारण न करें| 
- राज्यपाल का वेतन संसद द्वारा विधि बनाकर तय किया जाएगा, जो राज्य की संचित निधि पर भारित होगा| 
3 (क) एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, तो वेतन भत्तों का बंटवारा राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार होगा|
- राज्यपाल के वेतन-भत्ते उसकी पदाविधि के दौरान कम नहीं किए जाएंगे| 
- शपथ/ प्रतिज्ञान (159)- 
- संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा| 
- राज्यपाल सत्यनिष्टा की शपथ लेता है- 
- निष्ठापूर्वक कर्तव्य पालन की 
- संविधान व विधि के परिरक्षण, संरक्षण, प्रतिरक्षण की| 
- (संबंधित राज्य का नाम) की जनता की सेवा व कल्याण में निरत रहने की| 
Note- राष्ट्रपति द्वारा अन्य राज्य का कार्यभार देने पर भी राज्यपाल को शपथ लेनी होती है|
राज्यपाल की शक्तियां व कार्य-
- कार्यकारी शक्ति- 
- अनुच्छेद-154- राज्य की कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा| 
- अनु- 164- राज्यपाल मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है| 
- अनु- 165- राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है| 
- Note- मंत्री व महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसाद पर्यंत पद धारण करते है| 
- अनु- 316- राज्यपाल, राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को नियुक्त करता है| 
- अनु- 317- लेकिन राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य व अध्यक्ष को केवल राष्ट्रपति ही हटा सकता है| 
- अन- 243K- राज्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्त करेगा, सेवा-शर्तें, पदाविधि तय करेगा, लेकिन पद से हटा नहीं सकेगा, क्योंकि इसको हटाने की प्रक्रिया H.C के न्यायधीश की तरह है| 
- अनु- 167 राज्यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य- 
- मुख्यमंत्री राज्य के प्रशासन व विधान विषयक प्रस्थापनाओ संबंधी जानकारी राज्यपाल को दें| 
- मुख्यमंत्री राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओ संबंधी, जो जानकारी राज्यपाल मांगे, वह दे| 
- किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है, किंतु मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है| राज्यपाल द्वारा कहने पर मंत्रिपरिषद के समक्ष विचारार्थ रखें| 
- राज्यपाल राज्य की सभी विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है| 
- वह राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति करता है| 
- विधायी शक्तियां- 
- अनु- 168- राज्यपाल विधान मंडल का अभिन्न अंग होता है| 
- अनु- 174(1)- राज्यपाल राज्य विधानमंडल के अधिवेशन आहूत करता है| 
- अनु- 174(2)(क)- राज्यपाल विधानमंडल के सत्रों का सत्रावसान करता है| 
- अनु- 174(2)(ख)- विधानसभा का विघटन करता है| 
- अनु- 175(1)- राज्यपाल राज्य विधानमंडल के एक सदन या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकता है| 
- अनु 175(2)- राज्यपाल राज्य विधानमंडल में लंबित विधेयक के संबंध में एक सदन या दोनों सदनों को संदेश भेज सकता है| 
- अनु- 176 - ‘राज्यपाल का विशेष अभिभाषण’ 
- राजपाल विधानसभा के प्रत्येक आम चुनाव के बाद प्रथम बैठक तथा प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र की प्रथम बैठक में अभिभाषण करेगा| 
- यदि विधानपरिषद है तो एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधानमंडल को आह्वान का कारण बताएगा| 
- अनु- 171(5) 
- राज्यपाल विधान परिषद में साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन, और समाज सेवा का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले को कुल सदस्य संख्या का 1/6 सदस्य नामित करता है| 
- अनु- 333 
- राज्यपाल राज्य विधानसभा में एक आंग्ल भारतीय सदस्य को नामित कर सकता है, यदि राज्यपाल की राय में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो| 
- Note-एंग्लो इंडियन का मनोनयन राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर करता है| 
- Note-104वां संविधान संशोधन 2019 के द्वारा एंग्लो इंडियन के मनोनयन को समाप्त कर दिया गया है| 
- अनु- 200 ‘विधेयकों पर अनुमति’ 
- विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक जब राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए आता है, तो राज्यपाल के पास निम्न शक्तियां होती हैं- 
- विधेयक पर स्वीकृति दे सकता है| 
- विधेयक पर स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है| 
- विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है| (धन विधेयक को छोड़कर) 
- परंतु विधान मंडल के द्वारा विधेयक पुन: परिवर्तित या बिना परिवर्तित के पारित कर दिया जाता है तो स्वीकृति देना आवश्यक है| 
- विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है| 
- अनु- 213 ‘अध्यादेश जारी करने की शक्ति’ 
- जब विधानमंडल के एक सदन या दोनों सदनों का सत्र नहीं चल रहा होता है, तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है| 
- लेकिन अध्यादेश राष्ट्रपति के अनुदेश पर जारी करता है| 
- अध्यादेश का वही प्रभाव व शक्ति होगी, जो राज्य विधानमंडल के कानूनों की होती है| 
- इन अध्यादेशों को विधानमंडल की पुन: बैठक के छ: सप्ताह में विधान मंडल द्वारा स्वीकृति मिलना आवश्यक है नहीं तो अध्यादेश समाप्त हो जाएगा| 
- राज्यपाल अध्यादेश को किसी भी समय समाप्त कर सकता है| 
- न्यायिक शक्तियां- 
- अनु- 161 ‘क्षमा संबंधी शक्ति’ 
- राज्यपाल के पास संबंधित राज्य में अपराध के लिए दोषी ठहराये गये व्यक्ति के दंड को क्षमा, प्रविलंबन, विराम, परिहार, लघुकरण की शक्ति होगी| 
राष्ट्रपति (अनु-72) व राज्यपाल (अनु-161) की क्षमादान शक्तियों में अंतर
- राष्ट्रपति सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है, लेकिन राज्यपाल नहीं| 
- राष्ट्रपति मृत्यु दंड को क्षमा कर सकता है, लेकिन राज्यपाल नहीं| 
- लेकिन राज्यपाल मृत्युदंड का लघु करण, परिहार, प्रविलंबन, विराम कर सकता है| 
- अनु- 217 
- राष्ट्रपति संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में राज्यपाल से सलाह लेगा| 
- अनु-233 
- राज्यपाल जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति, प्रोन्नति, H.C से परामर्श करके करता है| 
- अनु- 234 
- राज्यपाल राज्य लोकसेवा आयोग तथा H.C से परामर्श करके राज्य न्यायिक सेवा से जुड़े व्यक्तियों की नियुक्ति करता है| 
- राज्यपाल की स्वविवेकीय शक्ति- 
- अनु-163- इस अनुच्छेद में उल्लेखित है, राज्यपाल स्वविवेकीय शक्तियों को छोड़कर मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा| 
- स्वविवेकीय शक्तियों पर राजपाल का निर्णय अंतिम होता है 
निम्न स्वविवेकीय शक्ति हैं-
- अनु- 200- राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी विधेयक को आरक्षित रखना 
- अनु-356- राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना 
- अनु 239(2)- किसी निकटवर्ती केंद्र शासित प्रदेश में प्रशासक नियुक्त किए जाने पर वह प्रशासक के रूप में स्वतंत्र कार्य करेगा| 
- अनु-371- महाराष्ट्र व गुजरात राज्यों के संबंध में विशेष उपबंध- 
- राष्ट्रपति आदेश द्वारा महाराष्ट्र व गुजरात के संबंध में कुछ विषयों के बारे में राज्यपाल के लिए विशेष उत्तरदायित्व घोषित कर सकता है| 
- ऐसे कार्यों के संबंध राज्यपाल स्वविवेक से कार्य करता है| ये विषय निम्न है, जिसके संबंध में राष्ट्रपति आदेश जारी कर सकता है- 
- विदर्भ, मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र या सौराष्ट्र, कच्छ और शेष गुजरात के लिए प्रथक विकास बोर्ड की स्थापना के लिए| 
- समस्त राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उक्त क्षेत्र के विकास व्यय के लिए निधियों के साम्यापूर्ण आवंटन के लिए| 
- समस्त राज्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उक्त सभी क्षेत्रों में तकनीकी और व्यवसायिक प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त सुविधाओं की, राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त अवसरों की साम्यापूर्ण व्यवस्था करने के लिए| 
- अनु 371 क/(A)- नागालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध- 
- निम्न विषयों के संबंध संसद द्वारा बनायी गयी विधि नागालैंड की विधानसभा की सहमति से ही नागालैंड में लागू होगी| 
- नागाओं की धार्मिक एवं सामाजिक प्रथाएं 
- नागा रूढ़िजन्य विधि और प्रक्रिया 
- सिविल और दाण्डिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय नागा रूढ़िजन्य विधि के अनुसार होने हैं| 
- भूमि और उसके संपत्ति स्रोतों का स्वामित्व और अंतरण 
- नागालैंड के राज्यपाल को नागालैंड राज्य में विधि व व्यवस्था के संबंध विशेष उत्तरदायित्व रहेगा| इस संबंध में राज्यपाल अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग मंत्रिपरिषद की परामर्श से करेगा| लेकिन उसका व्यक्तिगत निर्णय अंतिम होगा चाहे मंत्रिपरिषद से परामर्श न ली हो| 
- अनुदान मांग पर भारत सरकार द्वारा भारत की संचित निधि से दिया गया धन संबंधित विषय पर खर्च हो, इसका सुनिश्चिय राज्यपाल अपने विवेक से करेगा| 
- राज्यपाल अपने विवेक से त्युएनसांग जिले के लिए एक 35 सदस्यीय प्रादेशिक परिषद का गठन कर सकता है तथा उसके लिए नियम बना सकता है| 
- त्युएनसांग जिले के संबंध में कुछ विशेष उपबंध करने की राज्यपाल की शक्ति| 
- राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल तथा राज्यसभा सदस्यों के चुनाव में भाग लेने वाले विधानसभा सदस्यों की जगह नागालैंड में नागालैंड प्रादेशिक परिषद द्वारा निर्वाचित नागालैंड विधान सभा के सदस्य होंगे| 
- विधानसभा में सदस्य न्यूनतम 60 की जगह 46 होंगे| 
- अनु 371 (ख) या B- असम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध- 
- राष्ट्रपति आदेश के द्वारा असम के उत्तरी कछार पहाड़ी जिला तथा कार्बी आंगलांग जिला (जो जनजाति क्षेत्र है) के लिए विधानसभा की एक समिति का गठन कर सकता है| 
- अनु 371 (ग) या C- मणिपुर राज्य के संबंध में विशेष उपबंध 
- राष्ट्रपति आदेश के द्वारा मणिपुर के खासी, जयंतिया, गारो पहाड़ी जिले के लिए विधानसभा की एक समिति का गठन कर करेगा| 
- राज्यपाल प्रतिवर्ष या राष्ट्रपति के द्वारा अपेक्षा किए जाने पर पहाड़ी क्षेत्र के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देता है| तथा संघ की कार्यपालिका पहाड़ी क्षेत्र के प्रशासन के बारे में राज्य को निर्देश दे सकती हैं| 
- अनु 371 (घ) या D- आंध्र प्रदेश राज्य के बारे में विशेष उपबंध- 
- राष्ट्रपति आदेश द्वारा संपूर्ण आंध्र प्रदेश के विभिन्न भागों के लोगों के लिए लोक नियोजन के विषय में और शिक्षा के विषय में साम्यपूर्ण अवसरों और सुविधाओं का उपबंध कर सकता है| 
- अनु.371 ‘E’ - आंध्र प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना 
- संसद विधि द्वारा आंध्र प्रदेश में एक विश्वविद्यालय की स्थापना कर सकती है| 
- अनु 371 ‘F’ (36 वे संशोधन1975 द्वारा जोड़ा गया)- सिक्किम राज्य के लिए विशेष उपबंध- 
- सिक्किम राज्य की विधानसभा में कम से कम 30 सदस्य होंगे| 
- 1974 के निर्वाचन में 32 सदस्यों की विधानसभा बना| 
- सिक्किम की विधानसभा का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है| 
- राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व होगा कि शांति के लिए, सिक्किम जनता की सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिए साम्यपूर्ण व्यवस्था का निर्माण करें| 
- अनु 371 ‘G’ (53वां संशोधन 1986 द्वारा जोड़ा गया)- मिजोरम राज्य के संबंध में विशेष उपबंध 
- निम्न विषयों के संबंध संसद द्वारा बनाई गई विधि तब तक लागू नहीं होगी जब तक मिजोरम की विधानसभा संकल्प पारित न करें|- 
- मिजो लोगों की धार्मिक या सामाजिक प्रथाएं 
- मिजो रूढ़िजन्य विधि और प्रक्रिया 
- सिविल और दाण्डिक न्याय प्रशासन, जहां विनिश्चय मिजो रूढ़िजन्य के अनुसार होने है| 
- भूमि का स्वामित्व व अंतरण| 
- मिजोरम की विधानसभा में कम से कम 40 सदस्य होंगे| 
- अनु-371 H (55 वा संशोधन 1986 द्वारा जोड़ा गया)- अरुणाचल प्रदेश के संबंध में विशेष उपबंध- 
- राज्यपाल का अरुणाचल प्रदेश में विधि और व्यवस्था के संबंध में विशेष उत्तरदायित्व होगा| 
- राज्यपाल इस संबंध में की जाने वाली कार्यवाहियों के संबंध में अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग मंत्रीपरिषद से परामर्श करने के पश्चात करेगा| 
- लेकिन राज्यपाल का व्यक्तिगत निर्णय अंतिम होगा| 
- अनु 371 ‘I’ ( 56 वां संशोधन 1987 द्वारा जोड़ा गया)- गोवा राज्य के संबंध में विशेष उपबंध 
- गोवा राज्य की विधानसभा में कम से कम 30 सदस्य होंगे| 
- अनुच्छेद 371 J (98 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2012 द्वारा जोड़ा गया)) कर्नाटक राज्य के संबंध में विशेष उपबंध 
- राष्ट्रपति आदेश के द्वारा हैदराबाद, कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक पृथक विकास बोर्ड की स्थापना कर सकता है| 
- अनुसूची- 6, पैरा - 9 
- असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम में खनिज उत्खनन की रॉयल्टी (आय का कुछ हिस्सा) जिला परिषद को दी जाएगी| इस संबंध में विवाद होने पर राज्यपाल का विवेकाधीन निर्णय अंतिम होगा| 
- अनु 167- 
- राज्य के विधान एवं प्रशासनिक विषयों के संबंध में मुख्यमंत्री से जानकारी लेना| 
- राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां- 
- अनु- 202 
- राज्यपाल प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बजट (वार्षिक वित्तीय वितरण) को विधानमंडल के सदन या सदनों के समक्ष रखवाएगा| 
- अनु 199- 
- धन विधेयक को राज्य विधानसभा में राज्यपाल की पूर्व अनुमति के बाद ही प्रस्तुत किया जा सकता है| 
- राज्यपाल की सहमति के बिना किसी तरह की अनुदान की मांग नहीं की जा सकती है| 
- अनु 267 
- राज्यपाल का राज्य की आकस्मिक निधि पर पूर्ण नियंत्रण होता है| 
- नगर पालिका (243Y) व पंचायतों (243 I) के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में वित्त आयोग का गठन करना| 
राजपाल व राष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति में भिन्नता -
- संविधान में राज्यपाल के लिए यह उल्लेख है कि वह स्वविवेक का प्रयोग कुछ स्थितियों में कर सकता है (अनु-163), जबकि राष्ट्रपति के मामले में ऐसी कल्पना नहीं की गई है| 
- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के बाद राष्ट्रपति के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह बाध्यकारी है, जबकि राज्यपाल के संबंध में इस तरह का कोई उपबंध नहीं है| 
Note- BP सिंगल बनाम भारत संघ 2010- किसी भी राज्य के राज्यपाल को राजनीतिक विचारधारा के आधार पर नहीं हटाया जा सकता है|
Note- पुंछी आयोग ने राज्यपालों को हटाने के लिए महाभियोग प्रक्रिया अपनाने का सुझाव दिया था|
राज्यपाल की भूमिका-
- राज्यपाल की भूमिका दो तरह की होती है- 
- केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में 
- राज्य की कार्यपालिका के संवैधानिक प्रधान के रूप में 
- सरोजिनी नायडू के अनुसार “राज्यपाल उस पक्षी की भांति है, जो सोने के पिंजरे में बंद है|” 
- राज्यपाल की भूमिका बुद्धिमान परामर्शदाता तथा एक मध्यस्थ की सी है| वह सामान्यतः मंत्रिमंडल की सलाह के अनुसार कार्य करता है| 
- पट्टाभि सीतारमैय्या के अनुसार “राज्यपाल का कार्य मेहमानों की इज्जत करने, उनको चाय, भोजन तथा दावत देने के अलावा कुछ नहीं है|” 
राज्यपाल के पद से संबंधित प्रमुख समितियां व आयोग
- राज्यपाल का पद प्रारंभ से ही विवाद का केंद्र रहा है| इस संबंध में सर्वानुमति बनाने के लिए समय-समय पर विभिन्न आयोग एवं समितियां गठित की गई, जो निम्न है- 
- प्रशासनिक सुधार आयोग 1966- 
- इसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई बाद में के. हनुमन्तैया थे| 
- इस आयोग ने कहा कि राज्यपाल की नियुक्ति के समय संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से परामर्श किया जाना चाहिए| 
- राज्यपाल के पद पर मात्र उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाना चाहिए, जिसे सार्वजनिक जीवन तथा प्रशासन का अनुभव हो| 
- राजमन्नार आयोग 1969- 
- तमिलनाडु सरकार ने 22 सितंबर 1969 को डॉ पी वी राजमन्नार की अध्यक्षता में राज्यों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए सुझाव देने हेतु गठित की| 
- तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित इस समिति ने परामर्श दिया कि मुख्यमंत्री के परामर्श से ही राज्यपाल की नियुक्ति की जानी चाहिए| 
- इस प्रावधान को हटा देना चाहिए कि राज्यपाल के प्रसादपर्यंत मंत्री कार्यरत रहेगा| 
- राज्यपाल पद से सेवानिवृत्त किसी व्यक्ति को पुन: केंद्र सरकार में नहीं लिया जाना चाहिए| 
- राज्यपाल को सिद्ध कदाचार अथवा अक्षमता के आधार पर केवल उच्च न्यायालय के द्वारा ही हटाया जाना चाहिए| 
- अगर विधानसभा में किसी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ हो तो राज्यपाल को चाहिए कि मुख्यमंत्री के चयन हेतु विशेष अधिवेशन बुलाए| 
- भगवान सहाय समिति 1970- 
- यह समिति जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल भगवान सहाय की अध्यक्षता में गठित की गई थी| 
- राज्यपाल व मंत्रीपरिषद के आपसी संबंधों को निश्चित करने के लिए समिति का गठन राष्ट्रपति ने किया था| 
- इस समिति की सिफारिशें निम्न है- 
- यदि विधानसभा में मंत्रीपरिषद को स्पष्ट बहुमत के संदर्भ में संदेह हो तथा मुख्यमंत्री विधानसभा का सत्र बुलाने में आनाकानी करे तो राज्यपाल को चाहिए कि वह मंत्रिमंडल को बर्खास्त कर दे| 
- यदि किसी मुख्यमंत्री के त्यागपत्र अथवा बर्खास्तगी के पश्चात नई सरकार की समस्त संभावनाएं क्षीण हो गई हो तो राज्यपाल विधानसभा भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू कर दे| 
- सरकारिया आयोग 1983- 
- इसके अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायधीश रणजीत सिंह सरकारिया थे। 
- इस समिति ने सिफारिश की है, कि राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य का नहीं होना चाहिए| 
- राज्यपाल को चाहिए कि जिस दल अथवा गठबंधन को विधानसभा में सर्वाधिक बहुमत प्राप्त है, उसे ही सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें| 
- निर्वाचन में पराजित व्यक्तियों की नियुक्ति राज्यपाल के रूप में नहीं की जानी चाहिए तथा भविष्य में राज्यपाल को कोई लाभ का पद प्रदान नहीं किया जाना चाहिए| 
- राज्यपाल पद की नियुक्ति के समय मुख्यमंत्री की सलाह को संवैधानिक रूप से अनिवार्य घोषित किया जाना चाहिए| 
- यदि राज्य मंत्री परिषद राज्य विधानसभा में अपना बहुमत खो देती है, तो दूसरे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए| इसके पश्चात भी सरकार गठित नहीं होने पर राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा करनी चाहिए| 
राजस्थान में अब तक बने राज्यपाल -
- गुरुमुख निहाल सिंह (01-11-1956 से 15-04 1962) 
- राजस्थान के प्रथम राज्यपाल 
- सर्वाधिक कार्यकाल वाले राज्यपाल 
- राज्यपाल बनने से पूर्व दिल्ली के मुख्यमंत्री रह चुके थे| 
- राष्ट्रीय कांग्रेस से थे| 
- डॉक्टर संपूर्णानंद (1962 से 1967)- 
- इनके समय प्रथम बार राष्ट्रपति शासन लगा| 
- सरदार हुकुम सिंह (1967 से 1972) 
- राज्यपाल बनने से पहले लोकसभा अध्यक्ष रहे| 
Note- जगत नारायण (20 -11-1970 से 23 -12-1970) कार्यवाहक राज्यपाल बने| सरदार हुकुम दो बार राज्यपाल बने थे
- 1967 से 1970 
- 1970 से 1972 
- सरदार जोगिंदर सिंह (1972 से 77) 
- प्रथम राज्यपाल जिसने अपने पद से त्यागपत्र दिया| 
Note- वेदपाल त्यागी (15-02-1977 से 11-05-1977) कार्यवाहक राज्यपाल बने|
- रघुकुल तिलक (1977 से 1981) 
- Note- KD शर्मा (1981 से 1982) में कार्यवाहक राज्यपाल रहे| 
- ओम प्रकाश मेहरा- (1982 से 1985) 
- भारतीय वायु सेना में वायुसेना अध्यक्ष रहे| 
Note- P.K बनर्जी (1985) में कार्यवाहक राज्यपाल रहे|
Note - इसके बाद DP गुप्ता (1985) में कार्यवाहक राज्यपाल बने|
- बसंत राव पाटील (1985 से 1987) 
- Note- 1987 से 1988 में जगदीश शरण वर्मा कार्यवाहक राज्यपाल बने| 
- सुखदेव प्रसाद ( 1988 से 1989) 
- पुन: (1989 से 1990) 
Note- इस बीच जगदीश शरण वर्मा 03-02-1989 से 19-02-1989 तक कार्यवाहक राज्यपाल रहे|
- मिलाप चंद्र जैन - (फरवरी 1990 से अगस्त 1990) 
- देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय (1990 से 1991) 
- स्वरूप सिंह (1991 से 1992) 
- इनको अतिरिक्त प्रभार दिया गया 
- डॉ एम चेन्नारेड्डी (1992 से 1993) 
Note- धनिक लाल मंडल 1993 में कार्यवाहक राज्यपाल बने|
- बलिराम भगत (30-06-1993 से 01-05- 1998) 
- ये पांचवीं लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं| 
- दरबार सिंह (01-05- 1998 से 24-05-1998) 
- सबसे कम कार्यकाल 
- प्रथम राज्यपाल जिनकी पद पर रहते हुए मृत्यु हुई| 
Note- N.L टिबरेवाला (1998 से 1999) में कार्यवाहक राज्यपाल बने|
- अंशुमान सिंह (1999 से 2003) 
- निर्मल चंद जैन ( 2003 से 2003) 
- पद पर रहते हुए मृत्यु हुई| 
- कैलाशपति मिश्र (2003 से 2004) 
- अतिरिक्त प्रभार 
- मदनलाल खुराना (2004 से 2004) 
- T.V राजेश्वर (2004 से 2004) 
- अतिरिक्त प्रभार 
- प्रतिभा पाटिल (2004 से 2007) 
- प्रथम महिला राज्यपाल 
- AR किदवई (2007 से 2007) 
- कार्यवाहक राज्यपाल 
- शैलेंद्र कुमार सिंह/ S.K सिंह (2007 से 2009) 
- पद पर रहते मृत्यु 
- श्रीमती प्रभा राव -(2004 से 2010) 
- पद पर रहते निधन 
- प्रथम महिला राज्यपाल जिनकी पद पर रहते मृत्यु हुई| 
- शिवराज पाटील (2010 से 2012) 
- अतिरिक्त कार्यभार 
- श्रीमती मारग्रेट अल्वा (2012 से 2014) 
- रामनाइक (2014 से 2014) 
- अतिरिक्त कार्यभार 
- कल्याण सिंह (04-04 2014 से 02-09-2019) 
- ये राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे हैं| 
- उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं| 
- श्री कलराज मिश्र (09-09-2019 से लगातार) 
- इन्होने राजस्थान के राज्यपाल के रुप में 09 सितम्बर 2019 को शपथ ग्रहण की। 
- ये पूर्व में हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल एवं सोलहवीं लोकसभा में सूक्ष्म एवं लघु उघोग मंत्री रहे है। 

 
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