जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) 1889-1964
जीवन परिचय -
जन्म - 14 नवंबर 1889
इलाहाबाद के एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में
पिता - मोतीलाल नेहरू, जो प्रसिद्ध वकील तथा पाश्चात्य जीवन पद्धति से प्रभावित थे|
माता - स्वरूप रानी नेहरू
जवाहरलाल नेहरू का पालन-पोषण अनेक भव्य निवास ‘आनंद भवन’ में विलासिता एवं संपन्नता के वातावरण में हुआ|
इसके पिता ने श्रीमती एनीबेसेंट के सुझाव पर एक आयरिश शिक्षक टी. ब्रुक्स को जवाहरलाल नेहरू की घर पर शिक्षा के लिए नियुक्त किया|
नेहरू ने 1905-1912 तक इंग्लैंड के हैरो स्कूल व कैंब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की|
लंदन के इंटर टेंपल कॉलेज से 1912 में बैरिस्टर की परीक्षा उत्तीर्ण की |
1912 में भारत लौट आये, तथा इलाहाबाद में वकालत का पेशा अपनाया|
1912 में नेहरू ने बांकीपुर कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया|
1913 में नेहरू संयुक्त प्रांत कांग्रेस (उत्तर प्रदेश कांग्रेस) के सदस्य बने|
सन 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में इनकी मुलाकात गांधीजी से हुई|
सन 1916 में इनका विवाह कमला नेहरू से हुआ|
6 अप्रैल 1919 में रॉलेक्ट एक्ट के विरोध गांधीजी ने हड़ताल की तो नेहरू ने इसमें भाग लिया तथा यहां से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत होती है|
1920 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन के समय इन्होंने अपना वकालत का पेशा त्याग दिया तथा इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया| इसी आंदोलन के प्रसंग में नेहरू का 1921 में पहली बार 6 माह का कारावास हुआ|
1922 में नेहरू इलाहाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष पद पर सर्वसहमति से निर्वाचित हुए|
1927 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में (ब्रूसेल्स) जेनेवा में आयोजित साम्राज्यवादी विरोधी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया|
1927 में नेहरू व उनके पिता ने सोवियत संघ के निमंत्रण पर वहां की यात्रा की|
1928 में साइमन कमीशन की लखनऊ यात्रा के दौरान नेहरू ने इनका विरोध किया और लाठी के प्रहार सहे|
1928 में ‘इंडिपेंडेंस लीग’ की स्थापना की|
1929 में प्रथम बार कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षता की तथा इस अधिवेशन में राष्ट्रीय आंदोलन का लक्ष्य ‘पूर्ण स्वराज’ की प्राप्ति घोषित किया|
1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया| इस आंदोलन में भाग लेने के कारण 14 अप्रैल 1930 को नेहरू को गिरफ्तारी कर लिया गया|
1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन में नेहरू ने भारत की आर्थिक समस्याओं पर गंभीर विचार प्रस्तुत किए तथा उद्योगों के राष्ट्रीयकरण, भूमि सुधार तथा श्रमिकों की दशा में सुधार पर बल दिया|
नेहरू कांग्रेस के तीन बार अध्यक्ष चुने गये -
1929 लाहौर अधिवेशन
1936 लखनऊ अधिवेशन,
1937 फैजपुर अधिवेशन
Note-1946 मेरठ अधिवेशन में भी अध्यक्ष बने थे लेकिन एक महीने बाद अंतरिम सरकार में उपाध्यक्ष बन गए अतः इस्तीफा दे दिया और बाद में जेबी कृपलानी अध्यक्ष बने थे|
1936 के लखनऊ अधिवेशन में भारत एवं विश्व की प्रमुख समस्याओं के समाधान के लिए समाजवाद अपनाने पर बल दिया|
1938 में नेहरू को कांग्रेस की ‘राष्ट्रीय योजना समिति’ का अध्यक्ष बनाया गया|
गांधीजी व नेहरू में मतभेद होने के कारण 1934 में गांधीजी ने कांग्रेस की सदस्यता त्याग दी और कहा कि “अब वे स्वयं को कांग्रेस में एक अनुपयोगी भार मात्र महसूस करते हैं|”
8 अगस्त 1942 की रात को बंबई अधिवेशन में गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया| 9 अगस्त 1942 को अन्य नेताओं के साथ नेहरू को भी गिरफ्तार कर लिया गया|
नेहरू अपने जीवन में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में 9 वर्ष से अधिक जेल में काटा|
1945 में नेहरू ने वायसराय के बुलाने पर शिमला सम्मेलन में भाग लिया|
1945 में जनादेश से आजाद हिंद फौज के 3 फौजी शाहनवाज,ढिल्लो व सहगल के विरुद्ध राजद्रोह मुकदमा चलाया गया तो नेहरू ने इनकी ओर से मुकदमे की पैरवी की|
1952 में ग्रामीण विकास में जन भागीदारी बढ़ाने हेतु सामुदायिक विकास कार्यक्रम चलाया|
1955 में नेहरू को भारत रत्न दिया गया|
2 सितंबर1946 को नेहरू द्वारा भारत की अंतरिम सरकार का गठन किया गया, नेहरू अंतरिम सरकार में उपाध्यक्ष थे तथा इनको विदेश विभाग सौंपा गया|
आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री तथा विदेशमंत्री बने|
भारत की आजादी से लेकर अपनी मृत्यु तक देश के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री रहे|
नेहरू पंचशील समझौता (1954) व गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रमुख रणनीतिकार थे|
15 अगस्त 1947 को संविधान सभा में मध्यरात्रि को दिया गया उनका भाषण ‘भाग्यवधू के साथ चिर प्रतीक्षित मुलाकात (Tryst With Destiny)’ अत्यंत प्रसिद्ध है|
27 मई 1964 को नेहरू की मृत्यु हो गयी|
गांधीजी ने नेहरू के बारे में कहा “वे नितांत उज्जवल है, उनकी सच्चाई संदेह से परे है, राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है|”
नेहरू की रचनाएं -
Soviet Russia 1928
The discovery of India 1946
An Autobiography (my story) 1936-
1935 में नेहरू ने जेल में रहते हुए अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ लिखी|
विश्व इतिहास की झलकियां (Glimpses of the world history) 1938
Unity of India 1941
Towards freedom 1941
Letters from a father to his daughter 1929
Visit to America 1950
The question of language 1937
India and the world 1936
China-Spain and the war 1940
A Bunch of old letter 1958
नेहरूजी के विभिन्न भाषणों को चार खंडों में Before and after independence-Nehru’s speeches के नाम से प्रकाशित किया गया है|
संपूर्ण रचनाओं का प्रकाशन आठ खंडों में Selected works of Jawaharlal Nehru के नाम से किया गया है|
नेहरू के ‘वसीयतनामा’ का भी प्रकाशन हुआ है|
Nehru- A Political Biography के लेखक माइकल ब्रेशर है
नेहरू पर प्रभाव
जवाहरलाल नेहरू पर सबसे अधिक प्रभाव अपने पिता पंडित मोतीलाल नेहरू के व्यक्तित्व और विचारों का पड़ा है|
नेहरू पर पिता के बाद सबसे अधिक प्रभाव महात्मा गांधी का है| क्रांति लाने के गांधीजी के अहिंसात्मक तरीके से नेहरू बहुत अधिक प्रभावित थे| नेहरू का पंचशील वस्तुतः गांधीजी के विश्वशांति के आदर्शों पर आधारित है|
पाश्चात्य राजनीतिक विचारको में सबसे अधिक प्रभाव नेहरू पर कार्ल मार्क्स का पड़ा है| इनके अलावा श्रीमती एनी बेसेंट, अपने शिक्षक टी. ब्रुक्स, दार्शनिक बट्रेंड रसैल, स्पेंसर, आइंस्टीन, ऑस्करवाल्ड, जॉन स्टूअर्ट मिल, ग्लैडस्टोन और बनार्ड शो के विचारों का प्रभाव पड़ा है|
नेहरू के मानवतावाद पर गांधीजी के अतिरिक्त रविंद्र नाथ टैगोर के विचारों का प्रभाव भी पड़ा है|
नेहरू को महात्मा गौतम बुद्ध और ईसा के सत्य और अहिंसा के उपदेशों ने भी प्रभावित किया है|
नेहरू भगवत गीता के निष्काम कर्म योग से भी प्रभावित है|
नेहरू “मैं पूर्व और पश्चिम का अजीब मेला बन गया हूं|”
नेहरू का दर्शन -वैज्ञानिक,तार्किक और मानवतावादी
नेहरू ने अपनी पुस्तक हिंदुस्तान की कहानी और प्रसिद्ध भाषण बेसिक अप्रोच में जीवन दर्शन पर विचार दिया है|
नेहरू “जिंदगी के बारे में हम सब का कोई न कोई दर्शन होता है, वह महज धुंधला हो या किसी हद तक स्पष्ट”
नेहरू “राजनीति मुझे अर्थशास्त्र में लाई, अर्थशास्त्र विज्ञान में, विज्ञान ने मुझे गरीबी, भुखमरी, अंधविश्वास, रूढ़िवाद के खिलाफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया|”
नेहरू “केवल विज्ञान ही इस देश की समस्या को सुलझा सकता है भविष्य विज्ञान का और विज्ञान से मैत्री करने वालों का है|”
नेहरू के दर्शन की निम्न विशेषताएं हैं -
नेहरू आधुनिकीकरण, विज्ञान व प्रौद्योगिकी तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के समर्थक थे|
नेहरू का चिंतन मूलतः बुद्धिवादी एवं यथार्थवादी है|
नेहरू के दर्शन में विशिष्ट प्रकार का रहस्यवाद, संशयवाद एवं अज्ञेयवाद है, धर्म तथा ईश्वर के मामले में अज्ञेयवादी थे|
नेहरू का दर्शन मानवतावादी है| मानवतावाद धारणा का समर्थन नेहरू लौकिक आधार पर करता है|
नेहरू की संपूर्ण विचारधारा का मूल केंद्र मानव है|
नेहरू अनुभववादी चिंतक है|
नेहरू का वैज्ञानिक मानवतावाद, वैज्ञानिक आयाम (कार्ल मार्क्स) तथा आध्यात्मिक आयाम (गांधी) का मिश्रण था| यह मानव कल्याण के लिए तार्किक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ साथ आध्यात्मिक दृष्टिकोण को मिलाता है|
नेहरू का इतिहास संबंधी दृष्टिकोण -
नेहरू की इतिहास संबंधी धारणा मूलतः ऐतिहासिक समाजशास्त्रीय हैं| जिस पर कार्ल मार्क्स का प्रभाव दिखता है|
नेहरू ने अपनी इतिहास की व्याख्या में भौतिक परिस्थितियों की भूमिका को प्रमुखता दी है, किंतु इसके साथ ही इतिहास के निर्माण में महापुरुषों की भूमिका को भी स्वीकारा है|
सत्य एवं अहिंसा संबंधी दृष्टिकोण -
नेहरू की सत्य में आस्था थी किंतु गांधीजी ने इस विचार से सहमत नहीं है कि ‘सत्य ही ईश्वर है|’
नेहरू सापेक्ष सत्य को लौकिक सत्य मानता है| उसके अनुसार सापेक्ष सत्य भौतिक परिस्थितियों से उत्पन्न है जिसे इंद्रियों व बुद्धि की मदद से वस्तुपरक रूप में समझा जा सकता है|
नेहरू ने हिंसा की तुलना में अहिंसा को श्रेष्ठ साधन माना है| किंतु नेहरू गांधीजी की तरह अहिंसा को एक धर्म अथवा शाश्वत नैतिक मूल्य नहीं मानता है|
नेहरू ने अहिंसा को एक नीति के रूप में स्वीकारा है| नेहरू का मत गृह-युद्ध अथवा विदेशी आक्रमण के समय हिंसात्मक साधन अपनाए जा सकते हैं|
धर्मनिरपेक्षता पर नेहरू के विचार
नेहरू मूलत: धर्मनिरपेक्षतावादी थे|
नेहरु हिंदू व मुस्लिम संप्रदायवाद व धार्मिक आधार पर राजनीतिक दल निर्माण के कट्टर विरोधी थे| इसलिए उन्होंने हिंदू महासभा, r.s.s,. अकाली दल, मुस्लिम लीग की हमेशा आलोचना की|
नेहरू के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक व अंतः करण की स्वतंत्रता देना तथा राज्य का अपना कोई धर्म ना होना व राज्य द्वारा सभी धर्मों को समान महत्व देना है|
सरदार पटेल व्यंग्यात्मक रूप में कहा करते थे “भारत में एक ही राष्ट्रीय मुसलमान है और वह है नेहरू|”
नेहरू के लोकतंत्र संबंधी विचार -
नेहरू के लोकतंत्र संबंधी विचारों पर लॉक, रूसो, बेंथम, मिल आदि उदारवादियों के साथ ही विकासवादी व लोकतांत्रिक समाजवादियों के विचारों का प्रभाव दिखता है|
नेहरू मानवतावादी चिंतक है इसकी लोकतंत्र संबंधी धारणा भी मानवतावाद पर आधारित है|
लोकतंत्र के संबंध में नेहरू के निम्न विचार हैं -
नेहरू ने नैतिक एवं मानवीय आधारों पर अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं एवं शासन-प्रणालियों की तुलना में लोकतांत्रिक व्यवस्था श्रेष्ठ माना है|
नेहरू लोकतंत्र को एक गत्यात्मक व्यापक अवधारणा मानता है जो लगातार बदलती सामाजिक- आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है|
नेहरू के मत में लोकतंत्र मानव चेतना पर आधारित एक नैतिक दृष्टिकोण एवं नैतिक जीवन - पद्धति है|
नेहरू ने लोकतंत्र के तीन पक्ष या आयाम बताए हैं -
सामाजिक लोकतंत्र - इसका अर्थ है- धर्म, जन्म, जाति, लिंग, भाषा, स्थान के आधार पर मौजूद विशेषाधिकारों को समाप्त करना और सामाजिक समानता की स्थापना करना|
राजनीति लोकतंत्र - इसका अर्थ है- नागरिक स्वतंत्रता, विधि का शासन, जनता के प्रति उत्तरदायी शासन की स्थापना करना|
आर्थिक लोकतंत्र - आर्थिक क्षेत्र में एकाधिकार एवं शोषण का अंत और आर्थिक समानता की स्थापना|
नेहरू “लोकतंत्र का यदि कोई अर्थ है, तो यह समानता है, न केवल मताधिकार की समानता, अपितु आर्थिक और सामाजिक समानता भी|”
नेहरू “वोट की अपेक्षा रोटी ज्यादा जरूरी है|”
नेहरू ने अध्यक्षात्मक लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली के तुलना में संसदीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अधिक उपयुक्त माना है| नेहरू के मत में संसदीय लोकतंत्र में वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श की पद्धति द्वारा सार्वजनिक हित में आम सहमति प्राप्त करने के अनेक अवसर होते हैं| संसदीय लोकतंत्र में सामाजिक व आर्थिक न्याय के कार्यक्रमों का निर्माण और उन्हें लागू करना अधिक आसान और बाधारहित होता है|
नेहरू के मत में लोकतंत्र में राजनीतिक स्वतंत्रता, सत्ता का विकेंद्रीकरण, जागरुक व संगठित लोकमत आवश्यक है|
नेहरू ने लोकतंत्र की सफलता की प्रमुख शर्त जनता का शिक्षित होना स्वीकारा है|
नेहरू लोकतंत्र के सफल संचालन एवं स्थायित्व के लिए बहुदलीय व्यवस्था को हानिकारक मानते थे|
नेहरू के मत में एक सुद्ढ़, प्रभावशाली तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध विपक्षी दल लोकतंत्र के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है|
राजनीतिक लोकतंत्र की सफलता के लिए उसका विस्तार आर्थिक लोकतंत्र तक किया जाय|
नेहरू के मत लोकतांत्रिक राज्य, लोक कल्याणकारी तथा समाजसेवी राज्य होना चाहिए|
नेहरू और लोकतांत्रिक समाजवाद -
नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकतांत्रिक समाजवाद को अपना उद्देश्य घोषित किया|
नेहरू एक अनुभववादी चिंतक है| उनके संपूर्ण समाजवादी चिंतन का निर्माण भी जीवन की वास्तविक परिस्थितियों के आधार पर हुआ है|
नेहरू के चिंतन में मानववाद, लोकतंत्र तथा समाजवाद एक दूसरे के साथ घनिष्ठतम रूप से जुड़े हुए हैं|
1936 के लखनऊ अधिवेशन में नेहरू ने कहा कि “मेरा यकीन है कि दुनिया की और हिंदुस्तान की समस्या का एक ही हल है और वह है समाजवाद|”
Note- नेहरू का समाजवाद इंग्लैंड के फेबियन समाजवाद को अपना आदर्श मानता है| नेहरू को भारतीय फेबियन वादी कहा जाता है|
नेहरू के लोकतांत्रिक समाजवादी चिंतन की प्रमुख विशेषताएं निम्न है-
समाजवाद की गतिशील एवं मानवतावादी धारणा का समर्थन -
नेहरू के समाजवाद को लोकतांत्रिक समाजवाद कहा जाता है| नेहरू का मत था कि समाजवाद व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति समाजवाद के लिए नहीं है|
लोकतांत्रिक समाजवाद और समानता का विचार -
लोकतांत्रिक समाजवाद के अनुसार समानता का अर्थ एकरूपता नहीं है, अपितु प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रूचि एवं योग्यता के अनुसार विविधतापूर्ण ढंग से अपना जीवन व्यतीत करने का पर्याप्त अवसर देना है|
लोकतांत्रिक समाजवाद और स्वतंत्रता का विचार -
नेहरू ने स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं माना है| जबकि स्वतंत्रता का अर्थ है कि राज्य का दायित्व है कि वह प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रूचि के अनुसार जीवन जीने का अवसर दें और तब तक व्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करें, जब तक कि उसकी स्वतंत्रता अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता में बाधक न हो|
नेहरू राजनीतिक स्वतंत्रता पर विशेष बल देता है
लोकतंत्र समाजवाद में लोकतंत्र का तत्व
लोकतंत्र नेहरू की समाजवादी धारणा का प्रारंभिक बिंदु भी है और अंतिम भी|
नेहरू की लोकतंत्र की अवधारणा बहुआयामी है, जो राजनीतिक लोकतंत्र से क्रमशः सामाजिक लोकतंत्र तथा आर्थिक लोकतंत्र की दिशा में विकसित होती है|
नेहरू ने आर्थिक लोकतंत्र के विशिष्ट रूप को लोकतांत्रिक समाजवाद कहा है|
जून 1963 में कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में नेहरू ने कहा कि “लोकतंत्र का अपरिहार्य परिणाम समाजवाद है| राजनीतिक लोकतंत्र में यदि आर्थिक लोकतंत्र शामिल नहीं है तो वह अर्थहीन है|"
नेहरू व्यक्ति की स्वतंत्रता का पूर्ण समर्थक है|
लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना का साधन -
नेहरू ने समाजवाद को नैतिक जीवन पद्धति के रूप में स्वीकारा है|
समाजवाद को साध्य माना है तथा उसकी प्राप्ति के साधनों की पवित्रता को स्वीकारा है|
नेहरू समाजवाद की स्थापना के लिए शांतिपूर्ण संवैधानिक साधनों के पक्षघर है
लोकतांत्रिक समाजवादी अर्थव्यवस्था-
नेहरू ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप सर्वथा उपयुक्त माना है|
नेहरू ने औद्योगिकरण पर बल दिया है तथा घाटे के बजट की व्यवस्था को स्वीकारा है|
प्रगतिशील कर प्रणाली का समर्थन किया है|
कुटीर एवं ग्रामीण उद्योगों की उपयोगिता को स्वीकारा है|
सहकारी उद्योग, सहकारी साख समितियां तथा सहकारी बैंकों की भूमिका को स्वीकारा है|
आर्थिक नियोजन का समर्थन-
1927 में सोवियत संघ की यात्रा के बाद से ही नेहरू ने समाजवादी अर्थव्यवस्था की स्थापना में आर्थिक नियोजन को महत्वपूर्ण माना है |
नेहरू के प्रयत्नों से पराधीन भारत में कांग्रेस पार्टी ने ‘राष्ट्रीय नियोजन समिति’ 1938 का गठन किया|
स्वतंत्रता के बाद आर्थिक नियोजन के लिए राष्ट्रीय योजना आयोग 1950 की स्थापना की तथा पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत की|
नेहरू ने आर्थिक नियोजन प्रणाली, साम्यवादी आर्थिक नियोजन प्रणाली से ग्रहण की है लेकिन कुछ मामलों में उससे भिन्न है -
साम्यवादी प्रणाली प्रकृति से केंद्रीकृत तथा सत्तावादी है, वही नेहरू की नियोजन प्रणाली प्रकृति से लोकतांत्रिक तथा विकेंद्रित है|
साम्यवादी प्रणाली बड़े उद्योगों की स्थापना पर बल देती है जबकि नेहरू की लोकतांत्रिक नियोजन प्रणाली मिश्रित उद्योग की स्थापना पर बल देती है|
नेहरू के लोक कल्याणकारी सामाजिक-आर्थिक नीतियों का समर्थन किया है|
लोकतंत्र समाजवाद के प्रति नेहरू की प्रतिबद्धता -
नेहरू ने नीति निदेशक- तत्वों के अंतर्गत लोकतांत्रिक समाजवादी कार्यक्रम के अनेक अंशों को सम्मिलित किए जाने का समर्थन किया|
1954 में नेहरू के नेतृत्व में संसद ने एक प्रस्ताव पारित करके पंचवर्षीय योजनाओं का लक्ष्य समाजवादी व्यवस्था की स्थापना घोषित किया गया|
1955 में कांग्रेस के अवाड़ी अधिवेशन में कांग्रेस तथा उनकी सरकार का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना रखा गया |
1956 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में ‘एक समाजवादी सहकारी राज्य’ के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया|
1962 के भावनगर अधिवेशन और 1964 के भुवनेश्वर अधिवेशन में लोकतांत्रिक समाजवाद की स्थापना के संकल्प को दोहराया है|
अवाड़ी अधिवेशन 1955-
इस प्रस्ताव में कांग्रेस द्वारा पारित किया गया कि संविधान की प्रस्तावना व नीति निदेशक तत्वों की क्रियान्विति के लिए एक योजना के द्वारा समाजवादी ढांचे के समाज की स्थापना की जाए|
इस योजना के अनुसार निम्न पर बल दिया गया -
प्रमुख उद्योग और उत्पादन के साधनों पर समाज का नियंत्रण
भूमि सुधार
उद्योगों में श्रमिकों का हिस्सा
सहकारिता
सामाजिक न्याय
नेहरू और मार्क्सवाद
नेहरू पर मार्क्स का प्रभाव था लेकिन वे रूढ़िवादी अर्थ में मार्क्सवादी नहीं थे बल्कि भारतीय परिस्थितियों व समस्याओं के निदान के लिए लोकतांत्रिक समाजवाद को स्वीकार किया|
नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि “साम्यवादी जीवन दर्शन ने उन्हें आशा तथा सांत्वना दी थी| साम्यवाद अतीत की व्याख्या करने का प्रयत्न करता है, और भविष्य के लिए आशा प्रदान करता है|”
नेहरू को मार्क्सवाद दर्शन के ऐतिहासिक व्याख्या सिद्धांत, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, धार्मिक कर्मकांड विरोधी दृष्टिकोण तथा अंधविश्वास विरोधी दृष्टिकोण ने प्रभावित किया था|
आचार्य नरेंद्र देव ने नेहरू को मार्क्स से प्रभावित माना है|
नेहरू की विचारधारा तथा मार्क्सवाद में निम्न मौलिक अंतर है
नेहरू के अनुसार मार्क्सवाद को बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार संशोधन करने के बाद ही स्वीकार किया जा सकता है|
मार्क्सवाद व्यवस्था में परिवर्तन हिंसा और बल प्रयोग के द्वारा करता है लेकिन नेहरू हिंसात्मक क्रांति को उचित और आवश्यक नहीं मानते हैं|
नेहरू मार्क्स के वर्ग संघर्ष सिद्धांत में भी संशोधन करता है| मार्क्स शोषक वर्ग (साधन संपन्न वर्ग) के अस्तित्व को समाप्त करना जरूरी मानता है, लेकिन नेहरू साधन संपन्न वर्ग के अधिकारों को केवल सीमित करना ही पर्याप्त समझते हैं|
मार्क्सवाद लोकतंत्र का विरोध करता है लेकिन नेहरू की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी|
राष्ट्रवाद पर नेहरू के विचार -
नेहरू राष्ट्रवादी एवं अंतर्राष्ट्रीयवादी दोनों है|
भारत छोड़ो आंदोलन की पूर्व संध्या में नेहरू ने कहा था कि “मैं राष्ट्रवादी हूं और राष्ट्रवादी होने पर अभिमान है|”
नेहरू के राष्ट्रवादी व अन्तर्राष्ट्रवादी चिंतन पर टैगोर के ‘समन्वयात्मक विश्ववाद या सार्वभौमिकतावाद’ तथा गांधीजी की विश्व बंधुत्व की भावना का प्रभाव पड़ा है|
नेहरू के राष्ट्रवाद के प्रमुख विशेषताएं निम्न है -
राष्ट्रवाद स्वतंत्रता का मूल प्रेरणा स्रोत है-
नेहरू का राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद से मुक्ति और देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की प्रेरणा देता है|
नेहरू “जब कभी कोई आपत्ति आती है तब राष्ट्रवाद जन्म लेता है और राष्ट्रीय रंगमंच पर छा जाता है|”
डिस्कवरी ऑफ इंडिया में नेहरू ने लिखा है कि “किसी भी पराधीन देश के लिए राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्रथम तथा प्रधान आकांक्षा होनी चाहिए| भारत के लिए, जिसके पास अतीत की एक धरोहर है उसके लिए यह बात और भी सही थी|
विविधता में एकता-
नेहरू का राष्ट्रवाद विविधता में एकता का समर्थन करता है| वह भारत में विविधता में एकता की स्थापना करना चाहता है|
उदार राष्ट्रवाद-
नेहरू उदार राष्ट्रवाद के समर्थक थे|
उदार राष्ट्रवाद का मुख्य लक्षण यह है कि अपने राष्ट्र के प्रति भावुक होते हुए भी, वह दूसरे राष्ट्रों से घृणा नहीं करना, दूसरे राष्ट्रों पर आधिपत्य स्थापित करने और उनका शोषण करने की बात नहीं सोच पाना|
नेहरू उग्र राष्ट्रवाद के आलोचक थे| नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘विश्व इतिहास की झलक’ में लिखा है “राष्ट्रवाद अपनी जगह पर अच्छा है, लेकिन यह एक अविश्वसनीय मित्र और संदिग्ध इतिहासकार है| यह कई घटनाओं के प्रति हमारी आंखें मूंद देता है और कभी कभी सत्य को विद्रूप कर देता है विशेषकर जब उसका संबंध हमारे देश से हो|”
नेहरू आंतरिक क्षेत्र में राज्य के सर्वाधिकारवाद और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण के विरोधी थे|
धार्मिक या हिंदू राष्ट्रवाद से मुक्त और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के समर्थक-
राष्ट्रीय आंदोलन के काल में तिलक, बिपिन चंद्र पाल और अरविंद घोष ने धार्मिक राष्ट्रवाद या हिंदू राष्ट्रवाद का प्रतिपादन किया था लेकिन नेहरू को राष्ट्रवाद के धार्मिक दृष्टिकोण से कोई लगाव नहीं था|
नेहरू का राष्ट्रवाद, हिंदू राष्ट्रवाद से मुक्त धर्मनिरपेक्षता पर आधारित राष्ट्रवाद है|
1929 के लाहौर अधिवेशन के अध्यक्षीय भाषण में धार्मिक सद्भाव पर बल देते हुए नेहरू ने कहा था कि “मुझे धर्म की कट्टरता पसंद नहीं है और मुझे खुशी है कि अब वह कमजोर पड़ रही है| किसी जाति या धर्म के नाम पर राजनीति करने का समर्थन में नहीं करता |”
सांप्रदायिकता के प्रबल विरोधी-
नेहरू विदेशी शासन और सांप्रदायिकता के भाव को एक दूसरे से जुड़ा हुआ मानते हैं|
नेहरू “विदेशी शासन ने सांप्रदायिकता के भाव को जन्म दिया और सांप्रदायिक तत्व विदेशी शासन को निरंतर बनाए रखना चाहते हैं| सांप्रदायिक तत्व न तो भारत की पूर्ण स्वाधीनता की बात करते हैं और न अधिराज्य स्थिति की मांग करते हैं|”
धार्मिक संगठन, धार्मिक समूहों से संबंधित होते हैं लेकिन यह धार्मिक न होकर संकुचित और छद्म वेश में राजनीतिक संगठन है|
नेहरू ने सांप्रदायिकता को मिथक की संज्ञा दी है और कहा है कि इस मिथक को समाप्त करने के लिए मुसलमानों के हृदय से भय की भावना दूर करने तथा उन्हें प्रत्येक प्रकार की सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है|
नेहरू ने सांप्रदायिकता की समस्या का मूल कारण मध्यम वर्ग में व्याप्त निर्धनता और बेरोजगारी को माना है तथा इन सांप्रदायिक तत्वों को मिटाने के लिए नेहरू ने आर्थिक स्वतंत्रता की आवश्यकता और आर्थिक विकास पर बल दिया है|
नेहरू के अनुसार राजनीतिक स्वतंत्रता तो आवश्यक है ही किंतु आर्थिक स्वतंत्रता के बिना सांप्रदायिकता नष्ट नहीं की जा सकती|
संक्षिप्त रूप में राष्ट्रवाद की विशेषताएं-
संकीर्ण एवं आक्रमक राष्ट्रवाद का विरोध -इसको नेहरू ने नकारात्मक राष्ट्रवाद कहा है|
राष्ट्रवाद के मनोवैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक पहलू का समर्थन
उदार एवं मर्यादित राष्ट्रवाद का समर्थन
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का समर्थन
राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रवादी पक्ष का पूर्ण समर्थन
सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से प्रगतिशील एवं मानव मूल्यवादी राष्ट्रवाद का समर्थन|
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का समर्थन
लोकतांत्रिक समाजवादी राष्ट्रवाद का समर्थन
समन्वयवादी राष्ट्रवाद का समर्थन
Note- नेहरू का राष्ट्रवाद सकारात्मक राष्ट्रवाद है| सकारात्मक राष्ट्रवाद को प्रबुद्ध या रचनात्मक राष्ट्रवाद कहा जाता है
नेहरू “एशिया में समाजवादी आंदोलन राष्ट्रवाद का शत्रु है|”
अंतर्राष्ट्रीयवाद पर नेहरू के विचार -
नेहरू ने संपूर्ण मानव जाति के हितों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीयवाद का समर्थन किया|
नेहरू ने मानवतावादी एवं बौद्धिक आधारों पर अंतर्राष्ट्रीयवाद का समर्थन किया है|
नेहरू ने राष्ट्रवाद को अंतर्राष्ट्रीयवाद का पूरक माना है| नेहरू के शब्दों में “यह सहिष्णु और सृजनात्मक राष्ट्रवाद है जो अपने में और अपनी जनता की प्रतिभा में आस्था रखते हुए एक अंतरराष्ट्रीय विश्व व्यवस्था की स्थापना में अपनी पूरी भूमिका अदा करता है|”
नेहरू एशियाई तथा अफ्रीकी देशों की जनता की राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता के समर्थक थे|
नेहरू राष्ट्रवाद और अंतर्राष्ट्रीयवाद को एक दूसरे के लिए सहायक प्रवृतियां मानते थे|” नेहरू के शब्दों में “विश्व का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो चुका है, उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय है तथा परिवहन अन्तर्राष्ट्रीय है, मनुष्य के विचार एक रूढी पर आधारित है, जिसकी आज कोई कीमत नहीं है, कोई राष्ट्र वास्तव में स्वावलंबी नहीं है सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं|”
नेहरू ने अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में विदेश नीति के रूप में सक्रिय गुटनिरपेक्षता नीति अपनायी| नेहरू ने सन 1949 में अमेरिका की सीनेट में इस नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि “जहां स्वतंत्रता के लिए संकट मौजूद हो, न्याय को धमकी दी गई हो अथवा आक्रमण किया गया हो तो, वहां हम न तो तटस्थ रह सकते हैं और न तटस्थ रहेंगे|”
नेहरू ने विदेश नीति के रूप में दूसरे तत्व पंचशील को अपनाया| पंचशील मूलतः महात्मा गौतम बुद्ध द्वारा प्रयुक्त शब्द है| नेहरू ने विश्व राजनीति के संदर्भ में पंचशील के सिद्धांत को ऐसी आचार संहिता के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसे व्यवहार में अपनाकर राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता व अखंडता की रक्षा के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं समृद्धि में अपना योगदान दे सकते हैं|
नेहरू और गांधीजी
नेहरू तथा गांधीजी के व्यक्तित्व में मूलभूत अंतर होने के बावजूद भी नेहरू, गांधीजी के प्रति गहरी आस्था रखते थे और गांधीजी, नेहरू के प्रति गहरा स्नेह रखते थे|
गांधीजी एक धर्म प्रधान और पूर्वी दर्शन से प्रेरित आध्यात्मिक विचारधारा वाले थे, वही नेहरू बुद्धिवादी, संशयवादी, समाजवादी और जीवन के सभी क्षेत्रों में आधुनिकीकरण के समर्थक थे|
नेहरू गांधीजी के साध्य की श्रेष्ठता तथा साधन की पवित्रता को पसंद करते थे लेकिन निरपेक्ष अहिंसा को नहीं|
नेहरू को गांधीजी की धार्मिकता, ट्रस्टीशिप, कुटीर उद्योग, औद्योगिकरण व मशीनीकरण का विरोध, दलविहीन रामराज्य,हिंद स्वराज्य पसंद नहीं थे|
अपनी आत्मकथा में नेहरू ने गांधीजी के बारे में लिखा है “विचारधारा की दृष्टि से उनका पिछड़ापन कभी-कभी विस्मयजनक जान पड़ता था किंतु कर्म में वे आधुनिक भारत के महान क्रांतिकारी हुए हैं| उनका व्यक्तित्व अद्भुत था, वे मूलतः क्रांतिकारी थे और भारत की स्वाधीनता के प्रति अपने को समर्पित कर चुके थे|”
गांधीजी ने नेहरू के संबंध में कहा है “जहां उनमें एक योद्धा के समान साहस और चपलता है, वहां एक राजनीतिज्ञ की सी बुद्धिमता और दूरदर्शिता भी है वे एक निडर, निष्कलंक और निर्दोष सरदार हैं| राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है|
नेहरू का मूल्यांकन -
सामाजिक व्यवस्था के संदर्भ में भारतीय इतिहास की तर्कसंगत व्याख्या की|
नेहरू का, मानव की रचनात्मक प्रवृत्ति (मानववाद) में अगाध विश्वास था|
नेहरू एक वैज्ञानिक, भौतिक अथवा अनुभववादी मानववादी विचारक है| उनके लिए मानव का लौकिक जीवन ही सत्य है और वे मानव को इसी जीवन में सुखी एवं समृद्ध देखना चाहता है|
नेहरू ने मानव जीवन और उसकी सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक समस्याओं पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार किया है|
नेहरू का लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली तथा संविधानवाद में विश्वास था|
नेहरू ने राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ आर्थिक न्याय का समर्थन किया|
भारत की राजनीतिक समस्याओं को अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के संदर्भ में समझने की आवश्यकता पर बल दिया|
सरदार पटेल के विपरीत नेहरू लोकसेवा (ICS) के विरोधी थे तथा स्टील फ्रेम रूपी इस सेवा को समाप्त करना चाहते थे|
1950 में जब नेहरू ने कार्यपालिका के आदेश द्वारा योजना आयोग बनाया तो तात्कालिक वित्त मंत्री जॉन मथाई ने इसे समानांतर मंत्रिमंडल कहकर त्यागपत्र दे दिया|
नेहरू ने एक भाषण में कहा था “जिन तीन व्यक्तियों ने मेरे जीवन में मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है वह है मेरे पिता, गांधीजी व रविंद्र नाथ टैगोर|”
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