उच्च न्यायालय (High Court)
भारत में सर्वप्रथम उच्च न्यायालय का गठन भारत उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के तहत 1862 में किया गया|
1862 में तीन उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई-
कोलकाता
बम्बई
मद्रास
चौथे उच्च न्यायालय की स्थापना 1866 में इलाहाबाद में की गई|
संविधान के भाग- 6, अध्याय- 5 में अनु 214 से 231 तक उच्च न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, न्यायिक क्षेत्र, शक्तियां, प्रक्रिया आदि का उल्लेख है|
भाग-6, अध्याय-6 में अनुच्छेद 233 से 237 तक अधीनस्थ न्यायालय का उल्लेख है
अनुच्छेद 214-
प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा|
लेकिन 7वें सविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 231 में संशोधन करके यह जोड़ा गया कि-
अनुच्छेद 231
संसद द्वारा विधि बना कर दो या दो से अधिक राज्यों के लिए या किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक उच्च न्यायालय की स्थापना की जा सकती है|
वर्तमान में भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं|
मार्च 2013 में 3 नये उच्च न्यायालय की स्थापना की गई-
मेघालय उच्च न्यायालय- 23 मार्च 2013
मणिपुर उच्च न्यायालय- 25 मार्च 2013
त्रिपुरा उच्च न्यायालय- 26 मार्च 2013
नवीनतम H.C
आंध्र प्रदेश H.C
स्थापना- 1 जनवरी 2019
स्थान- अमरावती (आंध्रप्रदेश)
अनुच्छेद 230-
संसद विधि बनाकर किसी संघ राज्य क्षेत्र पर किसी उच्च न्यायालय की अधिकारिता का विस्तार कर सकेगी या किसी संघ राज्य क्षेत्र से किसी उच्च न्यायालय की अधिकारिता का अपवर्जन कर सकती है|
वर्तमान में निम्न संयुक्त न्यायालय है-
चंडीगढ़ उच्च न्यायालय-
पंजाब
हरियाणा
चंडीगढ़
बॉम्बे उच्च न्यायालय-
महाराष्ट्र
गोवा
दमन- दीव व दादरा नगर हवेली
गुवाहाटी उच्च न्यायालय-
असम
अरुणाचल प्रदेश
नागालैंड
मिजोरम
मद्रास उच्च न्यायालय-
तमिलनाडु
पुडुचेरी
एर्नाकुलम उच्च न्यायालय-
केरल
लक्ष्यदीप
कोलकाता उच्च न्यायालय-
पश्चिमी बंगाल
अंडमान निकोबार द्वीप समूह
जम्मू उच्च न्यायालय
जम्मू कश्मीर
लद्दाख
Note- दिल्ली, जम्मू-कश्मीर व लद्दाख ऐसे संघ शासित प्रदेश हैं, जिनका अपना उच्च न्यायालय है|
दिल्ली उच्च न्यायालय (1966 में स्थापित)
Note- अब जम्मू कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश का भी एक H.C होगा|
अनु- 216- ‘उच्च न्यायालयों का गठन’
प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त अन्य न्यायाधीश होंगे|
Note- अनु- 216 के अनुसार उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है|
न्यायधीश की नियुक्ति अनु 217(1)
कॉलेजियम की सिफारिश पर राष्ट्रपति के द्वारा|
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के संबंध राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (S.C), संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करता है|
अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति S.C के मुख्य न्यायाधीश, H.C के मुख्य न्यायाधीश (संबंधित राज्य), राज्यपाल (संबंधित राज्य) से परामर्श करता है|
योग्यता [217(2)]
1. भारत का नागरिक होना चाहिए|
2(क). भारत के राज्य क्षेत्र में कम से कम 10 वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो|
अथवा
2(ख). किसी उच्च न्यायालय या दो या दो से अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो|
कार्यकाल या पदावधि [अनु 217(1)]
62 वर्ष आयु तक
Note- 15वे संविधान संशोधन अधिनियम 1963 द्वारा सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से 62 वर्ष कर दी गयी|
त्यागपत्र [अनु 217 (1)]
राष्ट्रपति को (हस्ताक्षर सहित लेख के द्वारा)
शपथ/ प्रतिज्ञान [अनु- 219]
राज्यपाल अथवा राज्यपाल द्वारा निमित व्यक्ति के द्वारा|
तीसरी अनुसूची में निर्धारित प्रारूप के अनुसार|
वेतन-भत्ते [अनु- 221]
संसद के द्वारा निर्धारित
H C के न्यायाधीशों का वेतन भत्ता राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय होता है|
Note- H.C के न्यायाधीशों को पेंशन भारत की संचित निधि से दी जाती है|
कार्यकाल के दौरान न्यायाधीशों के वेतन भत्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है|
वर्तमान वेतन-
H.C का मुख्य न्यायाधीश- 250000
अन्य न्यायाधीश 225000
पद से हटाना (217(1))
H.C के न्यायाधीशों को उसी रीति से हटाया जा सकता है, जिस रीति से अनु 124(4) के तहत S.C के न्यायाधीशों को हटाया जाता है|
स्थानांतरण (अनु 222)-
राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का स्थानांतरण अन्य उच्च न्यायालय में कर सकता है|
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश- [अनुच्छेद 223]
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त होने पर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है|
अपर और कार्यकारी न्यायाधीशों की नियुक्ति [अनु- 224]
224 (1) किसी उच्च न्यायालय के कार्यों में अस्थायी वृद्धि हो जाने पर या कार्य (मामलों) के बकाया (लंबित) रहने पर राष्ट्रपति ऐसे व्यक्ति को जो उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो, 2 वर्षों के लिए उच्च न्यायालय में अपर न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है|
224 (2) उच्च न्यायालय में किसी न्यायाधीश के अनुपस्थित रहने पर राष्ट्रपति अपर न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है|
224 (3) 62 वर्ष से अधिक आयु प्राप्त व्यक्ति अपर न्यायाधीश का पद धारण नहीं कर सकता है|
उच्च न्यायालय (H.C) का क्षेत्राधिकार/ अधिकारिता-
प्रारंभिक/ मूल अधिकारिता-
ऐसे मामले जो सीधे H.C में पेश किये जा सकते हैं, अपील की आवश्यकता नहीं होती है|
निम्न विषय H.C के मूल अधिकारिता में आते हैं-
अधिकारिता का मामला, वसीयत, विवाह, तलाक, कंपनी कानून, न्यायालय की अवमानना
संसद सदस्य और राज्य विधान मंडल के निर्वाचन संबंधी विवाद
राजस्व से संबंधित मामले, अधिनियम, आदेश
नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रवर्तन (अनु 226)
संविधान की व्याख्या
Note- संविधान की व्याख्या करना उच्च न्यायालय का प्रारंभिक क्षेत्राधिकार है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय क्षेत्राधिकार है|
रिट क्षेत्राधिकार (अनु 226)-
H.C मूल अधिकारों या अन्य किसी उद्देश्य के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा रिट जारी कर सकता है|
चंद्र कुमार बनाम भारत संघ 1997- इस मामले में S.C ने कहा कि S.C व H.C का रिट क्षेत्राधिकार संविधान के मूल ढांचे के अंग है| अर्थात रिट क्षेत्राधिकार में संशोधन नहीं किया जा सकता है|
अपीलीय क्षेत्राधिकार-
अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है|
दीवानी मामलों में जिला न्यायाधीशों तथा फौजदारी मामलों में सत्र न्यायाधीशों के निर्णय के विरुद्ध अपील H.C में की जा सकती है|
अधीक्षण संबंधित क्षेत्राधिकार (अनु - 227)
उच्च न्यायालय को अपनी अधिकारिता के अधीन स्थित सभी न्यायालयों तथा अधिकरणो के निरीक्षण या अधीक्षण का अधिकार है|
अभिलेखीय न्यायालय- (अनु 215)
उच्च न्यायालय अभिलेखीय न्यायालय होता है| H.C को अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति है|
अंतरण संबंधी क्षेत्राधिकार- (अनु 228)
H.C किसी अधीनस्थ न्यायालय के पास लंबित ऐसे मामलों को अपने पास मंगवा सकता है, जिसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न हो|
अधीनस्थ न्यायालय पर नियंत्रण (अनु 235)
जिला न्यायालयो और उसके अधीनस्थ न्यायालय पर उच्च न्यायालय का नियंत्रण होता है|
न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति-
H.C राज्य विधान मंडल और राज्य सरकार तथा संसद व भारत सरकार के अधिनियमो की संवैधानिकता की जांच कर सकता है|
अनु- 229-
उच्च न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति H.C का मुख्य न्यायाधीश के द्वारा या अन्य न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा जिसको मुख्य न्यायाधीश निर्दिष्ट करे, के द्वारा की जाती है|
अनु 224 ‘क’- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति-
H.C का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी H.C के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की पुनर्नियुक्ति कर सकता है|
लेकिन ऐसे न्यायाधीशों के वेतन भत्तों का निर्धारण राष्ट्रपति आदेश द्वारा किया जाता है|
अनु 225 ‘उच्च न्यायालय की अधिकारिता’
उच्च न्यायालय की अधिकारिता वही होगी, जो संविधान प्रारंभ से पहले थी|
राजस्थान उच्च न्यायालय
राजस्थान उच्च न्यायालय की स्थापना- 29 अगस्त 1949 को जयपुर में की गई
Note- 29 अगस्त 1949 को राजप्रमुख सवाई मानसिंह द्वारा इसका उद्घाटन किया गया|
राजस्थान उच्च न्यायालय स्थापना की अधिसूचना 25 अगस्त 1950 को जारी की गई थी|
1 नवंबर 1956 को गठित राज्य बोर्ड गठन आयोग समिति के अध्यक्ष ‘सत्यनारायण राव’ की सिफारिश पर राजस्थान उच्च न्यायालय का मुख्यालय जोधपुर में स्थानांतरित कर दिया गया|
अतः वर्तमान में मुख्यालय- जोधपुर
1 नवंबर 1956 को जयपुर में राजस्थान उच्च न्यायालय की अस्थाई पीठ स्थापित की|
खंडपीठ-
Note- जयपुर पीठ को 1958 में समाप्त कर दिया गया था, जिसे 1976 में पुनर्स्थापित किया गया|
8 दिसंबर 1976 को राजस्थान उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ जयपुर में स्थापित की गई|
राजस्थान उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश- कमलकांत वर्मा
संविधान लागू होने के बाद में कैलाश चंद वांचू पहले न्यायाधीश बने|
राजस्थान H.C के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश आंगिस्टन जॉर्ज मसीह 41वें मुख्य न्यायाधीश हैं|
राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या- 50
Note- इसमें खंडपीठ के न्यायधीश भी शामिल हैं|
वर्तमान में नियुक्तियां- 34 न्यायधीश
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