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धर्मशास्त्र/ Dharmasastra

धर्मशास्त्र/ Dharmasastra


  • अर्थ- 

  • धर्मशास्त्र शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका तात्पर्य ऐसा शास्त्र या विज्ञान जिसमें मानव के उचित आचरण के नियम दिये हो| 

  • धर्म शब्द संस्कृत भाषा की ‘धृ’ धातु से बना है, जिसका तात्पर्य है- धारण करना|

  • धर्मशास्त्र हिंदू परंपरा से संबंधित संस्कृत ग्रंथों का समूह है|

  • धर्मशास्त्र के अंतर्गत सभी वेद, उपवेद, आरण्यक, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य, स्मृतियां आदि सम्मिलित है|

  • धर्मशास्त्रों में मानव के दार्शनिक, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन के आचरण नियमों का संग्रह है|


  • वेद- 

  • कुल चार वेद है-

  1. ऋग्वेद (सबसे प्राचीन)

  2. सामवेद

  3. यजुर्वेद

  4. अथर्ववेद


  • वेदों को श्रुतिया भी कहा जाता है|

  • वेदों से राज्य की उत्पत्ति, राजा के कर्तव्य, सभा, समिति, न्याय व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है|


  • ब्राह्मण ग्रंथ

  • वैदिक ऋचाये व मंत्रों के पद्य रूप की टीकाएं ब्राह्मण ग्रंथों में है|

  • शतपथ ब्राह्मण व ऐतरेय ब्राह्मण में राजनीतिक चिंतन का विवेचन मिलता है |


  • उपनिषद

  • उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है| ये वैदिक साहित्य के अंतिम भाग हैं|

  • प्रमुख उपनिषद- केन, मुंडक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैतीरीय छांदोग्य आदि|

  • उपनिषद दर्शन व आध्यात्मिक ज्ञान से संबंधित है|


  • महापुराण- 

  • महापुराणों की संख्या 18 है|

  • मुख्य पुराण- विष्णु पुराण, भगवत पुराण, गरुड़ पुराण, मत्स्य पुराण

  • इन पुराणों में पाप- पुण्य, धर्म-अधर्म, कर्म- अकर्म की गाथाओं के अतिरिक्त नंदवंश, मौर्य वंश, का भी इतिहास मिलता है|


  • महाकाव्य

  • महाकाव्यों में मुख्यतः वाल्मीकि कृत रामायण व महर्षि वेदव्यास कृत महाभारत का शांति पर्व मुख्यतः शासन कला से संबंधित है|


  • स्मृतियां

  • स्मृतियों में मनुस्मृति जिसे ‘मानव धर्मशास्त्र’ भी कहा जाता है, यह राजनीतिक चिंतन से संबंधित प्राचीन ग्रंथ है|

  • इसके अलावा विष्णु स्मृति, नारद स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, बृहस्पति स्मृति आदि में भी दंडनीति, राजविद्या और राजधर्म के सिद्धांतों का विवेचन है|

  • धर्मशास्त्रों में प्रमुख स्थान ‘मानव धर्मशास्त्र’ यथार्थ मनुस्मृति का है|


  • अर्थशास्त्र तथा नीतिशास्त्र

  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कामंदक का नीतिशास्त्र तथा शुक्राचार्य की शुक्रनीति में राजनीतिक व्यवस्था से जुड़ी गतिविधियों का वर्णन है|



धर्मशास्त्र की प्रमुख मान्यताएं- 


  • राज्य की उत्पत्ति

  • मानव धर्मशास्त्र (मनुस्मृति) में राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धांत का वर्णन है|

  • मनु के अनुसार मत्स्य न्याय से रक्षा के लिए ईश्वर ने राजा की सृष्टि की|

  • राजा को ईश्वर ने इंद्र, वायु, यम, सूर्य, अग्नि, वरुण, चंद्रमा व कुबेर का अंश लेकर बनाया|


  • अध्यात्मिकता की ओर झुकाव

  • प्राचीन भारतीय चिंतन व दर्शन में आत्मा, परमात्मा, आध्यात्मिकता, परलौकिकता जैसे विषयों पर बल दिया गया है|


  • मानव जीवन के चार लक्ष्य

  • धर्मशास्त्रों में मानव जीवन के चार साध्य या लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं-

  1. धर्म

  2. अर्थ

  3. काम

  4. मोक्ष


  1. धर्म- 

  • धर्म वास्तव में समाज के नैतिक मूल्यों का संग्रह है|

  • इसमें व्यक्ति की सभी कर्तव्य आ जाते हैं जो सामाजिक जीवन के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक है|


  1. अर्थ- भौतिक कल्याण से संबंधित धनसंपदा इसके अंतर्गत आती हैं|


  1. काम- इसमें व्यक्ति के इंद्रिय सुख आते हैं|


  1. मोक्ष- इसका अर्थ है- परम कल्याण, यह व्यक्ति का सर्वोच्च साध्य है|


  • धर्म, अर्थ काम का संबंध इस लौक से है, जबकि मोक्ष का संबंध परलौक से है| 

  • मनु ने धर्म के 10 लक्षण बताये हैं

  1. धैर्य

  2. क्षमता

  3. संयम

  4. अस्तेय

  5. शौच

  6. शुद्धता

  7. इंद्रिय निग्रह

  8. विवेकशीलता 

  9. सत्य

  10. वाच्य व अक्रोध



  • दंडनीति

  • प्राचीन भारतीय चिंतन में दंडनीति, राजनीति का पर्याय था| अर्थात धर्म या कानून के पालन के लिए शक्ति प्रयोग दंडनीति थी|

  • दंड का प्रयोग सम्यक होना चाहिए| दंड का सृजन ईश्वर ने दिया है|

  • दंड का उद्देश्य धर्म की रक्षा है|

  • मनु ने दंड के चार प्रकार बताए हैं-

  1. वाक् दंड

  2. धिग् दंड

  3. अर्थ दंड

  4. भौतिक दंड


  • दंड; धर्म, अर्थ, काम का प्रहरी है|


  • राजतंत्र की प्रधानता-

  • धर्मशास्त्र में वर्णित अधिकांश चिंतन में राजतंत्र की प्रधानता है|

  • हालांकि प्राचीन भारतीय मनीषी गणतंत्र से परिचित थे, लेकिन अधिकांश ग्रंथों में राजतंत्र की समस्याएं, राजा के कर्तव्य, राज्यशिल्प, कराधान, युद्धकला व कूटनीति आदि विषयों का विवेचन मिलता है|


  • राजा के कर्तव्य

  • राजा के कर्तव्यो के तीन स्रोत माने गए है-

  1. श्रुतियां (वेद)

  2. स्मृतियां

  3. लोकाचार


  1. श्रुतियां- इसमें अमूर्त नैतिक सिद्धांतों का वर्णन है|

  2. स्मृतियां- इसमें मूर्त भौतिक नियमों का वर्णन है|

  3. लोकाचार- इसमें प्रथाएं, परंपराएं व रीति-रिवाज शामिल है|


  • शासन संचालन-

  • धर्मशास्त्र (मनुस्मृति) में राज्य की प्रकृति जैविक या सावयिक बतायी गयी है|

  • राज्य के गठन के संबंध में मनु ने सप्तांग सिद्धांत दिया गया है| अर्थात राज्य रूपी शरीर के 7 अंग हैं |


  • मनु के अनुसार ये सात अंग निम्न है- 

  1. स्वामी या राजा

  2. मंत्री या अमात्य

  3. पुर (किले, परकोटे से सुरक्षित राजधानी)

  4. राष्ट्र (यहां राष्ट्र या राज्य का अर्थ है राज्य की भूमि तथा उसमें निवास करने वाली जनता)

  5. कोष

  6. दंड

  7. मित्र 


  • शुक्राचार्य ने शुक्रनीति में राज्य की तुलना वृक्ष से की है| शुक्राचार्य के अनुसार राज्य रूपी वृक्ष की 6 शाखाएं हैं, जिन्हें षाड्गुण्य नीति कहा जाता है|


  • षाड्गुण्य नीति में शामिल है

  1. संधि

  2. विग्रह

  3. यान

  4. आसन

  5. द्वैधीभाव

  6. आश्रय


  • शुक्रनीति में राज्य रूपी वृक्ष के 4 पुष्प बताए हैं जो निम्न है-

  1. साम

  2. दाम

  3. दंड

  4. भेद


  • शुक्रनीति में राज्य रूपी वृक्ष के तीन फल बताएं है-

  1. धर्म

  2. अर्थ

  3. काम


  • सामाजिक विचार

  • धर्मशास्त्र में तत्कालीन वर्णव्यवस्था का समर्थन किया गया है|

  • तथा राजा का मूल कर्तव्य वर्ण व्यवस्था को बनाए रखना था| 


  • चार वर्ण

  1. ब्राह्मण

  2. क्षत्रिय

  3. वैश्य

  4. शूद्र

  • धर्मशास्त्र में आश्रम व्यवस्था का भी समर्थन किया गया है|

  • चार आश्रम-

  1. ब्रह्मचर्य आश्रम (0- 25 वर्ष)

  2. गृहस्थाश्रम (26- 50 वर्ष)

  3. वानप्रस्थ आश्रम (51- 75 वर्ष) 

  4. संयास आश्रम (76- 100 वर्ष)


  • प्रत्येक व्यक्ति का अंतिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति था, चाहे वह राजा हो या सामान्य व्यक्ति 

  • धर्मानुकूल आचरण के द्वारा व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती थी|


  • मनु ने धर्म के 5 स्रोत बताए हैं

  1. वेद

  2. स्मृति

  3. सज्जनों का आचरण

  4. अंतः करण

  5. राजाज्ञा


  • राजधर्म और राजनीतिक दायित्व

  • राजा का मुख्य धर्म या कर्तव्य- लोक संग्रह अर्थात प्रजा का कल्याण

  • साधारण परिस्थितियों में राजा को सार्वभौमिक नैतिक संहिता का पालन करना चाहिए, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में राजा को अनैतिक साधनों के प्रयोग करने में संकोच नहीं करना चाहिए|

  • भारतीय धर्मशास्त्र निरंकुश राजतंत्र का समर्थन नहीं करते हैं|

  • उदाहरण-

  1. शुक्रनीति के अनुसार अधर्मी राजा की सत्ता को प्रजा चुनौती दे सकती है|

  2. महाभारत में अत्याचारी राजा को सिंहासन से हटा देने का समर्थन किया गया है|


  • लेकिन मनुस्मृति में राजा की दैवी उत्पत्ति सिद्धांत के द्वारा ‘पूर्ण सत्तावाद’ का समर्थन किया है|


  • राजा के प्रकार-

  • शुक्राचार्य ने शुक्रनीति में राजा के 3 प्रकार बताए हैं-


  1. सतोगुण प्रधान राजा- 

  • इसकी उत्पत्ति देवताओं के अंश से हुई है|

  • यह कोई त्रुटि नहीं कर सकता है, अत: इसकी सत्ता ‘पूर्ण सत्ता’ होती है|

  • किसी भी परिस्थिति में इसकी आज्ञा की अवहेलना नहीं की जा सकती है|


  1. रजोगुण प्रधान राजा-

  • उत्पत्ति- मानव अंश से

  • इससे गलती संभव है, अतः सत्ता को चुनौती दी जा सकती है|


  1. तमोगुण प्रधान राजा-

  • उत्पत्ति- राक्षसों के अंश से

  • यह निरंकुश व अत्याचारी शासक होता हैं|

  • शुक्राचार्य के अनुसार इस का वध कर देना युक्सिंगत है|


पांडुरंग वामन काणे की रचना- हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र
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