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अंतरराष्ट्रीय राजनीति में समसामयिक चुनौतीयां, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन तथा पर्यावरणीय चिंताएं, मानवाधिकार, प्रवासन तथा शरणार्थी, गरीबी तथा विकास, धर्म संस्कृति तथा पहचान-राजनीति की भूमिका By Nirban P K Yadav Sir || In Hindi

    समसामयिक चुनौतीयां

    अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद- 

    • अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष एक बड़ी चुनौती है|

    • आतंकवाद के समकालीन अवतार को महाआतंकवाद की संज्ञा दी जा सकती है|

    • वर्तमान में आतंकवाद राष्ट्र-राज्य के दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा का वैश्विक खतरा बन चुका है|

    • मैक्स वेबर ने राज्य भू-भाग के अंदर की गयी हिंसा को राज्य आतंकवाद का नाम दिया 

    • लेकिन UNO के द्वारा आतंकवादके विरुद्ध कोई कन्वेंशन नहीं  बनाया गया|

    • 2000 के बाद हिंसा का किसी भी प्रकार इस्तेमाल ही आतंकवाद कहा गया|

    • मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने राज्य-आतंकवाद का विचार दिया है, जिसमें राज्य द्वारा हिंसा प्रयोग को आतंकवाद नाम दिया गया है|

    • सुरक्षा परिषद के आतंकवाद के विरुद्ध प्रस्ताव संख्या 1267 के अनुसार अलकायदा से संबंधित सभी आतंकी गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया|

    • सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1373 के अनुसार आतंकी संगठनों को कोई भी देश किसी भी प्रकार की वित्तीय और तकनीकी सहायता नहीं देगा|

    • आतंकवाद का अभिप्राय किसी संगठन द्वारा आम नागरिकों की हत्या करना, विमान अपहरण करना तथा सामूहिक नरसंहार करना माना जाता है, जिसका उद्देश्य आम लोगों में मनोवैज्ञानिक भय उत्पन्न करना है|

    • विटकॉफ ‘आतंकवाद अशक्त लोगों द्वारा शक्तिशाली लोगों के विरुद्ध एक रणनीति है|’


    • आतंकवाद के कारण-

    1. आर्थिक कारण- 

    • शीत युद्धोत्तर काल में पाश्चात्य देशों ने भूमंडलीकरण के द्वारा नव-उपनिवेशवाद, आर्थिक उपनिवेशवाद को स्थापित किया|

    • इन पश्चिमी देशों का वैश्विक पूंजी, तकनीकी, संस्थानों पर नियंत्रण है|

    • विश्व में संसाधनों के वितरण में असमानता है|

    • इन सब आर्थिक कारणों से व्यक्ति एवं समूह हिंसात्मक गतिविधियों में सलंग्न हो रहे हैं|

    • फ्रेंज फेनान “शोषणकारी व्यवस्था के विरुद्ध तब तक संघर्ष जारी रहेगा जब तक पश्चिम में विश्व तथा शेष विश्व के मध्य आर्थिक शक्ति का असंतुलन बना रहेगा|

    • कुछ विचारको ने 11 सितंबर 2001 की घटना को विश्व पूंजीवाद के प्रतीक पर आक्रमण माना है|

    • एंड्रयू जैकसन “यह सत्य है कि आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित पहले ज्यादातर गरीब देशों से संबंधित थे|”


    1. सांस्कृतिक कारण- 

    • वैश्वीकरण के युग में विश्व में पश्चिम दुनिया के उत्पाद एवं संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है|

    • इस कारण कुछ समुदाय अपने मूल्यों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष का सहारा ले रहे हैं|

    • सैमुअल हंटिंगटन ने ‘सभ्यताओं के संघर्ष’ की संकल्पना में यह स्वीकार किया कि “आने वाले विश्व में राष्ट्र राज्यों के मध्य संघर्ष नहीं, बल्कि विभिन्न सभ्यताओं के मध्य संघर्ष होंगे| यह संघर्ष मूलत: इस्लाम एवं ईसाईत के मध्य होगा|”

    • USA के अनुसार आतंकवाद, बीमार राज्य, घातक नरसंहार के हथियार एक दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित है| 


    1. धार्मिक कारण- 

    • 11 सितंबर 2001 के बाद के आतंकवाद को नव आतंकवाद या उत्तर आधुनिक आतंकवाद की संज्ञा दी जाती है| इसे इस्लाम आतंकवाद भी कहा जाता है|

    • यह मूलत: मुसलमानों की विश्व के प्रति प्रतिक्रिया का परिणाम है|

    • इसके अनुसार ‘मुसलमानों का विश्वव्यापी शोषण हो रहा है एवं पश्चिमी विश्व का आध्यात्मिक पतन हो रहा है|

    • ओसामा बिन लादेन “जो लोग कुरान में विश्वास नहीं करते, कुरान की व्याख्या को  स्वीकार नहीं करते, वे इस्लामी संस्कृति के पतन के लिए उत्तरदायी है|

    • इनके अनुसार पंथनिरपेक्ष व्यवस्था स्वीकार करने वाले इस्लामी राज्य पश्चिमी देशों के पिछलग्गू है| अपनी आत्मा की शुद्धता एवं समुदाय की रक्षा हेतु बलिदान आवश्यक है|

    • इसलिए आत्मघाती दस्ते तैयार किए जा रहे हैं| यह प्रेरणा दी जाती है कि जो भी इस पवित्र कार्य के लिए अपने जीवन का त्याग करेगा, वह अल्लाह के निकट पहुंचेगा, क्योंकि व्यक्तिगत कुर्बानी अध्यात्मिकता प्राप्त करने का मार्ग है|

    • लेकिन आतंकवाद का संबंध केवल एक धर्म विशेष से जोड़ना भी पूर्णत: तार्किक नहीं है| आतंकवादी मुसलमान समूचे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं|


    • आतंकवाद के प्रकार- 

    1. राज्य प्रायोजित आतंकवाद-

    • अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अनुसार, विश्व के अनेक राज्य आतंकवाद प्रायोजित करते हैं, जिससे वे अपनी विशेष नीति के उद्देश्यों को पूर्ण कर सके|

    • अमेरिका के अनुसार उत्तर कोरिया, इरान, सीरिया, लीबिया, सूडान, क्यूबा जैसे राष्ट्र आतंकवाद को प्रायोजित करते हैं|

    • भारत के अनुसार, पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला राष्ट्र है|

    • इजराइल के अनुसार इरान आतंकवाद प्रायोजित करने वाला राष्ट्र है|

    • शीत युद्ध के दौरान स्वयं अमेरिका द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा दिया गया| अमेरिका ने  चिली, अलसल्वाडोर, निकारागुआ में आतंकवाद को प्रायोजित किया|

    • अमेरिका ने अफगानिस्तान में वर्ष 1979 में USSR की सेना के हस्तक्षेप का सामना करने के लिए मुजाहिदीनों को प्रशिक्षित किया|


    1. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद

    • जो आतंकवाद एक से अधिक देशों में संचालित हो या जिससे अनेक देशों के नागरिकों की हत्या हो, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद कहलाता है|

    • उदाहरण 11 सितंबर 2001 की घटना, 26 नवंबर 2008 की घटना (मुंबई हमला) 

    • सितंबर 2001 के बाद आतंकवाद का अत्यधिक संगठित रूप उभर कर सामने आया है|

    • अब यह मूलतः अंतर्राष्ट्रीय या वैश्विक बन चुका है|

    • अलकायदा जैसे गैर राष्ट्रीय कर्ता, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के मुख्य स्रोत है|

    • अलकायदा का प्रशिक्षण सूडान, यमन, चेचन्या, तजाकिस्तान, सोमालिया, फिलीपींस, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से संचालित किया जा रहा है| 

    1. सीमापार आतंकवाद

    • भारत के अनुसार भारत पिछले तीन दशकों से सीमापार आतंकवाद से प्रभावित है|

    • पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को प्रशिक्षण, सहायता उपलब्ध कराई जा रही है|

    • 26 नवंबर 2008 के मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान के सम्मिलित होने के प्रमाण पाए गए|

    • पठानकोट आतंकवादी हमले (2 जनवरी 2016) में भी ISI की भूमिका के प्रमाण मिले है|


    1. नारको आतंकवाद

    • वर्तमान विश्व में में नारको आतंकवाद सबसे अधिक प्रभावी है|

    • आतंकवाद का यह स्वरूप नशीली दवाओं के व्यापार और हिंसात्मक गतिविधियों के परस्पर जुड़ने से होता है, क्योंकि आतंकवादियों को नशीली दवाओं के अवैध व्यापार से भारी वित्तीय मदद मिलती है, जिसका प्रयोग वे हथियारों को खरीदने में करते हैं|

    • इसके अतिरिक्त अवैध घुसपैठ एवं बच्चों का दुर्व्यापार भी इसके अंतर्गत शामिल है|

    • इस व्यापार का मूल क्षेत्र स्वर्णिम अर्धचंद्र है, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान सम्मिलित है, जहां से अफीम एवं हेरोइन यूरोप में भेजी जाती है|

    • नशीली दवाओं का मूल केंद्र ‘स्वर्णिम त्रिभुज’ है, जिसमें म्यानमार, लाओस और थाईलैंड सम्मिलित है| जिसका विश्व के अफीम व्यापार में एक बड़ा हिस्सा है|

    • चीन के युआन प्रांत में भी हेरोइन का उत्पादन होता है, जिसे हांगकांग एवं ताइवान तक पहुंचाया जाता है|

    • वर्तमान में नारको आतंकवाद लैटिन अमेरिका से दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों की ओर स्थानांतरित हो रहा है|

    • ऐसा माना जाता है, कि पूर्व पाकिस्तान प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या में पाकिस्तान में फैले नारको आतंकवादियों का हाथ था|


    1. राज्य आतंकवाद-

    • विटकॉफ के अनुसार “राज्य आतंकवाद का उपयोग उन लोगों के विरुद्ध किया जाता है, जो सरकार का विरोध करते हैं|

    • अर्थात सरकार का विरोध करने वालों पर राज्य द्वारा शक्ति व बल प्रयोग को राज्य आतंकवाद कहा जाता है|


    • राज्य आतंकवाद और अन्य आतंकवाद में अंतर-

    1. राज्य आतंकवाद के द्वारा किसी भी हिंसात्मक कार्यवाही का उत्तरदायित्व नहीं लिया जाता है, जबकि आतंकवादी संगठन अपनी कार्यवाही का उत्तरदायित्व सीधे लेते हैं|

    2. आतंकवादी संगठन हिंसा का प्रयोग प्रचार-प्रसार के लिए करते हैं, जबकि राज्य आतंकवाद के लिए की गई हिंसा के लिए राज्य प्रचार-प्रसार नहीं करता है|


    1. आतंकवाद एक वैश्विक घटना के रूप में

    • विटकॉफ के अनुसार “आतंकवाद रोमन काल से ही विद्यमान है| इसके अतिरिक्त रुसी अराजकतावादियों ने भी आतंकवाद का प्रयोग किया| अनेक देशों के राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं द्वारा भी आतंकवादी गतिविधियों का प्रयोग किया| साम्यवादी विचारधारा के समर्थकों ने भी आतंकवाद का प्रयोग किया|

    • परंतु 70 के दशक के बाद आतंकवाद एक वैश्विक घटना के रूप में हुआ, तथा इसके प्रभाव में तीव्र वृद्धि हुई, जिसके निम्नलिखित कारण है-

    1. वायु सेवाओं का तीव्र विस्तार

    2. टेलीविजन, समाचार का व्यापक विस्तार

    3. समान राजनीतिक एवं वैचारिक हित|


    • बेलिस एवं स्मिथ के अनुसार उपरोक्त कारणों से आतंकवाद एक वैश्विक घटना के रूप में परिवर्तित हो गया|

    • बेलिस एवं स्मिथ के अनुसार ‘मीडिया प्रचार आतंकवाद को जीवित रखने हेतु ऑक्सीजन का कार्य करता है|


    आतंकवाद का समाधान- 

    • यथार्थवादी समाधान - 

    • यथार्थवादियो के अनुसार ‘आतंकवाद का समाधान मूलत: राज्य द्वारा ही संभव है|

    • इनके मत में आतंकवाद के बने रहने का मूल कारण भी राज्य ही है, क्योंकि कुछ राज्य आतंकवाद का समर्थन करते हैं और अनेक राज्य तो आतंकवाद को प्रायोजित करते है|

    • यथार्थवादी सैन्य तरीके से आतंकवाद समाप्त करना चाहता है|

    • प्रमुख घटनाएं जिनमें अमेरिका ने आतंकवाद की समाप्ति के लिए यथार्थवादी दृष्टिकोण का प्रयोग किया-


    1. प्रथम खाड़ी युद्ध (2 अगस्त 1990)-

    • तत्कालीन अमेरिकन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के समय

    • कुवैत के तेल क्षेत्र पर कब्जा करने के 2 अगस्त 1990 को इराक ने कुवैत पर हमला किया तथा कुवैत पर इराक ने कब्जा कर लिया|

    • इराक को UNO द्वारा शांतिपूर्वक समझाने की सभी राजनयिक कोशिश असफल होने पर UNO ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी|

    • 34 देशों के सम्मिलित 6,60,000 सैनिकों की सेना ने इराक पर आक्रमण किया|

    • UNO के इस सैन्य अभियान को ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्ट्रोम’ कहा जाता है, जो एक तरह से अमेरिकी सैन्य अभियान था|

    • ऑपरेशन के प्रमुख अमेरिकी जनरल नार्मन श्वार्ज़कोव थे|

    • इस अभियान में 75% सैनिक अमेरिका के थे|

    • इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने इस युद्ध को सौ जंगो की एक जंग कहा|

    • अमेरिका द्वारा इस युद्ध में स्मार्ट बमो का प्रयोग किया गया इसलिए कुछ पर्यवेक्षक इसे कंप्यूटर युद्ध की संज्ञा देते हैं|

    • इस युद्ध के बाद बदली परिस्थिति (अमेरिकी वर्चस्व) को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने ‘नई विश्व व्यवस्था’ कहा|

    • नई विश्व व्यवस्था में जॉर्ज बुश ने घोषणा की USA एक पुलिस मैन की भूमिका अदा करेगा तथा दुनिया में शांति स्थापित करने की क्षमता सिर्फ USA के पास है|

    • इस युद्ध को टीवी प्रोग्राम की तरह कवरेज किया गया इसलिए इसे ‘वीडियो वार गेम’ भी कहा जाता है|


    • ऑपरेशन प्रोवाइड कम्पर्ट- अप्रैल 1991 में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने उत्तरी इराक  के कुर्द लोगों के लिए मानवता के नाम पर उतरी इराक को उड़ान मुक्त क्षेत्र घोषित करने का अभियान चलाया जो 1996 तक चला|


    1. क्लिटन का दौर-

    • प्रथम खाड़ी के युद्ध में जीतने के बावजूद भी जॉर्ज बुश की जगह 1992 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार विलियम जेफर्सन (बिल) क्लिटन राष्ट्रपति बने, जो 1996 में फिर राष्ट्रपति बने तथा 2000 तक राष्ट्रपति रहे|

    • टारनॉफ सिद्धांत के तहत बिल क्लिटन ने विश्व राजनीति के बजाय घरेलू राजनीति पर ज्यादा ध्यान दिया|

    • क्लिटन ने सैन्य शक्ति, सुरक्षा जैसी कठोर राजनीति की जगह लोकतंत्र के बढ़ावे, जलवायु परिवर्तन तथा विश्व व्यापार जैसे नरम मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया|


    • बिल क्लिटन के समय अमेरिकी वर्चस्व के उदाहरण निम्न हैं-

    1. अलकायदा के विरुद्ध कार्यवाही (1998)-

    • 1998 में नैरोबी (केन्या) और दारे-सलाम (तंजानिया) के अमेरिकी दूतावासों पर बमबारी हुई|

    • जिसका जिम्मेदार अलकायदा को ठहराया गया तथा जवाबी कार्यवाही में अमेरिका ने सूडान और अफगानिस्तान के अलकायदा के ठिकानों पर क्रूज मिसाइलो से हमले किए|

    • इस सैन्य कार्रवाई को ‘ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच’ कहा गया|


    • Note - इस कार्यवाही में USA द्वारा UNO से भी अनुमति नहीं ली गई|


    1. युगोस्लाविया के विरुद्ध कार्यवाही (कोसोवो संकट)- (1999)

    • 1999 में अपने प्रांत कोसोवो में युगोस्लाविया ने अल्बानिया लोगो के आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य कार्यवाही की|

    • इसके जवाब में अमेरिकी नेतृत्व में नाटो ने युगोस्लाविया पर दो महीनों तक बमबारी की|

    • इससे स्लोबदान मिलोसेचिव की सरकार गिर गई और कोसोवो पर नाटो सेना काबिज हो गई|

    • इस कार्यवाही को Operation Allied force कहा जाता है|


    • Note - वर्तमान में युगोस्लाविया नामक देश नहीं है, 1991 से 2008 तक इसका विभाजन 8 देशों में हो चुका है|

    1. स्लोवेनिया- विभाजन 1991

    2. क्रोएशिया- विभाजन 1991     

    3. मेसिडोनिया- विभाजन 1991

    4. बोस्निया- विभाजन 1992

    5. हर्जेगोविना- विभाजन 1992

    6. सर्बिया- 2003 में विभाजन 

    7. मोंटेनीग्रो- 2006 में विभाजन

    8. कोसोवो- 2008 में विभाजन


    1. 9/11 की घटना-

    • 11 सितंबर 2001 को विभिन्न अरब देशों के 19 अपहरणकर्ताओं ने अमेरिका के 4 व्यवसायिक विमानों का अपहरण कर लिया|

    • दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी व दक्षिणी टावर से टकराये|

    • तीसरे विमान को वर्जीनिया के अर्लीगटन स्थित पेंटागन से टकराया| पेंटागन अमेरिकी रक्षा विभाग का मुख्यालय है|

    • चौथे विमान कांग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था, लेकिन वह पेंसिलवेनिया के एक खेत में गिर गया|

    • 9 /11 के जवाब में अमेरिका द्वारा भयंकर कार्यवाही की गई, इस समय राष्ट्रपति  रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज डब्ल्यू बुश थे|

    • 9/11 की घटना के बाद अमेरिकी विदेश नीति में आतंक के विरुद्ध युद्ध का नारा दिया गया| 

    • इस घटना के जवाब में अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के रूप में ‘ऑपरेशन एंड्यूरिंग फ्रीडम’ चलाया|

    • इस अभियान में मुख्य निशाना अल-कायदा और अफगानिस्तान के तालिबान शासन को बनाया|


    • 2 मई 2011 को पाकिस्तान के एबटाबाद में अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन को अमेरिका ने ‘ऑपरेशन नेप्च्यून स्पीयर’ नाम से सैन्य कार्यवाही में मार दिया गया| ऑपरेशन में प्रयुक्त कोड जेरोनिमो इकियो था|


    1. इराक पर आक्रमण- (19 मार्च 2003)-

    • सद्दाम हुसैन के तानाशाही शासन को समाप्त करने तथा सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए 19 मार्च 2003 को अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूटनाम से इराक पर हमला किया|

    • अमेरिकी नेतृत्व वाले इस सैन्य अभियान ‘कोअलिशन ऑफ़ विलिग्स’ में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए|

    • इस हमले से सद्दाम हुसैन की तानाशाही सरकार समाप्त हो गई लेकिन इराक में अमेरिका के विरुद्ध विद्रोह भड़क उठा, क्योंकि इस युद्ध का उद्देश्य कुछ अलग था जैसे इराक के तेल भंडार पर नियंत्रण स्थापित करना और इराक में अमेरिकी मनपसंद सरकार की स्थापना करना|


    1. ISIS के विरुद्ध हमले- 

    • ISIS -इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया|

    • 2006 से शुरू आतंकवादी संगठन

    • ISIS प्रमुख- अबू बकर अल बगदादी

    • ISIS- दवारा 2014 में इराक व सीरिया के कई शहरों पर नियंत्रण व लेबनान के कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया गया|

    • 2014 में USA ने ISIS के खिलाफ हवाई हमले शुरू किए|

    • रूस ने भी सीरिया में USA के साथ मिलकर ISIS पर हमले किए|

    • Operation inherent resolve सीरिया व इराक में ISIS के खिलाफ USA के नेतृत्व में नाटो सहयोगी देशों द्वारा अभी चल रहा है| 


    1. ऑपरेशन ऑडिसी डॉन- 2011 में लीबिया में गद्दाफी के खिलाफ

    2. ऑपरेशन कायला- 26 अक्टूबर 2019 को अमेरिकन डेल्टा फोर्स द्वारा ISIS Chief अबूबकर अल बगदादी को मार दिया गया| कायला मूलर USA की मानव अधिकार कार्यकर्ता थी, जिसको सीरिया में ISIS ने मार दिया था| उसी के नाम पर इस ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन कायला रखा गया|

    3. ऑपरेशन रिस्टोर होप- दिसंबर 1992 में गृहयुद्ध से पीड़ित सोमालिया में भूखे लोगों की सहायता अमेरिका द्वारा की गई|

    •  यथार्थवादी समाधान की आलोचना- 

    • नव यथार्थवादी जॉन मार्शहाइमर ने अमेरिका द्वारा इराक पर आक्रमण का समर्थन नहीं किया है| इनके अनुसार इराक पर आक्रमण के बाद आतंकवाद में कमी होने के बजाय वृद्धि हुई|

    • आतंकवाद का पूर्णत सैनिक समाधान कठिन है, जिसके निम्नलिखित कारण है- 

    1. आम नागरिकों एवं आतंकवादियों के बीच स्पष्ट रूप में पहचान करना कठिन होता है|

    2. आतंकी संगठनों का कोई एक निश्चित ठिकाना नहीं होता है|

    3. आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में आम नागरिकों की हत्या से जन आक्रोश बढ़ता है|


    • उदारवादी समाधान- 

    • उदारवादियों के अनुसार ‘आतंकवाद के समाधान हेतु राज्यों के मध्य परस्पर सहयोग आवश्यक है|’

    • इनके मत में आतंकवाद को फैलाने में गैर-राष्ट्रीय कर्ताओं की मुख्य भूमिका है|

    • आतंकवाद के समाधान के सामान्य उपाय निम्न है-

    1. आतंकवादियों को प्राप्त वित्तीय स्रोतों को पूर्णत: समाप्त करना|

    2. नशीली दवाओं के व्यापार पर प्रतिबंध|

    3. आतंकियों के प्रशिक्षण अड्डों को समाप्त करना|

    4. राज्यों के मध्य सूचना का आदान-प्रदान|


    • वर्ष 1976 के हेग सम्मेलन में वायुयान अपहरण को रोकने के लिए विधि का निर्माण किया गया|

    • 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रस्ताव 1373 पारित किया गया, जिसमें यह निर्दिष्ट है कि राज्य आतंकवाद के नियंत्रण हेतु प्रभावी विधि का निर्माण करें|

    • वर्ष 2004 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्ताव 1576 पारित किया गया, जिसमें आतंकवादी गतिविधियों को घोर अपराधिक कृत्य माना गया|


    ISIS (Islamic State of Iraq and Syria)- 

    • उत्पत्ति के कारण-

    • पश्चिमी एशिया में नृजातीय संघर्ष एवं शिया-सुन्नी विवाद के कारण ISIS का गठन हुआ|

    • सुन्नी समुदाय का मानना है कि इराक एवं सीरिया के शिया शासक सुन्नियों के साथ भेदभाव कर रहे हैं| इस अविश्वास एवं विवाद के कारण सुन्नी समुदाय के एक भाग ने ISIS का गठन किया|

    • सऊदी अरब (सुन्नी बहुमत) के द्वारा इरान (शिया बहुल) के प्रभाव को कम करने के लिए आतंकवादी संगठनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सहायता प्रदान की जा रही है, जिसका समर्थन तुर्की एवं इजरायल द्वारा किया जा रहा है|

    • ऐसा माना जाता है कि लीबिया के शासक गद्दाफी को हटाने के लिए अमेरिका द्वारा अलकायदा का समर्थन तथा अमेरिका द्वारा 2003 में इराकी हमले के कारण ISIS का गठन हुआ|


    • ISIS की विचारधारा - 

    • इस्लामिक एकता को स्थापित करते हुए कुरान एवं शरीयत के आधार पर शासन व्यवस्था स्थापित करना|

    • पश्चिमी ताकतों (विशेषकर, अमेरिका) के प्रभुत्व को समाप्त करना|


    पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन


    • हमारे आसपास का परिवेश, पर्यावरण कहलाता है, जिसमें भौतिक एवं जैविक घटक शामिल होते हैं|

    • इन घटकों में जटिल अंतनिर्भरता पायी जाती है, जिसे पारिस्थितिकी की संज्ञा दी जाती है|

    • अत्यधिक पर्यावरण के दोहन से पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन की समस्याएं उत्पन्न हुई है|

    • पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन से राष्ट्रों के बीच प्राकृतिक संसाधनों के बंटवारे का विवाद, द्वीपीय राष्ट्रों डूबने का खतरा, खाद्यानो के उत्पादन में कमी, आपदाओं की बढ़ती तीव्रता इत्यादि संकट सामने आ रहे हैं|


    • पर्यावरण समस्या के समाधान के दो दृष्टिकोण है-

    1. प्रथम पर्यावरणवाद- इसमें पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन को मानवीय जीवन के लिए खतरा माना है| यह विचार पूर्णत: मानव केंद्रीय है|

    2. दूसरा- पारिस्थितिकीवाद- इसमें पर्यावरण के सभी घटकों को समान मानते हुए मानवीय सर्वोच्चता के विचारों को नकारा है| इसमें पर्यावरण की रक्षा करने पर बल दिया|


    • विभिन्न मान्यताएं

    • Rachel Carson ने अपनी पुस्तक ‘The Silent Spring’ 1962 में कीटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण समस्या के बारे में विचार दिया है|

    • हैरीमन ने अपनी पुस्तक ‘How to be a Survivor’ में पर्यावरण समस्या पर विचार दिए हैं|

    • गोल्ड स्मिथ ने पर्यावरण समस्या पर ‘Blueprint for Survival’ लिखी|

    • संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा ‘Only One Earth 1972’ रिपोर्ट जारी की गई तथा 1972 में ‘क्लब ऑफ रोम रिपोर्ट’ प्रकाशित हुई, जिसमें कहा गया कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आर्थिक विकास की दर शून्य होनी चाहिए|

    • ‘पारिस्थितिकी विज्ञान’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले 1870 में जर्मन प्राणीशास्त्री अर्नेस्ट हैकल द्वारा किया गया था|

    • 1970 के पश्चात पर्यावरणवाद एवं पारिस्थितिकी आंदोलन एक सामाजिक-राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरने लगे, और नए प्रकार की पर्यावरणीय राजनीतिक विचारधारा पारिस्थितिकवाद का उदय हुआ|


    • जॉन पासमोर के अनुसार ‘मानव के संदर्भ में तीन तरह की पर्यावरणीय व्यवस्था को देखा जा सकता है-

    1. सामाजिक पर्यावरण- प्रत्येक मनुष्य मानवीय समुदाय से संबंधित होता है, जो सामान सामाजिक आचरण से बंधे होते हैं| ये सभी समान सामाजिक आचरण मनुष्य के सामाजिक पर्यावरण को निर्मित करते हैं|

    2. निर्मित पर्यावरण- प्रत्येक व्यक्ति के पास कई प्रकार की भौतिक वस्तुएं होती हैं, जो दूसरे व्यक्तियों के द्वारा मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए निर्मित होती है| ये वस्तुएं ‘निर्मित पर्यावरण’ को जन्म देती है|

    3. प्राकृतिक पर्यावरण- तीसरे प्रकार का पर्यावरण प्राकृतिक पर्यावरण है, और जिसके बारे में वर्तमान में सबसे अधिक चिंता व्यक्ति की जा रही है|



    • पारिस्थितिकीवाद का सैद्धांतिक पक्ष-

    • आर्नेनेस के अनुसार, पर्यावरणविद दो प्रकार के समूहों में विभक्त है|

    1. ऊपरी (Shallow) पर्यावरणविद

    2. गहन (Deep) पर्यावरणविद  


    • पर्यावरणविदों के इस तर्क को कि ‘हमारे प्राकृतिक स्रोत सीमित है, और ये समाप्त हो जाएंगे’ को अर्थशास्त्री तथा प्रौद्योगिकीविद स्वीकार नहीं करते हैं| इसी आधार पर क्लब ऑफ रोम रिपोर्ट  ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ की आलोचना की है|

    • पीटर सिंगर ने अपनी रचना ‘एनिमल लिबरेशन’ 1975 में सभी पशुओ से समान व्यवहार करने पर बल दिया है|

    • रीगन ने अपनी रचना ‘द केस फॉर एनिमल राइट’ में स्तनपायी पशुओं को अधिकार देने का समर्थन किया है|

    • डॉबसन ने पारिस्थितिवाद विचारधारा को दो भागों में विभाजित किया- 

    1. अधिकतमवाद

    2. अल्पमतवाद 


    • आधुनिक औद्योगिक समाज की ग्रीन आलोचना-

    • E F शुमेकर ने अपनी पुस्तक ‘स्माल इज ब्यूटीफुल’ में लिखा है कि आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था जिस आधार पर टिकी है, वह अपने अतिवादी दृष्टिकोण से उसे ही समाप्त कर रही हैं|

    • ग्रीन विचारधारा विकसित राष्ट्रों द्वारा तेजी से किए जा रहे पर्यावरण दोहन की आलोचना करती है|

    • टेड टर्नर के अनुसार, प्रत्येक अमेरिकन एक सामान्य इथियोपियन की तुलना में 617 गुना अधिक ऊर्जा प्रतिवर्ष उपयोग में ले रहा है|


    • पर्यावरणीय समाजवाद

    • रूडोल्फ बाहरो ने पर्यावरण के विनाश के लिए पूंजीवादी व्यवस्था को उत्तरदायी ठहराया है| जहां लाभ के आधार पर अर्थव्यवस्था का संचालन किया जाता है, जिससे समूचे पर्यावरण का विनाश हो गया|


    • पर्यावरणीय अराजकतावाद

    • Murray Bookchin ने अपनी पुस्तक ‘Our Synthetic Environment’ में कहा कि समाज का निर्माण आपसी सद्भाव और सामंजस्य के आधार पर होना चाहिए| इसलिए राज्य और सरकार जैसी नियंत्रणकारी संस्था की कोई आवश्यकता नहीं है|

    • इसकी पुस्तकें-

    • The Ecology of Freedom 

    • Remaking Society 


    • ग्लोबल कामन्स

    • यह वैश्विक धरोहर का संरक्षण है| जिसके अर्थ निम्नलिखित है

    1. वे धरोहर, जो राष्ट्र-राज्य की भौगोलिक सीमा में स्थित है, लेकिन उनका महत्व वैश्विक है| जैसे- मलेशिया एवं ब्राजील के वर्षा वन तथा हिमालय के ग्लेशियर| इनके संरक्षण में  अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जटिल मुद्दे भी विद्यमान है, क्योंकि ब्राजील के अनुसार उसके वनों पर उसका संप्रभु अधिकार है| वही साझी धरोहर की मान्यता के अनुसार ब्राजील के वनों पर समूची मानवता का अधिकार है| इसलिए ऐसी धरोहर के संबंध में राष्ट्रीय संप्रभुता एवं अंतरराष्ट्रीय दायित्व में सीधा विरोधाभास उत्पन्न हो जाता है| 

    2. दूसरे प्रकार की साझी धरोहर जिन पर किसी राष्ट्र का नियंत्रण नहीं होता है, बल्कि उन पर समूचे विश्व समुदाय का नियंत्रण है| उदाहरण- खुला आकाश, खुला समुद्र आदि|


    • ग्लोबल कामन्स का तात्पर्य है कि पर्यावरण समस्या का प्रभाव राष्ट्र-राज्य की सीमा के दायरे में बंधा नहीं होता, इसलिए समूचे विश्व समुदाय का यह दायित्व है कि इन वैश्विक धरोहरों की रक्षा की जाय|


    • ट्रेजिडी ऑफ कॉमन्स-

    • गैरेट हार्डिंन ने साझी धरोहर के विनाश को ‘ट्रेजिड़ी ऑफ कॉमन्स’ कहा है|

    • इनके मत में बेहतर होती तकनीकी और व्यक्तिगत लाभ की आकांक्षा ने वैश्विक धरोहर के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है|


    शीत युद्धोत्तर विश्व एवं पर्यावरणीय संरक्षण-

    • मांट्रियल प्रोटोकॉल 1987

    • 1987 में पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए मांट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके माध्यम से ओजोन परत की रक्षा के लिए समझौता किया गया और उन गैसों की कटौती पर सहमति जताई जिनसे ओजोन परत का विनाश होता है|

    • रियो सम्मेलन 1992

    • पर्यावरण संरक्षण के लिए 1992 में रियो डी जेनेरो (ब्राजील) में सम्मेलन हुआ|

    • यह संयुक्त राष्ट्र संघ का ‘पर्यावरण एवं विकास’ के लिए सम्मेलन था|

    • इसे पृथ्वी सम्मेलन भी कहा जाता है|

    • इस सम्मेलन में एजेंडा 21 स्वीकार किया गया|

    • एजेंडा 21 में पर्यावरण संरक्षण के लिए निम्नलिखित के संरक्षण पर बल दिया गया-

    1. शहरी विकास को सतत रूप से बढ़ावा देना|

    2. वनों का संरक्षण

    3. जैव तकनीकी प्रबंधन

    4. विघटित पर्वतीय पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण


    • एजेंडा 21 में ‘ग्लोबल एनवायरमेंट फैसिलिटी’ (पर्यावरण रक्षा कोष) को शक्तिशाली बनाने पर बल दिया गया|


    • क्योटो समझौता 1997 या क्योटो प्रोटोकॉल

    • ग्रीन हाउस गैसों में कटौती के लिए यह समझौता हुआ|

    • इस समझौते में 2008 से 2012 के मध्य अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान ने अपने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वर्ष 1990 के स्तर से क्रमशः 8,7,6 प्रतिशत अंक कटौती का समझौता किया, लेकिन अमेरिका ने इसे स्वीकार नहीं किया|

    • क्योटो प्रोटोकॉल में विकासशील देशों को ग्रीन हाउस गैस की बाध्यकारी कटौती से मुक्त रखा|


    • जोहांसबर्ग सम्मेलन (पृथ्वी+ 10) 2002-

    • पृथ्वी सम्मेलन के 10 वर्षों बाद सतत विकास पर ‘जोहान्सबर्ग सम्मेलन’ आयोजित हुआ|

    • जोहांसबर्ग सम्मेलन में सतत विकास को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित मुद्दों पर बल दिया गया|

    1. जल

    2. कृषि

    3. ऊर्जा

    4. जैव विविधता

    5. स्वास्थ्य


    • कोपनहेगन सम्मेलन 2009-

    • इसमें निम्न बातों पर बल दिया गया-

    1. पर्यावरणीय समस्या के समाधान के लिए साझे, लेकिन अलग-अलग उत्तरदायित्व की मान्यता को स्वीकार किया गया|

    2. वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि नहीं होनी चाहिए|

    3. उत्सर्जन कटौती मानको का निर्माण करते समय विकासशील देशों को अधिक समय दिया जाय| 

    4. अति पिछड़े देशों एवं छोटे द्वीपीय देशों के लिए विशेष सहायता का समर्थन किया गया| 


    • पर्यावरणीय संकट पर विकसित एवं विकासशील देशों के मध्य मतभेद-

    • विकसित एवं विकासशील देशों में निम्न दो मुद्दों पर मतभेद है

    1. पर्यावरणीय संकट के लिए उत्तरदायी कौन है?

    2. पर्यावरणीय संरक्षण में किसका कितना योगदान होना चाहिए|


    • विकासशील देशों के मत में पर्यावरणीय संकट पश्चिमी देशों द्वारा आरंभ वृहद और व्यापक औद्योगीकरण का परिणाम है| पश्चिमी देशों की उपभोक्तावादी शैली इसके लिए उत्तरदायी है|

    • जबकि विकसित देशों के अनुसार, विकासशील देशों की बढ़ती जनसंख्या एवं पर्यावरण का अनुकूल प्रबंधन प्रदूषण का मूल कारण है|


    • जलवायु परिवर्तन पर पेरिस सम्मेलन (COP)- 21-

    • दिसंबर 2015 में जलवायु परिवर्तन समझौते को अंगीकार किया गया|

    • इस समझौते में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों एवं जोखिमों को कम करने के लिए औसत वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया|

    • इस समझौते में विकासशील देशों के निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने में सहयोग देने के लिए विकसित देश 2020 तक प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकन डॉलर का योगदान देंगे|

    • विकासशील देश साझे किंतु विभेदात्मक दायित्वों के सिद्धांत के आधार पर अपनी स्थानीय परिस्थितियों एवं संदर्भित क्षमताओं के अनुरूप योगदान देंगे|


    • पेरिस सम्मेलन के प्रति बेसिक (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) का दृष्टिकोण

    • इस समूह ने व्यापक महत्वकांक्षी और वैधानिक रूप से बाध्यकारी संधि के निर्माण पर बल दिया|

    • विभेदीकरण सिद्धांत का समर्थन किया|


    • पेरिस सम्मेलन की असफलता के कारण-

    • वित्तीयन, तकनीकी हस्तांतरण एवं क्षमता निर्माण पर कोई बाध्यकारी समझौता नहीं हो पाया|

    • कई राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2030 के बाद कार्बन उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता दर्शायी, जबकि समस्या अभी की है| 


    मानवाधिकार

    • रेंडम हाउस साइक्लोपीडिया “एक मनुष्य होने के नाते ही एक व्यक्ति की शक्तियो, अस्तित्व की शर्तें तथा प्राप्तियो के दावे मानवाधिकार होते हैं तथा जो जीवन जीने के लिए नितांत आवश्यक होते हैं|

    • मानवाधिकारों का अस्तित्व किसी विशेष समाज की विशेष परिस्थितियो तथा स्वीकृति पर निर्भर न होकर एक चेतना युक्त आत्मसम्मान वाले मानव की प्रकृति में ही निहित होते हैं|

    • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में 7 बार मानवाधिकार शब्द का उल्लेख है|

    • UN चार्टर के अनुच्छेद -1 में मानवाधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ाने की सार्वभौमिक आवश्यकता की बात कही गयी है|

    • अनुच्छेद 55 संयुक्त राष्ट्र संघ का यह उत्तरदायित्व है कि वह मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओ के प्रति सार्वभौमिक सम्मान तथा पालना को बिना किसी नस्ल, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव से सुरक्षित तथा प्रफुल्लित करेगा|

    • अनुच्छेद 62 द्वारा आर्थिक और सामाजिक परिषद को यह कार्य सौंपा गया है कि वह सभी के लिए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा के प्रति सम्मान बढ़ाने के लिए सिफारिशें करें|

    • अनुच्छेद 76 द्वारा ट्रस्टीशिप परिषद को यह कार्य सौंपा गया है कि वह सभी लोगों के मानवाधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान को उत्साहित करें|

    • 1946 में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुई|

    • 10 दिसंबर 1948 के दिन मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र जारी किया गया|


    • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के बाद निम्नलिखित समझौतों द्वारा मानव अधिकारों की सुरक्षा के प्रयत्न किए गए-

    1. नरसंहार के अपराध रोकने तथा सजा देने से संबंधित समझौता 1948

    2. स्त्रियों के राजनीतिक अधिकारों पर समझौता 1952

    3. आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों का समझौता 1966

    4. नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर समझौता 1966

    5. नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते पर ऐच्छिक प्रोटोकॉल 1966

    6. मानवता के विरुद्ध अपराधों तथा युद्ध अपराधों के संबंध में कानूनी सीमाओं के न लागू किए जाने पर समझौता 1968 

    7. नस्लवादी भेदभाव के अपराध की समाप्ति तथा सजा देने संबंधी समझौता 1973


    • वर्ष 1890 के ‘ब्रुसेल्स समझौते’ के द्वारा दास प्रथा को समाप्त करने का निर्णय लिया गया|

    • 1926 के जिनेवा कन्वेंशन में कहा गया कि युद्ध में भी मानवाधिकार का उल्लंघन न हो|


    • Note- 1919 में स्थापित राष्ट्र संघ के चार्टर में मानवाधिकार का कोई उल्लेख नहीं था| 


    • मानवाधिकार पर आपत्तियां

    1. दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने मानवाधिकार के अनुच्छेद-1 को मानने से इनकार कर दिया| अफ्रीकी सरकार के अनुसार यह घोषणा अफ्रीकी सरकार के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का उदाहरण है, जो UN चार्टर का उल्लंघन है| मानवाधिकार सार्वभौमिक घोषणा का अनुच्छेद- 1 के अनुसार सभी मनुष्य अधिकार एवं सम्मान के संबंध में स्वतंत्र व समान पैदा होते हैं|

    2. सोवियत संघ व साम्यवादी देशों के मत में मानवाधिकार के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में सामाजिक- आर्थिक अधिकारों की उपेक्षा की गयी है| सोवियत संघ ने इन्हें बुर्जुआ अधिकार कहा है और इसे ‘शीत युद्ध का घोषणा पत्र’ भी कहा है|

    3. सऊदी अरब मतदान के दौरान अनुपस्थित रहा और सऊदी अरब ने धार्मिक आधार पर मानवाधिकार की घोषणा पर आपत्ति उठायी है| इसको अनुच्छेद 18 अस्वीकार्य है, जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने चयनानुसार धार्मिक उपासना का अधिकार है और धर्म परिवर्तन का भी अधिकार है|


    • एमनेस्टी इंटरनेशनल

    • स्थापना- 28 मई 1961

    • मुख्यालय- लंदन यूनाइटेड किंग्डम

    • यह एक अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था (NGO) है| 

    • उद्देश्य- विश्व के प्रत्येक भाग में मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकना और ऐसे वातावरण और व्यवस्था विकसित करना, जिसमें सभी व्यक्तियों के मानव अधिकारों की निरंतर सुरक्षा संभव हो सके|

    • यह एक स्वतंत्र स्वायत्त अंतरराष्ट्रीय आंदोलन है|

    • यह अपने आपको राजनीतिक विचारधारा व किसी भी प्रकार के आर्थिक हित अथवा विचारधारा से अलग रखता है|

    • यह किसी भी सरकार अथवा राजनीतिक व्यवस्था का विरोध या समर्थन नहीं करता है|

    • इसकी गतिविधियां विश्व के प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक देश में फैली हुई है|

    • अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल एक लोकतंत्रीय स्वसंचालित आंदोलन के रूप में कार्य करता है, जिसके निर्णय एक अंतरराष्ट्रीय परिषद द्वारा लिए जाते हैं|

    • इस अंतरराष्ट्रीय परिषद में विश्व के प्रत्येक भाग के प्रतिनिधि होते हैं|


    • वियना सम्मेलन 1993

    • 1993 में मानव अधिकारों पर वियना सम्मेलन हुआ|

    • यह मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए सम्मेलन था|

    • मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संधियों को लागू करने के लिए निम्न संस्थाएं स्थापित की गयी है|-

    1. International Covenant on civil and political right (ICCPR)- Human Rights Committee of ICCPR

    2. International Covenant on Economic, Social and Cultural Right (ICESCR)- ICESCR Committee on Economic and Social Rights

    3. Convention on the Elimination of All from of Racial Discrimination (CERD)- Committee on Elimination of Racial Discrimination

    4. Convention on the Elimination of Discrimination Against women (CEDAW)- Committee on The Elimination of Discrimination Against Women

    5. Convention Against Torture- Committee Against Torture

    6. Convention on Right Child- Committee on Right of Child

    7. International Convention on The Protection of Right of All Migrant Workers and Memberners of Their (ICRMW)- ICRMW Committee


    • मानव अधिकार परिषद (Human right Council)-

    • स्थापना- 3 अप्रैल 2006

    • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 7वें अधिवेशन में प्रस्ताव 60/251 पास करके 3 अप्रैल 2006 को मानवाधिकार परिषद की स्थापना की|

    • प्रस्ताव में कहा गया कि शांति और सुरक्षा, विकास तथा मानवाधिकार संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के आधार स्तंभ है|

    • मानव अधिकार कमिशन/ आयोग के स्थान पर मानव अधिकार परिषद की स्थापना की गयी थी|

    • मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र महासभा का सहायक अंग है|

    • मुख्यालय- स्वीटजरलैंड


    • मानवाधिकार परिषद की संरचना

    • सदस्य

    • वर्तमान कुल सदस्य- 47 सदस्य

    • अफ्रीकी देशों से- 13 सदस्य

    • एशियाई देशों से-13 सदस्य

    • लैटिन अमेरिका एवं कैरीबियन देशों से- 8 सदस्य

    • पश्चिमी यूरोपीय देशों से- 7 सदस्य

    • पूर्वी यूरोपीय देशों से- 6 सदस्य

    • चुनाव

    • संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्यों द्वारा बहुमत के आधार पर

    • चुनाव गुप्त मतदान के आधार पर होता है|

    • प्रथम चुनाव 9 मई 2006

    • मानवाधिकार परिषद की बैठक- 9 जून 2006 


    • सदस्यों का कार्यकाल- 3 वर्ष


    • योग्यता- 

    • संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्रों का निवासी हो|

    • अपने देश के स्थान पर मानव अधिकारों की सुरक्षा उद्देश्य को प्राथमिकता दें|


    • सदस्यता से निलंबन

    • मानव अधिकारों के उल्लंघन पर सदस्यता से वंचित किया जा सकता है|

    • इसके लिए महासभा की बैठक में उपस्थित सदस्यों के 2/3 बहुमत की आवश्यकता होती है|


    • बैठक

    • 1 वर्ष में कम से कम 3 बैठके


    • कार्य प्रक्रिया-

    • मानवाधिकार परिषद पारदर्शी, न्याययुक्त और निष्पक्ष रूप से कार्य करती हैं|


    • कार्य

    • बिना भेदभाव के सभी लोगों के सभी मानवाधिकारों तथा स्वतंत्रताओ को प्रोत्साहन देना व सुरक्षित करना


    प्रवासन तथा शरणार्थी


    शरणार्थी संकट

    • आर्थिक अभाव और राजनीतिक भेदभाव के कारण विश्व में शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि हो रही है|


    • रोहिंग्या समस्या

    • रोहिंग्या मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोग हैं, जो म्यानमार के रखाइन प्रांत में रहते हैं|

    • म्यानमार की पूर्व सैनिक सरकार द्वारा इनको नागरिकता प्रदान नहीं की गयी और इन्हें अवैध  शरणार्थी कहा जा रहा है|

    • म्यांमार की सैनिक सरकार में 1982 में नागरिकता का कानून बनाते हुए 8 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को राज्य विहीन या देश विहीन करार दिया|

    • जून 2012 में बर्मी मूल और रोहिंग्या के बीच हिंसक झड़पे हुई, जिससे लगभग 2 लाख रोहिंग्यो ने म्यानमार छोड़ दिया और वे बांग्लादेश आ गये| तथा बांग्लादेश से उत्तरी-पूर्वी राज्यों में भी प्रवेश कर गये|

    • वर्ष 2015 में पुन: बर्मीयों और रोहिंग्यों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ, जिसके परिणामस्वरूप रोहिंग्या समुदाय ने इंडोनेशिया, मलेशिया तथा सिंगापुर में शरण लेने का प्रयत्न किया| परंतु इन देशों ने रोहिंग्या को शरण देने से इनकार कर दिया|  इन कारणों से रोहिंग्या समस्या मानवाधिकार की समस्या बन गयी|

    • रोहिंग्या समस्या से भारत भी प्रभावित होता है| ये रोहिंग्या भारत में आकर बौद्ध धार्मिक स्थानों पर हमला करने की योजना बनाते हैं|

    • म्यांमार के बौद्ध चरमपंथी संगठनो का मानना है कि रोहिंग्या बांग्लादेशी है तथा ये हमारे रोजगार तथा विकास के अवसरों को छीन रहे हैं|

    • बौद्ध नेता ‘आशीन विरातू’ द्वारा शुरू किए गए आंदोलन- 969 द्वारा म्यानमार के पश्चिमी प्रांत के माइकातिला शहर से रोहिंग्या व बर्मी मूल में संघर्ष शुरू हुआ|


    • मानवीय सुरक्षा-

    • पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक ने मानवीय सुरक्षा की संकल्पना का विचार दिया|

    • इन्होंने वर्ष 1994 की संयुक्त राष्ट्र संघ की मानव विकास रिपोर्ट में मानवीय सुरक्षा आयामों को स्पष्ट किया|


    • इसके प्रमुख आयाम निम्नलिखित हैं-

    1. आर्थिक असुरक्षा से मुक्ति

    2. भोजन के अभाव से मुक्ति 

    3. विभिन्न बीमारियों से मुक्ति

    4. प्रदूषण से छुटकारा

    5. निशुल्क स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता 

    6. पर्यावरणीय खतरे से मुक्ति

    7. व्यक्तिगत खतरों से मुक्ति

    8. सामुदायिक सुरक्षा

    9. राजनीतिक सुरक्षा


    • महबूब उल हक के अनुसार, मानवीय सुरक्षा हेतु निम्नलिखित उपाय आवश्यक है-

    1. विकास

    2. सैन्य उपाय

    3. उत्तर दक्षिण संबंधों के पुन संरचना पर बल

    4. संस्थागत उपाय

    5. वैश्विक नागरिक समाज का निर्माण


    गरीबी तथा विकास

    • वर्तमान समय में तीसरी दुनिया के देशों विशेषत: एशियाई अफ्रीकी देशों में अशिक्षा, बेरोजगारी, विषमता, गरीबी एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्या विद्यमान है|

    • समतामूलक विश्व के निर्माण हेतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रमों के द्वारा समतामूलक विश्व की स्थापना का प्रयास किया जा रहा है|

    • समतामूलक विश्व की स्थापना हेतु सहस्त्राब्धि विकास लक्ष्य की घोषणा की गयी| यह वर्ष 2015 से 2030 तक चलेगा|


    • सहस्त्राब्धि विकास लक्ष्य-

    • पूरे विश्व में गरीबी की समाप्ति 

    • भूख की समाप्ति, खाद सुरक्षा व बेहतर पोषण और धारणीय कृषि को बढ़ावा देना|

    • स्वास्थ्य, सुरक्षा व स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देना|

    • समावेशी एवं गुणवत्ता युक्त शिक्षा देना|

    • लैंगिक समानता की स्थापना करना|

    • सभी के लिए स्वच्छ जल का प्रबंधन करना|

    • सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करना|

    • समावेशी एवं सतत विकास, रोजगार को बढ़ावा देना|

    • समावेशी और सशक्त औद्योगीकरण को बढ़ावा देना|

    • देशों के मध्य आंतरिक असमानता को कम करना|

    • सुरक्षित, टिकाऊ शहर व मानव बस्तियों का निर्माण करना|

    • जलवायु परिवर्तन व उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्कालीन कार्यवाही करना|

    • महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण

    • पारिस्थितिकी प्रणाली, जंगलो, भूमि, जैव विविधता का संरक्षण

    • सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को सुनिश्चित करना|


    • धर्म, संस्कृति तथा पहचान-राजनीति की भूमिका-

    • वर्तमान विश्व में उपनिवेशवाद की समाप्ति हो चुकी है और ज्यादातर देशों में लोकतांत्रिक सरकारों का गठन हो चुका है|

    • लेकिन एशियाई- अफ्रीकी देशों में लोकतांत्रिक मूल्यों का अभी तक पूर्ण विकास नहीं हुआ है| यहां के समाज विविधतापूर्ण है|

    • अतः एशियाई अफ्रीकी देशों में बहुमत जनसंख्या द्वारा अल्पमत जनसंख्या के अधिकारों का दमन किया जाता है|

    • इस कारण इन देशों में अपनी धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने के लिए विभिन्न समुदायों के मध्य संघर्ष दिखायी देता है|

    • जैसे- श्रीलंका में नृजातीय समस्या, पाकिस्तान में बलूचिस्तान के लोगों की समस्या आदि|

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