जीवन परिचय-
जन्म-
5 अप्रैल 1588 ईसवी
इंग्लैंड के दक्षिण तट पर स्थित मेल्सबरी नगर (वेस्टपोर्ट) में
हॉब्स के जन्म के समय इंग्लैंड और स्पेन के मध्य ‘आर्मेडा का युद्ध’ हो रहा था| भय से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक माहौल में हॉब्स की मां ने समय पूर्व बच्चे को जन्म दिया था|
इस संबंध में हॉब्स का कथन है कि “आर्मेडा युद्ध के वर्ष में उनकी जननी ने 2 जुड़वाओ को जन्म दिया भय तथा उनको|”
बाल्यकाल से हॉब्स अध्ययनशील एवं अनुशासित स्वभाव का था, किंतु डरपोक था|
हॉब्स की प्रारंभिक शिक्षा मेल्सबरी में हुई| ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से उसने स्नातक की उपाधि ग्रहण की|
1608 में इंग्लैंड के केवेंडिश नामक एक संभ्रांत कुल के विलियम केवेंडिश का शिक्षक नियुक्त हुआ|
1628 में हॉब्स सर क्लिंटन के पुत्र का अध्यापक नियुक्त हुआ|
इंग्लैंड के गृहयुद्ध के समय हॉब्स इंग्लैंड से भागकर फ्रांस चला गया क्योंकि उन्होंने राजतंत्र केसमर्थन में लिखा था तथा वहां उसने चार्ल्स द्वितीय को गणित की शिक्षा प्रदान की|
प्यूरिटन क्रांति-
इंग्लैंड के गृहयुद्ध को प्यूरिटन क्रांति कहा जाता है, जो 1642 से 1649 तक चला था|
यह गृहयुद्ध संसद समर्थकों Round-heads (जिनका नेता क्रामवेल था) तथा राजतंत्र समर्थकों Cavaliers (जिनका नेता तात्कालिक ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स प्रथम था) के मध्य हुआ था| संसद समर्थकों की इस युद्ध में विजय हुई तथा चार्ल्स प्रथम को फांसी दे दी गई|
प्यूरिटन आंदोलन -
ब्रिटेन में 16-17 वी सदी में चला ईसाई धर्म में सुधार आंदोलन था| जो ईसाई धर्म की प्रोटेस्टेंट शाखा से संबंधित था| इस आंदोलन के समर्थक रोमन कैथोलिक शाखा की धार्मिक रूढ़ियों व परंपराओं के विरोधी थे| ये ब्रिटेन में गणतंत्र के समर्थक थे|
फ्रांस में ही अपना सुप्रसिद्ध ग्रंथ लेवियाथान लिखा था, जिसका प्रकाशन 1651 में हुआ था|
1652 ईसवी में इंग्लैंड वापस आ गया|
1679 ईसवी में करीब 91वर्ष की आयु में हॉब्स की मृत्यु हो गई |
हॉब्स ने राज्यशास्त्र, समाजशास्त्र, गणित, दर्शनशास्त्र आदि का गहन अध्ययन किया|
रचनाएं-
हॉब्स के द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ निम्न है-
थ्यूसिडाइडस (1630)-
इसमें एथेंस का इतिहास है|
डी सीवे (De Cive) 1642 ई.-
इस ग्रंथ में संप्रभुता की परिभाषा और उसका स्पष्टीकरण किया गया है|
इस ग्रंथ में हॉब्स ने प्राकृतिक अवस्था के बारे में सर्वप्रथम कहा था, कि ‘यह सभी का सबके खिलाफ संघर्ष की अवस्था’ थी|
Philosophical Rudiments Concerning Government and Society के शीर्षक से हॉब्स ने डी सीवे को बाद में अंग्रेजी में अनुवाद कर छपवाया|
Note- फ्रांस प्रवास के दौरान हॉब्स ने अपनी महान रचना (Magnum opus) लिखने की योजना तैयार की थी| इस योजना में क्रमश: तीन विषयों पर लिखना था- पदार्थ व शरीर, मानव स्वभाव, समाज का निर्माण व नागरिक, किंतु ब्रिटेन में गृहयुद्ध छिड़ जाने के कारण उन्होंने सबसे पहले तीसरा भाग लिखा डी सीवे 1642 के नाम से फिर क्रमश: निम्न लिखी- डी कारपोरे (De Corpore) 1655, डी होमिनी (De homine)-1659
डी कारपोरे (De Corpore) 1655 ई.-
इसमें प्रकृति व प्राकृतिकअवस्था का विवेचन है|
इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जनता को संप्रभु शासक का विरोध क्यों नहीं करना चाहिए?
इसमें हॉब्स ने लिखा है “ज्ञान का अंत शक्ति है|”
इसमें हॉब्स ने तर्क दिया है कि विज्ञान का कार्य विभिन्न प्रकार की शारीरिक गतियों को समझाना है| प्रत्येक मनुष्य का शरीर घड़ी की तरह एक जटिल यंत्र है, जिसमें हृदय स्प्रिंग है, नसे तार हैं, जोड़ टायर है जो गति देते हैं| इंद्रिया बाहरी संवेदनाओं से प्रभावित हो गति करती है| जो गतियां व संवेदनाएं आनंद देती है, वे Felicity (सुखदायक) कहलाती है तथा जो दर्द देती हैं वे Evil (बुरी) कहलाती है|
डी होमिनी (De homine)-1659 ई-
एलिमेंट्स ऑफ लॉ (Elements of law) 1650 ई.-
इसमें विधि की व्याख्या तथा विधि के प्रकारों का वर्णन है|
यह पुस्तक केप्लर के ‘ग्रहों की गति संबंधी नियमों व गैलीलियो के ‘गिरती हुई वस्तु के नियम’ से प्रभावित है|
लेवियाथन (Leviathan) 1651 ई-
इसमें निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया है| इस ग्रंथ को चार भागों में बांटा गया है-
प्रथम भाग- Of Man (प्राकृतिक अवस्था का वर्णन)
द्वितीय भाग- Of Commonwealth (राज्य की उत्पत्ति व संप्रभुता का वर्णन)
तृतीय भाग- Of A Christian Commonwealth (धर्म (चर्च) और राज्य के मध्य संबंधो को स्पष्ट किया गया है|)
चतुर्थ भाग- Of the Kingdom of Darkness (कैथोलिक चर्च की आलोचना की गई है|)
ए डायलॉग ऑन दी सिविल वार्स (A Dialogue On The Civil Wars) 1668-
इसमें इंग्लैंड के गृहयुद्ध का वर्णन किया गया है|
डायलॉग ऑन द कॉमन कॉज-
इसमें हॉब्स ने यह प्रतिपादित किया कि राजा ही सर्वोच्च न्यायाधीश और एकमात्र विधि निर्माता है, जनता में उसे नियंत्रित करने की कोई क्षमता नहीं है|
बेहेमोथ (Behemoth) 1670 ई-
इसमें ब्रिटिश गृह युद्ध का इतिहास है|
86 वर्ष की आयु में हॉब्स ने होमर की पुस्तक ओडीसी और इलियड का अंग्रेजी में अनुवाद किया|
हॉब्स का लेवियाथन-
यह हॉब्स की सर्वश्रेष्ठ कृति है, जिसका प्रकाशन 1651 में हुआ था|
दूसरा शीर्षक- The Matter, Form and Power of a Commonwealth Ecclesiastical and Civil
हॉब्स ने लेवियाथन रचना के मुख्य पृष्ठ पर इसे सब मनुष्यों से मिलकर बनने वाले एक विराट पुरुष या महामानव के रूप में चित्रित किया है|
इसमें हॉब्स के राजनीतिक दर्शन का उल्लेख मिलता है|
इसमें व्यक्ति व राज्य तथा धर्म व राज्य के आपसी संबंधों का वर्णन है|
मुकुट धारण किए लेवियाथन के दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में धर्मदंड है| तलवार राजसत्ता का प्रतीक है तथा धर्मदंड, धर्मसत्ता का प्रतीक है| अर्थात लेवियाथन राजनीतिक व धार्मिक दोनों मामलों में सर्वोपरि है| इसलिए वेपर ने लिखा है कि “हॉब्स की कृति राजनीतिक विचारों के इतिहास में संपूर्ण संप्रभुता की प्रथम व्याख्या है|”
थॉमस हॉब्स धर्म व चर्च को राज्य के अधीन करता है| थॉमस हॉब्स के शब्दों में “चर्च कॉमनवेल्थ के अधीन अन्य संगठनों जैसा ही संगठन है|”
हॉब्स राज्य के लिए कॉमनवेल्थ शब्द का प्रयोग करता है|
थॉमस हॉब्स पॉप के संबंध में कहता है कि “पोप, बीमार रोमन साम्राज्य का भूत है, जो रोमन साम्राज्य की कब्र पर बैठा हुआ है|”
लेवियाथन का अर्थ ‘विशालकाय समुद्री रक्षक जीव या दैत्य या महामानव है|’
गूच “इस ग्रंथ की मौलिकता तथा शक्ति, इसमें विचारों का निखरापन तथा उसकी कल्पनायुक्त वाक्य शैली ने इसको राजनीतिक दर्शन के गौरव ग्रंथों में ला खड़ा किया है|”
माइकल ऑकशाट “लेवियाथन अंग्रेजी भाषा में लिखी गई राजनीतिक दर्शन की महानतम और संभवत एकमात्र अति उत्तम रचना है|” माइकल ऑकशाट ने हॉब्स को ‘बुजुर्वा बाजार समाज’ के इतिहास का लेखक बताया है तथा हॉब्स के प्राकृतिक व्यक्ति को उखड़ा हुआ मनुष्य बताया है|”
क्लेरेंडन ने लेवियाथन को ‘शैतान की आत्मा’ कहा है, इसलिए इन्होंने इसे जला दिया| क्लेरेंडन कहता है कि “मैंने कभी कोई ऐसी पुस्तक नहीं पढ़ी, जिसमें राजद्रोह, विश्वासघात और धर्मद्रोह इतनी अधिक मात्रा में हो|”
क्लेरेंडन- “हॉब्स का दर्शन, विद्रोह की प्रश्नोत्तरी है|”
“लेवियाथन, पोप की भाषणबाजी व लीला का षड्यंत्र है|”
“लेवियाथन, क्रामवेल की चापलूसी में लिखा गया ग्रंथ है|”
Note- 1683 इसवी में ‘लेवियाथन’ व ‘डी सीवे’ को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जलाया गया था|
वाहन- वाहन इसे एक प्रभावहीन और परिणामहीन ग्रंथ कहता है|
ब्रेमहील “यह ग्रंथ सबको आग लगा देने वाला है, इसने जितनी गड़बड़ी पैदा की है, उतनी वनस्पतियों के बगीचे में सूअर भी पैदा नहीं करते|”
व्हाइट हॉल “लेवियाथन में उच्छृंखलता के सिद्धांत थे|”
काउले “नास्तिकतावादी हॉब्स, मेल्सबरी का शैतान है|”
1657 ईस्वी में ब्रिटेन की पार्लियामेंट्री कमेटी ने लेवियाथन को ‘नास्तिकता की सबसे जहरीली रचना’ कहा है|
हॉब्स की अध्ययन पद्धतियां-
सेबाइन के अनुसार हॉब्स की अध्ययन पद्धति वैज्ञानिक भौतिकवादी, निगमनात्मक तथा मनोवैज्ञानिक है|
माइकल ऑकशाट के अनुसार हॉब्स की अध्ययन पद्धति दार्शनिक है|
प्रोफेसर स्टुअर्ट ने हॉब्स की अध्ययन पद्धति को विश्लेषणात्मक रचनात्मक पद्धति कहा है|
हॉब्स ने विशुद्ध भौतिकवादी दृष्टिकोण को अपनाया है, जो पूर्णत: तार्किक और बुद्धिवादी दृष्टिकोण था|
इस प्रकार हॉब्स ने वैज्ञानिक भौतिकवादी, निगमनात्मक, मनोवैज्ञानिक अध्ययन पद्धतियों का प्रयोग किया|
हॉब्स की अध्ययन पद्धति गैलीलियो व फ्रांसिस बेकन की रिजॉल्यूशन कम्पोजिटिव पद्धति तथा यूक्लिड की निगमनात्मक तर्क प्रणाली से प्रभावित है|
रिजॉल्यूशन कम्पोजिटिव- इस अध्ययन पद्धति में किसी सिद्धांत का निर्माण करने से पहले विभिन्न तत्वों को अलग-अलग किया जाता है फिर उन्हें एकत्रित करके सिद्धांत का निर्माण किया जाता है|
हॉब्स ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रचलित स्कॉलॉस्टिक पद्धति का जोरदार खंडन किया है, क्योंकि इस पद्धति द्वारा धार्मिक मान्यताओं को तार्किक रूप से प्रमाणित किया जाता था|
हॉब्स का वैज्ञानिक या यांत्रिक भौतिकवाद-
हॉब्स को वैज्ञानिक या यांत्रिक भौतिकवाद का जनक माना जाता है|
इसमें दो पद्धतियों का मिश्रण है-1 वैज्ञानिक 2 भौतिकवाद
वैज्ञानिक- वैज्ञानिक शब्द का अर्थ है- व्याख्या, कार्य-कारण संबंध, व्यवस्था और निष्कर्ष निकालने की प्रवृत्ति| हॉब्स इन्हीं आधारो पर अपने राजदर्शन का निर्माण करता है| जैसे- वह सर्वप्रथम मानव स्वभाव व चरित्र का अध्ययन करता है उसके बाद प्राकृतिक अवस्था और अंत में समझौते द्वारा राज्य का निर्माण करता है| इस प्रकार क्रमागत आधार पर राज्य का निर्माण करता है|
भौतिकवाद- इस शब्द का अर्थ है- धार्मिक अंधविश्वासों, नैतिकता और ईश्वर में विश्वास के बजाय वास्तविक वस्तु का अध्ययन करना| हॉब्स अपने दर्शन में व्यक्ति को वातावरण से अधिक महत्व देता है| तथा मनोवैज्ञानिक कारण के आधार पर समझौते द्वारा शक्तिशाली राजतंत्र की स्थापना करता है| हॉब्स व्यक्ति को अधिक महत्व देता है अतः वह भौतिकवादी है|
हॉब्स का महत्व दर्शन को एक वैज्ञानिक रूप प्रदान करने में है| उसने अपने राजदर्शन में निरंकुशतावाद व धर्मनिरपेक्षतावाद के लिए वैज्ञानिक आधार तैयार किया|
हॉब्स भौतिक विज्ञान में प्रयुक्त होने वाली पद्धतियों का प्रयोग राजनीतिक दर्शन व चिंतन में करके राजनीति दर्शन को वैज्ञानिक भौतिकवाद का रूप प्रदान करते हैं|
वैज्ञानिक मानववाद का हॉब्स पर प्रभाव पड़ा| हॉब्स के अनुसार भौतिक नियमों की तरह मानवीय व्यवहार के बारे में भी नियम बनाए जा सकते हैं|
हॉब्स पर डेकार्टे का बहुत प्रभाव पड़ा, जो वैज्ञानिक पद्धति का प्रणेता माना जाता है| हॉब्स का मत था कि भौतिक विज्ञानों की भांति सामाजिक विज्ञानों की भी एक निश्चित पद्धति होनी चाहिए|
हॉब्स ने संपूर्ण दर्शन को भौतिकवाद कहा है| गैलीलियो की तरह हॉब्स ने अपने दर्शन का केंद्र बिंदु ‘गति’ को बनाया| हॉब्स के अनुसार संसार की सभी घटनाएं गतियों के द्वारा ही होती हैं, अतः प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझना है तो इन मूल गतियो को समझना पड़ेगा|
हॉब्स के दर्शन का उद्देश्य मनोविज्ञान तथा राजनीति को विशुद्ध प्राकृतिक विज्ञान की तरह बनाना था| भौतिक शास्त्र के आधार पर हॉब्स ने मनोविज्ञान की रचना की ओर मनोविज्ञान के आधार पर राजनीति शास्त्र की रचना की|
इसलिए विलियम जेम्स ने हॉब्स को ‘समुदायवादी मनोविज्ञान’ का प्रणेता कहा है|
लियो स्ट्रास ने हॉब्स को वैज्ञानिक राजनीति का पिता कहा है|
हॉब्स की संपूर्ण प्रणाली (संसार के तीनों भाग- प्रकृति, पदार्थ और मनुष्य तथा राज्य) की व्याख्या भौतिक सिद्धांतों के आधार पर हुई है|
हॉब्स के अनुसार “संसार में पदार्थ के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं है|” हॉब्स के लिए अध्यात्मिक सत्ता एक काल्पनिक वस्तुमात्र है|
सेबाइन “थॉमस हॉब्स पूर्णत: भौतिकवादी था और उसके लिए आध्यात्मिक सत्ता केवल काल्पनिक वस्तु मात्र थी|”
मानव स्वभाव का विश्लेषण भी हॉब्स भौतिकवाद के आधार पर करता है|
इस प्रकार हॉब्स के दर्शन में वैज्ञानिक भौतिकवाद का केंद्रीय स्थान है| हॉब्स को उदारवाद का दार्शनिक और बेंथम तथा मिल का पूर्वज कहा जाता है|
हॉब्स की वैज्ञानिक भौतिकवाद पद्धति की आलोचना करते हुए लियो स्ट्रास ने लिखा है कि “गैलीलियो का अनुसरण कर हॉब्स ने भौतिक विज्ञान की पद्धति को राजनीति विज्ञान में लागू तो करना चाहा, परंतु ऐसा करने में वह सफल ना हो सका, क्योंकि भौतिक शास्त्र का विषय प्राकृतिक पदार्थ है, जबकि राजनीति शास्त्र का विषय कृत्रिम पदार्थ है|”
हॉब्स के चिंतन पर प्रभाव-
हॉब्स के राजनीतिक दर्शन पर उसके युग की परिस्थितियों के निम्न प्रभाव पड़े है-
भौतिक एवं समाज विज्ञानों का प्रभाव-
गैलिलियो के गति सिद्धांत तथा हार्वे की हृदय संबंधी धारणा का प्रभाव हॉब्स के राजनीतिक दर्शन में दिखता है|
ग्रेशियश की प्राकृतिक विधि की धारणा और रिचर्ड हुकर की प्राकृतिक अवस्था व समझौते द्वारा राज्य की स्थापना के विचार का प्रभाव हॉब्स के चिंतन पर दिखता है|
हॉब्स को ‘राजनीति का गैलीलियो’ कहा जाता है|
ज्यामिति व यांत्रिकी का प्रभाव-
सेबाइन के अनुसार “हॉब्स के दर्शन का मूल आधार ज्यामिति तथा यांत्रिकी है|”
यूक्लिड की ज्यामिति के अध्ययन से थॉमस हॉब्स ने अनुभव किया कि ज्यामितीय तर्क शैली के आधार पर किसी भी विषय की व्याख्या के लिए उपयुक्त सिद्धांत का पता लगाया जा सकता है| जैसे मानवीय तर्क बुद्धि का प्रयोग करके ‘कॉमनवेल्थ’ या ‘राज्य’ नाम के जिस कृत्रिम पिंड का निर्माण किया जाता है, उसके संदर्भ में निश्चित सिद्धांत स्थापित किए जा सकते हैं|
हॉब्स ने ‘नागरिक दर्शन’ की तुलना ज्यामिति से की है|
हॉब्स ने अपने आप को ‘राजनीति विज्ञान’ का प्रवर्तक घोषित किया है|
इंग्लैंड के गृह युद्ध का प्रभाव-
हॉब्स इंग्लैंड के गृह युद्ध से प्रभावित था| गृह युद्ध से प्रभावित होकर उसने पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न राजतंत्र का समर्थन किया| इसी से प्रभावित होकर भय और स्वार्थ को मानव स्वभाव का मूल तत्व माना|
यात्राएं और संपर्क-
थॉमस हॉब्स को यूरोपीय यात्राओं तथा विभिन्न संपर्को ने बहुत अधिक प्रभावित किया|
सर्वप्रथम 1610 में अपने शिष्य केवेंडिश के साथ फ्रांस और इटली की यात्रा की|
1628 में क्लिंटन के पुत्र के साथ यूरोप महाद्वीप की पुन: यात्रा की|
1634 से 1637 तक तीसरी बार यूरोप की यात्रा की तथा इटली में गैलीलियो से भेंट और पेरिस में फ्रेंच दार्शनिक देकार्ते के मित्रों से संपर्क हुआ|
इन यात्राओं से हॉब्स को अनुभूति हुई की प्रकृति में गति सर्वव्यापक है और समस्त भौतिक जगत एवं मानसिक प्रक्रिया गति मात्र है, फलस्वरुप हॉब्स विश्व को यंत्रवत समझने लगा, जिसमें समस्त घटनाएं परमाणुओं की गतिशीलता के ही रूप है|
हॉब्स के मानव संबंधी विचार-
व्यक्ति हॉब्स के दर्शन का केंद्र बिंदु है| उसके राजदर्शन की शुरुआत व्यक्ति से होती है| अपने ग्रंथ लेवियाथन के प्रथम 11 अध्यायो में हॉब्स ने मनुष्य के सभी पक्षों का विस्तृत वर्णन किया है|
हॉब्स ने मनुष्य का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है|
हॉब्स ने मानव स्वभाव के संबंध में उग्र व्यक्तिवाद व मनोवैज्ञानिक अहमवाद की अवधारणा दी है|
हॉब्स मनुष्य को असामाजिक, स्वार्थी, अहमवादी प्राणी मानता है तथा मनुष्य की समस्त भावनाओं का केंद्र उसका ‘अहम’ बताता है|
मनुष्य के समस्त कार्यकलाप स्वार्थ-भावना से प्रेरित तथा संचालित होते है|
मनुष्य शक्ति की इच्छा रखता है| हॉब्स के शब्दों में “शक्ति की इच्छा ऐसी अदम्य इच्छा है, जिसका अंत व्यक्ति की मृत्यु के साथ होता है|”
स्वार्थ भावना की वजह से मनुष्य में 2 मूल प्रवृतियां पाई जाती हैं-
आकर्षण
विकर्षण
आकर्षण को ‘इच्छा की भूख’( Appetite Of Disease) तथा विकर्षण को ‘घृणा’ कहा जाता है| मनुष्य को जो वस्तुएं आकर्षित करती हैं, उन्हें अच्छी तथा जो वस्तुएं विकर्षित करती हैं उन्हें बुरी कहता है| अर्थात अच्छाई-बुराई वस्तु में न होकर मनुष्य की भावनाओं में होती है|
मनुष्य सामाजिक व लौकिक व्यवहार इस आधार पर करता है, कि उसका जीवन व संपत्ति सुरक्षित रहे| मनुष्य अपने जीवन की सुरक्षा व इच्छा पूर्ति के लिए दूसरे मनुष्य से लड़ता-झगड़ता है| यहां तक उसको मार भी सकता है|
मानव जीवन में संघर्ष के तीन कारण हॉब्स बताता है-
प्रतिस्पर्धा- एक ही लाभ प्राप्त करने के लिए जब दो व्यक्तियों में प्रतिस्पर्धा होती है तो दोनों में संघर्ष होता है| हॉब्स के अनुसार प्रकृति ने सभी मनुष्यो को समान बनाया है, एक व्यक्ति शारीरिक रूप से शक्तिशाली होता है तो दूसरा उसको मानसिक बुद्धि के द्वारा छल-कपट या गुटबंधी से हरा सकता है अतः मनुष्यों के बीच प्रतिस्पर्धा विद्यमान रहती है|
भय/ अविश्वास- प्रतिस्पर्धा के कारण मनुष्य को हमेशा अपने जीवन की समाप्ति का भय रहता है तथा अपनी सुरक्षा के लिए संघर्षरत रहता है| मिनोग “हॉब्स एक ऐसे दार्शनिक थे, जिनका मृत्यु की ओर अदार्शनिक रुख था, मृत्यु के प्रति भय को हॉब्स ने मानव प्रकृति का मूल स्वभाव बताया है|”
वैभव या कीर्ति- अहंकार की वजह से मनुष्य अपना वैभव/ यश बढ़ाना चाहता है, इसके लिए संघर्षरत रहता है|
इस संघर्षपूर्ण वातावरण में मनुष्य ‘आत्मरक्षा के सिद्धांत’ पर कार्य करता है अर्थात प्रत्येक मनुष्य, दूसरे मनुष्य से सुरक्षा चाहता है| आत्म सुरक्षा के लिए व्यक्ति शक्ति को प्राप्त करना चाहता है, यह शक्ति शारीरिक, धन, पद, मान-सम्मान की शक्ति हो सकती है|
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि थॉमस हॉब्स के अनुसार मनुष्य स्वार्थी, अहंकारी, डरपोक, झगड़ालू, एकाकी, पाशविक व असामाजिक प्राणी है, जो आत्मरक्षा के आधार पर शक्ति प्राप्ति की लालसा रखता है|
हॉब्स मनुष्य के ऐसे स्वभाव का कारण गतियो को मानता है| मानव शरीर में दो प्रकार की गतियां होती हैं-
जैव गति- इसमें ह्रदय गति, पाचन क्रिया, श्वास क्रिया, मल मूत्र त्याग आदि शामिल है| यह गति महत्वपूर्ण नहीं है|
मनोवैज्ञानिक गति- यह महत्वपूर्ण है, जो मानव स्वभाव का कारण है| यह गति बाहरी उद्दीपको से पैदा होती है| जैसे- कीर्ति, वैभव/यश, शक्ति, सुरक्षा आदि को प्राप्त करने के लिए मनुष्य आपस में झगड़ते हैं|
Note- हॉब्स ने सामान्यतः मानव स्वभाव के नकारात्मक लक्षण पर अधिक बल दिया है, लेकिन इसके साथ मनुष्य के सकारात्मक लक्षण की भी कल्पना की है| हॉब्स के शब्दों में “मनुष्य में कुछ एसी इच्छाएं होती हैं, जो युद्ध के बजाए शांति और मैत्री के लिए प्रेरित करती हैं|” मनुष्य में विवेक पाया जाता है विवेक की वजह से वह राज्य की स्थापना करता है|
ब्रमहिल व क्लेरेंडन ने वर्णित इस मानव छवि की आलोचना करते हुए कहा कि हॉब्स व्यक्ति को पशुओं से भी गया- गुजरा अहम् वादी समझते हैं|
प्राकृतिक अवस्था के विषय में हॉब्स के विचार-
राज्य संस्था के अस्तित्व से पूर्व की अवस्था को हॉब्स ने प्राकृतिक अवस्था या पूर्व सामाजिक दशा कहा है|
Note-मैकफरसन के अनुसार हॉब्स ने प्राकृतिक अवस्था शब्द का प्रयोग नहीं किया है, बल्कि इससे मिलता जुलता शब्द ‘मानव जाति की प्राकृतिक स्थिति’ का प्रयोग किया है|
इस अवस्था में मानव जीवन नारकीय, हिंसा प्रधान, असहनीय था|
इस अवस्था में सार्वजनिक शक्ति या सत्ता का अभाव था, जो उनको नियंत्रित व भयभीत कर सके|
यह ऐसे युद्ध की अवस्था थी, जो प्रत्येक मनुष्य का प्रत्येक मनुष्य के साथ युद्ध था|
इस अवस्था में उद्योग, संस्कृति, नो-चालन, भवन निर्माण, ज्ञान, यातायात के साधनों का अभाव था तथा मनुष्य का जीवन एकाकी, दीन, अपवित्र, पाशविक, क्षणिक था|
यह अराजक अवस्था थी, जिसमें जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत प्रभावशील था|
इस अवस्था में नैतिकता का सर्वथा अभाव था, उचित- अनुचित, न्याय-अन्याय, सत्य-असत्य का ज्ञान नहीं था|
नियम- कानूनों के अभाव में शक्ति, धोखा, बल प्रयोग, प्रतिज्ञा भंग का बोलबाला था|
इस अवस्था में मनुष्य को हिंसात्मक मृत्यु का भय सदैव रहता था|
इस अवस्था में व्यक्तिक संपत्ति व नैतिकता का अभाव था|
हॉब्स “हो सकता है ऐसी स्थिति सारे विश्व में न हो, लेकिन अमेरिका में जरूर है, जहां बर्बर लोग बड़े क्रूर तरीके से रहते हैं|” अर्थात प्राकृतिक अवस्था एक काल्पनिक स्थिति है|
Note- प्राकृतिक अवस्था समझौते से पूर्व की अवस्था है| प्राकृतिक अवस्था समाज पूर्व व राज्य पूर्व की अवस्था है|
जॉन रॉल्स “थॉमस हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था में जो संघर्ष है, वह ‘कैदी की दुविधा’ (Prisoner’s Dilemma) के समान है|”
प्राकृतिक अधिकार संबंधी हॉब्स के विचार-
हॉब्स ने अपने ग्रंथ लेवियाथन के 14वे अध्याय में इसका प्रतिपादन किया है|
प्राकृतिक अवस्था में प्राप्त अधिकार को हॉब्स ने प्राकृतिक अधिकार कहा है|
प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य को एक प्राकृतिक अधिकार प्राप्त था वह था- जीवन रक्षा या आत्मरक्षा की स्वतंत्रता|
मनुष्य को अपने जीवन की रक्षा के लिए किसी व्यक्ति को मारने व लूटने की स्वतंत्रता थी|
टी एच हेक्सले ने इसे शेर का अधिकार (Tiger’s Right) कहा है|
डेनिंग “हॉब्स का मत है कि प्राकृतिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त उस स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो उसे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सभी संभव कार्य करने का अधिकार देती है|”
Note- आत्मरक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार हॉब्स ने ह्यूगो ग्रोशियस से लिया है| ह्यूगो ग्रोशियस ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Law of War and Peace’ (1625) में कहा है कि सभी व्यक्तियों को सुरक्षा का अधिकार है
Note- हॉब्स के प्राकृतिक अधिकार संघर्ष, हिंसा, अव्यवस्था, अराजकता को जन्म देते हैं|
प्राकृतिक नियम संबंधी हॉब्स के विचार-
प्राकृतिक अवस्था में सभी का जीवन असुरक्षित हो जाता है, अतः सुरक्षा के लिए तर्कबुद्धि और विवेक से मनुष्य कुछ नियम बना लेते हैं, जिनका पालन करके मनुष्य शांति व सुखपूर्वक प्राकृतिक अवस्था में भी रह सकता है| हॉब्स ने इन प्राकृतिक नियमों को ‘शांति की धाराओं’ (Article of Peace) का नाम दिया है| हॉब्स ने कुल 19 प्राकृतिक नियम बताए हैं|
इनमें से तीन नियम प्रमुख हैं, जो निम्न है-
प्रत्येक मनुष्य का उद्देश्य शांति स्थापित करना है, अतः मनुष्य को तब तक शांति के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए जब तक युद्ध सर्वथा अनिवार्य न हो जाए|
सभी मनुष्य मिलजुल कर अपने प्राकृतिक अधिकार का त्याग करने को तैयार रहें|
मनुष्य अपने आपसी समझौतों का पालन करें तथा अपना उपकार करने वालों का उपकार करें|
ग्रोशियस के समान हॉब्स का कहना था कि प्राकृतिक नियम उचित नियम होते हैं और वे ईश्वर की भाषा में पेश किए जाते हैं|
हॉब्स के अनुसार “प्राकृतिक कानून मनुष्य की विवेक बुद्धि या तर्क बुद्धि से खोजे गए वे नियम है, जिसके द्वारा मनुष्य के वे कार्य निषिद्ध हैं जो उनके जीवन के लिए विनाशप्रद है|”
प्राकृतिक नियमों का आधार स्वार्थ है|
शांति की 19 धाराओं को थॉमस हॉब्स ने प्राकृतिक कानून की संज्ञा दी है|
Note- प्राकृतिक नियमों को कानून केवल अलंकारिक भाषा में ही कहा जा सकता है, लेकिन यह कानून नहीं है क्योंकि कानून तो संप्रभु की आज्ञा होते हैं तथा उल्लंघन पर दंड दिया जाता है|
हॉब्स के राज्य संबंधी विचार-
हॉब्स राज्य की उत्पत्ति सामाजिक समझौते के परिणामस्वरुप बताता है, अतः राज्य कृत्रिम संस्था है|
राज्य की स्थापना का वर्णन हॉब्स लेवियाथन के 18वे अध्याय में करता है|
समझौते का कारण-
समझौते का कारण प्राकृतिक अवस्था का भयपूर्ण माहौल था, जिसमें हमेशा मृत्यु का भय था| ऐसी अवस्था में मनुष्य अपने विवेक व तर्क बुद्धि से एक सामाजिक समझौता करता है|
यह समझौता व्यक्तियों के बीच में आपस में हुआ, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति ने प्रत्येक व्यक्ति से यह कहा कि “मैं इस व्यक्ति को या व्यक्तियों के समूह को अपना शासन स्वयं कर सकने का अधिकार और शक्ति इस शर्त पर समर्पित करता हूं कि तुम भी अपने इस अधिकार को इसी तरह इस व्यक्ति या व्यक्ति समूह को समर्पित कर दो|”
इबेन्सटीन ने कहा है कि “हॉब्स का सामाजिक समझौता प्रजाजनों के बीच हुआ है, संप्रभु समझौते का भागीदार नहीं है, वह तो उसकी उत्पत्ति है|
समझौते का परिणाम-
समझौते के परिणाम स्वरूप संपूर्ण मानव समुदाय एक कृत्रिम व्यक्ति में संयुक्त हो जाता है, जिसे हॉब्स कॉमनवेल्थ (राज्य) कहता है| लेटिन भाषा में इसको सिविटास कहते हैं|
समझौते के द्वारा व्यक्तियों ने सभी अधिकार एक व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा को सौंप दिए, उस व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा को हॉब्स लेवियाथन (महान मानव देव) कहता है| लेवियाथन एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, निरंकुश है तथा उसके पास असीमित अधिकार है|
हॉब्स के समझौते सिद्धांत की विशेषताएं–
समझौता एक साथ सामाजिक व राजनीतिक दोनों है| अर्थात समझौते से समाज व राज्य दोनों का निर्माण होता है|
समझौता केवल एक पक्षीय था, जो केवल व्यक्तियों के मध्य आपस में हुआ था| संप्रभु और व्यक्तियों के मध्य में नहीं हुआ था|
समझौते में संप्रभु के शामिल न होने पर उसको असीमित शक्ति व अधिकार प्राप्त हो जाते हैं| वह निरंकुश व बंधन रहित होता है| संप्रभु का केवल एक कर्तव्य होता है, वह है- नागरिकों के जीवन की रक्षा करना, इसके अलावा उसका कोई कर्तव्य नहीं है|
समझौते में शामिल न होने वाले व्यक्ति पर भी यह लागू होता है|
समझौते के बाद व्यक्ति के पास कोई भी प्राकृतिक अधिकार नहीं रहता है| केवल एक प्राकृतिक अधिकार जीवन की सुरक्षा का अधिकार शेष रहता है|
समझौते के बाद उससे कोई अलग नहीं हो सकता है अर्थात समझौता स्थायी है| समझौते से अलग होने का अर्थ है- वापस प्राकृतिक अवस्था में जाना|
समझौते से अविभाज्य संप्रभुता की स्थापना होती है, अर्थात संप्रभु एक है, चाहे वह एक व्यक्ति है या व्यक्तियों की सभा|
विधियों का स्रोत प्रभुसत्ता है, उसके आदेश ही विधि या नियम है|
न्याय करने का, युद्ध व संधि करने का, अधिकारियों को चुनने का अधिकार प्रभुसत्ता के पास है|
संप्रभु समझौते का कोई पक्ष न होकर स्वयं उसका परिणाम है|
समझौते के बाद लोगों की इच्छाएं, संप्रभु की इच्छा होती है|
हॉब्स का सामाजिक समझौता दार्शनिक सत्य है अर्थात यह सैद्धांतिक व तार्किक तो है, परंतु ऐतिहासिक व वास्तविक नहीं है| इतिहास के किसी भी भाग में ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था, ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिलता है|
हॉब्स के सामाजिक समझौते के विचार में सहमति का सिद्धांत निहित है, क्योंकि मनुष्यों ने राज्य को आपसी समझौते से बनाया है| हॉब्स के शब्दों में “राज्य शक्ति सहमति पर आधारित है|” हैकर “हॉब्स के सामाजिक समझौते के विचार में सहमति का सिद्धांत निहित है|”
Note- थॉमस हॉब्स निरंकुश संप्रभुता की स्थापना के बाद भी कुछ परिस्थितियों में लोगों को राजा की आज्ञा की अवहेलना करने का अधिकार देता है, यदि राजा व्यक्ति को अपने-आपको मारने, घायल करने, आक्रमणकर्ता का विरोध न करने, वायु, औषधि, जीवन दाता किसी वस्तु का प्रयोग न करने की आज्ञा देता है, तो प्रजा ऐसी आज्ञा की अवहेलना कर सकती है, क्योंकि लोगों ने राज्य की स्थापना ही ‘जीवन की सुरक्षा’ के लिए की थी| अर्थात थॉमस हॉब्स जीवन रक्षा के प्राकृतिक अधिकार को राजा के विरुद्ध सुरक्षित रखता है| थॉमस हॉब्स कहता है कि “जब मेरे ऊपर बल का प्रयोग हो तब मैं अपनी रक्षा के लिए बल प्रयोग न करूं ऐसा प्रतिज्ञापत्र सदैव निरर्थक होगा|”
थॉमस हॉब्स के अनुसार “राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तिगत हितों का योग मात्र है, इसके अतिरिक्त उसका कोई सामूहिक लक्ष्य नहीं है|” अर्थात राज्य एक साधन है|
थॉमस हॉब्स “संप्रभु के प्रति नागरिकों की भक्ति तब तक है और केवल उस सीमा तक है जब तक कि संप्रभु उन्हें शक्ति द्वारा सुरक्षा प्रदान करने में समर्थ है|”
हॉब्स के प्रभुसत्ता (संप्रभुता) संबंधी विचार-
डी सीवे रचना में हॉब्स डोमिनियन या सार्वभौम सत्ता की बात करता है| सार्वभौम सत्ता होने के नाते लेवियाथन कानून का एकमात्र स्रोत और व्याख्याकार है|
हॉब्स की प्रभुसत्ता का आधार- ‘सामाजिक समझौता/ संविदा’ है|
हॉब्स की प्रभुसत्ता पूर्ण, अविभाज्य, असीमित, निरकुंश, निरपेक्ष, स्थायी, अदेय है| इस संबंध में सेबाइन का कथन है कि “थॉमस हॉब्स ने संप्रभुता को उन अयोग्यताओं से पूर्णतया मुक्त कर दिया, जिन्हें बोदाँ ने आवश्यक रूप से बनाए रखा था|”
लॉस्की “हॉब्स अद्वैतवाद का सम्राट है|”
प्रभुसत्ता का आदेश ही कानून है| प्रभुसत्ता न्यायसम्मत व कानून सम्मत है| इस प्रकार थॉमस हॉब्स वैधानिक संप्रभुता का समर्थक है|
प्रभुसत्ता व्यक्ति के कार्यों व विचारों दोनों में हस्तक्षेप कर सकती है|
संप्रभु को सर्वसाधारण पर असीमित अधिकार प्राप्त हैं|
संप्रभु कानून का निर्माता व व्याख्याकार दोनों है|
संप्रभु संपत्ति का सृजनहार है, अतः संप्रभुता को संपत्ति के नियमन का भी अधिकार है|
सब अधिकारियों की सत्ता का मूल स्रोत भी संप्रभु है|
समस्त विधायी, कार्यपालिका, न्यायपालिका शक्ति संप्रभु में निहित है|
संप्रभु के अधिकार अपरिवर्तनीय, अहस्तनांतरणीय और अविभाज्य हैं |
थॉमस हॉब्स संप्रभुता के दो प्रकार बताता है-
स्थापित संप्रभुता- सभी लोग अपनी इच्छा से अपने समस्त अधिकार किसी को सौंपते हैं, तो स्थापित संप्रभुता होती है| थॉमस हॉब्स का कॉमनवेल्थ स्थापित संप्रभुता पर आधारित है|
अर्जित संप्रभुता- जब लोग मृत्यु या बंधन के भय से किसी को अधिकार देते हैं, तो वह अर्जित संप्रभुता होती है|
अपवाद- आत्मरक्षा के उद्देश्य से प्रजा राजाज्ञा की अवहेलना कर सकती है|
गैटल “हॉब्स के अतिरिक्त अन्य कोई ऐसा लेखक नहीं हुआ है, जिसने प्रभुसत्ता के बारे में इतना अतिवादी दृष्टिकोण अपनाया हो”
क्लेरेंडन “इस प्रकार की युक्तियों से राजतंत्र का समर्थन करने वाला हॉब्स यदि उत्पन्न ही ना होता तो अच्छा था|”
वाहन “हॉब्स ही ऐसा दार्शनिक है, जिसने सर्वप्रथम इस बात का अनुभव किया कि राज्य के एक पूर्ण-सिद्धांत में मूल विचार संप्रभुता का है, उसने ही संप्रभुता के स्थान, कार्यों और सीमाओं को निश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया|”
शासन प्रणालियों का वर्गीकरण-
प्रभुसत्ता के निवास स्थान के आधार पर हॉब्स ने शासन प्रणालियों का वर्गीकरण किया है-
राजतंत्र- जहां प्रभुसत्ता एक व्यक्ति में निहित हो|
कुलीनतंत्र- जहां प्रभुसत्ता कुछ लोगों में निहित हो|
लोकतंत्र- जहां प्रभुसत्ता सब लोगों में निहित हो|
हॉब्स के अनुसार मिश्रित या सीमित शासन प्रणाली नहीं हो सकती, क्योंकि संप्रभुता अविभाज्य है|
हॉब्स राजतंत्र को श्रेष्ठ मानता है| कारण-
राजा और राज्य का व्यक्तित्व तथा सार्वजनिक हित एक होता है|
राजतंत्र में शासन का स्थायित्व अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है|
नागरिक कानून पर हॉब्स के विचार-
हॉब्स के अनुसार कानून की परिभाषा “वास्तविक कानून उस व्यक्ति का आदेश है, जिसे दूसरों को आदेश देने का अधिकार प्राप्त है|”
थॉमस हॉब्स के अनुसार संप्रभुता का आदेश ही नागरिक विधियां हैं| संप्रभु ही विधि का एकमात्र स्रोत और व्याख्याकार है|
हॉब्स ने सकारात्मक कानून की नींव रखी, अर्थात कानून राज्य शक्ति का आदेश है| इसे बेंथम व ऑस्टिन ने आगे बढ़ाया|
संप्रभु कानून का निर्माता तो है, लेकिन स्वयं के संबंध में उन कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है|
हॉब्स के अनुसार कानून का सार उसमें निहित शक्ति है| शक्ति के बिना कानून अर्थहीन विडंबना मात्र रह जाता है|
थॉमस हॉब्स “तलवार के बिना समझौते शक्तिहीन कोरे शब्द हैं|”
संप्रभु को अधिक विधियों का निर्माण नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्हें लागू करना कठिन हो जाएगा साथ ही जनता के ह्रदय में विधियों के प्रति सम्मान में कमी आ जाती है|
हॉब्स विधियों को दो भागों में बांटता है-
वितरणात्मक या निषेधात्मक- इसमें नागरिकों को वैध-अवैध कार्यो के बारे में बतलाया जाता है|
अज्ञात्मक या दंडात्मक विधि- इसमें राज्य के मंत्रियों को जनता के प्रति, अपराधानुसार क्या दंड विधान है, के बारे में बताया जाता है|
हॉब्स ने प्राकृतिक विधि व नागरिक विधि में अंतर बताया है-
प्राकृतिक विधि- यह विवेक का आदेश है, जिसके पीछे शक्ति नहीं होती है|
नागरिक विधि- यह प्रभुसत्ता का आदेश है, तथा बलपूर्वक लागू किया जाता है|
राज्य और चर्च संबंधी हॉब्स के विचार-
थॉमस हॉब्स मध्ययुगीन के पांडित्यवाद या स्केलोस्टिसिज्म का विरोधी था|
थॉमस हॉब्स धर्म की उत्पत्ति के संबंध में कहता है कि “धर्म की उत्पत्ति अंतरात्मा या किसी अन्य कारण से नहीं हुई है, बल्कि भय और स्वार्थ के कारण से हुई है|”
हॉब्स राज्य को सर्वोच्च संस्था मानता है, अन्य सभी संस्थाओं को राज्य का एक विभाग मानता है|
हुड के शब्दों में “हॉब्स ने ऐसे राज्य का निर्माण किया है जो केवल सर्वोच्च सामाजिक शक्ति के रूप में नहीं, वह सर्वोच्च आर्थिक शक्ति के रूप में भी निरपेक्ष था|”
हॉब्स चर्च को भी राज्य के अधीन करता है, जिस पर संप्रभु का पूर्ण अधिकार है|
हॉब्स ने कहा है कि “पोपशाही रोमन साम्राज्य का प्रेत है और उसकी कब्र पर बैठा है|”
हॉब्स ने रोमन कैथोलिक चर्च को ‘अंधकार का राज्य’ (The Kingdom Of Darkness) कहा है|
थॉमस हॉब्स का मानना था कि चर्च या किसी धार्मिक संस्था को छूट दे दी जाए तो, वह राज्य में अव्यवस्था व अराजकता फैला सकती है, शासक को पदच्युत कर सकती है|
चर्च और राज्य के संबंध में हॉब्स के निम्न विचार हैं-
धर्म के संबंध में सर्वोच्च अधिकारी संप्रभु है|
आध्यात्मिक शासन जैसी कोई वस्तु नहीं है|
चर्च का दर्जा अन्य निगमों की भांति है, उसके सारे अधिकार राज्याधीन हैं|
धर्माधिकारी उपदेशक माने जा सकते हैं, शासक नहीं|
चर्च जैसे धार्मिक समुदाय को राज्य के साथ सत्ता के लिए संघर्ष कभी नहीं करना चाहिए|
धार्मिक बहिष्कार या चर्च की ओर से दिया जाने वाला दंड भी तभी दिया जा सकता है जब संप्रभु चर्च को इस हेतु अधिकृत करें|
हॉब्स के व्यक्तिवाद संबंधी विचार-
हॉब्स संप्रभुता का कट्टर समर्थक (निरंकुशतावादी) होते हुए भी, कई कारणों से व्यक्तिवादी था|
व्यक्तिवाद की मूल धारणा यह है कि जितने भी संघ, समुदाय, अन्य संस्थाएं व राज्य हैं, वह सब व्यक्तियों द्वारा निर्मित हैं, व्यक्ति ही उनकी इकाई हैं और ये सब अपने में सम्मिलित व्यक्तियों से अधिक या भिन्न कुछ भी नहीं है|
निम्न कारण है, जो हॉब्स को व्यक्तिवादी बनाते हैं-
हॉब्स प्रथम मनोवैज्ञानिक व्यक्तिवादी है, जिसके राजदर्शन की शुरुआत व्यक्ति से होती है तथा व्यक्ति उसके चिंतन का केंद्र है|
वह राज्य को कृत्रिम मानता है|
वह राज्य को साधन मानता है वह व्यक्ति सुरक्षा को साध्य मानता है|
वह व्यक्ति के जीवन के अधिकार को संप्रभुता से ऊपर मानता है|
इस तरह हॉब्स का दर्शन उपयोगितावाद से भी जुड़ा है|
हॉब्स के व्यक्तिवाद पर सेबाइन की टिप्पणी “हॉब्स के चिंतन में व्यक्तिवाद का तत्व पूर्ण रूप से आधुनिक है| इस दृष्टि से हॉब्स ने आगामी युग का संकेत अच्छी तरह से समझ लिया था|”
सेबाइन “थॉमस हॉब्स के संप्रभु की सर्वोच्च शक्ति उसके व्यक्तिवाद की आवश्यक पूरक है|”
सेबाइन “थॉमस हॉब्स ने एक व्यक्तिवादी के रूप में अपने विचारों का प्रारंभ में प्रतिपादन किया, परंतु उसके विचारों का अंत निरंकुशतावाद में होता है|”
डनिंग “हॉब्स के सिद्धांतों में राज्य शक्ति का उत्कर्ष होते हुए भी मूल आधार पूर्णतः व्यक्तिवादी है|”
हॉब्स के चिंतन में व्यक्तिवाद के साथ उपयोगितावाद भी स्पष्ट झलकता है| सेबाइन के शब्दों में “हॉब्स एक साथ पूर्ण उपयोगितावादी तथा पूर्ण व्यक्तिवादी था|”
ऑकशॉट “हॉब्स एक उदारवादी या लोकतंत्रवादी नहीं, बल्कि व्यक्तिवादी है|”
वेपर “लेवियाथन मात्र प्रभुसत्ता के सिद्धांत का शक्तिशाली प्रतिवाद ही नहीं, बल्कि वह उसके व्यक्तिवाद का एक शक्तिशाली व्यक्तव्य भी है|”
मैक्सी “निरंकुशतावादी होते हुए भी हॉब्स आदि से अंत तक व्यक्तिवादी है|”
मैक्सी “थॉमस हॉब्स का लेवियाथन केवल संप्रभुता के सिद्धांत का और राज्य को एक साधन के रूप में मानने का ही ग्रंथ नहीं है, वह व्यक्तिवाद का भी प्रबल समर्थक है|”
वोलिन “हॉब्स की रचना लेवियाथन के मुख्य पृष्ठ पर उनके सिद्धांत का सार मिलता है, जिसमें व्यक्तिवाद व शक्तिशाली संप्रभु शासक महत्वपूर्ण तत्व है|”
स्वत्वमूलक व्यक्तिवाद-
C B मैकफर्सन ने अपनी कृति The Political Theory of Possessive Individualism: Hobbes to locke 1962 में थॉमस हॉब्स की विचारधारा को स्वत्व बोध या स्वत्वात्मक व्यक्तिवाद (Possessive Individualism) कहा है|
C B मैकफर्सन “हॉब्स में स्वत्वमूलक व्यक्तिवाद (Possessive Individualism), सजातीय गलाकाट प्रतिस्पर्धा, आत्म प्रशंसा के भाव थे| उसके सिद्धांत आरंभिक पूंजीवादी-बाजारवादी राजनीतिक विचारधारा का समर्थन करते हैं|”
राजनीतिक जिम्मेदारियां-
लियो स्ट्रास के अनुसार थॉमस हॉब्स शासकों की जिम्मेदारी समझते थे, कि प्रजा उनकी आज्ञा का पालन करें|
शासक की आज्ञा पालन के थॉमस हॉब्स तीन कारण बताता है-
यदि व्यक्ति आज्ञा का पालन नहीं करता है, तो उससे दंड दिया जाना चाहिए|
अपने समझौते के पालन के नैतिक कारण है और लेवियाथन इस बात की गारंटी करता है कि सभी पक्ष समझौते का पालन करेंगे|
शासक नागरिकों द्वारा अनुमति प्राप्त उनकी ओर से शासन करने वाला प्रतिनिधि है (सहमति से शासन करने वाला प्रतिनिधि)|
स्त्रियों संबंधी हॉब्स के विचार-
हॉब्स मानवीय समानता के पक्षधर थे|
हॉब्स स्त्रियों को भी पुरुषों के समान क्षमतावान मानते थे, इसलिए उन्हें संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है|
प्राकृतिक अवस्था में स्त्री, बच्चे के संदर्भ में माता और स्वामिनी दोनों ही बनती है|
बंदी बनाए जाने की अवस्था में माता बच्चे पर अपना अधिकार खो बैठती है|
थॉमस हॉब्स के मत में के स्त्री की गौण स्थिति मानव द्वारा निर्मित है|
थॉमस हॉब्स के मत में परिवार राज्य के समान ही कृत्रिम संस्था है|
लेकिन थॉमस हॉब्स ने पिता को परिवार में एकमात्र अधिकार देकर पितृसत्तात्मक व्यवस्था का समर्थन किया है|
थॉमस हॉब्स की ‘फेलिसिटी’-
थॉमस हॉब्स के अनुसार व्यक्ति कुछ वस्तुओं को पाने की निरंतर इच्छा रखता है, जब व्यक्ति इन वस्तुओं को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करता है तो उसको एक आनंद प्राप्त होता है, जिसको थॉमस हॉब्स फेलिसिटी कहता है|
निगम की धारणा-
थॉमस हॉब्स की राज्य संबंधी धारणा को निगम की धारणा भी कहा जाता है, क्योंकि जिस प्रकार निगम एक विशेषाधिकार प्राप्त स्वतन्त्र कानूनी इकाई के रूप में पहचानी जाने वाली अलग संस्था है जिसके पास अपने सदस्यों से पृथक अपने अधिकार हैं, उसी प्रकार कॉमनवेल्थ भी एक कृत्रिम संस्था है जिसके पास सदस्यों से अलग असीमित अधिकार है|
उपयोगितावादियों का अग्रगामी-
हॉब्स भौतिकतावादी व सुखवादी थे|
हॉब्स का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति सुख की ओर आकर्षित तथा पीड़ा से दूर रहने वाला एक आत्म निहित तंत्र से अधिक कुछ नहीं है| बाद में इसे बेंथम ने उपयोगिता में स्वीकार किया है|
अतः हॉब्स को उपयोगितावादियों का पूर्वगामी या अग्रगामी कहा जाता है|
वेपर के अनुसार “हॉब्स पहला आधुनिक विचारक है, जिसने राज्य को मेल-मिलाप स्थापित करने वाली संस्था के रूप में देखा, इस दृष्टि से वह उपयोगितावादियों का पूर्वगामी है|”
हॉब्स में उपयोगितावादियों वाला दार्शनिक आमूलवाद व फ्रांसीसी विश्वकोशकर्ताओं का वैज्ञानिक बौद्धिकवाद है|
फ्रेडरिक पॉलक “अधिकतम लोगों के अधिकतम हित के लिए उपयोगितावादियों ने लेवियाथन की नाक में नकेल डाल दी|”
अरस्तु की उपेक्षा करने वाला पहला आधुनिक विचारक-
थॉमस हॉब्स अरस्तु की अपेक्षा करने वाला पहला आधुनिक विचारक माना जाता है|
हॉब्स अरस्तु के विचार ‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा राज्य एक स्वाभाविक संस्था है’ का खंडन किया है तथा मनुष्य को एक असामाजिक प्राणी व राज्य को कृत्रिम माना है|
अरस्तु का मत है कि सभी चीजो में सर्वोच्च साध्य की प्राप्ति के बाद गति या विकास रुक जाता है, वही हॉब्स का मत है कि गति शाश्वत है, सभी वस्तुएं हमेशा गतिशील बनी रहती है|
अरस्तु के विपरीत हॉब्स का मानना था कि राज्य सद्जीवन के लिए नहीं बल्कि सुरक्षा के लिए है, क्योंकि मानवों के बीच मित्रता नहीं शत्रुता होती है|
नामरुपवाद या नाममात्र रुपवाद (Nominalism)-
नामरूपवाद चेतन जगत के बजाय भौतिक जगत को ही सत्य मानता है| इस तरह हॉब्स भी आध्यात्मिक या चेतन जगत को कल्पनामात्र मानते हैं तथा भौतिक जगत व पदार्थ को ही वास्तविक सत्य मानते हैं|
हॉब्स के अनुसार “संसार में पदार्थ के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं है|” हॉब्स के लिए अध्यात्मिक सत्ता एक काल्पनिक वस्तुमात्र है|
सेबाइन “थॉमस हॉब्स पूर्णत: भौतिकवादी था और उसके लिए आध्यात्मिक सत्ता केवल काल्पनिक वस्तु मात्र थी|”
आणविक समाज का सिध्दांत-
हॉब्स का आणविक समाज का सिद्धांत गैलीलियो की रेजोल्यूशन कंपोजिटिव पद्धति पर आधारित है|
थॉमस हॉब्स का आणविक समाज व्यक्तिवाद पर आधारित है, यानी प्रत्येक व्यक्ति अणु की तरह महत्वपूर्ण व स्वतंत्र है|
बाद में ये स्वतंत्र हिस्से यानी व्यक्ति कंपोजिट होकर कॉमनवेल्थ का गठन करते हैं अर्थात समझौते के परिणामस्वरूप संपूर्ण मानव समुदाय एक कृत्रिम व्यक्ति में संयुक्त हो जाता है, जिसे हॉब्स कॉमनवेल्थ (राज्य) कहता है|
आत्मरक्षा की प्रकृति और बुद्धिसंगत आत्मरक्षा (Rational Self Preservation)-
हॉब्स ने आत्मरक्षा की प्रकृति के संबंध में बुद्धिसंगत या विवेकसंगत आत्मरक्षा का सिद्धांत दिया है|
हॉब्स के मत में आत्मरक्षा का उद्देश्य मनुष्य के जैविक अस्तित्व को कायम रखना है तथा जो बात इसमें सहायक है वह शुभ है और जो असहायक है वह अशुभ है|
मानव प्रकृति के मूल आवश्यकता सुरक्षा की इच्छा है तथा सुरक्षा के लिए मनुष्य शक्ति प्राप्त करना चाहता है|
हॉब्स मानव प्रकृति में अभिलाषा और विवेक इन दो सिद्धांतों की चर्चा करता है| अभिलाषा या इच्छा के कारण मनुष्य उन सभी वस्तुओं को स्वयं प्राप्त करना चाहता है, जिन्हें अन्य व्यक्ति चाहते हैं, जिसका परिणाम मनुष्यों में निरंतर संघर्ष है| लेकिन विवेक अथवा बुद्धि द्वारा मनुष्य पारस्परिक संघर्षों को समाप्त करते हैं|
हॉब्स के मत में प्राकृतिक अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को सब कुछ पाने का अधिकार है, इसके लिए वह दूसरे को मार भी सकता है, लेकिन विवेक या बुद्धि शांति चाहता है तथा इस बात पर बल देता है कि सब कुछ पाने के चक्कर में वह मौत के मुंह में न चला जाए| इसी को हॉब्स विवेक संगत आत्मरक्षा (Rational self Preservation) कहता है|
हॉब्स का मूल्यांकन-
राजनीति विज्ञान को देन-
राजनीति शास्त्र की विस्तृत और व्यवस्थित वैज्ञानिक पद्धति का निर्माण करने वाला पहला अंग्रेज विचारक है|
बोदा ने सीमित संप्रभुता का सिद्धांत का प्रतिपादन हॉब्स से पहले किया था, लेकिन निरपेक्ष व असीमित संप्रभुता का प्रतिपादन करने वाला हॉब्स पहला विचारक था|
मानव द्वारा समझौते के माध्यम से राज्य की उत्पत्ति बताने वाला पहला विचारक है|
व्यक्तिवाद का प्रतिपादन किया|
उपयोगितावाद का अग्रगामी- वेपर के अनुसार “हॉब्स पहला आधुनिक विचारक है, जिसने राज्य को मेल-मिलाप स्थापित करने वाली संस्था के रूप में देखा, इस दृष्टि से वह उपयोगितावादियों का पूर्वगामी है|”
हरमन “हॉब्स की रचना लेवियाथन तर्कशास्त्र का सर्वोत्तम ग्रंथ है|”
सेबाइन “अंग्रेजी भाषाभाषी जातियों ने जितने भी राजनीतिक दार्शनिकों को जन्म दिया है, उन सब में थॉमस हॉब्स सबसे महानतम है|
डनिंग ने थॉमस हॉब्स को राजनीतिक चिंतकों की प्रथम श्रेणी के अंतर्गत रखा है|
मैक्सी “थॉमस हॉब्स अंग्रेजी जाति का एक महानतम चिंतक था|”
डनिंग “मैक्यावली ने व्यवहार के रूप में राजनीति को धर्म तथा नीतिशास्त्र से स्वतंत्र और पृथक किया है, जबकि थॉमस हॉब्स ने एक दार्शनिक धारणा के रूप में राजनीति को धर्म तथा नीति से उच्च स्थान प्रदान किया है|”
हॉब्स की आलोचना-
कौली/ काउले ने हॉब्स को ‘मेलस्बरी का शैतान’ कहा है|
रूसो “हॉब्स का सबसे बड़ा दोष यह है कि एकदम निरकुंश शासन स्थापित करता है|”
मुर्रे “हॉब्स की जीवनी लिखने वाले को एक ही समर्थक मिला, जबकि उसके शत्रु अनेक थे|”
कलेरेंडन ने थॉमस हॉब्स के विलासी सिद्धांतों का खंडन किया है| कलेरेंडन का कहना है कि “थॉमस हॉब्स को इंग्लैंड की विधियों और प्रथाओं का भी कोई ज्ञान नहीं था|”
व्हाइट हॉल ने लेवियाथन को घातक विचारों से उसी प्रकार पूर्ण पाया, जिस प्रकार एक तरह का सर्प विष से पूर्ण होता है|
ब्रमहिल ने लेवियाथन का उपहास करते हुए लेवियाथन को ‘सीधे कुत्ते का खेल’ कहा है, जो सभी को चिंगारियां और लपटों के समर्पित कर देगा|
केटलिन “थॉमस हॉब्स के बुरे दर्शन का अधिकांश भाग उसके बुरे मनोविज्ञान के कारण है|”
जॉन लॉक “क्या प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्ति इतने मूर्ख थे कि वे लोमड़ी तथा जंगली बिल्लियों की शरारत से तो बचने की फिक्र करते थे, लेकिन उस अवस्था में संतुष्ट थे, अपने आप को सुरक्षित अनुभव करते थे, जब शेर उन्हें निगले जा रहा हो|”
गूच “लेवियाथन केवल अतिमानवीय आधार का पुलिसमैन है, जो अपने हाथ में दंड लिए हैं, उसका राज्य अनिवार्य बुराई है, दबाव का यंत्र है, स्वतंत्र विकासोन्मुख सभ्यता की प्राप्ति का अपरिहार्य साधन नहीं है|”
थॉमस हॉब्स ने राज्य व सरकार में अंतर नहीं किया है| विलोबी के अनुसार ‘राज्य और सरकार में अंतर न मानना थॉमस हॉब्स की सबसे बड़ी भूल है|”
थॉमस हॉब्स से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
फ्रांसीसी लेखक जोसेफ वायलातो ने थॉमस हॉब्स को सर्वाधिकारवाद का प्रथम सिद्धांतकार कहा है|
वोलिन “थॉमस हॉब्स का लेवियाथन नश्वर ईश्वर (mortal god), तथा मानवीय शक्तियों में महानतम है|”
थॉमस हॉब्स का आणविक समाज व्यक्तिवाद पर आधारित है, यानी प्रत्येक व्यक्ति अणु की तरह महत्वपूर्ण व स्वतंत्र है|
कार्ल मार्क्स ने कहा कि “थॉमस हॉब्स हम सबका पिता है|” (गति सिद्धांत के संबंध में)
सी बी मैक्सफ़र्सन “थॉमस हॉब्स शक्ति राजनीति का विज्ञान पेश करने वाला प्रथम व्यक्ति है|”
थॉमस हॉब्स का मानना है कि मनुष्य न तो सामाजिक प्राणी है और ना ही राजनीतिक|
सिबली का मत है कि हॉब्स को आधुनिक राष्ट्रीय राज्य का श्रेष्ठतम दार्शनिक माना जा सकता है|
सी बी मैक्सफ़र्सन ने थॉमस हॉब्स की विचारधारा को स्वत्व बोध या स्वत्वात्मक व्यक्तिवाद कहा है|
टेलर के अनुसार थॉमस हॉब्स का सिद्धांत मानव पद्धति से नहीं, प्राकृतिक नियमों से जनित है|
रूसो का मत है कि हॉब्स का सिद्धांत आत्म विरोधी व उद्वेगजनक है|
जी एस काव्का (kavka) के अनुसार थॉमस हॉब्स एक पक्का अहमदवादी है|
हॉब्स के जीवन काल में इंग्लैंड में एक लेवेलर्स (Levellers) आंदोलन चल रहा था, जो राजनीतिक समानता की मांग कर रहे थे| दूसरा डिगर्स (Diggers) आंदोलन चल रहा था, जो आर्थिक समानता की मांग कर रहे थे|
हॉब्स की जीवनी लेखक जॉन ऑम्ब्रे है|
हॉब्स “विधि की चुप्पी ही स्वतंत्रता है|”
डेविड ह्यूम “हॉब्स की राजनीति ऐसी है, जिससे अत्याचार को प्रोत्साहन मिलता है|”
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