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फ्रान्स की न्यायपालिका / phraans kee nyaayapaalika || Judiciary of France || BY Nirban PK Sir || In Hindi

     फ्रान्स की न्यायपालिका

    न्यायपालिका की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-

    • फ्रान्स में 1789 की महान क्रांति से पूर्व कोई संगठित न्याय-व्यवस्था नहीं थी। 

    • देश में न्यायिक एकरूपता का नितान्त अभाव था। 

    • वाल्टेयर के शब्दों में "देश में एक ओर से दूसरी ओर तक जाने वाले यात्री को जितनी बार घोड़ा बदलना पड़ता है, उससे अधिक प्रकार के कानूनों को बदलना होता था।" 

    • सर्वप्रथम नैपोलियन द्वारा फ्रैंच कानूनों को संहिताबद्ध करने का कार्य सम्पादित किया गया। उसके द्वारा किए गए कानूनों के इस संग्रह को "नैपोलियन संहिता' (Code of Napoleon) की संज्ञा दी जाती है। 

    • वर्तमान कानून प्राथमिक रूप से इसी नेपोलियन संहिता पर आधारित हैं। 

    • फ्रान्स की न्यायिक और वैधानिक व्यवस्था के विकास पर रोम की वैधानिक पद्धति, फ्रान्स की प्राचीन सामन्तवादी व्यवस्था तथा राजाओं द्वारा निर्मित कानूनों, 1789 की महान राज्य क्रान्ति और नैपोलियन द्वारा संगृहीत और निर्मित कानूनों का व्यापक प्रभाव रहा है।  

    • सबसे अधिक प्रभाव नैपोलियन बानापार्ट का ही रहा है, जिसने पहली बार फ्रैंच कानूनों को संहिताबद्ध किया|


    फ्रैंच न्याय पद्धति की विशेषताएँ-

    1. लिखित विधियाँ (Written Laws)-

    • फ्रांस में विधियाँ पूर्णतः लिखित रूप में है|


    1. संविधि विधियाँ (Statutory Laws)-

    • फ्रान्स में लगभग सभी विधियां संसद अथवा अन्य किसी विधि निर्मात्री संस्था द्वारा निर्मित की गई हैं। 

    • रूढ़ियों और परंपराओं का उनमें बहुत कम और वह भी कहीं-कहीं समावेश हुआ है। 

    • फ्रांस में न्यायाधीश-निर्मित विधियों का विकास नहीं हो पाया है, क्योंकि प्रत्येक न्यायालय अपना निर्णय देने में स्वतंत्र है, पूर्व न्यायिक निर्णयों अथवा दृष्टान्तों से निर्देशित होने के लिए वह बाध्य नहीं है। 

    • फ्रैंच व्यवस्था के विपरीत ब्रिटिश न्यायिक विधियाँ अधिकांश न्यायाधीशों द्वारा निर्मित हैं और वहाँ पूर्वकालीन न्यायिक दृष्टान्तों का पूर्ण सम्मान किया जाता है। 


    1. प्रशासकीय अंग (Administrative Organ)-

    • फ्रान्स की न्यायपालिका को मूलतः प्रशासकीय अंग माना गया है। 

    • मुनरो के शब्दों में "न्यायपालिका को व्यवस्थापिका से भिन्न शासन के एक स्वतंत्र अंग के रूप में मानने की आदत फ्रैंच जनता में नहीं है। फ्रैंच जनता डाकघरों की भाँति न्यायालयों को भी केवल प्रशासकीय शाखाओं के रूप में मानती है।" 

    • इसके विपरीत ब्रिटेन और अमेरिका में न्यायपालिका को सरकार के एक स्वतंत्र अंग के रूप में जाना जाता है। 


    1. न्यायिक स्वतंत्रता (Independence of the Judiciary)-

    • न्यायिक स्वतंत्रता भी फ्रान्स की न्याय पद्धति की एक उल्लेखनीय विशेषता है। 

    • ब्रिटेन और अमेरिका की भाँति फ्रांस में भी न्यायाधीशों को पर्याप्त स्वतंत्रता प्राप्त है।

    • इसका मुख्य कारण यह है कि यहाँ न्यायाधीश सरकार के न्याय विभाग में कार्य करते हैं| साथ ही सरकारी वकील का काम करते हैं तथा न्याय मंत्रालय के प्रति उत्तरदायी होते हैं| 


    1. न्यायिक पुनरावलोकन (Absence of the Judicial Review)-

    • भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त है, लेकिन फ्रान्स में न्यायपालिका इस शक्ति से वंचित है। 

    • वहाँ न्यायपालिका प्रशासन का एक अधीनस्थ अंग है, अतः संसद द्वारा निर्मित कानूनों की संवैधानिकता का परीक्षण करने का उसे अधिकार नहीं है। 

    • यह कार्य एक अन्य संस्था ‘संविधानिक परिषद्’ (Constitutional Council) को सौंपा गया है।


    1. नियुक्ति (Appointment)-

    • फ्रान्स की न्याय व्यवस्था के अन्तर्गत न्यायाधीशों की नियुक्ति-प्रणाली अन्य देशों से भिन्न है। 

    • वहाँ न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रतियागिता परीक्षा के आधार पर उच्च न्याय परिषद् (The High Council of Judiciary) द्वारा की जाती है। 

    • इसके विपरीत ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत आदि देशो में विख्यात विधि-वेत्ताओं और उच्च-कोटि के वकीलों को राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। 


    1. स्थानीय न्यायालय (Local Courts)-

    • फ्रान्स की न्याय-व्यवस्था की अन्य विशेषता यह है कि सभी न्यायालय स्थानीय होते हैं और उनकी बैठकें निश्चित स्थानों पर ही होती हैं। 


    1. द्वैध न्याय व्यवस्था (Dual System of Courts)

    • फ्रान्स में दो प्रकार के न्यायालयों का अस्तित्व है-

    1. सामान्य न्यायालय (Ordinary Courts)- ये न्यायालय गैर-सरकारी व्यक्तियों के मुकदमो का निर्णय करते हैं|

    2. प्रशासकीय  न्यायालय (Administrative Courts)- ये न्यायालय सरकारी कर्मचारियों के अपराधों से सम्बन्धित मुकदमो का निपटारा करते हैं। प्रशासकीय न्यायालय भिन्न प्रकार के कानूनों को लागू करते हैं, जिन्हें प्रशासकीय कानून (Administrative Laws) कहा जाता है। 


    1. सामूहिकता का सिद्धान्त (Doctrine of Collegiality)-

    • फ्रान्स में न्याय कार्य के सम्बन्ध में यह विशेष धारणा है कि न्यायिक कार्य के लिए एक नही अपितु अनेक मस्तिष्कों का संगठित विचार-विमर्श आवश्यक है। इसीलिए वहाँ कोई भी निर्णय प्रायः कम से कम तीन न्यायाधीशों की स्पष्ट सहमति से दिया जाता है। 



    फ्रैंच न्यायपालिका का संगठन-

    • फ्रान्स में न्यायालयों का संगठन एकीकृत न होकर संगठनात्मक है| 

    • न्यायिक अधिकार किसी एक संस्था में केन्द्रित नहीं है, अपितु पाँच प्रकार के पृथक्-पृथक् न्यायालयों में केन्द्रित है, जो निम्नलिखित हैं-

    1. सामान्य न्यायालय (Ordinary Courts)

    2. प्रशासकीय न्यायालय (Administrative Courts)

    3. संवैधानिक परिषद् (Constitutional Council) 4. 

    4. उच्च न्यायिक परिषद् (The High Council of Judiciary) 

    5. न्याय का उच्च न्यायालय (The High Court of Justice) 


    1. सामान्य न्यायालय (Ordinary Courts)-

    • इन न्यायालयों में केवल गैर-सरकारी व्यक्तियों से सम्बन्धित मुकदमों की सुनवाई होती है|

     

    • इस प्रकार के विभिन्न न्यायालय निम्न है-


    1. शांति न्यायाधीश के न्यायालय (Justice of the Peace Courts)-

    • सामान्य न्यायालयों में सबसे निम्न स्तर पर शांतिं न्यायाधीशों का न्यायालय है। 

    • प्रायः प्रत्येक कैन्टन में ऐसा एक न्यायालय होता है। 

    • बड़े-बड़े शहरों में तो अनेक ऐसे न्यायालयों का अस्तित्व हैं| 

    • इस न्यायालय में एक न्यायाधीश होता है, जिसे शांति न्यायाधीश कहा जाता है।  

    • वह वैतनिक अधिकारी होता है। 

    • ये न्यायालय दीवानी और फौजदारी दोनों प्रकार के मुकदमों की सुनवाई करते हैं| 

    • इनका मुख्य कार्य मुकदमों का निर्णय करना नहीं है, बल्कि मुकदमों को रोकना है, अर्थात न्यायाधीश समझाकर या मध्यस्थता के द्वारा विरोधी पक्षों में समझौता कराने का प्रयत्न करते हैं। 


    1. प्रारम्भिक न्यायालय (Courts of the First Instance)-

    • शांति न्यायालय के ऊपर प्रारम्भिक न्यायालय होते हैं। 

    • इस स्तर के न्यायालय सुधारात्मक न्यायालय कहलाते हैं। 

    • प्रत्येक एरोण्डाइजमेंट (Arrondissement) में ऐसे न्यायालय होते हैं। 

    • प्रारम्भिक न्यायालय में दीवानी और फौजदारी दोनों मामले आते है| 

    • इन्हें प्रारम्भिक तथा अपीलीय दोनों क्षेत्राधिकार प्राप्त हैं। 

    • दीवानी मुकदमों से इन न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील पुनरावेदन न्यायालयों या अपीलीय न्यायालयाँ (Courts of Appeal) में की जाती हैं| 

    • फौजदारी मामलों में प्रारम्भिक न्यायालयों का क्षेत्र चोरी, गबन और मारपीट के मामलों तक सीमित हैं|

    • फौजदारी मुकदमों में इन न्यायालयों से अपीलें एसाइज़ न्यायालय (Court Of Assize) में जाती हैं। 

    • प्रायः प्रत्येक मुकदमे की सुनवाई तीन से पाँच तक न्यायाधीश करते हैं। 


    1. पुनरावेदन न्यायालय (Courts of Appeal)-

    • प्रारम्भिक न्यायालयों के ऊपर पुनरावेदन न्यायालय हैं। 

    • एक न्यायालय का क्षेत्राधिकार सात डिपार्टमेंटों (Departments) तक होता है। 

    • प्रत्येक न्यायालय में तीन विभाग होते हैं- दीवानी, फौजदारी तथा दोषारोपण (Indictment) विभाग| 

    • प्रत्येक विभाग में प्रायः पाँच न्यायाधीश होते हैं| 

    • पुनरावेदन न्यायालयों का कोई मौलिक अधिकार क्षेत्र नहीं है। ये प्रधानतः प्रारम्भिक न्यायालयों के दीवानी मामलों से सम्बन्धित निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनते हैं|

    • तथ्य सम्बन्धी इनके निर्णय अंतिम होते हैं। वैधानिक तथ्यों (Points of Law) से सम्बन्धित निर्णयों के विरुद्ध अपील की जा सकती है। 


    1. एसाइज़ न्यायालय (Court of Assize)-

    • यह अस्थिर न्यायालय है| 

    • यह बड़े-बड़े नगरों का बारी-बारी से दौरा करता है और मुकदमों का फैसला करता है। 

    • इसमें पुनरावेदन न्यायालय का एक न्यायाधीश और प्रारम्भिक न्यायालय के दो न्यायाधीश होते हैं। 

    • फ्रान्स का यह फौजदारी न्यायालय (Criminal Court) है, जिसमें अधिक गंभीर फौजदारी मामलों में प्रारम्भिक न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें की जाती हैं। 

    • एसाइज न्यायालय में जूरी की सहायता से किया गया निर्णय अंतिम होता है और उसके विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती। 


    1. विराम न्यायालय (Court of Cessation)-

    • यह फ्रान्स का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है, जिसमें एक महाध्यक्ष, तीन विभागीय अध्यक्ष तथा 45 अन्य न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें सभा-सद (Councillors) कहा जाता है। 

    • इसकी बैठक पैरिस में होती है। 

    • इसमें तीन विभाग है- प्रार्थना विभाग (Chamber of Request), दीवानी विभाग तथा दंड  विभाग। 

    • यह केवल अपीलाय (Appellate) न्यायालय है। 

    • अपीलों में भी यह केवल वैधानिक तथ्यों (Points of Law) का ही विचार करता है, तथ्यों (Facts) सम्बन्धी प्रश्नों पर नहीं|  



    1. प्रशासकीय न्यायालय (Administrative Courts)-

    • प्रशासकीय न्यायालयों के दो स्तर हैं-

    1. प्रादेशिक परिषद (Regional Council)-

    • प्रादेशिक परिषदें (Regional Councils) निम्न स्तर पर हैं। 

    • इन्हें प्रथम अन्तर्विभागीय परिषदें (Inter-Department Councils) भी कहते हैं। 

    • प्रत्येक परिषद् का कार्य क्षेत्र दो से सात डिपार्टमेंट तक होता है। 

    • प्रत्येक प्रादेशिक परिषद् में एक सभापति और चार सभा-सद या पार्षद (Councillors) होते हैं।

    • इन न्यायालयों में प्रशासन सम्बन्धी मुकदमे आते हैं| 

    • ये निर्धारण (Recessment) सम्बन्धी वाद-विवाद, सार्वजनिक निर्माण, स्थानीय निर्वाचन और समझौता भंग आदि प्रश्नों का निर्णय करते हैं। 

    • इनके निर्णयों के विरुद्ध राज्य परिषद् (Council of State) में अपील की जा सकती है। 


    1. राज्य परिषद् (Council of State)-

    • राज्य-परिषद् (Council of State) राष्ट्र का सर्वोच्च प्रशासकीय न्यायालय है, जिसका अध्यक्ष फ्रान्स का न्याय मंत्री होता है। 

    • उसके अधीन एक उपाध्यक्ष और पाँच विभागाध्यक्ष होते हैं | 

    • राज्य परिषद् में 149 सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति न्याय मंत्री के परामर्श से करता है। 

    • यह प्रशासकीय न्यायालय प्रादेशिक परिषदों (Regional Councils) के निर्णयों के विरुद्ध अपीलें सुनता है। 

    • इसे नए मुकदमों की सुनवाई करने का अधिकार भी प्राप्त है। 

    • इस प्रकार इसका अधिकार-क्षेत्र अपीलीय और प्रारम्भिक दोनों प्रकार का है। 

    • इसका निर्णय अंतिम होता है| 

    • संविधान की धारा 39 में कहा गया है कि सरकारी विधेयकों पर संसद में पेश किए जाने से पूर्व मंत्रिषद् में वाद-विवाद होता है और उनके विषय में राज्य परिषद् (Council of State) से मंत्रणा या सलाह की जाती है। 

    • प्रशासकीय न्याय का वास्तविक उत्तरदायित्व राज्य परिषद् पर ही है| 

    • यह मंत्रिपरिषद को उसके द्वारा किए जाने वाले आदेशों और आज्ञप्तियों के सम्बन्ध में परामर्श देती है। 

    • सरकार के विभिन्न विभागों के बीच विवादों का भी यह निपटारा करता है। 

    • इसकी कार्य-प्रणाली बहुत साधारण है और सामान्य नागरिक भी इस न्यायालय तक पहुँच सकते हैं। कोई भी व्यक्ति सीधे इस परिषद् को प्रार्थना कर सकते हैं अथवा इसमें निम्नोत्तर प्रशासनिक न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील कर सकता है। 



    1. संवैधानिक परिषद (Constitutional Council)-

    • संवैधानिक परिषद फ्रैंच न्याय-व्यवस्था की एक अनोखी विशेषता है। 

    • भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में कानूनों की संवैधानिकता की परीक्षा करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है, लेकिन फ्रान्स में इस प्रकार के न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार संवैधानिक परिषद् को दिया गया है । 

    • इसे एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था (A Quasi-Judicial Institution) की संज्ञा दी जाती है। 

    • पाँचवें गणतन्त्र के संविधान की धारा 55-56 संवैधानिक परिषद् से सम्बन्धित है। 

    • इस परिषद् ने वर्तमान संविधान में चतुर्थ गणतन्त्र की संवैधानिक समिति का स्थान लिया है। 


    • संविधान के अनुच्छेद 58 में संवैधानिक परिषद् की रचना का वर्णन किया गया है। 

    • यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को शक्ति प्रदान करता है कि वह परिषद् के 9 सदस्यों में से 3 सदस्यों तथा उसके अध्यक्ष को मनोनीत कर सकता है| शेष 3 सदस्य राष्ट्रीय सभा के प्रधान और 3 सीनेट के प्रधान द्वारा चुने जाते हैं| 

    • गणतन्त्र के भूतपूर्व राष्ट्रपति परिषद् के पदेन सदस्य हैं। 

    • परिषद् के 9 सदस्यों को 9 वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है, जिसमें से 1/3 सदस्य प्रति 3 वर्ष बाद बदल जाते हैं और उन्हें फिर नियुक्त नहीं किया जा सकता है। 

    • परिषद् का सभापति जिसे राष्ट्रपति मनोनीत करता है, बराबर मत आने पर निर्णायक मत (Castings Vote) देने का अधिकार रखता है। 

    • परिषद् के सदस्य अपने कार्यकाल में कार्यपालिका, संसद या अन्य किसी संवैधानिक पद धारण करने का अधिकार नहीं रखते हैं और न ही उनकी नियुक्ति किसी प्रशासनिक पद पर की जा सकती है। 

    • परिषद् के सदस्य अपने सामने आने वाले मामलों पर सार्वजनिक वक्तव्य नहीं दे सकते और न ही उनके बारे में सार्वजनिक रूप से कोई परामर्श ही दे सकते हैं। 


    • संवैधानिक परिषद् के कार्यों की प्रकृति बहुमुखी है, जो निम्नांकित है-

    1. आपातकाल के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को परामर्श देना । 

    2. सरकार की प्रार्थना पर निर्णय देना और यह घोषित करना कि राष्ट्रपति अपने कार्य सम्पादन की दृष्टि से असमर्थ (Incapacitated) हो गया है।

    3. यह परिषद् राष्ट्रपति के विधिवत् निर्वाचन को आश्वस्त करती है। 

    4. अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं दोनों सदनों के अध्यक्षों को यह अधिकार देता है, कि वे सामान्य विधियों को लागू किए जाने से पहले उनकी संवैधानिक वैधता के प्रश्न पर संवैधानिक परिषद् का अभिमत ज्ञात कर सकते हैं। 

    5. यह परिषद् शिकायतों पर विचार करती है और मतदान के परिणाम की घोषणा करती है। 

    6. यह जनमत संग्रह की विधि को आश्वस्त करती है और उसके परिणाम घोषित करती है।

    7. विधेयकों, अन्तर्राष्ट्रीय प्रपत्रों, आंगिक कानूनों और संसद के स्थायी आदेशों की संविधानिकता पर निर्णय देने के अपने महत्वपूर्ण कार्य के साथ-साथ परिषद् को संविधान की किसी भी धारा को अवैधानिक घोषित करने का बड़ा ही शक्तिशाली अधिकार दिया गया है। 


    • संवैधानिक परिषद के निर्णय के विरुद्ध कहीं भी अभ्यर्थना नहीं की जा सकती और इसके निर्णयों को समस्त जनशक्तियों द्वारा और शासकीय तथा न्यायिक अधिकारियों द्वारा मान्यता दी जाना आवश्यक है। 

    • परिषद आपातकाल के विषय में अनिवार्य रूप से राष्ट्रपति को परामर्श देने का अधिकार रखती है, किन्तु राष्ट्रपति उस परामर्श से बँधता नहीं है| 

    • परिषद को अपना निर्णय एक माह के भीतर देना आवश्यक होता है, किन्तु यदि सरकार ने विधेयक को अविलम्ब कार्रवाई वाला घोषित कर दिया हो तो परिषद् द्वारा अपना निर्णय 8 दिन के भीतर ही देना होता है। 

    • परिषद् के निर्णय कम से कम 7 सदस्यों द्वारा किए जाते हैं|

    • परिषद् के वाद-विवादों और मतदान में गोपनीयता बरती जाती है और अल्पमत को प्रकाशित नहीं किया जाता। 

    • परिषद् के निर्णयों का आधार संविधान होता है, लेकिन उसके निर्णयों के विरुद्ध कहीं भी अभ्यर्थना या अपील नहीं की जा सकती, अतः संविधान का निर्वाचन वही समझा जाता है, जो परिषद् करती है|



    1. न्याय का उच्च न्यायालय (High Court of Justice)-

    • फ्रान्स के नवीन संविधान के अध्याय 9 की धारा 67 के अन्तर्गत न्याय के उच्च न्यायालय की स्थापना की गई है। 

    • यह एक विशुद्ध राजनीतिक न्यायाधिकरण (Tribunal) है. जिसकी स्थापना ‘महान देशद्रोही’ के लिए, गणराज्य के राष्ट्रपति के अपराधों तथा दुराचार के लिए, मंत्रियो के विरुद्ध महाभियोग की सुनवाई के लिए की गई है। 

    • न्यायालय के सदस्यों को बराबर-बराबर संख्या में राष्ट्रीय सभा और सीनेट अपने सदस्यों में से प्रत्येक सार्वजनिक या आंशिक निर्वाचन के बाद चुनती है। 

    • इस प्रकार के निर्वाचित व्यक्ति अपने में ही से किसी को अपना अध्यक्ष चुनते हैं। 

    • इसमें वर्तमान में 12 सीनेटर और 12 प्रतिनिधि हैं। 

    • न्यायालय अपने न्यायालय सभापति के अतिरिक्त 2 उप-सभापतियों को भी चुनता है| 

    • राज्य विरोधी गंभीर अपराधों की परिभाषा स्वयं सदन व न्यायालय दोनों करते हैं, किंतु दण्ड का निर्धारण न्यायालय द्वारा ही किया जाता है| 

    • न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध (जबकि निर्णय कुछ सदस्यों के बहुमत से दिए गए हों) कोई अपील नहीं की जा सकती है। 

    • साधारण काल में यह न्यायालय निष्क्रिय रहता है, किन्त संविधान के अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत राष्ट्रपति द्वारा की गई आपातकालीन घोषणा के संबंध में यदि राष्ट्रपति एवं संसद के मध्य गंभीर संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो न्यायालय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है| 



    1. उच्च न्याय परिषद् (The High Council of Judiciary)-

    • संविधान की धारा 58 के अनुसार गणतन्त्र के राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह न्यायिक अधिकरण की स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करे| इस सम्बन्ध में उच्च न्याय परिषद् उसकी सहायता करती है| 

    • संविधान की धारा 65 के अनुसार राष्ट्रपति उच्च न्याय परिषद् का सभापतित्व करता है| 

    • न्यायमंत्री इस परिषद् का पदेन (Ex-officio) उप-सभापति होता है| जो राष्ट्रपति के स्थान पर परिषद् का सभापतित्व कर सकता है| 

    • सभापति और उप-सभापति के इन दो पदेन सदस्यों के अतिरिक्त परिषद् के 9 सदस्य और होते हैं। जिन्हें राष्ट्रपति आंगिक कानून (Organic Law) द्वारा निश्चित की गई व्यवस्था के अनुसार नियुक्त करता है। 

    • इन 9 में से 2 सदस्य तो राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नियुक्त किए जाते हैं और शेष 7 उसके द्वारा 21 नामों की उस सूची में से छाँटे जाते हैं, जिसे 'Court of Cassation' व 'Council of State' तैयार करते हैं। 

    • यह परिषद् उच्चतर न्यायिक पदों के लिए मनोनयन करती है, जिन्हें राष्ट्रपति भरता है। 

    • इस परिषद् के दो अन्य प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं-

    1. क्षमादान के प्रश्नों पर मंत्रणा देना

    2. न्यायाधीशों के लिए अनुशासनात्मक परिषद (Disciplinary Council) के रूप कार्य करना। 


    • इन मामलों पर विचार करने के लिए इसकी बैठकों का सभापति 'Court of Cassation' का प्रथम प्रधान होता है। 

    • गणपूर्ति के लिए 5 सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक मानी जाती है। 

    • परिषद के निर्णय और परामर्श, उपस्थित सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं। परिषद को अनुशासन के मामलों के अलावा अन्य मामलों पर निर्णय देने की शक्ति नहीं है। 



    आंगिक कानून (Organic Laws)-


    • संविधान में दी गई बहुत सी बातों की पूर्ति अथवा उनका स्पष्टीकरण करने के लिए ऐसे कानूनों की व्यवस्था है। 

    • ये कानून मुख्यतः निम्नांकित बातें तय करते हैं-

    1. राष्ट्रपति के निर्वाचनों के लिए निर्वाचक मण्डल की रचना। 

    2. राष्ट्रपति की नियुक्ति सम्बन्धी शक्तियाँ 

    3. मंत्री बन जाने के कारण जिन संसद सदस्यों या दूसरे पदों पर काम करने वाले व्यक्तियों के स्थान रिक्त होते हैं, उनके रिक्त स्थानों की पूर्ति। 

    4. संसद के सदस्यों के कार्यकाल, उनके वेतन, उनकी संख्या, उम्मीदवार होने की योग्यता तथा वे पद जिन्हें संसद का सदस्य रहते हुए ग्रहण नहीं किया जा सकता। 

    5. वे परिस्थितियाँ जिनके अन्तर्गत सभा और सीनेट के सदस्य अपनी ओर से मत देने की शक्ति अपने साथियों को हस्तान्तरित कर सकते हैं। 

    6. वित्तीय प्रक्रिया और विधायी प्रक्रिया। 

    7. संविधानिक परिषद् की सदस्यता के साथ जो पद ग्रहण नहीं किए जा सकते । 

    8. दण्डाधिकारियों (Magistrates) की सेवा शर्ते। 

    9. सर्वोच्च न्याय परिषद् तथा उच्च न्यायालय का संगठन और उसकी कार्य पद्धति|

    10. आर्थिक व सामाजिक परिषद की रचना एवं उसकी कार्य-प्रणाली।

    11. कम्युनिटी के तीन अंगों कार्यकारिणी परिषद (Executive Council), सीनेट और पंच-न्यायालय (Court of Arbitration) की रचना और कार्य प्रणाली।


    • आंगिक कानूनों को स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, सामाजिक व लोक सेवाओं तथा राष्ट्रीय आर्थिक ढाँचे के पुनर्गठन हेतु भी पारित किया जा सकता है|


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