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शीत युद्ध // Sheet Yuddh // Cold War // In Hindi || BY Nirban PK Yadav Sir

     शीत युद्ध (Cold War) 

    शीत युद्ध का अर्थ-

    • द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद शीत युद्ध का आरंभ होता है|

    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो भागों में बट गया- पूरब और पश्चिम

    • पूरब का नेतृत्व साम्यवादी रूस तथा पश्चिम का नेतृत्व पूंजीवादी अमेरिका कर रहा था|

    • इन दोनों महाशक्तियों के मध्य संबंधों को दर्शाने के लिए शीत युद्ध शब्द का प्रयोग किया गया|

    • अतः शीत युद्ध एक वैचारिक संघर्ष था, जो दो विरोधियों विचारधाराओं (पूंजीवाद और साम्यवाद), दो  महाशक्तियों (USA व USSR), दो सैनिक गुटों (नाटो व वारसा) के मध्य था|

    • शीत युद्ध वास्तविक युद्ध न होकर युद्ध जैसी स्थिति था, जिसमें दोनों गुटों के मध्य तनाव, प्रतिद्वंदिता, अपनी अपनी ताकत बढ़ाने, दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ थी|

    • शीत युद्ध को वाक् युद्ध, स्नायु युद्ध, कागज के गोले का युद्ध, पत्र-पत्रिकाओं का युद्ध, रेडियो और प्रचार के साधनों का युद्ध कहा जाता है|


    स्नायु युद्ध-  

    • एक ऐसा युद्ध था, जिसका रण क्षेत्र मानव मस्तिष्क था| यह मनुष्यों के मनों में लड़ा जाने वाला युद्ध था| फ्लेमिंग ने इसे ऐसा युद्ध कहा है, जो मानव मस्तिष्क को नियंत्रित करने का प्रयास करता है|


    • शीत युद्ध शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 16 अप्रैल 1947 को अमेरिकी राजनेता बनार्ड एम.बारूच ने किया| इन्होंने दक्षिणी कैरोलीना (USA) विधानमंडल में अपने भाषण में कहा कि “आज हम शीत युद्ध के मध्य हैं|”

    • इसके पश्चात फ्रांसीसी पत्रकार प्रोफेसर वाल्टर लिपमैन की पुस्तक Cold War 1947 से यह शब्द लोकप्रिय (प्रसिद्ध) हो गया|



     शीत युद्ध की परिभाषाएं-

    • जोसेफ फ्रेकेल “शीत युद्ध दो बड़े राज्यों के बीच विद्यमान गहरी प्रतियोगिता अर्थात चालो तथा प्रतिचालो  का सिलसिला माना जाता है|”

    • जे.एल नेहरू “शीत युद्ध पुरातन शक्ति संतुलन अवधारणा का नया रूप है| यह दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो भीमकाय शक्तियों का आपसी संघर्ष है| “

    • जे.एल नेहरू “शीत युद्ध का वातावरण ‘निलंबित मृत्युदंड के समान तनावपूर्ण’ था| यह वास्तविक युद्ध नहीं था, बल्कि युद्ध का ऐसा वातावरण था जिसमें न युद्ध और न ही शांति थी|”

    • ग्रीव्स “परमाणु युग में शीत युद्ध, संघर्ष का ऐसा रूप है, जो ग्रीष्म युद्ध से नीचे लड़ा जाता है|”

    • K.P.S मेनन “शीत युद्ध दो विचारधाराओं (पूंजीवाद बनाम साम्यवाद), दो शासन पद्धतियों (संसदीय लोकतंत्र बनाम जनवादी लोकतंत्र या बुर्जआ जनतंत्र बनाम सर्वहारा वर्ग की तानाशाही), दो सैन्य गुटों (नाटो बनाम वारसा), दो राष्ट्रों (अमेरिका बनाम सोवियत संघ USSR) तथा दो व्यक्तियों (स्टालिन बनाम जॉन फास्टर डलेस) के मध्य उग्र संघर्ष था|”

    • डॉक्टर M.S राजन “शीत युद्ध शक्ति संघर्ष, विचारधाराओं की टकराहट, जीवन व शैली के संघर्ष का मिलाजुला परिणाम है|”

    • जॉन फास्टर डलेस “शीत युद्ध नैतिक दृष्टि से धर्म युद्ध था| अच्छाई का बुराई के विरुद्ध, सत्य का असत्य के विरुद्ध, धर्मप्राण लोगों का नास्तिकों के विरुद्ध|”

    • लुई हाल “इन्होंने अपनी पुस्तक The Cold War as the History 1967 मे शीत युद्ध के बारे में कहा है कि “शीत युद्ध परमाणु युद्ध की ऐसी तनावपूर्ण स्थिति है, जो शस्त्र युद्ध से ज्यादा भयानक है, जिसने अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के बजाय उलझा दिया है| उसने वियतनाम, कश्मीर, कोरिया, अरब-इजरायल संघर्ष आदि सभी का मोहरों की तरह प्रयोग किया है|”



     शीत युद्ध की प्रकृति या लक्षण-

    1. शीत युद्ध में युद्ध की तरह तनाव और विरोध तो विद्यमान है, लेकिन युद्ध से दूर रहने का प्रयास किया जाता है|

    2. इस युद्ध में प्रत्येक राज्य अपने शक्ति बढ़ाने तथा दूसरे की शक्ति को सीमित करने का प्रयास करता है|

    3. परोक्ष युद्ध शीत युद्ध के उपकरण होते हैं|

    4. शीत युद्ध में तनावों से संबंध तनावपूर्ण एवं सीमित होते हैं|

    5. दोनों गुटों के मध्य शस्त्रों की होड़ रहती है|

    6. विश्व शांति एवं सुरक्षा, युद्ध के डर के साये में जीवित रहती है|

    7. शीत युद्ध एक राजनीतिक तथा मनोवैज्ञानिक युद्ध है, यह मस्तिष्को का युद्ध तथा स्नायु युद्ध है|

    8. इसमें प्रचार का महत्व था|

    9. शीत युद्ध में दोनों महाशक्तियां व्यापक प्रचार, गुप्तचरी, सैनिक हस्तक्षेप, सैनिक संधिया, प्रादेशिक संगठन की स्थापना करके अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में लगी रहती है|



    शीत युद्ध की उत्पत्ति- 

    • शीत युद्ध की उत्पत्ति के बारे में दो मत हैं-

    1. 1917 की बोल्शेविक क्रांति

    2. ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल का फुल्टन भाषण


    1. 1917 की बोल्शेविक क्रांति

    • इसके समर्थक फोन्टेन व हाल है|

    • ये शीत युद्ध की शुरुआत 1917 की बोल्शेविक क्रांति से मानते हैं| 

    • क्योंकि इस क्रांति के बाद ब्रिटेन व अमेरिका ने लंबे समय तक सोवियत संघ के साथ संबंध स्थापित  नहीं किए|


    1. दूसरे मत के समर्थक शीत युद्ध की औपचारिक शुरुआत चर्चिल के फुलटन भाषण से मानते हैं|



    शीत युद्ध की उत्पत्ति के निम्न कारण है-

    1. ऐतिहासिक कारण-

    • कुछ पर्यवेक्षक 1917 की बोल्शेविक क्रांति को शीत युद्ध का कारण बताते हैं|

    • बोल्शेविक क्रांति से रूस में साम्यवाद का उदय होता है| जो अमेरिका व पश्चिमी देशों की पूंजीवादी विचारधारा की विरोधी थी|

    • क्योंकि साम्यवाद एक विश्वव्यापी आंदोलन था, जो पूरे विश्व में पूंजीवाद को समाप्त करके साम्यवाद की स्थापना करना चाहता है|

    • हालांकि नाजीवाद और फासीवाद के खतरे की वजह से सोवियत संघ व अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के साथ-साथ लड़ा था|

    • 1924 में ब्रिटेन ने तथा 1933 में अमेरिका ने साम्यवाद को मान्यता दे दी थी|


    1. द्वितीय मोर्चे का प्रश्न-

    • जब हिटलर के नेतृत्व में जर्मन सेना द्वितीय विश्व युद्ध में सोवियत संघ पर आक्रमण किया|

    • सोवियत नेता स्टालिन ने अमेरिका व पश्चिमी देशों द्वारा नाजी फौजो के विरुद्ध यूरोप में द्वितीय मोर्चा खोलने का आग्रह किया| 

    • लेकिन चर्चिल और रूजवेल्ट ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा इन्होंने द्वितीय मोर्चा खोलने में देरी की|


    1. चर्चिल का फुल्टन भाषण-

    • शीत युद्ध की औपचारिक शुरुआत 5 मार्च 1946 फुल्टन (अमेरिका) भाषण से मानी जाती है|

    • फुलटन भाषण (Fulton speech: The Iron curtain speech) में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने साम्यवाद के खतरे संबंधी विचारधारा का सार प्रस्तुत किया|

    • चर्चिल ने कहा था कि “मित्र राष्ट्रों की विजय से जो प्रकाश उत्पन्न हुआ था, उसमें साम्यवाद के विस्तार से अंधेरा छा गया| बाल्टिक से लेकर एंड्रियाटिक तक सारे यूरोप महाद्वीप में एक लोहे का पर्दा/ लोहे की दीवार (सोवियत संघ) पड़ गया है| स्वतंत्रता की दीपशिखा प्रज्वलित रखने तथा ईसाई सभ्यता की सुरक्षा के लिए तथा हम एक फासीवादी शक्ति के स्थान पर दूसरी फासीवादी शक्ति का समर्थन नहीं कर सकते हैं, इसलिए सोवियत संघ के विरुद्ध एंग्लो-अमेरिकन गठबंधन बनाया जाय|


    1. सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का उल्लंघन 

    • अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट, USSR प्रमुख स्टालिन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने याल्टा सम्मेलन (4-11 फरवरी) में कुछ समझौते किए जो निम्न है-


    1. पोलैंड में प्रतिनिधि शासन-

    • सोवियत संघ द्वारा संरक्षित लुबनिन शासन तथा पश्चिमी देशों द्वारा संरक्षित लंदन शासन की जगह स्वतंत्र व निष्पक्ष निर्वाचन पर आधारित प्रतिनिधि शासन स्थापित करने का निर्णय लिया|

    • लेकिन USSR अपने वादे से मुकर गया तथा वहां अपनी संरक्षित लुबनिन सरकार को लादने का प्रयास किया|


    1. पूर्वी यूरोप में लोकतंत्र की स्थापना-

    • हंगरी, बुल्गारिया, रूमानिया, चेकोस्लोवकिया मे लोकतंत्र की पुनर्स्थापना का निर्णय लिया गया|

    • लेकिन हंगरी, बुल्गारिया, रूमानिया, चेकोस्लोवकिया मे लोकतंत्र की पुनर्स्थापना में मित्र राष्ट्रों के साथ सहयोग से इंकार कर सोवियत संघ समर्थित सरकारे स्थापित कर दी|


    1. जापान के विरुद्ध युद्ध में भाग लेने की सोवियत संघ की हिचकिचाहट-

    • सोवियत संघ की जापान के विरुद्ध युद्ध में सम्मिलित होने की अनिच्छा और साइबेरिया में मित्र राष्ट्रों को हवाई अड्डे के प्रयोग करने की अनुमति देने में सोवियत संघ की हिचकिचाहट ने पश्चिमी राष्ट्रों में रूस के प्रति संदेह को बढ़ाया|


    1. सोवियत संघ द्वारा बाल्कन समझौते का अतिक्रमण  

    • अक्टूबर 1944 में बाल्कन समझौता हुआ-

    1. रूमानिया व बुल्गारिया में USSR का प्रभाव स्वीकार किया गया|

    2. यूनान में ब्रिटेन

    3. हंगरी व युगोस्लाविया में दोनों का 

    • लेकिन USSR ने समझौता की अवहेलना कर सर्वहारा की तानाशाही स्थापित कर दी, इससे पश्चिमी देश नाराज हो गए|


    1. ईरान से सोवियत सेना का न हटाया जाना-

    • USSR ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की सहायता से उत्तरी ईरान पर कब्जा कर लिया तथा वहां से अपनी सेना हटाने के लिए मना कर दिया|


    1. यूनान में सोवियत हस्तक्षेप-

    • 1944 में बाल्कन समझौता द्वारा यूनान पर अधिकार ब्रिटेन का स्वीकार किया गया था|

    • लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन की स्थिति खराब हो गयी तो USSR ने यूनान के साम्यवादियों को समर्थन व सहायता देना प्रारंभ कर दिया|

    • तो पश्चिम (अमेरिका) ने मार्शल योजना के तहत आर्थिक सहायता दी|


    1. सोवियत संघ द्वारा टर्की पर दबाव-

    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद USSR ने टर्की के कुछ हिस्सों में और बॉसफेरस में सैनिक अड्डा बनाने का दबाव डाला| टर्की व पश्चिमी शक्तियों ने इसका विरोध किया|


    1. अमेरिका द्वारा परमाणु बम की गोपनीयता

    • 1945 में अमेरिका द्वारा परमाणु बम का आविष्कार व प्रयोग

    • फ्रांस, ब्रिटेन को जानकारी दी गई, लेकिन USSR को नहीं|

    • USSR ने 1949 में परमाणु बम का आविष्कार कर लिया|

    • इस प्रकार आणविक हथियारों का आविष्कार, विकास, प्रयोग पर जो परमाण्विक रणनीति विकसित की जा रही थी, उसे न्यूक्लियर स्ट्रेटजी कहा|

    • न्यूक्लियर स्ट्रेटजी का प्रतिपादन हरमन कॉल ने किया था|

    • दोनों गुटों के पास परमाणु हथियार होने से इसके प्रयोग से सर्वनाश की संभावना बढ़ी, जिसे MAD (म्युचूअली अस्यूर्ड डिस्ट्रक्शन) (डोनाल्ड ब्रेनन द्वारा) कहा गया| 


    1. सोवियत संघ द्वारा अमेरिकी विरोधी प्रचार-

    • 1946 में केनेडियन रायल कमीशन की रिपोर्ट में कहा कि कनाडा का साम्यवादी दल सोवियत संघ की एक भुजा है|


    1. पश्चिम की सोवियत संघ विरोधी नीति व प्रचार-

    • 18 अगस्त 1945 को अमेरिका व ब्रिटेन के विदेश सचिवों ने संयुक्त बयान जारी कर कहा कि ‘हमें एक तानाशाही के रूप में दूसरे रूप की स्थापना को रोकना चाहिए|’


    1. विचारधारा व व्यक्तियों की टकराहट-

    • अमेरिका- उदारवादी लोकतंत्र, सैनिक- आर्थिक गुटों के निर्माण में दिलचस्पी

    • USSR- सर्वहारा जनतंत्र, नव साम्राज्यवाद का भय दिखाकर पूर्वी यूरोप व नव स्वतंत्र देशों को अपने खेमें में शामिल किया|

    • व्यक्तियों की टकराहट

    1. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन

    2. ब्रिटेन P.M चर्चिल

    3. USSR प्रमुख स्टालिन


    1. बर्लिन की नाकेबंदी-

    • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही सोवियत संघ का पूर्वी बर्लिन पर तथा अमेरिका तथा ब्रिटेन का पश्चिमी बर्लिन पर अधिकार हो गया था। युद्ध के बाद पश्चिमी ताकतों ने अपने क्षेत्राधीन बर्लिन प्रदेश में नई मुद्रा का प्रचलन शुरू करने का फैसला किया। इस फैसलें के विरुद्ध जून 1948 में बर्लिन की नाकेबन्दी सोवियत संघ ने कर दी। इसके परिणामस्वरूप सोवियत संघ व अमेरिका या ब्रिटेन के बीच हुए प्रोटोकोल का उल्लंघन हो गया। इसके लिए सोवियत संघ को पूर्ण रूप से दोषी माना गया। सोवियत संघ अपना दोष स्वीकार करने को तैयार नहीं था। इससे मामला सुरक्षा परिषद् में पहुंच गया और दोनों महाशक्तियों के मध्य शीतयुद्ध के बादल मंडराने लग गए।


    1. सोवियत संघ द्वारा बार-बार वीटो का प्रयोग- 

    • सोवियत संघ, संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व शांति और सुरक्षा स्थापित करने वाली एक विश्व संस्था न मानकर, अमेरिका के विदेश विभाग का अंग समझता था|

    • इसलिए वीटो पावर के बल पर उसने अमेरिका और पश्चिम देशों के लगभग प्रत्येक प्रस्ताव को निरस्त करने की नीति अपना ली थी|


    1. लैंड लीज समझौते का समापन-

    • USSR को लैंड लीज समझौते के द्वारा जो आर्थिक सहायता दी जा रही थी, उसे USA ने समाप्त कर दिया|


    1. शक्ति संघर्ष/ वर्चस्व की होड़-

    • शक्तिशाली राष्ट्रों में संघर्ष होना अनिवार्य

    • USSR व USA दोनों विश्व प्रभुत्व के लिए आपस में संघर्षरत होना अनिवार्य|


    1. हित संघर्ष-

    • शीत युद्ध राष्ट्रीय हितों का संघर्ष था|


    1. पारस्परिक अविश्वास-


    1. शक्ति संतुलन सिद्धांत-

    • हेस मोर्गेंथाऊ “शीत युद्ध पुरानी शक्ति संतुलन की राजनीति का नवीनीकरण है|”


    1. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की प्रभावहीनता

    • यद्यपि UNO की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हो गयी, लेकिन यह शीत युद्ध को नहीं रोक पाया|




    शीत युद्ध का विकास-

    • शीत युद्ध के विकास को अंत तक हम 5 चरणों में विभाजित कर सकते हैं|

    1. प्रथम चरण (1946 से 1953)- शीत युद्ध का विकास चरण

    2. द्वितीय चरण (1953 से 63)- विस्तार चरण

    3. तृतीय चरण (1963 से 70)- दितान्त की संभावना

    4. चतुर्थ चरण (1970 से 1980)- दितान्त व तनाव शैथिल्य

    5. पंचम चरण (1980 से 1989)- नया शीत युद्ध



    1. शीत युद्ध का प्रथम चरण (1946 से 1953)-

    • इस चरण में अर्थात 1946 से 1953 (स्टालिन की मृत्यु) तक USSR व USA दोनों ने यूरोप पर  अपना-अपना प्रभाव स्थापित करने के प्रयत्न किए|

    • यूरोप विशेष रूप से जर्मनी शीत युद्ध का प्रमुख केंद्र बन गया|


    • इस चरण की प्रमुख घटनाएं निम्न है-

    1. कंटेनमेंट थ्योरी या परिरोधन सिद्धांत-

    • एक शत्रु के विस्तार को रोकने के लिए भू-राजनीतिक रणनीति है| 

    • इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमेरिकी राजनयिक जॉर्ज F कैनन ने किया|

    • इस सिद्धांत का प्रयोग अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के साम्यवादी प्रभाव को कम करने के लिए विदेश नीति के रूप में किया गया|

    1. ट्रूमैन सिद्धांत (12 मार्च 1947)

    • साम्यवादी प्रचार रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन ने यह सिद्धांत दिया|

    • ट्रूमैन ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे व्यक्तियों का समर्थन किया|

    • ट्रूमैन ने यूनान, टर्की व ईरान को साम्यवादी खेमे में जाने से रोकने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की|

    • आर्थिक सहायता के माध्यम से साम्यवाद के प्रसार को सीमित करने की अमेरिकी नीति को ट्रूमैन सिद्धांत कहा जाता है|

    • USSR ने इसे साम्राज्यवाद का प्रतीक कहा|

    • ट्रूमैन “दुनिया में जहां कहीं भी शांति भंग होगी, वहां आक्रमण होगा और इसे अमेरिका का सुरक्षा संकट माना जाएगा तथा अमेरिका इसे रोकने का पूरा प्रयास करेगा|”

     

    1. मार्शल योजना (23 अप्रैल 1947)-

    • पश्चिमी यूरोपीय देशों में साम्यवादी प्रभाव को रोकने के लिए तथा समाप्त करने के लिए अमेरिकी विदेश सचिव मार्शल ने 23 अप्रैल 1947 को राष्ट्रपति ट्रूमैन के सामने यह योजना पेश की|

    • इस योजना के द्वारा पश्चिमी यूरोपीय देशों में आर्थिक पुनर्निर्माण हेतु सहायता दी गई|

    • इसे डालर कूटनीति भी कहते हैं|


    1. नाटो की स्थापना-

    • साम्यवाद के प्रभाव को रोकने के लिए वाशिंगटन में USA, कनाडा, पश्चिमी यूरोप के 10 देशों ने 20 वर्षीय ब्रूसेल्स संधि पर हस्ताक्षर कर 4 अप्रैल 1949 को नाटो की स्थापना की|

    • नाटो का पूरा नाम (North Atlantic Treaty Organization) 

    • संस्थापक सदस्य देश- 12

    • वर्तमान देश- 30

    • नाटो का मुख्यालय- ब्रूसेल्स (बेल्जियम की राजधानी)

    • प्रथम महासचिव- हेस्टिंग्स इस्माय (Hastings Ismay)

    • वर्तमान महासचिव- जेम्स स्टोल्टेनबर्ग


    1. बर्लिन की नाकेबंदी-

    • USSR ने 1948 में नाकेबंदी कर शीत युद्ध को चरम पर पहुंचा दिया|


    1. जर्मनी का विभाजन-

    • 1949 में जर्मनी का विभाजन

    • 21 सितंबर 1949 को पश्चिमी जर्मनी या संघीय जर्मन गणराज्य का उदय ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका के अधिकार वाले क्षेत्र के एकीकरण से हुआ| 

    • 7 अक्टूबर 1949 को जर्मनी के रूस के अधिकार वाले क्षेत्र में जर्मन प्रजातंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना हुई, जिसे पूर्वी जर्मनी कहते हैं| 

     

    1. साम्यवादी चीन का उद्भव-

    • 1 अक्टूबर 1949 को चीन में माओ के साम्यवादी दल की सत्ता की स्थापना हुई|

    • साम्यवादी चीन की सुरक्षा परिषद की सदस्यता के प्रश्न पर USSR व USA में भयंकर कटुता पैदा हुई|


    1. कोरिया संकट 1950-

    • कोरिया का विभाजन 38 डिग्री अक्षांश पर किया गया था|

    • उत्तरी कोरिया ने (USSR समर्थित) ने दक्षिण कोरिया (USA समर्थित) पर आक्रमण कर दिया|

    • इसमें शीत युद्ध का केंद्र एशिया हो गया|

    • यह युद्ध 4 वर्ष अर्थात 1953 तक चला|

    • UNO ने उत्तरी कोरिया को आक्रमणकारी घोषित कर दिया|


    1. जापान के साथ शांति संधि की समस्या-

    • जापान के साथ शांति संधि करने के लिए अमेरिका ने सितंबर 1951 में सान  फ्रांसिस्को सम्मेलन बुलाने का निर्णय किया, जिसका USSR ने विरोध किया|

    • इसके बावजूद भी USA ने जापान के साथ प्रतिरक्षा संधि की तथा USA को जापान में सेनाएं रखने का अधिकार मिल गया|



    1. शीत युद्ध का दूसरा चरण (1953 से 1963)-

    खुश्चेव व आइजनहावर युग में शीत युद्ध


    • 1952 में अमेरिका में आइजनहावर राष्ट्रपति बने| उनके राज्यसचिव सर जॉन फास्टर डलास ने साम्राज्य विस्तार व नियंत्रण करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिशोध व कगार की नीति अपनायी|

    • USSR में स्टालिन की मृत्यु के बाद खुश्चेव USSR के प्रमुख बने| 

    • तथा दोनों गुटों के मध्य शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सिद्धांत नारा दिया|


    इस चरण की प्रमुख घटनाएं निम्न है-


    1. सोवियत संघ द्वारा आणविक परीक्षण-

    • 1953 में USSR ने प्रथम आणविक परीक्षण किया|


    1. SEATO की स्थापना-

    • स्थापना- 8 सितंबर 1954 (अमेरिका द्वारा)

    • दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में नाटो जैसा संगठन

    • पूरा नाम- साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन|

    • संस्थापक सदस्य- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, थाईलैंड, फिलीपींस, पाकिस्तान,

    • उद्देश्य -दक्षिणी पूर्वी एशिया में कम्युनिस्ट चीन के साम्यवादी प्रसार का विरोध करना|


    1. वारसा पैक्ट (1955)-

    • साम्यवादी सैन्य संगठन

    • स्थापना- 14 मई 1955 वारसा सम्मेलन के दौरान

    • उद्देश्य- साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद के आक्रमण को रोकना|


    1. CENTO (सेंटो) 1955-

    • बगदाद समझौते के तहत स्थापना|

    • नाटो का पश्चिमी एशिया संगठन

    • पूरा नाम- सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन

    • उद्देश्य- पश्चिमी एशिया में साम्यवाद का प्रसार रोकने हेतु|

    • सदस्य- ब्रिटेन, ईरान, तुर्की और पाकिस्तान


    1. हिंद चीन में गृह युद्ध-

    • सन 1954 में हो चिन मिन की सेनाओं तथा फ्रांस की सेनाओं के मध्य युद्ध हो गया|

    •  हो चीन मीन का साथ सोवियत संघ तथा फ्रांस का साथ USA ने दिया|


    1. हंगरी की समस्या (1956)-

    • 1956 में हंगरी में USSR द्वारा हस्तक्षेप किया गया, जिसका अमेरिका ने विरोध किया|


    1. स्वेज समस्या-

    • 1956 में मिश्र द्वारा स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण करने पर ब्रिटेन, फ्रांस, इजराइल ने मिश्र पर आक्रमण किया

    • USSR ने मिस्र का साथ दिया

    • .UNO महासभा में निंदा प्रस्ताव के बाद फ्रांस, ब्रिटेन की सेनाएं हटी|


    1. आइजनहावर का सिद्धांत (1957)-

    • जून 1957 में इस सिद्धांत की घोषणा

    • अमेरिकी कांग्रेस ने राष्ट्रपति को अधिकार दिया कि वह साम्यवादी आक्रमण के खतरे को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका सेना का प्रयोग कर सकता है|

    • यह अमेरिकी विदेश नीति के उग्रता का प्रतीक था|


    1. खुश्चेव की अमेरिका यात्रा- शांति की नई आशा (1959)-

    • 15 सितंबर- 28 सितंबर 1959 में USSR प्रधानमंत्री खुश्चेव ने अमेरिका की यात्रा की, जिससे दोनों देशों के मध्य शांति की नई आशा जागी|

    • खुश्चेव ने अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर को बातचीत करने के लिए USSR आने का   निमंत्रण दिया, जिसे कैंप डेविड भावना कहते हैं|


    1. U-2 विमानकांड एवं शीत युद्ध का नवीनीकरण-

    • 1 मई 1960 को अमेरिकी जासूसी विमान U-2 सोवियत सीमा में जासूसी करते पकड़ा गया|


    1. पेरिस शिखर सम्मेलन की असफलता और शीत युद्ध-

    • 16 मई 1960 महाशक्तियों में तनाव कम करने के लिए पेरिस शिखर सम्मेलन हुआ|

    • परंतु खुश्चेव द्वाराको  U-2 विमान कांड मामला उठाने के कारण यह सम्मेलन असफल रहा|


    1. कैनेडी का राष्ट्रपति निर्वाचित होना- 

    • 8 नवंबर 1960 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी बना| 

    • कैनेडी ने न्याय पूर्ण और स्थायी शांति की स्थापना तथा साम्यवाद के प्रति सहयोग की नीति अपनाने का नारा दिया|


    1. क्यूबा मिसाइल संकट (1962)

    • यह अमेरिका के निकट एक टापू  है|

    • जहां 1958 में डॉक्टर फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई|

    • USSR नेता निकिता खुश्चेव ने क्यूबा को सैनिक अड्डा बनाने के लिए 1962 में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी|

    • अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज एफ केनेडी के दबाव के फलस्वरुप खुश्चेव क्यूबा से मिसाइल हटाने के लिए सहमत हो गया|

    • केनेडी ने इस निर्णय को ‘एक महान राजनेता का निर्णय’ कहा|

    • क्यूबा मिसाइल संकट शीत युद्ध का चरम बिंदु था| 



    1. शीत युद्ध का तीसरा चरण (1963 से 1970)-

    दिताँ की संभावना 


    • 1962 के बाद शीत युद्ध में शिथिलता आने लगी| 

    • एडवर्ड क्रेकशा के शब्दों में ‘उषण स्थलों का शीतलीकरण’


    इस चरण की प्रमुख घटनाएं निम्न है-


    1. आंशिक परमाणु परीक्षण संधि- (PT BT या LT BT)

    • MPTBT- Moscow Partial Test  Ban Treaty)

    • 22 July 1963 को ब्रिटेन, USA व USSR के मध्य

    • उद्देश्य- वायुमंडल, बाह्य अंतरिक्ष और समुद्र में परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने वाली संधि|

    • अक्टूबर 1963 में प्रभावी हुई|

    • 26 जुलाई 1963 को अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि “यह संधि सतयुग लाने वाली नहीं है, यह संघर्षों को कम नहीं करेगी, किंतु यह एक महत्वपूर्ण कदम है- शांति की ओर, विवेक की दिशा में तथा युद्ध से विपरीत दिशा में|”


    1. हॉट लाइन समझौता (1963)

    • वाशिंगटन  (USA की राजधानी) कैंमलीन (USSR की राजधानी) के मध्य प्रत्यक्ष व नियमित संचार के लिए हॉटलाइन समझौता किया गया| 


    1. अमेरिका तथा सोवियत संघ के नेतृत्व में परिवर्तन-

    • नवंबर 1963 में अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी की हत्या हो गई तथा L.B जॉनसन नये राष्ट्रपति बने|

    • अक्टूबर 1964 सोवियत संघ में खुश्चेव पदच्युत कर दिए गए तथा उनके स्थान  ब्रेजनेव तथा कोसिगिन दो शक्तिशाली नेता सत्ता में आये|


    1. भारत-पाक युद्ध व शीत युद्ध-

    • 1965 की भारत-पाक युद्ध में USSR की मध्यस्थता अमेरिका को बहुत खली|


    1. परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1968- 

    • परमाणु प्रौद्योगिकी पर नियंत्रण के लिए यह संधि की गई|

    • 1970 से यह संधि प्रभावी हुई|

    • उद्देश्य- परमाणु अस्त्र संपन्न राष्ट्र परमाणु विहिन राष्ट्रों को परमाणु अस्त्र प्राप्त करने में किसी भी प्रकार की सहायता नहीं करेंगे| 

     

    • Note- 1995 में इस संधि को अनियतकाल के लिए बढ़ा दिया गया | 



    1. शीत युद्ध का चतुर्थ चरण (1970 से 80)


    दितान्त या तनाव शैथिल्य का युग 

    शीत युद्ध के ह्रास का युग 


    • 1970-80 के बीच USA व USSR के मध्य दितान्त अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषता बनी|

    • दितान्त (Detente) एक फ्रांसिसी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ अंतर्राष्ट्रीय तनाव में कमी है|

    • अर्थात 1970- 80 के मध्य USA व USSR के मध्य तनाव में कमी आती है| 


    इस चरण की प्रमुख घटनाएं निम्न है-


    1. मास्को-बॉन समझौता (1970)- 

    • 12 अगस्त 1970 को कोसिगिन (सोवियत प्रधानमंत्री) तथा विलिब्रांड (पश्चिम जर्मनी) के मध्य एक समझौता हुआ|

    • दोनों ने जर्मनी के संबंध में यथापूर्व स्थिति को स्वीकार किया गया|

    • इससे पश्चिमी जर्मनी और पूर्वी जर्मनी के पुनर्मिलाप का रास्ता साफ हो गया|


    1. बर्लिन समझौता (1971)-

    • 3 सितंबर 1971 को अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस ने बर्लिन पर चार शक्ति समझौता किया|

    • इसके द्वारा जर्मनी में यथापूर्व स्थिति को स्वीकार किया गया|

    • तथा पश्चिमी बर्लिन के लोगों को पूर्वी बर्लिन जाने की आज्ञा दे दी गई|


    1. कोरिया समझौता (1972)-

    • 4 जुलाई 1972 को यह समझौता हुआ|

    • उत्तरी कोरिया व दक्षिण कोरिया में सामान्य संबंध बनाने के लिए कार्य करना स्वीकार किया गया|


    1. पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी समझौता (1972)-

    • 8 नवंबर 1972 को हुआ|

    • दोनों ने एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार किया तथा मान्यता दी|

    • समस्या समाधान के लिए शक्ति प्रयोग नहीं करेंगे|

    • 1973 में महासभा की बैठक में दोनों ने प्रभुतासंपन्न राष्ट्रों के रूप में भाग लिया|


    1. हेलन्स्की (फिनलैंड की राजधानी) सम्मेलन 1973 तथा हेलन्स्की समझौता 1975-

    • यूरोप की सुरक्षा के संबंध में हेलन्स्की सम्मेलन 3 जुलाई से 5 जुलाई 1973 को हुआ|

    • साम्यवादी और गैर साम्यवादी राष्ट्रों के बीच सहमति बनी कि कोई भी राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित के ऐच्छिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सैनिक शक्ति का सहारा नहीं लेगा|

    • 1975 यूरोप के राज्यों तथा अमेरिका के मध्य हेलस्की में एक समझौता किया गया,  जिसमें परस्पर सहयोग, एक दूसरे की प्रभुसत्ता को स्वीकार किया गया|


    1. कंबोडिया युद्ध की समाप्ति (1975)-

    • सन 1975 में कंबोडिया में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद शीत युद्ध एक अन्य केंद्र (हिंद- चीन) को समाप्त कर दिया|


    1. वियतनाम युद्ध की समाप्ति (1975)-

    • 30 अप्रैल 1975 को वियतनाम युद्ध की समाप्ति|

    • वियतनाम का एकीकरण

    • शीत युद्ध के ह्रास में एक ओर पहल|


    1. 1977 ईस्वी में तीसरा यूरोपीय सुरक्षा सम्मेलन-

    • जून 1977 में बेलग्रेड में हुआ| 

    • हेलन्स्की समझौता की भावना को सुदृढ़ करने के प्रत्यन किए गए|


    1. इजराइल व मिस्र के बीच कैंप डेविड समझौता

    • 26 मार्च 1979 

    • इसका उद्देश्य मध्य पूर्व में संघर्ष कम करना था|

      

    1. SALT- 1

    • स्ट्रेटजिक आर्म्स लिमिटेशन टास्क-1 

    • सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता-1

    • 26 मई 1972 को USSR नेता लियोनेड़ ब्रेझनेव और अमेरिका राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने मास्को में निम्न समझौते पर दस्तखत किए- 

    1. परमाणु मिसाइल परिसीमन संधि (ABM ट्रीटी)

    2. सामरिक रूप से घातक हथियार के परिसीमन के बारे में अंतरिम समझौता|


    1. SALT -2

    • स्ट्रेटेजिक आर्म्स लिमिटेशन टास्क- 2

    • अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और सोवियत संघ के नेता लियोनेड़ ब्रेझनेव ने वियना में 18 जून 1972 को सामरिक रूप से घातक हथियारों के परिसीमन से संबंधित संधि पर हस्ताक्षर किए|


                                   Note- ये दोनों 3 अक्टूबर 1972 में प्रभावी हुयी|



    1. पंचम चरण (1980 से 1989)-

    (नया शीत युद्ध) 

    • नव शीत युद्ध शब्द गिडिंग्स ने दिया| 


    इस चरण की प्रमुख घटनाएं निम्न है-


    1. अफगानिस्तान में सोवियत संघ का हस्तक्षेप-

    • 27 दिसंबर 1979 को USSR द्वारा अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करके वहां अमीन सरकार अपदस्थ कर नई सरकार की स्थापना की गई|

    • इससे दोनों महा शक्तियों में तनाव में वृद्धि हुई और नव शीत युद्ध की शुरुआत हुई|


    1. USA की विदेश नीति में परिवर्तन-


    कार्टर सिद्धांत-

    • तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर

    • अमेरिकी विदेश नीति में पहली बार सोवियत सैनिकों का सामना करने के लिए ठोस आक्रमण रणनीति का निर्माण| अमेरिका ने चीन, पाकिस्तान, सऊदी अरब, मिस्र, ब्रिटेन जैसे देशों के साथ मिलकर USSR के सैनिकों के विरुद्ध मुजाहिद्दीनों को समर्थन दिया|

    • बाहरी आक्रमण पर यूएसए सैनिक व सीमित परमाणु आक्रमण कर सकता है|

    • इसे सीमित परमाणु आक्रमण सिद्धांत भी कहा जाता है|


    • कार्टर के पश्चात USA के नए राष्ट्रपति रीगन ने नई विदेश नीति के द्वारा USA को प्रथम महाशक्ति की स्थिति पुन: लाने का फैसला किया|

    • रीगन की रणनीति विशेषताएं निम्न है- 

    1. STAR WAR योजना

    2. यूरोप में प्रक्षेपास्त्रो की तैनाती

    3. पूर्वी यूरोपीय राज्यों में मानवाधिकारों को बढ़ावा देना



    अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीतयुद्ध का प्रभाव-

    • निम्न प्रभाव पड़े-

    1. विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया- एक यूएसए तथा दूसरा यूएसएसआर

    2. आणविक युद्ध की संभावना का भय

    3. सैनिक संधियों एवं सैनिक गठबंधनो का बाहुल्य

    4. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में गहरे तनाव, आतंक, अविश्वास, वैमनस्य, प्रतिस्पर्धा की स्थिति उत्पन्न हुई

    5. संयुक्त राष्ट्र संघ को पंगु करना- संयुक्त राष्ट्र संघ का मंच महाशक्तियों की राजनीति का अखाड़ा बन गया और इसे शीत युद्ध के वातावरण में राजनीतिक प्रचार का साधन बना दिया गया

    6. मानवीय कल्याण के कार्यक्रमों जैसे बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, राजनीतिक अस्थिरता आदि अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं को उचित समाधान नहीं हो सका|


    •  शीत युद्ध के विश्व राजनीति पर कुछ सकारात्मक प्रभाव भी पड़े, जो निम्न है-

    1. शीत युद्ध के कारण शांतिपूर्ण सह अस्तित्व को प्रोत्साहन मिला|

    2. शीत युद्ध के कारण गुटनिरपेक्ष आंदोलन को प्रोत्साहन मिला और तीसरी दुनिया के देशों को उपनिवेशवाद से मुक्ति मिली|

    3. शीत युद्ध के कारण आणविक शक्ति का तीव्र गति से विकास हुआ|

    4. संयुक्त राष्ट्र संघ में निर्णय शक्ति सुरक्षा परिषद के बजाय महासभा को हस्तांतरित की गई|

    5. शीत युद्ध से शक्ति संतुलन की स्थापना हुई|

    6. राष्ट्रों की विदेश नीति में यथार्थवाद का आविर्भाव हुआ|



    शीत युद्ध के विशिष्ट साधन-

    1. शीत युद्ध का प्रमुख साधन प्रचार था| यह वाक युद्ध था|

    2. शीत युद्ध का दूसरा प्रमुख साधन शक्ति प्रदर्शन (सैनिक और तकनीकी शक्ति) था|

    3. शीत युद्ध का अन्य साधन जासूसी था|

    4. कमजोर और अविकसित राष्ट्रों को आर्थिक और सैन्य सहायता देना भी एक साधन था|

    5. शीत युद्ध का एक साधन कूटनीति था| 

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