Ad Code

U K में दबाव समूह /Pressure groups in the UK || BY Nirban PK Sir || In Hindi

U K में दबाव समूह

    • ब्रिटेन में दबाव तथा हित समूहों का विकास 19 वीं शताब्दी के सुधार आन्दोलनों के परिणामस्वरूप हुआ। 

    • चार्टिस्ट आन्दोलन तथा अनाज कानून विरोधी संघ इस समय के दो सशक्त एवं क्रियाशील समूह थे। 

    • 20 वी शताब्दी में दबाव गुटों की गतिविधियां बढ़ने का कारण है- राज्य का लोककल्याणकारी स्वरूप एवं शासन के अधिकार-क्षेत्र में वृद्धि होना। 

    • ए.एच. बर्च के अनुसार “ब्रिटेन में अनगिनत दबाव तथा हित समूह हैं। ये संख्या में इतने अधिक हैं, कि आज तक किसी ने इनकी गणना नहीं की है।”


    • ब्रिटिश राजनीतिक अवस्था में पाये जाने वाले इन गुटों को मोटे रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है-

    1. पहले प्रकार के गुट वे हैं, जो न्यस्त या अनुभागीय हितों का प्रतिनिधित्व करते (The representing sectional interests) हैं| 

    2. दूसरे प्रकार के गुट वे हैं, जो सार्वजनिक हितों की अभिवृद्धि (Those which are promotional in character) का प्रयत्न कहते हैं। 


    • इन दोनों में वही अन्तर है जो दबाव गुट तथा हित समूहों में पाया जाता है। प्रथम को 'दबाव गुट' (Pressure Groups) तथा द्वितीय को हम हित समूह' (Interest Groups) कहते हैं। 

    • प्रो.डी वी बर्नी के अनुसार “हित समूह 'सार्वजनिक हितों' (Public interests) का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि दबाव गुट काफी सीमा तक 'निजी हितों' की रक्षा करते हैं।”



    ब्रिटिश राजनीति में न्यस्त हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले दबाव गुट-

    1. व्यापारिक समूह- ब्रिटिश राजनीति में प्रभावशाली व्यापारिक समूह हैं- निदेशक संस्थान (Institute of Directors), ब्रिटिश उद्योगमण्डल (Confederation of British Industries), ब्रिटिश व्यापार मण्डल (British Chamber of Commerce), ब्रिटिश निर्माताओं का संघ (National Association of British Manufacturers), आदि। 


    1. श्रमिक संगठन- ब्रिटेन में लगभग 600 रजिस्टर्ड श्रमिक संगठन है। इन संगठनों मे प्रमुख हैं- परिवहन और कामगार संघ (Transport and General Workers Union), रेल कर्मचारी संघ (National Union of Railway Workers), खान कर्मचारी संघ (National Union of Mineworkers), बिजली व्यापार संघ (Electrical Trade Union), आदि। श्रमिक संगठन राजनीतिक दृष्टि से बड़े सक्रिय हैं। आधे से ज्यादा श्रमिक संगठन ट्रेड यूनियन कांग्रेस (Trade Union Congress) से सम्बद्ध हैं, जिसकी सदस्य संख्या एक करोड़ के लगभग है। 


    1. पेशेवर संगठन- ब्रिटेन में डॉक्टरों, प्राध्यापकों तथा सरकारी कर्मचारियों की भी अपनी यूनियनें हैं। इन पेशेवर संगठनों में प्रमुख हैं- ब्रिटिश चिकित्सा संघ (British Medical Association), सरकारी कर्मचारियों का संघ (Society of Civil Servants), राष्ट्रीय शिक्षक संघ (National Union of Teachers) तथा राष्ट्रीय व स्थानीय सरकारी पदाधिकारी संघ (National and Local Government Officers Association) आदि। 


    ब्रिटिश राजनीति में सार्वजनिक हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले हित समूह- 

    • सार्वजनिक हितों की अभिवृद्धि करने वाले गुटों को 'उपकारी संघ' (Promotional Groups) कहते हैं। 

    • ये वे गुट है, जिनके सदस्य किसी विशिष्ट (Specific) वर्ग या व्यवसाय से सम्बन्ध नहीं रखते, बल्कि विभिन्न वर्गों से सम्बन्धित होते हैं। 

    • वे कुछ विशिष्ट 'आदर्शों' या मूल्यों' (Values) या हितों में निष्ठा रखते हैं और उनकी पूर्ति के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देते है। 

    • इन संघों में प्रमुख हैं- राज्य शिक्षा प्रसार संघ (Council for Advancement of State Education), ग्राम्य वातावरण संरक्षण संघ (Council for the Preservation of Rural England), ब्रिटिश मानवतावादी संघ (British Humanist Association), परिवार नियोजन संघ (Family Planning Association), क्रूर खेलों का विरोध करने वाला संघ (League Against Cruel Sports), दण्ड विधि में सुधार की मांग करने वाली होवार्ड लीग (Howard League for Penal Reform) 



    ब्रिटिश राजनीति में दबाव गुटों की भूमिका-

    • ब्रिटिश दबाव गुटों की प्रमुख विशेषता यह है, कि वे नीति-निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं, न कि नीति का क्रियान्वयन करने वाले उपकरणों को। 

    • ब्रिटिश राजनीतिक व्यवस्था में यह माना जाता है कि नीति' का निर्माण 'सरकार' अर्थात् 'मन्त्रिमण्डल' करता है, अत: यह आवश्यक है कि दबाव मन्त्रियों पर डाला जाये। 

    • सर आइवर जेनिंग्स ने ठीक ही कहा है कि "पोर्क बैरल, 10 डाउनिंग स्ट्रीट तक सीमित हो गया है।" 



    ब्रिटिश राजनीति में दबाव समूहों की विशेषताएं-

    • निम्न विशेषताएं है

    1. ब्रिटिश राजनीतिक प्रक्रिया में दबाव गुटों की हिस्सेदारी- ऐसा माना जाता है, कि सरकार का कार्य केवल निर्णयों में सामंजस्य स्थापित करना होता है और निर्णय दबाव गुटों द्वारा लिये जाते है। 


    1. ब्रिटिश कानून दबाव समूहों के निर्माण का प्रोत्साहित करता है- ब्रिटिश संविधान और कानून इतना लचीला है, कि दबाव गुटों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाता है। 


    1. सरकार और दबाव गुटों में विचार-विमर्श की पुरानी परम्परा 


    1. ब्रिटिश दबाव गुट प्रशासन से सम्बद्ध माने जाते हैं- ब्रिटेन में दबाव गुटों का वास्तविक प्रशासन से भी घनिष्ट सम्बन्ध रहता है। उदाहरण के लिए 'लॉ सोसायटी' जरूरतमन्द लोगों को कानूनी सहायता प्रदान करती है। ऐसे संगठनों को ब्रिटिश सरकार केवल मान्यता ही नहीं देती, बल्कि आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है। 


    1. ब्रिटिश राजनीति में हित समूहों की अपेक्षा दबाव गुट अधिक प्रभावशाली- सभी दबाव गुटों का ब्रिटिश राजनीति में समान प्रभाव नहीं है। सार्वजनिक हितों से सम्बन्धित समूहों की अपेक्षा, कुछ विशेष हितों से सम्बन्धित दबाव गुटों का अधिक प्रभाव होता है।


    1. राजनीतिक सम्बद्धता- ब्रिटेन में दबाव गुट किसी-न-किसी राजनीतिक दल के साथ सम्बन्धित रहते हैं। उदाहरण के लिए, उद्योग से सम्बन्धित संघ अनुदार दल से सम्बन्धित रहे हैं तो ट्रेड यूनियन कांग्रेस मजदूर दल के साथ हैं। ट्रेड यूनियनें चुनावों में लेबर पार्टी को धन भी देती हैं।


    1. सरकार की शक्ति पर अंकुश- ब्रिटिश राजनीति में दबाव गुट सरकार की शक्ति पर नियन्त्रण रखते हैं। 

    Close Menu