संप्रभुता का बहुलवादी सिद्धांत
बीसवीं सदी में संप्रभुता के एकलवादी दृष्टिकोण के विरोध स्वरूप संप्रभुता के बहुलवादी सिद्धांत का विकास हुआ|
बहुलवादी दृष्टिकोण के अनुसार प्रभुसत्ता सीमित, विभाजित, मर्यादित है| राज्य एकलवादी दृष्टिकोण की तरह सर्वोच्च न होकर अन्य सामाजिक संस्थाओं के समान है| परंतु यह बहुलवादी दृष्टिकोण राज्य को समाज की आवश्यक संस्था मानते हैं|
जर्मन समाजशास्त्री गीयर्क तथा ब्रिटिश विद्वान मेटलैंड को आधुनिक राजनीतिक बहुलतावाद का जनक कहा जाता है|
जर्मन समाजशास्त्री गीयर्क ने अपनी कृति Political Theory of Middle Age 1900 में लिखा है कि “मध्य युग में राजा निरंकुश नहीं थे, क्योंकि सारा काम व्यवसायियों व कामगारों के संघ करते थे| मध्य युग में राज्य सर्वोच्च नहीं था, क्योंकि विभिन्न प्रकार की सत्ताएं आपस में संघर्षरत व मौजूद थी| जैसे- सम्राट, रोमन चर्च, सामंत, गिल्ड आदि| इसी का समर्थन ब्रिटिश विचारक मेटलैंड ने भी किया|
संप्रभुता के बहुलवादी सिद्धांत के प्रमुख समर्थक- हेरल्ड जे लास्की, बार्कर, लिंडसे, क्रैब, डिग्वी, मैकाइवर, मिस फालेट, दुर्खीम, J.D.H कौल, विलियम जेम्स आदि|
बहुलवादी सत्ता के केंद्रीकरण के विरुद्ध है तथा राज्य व समाज को अलग मानते हैं| राज्य अन्य सामाजिक संस्थाओं की तरह समाज की एक संस्था है|
संप्रभुता के बहुलवादी सिद्धांत के समर्थकों के विचार-
A.D लिंडसे “यदि हम वस्तुस्थिति को देखें तो यह सर्वथा स्पष्ट हो जाएगा कि प्रभुसत्तासंपन्न राज्य का सिद्धांत धाराशाही हो चुका है|”
अर्नेस्ट बार्कर “प्रभुसत्तासंपन्न राज्य की मान्यता जितनी निर्जीव और निरर्थक हो गई है, उतनी और कोई राजनीतिक संकल्पना न हुई होगी|”
हयुगो क्रैब “प्रभुसत्ता की धारणा को राजनीतिक सिद्धांत के विचार क्षेत्र से निकाल देना चाहिए|”
फिगिग्स “प्रभुसत्ता का विचार एक पूज्य अंधविश्वास के समान है और राजाओं के दैवी अधिकारों के समान समाप्त हो जाएगा|”
ड्यूगिट “प्रभुसत्ता मर चुकी है अथवा मरने के निकट है|”
Note- बहुलवाद के समर्थक राज्य-प्रभुसत्ता सिद्धांत के आलोचक है|
गीयर्क व मेटलैंड के विचार-
उनके अनुसार समूहों का वास्तविक या यथार्थ व्यक्तित्व होता है| समूह या निगम अपना अलग विधिक व्यक्तित्व रखते हैं| उनकी चेतना व इच्छाएं उनके सदस्यों की चेतना व इच्छाओं से पृथक होती है|
लियो डिग्वी के विचार-
ये फ्रांसीसी विचारक है|
इन्होने राज्य के व्यक्तित्व और राज्य की प्रभुसत्ता दोनों को अस्वीकार किया है| इनके मत में राज्य का व्यक्तित्व कोरी कल्पना है, व्यक्तित्व केवल मनुष्य का होता है|
इसके मत में राज्य प्रभुतासंपन्न नहीं है, वह कानून की सीमाओं में बंधा है| कानून की उत्पत्ति राज्य से नहीं होती, बल्कि कानून राज्य से पहले विद्यमान था| कानून का स्थान राज्य से ऊंचा है| कानून का आधार सामाजिक सुदृढ़ता है|
डिग्वी के मत में लोग कानून का पालन इसलिए करते हैं, क्योंकि कानून सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है|
डिग्वी के मत में राज्य का बुनियादी लक्षण जनसेवा या जनकल्याण है, प्रभुसत्ता नहीं|
डिग्वी के चिंतन में राज्य के कर्तव्यो को प्रमुखता दी गई है, अधिकारों को नहीं| इसके मत राज्य का कार्य पुलिस और प्रतिरक्षा तक सीमित है|
इस सिद्धांत को व्यवहार में लाने के लिए डिग्वी ने क्षेत्रीय विकेंद्रीकरण तथा प्रशासनिक और व्यवसायिक संघ व्यवस्था का सुझाव दिया|
हयूगो क्रैब के विचार-
क्रैब के मत राज्य को अस्तित्व में लाने का श्रेय कानून को है| प्रभुसत्ता केवल कानून में निहित है| राज्य एक ऐसा समुदाय है, जो कानूनी मूल्यों की स्थापना करके सार्वजनिक सेवाओं की व्यवस्था के लिए उपयुक्त साधन जुटाता है|
अर्नेस्ट बार्कर के विचार-
बार्कर का विचार है कि समूहों को अस्तित्व में लाने का श्रेय राज्य का नहीं है, बल्कि वे पहले से विद्यमान होते हैं|
प्रत्येक समूह एक न्यायिक या विधिक व्यक्तित्व से संपन्न होता है, उसके सारे सदस्य उसे अपना मिला-झूला उद्यम समझते हैं|
लॉस्की के विचार-
हेराल्ड जे लॉस्की अंग्रेज दार्शनिक है, जिन्होंने एकलवादी सिद्धांत की आलोचना की है तथा प्रभुसत्ता का बहुलवादी सिद्धांत प्रस्तुत किया है|
लॉस्की “राज्य सामाजिक वास्तुकला का प्रथम सिद्धांत है|”
लॉस्की के अनुसार “समाज जटिल संरचना है और जो मुलत बहुलवादी है| यह न केवल समूहों की दृष्टि से बहुलवादी है, अपितु व्यक्तियों की इसमें अंतक्रिया भी बहुलवादी है|”
लॉस्की “व्यक्ति एक जगत में नहीं बल्कि अनेक जगतो में रहता है|”
लॉस्की “राजनीति विज्ञान को चिरस्थायी लाभ होगा यदि इसमें से संप्रभुता का अध्याय निकाल दिया जाए|”
बहुलवादी सिद्धांत के संबंध में उनके प्रमुख तर्क निम्न है-
रीति रिवाज की भूमिका- रीति-रिवाज प्रभुसत्ताधारी की शक्ति को सीमित करते हैं| जब रीति-रिवाजों को मानने के लिए प्रभुसत्ताधारी बाध्य होता है, तो उसकी इच्छा सर्वोपरि कहां रहती है|
मानवता के प्रति उत्तरदायित्व- मानवता के प्रति उत्तरदायित्व से भी राज्य की प्रभुसत्ता का विचार निरर्थक हो जाता है|
संघीय व्यवस्था प्रभुसत्ता के विरुद्ध है- लॉस्की ने कहा कि अमेरिका में प्रभुसत्ता के सही स्थान का पता लगाना मुश्किल है|
राज्य और सरकार में अंतर- राज्य की प्रभुसत्ता का प्रयोग सरकार करती है| सरकार मनुष्यो से बनी होती है, यदि प्रभुसत्ता के नाम सरकार को पूर्ण असीम शक्ति दे दी जाय तो मनमानी और अत्याचार बढ़ जाएगा, क्योंकि मनुष्य स्वार्थी होते हैं| इसलिए प्रभुसत्ता के विचार को त्याग देना जरूरी है|
राज्य को निष्ठा की मांग करने से पहले अपनी सत्ता का औचित्य सिद्ध करना चाहिए-
राज्य को मनुष्यो से निष्ठा की मांग करने का अधिकार तभी प्राप्त हो सकता है जब जनहित के अनुसार सभी मानवीय संगठनों के हितों में तालमेल स्थापित कर सकें|
लास्की के शब्दों में “क्योंकि समाज का स्वरूप संघात्मक है, इसलिए सत्ता का स्वरूप भी संघात्मक होना चाहिए|
शक्ति का लोकतंत्रीकरण आवश्यक है- लास्की के मत में समाज के बुनियादी साधनों पर पूरे समुदाय का नियंत्रण होना चाहिए|
A D लिंडसे के विचार-
अंग्रेज विचारक लिंडसे ने कहा कि समाज में निगमित व्यक्तियों की संख्या अनंत होती है| उनमें कई छोटे-छोटे समूह इतने एकसार होते हैं, जितना स्वयं राज्य भी नहीं होता है|
R.M मैकाइवर के विचार-
अमेरिकी मनोवैज्ञानिक R.M मैकाइवर ने अपनी दो कृतियों द मॉडर्न स्टेट और द वैब ऑफ गवर्नमेंट के अंतर्गत समाजवैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रभुसत्ता सिद्धांत का खंडन किया है|
मैकाइवर के अनुसार ‘प्रभुसत्ता कोई असीम शक्ति नहीं है, ज्यादा से ज्यादा इसे राज्य का एक कार्य मान सकते हैं|
मैकाइवर ने ‘असीमित प्रभुसत्ता को एक खतरनाक झूठ कहा है|’
बहुलवादी दृष्टिकोण के संबंध मैकाइवर के प्रमुख तर्क निम्न है-
राज्य किसी निश्चित इच्छा की अभिव्यक्ति नहीं है|
राज्य रीति रिवाज का रक्षक है|
राज्य कानून की घोषणा करता है, उसका सृजन नहीं करता है|
किसी व्यापारिक निगम की तरह राज्य के भी अपने अधिकार और दायित्व होते हैं|
राज्य अन्य संगठनों के आंतरिक मामलों का नियमन नहीं कर सकता है|
मैकाइवर के अनुसार राज्य कानून का पिता व शिशु दोनों है|
मैकाइवर के अनुसार राज्य और समाज को एक मानना भोंडी जल्दबाजी है
बहुलवादियों की मान्यताएं-
राज्य केवल एक समुदाय है|
संप्रभु का आदेश ही कानून नहीं है|
अन्य समुदाय भी उतने ही आवश्यक हैं, जितना राज्य|
राज्य सेवक है, स्वामी नहीं|
विश्व शांति के लिए राज्य की प्रभुसत्ता घातक है|
राज्य का पूर्णतया असीमित और निरंकुश होना असत्य है|
सीमित प्रभुसत्ता में विश्वास
विकेंद्रीकरण में विश्वास
व्यवसायिक प्रतिनिधित्व का समर्थन
अन्य तथ्य-
लास्की की रचनाएं-
ए ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स 1925
एन इंट्रोडक्शन ऑफ सावरेंटी 1922
द स्टेट इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस
अथॉरिटी इन द मॉडर्न स्टेट 1919
लॉस्की “राज्य को एक साधन के रूप में व्यक्तियों की ऐसी साझेदारी कहा जा सकता है, जिसका उद्देश्य सामान्य जीवन को उत्कृष्ट बनाना है| इस प्रकार राज्य भी अन्य संघों की भांति एक संघ है|
लियो डिग्वी “कानून संप्रभु की आज्ञा नहीं, वरन सामाजिक समरसता की शर्त है|”
रॉस्को पाउंड “सारा महत्वपूर्ण कानून समाज की देन है, उसकी उत्पत्ति सामाजिक हितों से होती है और साधारणत: उनका पालन तभी होता है जब उसे लोकतंत्र का समर्थन प्राप्त हो|”
बार्कर ने राज्य को संघों का संघ कहा है|
लिंडसे ने राज्य को संगठनों का संगठन कहा है|
आर्थर बेंटले, डेविड ट्रूमैन व रॉबर्ट डहल भी बहुलवादी है|
रॉबर्ट डहल की पुस्तक- Polyarchy: Participation and Opposition 1971
द्वितीय विश्व युद्ध के समय यह सिद्धांत कमजोर पड़ गया है|
1950-60 के दशक में फिर से नए तरीके से बहुलवाद राजनीति विज्ञान में उभरा| रॉबर्ट डहल एवं चार्ल्स लिंडब्लॉम इत्यादि ने पुन: बहुलवाद की बात की|
नव बहुलवादी- रॉबर्ट डहल, चार्ल्स लिंडब्लॉम, जे के गैलब्रेथ
लिंडब्लॉम (Politics and Markets 1980) “राज्य बहुल संघो में अंपायर नहीं है, बल्कि वह व्यावसायिक संघो की ओर झुक गया है|”
निरंकुश वैधानिक संप्रभुता- थॉमस हॉब्स
स्थापित व अर्जित संप्रभुता- थॉमस हॉब्स
राजनीतिक संप्रभुता (सीमित संप्रभुता)- जॉन लॉक
राजनीतिक संप्रभुता व विधिक संप्रभुता में भेद- डायसी
एकत्रित संप्रभुता (Pooled Sovereignty)- यूरोपीय यूनियन
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