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फ्रांस का राष्ट्रपति
फ्रान्स में राष्ट्रपति को फ्रांस की कार्यपालिका का प्रधान माना जाता है।
वह संवैधानिक और वास्तविक, दोनों ही दृष्टियों से राज्य का प्रधान है।
पंचम गणतन्त्र का राष्ट्रपति
पंचम गणतंत्र के संविधान को (जो 1958 लागू हुआ) ‘चार्ल्स द गोल का संविधान’, ‘टेलर मेडले सविधान’, ‘संकट काल का शिशु’ कहा जाता है|
तृतीय और चतुर्थ गणतंत्र के संविधान द्वारा संसदात्मक व्यवस्था को अपनाया गया था, जिसमें राष्ट्रपति की स्थिति ब्रिटिश सम्राट की तुलना में भी निर्बल थी| इस पद की निर्बलता के कारण ही ऑग ने इसे ‘यूरोपीय राजनीति की एक विलक्षणता’ कहा|
पंचम गणतन्त्र के पहले फ्रांस के राष्ट्रपति पद का स्वरूप वैसा ही था, जैसा कि ब्रिटेन में राजा का या रानी का है।
राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष था और शासन का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता था।
यद्यपि राष्ट्रपति राष्ट्र का प्रतीक था, एवम् शासन के सभी कार्य उसी के नाम से किए जाते थे, तथापि वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मन्त्रिमण्डल में निहित थी।
संविधान में यह स्पष्ट प्रावधान था, कि राष्ट्रपति के प्रत्येक आदेश पर सम्बन्धित मंत्री के प्रति-हस्ताक्षर (Counter Signature) अवश्य हों।
राष्ट्रपति की इसी स्थिति की ओर संकेत करते हुए सर हेनरी मैन ने कहा था "इंग्लैंड का सांविधानिक सम्राट राज्य (Reign) करता है, शासन (Rule) नहीं करता। संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति राज्य नहीं करता अर्थात् राजा नहीं होता, तथापि वह शासन करता है; लेकिन फ्रैंच गणतन्त्र का राष्ट्रपति न तो राजा ही है और न शासक ही।"
इस तरह स्पष्ट है कि फ्रांस के राष्ट्रप ति का पद कोई शक्तिशाली पद नहीं था।
परन्तु पंचम गणतन्त्र में राष्ट्रपति की शक्ति में अत्यधिक वृद्धि की गई और मन्त्रिपरिषद् एवम् संसद की शक्तियों में भारी कमी की गई।
फ्रांस के ही भूतपूर्व प्रधानमंत्री मैंडीज फ्राँस (Mendes France) के अनुसार, "राष्ट्रपति एक अवंशानुगत राजा बनाया गया है और उसे ऐसी शक्तियाँ प्रदान की गई हैं कि वह स्वयं को एक वैधानिक अधिनायक बना सकता है।"
वस्तुतः वर्तमान संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रपति शासन का सबसे शक्तिशाली और केन्द्रीय अंग बन गया है। वह राज्य का वास्तविक अध्यक्ष, राष्ट्र का प्रतीक, शासन का प्रमुख और राष्ट्रीय पंच (Arbitrator National) है|
राष्ट्रपति का निर्वाचन (अनुच्छेद 6)
फ्रांस के चतुर्थ गणतन्त्र में राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन में गुप्त मतदान तथा बहुमत से होता है|
किन्तु पंचम गणतन्त्र में उसके निर्वाचन के लिए निर्वाचक मंडल (Electoral College) की व्यवस्था की गई है।
राष्ट्रपति के चुनाव हेतु निर्वाचक मण्डल में निम्नलिखित सदस्य होंगे-
संसद के दोनों सदनों-राष्ट्रीय सभा और सीनेट के कुल सदस्य,
समस्त मण्डलों की परिषदों के सदस्य,
समुद्रपारीय अधिकृत प्रदेशों की सीमाओं के सदस्य,
नगरपालिका परिषदों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ।
राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने वाला सबसे बड़ा समूह स्थानीय अर्थात् नगरपालिका परिषदों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों का होता है।
इस योजना की नवीनता यह है कि कम्यून्स या नगरपालिकाओं के प्रतिनिधियों को राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने की व्यवस्था कर फ्रान्स के राष्ट्रपति को संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की भाँति राष्ट्र का प्रतिनिधि बनाया गया है।
निर्वाचक मण्डल में शहरी नगरपालिकाओं की अपेक्षा देहाती नगरपालिकाओं को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है।
संविधान में यह स्पष्ट किया गया है, कि राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित होने वाले प्रत्याशी के लिए प्रथम मतदान में ही पूर्ण बहमत प्राप्त करना आवश्यक है। लेकिन अगर एसा न हो सके तो संविधान की धारा 7 के अनुसार राष्ट्रपति के चुनाव में "द्वितीय मतपत्र व्यवस्था" (Second Ballot) का सहारा लिया जाता है, जिसमें तुलनात्मक बहुमत से उसे निर्वाचक किया जाता है।
राष्ट्रपति का चुनाव वर्तमान राष्ट्रपति के कार्यकाल की समाप्ति से कम से कम 20 दिन या अधिक से अधिक 35 दिन पूर्व हो जाना चाहिए|
राष्ट्रपति का कार्यकाल (अनुच्छेद 6)-
राष्ट्रपति का कार्यकाल 7 वर्ष के लिए होता था। 2002 में किए गए संशोधन के अनुसार अब राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष कर दिया गया है|
उसके पुनर्निर्वाचन के सम्बन्ध में संविधान में कुछ नहीं कहा गया है |
संविधान में यह भी व्यवस्था की गई है कि यदि किसी कारण फ्रान्स गणतन्त्र का राष्ट्रपति न हो तो उसकी जगह पर सीनेट का अध्यक्ष राष्ट्रपति का कार्य करेगा|
राष्ट्रपति पद की योग्यताएँ-
इस सम्बन्ध में संविधान में यह व्यवस्था है कि "राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी स्वयं अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करेंगे,
राष्ट्रपति पद के लिए कोई योग्यता अनिवार्य नहीं मानी गई है।
आयु या निवास जैसी कोई भी शर्त इस विषय में नहीं लगाई गई है।
पद से हटाना-
केवल राजद्रोह के दोष पर ही राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है|
दोषारोपण का अधिकार राष्ट्रीय व्यवस्थापिका के दोनों सदनों को प्राप्त है और यह प्रस्ताव खुले मतदान में संसद के दोनों सदनों द्वारा प्रथक प्रथक अपने कुल बहुमत से पारित कर दिया जाए तो दोषारोपण की जांच उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है
और इस न्यायालय द्वारा दोषी पाए जाने पर राष्ट्रपति पद से हट जाता है|
उच्च न्यायालय अपने दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करता है|
उच्च न्यायालय संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से युक्त होता है तथा इस न्यायालय की अध्यक्षता राष्ट्रीय सभा (निम्न सदन) के अध्यक्ष द्वारा की जाती है|
राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया की आलोचना-
राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया के निम्न आलोचना की जाती है-
निर्वाचन मण्डल में ग्रामीण मतों को प्रधानता दी गई है। अतः ग्रामीण फ्रान्स, औद्योगिक फ्रान्स पर अपनी पसन्द का राष्ट्रपति लाद सकेगा। किन्तु इस आलोचना का प्रत्युत्तर देते हुए पूर्व प्रधानमन्त्री डेनरे ने कहा है "फ्रान्स छोटे गाँवों का देश है।"
निर्वाचन प्रक्रिया की डुवर्जर ने यह आलोचना की है “कि राष्ट्रपति के निर्वाचन में उच्चपद प्राप्त व्यक्ति ही अधिकांशतः भाग लेते हैं।”
डारोथी पिकिल्स ने राष्ट्रपति की निर्वाचन प्रक्रिया में निम्नांकित दो दोष बताए है-
यदि निर्वाचन में भाग लेने वाले उम्मीदवार दो-तीन से अधिक हों तो दूसरी बार मतदान होने पर भी यह सम्भव है कि निर्वाचित व्यक्ति को कुल मतों का बहुमत प्राप्त न हो।
यह प्रणाली सरलता से परिवर्तनीय नहीं है, क्योंकि इस प्रणाली का समावेश संविधान में कर दिया गया है।
राष्ट्रपति का चुनाव अप्रैल 2022-
10 अप्रैल 2022 को राष्ट्रपति पद के चुनाव का जो पहला चरण संपन्न हुआ उसमें किसी भी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत नहीं मिला|
प्रथम 2 उम्मीदवार थे-
एमैनुएल मैक्रोन (रेनेसा पार्टी)
मरीन ली पेन (नेशनल फ्रंट पार्टी)
दूसरे चरण (निर्णायक चरण) का मतदान 24 मई 2020 को संपन्न हुआ|
एमैनुएल मैक्रोन (रेनेसा पार्टी) 58.55 प्रतिशत मत प्राप्त हुए|
मरीन ली पेन (नेशनल फ्रंट पार्टी) 41.45 प्रतिशत मत प्राप्त हुए|
राष्ट्रपति के कार्य और उसकी शक्तियाँ-
संविधान के दूसरे अध्याय के 5 से लेकर 19 तक के 15 अनुच्छेद राष्ट्रपति और राष्ट्रपति की शक्तियों का वर्णन करते हैं।
राष्ट्रपति की निम्न शक्तियां है-
कार्यपालिका शक्तियाँ-
संविधान की धारा 5 के अनुसार राष्ट्रपति का यह कर्त्तव्य है कि ‘वह संविधान का संरक्षण तथा अनुरक्षण सुनिश्चित करें।’
उसे यह निश्चित करना होगा कि 'जन-शक्तियाँ' उचित प्रकार से अपना-अपना कार्य करती रहें तथा राष्ट्र का कार्य विधिवत रूप से संचालित हो।
संविधान राष्ट्रपति को राष्ट्र की स्वतन्त्रता, राष्ट्रीय क्षेत्र की एकता तथा समाज के समझौतों व सन्धियों के सम्मान के प्रति उत्तरदायी बनाता है।
1946 के संविधान में प्रधानमंत्री की नियुक्ति और मंत्रिमंडल के निर्माण की शक्ति संसद के हाथ में थी। प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत को राष्ट्रीय सभा (National Assembly) में जाकर उसका विश्वास प्राप्त करना अनिवार्य था|
किन्तु इसके विपरीत पंचम गणतन्त्र के संविधान में प्रधानमंत्री व मंत्रिमण्डल की नियुक्ति करने का अधिकार राष्ट्रपति को प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री के लिए अब यह आवश्यक नहीं रहा है कि वह अपनी नियुक्ति के बाद राष्ट्रीय सभा का विश्वास प्राप्त करे।
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर मंत्रिमंडल के सदस्यों को पदच्युत भी कर सकता है। राष्ट्रपति ही मंत्रिमंडलीय बैठकों का सभापतित्व करता है।
1946 के संविधान में राष्ट्रपति के प्रत्येक कार्य पर किसी न किसी मंत्री के प्रति-हस्ताक्षर (Counter-signature) होने आवश्यक थे। फलस्वरूप राष्ट्रपति की शक्ति औपचारिक थी और मंत्रियों की वास्तविक|
परन्तु वर्तमान संविधान के अन्तर्गत कार्यपालिका शक्तियों को दो भागों में विभाजित किया गया है । एक भाग के कार्यों के लिए राष्ट्रपति को मंत्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करना अनिवार्य है, अर्थात् इस भाग के कार्यों के लिए सम्बन्धित मंत्री के प्रति-हस्ताक्षर होने ही चाहिए| दूसरे भागों में कुछ ऐसे कार्य हैं जिनमें राष्ट्रपति मंत्रियों के परामर्श के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है| उसके इन कार्यों से सम्बन्धित आदेशों के लिए यह आवश्यक नहीं है कि प्रधानमंत्री या विभागीय मंत्री अपने प्रति-हस्ताक्षर करें |
धारा 19 के अनुसार 8, 11, 12, 16, 18, 54, और 61 की धाराओं से सम्बन्धित राष्ट्रपति के आदेशों के लिए मंत्रियों के प्रति हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं है। इन धाराओं में राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ, जनमत संग्रह के ढंग, राष्ट्रीय सभा को भंग करने, सांविधानिक परिषद के संगठन, प्रधानमंत्री की नियुक्ति आदि से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण अधिकार सम्मिलित हैं।
धारा 13 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है, कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत अध्यादेशों व आज्ञप्तियों पर हस्ताक्षर करेगा, नागरिक एवं सैनिक पद के लिए नियुक्तियाँ करेगा तथा राज-परिषद् के सदस्य, लिजन ऑफ ओनर के महाधिपति, राजदूत एवं विशेष प्रतिनिधि, लेखा परीक्षा कार्यालय के अधिकारी सदस्यों, जिला अधिकारियों, अकादमियों के कुलपतियों और केन्द्रीय शासन के निर्देशकों की नियुक्ति करेगा।
धारा 14 के अन्तर्गत यह व्यवस्था है कि राष्ट्रपति विदेशों में राजदूतों एवं अमान्य आयुक्तों की नियुक्ति करेगा और विदेशी राजदूतों के परिचय-पत्र (Credentials) स्वीकार करेगा।
धारा 15 के अन्तर्गत राष्ट्रपति देश की सशस्त्र सेना का सेनापति होगा तथा राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों व समितियों का सभापतित्व करेगा।
फ्रेंच समुदाय या समाज (French Community) के सम्बन्ध में भी राष्ट्रपति को विशेष स्थिति प्रदान की गई है। वह समाज का रक्षक है और उसका प्रतिनिधित्व तथा सभापतित्व करता है।
व्यवस्थापिका शक्तियाँ-
संसद से पारित होने पर विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा और राष्ट्रपति 15 दिन के भीतर उसे कानून घोषित करेगा| इस अवधि में वह विधेयक को संसद में पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है, जिस पर संसद अनिवार्यत: विचार करेगी|
संसद के जब अधिवेशन हो रहे हों तो सरकार के प्रस्ताव पर, अथवा दोनों सदनों के संयुक्त पारित प्रस्ताव के सरकारी पत्रिका में प्रकाशित होने पर, राष्ट्रपति जन-शक्ति व्यवस्था से सम्बन्धित अथवा राष्ट्रीय संस्थाओं पर प्रभाव डालने वाली किसी संधि की पुष्टि करने का अधिकार प्रदान करने के लिये किसी विधेयक को जनमत संग्रह हेतु प्रेषित कर सकता है, एवं जनमत द्वारा स्वीकृत हो जाने पर 15 दिन की अवधि के भीतर उस विधेयक को क्रियान्वित करता है।
धारा 18 के द्वारा राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संदेश भेज सकता है। उसके संदेश को दोनों सदनों में पढ़ा जाता है, परन्तु उन पर वाद-विवाद नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति अपने संदेशों को पढ़े जाने के लिए संसद का विशेष सत्र भी बुला सकता है।
धारा 12 एवं 16 के द्वारा राष्ट्रपति को राष्ट्रीय सभा के विघटन की शक्तियाँ प्रदान की गई है। केवल उसकी इस शक्ति पर दो प्रतिबन्ध लगाये गये हैं- (1) एक बार विघटन किए जाने पर एक वर्ष के भीतर राष्ट्रीय सभा का दूसरी बार विघटन नहीं किया जा सकता, एवं (2) धारा 16 के अन्तर्गत संकट काल में विघटन नहीं किया जा सकता।
विघटन के अधिकार का प्रयोग दो उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है-
राष्ट्रीय सभा एवं मंत्रिमंडल के मध्य उत्पन्न हुए विवाद की समाप्ति के लिए और
स्वयं के व राष्ट्रीय सभा से समर्थन प्राप्त प्रधानमंत्री के मध्य उत्पन्न हुए विवाद के अन्त के लिए।
नियुक्ति संबंधी शक्तियां-
राष्ट्रपति मंत्री परिषद की बैठक में राज्य के काउंसिलरों, ग्रेंड चांसलर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर, प्रिफेक्टो, समुद्र पार क्षेत्रों में सरकार के प्रतिनिधियों, राजदूतों, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों आदि पदाधिकारियों की नियुक्ति करेगा|
नियुक्तियां यद्यपि मंत्रीपरिषद की बैठक में की जाती है, लेकिन मंत्रीपरिषद की नियुक्ति और कार्य संचालन पर राष्ट्रपति का नियंत्रण है, इसलिए राष्ट्रपति नियुक्ति के संबंध में प्रभावशाली स्थिति रखता है|
न्यायिक शक्तियाँ-
धारा 4 के अनुसार राष्ट्रपति न्यायिक स्वतन्त्रता की गारन्टी देता है|
धारा 17 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को क्षमादान, प्रविलम्बन, उच्च न्यायालय परिषद की सभाओ का सभापतित्व करने तथा इसके 9 सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है।
राष्ट्रपति की आपातकालीन या संकटकालीन शक्तियाँ-
अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि “जब गणतन्त्र राष्ट्र की स्वाधीनता, प्रादेशिक प्रभुत्व और अन्तर्राष्ट्रीय समझौते खतरे में हो, एवं वैधानिक ढंग से सरकार का काम चलाना कठिन हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री, असेम्बलियों के अध्यक्षों और वैधानिक परिषद् के सदस्यों की सलाह से उनका समुचित उपाय कर सकता है।
आपातकालीन शक्तियों के प्रयोगकाल में नेशनल असेम्बली का विघटन नहीं किया जाएगा।
संकटकाल की घोषणा के साथ ही संसद का अधिवेशन स्वत: प्रारंभ हो जाएगा|
राष्ट्रपति की शक्तियों की विवेचना-
संविधान की धारा 5 से लेकर 19 तक के अन्तर्गत अधिकारों का अध्ययन करने के बाद यही निष्कर्ष निकलता है कि पाँचवें गणतन्त्र का राष्ट्रपति वास्तव में बड़ा शक्तिशाली है।
फ्रांस के राष्ट्रपति और अमेरिका के राष्ट्रपति की तुलना-
दोनों ही देशों के राष्ट्रपति अपनी निर्वाचन पद्धति के आधार पर राष्ट्र के सर्वोच्च प्रतीक बन गए हैं|
कार्यकाल की दृष्टि से अंतर- अमेरिकी राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 वर्ष है और वह 2 से अधिक बार इस पद पर निर्वाचित नहीं हो सकता है लेकिन फ्रांस के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष है और उसके पुन: निर्वाचन पर कोई प्रतिबंध नहीं है| दोनों ही राष्ट्रपतियों को कार्यकाल से पूर्व केवल महाभियोग के आधार पर ही हटाया जा सकता है|
कार्यपालिका क्षेत्र- इस संबंध में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रांस के राष्ट्रपति से अधिक शक्तिशाली है| इसका कारण यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति किसी बात के संबंध में अपने मंत्रियों की राय मानने के लिए बाध्य नहीं है, बल्कि फ्रांस का राष्ट्रपति कुछ बातें (जैसे प्रधानमंत्री की नियुक्ति, राष्ट्रीय सभा को भंग करने, संवैधानिक परिषद के गठन, संकटकालीन अधिकारों आदि) के संबंध में प्रधानमंत्री की राय मानने के लिए बाध्य नहीं है| अमेरिकी राष्ट्रपति संयुक्त राज्य अमेरिका की कार्यपालिका है, लेकिन फ्रांस की कार्यपालिका राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद है|
विधायी क्षेत्र- इस संबंध में फ्रांस का राष्ट्रपति अमेरिकी राष्ट्रपति से अधिक शक्तिशाली है| फ्रांस का राष्ट्रपति व्यवस्थापिका के प्रथम सदन (राष्ट्रीय सभा) को भंग कर सकता है| कुछ विधेयकों को जनमत संग्रह के लिए प्रसारित कर सकता है|
अनुच्छेद 5 के अनुसार फ्रांस के संविधान की व्याख्या करने की शक्ति फ्रांस के राष्ट्रपति को है, लेकिन अमेरिकी संविधान में संविधान की व्याख्या करने की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को प्रदान की गई है|
कुछ तथ्य-
फ्रांस में न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था नहीं है, अतः वहां राष्ट्रपति ही संविधान व राज्य का संरक्षक है|
द्वितीय दौर की निर्वाचन व्यवस्था- फ्रांस के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनने के लिए मतों का 50%+1 कोटा प्राप्त करना होता है| कोटा प्राप्त नहीं होने पर सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दो उम्मीदवारों के लिए दोबारा वोट पड़ते हैं|
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