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Shaktiyon Ka Niyantran, Niyantran Evan Santulan / शक्तियों का प्रथक्करण, नियंत्रण एवं संतुलन / Separation of Powers, Checks and Balances || In Hinhi || BY Nirban PK Sir

 

    शक्तियों का प्रथक्करण, नियंत्रण एवं संतुलन 

    शक्ति प्रथक्करण- 

    • शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत सरकार के प्रकार्यात्मक पहलू से संबंधित है|

    • शक्ति प्रथक्करण का सिद्धांत सरकार के तीनों अंगों में शक्ति विभाजन पर आधारित है| सरकार के तीनों अंग विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका आपस में एक दूसरे से स्वतंत्र हो तथा एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप न करें|

    • शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत द्वैधता सिद्धांत को अस्वीकार करता है, जिसके अनुसार सरकार के केवल दो ही अंग है विधायिका और कार्यपालिका, क्योंकि न्यायपालिका कोई स्वतंत्र अंग नहीं बल्कि कार्यपालिका का ही एक उपांग है|

    • शक्ति पृथक्करण सिद्धांत त्रिमूर्ति सिद्धांत को स्वीकार करता है, जिसके अनुसार सरकार के तीन अंग है- कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका| 

    • शक्ति प्रथक्करण का सिद्धांत अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के अनुकूल है|

    • मेडिसन के शब्दों में “व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संबंधी सारी शक्तियों का एक ही हाथ में इकट्ठा होना, चाहे वह एक व्यक्ति या अधिक व्यक्ति हो और चाहे वंशानुगत हो या स्वत: नियुक्त हो या निर्वाचित हो- अत्याचारी शासन की उपर्युक्त परिभाषा कहा जा सकता है|”

    • प्रो गेटेल “इस सिद्धांत का अभिप्राय है कि शासन के तीनों प्रमुख कार्य भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा संपादित होने चाहिए और इन तीनों विभागों के कार्य क्षेत्र इस प्रकार सीमित होने चाहिए कि वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्र व सर्वोच्च बने रहे|”

    • हरमन फाइनर “शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का राजनीतिक विज्ञान में तब तक कोई विशेष स्थान नहीं रहा है, जब तक राजनीतिक स्वतंत्रता का मुद्दा या विचार आवश्यक नहीं बन गया है|”

    • पालोम्बरा “शक्तियों का पृथक्करण शक्तियों के मनमाने प्रयोग या इनके निरपेक्ष दुरुपयोग से बचने के लिए सुरक्षा व्यवस्था के माध्यम के रूप में मानव की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक खोजों में से एक है|”

    • इस सिद्धांत के प्रतिपादन में पॉलीबियस, सिसरो, जॉन लॉक, मांटेस्क्यू, सी एफ स्ट्रांग, ब्लैकस्टोन, ला पालोम्बरा आदि ने  महत्वपूर्ण योगदान दिया|

    • मांटेस्क्यू को इस सिद्धांत का जनक माना जाता है|



    शक्ति प्रथक्करण सिद्धांत का विकास- 

    • इस सिद्धांत की शुरुआत यूनानीयों से मानी जाती है |

    • यूनानी विचारक अरस्तु ने सरकार को 3 विभागों में विभक्त किया है-

    1. असेंबली/विमर्शी 

    2. मजिस्ट्रेसी/ कार्यपालक

    3. न्यायपालिका


    • 14वीं सदी में मार्सिलियो ने कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका की शक्तियों में विभाजन रेखा खींचने का प्रयास किया|

    • 16वीं शताब्दी में बोदाँ ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बल दिया तथा राजा से न्याय प्रशासन के खतरे को बताया|

    • 17वीं सदी में जॉन लॉक ने अपनी पुस्तक Two Treatises on Government में शासन की शक्तियों को तीन भागों में बांटने की बात की|

    • शक्ति प्रथक्करण के सिद्धांत का विधिवत प्रतिपादन 1748 में फ्रांसीसी विचारक मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक The Spirit of Laws  में किया |



    शक्ति प्रथक्करण का सिद्धांत : मांटेस्क्यू के विचार- 

    • शक्ति प्रथक्करण सिद्धांत की सर्वप्रथम वैज्ञानिक एवं स्पष्ट व्याख्या फ्रांसीसी विचारक मांटेस्क्यू ने की| उस समय फ्रांस में लुइ चौदहवे का राज्य था, जो कहा करता था कि “मैं ही राज्य हूं|”

    • मांटेस्क्यू 1776 जब इंग्लैंड गया तो वहां के नागरिकों की स्वतंत्रता देखकर खुश हुआ, तथा फ्रांसीसी व इंग्लैंड की शासन- व्यवस्थाओं की तुलना की| और निष्कर्षत: कहा कि फ्रांस में शक्तियां राजा के पास केंद्रित है, जबकि ब्रिटेन में शक्तियों का प्रथक्करण है|


    • Note- यद्यपि मांटेस्क्यू का यह निष्कर्ष भ्रांतिपूर्ण था, क्योंकि ब्रिटेन में शक्तियों का प्रथक्करण नहीं था|


    • मांटेस्क्यू ने कहा कि “जब व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की शक्तियां एक ही हाथ में केंद्रित होती हैं, वहां स्वतंत्रता नहीं रह सकती|”


    • मांटेस्क्यू के शक्ति प्रथक्करण की दो बातें प्रमुख हैं-

    1. सरकार में तीन प्रथक-प्रथक शक्तियां है|

    2. स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए इन तीनों शक्तियों का केंद्रीयकरण नहीं होना चाहिए|


    • मांटेस्क्यू स्वतंत्रता को श्रेष्ठतम मानवीय अच्छाई मानता है|

    • शक्ति प्रथक्करण के सिद्धांत का प्रभाव संयुक्त राज्य अमेरिका व फ्रांस की क्रांतियो पर पड़ा है|

    • सन 1789 की फ्रांस की संविधान निर्मात्री सभा ने घोषित किया कि जहां शक्ति प्रथक्करण नहीं, वहां का शासन संवैधानिक नहीं हो सकता है|

    • मांटेस्क्यू के मत का समर्थन अंग्रेज विधिशास्त्री ब्लैकस्टोन ने भी किया|

    • आधुनिक काल में M.J.C वाइल ने अपनी पुस्तक Constitutional Separation of Powers में शक्ति प्रथक्करण पर बल दिया है तथा शक्ति पृथक्करण के विशुद्ध सिद्धांत की बात की है, क्योंकि उनके अनुसार अपने अत्यधिक शुद्ध रूप में यह सिद्धांत अभी तक भी नहीं आया है और ना ही लाया जा सकता है|

    • रिचर्ड न्यूस्टाड ने शक्ति पृथक्करण को ‘शक्तियों को साझा करने वाली अलग-अलग संस्थाओं’ की संज्ञा दी है|”



    शक्ति प्रथक्करण की आवश्यकता- 

    1. व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए

    • मांटेस्क्यू ने व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा का एकमात्र साधन राज्य शक्तियों का प्रथक्करण माना है|

    • ब्लैकस्टोन “जब कभी कानून बनाने और उनको लागू करने का अधिकार एक ही व्यक्ति या समुदाय के हाथ में होगा, तो किसी भी प्रकार की सार्वजनिक स्वतंत्रता नहीं हो सकती|” 


    1. नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए

    2. राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग से बचने के लिए

    3. कार्य विभाजन के विशेषीकरण व कार्यकुशलता में वृद्धि हेतु

    4. सरकार के विभिन्न अंगों का उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने हेतु

    5. शासन कार्यों को सरल व सुविधाजनक बनाने हेतु 

    6. शक्ति को शक्ति द्वारा नियंत्रित करने हेतु

    7. राजनीतिक विकास व आधुनिकरण के लिए

    8. न्यायपालिका की स्वतंत्रता तथा निष्पक्षता के लिए|



    शक्ति प्रथक्करण के तत्व-

    • शक्ति पृथक्करण सिद्धांत के चार तत्व निम्न है-


    1. प्रथम तत्व- शासन अभिकरणों का प्रथक्करण-

    • इसका आशय है कि शक्ति के स्वायत्त केंद्र बनाकर सरकार पर आंतरिक रूप से अंकुश रखा जाय|


    1. दूसरा तत्व- सरकार के तीन विशिष्ट कार्य होते हैं-

    1. व्यवस्थापन

    2. कार्यपालन

    3. न्यायपालन


    1. तीसरा तत्व- व्यक्तियों या कर्मियों का प्रथक्करण|  

    • इसका अर्थ सरकार के तीनों अंग, लोगों के प्रथक-प्रथक और निश्चित समूहों के द्वारा गठित होते है|


    1. चौथा तत्व-  

    • इसमें यह विचार है कि सरकार के अंग, उनके कार्यों, उन कार्यों का संचालन करने वाले व्यक्तियों के प्रथक्करण का अनुसरण किया जाएगा, तब सरकार का प्रत्येक अंग दूसरे अंग द्वारा स्वेच्छाचारी या मनमाने ढंग से शक्ति प्रयोग करने पर नियंत्रक का कार्य करेगा|



    अमेरिका में शक्ति प्रथक्करण का सिद्धांत-

    • अमेरिका के संविधान की प्रमुख विशेषता शक्ति प्रथक्करण तथा नियंत्रण एवं संतुलन की प्रणाली है|

    • मांटेस्क्यू को अमेरिकी संविधान निर्माताओं का बौद्धिक जनक कहा है|

    • लिपसन के अनुसार “संघीय संविधान में शक्ति प्रथक्करण सिद्धांत को अपनाकर मानो इतिहास को दर्शन से मिला दिया गया है|”


    1787 में निर्मित अमेरिकी संविधान में शक्ति प्रथक्करण इस प्रकार है- 

    • अनु.1- सभी व्यवस्थापिका संबंधी शक्ति कांग्रेस में निहित होगी|

    • अनु.2- समस्त कार्यपालिका संबंधी शक्ति अमेरिकी राष्ट्रपति में निहित होगी|

    • अनु.3- समस्त न्यायपालिका संबंधी शक्ति सर्वोच्च न्यायालय तथा अन्य ऐसे छोटे न्यायालयों में केंद्रित होगी, जो कांग्रेस द्वारा समय-समय पर स्थापित किए जाएंगे|



    अमेरिका में शक्ति प्रथक्करण संबंधी व्यवस्थाएं निम्न है-

    1. शासन के तीनों अंगों के निर्वाचन की अलग-अलग प्रक्रिया

    • प्रतिनिधि सभा व सीनेट के सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से|

    • राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा परोक्ष रूप से|

    • न्यायाधीशों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा सीनेट की स्वीकृति से किया जाता है|


    1. एक ही अंग की सदस्यता का प्रावधान-

    • एक व्यक्ति तीनों अंगों में एक बार में एक ही अंग का सदस्य रह सकता है|


    1. अंगों का अलग-अलग कार्यकाल व कार्यकाल के निश्चिता -

    • प्रतिनिधि सभा का कार्यकाल 2 वर्ष

    • सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष

    • राष्ट्रपति का कार्यकाल 4 वर्ष

    • न्यायाधीशों का कार्यकाल जीवन पर्यंत


    1. उत्तरदायित्व में भिन्नता-

    • प्रतिनिधि सभा का सदस्य अपने निर्वाचन क्षेत्र, सीनेटर अपने राज्य, राष्ट्रपति संपूर्ण राष्ट्र तथा न्यायधीश संविधान के प्रति उत्तरदायी होते हैं|

    • अमेरिका में सरकार के तीनों अंगों के प्रथक-प्रथक कार्य हैं| तीनों अपने कार्यों में स्वतंत्र हैं तथा  एक दूसरे अंग के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं| इस प्रकार अमेरिकी संविधान शक्ति  प्रथक्करण पर आधारित है|

    • डॉ. फाइनर “अमेरिका का संविधान जानबूझकर एवं प्रयास पूर्वक शक्तियों के प्रथक्करण पर एक विस्तृत निबंध बनाया गया था| यह संविधान इस सिद्धांत पर चलने वाला विश्व में सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रलेख है|



    शक्ति प्रथक्करण सिद्धांत की आलोचना-

    1. शासन में सावययी एकता होती है, अतः इसके विभिन्न अंगों को एक दूसरे से विभक्त नहीं किया जा सकता|

    2. फाइनर के अनुसार “इसे शक्ति प्रथक्करण के बजाय कार्यों का प्रभेद सिद्धांत कहा जाय|”

    3. जे एस मिल “अंगों के अलग-अलग कार्य विभाजन से कार्यकुशलता की जो हानि होगी, वह हानी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से प्राप्त लाभ की तुलना में ज्यादा होगी|”

    4. फाइनर “मांटेस्क्यू स्वयं पूर्ण शक्ति प्रथक्करण नहीं चाहता था, अपितु वह ऐसे साधनों की खोज में लगा हुआ था, जिससे शासन की निरंकुश शक्तियों पर ऐसे अंकुश लगाए जा सके, ताकि वह स्वेच्छाचारी न हो सके|”

    5. लॉस्की “सतत चौकसी स्वतंत्रता की कीमत है|” अत: स्वतंत्रता की रक्षा जनता स्वयं करती है तथा शक्तियों का प्रथक्करण वास्तव में केवल व्यवस्थापिका की सहूलियत है, न कि समाज की की निरुढ़ी| सख्त अर्थों में यह कभी व्यवहारिक हो ही नहीं सकता|





    नियंत्रण एवं संतुलन सिद्धांत


    • शक्ति प्रथक्करण को पूर्णतया लागू करने से प्रत्येक अंग अपने-अपने निश्चित कार्यक्षेत्र में निरंकुश हो सकते हैं, जिससे अव्यवस्था पैदा हो सकती है|

    • अतः इस सिद्धांत की कमियों को दूर करने के लिए नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत का विकास किया गया| तथा शक्ति प्रथक्करण के सिद्धांत के साथ नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत को अमेरिकी शासन व्यवस्था में शामिल किया गया| 

    • नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत में शासन के प्रत्येक अंग अपने-अपने कार्य क्षेत्र में सर्वोच्च एवं परिसीमित होता है तथा शेष दो अंगों को अपने-अपने कार्यक्षेत्र तक सीमित रहने के लिए नियंत्रित करते है|

    • अर्थात इस सिद्धांत में तीनों अंग स्वतंत्रत होते हुए भी एक दूसरे को नियंत्रित करते हैं|

    • इस सिद्धांत में ‘शक्ति पर शक्ति द्वारा नियंत्रण बनाया जाता है|

    • हेमिल्टन के शब्दों में “शक्ति, शक्ति को नियंत्रित करती है|”



    अमेरिका के संदर्भ में शक्ति प्रथक्करण तथा नियंत्रण व संतुलन सिद्धांत-

    1. कांग्रेस पर नियंत्रण


               राष्ट्रपति का कांग्रेस पर नियंत्रण

    • कांग्रेस द्वारा पारित विधेयको पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर आवश्यक हैं|

    • ऐसे विधेयकों पर राष्ट्रपति को वीटो पावर प्राप्त है|

    • राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है|

    • राष्ट्रपति को कांग्रेस का आपातकालीन अधिवेशन बुलाने का अधिकार है|

    • वार्षिक बजट राष्ट्रपति के निर्देशन में ब्यूरो ऑफ बजट द्वारा तैयार किया जाता है|

    • राष्ट्रपति कांग्रेस को संदेश भेज सकता है तथा अपने दल को कहकर कानून निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है| 


              न्यायपालिका का कांग्रेस पर नियंत्रण-

    • न्यायिक समीक्षा के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय कांग्रेस द्वारा पारित कानूनों को अवैध घोषित कर सकता है|



    1. कार्यपालिका (राष्ट्रपति) पर नियंत्रण-


                कार्यपालिका पर कांग्रेस का नियंत्रण-

    • राष्ट्रपति द्वारा की जाने वाली नियुक्तियों में सीनेट की अनुमति आवश्यक है|

    • युद्ध घोषणा की पुष्टि कांग्रेस द्वारा आवश्यक|

    • विदेशी संधियों व समझौतों की सीनेट के दो तिहाई बहुमत से पुष्टि आवश्यक

    • राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश यदि संविधान के विरुद्ध है, तो कांग्रेस अवैध घोषित कर सकती है|


                कार्यपालिका पर न्यायपालिका का नियंत्रण-

    • न्यायिक समीक्षा के द्वारा कार्यपालिका के कार्यों को अवैध घोषित कर सकता है|


    1. न्यायपालिका पर नियंत्रण


                कांग्रेस का न्यायपालिका पर नियंत्रण

    • कांग्रेस महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा न्यायाधीशों को पद से हटा सकती है|

    • कांग्रेस संघीय न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सीमित कर सकती है

    • कांग्रेस न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा सकती है|

    • कांग्रेस न्यायाधीशों की सेवा-शर्तें निर्धारित करती है|


                  कार्यपालिका का न्यायपालिका पर नियंत्रण

    • राष्ट्रपति न्यायाधीशों को मनोनीत करता है|

    • न्यायालय द्वारा दिए गए दंड को क्षमा कर सकता है|


    • इस प्रकार अमेरिका में शासन के तीनों अंग एक दूसरे को नियंत्रित करते हैं|

    • 1941 में जान एडम्स ने लिखा कि “आरंभ से अंत तक अमेरिकी संविधान में एक अंग दूसरे अंग पर प्रतिबंध के रूप में बना हुआ है|



    अन्य तथ्य-

    • संसदीय शासन व्यवस्था में नीति निर्माण में विपक्ष की प्रभावी भूमिका को अरेंज लिजफोर्ट ने अनौपचारिक शक्ति पृथक्करण कहा है|

    • अमेरिकी संविधान में कहीं भी शक्ति पृथक्करण सिद्धांत का वर्णन नहीं है, पर जैसा कि मेडिसन ने कहा है “हम निरंतर मॉन्टेस्क्यू की अदृश्य छाया से प्रेरणा ग्रहण करते रहे हैं|” 

    • अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय ने किलबॉर्न बनाम टॉमसन वाद 1880 में निम्न विचार व्यक्त किए “इस लिखित संविधानिक विधि को अमेरिकी पद्धति का मुख्य लक्षण माना जाता है कि सरकार को, चाहे राज्य स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर सौंपी गई सभी शक्तियों को तीन सामान्य विभागों कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में बांटा गया है|”

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