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Political Theory: Traditional and Modern Perspectives /राजनीतिक सिद्धांत: परंपरागत और आधुनिक परिप्रेक्ष्य

 

राजनीतिक सिद्धांत: परंपरागत और आधुनिक परिप्रेक्ष्य


    भारतीय विचारकों के अनुसार राजनीति शास्त्र या राजनीतिक सिद्धांत-


    • भारत के प्राचीन विचारको ने विधाओं को चार भागों में बांटा है-

    1. त्रयी विद्या

    2. वार्ता विद्या

    3. आन्वीक्षिकी विद्या

    4. दंडनीति विद्या 


    1. त्रयी विद्या-

    • वेद (तीन वेद- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद), वेदांगो का ज्ञान, नैतिक और आध्यात्मिक विषयों को समाहित करने वाला ज्ञान त्रयी विद्या है|


    1. वार्ता विद्या-

    • यह विद्या कृषि, पशुपालन, शिल्प, वाणिज्य की शिक्षा देती है|

    •  यह विद्या भौतिक उपलब्धियों और संपत्तियों के अर्जन से संबंधित है|


    1. आन्वीक्षिकी विद्या-

    • योग व दर्शन का ज्ञान

    • त्रयी और वार्ता के प्रति किए जाने वाले प्रयत्नों में संतुलन स्थापित करने वाली विद्या आन्वीक्षिकी विद्या है|

    • अर्थात आन्वीक्षिकी वह मापदंड है, जिसके द्वारा व्यक्ति के नैतिक और भौतिक उद्देश्यों के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों को संतुलित किया जाता है|


    1. दंडनीति विद्या-

    • मनुष्य के लौकिक (भौतिक) और पारलौकिक (नैतिक) उद्देश्यों को आन्वीक्षिकी के निर्धारित मापदंडों के अनुसार प्रवर्तन की संस्थागत व्यवस्था को दंडनीति कहा जाता है|

    • अर्थात मानव समाज में शांति और व्यवस्था को स्थापित करने के लिए दंडनीति का प्रयोग किया जाता है|


    राज्य-

    • सुव्यवस्थित समाज को राज्य कहते हैं|

    • जिस जन समाज में व्यवस्था या दंडनीति स्थापित हो, शासन की सत्ता के कारण मनुष्य में शासक और शासित का भेद हो, वह राज्य कहलाता है|


    • प्राचीन भारतीय विचारक दंडनीति को बहुत महत्व देते हैं तथा राजनीति के पर्याय के रूप में दंडनीति शब्द का प्रयोग करते हैं|

    • आचार्य शुक्र के अनुसार “दंडनीति ही वस्तुत वह विद्या है, जिस पर अन्य विधाओं की स्थिति व सत्ता निर्भर है| 

    • चाणक्य के अनुसार भी त्रयी, वार्ता, आन्वीक्षिकी इन तीनों विद्याओं के विकास के लिए समाज में योगक्षेम होना चाहिए| यह योगक्षेम दंड द्वारा ही स्थापित हो सकता है| इसी दंड का प्रतिपादन करने वाली विद्या दंडनीति या राजनीतिशास्त्र कही जाती है|


    • अर्थात प्राचीन भारतीय चिंतक राजनीतिशास्त्र को दंडनीति कहा करते थे|

    • मनुष्य के एक राज्य में विभिन्न राजनीतिक संबंध होते हैं, इन राजनीतिक संबंधों का अध्ययन करने वाले विज्ञान को हम राजनीति शास्त्र कहते हैं|



    पाश्चात्य विचारकों के अनुसार राजनीतिशास्त्र या राजनीतिक सिद्धांत-


    • राजनीति का अंग्रेजी शब्द Politics की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Polis शब्द सही हुई है, जिसका अर्थ है- नगर राज्य|

    • अर्थात नगर राज्य तथा उससे संबंधित जीवन, घटनाओं, क्रियाओं, व्यवहारो एवं समस्याओं का अध्ययन अथवा ज्ञान ही राजनीति है|

    • अरस्तु ने सर्वप्रथम राजनीति शब्द का प्रयोग इन्हीं अर्थो में किया है|



    आधुनिक अर्थ में राजनीति-


    • आधुनिक समय में राजनीति का संबंध राज्य, सरकार, प्रशासन, व्यवस्था के अंतर्गत समाज के विभिन संदर्भों व संबंधों के व्यवस्थित ज्ञान एवं अध्ययन से है|




    परंपरागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ एवं परिभाषा-


    • राजनीति सिद्धांत का अर्थ एवं परिभाषा समझने से पहले हमें दृष्टिकोण या परिप्रेक्ष्य क्या होता है, उसको समझना चाहिए|

    • सामाजिक विज्ञानों में पद्धति, उपागम, दृष्टिकोण का प्रयोग सामान्यत: एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में कर दिया जाता है, लेकिन इन शब्दों में अंतर होता है-


    पद्धति या विधि-

    • पद्धति का अर्थ अन्वेषण की ऐसी प्रक्रिया, जिसके द्वारा विश्वस्त ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, विश्वस्त निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं|

    • अर्थात विश्वस्त ज्ञान प्राप्त करने या विश्वस्त निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया को पद्धति या विधि कहते हैं|

    उपागम-

    • इसमें किसी घटना की जानकारी के लिए अध्ययन करने के तरीके का या उपयुक्त पद्धति का चयन किया जाता है|

    • अर्थात उपयुक्त अध्यन करने के तरीका का या उपयुक्त अध्ययन पद्धति का चयन, उपागम कहलाता है|


     दृष्टिकोण-

    • यह नियमों का एक समूह होता है|


    • अर्थात एक उपागम की कई अध्ययन पद्धति हो सकती हैं, जैसे- आगमन, निगमन, तुलनात्मक आदि तथा एक दृष्टिकोण के अंतर्गत कई उपागम हो सकते हैं| जैसे- दार्शनिक उपागम, आधुनिक उपागम

        

          एक दृष्टिकोण= कई उपागम

          एक उपागम=  कई अध्ययन पद्धतियां




    परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिशास्त्र या राजनीति सिद्धांत सिद्धांत का अर्थ व परिभाषा-


    • इसको राजनीतिक दर्शन या मानकीय उपागम भी कहते हैं|

    • परंपरागत दृष्टिकोण का प्रभाव प्राचीन काल (प्लेटो) से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध तक रहा|

    • परंपरागत दृष्टिकोण मूल्यों के साथ तथ्यों से सरोकार रखते हैं| मूल्य जैसे- शुभ और अशुभ उचित और अनुचित|

    • इस दृष्टिकोण में निर्देशन (प्रत्येक विषय वस्तु पर निर्देश होना) की प्रधानता होती है|

    • इसमें मूल्यों की जांच के लिए विवेक या तर्क बुद्धि का प्रयोग किया जाता है|

    • यह दृष्टिकोण राजनीतिक जीवन की चिरंतन समस्याओं और मानवीय मूल्यों के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है|

    • राजनीतिक सिद्धांत के परंपरागत दृष्टिकोण की शुरुआत यूनान से होती है|

    • इस दृष्टिकोण में राज्य को सर्वोच्च संस्था माना जाता है तथा राज्य व समाज में सामान्यतः अंतर नहीं किया जाता है|


    •  Note- परंपरागत दृष्टिकोण के अंतर्गत अनुभवमूलक और मानकीय दोनों उपागमों को समान रूप से महत्व दिया जाता है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में केवल अनुभवमूलक उपागम को महत्व दिया जाता है|


    • परंपरागत दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को चार अर्थो में परिभाषित किया जाता है-

    1. राज्य के अध्ययन के रूप में

    2. सरकार के अध्ययन के रूप में

    3. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में

    4. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में


    1. राज्य के अध्ययन के रूप में-

    • इसमें राजनीति के अध्ययन का दायरा केवल राज्य तक सीमित माना जाता है|

    • जे के बलंटशली के अनुसार “राजनीति शास्त्र का संबंध राज्य से है, जो राज्य की आधारभूत  स्थितियों, उसकी प्रकृति, विविध स्वरूपो एवं विकास को समझने का प्रयत्न करता है|”

    • गैरिस के अनुसार “राजनीति शास्त्र राज्य को एक शक्ति संस्था के रूप में मानता है, राज्य के समस्त संबंधों, राज्य की उत्पत्ति, उसके स्थान, उसके उद्देश्य, उसके नैतिक महत्व, उसकी आर्थिक समस्याओं, उसके वित्तीय पहलू आदि का विवेचन करता है|”

    • गार्नर के अनुसारराजनीति शास्त्र का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है|”

    • गैटल के अनुसारराजनीति शास्त्र राज्य के भूत, वर्तमान, भविष्य का, राजनीतिक संगठन तथा राजनीतिक कार्यों का, राजनीतिक संस्थाओं तथा राजनीतिक सिद्धांतों का अध्ययन करता है|”

    • गुड़नाऊ के अनुसारराजनीति शास्त्र में राज्य की वर्तमान दशा और विकासात्मक दशा का अध्ययन किया जाता है|”

    • जेम्स के अनुसार “राजनीति शास्त्र राज्य का विज्ञान है|”

    • जकारिया के अनुसार “राजनीति विज्ञान ऐसे मौलिक सिद्धांतों को सुव्यवस्थित रूप में से प्रस्तुत करता है, जिनके अनुसार पूरे राज्य का संगठन होता है तथा प्रभुसत्ता का प्रयोग किया जाता है|”


    1. सरकार के अध्ययन के रूप में-

    • इस दृष्टिकोण के विद्वानों के अनुसार राज्य एक अमूर्त संस्था है| इसलिए राज्य सत्ता का प्रयोग नहीं करता है| सत्ता का प्रयोग तो सरकार करती है, अतः शासन व्यवस्था या सरकार का अध्ययन करना चाहिए|

    • लीकॉक “राजनीति शास्त्र सरकार से संबंधित अध्ययन है|”

    • जे आर सीले “राजनीति शास्त्र उसी प्रकार शासन के तत्वों की खोज करता है, जैसे संपत्ति शास्त्र संपत्ति का, जीवशास्त्र जीव का, बीजगणित अंको का तथा ज्यामितीय शास्त्र स्थान और ऊंचाई का करता है|”


    1. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में-

    • इसके अनुसार केवल राज्य या केवल सरकार के अध्ययन पर आधारित परिभाषाएं एकांगी है| राज्य और सरकार एक दूसरे के पूरक हैं और घनिष्ठ रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं| अतः दोनों का एक साथ अध्ययन करना चाहिए| यह दृष्टिकोण पूर्व के दोनों दृष्टिकोण से व्यापक है|

    • R N गिलक्राइस्ट “राजनीति शास्त्र वह शास्त्र है, जिसका संबंध राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं से होता है|”

    • पॉल जेनेट “राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग है, जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है|”

    • डिमॉक “राजनीति शास्त्र में राज्य तथा उसके यंत्र सरकार का अध्यन किया जाता है|”

    • R M मैकाइवर “इसने द वेब ऑफ गवर्नमेंट (1965) के अंतर्गत राज्य और सरकार दोनों को महत्व दिया है|”


    1. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में-

    • इसके अनुसार व्यक्ति के अध्ययन के बिना राजनीति शास्त्र का अध्ययन अधूरा है, क्योंकि राजनीतिक संस्थाएं व्यक्तिगत संबंधों के संदर्भ में कार्य करती हैं|

    • यदि राजनीतिक संस्थाएं व्यक्ति के जीवन, विचारों एवं लक्ष्यों को प्रभावित करती है, तो व्यक्ति की भावनाएं, प्रेरणा तथा समाज के रीति रिवाज एवं परंपराएं भी राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती है|

    • लॉस्की “राजनीति विज्ञान में संगठित राज्यों से संबंधित मनुष्य के जीवन का अध्ययन किया जाता है|”

    • हरमन टेलर “राजनीति शास्त्र के सर्वागीण स्वरूप का निर्धारण व्यक्ति संबंधी मूलभूत पूर्व मान्यताओं द्वारा होता है|”


    • Note- राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि सरकार राज्य प्रदत शक्ति का ही प्रयोग करती है| सरकार के बिना राज्य एक अमूर्त कल्पना मात्र है और व्यक्ति राज्य की प्राथमिक इकाई है| अतः परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र के अंतर्गत राज्य, सरकार एवं व्यक्ति के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है| 


    • परंपरागत दृष्टिकोण केवल शासन की रचना और कार्यप्रणाली के अध्ययन पर बल देता है| 

    • यह दृष्टिकोण सरकार की प्रक्रिया पर प्रभाव डालने वाली संस्थाओं (अनौपचारिक तत्वों) का अध्ययन नहीं करता है|

    • अतः यह केवल राजनीति का औपचारिक अध्ययन करता है|



    आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र या राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ एवं परिभाषाएं-


    •  आधुनिक दृष्टिकोण को राजनीति विज्ञान या अनुभवमूलक उपागम भी कहते हैं|

    •  इसका विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी जगत में होता है|

    • आधुनिक दृष्टिकोण के दो प्रेरणास्रोत रहे हैं-

    1. शिकागो विश्वविद्यालय 

    2. मनोविज्ञान 


    1. प्रथम प्रेरणा स्रोत शिकागो विश्वविद्यालय-

    • शिकागो विश्वविद्यालय के विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को अधिक से अधिक विज्ञान सम्मत बनाने के लिए प्रयत्न किए|

    • चार्ल्स मेरियम के नेतृत्व में मनोविज्ञान, दर्शन, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र एवं मानव शास्त्र जैसे समाज विज्ञानों को निकट लाने का प्रयास किया गया|

    • इसके परिणामस्वरूप राजनीति शास्त्र में तार्किक अनुभववाद, तथ्यात्मकता, व्यवहारवाद तथा समाजशास्त्रीय पद्धतियों का प्रयोग हुआ|


    1. द्वितीय प्रेरणा स्रोत मनोविज्ञान-

    • प्रो. रेनसिस लिकर्ट, कुर्त लेविन, प्रो. लजार्स फेल्ड के प्रयासों से आधुनिक राजनीति में मनोविज्ञान की शोध तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग होने लगा|


    • 1903 में अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन की स्थापना के साथ ही राजनीति का आधुनिक युग में प्रवेश माना जाता है|

    • आधुनिक दृष्टिकोण के प्राथमिक संकेत 1908 में इंग्लैंड में प्रकाशित दो कृतियों में मिलता है, जिन्हें आधुनिक उपागम का अग्रदूत माना जाता है| यह कृतियां निम्न है-

    1. ग्राहम वेलेस- ‘ह्यूमन नेचर इन पॉलिटिक्स’

    2. आर्थर बेंटली- ‘द प्रोसेस ऑफ गवर्नमेंट’


    • ग्राहम वेलेस ने मनोविज्ञान की प्रेरणा से राजनीतिक अध्ययन में व्यक्ति के व्यवहार को प्रमुखता दी है|

    • आर्थर बेंटली ने समाज विज्ञान की प्रेरणा से राजनीति में समूह के व्यवहार के अध्ययन को प्रमुखता दी है| ये समूह अनौपचारिक थे| बेंटली ने राजनीतिक प्रक्रियाओं में दबाव समूह, दलों, चुनाव, लोकमत की भूमिका पर विशेष बल दिया है|


    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वर्तमान तक राजनीति विज्ञान के विकास को दो भागों में बांटा जा सकता है-

    1. 1945 से 1970 तक व्यवहारवाद की प्रमुखता का युग-

    • इसमें परंपरागत दृष्टिकोण का विरोध किया गया|


    1. दूसरा युग 1970 के बाद उत्तर व्यवहारवाद का युग था-

    • इस युग में मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा पर बल दिया गया|


    • आधुनिक दृष्टिकोण में ऐसे तथ्यों पर बल दिया गया, जो अनुभव और निरीक्षण पर आधारित हैं, जिन्हें सत्य-असत्य ठहराया जा सके|

    • इसमें वैज्ञानिकता तथा तथ्यों के वर्णन (व्याख्या) पर बल दिया गया है|

    • इसमें अनौपचारिक प्रक्रियाओं पर बल दिया गया है|


    • आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को निम्न अर्थो में परिभाषित किया गया है-

    1. राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है|

    2. राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है|

    3. राजनीति शास्त्र राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है|

    4. राजनीति शास्त्र निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है|


    1. राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं या व्यवहार का अध्ययन है-

    • आधुनिक व्यवहारवादी विद्वान राजनीति विज्ञान को मनुष्य के राजनीतिक जीवन और क्रियाकलापों का अध्ययन करने वाला विज्ञान तथा मानव जीवन के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और अन्य पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं|

    • कैटलिन "राजनीति विज्ञान संगठित मानव समाज से संबंधित है, किंतु मुख्य रूप से यह सामुदायिक जीवन के राजनीतिक पहलुओं का अध्ययन करता है|”

    • बर्टेंड डी जुविनेल “हमारा विषय उन राजनीतिक संबंधों का अध्ययन करता है, जो मिल-जुल कर रहने वाले व्यक्तियों के बीच स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं|”


    1. राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है-

    • कैटलिन, लासवेल, मेरियम, मैक्स वेबर, बट्रेंड रसैल, मोर्गेनथो आदि इसके समर्थक हैं|

    • कैटलिन “कैटलिन ने राजनीति को शक्ति का विज्ञान माना है|”

    • गिल्ड तथा पामर “राजनीति, शक्ति एवं सत्ता के संबंधों के रूप में सबसे अच्छे प्रकार से समझी जा सकती है|”

    • लासवेल “शक्ति का सिद्धांत संपूर्ण राजनीति विज्ञान में एक बुनियादी सिद्धांत है, संपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया शक्ति के वितरण, प्रयोग एवं प्रभाव का अध्ययन है|”


    1. राजनीति विज्ञान राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है-

    • ईस्टन तथा आमंड राजनीति शास्त्र को व्यवस्था का अध्ययन मानते हैं|

    • राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत राज्य और सरकार की औपचारिक संरचनाओं के साथ-साथ उनको प्रभावित करने वाले और अनौपचारिक तत्वों के अध्ययन को शामिल किया जाता है|

    • ईस्टन “किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को जिससे उक्त समाज में बाध्यकारी या अधिकारपूर्ण नीति निर्धारण होते हैं, राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है|


    1. राजनीति विज्ञान निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है-

    • हर्बर्ट साइमन राजनीति विज्ञान को निर्णय प्रक्रिया का विज्ञान मानता है|

    • यदि राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन है और सरकार का मुख्य कार्य निर्णय निर्माण करना है, तो राजनीति शास्त्र को निर्णय प्रक्रिया का विज्ञान कहा जा सकता है|


    • Note- लासवेल राजनीति विज्ञान को मुलत: एक नीति विज्ञान मानता है|



    परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण की परिभाषाओं में अंतर-


    1. परंपरागत परिभाषाएं संकुचित दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र का अर्थ प्रतिपादित करती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएं विस्तृत दृष्टिकोण में राजनीतिशास्त्र का अर्थ प्रतिपादित करती है|

    2. परंपरावादी, राजनीति शास्त्र को केवल औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण, राजनीति शास्त्र को औपचारिक संस्थाओं के साथ-साथ अनौपचारिक तत्वों का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं|


    औपचारिक संस्थाए जैसे- राज्य, सरकार आदि|

    अनौपचारिक तत्व जैसे- शक्ति, प्रभाव, राजनीतिक व्यवस्था, निर्णय प्रक्रिया आदि|


    1. परंपरावादी परिभाषाएं राजनीति संरचना या ढांचे के अध्ययन पर बल देती है, जबकि आधुनिक परिभाषाएं राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन पर बल देती है|

    2. परंपरावादी परिभाषाएं आदर्शों एवं मूल्यों के अध्ययन पर बल देती है, जबकि आधुनिक परिभाषाएं तथ्यों के अध्ययन पर बल देती हूं|

    3. परंपरावादी परिभाषाएं राजनीति शास्त्र के अध्ययन में दार्शनिक, ऐतिहासिक और कानूनी पद्धतियों के अध्ययन पर बल देती है, जबकि आधुनिक परिभाषाएं अंत: अनुशासनात्मक उपागम और अनुभववादी पद्धतियों पर बल देती हैं|




    परंपरागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र-


    • परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र-


    • परंपरागत राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र का निर्धारण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को द्वारा सितंबर 1948 में विश्व के प्रमुख राजनीति शास्त्रियों का सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें परंपरागत राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्न को शामिल किया-

    1. राजनीति के सिद्धांत- अतीत एवं वर्तमान के राजनीतिक सिद्धांतों एवं विचारों का अध्ययन

    2. राजनीतिक संस्थाएं- संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक एवं स्थानीय शासन का तुलनात्मक अध्ययन

    3. राजनीतिक दल, दबाव समूह एवं लोकमत- राजनीतिक दल व दबाव समूह का, राजनीतिक व्यवहार एवं लोकमत का तथा शासन में नागरिकों के भाग लेने की प्रक्रिया का अध्ययन

    4. अंतरराष्ट्रीय संबंध- अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संगठन तथा अंतरराष्ट्रीय प्रशासन का अध्ययन|


    • विभिन्न परंपरागत राजनीतिशास्त्रियों तथा यूनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परंपरागत राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्न विषयवस्तु को शामिल किया जा सकता है-


    1. मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन- 

    • इसमें राज्य द्वारा व्यक्ति को प्रदत्त अधिकार एवं राज्य के प्रति पालन किए गए व्यक्ति के कर्तव्यो का अध्ययन किया जाता है|

    • तथा राज्य द्वारा व्यक्तियों के लिए तथा व्यक्तियों द्वारा राज्य की नीतियों को प्रभावित करने के तत्वों का अध्ययन किया जाता है|


    1. राज्य का अध्ययन-

    • यह राज्य के अतीत, वर्तमान, भविष्य का अध्ययन करता है|

    • गेटिल “राजनीति विज्ञान राज्य कैसा रहा की ऐतिहासिक गवेषणा, राज्य कैसा है का विश्लेषणात्मक अध्ययन, राज्य कैसा होना चाहिए की राजनीतिक व नैतिक परिकल्पना है|”


    1. सरकार का अध्ययन-

    • राजनीति शास्त्र के अंतर्गत सरकार के प्राचीन एवं आधुनिक स्वरूप का अध्ययन किया जाता है|

    • विभिन्न देशों में विद्यमान शासन प्रणालियों का अध्ययन किया जाता है|

    • शासन के विभिन्न अंग व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका का अध्ययन किया जाता है|


    1. स्थानीय संस्थाओं एवं राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन-

    • स्थानीय संस्थाएं जैसे-स्थानीय स्वशासन, संस्थाओं के संगठन, कार्य प्रणाली तथा कार्य क्षेत्र का अध्ययन करता है|

    • राष्ट्रीय समस्याएं जैसे- राष्ट्रीय एकता, अखंडता तथा विकास के मार्ग में बाधक समस्याओं का अध्ययन करता है तथा इन समस्याओं के आवश्यक हल सुझाता है|


    1. राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन-

    • राजनीतिक शास्त्र में आदर्शवाद, व्यक्तिवाद, अराजकतावाद, फासीवाद, समाजवाद, साम्यवाद तथा बहुलवाद जैसी विचारधाराओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है|

    • इन विचारधारा में यथार्थवादी एवं आदर्शवादी मूल्यों पर तथा राज्य की उत्पत्ति, राज्य तथा व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों के अलावा कानून, स्वतंत्रता, समानता आदि पर विचार प्रकट किए हैं|


    1. अंतर्राष्ट्रीय पक्ष का अध्ययन या अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन-

    • राजनीति शास्त्र में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन किया जाता है|


    1. संविधान व संवैधानिक संस्थाओं का अध्ययन-

    • संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक एवं स्थानीय शासन का तुलनात्मक अध्ययन|


    1. राजनीतिक दलों व दबाव समूहों का अध्ययन या सविधानेत्तर संस्थाओं का अध्ययन-

    • राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेकर सरकार का निर्माण करते हैं|

    • दबाव समूह गुप्त एवं अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं|

    • राजनीतिक दल व दबाव समूह लोकमत के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं|


    1. राजनय एवं अंतर्राष्ट्रीय विधि का अध्ययन-

    • राज्यों के पारस्परिक संबंध मुलत: राज्यों की विदेश नीति और राजनय की कुशलता पर निर्भर रहते हैं|

    • दूसरे देशों के साथ ‘युद्ध और शांति के प्रश्न’ समुद्री तट, खुला समुद्र, प्रत्यर्पण जैसे विषयों के संबंधों का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा निश्चित किया जाता है|


    1. विभिन्न देशों के संविधानो व संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन



    • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र-


    • आधुनिक दृष्टिकोण का अध्ययन क्षेत्र अधिक व्यापक और यथार्थवादी है|

    • आईनेमन के अनुसार “राजनीति शास्त्र का क्षेत्र अब इतना व्यापक हो गया है, कि उसमें संस्थागत संगठन, निर्णय निर्माण और क्रियाशीलता की प्रक्रियाओं, नियंत्रण की राजनीति, नीतियों और कार्य तथा विधिबद्ध प्रशासन के मानवीय वातावरण को भी सम्मिलित किया जाने लगा है|”

    • आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक कैटलिन, लासवेल, रोबोट डहल, फ्रीमैन आदि है|


    • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्न विषयवस्तु को शामिल किया जाता है-


    1. मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन-

    • मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को राजनीतिक कारकों के साथ ही अन्य गैर-राजनीतिक कारक भी प्रभावित करते हैं|

    • अतः राजनीतिक शास्त्र में मानव व्यवहार के साथ व्यवहार को प्रभावित करने वाले राजनीतिक और गैर-राजनीतिक कारकों का अध्ययन किया जाता है|


    1. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन-

    • आधुनिक दृष्टिकोण में मुख्य रूप से शक्ति, सत्ता, प्रभाव, नियंत्रण तथा निर्णय प्रक्रिया आदि अवधारणाओं का अध्यन किया जाता है|

    • इन अवधारणाओं के संदर्भ में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है| 


    1. सार्वजनिक समस्याओं के संदर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन-

    • मेरान व बेनफील्ड “किसी समस्या को संघर्षपूर्ण बनाने वाली अथवा उसका समाधान खोजने वाली सभी गतिविधियां राजनीति है|”

    • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक महत्व की सार्वजनिक समस्याओं पर पाई जाने वाली संघर्ष एवं सहमति की प्रवृत्ति का अध्ययन राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु है|

    1. समूहों की भूमिका एवं उनके आचरण का अध्ययन-


    • इनके अलावा प्रशासन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, विचारधारा, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा सैन्य विज्ञान आदि भी आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र है|


     अध्ययन क्षेत्र के विषय में परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण में अंतर-


    1. काल का अंतर-

    • द्वितीय विश्वयुद्ध तक परंपरागत दृष्टिकोण

    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आधुनिक दृष्टिकोण


    1. स्वरूप का अंतर-

    • परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राज्य, सरकार एवं राजनीतिक संस्थाओं के संगठन व कार्यों तथा व्यक्ति व राज्यों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन वैधानिक पद्धति से किया जाता था|

    • आधुनिक दृष्टिकोण में व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन  व्यवहारवादी दृष्टिकोण से किया जाता है|


    1. विषयवस्तु का अंतर-

    • परंपरागत दृष्टिकोण राजनीति को पूर्ण विज्ञान मानता है तथा अन्य विषयों की मदद लेना उचित नहीं मानता है|

    • आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति शास्त्र का संबंध अन्य समाज विज्ञानों से स्थापित करता है, जैसे- मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि| 

    • इस प्रकार परंपरागत दृष्टिकोण अनुशासनात्मक दृष्टिकोण है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण अंत:अनुशासनात्मक दृष्टिकोण है|


    1. औपचारिक एवं अनौपचारिक अध्ययन- 

    • परंपरागत दृष्टिकोण में औपचारिक अध्ययन किया जाता है|

    • आधुनिक दृष्टिकोण में औपचारिक अध्ययन के साथ अनौपचारिक अध्ययन भी किया जाता है|


    1. अध्ययन पद्धति में अंतर-

    • परंपरागत दृष्टिकोण में ऐतिहासिक, दार्शनिक, तुलनात्मक अध्ययन पद्धति का प्रयोग किया जाता है| इससे अध्ययन आदर्शवादी एवं व्यक्तिनिष्ठ हो जाता है, जो कि अध्ययन पद्धति को  अवैज्ञानिक बना देता है

    • आधुनिक दृष्टिकोण में समाज विज्ञानों की वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है| जैसे- सांख्यिकीय, गणितीय, सर्वेक्षणात्मक पद्धति|

    • आधुनिक दृष्टिकोण में यथार्थवादी, मूल्य निरपेक्ष एवं वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण का प्रयोग किया जाता है|


    1. प्रमाणिकता एवं निश्चयात्मकता की मात्रा में अंतर-

    • आधुनिक दृष्टिकोण परंपरागत दृष्टिकोण की अपेक्षा अधिक प्रमाणिक, निश्चयात्मक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है|

    • वैसे प्रमाणिकता एवं निश्चयात्मकता की दृष्टि से दोनों ही अपूर्ण है|



    परंपरागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के उपागम- 


    • परंपरागत दृष्टिकोण के उपागम-


    1. दार्शनिक उपागम-

    • समर्थक- प्लेटो, अरस्तु, हेगेल, रूसो, थॉमस मुर, गाँधी 

    • यह अध्ययन का सबसे प्राचीन उपागम है|

    • इसे आदर्शवादी या आदर्शात्मक विचारवादी उपागम भी कहते हैं|

    • यह कल्पना एवं आदर्शों पर आधारित है|

    • इसे निगमनात्मक, नैतिक, तत्वमीमांसक व चिंतन मूलक पद्धति कहते हैं|

    • यह निर्देशात्मक व मानकीय उपागम है|

    • इसमें नीतिशास्त्र व दर्शनशास्त्र पर बल दिया जाता है|

    • यह दर्शनशास्त्र के सबसे निकट उपागम है|

    • यह निश्चित मूल्यों के आधार पर राज्य या समाज का अध्ययन करता है, अतः मानकीय उपागम है|

    • यह समष्टिवादी है, क्योंकि इसमें पूर्णता पर बल दिया जाता है|

    • यह क्या होना चाहिए पर बल देता है|

    • यह निगमनात्मक पद्धति है, क्योंकि पूर्व निश्चित नियमों व निष्कर्षों को प्राथमिकता दी जाती है|

    • इसमें आदर्श समाज की परिकल्पना की जाती है जैसे- प्लेटो का न्याय युक्त आदर्श समाज, गांधीजी का रामराज, कार्ल मार्क्स का साम्यवाद, कांट का यूरोपीय संघ, डेविड हेल्ड आर्थर मुरे की विश्व सरकार, अरविंद घोष की विश्व संघ अवधारणा आदि|

    • नव परंपरावादी लियो स्ट्रास कहता है कि “सेनापति का लक्ष्य युद्ध में विजय प्राप्त करना है, किंतु शासक का लक्ष्य अच्छे जीवन की खोज करना है|”


    • दार्शनिक उपागम की कमियां-

    • यथार्थ व आदर्श में भेद नहीं करता|

    • काल्पनिकता व आत्मपरकता पर आधारित|

    • यह उपागम व्यक्ति को साधन मानकर इसे राज्य की वेदी पर चढ़ा देता है| 

    • जैसे-

    1. प्लेटो का दार्शनिक राजा सर्वज्ञ होने के कारण किसी बंधन के अधीन नहीं है|

    2. हेगेल का राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार या विचरण है|

    3. रूसो का राज्य प्रभु कोई त्रुटि नहीं कर सकता है|


    • कार्ल पॉपर ने अपनी पुस्तक ओपन सोसायटी एंड इट्स एनीमीज 1954 में इस उपागम को खुले समाज का शत्रु कहा है|


    1. मानकीय उपागम-

    • समर्थक- प्लेटो, गाँधी

    • यह क्या होना चाहिए अर्थात आदर्श क्या है, बताता है|

    • मानकीय उपागम को दो भागों में बांटा जाता है-

    1. न्यूनतम मानकीय उपागम- यह आदर्श मानक को इस तरह निर्धारित करता है कि कोई तत्व उस स्तर से नीचे न आए|

    2. अधिकतम मानकीय उपागम- यह आदर्श मानक को इस तरह निर्धारित करता है कि कोई तत्व इस उत्तम मानक या आदर्श को प्राप्त ही न कर सके|

    • अर्थात यह उपागम उच्चतम व न्यूनतम मानक निर्धारित करता है|

    • यह उपागम निदेशकों, मूल्यों, आचरणों के उच्चतम मानकों पर बल देता है|

    • यह सभी अन्वेषकों में एक दिशा, एक दृष्टि, एक लक्ष्य देखने का प्रयास करता है|


    • मानकीय उपागम की कमियां-

    • यह उपागम भी दार्शनिक उपागम की तरह आत्मपरक व काल्पनिक तथा एक पक्षीय है|

    • इस उपागम का अनुसरण करने वाले विचारक रूढ़िवादी या आदर्शवादी है| 

    • रूढ़िवादी- ऐसे विचारक जो तत्कालीन व्यवस्था को उचित ठहराने का प्रयास करते हैं| जैसे- बर्क, ओकशॉट 

    • आदर्शवादी विचारक- ऐसे विचारक जो तत्कालीन व्यवस्था से भिन्न आदर्श व्यवस्था का सुझाव देते हैं| जैसे-प्लेटो, हेगेल, रूसो


    1. ऐतिहासिक उपागम-

    • प्रमुख समर्थक या इसको अपनाने वाले विचारक-

    • अरस्तु, हेगेल, मैक्यावली, मांटेस्क्यू, बर्क, सेबाइन, डनिंग, M C इवामन, बर्गेस, पोलक, सीले, फ्रीमैन, मिल, हेनरीमेन आदि|

    • यह उपागम राजनीतिक घटनाओं व संस्थाओं का अध्ययन इतिहास के आधार पर करता है, क्योंकि राजनीतिक संस्थाओं, आदर्शों, सिद्धांतों और समस्याओं की जड़े इतिहास में होती हैं|

    • इसके समर्थकों के अनुसार ऐतिहासिक आधार पर बने सिद्धांत तथ्यपरक एवं वैज्ञानिक होते हैं|

    • इस उपागम का जनक J H सेबाइन को माना जाता है|

    • J H सेबाइन (ए हिस्ट्री ऑफ़ पोलिटिकल थ्योरी 1937) “वर्तमान राजनीति विज्ञान की विषय सूची में जो विषय है, उनका विकास इतिहास के पन्नों में मिलता है|”

    • सेबाइन के अनुसार “वर्तमान राजनीति का अध्यन, अतीत की घटनाओं के संदर्भ में करना चाहिए|”

    • सेबाइन के अनुसार किसी भी राजनीतिक संस्था अथवा अवधारणाओं का जन्म एका-एक नहीं होता है| सब राजनीतिक संस्थाएं या सिद्धांत ऐतिहासिक चरणों से गुजर कर अपने स्वरूप में पहुंचते है| सामाजिक- आर्थिक संकट के कारण नए विचारक जन्म लेते हैं तथा नए विचार उत्पन्न होते हैं| जैसे- यूनान की परिस्थितियों ने प्लेटो, अरस्तु को जन्म दिया, इंग्लैंड की गृह युद्ध की परिस्थितियों ने हॉब्स, लॉक को जन्म दिया, भारत की औपनिवेशिक परिस्थितियों ने गांधी को जन्म दिया|

    • मैक्यावली ने रोमन साम्राज्य के इतिहास का अध्ययन कर शासकों को सुझाव दिया कि उन्हें प्राचीन रोमन साम्राज्य के गौरव को पुनः स्थापित करना चाहिए|

    • बर्क ने इंग्लैंड के राजनीतिक इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर कहा कि “राजनीतिक संस्थाएं धीरे-धीरे विकसित होती है|”

    • फ्रीमैन “इतिहास बीती हुई राजनीति है, राजनीति आज का इतिहास है|


    • ऐतिहासिक उपागम की आलोचना-

    • इसमें अध्ययन कर्ता पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है तथा उपयुक्त तथ्यों के चयन के अभाव में निष्कर्ष गलत निकाले जा सकते हैं|

    • कुछ ऐतिहासिक सिद्धांत अप्रासंगिक हो सकते हैं|


    Note- राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक किसी देश की राजनीति के विश्लेषण के लिए वहां की राजनीति संस्कृति का अध्ययन जरूरी समझते हैं|

    राजनीतिक संस्कृति- राजनीतिक संस्कृति के अंतर्गत उस देश में उन प्रचलित मान्यताओं, मूल्यों,  मानकों का अध्ययन करते हैं, जो शासक वर्ग, शासन प्रणाली, शासन प्रक्रिया को वैधता प्रदान करते हैं|


    1. संवैधानिक या कानूनी या विधि या वैधानिक उपागम-

    • यह उपागम राजनीति में संविधान, कानून पर बल देता है|

    • इस उपागम में राज्य, सरकार, न्याय, अधिकार, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय कानून का अध्ययन किया जाता है|

    • प्रमुख समर्थक- बार्कर, ऑग, सिसरो, बोदाँ, हॉब्स, बेंथम, डायसी, कार्टर, हर्जन्यूमैन, बुलर्से  थियोडोर|


    • आलोचक- बहुलवादी, श्रेणी समाजवादी, श्रमिक संघवादी तथा अनुभववादी इसके आलोचक हैं|


    1. संस्थागत उपागम-

    • इस उपागम में संवैधानिक एवं गैर संवैधानिक संस्थाओं का औपचारिक अध्ययन किया जाता है |

    • इसकी शुरुआत अरस्तु के विचारों से हुई है|

    • संवैधानिक संस्थाएं- कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका  आदि|

    • गैर संवैधानिक संस्थाएं- नीति आयोग, राजनीतिक दल, दबाव समूह आदि|


    • प्रमुख समर्थक- सारटोरी, डुवर्जर, लार्ड जेम्स ब्राइस, हेराल्ड लास्की, मेक्रिडेस, कार्ल जे फ्रेडरिक, हरमन फाइनर 

    • Note- यह उपागम कानूनी उपागम के साथ निकट से जुड़ा हुआ है|


    नव संस्थावाद उपागम- (समकालीन या आधुनिक उपागम)

    • वर्तमान में 1970 के बाद संस्थावाद का स्वरूप नवसंस्थावाद हो गया|

    • इसमें संस्थाओं का औपचारिक व अनौपचारिक अध्यन किया जाता है|  

    • प्रमुख समर्थक- डगलस नार्थ, थीयोडोर लेबी, माइकल हेंज, मार्च, जोहान ओल्सेन, आखेलन आदि|


    1. संदर्भात्मक उपागम-

    • इस उपागम में परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय है|

    • इसको परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच की कड़ी कहा जाता है|

    • ऐतिहासिक उपागम पर आधारित है| इसके अनुसार सभी विचारक या लेखक अपने समय के उत्पाद होते हैं|

    • इस उपागम में द्वितीयक आंकड़ों के साथ-साथ प्राथमिक आंकड़ों का उपयोग किया जाता है|


    • प्रमुख समर्थक- मार्श व बटलर 

    • अन्य समर्थक- क्वेंटिन स्किनर, जे जे पोकॉक, जॉनडन, पीटर विंच, कैंब्रिज स्कूल के विचारक|

    • Note- इस उपागम को नवीन उपागम की श्रेणी में रखा जाता है| 


               आलोचना

    • संदर्भवादी केवल अपने दृष्टिकोण को ही किसी विषय का अर्थ जानने के लिए आवश्यक समझते हैं|

    • ये ऐतिहासिक दर्शन का उपयोग करते हुए भी अपने साधन को आधुनिक मानते हैं|


    1. तुलनात्मक उपागम-

    • इस उपागम के अंतर्गत विभिन्न घटनाओं, संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है|

    • इसमें विभिन्न देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है|

    • तुलनात्मक उपागम का सर्वप्रथम प्रयोग अरस्तु ने किया था| अरस्तु ने 158 संविधानो की तुलना करके यह परिणाम निकाला कि शासन व्यवस्थाएं परिवर्तन चक्र में रहती है|


    • समर्थक- अरस्तु, लॉर्ड ब्राइस, मांटेस्क्यू, डी टॉकविले 

    • G A आमंड ने इस उपागम की प्रशंसा करते हुए कहा कि “तुलनात्मक होना वैज्ञानिक है|”



    • आधुनिक दृष्टिकोण के उपागम या अध्ययन पद्धतियां-

    1. अंतर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण-

    • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र के अध्ययन में मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र जैसे विषयों का भी प्रयोग किया जाता है| 

    • S M लिप्सेट “समकालीन राजनीतिक सिद्धांत, एक राजनीतिक प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक मात्रा में एक राजनीतिक समाज विज्ञान व मनोविज्ञान और मानकीय राजनीतिक सिद्धांत है|”


    1. समाजवादी उपागम-

    • डेविड ईस्टन एवं आमंड ने यह प्रतिपादित किया है कि समाज विज्ञान के क्षेत्र में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है, इसकी मदद से राजनीतिक व्यवहार के नियम निर्धारित किए जाते हैं|

    • काम्टे (प्रत्यक्षवाद) व स्पेंसर के समाज विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग से इस उपागम का महत्व बढ़ा है |


    1. व्यवहारवादी उपागम-

    • इसके अनुसार व्यक्ति के व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया जाता है|

    • व्यवहारवादी उपागम-

    1. व्यवस्था उपागम- डेविड ईस्टन

    2. संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम- आमंड

    3. संचार या संप्रेषण उपागम- कार्ल डॉयच 

    4. निर्णय निर्माण उपागम- साइमन


    1. मनोवैज्ञानिक उपागम-

    • इस उपागम के समर्थक मनोवैज्ञानिक नियमों का प्रयोग राजनीति शास्त्र में करते हैं|

    • जैसे-लासवेल द्वारा सिगमंड फ्रायड के मनोविज्ञान का राजनीतिक व्यवहार के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया गया|

    • समर्थक- ग्राहम वैलेस ‘Human nature in Politics 1908’, लासवेल ‘Who gets, what, when, how 1936’


    1. प्रत्यक्षवाद-

    • प्रत्यक्षवाद के अनुसार केवल वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त ज्ञान ही उपयुक्त, विश्वस्त, प्रमाणिक होता है| 

    • प्रत्यक्षवाद का प्रवर्तक फ्रांसीसी दार्शनिक ऑगस्ट काम्टे को माना जाता है|

    • ऑगस्ट काम्टे की कृति द पॉजिटिव फिलोसोफी 1830 है|


    • ऑगस्ट काम्टे (द पॉजिटिव फिलॉसफी) के अनुसार ज्ञान की तीन अवस्थाएं हैं-

    1. धर्म मीमांसीय अवस्था-

    • ज्ञान की आरंभिक अवस्था

    • इसमें सब घटनाओं की व्याख्या अलौकिक संदर्भ में की जाती है|


    1. तत्व मीमांसीय अवस्था-

    • ज्ञान की मध्यवर्ती अवस्था

    • इसमें सब घटनाओं की व्याख्या अमूर्त तत्वों (जिसको देख ना सके) और अनुमान के आधार पर की जाती है|

    • यह नकारात्मक अवस्था है, जो नई अवस्था की स्थापना पुरानी अवस्था को मिटाकर करती है|

    • यह प्रत्यक्षवादी दर्शन की भूमिका तैयार करती है|


    1. वैज्ञानिक प्रत्यक्षवादी अवस्था-

    • इसके अनुसार सभी घटनाएं निर्विकार प्राकृतिक नियमों से होती हैं| जिनका  निरीक्षण करके नियमों का पता लगाया जा सकता है|


    • Note- काम्टे के अनुसार विज्ञान और दर्शन एक ही श्रेणी का ज्ञान है| जिससे धर्म मीमांसा और तत्व मीमांसा से पृथक करके पहचान सकते हैं|

    • काम्टे के अनुसार विज्ञान का सरोकार न केवल तथ्यों से है, बल्कि मूल्यों का ज्ञान भी प्रदान करता है|


    1. नव प्रत्यक्षवाद या तार्किक प्रत्यक्षवाद-

    • मैक्स वेबर तथा वियना सर्किल (विश्वविद्यालय) के सदस्यों को इसका प्रवर्तक माना जाता है|

    • इसमें केवल तथ्यों पर बल दिया गया है तथा कहा गया है कि हमें उसी ज्ञान पर विश्वास करना चाहिए, जिसे प्राकृतिक विज्ञान की कठोर पद्धति से प्राप्त किया हो|

    • मैक्स वेबर ने अपने निबंध ‘साइंस एज वोकेशन’ 1919 में कहा कि “विज्ञान हमें इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता कि हमें क्या करना चाहिए|”

    • टी डी वेल्डन ने अपनी पुस्तक वोकैबुलरी ऑफ पॉलिटिक्स 1953 में मैक्स वेबर की इस मान्यता को दोहराया कि कोई भी राजनीतिक दर्शन अपनी अपनी रुचि का विषय है, अतः इस पर तर्क-वितर्क का कोई फायदा नहीं है|


    • वियना सर्किल (विश्वविद्यालय) में यह संप्रदाय 1920 में मेरिटत्ज शिल्क के नेतृत्व में विकसित हुआ|

    • कैंब्रिज विश्वविद्यालय में यह लुडविख विट्जेस्टाइन तथा ऑक्सफोर्ड में यह ए जे एयर के नेतृत्व में आगे बढ़ा|


    1. तार्किक चयन सिद्धांत (Rational Choice Theory)-

    • समकालीन राजनीति के सैद्धांतिक दृष्टिकोण को औपचारिक राजनीतिक सिद्धांत, तर्कसंगत चयन सिद्धांत, सार्वजनिक चयन सिद्धांत, राजनीतिक अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है| 

    • यह सिद्धांत संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न हुआ और विशेष रूप से वर्जिनियां स्कूल के साथ जुड़ा हुआ है| 

    • सार्वजनिक चयन सिद्धांत हित समूह की राजनीति का एक सकारात्मक सिद्धांत है, जो राजनीतिक और नीतिगत समस्याओं के लिए बाजार विनिमय के सूक्ष्म आर्थिक दृष्टिकोण को लागू करता है, अर्थात किसी भी निर्णय का तर्क अधिकतम लाभ और न्यूनतम लागत की तलाश करना है।

    • दल प्रतियोगिता, हित समूह व्यवहार और नौकरशाहों के नीतिगत प्रभाव जैसे क्षेत्रों में एंथनी डाउन्स, ओल्सन और विलियम निस्केनन ने ऐसी तकनीक का उपयोग किया है| 


    1. आनुभविक उपागम

    • यह तथ्यों व आंकड़ों को वस्तुपरक ढंग से प्रस्तुत करता है|

    • यह सिद्धांत व शोध के संगम पर बल देता है|

    • यह मूल्य रहित राजनीति का विवेचन करता है|

    • यह उपागम प्रयोगवादी व निरीक्षणवादी दोनों है|

    • यह उपागम अंतर शास्त्रीय स्वरूप पर बल देता है|

    • इसके अनुसार भविष्यवाणी संभव है|

    • समर्थक- आर्थर बेंटले, चार्ल्स मेरियम, कैटलिन, लासवेल, शिल्स, ईस्टन आदि|


    आधुनिक दृष्टिकोण की अन्य अध्ययन पद्धति या विशेषताएं-

    1. मुक्त अध्ययन

    2. वैज्ञानिकता

    3. मूल्य मुक्त अध्ययन

    4. यथार्थवादी अध्ययन

    5. व्यवहारवादी अध्ययन

    6. एक मौलिक समाज विज्ञान के रूप में उदय

    7. नवीन राजनीतिक शब्दावली का प्रयोग 

    8. आर्थिक उपागम- एंथनी डाउन्स (An Economic Theory of democracy 1957)



    आधुनिक दृष्टिकोण में परंपरागत दृष्टिकोण के शब्दों की जगह नवीन राजनीतिक शब्दावली- 


    परंपरागत उपागम

    आधुनिक उपागम

    1. राज्य की जगह (State)

    राजनीतिक प्रणाली या व्यवस्था (Political System)

    1. शक्तियों की जगह (Powers)

      कार्य (Function)

    1. पद की जगह (Office)

      भूमिका (Roles)

    1. संस्थाओं की जगह (Institutions)

    संरचनाएं (Structures)

    1. लोकमत की जगह (Public Opinion)

    राजनीतिक संस्कृति (Political Culture)

    1. नागरिकता की शिक्षा की जगह (Citizenship Education)

    राजनीतिक समाजीकरण (Political Socialization)

    समकालीन उपागम-

    1. ऐतिहासिक उपागम-

    • प्रतिपादक- सेबाइन (A History of Political Theory 1937)

    • आलोचक इस उपागम को राजनीतिक दर्शन की लोकवार्ता कहते हैं|

     

    1. समाजशास्त्रीय उपागम-

    • प्रतिपादक- कैटलिन

    • “शक्ति राजनीतिक संबंधों का एकमात्र आधार है|”


    1. दार्शनिक दृष्टिकोण या स्ट्रेसियन दृष्टिकोण-

    • प्रतिपादक- लियो स्ट्रास

    • अन्य समर्थक- माइकल ऑकशॉट, वोएगलिन, जूवेनेल 

    • लियो स्ट्रास प्रत्यक्षवाद व इतिहासवाद दोनों का विरोध करता है व राजनीतिक दर्शन का समर्थन करता है| 

    • स्ट्रास ने ग्रंथों की व्याख्या करने पर बल दिया है| वह कहते हैं कि लेखक सामान्यत: लिखते समय अपने मंतव्य को छुपाते हैं, क्योंकि वह अपने समय के रूढ़िवादिता का विरोध नहीं सहना चाहते हैं, इसलिए प्राचीन एवं मध्य युग के विचारको के ग्रंथों का अध्ययन लेखक के वास्तविक मंतव्य को पहचान के करना चाहिए| 

    • लियो स्ट्रास- सेबाइन को ‘राजनीतिक दर्शन का कट्टर प्रतिपक्षी’ तथा कैटलिन को ‘कट्टर प्रत्यक्षवादी’ कहकर आलोचना की है|


    1. एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण-

    • प्रतिपादक- कार्ल जे फ्रेडरिक

    • उपयुक्त तीनों का समन्वय करता है|


    1. उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण या उत्तर संरचनावादी दृष्टिकोण-

    • इस दृष्टिकोण में भाषा के महत्व माना जाता है| 

    • समर्थक- नीत्से, मिशेल फूको, दरिंदा, लियोटार्ड

    • नीत्से का विचार है कि दर्शन का निर्माण भाषा के माध्यम से होता है| भाषा एवं चेतना का विकास साथ-साथ हुआ है| 



    परंपरागत दृष्टिकोण का महत्व-


    • आज भी अनेक विचारक है, जो वर्तमान राजनीति में मूल्यों व नैतिकता पर बल देखकर परंपरागत दृष्टिकोण का समर्थन कर रहे है| 


    परंपरागत दृष्टिकोण के समर्थक आधुनिक विचारक निम्न है-


    नव परंपरावादी विचारक-

    • ऐसे विचारक जो वर्तमान में यथास्थिति के समर्थक हैं तथा परंपरागत दृष्टिकोण के सभी नियमों में पूर्ण आस्था रखते हैं|

    • व्यवहारवादी रॉबर्ट डहल नव परंपरावादियों को परानुभववादी कहता है|

    • प्रमुख नव परंपरावादी विचारक-

    1.लियो स्ट्रास          2. माइकल ऑकशॉट     3. वोएगलिन

     4.जूवेनेल                5. बक्ल                      6.सिबली

     7. दांते जर्मिनो         8 मेटलैंड


    नव मार्क्सवादी विचारक-

    • नव मार्क्सवादी तरुण मार्क्स या युवा मार्क्स के विचारों से प्रभावित थे|

    • इसमें आर्थिक शोषण के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी आदि सभी प्रकार के शोषण का विरोध किया गया है|

    • नव मार्क्सवाद का विकास जर्मनी के फ्रैंकफर्ट स्कूल (आलोचनात्मक दृष्टिकोण) में 1923 में हुआ था|

    • प्रमुख नव मार्क्सवादी विचारक-

    1. हरबर्ट मार्क्यूजे          2. हरखाइमर           3. हेबर मास

    4. लुइ अल्थुस              5. एरिक फ्रॉम          6.जार्ज अल्थूकॉच

    7.जान पॉल सात्र           8. फ्रांज फेनन           9.चे ग्वारा

    10. ग्राम्शी                 11.हमजा अल्वी          12. थियोडोर अडोर्नी 



    स्वेच्छातंत्रवादी विचारक या नवउदारवादी या विमुक्तिवादी विचारक-


    • ऐसे विचारक जो नकारात्मक उदारवाद तथा अबाध स्वतंत्रता के समकालीन समर्थक हैं|

    • ये व्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता या समानता पर बल देते हैं|

    • नव उदारवाद को नव दक्षिणपंथी भी कहा जाता है|

    • प्रमुख नव उदारवादी विचारक-

       1.F A हेयक          2.आइजिया बर्लिन 

        3.रॉबर्ट नॉजिक     4. मिल्टन फ्रीडमैन


    F A हेयक-

    • पुस्तक- द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ लिबर्टी 1960 

    • इस पुस्तक में नव उदारवाद की विचारधारा का आधार रखा|

    • हेयक राज्य के नकारात्मक पक्ष पर बल देते हैं, राज्य का कार्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है|

    • हेयक को नव उदार पूंजीवाद का बौद्धिक जनक कहा जाता है|


    आइजिया बर्लिन-

    • पुस्तक-Two Concept of Liberty 1958 

               Four Essay On Liberty 1969 

               Does Political Theory exist

    • आइजिया बर्लिन ने अपनी पुस्तक Does Political Theory exist पुस्तक में कहता है कि “व्यवहारवाद के कारण हो सकता है कि परंपरागत राजनीति का कोई अंश अप्रचलित हो गया हो, लेकिन इनका बड़ा भाग आज भी प्रचलित है|”

     

    रॉबेर्ट नॉजिक-

    • पुस्तक- Anarchy state and Utopia 1974 

    • स्वेच्छातंत्रवाद का श्रेष्ठतम आधुनिक समर्थक माना जाता है|


    मिल्टन फ्रीडमैन-

    • पुस्तक- Capitalism and freedom 1962 



    राजनीति सिद्धांत में तथ्य- मूल्य विवाद-


    • राजनीतिक सिद्धांत का सरोकार राजनीति विज्ञान और राजनीति दर्शन दोनों से हैं| इसमें कुल मिलाकर तीन तरह के कथन की जरूरत होती है-

    1. अनुभवमूलक कथन-

    • सब मनुष्यों में निरीक्षण की एक जैसी क्षमता पाई जाती है, अतः हम अपने अनुभव को दूसरे के अनुभव से मिलाकर उसकी पुष्टि और सत्यापन कर सकते हैं|


    1. तार्किक कथन-

    • सब मनुष्यों की एक जैसी तर्कबुद्धि होती है, अतः हम अपने कथन को तर्क की कसौटी पर कसकर उसकी पुष्टि और सत्यापन कर सकते हैं|


    1. मूल्यपरक कथन-

    • ये व्यक्तिगत या सामूहिक निर्णय के विषय हैं, इनकी जांच करने की कोई विश्वसनीय विधि या अंतिम कसोटी नहीं है, अतः ऐसे कथन पर मतभेद होना स्वाभाविक है|


    • राजनीतिक दर्शन या परंपरागत दृष्टिकोण मूल्यों (मूल्यपरक कथन) से संबंधित है तथा राजनीतिक विज्ञान या आधुनिक दृष्टिकोण विज्ञान व तथ्यों (अनुभवमूलक कथन, तार्किक कथन) से संबंधित है|


    मूल्य व तथ्य में अंतर-


    1. मूल्य वे विश्वास या आदर्श होते हैं, जिनके आधार पर लोग राजनीतिक परिस्थिति, राजनीतिक कार्यों व घटनाओं का मूल्यांकन करते हैं ,जबकि तथ्य किसी वस्तु, घटना में देखे गए गुणों या निरीक्षण पर आधारित गुणों के समूह को कहते हैं| 

    2. मूल्य गुणात्मक होते हैं, इन्हें मापा नहीं जा सकता, जबकि तथ्य मात्रात्मक होते हैं, इन्हें मापा जा सकता  है|

    3. मूल्य व्यक्तिनिष्ठ व आत्मनिष्ठ होते हैं, जबकि तथ्य वस्तुनिष्ठ होते हैं|

    4. मूल्य कल्पनात्मक व आदर्शात्मक हो सकते हैं, जबकि तथ्य यथार्थ, व्यवहारिक व वैज्ञानिक होते हैं|

    5. मूल्यों का संबंध क्या होना चाहिए से है, जबकि तथ्यों का संबंध क्या है से है



    कुछ अन्य तथ्य-


    • एंड्रयू हैकर “परंपरागत राजनीतिक विज्ञान मुख्य रूप से मानकात्मक है, इसलिए इसका प्रतिपादक राजनीतिक दार्शनिक जैसा लगता है, आधुनिक राजनीति विज्ञान मुख्य तौर से व्यवहारपरक या अनुभवाश्रित है और इसलिए इसका प्रतिपादक राजनीतिक वैज्ञानिक जैसा लगता है|”

    • लासवेल व कैपलन “राजनीति विज्ञान एक व्यवहारवादी विषय के रूप में शक्ति को सवारने तथा मिल बांटकर प्रयोग करने का अध्ययन है|”

    • बक्ल “ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है|”

    • नार्मन जैकब्सन ने राजनीति विज्ञान की स्वायत्तता पर बल दिया है तथा कहा है कि “विज्ञानवाद राजनीति में से राजनीतिक को निकाल देगा जबकि नीतिवाद उससे सदाचरण का दुश्मन ठहरा कर उसे समाप्त कर देगा|”

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