संविधान की प्रस्तावना (Preamble of the Constitution)
- सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में प्रस्तावना को सम्मिलित किया गया| 
- प्रस्तावना संविधान का परिचय अथवा भूमिका/ कुंजी होती है| 
- प्रस्तावना नेहरू द्वारा संविधान सभा में पेश उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है| 
- संविधान सभा ने प्रस्तावना या उद्देशिका को प्रारूप संविधान के द्वितीय वाचन के अंतिम दिन 17 अक्टूबर 1949 को स्वीकार किया| 
- प्रस्तावना 26 जनवरी 1950 को प्रवर्तन में आई अर्थात लागू हुई| 
- भारत शासन अधिनियम 1919 में उद्देशिका का उल्लेख था, किंतु भारत शासन अधिनियम 1935 में उद्देशिका का उल्लेख नहीं किया गया| 
- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के द्वारा प्रस्तावना में संशोधन कर तीन शब्द जोड़े गए- 
- समाजवादी 
- पंथनिरपेक्षता 
- अखंडता 
- ये शब्द सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर जोड़े गए हैं| सरदार स्वर्ण सिंह उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में प्रतिरक्षा मंत्री थे| 
- 31 अक्टूबर 2019 से पूर्व समाजवादी, पंथ निरपेक्षता और अखंडता शब्द जम्मू कश्मीर के संदर्भ में लागू नहीं थे| 
- प्रस्तावना की भाषा ऑस्ट्रेलिया से ली गई| 
- प्रस्तावना को संविधान का दर्शन भी कहते हैं| 
- अंतिम रूप से प्रस्तावना B.N.राव ने तैयार की थी| 
- अर्नेस्ट बार्कर भारतीय संविधान की प्रस्तावना से बहुत प्रभावित थे तथा उन्होंने अपनी पुस्तक प्रिंसिपल ऑफ सोशल एंड पोलिटिकल थ्योरी 1961 की शुरुआत इस प्रस्तावना से ही की है| 
प्रस्तावना के प्रयोजन या तत्व-
प्रस्तावना से निम्न बातों का पता चलता है-
- संविधान का अधिकार स्रोत- प्रस्तावना के अनुसार सविधान भारत के लोगों से शक्ति अधिग्रहित करता है| (हम भारत के लोग) 
- भारत की प्रकृति- भारत की प्रकृति संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक होगी| 
- संविधान के उद्देश्य- प्रस्तावना के अनुसार न्याय, स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व संविधान के उद्देश्य है| 
- संविधान लागू होने की तिथि- 26 नवंबर 1949 
प्रस्तावना क्या नहीं है-
- प्रस्तावना वाद योग्य नहीं है| 
- प्रस्तावना शक्ति का स्रोत नहीं है| 
- प्रस्तावना विधानमंडल की शक्तियों पर प्रतिबंध या मर्यादा लगाने का स्रोत नहीं है| 
प्रस्तावना का महत्व-
- इसमें जनता की भावनाएं व आकांक्षाएं सूक्ष्म रूप से समाविष्ट है| 
- संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है| 
- इसमें वे उद्देश्य हैं, जिन्हें संविधान स्थापित करना चाहता है या आगे बढ़ाना चाहते हैं| 
- सविधान के निर्वचन (समझने) में सहायक है| अर्थात जहां संविधान के अनुच्छेदों की भावनाएं अस्पष्ट है वहां स्पष्टता हेतु प्रस्तावना में वर्णित दर्शन सहायक है| 
प्रस्तावना के मुख्य शब्द-
- हम भारत के लोग- 
- अंतिम शक्ति भारतीय जनता 
- संविधान को स्वीकार करने वाली भारतीय जनता 
- मूल रूप में यह शब्द अमेरिकी संविधान में था- We The People Of U.S.A 
- यहां से UNO के चार्टर में आया- We The People Of United Nations 
- हम भारत के लोग अमेरिका से प्रेरित है| 
- संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न- 
- भारत अपने आंतरिक तथा बाह्य दोनों मामलों में स्वतंत्र है| 
- न किसी अन्य देश पर निर्भर है और न किसी का डोमिनियन है| 
- भारतीय संविधान ब्रिटिश पार्लियामेंट की देन नहीं है| 
- समाजवादी- 
- 42 वें संविधान संशोधन द्वारा सम्मिलित| 
- यह लोकतांत्रिक समाजवाद है, न कि साम्यवादी समाजवाद| 
- कांग्रेस द्वारा समाजवाद की स्थापना के लिए 1955 के अवाड़ी (चेन्नई) सत्र में एक प्रस्ताव पारित किया| 
- साम्यवादी समाजवाद की तरह हमारे समाजवाद में निजी संपत्ति का उन्मूलन नहीं है, बल्कि निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्र साथ कार्य करते हैं| 
- हमारे समाजवाद में केवल निजी संपत्ति पर कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं| 
- लेकिन 1991 की आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण ने समाजवाद को कुछ कमजोर किया है| 
- 2004 में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब राज्य बनाम मॉडर्न वाद में कहा कि समाजवाद हमारे इतिहास का आकर्षक शब्द रहा होगा, परंतु 1990 के दशक से केंद्र सरकार ने जो उदार नीति अपनाई है उससे यह बात तो समाप्त हो चली कि भारतीय समाज समाजवाद से जुड़ा है| 
Note- S.C ने बलसारा बनाम असम राज्य वाद मे समाजवाद को 39 B व 39 C के रूप में परिभाषित किया है|
Note- D S नकारा वाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय समाजवाद की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘भारतीय समाजवाद गांधीवाद और मार्क्सवाद का मिश्रण है, जिसका झुकाव गांधीवाद की ओर है|’
- डॉ अंबेडकर ने संविधान में समाजवाद शब्द को जोड़ने का विरोध किया था, क्योंकि अंबेडकर संविधान का किसी विशेष विचारधारा के प्रति झुकाव को उचित नहीं मानते थे| 
- समाजवाद का दर्शन प्रस्तावना में शामिल होने से पहले राज्य के नीति निदेशक तत्वों में इसका समावेशन दिखाई देता है| अंबेडकर के अनुसार अनुच्छेद 39 में वर्णित निर्देशक तत्व विषय की दृष्टि से समाजवादी हैं| 
- पथनिरपेक्षता- 
- 42 वे संविधान संशोधन द्वारा सम्मिलित| 
- पंथनिरपेक्ष राज्य का अर्थ/स्पष्टता संविधान में उल्लेखित नहीं है| 
- राज्य सभी धर्मों की समान रक्षा करेगा| 
- किसी धर्म विशेष को राज्य के धर्म के रूप में नहीं मानेगा| 
- संविधान सभा में वाद-विवाद के दौरान 17 अक्टूबर 1949 को एकमात्र सदस्य ब्रजेश्वर प्रसाद ने उद्देशिका में पंथनिरपेक्षता शब्द रखने की मांग की थी लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया| 
- लोकतांत्रिक- 
- लोकतंत्र के दो प्रकार- 
- प्रत्यक्ष 
- अप्रत्यक्ष 
- प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता शासन-शक्ति का इस्तेमाल प्रत्यक्ष करती हैं| जैसे- स्वीटजरलैंड 
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन चलाते हैं, इसे प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहते हैं| 
- अप्रत्यक्ष लोकतंत्र दो प्रकार- 
- संसदीय 
- राष्ट्रपति के अधीन (अध्यक्षात्मक ) 
- भारतीय संविधान में अप्रत्यक्ष/ प्रतिनिधि संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की गई है| 
- संसदीय लोकतंत्र में कार्यकारिणी अपनी सभी नीतियों और कार्यों के लिए विधायिका के प्रति जवाबदेही होती हैं| 
- जबकि राष्ट्रपति/अध्यक्षात्मक प्रणाली में कार्यकारिणी, विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होती| इसमें कार्यकारिणी, विधायिका से बिल्कुल अलग या स्वतंत्र होती है| 
- अनुच्छेद-75 मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी| 
- गणतंत्र- 
- लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के दो प्रकार 
- राजशाही 
- गणतंत्र 
- राजशाही व्यवस्था- 
- इसमें राज्य का प्रमुख राजा या रानी उत्तराधिकारिता के माध्यम से पद पर आसीन होता है| जैसे- ब्रिटेन 
- गणतंत्र व्यवस्था- 
- इस व्यवस्था में राजप्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निश्चित समय के लिए चुना जाता है| जैसे- अमेरिका 
- भारत मे गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था है| यहां का राजप्रमुख राष्ट्रपति पांच वर्ष के लिए अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है| 
- भारत के राष्ट्रपति की मुहर में राष्ट्रपति, भारत गणराज्य (President, republic of India) लिखा होता है| 
- गणतंत्र की विशेषता- 
- राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति के बजाय जनता में होती है| 
- किसी भी विशेषाधिकार वर्ग की अनुपस्थिति| 
- जनता सर्वोच्च होती है| 
- न्याय- 
- न्याय तीन प्रकार- 
- सामाजिक 
- आर्थिक 
- राजनीतिक 
- सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय रूसी क्रांति (1917) से लिए गए हैं| 
- सामाजिक न्याय- 
- सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना| 
- जाति, धर्म, रंग, लिंग, जन्मस्थान, मूलवंश आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव को रोकना| 
- वर्ग विशेष के विशेषाधिकारो की अनुपस्थिति 
- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार करना| 
- आर्थिक न्याय- 
- आर्थिक कारणों के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव न करना| 
- संपदा, आय व संपत्ति की असमानता को दूर करना| 
- यह वितरणवादी न्याय हैं, अर्थात उत्पादन के साधनों, धनसंपदा के न्यायोचित वितरण पर आधारित है| 
- NOTE- सामाजिक व आर्थिक न्याय का मिला जुला रूप आनुपातिक न्याय होता है| 
- राजनीतिक न्याय- 
- सभी व्यक्तियों को समान राजनीतिक अधिकार मिलना| 
- जैसे- व्यस्क मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश, सरकार तक बात पहुंचाना आदि| 
- NOTE- प्रस्तावना में न्याय को स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व से उच्च स्थान दिया गया है| 
- सामाजिक, आर्थिक न्याय को राजनीतिक न्याय से उच्च स्थान दिया गया है| 
- स्वतंत्रता- 
- स्वतंत्रता पांच प्रकार- 
- विचार 
- अभिव्यक्ति 
- विश्वास 
- धर्म 
- उपासना 
- स्वतंत्रता का अर्थ लोगों की गतिविधियां पर किसी प्रकार की रोक-टोक की अनुपस्थिति तथा साथ ही व्यक्ति के विकास के लिए अवसर प्रदान करना| 
- लेकिन भारतीय संविधान में स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं है, हमारे यहां सापेक्ष स्वतंत्रता है| दूसरे की स्वतंत्रता के हनन होने पर पाबंदी लगाई जा सकती है 
- समता/ समानता- 
- समता दो प्रकार - 
- प्रतिष्ठा 
- अवसर 
- समता का अर्थ समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेष अधिकारों की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करना| 
- व्यक्ति की गरिमा- 
- देश में बंधुत्व को बढ़ावा देने तथा सुदृढ करने हेतु प्रत्येक सदस्य की गरिमा सुनिश्चित रखना आवश्यक है| 
- K.M मुंशी के अनुसार- संविधान न केवल वास्तविक रूप में भलाई तथा लोकतांत्रिक तंत्र की मौजूदगी सुरक्षित करता है, बल्कि यह भी मानता है कि हर व्यक्ति का व्यक्तित्व पवित्र है| 
- मौलिक कर्तव्यों में एक कर्तव्य है कि हर नागरिक की जिम्मेदारी होगी कि वह स्त्री के गौरव को ठेस पहुंचाने वाली हरकत का त्याग करें| 
- एकता व अखंडता- 
- 42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा एकता ही जगह एकता व अखंडता शब्द जोड़ा गया| 
- एकता का अर्थ है सभी व्यक्ति अपने को एक भारतीय समझे| 
- अखंडता का अर्थ है कि भारत का कोई भी राज्य भारत से अलग नहीं हो सकता है| 
- बंधुत्व- 
- बंधुत्व का अर्थ- भाईचारे की भावना 
- अनु.- 51 ‘क’ ‘हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय, अर्थवर्ग विविधताओं से ऊपर उठ सौहार्द और आपसी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करेगा| 
- स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व (यूनियन ऑफ ट्रीनिटी)- अंबेडकर ने संविधान सभा में अपने भाषण में ने कहा कि “स्वतंत्रता को समता से और समता को स्वतंत्रता से पृथक नहीं किया जा सकता इन दोनों को बंधुता से भी पृथक नहीं किया जा सकता| 
- NOTE- प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व शब्द फ्रांस की क्रांति (1789) से लिए गए हैं| 
Note- प्रस्तावना में संविधान के उद्देश्यों, आधारभूत दर्शन, राजनीतिक, धार्मिक व नैतिक मूल्यों का उल्लेख है|
- प्रस्तावना में सविधान सभा की महान और आदर्श सोच का उल्लेख है| 
प्रस्तावना से संबंधित कथन-
- N.A. पालकीवाला “प्रस्तावना संविधान का परिचय पत्र है|” 
- अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर “संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है|” 
- K.M.मुंशी “प्रस्तावना हमारे संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य का भविष्यफल है|” 
- K.M.मुंशी “यह संविधान की राजनीतिक कुंडली है|” 
- गाडगिल “उद्देशिका की तुलना प्राचीन नाटकों के नंदी पाठ से की जा सकती है|” 
- सुभाष कश्यप “सविधान शरीर है तो उद्देशिका उसकी आत्मा, उद्देशिका आधारशिला है तो संविधान उस पर खड़ी अट्टालिका, प्रस्तावना निर्देश है तो संविधान के विभिन्न अनुच्छेद उस तथ्य की सिद्धि के लिए साधन है|” 
- आचार्य जे बी कृपलानी “उद्देशिका में रखे सिद्धांत गहन सिद्धांत है|” 
- पंडित गोविंद दास “उद्देशिका आदि वाक्य और संविधान की आधारशिला है|’ 
- पंडित ठाकुर दास भार्गव- 
- “प्रस्तावना संविधान का सबसे सम्मानित भाग है|” 
- “यह संविधान की आत्मा है|” 
- “यह संविधान की कुंजी है|” 
- “यह संविधान का आभूषण है|” 
- अर्नेस्ट बार्कर- “प्रस्तावना संविधान का कुंजी नोट है|” 
प्रस्तावना सविधान का भाग है या नहीं-
- A K गोपालन बनाम मद्रास राज्य 1950- 
- उद्देशिका को न्यायालय में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता| 
- बेरुबारी संघ मामला 1960- 
- इस मामले में SC ने कहा की प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है| 
- जहां संविधान की भाषा अस्पष्ट व संदिग्ध हो वहां यह संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है| 
- बेरुबारी क्षेत्र जलाईपगुड़ी जिला, पश्चिमी बंगाल में था इसे 9वे संविधान संशोधन 1960 द्वारा पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) को दिया गया| 
- सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार 1965- 
- उद्देशिका विधि निर्माताओं के मस्तिष्क की कुंजी है| इसे किसी भी रीति से संविधान का औपचारिक भाग नहीं माना जा सकता है| 
- केशवानंद भारती मामला 1973- 
- इस मामले में SC ने कहा की प्रस्तावना संविधान का भाग है| 
- प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, मूल ढांचे को छोड़कर| 
- प्रस्तावना वाद योग्य नहीं है| 
- उद्देशिका संविधान के निर्वचन में सहायता प्रदान करती है, संविधान का निर्वचन उदेशिका की पवित्र भावना के अनुरूप ही किया जाना चाहिए| 
- इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण वाद 1975- 
- उद्देशिका संविधान के विशिष्ट प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकती है| उद्देशिका न तो किसी शक्ति का कोई स्रोत है और न ही संविधान को किसी प्रकार सीमित कर सकती है| 
- S.R. बोम्मई वाद 1994- 
- इसमें प्रस्तावना को संविधान का मौलिक ढांचा माना है| 
- LIC ऑफ इंडिया वाद 1995- 
- इसमें SC ने पुनः कहा कि प्रस्तावना संविधान का आंतरिक हिस्सा है| 
- वर्तमान स्थिति- 
- प्रस्तावना संविधान का भाग है व मूल ढांचा है| अत: अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन किया जा सकता है, लेकिन मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता| 

 
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