अंतरराष्ट्रीय राजनीति : एक परिचय
अर्थ-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अर्थ को समझने से पहले राजनीति का अर्थ समझते हैं|
राजनीति क्या है ?
क्विंसी राइट (पुस्तक- The study of International Relations 1955) में राजनीति को एक ऐसी कला मानता है, जिसके द्वारा प्रत्येक समूह, दूसरे समूह पर किसी न किसी तरह नियंत्रण रखकर अपने हितों को निरंतर आगे बढ़ाने का प्रयास करता है|”
इस तरह राजनीति की तीन अनिवार्यताएं हैं-
समूहों का अस्तित्व
समूहों के बीच मतभेद
दूसरों के कार्यों को नियंत्रित करने का प्रयत्न
शैल्डन वोलिन (पुस्तक- Politics and Vision: Continuity and Innovation in Western Political Thought 1960) “राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हम परिस्थितियों के अनुसार दूसरों के साथ ऐसे संबंध स्थापित करने का निरंतर प्रयत्न करते रहते हैं, जिनसे अपने लक्ष्य की अधिक से अधिक पूर्ति हो सके|”
बर्टेंड ज्यूविनल (पुस्तक- The Pure theory of Politics 1963) इन्होंने विवाद को ही राजनीति की जड़ माना है| अर्थात किन्ही दो राजनीतिक इकाइयों के बीच झगड़े कम होते हैं या ज्यादा, इस बात पर निर्भर है कि उनके बीच के विवाद की स्थिति कितनी उग्र है| यह विवाद कम या ज्यादा होता रहता है, पर समाप्त कभी नहीं होता है|
कुछ अन्य विद्वानों ने भी विवाद को राजनीति का आधार माना है जो निम्न है -
JDB मिलर (पुस्तक- The nature of politics 1962)
हेराल्ड लासवेल (पुस्तक- Politics: Who Gets What, When, How? 1936)
मौरिस कावलिंग (Maurice Cowling) (पुस्तक- The Nature and Limits of Political Science 1963)
रॉबर्ट “मानव समुदायों के ऊपर शासन करने की कला को ही राजनीति कहते हैं|” इसके अनुसार राजनीति का विषय क्षेत्र व्यापक है- परिवार, चर्च, ट्रेड यूनियन, फर्म या अन्य संघों और समुदायों के भीतर चलने वाली प्रतिस्पर्धा को उसने राजनीति का रूप दिया है|
मैक्स वेबर, जॉर्ज केटलिन, हेराल्ड लासवेल तथा रॉबर्ट डहल ने राजनीति को संघर्ष के रूप में माना है|
जॉर्ज केटलिन “समस्त राजनीति स्वभावत: शक्ति और संघर्ष से संबंधित है|”
मैक्स वेबर “राजनीति का अर्थ संघर्ष अथवा उन लोगों को प्रभावित करने की कला है, जिनके हाथों में सत्ता है| परस्पर राज्यों के बीच जो संघर्ष चलता रहता है अथवा राज्य के भीतर विभिन्न संगठित समुदायों के बीच होने वाला संघर्ष दोनों ही राजनीति के अंतर्गत आते हैं|”
प्रोफेसर वाइजमैन व प्रोफेसर रफेल ने राजनीति को सीमित साधनों का बटवारा करने की प्रक्रिया माना है|
डेविड ईस्टन ने राजनीति को मूल्यों का अधिकारिक आवंटन कहा है|
कैटलिन व लासवेल ने राजनीति को शक्ति की तलाश माना है|
लासवैल “राजनीति के अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि राजनीति शक्ति का क्या स्वरूप है और उसमें कौन-कौन भागीदार है|”
कर्टिस “राजनीति, शक्ति और उसके उपयोग के बारे में संगठित विवाद है|”
अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अर्थ-
विभिन्न देशों के मध्य की राजनीति को ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति कहते हैं|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की विभिन्न इकाइयां राष्ट्र होते हैं, जिनकी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को राष्ट्रीय हित कहा जाता है|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति का प्रथम विभाग अमेरिका वेल्स विश्वविद्यालय में 1919 में वुडरो विल्सन चेयर के नाम से स्थापित किया गया|
‘वुडरो विल्सन चेयर’ के पद पर एल्फ्रेड ज़िमर्न और चालर्स वेबस्टर की नियुक्ति 1919 में की गई तथा 1919 से अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन एक स्वतंत्र विषय के रूप में शुरू हुआ|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति के तीन महत्वपूर्ण तत्व हैं-
राष्ट्रीय हित
संघर्ष या विवाद
शक्ति
राष्ट्रीय हित अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का लक्ष्य है, संघर्ष उसकी प्रकृति है, तथा शक्ति उसका साधन है|
परंतु इन तीनों तत्वों में विवाद तत्व सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगर राष्ट्रों के बीच विवाद ही न होगा न तो राष्ट्रहित की सुरक्षा की समस्या उत्पन्न होगी और न उसके लिए शक्ति का प्रयोग करने की|
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की परिभाषाएं-
श्लीचर (पुस्तक- Introduction to International Relations 1954) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के मध्य संबंधों का अध्ययन करती है|” इसके अंतर्गत अंतर्राज्यीय राजनीतिक एवं अराजनीतिक संबंध आते हैं|”
हैंस जे मार्गेंथाऊ (पुस्तक Politics among Nations 1954) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राष्ट्रों के राजनीतिक संबंध और शांति की समस्याएं सम्मिलित होती हैं”
हैंस जे मार्गेंथाऊ “यह राष्ट्रों के मध्य शक्ति तथा इसके प्रयोग के लिए संघर्ष है|”
नार्मन पैडेलफोर्ड एवं जॉर्ज लिंकन (पुस्तक- International Politics: Foundations of International Relations 1954) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति शक्ति संबंधों के परिवर्तित होते परिप्रेक्ष्य में राज्यों की नीतियों के मध्य अंत: क्रिया से संबंधित है|”
नार्मन पामर एवं हावर्ड पारकिन्स (पुस्तक International Relations: World Community in Transition 1953) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति राजव्यवस्था से संबंधित है|”
हार्टमैन (पुस्तक- The Relation of Nations 1967) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति अध्ययन का वह क्षेत्र है, जो उन प्रक्रियाओं पर केंद्रित है, जिनके द्वारा राज्य, अन्य राज्यों के संदर्भ में अपने राष्ट्रीय हितों को समायोजित करते हैं|”
जॉन बर्टन (पुस्तक- International Relations- A General Theory 1965) “अंतरराष्ट्रीय संबंध एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें विभिन्न राष्ट्र जान-बूझकर विवाद से बचने और शांतिपूर्ण संबंधों को स्थापित करने के लिए इसलिए प्रयासरत रहते हैं, क्योंकि विवाद में पड़ने की कीमत कहीं अधिक है|”
हेराल्ड स्प्राउट एवं मार्गरेट स्प्राउट (पुस्तक- Man Milieu Relationship in the Context of International Politics 1956) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति का आशय स्वतंत्र राजनीति समुदायों के संबंधों और अंतःक्रिया के उन पक्षों से है, जिसमें विरोध, प्रतिरोध, उद्देश्य अथवा हितों के संघर्ष का तत्व किसी न किसी मात्रा में विद्यमान रहता है|”
केनेथ टॉम्सन (पुस्तक- Principles and problems of International Politics 1960) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के मध्य प्रतिद्वंदिता और उन स्थितियों तथा संस्थाओं का अध्ययन है, जो इन संबंधों को आसान व कटु बनाती है|”
जेम्स रोजनाऊ (पुस्तक- International Politics and Foreign Policy 1961) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपखंड है|”
स्टेनले हापमैन (पुस्तक- Contemporary Theory in International Relations 1960) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विषय का संबंध उन तत्वों तथा गतिविधियों से है, जो कि विश्व की प्राथमिक इकाइयों (राज्य तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे UNO) की बाहरी नीतियों तथा शक्ति को प्रभावित करती है तथा इनमें कई प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंध शामिल होते हैं, जैसे राजनीतिक तथा गैर राजनीतिक, सरकारी और गैर सरकारी, औपचारिक एवं अनौपचारिक|”
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और विदेश नीति-
विदेश नीति का अध्ययन अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है|
फेलिक्स ग्रास (पुस्तक- Foreign Policy Analysis 1954) का मत है कि “अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्यन वास्तव में विदेश नीतियों के अध्ययन के अतिरिक्त कुछ नहीं है|”
जेम्स रोजनाऊ “अंतरराष्ट्रीय राजनीति विभिन्न राज्यों की विदेश नीतियों के अध्ययन के बिना नहीं समझी जा सकती है, अतः विभिन्न देशों की विदेश नीतियां ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख विषय है|”
हेराल्ड स्प्राउट और मार्गरेट स्प्राउट ने विदेश नीति को अंतरराष्ट्रीय राजनीति की एक उपश्रेणी माना है|
लेकिन कुछ विचारक इस मत को स्वीकार नहीं करते हैं|
साउंडरमान का मत है कि विदेश नीति का ज्ञान महत्वपूर्ण भले ही हो, पर उस ज्ञान की उपलब्धि दूस्साध्य है, क्योंकि किसी देश की विदेश नीति को समझने के लिए उस देश के ऐतिहासिक अनुभव और उसकी शासन प्रणाली की पेचीदगियों को समझना आवश्यक है|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति निम्न है-
प्रभुता-संपन्न राष्ट्र (राज्य) प्रमुख अभिनेता अथवा कर्ता है-
राष्ट्रों का अंतरराष्ट्रीय राजनीति में वही स्थान है, जो राजनीति में समूहों का है|
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति प्रमुख रूप से राष्ट्र-राज्यों की अंतः क्रियाओं की प्रक्रिया है, लेकिन राष्ट्र-राज्यों के साथ-साथ उपराष्ट्रीय, पारराष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समूह, संस्थाएं एवं संगठन भी इसमें महत्वपूर्ण भाग लेते हैं|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति का उद्देश्य राष्ट्रीय हित है-
एक राज्य दूसरे राज्यों के साथ परस्पर क्रियाओं से जो प्राप्त करने का प्रयत्न करता है, उसका उद्देश्य राष्ट्रहित होता है|
विरोध अंतरराष्ट्रीय राजनीति की परिस्थिति है-
विभिन्न देशों के राष्ट्रीय हित न तो पूरी तरह समान होते हैं और न ही पूरी तरह असमान|
विभिन्न राष्ट्रीय हितों में असमानता ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष का कारण होती है|
लेकिन कई बार राष्ट्रीय हितों को संगत बनाने के लिए राष्ट्रों का आपस में सहयोग हो जाता है|
इस प्रकार अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विरोध और सहयोग, बल तथा प्रभाव सदैव उपस्थित रहते हैं|
शक्ति अंतरराष्ट्रीय राजनीति का साधन है-
विरोध की परिस्थिति में प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित के लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है| इनको प्राप्त करने का साधन शक्ति है|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति साध्य तथा साधन दोनों हैं|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति विभिन्न राज्यों में विरोध सुलझाने की प्रक्रिया भी है|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के मध्य निरंतर अंत:क्रियाओं की एक व्यवस्था है|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों की विदेश नीतियों में अंत: क्रियाएं हैं|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति, राजनीति की तरह शक्ति के लिए संघर्ष की क्रिया है|
1945 के बाद अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो गये हैं, क्योंकि प्रभुत्व संपन्न राज्य, राज्यों के आपसी विवाद, राष्ट्रीय हित, राष्ट्रीय हित की सिद्धि के साधन जैसी अनेक संकल्पनाओ का स्वरूप बहुत कुछ बदल गया है|
अंतरराष्ट्रीय जगत में राज्यों की संख्या पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गयी है|
पहले यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति यूरोप की राजनीति ही थी, क्योंकि यूरोपीय राजनीति के आधार पर ही विश्व राजनीति का निर्धारण होता था, लेकिन अब अधिकतर राज्य राजनीतिक प्रक्रिया में सक्रिय हिस्सा लेते हैं, इसलिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति अब वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय हो गयी है|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव व इसकी प्रकृति में परिवर्तन-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति को प्रौद्योगिकी ने बहुत गंभीरता से प्रभावित किया है|
यू जीन रैजीनोविच का मत है कि समकालीन विश्व में तीन प्रकार की क्रांतियां हो रही है-
सामाजिक क्रांति
राष्ट्रीय क्रांति
प्रौद्योगिकी क्रांति
प्रौद्योगिकी क्रांति ने हथियारों के स्वरूप में परिवर्तन किया है और इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप को बदला है|
इस प्रौद्योगिकी परिवर्तन का एक विशेष पहलू है- परमाणु या नाभिकीय हथियारों का आविर्भाव|
कार्ल जैस्पर्स ने इन आधुनिक हथियारों को अंतर्राष्ट्रीय जीवन का नया तथ्य (New Fact) कहा है|
ई.एच.कार का मत है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति की पृष्ठभूमि में युद्ध की छाया सदैव घूमती रहती है|
प्रौद्योगिकी का किसी राष्ट्र की सैनिक शक्ति बनाने और युद्ध का रूप बदल डालने में महत्वपूर्ण योग होता है|
बट्रेंड ब्रोडी (पुस्तक- The Absolute Weapon) ने कहा है कि “परमाणु बम के कारण सारभूत परिवर्तन केवल यह नहीं हुआ है कि युद्ध अधिक हिंसक हो गया है, बल्कि यह भी हुआ है कि इसमें सारी हिंसा का प्रयोग थोड़ी सी देर में हो जाता है|”
परमाणु युद्ध से विजय प्राप्त करने की संकल्पना अब व्यर्थ हो गयी है, क्योंकि इसमें शत्रु के सारे क्षेत्र व संपत्ति के पूर्ण विनाश के साथ साथ स्वयं अपने सारे क्षेत्र और संपत्ति के पूर्ण विनाश की आशंका हो सकती है| इसलिए परमाणु युद्ध को आत्महत्या का दोतरफा खतरा कहा गया है|
नये शस्त्रों की सर्वनाशकता के कारण ही मैक्स लर्नर आज के युग को ‘अतिमारकता का युग’ कहता है और उसने अपनी एक पुस्तक का नाम द एज ऑफ ओवरकिल यानी अतिमारकता का युग रखा है|
अतिमारकता शब्द का प्रयोग सबसे पहले जॉन मेडारस ने किया था| इनका कहना है कि अमेरिका और रूस दोनों में अलग-अलग रूप से इतनी सामर्थ्य है, कि वे संपूर्ण संसार का कई बार सर्वनाश कर सकते हैं|
मैक्स लर्नर का मत है कि “आज हम अतिमारक सामर्थ्य और शक्ति की अतिशयता के युग में रह रहे हैं, न कि शक्ति के अभाव युग में|”
सन 1945 से पहले युद्ध अंतरराष्ट्रीय राजनीति की मुख्य धुरी था, पर आज अतिमारकता के युग में इसकी (युद्ध की) प्रधानता खत्म हो गयी है|
वर्तमान अंतरराष्ट्रीय राजनीति में युद्ध के स्वरूप में आये परिवर्तन को अप्पपोदोराई (पुस्तक- Dilemmas of foreign Policy in the Modern Period 1963) ने विदेश नीति की दुविधा कहा है|
PMS ब्लैंकेट का विचार है कि “सर्वनाशी युद्ध का खतरा आज इतना बड़ा हो गया है कि परमाणु हथियारों का उपयोग कभी भी नहीं किया जाएगा और इसलिए बड़ा युद्ध कभी भी नहीं होगा|”
हर्मन काहन (पुस्तक- On Thermonuclear war 1960) ने कहा है कि “अमेरिका परमाणु युद्ध में भी जीत सकता है और अमेरिकी सभ्यता युद्ध के बाद भी विजय होकर मौजूद रहेगी|”
जीन ब्लाक “युद्ध तंत्र में हुए नए आविष्कारों के कारण युद्ध की कल्पना बिल्कुल अव्यवहारिक हो गई है, और आत्महत्या का खतरा उठाकर ही युद्ध किया जा सकता है|”
क्विंसी राइट, हांस मार्गेंथाऊ, बट्रेंड रसैल, अल्बर्ट आइंसटीन का मत है कि नये हथियारों की सर्वनाशकता के भय के कारण सर्वेग्रासी युद्ध होना अब असंभव है|
उपरोक्त कथनों का अर्थ यह नहीं निकलता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति से युद्ध समाप्त हो चुका है, लेकिन मैत्री प्रणाली और शत्रु की संकल्पना अब भी कायम है और शक्ति संतुलन विश्व का संतुलन बनाए रखने का आदर्श बना रहेगा जिसे विस्टन चर्चिल ने आतंक का संतुलन कहा है|
राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति : अंतर एवं संबंध-
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में निम्न असमानताएं या अंतर है-
कर्ताओं के संबंध में अंतर-
राष्ट्रीय राजनीति में गैर-प्रभुसत्ता संपन्न समूह ही कर्ता होते हैं, ये समूह राज्य द्वारा बनाए तथा लागू किए गए अधिकृत मूल्यों के वातावरण में क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं|
जबकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में प्रभुसत्ता संपन्न राष्ट्र प्रमुख कार्यकर्ता होते हैं|
बल की भूमिका के संबंध में अंतर-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति (बल) की भूमिका अधिक प्रत्यक्ष, निरंतर तथा दृढ़ होती है|
राष्ट्रीय राजनीति की अपेक्षा अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विरोध तथा असहमतिया अधिक व्यापक होती है|
कानूनी आधार में अंतर-
राजनीति का आधार राज्य कानून होता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का आधार अंतरराष्ट्रीय कानून होते हैं|
निश्चितता के संदर्भ में अंतर-
राज्य कानून निश्चित तथा अधिकारिक है, इसलिए राजनीति के क्षेत्र में निश्चितता होती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अनिश्चितता की परिस्थिति सदैव विद्यमान रहती है, क्योंकि राष्ट्र अपने हितों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून को अपने पक्ष में घुमाने के प्रयास करते रहते हैं|
राजनीति में सरकार का अस्तित्व होता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विश्व सरकार की अनुपस्थिति होती है|
सीमा में अंतर-
राजनीति, राज्य के परिवेश (अंदर) में सीमित होती है, जबकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति विभिन्न राज्यों के मध्य विद्यमान रहती है|
राष्ट्रीय कानून का निर्माण करने वाली संस्थाएं अधिक स्पष्ट होती है, जैसे भारत में संसद, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून का निर्माण करने वाली स्पष्ट संस्थाओं का अभी तक अभाव है|
ग्रह युद्ध का संबंध राजनीति से है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय युद्ध का संबंध अंतरराष्ट्रीय राजनीति से है|
संबंध-
एच.जे. मार्गेंथाऊ “घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय राजनीति एक ही घटनाक्रम- शक्ति के लिए संघर्ष की दो अभिव्यक्तियां हैं|”
कोलोम्बिस तथा वुल्फ “अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और घरेलू राजनीति की कोई निश्चित अलग पहचान नहीं है, बल्कि ये तो राजनीतिक क्रिया के आपस में संबंधित स्तर हैं, जिसमें से प्रत्येक दूसरे को प्रभावित करता है|”
विश्व राजनीति-
स्पायरो ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को विश्व राजनीति कहा है|
डा. महेंद्र कुमार “अंतरराष्ट्रीय राजनीति वर्तमान काल की घटना है और विश्व राजनीति भविष्य की|”
कुछ लोगों ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को विश्व राजनीति कहा है, पर विश्व राजनीति, अंतरराष्ट्रीय राजनीति नहीं है, क्योंकि वास्तव में विश्व राज्य के उदय के बाद ही विश्व राजनीति की कल्पना की जा सकती है|
अंतर्राष्ट्रीय मामले, विश्व मामले-
अंतरराष्ट्रीय मामलों व विश्व मामलों के अर्थ में संसार की हर बात आ जाती है, चाहे वह राजनीतिक हो, आर्थिक हो या सांस्कृतिक हो|
अंतरराष्ट्रीय संबंध व अंतरराष्ट्रीय राजनीति-
अंतरराष्ट्रीय संबंध एक व्यापक शब्दावली है| अंतरराष्ट्रीय संबंध के अंतर्गत राष्ट्रों के आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, कानूनी, राजनीतिक, खोज एवं अन्वेषण संबंधी आदि संबंध आते हैं|
अनेक विद्वान अंतरराष्ट्रीय राजनीति तथा अंतरराष्ट्रीय संबंध शब्दावली को पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयुक्त करते हैं|
मार्गेंथाऊ और केनेथ थॉमसन जैसे सिद्धांतवेता इन दोनों नामो को अदल-बदल कर प्रयोग करते हैं| इनके मत में “अंतरराष्ट्रीय राजनीति अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अभिन्न अंग है|”
पामर, पार्किंस, बर्टन, श्वारजनबर्गर, श्लीचर, थियोडोर कोलंबस, जेम्स एच वोल्फ जैसे विद्वान ‘अंतरराष्ट्रीय संबंध’ शीर्षक को अधिक उपयुक्त मानते हैं|
प्रो. फ्रेड्रिक एस डन (Prof.Fredrik S Donn) ने वर्ल्ड पॉलिटिक्स में प्रकाशित अपने लेख में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में 5 क्षेत्र शामिल किए है-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति
अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र
अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं संगठन
राजनयिक इतिहास
राजनीतिक भूगोल
लैग तथा मॉरीसन ‘अंतरराष्ट्रीय राजनीति’ शब्दावली को अधिक उपयुक्त मानते हैं|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति का क्षेत्र: विषय वस्तु-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति अपेक्षाकृत एक नया विषय है और इसके क्षेत्र को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद हैं|
द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ तक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के तीन प्रमुख बिंदु थे-
राजनयिक इतिहास
अंतरराष्ट्रीय कानून और संगठन
राजनीतिक सुधारवाद
क्विंसी राइट (पुस्तक- The study of international relations 1955) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति की राज्य आधारित विचारधारा अंतरराष्ट्रीय राजनीति को समूहो के हितों के संवर्धन का माध्यम मानती है|”
S.S वोलिन (पुस्तक- Politics and Vision : Continuity and Innovations in Western Thought 1960) “अंतरराष्ट्रीय राजनीति को राज्यों की नीतियों के मध्य अंत: क्रिया के रूप में देखा गया है|”
स्टेनले हॉपमैन “अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में वे समस्त कारक और गतिविधिया आती है, जो राज्यों की बाह्य नीतियों तथा शक्ति को प्रभावित करती है|”
रिचर्ड स्टर्लिंग (पुस्तक- Macro Politics- International Relations in a Global Society 1974) “वृहत्त धरातल पर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का क्षेत्र राज्यों की समस्त राजनीतिक अंतः क्रिया पर आधारित है|”
गोल्डस्टीन (पुस्तक- International Relations 2006) ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चार प्रकार के विषयों को समाहित किया है-
प्रथम श्रेणी- राजनय, युद्ध, व्यापार संबंध, गठबंधन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे विषय|
द्वितीय श्रेणी- इन विषयों के संदर्भ में राष्ट्रों के मध्य संघर्ष तथा सहयोग से जुड़े मुद्दे|
तीसरी श्रेणी- अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा अर्थात युद्ध और शांति के विषय|
चौथी श्रेणी- 70 के दशक के बाद से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में राजनीतिक अर्थव्यवस्था के मुद्दे भी सम्मिलित माने जाने लगे|
1947 में अमेरिका की विदेशी मामलों की परिषद ने एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था, जिसमें एक सर्वेक्षण के आधार पर ग्रैसन क्रेक ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति की विषय वस्तु में पांच तत्वों को शामिल किया है-
राज्य व्यवस्था के स्वरूप एवं कार्यप्रणाली का अध्ययन|
राज्य की शक्ति को प्रभावित करने वाले तत्वों का अध्ययन|
अंतरराष्ट्रीय स्थिति एवं महाशक्तियों की विदेश नीति का अध्ययन|
वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के इतिहास का अध्ययन
अधिक स्थायित्व वाली विश्व व्यवस्था के निर्माण की प्रक्रिया का अध्ययन|
1954 में अंतरराष्ट्रीय शांति के कार्नेगी संस्थान के तत्वाधान में विंसैट बेकर ने अपनी रिपोर्ट में निम्नलिखित संघटक अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में शामिल किए-
अंतरराष्ट्रीय राजनीति की प्रकृति एवं प्रमुख शक्तियां|
अंतरराष्ट्रीय जीवन के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक संगठन|
राष्ट्रीय शक्ति के तत्व|
राष्ट्रीय हितों को लागू करने वाले उपकरण |
राष्ट्रीय शक्ति की सीमाएं तथा नियंत्रण|
मुख्य शक्तियों (महाशक्तियों व कभी-कभी छोटे राज्यों) की विदेश नीतियां
अंतरराष्ट्रीय संबंधों का इतिहास
विंसेट बेकर “अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन करने वाले विद्वानों में सिद्धांत निर्माण तथा नीति निर्धारण पर बल देने के प्रयास अधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं|”
फ्रेड ए. सांडरमान “अंतरराष्ट्रीय राजनीति एक ऐसी प्रक्रिया का अध्ययन है, जिसमें राष्ट्रों अथवा राष्ट्र समूहों के साथ विरोध की दिशा में राष्ट्र अपना लाभदायक स्थान प्राप्त करने की कोशिश करते हैं|”
क्विंसी राइट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अंतर्गत इन बातों का अध्ययन अपेक्षित है-
विश्व में तनाव एवं हलचल की सामान्य दशा|
आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक क्षेत्रों में राज्यों की पारस्परिक निर्भरता की मात्रा|
कानून एवं मूल्यों का सामान्य स्तर|
जनसंख्या एवं साधन
उपज और खपत
जीवन के आदर्श एवं विश्व राजनीति
स्प्राउट के अनुसार “अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अंतर्गत एक ओर तो राजनेताओं और उनके घटकों की अभिरुचि तथा उनके द्वारा लिए गए निर्णयों का और दूसरी ओर उन निर्णयों के लागू किए जाने के परिणामों का अध्ययन करते हैं|”
संक्षेप में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विषय क्षेत्र में निम्नलिखित विषयों को रखा जा सकता है-
अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का अध्ययन
राष्ट्रीय व्यवस्था का अध्ययन
विदेश नीतियों का अध्ययन
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का अध्ययन
अंतर्राष्ट्रीय विधि का अध्ययन
क्षेत्रीय संगठनों का अध्ययन
अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का अध्ययन
कूटनीति के सिद्धांत और व्यवहार का अध्ययन
राष्ट्रों के मध्य संघर्ष और सहयोग का अध्ययन
विषय से जुड़ी महत्वपूर्ण अवधारणाओं तथा सिद्धांतों का अध्ययन
युद्ध और शांति की गतिविधियों का अध्ययन
अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन
सैनिक संगठनों और राजनीतिक गुटों का अध्ययन
राष्ट्रीय हित, राष्ट्रीय शक्ति का अध्ययन
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