राष्ट्रीय शक्ति की अवधारणा
मोर्गेंथाऊ “राष्ट्रीय शक्ति किसी राष्ट्र की वह क्षमता है, जिसके माध्यम से वह दूसरे राष्ट्र के कार्य एवं व्यवहार को अपने अनुकूल मोड़ता है|”
श्वारजन बरगर “राष्ट्रीय शक्ति राष्ट्र की वह क्षमता है, जो दूसरों से उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करा सकें|”
हार्टमैन “राष्ट्रीय शक्ति किसी राष्ट्र के राष्ट्रीय हितों को प्राप्त करने की योग्यता का नाम है|”
मोर्गेंथाऊ की प्रसिद्ध परिभाषाएं-
“शक्ति अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र बिंदु है|”
“ शक्ति साधन भी है व साध्य भी है|”
“अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अंतिम उद्देश्य चाहे कुछ भी हो तात्कालिक उद्देश शक्ति प्राप्त करना है|”
“हर प्रकार की राजनीति चाहे वह घरेलू हो या अंतरराष्ट्रीय शक्ति संघर्ष की एक प्रक्रिया है|”
“शक्ति दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क व कार्य पर नियंत्रण है|”
थॉमस हॉब्स “शक्ति की इच्छा मानव की अविच्छिन्न व अनवरत इच्छा है, जिसका अंत मृत्यु के साथ होता है|”
एरिक कॉपमैन “शक्ति के संदर्भ में किसी राष्ट्र के तीन लक्ष्य होते हैं- शक्ति संचय, शक्ति प्रसार व शक्ति प्रदर्शन|”
हेराल्ड स्प्राउट व मार्गरेट स्प्राउट “यदि शक्ति शब्द को अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शब्दकोश से बिल्कुल निकाल फेंका जाए तो शायद राज्य के संबंधों के बारे में अधिक स्पष्ट रीति से विचार करने में मदद मिले|”
ई.बी हास एवं ए.एस वाइटिंग “शक्ति, बल का समानार्थी है, और प्रस्तुत कार्य के निष्पादन की दिशा में किसी राष्ट्र के पास उपलब्ध बल के रूप में इसकी परिभाषा की जा सकती है| शक्ति साध्यों की समानार्थी नहीं है| इसके अतिरिक्त शक्ति साधनों की भी समानार्थी नहीं है| यह बल को उपलब्ध कराती है, जिससे साधन सफल होते हैं, चाहे वह सैनिक, आर्थिक, राजनीतिक या मनोवैज्ञानिक हो|”
आर्थर ली बर्न्स (Of Power of International Relation 1956) “दूसरों को नियंत्रित करने और उनसे अपना मनचाहा व्यवहार कराने और अनचाहा व्यवहार करने से रोकने की सामर्थ्य या योग्यता को शक्ति कहते हैं|”
अर्थात जिस सामर्थ्य से एक राज्य, दूसरे राज्यों से अपनी इच्छा मनवाता है और दूसरे राज्यों को अपना आदर और अपने आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर करता है, इस सामर्थ्य को राष्ट्रीय शक्ति कहते हैं|
हेराल्ड लासवेल व अब्राहम केप्लान (Power and Society 1950) ने महत्वपूर्ण निर्णयों में हिस्सा लेने को शक्ति बताया है|
वर्नन वैन डाइक (International Politics 1957) “शक्ति उन उद्देश्यों में सर्वोपरि है, जिनकी प्राप्ति के लिए राज्य प्रयत्नशील रहते हैं और उन विधियो में आधारभूत है, जिनका वे उपयोग करते हैं|”
राष्ट्रीय शक्ति की विशेषताएं-
अस्थाई चरित्र व गतिशीलता- आज शक्तिशाली, कल कमजोर, जैसे USSR
सापेक्षता व तुलनात्मक स्वरूप
शक्ति की दृष्टि से राष्ट्रों में असमानता
कई तत्वों का योग- सैन्य, आर्थिक, मनोबल
राष्ट्रीय शक्ति का सही मूल्यांकन कठिन युद्ध से ही निश्चित होता है|
शक्ति का स्वरुप मनोवैज्ञानिक है|
शक्ति मूल्यांकन में भूले-
मोर्गेंथाऊ ने शक्ति मूल्यांकन में तीन भूले बताई है-
निरपेक्ष शक्ति की भूल- सापेक्ष तत्वों की अवहेलना करना (क्योंकि शक्ति सापेक्ष होती है)
स्थाई मानने की भूल- परिवर्तन न करने की गलती करना (क्योंकि शक्ति परिवर्तनशील होती है)
एक ही तत्व को निर्णायक मानने की भूल- शक्ति अनेक तत्वों का योग होती है|
शक्ति-शून्यता की अवधारणा-
किसी भू-भाग से एक महाशक्ति के हटने से पैदा हुए असंतुलन व अस्थिरता से शक्ति शून्यता उत्पन्न होती है|
शक्ति शून्यता के परिणाम स्वरूप उस क्षेत्र में शक्ति शून्यता को भरने के लिए अन्य महाशक्तियों के मध्य प्रतिस्पर्धा होती है|
उदाहरण आइजनहावर का शक्ति शून्यता का सिद्धांत या आइजनहावर थ्योरी
मध्य एशिया में 1956 में मिस्र के स्वेज संकट के बाद ब्रिटेन और फ्रांस का बचा खुचा प्रभाव समाप्त होने के बाद वहां सोवियत संघ व अमेरिका द्वारा प्रभाव विस्तार का प्रयास किया गया|
शक्ति के पहलू/ प्रकार-
सामान्यतया: दो प्रकार हैं-
निषेधात्मक शक्ति- दूसरे राष्ट्र को अनचाहा कार्य रोकने की सामर्थ्य
विध्यात्मक शक्ति- दूसरे से मनचाहा कार्य कराने की सामर्थ्य
आर्गेन्सकी शक्ति को मुख्यतः उसके निषेधात्मक पहलू के रूप में देखता है|
Note- सामान्यतया: राष्ट्रीय सरकारें घरेलू क्षेत्र में नागरिकों के कार्य निर्धारित करने के लिए विध्यात्मक शक्ति का प्रयोग करती हैं तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विभिन्न सरकारों को अपनी विध्यात्मक शक्ति पर अन्य राष्ट्रों की निषेधात्मक शक्ति की रुकावट होती है|
राष्ट्रीय शक्ति के प्रकार-
शारीरिक शक्ति- सेना, पुलिस, हथियार, परमाणु बम
मनोवैज्ञानिक शक्ति- प्रोपेगेंडा, कूटनीति व प्रदर्शन
आर्थिक शक्ति- व्यापार, निर्यात, आर्थिक सहायता
E.H कार- ने राष्ट्रीय शक्ति के तीन रूप या प्रकार बताए हैं -
सैनिक शक्ति
आर्थिक शक्ति
मनोवैज्ञानिक शक्ति
कार्ल डायच शक्ति के दो प्रकार बताए हैं-
सकल शक्ति-
किसी राष्ट्र की अपनी नीति लागू करने की क्षमता|
शुद्ध शक्ति-
किसी राष्ट्र की अपनी नीति लागू करने की क्षमता व उस क्षमता का उपयोग कर वास्तविक परिणाम प्राप्त करने के बीच का अंतर|
राष्ट्रीय शक्ति के प्रयोग की विधियां-
राज्य अन्य राज्यों से अपना अभीष्ट व्यवहार कराने के लिए जो विधियां या तरीके अपनाते हैं| वे मुख्यतः चार हैं
अनुनय (Persuasion)
पारितोषित या पुरस्कार (Rewards)
दंड (Punishment)
बलप्रयोग (Coercion)
इनको शक्ति प्रयोग के साधन भी कहा जाता है|
प्रेरणा या अनुनय (Persuasion)-
यह शक्ति प्रयोग की सबसे आसान एवं सबसे प्रचलित विधि है|
प्रेरणा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शक्ति प्रयोग का सबसे अधिक प्रभावशाली तरीका है|
इसमें किसी राष्ट्र द्वारा किसी अन्य राष्ट्र या राष्ट्रों के सामने किसी समस्या, विषय या झगड़े को प्रभावशाली ढंग से परिभाषित किया जाता है|
छोटे राष्ट्र या छोटी शक्तियां अपने राष्ट्रीय हितों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस विधि का प्रयोग करती हैं|
पुरस्कार (Rewards)-
पुरस्कार द्वारा दूसरे राष्ट्र के व्यवहार में परिवर्तन लाया जाता है तथा उसका समर्थन जीता जाता है|
पुरस्कार भौतिक, राजनीतिक, आर्थिक व मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार के हो सकते हैं|
किसी दूसरे राष्ट्र की सहायता करना भी इसी के अंतर्गत आता है|
दंड (Punishment)-
एक शक्तिशाली राष्ट्र कमजोर अथवा निर्भर राष्ट्र को दंड दे सकता है|
किसी दिए गए पुरस्कार को रोक लेना, ऋण या सहायता में कमी करना, व्यापार को रोकना या बंद कर देना, भारी करो का लगाना, कूटनीतिज्ञों का निष्कासन आदि दंड के प्रकार हैं|
बल (Coercion)-
विद्वानों का एक बड़ा वर्ग बल प्रयोग को शक्ति का मूल तत्व मानता है|
सैनिक शक्ति के प्रयोग से एक शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को अपने व्यवहार में इच्छित परिवर्तन करने के लिए बाध्य करना|
Note- जब दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही की जाती है तो वह बल प्रयोग होता है तथा जब केवल दंडात्मक कार्यवाही करने की धमकी दी जाती है तो वह दंड प्रयोग है|
राष्ट्रीय शक्ति के तत्व-
मोर्गेंथाऊ ने राष्ट्रीय शक्ति के दो प्रकार के तत्व बताएं हैं -
स्थायी तत्व- वे तत्व जो सापेक्ष दृष्टि से स्थायी हैं|
स्थायी तत्व- वे तत्व जो निरंतर परिवर्तन से प्रभावित रहते हैं|
स्थायी तत्व-
भूगोल
प्राकृतिक साधन
अस्थायी तत्व-
औद्योगिक क्षमता
सैन्य बल
जनसंख्या
राष्ट्रीय चरित्र
मनोबल
कूटनीति
सरकार के गुण
पामर तथा पार्किंस ने राष्ट्र शक्ति के तत्वों को दो भागों में बांटा है-
गैर मानवीय-
भूगोल
प्राकृतिक साधन
मानवीय-
जनसंख्या
तकनीकी ज्ञान
विचारधारा
मनोबल
नेतृत्व
आसूचना
शक्ति के तत्वों को मोटे तौर से 3 वर्गों में बांटा जा सकता है-
प्राकृतिक वर्ग- भौगोलिक विशेषताएं, प्राकृतिक साधन, आबादी आदि
सामाजिक वर्ग- आर्थिक विकास, राजनीतिक ढांचा, राष्ट्रीय मनोबल आदि|
प्रत्यात्मक वर्ग- नेतृत्व वर्ग के आदर्श, बुद्धि, दूरदर्शिता आदि|
सामान्यतः राष्ट्र शक्ति के तत्वों में निम्न को शामिल करते हैं-
भूगोल-
राष्ट्रीय शक्ति के तत्वों में भूगोल सबसे अधिक स्थिर, प्रत्यक्ष, स्थायी एवं प्राकृतिक तत्व है|
मूडी, स्पाइकमैन, हौशोफर, मैकिन्डर आदि ने भूगोल को राष्ट्र शक्ति का निर्धारक तत्व माना है|
मैकिन्डर ने भूगोल कॉन्फ्रेंस 1904 में अपने प्रसिद्ध शोधपत्र ‘इतिहास की भौगोलिक धुरी’ में कहा था कि विश्व राजनीति में भौगोलिक प्रभाव व्यापक है|
भूगोल के अंतर्गत निम्न में चार तत्वों को शामिल करते हैं-
क्षेत्रफल-
श्लाइचर “अन्य बातें समान रहे तो एक देश का क्षेत्रफल जितना बड़ा होगा उसकी राष्ट्रीय शक्ति उतनी ही अधिक होगी|”
ज्यादा क्षेत्रफल होने पर वह राष्ट्र अधिक जनसंख्या को समा सकता है तथा उसके पास प्राकृतिक संपदा भी अधिक होगी|
जलवायु-
जलवायु सम होने पर अधिक उत्पादन होता है, जिससे राष्ट्रीय शक्ति में वृद्धि होती है|
जलवायु सम होने पर वहां के लोगों का सार्वजनिक स्वास्थ्य भी उत्तम होता है|
स्थलाकृति-
स्थलाकृति किसी राष्ट्र की आक्रमण शक्ति, रक्षा करने की शक्ति तथा राष्ट्र के विकास की संभावनाओं को प्रभावित करती है|
नदियों, पर्वतों व समुद्रों से गिरे हुए राष्ट्र अधिक सुरक्षित होते हैं|
अवस्थिति-
एक देश की अवस्थिति उस देश की आर्थिक एवं सैनिक शक्ति पर व्यापक प्रभाव डालती है|
पामर व पार्किंस “प्रादेशिक स्थिति एक राज्य की संस्कृति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है तथा उसकी सैनिक एवं आर्थिक शक्ति पर व्यापक प्रभाव डालती है|”
प्राकृतिक संसाधन-
राष्ट्रीय शक्ति के निर्माण का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है- राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन|
किसी भी देश की औद्योगिक, व्यापारिक और सैनिक शक्ति प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है|
जनसंख्या-
किसी भी राष्ट्र के शक्तिशाली होने का जनसंख्या महत्वपूर्ण आधार है| लेकिन जनसंख्या विस्फोटक (आवश्यकता से अधिक) शक्ति के मार्ग में बाधा है|
तकनीकी-
तकनीकी की प्रगति से भी राष्ट्र की शक्ति का विस्तार होता है|
विचारधारा-
विचारधारा भी राष्ट्रीय शक्ति को प्रभावित करती है|
विचारधारा राष्ट्रीय शक्ति का तत्व है|
आज संपूर्ण अंतरराष्ट्रीय राजनीति विचारधारा के आधार पर ही लोकतांत्रिक और साम्यवादी गुटों में विभाजित है|
भारत ने अपनी गुटनिरपेक्षता की विचारधारा से विकासशील राष्ट्रों में अपना स्थान बनाया था|
राष्ट्रीय चरित्र-
राष्ट्रीय चरित्र शक्ति का अमूर्त, सूक्ष्म तथा मानवीय तत्व है|
प्रत्येक देश के निवासियों में कुछ सामान्य गुण, अवगुण पाए जाते हैं, जिन्हें हम सामूहिक रूप से राष्ट्रीय चरित्र के नाम से जानते हैं|
किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रीय शक्ति का मूल्यांकन करते समय राष्ट्रीय चरित्र को ध्यान में रखना आवश्यक है|
राष्ट्रीय मनोबल-
मनोबल राष्ट्र शक्ति का प्रेरणात्मक तत्व है, जो जनता एवं सेना में राष्ट्रीय भावना का संचार कर उनके त्याग, बलिदान, व कार्य क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है|
किसी राष्ट्र के लोगों में राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखने की तत्परता के रूप में जो गुण होते हैं, उन सबको राष्ट्रीय मनोबल कहा जाता है|
नेतृत्व-
नेतृत्व राष्ट्रीय शक्ति का ऐसा तत्व है, जो सभी तत्वों को संयुक्त करके राष्ट्रीय शक्ति में गुणात्मक वृद्धि करता है|
विदेश नीति का निर्माण तथा उसे कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व विशेष रूप से निर्णय निर्माताओं का काम है अर्थात विदेश नीति में नेतृत्व बड़ा महत्वपूर्ण तत्व है|
कूटनीति-
अंतरराष्ट्रीय संबंधों का सुनिश्चित, सुसंबंध और तर्कसंगत संचालन विदेश नीति के द्वारा होता है|
विदेश नीति को कुशलता पूर्वक लागू करने का कार्य कूटनीति करती है|
मोर्गेंथाऊ “कूटनीति राष्ट्रीय शक्ति का मस्तिष्क है जो राष्ट्र के सारे शक्ति स्रोतों को इस तरह प्रभावित करता है कि उसमें से अधिकांश का प्रयोग हो सके|”
आसूचना-
इसका उद्देश्य सूचना संग्रह करना है, जिससे विदेश मामलों के बारे में सरकारी निर्णय अधिक समझदारी व दूरदर्शिता से किये जा सकें|
औद्योगिक क्षमता-
किसी राष्ट्र की शक्ति उसकी औद्योगिक क्षमता पर निर्भर करती है|
औद्योगिक राष्ट्र ही महान शक्ति कहलाते हैं|
औद्योगिक क्षमता के अभाव में कच्चे माल का कोई महत्व नहीं होता है|
राष्ट्रीय शक्ति के विभिन्न तत्वों का अपेक्षित (Relative) महत्व-
शक्ति के विभिन्न तत्व एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं और उनमें प्रत्येक का महत्व दूसरों के मौजूद होने पर निर्भर करता है|
सामान्यतः 4 करोड से कम आबादी वाला देश प्रमुख शक्ति नहीं बन सकता है| उदाहरण- कनाडा के पास आबादी कम होने के कारण अन्य शक्ति के बहुत से तत्व होने पर भी दूसरे दर्जे की शक्ति माना जाता है|
आबादी के साथ कार्यकुशल राजनीतिक संगठन की भी शक्ति प्राप्ति में भूमिका होती है|
पर्याप्त आबादी और कार्य कुशल राजनीतिक संगठन के साथ आर्थिक विकास भी महत्वपूर्ण है| अधिकतर महाशक्तियां उद्योग विस्तार के कारण ही बनी है| 19 वी सदी में इंग्लैंड की विस्तृत शासन सत्ता का मुख्य कारण यही है कि वह उद्योग-बहुलता प्राप्त करने वाला प्रथम देश था|
आर्गेन्सकी के अनुसार (World Politics) “राष्ट्रीय मनोबल, प्राकृतिक साधनों, भूगोल का उतना महत्व नहीं है, जितना कि आबादी, राजनीतिक ढांचे और आर्थिक उत्पादकता का है|”
कोई राष्ट्र शक्तिशालियो की प्रथम पंक्ति में तब आता है, जब उसके निवासियों का मनोबल ऊंचा हो| युद्धकाल में राष्ट्रीय मनोबल का विशेष महत्व होता है|
इस प्रकार शक्ति के सबसे महत्वपूर्ण साधन है- आबादी (जनसंख्या), विस्तृत क्षेत्र, राजनीतिक ढांचा, आर्थिक विकास, मनोबल|
शक्ति व प्रभाव में अंतर-
अर्नाल्ड वुल्फर्स (Power and Influence: The means of Foreign Policy) ने शक्ति और प्रभाव में अंतर किया है|
अर्नाल्ड वुल्फर्स के अनुसार-
शक्ति का अभिप्राय है धमकियों द्वारा दूसरों को नियंत्रित करने का सामर्थ्य|
प्रभाव का अभिप्राय है वायदो या लाभकारक वस्तुएं सचमुच देकर दूसरों को नियंत्रित करने का सामर्थ्य|
अनुनय और पुरस्कारों द्वारा दूसरे के ऊपर प्राप्त किया गया नियंत्रण प्रभाव है|
दंड और बल प्रयोग द्वारा प्राप्त किया गया नियंत्रण शक्ति है|
वुल्फर्स के अनुसार, शक्ति और प्रभाव दोनों का उद्देश्य एक ही है, और वह है दूसरों के व्यवहार को किसी खास अभीष्ट दिशा में संचालित करना|
वुल्फर्स ने ‘शक्ति राजनीति’ और ‘प्रभाव राजनीति’ में अंतर किया है|
शांति काल में राष्ट्र साधारणतया प्रभाव राजनीति के प्रक्रम में व्यस्त रहते हैं और शक्ति राजनीति के क्षेत्र में वे संकटकालीन स्थिति में ही प्रवेश करते हैं|
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के वर्ग-
बैकरेक और बैरेटज़ ने अन्य राज्यों का व्यवहार नियंत्रित करने की विविध विधियों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों के 3 वर्ग बताये हैं-
प्रभाव संबंध- जिसमें एक पक्ष का दूसरे पक्ष पर प्रभाव होता है, पर दंड अस्तित्व या भय बिल्कुल नहीं होता है|
बल प्रयोग संबंध- जिसमें भयजनक शक्तियां या प्रतिबंध लागू किए जाते हैं|
शक्ति संबंध- इस प्रकार के संबंध तब पैदा होते हैं, जब दंड की धमकी पर सचमुच अमल किया जाता है और एक पक्ष, दूसरे पक्ष पर नियंत्रण असंदगिध रूप में दिखाने में सफल हो जाता है|
बैकरेक और बैरेटज़ ने पांच प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंध बताए हैं-
प्रभाव संबंध
बल प्रयोग संबंध
शक्ति संबंध
कूट कौशल संबंध
स्वहित- मुलक संबंध
चार्ल्स मैक्लीलैंड ने सात प्रकार के अंतरराष्ट्रीय संबंध बताए है-
प्रभाव संबंध
बल संबंध
शक्ति संबंध
कूट कौशल संबंध
स्वहित- मुलक/ आप्तता संबंध
कुरेद संबंध (Probing Relationship)
निभाव संबंध (Maintenance Relationship)
मैक्लीलैंड के अनुसार ऐसे संबंध जिनमें अनुनय, पुरस्कार, और दंड की धमकी से स्पष्ट व्यवहार नहीं बन पाता है और जिनमे बल प्रयोग भी संभव नहीं होता है, ऐसी स्थिति मे राष्ट्र दो मार्ग अपनाते हैं- एक ओर तो वे अन्य राष्ट्रों के आश्यो की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करते हैं तथा दूसरी ओर खतरा पैदा करने वाली परिस्थितियों को सामने नहीं आने देते जिससे आमना-सामना होने की नौबत न आये| इन्हीं को मैक्लीलैंड ने कुरेद संबंध तथा निभाव संबंध कहा है|
बैकरेक और बैरेटज़ ने इस प्रकार के संबंधों को अनिर्णयकरण की एक प्रक्रिया कहा है|
डेविड सिंगर (Inter-Nation Influence : A Formal Model) के अनुसार निभाव संबंध उस स्थिति में होता है, जब एक पक्ष पहले ही वैसा व्यवहार कर रहा है जैसा दूसरा पक्ष चाहता है, परंतु फिर भी दूसरा पक्ष यह यत्न करता है कि पहले पक्ष का वैसा व्यवहार सुनिश्चित रूप से चलता रहे| ऐसी स्थिति में उद्देश्य होता है अभीष्ट व्यवहार को स्थाई बनाना या उसे अधिक बल प्रदान करना|
आलोचना-
विलियम राइकर “शक्ति संप्रत्यय को अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन क्षेत्र से बाहर कर देना चाहिए|”
जेम्स मार्च (The Power of Power) “शक्ति एक निराशाजनक संप्रत्यय है|”
हेराल्ड स्प्राउट और मार्गरेट स्प्राउट (Foundation of International Politics) “यदि शक्ति को अंतरराष्ट्रीय राजनीति के शब्दकोश बिल्कुल निकाल फेंका जाय तो शायद राज्यों के संबंधों के बारे में अधिक स्पष्ट रीति से विचार करने में मदद मिले|”
महाशक्ति (Great power) और महानतम (Super power) में अंतर-
महाशक्ति ऐसा राष्ट्र होता है, जो पूरे विश्व को अपनी नीतियों या निर्णय से प्रभावित करने की क्षमता रखता है|
महानतम शक्ति ऐसा राष्ट्र होता है, जिसके क्रियाकलापों पर कोई प्रतिबंध नहीं होता| इसे वैश्विक शक्ति भी कहा जाता है|
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दो महाशक्तियों का उदय हुआ -
संयुक्त राज्य अमेरिका (USA)
सोवियत संघ (USSR)
इन दोनों में एक महाशक्ति सोवियत संघ (USSR) का विघटन होने पर केवल एक वैश्विक या महानतम शक्ति अमेरिका बन गया|
Hyper Power (अतिशक्ति)-
ब्रिटिश पत्रकार पैरेग्रीन वॉर्थोन ने 3 मार्च 1991 को इस शब्द को गढ़ा|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में फ़्रांस के विदेश मंत्री ह्यूबर्ट बेड्रीन ने 1998 में इस शब्द को लोकप्रिय बनाया| इन्होंने इस शब्द का प्रयोग USA के संदर्भ में किया था|
एक अतिशक्ति, एक ऐसा राज्य है, जो हर डोमेन (यानी सैन्य, संस्कृति, अर्थव्यवस्था आदि) में अन्य सभी राज्यों पर हावी है, इसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं है, जो इसकी क्षमताओं से मेल खा सके और इसे एक महाशक्ति से एक कदम ऊंचा माना जाता है|
हार्ड पावर और सॉफ्ट पावर-
हार्ड पावर-
हार्ड पावर का इस्तेमाल एक शक्तिशाली देश द्वारा कमजोर देश पर किया जाता है|
इसके अंतर्गत किसी देश पर, नियंत्रण करने के लिए सैन्य या आर्थिक शक्ति का उपयोग शामिल है|
उदाहरण- 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का आक्रमण
2003 में अमेरिका द्वारा इराक पर आक्रमण
सॉफ्ट पावर-
सॉफ्ट पावर अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों के लिए एक प्रेरक दृष्टिकोण है, जिसमें किसी देश की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और कूटनीति प्रभाव का प्रयोग शामिल है|
इसके तहत कोई राज्य परोक्ष रूप से सांस्कृतिक अथवा वैचारिक साधनों के माध्यम से किसी अन्य देश के व्यवहार व हितों को प्रभावित करता है|
सॉफ्ट पावर 3 संसाधनों के उपयोग पर आधारित है-
संस्कृति
राजनीतिक मूल्य
विदेश नीतियां
आधुनिक युग में राष्ट्रों का वर्गीकरण-
वैश्विक या महानतम शक्ति- संयुक्त राज्य अमेरिका
बड़ी शक्तियां या महाशक्तियां- ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस
क्षेत्रीय शक्तियां- भारत, इंडोनेशिया, इराक, दक्षिण अफ्रीका आदि
छोटी शक्तियां- पाकिस्तान, श्रीलंका, मलेशिया आदि
लघु शक्तियां- नेपाल, भूटान, ब्रूनेई आदि
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