Ad Code

राजनीतिक सिद्धांत: परंपरागत और आधुनिक परिप्रेक्ष्य


 

राजनीतिक सिद्धांत: परंपरागत और आधुनिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय विचारकों के अनुसार राजनीतिक शास्त्र या राजनीतिक सिद्धांत-


  • भारत के प्राचीन विचारको ने विधाओं को चार भागों में बांटा है-

  1. त्रयी विद्या

  2. वार्ता विद्या

  3. आन्वीक्षिकी विद्या

  4. दंडनीति विद्या 


  1. त्रयी विद्या-

  • वेद (तीन वेद- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद), वेदांगो का ज्ञान, नैतिक और आध्यात्मिक विषयों को समाहित करने वाला ज्ञान त्रयी विद्या है|


  1. वार्ता विद्या-

  • यह विद्या कृषि, पशुपालन, शिल्प, वाणिज्य की शिक्षा देती है|

  • यह विद्या भौतिक उपलब्धियों और संपत्तियों के अर्जन से संबंधित है|


  1. आन्वीक्षिकी विद्या-

  • योग व दर्शन का ज्ञान

  • त्रयी और वार्ता के प्रति किए जाने वाले प्रयत्नों में संतुलन स्थापित करने वाली विद्या आन्वीक्षिकी विद्या है|

  • अर्थात आन्वीक्षिकी वह मापदंड है, जिसके द्वारा व्यक्ति के नैतिक और भौतिक उद्देश्यों के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों को संतुलित किया जाता है|


  1. दंडनीति विद्या-

  • मनुष्य के लौकिक (भौतिक) और पारलौकिक (नैतिक) उद्देश्यों को आन्वीक्षिकी के निर्धारित मापदंडों के अनुसार प्रवर्तन की संस्थागत व्यवस्था को दंडनीति कहा जाता है|

  • अर्थात मानव समाज में शांति और व्यवस्था को स्थापित करने के लिए दंडनीति का प्रयोग किया जाता है|


राज्य-

  • सुव्यवस्थित समाज को राज्य कहते हैं|

  • जिस जन समाज में व्यवस्था या दंडनीति स्थापित हो, शासन की सत्ता के कारण मनुष्य में शासक और शासित का भेद हो, वह राज्य कहलाता है|


  • प्राचीन भारतीय विचारक दंडनीति को बहुत महत्व देते हैं तथा राजनीति के पर्याय के रूप में दंडनीति शब्द का प्रयोग करते हैं|

  • आचार्य शुक्र के अनुसार “दंडनीति ही वस्तुत वह विद्या है, जिस पर अन्य विधाओं की स्थिति व सत्ता निर्भर है| 

  • चाणक्य के अनुसार भी त्रयी, वार्ता, आन्वीक्षिकी इन तीनों विद्याओं के विकास के लिए समाज में योगक्षेम होना चाहिए| यह योगक्षेम दंड द्वारा ही स्थापित हो सकता है| इसी दंड का प्रतिपादन करने वाली विद्या दंडनीति या राजनीतिशास्त्र कही जाती है|


  • अर्थात प्राचीन भारतीय चिंतक राजनीतिशास्त्र को दंडनीति कहा करते थे|

  • मनुष्य के एक राज्य में विभिन्न राजनीतिक संबंध होते हैं, इन राजनीतिक संबंधों का अध्ययन करने वाले विज्ञान को हम राजनीति शास्त्र कहते हैं|



पाश्चात्य विचारकों के अनुसार राजनीतिशास्त्र या राजनीतिक सिद्धांत-

  • राजनीति का अंग्रेजी शब्द Politics की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Polis शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है- नगर राज्य|

  • अर्थात नगर राज्य तथा उससे संबंधित जीवन, घटनाओं, क्रियाओं, व्यवहारो एवं समस्याओं का अध्ययन अथवा ज्ञान ही राजनीति है|

  • अरस्तु ने सर्वप्रथम राजनीति शब्द का प्रयोग इन्हीं अर्थो में किया है|



आधुनिक अर्थ में राजनीति-

  • आधुनिक समय में राजनीति का संबंध राज्य, सरकार, प्रशासन, व्यवस्था के अंतर्गत समाज के विभिन संदर्भों व संबंधों के व्यवस्थित ज्ञान एवं अध्ययन से है|



परंपरागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ एवं परिभाषा-

  • राजनीति सिद्धांत का अर्थ एवं परिभाषा समझने से पहले हमें दृष्टिकोण या परिप्रेक्ष्य क्या होता है, उसको समझना चाहिए|

  • सामाजिक विज्ञानों में पद्धति, उपागम, दृष्टिकोण का प्रयोग सामान्यत: एक दूसरे के पर्यायवाची के रूप में कर दिया जाता है, लेकिन इन शब्दों में अंतर होता है-


पद्धति या विधि-

  • पद्धति का अर्थ अन्वेषण की ऐसी प्रक्रिया, जिसके द्वारा विश्वस्त ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है, विश्वस्त निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं|

  • अर्थात विश्वस्त ज्ञान प्राप्त करने या विश्वस्त निष्कर्ष निकालने की प्रक्रिया को पद्धति या विधि कहते हैं|

  • जैसे- आगमनात्मक पद्धति, निगमनात्मक पद्धति, तुलनात्मक पद्धति


उपागम-

  • इसमें किसी घटना की जानकारी के लिए अध्ययन करने के तरीके का या उपयुक्त पद्धति का चयन किया जाता है|

  • अर्थात उपयुक्त अध्यन करने के तरीका या उपयुक्त अध्ययन पद्धति का चयन, उपागम कहलाता है|

  • जैसे- दार्शनिक उपागम, ऐतिहासिक उपागम


 दृष्टिकोण-

  • यह नियमों का एक समूह होता है|

  • जैसे- परंपरागत दृष्टिकोण, आधुनिक दृष्टिकोण 


  • अर्थात एक उपागम की कई अध्ययन पद्धतियां हो सकती हैं, जैसे- आगमन, निगमन, तुलनात्मक आदि तथा एक दृष्टिकोण के अंतर्गत कई उपागम हो सकते हैं| जैसे- दार्शनिक उपागम, ऐतिहासिक उपागम

    

      एक दृष्टिकोण= कई उपागम

      एक उपागम= कई अध्ययन पद्धतियां



परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिशास्त्र या राजनीति सिद्धांत का अर्थ व परिभाषा-


  • इसको राजनीतिक दर्शन या मानकीय उपागम भी कहते हैं|

  • परंपरागत दृष्टिकोण का प्रभाव प्राचीन काल (प्लेटो) से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध तक रहा|

  • परंपरागत दृष्टिकोण मूल्यों के साथ तथ्यों से सरोकार रखते हैं, लेकिन मूल्यों पर ज्यादा बल होता है| मूल्य जैसे- शुभ और अशुभ, उचित और अनुचित|

  • परंपरागराज्य सिद्धांत में मूल्यों, आदर्शों, परम तत्वों आदि को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है| जैसे- प्लेटो का न्याय सिद्धांत, अरस्तु का मध्यम प्रजातंत्र, लॉक का प्राकृतिक कानून, रूसो की सामान्य इच्छा| 

  • इस दृष्टिकोण में सभी सिद्धांत, सिद्धांत निर्माताओं की मान्यताओं से निकले हैं| 

  • अल्फ्रेड कोबान के अनुसार “परंपरागत राजसिद्धांती सदैव क्रियात्मक उद्देश्य लेकर लिखते रहे हैं, जिनका उद्देश्य सुधार, समर्थन व विरोध करना होता है|”

  • परंपरागत दृष्टिकोण निदानात्मक है| 

  • इस दृष्टिकोण में निर्देशन (प्रत्येक विषय वस्तु पर निर्देश होना) की प्रधानता होती है|

  • इसमें मूल्यों की जांच के लिए विवेक या तर्क बुद्धि का प्रयोग किया जाता है|

  • यह दृष्टिकोण राजनीतिक जीवन की चिरंतन समस्याओं और मानवीय मूल्यों के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है|

  • राजनीतिक सिद्धांत के परंपरागत दृष्टिकोण की शुरुआत यूनान से होती है|

  • इस दृष्टिकोण में राज्य को सर्वोच्च संस्था माना जाता है तथा राज्य व समाज में सामान्यतः अंतर नहीं किया जाता है|

  • परंपरागत दृष्टिकोण की पद्धतियां दार्शनिक, चिंतनात्मक, विश्लेषणात्मक, ऐतिहासिक अथवा अंतर्प्रज्ञात्मक होती है| 

  • इनके चिंतन में निरंतरता, समग्रता, आत्मनिष्ठता, सत्यान्वेषण की प्रवृत्ति पाई जाती है| ये राजसिद्धांत को एक स्वतंत्र क्षेत्र मानते हैं| 

  • परंपरागत दृष्टिकोण के विषय विवेकपूर्ण मनुष्य, राज्य का अस्तित्व, उत्पत्ति और स्वरूप, प्राकृतिक विधि, आदर्शलोकवादी भविष्य, समुदाय व सामान्य हित, व्यक्तिवाद, संप्रभुता, राष्ट्रवाद, विधि का शासन आदि है| 

  • व्यक्तिनिष्ठ होने के कारण परंपरागत राजसिद्धांतों में विविधता, अस्पष्टता, अमूर्तता तथा परस्पर तुलना का अभाव पाया जाता है|


  • Note- परंपरागत दृष्टिकोण के अंतर्गत अनुभवमूलक और मानकीय दोनों उपागमों को समान रूप से महत्व दिया जाता है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण में केवल अनुभवमूलक उपागम को महत्व दिया जाता है|


  • परंपरागत दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को चार अर्थो में परिभाषित किया जाता है-

  1. राज्य के अध्ययन के रूप में

  2. सरकार के अध्ययन के रूप में

  3. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में

  4. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में


  1. राज्य के अध्ययन के रूप में-

  • इसमें राजनीति के अध्ययन का दायरा केवल राज्य तक सीमित माना जाता है|

  • जे के बलंटशली के अनुसार “राजनीति शास्त्र का संबंध राज्य से है, जो राज्य की आधारभूत  स्थितियों, उसकी प्रकृति, विविध स्वरूपो एवं विकास को समझने का प्रयत्न करता है|”

  • गैरिस के अनुसार “राजनीति शास्त्र राज्य को एक शक्ति संस्था के रूप में मानता है, जो राज्य के समस्त संबंधों, राज्य की उत्पत्ति, उसके स्थान, उसके उद्देश्य, उसके नैतिक महत्व, उसकी आर्थिक समस्याओं, उसके वित्तीय पहलू आदि का विवेचन करता है|”

  • गार्नर के अनुसारराजनीति शास्त्र का आरंभ और अंत राज्य के साथ होता है|”

  • गैटल के अनुसारराजनीति शास्त्र राज्य के भूत, वर्तमान, भविष्य का, राजनीतिक संगठन तथा राजनीतिक कार्यों का, राजनीतिक संस्थाओं तथा राजनीतिक सिद्धांतों का अध्ययन करता है|”

  • गुड़नाऊ के अनुसारराजनीति शास्त्र में राज्य की वर्तमान दशा और विकासात्मक दशा का अध्ययन किया जाता है|”

  • जेम्स के अनुसार “राजनीति शास्त्र राज्य का विज्ञान है|”

  • जकारिया के अनुसार “राजनीति विज्ञान ऐसे मौलिक सिद्धांतों को सुव्यवस्थित रूप में से प्रस्तुत करता है, जिनके अनुसार पूरे राज्य का संगठन होता है तथा प्रभुसत्ता का प्रयोग किया जाता है|”


  1. सरकार के अध्ययन के रूप में-

  • इस दृष्टिकोण के विद्वानों के अनुसार राज्य एक अमूर्त संस्था है| इसलिए राज्य सत्ता का प्रयोग नहीं करता है| सत्ता का प्रयोग तो सरकार करती है, अतः शासन व्यवस्था या सरकार का अध्ययन करना चाहिए|

  • लीकॉक “राजनीति शास्त्र सरकार से संबंधित अध्ययन है|”

  • जे आर सीले राजनीति शास्त्र उसी प्रकार शासन के तत्वों की खोज करता है, जैसे संपत्ति शास्त्र संपत्ति का, जीवशास्त्र जीव का, बीजगणित अंको का तथा ज्यामितीय शास्त्र स्थान और ऊंचाई का करता है|”


  1. राज्य और सरकार के अध्ययन के रूप में-

  • इसके अनुसार केवल राज्य या केवल सरकार के अध्ययन पर आधारित परिभाषाएं एकांगी है| राज्य और सरकार एक दूसरे के पूरक हैं और घनिष्ठ रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं| अतः दोनों का एक साथ अध्ययन करना चाहिए| यह दृष्टिकोण पूर्व के दोनों दृष्टिकोणों से व्यापक है|

  • R N गिलक्राइस्ट “राजनीति शास्त्र वह शास्त्र है, जिसका संबंध राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं से होता है|”

  • पॉल जेनेट “राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग है, जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है|”

  • डिमॉक “राजनीति शास्त्र में राज्य तथा उसके यंत्र सरकार का अध्यन किया जाता है|”

  • R M मैकाइवर “इसने द वेब ऑफ गवर्नमेंट (1965) के अंतर्गत राज्य और सरकार दोनों को महत्व दिया है|”


  1. राज्य, सरकार और व्यक्ति के अध्ययन के रूप में-

  • इसके अनुसार व्यक्ति के अध्ययन के बिना राजनीति शास्त्र का अध्ययन अधूरा है, क्योंकि राजनीतिक संस्थाएं व्यक्तिगत संबंधों के संदर्भ में कार्य करती हैं|

  • यदि राजनीतिक संस्थाएं व्यक्ति के जीवन, विचारों एवं लक्ष्यों को प्रभावित करती है, तो व्यक्ति की भावनाएं, प्रेरणा तथा समाज के रीति रिवाज एवं परंपराएं भी राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती है|

  • लॉस्की “राजनीति विज्ञान में संगठित राज्यों से संबंधित मनुष्य के जीवन का अध्ययन किया जाता है|”

  • हरमन टेलर “राजनीति शास्त्र के सर्वागीण स्वरूप का निर्धारण व्यक्ति संबंधी मूलभूत पूर्व मान्यताओं द्वारा होता है|”


  • Note- राज्य के बिना सरकार की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि सरकार राज्य प्रदत शक्ति का ही प्रयोग करती है| सरकार के बिना राज्य एक अमूर्त कल्पना मात्र है और व्यक्ति राज्य की प्राथमिक इकाई है| अतः परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र के अंतर्गत राज्य, सरकार एवं व्यक्ति के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है| 


  • परंपरागत दृष्टिकोण केवल शासन की रचना और कार्यप्रणाली के अध्ययन पर बल देता है| 

  • यह दृष्टिकोण सरकार की प्रक्रिया पर प्रभाव डालने वाली संस्थाओं (अनौपचारिक तत्वों) का अध्ययन नहीं करता है|

  • अतः यह केवल राजनीति का औपचारिक अध्ययन करता है|



आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र या राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ एवं परिभाषाएं-

  • आधुनिक दृष्टिकोण को राजनीति विज्ञान या अनुभवमूलक उपागम भी कहते हैं|

  • इसका विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी जगत में होता है|

  • आधुनिक दृष्टिकोण के दो प्रेरणास्रोत रहे हैं-

  1. शिकागो विश्वविद्यालय 

  2. मनोविज्ञान 


  1. प्रथम प्रेरणा स्रोत शिकागो विश्वविद्यालय-

  • शिकागो विश्वविद्यालय के विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को अधिक से अधिक विज्ञान सम्मत बनाने के लिए प्रयत्न किए|

  • चार्ल्स मेरियम के नेतृत्व में मनोविज्ञान, दर्शन, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र एवं मानवशास्त्र जैसे समाज विज्ञानों को निकट लाने का प्रयास किया गया|

  • इसके परिणामस्वरूप राजनीति शास्त्र में तार्किक अनुभववाद, तथ्यात्मकता, व्यवहारवाद तथा समाजशास्त्रीय पद्धतियों का प्रयोग हुआ|


  1. द्वितीय प्रेरणा स्रोत मनोविज्ञान-

  • प्रो. रेनसिस लिकर्ट, कुर्त लेविन, प्रो. लजार्स फेल्ड के प्रयासों से आधुनिक राजनीति में मनोविज्ञान की शोध तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग होने लगा|


  • 1903 में अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन की स्थापना के साथ ही राजनीति का आधुनिक युग में प्रवेश माना जाता है|

  • आधुनिक दृष्टिकोण के प्राथमिक संकेत 1908 में इंग्लैंड में प्रकाशित दो कृतियों में मिलता है, जिन्हें आधुनिक उपागम का अग्रदूत माना जाता है| यह कृतियां निम्न है-

  1. ग्राहम वेलेस- ‘ह्यूमन नेचर इन पॉलिटिक्स’

  2. आर्थर बेंटली- ‘द प्रोसेस ऑफ गवर्नमेंट’


  • ग्राहम वेलेस ने मनोविज्ञान की प्रेरणा से राजनीतिक अध्ययन में व्यक्ति के व्यवहार को प्रमुखता दी है|

  • आर्थर बेंटली ने समाज विज्ञान की प्रेरणा से राजनीति में समूह के व्यवहार के अध्ययन को प्रमुखता दी है| ये समूह अनौपचारिक थे| बेंटली ने राजनीतिक प्रक्रियाओं में दबाव समूह, दलों, चुनाव, लोकमत की भूमिका पर विशेष बल दिया है|


  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से वर्तमान तक राजनीति विज्ञान के विकास को दो भागों में बांटा जा सकता है-

  1. 1945 से 1970 तक व्यवहारवाद की प्रमुखता का युग-

  • इसमें परंपरागत दृष्टिकोण का विरोध किया गया|


  1. दूसरा युग 1970 के बाद उत्तरव्यवहारवाद का युग-

  • इस युग में मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा पर बल दिया गया|


  • आधुनिक दृष्टिकोण में ऐसे तथ्यों पर बल दिया गया है, जो अनुभव और निरीक्षण पर आधारित हैं, जिन्हें सत्य-असत्य ठहराया जा सके|

  • इसमें वैज्ञानिकता तथा तथ्यों के वर्णन (व्याख्या) पर बल दिया गया है|

  • इसमें अनौपचारिक प्रक्रियाओं के अध्ययन पर बल दिया गया है|


  • आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीति शास्त्र को निम्न अर्थो में परिभाषित किया गया है-

  1. राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं का अध्ययन है|

  2. राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है|

  3. राजनीति शास्त्र राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है|

  4. राजनीति शास्त्र निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है|


  1. राजनीति शास्त्र मानवीय क्रियाओं या व्यवहार का अध्ययन है-

  • आधुनिक व्यवहारवादी विद्वान राजनीति विज्ञान को मनुष्य के राजनीतिक जीवन और क्रियाकलापों का अध्ययन करने वाला विज्ञान तथा मानव जीवन के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और अन्य पक्षों का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं|

  • कैटलिन "राजनीति विज्ञान संगठित मानव समाज से संबंधित है, किंतु मुख्य रूप से यह सामुदायिक जीवन के राजनीतिक पहलुओं का अध्ययन करता है|”

  • बर्टेंड डी जुविनेल “हमारा विषय उन राजनीतिक संबंधों का अध्ययन करता है, जो मिल-जुल कर रहने वाले व्यक्तियों के बीच स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं|”


  1. राजनीति शास्त्र शक्ति का अध्ययन है-

  • कैटलिन, लासवेल, मेरियम, मैक्स वेबर, बट्रेंड रसैल, मोर्गेनथो आदि इसके समर्थक हैं|

  • कैटलिन “कैटलिन ने राजनीति को शक्ति का विज्ञान माना है|”

  • गिल्ड तथा पामर “राजनीति, शक्ति एवं सत्ता के संबंधों के रूप में सबसे अच्छे प्रकार से समझी जा सकती है|”

  • लासवेल “शक्ति का सिद्धांत संपूर्ण राजनीति विज्ञान में एक बुनियादी सिद्धांत है, संपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया शक्ति के वितरण, प्रयोग एवं प्रभाव का अध्ययन है|”


  1. राजनीति विज्ञान राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन है-

  • ईस्टन तथा आमंड राजनीति शास्त्र को राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन मानते हैं|

  • राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत राज्य और सरकार की औपचारिक संरचनाओं के साथ-साथ उनको प्रभावित करने वाले अनौपचारिक तत्वों के अध्ययन को शामिल किया जाता है|

  • ईस्टन “किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को जिससे उक्त समाज में बाध्यकारी या अधिकारपूर्ण नीति निर्धारण होते हैं, राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है|


  1. राजनीति विज्ञान निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन है-

  • हर्बर्ट साइमन राजनीति विज्ञान को निर्णय प्रक्रिया का विज्ञान मानता है|

  • यदि राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन है और सरकार का मुख्य कार्य निर्णय निर्माण करना है, तो राजनीति शास्त्र को निर्णय प्रक्रिया का विज्ञान कहा जा सकता है|


  • Note- लासवेल राजनीति विज्ञान को मुलत: एक नीति विज्ञान मानता है|



परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण की परिभाषाओं में अंतर-

  1. परंपरागत परिभाषाएं संकुचित दृष्टिकोण में राजनीतिशास्त्र का अर्थ प्रतिपादित करती हैं, जबकि आधुनिक परिभाषाएं विस्तृत दृष्टिकोण में राजनीतिशास्त्र का अर्थ प्रतिपादित करती है|

  2. परंपरावादी, राजनीति शास्त्र को केवल औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान मानते हैं, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण, राजनीति शास्त्र को औपचारिक संस्थाओं के साथ-साथ अनौपचारिक तत्वों का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं|


औपचारिक संस्थाए जैसे- राज्य, सरकार आदि|

अनौपचारिक तत्व जैसे- शक्ति, प्रभाव, राजनीतिक व्यवस्था, निर्णय प्रक्रिया आदि|


  1. परंपरावादी परिभाषाएं राजनीतिक संरचना या ढांचे के अध्ययन पर बल देती है, जबकि आधुनिक परिभाषाएं राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन पर बल देती है|

  2. परंपरावादी परिभाषाएं आदर्शों एवं मूल्यों के अध्ययन पर बल देती है, जबकि आधुनिक परिभाषाएं तथ्यों के अध्ययन पर बल देती हूं|

  3. परंपरावादी परिभाषाएं राजनीति शास्त्र के अध्ययन में दार्शनिक, ऐतिहासिक उपागम और कानूनी पद्धतियों के अध्ययन पर बल देती है, जबकि आधुनिक परिभाषाएं अंत: अनुशासनात्मक उपागम और अनुभववादी पद्धतियों पर बल देती हैं|



परंपरागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र-


  • परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र-


  • राजनीतिशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र का निर्धारण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को द्वारा सितंबर 1948 में विश्व के प्रमुख राजनीतिशास्त्रियों का सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्न को शामिल किया-

  1. राजनीति के सिद्धांत- अतीत एवं वर्तमान के राजनीतिक सिद्धांतों एवं विचारों का अध्ययन

  2. राजनीतिक संस्थाएं- संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक एवं स्थानीय शासन का तुलनात्मक अध्ययन

  3. राजनीतिक दल, दबाव समूह एवं लोकमत- राजनीतिक दल व दबाव समूह का, राजनीतिक व्यवहार एवं लोकमत का तथा शासन में नागरिकों के भाग लेने की प्रक्रिया का अध्ययन

  4. अंतरराष्ट्रीय संबंध- अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संगठनो तथा अंतरराष्ट्रीय प्रशासन का अध्ययन|


  • विभिन्न परंपरागत राजनीतिशास्त्रियों तथा यूनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परंपरागत राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में निम्न विषयवस्तु को शामिल किया जा सकता है-


  1. मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन- 

  • इसमें राज्य द्वारा व्यक्ति को प्रदत्त अधिकार एवं राज्य के प्रति पालन किए गए व्यक्ति के कर्तव्यो का अध्ययन किया जाता है|

  • तथा राज्य द्वारा व्यक्तियों के लिए तथा व्यक्तियों द्वारा राज्य की नीतियों को प्रभावित करने के तत्वों का अध्ययन किया जाता है|


  1. राज्य का अध्ययन-

  • यह राज्य के अतीत, वर्तमान, भविष्य का अध्ययन करता है|

  • गेटिल “राजनीति विज्ञान राज्य कैसा रहा कि ऐतिहासिक गवेषणा, राज्य कैसा है का विश्लेषणात्मक अध्ययन, राज्य कैसा होना चाहिए की राजनीतिक व नैतिक परिकल्पना है|”


  1. सरकार का अध्ययन-

  • राजनीति शास्त्र के अंतर्गत सरकार के प्राचीन एवं आधुनिक स्वरूप का अध्ययन किया जाता है|

  • विभिन्न देशों में विद्यमान शासन प्रणालियों का अध्ययन किया जाता है|

  • शासन के विभिन्न अंग व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका का अध्ययन किया जाता है|


  1. स्थानीय संस्थाओं एवं राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन-

  • स्थानीय संस्थाएं जैसे-स्थानीय स्वशासन, संस्थाओं के संगठन, कार्य प्रणाली तथा कार्य क्षेत्र का अध्ययन करता है|

  • राष्ट्रीय समस्याएं जैसे- राष्ट्रीय एकता, अखंडता तथा विकास के मार्ग में बाधक समस्याओं का अध्ययन करता है तथा इन समस्याओं के आवश्यक हल सुझाता है|


  1. राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन-

  • राजनीतिक शास्त्र में आदर्शवाद, व्यक्तिवाद, अराजकतावाद, फासीवाद, समाजवाद, साम्यवाद तथा बहुलवाद जैसी विचारधाराओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है|

  • इन विचारधाराओं में यथार्थवादी एवं आदर्शवादी मूल्यों पर तथा राज्य की उत्पत्ति, राज्य तथा व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों के अलावा कानून, स्वतंत्रता, समानता आदि पर विचार प्रकट किए हैं|


  1. अंतर्राष्ट्रीय पक्ष का अध्ययन या अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन-

  • राजनीति शास्त्र में अंतरराष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन किया जाता है|


  1. संविधान व संवैधानिक संस्थाओं का अध्ययन-

  • संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक एवं स्थानीय शासन का तुलनात्मक अध्ययन|


  1. राजनीतिक दलों व दबाव समूहों का अध्ययन या सविधानेत्तर संस्थाओं का अध्ययन-

  • राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेकर सरकार का निर्माण करते हैं|

  • दबाव समूह गुप्त एवं अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं|

  • राजनीतिक दल व दबाव समूह लोकमत के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं|


  1. राजनय एवं अंतर्राष्ट्रीय विधि का अध्ययन-

  • राज्यों के पारस्परिक संबंध मुलत: राज्यों की विदेश नीति और राजनय की कुशलता पर निर्भर रहते हैं|

  • दूसरे देशों के साथ ‘युद्ध और शांति के प्रश्न’ समुद्री तट, खुला समुद्र, प्रत्यर्पण जैसे विषयों के संबंधों का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा निश्चित किया जाता है|


  1. विभिन्न देशों के संविधानो व संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन



  • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र-


  • आधुनिक दृष्टिकोण का अध्ययन क्षेत्र अधिक व्यापक और यथार्थवादी है|

  • आईनेमन के अनुसार “राजनीति शास्त्र का क्षेत्र अब इतना व्यापक हो गया है, कि उसमें संस्थागत संगठन, निर्णय निर्माण और क्रियाशीलता की प्रक्रियाओं, नियंत्रण की राजनीति, नीतियों और कार्यों तथा विधिबद्ध प्रशासन के मानवीय वातावरण को भी सम्मिलित किया जाने लगा है|”

  • आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक- कैटलिन, लासवेल, रॉबर्ट डहल, फ्रीमैन आदि है|


  • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र में निम्न विषयवस्तु को शामिल किया जाता है-


  1. मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन-

  • मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को राजनीतिक कारकों के साथ ही अन्य गैर-राजनीतिक कारक भी प्रभावित करते हैं|

  • अतः राजनीतिक शास्त्र में मानव व्यवहार के साथ व्यवहार को प्रभावित करने वाले राजनीतिक और गैर-राजनीतिक कारकों का अध्ययन किया जाता है|


  1. विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन-

  • आधुनिक दृष्टिकोण में मुख्य रूप से शक्ति, सत्ता, प्रभाव, नियंत्रण तथा निर्णय प्रक्रिया आदि अवधारणाओं का अध्यन किया जाता है|

  • इन अवधारणाओं के संदर्भ में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है| 


  1. सार्वजनिक समस्याओं के संदर्भ में संघर्ष व सहमति का अध्ययन-

  • मेरान व बेनफील्ड “किसी समस्या को संघर्षपूर्ण बनाने वाली अथवा उसका समाधान खोजने वाली सभी गतिविधियां राजनीति है|”

  • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिक महत्व की सार्वजनिक समस्याओं पर पाई जाने वाली संघर्ष एवं सहमति की प्रवृत्ति का अध्ययन राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु है|

  1. समूहों की भूमिका एवं उनके आचरण का अध्ययन-


  • इनके अलावा प्रशासन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, विचारधारा, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा सैन्य विज्ञान आदि भी आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र है|


  • अर्नाल्ड ब्रेश्ट ने International Encyclopaedia of Social Science 1968 में राजनीतिक सिद्धांत शीर्षक के अंतर्गत निम्न अध्ययन इकाइयां बतायी है- 

  1. समूह 

  2. संतुलन

  3. शक्ति, नियंत्रण एवं प्रभाव

  4. क्रिया

  5. विशिष्ट वर्ग या अभिजन

  6. चयन तथा विनिश्चय प्रक्रिया

  7. पूर्वभाषित प्रतिक्रिया

  8. कार्य 

 

  • अध्ययन क्षेत्र के विषय में परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण में अंतर-


  1. काल का अंतर-

  • द्वितीय विश्वयुद्ध तक परंपरागत दृष्टिकोण

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आधुनिक दृष्टिकोण


  1. स्वरूप का अंतर-

  • परंपरागत दृष्टिकोण के अनुसार राज्य, सरकार एवं राजनीतिक संस्थाओं के संगठन व कार्यों तथा व्यक्ति व राज्यों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन वैधानिक पद्धति से किया जाता है|

  • आधुनिक दृष्टिकोण में व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन  व्यवहारवादी दृष्टिकोण से किया जाता है|


  1. विषयवस्तु का अंतर-

  • परंपरागत दृष्टिकोण राजनीति को पूर्ण विज्ञान मानता है तथा अन्य विषयों की मदद लेना उचित नहीं मानता है|

  • आधुनिक दृष्टिकोण राजनीति शास्त्र का संबंध अन्य समाज विज्ञानों से स्थापित करता है, जैसे- मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि| 

  • इस प्रकार परंपरागत दृष्टिकोण अनुशासनात्मक दृष्टिकोण है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण अंत:अनुशासनात्मक दृष्टिकोण है|


  1. औपचारिक एवं अनौपचारिक अध्ययन- 

  • परंपरागत दृष्टिकोण में औपचारिक अध्ययन किया जाता है|

  • आधुनिक दृष्टिकोण में औपचारिक अध्ययन के साथ अनौपचारिक अध्ययन भी किया जाता है|


  1. अध्ययन पद्धति में अंतर-

  • परंपरागत दृष्टिकोण में ऐतिहासिक, दार्शनिक, तुलनात्मक अध्ययन पद्धति का प्रयोग किया जाता है| इससे अध्ययन आदर्शवादी एवं व्यक्तिनिष्ठ हो जाता है, जो कि अध्ययन पद्धति को  अवैज्ञानिक बना देता है

  • आधुनिक दृष्टिकोण में समाज विज्ञानों की वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है| जैसे- सांख्यिकीय, गणितीय, सर्वेक्षणात्मक पद्धति|

  • आधुनिक दृष्टिकोण में यथार्थवादी, मूल्य निरपेक्ष एवं वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण का प्रयोग किया जाता है|


  1. प्रमाणिकता एवं निश्चयात्मकता की मात्रा में अंतर-

  • आधुनिक दृष्टिकोण परंपरागत दृष्टिकोण की अपेक्षा अधिक प्रमाणिक, निश्चयात्मक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है|

  • वैसे प्रमाणिकता एवं निश्चयात्मकता की दृष्टि से दोनों ही अपूर्ण है|



परंपरागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण के उपागम- 


परंपरागत दृष्टिकोण के उपागम-


  • मूल्यात्मक आधार पर परंपरागत उपागम को दो वर्गों में रखा जाता है- 

  1. मानकीय- दर्शनशास्त्रीय उपागम

  2. अनुभवपरक- इतिहासवादी एवं कानूनी-संस्थात्मक उपागम


  1. दार्शनिक उपागम-

  • समर्थक- प्लेटो, अरस्तु, हेगेल, मार्क्स, रूसो, थॉमस मुर, गाँधी 

  • आधुनिक समर्थक- बर्टेंड रसेल, लिओ स्ट्रास, जूवेनेल, वोएगलिन आदि| 

  • यह अध्ययन का सबसे प्राचीन, प्रचलित एवं प्रभावशाली उपागम है|

  • दर्शन का अर्थ है- सूक्ष्मता से देखना

  • इसे आदर्शवादी या आदर्शात्मक विचारवादी उपागम भी कहते हैं|

  • यह कल्पना एवं आदर्शों पर आधारित है|

  • इसे निगमनात्मक, नैतिक, तत्वमीमांसक व चिंतन मूलक पद्धति कहते हैं|

  • यह निर्देशात्मक व मानकीय उपागम है|

  • इसमें नीतिशास्त्र व दर्शनशास्त्र पर बल दिया जाता है|

  • यह दर्शनशास्त्र के सबसे निकट उपागम है|

  • यह निश्चित मूल्यों के आधार पर राज्य या समाज का अध्ययन करता है, अतः मानकीय उपागम है|

  • यह समष्टिवादी है, क्योंकि इसमें पूर्णता पर बल दिया जाता है|

  • यह क्या होना चाहिए पर बल देता है|

  • यह निगमनात्मक पद्धति है, क्योंकि पूर्व निश्चित नियमों व निष्कर्षों को प्राथमिकता दी जाती है|

  • इसमें आदर्श समाज की परिकल्पना की जाती है| जैसे- प्लेटो का न्याय युक्त आदर्श समाज, गांधीजी का रामराज, कार्ल मार्क्स का साम्यवाद, कांट का यूरोपीय संघ, डेविड हेल्ड आर्थर मुरे की विश्व सरकार, अरविंद घोष की विश्व संघ अवधारणा आदि|

  • दार्शनिक उपागम एक ओर मूल्यों, शाश्वत तत्वों, भावनाओं, सिद्धांतों, आदर्शो, सत्यों और मानकों पर विचार करता है, तो दूसरी ओर विषयगत वस्तुओं की मूल प्रकृति, उपयोगिता तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों आदि का तात्विक अन्वेषण करता है| 

  • दार्शनिक उपागम का सामान्य अर्थ है विषय वस्तु की गहराई में जाकर अधिक व्यापक एवं उच्चतर मूल्यों की उपलब्धि पर विचार करना|

  • नव परंपरावादी लियो स्ट्रास कहता है कि “सेनापति का लक्ष्य युद्ध में विजय प्राप्त करना है, किंतु शासक का लक्ष्य अच्छे जीवन की खोज करना है|”

  • हेगेल के अनुसार दार्शनिक उपागम दृश्यमान सत्ता का विचारात्मक विन्यास, बौद्धिकीकरण तथा प्रत्ययीकरण है| 


  • दार्शनिक उपागम की कमियां-

  • यथार्थ व आदर्श में भेद नहीं करता|

  • काल्पनिकता व आत्मपरकता पर आधारित|

  • यह उपागम व्यक्ति को साधन मानकर इसे राज्य की वेदी पर चढ़ा देता है| 

  • जैसे-

  1. प्लेटो का दार्शनिक राजा सर्वज्ञ होने के कारण किसी बंधन के अधीन नहीं है|

  2. हेगेल का राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतार या विचरण है|

  3. रूसो का राज्य प्रभु कोई त्रुटि नहीं कर सकता है|


  • कार्ल पॉपर ने अपनी पुस्तक ओपन सोसायटी एंड इट्स एनीमीज 1945 में इस उपागम को खुले समाज का शत्रु कहा है|


  • दार्शनिक उपागम का महत्व-

  • राजनीतिक क्रियाएं सोद्देश्य होती है, अतः उनके उद्देश्य और मूल्यों को ध्यान में रखे जाने की आवश्यकता है| 

  • मूल्य निरपेक्षता व वैज्ञानिक पद्धति के समर्थक भी अप्रत्यक्ष रूप से मूल्यों का प्रयोग करते हैं| 

  • कैटलिन ने राजनीति को विज्ञान माना है तथा उसके लक्ष्यों और उद्देश्यों के लिए राजनीतिक दर्शन को आवश्यक बताया है| 

  • उत्तरव्यवहारवादी तो स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हैं कि कुछ शाश्वत प्रकृति के मूल्यों की खोज की जा सकती है तथा उनकी श्रेष्ठता को सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित किया जा सकता है| 


  • दार्शनिक उपागम को भारतीय संदर्भ में चार कालों में विभाजित किया जा सकता है (S L वर्मा)-

  1. वेद और वेदांत का अध्यात्मवाद- जिसका प्रभाव समस्त भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं राजनीति पर पाया जाता है| 

  2. यूनानी नीतिशास्त्र- जिसमें न्याययुक्त आचरण का स्वरूप स्वकर्म में कुशलता था| प्लेटो और अरस्तु इसका प्रतिनिधित्व करते हैं|

  3. जर्मन-ब्रिटिश विज्ञानवाद- जिसके प्रतिनिधि कांट, हीगल, ग्रीन, ब्रैडले आदि है| 

  4. आधुनिक भारतीय दार्शनिक धारा- जिसमें रामनमोहन राय, दयानंद, तिलक, विवेकानंद, रविंद्र नाथ, अरविंद, गांधी आदि शामिल है| 

  • ये सब दार्शनिक उपागम का महत्व प्रदर्शित करते हैं| 


  1. मानकीय उपागम-

  • समर्थक- प्लेटो, गाँधी

  • यह क्या होना चाहिए अर्थात आदर्श क्या है, बताता है|

  • मानकीय उपागम को दो भागों में बांटा जाता है-

  1. न्यूनतम मानकीय उपागम- यह आदर्श मानक को इस तरह निर्धारित करता है, कि कोई तत्व उस स्तर से नीचे न आए|

  2. अधिकतम मानकीय उपागम- यह आदर्श मानक को इस तरह निर्धारित करता है, कि कोई तत्व इस उत्तम मानक या आदर्श को प्राप्त ही न कर सके|

  • अर्थात यह उपागम उच्चतम व न्यूनतम मानक निर्धारित करता है|

  • यह उपागम निदेशकों, मूल्यों, आचरणों के उच्चतम मानकों पर बल देता है|

  • यह सभी अन्वेषकों में एक दिशा, एक दृष्टि, एक लक्ष्य देखने का प्रयास करता है|


  • मानकीय उपागम की कमियां-

  • यह उपागम भी दार्शनिक उपागम की तरह आत्मपरक व काल्पनिक तथा एक पक्षीय है|

  • इस उपागम का अनुसरण करने वाले विचारक रूढ़िवादी या आदर्शवादी है| 

  • रूढ़िवादी- ऐसे विचारक जो तत्कालीन व्यवस्था को उचित ठहराने का प्रयास करते हैं| जैसे- बर्क, ऑकशॉट 

  • आदर्शवादी विचारक- ऐसे विचारक जो तत्कालीन व्यवस्था से भिन्न आदर्श व्यवस्था का सुझाव देते हैं| जैसे-प्लेटो, हेगेल, रूसो



  1. ऐतिहासिक उपागम-

  • प्रमुख समर्थक या इसको अपनाने वाले विचारक-

  • अरस्तु, हेगेल, मैक्यावली, मांटेस्क्यू, बर्क, सेबाइन, डनिंग, M C इवामन, बर्गेस, पोलक, सीले, फ्रीमैन, मिल, हेनरीमेन, मैक्स वेबर आदि|

  • राजनीति विज्ञान में इतिहासवादी उपागम भी अत्यंत प्राचीन, मान्य और महत्वपूर्ण रहा है| 

  • यह उपागम राजनीतिक घटनाओं व संस्थाओं का अध्ययन इतिहास के आधार पर करता है, क्योंकि राजनीतिक संस्थाओं, आदर्शों, सिद्धांतों और समस्याओं की जड़े इतिहास में होती हैं| इसी कारण इतिहास को राजनीति की जड़ तथा राजनीति को इतिहास का फल कहा गया है| 

  • इतिहासवादी उपागम अतीतकाल में घटित महत्वपूर्ण तथ्यों और घटनाओं का अन्वेषण-विश्लेषण करके उनका यथातथ्य वर्णन करता है| वह मूल्य निरपेक्ष रहकर विभिन्न संस्थाओं, ऐतिहासिक व्यक्तियों, समाजो, प्रक्रियाओं और मूल्यों का चित्रण करता है| 

  • इसके समर्थकों के अनुसार ऐतिहासिक आधार पर बने सिद्धांत तथ्यपरक एवं वैज्ञानिक होते हैं|

  • यह उपागम वर्तमान को अतीत के माध्यम से देखता है| 

  • इस उपागम का जनक J H सेबाइन को माना जाता है|

  • J H सेबाइन (ए हिस्ट्री ऑफ़ पोलिटिकल थ्योरी 1937) “वर्तमान राजनीति विज्ञान की विषय सूची में जो विषय है, उनका विकास इतिहास के पन्नों में मिलता है|”

  • सेबाइन के अनुसार “वर्तमान राजनीति का अध्यन, अतीत की घटनाओं के संदर्भ में करना चाहिए|”

  • सेबाइन के अनुसार किसी भी राजनीतिक संस्था अथवा अवधारणाओं का जन्म एका-एक नहीं होता है| सब राजनीतिक संस्थाएं या सिद्धांत ऐतिहासिक चरणों से गुजर कर अपने स्वरूप में पहुंचते है| सामाजिक- आर्थिक संकट के कारण नए विचारक जन्म लेते हैं तथा नए विचार उत्पन्न होते हैं| जैसे- यूनान की परिस्थितियों ने प्लेटो, अरस्तु को जन्म दिया, इंग्लैंड की गृह युद्ध की परिस्थितियों ने हॉब्स, लॉक को जन्म दिया, भारत की औपनिवेशिक परिस्थितियों ने गांधी को जन्म दिया|

  • मैक्यावली ने रोमन साम्राज्य के इतिहास का अध्ययन कर शासकों को सुझाव दिया कि उन्हें प्राचीन रोमन साम्राज्य के गौरव को पुनः स्थापित करना चाहिए|

  • बर्क ने इंग्लैंड के राजनीतिक इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर कहा कि “राजनीतिक संस्थाएं धीरे-धीरे विकसित होती है|”

  • फ्रीमैन “इतिहास बीती हुई राजनीति है, राजनीति आज का इतिहास है|”

  • गिलक्राइस्ट “इतिहास न केवल संस्थाओं की व्याख्या करता है, वरन यह भविष्य के पथ-प्रदर्शन हेतु निष्कर्ष प्राप्त करने में भी सहायक होता है| यह वह धुरी है, जिसके चारों ओर राजनीति विज्ञान की आगमनात्मक और निगमनात्मक दोनों ही प्रक्रियाएं कार्य करती हैं|”


  • वर्नन वान डायक ने इतिहास के निम्न प्रचलित अर्थ बताएं है- 

  1. एक वास्तविकता का प्रतिपादन

  2. एक लिखित स्वरूप

  3. एक शैक्षिक अनुशासन


  • ऐतिहासिक उपागम की आलोचना-

  • इसमें अध्ययनकर्ता पूर्वाग्रह से ग्रसित हो सकता है तथा उपयुक्त तथ्यों के चयन के अभाव में निष्कर्ष गलत निकाले जा सकते हैं|

  • कुछ ऐतिहासिक सिद्धांत अप्रासंगिक हो सकते हैं|

  • व्यवहारवादी क्रांति और विज्ञानवादी उदय के पश्चात इस उपागम की अवहेलना की गई| रॉबर्ट डहल ने व्यवहारवादियों की इस आधार पर आलोचना की तथा आर्थर बेंटले का भी यही दृष्टिकोण था| 

  • डेविड ईस्टन ने भी इतिहासवादी उपागम को सर्वोपरि स्थान देने या इतिहासवादिता को अपनाने की प्रवृत्ति को राजविज्ञान में सामान्य राजनीतिक सिद्धांत के अभाव का मूल कारण बताया है| 

  • नेल्स , पोशबी, रॉबर्ट एवं पॉल स्मिथ ने भी इस उपागम की कमियों को बताया है| 


  • ऐतिहासिक उपागम का महत्व-

  • राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक किसी देश की राजनीति के विश्लेषण के लिए वहां की राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन जरूरी समझते हैं|

  • राजनीतिक संस्कृति- राजनीतिक संस्कृति के अंतर्गत उस देश में उन प्रचलित मान्यताओं, मूल्यों, मानकों का अध्ययन करते हैं, जो शासक वर्ग, शासन प्रणाली, शासन प्रक्रिया को वैधता प्रदान करते हैं|



  1. संवैधानिक या कानूनी या विधि या वैधानिक उपागम-

  • कानूनी उपागम को न्यायशास्त्रीय उपागम भी कहा जाता है| 

  • यह उपागम राजनीति में संविधान, कानून पर बल देता है|

  • इस उपागम में राज्य, सरकार, न्याय, अधिकार, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय कानून आदि का अध्ययन किया जाता है|

  • अमेरिका और यूरोप में 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक इस उपागम का बोलबाला रहा| जर्मनी इसका प्रमुख केंद्र था| 

  • प्रमुख समर्थक- बार्कर, ऑग, सिसरो, बोदाँ, हॉब्स, बेंथम, डायसी, आस्टिन, कार्टर, हर्जन्यूमैन, बुलर्से थियोडोर|

  • ग्रोशियस, पाउंड, सेवाइनी, मेन आदि न्यायशास्त्रीय चिंतन के प्रतिपादक रहे| 

  • बेंथम, जॉन ऑस्टिन आदि विधि-संप्रदाय से संबंध विश्लेषणवादी चिंतक कहलाते हैं| 

  • कानूनी विचारधारा का उग्रवादी रूप गर्बर, जेलिनेक, लेबन्ड आदि में देखने को मिलता है 


  • आलोचक- बहुलवादी, श्रेणी समाजवादी, श्रमिक संघवादी तथा अनुभववादी इसके आलोचक हैं|


  1. संस्थात्मक उपागम-

  • इस उपागम में संवैधानिक एवं गैर संवैधानिक संस्थाओं का औपचारिक अध्ययन किया जाता है |

  • इसकी शुरुआत अरस्तु के विचारों से हुई है|

  • वास्बी के अनुसार संस्थात्मक या संरचनात्मक उपागम की जड़े अरस्तु के वर्गीकरण तक चली गई है| 

  • संस्थात्मक उपागम का नारा है- कानूनो की सरकार, न कि व्यक्तियों की| 

  • व्यवहारवादी आंदोलन से पूर्व उदित अनुभववाद मुलत: संस्थावादी उपागम का ही प्रयोग करता था| 

  • संवैधानिक संस्थाएं- संविधान, सरकार, कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका, मंत्रिमंडल, संसद, न्यायालय, स्थानीय संस्थाएँ आदि|

  • गैर संवैधानिक संस्थाएं- नीति आयोग, राजनीतिक दल, दबाव समूह, नागरिक सेवा, प्रशासनिक विभाग, शक्ति पृथक्करण संस्थाएं एवं प्रविधियां आदि|


  • प्रमुख समर्थक- अरस्तु, सारटोरी, डुवर्जर, लार्ड जेम्स ब्राइस, हेराल्ड लास्की, मेक्रिडस, कार्ल जे फ्रेडरिक, हरमन फाइनर, लावेल 

  • Note- यह उपागम कानूनी उपागम के साथ निकट से जुड़ा हुआ है|


नव संस्थावाद उपागम- (समकालीन या आधुनिक उपागम)

  • वर्तमान में 1970 के बाद संस्थावाद का स्वरूप नवसंस्थावाद हो गया|

  • इसमें संस्थाओं का औपचारिक व अनौपचारिक अध्यन किया जाता है|  

  • प्रमुख समर्थक- डगलस नार्थ, थीयोडोर लेबी, माइकल हेंज, मार्च, जोहान ओल्सेन, आखेलन आदि|


  1. कानूनी- संस्थात्मक उपागम-

  • कानूनी व संस्थागत उपागम एक दूसरे के लिए पूरक हैं| 

  • वैसे तो कानूनी तथा संस्थात्मक उपागम दो पृथक एवं स्वतंत्र उपागम है, लेकिन परंपरावादी विश्लेषक प्राय: इन दोनों का उपयोग एक साथ करते हैं| 

  • सरकारी एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर अधिकांश अध्ययन सम्मिलित उपागम के आधार पर किए जाते हैं| 

  • विधि-विज्ञान भी प्राय: सम्मिलित उपागम को अपनाकर अध्ययन करता है| 


  1. तुलनात्मक उपागम-

  • इस उपागम के अंतर्गत विभिन्न घटनाओं, संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है|

  • इसमें विभिन्न देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं आदि का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है|

  • तुलनात्मक उपागम का सर्वप्रथम प्रयोग अरस्तु ने किया था| अरस्तु ने 158 संविधानो की तुलना करके यह परिणाम निकाला कि शासन व्यवस्थाएं परिवर्तन चक्र में रहती है|


  • समर्थक- अरस्तु, लॉर्ड ब्राइस, मांटेस्क्यू, डी टॉकविले 

  • G A आमंड ने इस उपागम की प्रशंसा करते हुए कहा कि “तुलनात्मक होना वैज्ञानिक है|”


  1. संदर्भात्मक उपागम-

  • इस उपागम में परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण का समन्वय है|

  • इसको परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच की कड़ी कहा जाता है|

  • ऐतिहासिक उपागम पर आधारित है| इसके अनुसार सभी विचारक या लेखक अपने समय के उत्पाद होते हैं|

  • इस उपागम में द्वितीयक आंकड़ों के साथ-साथ प्राथमिक आंकड़ों का उपयोग किया जाता है|


  • प्रमुख समर्थक- मार्श व बटलर 

  • अन्य समर्थक- क्विंटन स्किनर, जे जे पोकॉक, जॉनडन, पीटर विंच, कैंब्रिज स्कूल के विचारक|

  • Note- इस उपागम को नवीन उपागम की श्रेणी में रखा जाता है| 


           आलोचना

  • संदर्भवादी केवल अपने दृष्टिकोण को ही किसी विषय का अर्थ जानने के लिए आवश्यक समझते हैं|

  • ये ऐतिहासिक दर्शन का उपयोग करते हुए भी अपने साधन को आधुनिक मानते हैं|



परंपरागत एवं आधुनिक काल के मध्य का विकास-

  • कुछ उपागम प्राचीन एवं आधुनिक काल के मध्य का विकास माने जाते हैं| जो निम्न है-


  1. अर्थशास्त्रीय उपागम-

  • इस उपागम का मूल दृष्टिकोण यह है कि सर्वत्र आर्थिक संबंध प्रमुख होते हैं| जिनके हाथ में उत्पादन, वितरण, विनिमय आदि के संसाधन होते हैं, वहीं राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली होता है| 

  • अरस्तु के युग से ही राजनीति का आर्थिक तत्वों व शक्तियों के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है|

  • समाजवाद के उदय तथा कार्ल मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद के बाद समाज और राजनीति पर आर्थिक गतिविधियों का महत्व और ज्यादा स्वीकार किया जाने लगा| 

  • औद्योगिक क्रांति, रूस में साम्यवाद की स्थापना, द्वितीय महायुद्ध तथा चीन में माओवाद के उदय ने इस प्रक्रिया को और तीव्र कर दिया|

  • समर्थक- एंथनी डाउन्स (An Economic Theory of democracy 1957), एडम स्मिथ, माल्थस, मार्क्स, कीन्स आदि| 


  • राजनीतिक अर्थशास्त्रीय उपागम के दो रूप माने जाते हैं-

  1. परंपरागत राजनीतिक अर्थशास्त्र

  2. आधुनिक राजनीतिक अर्थशास्त्र


  1. परंपरागत राजनीति अर्थशास्त्र-

  • प्रमुख विद्वान-  

  • एडम स्मिथ (An Inquiry into the Nature and Cases of Wealth of Nation 1776) 

  • जॉन स्टूअर्ट मिल (Principal of Political Economy 1848)

  • कार्ल मार्क्स (Capital : A Critique Political economy 1867) 

  • रॉबर्ट माल्थस (An Essay on the Principle of Population 1798) 

  • डेविड रिकार्डो (That Principle of Political Economy and Taxation 1817)


  1. आधुनिक राजनीतिक अर्थशास्त्र-

  • प्रमुख विद्वान-

  • जोसेफ शुम्पीटर (Capitalism, Socialism and Democracy 1942)

  • एंथनी डाउंस (An Economic Theory of Democracy 1957)

  • जेम्स बुकानन और गार्डन ट्यूलक (The Calculus of Consent 1962)

  • मैनकर ओलसन (The logic of Collective Action 1965) 

  • R L करी व L L वेड (That Theory of Political Exchange 1968)


  1. समाजशास्त्रीय उपागम-

  • इस उपागम में यह माना जाता है कि राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है, जिसे राज- समाजशास्त्र कहा जाता है| इस तथ्य को प्लेटो और अरस्तू के समय से ही स्वीकार किया जाता है|

  • डेविड ईस्टन एवं आमंड ने यह प्रतिपादित किया है, कि समाज विज्ञान के क्षेत्र में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है, इसकी मदद से राजनीतिक व्यवहार के नियम निर्धारित किए जाते हैं|

  • गिडिंग्स, कैटलिन, रोवे, डहल आदि ने राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र को एक दूसरे का पूरक माना है| 

  • काम्टे (प्रत्यक्षवाद) व स्पेंसर के समाज विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग से इस उपागम का महत्व बढ़ा है|

  • राजनीति में व्यवस्था सिद्धांत, संरचनात्मक- प्रकार्यात्मक उपागम आदि समाजशास्त्र की ही देन है| 

  • कैटलिन (Systematic Politics 1960) “ ‘राजनीति’ संगठित समाज का अध्ययन है, इसलिए समाजशास्त्र से राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता|”

  • कैटलिन राजनीति विज्ञान को ‘यदि समाजशास्त्र से अलग है’, तो बिना शरीर वाले मस्तिष्क के समान मानता है| 

  • जिन समाजशास्त्रियों ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति को प्रभावित किया है, वे निम्न है- दुर्खीम, रेडक्लिप ब्राउन, मैनहीम, पैरेटो, मोस्का, वेबर, टालकॉट पारसन्स, सी राइट मिल्स आदि| 


  1. मनोविज्ञानात्मक उपागम-

  • इस उपागम के समर्थक मनोवैज्ञानिक नियमों का प्रयोग राजनीतिशास्त्र में करते हैं|

  • जैसे- लासवेल द्वारा सिगमंड फ्रायड के मनोविज्ञान का राजनीतिक व्यवहार के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया गया|

  • मनोविज्ञान प्रारंभ से ही किसी न किसी रूप में राजनीति विज्ञान से संबंधित रहा है|

  • प्लेटो से लेकर मैकियावली और हॉब्स तक के विचारक यह अनुभव करते आए हैं, कि मनुष्य अपनी बुद्धि के साथ-साथ अपने संवेगों, प्रवृत्तियों, मनोवेगों आदि से भी प्रेरित होता है| 

  • बार्कर “हमारे पूर्वजों ने प्राणी विज्ञान की दृष्टि से सोचा, लेकिन अब हम मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सोचते हैं|”

  • राजनीतिक चिंतन एवं विश्लेषण के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य का प्रतिपादन ग्राहम वैलेस ने किया

  • समर्थक- ग्राहम वैलेस ‘Human nature in Politics 1908’, लासवेल ‘Who gets, what, when, how 1936’, वाल्टर लिपमैन


  • ग्राहम वैलेस-

  • ग्राहम वैलेस की पुस्तक ‘Human nature in Politics 1908’ राजनीति विज्ञान में मनोवैज्ञानिक पद्धति का श्री गणेश करती है| 

  • इस पुस्तक में पहली बार प्रजातंत्र के विषय में मनोवैज्ञानिक पद्धति के आधार पर चिंतन किया गया| 

  • लास्की “इस पुस्तक ने इंग्लैंड और अमेरिका में राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी|”

  • ग्राहम वैलेस ने मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य को लेकर एक पुस्तक The Great Society 1914 लिखी|

  • इस पुस्तक में औद्योगिक समाज की कतिपय समस्याओं का वर्णन है| जैसे- शक्ति का केंद्रीकरण, भीड़ मनोविज्ञान से आप्लावित व्यक्ति, समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य परस्पर बढ़ती हुई अंतर्निर्भरता, निर्वैयक्तिक सामाजिक जनजीवन आदि|


  • लासवेल-

  • पुस्तक- ‘Who gets, what, when, how 1936’, The Signature of Power : Building Communication and Policy 1979 (मरणोपरांत प्रकाशित)

  • हेराल्ड लासवैल को समाज विज्ञानों विशेषत, राजनीति विज्ञान में आधुनिक मनोविज्ञान की अवधारणाओं, उपागमों एवं पद्धतियों को लाने तथा अनुभाविक उपयोग करने का श्रेय प्राप्त है| 

  • लासवेल ने मनोवैज्ञानिक पद्धति के साथ-साथ राजनीति विज्ञान में अन्य आनुभविक पद्धतियों का भी प्रयोग किया है| इसी कारण हास एवं करील ने उसे राजनीति विज्ञान में उभरते हुए बहुपद्धतिवाद का प्रतीक माना है| 

  • लासवेल पद्धति वैज्ञानिक के साथ-साथ एक महान उदारवादी भी है| इसी कारण क्रिक ने लासवेल को सामाजिक शोध में निरंतरता एवं अंत:अनुशासनात्मक एकीकरण का जीवंत प्रतीक कहा है| 

  • लासवेल ने अपनी वैज्ञानिक राजनीतिक गवेषणा को वितरणात्मक विश्लेषण या Configurative approach कहा है|


  • मनोविज्ञान ने राजनीति के निम्न पक्षों का विशेष रूप से विश्लेषण किया है-

  1. समूह की राजनीतिक अभिवृत्तियां

  2. निर्वाचन

  3. राजनीतिक नेतृत्व 



आधुनिक दृष्टिकोण के उपागम या अध्ययन पद्धतियां-


  1. अंत: अनुशासनात्मक दृष्टिकोण-

  • वर्तमान राजनीति विज्ञान अंत:अनुशासनात्मक व गुणचयनवादी है| 

  • आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र जैसे विषयों का भी प्रयोग किया जाता है| 

  • S M लिप्सेट “समकालीन राजनीतिक सिद्धांत, एक राजनीतिक प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक मात्रा में एक राजनीतिक समाज विज्ञान व मनोविज्ञान और मानकीय राजनीतिक सिद्धांत है|”


  1. व्यवहारवादी उपागम-

  • इसके अनुसार व्यक्ति के व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया जाता है|

  • व्यवहारवादी उपागम-

  1. व्यवस्था उपागम- डेविड ईस्टन

  2. संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम- आमंड

  3. संचार या संप्रेषण उपागम- कार्ल डॉयच 

  4. निर्णय निर्माण उपागम- साइमन


  1. प्रत्यक्षवाद-

  • प्रत्यक्षवाद के अनुसार केवल वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त ज्ञान ही उपयुक्त, विश्वस्त, प्रमाणिक होता है| 

  • प्रत्यक्षवाद का प्रवर्तक फ्रांसीसी दार्शनिक ऑगस्ट काम्टे को माना जाता है|

  • ऑगस्ट काम्टे की कृति द पॉजिटिव फिलोसोफी 1830 है|


  • ऑगस्ट काम्टे (द पॉजिटिव फिलॉसफी) के अनुसार ज्ञान की तीन अवस्थाएं हैं-

  1. धर्म मीमांसीय अवस्था-

  • ज्ञान की आरंभिक अवस्था

  • इसमें सब घटनाओं की व्याख्या अलौकिक संदर्भ में की जाती है|


  1. तत्व मीमांसीय अवस्था-

  • ज्ञान की मध्यवर्ती अवस्था

  • इसमें सब घटनाओं की व्याख्या अमूर्त तत्वों (जिसको देख ना सके) और अनुमान के आधार पर की जाती है|

  • यह नकारात्मक अवस्था है, जो नई अवस्था की स्थापना पुरानी अवस्था को मिटाकर करती है|

  • यह प्रत्यक्षवादी दर्शन की भूमिका तैयार करती है|


  1. वैज्ञानिक प्रत्यक्षवादी अवस्था-

  • इसके अनुसार सभी घटनाएं निर्विकार प्राकृतिक नियमों से होती हैं| जिनका  निरीक्षण करके नियमों का पता लगाया जा सकता है|


  • Note- काम्टे के अनुसार विज्ञान और दर्शन एक ही श्रेणी का ज्ञान है| जिससे धर्म मीमांसा और तत्व मीमांसा से पृथक करके पहचान सकते हैं|

  • काम्टे के अनुसार विज्ञान का सरोकार न केवल तथ्यों से है, बल्कि मूल्यों का ज्ञान भी प्रदान करता है|



  1. नव प्रत्यक्षवाद या तार्किक प्रत्यक्षवाद-

  • मैक्स वेबर तथा वियना सर्किल (विश्वविद्यालय) के सदस्यों को इसका प्रवर्तक माना जाता है|

  • इसमें केवल तथ्यों पर बल दिया गया है तथा कहा गया है कि हमें उसी ज्ञान पर विश्वास करना चाहिए, जिसे प्राकृतिक विज्ञान की कठोर पद्धति से प्राप्त किया हो|

  • मैक्स वेबर ने अपने निबंध ‘साइंस एज वोकेशन’ 1917 में कहा कि “विज्ञान हमें इस प्रश्न का उत्तर नहीं देता कि हमें क्या करना चाहिए|”

  • टी डी वेल्डन ने अपनी पुस्तक वोकैबुलरी ऑफ पॉलिटिक्स 1953 में मैक्स वेबर की इस मान्यता को दोहराया कि कोई भी राजनीतिक दर्शन अपनी अपनी रुचि का विषय है, अतः इस पर तर्क-वितर्क का कोई फायदा नहीं है|


  • वियना सर्किल (विश्वविद्यालय) में यह संप्रदाय 1920 में मेरिटत्ज शिल्क के नेतृत्व में विकसित हुआ|

  • कैंब्रिज विश्वविद्यालय में यह लुडविख विट्जेस्टाइन तथा ऑक्सफोर्ड में यह ए जे एयर के नेतृत्व में आगे बढ़ा|



  1. तार्किक चयन सिद्धांत (Rational Choice Theory)-

  • समकालीन राजनीति के सैद्धांतिक दृष्टिकोण को औपचारिक राजनीतिक सिद्धांत, तर्कसंगत चयन सिद्धांत, सार्वजनिक चयन सिद्धांत, राजनीतिक अर्थव्यवस्था के रूप में जाना जाता है| 

  • यह सिद्धांत संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न हुआ और विशेष रूप से वर्जिनियां स्कूल के साथ जुड़ा हुआ है| 

  • सार्वजनिक चयन सिद्धांत हित समूह की राजनीति का एक सकारात्मक सिद्धांत है, जो राजनीतिक और नीतिगत समस्याओं के लिए बाजार विनिमय के सूक्ष्म आर्थिक दृष्टिकोण को लागू करता है, अर्थात किसी भी निर्णय का तर्क अधिकतम लाभ और न्यूनतम लागत की तलाश करना है।

  • दल प्रतियोगिता, हित समूह व्यवहार और नौकरशाहों के नीतिगत प्रभाव जैसे क्षेत्रों में एंथनी डाउन्स, ओल्सन और विलियम निस्केनन ने ऐसी तकनीक का उपयोग किया है| 

  • समर्थक- 

  1. केनेथ एरो- Social choice and individual values 1951 

  2. एंथोनी डाउन्स- An economic theory of democracy 1957

  3. जेम्स बुचानन व गॉर्डन तुल्लाक- The calculus of consent 1962 



  1. आनुभविक उपागम

  • यह तथ्यों व आंकड़ों को वस्तुपरक ढंग से प्रस्तुत करता है|

  • यह सिद्धांत व शोध के संगम पर बल देता है|

  • यह मूल्य रहित राजनीति का विवेचन करता है|

  • यह उपागम प्रयोगवादी व निरीक्षणवादी दोनों है|

  • यह उपागम अंत: शास्त्रीय स्वरूप पर बल देता है|

  • इसके अनुसार भविष्यवाणी संभव है|

  • समर्थक- आर्थर बेंटले, चार्ल्स मेरियम, कैटलिन, लासवेल, शिल्स, ईस्टन आदि|


  • Note- व्यवहारवाद एवं आधुनिक राजनीति विज्ञान को परंपरागत राजनीति विज्ञान से जोड़ने का कार्य अनुभववादियों द्वारा किया गया है| 



लघु उपागम-

  • तीन लघु उपागम है-

  1. समूह उपागम (Group Approach)

  2. संचार उपागम (Communication Approach)

  3. विनिश्चयन निर्माण सिद्धांत या निर्णय निर्माण सिद्धांत (Decision-Making Theories)


  1. समूह उपागम (Group Approach)-

  • समूह उपागम को पुरातन एवं आधुनिक उपागमों के बीच की कड़ी माना गया है|

  • प्रतिपादक- आर्थर बेंटले (The Process of Government 1908)

  • विश्लेषण की मूलभूत इकाई- मानव समूह

  • समूह उपागम का विकास राजनीति विज्ञान की अपद्धतिवैज्ञानिक, अनुभवेतर तथा अव्यवहारिक स्थिति (परंपरागत राजनीति) के विरुद्ध प्रतिक्रिया के परिणामस्वरुप हुआ| 

  • समूह सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति या राज्य के बजाय राजनीतिक गतिविधि की प्राथमिक इकाई समूह है| 

  • समूह चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक उसका व्यक्ति के व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है| अत: मानव समूह का अध्ययन राजनीति विज्ञान में किया जाना चाहिए| 

  • समूह सिद्धांत औपचारिक सदस्यों से निर्मित समूहों में राजनीतिक जीवन का एकल कारकीय विश्लेषण है 

  • गोलम्बसकी, वेल्श एवं क्रोटी “समूह की अध्ययन इकाई हमें सीधे ‘अनुशासन के हृदय’ तक ले जाती है| 

  • समूह विश्लेषण ही राजनीति विज्ञान में राजनीतिक दलों, हित समूहों, व्यवस्थापिकाओ, नौकरशाहियों, संघो आदि के लिए अध्ययन- आयाम प्रस्तुत करता है| 


ऐतिहासिक विकास-

  • समूह सिद्धांत का ऐतिहासिक सूत्र बहुलवादियों एवं श्रेणी समाजवादियों (फिगिस, मैटलैण्ड, कोल) आदि के चिंतन में पाया जाता है| 

  • बहुलवादी समाज में समूहों और संस्थाओं की बहुलता तथा अनेकता को स्वीकार करते हैं| 

  • 20वीं शताब्दी के समूह अध्ययनों को रोलैंड यंग ने विश्लेषणात्मक बहुलवाद कहा है| 

  • वैज्ञानिक रीति से समूहों के अध्ययन का प्रारंभ बेंटले से माना जाता है| 


  • आर्थर बेंटले-

  • आर्थर बेंटले ने समूहों में व्यक्तियों की गतिविधि को अपनी विश्लेषण इकाई बनाया| उनके अनुसार परंपरागत राजनीति विज्ञान अनुभाविक नहीं होने के कारण मृत हो चुका था| 

  • बेंटले ने सरकार का आनुभाविक अध्ययन करने के लिए अध्ययन की इकाई संविधान, कानून या संस्थाओ को न मानकर मनुष्य की क्रियाओं एवं गतिविधियों को माना है| 

  • बेंटले ने शासन को व्यापक अर्थों में ‘हितों का संतुलन’ व संकुचित अर्थ में ‘सरकार की औपचारिक संस्थाएं एवं अभिकरण’ माना है| 

  • बेंटले ने दलों को मध्यवर्ती सरकार कहा है|

  • बेंटले की मूल अध्ययन सामग्री द्वन्द्वरत समूह है| उनमें प्रत्येक समूह अपने हित की पूर्ति में संलग्न रहता है| सरकार संतुलन की ओर ले जाने वाली समूहों की गतिविधि है| सरकार के अभिकरण निर्दिष्ट समय पर समूह-संघर्ष का प्रतिनिधित्व या उसको प्रतिबिम्बित करते हैं| 


  • द्वितीय महायुद्ध के पश्चात अनेक राजविज्ञानियों ने बेंटले के विचारों को ग्रहण किया| जैसे- डेविड ट्रूमैन, अर्ल लैथम, रिचर्ड W टेलर 

  • ग्रौस, पेलटेसन, मॉनीपैनी, H एक्स्टीन आदि ने इस क्रम को आगे बढ़ाया| 

  • मैकेंजी ने लघु समूहों के अध्ययन प्रयासों को सामाजिक प्राणीशास्त्र शीर्षक के अंतर्गत रखते हुए उन्हें व्यापकता प्रदान की| 

  • आधुनिक समूह विश्लेषकों में पीटर लवडे, सिडनी वर्बा, जोसेफ ला पॉलोम्बारा, वेल्स, शील्स, गोलम्बसकी आदि महत्वपूर्ण है| 

  • इनमें सिडनी वर्बा व गोलम्बसकी के विश्लेषण अधिक पद्धति वैज्ञानिक एवं अनुभाविक माने जाते हैं| 


  1. संचार उपागम (Communication Approach)-

  • अमेरिकी गणितज्ञ नारबर्ट विनर को संचार सिद्धांत का प्रवर्तक माना जाता है| उन्होंने इस सिद्धांत को संचार नियंत्रण विज्ञान कहा| 

  • W रॉस एश्बी ने इस सिद्धांत को अधिक विस्तार दिया| 

  • राजनीति विज्ञान में इस सिद्धांत का प्रतिपादक हावर्ड प्रोफेसर कार्ल डायच है| डायच की कृति The Nerves of Government 1963 है|

  • कॉल डायच का शोध लेख Communication models and decision system जो कि जेम्स चार्ल्सवर्थ द्वारा प्रकाशित पुस्तक Contemporary political analysis में प्रकाशित हुआ था| 

  • कॉल डायच व मैक्लीलैंड अंतरराष्ट्रीय राजनीति में संचार सिद्धांत के मुख्य समर्थक रहे हैं| 

  • लूसियन पाई, W श्राम (W Schramm), J बर्टन आदि ने भी इस उपागम का प्रयोग किया है| 


  • संचार शब्द का इंग्लिश पर्यायवाची शब्द Communication यूनानी शब्द Kubernetes से निकला है, जिसका अर्थ है- मार्ग परिवर्तक, चालक या शासक|

  • नारबर्ट विनर संचार शब्द में उन सभी प्रक्रियाओं को शामिल करता है, जिनके द्वारा एक मस्तिष्क दूसरे को प्रभावित करता है| 

  • राजनीतिक संचार उस समय होता है, जब राजव्यवस्था के एक भाग से मांगे, निर्णय आदि दूसरे भाग तक जाते है| संचार ही राजव्यवस्था में गतिशील बनता है| 


  • लासवैल ने संचार क्रिया को पांच सरल वाक्यांशों में बताया है- कौन, किसको, किस प्रभाव के साथ, किस मार्ग के द्वारा, क्या कहता है| 

  • संचार उपागम इस मान्यता पर आधारित है कि राजनीतिक गतिविधियां भारी मात्रा में मानवीय संचार अर्थात विचारों की अभिव्यक्ति, उसके आदान-प्रदान एवं संप्रेषण से अंतरग्रस्त हैं| इसलिए संचार का अध्ययन राजनीतिक जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों का वर्णन, वर्गीकरण, विश्लेषण एवं व्याख्या करने में लाभदायक है| 

  • संचार सिद्धांत, प्रशासन को विभिन्न सूचना प्रवाहों के आधार पर स्थित निर्णय निर्माण की एक व्यवस्था मानता है|

  • राजनीति विज्ञान में संचार उपागम विशेष रूप से सौदेबाजी, द्वंद समाधान, विनिश्चय निर्माण, नीति मूल्यांकन, प्रचार, परिचालनीय सूचनाओं के संचरण, विस्तृत तथा विशिष्ट समर्थन के उत्पादन, समाज व्यवस्था की दूसरी उप-व्यवस्थाओं के साथ लेन-देन, अंतरराष्ट्रीय संबंध तथा राजनीतिक विकास एवं परिवर्तन आदि के अध्ययन में प्रयुक्त होता है| 

  • कार्ल डायच के अनुसार शासन या सरकार एक प्रकार का मार्ग-निर्देशन है, न कि शक्ति का प्रयोग| 

  • कार्ल डायच ने तीन बिन्दुओ पर विशेष बल दिया है-

  1. दल, हित समूह आदि लघु संचार व्यवस्थाएं है| ये कुछ सीमा तक अपना मार्ग-निर्देशन स्वयं करती है| 

  2. वृद्धि (Growth) को भी इसी शब्दावली में समझा जा सकता है| 

  3. एक समाज या राजव्यवस्था को एक आत्म-मार्ग निर्देशक संगठक के रूप में देखा जा सकता है| 


कॉल डायच के संचार प्रतिमान के चर-

  • इनका संचार मॉडल, निर्णय निर्माण तथा उसे लागू करने की अवस्था है|

  • इनके सिद्धांत के मुख्य तत्व-

  1. कार्य करने वाली संरचनाएं या परिचालनात्मक संरचनाएं (Operational Structure)- इनके द्वारा सूचना व्यवस्था में प्रवाहित होती है तथा निर्णय निर्माण होता है| ये निम्न है-

  1. अभिग्राहक या प्राप्तकर्ता- जो वातावरण से सूचना प्राप्त करते हैं|

  2. आंकड़ा प्रक्रिया इकाइयां- जो सूचना का प्रक्रियाकरण (Processing) करती है|

  3. स्मरण शक्ति- मूल्य संरचनाएं- जो सूचना को मूल्यों के साथ संबंधित करती हैं|

  4. निर्णय निर्माण संरचनाएं- जो नीतियां या निर्णयों को बनाते हैं|

  5. प्रभावक (Effectors)- जो वातावरण में निर्णयों को लागू करते हैं| 


  1. सूचना प्रवाह (Communication Process)- सूचना किसी भी संचार जाल में घूमती है|

  2. निर्णय निर्माण- सूचना के आधार पर निर्णयों का निर्माण करना|

  3. पुनर्निवेश- यह तीन प्रकार का होता है-

  1. निषेधात्मक (Negative) पुनर्निवेश

  2. विधेयात्मक (Positive) पुनर्निवेश

  3. प्रवर्धनशील (Amplifying) पुनर्निवेश


  • कार्ल डायच ने पुनर्निवेश क्षमता को मापने वाले चार तत्व बताएं है-

  1. भार (Load)- सूचना की मात्रा

  2. विलंब (Lag)- सूचना प्राप्ति का समय

  3. लाभ (Gain)- त्रुटियों को सुधारने के लिए वास्तव में किए गए कार्य

  4. अग्रता (lead)- प्रस्तावित कार्यवाही के भावी परिणामों का पहले से अनुमान लगाना


कॉल डायच के संचार उपागम के लक्ष्य-

  1. कॉल डायच संचार नियंत्रण विज्ञान की वैज्ञानिक धारणाओं का प्रयोग करके प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों में एकता स्थापित करना चाहता है| 

  2. दूसरा लक्ष्य यह बताना है कि वर्तमान राजव्यवस्थाओं का केंद्रीय तत्व शक्ति या बल नहीं है, बल्कि संचार है| 


कमिया-

  • यह उपागम राजनीति के प्रत्येक पक्ष का विश्लेषण नहीं करता है| जैसे मतवाद, क्रांतियों, हिंसात्मक परिवर्तन, राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति अथवा राजनीतिक संसाधनों के वितरण का अध्ययन नहीं करता है| 


  1. विनिश्चयन सिद्धांत या निर्णय निर्माण सिद्धांत (Decision - Making Theories)-

  • विनिश्चय-प्रक्रिया में सावधानीपूर्वक अनेक व्यवहार-विकल्पों में से एक व्यवहार-विकल्प को चुना जाता है| यह उपागम उन परिवर्त्यों का अध्ययन, वर्गीकरण और विश्लेषण करता है, जिनके आधार पर विनिश्चय किये जाते हैं| 

  • यह चयन एक व्यक्ति, समुदाय, संगठन या व्यवस्था के द्वारा किया जाता है| उसकी संरचनात्मक प्रक्रियाओं का स्वरूप औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है| 


  • विनिश्चय प्रक्रिया के सामान्य रूप से तीन चरण होते हैं- 

  1. विनिश्चय के कारण अथवा अवसरों की उपलब्धि 

  2. संभावित कार्यवाही या कार्य के लिए संभावित विकल्प

  3. उन विकल्पों में से किसी एक का चयन 


  • A रॉबिंसन तथा रोगर माजेक ने विनिश्चय प्रक्रिया को तीन उपक्रियाओं में विभाजित किया है- 

  1. बुद्धिगत

  2. सामाजिक

  3. अर्द्धयांत्रिक


  • A रॉबिंसन तथा रोगर माजेक विनिश्चय को इन समस्त उपक्रियाओं का अंतिम परिणाम कहते हैं| 


  • विनिश्चय के प्रकार- विनिश्चय के कई प्रकार हो सकते हैं-

  1. व्यक्तिगत या संगठनात्मक

  2. नैतिक या नवाचारी

  3. विधेयात्मक या निषेधात्मक

  4. स्तर आधारित- उच्च, मध्य, निम्न

  5. मौलिक या गौण 

  6. क्षेत्र के संबंध में स्थानीय, प्रांतीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय

  7. विषयगत

  8. तथ्यात्मक या मूल्यात्मक

  9. कार्यक्रमित या अकार्यक्रमित

  10. लघु अवधि या दीर्घावधि

  11. व्यक्तिपरक या वस्तुपरक अथवा मिश्रित


हर्बर्ट साइमन: विनिश्चय निर्माण सिद्धांत-

  • गोरे एवं डायसन के अनुसार विनिश्चय निर्माण के विषय में दो सिद्धांत प्रचलित हैं-

  1. परंपरागत- इसके अनुसार विनिश्चय निर्माण एक बौद्धिक चयन प्रक्रिया है| 

  2. अनुभवात्मक- यह एक व्यापक दृष्टिकोण है, जो विनिश्चय में बौद्धिक एवं अबौद्धिक दोनों प्रकार के तत्वों को स्थान देता है| 


  • हर्बर्ट साइमन विनिश्चय-निर्माण के अनुभववादी सिद्धांत के सर्वप्रथम प्रतिपादक है| 

  • हर्बर्ट साइमन की पुस्तक- Administrative Behaviour 1937, इस पुस्तक का उपशीर्षक ‘प्रशासनिक संगठनों में विनिश्चय निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन’ है| 

  • हर्बर्ट साइमन विनिश्चय-निर्माण सिद्धांत को राजनीतिक प्रक्रियाओं का हृदय या सारभाग कहता है| 

  • हर्बर्ट साइमन अनुभववादी है| वह विनिश्चय प्रक्रिया के स्पष्टीकरण हेतु मानवीय बौद्धिकता का एक प्रारूप तैयार करता है, जिसे वह व्यवहार विकल्प प्रारूप कहता है| 


  • हर्बर्ट साइमन के अनुसार राजनीतिक व्यवहार के एक यथेष्ट सिद्धांत को विनिश्चय निर्माण प्रक्रिया के तीन पहलुओं को दृष्टिगत रखना चाहिए-

  1. उसे विशिष्ट राजनीतिक समस्याओं के उतार- चढ़ावों पर ध्यान दिलाने के लिए नियमों की व्याख्या करनी चाहिए| 

  2. उसे राजनीतिक क्रिया के प्रभावशाली विकल्पों के निर्माण और अविष्कार को नियमन करने वाले कार्यनियमों का उल्लेख करना चाहिए| 

  3. उसे उन शर्तों को निर्धारित कर देना चाहिए, जो किसी विकल्प के चयन को निश्चित करें|  


  • हर्बर्ट साइमन के अनुसार विनिश्रय निर्माण सिद्धांत से पूर्वकथन किया जा सकता है| हर्बर्ट साइमन के शब्दों में “यदि आरंभिक परिस्थितियों का लगभग संपूर्ण विवरण और विभिन्न विकल्प बता दिए जाएं तो हम संघर्षरत पक्षों की क्रियाओं तथा नीति उद्घोषणाओं का पूर्व कथन कर सकते हैं|” 

  • हर्बर्ट साइमन का विनिश्चय सिद्धांत बौद्धिकता की अवधारणा पर आधारित है| बौद्धिकता, विश्लेषण में व्यक्ति को केंद्र में रखती है, जिसमें नीति निर्माण व्यक्ति द्वारा निर्धारित होता है|


विनिश्चय निर्माण सिद्धांत का प्रभाव-

  • विनिश्चय निर्माण सिद्धांत का सर्वाधिक प्रभाव लोक प्रशासन के संगठनों के अध्ययन पर तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में हुआ है|


  • स्नाइडर के अनुसार निर्णय निर्माण सिद्धांत का प्रभाव पांच विभिन्न पूरक दिशाओं में हुआ है-

  1. पर्यावरणात्मक कारकों का अन्वेषण- हेराल्ड व स्प्राउट का शक्यता विश्लेषण (Capability analysis)

  2. व्यक्तित्व-कारकों का अन्वेषण- लासवैल, अलेक्जेंडर, व जुलिट जार्ज, लूसियन पाई के अध्ययन

  3. नीति निर्धारण प्रक्रिया का अन्वेषण- सरकारी और गैर सरकारी कर्ताओं के अध्ययन, मुख्य प्रतिनिधि- बनार्ड कोहन

  4. नीति- प्रक्रिया- कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में अंत:क्रिया के अन्वेषण, रोजर हिल्समैन ने संयुक्त राज्य की विदेश नीति के संदर्भ में यह सर्वेक्षण प्रस्तुत किया है| 

  5. संगठन के संदर्भ में किए गए अन्वेषण- सरकारी संगठनों द्वारा प्रयुक्त विनिश्चय निर्माण प्रक्रिया का अन्वेषण, मुख्य प्रतिनिधि- हर्बर्ट साइमन


  • द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रिचर्ड स्नाइडर, एच. डब्ल्यू ब्रुक्स और बर्टन सापिन ने विदेश नीति के अध्ययन में निर्णयपरक विश्लेषण अपनाया|

  • इसकी रूपरेखा को उन्होंने प्रिंसटन विश्वविद्यालय की अध्ययन योजना के अंतर्गत 1954 में तैयार किया था| उनके विश्लेषण रूपरेखा का शीर्षक है ‘अंतरराष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन के लिए विनिश्चय उपागम| 

  • अंतरराष्ट्रीय राजनीति को वे शासनात्मक स्तर पर अंत:क्रिया की प्रक्रिया मानते हैं| 

  • उन्होंने राज्य को अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कर्ता माना है| 

  • उनके अनुसार अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण करने के दो तरीके हैं-

  1. अंत:क्रिया के वर्णन एवं मापन के द्वारा

  2. विनिश्चयन अर्थात नीति के निर्माण एवं क्रियान्वयन के अध्ययन के द्वारा


  • A रॉबिंसन तथा रोगर माजेक “निर्णय निर्माण सामाजिक विज्ञानों के अध्ययन के विषय के रूप में आजकल अधिक से अधिक स्थान प्राप्त करता जा रहा है|”


समर्थक विद्वान-

  • रिचर्ड स्नाइडर, एच. डब्ल्यू ब्रुक्स, बर्टन सापिन, जेम्स बेट्स, वार्ड एडवर्ड, जेम्स मार्च, थ्राल, कुम्ब्स, डेरिस फ़्रैंकल


  • स्नाइडर, ब्रुक्स और सापिन का विचार है कि निर्णय विश्लेषण राज्यों के व्यवहार के अध्ययन की लाभदायक विधि है|

  • इस सिद्धांत में अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों के बजाय उन अंतर्राष्ट्रीय कर्ताओं के अधिमान्य व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया जाता है, जो अंतरराष्ट्रीय घटना चक्र को निर्धारित एवं प्रभावित करते हैं| 

  • हर्बर्ट साइमन ने लोक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रियाओं को निर्णयात्मक प्रक्रिया कहकर एक मॉडल बनाने का प्रयास किया है|

  • राजनीति विज्ञान में इसका प्रयोग मतदान व्यवहार, विधेयकों में मतगणना और जनमत के अध्ययन में होने लगा है| 

  • निर्णय परक दृष्टिकोण राज्य के साथ साथ उन कार्यकर्ताओं पर भी ध्यान केंद्रित करता है, जो निर्णयकर्ता कहलाते हैं|

  • यह उपागम अंतरराष्ट्रीय संबंधों को व्यक्तिगत निर्णय पर आधारित मानकर चलता है| अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व का, उसकी रुचियों, अभिरुचियों, विचारधारा, संस्कृति, धर्म, निर्णय लेने की प्रक्रिया, शक्ति का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है|


अध्यन का केंद्रीय विषय-

  • निर्णय निर्माण दृष्टिकोण, साधारण रूप में राज्यों की कार्यात्मकता और राज्य के वास्तविक निर्णय-निर्माताओं का विशेष तौर पर अध्ययन करता है|

  • यह अध्ययन 3 तरीकों से किया जाता है-

  1. निर्णय-निर्माताओं की पहचान

  2. निर्णय-निर्माण प्रक्रिया का विश्लेषण

  3. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और प्रक्रियाओं को समझने के लिए उचित और निश्चित तरीकों की खोज|


  • G T अलीसन (Essence of Decisions 1971) ने निर्णय निर्माण दृष्टिकोण के तीन मॉडल बताएं हैं-

  1. तार्किक कर्ता मॉडल- जो कि नीतियों को उनकी विश्वसनीयता के आधार पर जांच करता है|

  2. संगठनात्मक प्रक्रिया मॉडल- यह प्रशासनिक और संगठनात्मक व्यवहारों से संबंधित है, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी निर्णयों को समझना और विश्लेषण करना है|

  3. नौकरशाही राजनीतिक मॉडल- यह नीति-निर्माण यंत्रों में आंतरिक नौकरशाही की स्वीकृति प्राप्त करने की कठिनाइयों तथा महत्व के अध्ययन पर बल देता है|


स्नाइडर का निर्णय निर्माण सिद्धांत-

  • स्नाइडर के अनुसार निर्णय निर्माण दृष्टिकोण के दो आधारभूत उद्देश्य है-

  1. राजनीतिक क्षेत्र में उन महत्वपूर्ण संरचनाओं की पहचान तथा पृथक करने में सहायता करना, जहां कार्यों का आरंभ होता है तथा वे लागू होते हैं तथा जहां निर्णयों का निर्माण अवश्य किया जाता है| 

  2. निर्णय निर्माण व्यवहार (जिससे कार्यों का आरंभ होता है तथा जो कार्यों को बनाए रखता है) का सुव्यवस्थित ढंग से विश्लेषण करने में सहायता करता है|


  • स्नाइडर के निर्णय निर्माण दृष्टिकोण में निम्नलिखित तत्वों का अध्ययन किया जाता है-

  1. निर्णय कार्यकर्ता अथवा निर्णय निर्माता का अध्ययन|

  2. निर्णय निर्माण करने वाली एक परिस्थिति में कार्यकर्ता के रूप में वातावरण का अध्ययन|

  3. निर्णय की परिस्थिति का अध्ययन|

  4. निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन|


  • स्नाइडर ने अपनी पुस्तक Decision making as an approach to the study of international politics 1957 में निर्णय निर्माण करने वाले पदाधिकारियों के व्यवहार का विश्लेषण आवश्यक समझा है| इनके अनुसार-

  1. जो भी राजनीतिक कार्यवाही होती है, वह कुछ विशेष व्यक्तियों के द्वारा की जाती है|

  2. यदि कार्यवाही को समझना है तो हमें उन व्यक्तियों के दृष्टिकोण को समझना होगा, जिन पर निर्णय लेने का उत्तरदायित्व होता है|


  • स्नाइडर के अनुसार किसी भी राजनीतिक कार्य को ठीक से समझने के लिए निम्न आवश्यक है-

  1. निर्णयों को लिया किसने है, इसको जानना|

  2. उन बौद्धिक और अंतः क्रियात्मक प्रक्रियाओं का मूल्यांकन करना, जिनका अनुसरण करके निर्णय निर्माता अपने निर्णय पर पहुंचे हैं| 


  • स्नाइडर ने निर्णय निर्माताओं को प्रभावित करने वाले कारकों को तीन समूहों में बांटा है-

  1. आंतरिक परिपार्श्व- इसका अर्थ उस समाज से है, जिसमें अधिकारी अपने निर्णय लेते हैं|

  2. बाह्य परिपार्श्व- इसका अर्थ अन्य राज्यों से है अर्थात अन्य राज्यों के निर्णय निर्माताओं की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं से|

  3. निर्णय निर्माण प्रक्रिया- इनके अनुसार निर्णय निर्माण प्रक्रिया के 3 वर्ग हैं- 1 सक्षमता का क्षेत्र  2 संचारण व सूचना  3 अभिप्राय 


  • A रॉबिंसन तथा रोगर माजेक ने विनिश्चय निर्माण के पुंज में 5 चर बताए हैं

  1. विनिश्चय स्थिति

  2. विनिश्चय सहभागी

  3. विनिश्चय संगठन

  4. विनिश्चय प्रक्रिया

  5. विनिश्चय परिणाम


जॉन बर्टन-

  • जॉन बर्टन ने अपनी पुस्तक International Relations में शक्ति के संदर्भ में निर्णय परक सिद्धांत का विश्लेषण किया है|

  • इनके अनुसार राज्यों के आपसी संबंधों के निर्धारण में शक्ति का तत्व महत्वपूर्ण है|

  • इनके अनुसार निर्णय निर्माण प्रक्रिया में शक्ति की उपेक्षा हुई है|

  • इन्होंने शक्ति आगत तथा शक्ति निर्गत प्रतिमान की रचना की है| उनके अनुसार एक राज्य का आगत दूसरे का निर्गत होगा और दूसरे राज्य की प्रक्रिया को समझे बिना निर्णय को लेना तर्कसंगत नहीं होगा|


निर्णय निर्माण सिद्धांत की मूल प्रतिस्थापना-

  • निर्णय निर्माण दृष्टिकोण निर्णय कर्ताओ तथा उन राज्यों पर जो निर्णय करने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं, पर ध्यान केंद्रित करता है

  • इस दृष्टिकोण के अनुसार निर्णयकर्ताओं के व्यवहार का वर्णन और व्याख्या निर्णयकर्ताओं के कार्यों के विश्लेषण के रूप में करनी चाहिए| 


निर्णय निर्माण सिद्धांत: की विभिन्न धाराएं-

  • प्रथम धारा या मार्ग-

  • यह परिस्थिति या पर्यावरण पर अधिक बल देता है|

  • इसके मुख्य अनुयायी हेराल्ड और मार्गरेट स्प्राउट है|

  • हेराल्ड और मार्गरेट स्प्राउट की दिलचस्पी इसमें कम है कि कोई निर्णय कैसे और क्यों किया जाता है, बल्कि इस बात में अधिक है कि जो पर्यावरण निर्णयकर्ता देखते हैं, उस पर्यावरण से क्या संबंध है|

  • ये विदेश नीति के संबंध में यह देखते हैं कि जो निर्णय, निर्णयकर्ताओं ने किया उससे बेहतर निर्णय लिया जाना संभव था या नहीं|


  • दूसरी धारा-

  • यह व्यक्तित्व कारक मार्ग है, जो अलेक्जेंडर जॉर्ज और जूलियट जॉर्ज ने अपनाया|

  • इसके समर्थक निर्णयकर्ताओं और निर्णयकारी व्यवहार का अध्ययन उनके व्यक्तित्व के अध्ययन द्वारा करते हैं|

  • अलेक्जेंडर जॉर्ज और जूलियट जॉर्ज ने 1965 Woodrow Wilson and Colonel house पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें वुड्रो विल्सन के पूरे जीवन कार्य व व्यक्तित्व का विवरण देकर यह बताया कि विल्सन के व्यक्तित्व का उनके राजनीतिक कार्यों और निर्णय पर क्या प्रभाव पड़ा|

  • अलेक्जेंडर जॉर्ज और जूलियट जॉर्ज ने अपनी इस तकनीक को परिवर्धन मुलक जीवनी नाम दिया|

  • इस तकनीक का आधार- विदेश नीति संबंधी निर्णयकर्ताओं के ठीक अध्ययन के लिए निर्णयकर्ताओं के व्यक्तित्व का विश्लेषण आवश्यक है|


  • तीसरा मार्ग-

  • इसके समर्थक उन कार्यकर्ताओं का अध्ययन करते हैं, जो विदेश नीति के निर्माण में सचमुच हिस्सा लेते हैं|

  • बनार्ड कोहन इससे संबंधित है|

  • बनार्ड कोहन के मत में विदेश नीति के निरूपण में हिस्सा लेने वाले सरकारी और गैर-सरकारी कार्यकर्ताओं की परस्पर क्रिया के अनुसार ही विदेश नीति का व्यवस्थित विश्लेषण होना चाहिए|

  • बनार्ड कोहन की रचना- The Political Process and Foreign Policy 1957


  • कोहेन निर्णय-निर्माण या विदेश नीति निर्माण के 5 आधारभूत तत्व बताता है-

  1. जनमत का दृष्टिकोण

  2. राजनीतिक हित समूह

  3. जनसंपर्क के साधन व मीडिया

  4. कार्यपालिका के मुख्य कर्मचारी

  5. विधानमंडल की मुख्य समितियां


  • हेराल्ड लासवेल ने निर्णयकरण प्रक्रम में 7 क्रमिक अवस्थाएं बताई है-

  1. सूचना की अवस्था- समस्या व समाधान के बारे में नीति निर्माता को जानकारी देना|

  2. सिफारिश की अवस्था- इसमें अनेक संभव समाधान पेश किए जाते हैं|

  3. निर्धारण की अवस्था- इसमें विकल्प का चयन किया जाता है|

  4. नवाचार की अवस्था- छांटा गया विकल्प सबसे नया है, कहकर पेश किया जाता है| 

  5. अनुप्रयोग की अवस्था- कार्यवाही लागू की जाती है|

  6. मूल्यांकन की अवस्था- निर्णय की सफलता का मूल्यांकन किया जाता है|

  7. अवसान की अवस्था- निर्णय की समाप्ति हो जाती है|


  • इस तरह निर्णयकारी दृष्टिकोण का बुनियादी विचार यह है, कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति को विदेश नीतियों की परस्पर क्रिया समझना चाहिए|


विनिश्चयन सिद्धांत का महत्व-

  • यह अनुभवपरक, वैज्ञानिक तथा सूक्ष्मदर्शी उपागम है| 

  • ड्यूघर्टी व फाल्टजग्राफ “व्यवस्था जैसी व्यापक इकाईयों से ध्यान हटाकर इसने समाज विज्ञानियों को विनिश्चयन जैसी व्यष्टि (micro) या लघु इकाई दी है|”


विनिश्चयन सिद्धांत की कमियां-

  • यह एक सिद्धांत न होकर एक विचारबंध मात्र है| 

  • अभी यह उपागम अल्प विकसित अवस्था में है| 

  • येजकल ड्रोअर (Policy-making Re-examined 1969) ने विनिश्चय और नीति निर्माण में अपूर्णता, गुणात्मक गिरावट, सम्भाव्य नीति और वास्तविक नीति में अंतर आदि की कटु आलोचना की है| 

  • A रॉबिंसन तथा रोगर माजेक के अनुसार वर्तमान विनिश्चय निर्माण सिद्धांत अधूरा है और उसे पूर्ण बनाने की आवश्यकता है| 



आधुनिक दृष्टिकोण की अन्य अध्ययन पद्धतियां या विशेषताएं-

  1. मुक्त अध्ययन

  2. वैज्ञानिकता 

  3. मूल्य मुक्त अध्ययन

  4. यथार्थवादी अध्ययन

  5. व्यवहारवादी अध्ययन

  6. एक मौलिक समाज विज्ञान के रूप में उदय

  7. नवीन राजनीतिक शब्दावली का प्रयोग 

  8. आर्थिक उपागम- एंथनी डाउन्स (An Economic Theory of democracy 1957)



आधुनिक दृष्टिकोण में परंपरागत दृष्टिकोण के शब्दों की जगह नवीन राजनीतिक शब्दावली-


परंपरागत दृष्टिकोण

आधुनिक दृष्टिकोण

  1. राज्य की जगह (State)

राजनीतिक प्रणाली या व्यवस्था (Political System)

  1. शक्तियों की जगह (Powers)

  कार्य (Function)

  1. पद की जगह (Office)

  भूमिका (Roles)

  1. संस्थाओं की जगह (Institutions)

संरचनाएं (Structures)

  1. लोकमत की जगह (Public Opinion)

राजनीतिक संस्कृति (Political Culture)

  1. नागरिकता की शिक्षा की जगह (Citizenship Education)

राजनीतिक समाजीकरण (Political Socialization)



औपचारिक मॉडल निर्माण में राजनीति सिद्धांत का उपयोग-

  • यह दृष्टिकोण विशेष रूप से अमेरिका में लोकप्रिय है|

  • ये मॉडल दो उद्देश्य की पूर्ति करते हैं-

  1. ये व्याख्यात्मक होते हैं और राजनीतिक प्रक्रियाओं के आधारों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करते हैं| 

  2. ये मानकात्मक होते हैं, क्योंकि मॉडल यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि किसी नियम का पालन करने से क्या परिणाम निकल सकते हैं| 


  • प्रमुख मॉडल निम्न है-

  1. एंथनी डाउन्स का प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत

  2. केनेथ ऐरो का असंभाव्यता प्रमेय मॉडल

  3. जोसेफ शुंपीटर का अभिजन लोकतंत्रवादी सिद्धांत या मॉडल 


  1. एंथनी डाउन्स का प्रतिस्पर्धा का सिद्धांत-

  • पुस्तक- An Economic Theory of Democracy, 1957

  • यह मॉडल मतदाताओं को चुनाव परिणाम से अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयास करने वाले और दलों को जीत की संभावना बढ़ाने वाले दलों के रूप में देखता है| 

  • इसमें डाउन्स यह बताते हैं कि जीतने के लिए दल ऐसे वैचारिक रुख (Policy stand) अपनाते हैं, जिससे अधिकतम मतदाताओं को आकर्षित किया जा सके| 

  • डाउन्स ने लोकतंत्र को एक बाज़ार और राजनीति को प्रतिस्पर्धा के रूप में समझाया है-

  1. मतदाता अर्थात उपभोक्ता 

  2. राजनीतिक दल अर्थात उत्पाद बेचने वाले व्यापारी

  3. नीतियाँ अर्थात सामान

  • जैसे बाजार में व्यापारी अधिकतम ग्राहक पाने के लिए अपनी कीमत व उत्पाद तय करते हैं, वैसे ही राजनीतिक दल अधिकतम वोट पाने के लिए अपनी नीतियाँ व घोषणाएँ तय करते हैं| 

 

  1. केनेथ ऐरो का असंभाव्यता प्रमेय मॉडल-

  • पुस्तक- Social Choice and Individual Values 1951

  • इस मॉडल के अनुसार जहां दो से अधिक विकल्पों में लोकतांत्रिक चुनाव करना हो, वहां परिणाम संभवत उस प्रक्रिया से प्रभावित होगा, जिसका प्रयोग विकल्प चुनने के लिए किया गया हो| 

  • केनेथ ऐरो के अनुसार कोई भी मतदान प्रणाली सभी वांछित शर्तों को एक साथ पूरा नहीं कर सकती| 

  • मुख्य शर्त जैसे-

  1. सर्वसम्मति का नियम-

  • अगर सभी मतदाता किसी एक विकल्प को दूसरे से बेहतर मानते हैं, तो अंतिम परिणाम में भी वही बेहतर विकल्प होना चाहिए| 


  1. सार्वभौमिकता-

  • मतदाता किसी भी क्रम में अपनी पसंद व्यक्त कर सकें और यह मान्य हो| 


  1. असंबद्ध विकल्पों की स्वतंत्रता-

  • यदि दो विकल्पों के बीच निर्णय लेना हो, तो किसी तीसरे विकल्प के आने या हट जाने से दोनो विकल्पों के बीच परिणाम नहीं बदलना चाहिए| 


  1. अधिनायकवाद का अभाव

  • किसी एक व्यक्ति की पसंद ही हमेशा अंतिम निर्णय न बन जाए| 


  1. संगतता / पारगमनता (Transitivity / Consistency)

  • समाज की पसंद में संगतता/ पारगमनता होनी चाहिए|


  • इन सभी शर्तों को एक साथ पूरी करने वाली कोई भी मतदान प्रणाली संभव नहीं है अर्थात, लोकतंत्र में “संपूर्ण न्यायपूर्ण” (Perfectly Fair) मतदान प्रणाली असंभव है।

  • सभी मतदाताओं की पसंद अलग-अलग उम्मीदवार (वरीयता क्रम में) होते हैं, अत: यहाँ एक ‘चक्रीय विरोधाभास’ (Cycle Paradox) पैदा हो जाता है| यानी समाज की सामूहिक पसंद ‘संगत’ (consistent) नहीं रहती| 

  • केनेथ ऐरो के अनुसार लोकतंत्र में मतदाताओं की व्यक्तिगत पसंद को जोड़कर एक ‘संपूर्ण और तर्कसंगत सामूहिक निर्णय’ बनाना असंभव है| इसलिए हर चुनावी प्रणाली में कुछ न कुछ कमी रहेगी| 


  1. जोसेफ शुंपीटर का अभिजन लोकतंत्रवादी सिद्धांत या मॉडल-

  • यह सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि एक व्यक्ति अपने आर्थिक जीवन को राजनीतिक जीवन की तुलना में अधिक गंभीरता से लेता हैं|

  • लोकतंत्र जनता की इच्छा का शासन है, लेकिन शुम्पीटर ने इसे अवास्तविक और आदर्शवादी मानकर खारिज किया है|

  • शुम्पीटर के अनुसार लोकतंत्र जनता की इच्छा का शासन नहीं, बल्कि अभिजनों (elites) की प्रतिस्पर्धा है| 

  • यह अभिजन विभिन्न राजनीतिक दल व नेता होते हैं, जिनके बीच चुनावी प्रतिस्पर्धा होती है| 

  • शुम्पीटर के अनुसार लोकतंत्र का अर्थ ‘जनता द्वारा शासन’ नहीं है, बल्कि यह ‘जनता द्वारा नेताओं को चुनने की प्रक्रिया’ है| 



मुख्य सैद्धांतिक अवधारणाएं- 

 

आदर्शवाद-

  • प्लेटो जैसे आदर्शवादी मानते हैं कि कुछ स्थाई और अपरिवर्तनीय विचार मौजूद होते हैं, जिनके अनुरूप यथार्थ को होना चाहिए|


भौतिकवाद या यथार्थवाद- 

  • लॉक जैसे विचारक यह मानते है, कि अवधारणाएं हमारे भौतिक यथार्थ के पर्यवेक्षण से प्राप्त होती है और उन्हें भौतिकतावादी या यथार्थवादी कहा जाता है| 

  • सामान्यतः भौतिकवादी दृष्टिकोण अनुभवजन्य और आगमनात्मक प्रकृति का होता है| 


आगमनात्मक तर्क विधि- 

  • इसमें विशेष तथ्यों का निरीक्षण करके सामान्य कथन निकाले जाते हैं| 

  • यह वैज्ञानिक है| 


निगमनात्मक तर्क विधि-

  • इसमें सामान्य निष्कर्ष पहले तय कर लिया जाता है, फिर उसे विशेष तथ्यों से सिद्ध किया जाता है| 

  • यह दार्शनिक है| 


वर्णनात्मक सिद्धांत-

  • यह सिद्धांत यथार्थ का वर्णन करता है और एकत्र किए गए तथ्यों के आधार पर व्याख्याएं तैयार करता है| 


मूल्यात्मक सिद्धांत-

  • यह विचारों का विश्लेषण अन्य अवधारणाओं और मूल्यों के संदर्भ में करता है| 


कर्तव्यशास्त्र (Deontology)-

  • यह एक नैतिक सिद्धांत है, जो कुछ नैतिक कर्त्तव्यों को स्वयंसिद्ध एवं पूर्णत: बाध्यकारी मानता है, उनके परिणामों की परवाह किए बिना| 

  • उदाहरण- कांट का सिद्धांत, जॉन रॉल्स का सिद्धांत


प्रयोजनवाद या परिणामवाद (Teleology)-

  • कर्तव्य शास्त्र के उल्टा है|

  • किसी कार्य का सही या गलत होना, उसके परिणामो की अच्छाई या बुराई पर निर्भर करता है| 

  • प्रयोजनवाद यह मानता है, कि घटनाओं की व्याख्या और मूल्यांकन केवल उन लक्ष्यों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है, जिनकी ओर वे निर्देशित होती है| 

  • उदाहरण- पारंपरिक उपयोगितावाद 


मानकात्मक सिद्धांत-

  • यह उपदेशात्मक होता है, क्योंकि यह आचरण के मानक या रूप निर्धारित करता है और तथ्यों या घटनाओं का वर्णन नहीं करता है|

  • मानकात्मक कथनों में ‘क्या होना चाहिए’ अनिवार्य है|  


अनुभवजन्य सिद्धांत-

  • यह सामाजिक वैज्ञानिक यथार्थ और अनुभव का निरीक्षण करता है, फिर अनेक तथ्यों के आधार पर सामान्य सिद्धांत बनाता है| 

  • यह पूर्वनिर्धारित ज्ञान को स्वीकार नहीं करता है| 


युक्तिवाद (Rationalism)-

  • अनुभववाद के विपरीत यह मानता है कि संसार को तर्क की शक्ति के माध्यम से जाना जा सकता है और तर्क इंद्रियों द्वारा प्राप्त अनुभवों को सही कर सकता है| 

  • युक्तिवाद की उत्पत्ति प्लेटो से होती है| 

  • आधुनिक समर्थक सिद्धांतकार- रेन डेकार्टे, बेनडिक्ट स्पिनोजा, गॉटफ्रीड विल्हेम, लाइबनिज, हेगेल, मैक्स वेबर, J S मिल


  • मैक्स वेबर ने युक्तिवाद को कानूनी-युक्तिपूर्ण अधिकार को पारम्परिक और करिश्माई अधिकारों की तुलना में प्राथमिकता देने के रूप में समझा है| 

  • J S मिल द्वारा प्रयुक्त युक्तिवाद का अर्थ है पूर्वाग्रहो की जगह तर्कसंगत समाधान की खोज, रहस्यवाद  की जगह वैज्ञानिक व्याख्याएं


आलोचना-

  • युक्तिवाद की इमानुएल कांट ने आलोचना की थी, लेकिन हीगल की रचनाओं में यह पुनः प्रकट हुआ| 

  • माइकल ऑकशॉट ने युक्तिवाद को एक राजनीतिक दोष माना है| इनके अनुसार युक्तिवादी मानसिकता किसी भी ऐसी सत्ता को संदेह की दृष्टि से देखती है, जो तर्क पर आधारित न हो और युक्तिवाद परंपरा, रीति- रिवाज, आदत और सामूहिक अनुभव को अप्रासंगिक मानकर खारिज कर देती है| 


व्यक्तिवाद-

  • इसमें व्यक्ति को प्रमुख माना जाता है तथा व्यक्तिगत हितों पर बल दिया जाता है| 

  • समर्थक- उदारवादी विचारक


वस्तुनिष्ठता-

  • इसमें समुदाय की वस्तुनिष्ठ भलाई पर बल दिया जाता है| रूसो की सामान्य इच्छा समुदाय की वस्तुनिष्ठ भलाई पर बल देती है| 

  • यह विचार प्लेटो से लिया गया है| प्रारंभिक मार्क्सवादी और समुदायवादी इस दृष्टिकोण के समर्थक हैं| 


सापेक्षवाद (Relativism)-

  • सापेक्षवाद यह दर्शाता है कि मूल्यों और सिद्धांतो की कोई सार्वभौमिक या शाश्वत वैधता नहीं होती है और न ही कोई पूर्ण सत्य का मापदंड होता है| 

  • मूल्य किसी सामाजिक समूह, व्यक्ति या युग के सापेक्ष होते हैं| 

  • सापेक्षवाद को सामान्यतः ऐतिहासिकता से जोड़ा जाता है, जिसका प्रयोग दो अर्थ में होता है-

  1. 19 वीं सदी के अंत में इसका अर्थ था कि सभी ऐतिहासिक घटनाएं अद्वितीय होती है और प्रत्येक युग को उस समय के विचारों और सिद्धांतों के संदर्भ में समझा जाना चाहिए| 

  2. दूसरा अर्थ कार्ल पॉपर से जुड़ा है, जो यह मानता है क ऐतेहासिक विकास के कुछ व्यापक नियम होते हैं, जिनके आधार पर भविष्यवाणी की जा सकती है| 



समकालीन उपागम-


  1. ऐतिहासिक उपागम-

  • प्रतिपादक- सेबाइन (A History of Political Theory 1937)

  • डनिंग “ऐतिहासिक दृष्टिकोण किसी विशेष विचार या अवधारणा के क्रमिक रूपांतरण को जानने में सहायक है|”

  • सेबाइन “राजनीतिक सिद्धांत राजनीति की तरह कभी समाप्त नहीं होता और इसके इतिहास का कोई अंतिम अध्याय नहीं होता है|”

  • सेबाइन “ऐतेहासिक दृष्टिकोण प्राप्त विश्वासों और सिद्धांतो की पुन: व्याख्या और पुन:अनुकूलन को समझने में मदद करता है|”

  • जॉन डन “राजनीतिक सिद्धांत का इतिहास अभी भी राजनीति को समझने में एक प्रमुख साधन है|” 

  • आलोचक इस उपागम को राजनीतिक दर्शन की लोकवार्ता कहते हैं|

 

  1. समाजशास्त्रीय उपागम-

  • प्रतिपादक- कैटलिन

  • कैटलिन “शक्ति राजनीतिक संबंधों का एकमात्र आधार है|”


  1. स्ट्रासियन दृष्टिकोण-

  • प्रतिपादक- लियो स्ट्रास

  • अन्य समर्थक- माइकल ऑकशॉट, वोएगलिन, जूवेनेल 

  • इसको दार्शनिक दृष्टिकोण भी कहते हैं| 

  • लियो स्ट्रास प्रत्यक्षवाद व इतिहासवाद दोनों का विरोध करता है व राजनीतिक दर्शन का समर्थन करता है| 

  • स्ट्रास ने ग्रंथों की व्याख्या करने पर बल दिया है| वह कहते हैं कि लेखक सामान्यत: लिखते समय अपने मंतव्य को छुपाते हैं, क्योंकि वह अपने समय के रूढ़िवादिता का विरोध नहीं सहना चाहते हैं, इसलिए प्राचीन एवं मध्य युग के विचारको के ग्रंथों का अध्ययन लेखक के वास्तविक मंतव्य को पहचान के करना चाहिए| 

  • लियो स्ट्रास यह विश्वास करता है कि दर्शन मुख्य रूप से परंपरागत और सनातन समस्याओं पर नए तरीके से सोचने का अभ्यास है और इसका सबसे अच्छा स्वरूप सुकरात की संवाद शैली में नजर आता है| सुकरात की संवाद शैली से न्याय की समस्या का विवेचन हो सकता है|

  • लियो स्ट्रास- सेबाइन को ‘राजनीतिक दर्शन का कट्टर प्रतिपक्षी’ तथा कैटलिन को ‘कट्टर प्रत्यक्षवादी’ कहकर आलोचना की है|


  1. एक समन्वयात्मक दृष्टिकोण-

  • प्रतिपादक- कार्ल जे फ्रेडरिक

  • उपयुक्त तीनों का समन्वय करता है|


  1. पाठवादी (Textualist) दृष्टिकोण-

  • प्रतिपादक- हैकर, प्लमेन्टाज 

  • यह इस बात पर बल देता है, कि राजनीतिक सिद्धांत के ग्रंथो का अध्ययन उनके ऐतिहासिक संदर्भ के बिना भी किया जा सकता है| 

  • यह दृष्टिकोण 1945 से प्रमुख रहा है| 


आलोचना-

  • संदर्भवादी मानते हैं कि पाठवादी दृष्टिकोण स्वभाविक रूप से कमजोर है, क्योंकि यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उद्देश्य, प्रेरणा और किसी ग्रंथ को लिखने के इरादे की उपेक्षा करते हैं| 

  • एशक्राफ्ट, डन, टुली “संदर्भवादी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है, कि स्वयं राजनीतिक सिद्धांत का भी एक इतिहास होता है| 


  1. उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण-

  • समर्थक- नीत्से, मिशेल फूको, डेरिंडा, लियोटार्ड

  • समसामयिक काल में बहुत से नए प्रकार के दृष्टिकोणों का उदय हुआ है, जिनको सम्मिलित रूप से उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण कहा जा सकता है| 

  • इस दृष्टिकोण में भाषा की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है| और भाषा के आधार पर राजनीतिक चिंतन का अध्ययन करने पर बल देता है| 

  • यह विचार मुख्यतः फ्रेडरिक नीत्से के चिंतन से उत्पन्न हुआ है| 

  • नीत्से ने अपने दर्शन में भाषा को अत्यधिक महत्व इस अर्थ में दिया है, कि दर्शन का निर्माण भी भाषा के माध्यम से होता है| भाषा एवं चेतना का विकास साथ-साथ हुआ है| 

  • इस दृष्टिकोण के अनुसार भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं है, बल्कि यह एक दार्शनिक की विशिष्टता है और भाषा के माध्यम से तात्विक बोध भी होता है| 

  • भाषा चाहे मनुष्य के मध्य संप्रेषण का माध्यम है, लेकिन यह उनके द्वारा व्यक्तिगत रूप से नियंत्रित नहीं है| भाषा की संरचना और उद्धव मुलत: सामाजिक है| 

  • नीत्से के भाषा संबंधी चिंतन ने उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख विकास जैसे- विखंडनवाद, शास्त्रार्थ मीमांसा (Hermeneutics) एवं वंशावालिक (Genealogy) को प्रभावित किया है|

  • डेरिंडा ने विखंडनवाद का उपयोग किया है और कहा है कि कुछ भी पाठ्य के बाहर नहीं है| 

  • शास्त्रार्थ मीमांसा दृष्टिकोण हाइडेगर के द्वारा विकसित किया गया, बाद में हंस जार्ज गेडेमर इसका सबसे प्रमुख प्रवर्तक बना|  

  • वंशावालिक (Genealogy) दृष्टिकोण मिशेल फूको द्वारा प्रयुक्त किया गया, जिसके अंतर्गत यह प्रयास किया गया कि गंभीर चर्चा के माध्यम से समाज के विशिष्ट आचरण के उद्भव एवं महत्व का परीक्षण करने के साथ-साथ इन सामाजिक आचरणों के छुपे हुए और दमित स्रोतों का भी अध्ययन किया जाए| जैसे आधुनिक उदारवाद का परीक्षण करने के लिए मिशेल फूकोअनुशासन एवं दंड की अवधारणाओं और सामाजिक आचरण का अध्ययन’ करता है| 



राजनीति सिद्धांत में तथ्य- मूल्य विवाद-

  • राजनीतिक सिद्धांत का सरोकार राजनीति विज्ञान और राजनीति दर्शन दोनों से हैं| इसमें कुल मिलाकर तीन तरह के कथनो की जरूरत होती है-

  1. अनुभवमूलक कथन-

  • सब मनुष्यों में निरीक्षण की एक जैसी क्षमता पाई जाती है, अतः हम अपने अनुभव को दूसरे के अनुभव से मिलाकर उसकी पुष्टि और सत्यापन कर सकते हैं|


  1. तार्किक कथन-

  • सब मनुष्यों की एक जैसी तर्कबुद्धि होती है, अतः हम अपने कथन को तर्क की कसौटी पर कसकर उसकी पुष्टि और सत्यापन कर सकते हैं|


  1. मूल्यपरक कथन-

  • ये व्यक्तिगत या सामूहिक निर्णय के विषय हैं, इनकी जांच करने की कोई विश्वसनीय विधि या अंतिम कसोटी नहीं है, अतः ऐसे कथन पर मतभेद होना स्वाभाविक है|


  • राजनीतिक दर्शन या परंपरागत दृष्टिकोण मूल्यों (मूल्यपरक कथन) से संबंधित है तथा राजनीतिक विज्ञान या आधुनिक दृष्टिकोण विज्ञान व तथ्यों (अनुभवमूलक कथन, तार्किक कथन) से संबंधित है|


मूल्य व तथ्य में अंतर-

  1. मूल्य वे विश्वास या आदर्श होते हैं, जिनके आधार पर लोग राजनीतिक परिस्थिति, राजनीतिक कार्यों व घटनाओं का मूल्यांकन करते हैं, जबकि तथ्य किसी वस्तु, घटना में देखे गए गुणों या निरीक्षण पर आधारित गुणों के समूह को कहते हैं| 

  2. मूल्य गुणात्मक होते हैं, इन्हें मापा नहीं जा सकता, जबकि तथ्य मात्रात्मक होते हैं, इन्हें मापा जा सकता  है|

  3. मूल्य व्यक्तिनिष्ठ व आत्मनिष्ठ होते हैं, जबकि तथ्य वस्तुनिष्ठ होते हैं|

  4. मूल्य कल्पनात्मक व आदर्शात्मक हो सकते हैं, जबकि तथ्य यथार्थ, व्यवहारिक व वैज्ञानिक होते हैं|

  5. मूल्यों का संबंध क्या होना चाहिए से है, जबकि तथ्यों का संबंध क्या है से है| 

  6. तथ्य अनुभवजन्य रूप से सत्यापनीय होते हैं, मूल्यों को सिद्ध या सत्यापित नहीं किया जा सकता है| 



कुछ अन्य तथ्य-

  • एंड्रयू हैकर “परंपरागत राजनीतिक विज्ञान मुख्य रूप से मानकात्मक है, इसलिए इसका प्रतिपादक राजनीतिक दार्शनिक जैसा लगता है, आधुनिक राजनीति विज्ञान मुख्य तौर से व्यवहारपरक या अनुभवाश्रित है और इसलिए इसका प्रतिपादक राजनीतिक वैज्ञानिक जैसा लगता है|”

  • लासवेल व कैपलान “राजनीति विज्ञान एक व्यवहारवादी विषय के रूप में शक्ति को सवारने तथा मिल बांटकर प्रयोग करने का अध्ययन है|”

  • बक्ल “ज्ञान की वर्तमान अवस्था में राजनीति को विज्ञान मानना तो दूर वह कलाओं में भी सबसे पिछड़ी कला है|”

  • नार्मन जैकब्सन ने राजनीति विज्ञान की स्वायत्तता पर बल दिया है तथा कहा है कि “विज्ञानवाद राजनीति विज्ञान में से राजनीति को निकाल देगा, जबकि नीतिवाद उससे सदाचरण का दुश्मन ठहरा कर उसे समाप्त कर देगा|”

  • राफेल व हेवुड के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत को दर्शन की एक उपश्रेणी माना जाता है और राजनीतिक सिद्धांत के मुख्य उद्देश्य हैं-

  1. राजनीतिक संवाद और बहस में प्रयुक्त अवधारणाओं को स्पष्ट करना| 

  2. राजनीतिक विश्वासों और सिद्धांतों की आलोचनात्मक जांच और मूल्यांकन करना| 






Notes available for RPSC School lecturers and UGC-Net Political Science Subject 9660895656

Nirban Classes 📞 Call Support- 9660-895656 (Nirban P K Sir) 💬 Whatsapp- 9660-895656 (Nirban P K Sir) 👉App link-- https://play.google.com/store/apps/details?id=co.sansa.dinxk 👉Website link-- https://www.nirbanclasses.com/ 👉Telegram link-- https://t.me/nirbanclasses/ 👉Facebook page-- https://www.facebook.com/Nirban-classes-102795312234749 👉Instagram link-- https://www.instagram.com/nirbanclasses/ 👉Nirban Classes Youtube link-- https://youtube.com/@nirbanclassesjaipur?si=E35Da8T2A_JGPhVw

Close Menu