धर्मनिरपेक्षता Secularism in Hindi
- धर्मनिरपेक्षता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1648 में जार्ज जैकब होलियाक ने किया था| 
- धर्मनिरपेक्षता एक आधुनिक अवधारणा है, जिसका उदय पुनर्जागरण, धार्मिक सुधार आंदोलनों के फलस्वरुप हुआ है| 
- धर्मनिरपेक्षता का उदय यूरोप में होता है| 
- 15वीं सदी में मैकियावेली (इटली के विचारक) ने राज्य और चर्च को अलग करने पर बल दिया| 
- इसके बाद यूरोप में पुनर्जागरण के समय काल्विन और मार्टीन लूथर ने पोप की सत्ता का विरोध करके चर्च की प्रधानता खत्म करने का पुरजोर समर्थन किया| 
- 1649 में ब्रिटेन में चलें गृह युद्ध में राजतंत्र को हराकर तथा राजा चार्ल्स प्रथम को मृत्यु दंड देकर और सन 1688 की रक्तहीन क्रांति या गौरव पूर्ण राज्य क्रांति में राजा के दैवीय अधिकारों को समाप्त करके धर्मनिरपेक्षता की शुरुआत की गई| 
- धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से व्याप्त रही है तथा 42 वे संविधान संशोधन 1976 के द्वारा सविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता जोड़कर भारत को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है| 
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ-
- धर्मनिरपेक्षता का अंग्रेजी पर्याय शब्द सेकुलर लैटिन भाषा के शब्द सेकुलम से बना है, जिसका अर्थ है- यह समय जो किसी अन्य समय से अलग है| 
- अर्थात यह समय दैवीय युग के समय से अलग है| 
- धर्मनिरपेक्षता धार्मिक प्राधान्यता, धार्मिक तानाशाही और धार्मिक बहिष्करण या धर्म आधारित बहिष्करण का विरोधी है| 
धर्मनिरपेक्षता की परिभाषाएं-
- वाटरहाउस “धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी विचारधारा है जो कि जीवन और आचरण का एक ऐसा सिद्धांत प्रस्तुत करती हैं जो मत-पंथ या मजहब के विरुद्ध होता है|” 
- इंग्लिश शब्दकोश “मजहब के साथ संबंधों का अभाव धर्मनिरपेक्षता है|” 
- लियो पेफर “धर्मनिरपेक्षता अपने अर्थ में पूरी तरह भौतिकवादी विचार है, जो यह मानकर चलता है कि माननीय विकास केवल भौतिक साधनों द्वारा ही किया जा सकता है|” 
- डोनाल्ड स्थिम “धर्मनिरपेक्ष राज्य, वह राज्य है जिसके अंतर्गत व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है, जो व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय न ही धर्म की उन्नति की चेष्टा करता है और न ही धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करता है|” 
- होलियाक “धर्मनिरपेक्षता सामान्य रूप से प्रकृति के अध्ययन पर आधारित है, उनका मत-पंथ से कोई संबंध नहीं है| 
- उपर्युक्त परिभाषाओ के आधार पर धर्मनिरपेक्षता के दो अर्थ निकल कर आते है- 
- नकारात्मक अर्थ- राज्य धर्म विरोधी विचारधारा का समर्थक हो तथा उसका आचरण भी धर्म विरोधी हो| 
- सकारात्मक अर्थ- राज्य किसी भी विशेष धर्म को अपना संरक्षण न दे, सभी धर्मों को समान समझे किसी भी धर्म से किसी भी प्रकार का भेदभाव न रखें| अपना कोई राष्ट्र धर्म घोषित ना करें| 
धर्मनिरपेक्षता के मॉडल-
- धर्मनिरपेक्षता के दो मॉडल है- 
- यूरोपीय मॉडल 
- भारतीय मॉडल 
- धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय मॉडल - 
- इसमें यूरोप व अमेरिका के मॉडल शामिल है, जिसमें अमेरिकी मॉडल सर्वाधिक प्रचलित है| इस मॉडल के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा समानता का अर्थ है व्यक्तियों के बीच समानता| 
- इस मॉडल की निम्न विशेषताएं हैं 
- न तो राज्य, धर्म के मामले में हस्तक्षेप करेगा और न ही धर्म, राज्य सत्ता के मामले में| अर्थात दोनों पूरी तरह अलग-अलग है| 
- राज्य न तो कोई धार्मिक नीति बनाएगा और न ही किसी धर्म विशेष को सहायता देगा| 
- राज्य धार्मिक संस्थाओं को आर्थिक सहायता नहीं देगा| 
- राज्य धार्मिक समुदायों की गतिविधियों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा 
- यह मॉडल धर्म को व्यक्ति का निजी (व्यक्तिगत) मामला मानता है| राज्यसत्ता का धर्म विषय नहीं है| 
- धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल- 
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप से अलग है| 
- यहां सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता है, जो राज्य व धर्म के बीच संबंध विच्छेद नहीं है| 
- यहां धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धार्मिक सहिष्णुता है, जो सभी धर्मों का समान संरक्षण, समान विकास है| 
- यहां बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक सभी धार्मिक समुदायों को अपने धर्म के विकास की आजादी है| 
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म से आजादी नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यकों की धार्मिक आजादी है| 
भारत में धर्मनिरपेक्षता-
- भारत में धर्मनिरपेक्षता की जगह पंथनिरपेक्षता शब्द है| 
- यहां सभी लोगों को धर्म की स्वतंत्रता प्राप्त होती है| 
- भारत में प्राचीन काल से ही सर्वधर्म समभाव, धार्मिक सहिष्णुता जैसे सिद्धांत प्रचलित रहे हैं, अर्थात यहां सभी धर्मों को समान आदर दिया जाता रहा है| 
- संविधान सभा के सदस्य H V कामथ के अनुसार “धर्म से जगत का धारण होता है|” 
- J L नेहरू “धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों का राज्य द्वारा संरक्षण है| धर्मनिरपेक्षता एक सिद्धांत भर नहीं है, यह है भारत की एकता और अखंडता की गारंटी है|” 
- इंद्र कुमार गुजराल “मैं किसी भी विषय पर रियायत देने के लिए तैयार हूं, सिवाय भारत की संप्रभुता पर और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर, हम भारत का एक और विभाजन नहीं होने देंगे| 
- भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य है, जिसका अर्थ भारत का कोई राष्ट्रधर्म नहीं है तथा सभी धर्मों को समान दर्जा प्राप्त है, धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा| 
- भारतीय संविधान में निम्न जगह धर्मनिरपेक्षता/ पंथनिरपेक्षता की चर्चा की गई है- 
- प्रस्तावना में- 42वे संविधान संशोधन 1976 के द्वारा प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता शब्द जोड़ा गया 
- अनुच्छेद 15 व अनुच्छेद 16- धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं 
- अनुच्छेद 25- 28 तक- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 
- अनुच्छेद 29(2)- किसी व्यक्ति को धर्म के आधार पर राज्य द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता है| 
- अनुच्छेद 30(1)- धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थानों की स्थापना का अधिकार है| 
- अनुच्छेद 44- एक समान नागरिक सिविल संहिता की स्थापना| 
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की आलोचनाएं-
- भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म विरोधी है, जो धार्मिक पहचान को खतरा पैदा करती है| 
- यह पश्चिमी से आयातित है जो भारत के अनुकूल नहीं है| 
- यह अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार देती हैं जिसका नुकसान बहुसंख्यकों को उठाना पड़ता है| 
- धर्मनिरपेक्षता के नाम सरकार अनावश्यक हस्तक्षेप करती है| 
- यह वोट बैंक की राजनीति को बढ़ावा देती है| 
- धर्मनिरपेक्षता व्यावहारिक रूप से कभी पूर्ण नहीं हो सकती है| 
धर्मनिरपेक्ष राज्य-
- डी ई स्मिथ “धर्मनिरपेक्ष राज्य, वह राज्य है जो सभी व्यक्तियों को व्यक्तिगत और सामूहिक मत-पंथ, धर्म की स्वतंत्रता देता है|” 
- डॉ बी आर अंबेडकर “धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ यह नहीं है कि हम लोगों की धार्मिक भावनाओं का आदर नहीं करते हैं| इसका मतलब यह है कि राज्य लोगों पर किसी भी धर्म को नहीं थोपेगा|” 
- H.V कामथ “पंथनिरपेक्ष राज्य न तो नास्तिक राज्य होता है, न धार्मिक और न ही धर्म विरोधी होता है|” 
- वेकटरमण “राज्य न तो धार्मिक, न अधार्मिक, न पंथनिरपेक्ष होता है| वह धार्मिक सिद्धांतों और गतिविधियों से पूरी तरह अलग होता है और धार्मिक मामलों में निरपेक्ष होता है|” 
- धर्मनिरपेक्ष ऐसा राज्य है, जिसका अपना कोई राज्य धर्म नहीं होगा तथा किसी भी धर्म को विशेष महत्व नहीं देगा| सभी धर्मों को समान महत्व तथा संरक्षण प्रदान करेगा| 
राजीव भार्गव ने धर्मनिरपेक्ष राज्य को तीन तरह के राज्यों से अलग किया है-
- धर्म तंत्रीय राज्य या धार्मिक राज्य- 
- धार्मिक राज्य ऐसा राज्य है, जहां एक धर्म से जुड़ी पुरोहितीय व्यवस्था द्वारा तथाकथित दैवीय कानूनों की मदद से राज्य का प्रशासन किया जाता है| 
- धार्मिक राज्यों में धार्मिक और राजनीतिक व्यवस्थाएं एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ी होती हैं| 
- उदाहरण- ईरान, तालिबान का शासन वाला अफगान 
- ऐसा राज्य जो एक धर्म को स्थापित करता हो- 
- ऐसे राज्य में राज्य का कोई एक राज्य धर्म होता है| 
- इन राज्यों में पुरोहितीय व्यवस्था सीधे तौर पर शासन नहीं करती है| 
- यहां धार्मिक संस्थाएं, राजनीतिक संस्थाओं से अलग होती हैं| 
- यहां धर्म का कार्य लोगों को मुक्ति दिलाना है तथा राज्य का कार्य शांति और व्यवस्था बनाए रखना है| 
- राज्य के अपने कार्य, शक्ति संरचना और आंतरिक मानक होते हैं, इसके बावजूद राज्य धार्मिक लक्ष्यों के अधीन होता है| 
- उदाहरण- पाकिस्तान, सऊदी अरब इस्लामिक राज्य 
- ऐसा राज्य जो बहुत से धर्म स्थापित करता हो- 
- ऐसे राज्यों में सभी धर्मों के प्रति धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई जाती है| 
- उदाहरण- अशोक शासित भारत 
धर्मनिरपेक्ष राज्य की विशेषताएं-
- सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है| 
- राज्य का कोई राज्यधर्म नहीं होता है| 
- राज्य लोकतंत्र का समर्थक होता है| 
- ऐसे राज्य में धर्म का राजनीति से पृथक्करण होता है| 
- ऐसा राज्य धार्मिक तानाशाही का विरोधी होता है| 
- ऐसे राज्य में सभी पंथ के लोगों को समान समझा जाता है| 
- पंथनिरपेक्ष राज्य सर्वधर्म समभाव पर आधारित होता है| 
- प्रत्येक धार्मिक समूह के लिए धार्मिक स्वतंत्रता| 
- व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने व किसी भी धर्म को ना मानने की स्वतंत्रता| 
- राज्य द्वारा दिए जाने वाले अधिकारों के संदर्भ में धर्म के नाम पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करना| 
- शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश पर धर्म के नाम पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करना| 
आधुनिक समय में धर्मनिरपेक्षता की आवश्यकता -
- धर्मनिरपेक्षता धर्म विरोधी नहीं है, जबकि सभी धर्मो को समान महत्व देता है| 
- धर्मनिरपेक्षता सत्य, अहिंसा, प्रेम, सदाचार, शांति, विश्व बंधुत्व, जियो और जीने दो, बंधुत्व जैसे श्रेष्ठ आदर्शों का पोषक है| 
- धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्म को राजनीतिक जीवन से अलग करके व्यक्तिगत जीवन तक सीमित रखता है| 
- धर्मनिरपेक्ष राज्य बहुजातीयता का समर्थक है| 
राजनीतिक सेकुलरवाद या राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता-
- राजनीतिक सेकुलरवाद का अर्थ धार्मिक प्राधान्यता, धार्मिक दमन और धार्मिक बहिष्करण को खत्म करने के लिए राजनीति को धर्म से अलग रखना है| 
- राजनीतिक सेकुलरवाद एक मानकीय सिद्धांत है जो यह मानता है कि धार्मिक निरंकुशता, धार्मिक दमन या धार्मिक पदसोपान को रोकने के लिए और गैर धार्मिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देने के लिए राज्य को धार्मिक संस्थाओं से अलग रखना चाहिए| 
उसूली फासला या अलगाव का सिद्धांत (Principled Distance)-
- सामान्य रूप से उसूली फासला या सिद्धांतवादी अलगाव का अर्थ यह है कि राज्य सभी धर्मों से एक समान दूरी (उसूली फासला) रख सकता है या हर धर्म को एक जैसी मदद दे सकता है| 
- उसूली फासला या सिद्धांतवादी अलगाव की नीति में धर्म के समावेश या बहिष्करण और धर्म के साथ राज्य के जुड़ाव या उदासीनता के सवाल पर लचीला दृष्टिकोण अपनाया जाता है| 
- इसका अर्थ यह है कि धर्म, राज्य के मामलों में दखल दे सकता है लेकिन शर्त यह है कि इससे स्वतंत्रता, समानता और सेकुलरवाद से जुड़े अभिन्न मूल्यों को बढ़ावा मिलना चाहिए| इसी तरह राज्य भी धर्म से सक्रिय जुड़ाव रख सकता है या उदासीन रह सकता है| 
- स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों को बढ़ावा मिलता है या उपेक्षा होती है इस आधार पर राज्य किसी धर्म में दखल दे सकता है या उदासीन रह सकता है| 
- यह अमेरिकी दार्शनिक रोनाल्ड ड्वॉर्किन के द्वारा ‘समान व्यवहार करने और हर किसी को समान मानते हुए व्यवहार करने के बीच किए गए अंतर पर आधारित है| 
- समान व्यवहार सिद्धांत का अर्थ- राज्य को जीवन के हर पहलू के संदर्भ में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए 
- हर किसी को समान मानते हुए व्यवहार करना- इसमें समान के साथ समान तथा असमान के साथ असमान व्यवहार किया जाता है| 
धार्मिक बहुसंख्यक व सेकुलर बहुसंख्यक-
- धार्मिक बहुसंख्यक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें एक धर्म का प्रभाव होता है वह धर्म दूसरे धार्मिक समूह का बहिष्कार करता है| 
- सेकुलर बहुसंख्यक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें एक धर्म का प्रभाव होने के बावजूद भी वह धर्म अन्य धर्मों के प्रति सम्मान व सहिष्णुता रखता है| 
प्रथकता की दीवार-
- धर्म व राज्य के बीच पृथकता की दीवार का अर्थ है, कि धर्म को पूरी तरह से राज्य के नियंत्रण से बाहर होना चाहिए अर्थात राज्य धर्म के मामले में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप ना करें| 
 
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