संवैधानिक तथा संविधिक निकाय
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
(Comptroller and Auditor General of India)
CAG का वर्णन अनुच्छेद 148-151
पद का प्रावधान-
अनुच्छेद 148(1) में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के पद का प्रावधान है|
यहां नियंत्रक का अर्थ है- सरकार के समस्त खर्चों पर निगरानी करना|
महालेखा का अर्थ है- संसद द्वारा आवंटित धन की देखरेख करना, साथ ही यह देखना कि सरकारी धन का उपयोग उचित तरीके से हो रहा है या नहीं|
संरचना-
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) एकल सदस्यीय संस्था है|
यह भारत के महालेखा परीक्षक विभाग का संवैधानिक प्रमुख है|
नियुक्ति 148(1)-
राष्ट्रपति के द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र (वारंट)
पद से हटाना-
अनुच्छेद 148 (1)- उसी विधि और आधारों से, जिनके आधार पर S.C के न्यायाधीशों को हटाया जाता है|
शपथ 148 (2)-
राष्ट्रपति या राष्ट्रपति द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष
यह तीसरी अनुसूची में दिए गए प्रारूप के आधार पर शपथ लेता है|
योग्यता-
संविधान में उल्लेख नहीं है|
IAS अधिकारी CAG के पद पर नियुक्त किया जाता है|
कार्यकाल या पदावधि-
संविधान में उल्लेख नहीं है|
1971 में संसद द्वारा बनाए गये ‘CAG के कर्तव्य, शक्तियां, शर्तें अधिनियम’ के अनुसार 6वर्ष या 65 वर्ष आयु तक (जो भी पहले हो)
CAG पद की स्वतंत्रता-
CAG की स्वतंत्रता के लिए निम्न उपबंध किए गए हैं-
कार्यकाल की सुरक्षा है अर्थात कार्यकाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत नहीं है|
सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा|
वेतन भत्ते संसद द्वारा निर्धारित, वेतन भत्ता S.C के न्यायाधीश के बराबर होता है|
कार्यकाल के दौरान वेतन, अनुपस्थित, छुट्टी, पेंशन निवृत्ति की आयु में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा|
CAG के वेतन-भत्ते, पेंशन तथा कार्यालय खर्चा भारत की संचित निधि पर भारित है|
Note- डॉ बी आर अंबेडकर के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भारतीय संविधान के तहत सबसे महत्वपूर्ण आधिकारी होगा|
Note- CAG लोकतांत्रिक व्यवस्था के रक्षको में से एक है |
लोकतांत्रिक व्यवस्था के रक्षक- उच्चतम न्यायालय, निर्वाचन आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, CAG
CAG के कार्य व शक्तियां (अनु. 149)-
अनुच्छेद 149 में यह उल्लेखित किया गया है, कि संसद विधि बनाकर भारत सरकार, राज्य सरकार, किसी अन्य प्राधिकारी या निकाय के लेखाओ के संबंध CAG के कार्यों का निर्धारण करें|
तथा संसद द्वारा विधि बनाने से पहले CAG के कार्य वही होंगे, जो भारत डोमिनियन व प्रांतो के लेखाओ के संबंध मे महालेखा परीक्षक के थे|
कार्य निर्धारण के लिए संसद ने ‘CAG (कर्तव्य, शक्तियां, सेवा शर्तें) अधिनियम’ 1971 बनाया|
1976 में 1971 के अधिनियम में संशोधन करके CAG के कार्य से केंद्र सरकार के लेखांकन कार्य को अलग कर दिया|
1976 के बाद CAG के कार्य -
केंद्र सरकार- लेखा परीक्षण
राज्य सरकार- लेखांकन व लेखा परीक्षण
Note- केंद्र सरकार के लेखांकन के कार्य के लिए Controller General of Account (CGA) की स्थापना की गई है|
अनुच्छेद 150 (संघ व राज्य लेखाओ का प्रारूप)-
केंद्र और राज्यों के लेखाओ के प्रारूप का निर्धारण राष्ट्रपति CAG की सलाह पर करता है|
अनुच्छेद 151 संपरीक्षा प्रतिवेदन या CAG की रिपोर्ट-
संघ के लेखाओ संबंधी रिपोर्ट CAG राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है तथा राष्ट्रपति प्रतिवेदन (रिपोर्ट) को संसद के रखवाता रखता है|
किसी राज्य के लेखाओ संबंधी रिपोर्ट को CAG संबंधित राज्य के राज्यपाल को प्रस्तुत करता है तथा राज्यपाल प्रतिवेदन को राज्य विधानमंडल के समक्ष रखवाता है|
Note- लेखा परीक्षण के लिए संघ एवं राज्यों के लिए अलग प्रावधान नहीं है, अपितु लेखा परीक्षण की इकहरी व्यवस्था की गई है|
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग
अनुच्छेद 338 में राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के बारे में प्रावधान है|
वर्ष 1978 में कैबिनेट प्रस्ताव के द्वारा अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग की स्थापना की गई थी|
65 वें संविधान संशोधन 1990 के द्वारा एक बहूसदस्यीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की स्थापना की गई|
89वें संविधान संशोधन 2003 के द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग को अलग-अलग कर दिया|
अनुसूचित जाति आयोग एक संवैधानिक आयोग है|
स्थापना- 19 फ़रवरी 2004
मुख्यालय- दिल्ली
संरचना-
यह एक बहुसदस्यीय आयोग है|
कुल सदस्य 5
अध्यक्ष
उपाध्यक्ष
तीन सदस्य
नियुक्ति 338(3)-
राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र के द्वारा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति करेगा|
कार्यकाल-
3 वर्ष
दोबारा पद पर नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन दो बार से ज्यादा इन्हें पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है|
योग्यता-
अध्यक्ष अनुसूचित जाति का सदस्य होना चाहिए, जो एक प्रसिद्ध राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता हो|
अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का एवं उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है और सदस्यों को भारत सरकार के सचिव का दर्जा प्राप्त होता है|
कार्य-
अनुसूचित आयोग अनुसूचित जातियों से संबंधित बने रक्षा उपाय कानूनों, आदेशों की जांच व निगरानी करेगा|
अनुसूचित जातियों के अधिकारों तथा रक्षा उपायो से वंचित करने वाली शिकायतों की जांच करता है|
अनुसूचित जातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना, उन पर सलाह देना तथा ऐसे विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना भी अनुसूचित जाति आयोग का कार्य है|
ऐसे रक्षा उपायो के संबंध में प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को प्रतिवेदन (रिपोर्ट) देता है|
इन रिपोर्टो में संघ या राज्य द्वारा किए जाने वाले अनुसूचित जातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के उपायो के बारे में सिफारिश करता है|
संघ सरकार एवं राज्य सरकारों के द्वारा अनुसूचित जाति से संबंधित नीतियों का निर्माण करते समय आयोग से परामर्श लिया जाएगा|
शिकायत की जांच-
अनुसूचित जातियों के विरुद्ध किए गए उत्पीड़न की शिकायत सीधे आयोग से की जा सकती है और यह शिकायत लिखित रूप में होनी चाहिए|
आयोग द्वारा अनुसूचित जातियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रशासन एवं पुलिस को निर्देश दिए जाते हैं|
आयोग के समक्ष ऐसे मामलों की शिकायत नहीं हो सकती, जो न्यायपालिका के समक्ष लंबित है|
शक्तियां-
अनुसूचित जाति आयोग जब किसी शिकायत की जांच करता है, तो वह सिविल न्यायालय की भांति कार्य करता है|
इसके अंतर्गत वह भारतीय क्षेत्र से किसी व्यक्ति को बुला सकता है और उसकी जांच कर सकता है, तथा किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से वह दस्तावेज भी मंगवा सकता है|
प्रतिवेदन-
आयोग द्वारा प्रति वर्ष राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, जिसे राष्ट्रपति संसद के समक्ष रखवाता है|
राज्य से संबंधित रिपोर्ट राज्यपाल को प्रस्तुत की जाती है, जिसे राज्यपाल विधानमंडल के समक्ष रखवाता है|
यदि रिपोर्ट की किसी सिफारिश को अस्वीकार किया गया है, तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी देना होगा|
Note- भारत में अनुसूचित जाति शब्द का प्रयोग पहली बार भारत शासन अधिनियम 1935 में किया गया था|
Note- अनु. 341 के अनुसार अनुसूचित जाति का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है, जिसमें संबंधित राज्यों के राज्यपाल से भी परामर्श करता है|
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
अनुच्छेद 338(1) में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का उल्लेख है|
89 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के गठन का प्रावधान किया गया|
स्थापना- 19 फ़रवरी 2004
मुख्यालय- दिल्ली
संरचना-
यह एक बहुसदस्यीय आयोग है|
कुल सदस्य 5-
अध्यक्ष
उपाध्यक्ष
तीन सदस्य
कार्यकाल-
3 वर्ष
दोबारा पद पर नियुक्ति किया जा सकता है, लेकिन दो बार से ज्यादा इन्हें पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है|
योग्यता-
अध्यक्ष अनुसूचित जनजाति का सदस्य होना चाहिए, जो प्रसिद्ध सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हो|
अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है और सदस्यों को भारत सरकार के सचिव का दर्जा प्राप्त होता है|
क्षेत्रीय कार्यलय-
अनुसूचित जनजाति आयोग के 6 क्षेत्रीय कार्यालय है-
भोपाल (मध्य प्रदेश)
भुवनेश्वर (उड़ीसा)
जयपुर (राजस्थान)
रायपुर (छत्तीसगढ़)
रांची (झारखंड)
शिलांग (मेघालय)
कार्य-
यह आयोग अनुसूचित जनजातियों से संबंध बने रक्षा उपाय कानूनो, आदेशों की जांच व निगरानी करेगा|
अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों तथा रक्षा उपायो से वंचित करने वाली शिकायतों की जांच करता है|
अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना, उन पर सलाह देना तथा ऐसे विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना भी अनुसूचित जनजाति आयोग का कार्य है|
ऐसे रक्षा उपायों के संबंध में प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देता है|
इन रिपोर्टों में संघ या राज्य द्वारा किए जाने वाले अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के उपायो के बारे में सिफारिश करता है|
अनुसूचित जनजातियों के कल्याण और विकास में भूमिका-
जनजातीय मंत्रालय द्वारा आयोग अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास का कार्य संपादित करता है|
जनजातीय क्षेत्रों में लघु वन उत्पादकों पर उनका मलिकाना हक होगा|
प्राकृतिक संसाधनों व जल संसाधनों पर जनजातियों का अधिकार होगा तथा विकास परियोजना में विस्थापित प्रजातियों के पुनर्वास का आयोग का दायित्व है|
शिकायतों की जांच-
आयोग द्वारा अनुसूचित जनजातियों के उत्पीड़न की शिकायत की जांच की जाती है| शिकायत लिखित रूप में आयोग के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को भेजी जा सकती है|
न्यायालय में लंबित मामलों से संबंधित शिकायत आयोग में नहीं की जा सकती है|
शक्तियां-
आयोग के पास सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होगी| आयोग भारत के किसी भी भाग में किसी भी व्यक्ति को उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी कर सकता है एवं उससे पूछताछ कर सकता है|
प्रतिवेदन-
आयोग द्वारा प्रत्येक वर्ष राष्ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाता है, तथा राज्यों से संबंधित प्रतिवेदन संबंधित राज्यपाल को प्रस्तुत किया जाता है|
राष्ट्रपति इस प्रतिवेदन को संसद के समक्ष रखवाता है तथा राज्यपाल प्रतिवेदन को विधानमंडल के समक्ष रखवाता है|
यदि रिपोर्ट की किसी सिफारिश को अस्वीकार किया जाता है, तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन देना होगा|
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
यह एक सांविधिक निकाय है|
इसका गठन संसद द्वारा पारित मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत 12 अक्टूबर 1993 को किया गया|
यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है|
आयोग की संरचना-
यह एक बहूसदस्यीय संस्था है|
कुल सदस्य- 9-
अध्यक्ष
4 स्थायी सदस्य
4 पदेन सदस्य
अध्यक्ष- उत्तम न्यायालय का कार्यरत न्यायाधीश या सेवानिवृत्ति मुख्य न्यायाधीश
सदस्य-
एक सदस्य S.C में कार्यरत या सेवानिवृत्ति न्यायाधीश
एक सदस्य H.C में कार्यरत या सेवानिवृत न्यायाधीश
दो सदस्य मानवाधिकार से संबंधित जानकारी अथवा कार्य अनुभव रखने वाले|
पदेन सदस्य-
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष
राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष
Note- पदेन सदस्यों को आयोग की प्रक्रिया और निर्णय में मतदान का अधिकार नहीं होता है|
अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति-
राष्ट्रपति के द्वारा
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित 6 सदस्यीय समिति की सिफारिश पर नियुक्ति करता है|
6 सदस्यीय समिति के सदस्य-
प्रधानमंत्री
लोकसभा अध्यक्ष
राज्यसभा का उपसभापति
लोकसभा में विपक्ष का नेता
राज्यसभा में विपक्ष का नेता
केंद्रीय गृह मंत्री
कार्यकाल-
5 वर्ष या 70 वर्ष आयु तक (जो भी पहले हो)
सेवानिवृत्ति के बाद अध्यक्ष व सदस्य केंद्र सरकार व राज्य सरकार के अधीन लाभ का पदधारण नहीं कर सकते हैं|
पद से हटाना-
राष्ट्रपति द्वारा तब हटाया जाता है, जब S.C के न्यायाधीश की जांच में उन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाय|
मुख्यालय-
मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में है|
प्रकृति-
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक अर्ध न्यायिक संस्था है|
सबूत प्राप्त करना, किसी दस्तावेज को मंगाना, न्यायालय अथवा कार्यालय से किसी सार्वजनिक रिकॉर्ड की प्रतिलिपि मंगाना आदि आयोग के अर्ध न्यायिक कार्य हैं|
कार्य-
मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों व शिकायतों की जांच करता है|
आयोग के पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है|
आयोग किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बंद कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमें सुधार के लिए सुझाव दे सकता है|
आयोग संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उसमें बदलावो की सिफारिश कर सकता है|
यह मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य भी करता है|
आयोग के पास सिविल न्यायालय की शक्तियां हैं|
इसके पास मुआवजे या हर्जाने के भुगतान की सिफारिश करने का भी अधिकार है|
यह राज्य तथा केंद्र सरकारों को मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने की सिफारिश भी करता है|
प्रतिवेदन-
आयोग अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है, जिसे राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाता है|
मानवाधिकार आयोग की सीमाएं-
आयोग के पास जांच करने के लिए कोई भी विशेष यंत्र नहीं है| अधिकतर मामलों में यह संबंधित सरकार को मामले की जांच करने का आदेश देता है|
पीड़ित पक्ष को व्यवहारिक न्याय देने में असमर्थ होने के कारण भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे India’s Teasing Illusion की संज्ञा दी है|
आयोग के पास किसी भी मामले के संबंध में मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है, वह किसी निर्णय को लागू करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है|
आयोग उन शिकायतों की जांच भी नहीं कर सकता, जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज करायी जाती है|
राष्ट्रीय महिला आयोग-
यह एक सांविधिक निकाय है|
इस आयोग की स्थापना राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 के अंतर्गत 10 जनवरी 1992 को की गई|
यह एक ऐसी संस्था है, जो शिकायत या स्वत: संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों और उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू करती है|
संरचना-
यह एक बहूसदस्यीय संस्था है|
कुल सदस्य 6-
अध्यक्ष
पांच अन्य सदस्य
इन सदस्यों में से एक सदस्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का होना जरूरी है|
कार्यकाल-
सभी सदस्यों व अध्यक्ष का- 3 वर्ष
अध्यक्ष व सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत किया जाएगा|
कार्य-
संविधान अथवा अन्य विधियों में महिलाओं के संरक्षण से संबंधित मुद्दों की जांच एवं परीक्षण करना|
इन मुद्दों के संबंध में केंद्र सरकार को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना|
संघ और राज्य सरकारों के द्वारा महिलाओं के उत्थान संबंधी उपायो के क्रियान्वयन की अनुशंसा करना|
संविधान में उल्लेखित अथवा अन्य विधियों में वर्णित महिलाओं के उत्थान संबंधी प्रावधानों में विसंगतियों को दूर करने के लिए केंद्र सरकार से अनुशंसा करना|
प्रशासनिक ढांचा-
आयोग के अंतर्गत वैधानिक शाखा, अनुसंधान शाखा, कल्याणकारी शाखा व शिकायत शाखा का गठन किया गया है|
वैधानिक शाखा-
यह शाखा महिला को वैधानिक सहायता प्रदान करती है|
इसके द्वारा वर्तमान विधियों की समीक्षा की जाती है, कि वे महिला विरोधी तो नहीं है|
न्यायालय में महिलाओं के मामलों में सहायता प्रदान करती है|
अनुसंधान शाखा-
इस शाखा द्वारा महिलाओं से संबंधित अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाता है|
अनुसूचित जाति एवं जनजाति एवं अन्य महिलाओं के बीच लैंगिक भेदभावों को समाप्त करने तथा महिलाओं के कल्याण के लिए अनेक प्रकार की गोष्ठी एवं कार्यशाला आयोजित किये जाते हैं|
कल्याणकारी शाखा-
यह शाखा महिला कल्याण हेतु, नीतियों को लागू करवाने के संदर्भ में सुझाव देने का कार्य करती है|
शिकायत शाखा-
इस शाखा के द्वारा महिलाओं के विरुद्ध होने वाले उत्पीड़न के बारे में शिकायतों को सुना जाता है|
शक्तियां-
यह आयोग सिविल न्यायालय की शक्तियां धारण करता है|
यह मामलों की जांच कर सकता है, विभागों से रिपोर्ट मांग सकता है|
किसी भी अधिकारी या व्यक्ति को समन जारी कर सकता है|
सीमाएं-
महिला आयोग केवल सलाहकार संस्था है, इसकी अनुशंसा संघ या राज्य सरकारों के लिए बाध्यकारी नहीं है|
वित्तीय रूप से सरकार पर निर्भर है, आयोग को संपूर्ण वित्तीय सहायता संघ सरकार के द्वारा प्रदान की जाती है|
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
अल्पसंख्यकों के लिए सबसे पहले 1960 में उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया|
संघ की जनता पार्टी ने 1978 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया|
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992 के तहत इस आयोग को सांविधिक आयोग दर्जा दिया गया|
विधिक रूप से अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना 1992 में की गयी|
23 अक्टूबर 1993 को कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर पांच धार्मिक समुदायो को अल्पसंख्यक समुदाय में शामिल किया, जो निम्न है-
मुस्लिम
ईसाई
सिक्ख
बौद्ध
पारसी
27 जनवरी 2014 को केंद्र सरकार ने जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक समुदाय में शामिल कर दिया|
वर्ष 1995 में इसमें संशोधन करके इसका नाम ‘अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग’ कर दिया|
यह एक सांविधिक आयोग है|
संरचना-
यह एक बहुसदस्यीय संस्था है|
कुल सदस्य 7-
अध्यक्ष
उपाध्यक्ष
5 अन्य सदस्य
नियुक्ति-
राष्ट्रपति के द्वारा
कार्यकाल-
3 वर्ष
Note- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का पदेन सदस्य भी होता है|
कार्य-
राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हनन की शिकायतो को सुनना|
राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों के विकास के स्तर का मूल्यांकन करना तथा इस संबंध में सुझाव देना|
राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा तथा कल्याण से संबंधित प्रयासों में सहयोग देना|
संघ और राज्य सरकारों द्वारा पारित अल्पसंख्यकों से सम्बंधित विभिन्न विधियां की जांच करना|
अल्पसंख्यकों की शिकायतों की जांच करना|
अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए वैधानिक व कल्याणकारी उपायों को सुझाना|
संघ सरकार एवं राज्य सरकारों को अल्पसंख्यकों के लिए नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन हेतु सुझाव देना|
शक्तियां-
इसके पास सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होती हैं|
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