समानता / Equality In Hindi
समानता का अर्थ-
समानता एक मांग है, जिसकी अधिकार की तरह मांग की जाती है|
समानता का अर्थ है समान लोगों के साथ समान व्यवहार तथा असमान लोगों के साथ असमान व्यवहार है, सभी के साथ समान व्यवहार नहीं है|
सभी लोगों को विकास के समान अवसर प्राप्त हो, और कोई भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग न हो, अर्थात वर्ग विशेषाधिकार की समाप्ति की जाए|
राज्य व समाज सभी लोगों के साथ समान व्यवहार करें, किसी भी आधार पर भेदभाव न करें| जैसे जाति, धर्म, भाषा, वर्ग, वर्ण, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न करें|
मानवीय गरिमा तथा अधिकारों को समान संरक्षण प्राप्त हो|
प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान महत्व प्राप्त हो|
अमेरिका की स्वतंत्रता की घोषणा (1776) में कहा गया कि “हम इस सत्य को स्वयं सिद्ध मानते हैं कि प्रकृति ने सभी मनुष्यो को समान उत्पन्न किया है, तथा प्रकृति ने सभी को जीवन, स्वतंत्रता और सुख की साधना का अधिकार दिया है|”
फ्रांसीसी क्रांति 1789 के तीन आदर्श थे- स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व|
स्वतंत्रता और समानता आधुनिक युग के प्रमुख आदर्श हैं|
आधुनिक युग में रूसो, अमेरिकन क्रांति, फ्रांस की क्रांति ने समानता की संकल्पना को केंद्रीय विषय बना दिया|
R H टोनी “समानता का सिद्धांत मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति व मानवीय क्षमताओं को चरितार्थ करता है|”
समानता की संकल्पना एक सापेक्ष संकल्पना है| लॉस्की “समानता का आशय निरपेक्ष समानता नहीं, बल्कि अनुपातिक समानता है|”
समानता के प्रकार-
समानता के निम्न प्रकार हो सकते हैं-
नागरिक समानता-
यह समानता राज्य द्वारा प्रदान की जाती है| राज्य अपने सभी नागरिकों को समान नागरिक अधिकार प्रदान करता है|
विधि के शासन की स्थापना द्वारा नागरिक समानता को स्थापित किया जा सकता है|
हमारे संविधान में अनुच्छेद 14 द्वारा विधि के समक्ष समता, विधियों का समान संरक्षण अधिकार दिया गया है|
राजनीतिक समानता-
सभी नागरिकों को व्यस्क मताधिकार प्राप्त हो, सार्वजनिक पदों को प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त हो, बिना किसी भेदभाव के राज्यों के कार्यों में भाग लेने की समानता हो|
राजनीतिक समानता प्रजातंत्र की आधारशिला है|
बेंथम “एक व्यक्ति एक वोट” (सभी का मत मूल्य समान हो)|
सामाजिक समानता-
सामाजिक दृष्टि से सभी समान हो| धर्म, जाति, लिंग, वर्ग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव की समाप्ति हो|
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 सामाजिक समानता की स्थापना करता है, यह अनुच्छेद 5 आधारों पर भेदभाव को रोकता है- धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग, जन्म स्थान|
प्राकृतिक समानता-
इस अवधारणा के अनुसार प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है|
जॉन लॉक “प्रकृति ने सभी मनुष्यो को समान व स्वतंत्र पैदा किया है, कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता व संपत्ति को हानि नहीं पहुंचा सकता है|
आर्थिक समानता-
आर्थिक समानता अन्य सभी समानताओं का आधार है|
आर्थिक समानता का अर्थ सभी लोगों को कार्य करने का समान अवसर उपलब्ध कराया जाए, जिससे सभी व्यक्तियों की न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति हो सके|
लॉस्की “राजनीतिक स्वतंत्रता की स्थापना तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि उसके साथ आर्थिक समानता न जुडी हो|”
लॉस्की “जिस देश में संपत्ति तथा उत्पादन के साधन कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में केंद्रित होते हैं उस देश की राजनीति, संस्कृति, शिक्षण संस्थाओं तथा न्यायपालिका पर धन पूर्णतया हावी हो जाता है|”
रॉबर्ट डहल ने राजनीतिक स्थायित्व और आर्थिक समानताओं को एक दूसरे से संबंधित माना है डहल के अनुसार “यदि हम चाहते हैं कि राजनीतिक स्थायित्व और सरकार का लोकतंत्रीय स्वरूप बना रहे तो हमें भूमि के समुचित वितरण, कर प्रणाली में सुधार तथा शिक्षण सुविधाओं का विस्तार करके आर्थिक क्षेत्र में समानता को लाना होगा|”
आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक, नागरिक एवं सामाजिक समानता अर्थहीन है|
भारतीय संविधान के निम्न अनुच्छेद आर्थिक समानता की स्थापना की बात करते हैं-
अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता| यह अनुच्छेद 7 आधारों पर होने वाले भेदभाव को रोकता है- धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश, जन्म स्थान, उद्भव व निवास|
अनुच्छेद 38(2) राज्य आय की असमानता को कम करने का प्रयास करेगा|
अनुच्छेद 39(b) राज्य भौतिक संसाधनों का बंटवारा सामूहिक हित को ध्यान में रखकर करेगा|
अनुच्छेद 39(c) धन तथा उत्पादन साधनों का संकेंद्रण रोकना|
अनुच्छेद 46 राज्य SC, ST व पिछड़े वर्गों के शिक्षा व अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि करेगा|
सांस्कृतिक समानता-
इसके द्वारा बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी भाषा, लिपि, संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया जाता है|
अनुच्छेद 29 भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिक या नागरिको का अनुभाग अपनी भाषा, लिपि, संस्कृति को सुरक्षित रख सकते हैं|
कानूनी समानता/ वैधानिक समानता-
इसके अनुसार कानून के सामने सभी समान है, चाहे अमीर हो, गरीब हो, उच्च या निम्न वर्ग से हो, किसी भी पद से संबंधित हो|
कानूनी समानता विधि के शासन के अंतर्गत प्राप्त होती है|
डायसी ने विधि के शासन का समर्थन किया है|
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 भी विधि के समक्ष समता व विधियों का समान संरक्षण प्रदान करता है|
रूसो “सभी नागरिकों को कानूनी समानता प्रदान करना नागरिक समाज की प्रमुख विशेषता है|”
अर्नेस्ट बार्कर (बहुलवादी विचारक) ने अपनी पुस्तक Principle of Social and Political Theory 1951 में कानूनी समानता की बात की है|
बार्कर राज्य को कानूनी संस्था मानते हैं, ये समानता की व्याख्या कानूनी आधार पर करते हैं|
बार्कर कहता है कि “राज्य अपने नागरिकों को वैधानिक समानता देकर एक जैसे मुखोटे पहना देता है| हममें चाहे जो भी भिन्नताएं रही हो, कानून के समक्ष हम सब का महत्व एक जितना होता है|”
आइवर जेनिंग्स “समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों के साथ कानून का व्यवहार एक समान होगा|”
डायसी ने विधि के समक्ष समानता की व्याख्या इस प्रकार की है “हमारे देश में प्रत्येक प्राधिकारी चाहे वह प्रधानमंत्री हो या पुलिस का सिपाही हो या कर वसूल करने वाला हो अवैधानिक कार्यों के लिए उतना ही दोषी माना जाएगा जितना अन्य कोई साधारण नागरिक|
अवसर की समानता-
यह समानता सभी नागरिकों को समान अवसर देने की बात करती है|
यह समानता समान के साथ समान व्यवहार व असमान के साथ असमान व्यवहार पर बल देती है|
भारतीय संविधान में अवसर की समानता को संरक्षणात्मक विभेद कहा गया है| जैसे-
महिलाएं, SC, ST, OBC व सामान्य वर्ग में आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण|
गरीब, विकलांग के लिए विशेष सुविधाएं|
R H टोनी ने अवसर की समानता को मेंढक दर्शन कहा है|”
शिक्षा की समानता-
राज्य द्वारा सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से शिक्षा उपलब्ध करवाना|
अनुच्छेद 21 क ‘शिक्षा का अधिकार’- राज्य 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है|
लैंगिक समानता-
लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करना|
समानता के संबंध में विभिन्न विचारधाराएं-
विभिन्न विचारकों ने दो तरह की समानता की चर्चा की है|
नकारात्मक/ औपचारिक/ प्रक्रियात्मक समानता
सकारात्मक/ अनौपचारिक/ तात्विक समानता
नकारात्मक/ औपचारिक/ प्रक्रियात्मक समानता-
इस प्रकार की समानता में योग्यता पर बल दिया जाता है|
इस समानता में आरक्षण व्यवस्था का विरोध किया जाता है|
यह समानता राज्य के लिए न्यूनतम हस्तक्षेप या अहस्तक्षेप नीति का समर्थन करती है|
इस समानता में कानूनी समानता व राजनीतिक समानता पर बल दिया जाता है|
इस समानता के समर्थक विचारक-
परंपरावादी विचारक
स्वेच्छातंत्रवादी विचारक
परंपरावादी विचारक-
जॉन लॉक-
लॉक प्राकृतिक अवस्था में सभी व्यक्तियों के पास जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति का अधिकार समान रूप से होने की बात करता है|
थॉमस हॉब्स-
हॉब्स ने प्राकृतिक समानता की संकल्पना दी है|
इन्होंने अपनी पुस्तक लेवियाथन में प्राकृतिक समानता का विस्तार से वर्णन किया है|
हॉब्स के मत में प्राकृतिक अवस्था में शारीरिक एवं मानसिक क्षमता को अगर जोड़ कर देखा जाए तो सभी व्यक्ति में समान क्षमता थी| हॉब्स के अनुसार “प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है| एक व्यक्ति जो मांग करता है, उसकी मांग दूसरा व्यक्ति भी करता है| शारीरिक रूप से एक व्यक्ति शक्तिशाली हो सकता है, किंतु अन्य लोग छल से उसे कमजोर कर देते हैं|”
अलेक्सी द ताकविले/ टाकविले-
इनका मानना है कि लोकतंत्र में लोग स्वतंत्रता की तुलना में समानता को ज्यादा वरीयता देते हैं और इससे मजबूती से जुड़े रहते हैं|
टाकविले अति समानता के खतरे से सचेत करते हैं और कहते हैं कि बहुत बार समानता का उत्साह या आवेश, उन्माद और अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न कर सकता है|
टाकविले “आधुनिक युग की सबसे प्रमुख समस्या स्वतंत्रता और समानता में सामंजस्य स्थापित करने की है| लोकतंत्र का विस्तार समानता को जितना बढ़ावा देता है, स्वतंत्रता के लिए उतना ही खतरा बन जाता है|”
टाकविले का मानना है कि स्वतंत्रता की कीमत पर सिर्फ समानता की चाह लोकतंत्रो के राजनीतिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है|
टाकविले “राजनीतिक समानता और आर्थिक विषमता में जो विसंगति पाई जाती है, उसे लोकतंत्रीय समाज में अनिश्चितकाल तक स्वीकार नहीं करेंगे|”
सकारात्मक/ अनौपचारिक/ तात्विक समानता-
इसे वास्तविक समानता कहते हैं|
यह कल्याणकारी राज्य का समर्थन करती है|
इस समानता में पिछड़े व कमजोर वर्गो तथा महिलाओं, बच्चों, निशक्तजनों के लिए विशेष या सकारात्मक कार्यवाही पर बल दिया जाता है|
प्रमुख समर्थक विचारक-
आधुनिक सकारात्मक उदारवादी विचारक
समतावादी विचारक
समाजवादी या मार्क्सवादी विचारक
नारीवादी विचारक
बहुसंस्कृतिवाद विचारक
समुदायवादी विचारक
आधुनिक सकारात्मक उदारवादी विचारक-
ये अवसर की समानता पर बल देते हैं|
इनके अनुसार समानता का तात्पर्य राजनीतिक, वैधानिक, आर्थिक समानता से है|
लॉस्की- इन्होंने अपनी पुस्तक ‘द स्टेट इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस’ 1935 में लिखा है कि “संपत्ति, जाति, धर्म या दल के आधार पर किसी को समान अधिकार से वंचित करना तर्कबुद्धि के आधार पर सही नहीं है|” अर्थात बिना किसी भेदभाव के आर्थिक समानता देने की बात करते हैं|
समतावादी विचारक-
जॉन रॉल्स-
जॉन रॉल्स अवसर की समानता का समर्थन करते हैं तथा कहते हैं कि “अवसर की समानता का तात्पर्य मूलभूत प्राथमिक वस्तुओं का समान वितरण करने से है|”
रॉल्स के अनुसार प्राथमिक वस्तु-
प्राकृतिक प्राथमिक वस्तुएं- बुद्धि; स्वास्थ्य
सामाजिक प्राथमिक वस्तुओं-अधिकार, स्वतंत्रता, संपत्ति, गरिमा
रॉल्स “कोई भी सामाजिक नीति तभी न्याय पूर्ण हो सकती है जब सुविधा वंचित वर्गों को विशेष प्राथमिकता दी जाए|
ड्वॉर्किन-
पुस्तक- Taking rights seriously 1977
इन्होंने संसाधनों की समानता का विचार दिया है अर्थात संसाधनों की समानता का अर्थ है कि आरंभिक स्थिति में सबको समान संसाधन दिए जाएं|
ड्वॉर्किन “सभी राजनीतिक सिद्धांतों का अंतिम सामाजिक मूल्य एक ही है और वह समानता|”
समाजवादी या मार्क्सवादी विचारक-
ये आर्थिक समानता को महत्वपूर्ण मानते हैं|
कार्ल मार्क्स-
इनके अनुसार आर्थिक समानता के अभाव में समानता की स्थापना संभव नहीं है तथा समानता का आदर्श वर्ग विहीन समाज में ही संभव है|
राम मनोहर लोहिया (समाजवादी विचारक)-
इन्होंने भारत में असमानता की पहचान की थी तथा कहा था कि इसके विरुद्ध एक साथ लड़ना होगा| जैसे स्त्री पुरुष असमानता, चमड़ी के रंग पर आधारित असमानता, जातिगत असमानता, आर्थिक असमानता आदि|
G D H कॉल “आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक समानता कोरा दिखावा है|”
नारीवादी विचारक-
नारीवादी विचारक आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा घरेलू क्षेत्रों में स्त्री पुरुष समानता पर बल देते हैं|
नारीवादियों के अनुसार यौन भेद तो प्राकृतिक है, जबकि लिंग भेद सामाजिक है, अतः लिंग भेद को समाप्त करने की आवश्यकता है|
ये पितृसत्तात्मकता का विरोध करते हैं|
नारीवाद की प्रमुख शाखाएं निम्न है-
उदारवादी नारीवादी-
ये महिलाओं के लिए राजनीतिक व नागरिक अधिकारों की मांग करते हैं|
समर्थक- मेरी वॉल्टनक्राफ्ट, H जिगलर
मेरी वॉल्टनक्राफ्ट-
पुस्तक- ‘विडिकेशन ऑफ द राइट ऑफ द वूमैन (1792)’ में महिलाओं के नागरिक अधिकारों पर बल दिया है|
समाजवादी नारीवादी-
ये महिलाओं के घरेलू कार्यों को आर्थिक कार्यों का दर्जा देने का समर्थन करते हैं|
समर्थक– शिलोरोबाथम
उग्रनारीवादी-
समर्थक- बेट्टी फ्रीडन, कैट मिलेट
बेट्टी फ्रीडन-
पुस्तक- Feminine Mystique 1963 (स्त्री संबंधी मिथक)
बेट्टी फ्रीडन को महिला मुक्ति आंदोलन का जन्मदाता कहा जाता है|
बेट्टी फ्रीडन “महिलाओं के समक्ष मुख्य समस्या यह है, कि सामाजिक जीवन में उनका कोई अपना ही नहीं होता|”
कैट मिलेट-
पुस्तक-The Sexual Politics 1969
इनके अनुसार राजनीतिक शक्ति संरचित होती है, जिसमें मानवो का एक समूह दूसरे समूह द्वारा नियंत्रित किया जाता है|
मिलेट “स्त्री के ऊपर पुरुष की शक्ति कोई व्यक्तिगत घटनाचक्र नहीं है, बल्कि वह तो संरचना का एक भाग है|”
मिलेट “संपूर्ण इतिहास में दोनों लिंगों के बीच आधिपत्य और अधीनस्थ के संबंध रहे है|”
संरचनावादी नारीवादी-
समर्थक- साइमन द बुअर
पुस्तक- The Second Sex 1949
साइमन द बुअर आमूल परिवर्तनवादी विचारक है|
यह कहते हैं कि “महिलाएं पैदा नहीं होती, बनाई जाती है|
पुरुषों ने महिलाओं को देवी या दासी का दर्जा दिया है, लेकिन समानता का दर्जा कभी नहीं दिया इसलिए महिलाओं का विकास नहीं हो पाया है|
बहुसंस्कृतिवादी विचारक-
बहुसंस्कृतिवादियों के अनुसार समानता आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक क्षेत्र में भी होनी चाहिए|
बहुसंस्कृतिवादी मान्यता की समानता पर बल देते हैं, अर्थात सभी संस्कृतियों को समान रूप से मान्यता प्राप्त होनी चाहिए|
समर्थक- भीखू पारीख, विम किमलिका
विम किमलिका ने संस्कृति को शक्ति का स्रोत माना है और कहते हैं कि किसी व्यक्ति या समाज को नष्ट करना है तो उसको संस्कृति से अलग कर दो|
विम किमलिका अल्पसंख्यकों की सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने पर विशेष जोर देते हैं|
समुदायवादी विचारक-
ये मूलभूत वस्तुओं के समान वितरण की बात करते हैं|
प्रमुख समर्थक- माइकल वाल्ज़र, चार्ल्स टेलर
माइकल वाल्ज़र ने समानता का व्यापक विश्लेषण किया है| वाल्ज़र ने अपनी पुस्तक Sphere of justice 1983 में समानता के दो प्रकार बताएं हैं-
सरल समानता
जटिल समानता
माइकल वाल्ज़र ने जटिल समानता का विचार पेश किया है| इनके अनुसार जटिल समानता का अर्थ है कि “किसी नागरिक की एक सामाजिक दायरे में स्थिति या एक सामाजिक वस्तु के संदर्भ में स्थिति, किसी दूसरे सामाजिक दायरे या किसी दूसरे सामाजिक वस्तु के संदर्भ में उसकी स्थिति में कटौती नहीं करेगी|”
अर्थात जटिल समानता में किसी वस्तु का वितरण सभी समाजों में एक समान निष्पक्ष रूप से नहीं किया जा सकता|
अलग-अलग समाज में सामाजिक वस्तुओं का वितरण भी अलग-अलग तरह से होगा|
वाल्ज़र के अनुसार जॉन रॉल्स का यह मानना गलत है कि हर समाज में प्राथमिक वस्तुओं के एक समूह का, सभी लोगों के बीच निष्पक्ष रूप से वितरण किया जाए|
अरस्तु के समानता संबंधी विचार-
अरस्तु ने समानता के दो प्रकार बताएं है-
संख्यात्मक समानता- बिना भेदभाव के साथ सभी व्यक्तियों के साथ एक समान व्यवहार है|
अनुपातिक समानता- व्यक्ति की योग्यता, क्षमता व राज्य की सेवा के अनुपात में संसाधनों का वितरण
अरस्तु ने औपचारिक समानता व अनुपातिक समानता का समर्थन किया है|
अरस्तु की समानता की संकल्पना सिर्फ नागरिकता के वर्ग तक सीमित थी|
नागरिकों की राजनीतिक समानता शासित होने और बदले में शासन करने के सद्गुण को मान्यता देती थी|
अरस्तु न्याय और समानता के बीच सीधा संबंध दिखाते हैं और कहते हैं कि “समानता के लिए न्याय को कायम रखा जाता है| न्याय सभी लोगों के लिए नहीं है बल्कि सिर्फ समान लोगों के लिए है| इसी तरह न्याय पूर्ण होने के लिए असमानता को कायम रखा जाता है| असमानता सभी लोगों के लिए नहीं है बल्कि यह सिर्फ असमान लोगों के लिए है|”
अरस्तु सभी के समान होने को समानता नहीं मानते हैं, क्योंकि प्रकृति ने ही सभी मनुष्य को असमान बनाया है|
अरस्तु के अनुसार व्यक्ति गुण, क्षमता, योग्यता में भिन्न व असमान होते हैं, अतः राज्य सभी व्यक्तियों को समान नहीं कर सकता है|
अरस्तु “प्रकृति स्वतंत्र पुरुष (स्वामी) व दास के शरीर में अंतर करती है| स्वतंत्र पुरुष का शरीर कोमल होता है जो श्रम नहीं कर सकता है वहीं दास का शरीर बलिष्ठ कठोर होता है जो श्रम कर सकता है|”
अरस्तु ने अपनी पुस्तक एथेनियन कॉन्स्टिट्यूशन में समतावादी संस्थानों का वर्णन किया है| इस पुस्तक में अरस्तु ने Isonomia (इसोनोमिया) का जिक्र किया है, जो एथेंस की व्यवस्था का मुख्य बिंदु था| यह व्यवस्था राजनीतिक समानता को परिभाषित करती है, जिसका अर्थ है प्रत्येक नागरिक को राज्य की राजनीति को दिशा देने और राजनीतिक पदों पर चयनित होने के लिए समान अवसर प्राप्त थे|”
रूसो के समानता संबंधी विचार-
रूसो ने अपनी पुस्तक A discourse on the Origin of inequality में दो प्रकार की विषमता की चर्चा की है-
प्राकृतिक विषमता
यह प्रकृति की देन है| इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता है|
जैसे- आयु, स्वास्थ्य, सौंदर्य, बाहुबल, बुद्धि बल आदि|
परंपरागत विषमता-
यह सामाजिक व्यवस्था की देन है| इसमें परिवर्तन किया जा सकता है|
जैसे-धनसंपदा, पद-प्रतिष्ठा, शक्ति की भिन्नता|
रूसो “कोई व्यक्ति इतना धनी नहीं होना चाहिए कि वह दूसरों को खरीद ले और कोई इतना गरीब भी न हो कि दूसरों के हाथों बिक जाए|”
कल्याण की समानता (Equality Of welfare)-
उपयोगितावादी विचारक इसके समर्थक हैं|
ये वितरण करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि अधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम खुशी प्राप्त हो अर्थात अधिकतम व्यक्तियों का कल्याण हो|
ये वितरण की समानता पर बल नहीं देते हैं बल्कि अधिकतम कल्याण में वितरण करते हैं, चाहे असमान वितरण ही क्यों ना हो|
सामर्थ्य की समानता (Equality of Capability)-
अमर्त्य सेन व मार्था नेसबॉम ने सामर्थ्य की समानता का विचार पेश किया है|
इसका तात्पर्य है कि वितरण संबंधी समानता में लोगों के संसाधन या आय पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि इसकी जगह लोगों के सामर्थ्य या क्षमता को बराबर करने पर ध्यान देना चाहिए|
जटिल समानता-
माइकल वाल्ज़र ने जटिल समानता का विचार पेश किया है| इनके अनुसार जटिल समानता का अर्थ है कि “किसी नागरिक की एक सामाजिक दायरे में स्थिति या एक सामाजिक वस्तु के संदर्भ में स्थिति, किसी दूसरे सामाजिक दायरे या किसी दूसरे सामाजिक वस्तु के संदर्भ में उसकी स्थिति में कटौती नहीं करेगी|”
अर्थात जटिल समानता में किसी वस्तु का वितरण सभी समाजों में एक समान निष्पक्ष रूप से वितरित नहीं किया जा सकता|
अलग-अलग समाज में सामाजिक वस्तुओं का वितरण भी अलग-अलग तरह से होगा|
वाल्ज़र के अनुसार जॉन रॉल्स का यह मानना गलत है कि कि हर समाज में प्राथमिक वस्तुओं के एक समूह का सभी लोगों के बीच निष्पक्ष रूप से वितरण किया जाए|
जातीय समानता-
मार्टिन लूथर किंग जूनियर अमेरिका में जातीय समानता आधारित नागरिक अधिकारों के समर्थक थे|
मार्टिन लूथर किंग जूनियर का मत है कि आत्म गौरव और आत्मसम्मान के मामले में विश्व की हर जाति या वर्ण का मनुष्य बराबर है|
मार्टिन लूथर किंग जूनियर का कहना है कि “हमें अपने रचनात्मक प्रतिरोध को कभी भी शारीरिक हिंसा में ढालकर पतन का शिकार नहीं होने देना चाहिए|”
औपचारिक या प्रक्रियात्मक समानता-
समर्थक- परंपरागत उदारवादी और स्वेच्छातंत्रवादी विचारक
इसमें कानूनी व राजनीतिक समानता पर बल दिया जाता है|
इसमें प्रक्रिया की समानता पर बल दिया जाता है, चाहे उसके परिणाम कैसे भी निकले, अर्थात सभी को समान वितरण करने पर बल दिया जाता है|
इसके अनुसार सभी मनुष्य जन्म से समान है|
अवसर की समानता-
समर्थक- आधुनिक उदारवादी व समतावादी विचारक
इसमें समान के साथ समान व्यवहार व असमान के साथ असमान व्यवहार पर बल दिया जाता है|
जॉन रॉल्स- मूलभूत प्राथमिक वस्तु का सामान वितरण
अमर्त्य सेन- क्षमता के रूप में समानता
ड्वॉर्किन- संसाधनों की समानता
परिणामों की समानता-
समर्थक- मार्क्सवादी विचारक
इसमें परिणामों की समानता पर बल दिया जाता है, उसके लिए प्रक्रिया चाहे कैसी भी अपनाई जाए|
इसमें आर्थिक समानता पर बल दिया जाता है|
कार्ल मार्क्स ने अपनी कृति कृति Critique of Gotha Programme 1875 में कानूनी समानता को अस्वीकार किया है|
मिलोवन जिलास ने अपनी पुस्तक The New Class 1957 में इसकी आलोचना की है| मिलोवन जिलास "साम्यवादी समाज में समानता केवल एक दिखावा है ,वास्तविक रूप में पार्टी के मुट्ठी भर पदाधिकारियों ने पूरी व्यवस्था पर नियंत्रण कर रखा है”
मिलोवन जिलास ने इन सर्वशक्तिशाली राजनीतिक व नौकरशाही पदाधिकारियों को New Class (नवोदित वर्ग) कहा है|
विभेदो के अंत के रूप में समानता-
समानता का एक अर्थ है विभेदो की समाप्ति, अर्थात समाज में विशेषाधिकारों एवं विषमताओं को समाप्त करना|
यहां विभिन्न विभेदो की समाप्ति का अर्थ सभी प्रकार के विभेद नहीं, बल्कि अतार्किक विभेदों की समाप्ति है, अर्थात लिंग, धर्म, नस्ल, क्षेत्र, जाति, वंश आदि के आधार पर किए जाने वाले अतार्किक विभेद|
अर्थात उन विषमताओं को हटाना जो समाज द्वारा निर्मित है, ना कि प्राकृतिक विषमताओं का अंत करना| जैसे- महिला पुरुष के लिंग विभेद को समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्राकृतिक है, परंतु समाज द्वारा निर्मित लैंगिक भेदभाव को समाप्त किया जा सकता है|
समानता संबंधी कुछ अन्य तथ्य-
लास्की-
लास्की अपनी कृति ए ग्रामर ऑफ पॉलिटिक्स 1925 में समानता को विचारों का सामंजस्य कहते हैं|
लास्की के अनुसार समानता की अवधारणा की तीन प्रमुख स्थितियां है-
विशेषाधिकारों का अभाव
समान अवसरों की उपलब्धि
सबकी प्राथमिक वस्तुओं की पूर्ति की प्राथमिकता
विम किमलिका “प्रत्येक प्रशंसनीय राजनीति सिद्धांत का एक ही अंतिम मूल्य है, वह है समानता|”
हेयक बाजार प्रणाली के अंतर्गत व्यक्ति की स्वतंत्रता की समस्या को हल करना चाहता है|
बार्कर के अनुसार समानता का अर्थ “जो अधिकार मुझे प्राप्त हैं, वैसे दूसरों को भी प्राप्त हो तथा जो अधिकार दूसरों को दिए गए हैं, वह मुझे भी प्राप्त हो|”
टोनी “समानता का सिद्धांत मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति व मानवीय क्षमताओं को चरितार्थ करता है|”
टोनी ने अवसर की समानता को मेंढक दर्शन कहा है|
Note- 16 वीं सदी में ब्रिटेन में समानता संबंधी दो धाराएं प्रचलित हुई थी-
लेवेलर्स- ये राजनीतिक समानता के समर्थक थे|
डिगलर्स- ये आर्थिक समानता के समर्थक थे|
स्वतंत्रता और समानता में संबंध-
स्वतंत्रता और समानता एक दूसरे के विरोधी हैं-
यह नकारात्मक दृष्टिकोण है|
इसके समर्थक मानते हैं कि प्रकृति में असमानता विद्यमान है|
इसके अनुसार स्वतंत्रता और समानता व्यवहार में एक साथ नहीं रह सकती हैं, किसी एक को ही स्थापित किया जा सकता है|
प्रमुख समर्थक- अरस्तु, लार्ड एक्टन, डी टॉकवीले, F A हेयक, बर्लिन
लार्ड एक्टन “समानता के आवेश ने स्वतंत्रता की आशा को व्यर्थ कर दिया है|”
अरस्तु “प्रकृति ने असमानता दी है, कुछ लोग जन्म से ही दास बनने के लिए तथा कुछ शासक बनने के लिए नियत होते हैं|”
F A हेयक ने अपनी पुस्तक कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ लिबर्टी 1960 में स्वतंत्रता और समानता को एक दूसरे का विरोधी बताया है| इनके अनुसार भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न योग्यताएं पाई जाती हैं|
अभिजनवादी विचारक पैरेटो, मोस्का, मिचेल्स आदि समानता के प्रबल विरोधी हैं|
स्वतंत्रता और समानता एक दूसरे के पूरक हैं-
यह सकारात्मक दृष्टिकोण है|
प्रमुख समर्थक- लॉस्की, टोनी, बार्कर, हॉबहाउस, मेकफ़र्सन, जॉन रोल्स, अमर्त्य सेन
रूसो “समानता के बिना स्वतंत्रता जीवित नहीं रह सकती|”
पोलार्ड “स्वतंत्रता की समस्या का एकमात्र समाधान समानता में निहित है|”
महात्मा गांधी “स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं, अपितु व्यक्तित्व के विकास की अवस्थाओं की प्राप्ति है|”
लॉस्की “जिस समाज में असमानताए हैं, वहां जब भी कोई व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता की मांग उठाएगा तो शक्तिशाली उसे ललकारेगे और उसका विरोध करेंगे| अर्थात स्वतंत्रता समानता के बिना एक सीमित गुंबद के समान होगी|”
टोनी “समानता स्वतंत्रता के बिना अर्थहीन होगी|”
हॉबहाउस “अगर समानता नहीं है, तो स्वतंत्रता के गंदे परिणाम होंगे|”
बार्कर “समानता एक बहुरूपिया विचार है|”
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