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व्यवस्थापिका /Legislature || BY Nirban PK Sir || In Hindi

     व्यवस्थापिका (Legislature)

    • सरकार राज्य का अनिवार्य तत्व है| राज्य एक अमूर्त सत्ता है तथा सरकार राज्य का मूर्त रूप होता है|

    • राज्य के नाम पर प्रभुसत्ता का प्रयोग सरकार ही करती है|

    • गार्नर “सरकार एक ऐसा संगठन जिसके द्वारा राज्य अपनी इच्छा को प्रकट करता है, अपने आदेशों को जारी करता है तथा अपने कार्यों को करता है|”

    • किसी भू-भाग में बसे जन समूह को तब तक राज्य नहीं कहा जा सकता, जब तक वहां संगठित सरकार न हो| गार्नर के शब्दों में “सरकार के बिना जनसंख्या एक असंगठित व अराजक जनपूंज के रूप में होगी, जिसके पास सामूहिक रूप से कार्य करने का कोई साधन नहीं होगा|”

    • सरकार को राज्य की आत्मा कहा जाता है|

    • सरकार के सामान्यतः तीन कार्य हैं और इन्ही तीन कार्यों के आधार पर सरकार के तीन अंग होते हैं|



    सरकार के अंग-

    1. व्यवस्थापिका-

    • कार्य- कानून का निर्माण करना| 

    1. कार्यपालिका-

    • कार्य- कानून को लागू करना|

    1. न्यायपालिका-

    • कार्य- कानूनों की व्याख्या करना|


    • व्यवस्थापिका सरकार का महत्वपूर्ण अंग है, जिसका प्रमुख कार्य कानून का निर्माण करना है| आधुनिक युग में व्यवस्थापिका की पहचान जनता के प्रतिनिधियों की सभा के रूप में है|

    • व्यवस्थापिका को ‘राष्ट्र का दर्पण’, जन इच्छा का मूर्तरूप, शिकायतों की समिति, मतों जो कांग्रेस कहा जाता है|

    • C.F स्ट्रांग “आधुनिक युग में सरकारों में व्यवस्थापिकाएँ लोकतंत्र के बढ़ते ज्वार के अनुपात में उभरती गई|” 


    व्यवस्थापिका के विभिन्न देशों में नाम-

    • भारत- संसद

    • अमेरिका- कांग्रेस

    • स्विट्जरलैंड- संघीय सभा

    • फिनलैंड- डायट

    • इजराइल- नैसेट 

    • ईरान- मजलिस

    • जापान- डायट

    • चीन- राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस

    • ब्रिटेन- पार्लियामेंट

    • रूस- डयूमा, सर्वोच्च सोवियत

    • पाकिस्तान- नेशनल असेंबली

    • नेपाल- राष्ट्रीय पंचायत

    • बांग्लादेश- जातीय संसद



    • व्यवस्थापिका सरकार का प्रथम एवं सर्वोच्च अंग है| गार्नर के शब्दों में “राज्य की इच्छा जिन विभिन्न अंगों द्वारा प्रकट होती है और पूर्ण की जाती है, उसमें व्यवस्थापिका का स्थान सर्वोच्च होता है|”



    व्यवस्थापिका के प्रकार- 

    • रचना के आधार पर व्यवस्थापिका दो प्रकार की होती है-

    1. एक सदनीय व्यवस्थापिका

    2. द्विसदनीय व्यवस्थापिका


    1. एक सदनीय व्यवस्थापिका

    • एक सदनीय व्यवस्थापिका में केवल एक ही सदन पाया जाता है|

    • उदाहरण- चीन, पुर्तगाल, इजरायल, बांग्लादेश, श्रीलंका, न्यूजीलैंड, भारतीय संघ की कुछ इकाइयों में

    • एक सदनीय व्यवस्था के समर्थक- बेंथम, लॉस्की 


    1. द्विसदनीय व्यवस्थापिका-

    • द्विसदनीय व्यवस्थापिका में दो सदन होते हैं|

    • ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्वीटजरलैंड, फ़्रांस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत, रूस आदि देशों में द्विसदनीय व्यवस्थापिका है|

    • इसमें से एक सदन को प्रथम सदन, निचला सदन, अवर सदन, लोकप्रिय सदन कहते हैं, जिसके सदस्य सीधे मतदाताओं के द्वारा चुने जाते हैं|

    • दूसरे सदन को द्वितीय सदन, उच्च सदन, उपरला सदन कहा जाता है, इसके सदस्यों का चुनाव प्राय अप्रत्यक्ष से ढंग से किया जाता है| यह सदन सामान्यतः समाज के विभिन्न वर्गों, हितों, संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है|

    • इंग्लैंड जहां एकात्मक शासन प्रणाली वहा पर प्रथम सदन को कॉमन सभा या हाउस ऑफ कॉमंस कहा जाता है, जिसके सदस्य सर्वसाधारण के द्वारा चुने जाते हैं|

    • दूसरे सदन को लार्ड सभा या हाउस ऑफ लॉर्ड कहा जाता है| जिसके सदस्य तीन तरह से आते हैं-

    1. वंश परंपरा से| 

    2. धार्मिक पद के आधार पर|

    3. मंत्रिमंडल की सलाह पर महारानी या राजा के द्वारा मनोनीत|


    • संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय प्रणाली है| यहां निम्न सदन को प्रतिनिधि सभा या हाउस ऑफ  रिप्रेजेंटेटिव्य कहा जाता है| उच्च सदन को सीनेट कहा जाता है, जिसमें प्रत्येक राज्य से दो-दो प्रतिनिधि चुनकर आते हैं (कुल 50*2=100)| सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है जिसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक 2 वर्ष बाद सेवानिवृत हो जाते है अत: सीनेट स्थायी सदन है|  सीनेट के सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन होता है |

    • भारत में एकात्मकता की और झुकाव वाली संघात्मक व्यवस्थापिका है जिसमें निम्न सदन को लोकसभा तथा उच्च सदन को राज्यसभा कहते हैं|

    • द्विसदनीय व्यवस्थापिका के समर्थक- जे एस मिल, सर हेनरी मैन



     अन्य देशों व्यवस्थापिका के सदन-

    • जापान

    1. प्रतिनिधि सदन

    2. सभासद सदन


    • स्विट्जरलैंड-

    1. राष्ट्रीय सभा

    2. राज्य परिषद


    • फ़्रांस- 

    1. राष्ट्रीय सभा

    2. सीनेट


    • रूस-

    1. डयूमा

    2. राष्ट्रीय सोवियत

     

    • इटली, जापान, कनाडा में द्वितीय सदन के सदस्य सरकार द्वारा मनोनीत किए जाते हैं|



    • Note- अमेरिका का द्वितीय सदन सीनेट विश्व का सबसे शक्तिशाली सदन है तथा ब्रिटेन की लार्ड सभा विश्व का सबसे कमजोर सदन है|



    कार्यकाल- 

    • भारत की लोकसभा, ब्रिटेन की कॉमन सभा, चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस का कार्यकाल 5 वर्ष होता है|

    • अमेरिका में निम्न सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है|

    • भारत की राज्यसभा, अमेरिका की सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है|

    • ऑस्ट्रेलिया की सीनेट का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, जिसके आधे सदस्य 3 वर्ष बाद सेवानिवृत हो जाते हैं|


    • Note- अमेरिका, स्वीटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया में द्वितीय सदन में संघ की सभी इकाइयों का समान प्रतिनिधित्व होता है|



    व्यवस्थापिका के कार्य-

    • व्यवस्थापिका के कार्यों को दो भागों में बांटा जा सकता है-

    1. संवैधानिक या औपचारिक कार्य

    2. राजनीतिक या अनौपचारिक कार्य


    1. संवैधानिक या औपचारिक कार्य-

    1. कानून का निर्माण करना- यह व्यवस्थापिका का प्रमुख कार्य है|

    2. कार्यपालिका पर नियंत्रण रखना-


    1. वित्तीय कार्य

    • बजट पारित करना, कर लगाना, शासन के खर्चे स्वीकृत करना, व्यवस्थापिका वित रक्षक होती है| 


    1. कार्यकारी कार्य/ कार्यपालिका संबंधी कार्य- 

    • अमेरिका की व्यवस्थापिका के द्वितीय सदन सीनेट को कार्यकारी कार्य भी सोपे गए हैं|

    • अमेरिका में राष्ट्रपति द्वारा मंत्रियों, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, राजदूतों, वाणिज्यदूतों की नियुक्ति में सीनेट के साधारण बहुमत का समर्थन जरूरी होता है| अंतर्राष्ट्रीय संधियों में राष्ट्रपति को सीनेट के 2/3 बहुमत का समर्थन प्राप्त करना जरूरी होता है|

    • भारत में भी विकास कार्यक्रमो, योजनाओं, अंतरराष्ट्रीयो संधियों के लिए कार्यपालिका को व्यवस्थापिका (संसद) का समर्थन प्राप्त करना पड़ता है|


    1. न्यायिक कार्य-  

    • कुछ देशों में व्यवस्थापिका न्यायिक कार्य भी करती हैं| इंग्लैंड में लार्ड सभा सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है| लार्ड सभा के अध्यक्ष लॉर्ड चांसलर को सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी माना जाता है|

    • भारत में संसद को राष्ट्रपति के महाभियोग एवं न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया में आरोपों की जांच करने का अधिकार है|

    • अमेरिका में कांग्रेस को राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने का अधिकार है|

    • फ्रांस की सीनेट उच्च न्यायालय रह चुकी है|

    • स्वीटजरलैंड की राष्ट्रीय सभा को सविधान की व्याख्या करने का अधिकार है|


    1. निर्वाचन संबंधी कार्य-

    • भारतीय संसद राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है|

    • स्विट्जरलैंड में व्यवस्थापिका मंत्रियों, न्यायाधीशों, प्रधान सेनापति का चुनाव करती है|

    • जापान में डायट प्रधानमंत्री का चुनाव करती है|

    • चीन में राष्ट्रीय जनवादी कांग्रेस राष्ट्रपति का चुनाव करती है|

    • रूस में सुप्रीम सोवियत मंत्रीपरिषद, न्यायाधीशों का निर्वाचन करती है |


    1. संविधान संशोधन का कार्य

    2. विदेश नीति पर नियंत्रण का कार्य



    1. राजनीतिक या अनौपचारिक कार्य-

    1. प्रतिनिधित्व का कार्य- विधानमंडल के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं|

    2. विचार- विमर्श का कार्य


    1. हित स्वरूपीकरण एवं हित समूहीकरण के कार्य- व्यवस्थापिका के सदस्य विभिन्न समूह जैसे किसान, व्यापारी आदि का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा उन समूहों के हित साधन का कार्य करते हैं|


    1. राजनीतिक समाजीकरण एवं प्रशिक्षण का कार्य- व्यवस्थापिका में होने वाले वाद-विवाद  जनसंचार के माध्यम से जनता के पास पहुंचते हैं, जिनका विश्लेषण करने से जनता का राजनीतिक समाजीकरण एवं प्रशिक्षण होता है|

    2. प्रशासन के पर्यवेक्षण, निरीक्षण का कार्य |



    द्वितीय सदन की उपयोगिता-

    • व्यवस्थापिका एक सदनीय हो या द्विसदनीय इस पर वाद-विवाद चलता रहता है|

    • दूसरे सदन की उपयोगिता निर्धारित करने के लिए हमें द्वितीय सदन के गुण-दोषो पर विचार कर लेना चाहिए|


    • द्वितीय सदन के गुण

    1. प्रथम सदन पर अंकुश रखता है|

    2. प्रथम सदन द्वारा जल्दबाजी में पारित कानून को रोकता है|

    3. संघीय शासन प्रणाली के अंतर्गत राज्यों के हितों की रक्षा करता है|

    4. अल्पसंख्यकों एवं विशेष हितों का प्रतिनिधित्व करता है|

    5. उच्च स्तरीय विचारों की अभिव्यक्ति होती है|

    6. सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिए दूसरा सदन आवश्यक है|


    • लार्ड एक्टन “स्वतंत्रता की रक्षा के लिए द्वितीय सदन आवश्यक है|”

    • लार्ड जेम्स ब्राइस ने द्विसदनात्मक व्यवस्था को सार्वजनिक विमर्श के लिए सशक्त यंत्र कहा है|


    • द्वितीय सदन के दोष-

    1. दूसरा सदन या तो व्यर्थ है या शरारती- ओबीयस ने कहा है कि “यदि ऊपरी सदन निम्न सदन से सहमत हो जाता है तो व्यर्थ है और यदि विरोध करता है तो शरारती है|”

    2. द्वितीय सदन रूढ़िवादिता का गढ़ है|

    3. द्वितीय सदन से धन का अपव्यय एवं समय में अनावश्यक विलंब होता है|

    4. लास्की ने कहा है कि “यह गलत है कि संघ की रक्षा के लिए दूसरा सदन कोई प्रभावशाली गारंटी है|”

    5. दोनों सदनों में गतिरोध होने पर व्यवस्थापिका की कार्य की कुशलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है|

    6. बेंजामिन फ्रैंकलिन “द्वि सदनात्मक व्यवस्था उस तांगे की तरह है, जिसे दो घोड़े विपरीत दिशा में खींचते हैं|”



    व्यवस्थापिका के ह्रास से संबंधित विवाद- 

    • सबसे पहले जेम्स ब्राइस ने अपने कृति मॉडर्न डेमोक्रेसीज (1921) में व्यवस्थापिका के ह्रास होने की चर्चा की थी 

    • K.C व्हीयर ने अपने कृति ‘लेजिस्लेचर्स’ 1963 में व्यवस्थापिका के ह्रास की चर्चा की है| व्हीयर ने कहा है कि “समाजवादी व कल्याणकारी राज्यों में सरकार के कार्य बढ़ गए हैं, इसमें व्यवस्थापिका का कार्यक्षेत्र भी  बढ़ा है, लेकिन व्यवस्थापिका की तुलना में कार्यपालिका का कार्यक्षेत्र अधिक बढ़ गया है| इसलिए व्यवस्थापिका का कार्य क्षेत्र कार्यपालिका से छोटा हो गया है| व्हीयर के अनुसार प्रत्यायोजित विधि निर्माण के मामले में जरूर कार्यपालिका ने विधायिका के कार्य संभाल लिए हैं|

    • लॉर्ड हीवर्ट ने अपनी पुस्तक New Despotism में पतन का कारण प्रत्यायोजित विधान बताया है|

    • रैम्जे म्योर ने अपनी पुस्तक How Britain is Governed 1951 में कहा है कि “नौकरशाही फ्रेकलिन के दैत्य के समान है, जो अपने स्वामी (व्यवस्थापिका) को खा जाना चाहता है|”



    व्यवस्थापिका के पतन के कारण-

    1. कार्यपालिका का बढ़ता क्षेत्र- लोककल्याणकारी व समाजवादी राज्य की अवधारणा ने कार्यपालिका के कार्यों में अत्यधिक वृद्धि कर दी है, जिससे व्यवस्थापिका की भूमिका में कमी हो रही है|

    2. प्रत्यायोजित विधान- मुख्य विधि-निर्माण तो व्यवस्थापिका करती है, लेकिन मुख्य कानून को व्यावहारिक रूप में लागू करने के लिए कार्यपालिका विस्तृत नियम और विनियम बनाती है|

    3. न्यायिक पुनरावलोकन- न्यायपालिका की वह शक्ति जिसके द्वारा वह व्यवस्थापिका के कार्यों को अवैध घोषित कर सकते हैं|

    4. दलीय राजनीति- दलिय अनुशासन भी व्यवस्थापिका के कार्यों पर प्रतिबंध लगाता है|

    5. विशेषज्ञों की परिषदों व समितियों का विकास

    6. जनसंपर्क के साधन- जनसंपर्क के साधनो की वजह से व्यवस्थापिका की लोकप्रियता में कमी आयी है|

    7. अंतरराष्ट्रीय संगठनों का उद्भव


    • सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि विधायिका की प्रतिद्वंदी संस्थाओं का विस्तार तो हुआ है, परंतु विधान मंडल की भूमिका और महत्व में इतनी कमी नहीं आई है, जिसे विधानमंडल के ह्रास की संज्ञा दी जा सके| 

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