राजनीतिक व्यवस्था (Political System)
राजनीतिक व्यवस्था एक ऐसी स्वायत्त व्यवस्था है, जो एक निश्चित भूभाग से संबंधित मानव समाज में व्यवस्था बनाए रखने और उसमें उठने वाले हर मुद्दे पर अधिकारिक निर्णय लेने की वैध बाध्यकारी शक्ति से युक्त होती है|
व्यवस्था सिद्धांत व्यवहारवादी क्रांति की देन है| यह अनुभववादी उपागम है|
व्यवहारवादी क्रांति के कारण राजनीति विज्ञान में राज्य की जगह राजनीति व्यवस्था शब्द का प्रयोग किया गया|
राजनीतिक व्यवस्था शब्द में वे समस्त राजनीतिक अंतः क्रियाएं सन्निहित हैं, जो किसी समाज के अंदर घटित होती हैं और राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाती है|
राजनीतिक व्यवस्था/ प्रणाली शब्द राजनीतिक विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण की देन है|
व्यवस्था सिद्धांत का विकास-
व्यवस्था सिद्धांत का सर्वप्रथम प्रयोग जीव विज्ञान में हुआ|
व्यवस्था सिद्धांत को सर्वप्रथम जीवशास्त्री बर्टन लेंफी (1920) ने प्रस्तुत किया| वार्न बर्टन लेंफी ने कहा कि “शरीर एक व्यवस्था है और उसके विभिन्न अंग एक दूसरे पर निर्भर हैं|”
किंतु व्यवस्था सिद्धांत का प्रसार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ|
समाज विज्ञानों में व्यवस्था सिद्धांत का सबसे पहले प्रयोग मानव विज्ञान (Anthropology) में किया गया, जहां इसका प्रयोग रेडक्लिफ ब्राउन व मालिनोवस्की ने किया
रॉबर्ट के मर्टन तथा टालकोट पारसन्स ने इस सिद्धांत का प्रयोग समाजशास्त्र में किया| इनके अलावा होमन्स, रुथलिसबर्गर, डिक्सन आदि ने भी इस सिद्धांत का प्रयोग समाजशास्त्र में किया|
लोक शास्त्र के क्षेत्र में व्यवस्था सिद्धांत को चेस्टर बर्नाड ने सर्वप्रथम प्रयोग किया|
राजनीति विज्ञान में व्यवस्था सिद्धांत को डेविड ईस्टन ने सर्वप्रथम अपनाया|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्था सिद्धांत को पहले मैक्लीलैंड ने अपनाया, उसके बाद अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में व्यवस्था सिद्धांत को वैज्ञानिक रूप मार्टन केप्लान ने दिया|
मार्टन केप्लान ने अरस्तु को प्रथम व्यवस्थावादी माना है|
तुलनात्मक राजनीति के अंतर्गत व्यवस्था विश्लेषण सिद्धांत अमेरिकन राजनीतिशास्त्रियों की देन है, तथा तुलनात्मक राजनीति में व्यवस्था सिद्धांत का प्रयोग आमंड ने किया|
Note- व्यवस्था सिद्धांत व्यवहारवादी क्रांति या अंतःशास्त्रीय दृष्टिकोण की देन है|
व्यवस्था सिद्धांत की उत्पत्ति के कारण-
परंपरागत पद्धतियों या उपागमों के प्रति असंतोष
राजनीतिक विश्लेषण व अध्ययन के लिए व्यापक ढांचे की आवश्यकता
विचारधारा मुक्त व मूल्य मुक्त दृष्टिकोण की आवश्यकता
अंत अनुशासनात्मक, यथार्थ, वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता
व्यवस्था सिद्धांत की परिभाषाएं-
राबर्ट डहल “राजनीतिक व्यवस्था मानव संबंधों का वह स्थायी रूप है, जिसके अंतर्गत शक्ति, नियम और सत्ता महत्वपूर्ण मात्रा में अंतर्निहित है|
बर्टन लेंफी “व्यवस्था अंत क्रियाशील तत्वों का समूह है|
हॉल व फैग़न “व्यवस्था वस्तुओं के मध्य तथा उनके लक्षणों के बीच संबंधों सहित वस्तुओं का सेट है|”
कोलिन चेरी “व्यवस्था विशिष्ट लक्षणों का एकक या अनेक अंशो का यौगिक संपूर्ण है|”
डेविड ईस्टन “व्यवस्था अंत: संबंधों का सेट है|”
डेविड ईस्टन “राजनीतिक व्यवस्था मानवीय संबंधों के सतत प्रतिमान का नाम है|”
डेविड ईस्टन “किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को, जिससे समाज में बाध्यकारी या अधिकारपूर्ण नीति निर्धारण होते हैं, राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है|”
डेविड ईस्टन “राजनीतिक व्यवस्था मूल्यों के आधिकारिक आवंटन की व्यवस्था है|”
लासवैल एवं कैप्लान “राजनीतिक व्यवस्था ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कठोर दंड के वास्तविक प्रयोग, प्रभाव, वित्त तथा सत्ता शामिल रहती है|”
लासवैल एवं कैप्लान कठोर वंचनाओ (Severe Deprivations) को राजव्यवस्थाओं का मूलाधार मानते है|
ग्रैबियल ए. आमंड “राजनीतिक व्यवस्था सभी स्वतंत्र समाजों में पाई जाने वाली अंत:क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था है, जो अधिक या कम मात्रा में विधिक भौतिक बाध्यता के प्रयोग द्वारा अथवा प्रयोग की धमकी के द्वारा एकीकरण तथा अनुकूलन के कार्यों को करती हैं|”
आमंड और पावेल “राजनीतिक व्यवस्था से इसके अंगों की अंतर्निर्भरता और इसके पर्यावरण में किसी न किसी प्रकार की सीमा का बोध होता है|”
आमंड “राजनीतिक व्यवस्था समाज में व्यवस्था बनाए रखने और मांगों के रूपांतरण की एक वैध व्यवस्था है|”
पारसन्स “समाज व्यवस्था बारंबार होने वाली अंत: संबंधित सामाजिक क्रियाओं का सतत सेट है|”
रॉस एश्बी “व्यवस्था वातावरण से भिन्न, अंत: संबंधित परिवर्त्यों का एक सेट है, जो अनेक रीतियों से वातवरणात्मक बाधाओं के होते हुए भी अपने आप को बनाए रखती है|”
केटलिन “व्यवस्था इच्छाओं का नियंत्रण है|”
डेविड ईस्टन ने व्यवस्था सिद्धांत को राजनीतिविज्ञान के एकीकरण, विकास एवं मार्गदर्शन के लिए अवधारणात्मक विचारबंध (Conceptual Framework) के रूप में प्रयोग करने का सुझाव दिया है|
डेविड ईस्टन “राजनीतिक व्यवस्था अंत: क्रियाओ का ऐसा समूह है, जिसके अंतर्गत इनपुट को आउटपुट में बदल जाता है|”
राजनीतिक व्यवस्था सिद्धांत से संबंधित विद्वान-
डेविड ईस्टन- आगत-निर्गत मॉडल
आमंड- संरचनात्मक प्रक्रियात्मक मॉडल
मिशेल्स- विनिमय सिद्धांत, पुस्तक- The American polity 1962, अर्थशास्त्र से प्रभावित
आलमंड ने व्यवस्था के 3 गुण बताएं हैं-
व्यापकता- व्यवस्था के अंतर्गत सभी परस्पर क्रियाओं को शामिल किया जाता है|
अन्योन्याश्रय- जब व्यवस्था के एक अंग के गुणों में परिवर्तन आता है, तो उसका प्रभाव अन्य संघटको पर पर भी स्वत: पड़ता है|
सीमाएं- प्रत्येक व्यवस्था किसी एक बिंदु से प्रारंभ होती है तथा किसी एक निश्चित स्थान पर उसका अंत होता है|
आमंड और पावेल ने राजनीतिक व्यवस्था के निम्न लक्षण बताएं-
भागो की अंतर्निर्भरता या अंत: संबंधित गतिविधियां- जब व्यवस्था के एक अंग के गुणों में परिवर्तन आता है, तो उसका प्रभाव अन्य संघटको पर पर भी स्वत: पड़ता है|
राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं- प्रत्येक व्यवस्था किसी एक बिंदु से प्रारंभ होती है तथा किसी एक निश्चित स्थान पर उसका अंत होता है, अर्थात राजनीतिक व्यवस्था का एक निश्चित सीमांकन रहता है|
राजनीतिक व्यवस्था का पर्यावरण- राजनीतिक व्यवस्था का एक निश्चित पर्यावरण होता है|
वैध बाध्यकारी शक्ति- राजनीतिक व्यवस्था के पास वैध बाध्यकारी शक्ति होती है, इसी कारण राजनीतिक व्यवस्था अन्य व्यवस्थाओं को आदेश देने वाली तथा उनसे सर्वोपरि बनती है| लासवेल व केपलान ने इस लक्षण के कारण राजनीतिक व्यवस्था को गंभीर वचनों (Severe Deprivations) की संज्ञा दी है| आमंड और पावेल “वैध शक्ति वह सामान्य धारा है, जो राजनीतिक व्यवस्था के कार्यों में प्रवाहित रहती है, जो इसे इसका विशेष लक्षण और महत्व तथा व्यवस्था के रूप में सामंजस्य प्रदान करते हैं|”
समाज स्वयं एक व्यवस्था है, जिसका निर्माण राजनीतिक व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य उपव्यवस्थाओं जैसे- आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, धार्मिक और जैविक व्यवस्थाओं से होता है|
राजनीतिक व्यवस्था अन्य उपव्यवस्थाओं की तरह एक उपव्यवस्था है|
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था के तीन संघटक है-
प्रथम- राजनीतिक व्यवस्था नीतियों के माध्यम से मूल्यों का आवंटन है |
द्वितीय- इसका आवंटन अधिकारिक होता है|
तृतीय- इसका अधिकारिक आवंटन समाज पर बाह्य रूप से लागू होता है|
व्यवस्था अवधारणा के दो उपागम-
व्यवस्था अवधारणा को आनुभाविक परिचालनात्मकता या उपयोग की दृष्टि से दो उपागमो में व्यक्त किया जा सकता है-
प्रथम उपागम-
प्रथम उपागम के अनुसार व्यवस्था का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए, जबकि वस्तुएं महत्वपूर्ण ढंग से परस्पर संबंध हो तथा उनकी अंतनिर्भरता का स्तर काफी ऊंचा हो|
द्वितीय उपागम-
द्वितीय प्रकार के उपागमवादी व्यवस्था का सृजनात्मक पक्ष अपनाते हैं|
जैसे डेविड ईस्टन (A Framework for Political Analysis 1965)
ये प्रथम उपगामवादी दृष्टिकोण को असत्य व अप्राप्य मानते हैं|
ये व्यवस्था का उपयोग शोध के उद्देश्यों के लिए तथ्य संग्रह एवं आरंभिक विश्लेषण में सहायक तथा निर्देशक के रूप में करते हैं|
व्यवस्था की प्रमुख अवधारणाएं-
यंग ने व्यवस्था की अवधारणाओं को चार समूहो में रखा है, जो निम्न है-
वर्णन प्रधान अवधारणाएं
नियमन एवं संधारण विषयक अवधारणाएं
परिवर्तन विषयक अवधारणाएं
विध्वंस विषयक अवधारणाएं
वर्णन प्रधान अवधारणाएं-
ये अवधारणाएं विभिन्न व्यवस्थाओं के अंतर, उपलब्ध तथ्यों का वर्गीकरण, उनकी मौलिक संरचनाओं एवं प्रक्रियाओं का वर्णन करती है|
नियमन एवं संधारणक विषयक अवधारणाएं-
इसमें वे सभी अवधारणाएं आती है, जिनके माध्यम से व्यवस्थाएं अपनी पहचान सीमाओं से भीतर अपने को बनाए रखने के लिए विभिन्न साधनों एवं तरीकों को काम में लाती है|
स्थायित्व (Stability), संतुलन (equilibrium), अवसमस्थिति (Homeostasis), प्रतिसंभरण (Feedback), मरम्मत (repair), पुनरुत्पादन (reproduction), उत्क्रम मापन (entropy) आदि|
परिवर्तन विषयक अवधारणाएं-
ये व्यवस्थाओं के गत्यात्मक, किंतु अविघटनात्मक परिवर्तनों से संबंधित होती है|
विध्वंस विषयक अवधारणाएं-
ये विघटन, विलयन, विभंग या निपात को प्रदर्शित करती है|
राजविज्ञान में व्यवस्था सिद्धांत का विकास-
डेविड ईस्टन ने व्यवस्था सिद्धांत का प्रयोग अवधारणात्मक विचारबंद (Conceptual Framework) के रूप में किया है|
डेविड ईस्टन ने व्यवस्था सिद्धांत को प्रकार्यवाद (Functionalism) का प्रयोगात्मक रूप माना है|
मीहान ने व्यवस्था सिद्धांत को सामान्य व्यवस्था सिद्धांत एवं प्रकार्यवाद से अभिन्न माना है|
लेवियाथन के 22 वे अध्याय में हॉब्स ने व्यवस्था अवधारणा का उल्लेख किया है|
आमंड व पावेल (Comparative Politics: A Development Approach 1973) ने व्यवस्था की अवधारणा पर समाजशास्त्र, मानवशास्त्र तथा संचार विज्ञान के सिद्धांतों का प्रभाव स्वीकार किया है|
डेविड ईस्टन व कार्ल डॉयच की व्यवस्था अवधारणा समाजशास्त्र एवं संचार विज्ञान से निकली है|
आमंड व पावेल का व्यवस्था सिद्धांत फेडरलिस्ट पेपर्स के शक्ति पृथक्करण से सम्बद्ध है|
मार्टन ए केप्लान ने व्यवस्था सिद्धांत का अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विश्लेषण में उपयोग किया है|
व्यवस्था सिद्धांत का अनुभाविक शोध कार्य के लिए उपयोग आमंड, एप्टर, कोलमैन, एक्स्टीन, केप्लान आदि ने किया है|
राजव्यवस्था की विशेषताएं-
समाज स्वयं एक व्यवस्था है, जिसका निर्माण राजनीतिक व्यवस्था के अतिरिक्त अन्य उपव्यवस्थाओं जैसे- आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, धार्मिक और जैविक व्यवस्थाओं से होता है|
राजनीतिक व्यवस्था अन्य उपव्यवस्थाओं की तरह एक उपव्यवस्था है|
आमंड के अनुसार “समाज में राजव्यवस्था औचित्य पूर्ण, सुव्यवस्था-संधारण (Order-maintaining) अथवा रूपांतरण करने वाली व्यवस्था होती है|”
वाइजमैन के अनुसार “राजव्यवस्था में राजनीतिक संरचनाएं कर्ताओ या अभिकर्तावों द्वारा निष्पादित व्यक्ति कार्य, स्वकार्य, व्यक्ति अथवा सामूहिकताओं के मध्य वर्तमान अंतक्रिया प्रतिमान तथा राजनीतिक प्रक्रिया अतःग्रस्त होती है|”
केप्लान की राज्य व्यवस्था में भी अन्य व्यवस्थाओं की तरह पहचान योग्य विविध हित होते हैं, और ये हित परस्पर विरोधी न होकर एक दूसरे के पूरक होते हैं|
मिशैल/ मिचैल के अनुसार राजव्यवस्था की विशेषताए-
व्यवस्था व्यापक पर्यावरण के भीतर एक सतत रहने वाली एक ऐसी इकाई होती है, जिसके अंतर्गत अन्य घटक होते हैं|
उसमें पहचान एवं मापन किए जाने योग्य अंतनिर्भर तत्वों या चरों का समुच्चय होता है|
उसकी सीमाएं होती है, जो उसे सामान्य पर्यावरण से भिन्नता प्रदान करती है|
कुछ समस्याओं, उद्देश्यों अथवा लक्षण के इर्द-गिर्द उसका गठन किया जाता है और उसकी संरचनाओं का निर्माण होता है|
विशिष्ट समस्याओं एवं लक्ष्यो के विकास के साथ-साथ उसमें विशिष्ट संरचनाओं तथा प्रक्रियाओं का भी विकास होता है, इससे उसमें विभिन्नीकरण की मात्रा बढ़ती जाती है|
Note- पारसन्स तथा डेविड ईस्टन के परिप्रेक्ष्य अवधारणात्मक या संबोधक है, जबकि आमंड तथा केप्लान ने आनुभाविक शोध की दिशा में कार्य किया है|
डेविड ईस्टन का व्यवस्था सिद्धांत-
ईस्टन के व्यवस्था सिद्धांत के अन्य नाम-
Input-Output model
Black box model
Flow model
Books-
The political system: An enquiry into the state of political science 1953
A Framework for Political Analysis 1965 (इस पुस्तक में डेविड ईस्टन ने राजनीतिक जीवन को व्यवहार की व्यवस्था कहा है)
A system Analysis of Political life 1965
The analysis of political structure 1990
राजविज्ञान में व्यवस्था सिद्धांत के व्यापक उपयोगो पर डेविड ईस्टन में विस्तृत प्रभाव डाला है|
अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक डेविड ईस्टन ने 1953 में अपनी पुस्तक ‘पॉलिटिक्स सिस्टम- एन इंक्वायरी इन्टू द स्टेट ऑफ पॉलिटिकल साइंस’ में ऐसे सिद्धांत का निर्माण करना चाहा, जिसमें सारे सामाजिक विज्ञान समा जाये|
ईस्टन ने वर्ल्ड पॉलिटिक्स में प्रकाशित लेख ‘एन एप्रोच टू द एनालिसिस ऑफ पोलिटिकल सिस्टम’ 1957 के अंतर्गत सबसे पहले राजनीतिक प्रणाली की संकल्पना की रूपरेखा प्रस्तुत की|
डेविड ईस्टन ने अपनी पुस्तक पॉलीटिकल सिस्टम एंड इंक्वायरी इन टू द स्टेट्स ऑफ पॉलिटिकल साइंस 1953 में स्पष्ट किया कि राजनीति का सरोकार मूल्यों के अधिकारिक आवंटन से है| इस संकल्पना के अनुसार राजनीतिक प्रणाली उन तत्वों के समूह को कहते हैं, जो-
एक दूसरे से संबंधित हो|
एक दूसरे पर आश्रित हो|
एक दूसरे से क्रिया करते हो|
ईस्टन के शब्दों में “राजनीतिक प्रणाली किसी समाज के अंदर उन अंत:क्रियाओं की प्रणाली को कहते हैं, जिनके माध्यम से अनिवार्य या अधिकारिक आवंटन किए जाते हैं|”
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था उसके सदस्यों का समूह न होकर उनकी क्रियाओं का समुच्चय है|
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक जीवन, व्यवहार की ऐसी प्रक्रिया है, जो राजनीतिक व्यवस्था के अंदर सतत चलती रहती है|
ईस्टर्न का व्यवस्था सिद्धांत अंत अनुशासनात्मक है| डेविड ईस्टन ने जीव विज्ञान से व्यवस्था की अवधारणा ली है, संचार सिद्धांत से इनपुट आउटपुट व फीडबैक लिया है तथा अर्थशास्त्र से आवंटन शब्दावली ली है|
ईस्टन के अनुसार राजनीतिक प्रणाली एक खुली और अनुकूलनशील होती है|
Note- डेविड ईस्टन ने व्यवस्था की शोध संबंधी सृजनात्मक अवधारणा को 1953 में The Political System में प्रस्तुत किया तथा अपने अवधारणानात्मक विचारबंध का विवेचन 1965 में निम्न दो पुस्तकों में किया-
A Framework for Political Analysis
A System Analysis of Political Life
मीहान “डेविड ईस्टन राजविज्ञान का सर्वाधिक सुसंगत एवं सुव्यवस्थित प्रकार्यवादी है|”
Note- The Analysis of Political Structure 1990 पुस्तक में ईस्टन प्रकार्यों के स्थान पर राजनीतिक संरचनाओ में राज्य की संरचना को सर्वाधिक केंद्रीय स्थान देता है|
ईस्टन ने अपनी कृति ‘ए फ्रेमवर्क फॉर पॉलिटिकल एनालिसिस’ 1965 के अंतर्गत राजनीतिक प्रणाली के प्रतिरूप को निम्न रेखा चित्र के रूप में व्यक्त किया है-
डेविड ईस्टन के व्यवस्था विश्लेषण की मूल इकाई अंतक्रिया है| अंतक्रिया व्यवस्था के सदस्यों के व्यवहार से उत्पन्न होती है|
जब अंतक्रियाएं अन्वेषक की दृष्टि में एक अंतसंबंधों का सेट बन जाती है, तो वह व्यवस्था कहलाती है|
डेविड ईस्टन के व्यवस्था सिद्धांत की चार अवधारणाएं या आधार या आमुख-
व्यवस्था (System)
पर्यावरण (Environment)
अनुक्रिया (Response)
प्रतिसम्भरण या पुनर्निवेशन (Feedback)
व्यवस्था (System)-
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था, सामान्य व्यवस्था की सीमाओं के पार पर्यावरण से अंतक्रिया करने वाली तथा परस्पर अंतक्रिया करने वाली संरचनाओं, प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं का सेट है|
व्यवस्था खुली, अनुकूलनीय एवं गत्यात्मक होती है|
व्यवस्था पर्यावरण से विनिमय करती है|
व्यवस्था में सभी प्रकार की औपचारिक तथा अनौपचारिक प्रक्रियाएं, अंतक्रियाएं, प्रकार्य, संरचनाएं, मूल्य, आचार,व्यवहार आदि आते हैं|
व्यवस्था मूर्त यां अमूर्त, आनुभाविक अथवा परानुभाविक एवं प्रेक्षणीय या वैचारिक हो सकती है|
कुछ व्यवस्थाओं का स्वरूप मिश्रित अथवा अर्ध-मुर्त और अर्ध-अमूर्त भी हो सकता है|
उदाहरण- रेल व्यवस्था व शासन व्यवस्था मुर्त, आनुभाविक और प्रेक्षणीय है, तो नैतिक व्यवस्था अमूर्त, परानुभाविक, वैचारिक है| राजनीतिक, आर्थिक, व्यवसायिक आदि मिश्रित व्यवस्था है|
पर्यावरण-
प्रत्येक व्यवस्था का पर्यावरण होता है|
पर्यावरण का तात्पर्य सामाजिक व्यवस्था से है|
डेविड ईस्टन के अनुसार पर्यावरण से मांगे व समर्थन आगत के रूप में आते है| राजनीतिक प्रणाली अर्थात सरकार इस आगत को निर्गत (नीतियां व निर्णय) के रूप में बदल देती है| निर्गत को पुनर्निवेश (feedback) के लिए पर्यावरण में पहुंचा दिया जाता है| और जहां से पुनः मांगे उठती हैं| यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है, जिससे राजनीतिक व्यवस्था/ प्रणाली बनी रहती है|
अनुक्रिया (Response) या राजनीतिक प्रणाली/ रूपांतरण प्रक्रिया-
प्रत्येक राजव्यवस्था अपने पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया करती है|
वह अपने प्रति आने वाले संकटों, दबावो आदि का सामना करती है, इसके अतिरिक्त उसे स्वयं अपनी ओर से कुछ कार्य करने होते हैं, जैसे समाज में सुव्यवस्था तथा अपने स्वरूप को निरंतर व सतत बनाए रखना|
इन समस्त क्रियाओ को अनुक्रिया कहते हैं|
एक राज्य व्यवस्था दो प्रकार के कार्य करती है-
समाज में मूल्यो का बंटवारा
अपने अधिकांश सदस्यों को इस बंटवारे को बाध्यकारी मानने के लिए प्रेरित करना|
ये दोनों कार्य राजनीतिक जीवन के अनिवार्य अंग है| इनके बिना न तो तो राजव्यवस्था का अस्तित्व रहता है और न राजव्यवस्था के बिना समाज का|
अनुक्रिया के अंतर्गत राजनीतिक प्रणाली आगत (मांगे व समर्थन) को निर्गत (निर्णय और नीति) में रूपांतरित कर देती है, तथा निर्गत के रूप पर्यावरण की ओर प्रवाहित करती हैं|
आगत/ निवेश (input)-
राजनीतिक प्रणाली को पर्यावरण (समाज) से जो तत्व प्राप्त होते हैं, उन्हें आगत कहते हैं|
राजनीतिक प्रणाली को पर्यावरण से मांगे और समर्थन आगत के रूप में प्राप्त होते है|
राजनीतिक प्रणाली मूल्यो का आवंटन इसलिए करती है, क्योंकि इसको पर्यावरण से मांगे प्राप्त होती हैं और आवंटन अधिकारिक इसलिए बन जाते हैं, क्योंकि पर्यावरण से समर्थन प्राप्त होता है|
मांगे- डेविड ईस्टन ने चार प्रकार की मांगे बतायी-
वस्तुओं और सेवाओं के आवंटन की मांगे|
व्यवहार के विनियमन की मांगे|
राजनीतिक जीवन में सहभागिता से संबंधित मांगे|
संचार एवं सूचना से संबंधित मांगे|
समर्थन- डेविड ईस्टन ने समर्थन भी चार प्रकार के बताएं-
भौतिक/ माली समर्थन (Material Support)
कायदे- कानून के पालन का समर्थन
सहभागिता मूलक समर्थन
सहकारी सूचनाओं की ओर ध्यान देने की प्रवृत्ति का समर्थन
इसका तात्पर्य है कि राजनीतिक प्रणाली आगत (मांगे व समर्थन) को निर्गत (निर्णय और नीति) में रूपांतरित कर देती है, तथा निर्गत के रूप पर्यावरण की ओर प्रवाहित करते हैं|
निर्गत (Output)-
निर्गत में निर्णय व नीतियां शामिल है|
यही नीतियां व निर्णय अधिकारिक आवंटन का आधार बनते हैं|
निर्गत भी चार प्रकार के होते है-
दोहन
व्यवहार का विनियमन
वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, मान-सम्मान इत्यादि का वितरण
प्रतीकात्मक/ सांकेतिक निर्गत
पुनर्निवेश (Feedback)-
निर्गत पर्यावरण में जाकर उसके तत्वों से क्रिया करते हैं, जिससे नए आगत अस्तित्व में आते है| यह नए आगत पुनर्निवेश के माध्यम से राजनीतिक प्रणाली में वापस चले जाते हैं, इस तरह एक जटिल चक्र पूरा हो जाता है और नया चक्कर शुरू हो जाता है|
नियामक तंत्र -
डेविड ईस्टन के अनुसार आगत व निर्गत तत्वों में समायोजन होना जरूरी है| परंतु यदि मांगे बहुत बढ़ जाती है, तो राजनीतिक प्रणाली में तनाव पैदा हो जाएगा|
इसलिए मांगों को नियंत्रित करने के लिए नियामक तंत्रों की आवश्यकता होती है, अर्थात राजनीतिक व्यवस्था को अति भार से बचाने के लिए डेविड ईस्टन ने गेट कीपिंग या नियंत्रण व्यवस्था की है|
डेविड ईस्टन ने चार प्रकार के नियामक तंत्र बताएं है-
संरचनात्मक तंत्र या दबाव समूह और राजनीतिक दल- ये द्वारपाल की भूमिका निभाते हैं, जो हर मांग की जांच करके ही प्रणाली में आने देते हैं|
सांस्कृतिक तंत्र- इनका मांगों पर कड़ा अंकुश रहता है, ये मांगों को उचित और अनुचित के आधार पर जांचते हैं|
संप्रेषण वाहिकाएं (Communication Channels)- मांगे इनके माध्यम से राजनीतिक प्रणाली के अंदर पहुंचती है|
न्यूनीकरण प्रक्रिया (Reduction Process)- रूपांतरण प्रक्रिया के दौरान सरकार इन मांगों को नियंत्रित कर सकती है|
आलोचना-
राजनीतिक शक्ति जैसी संकल्पना के विश्लेषण के लिए उपयुक्त नहीं है|
मतदान व्यवहार अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं है|
डेविड ईस्टन के राजनीतिक व्यवस्था सिद्धांत के लाभ-
डेविड ईस्टन का राजनीतिक विश्लेषण व्यवस्था के सातत्य के साथ-साथ व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन और उसकी गतिशीलता को भी ध्यान में रखता है|
इससे सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन संभव हो गया है|
डेविड ईस्टन व्यवस्था के आगत तत्वों, निर्गत तत्वों, फीडबैक के द्वारा राजनीतिक व्यवस्था और पर्यावरण में यथार्थवादी गठजोड़ स्थापित करता है|
Social Plugin