राम मनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohiya) (1910-1967)
जीवन परिचय-
जन्म- 23 मार्च 1910
अकबरपुर, जिला-फैजाबाद, उत्तरप्रदेश
मृत्यु- 12 अक्टूबर 1967
पिता- हीरालाल, लोहिया ने अपने पिता से राष्ट्रीयता की भावना तथा अभावग्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति का विचार प्राप्त किया|
लोहिया जब 2 वर्ष के थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया था|
इन्होंने बम्बई से मैट्रिक की परीक्षा, बनारस से इंटरमीडिएट, कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से B.A की परीक्षा उत्तीर्ण की|
1924 में राम मनोहर ने गया कांग्रेस अधिवेशन में एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया|
1928 में कलकता में ‘साइमन वापस जाओ’ आंदोलन का नेतृत्व किया|
1932 में लोहिया ने बर्लिन के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय से पीएचडी की तथा इन्होंने अपना प्रसिद्ध शोध प्रबंध ‘नमक और सत्याग्रह’ जर्मन भाषा में लिखा|
1933 में लोहिया भारत लौटे|
विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ राम मनोहर लोहिया 20 वी सदी के महान समाजवादी थे|
17 मई 1934 को पटना में आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में समाजवादियों का सम्मेलन आयोजित हुआ, इस सम्मेलन में लोहिया ने भाग लिया और समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए|
उन्होंने गांधीवादी विचारों को अपनाते हुए, एशिया की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर समाजवाद की नई व्याख्या और नया कार्यक्रम प्रस्तुत किया|
1934 में बम्बई में समाजवादी दल की स्थापना सम्मेलन में उन्होंने ‘कांग्रेस सोशलिस्ट’ पत्र का संपादन किया| उन्होंने इस पत्र के कुछ लेखों में गांधीजी द्वारा चलाए जा रहे ग्राम सुधार कार्यक्रम की कड़ी आलोचना की| और आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में बनी कांग्रेस समाजवादी पार्टी से जुड़ गए|
Note- 21-22 अक्टूबर 1934 को बम्बई के बर्लि स्थित 'रेडिमनी टेरेस' में 150 समाजवादियों ने इकट्ठा होकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की| संस्थापक- जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव, मीनो मसानी
1936 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में यह निश्चय किया गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यालय में एक विदेश विभाग प्रारंभ किया जाए, जिसके अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरु चुने गए| नेहरू के आग्रह पर लोहिया ने विदेश विभाग का सचिव पद ग्रहण किया तथा 2 वर्ष तक विदेश सचिव के रूप में अपनी सेवाएं दी|
1939 में युद्ध विरोधी प्रचार के लिए लोहिया प्रथम बार बंदी बनाए गए|
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया| लोहिया लगभग 15 महीने भूमिगत रहकर आंदोलन चलाते रहे, बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लाहौर के किले में बंद कर दिया|
1942 में भूमिगत रहते हुए गुप्त रूप से उन्होंने ‘आजाद हिंद’ रेडियो स्टेशन की स्थापना की|
1946 में लोहिया ने नेपाल मुक्ति के लिए और पुर्तगालियों के विरुद्ध गोवा की मुक्ति के लिए आंदोलन को प्रेरित किया|
1948 में कांग्रेस के संविधान में परिवर्तन के बाद कांग्रेस समाजवादी पार्टी कांग्रेस से अलग होकर समाजवादी पार्टी बन गई तथा लोहिया इस समाजवादी पार्टी से जुड़ गए|
1949 में स्वतंत्रता के बाद लोहिया ने किसानों के हितार्थ हिंद किसान पंचायत का गठन किया|
जुलाई 1951 में फ्रैंकफर्ट (जर्मनी) में अंतरराष्ट्रीय समाजवादियों के सम्मेलन में भाग लिया|
1952 में समाजवादी दल और कृषक मजदूर प्रजा पार्टी का विलय हो गया और नए दल का नाम प्रजा समाजवादी दल हुआ|
पूरे एशिया में समाजवादी आंदोलन को संगठित करने के लिए लोहिया ने मार्च 1953 में बर्मा की राजधानी रंगून में एशियाई समाजवादी सम्मेलन का आयोजन किया|
1954 में लोहिया समाजवादी दल के महासचिव नियुक्त हुए|
1955 में कांग्रेस अवाड़ी (मद्रास) अधिवेशन के बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में फूट पड़ गई| फुट का कारण था- अवाड़ी अधिवेशन में कांग्रेस द्वारा समाजवाद का प्रस्ताव पारित करना| अतः 1955 में लोहिया ने प्रजा समाजवादी पार्टी छोड़ दी तथा लोहिया ने 1955 में ‘भारतीय समाजवादी दल’ की स्थापना की तथा इसके अध्यक्ष बने|
1962 में इन्होंने नेहरू के विरुद्ध फूलपुर (up) से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गये,1963 में फर्रुखाबाद से उपचुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे, तथा 1963 से 1967 तक लोकसभा के सदस्य रहे|
उन्होंने अंग्रेजी हटाओ, दाम बांधो (किसानों के लिए), जाति तोड़ो, हिमालय बचाओ तथा मातृभाषा के लिए हिंदी आंदोलन का संचालन किया|
1967 में आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ का नारा दिया|
लोहिया ने भारत व पाकिस्तान दोनों देशों के मध्य एकता की स्थापना के लिए भारत-पाक महासंघ बनाने का प्रस्ताव रखा|
अस्पृश्यता निवारण के लिए लोहिया ने विश्वनाथ मंदिर (काशी) में हरिजनों के प्रवेश हेतु आंदोलन चलाया|
इन्होंने अंतरजातीय विवाह, सहभोज, भूमि वितरण, आरक्षण, व्यस्क मताधिकार व प्रत्यक्ष चुनाव का समर्थन किया|
रचनाएं-
स्वराज्य क्यों और कैसे 1937
Aspects of Socialist Policy 1952
इतिहास चक्र (Wheel of history) 1955
Will to Power and other Writings 1956
नया समाज- नया मन
कांचन मुक्ति
समाजवादी एकता
मार्क्स, गांधी, समाजवाद 1963
सात क्रांतियां
पाकिस्तान में पलटनी सरकार
जर्मन सोशलिस्ट पार्टी
गिल्टी मैन ऑफ इंडियाज पार्टीशन 1960
The Caste System 1964
Foreign policy
Fragment of world mind 1965
The Mystery of stafford Cripps
समाचार पत्र-
1 Mankind (अंग्रेजी में)
2 जन (हिंदी में)
Note- भूमि सेना और एक घंटा देश को दो उनके मौलिक रचनाओं के कुछ उदाहरण है|
लोहिया का 4 सूत्री कार्यक्रम-
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय लोहिया ने 4 सूत्री कार्यक्रम पेश किया-
युद्ध में भारतीयों को शामिल करने का विरोध
देशी रियासतों में आंदोलन
ब्रिटिश माल-जहाजों से माल उतारने व लादने से इनकार करने वाले श्रमिकों का संगठन
युद्ध कर न देना
लोहिया का समान दूरी का सिद्धांत-
1953 में प्रजा समाजवादी दल के एक नेता अशोक मेहता ने ‘पिछड़े हुए अर्थतंत्र की राजनीतिक बाध्यताए’ नामक पुस्तिका लिखी|
इस पुस्तक में अशोक मेहता ने यह विचार प्रतिपादित किया कि कांग्रेस की विचारधारा समाजवादियों के निकट आ रही है, अतः भारत में समाजवाद की स्थापना के लिए कांग्रेस तथा प्रजा समाजवादी दल में सहयोग स्थापित हो जाना चाहिए|
इस विचार का विरोध करते हुए लोहिया ने समान दूरी का सिद्धांत नामक पुस्तिका में समान दूरी का सिद्धांत दिया|
इस सिद्धांत में लोहिया ने यह प्रतिपादित किया कि समाजवादियों (प्रजा समाजवादी दल) को, कांग्रेस तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) दोनों से समान रूप से दूर रहना चाहिए|
लोहिया ने कहा कि समाजवादियों (प्रजा समाजवादी दल) को कांग्रेस के साथ अटल मैत्री संबंध नहीं स्थापित करने चाहिए, बल्कि परिस्थितियों के अनुसार कांग्रेस या साम्यवादी पार्टी (CPI) में से किसी एक के साथ चुनावी समझौता कर लेना चाहिए|
कांग्रेस के नेतृत्व में समाजवाद की स्थापना होगी इस बात पर डॉ लोहिया को सदैव ही संदेह रहा|
इतिहास चक्र की संकल्पना (वर्ग एवं वर्ण परिवर्तन का सिद्धांत)-
लोहिया ने अपनी पुस्तक Wheel of History (इतिहास चक्र) 1955 में यह विचार प्रस्तुत किया कि इतिहास चक्र की गति से आगे बढ़ता है| इस चक्र में पुनरावृति होती रहती है|
अर्थात इतिहास सीधी रेखा में आगे नहीं बढ़ता है, बल्कि चक्रीय गति से आगे बढ़ता है, जिसमें देश उभरते व पतन के गर्त में गिरते हैं|
लोहिया का इतिहास चक्र सिद्धांत, अरस्तु के संविधानो के चक्र सिद्धांत से समानता रखता है|
लोहिया मार्क्स की द्वंदात्मक भौतिकवाद की धारणा से प्रभावित था, लेकिन उन्होंने इसे संशोधन के साथ स्वीकार किया है|
मार्क्सवाद जहां पदार्थ पर बल देता है, वही लोहिया ने चेतना पर अधिक जोर दिया है|
लोहिया के अनुसार ‘घटनाओं का तर्क’ व ‘इच्छा का तर्क’ इतिहास का मार्ग निर्धारण करते है|
लोहिया के अनुसार जाति और वर्ग ऐतिहासिक गतिविज्ञान की दो शक्तियां है, इन दोनों में संघर्ष की वजह से इतिहास आगे बढ़ता है|
जाति व वर्ग गुण में एक-दूसरे के विपरीत होते हैं, अतः उनमे स्वाभाविक संघर्ष होता है|
जाति रूढ़िवादिता का प्रतीक है, जो समाज की पुरानी परंपराओं पर चलने को विवश करती है| जबकि वर्ग गत्यात्मक शक्ति का प्रतीक है, जो सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देता है|
जाति एक निष्क्रिय, गतिहीन, रूढ़िवादी, सुगढ़ या सुडोल ढांचा है, जबकि वर्ग एक शिथिल या ढीला-ढाला संगठन है|
जातियां शिथिल होकर वर्गों में बदल जाती है और वर्ग सुगठित होकर जातियों में बदल जाता है|
लोहिया “अब तक का मानव इतिहास जातियों तथा वर्गों के बीच आंतरिक गति का इतिहास है, जातियां शिथिल होकर वर्ग में परिणित हो जाती हैं और वर्ग संगठित होकर जातियों का रूप धारण कर लेते हैं|”
लोहिया के अनुसार भारत के इतिहास में दासता का एक लंबा दौर जाति प्रथा का परिणाम था| इस जाति प्रथा के विरुद्ध संघर्ष करने वाले को ही सच्चा क्रांतिकारी मानना चाहिए|
डॉ लोहिया “जाति अवसर को सीमित करती है, सीमित अवसर योग्यता को संकुचित कर देता है, संकुचित योग्यता अवसर को और आगे रोकती है| जहां जाति का प्रभुत्व है, वहां अवसर और योग्यता लोगों के संकुचित दायरों में और अधिक सीमित होती चली जाती है|”
लोहिया ने जाति-प्रथा को समाप्त करने पर बल दिया|
लोहिया “यह वर्गों व जातियों तथा विचार प्रेरक प्रवृत्तियों व सभ्यता के मध्य संघर्ष, इतिहास में तब तक चलता रहेगा, जब तक कि मनुष्य में बुराई समाप्त नहीं हो जाती|”
लोहिया की जातियां व वर्ग के बीच संघर्ष की धारणा इटली के समाजवादी पैरेटो के अदला-बदली के सिद्धांत के समान है| पैरेटो के सिद्धांत में जहां इतिहास में संघर्ष किरायाजीवियों (लगान उपजीवी भूस्वामी) तथा सट्टेबाजों (द्रव्य के स्वामी धनिक) के मध्य होता है
समाजवाद पर विचार (नवीन समाजवाद या एशियाई समाजवाद)-
लोहिया ने नवीन समाजवाद का वर्णन अपनी पुस्तक मार्क्स, गांधी एंड सोशलिज्म 1963 में किया है|
लोहिया के समाजवाद पर मार्क्स और गांधी का प्रभाव दिखाई देता है| लोहिया के मत में भारतीय समाजवाद यूरोप का समाजवाद नहीं हो सकता, वह तो भारतीय परिस्थितियों एवं इतिहास के अनुरूप ही होगा|
लोहिया परंपरागत समाजवाद (मार्क्सवाद) को मरणशील व्यवस्था या एक मरा हुआ सिद्धांत मानते थे इसलिए उसने नवीन समाजवाद का नारा दिया और जिसके चार मूल आधार बताए|
लोहिया का तर्क था कि मार्क्स ने तीसरी दुनिया की विशिष्ट एवं असाधारण दशाओं पर पर्याप्त रूप से ध्यान नहीं दिया| मार्क्स ने उत्पादन की एशियाई प्रणाली की बात तो की, पर मूलभूत मुद्दों से बचने की यह एक चाल थी|
मार्क्स ने जहां गरीबों व वर्ग को महत्व दिया है, वहीं लोहिया ने गरीबी व जाति को महत्व दिया है| लोहिया के अनुसार गरीबी व सामाजिक विभाजन अंतरसंबंधित हैं तथा एक दूसरे की दुर्बलताो पर फल-फूल रहे हैं|
लोहिया के अनुसार “गरीबी के खिलाफ युद्ध तभी कामयाब होगा, जब वह साथ-साथ जाति के खिलाफ भी हो|”
लोहिया “समाजवाद का विचार काफी समय तक पूंजीवाद व साम्यवाद के समूह के पीछे रहा तथा उधार की श्वासों पर जीवित रहा|”
लोहिया का समाजवाद मार्क्स के वैज्ञानिक समाजवाद तथा गांधी के सर्वोदय, अहिंसा व सत्याग्रह तथा फेबियनवाद के मिश्रण से बना नवीन समाजवाद है|
लोहिया के नवीन समाजवाद की स्थापना के चार मूल आधार है-
समानता
लोकतंत्र
अहिंसा
विकेंद्रीकरण
1959 में नव समाजवाद के निम्न 6 तत्व बताएं-
आय-व्यय क्षेत्र में अधिकतम समानता उपलब्ध कराना|
व्यस्क मताधिकार पर आधारित विश्व संसद की स्थापना करना|
लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना|
विश्व के सभी देशों में में आर्थिक निर्भरता अधिक बढ़ जाने के कारण संपूर्ण विश्व में जीवन स्तर को ऊंचा करना|
विचार प्रकट करने, समुदाय बनाने की स्वतंत्रता देना तथा लोकतंत्र की रक्षा के लिए सामाजिक तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता सुरक्षित रखना|
सरकार द्वारा बलपूर्वक अनुचित कार्य कराए जाने का विरोध करना| इसके लिए गांधीजी की सविनय अवज्ञा आंदोलन की तकनीक का प्रयोग करना|
लोहिया “गरीबी के समान बंटवारे का काम समाजवाद नहीं है, बल्कि समृद्धि का अधिक से अधिक समान वितरण समाजवाद कहलाता है|”
लोहिया नेहरू के समाजवाद को ढकोसला कहते थे| लोहिया “एशिया का उदारवादी नेता (नेहरू) एक ढोंगी और केवल शब्द जाल वाला व्यक्ति हैं, जिसमें यथार्थ का अभाव है, वह भाषण में समाजवादी लेकिन कर्म में उदारवादी है|”
Note- लोहिया के समाजवादी व्यवस्था के संबंध में लोहिया पर मार्क्स का प्रभाव मात्र सीमांत ही है| मार्क्स की तुलना में उनके समाजवादी चिंतन पर गांधी का प्रभाव अधिक है| डॉ वी पी वर्मा “भारत के समाजवादी दल के अन्य नेताओं (आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण आदि) की तुलना में लोहिया पर गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव अधिक था|”
राज्य का संगठन (चौखंभा सिद्धांत)-
लोहिया की राज्य संगठन व्यवस्था को ‘चौखंभा सिद्धांत’ कहा जाता है| लोहिया ने राजनीतिक क्षेत्र में विकेंद्रीकृत व्यवस्था की स्थापना के लिए चार स्तंभों वाले राज्य की कल्पना की|
लोहिया ने अपनी पुस्तक ‘समाजवादी नीति के विविध पक्ष (Aspects of socialist policy)’ 1952 व fragment of world mind 1965 में यह तर्क दिया है कि समाज की संरचना में चार स्तर (स्तंभ) पाए जाते हैं-
गांव (2) मंडल (जिला) (3) प्रांत (4) राष्ट्र
यदि राज्य का संगठन इन चारों स्तरों के अनुरूप किया जाए तो, वह समुदाय का सच्चा प्रतिनिधि होगा जिसे चौखंभा राज्य कहा जाएगा|
चारो स्तरों में सावयायी एकता है तथा चार खंबे अपना पृथक-पृथक अस्तित्व रखते हुए भी एक छत के माध्यम से जुड़े होते हैं|
प्रत्येक स्तंभ के कार्य व शक्तियां निर्धारित कर दी जाए|
यह व्यवस्था केंद्रीकरण और विकेंद्रीकरण दो विरोधी अवधारणाओं में सामंजस्य स्थापित करेगी|
लोहिया के चौखंभा राज्य की निम्न विशेषताएं हैं-
जिलाधीश पद समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि यह प्रशासनिक केंद्रीकरण का प्रतीक है|
पुलिस और कल्याणकारी कार्य गांव और नगर पंचायतों के अधीन
कुटीर उद्योगों को बढ़ावा
बेरोजगारी दूर करना
लोहिया इस प्रस्तावित व्यवस्था को विश्व स्तर पर लागू करने का सुझाव देता है जो विश्व संसद या विश्व सरकार होगी|
चौखंबा राज्य में ‘समुदाय द्वारा, समुदाय के लिए, समुदाय का शासन’ स्थापित होता है|
Note- लोहिया का चौखंबा सिद्धांत गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा से भिन्न है| गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा में ग्राम आत्मनिर्भर है, जबकि लोहिया के चौखंबा सिद्धांत में गांव एक दूसरे पर अन्योन्याश्रित है|
विश्व व्यवस्था-
लोहिया के मत विश्व व्यवस्था की स्थापना के लिए साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों ही अपर्याप्त हैं|
लोहिया की विश्व व्यवस्था के अंतर्गत सार्वभौमिक नागरिकता, मानवाधिकारों का संरक्षण, प्रजातांत्रिक प्रतिनिधित्व, श्रम की प्रतिष्ठा, समता और सम्मान सभी को सुलभ होंगे|
लोहिया “कोई भी समाजवादी नहीं है, जब तक कि वह सामान्यत: सभी राष्ट्रों और चमड़ीवालों के साथ स्वतंत्र, स्पष्ट और दोस्ताना नहीं है|”
लोहिया नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति के कटु आलोचक थे| इसके बजाय वे अंतरराष्ट्रीय मामलों में कुछ विश्वसनीय मित्र बनाने के पक्षधर थे|
लोहिया नव स्वतंत्र एशियाई देशों को मिलाकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में तृतीय शक्ति बनाने के पक्षधर थे|
उन्होंने चौखंबा सिद्धांत को बढ़ाते हुए पांचवें खंबे के रूप में विश्व सरकार की स्थापना का विचार दिया|
भारतीय समाजवादी आंदोलन के चार युग-
लोहिया ने भारतीय समाजवादी आंदोलन को चार युग में बांटा-
1934 से 1946 तक- अदरखी जमाना या मिर्च युग
लोहिया के अनुसार 1934 में असली समाजवादी धारा थी|
लोहिया के अनुसार प्रथम युग जरा गर्मी लाने वाला, कुछ थोड़ा सा आगे जाने वाला, कुछ ज्यादा तीव्रता व पैनेप से काम करने वाला युग था|
1947 से 1951 तक- उफान वाला, दिखावटी ताकत का युग
1952 से 1955 तक- एक तोड़ तथा तनाव का युग, आपस में खींचातानी या मोड का युग
1956 से आगे- क्रांतिकारी युग
लोहिया “समाजवादी बुरे हो सकते हैं, समाजवाद नहीं|”
धर्म और राजनीति-
लोहिया धर्म-निरपेक्ष राज्य के प्रबल समर्थक थे|
लोहिया के विचार में धर्म एवं राजनीति में घनिष्ठ संबंध है| धर्म का कार्य अच्छाई को करना है और राजनीति का कार्य बुराई से लड़ना है| धर्म सकारात्मक एवं दीर्घकालीन होता है, पर राजनीति नकारात्मक तथा अल्पकालीन होती है| धर्म का स्वरूप शांत होता है, जबकि राजनीति का रौद्र| धर्म एवं राजनीति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं| अतः वे एक-दूसरे को परिपक्व और पूर्ण बनाते हैं|
अधिकार-
लोहिया ने मानव जीवन को सुसंस्कृत एवं गौरवमय बनाने के लिए मौलिक अधिकारों को लोकतांत्रिक समाजवादी जीवन का अनिवार्य अंग माना है|
लोहिया ने बौद्धिक स्वतंत्रता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता व धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का समर्थन किया है|
उन्होंने वैधानिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक सभी क्षेत्रों में समता के अधिकार का समर्थन किया है|
सप्तक्रांति-
लोहिया ने अपने समाजवाद की पुष्टि के लिए सप्तक्रांति पर बल दिया है, जो निम्न है-
रंगभेद की असमानता के विरुद्ध संघर्ष के लिए क्रांति
नर-नारी की समानता के लिए क्रांति
जाति प्रथा के विरुद्ध तथा कमजोर और पिछड़े वर्ग को विशेष सहायता के लिए क्रांति
विदेशी गुलामी के खिलाफ और स्वतंत्रता तथा विश्व लोक राज्य के लिए क्रांति
निजी पूंजी की विषमताओं के विरुद्ध और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए क्रांति
निजी जीवन में अन्याय, हस्तक्षेप के विरुद्ध और लोकतंत्रीय पद्धति के लिए क्रांति
अस्त्र-शस्त्र के विरुद्ध और सत्याग्रह के लिए क्रांति|
भारत विभाजन के दोषी-
लोहिया ने 1958 में प्रकाशित मौलाना आजाद की प्रसिद्ध पुस्तक India wins Freedom के विरोध में Guilty men of india’s partition लिखी|
जहां मौलाना आजाद ने भारत-पाक विभाजन के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेताओं विशेषकर जवाहरलाल नेहरू व सरदार पटेल को उत्तरदाई ठहराया था, वही लोहिया ने भारत पाक विभाजन के निम्न 8 कारण बताएं-
ब्रिटिश शासन की धूर्तता व छल कपट पूर्ण नीति|
कांग्रेस के नेतृत्व की गिरती हुई लोकप्रियता|
हिंदू मुस्लिम दंगों की स्थिति
जनता में साहस व दृढ़ता का अभाव|
गांधीजी की अहिंसा
मुस्लिम लीग की पृथकतावादी नीति
हिंदुओं में अहंकार की प्रवृत्ति
अवसरो के सदुपयोग का अभाव
इसके अलावा अखंड भारत के समर्थकों को भी भारत विभाजन का दोषी बताया| जिन्होंने ब्रिटेन और मुस्लिम लीग के विभाजन के कार्य में मदद की तथा मुसलमानों को एक ही राष्ट्र के अंतर्गत हिंदुओं के समीप लाने के लिए कोई कार्य नहीं किया|
हिंदुत्व की भावना के साथ लोहिया ने नेहरू के निर्णय लेने की महान भूल को भी भारत के विभाजन का दोषी माना है|
जनता का सत्याग्रह का अधिकार-
लोहिया गांधीजी की सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा की पद्धति से प्रभावित थे|
इसमें लोहिया ने प्रतिपादित किया की जनता को सत्याग्रह का अधिकार होना चाहिए|
जनता को न्याय की प्राप्ति के लिए मतदान के स्थान पर सत्याग्रह जैसे साधनों, प्रत्यक्ष कार्यवाही को अपनाना चाहिए|
तात्कालिकता का सिद्धांत-
यह सिद्धांत युवाओं में बहुत लोकप्रिय था|
लोहिया किसी अन्याय को चुनाव तक सहने के पक्ष में नहीं थे, बल्कि तुरंत प्रत्यक्ष कार्यवाही द्वारा अन्याय का तत्काल विरोध करने का समर्थन करते थे|
लोहिया का प्रसिद्ध कथन है कि “जिंदा कोमें 5 वर्ष तक प्रतीक्षा नहीं करती|”
लोहिया के अनुसार संगठन का निर्माण व कार्य साथ-साथ चलने चाहिए|
लोहिया ने रचनात्मक आतंकवाद व उग्रता निर्माण की दृढ़ता से वकालत की है|
स्थायी नागरिक अवज्ञा का सिद्धांत-
लोहिया लियोन ट्राटस्की के स्थायी क्रांति सिद्धांत से प्रभावित थे|
लोहिया ने अन्याय के विरुद्ध शांतिपूर्ण तरीकों से स्थायी नागरिक अवज्ञा की अवधारणा दी है, जिसके तहत प्रत्यक्ष कार्यवाही पर बल दिया है, अर्थात हड़ताल, धरने, प्रदर्शन, असहयोग, जेल भरो आंदोलन करना|
लोहिया के मत में सामाजिक क्रांति के तीन मूल तत्व है- कारावास, कुदाल व मतदान| यहां कुदाल (फावड़ा) कर्मशीलता का, मतदान जनतंत्र का, व कारावास बुराई के प्रतिरोध के सीधे उपाय का प्रतीक है|
जाति प्रथा का प्रबल विरोध-
लोहिया ने जाति प्रथा का प्रबल विरोध किया है तथा जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए चौतरफा हमले का आह्वान किया|
लोहिया का मानना था कि अभी तक जाति प्रथा पर केवल डेढ़ मुखी हमले हुए हैं- एक धार्मिक व आधा सामाजिक, इसलिए यह हजारों वर्षों से समाप्त नहीं हुई है|
चौतरफा हमला-
धार्मिक हमला- धर्मगुरु व धर्म ग्रंथों द्वारा संदेश
सामाजिक हमला- अंतर्जातीय विवाह व अंतर्जातीय सहयोग
राजकीय हमला- व्यस्क मताधिकार, पिछड़ी तथा दलित जातियों के विकास हेतु विशेष अवसरों की व्यवस्था|
लोहिया निचली जातियों में इन 5 वर्गों को शामिल करते हैं-1 महिला 2 शूद्र 3 हरिजन 4 मुसलमान 5 आदिवासी
आर्थिक हमला- मजदूरों की मजदूरी बढ़ाना, अलाभकर जोतो से लगान खत्म करना, जमीन पर जोतने वाले को जमीन का मालिकाना अधिकार देना|
चौतरफा हमले के अलावा कुछ और उपाय लोहिया ने जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए सुझाए हैं-
ऊंची जाति के युवाओं को जाति प्रथा के विरुद्ध उठने की आवश्यकता है| लोहिया के शब्दों में “ऊंची जाति के युवजन को छोटी जातियों के लिए खाद बन जाने का निश्चय करना चाहिए, ताकि एक बार तो जनता अपनी पूरी तेजस्विता के साथ पल्लवित-पुष्पित हो|”
नीची जातियों के युवजन को भी राष्ट्र के नेतृत्व का भार वहन करना है तथा राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए|
स्वतंत्रता संबंधी विचार-
लोहिया के मत में स्वतंत्रता मानवीय स्वभाव तथा मानव विकास की पहली शर्त है|
लोहिया स्वतंत्रता के दो विशेष प्रकार बताते हैं-
संपत्ति संबंधी स्वतंत्रता- राज्य द्वारा नियंत्रित हो
गैर-संपत्ति स्वतंत्रता- इसका संबंध व्यक्ति के आंतरिक मन और जीवन से है, जिस पर राज्य का नियंत्रण नहीं होना चाहिए|
समानता संबंधी विचार-
लोहिया के अनुसार स्वतंत्रता और समानता अविभाज्य है| समानता के बिना स्वतंत्रता की कल्पना नहीं की जा सकती है|
समानता के दो प्रकार-
अमूर्त समानता- अमूर्त समानता एक वातावरण, मनोवेग या कोई स्वपन होता है, जिसके आधार पर राजनीतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक व्यवस्था की रचना की जाए| यह अव्यवहारिक भावना मात्र है|
मूर्त समानता- यह व्यवहार में लागू हो सकती हैं|
संपूर्ण दक्षता का सिद्धांत-
लोहिया का यह सिद्धांत स्वतंत्रता से संबंधित है
यह अधिकतम दक्षता के सिद्धांत का उल्टा है|
अधिकतम दक्षता के अंतर्गत व्यक्ति, स्वतंत्रता की मांग स्वयं के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास या आत्म विकास के लिए करता है| उदारवादी, पूंजीवादी लोकतंत्र में यह सिद्धांत पाया जाता है|
जबकि संपूर्ण दक्षता सिद्धांत के तहत स्वतंत्रता की मांग का दोहरा उद्देश्य होता है- स्वयं के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के साथ-साथ संपूर्ण मानवता का विकास| लोहिया का नवीन समाजवाद इस सिद्धांत का समर्थक है|
स्त्री संबंधी विचार-
लोहिया स्त्री मुक्ति के प्रबल समर्थक थे| लोहिया का मानना था कि विश्व में दो वस्तुएं प्राप्त करने योग्य है- एक ईश्वर तथा दूसरी स्त्री|
लोहिया का मत था कि ‘शादी और बच्चे सार्वजनिक कार्यकर्ता को भ्रष्ट कर सकते हैं|’ यह बात लोहिया ने स्त्री कार्यकर्ता तथा पुरुष कार्यकर्ता दोनों के लिए कही|
लोहिया “भारतीय नारी द्रोपदी जैसी हो, जिसने कि कभी भी किसी पुरुष से दिमागी हार नहीं मानी| नारी को गठरी के समान नहीं बनना है, परंतु नारी इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुषों को गठरी बनाकर अपने साथ ले चले|”
हिंद-पाक महासंघ-
लोहिया हिंदुस्तान व पाकिस्तान महासंघ की कल्पना करते हैं, जो इनका आदर्शवादी स्वपन था|
लोहिया दोनों राज्यों की सरकारों से अधिक, जनता से यह चाहते थे कि वह जागरूक होकर हिंद-पाक की एकता के लिए प्रयत्न करें|
महासंघ में राष्ट्रपति अथवा प्रधानमंत्री का पद पाकिस्तान को दिया जाना चाहिए|
लोहिया कश्मीर को महासंघ के बीच में रखना चाहते थे|
लोहिया “हिंदुस्तान और पाकिस्तान को एक ही धरती के अभी-अभी दो टुकड़े हुए हैं, अगर दोनों देशों के लोग थोड़ी भी विद्या बुद्धि से काम करते चले तो 5-10 वर्ष में फिर से एक होकर रहेंगे| मैं इस सपने को देखता हूं कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान फिर से किसी न किसी एक इकाई में बंधे|
भाषा संबंधी विचार-
लोहिया हिंदी को भारत की राजभाषा और देश की संपर्क भाषा बनाने के समर्थक थे|
वे अंग्रेजी को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मानसिक दासता का प्रतीक मानते थे|
अर्थात लोहिया केवल राजनीतिक परतंत्रता के ही विरोधी नहीं थे, बल्कि मानसिक दासता की प्रत्येक स्थिति के विरोधी थे|
लोहिया के अनुसार जिस देश और जाति की अपनी भाषा नहीं होती, उसका पतन अवश्य होता है|
लोहिया के मत में लोक भाषा के बिना लोकतंत्र का सफल संचालन संभव नहीं है|
लोहिया भाषा के संबंध में यथार्थवादी थे| वे अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अंग्रेजी के विरुद्ध नहीं थे, बल्कि सरकारी कामकाज के रूप में अंग्रेजी भाषा की जगह हिंदी भाषा अपनाने पर बल देते थे|
हिंदी भाषा के साथ-साथ भारत की प्रादेशिक भाषाओं के भी समर्थक थे|
लोहिया के शब्दों में “हिंदी और हिंदुस्तानी का झगड़ा केवल एक से है और वह झगड़ा है अंग्रेजी से|”
गांधीवादियों की श्रेणियां-
लोहिया ने गांधीवादियों की तीन श्रेणियां बतायी-
सरकारी गांधीवादी- इसमें लोहिया ने ऐसे कांग्रेसियों को रखा, जो महात्मा गांधी का नाम जपते हुए सत्ता की सीढ़ियां चढ़ते गए| जैसे-नेहरू
मठाधीश गांधीवादी- इसमें वे लोग शामिल हैं, जो गांधी के नाम पर स्थापित संस्थानों के मुखिया बने थे| जैसे-विनोबा भावे
कुजात गांधीवादी- इसमें वे गांधीवादी शामिल हैं, जो गांधीजी की कहीं बातों पर आंख मूंदकर नहीं चलते, बल्कि अपनी सूझबूझ व चिंतन-मनन का प्रयोग करते है| ये कुजात गांधीवादी ही गांधी की विरासत के असली हकदार हैं| लोहिया स्वयं को इसी श्रेणी में रखता है|
3 आना बनाम 15 आना-
यह राम मनोहर लोहिया का ऐतिहासिक भाषण था, जो उन्होंने 21 अगस्त 1963 को लोकसभा में दिया था|
इस भाषण में लोहिया ने आर्थिक विषमता पर सवाल उठाए तथा तात्कालिक प्रधानमंत्री नेहरू को चुनौती दी|
लोहिया ने इस भाषण में कहा कि ‘देश की 60 फ़ीसदी आबादी 3 आना प्रतिदिन पर जीवन यापन कर रही है और प्रधानमंत्री के कुत्ते पर प्रतिदिन ₹3 खर्च हो रहा है तथा खुद प्रधानमंत्री पर प्रतिदिन ₹25000 खर्च हो रहे हैं|
तथा लोहिया ने नेहरू को चुनौती दी, कि मेरी बात को झूठा साबित करके दिखाएं|
पंडित नेहरू ने लोहिया की बातों का विरोध किया और कहा कि ‘योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 70 फ़ीसदी लोग 15 आना रोज कमा रहे हैं|’
तब लोहिया ने कहा कि 3 आना बनाम 15 आना छोड़िए, ₹25000 में तो लाखों आने होते हैं|
ऐसा माना जाता है कि तात्कालिक अर्थशास्त्री कृष्णनाथ के साथ मिलकर लोहिया ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था|
कुछ तथ्य-
लोहिया एक नवीन समाजवादी, विश्व सभ्यता के सृष्टा, एकांकी सभ्यताओं के पूर्तिकर्ता, गांधीवाद- मार्क्सवाद के संशोधनकर्ता, 20 वीं सदी का महान समाजवादी थे| जिनका संपूर्ण जीवन दुखी, शोषित, पीड़ित जनता को समर्पित था|
लोहिया ने समाजवादी दल को ‘तूफानी पेट्रोल’ की संज्ञा दी है|
लोहिया के मत में भारतीय जीवन में जाति सर्वाधिक प्रभावशाली तत्व है|
लोहिया ने एशियाई व भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप समाजवाद का समर्थन किया| इस समाजवाद को नवीन समाजवाद कहते हैं|
लोहिया भारत की विदेश नीति के आलोचक थे| उन्होंने आग्रह किया कि भारत को राष्ट्रमंडल से संबंध तोड़ लेने चाहिए|
प्रोफेसर N.G रंगा ने उन्हें ‘विद्रोहियों का सरताज’ कहा है|
अटल बिहारी ने लोहिया को मौलिक विचारों का प्रतिपादक, क्रांतिदर्शी और सच्चे समाजवाद का प्रेरक स्तंभ कहा है|
लोहिया मानववादी मूल्यों जैसे स्वतंत्रता, स्वतंत्र चिंतन, विचार अभिव्यक्ति, समता, परस्पर सहयोग, सद्भाव, इमानदारी और नैतिक गुणों को मानव जीवन में अधिक महत्व देते है|
लोहिया ने वर्णवाद, जाति-प्रथा, नर-नारी असमानता, अस्पृश्यता, रंगभेद नीति जैसी सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया है|
परतंत्र भारत की दुर्दशा पर लोहिया ने लिखा था कि “सारा देश टूटा हुआ है, देश की आत्मा टूट गई है| मैं जानना चाहता हूं कि क्या इतिहास में कोई और देश भी ऐसा रहा है जो इतना टूटा हुआ है, जितना कि हिंदुस्तान|”
1939 में 4 सूत्री कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के कारण जब लोहिया गिरफ्तार हुए तब महात्मा गांधी ने कहा “जब तक लोहिया जेल में है, तब तक मैं खामोश नहीं बैठ सकता| उनसे ज्यादा बहादुर और सरल आदमी मुझे नहीं मालूम| उन्होंने हिंसा का प्रचार नहीं किया| जो कुछ किया है, उससे उनका सम्मान और अधिक बढ़ता है|”
1942 के आंदोलन के दौरान भूमिगत रहते हुए लोहिया ने ‘जंगज आगे बढ़ो’, ‘क्रांतिकारी तैयारी करो’, ‘आजाद राज्य कैसे बने’ जैसी छोटी-छोटी पुस्तके लिखी|
इंदिरा गांधी ने लोहिया को महान योद्धा, क्रांतिदर्शी, पददलितों और शोषितों का मसीहा कहा है|
डॉ जाकिर हुसैन “लोहिया ने एक महान देशभक्त, आदर्शवादी और जीवन पर्यंत विद्रोह के रूप में अपना जीवन गरीबों की सेवा में उत्सर्ग किया है|”
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