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Dr Bhimrao Ramji Ambedkar/ डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891 - 1956) in hindi

डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891 -1956) :-



जीवन परिचय -


  • जन्म - 14 अप्रैल 1891 

            इंदौर (mp) के पास महू छावनी में महार जाति में

  • बचपन का नाम- भीवा या भीम सकपाल 
  • पैतृक गांव का नाम- अंबावाडे (महाराष्ट्र)

  • पिता का नाम- रामजी मालोजी सकपाल अंबावाडेकर, जो अंग्रेज सैनिक छावनी में शिक्षक थे|

  • माता का नाम- भीमाबाई

  • 1907 में हाईस्कूल उत्तीर्ण की|

  • समाज सुधारक कृष्णराव अर्जुन वैलुस्कर ने अंबेडकर को अपनी पुस्तक दी लाइफ ऑफ गौतम बुद्ध दी|

  • समाज सुधारक कृष्णराव अर्जुन वैलुस्कर ने अंबेडकर की भेंट बड़ौदा नरेश गायकवाड से कराई, जिन्होंने 25 रुपए प्रतिमाह छात्रवृत्ति देना स्वीकार किया|

  • 1912 में एलिफिस्टन कॉलेज मुंबई से स्नातक की उपाधि ली|

  • स्नातक करने के बाद बड़ौदा की ‘स्टेट फोर्सेज’ में लेफ्टिनेंट की नौकरी ज्वाइन कर ली| 

  • 1913 में U.S.A के कोलंबिया विश्वविद्यालय गये, जहां से अर्थशास्त्र से M.A. व पीएचडी की उपाधि ली| अंबेडकर की पीएचडी का टॉपिक The Problems of Rupees था| 

  • 1917 में भारत लौट आये| 

  • 1920 में ब्रिटेन गये, वहां से मास्टर ऑफ साइंस, डी.एस.सी, बार एट लॉ की उपाधि ली|

  • 1923 में भारत आकर वकालत करने लग गये|

  • उन्होंने दलितों के उद्धार का कार्य आजीवन किया| अंबेडकर के शब्दों में “जीवन की सफलता अछूतों का स्तर मानवता के स्तर तक लाने में है|”

  • दलितों के प्रति निष्ठा व समर्पण के कारण इनको ‘भारत का लिकंन’, ‘मार्टिन लूथर’, ‘दलितों का मसीहा’ कहा जाता है|

  • इनको बोधिसत्व की उपाधि दी गई|

  • 20 जुलाई 1924 को ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की| इस सभा का मुख्य उद्देश्य दलितों के उद्धार के लिए सामाजिक चेतना जागृत करना तथा दलितों के मध्य शिक्षा प्रसार करना था|

  • अप्रैल 1925 में अंबेडकर ने बम्बई प्रेसिडेंसी में नेपानी नामक स्थान पर ‘प्रांतीय दलित वर्ग सम्मेलन’ की अध्यक्षता की|

  • 1926 में बम्बई विधानपरिषद के सदस्य मनोनीत किए गए|

  • 1927 में महाड या महद तालाब सत्याग्रह (कुओं व मंदिरों में प्रवेश के लिए) चलाया|

  • 1927 में समाज समता संघ व समता सैनिक नामक दो संघ बनाए|

  • 1928 में दलित वर्ग शिक्षा समिति बनाई|

  • 1928 में साइमन कमीशन के समक्ष तथा 1919 में साउथ बोरो समिति के समक्ष दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन व मतदान की मांग की| साउथ बोरो समिति की अनुशंसा पर ही 1919 का भारत शासन अधिनियम बना था|

  • 1930 में कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन चलाया|

  • 8 अगस्त 1930 को नागपुर में आयोजित ‘अखिल भारतीय दलित वर्ग सम्मेलन’ की अंबेडकर ने अध्यक्षता की|

  • 1930,31,32 में आयोजित तीनों गोलमेज सम्मेलनों में इन्होंने दलित वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया|

  • 1932 में मैकडोनाल्ड पंचाट द्वारा दलितों हेतु पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गई|

  • गांधीजी ने जब सांप्रदायिक पंचाट के विरुद्ध आमरण-अनशन शुरू किया तो अंबेडकर ने कहा कि “महात्मा कोई अमर व्यक्ति नहीं है, न ही कांग्रेस अमर संस्था, कई महात्मा आए और चले गये, किंतु अस्पृश्य लोग अस्पृश्य ही रहे|” 

  • मैकडॉनल्ड पंचाट से संबंधित 1932 में गांधी और अंबेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ|

  • Note- मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तम दास, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी, जयकर, तेज बहादुर सप्रू, घनश्याम दास बिड़ला इत्यादि नेताओं के प्रयासों से 24 सितंबर, 1932 ईस्वी को महात्मा गांधी और दलित नेता अंबेडकर के बीच पूना समझौता हुआ था।



  • अंबेडकर ने 1936 में ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ की स्थापना की जिसे, बाद 1942 में ‘अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ’ में बदल दिया|

  • Note- अंबेडकर जी की मृत्यु के बाद इस संघ से 1956-1957 में रिपब्लिकन पार्टी बन गई|

  • 1944 में अंबेडकर गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में सदस्य नियुक्त किए गए तथा इन्हें श्रम विभाग सौंपा गया|

  • 29 अगस्त 1947 को गठित प्रारूप समिति के अध्यक्ष भीमराव अंबेडकर बने|

  • अंतरिम सरकार में अंबेडकर प्रथम विधि मंत्री बने तथा विधि मंत्री के रूप में इसका प्रमुख कार्य ‘हिंदू कोड बिल’ का प्रस्ताव था| इस कानून का उद्देश्य हिंदुओं के सामाजिक जीवन में सुधार, तलाक की व्यवस्था, स्त्रियों के लिए संपत्ति में हिस्सा था|

  • विधि मंत्री के पद को अंबेडकर खाली साबुनदानी वाला पद कहते थे|

  • 1951में नेहरू से हिंदू कोड बिल पर मतभेद के कारण मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया|

  • 1951 त्यागपत्र देते हुए अंबेडकर ने कहा कि “विभिन्न वर्गों और स्त्री-पुरुषों के बीच असमानता की समस्या को अनछुआ छोड़कर, आर्थिक समस्याओं से संबंधित विधेयकों को पारित करने से हमारा संविधान एक मजाक बनकर रह जाएगा और यह गोबर के ढेर पर महल बनाने जैसी बात होगी|”

  • हिंदू कोड बिल के कारण अंबेडकर को ‘आधुनिक मनु’ कहा जाता है|

  • 1952 का लोकसभा चुनाव अंबेडकर ने ‘बॉम्बे उत्तर केंद्रीय क्षेत्र’ से लड़ा तथा शेड्यूल कास्ट फेडरेशन उनकी पार्टी थी| वह चौथे स्थान पर रहे थे| 

  • 1952 में बॉम्बे राज्य से राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए| 

  • अंबेडकर ने राज्य पुनर्गठन आयोग (फजल अली आयोग) 1953 की रिपोर्ट के संदर्भ में कहा कि “मेमनों के ऊन कतर लिए गए हैं, वे सर्दी की तीव्रता महसूस कर रहे हैं|”

  • 1955 में इन्होंने ‘भारतीय बुद्ध महासभा’ की स्थापना की|

  • 14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने नागपुर में 5 लाख व्यक्तियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया|

  • 15 नवंबर 1956 को अंबेडकर ने विश्व बौद्ध सम्मेलन में भाग लिया तथा बुद्ध तथा मार्क्स पर व्याख्यान दिए|

  • 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में मृत्यु हो गयी|

  • अंबेडकर को भारतीय संविधान का पिता तथा 20 वीं सदी का स्मृतिकार कहा जाता है|

  • 31 मार्च 1990 में मरणोपरांत अंबेडकर को भारत रत्न दिया गया| 

  • भीमराव को अंबेडकर नाम उनके एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव ने दिया| 

  • जवाहरलाल नेहरू ने कहा है कि “अंबेडकर हिंदू समाज द्वारा किए गए दमनात्मक कार्यों के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक थे|”



रचनाएं-


  1. The caste in India1917

  2. Small holding in India and their remedies 1918 

  3. Annihilation Of caste (जाति का उन्मूलन) 1936

  4. रानाडे, गांधी व जिन्ना 1943

  5. What Congress and Gandhi have done to the untouchables? 1945

  6. Who were shudras? How did they came to be the fourth vern in the Indo-Aryan society? 1946

  7. States and Minorities 1947

  8. The Untouchable, Who are the? And why do they become untouchables? 1948

  9. The Emancipation Of the untouchables 

  10. Thought on linguistic States (भाषायी राज्यों पर विचार)1955 

  11. The Rise and fall of the Hindu Women

  12. Pakistan or Partition to India

  13. Gandhi and Gandhism

  14. The problem of the Rupee - Its Origin and Solution

  15. The Gospel of Mahatma Buddha 

  16. Riddles in Hinduism

  17. Buddha and dhamma 1956 

  18. Waiting for a Visa- यह अंबेडकर की आत्मकथा (Autobiography) है|

  19. Federation versus freedom


Note- महाराष्ट्र सरकार के द्वारा अंबेडकर के ग्रंथों, लेखों, भाषणों का संग्रह कुल 11 खंडों में ‘डॉ बाबा साहेब अंबेडकर-स्पीचेज एंड राइटिंग्स’ शीर्षक से किया|


  • अंबेडकर के समाचार पत्र

  1. मूकनायक- 1920 में प्रकाशित (मराठी भाषा)

  2. बहिष्कृत भारत- 1927 में प्रकाशन (मराठी  भाषा)

  3. जनता- 1930 में प्रकाशन

  4. समता- 1931 में प्रकाशन

  5. प्रबुद्ध भारत- 1955 में प्रकाशन


Annihilation of Caste (जाति का उन्मूलन)-


  • यह एक भाषण था, जिसे अंबेडकर के द्वारा 1936 में संतराम बी ए के ‘जात पात तोड़ो मंडल’ के लाहौर में हो रहे वार्षिक अधिवेशन में पढ़ना था, पर अंबेडकर द्वारा हिंदू धर्म की कड़ी आलोचना की पूर्व सूचना के कारण यह सम्मेलन रद्द हो गया, तब यह पुस्तक के रूप में छपा था|

  • अंबेडकर ने जाति उन्मूलन के अंतर्जातीय भोजन व अन्य उपायों को सीमित बताया है|

  • उनके अनुसार जाति उन्मूलन का वास्तविक उपाय अंतर्जातीय विवाह है और कुछ भी जाति प्रथा का समाधान नहीं है|


अंबेडकर पर प्रभाव-


  1. अंबेडकर को शिक्षित होने का संस्कार, पौराणिक अंध-विश्वासो व धार्मिक कुरूतियो से मुक्त होने की प्रेरणा परिवार से मिली|

  2. स्कूली जीवन के अनुभव ने हिंदू धर्म, समाज, स्वर्ण समुदाय के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को जन्म दिया|

  3. महात्मा बुद्ध के द्वारा ब्राह्मणवाद के विरुद्ध की गई धार्मिक व सामाजिक क्रांति से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया|

  4. संत कबीर से उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में ज्ञान मार्ग के महत्व को समझा और धार्मिक आडंबरो एवं व्यक्ति पूजा के विरोध की प्रेरणा ली|

  5. अंबेडकर महाराष्ट्र के समाज सुधारक ज्योतिबा फूले से प्रभावित थे|

  6. महात्मा गांधी और महादेव रानाडे का प्रभाव भी अंबेडकर के चिंतन पर दिखता है|

  7. डी वी तथा वुकर टी वाशिगटन जैसे विदेशी विद्वानों से प्रभावित थे|

  8. अंबेडकर के तीन आदर्श थे-1 गौतम बुध  2 कबीर  3 ज्योतिबा फुले|



अंबेडकर के सामाजिक विचार-


  • अंबेडकर के संपूर्ण चिंतन का केंद्रीय विषय भारत की समाज व्यवस्था है|

  • अंबेडकर का मानना है कि अस्पृश्य जातियों के प्रति स्वर्ण जातियों के अन्याय एवं दुर्व्यवहार का मुख्य स्रोत भारत के इतिहास, हिंदू धर्म एवं संस्कृति में निहित था|

  • अंबेडकर के सामाजिक चिंतन का आधार उनकी ‘आदर्श एवं न्यायपूर्ण समाज की अवधारणा’ है, जो पाश्चात्य उदारवादी लोक दर्शन से प्रभावित है|


  1. सामाजिक न्याय व सहायक राजव्यवस्था-

  • अंबेडकर के मत में अछूतों को सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक पिछड़ेपन से निकालकर मुख्य भूमिका में लाना जरूरी है तथा सामाजिक न्याय की स्थापना आवश्यक है| 

  • इनके मत में मनुष्य के जीवन में धर्म अथवा राजनीति की अपेक्षा समाज की अधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है| 

  • अंबेडकर के जीवन का उद्देश्य गरीबों के सामाजिक ,राजनीतिक व आर्थिक हितों की रक्षा करना था, इस हेतु राज्य समाजवाद को आवश्यक मानते थे|  यह राज्य समाजवाद केवल आर्थिक सिद्धांत ही नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक आधार भी है| 

  • सामाजिक न्याय के लिए अंबेडकर सहायक राजव्यवस्था व सुरक्षा उपाय आवश्यक मानते थे| 

  • अंबेडकर ने तीन प्रकार के सुरक्षा उपाय बताएं है-

  1. स्वायत्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व अर्थात राजनीति में पृथक प्रतिनिधित्व या आरक्षण

  2. वंचित समूह को सार्वजनिक रोजगार अर्थात सरकारी नौकरियों में आरक्षण

  3. इन सब के लिए सार्वजनिक विवेक के बजाय निश्चित संवैधानिक उपाय


  1. वर्ण व्यवस्था का विरोध- 

  • अंबेडकर ने वर्ण व्यवस्था का विरोध किया| अंबेडकर के अनुसार मूल वैदिक धर्म में तीन ही वर्ण थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य| शुद्र वर्ण वैदिक धर्म का अंग नहीं है|

  • अंबेडकर के अनुसार ब्राह्मण क्षत्रिय वर्ण में संघर्ष की वजह से शुद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई है| ब्राह्मण के प्रतिद्वंदी क्षत्रिय वर्ण से शुद्र वर्ण जन्मा है|

  • ब्राह्मणों ने अपने प्रतिद्वंदी क्षत्रिय वर्ग के उपनयन आदि धार्मिक संस्कार बंद कर दिए, जिसके कारण समाज में उनकी स्थिति वैश्य वर्ण से भी निम्न हो गई और कालांतर ये शुद्र वर्ण में परिवर्तित हो गए|


  1. जाति व्यवस्था का विरोध-

  • अंबेडकर के मत में जाति व्यवस्था वर्ण-व्यवस्था का एक विकृत रूप है| अंबेडकर ने जाति व्यवस्था को अनेक समस्याओं का कारण माना तथा इसका विरोध किया| 

  • अंबेडकहिंदू धर्म व जाति व्यवस्था को एक दूसरे से पृथक नहीं हो सकते|”

  • अंबेडकर ने जाति प्रथा को नष्ट करने का उपाय अंतर्जातीय विवाह को बताया|

  • अंबेडकर के मत में जाति प्रथा में श्रम का ही विभाजन नहीं था, अपितु श्रमिकों का भी विभाजन था|

  • अंबेडकर ने एनिहिलेशन ऑफ कास्ट में जाति प्रथा को एक विचार, मन-स्थिति कहा है| उनके मत में जाति प्रथा के विनाश से समाज में वैचारिक क्रांति होगी| 


  1. अस्पृश्यता की प्रथा का विरोध-

  • अंबेडकर के मत में अस्पृश्यता की शुरुआत ईसा की चौथी शताब्दी से हुई है| ब्राह्मणों ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अस्पृश्यता की प्रथा को जन्म दिया है| ब्राह्मण इस कुप्रथा के उन्मूलन में बाधक है|

  • अस्पृश्यता की जड़ें वर्ण व्यवस्था में है|

  • The untouchable: Who were them? And why do they become untouchables?(1948) पुस्तक में अंबेडकर ने अस्पृश्यता के उदय के कारणों पर चर्चा की है| 

  • इस पुस्तक में अंबेडकर ने लिखा है कि “अछूत वे टूटे हुए लोग (Broken man) हैं, जो ग्रामीण समुदायों की सीमा से बाहर रहते हैं, इन लोगों ने बौद्ध धर्म व गौमांस को त्यागने से मना कर दिया है अतः उन्हें अछूत बना दिया गया|”

  • ब्रोकन मैन वे थे, जिन्हें हिंदू वर्ण व्यवस्था ने हाशिए पर धकेल दिया था| परिणाम स्वरूप इन  लोगों ने समानता व गरिमा पूर्ण जीवन हेतु बौद्ध धर्म अपना लिया| ये ब्राह्मणों से घृणा किया करते थे|

  •  इस प्रकार अस्पृश्यता की उत्पत्ति के 2 मूल कारण थे-

  1. ब्रोकन मैन का बौद्ध धर्मी होना|

  2. ब्रोकन मैन द्वारा गौमांस खाना|


  1. स्त्रियों की दुरावस्था का विरोध-

  • अंबेडकर ने वर्ण, जाति, अस्पृश्यता के विरोध के साथ संपूर्ण हिंदू समाज के प्रसंग में स्त्रियों के प्रति किए जाने वाले भेद-भाव एवं अन्याय का भी विरोध किया|

  • उन्होंने स्त्रियों की दुरावस्था के लिए मुख्य रूप से मनुस्मृति को दोषी माना है|

  • उनके अनुसार पारिवारिक व सामाजिक जीवन में स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार होने चाहिए| स्त्रियों की स्थिति सुधार के लिए हिंदू कोड बिल लाये थे|


  1. सामाजिक सुधार संबंधी कार्य-

  • इस संबंध में अंबेडकर के विचार यथार्थवादी है|

  • हिंदू धर्म के परंपरागत एवं अनुदारवादी स्वरूप में परिवर्तन की मांग की|

  • वर्ण व्यवस्था, जाति प्रथा, अस्पृश्यता को समाप्त करने पर बल दिया|

  • दलितों के उत्थान पर बल दिया| अंबेडकर के अनुसार समाज में उचित स्थान एवं सम्मान प्राप्ति करने के लिए दलितों को अपने आचरण एवं व्यवहार में परिवर्तन करना होगा, स्वयं को हिंदू स्वर्ण के बराबर समझाना होगा|

  • उन्होंने कहा कि अछूत के लिए स्वयं, अछूत वर्ग ही उत्तरदायी है|

  • 30 मार्च 1927 को मदद के लिए आई स्त्री को कहा कि “कभी मत सोचो कि तुम अछूत हो, साफ-सुथरे रहो, जिस तरह के कपड़े स्वर्ण स्त्रियों पहनती हैं वैसे ही तुम पहनो|

  • उन्होंने शिक्षा, संगठन, संघर्ष तीन प्रमुख साधन बताएं, जिनकी मदद से स्वयं दलित अपने भाग्य का निर्माता बन सकता है|

  • दलित वर्ग में शिक्षा के प्रसार के लिए ‘पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी’ (1945) की स्थापना की|

  • राजनीतिक क्षेत्र में दलितों को संगठित करने के लिए ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ की स्थापना 1936 में की, बाद में उसकी जगह अखिल भारतीय अनुसूचित जाति संघ बना 1942 में| 

  • अंबेडकर ने राजनीतिक एवं प्रशासनिक सत्ता में दलितों की भागीदारी की मांग की| मांग के अनुसार 1932 में मेकडोनाल्ड सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के प्रथक प्रतिनिधित्व की मांग को स्वीकार किया| इस पर गांधीजी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया तो गांधीजी व अंबेडकर के मध्य सितंबर 1932 में पूना पैक्ट समझौता हुआ, जिसमें दलितों के लिए विधानसभाओं में स्थान आरक्षित किए गए| 

  • दलितों के उत्थान के लिए अंबेडकर ने दलितों को हिंदू धर्म त्यागने की सलाह दी| 1935 के दलितों के येवला सम्मेलन में अंबेडकर ने कहा कि “मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ, क्योंकि मेरे हाथ की बात नहीं थी, किंतु मैं हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं|”

  • दलित वर्ग के उत्थान के लिए अंबेडकर ने कहा कि खेती उसी की, जो उसको जोते का सिद्धांत लागू किया जाय|

  • 1955 में उन्होंने दलितों से आह्वान किया की, वह गांव को छोड़कर शहरों में आ जाए और गैर परंपरागत धंधों को अपनाएं|

  • अंबेडकर भारत के आर्थिक विकास के लिए बड़े उद्योगों तथा सार्वजनिक क्षेत्र का समर्थन किया|

  • दलितों को सभी सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग का अधिकार दिलाने के लिए 1927 ई.में ‘महद या महाड तालाब सत्याग्रह’ किया| तथा दूसरा सत्याग्रह 1930 में कालाराम मंदिर प्रवेश के लिए किया|

  •  अंबेडकर को महाड का महात्मा कहा जाता है|


Note - डॉ.अंबेडकर के अनुसार भारत में जाति, वर्ग से ज्यादा महत्वपूर्ण है|


  1. अंबेडकर द्वारा धर्म व ब्राह्मणवाद की आलोचना-

  • हिंदू धर्म की आलोचना- हिंदू धर्म श्रेणीबद्ध असमानता में, योग्यता व कर्म के बजाय जन्म में, विवेक बुद्धि की बजाय कर्मकांड व भाग्यवाद में विश्वास करता है| भगवत गीता बौद्ध धर्म से ब्राह्मणवाद को बचाने का माध्यम है|

  • ईसाई व इस्लाम धर्म की आलोचना- यह दोनों अनुभवातीत प्रभुत्व के साथ-साथ, पितृसत्तात्मकनिरंकुशता को बढ़ावा देते हैं|

  • अंबेडकर के मत में एकमात्र बौद्ध धर्म ही सच्चा धर्म है, जो अनीश्वरवादी है, आत्मा की अमरता को नहीं मानता तथा नियतिवाद, पोंगापंथी व श्रेणीबद्ध असमानता की बजाय विवेक, तर्क व जातीय समानता पर बल देता है|

  • शुद्र वर्ण की उत्पत्ति तथा अस्पृश्यता की उत्पत्ति के लिए ब्राह्मणों को जिम्मेदार मानते हैं| 

    

अंबेडकर के राजनीतिक विचार- 


  • अंबेडकर के चिंतन का मुख्य विषय सामाजिक न्याय था| सामाजिक न्याय की दृष्टि से ही उन्होंने राजनीतिक विषयों पर विचार किए हैं|

  • अंबेडकर का राजनीतिक चिंतन पाश्चात्य उदारवाद से प्रभावित है तथा साथ लोक कल्याणकारी राज्य व  लोकतांत्रिक समाजवादी राज्य की अवधारणा से भी प्रभावित है|


  1. राज्य संबंधी विचार-

  • अंबेडकर ने राज्य को एक अनिवार्य एवं उपयोगी संस्था माना है|

  • उनके मत में राज्य एक साधन मात्र है, साध्य स्वयं व्यक्ति है|

  • इनके मत में राज्य का मुख्य कार्य मानव सेवा है|

  • उनके मत में राज्य सकारात्मक उदारवादी एवं लोक कल्याणकारी है, जो सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना करेगा तथा लोगों के बीच समानता, स्वतंत्रता एवं भाईचारे की भावना का विकास करेगा|

  • अंबेडकर राज्य को असीमित एवं अमर्यादित शक्तियां सौपने के समर्थक नहीं है| वे राज्य की सत्ता पर लोकतांत्रिक संविधानिक नियंत्रण लगाना चाहते हैं|


  1. लोकतंत्र संबंधी विचार-

  • अंबेडकर ने उदार लोकतंत्र को सर्वोत्तम माना है तथा भारत के लिए अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को उचित माना था तथा शक्तियों के पृथक्करण का समर्थन किया था| लेकिन बाद में भारत की परिस्थितियों को देखते हुए संसदीय शासन प्रणाली का समर्थन किया|

  • संघात्मक व्यवस्था के प्रसंग में संसदीय शासन को स्वीकार किया तथा न्यायपालिका की सर्वोच्चता एवं न्यायिक पुनरावलोकन का समर्थन किया|

  • डॉ अंबेडकर के अनुसार “लोकतंत्र शासन की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें बिना खून बहाये लोगों के सामाजिक-आर्थिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है|”

  • अंबेडकर ने न्याय पूर्ण सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन के साधन के रूप में संसदीय लोकतंत्र का समर्थन किया|

  • अंबेडकर संवैधानिक व संसदीय लोकतंत्र के समर्थक थे, पर वे लोकतंत्र को केवल चुनाव या शासन पद्धति नहीं बल्कि जीवन दर्शन मानते थे| 

  • अंबेडकर राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र के बिना अधूरा मानते थे| 

  • इनके मत में प्रजातंत्र में नियमबद्धता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक उत्तरदायित्व होता है| 

  • अंबेडकर ने भारत में लोकतंत्र की सफलता हेतु निम्न परिस्थितियों को आवश्यक माना है-

  1. राजनीतिक लोकतंत्र से पूर्व सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना होनी चाहिए| 

  2. बहुदलीय व्यवस्था हो| 

  3. प्रभावी व सशक्त विपक्ष हो

  4. जागरूक जनमत व स्वतंत्र मीडिया होना चाहिए| 

  5. लोकतंत्र स्वस्थ संवैधानिक परंपराओं के पालन पर आधारित हो| 


  1. धर्मनिरपेक्षता संबंधी विचार-

  • अंबेडकर ईश्वर एवं धर्म में गहरी आस्था रखते थे, वे धर्म को नैतिकता का स्रोत तथा सामाजिक पुनर्गठन का साधन मानते थे|

  • अंबेडकर धर्मनिरपेक्ष राज्य का समर्थन करते है| उनके अनुसार धर्मनिरपेक्ष राज्य ऐसा राज्य है,  जिसका स्वयं का कोई धर्म नहीं होगा और वह किसी विशिष्ट धर्म को संरक्षण प्रदान नहीं करेगा| सभी नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता प्रदान करेगा| 


  1. अधिकार संबंधी विचार-

  • एक उदार लोकतंत्रवादी के रूप में अंबेडकर मानव अधिकारों व नागरिक स्वतंत्रताओं के समर्थक थे|

  • अंबेडकर संवैधानिक मौलिक अधिकारों के समर्थक थे, अर्थात अधिकार संविधान द्वारा रक्षित हो  तथा उल्लंघन होने पर न्यायपालिका द्वारा लागू किये जाये|

  • वे अधिकारों को असीमित व अप्रतिबंधित नहीं मानते थे, राज्य द्वारा सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है|


  1. राष्ट्रीयता, राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद पर विचार-

  • राष्ट्रीयता- राष्ट्रीयता एक ऐसी भावना है, जो समुदाय एवं सदस्यों में एक विशिष्ट सांस्कृतिक एकता के रूप में प्रकट होती है|

  • राष्ट्र- राष्ट्र स्वयं एक ऐसा समुदाय है, जिसके सदस्यों में एकता पायी जाती है तथा एक ऐसी सामान्य सत्ता के अधीन रहना पसंद करते हैं, जो आवश्यक रूप में उनकी अपनी हो|

  • राष्ट्रवाद- राष्ट्र से संबंधित समस्त विचारों एवं सिद्धांतों का समूह ‘राष्ट्रवाद’ है|

  • सामान्यतया ऐतिहासिक क्रम में राष्ट्रीयता राष्ट्र एवं राष्ट्रवाद को जन्म देती है|


  1. ब्रिटिश शासन के संबंध में विचार- निम्न विचार है-

  1. सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों के लिए ब्रिटिश शासन के साथ सहयोग पर बल दिया|

  2. संपूर्ण राष्ट्र की दृष्टि से ब्रिटिश शासन की अपव्ययी आर्थिक नीतियों की आलोचना की|

  3. ब्रिटिश शासन शुद्रो के उत्थान के प्रति उदासीन है|


  1. भारत की स्वतंत्रता के बारे में विचार-

  • भारत की स्वतंत्रता के संबंध में राजनीतिक स्वतंत्रता पर सामाजिक स्वतंत्रता को वरीयता दी है|  उनका मत था कि ब्रिटिश राज्य से भारत को स्वतंत्रता प्राप्त होने से पहले दलित वर्ग को स्वर्ण हिंदुओं की सामाजिक दासता से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए|


  1. राष्ट्रीय आंदोलन की पद्धति के संबंध में विचार

  • अंबेडकर मूलतः उदारवादी विचारक है, अतः वह स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए विधिक एवं संवैधानिक साधनों के प्रयोग के समर्थक थे|

  • वे क्रांतिकारियों की हिंसक पद्धति, उग्र राष्ट्रवादियों की निष्क्रिय प्रतिरोध की पद्धति, गांधीजी की सत्याग्रह पद्धति को पसंद नहीं करते थे| कांग्रेस के उदारवादी नेताओं के वैधानिक एवं विकासवादी दृष्टिकोण के समर्थक थे|


  1. भारत के विभाजन पर विचार-

  • अंबेडकर मुस्लिम लीग के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत से असहमत थे|

  • उन्होंने परिस्थितिवश भारत के विभाजन का समर्थन किया, क्योंकि उनका विश्वास था कि एक बार पाकिस्तान बन जाने पर शेष भारत में राष्ट्रीय एकता व अखंडता की स्थापना की जा सकती है|

  • भारत के विभाजन के बारे में अंबेडकर का यह विचार था कि भारत के सभी हिंदू भारत में तथा भारत के सभी मुसलमान पाकिस्तान में स्थानांतरित हो जाय, ताकि भविष्य में भारत के विभाजन की नई मांग उत्पन्न ना हो|

     

  1. प्रगतिशील अतिवादी-

  • अंबेडकर मूलत: उदारवाद, संसदीय लोकतंत्र व समतामूलक समाज के समर्थक थे|

  • लेकिन अंबेडकर स्वयं को उदारवादियों व मार्क्सवादियों से अलग प्रगतिशील अतिवादी तथा कभी-कभी प्रगतिशील रूढ़िवादी कहते थे|

  • अंबेडकर ने उदारवाद में समानता व मार्क्सवाद में स्वतंत्रता पर बल न देने के कारण इनकी आलोचना करते थे| 


  1. अंबेडकर की त्रयी (Trinity of Ambedkar)-

  • अंबेडकर राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था का आधार तत्व स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को मानते थे|

  • अंबेडकर का यह त्रयी बौद्ध धर्म से प्रभावित था|


  1. अंबेडकर के अन्य विचार-

  1. अंबेडकर ने भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का पूर्ण समर्थन किया|

  2. वह भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के समर्थक थे तथा छोटे राज्यों के निर्माण के समर्थक थे|

  3. सभी राज्यों की प्रशासनिक भाषा हिंदी को बनाने के समर्थक थे|

  4. वे भारत को राष्ट्रमंडल का सदस्य बनाएं रखने के समर्थक थे|

  5. उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के इस दृष्टिकोण का विरोध किया कि भारतीय आर्य मूलतः विदेशी हैं तथा स्वर्ण व शूद्र दो पृथक एवं विरोधी समुदाय हैं|

  6. भारत की एकता के लिए शक्तिशाली केंद्र का समर्थन किया|



अंबेडकर द्वारा विरोध-


  1.  असंलग्नता नीति का विरोध-

  • जब विश्व दो गुटों में पूंजीवादी व साम्यवादी में बटा हुआ था, तब भारत ने असंलग्नता की नीति अपनायी| अंबेडकर ने इस नीति का विरोध किया, क्योंकि उनका मानना था कि इससे भारत का कोई भी सच्चा मित्र नहीं बन पाएगा| भारत को खतरा मुस्लिम राज्यों के गठबंधन (पाक) से अथवा साम्यवादी गुट (चीन) से है| अतः भारत को राष्ट्रीय हित की दृष्टि से पश्चिमी राज्यों (अमेरिका व ब्रिटेन) से सुदृढ़ संबंध स्थापित करने चाहिए|


  1. कांग्रेस का विरोध-

  • उनके अनुसार कांग्रेस देश की स्वतंत्रता के लिए तो संघर्ष कर रही है, लेकिन लोगों की स्वतंत्रता के लिए नहीं| लोगों की स्वतंत्रता के समर्थन का तात्पर्य ब्राह्मणवादी व्यवस्था का अंत|

  • वे कांग्रेस को उच्च जाति वाली पार्टी कहते है|

  • अंबेडकर “कांग्रेस धर्मशाला संगठन है| कांग्रेस शोषक व शोषितो जमात है| यह जमात राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए तो ठीक है, पर समाज के नवीनीकरण के लिए नहीं|”


  1. मार्क्सवाद की आलोचना-

  • अंबेडकर ने मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष विचार का विरोध किया है, क्योंकि वर्ग संघर्ष द्वारा समाज में गरीबी व शोषण को नहीं मिटाया जा सकता है|

  • साम्यवादी दलों की आलोचना की तथा उन दलों को उच्च जाति के लोगों का संगठन कहा| 


  1. गांधीजी की आलोचना-

  • 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया तथा इस आंदोलन को ‘अनुत्तरदायित्वपूर्ण और पागलपन भरा कार्य’ बताया|

  • गांधीजी के द्वारा चलाए गए अछूतों के उद्धार कार्यक्रम को भ्रामक कहा|

  • अंबेडकर के अनुसार गांधीजी की रामराज्य की संकल्पना लोकतंत्र में संभव नहीं है|

  • गांधीजी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत को हास्यप्रद बताया|

  • अंबेडकर “परंपरागत हिंदूवाद की सभी बुराइयां गांधी में है|”

  • दलितों के लिए गांधीजी द्वारा दिया गया शब्द हरिजन अंबेडकर को स्वीकार नहीं था,क्योंकि  गांधी हरिजनों को उच्च वर्णों की दया का पात्र बना रहे थे|

  • अंबेडकर को गांधीजी की प्रमुख अवधारणाएं स्वराज्य, अहिंसा, विकेंद्रीकरण, खादी, ग्राम स्वराज स्वीकार नहीं थी|

  • गांधीजी के विपरीत अंबेडकर शहरीकरण, औद्योगीकरण व संसदीय लोकतंत्र के पक्षधर थे|

  • 1931 में गांधीजी ने कहा कि “मैं विशाल अस्पृश्य समाज का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता हूं|” शुरू में अंबेडकर ने इसे स्वीकार कर लिया पर बाद में बोले कि उन्होंने गांधी के विषदंत देख लिए थे|

  • अंबेडकर “अगर कोई वाद, जिसमें धर्म को अफीम बनाकर लोगों को लुभाने के लिए झूठे विश्वास में रखा है, तो वह गांधीवाद है| शेक्सपियर का अनुकरण करते हुए कोई यह कह सकता है कि दिखावटी कल्पना शक्ति का नाम गांधीवाद है|”

  • अंबेडकर ने गांधी के ग्राम स्वराज्य के विरोध में कहा था कि “गांव व प्रकृति की ओर लौटने का गांधीवादी नारे का अधिकतर जनता के लिए तात्पर्य है- नग्नता की ओर लौटना, मलीनता की ओर लौटना, गरीबी व अशिक्षा की तरफ लौटना|”


  1. मनुस्मृति का विरोध-

  • 1927 में अंबेडकर ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाई, क्योंकि इसमें शोषणकारी वर्ण व्यवस्था का समर्थन है|

  • जब अंबेडकर ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाई तब गांधीजी ने कहा “अंबेडकर हिंदू धर्म के लिए एक चुनौती है|”


  1. व्यक्ति या वीर पूजा का विरोध-

  • अंबेडकर को व्यक्ति या वीर पूजा के विरोध की प्रेरणा कबीर से मिली तथा उन्होंने वीर पूजा को लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा कहा|

  • अंबेडकर “धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है, परंतु राजनीति में भक्ति या वीर पूजा अपकर्ष व तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करती है|”


  1. पंचायती राज का विरोध-

  • डॉ अंबेडकर का मानना था कि गांव में कोई न कोई स्वर्ण जाति शक्तिशाली या हावी रहती है| ऐसी स्थिति में पंचायतों और स्थानीय निकायों पर भी उनका प्रभुत्व रहेगा|

  • अंबेडकर “गांव उदासीनता के अड्डे हैं|” 


धर्म व दर्शन पर अंबेडकर के विचार-


  • अंबेडकर ने धर्म व दर्शन में अंतर माना है| 

  • अंबेडकर के अनुसार दर्शन का अर्थ है सत्य का अनुसंधान तथा धर्म का अर्थ सत्य के प्रति प्रेम

  • अंबेडकर के अनुसार दर्शन गतिहीन है तथा धर्म गतिशील है| 

  • इनके मत में धर्म के दो प्रमुख आधार है- प्रज्ञा और करुणा| 

  • इनके मत में धर्म समाज के लिए आवश्यक है तथा यह एक वैयक्तिक वस्तु है, इसलिए मनुष्य इसे अपने तक सीमित रखें तथा धर्म की राजनीतिक जीवन में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए| 

  • एक आदर्श समाज संगठन के लिए अंबेडकर ने धार्मिक स्वतंत्रता को जरूरी माना है| 



अंबेडकर के आर्थिक विचार-


  • अंबेडकर भारी उद्योगों, मिश्रित अर्थव्यवस्था व सहकारी कृषि के समर्थक थे| 


अंबेडकर की तीन चेतावनियां-


  • 30 नवंबर 1949 को अंबेडकर ने प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में संविधान सभा में प्रभावी भाषण देते हुए कहा कि “भारत का संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों ना हो, अगर इसे अमल में लाने वाले लोग खराब निकले तो संविधान निश्चित रूप से अच्छा साबित नहीं होगा|” 

  • तथा उन्होंने भारतीय संविधान में लोकतंत्र की भावी सफलता के लिए तीन चेतावनियां दी-


  1. अराजकता के व्याकरण से मुक्ति-

  • अंबेडकर का कहना है कि अब देश आजाद हो गया है तथा स्वयं का संविधान लागू हो जाएगा| ऐसे में राज्य विरोध के क्रांतिकारी व हिंसक तरीकों के साथ-साथ असहयोग, सविनय अवज्ञा व सत्याग्रह जैसे तरीकों को भी छोड़ना होगा, क्योंकि यह अराजकता के व्याकरण के अलावा कुछ नहीं है| ये सब असंवैधानिक तरीके हैं| इनके बजाय संवैधानिक साधनों का प्रयोग करना होगा|


  1. वीर पूजा का निषेध-

  • जॉन स्टूअर्ट मिल का कथन दोहराते हुए अंबेडकर ने कहा कि “किसी भी महान व्यक्ति के पैरों पर अपनी आजादी न रखें और न ही उन पर इतना विश्वास करें, जो उसे आपके संस्थानों को नष्ट करने में सक्षम बनाता है|”

  • अंबेडकर “महान पुरुषों के प्रति जिन्होंने उम्र भर देश की सेवा की है, कृतज्ञ होने में कोई बुराई नहीं है, पर कृतज्ञता की भी सीमाएं है|”

  • डेनियल ओ कॉनेल का कथन दोहराते हुए अंबेडकर ने कहा कि “कोई भी व्यक्ति अपने सम्मान के मूल्य पर कृतज्ञ नहीं हो सकता, कोई भी स्त्री अपनी पवित्रता के मूल्य पर कृतज्ञ नहीं हो सकती और कोई राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता के मूल्य पर कृतज्ञ नहीं हो सकता|” 


  1. राजनीतिक लोकतंत्र अपर्याप्तता-

  • अंबेडकर के मत में भारत के लिए राजनीतिक लोकतंत्र अपर्याप्त है| भारत में राजनीतिक लोकतंत्र के साथ सामाजिक लोकतंत्र भी आवश्यक है| 

  • अंबेडकर “26 जनवरी 1950 को हम विरोधाभासो भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं| राजनीतिक जीवन में हमारे पास समानता तो होगी (एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य) पर सामाजिक व आर्थिक जीवन में हमारे पास असमानता होगी|”


अंबेडकर के कथन- 


  • “सामाजिक अधिकारों के बारे में मनु संहिता निकृष्टतम है| सामाजिक अन्याय का अन्य कोई भी उदाहरण मनु की तुलना में हल्का होगा|”

  • “जो धर्म अपने अनुयायियों में भेदभाव करता है, वह धर्म नहीं है| धर्म व दासता में कोई संबंध नहीं है”

  • “परंपरागत हिंदुत्ववाद की सभी बुराइयां गांधी में है|”

  • “धर्म में भक्ति, आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकता है परंतु ‘राजनीति में भक्ति या वीर पूजा’ अपकर्ष व तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करती है|” 

  • “जाति श्रद्धा के आरोही पैमाने व अवमानना के अवरोही पैमाने पर आधारित है|” अर्थात प्रत्येक जाति अपने से ऊंची जाति से घृणा करती है, उसका पतन चाहती है पर साथ ही अपने से नीची जाति के साथ मिलना भी नहीं चाहती| हर जाति के अपने विशेष अधिकार है| कोई भी इस व्यवस्था को खत्म नहीं करना चाहता| 

  • “मेरा पक्ष है कि ऐसा मानने में कि हम एक राष्ट्र हैं हम एक महान भ्रम को संजो रहे हैं| हजारों जातियों में विभाजित लोग एक राष्ट्र कैसे हो सकते हैं| भारत में जातियां हैं और जातियां राष्ट्र विरोधी हैं, क्योंकि वह सामाजिक जीवन में विभाजन लाती है तथा वे राष्ट्र विरोधी इसलिए भी है क्योंकि वह जाति व जाति के बीच ईर्ष्या व प्रतिपक्ष पैदा करती है|”

  • “स्वतंत्रता, समानता व बंधुत्व को अलग नहीं किया जा सकता| समानता के बिना स्वतंत्रता कई लोगों पर कुछ लोगों की सर्वोच्चता को जन्म देगी| स्वतंत्रता के बिना समानता व्यक्ति की पहल को मार देगी| आपसी बंधुत्व के बिना स्वतंत्रता और समानता प्राकृतिक चीजें नहीं बन पाएगी| तब उन्हें लागू करने की के लिए ताकत की आवश्यकता पड़ेगी|” 


अंबेडकर से संबंधित कुछ अन्य तथ्य-


  • अंबेडकर ने बहिष्कृत भारत समाचार पत्र में लिखा था कि “अगर बाल गंगाधर तिलक दलित के रूप में पैदा होते तो उनका नारा होता ‘अस्पृश्यता निवारण मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, न कि स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है|”

  • अंबेडकर ने प्लेटो के त्रिवर्गीय वर्गीकरण को भारत के वर्ण व्यवस्था के समान माना है तथा उसकी आलोचना की है|

  • के वी राव ने अपनी पुस्तक Parliamentary Democracy in India:  A critical community 1961 में संविधान निर्माण में योगदान के कारण नेहरू व पटेल को सभापतित्व करने वाला देवता तथा अंबेडकर को संविधान की जननी कहा है|

  • 1952 में बम्बई विधानसभा द्वारा राज्यसभा के सदस्य के रूप में अंबेडकर चुने गए| 

  • क्रिस्टोफर जैफरलॉट ने अपनी पुस्तक Dr Ambedkar and untouchability 2005 पुस्तक में लिखा है कि “अंबेडकर अनुसूचित जाति के लिए पृथक निर्वाचन मंडल प्राप्त नहीं कर पाए| वे ठोस सामाजिक सुधार करने में असफल रहे- जैसे हिंदू कोड बिल| वे संपूर्ण भारत के अस्पृश्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले दल की स्थापना नहीं कर पाए|”

  • अंबेडकर फ्रांसीसी क्रांति से अत्यधिक प्रभावित थे| 

  • दलित उद्धार के क्षेत्र में अंबेडकर को अमेरिकी नीग्रो नेता पॉल रॉबसन के समान माना जाता है| 

  • 1937 में अंबेडकर की लेबर पार्टी ने बॉम्बे विधान परिषद के चुनाव में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 15 स्थानों में से 12 स्थानो पर विजय प्राप्त की वहीं 3 सामान्य स्थानों पर|  

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