कबीर / Kabir
- जीवन परिचय-
- जन्म- वाराणसी में, मुस्लिम जुलाहा परिवार में (सन के संबंध में अनस्पष्टता) (जुलाहा- सूत काटकर कपड़े बनाना) 
- मृत्यु- गोरखपुर के मगहर (सन के संबंध में अनस्पष्टता) 
- ये 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि व संत थे, तथा दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोधी के समकालीन थे| 
- गुरु- वैष्णव संत रामानंद 
- कबीर स्वयं निर्गुण ब्रह्मा के उपासक थे तथा भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे| 
- कबीर दादू, नानक से प्रभावित थे| 
- कबीर का चिंतन ‘समन्वयवादी’ था| इन्होंने हिंदू व इस्लाम दोनों में ही प्रचलित कुरूतियों, अंधविश्वासो का विरोध किया| 
- कबीर पंथ नामक धार्मिक संप्रदाय इनकी शिक्षाओं का अनुयायी है| 
- कबीर की भाषा-
- इनकी भाषा सधुक्कड़ी है, जिसमें राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी में बृज भाषा के शब्द मिलते हैं| 
- कबीर की मान्यता थी कि कर्मों के अनुसार गति मिलती है| 
- Note- अंबेडकर सामाजिक कुरूतियों के विरोध के संबंध में तीन गुरु मानता है- 
- कबीर 
- गौतम बुद्ध 
- ज्योतिबाराव फुले 
- रचनाएं-
- बीजक-
- कबीर की वाणीयो का संग्रह 
- कबीर स्वयं निरक्षर थे, उनके शिष्यों ने उनकी वाणीयों का संग्रह ‘बीजक’ में किया है| 
- बीजक के तीन भाग हैं- 
- साखी 
- सबद 
- रमैनी 
- साखी-
- इसमें कबीर की शिक्षाओ व सिद्धांतों का संकलन है| 
- यह दोहे व सोरठो में लिखा गया है| 
- सबद-
- इसमें कबीर के ईश्वर प्रेम व निर्गुण साधना की अभिव्यक्ति हुई है| 
- इसमें गाने जाने वाले पद हैं| 
- रमैनी-
- इसमें कबीर के रहस्यवादी, मानवीय, दार्शनिक विचारों का उल्लेख मिलता है| 
- यह चौपाई छंद में लिखा गया है| 
कबीर के विचार-
- कबीर का युग संक्रमणकालीन युग था| 
- इस समय जहां यूरोप ‘अंधकार काल (Darkage) से निकल पुनर्जागरण की ओर बढ़ रहा था, वहीं भारतीय समाज में अंधकार अज्ञान चरम पर था| 
- समाज में अनेक सामाजिक, धार्मिक बुराइयां, कुरूतियां, रूढिया प्रचलन में थी| 
- जाति प्रथा, छुआछूत, रूढ़िवादिता, धार्मिक अंधविश्वास, अतार्किकता, कर्मकांड जैसे अनेक बुराइयां समाज में विद्यमान थी| 
- गैल आमवेट- “कबीर ने जातिभेद, हिंदू षड्दर्शन, वर्ण व्यवस्था, वेदों की श्रेष्ठता व ब्राह्मणवाद को मान्यता नहीं दी|” 
- जाति प्रथा व छुआछूत का विरोध-
- कबीर ने जाति प्रथा व छुआछूत का विरोध किया है| 
- कबीर के मत में ‘अगर जाति का संबंध जन्म से होता तो ब्राह्मण गर्भ से ही वेद पढ़कर आता| 
- अस्पृश्यता का विरोध कर, बहुजन समाज की अवधारणा दी है| 
- संप्रदायिक सद्भाव पर बल-
- कबीर ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल देकर सांप्रदायिक सद्भाव पर बल दिया| 
- कबीर के मत में “धर्म व मजहब अन्याय, अत्याचार व हिंसा नहीं सिखाती है, बल्कि प्रेम व दया सिखाते हैं| 
- सामाजिक समतावादी-
- कबीर ने समतामूलक समाज का समर्थन किया है, जिसमें धर्म, जाति, नस्ल, रंग आदि के आधार पर होने वाले भेदभाव का विरोध किया है| 
- कबीर वर्ण व्यवस्था का विरोधी था, जिसकी वजह से समाज में श्रेणीकरण ऊंच-नीच था| 
- ये ब्राह्मणवादी जन्म आधारित समाज व्यवस्था के विरोधी थे तथा बुद्धवादी कर्म व व्यक्तिगत गुण व चरित्र आधारित व्यवस्था के समर्थक थे| 
- धार्मिक रूढ़िवादिता का विरोध-
- कबीर ने धार्मिक रूढ़िवादिता का विरोध किया तथा नैतिकता, सत्यता, चरित्र निर्माण, तार्किकता, विवेकशीलता पर बल दिया| 
- स्त्री संबंधी विचार-
- कबीर पितृसत्तात्मक समाज के समर्थक थे| 
- नारी संबंधी विचार रूढ़िवादिता से प्रेरित थे| 
- वे स्वच्छंद व स्वतंत्र नारी को कामिनी व जहरीली नागिन के तुल्य मानते थे, जो पुरुष के विवेक बुद्धि को हर लेती है| 
- कबीर घर की चारदीवारी में बंद, पुरुष के प्रति वफादार व आश्रित नारी को पतिव्रता व आदर्श मानते थे| 
- कबीर ने सती प्रथा का समर्थन किया है| कबीर सती प्रथा को आत्मा व परमात्मा का पुनर्मिलन कहते हैं| 
- Note- कबीर के विचारों में न बाल विवाह तथा बहुपत्नी विवाह का विरोध तथा न ही विधवा विवाह का समर्थन मिलता है| 
- आदर्श समाज: अमर देशवा-
- कबीर ने प्लेटो की भांति आदर्श राज्य समाज का विचार दिया है| 
- कबीर अपने आदर्श राज्य को अमर देशवा कहते हैं| 
- अमर देशवा शोषणरहित, भेदभाव रहित, असमानता रहित राज्य होगा| 
- यहां समाज का प्रबंधन मानवीय मूल्यों और नैतिकता के आधार पर होगा| 
- कबीर सामंतवाद, पुरोहितवाद व दमन के कट्टर विरोधी थे| 
- कबीर ने ऐसे राज्य विहीन काल्पनिक समाज की रचना बनारस के पास बेगमपुरा में करने का प्रयास किया| 
- उनका आदर्श राज्य ‘बेगमपुरा’ एक सुखी, निजी संपत्ति विहीन, राजशाही व पदानुक्रम से मुक्त ईश्वरीय राज्य होगा| जहां प्रजा (भक्त) अपनी क्षमतानुसार कार्य करेंगे, जिसका बाद में मार्क्स ने भी समर्थन किया है| 
- व्यक्तिवादी विचार-
- गैल आमवेट “कबीर ने एक व्यक्तिवादी के रूप में अपने समकालीन दोनों प्रमुख परंपराओं इस्लाम व हिंदू धर्म की सामूहिक सत्ता को अस्वीकार किया| 
- उन्होंने अवतारवाद, वेदों की सर्वोच्चता, पुनर्जन्म की अवधारणा का बीजक में खंडन किया|” 
- इस तरह कबीर व्यक्तिवादी थे| 
- आदर्श शासक-
- कबीर के मत में आदर्श राजा वह हैं, जो वर्ग व जाति के पक्षपात रहित हो, महलों में रासलीला के बजाय, खुले आकाश में लश्कर लगाता हो तथा प्रजा की तकलीफें दूर करता हो| 
- राजा की दैवी सत्ता का खंडन- 
- कबीर राजा को देवताओं व ईश्वर का अवतार नहीं माना है, वह ईश्वर को एक साधारण प्राणी मानता है| 
- कबीर ने राजा की संप्रभुता का विरोध किया है| ईश्वर व आध्यात्मिक लोगों की संप्रभुता को सर्वोच्च व अंतिम माना है| 
- आर्थिक शोषण व असमानता का विरोध-
- कबीर ने आर्थिक शोषण व असमानता का विरोध किया है| 
- कबीर ने धन संचय की प्रवृत्ति को गलत बताया है| तथा महाजनों का विरोध किया जो गरीबी का शोषण करते थे| 
- कबीर आर्थिक गरीबी को ईश्वर प्रदत्त मानते हैं तथा संपन्न वर्ग को सुह्रदयी बनने का संदेश देते हैं| 
- कबीर का निष्क्रिय प्रतिरोध-
- कबीर ने सामाजिक व आर्थिक सुधार के लिए ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ का साधन अपनाया है| 
- शोषण, अस्पृश्यता, अंधविश्वास तथा रूढ़ियों आदि का विरोध करने के लिए कबीर ने विवेकपूर्ण सोच, दृढ़ता एवं निर्भरता का विचार दिया है| 
- इन सबके समाधान के लिए सामूहिक विचार-विमर्श व संवाद का मार्ग अपनाने पर बल दिया है| 
- हजारी प्रसाद द्विवेदी “कबीर आडंबरो, जंजालो व संस्कारों का विध्वंस करने वाला क्रांतिकारी था, जिसका रास्ता ‘समझोतावादी’ नहीं था| 
- रविंद्र नाथ टैगोर ने कबीर को ‘मुक्तिदाता’ ‘भारत पथिक’ कहा तथा कबीर को राजा राममोहन ‘राय का अग्रपथिक’ कहा| 
- धार्मिक विचार-
- कबीर ने धर्म में विद्यमान कुरूतियों, कुप्रथाओ का विरोध किया है| 
- कबीर के मत में धर्म मानवीय उत्थान का साधन होना चाहिए| 
- कबीर ने मूर्ति पूजा का विरोध किया है| 
- शुरुआत में नाथ परंपरा का अनुकरण किया बाद में भक्ति की परंपरा को अपनाया| 
- निराकार निर्गुण भक्ति का समर्थन किया कथा निर्गुण ईश्वर को ‘राम’ कहा| 
- कबीर के मत में आत्मा ईश्वर का अंश है, अजर, अमर है| 
- आत्मा और परमात्मा अभेद है| 
- जीवन मुक्ति के लिए कबीर ने ज्ञान मार्ग, योग साधना व भक्ति तीनों का अनुसरण किया| 
- कबीर ने ग्रहस्थ आश्रम को सभी आश्रमो से श्रेष्ठ बताया है| उसके मत में ग्रहस्थ का चित उदार होना चाहिए| 
- प्रो महावीर सरन जैन के अनुसार “कबीर का सारा जीवन सत्य की खोज व असत्य का खंडन है|” 
- गैल ऑमवेट-
- इनकी कबीर से संबंधित पुस्तक “Seeking Begumpura : The Social Vision Of Anti Cast Intellectual 2008 
- गैल ऑमवेट का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था| 
- ये पुना विश्वविद्यालय (महाराष्ट्र) में समाजशास्त्र की प्रोफ़ेसर रही है| 
- गैल ऑमवेट दलित चिंतक, समाजशास्त्री, मानव अधिकार कार्यकर्ता व नारीवादी चिंतक है| 
- गैल ऑमवेट ने जाति विरोधी आंदोलन, दलित राजनीति, महिला आंदोलन व पर्यावरण पर लिखा है| 
- ऑमवेट की प्रसिद्ध पुस्तकें- 
- Details and Democratic Revolution: Dr Ambedkar and the dalit movement in Colonial India 1994 
- Reinventing Revolution : New Social Movements and the Socialist Tradition in India 1993 
- We shall Smash this Prison : India Women in struggle 1979 
- कबीर के विभिन्न रूप-
- गैल ऑमवेट ने कबीर के चार रूप माने हैं- 
- निर्गुण भक्त- 
- निर्गुण भक्ति व निराकार ईश्वर के प्रति भक्ति 
- यह रूप ‘गुरु ग्रंथ’ साहिब में मिलता है| 
- कृष्ण भक्त सगुण संत- यह रूप राजस्थानी संग्रह पंचवाणी में मिलता है| 
- धार्मिक प्रतिक्रियावादी व दार्शनिक- यह रूप ‘बीजक’ में मिलता है| 
- समर्पित भक्त- यह रूप बंगाली साहित्य में मिलता है| 

 
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