संरचनात्मक- क्रियात्मक विश्लेषण (Structural functional Analysis)
व्यवस्था विश्लेषण का संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक सिद्धांत ईस्टन के आगत-निर्गत विश्लेषण का ही विकसित रूप है या उसके प्रति असंतोष के कारण अस्तित्व में आया है|
इस उपागम का मूल स्रोत प्रकार्यवाद है, जिसमें व्यवस्था को बनाए रखने की दृष्टि से व्यवस्था की गतिविधियों, दशाओं या प्रभावों का अध्ययन किया जाता है| तथा इसमें प्रकार्यवाद से संबंधित संरचनाओं का अध्ययन भी किया जाता है|
इस उपागम को विकसित करने में मैलिनोवस्की, रेडक्लिफ ब्राउन, पारसंस, मर्टन, लेवी आदि का योगदान रहा है|
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम पहले मानव विज्ञान में आया|
रेडक्लिफ ब्राउन ने मानव विज्ञान (Anthropology) में संरचनात्मक प्रकार्यवादी सिद्धांत दिया था तथा मैलिनोवस्की ने मानव विज्ञान (Anthropology) में एकीकृत प्रकार्यवादी सिद्धांत दिया था|
रेडक्लिफ व मैलिनोवस्की ने जनजातीय समुदायों के अध्ययन के लिए इस उपागम का प्रयोग किया था|
मानव विज्ञान से यह Sociology में आया, सोशियोलॉजी में इसका प्रयोग दुर्खीम, पारसन्स, रॉबर्ट के मर्टन, मेरियम लेवी ने किया|
समाजशास्त्र में सभ्य समाज के अध्ययन के लिए ऐसा सैद्धांतिक ढांचा तैयार करने का श्रेय समाज वैज्ञानिक टैल्कट पारसंस को है|
समाज विज्ञान के अंतर्गत संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम का उद्देश्य उन कृत्यों का पता लगाना था, जो समाज व्यवस्था को कायम रखने में भूमिका निभाते हैं| ऐसे चार प्रमुख कृत्य हैं-
लक्ष्य सिद्धि- यह राज्य व्यवस्था का मुख्य कार्य है|
अनुकूलन- इसके अंतर्गत सामाजिक प्रणाली को कायम रखने के लिए अपेक्षित संसाधन जुटाए जाते हैं|
एकीकरण- इसका उद्देश्य सामाजिक प्रणाली को अटूट रखना है|
प्रतिमान अनुरक्षण- इसका उद्देश्य मूल्यों का संप्रेषण और तनाव प्रबंधन है ताकि सामाजिक मूल्यों के प्रति समाज के अधिकांश सदस्यों की आस्था बनी रहे|
समाजशास्त्र से यह राजनीति विज्ञान में आया, जहां इसका प्रयोग ऑल्मंड व कोलमैन ने किया|
राजविज्ञान में इसका सर्वप्रथम प्रयोग आमंड एवं कोलमैन ने विकासशील देशों की राजनीति का अध्ययन करने के लिए किया था|
लेकिन आमंड ने ही विकासशील देशों तक सीमित होने के कारण उपागम को अपूर्ण माना तथा आमंड ने पावेल के साथ मिलकर समस्त देश एवं कालों के लिए एक विकास उपागम का विकास किया|
तुलनात्मक राजनीति में संरचनात्मक-क्रियात्मक उपागम के प्रयोग की प्रेरणा ग्रोबियल आमंड को रेडक्लिफ ब्राउन और बी मैलिनोवस्की से मिली|
आमंड पर रेडक्लिफ ब्राउन का अधिक प्रभाव था|
आमंड ने अपने संरचनात्मक प्रक्रियात्मक सिद्धांत की शब्दावली टैल्कट पारसंस से ली है|
राजनीति विज्ञान में संरचनात्मक-क्रियात्मक उपागम का प्रथम प्रयोग ग्रैबियल ऑल्मंड व कोलमैन ने 1960 में अपनी पुस्तक द पॉलिटिक्स ऑफ डेवलपिंग एरियाज में किया|
आमंड ने ईस्टन के सिद्धांत को अधूरा मानते हुए सुधार के रूप में इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया|
इस सिद्धांत का विस्तृत विवरण/ निरूपण ग्रोबियल आमंड और जी.बी पावेल की कृति कंपैरेटिव पॉलिटिक्स ए डेवलपमेंट अप्रोच (1966) में विकास उपागम के रूप में किया|
आमंड ने ईस्टन के आगत और निर्गत तत्व को राजनीतिक प्रणाली के कृत्य माना है| तथा इन प्रत्येक कृत्यों की संरचनाएं भी होती हैं|
आमंड ने अपने विवरण में कृत्यों और उनसे संबंधित संरचनाओं का विस्तृत वर्गीकरण किया है, इसलिए इसे संरचनात्मक क्रियात्मक विश्लेषण कहा जाता है|
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक के अन्य नाम-
निष्पादन उपागम
विकासात्मक उपागम
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक उपागम के अंतर्गत दो शब्द सम्मिलित हैं-
प्रकार्यवाद
संरचनात्मक
प्रकार्यवाद उपागम-
प्रकार्यवाद का अर्थ है- व्यवस्था को बनाए रखने वाली क्रियाओं का अर्थात प्रकार्यों का अध्ययन|
1960 तक इसे सामान्य सिद्धांत के विकास के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपागम माना गया|
प्रकार्यवाद के प्रमुख प्रतिपादक आमंड है|
यह उपागम समाज को अलग-अलग भागों में देखने के बजाय उसे समग्र या संपूर्ण रूप में देखता है|
यह समाज व्यवस्था को बनाए रखने वाले भागों के मध्य गत्यात्मक अंतसंबंधों का विश्लेषण करता है|
प्रकार्यवाद का मूलाधार या मूल इकाई व्यवस्था की धारणा है|
कोहन के अनुसार “प्रकार्यवादी, समाज को ‘प्रकार्यात्मक ढंग से अन्तर्सम्बन्धित चरों की’ अथवा ‘एक सीमा संधारक’ की व्यवस्था के रूप में देखता है|”
जॉन्स के अनुसार “प्रकार्यवाद का सार व्यवस्था को बनाए रखने वाली गतिविधियां है|”
यंग के अनुसार “प्रकार्यवाद सामान्य सिद्धांत से निकला हुआ उपागम है, जो प्रकार्य की दृष्टि से व्यवस्था का अध्ययन करता है|
रॉबर्ट ब्राउन “सच्चे अर्थों में प्रकार्यवादी व्याख्या प्रस्तुत करने के बजाय, प्रकार्यवादी भाषा का प्रयोग करना अधिक सरल है|”
मर्टन के अनुसार “प्रकार्य पर्यवेक्षित परिणाम है|”
रेडक्लिफ ब्राउन आवर्तक क्रियाओं को प्रकार्य कहता है|
लेवी “प्रकार्य किसी विचाराधीन संरचनाओं के संदर्भ में, किसी इकाई के कार्य परिणाम से निसृत दशा है|”
प्राचीन यूनानी विचारक मॉन्टेस्क्यू, काण्ट, स्पेंसर आदि ने शासन व्यवस्थाओं के कार्यों का अध्ययन किया है, अर्थात प्रकार्यवाद का प्रयोग किया है|
प्रमुख प्रकार्यवादी विचारक- दुर्खीम, मेलीनोव्स की, रेडक्लिफ ब्राउन, टालकोट पारसन्स, आर के मर्टन, मेंरियम जे लेवी, ग्रेबियल आमंड, जेम्स कोलमैन|
संरचनात्मक अवधारणा-
अधिकांश प्रकार्यवादियों ने बाद में प्रकार्यवाद विश्लेषण को आनुभाविक बनाए रखने के लिए संरचनाओं को महत्व देने का आग्रह किया|
उनके अनुसार अनेक प्रकार्यवादियों ने प्रकार्यों पर अधिक बल देकर, संरचना की भूमिका को घटा दिया है, इससे विश्लेषण में अस्पष्टता आ गयी और तुलनात्मक अध्ययन में अनेक विषमताए उत्पन्न हो गई|
W F रिग्स “यदि प्रकार्यों के विरुद्ध संरचनाओं पर जोर नहीं दिया जाता है, तो विश्लेषण गुमराह करने वाला और अविश्वसनीय हो सकता है|
जोसेफ ला पालोम्बरा “अनेक भृम एवं कठिनाइयां दूर हो सकती है, यदि राजनीतिक व्यवस्थाओं की संरचनाओं पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए, जितना हम उनके प्रकार्यात्मक पक्षों पर देते हैं|”
डेविड ईस्टन ने अपनी पुस्तक The Analysis of Political Structure 1990 में समस्त राजनीतिक व्यवस्थाओं के लिए आनुभाविक सिद्धांत विकसित करने में संरचनाओ को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना है तथा उसने राजनीतिक संरचनाओं का सिद्धांत विकसित करते हुए, न केवल औपचारिक तथा अनौपचारिक राजनीतिक संरचनाओं का विश्लेषण किया है, अपितु राज्य को एक संरचनात्मक घटक मानते हुए उसे उच्च स्तरीय संरचनाओं से प्रभावित, निर्धारित और परिसीमित बताया है|
डेविड ईस्टन “राजनीतिक संरचना राजनीतिक व्यवस्था की पृष्ठभूमि में परिचालित अदृश्य बल है|”
संरचना क्रिया,परिचालना या सुव्यवस्थित संबंधों का अपेक्षाकृत स्थायी प्रतिमान है|
बारंबार गठित होने वाले प्रकार्यो, गतिविधियों या प्रक्रियाओ अथवा निरंतर चलने वाली दशाओं के फलस्वरुप संरचनाओं का जन्म होता है|
पारसन्स “संरचनाएं प्रतिमानित प्रत्याशाओ की व्यवस्था होती है|”
लेवी “संरचना और प्रकार्य घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं|”
संरचनात्मक- प्रकार्यात्मक उपागम-
संरचनात्मक प्-कार्यवाद सभी घटकों, प्रकार्यों एवं संरचनाओं का अध्ययन करता है|
इसमें संरचनावादी उपागम की समष्टिपरकता, तुलनात्मकता, निगमनात्मकता आदि विशेषताएं तथा प्रकार्यवाद की व्यष्टिपरकता, आगमनात्मकता, अति व्यापकत्व, विचार प्रधानता आदि विशेषताएं संयुक्त हो जाती है|
संरचनात्मक-प्रकार्यवाद का आमंड व कोलमैन द्वारा प्रयोग-
पुस्तकें-
The Politics of Developing Areas 1960- आमंड व कोलमैन
इसमें संरचनात्मक प्रक्रियात्मक सिद्धांत है, जो विकासशील देशों तक सीमित है| इसमें परिवर्तन के बजाय स्थायित्व पर बल दिया गया है|
Comparative politics- A Development Approach 1966- आमंड व पावेल
इसमें समस्त देशों व कालों में लागू होने वाला विकास उपागम है| इसमें अंतनिर्भरता को महत्व दिया गया है|
Note- पॉलिटिक्स आफ डेवलपिंग एरियाज 1960 में वर्णित संरचनात्मक प्रक्रियात्मक उपागम (आमंड व कोलमैन) से असंतुष्ट आमंड व पावेल ने 1966 में कंपैरेटिव पॉलिटिक्स- ए डेवलपमेंट अप्रोच में विकास उपागम विकसित किया है| इसे System Structural-Functional Approach भी कहा जाता है| विकास उपागम में संतुलन के स्थान पर अंतनिर्भरता अधिक महत्वपूर्ण है|
आमंड पर प्रभाव-
रेडक्लिफ ब्राउन, मेलिनोवस्की, पारसन्स, के मर्टन, डेविड ईस्टन, आर्थर बेंटले, डेविड ट्रूमैन, रॉबर्ट डहल आदि
आमंड ने अधिकांश शब्दावली पारसन्स से ली है| आर्थर बेंटले, ट्रूमैन से अनौपचारिक समूह लिए हैं तथा प्रेरणा डेविड ईस्टन से ली है| राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा पर मेक्स वेबर का प्रभाव है|
आमंड व कोलमैन ने विकासशील देशों के तुलनात्मक विश्लेषण के लिए संरचनात्मक-प्रकार्यवाद का प्रयोग किया है|
इसके अलावा लूसियन पाई ने दक्षिण-पूर्वी एशिया, माइरन वीनर ने दक्षिण एशिया, जेम्स एस कोलमैन ने अफ्रीका के सहारा क्षेत्र (नाइजीरिया), तथा जॉर्ज आई ब्लेंकस्टेन ने लैटिन अमेरिकी देशों, लियोनार्ड विंडर ने पाकिस्तान व ईरान के अध्ययन के लिए संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम का प्रयोग किया है|
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण लक्ष्य-
संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण के दो लक्ष्य हैं-
ऐसा विकास या परिवर्तन का सिद्धांत विकसित करना, जो यह बता सके कि राज्य व्यवस्थाएं परंपरागत से आधुनिक कैसे बनती है|
राजव्यवस्थाओं को कार्यकुशलता तथा क्षमता के अनुमाप पर अर्थपूर्ण ढंग से वर्गीकृत करना|
प्रत्येक राजव्यवस्था अपने आप को बनाए रखने के लिए कुछ कार्य, गतिविधियां या क्रियाएं अवश्य करती हैं, इन्हें आमंड ने राजव्यवस्था की ‘प्रकार्यात्मक अपेक्षाएं’ कहा है, तथा ये कुल सात वर्गों में रखी है|
आमंड व कोलमैन ने विकासशील देशों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए 7 प्रकार्यात्मक संवर्ग तथा उनके आधार पर एक संभाव्यता- सिद्धांत विकसित किया है|
इन 7 संवर्गों को पुन: दो बड़े संवर्गों में रखा गया है, जो निम्न है-
आगत प्रकार्य
निर्गत प्रकार्य
7 प्रकार्यात्मक संवर्गों में आमंड ने चार प्रकार के आगत कृत्य (कार्य) और तीन प्रकार के निर्गत कृत्य तथा कृत्यों से जुड़ी संरचनाओं का वर्णन किया है|
आमंड आगत कार्यों को राजनीतिक कार्य तथा निर्गत कार्यों को शासन कार्य कहता है|
7 प्रकार्यात्मक संवर्ग अथवा प्रकार्यात्मक अपेक्षाएं-
राजनीतिक समाजीकरण एवं भर्ती
हित स्पष्टीकरण
हित समूहन
राजनीतिक संप्रेषण
नियम निर्माण
नियम-प्रयोग
नियम-अधिनियम
आगत कृत्य (राजनीतिक कार्य)-
आमंड के अनुसार चार आगत कृत्य व उनसे जुड़ी संरचनाएं निम्न है-
राजनीतिक समाजीकरण एवं भर्ती (Political Socialization and Recruitment)-
राजनीतिक समाजीकरण-
इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने चारों ओर के राजनीतिक प्रणाली या समाज के अनुकूल दृष्टिकोण बनाता है| समाज के अनुसार रहना-जीना सीखता है|
व्यक्ति अपने हित साधन के लिए राजनीतिक प्रणाली से जुड़ता है या सहारा लेता है तथा स्वयं समाज के माध्यम से अपने राजनीतिक मूल्यों, आदर्शों, संस्थाओं, मान्यताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है|
राजनीतिक समाजीकरण कृत्य को संपन्न करने वाली संस्थाएं निम्न है- परिवार, मित्रमंडली, शिक्षा संस्थाएं, धार्मिक समूह
राजनीतिक भर्ती-
इस प्रक्रिया के द्वारा राजनीतिक समूह अपने लिए नए सदस्य बनाते हैं|
जैसे- नए मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करना, राजनीतिक दलों, दबाव समूहों व अधिकारीतंत्र (Bureaucracy) के रिक्त पदों के लिए चुनाव व नियुक्तियां|
इस कृत्य को संबंधित संरचना करती है (अर्थात जिसको सदस्य बनाने हैं वह संरचना/ संगठन)
हित स्पष्टीकरण (Interest Articulation)-
इसमें लोगों के विचारों, अभिवृतियों, मान्यताओं को राजनीतिक प्रणाली के प्रति मांग के रूप में व्यक्त किया जाता है| अर्थात लोगों के हितों को राजनीतिक प्रणाली (सरकार) के सामने रखा जाता है|
इस कृत्य को संपन्न करने वाली संरचना- हित समूह
हित समूहन (Interest Aggregation)-
इस प्रक्रिया में विभिन्न लोगों की मांगों (हितों) को एक जगह करके प्रभावशाली बनाया जाता है तथा सत्ताधारियों का ध्यान मांगों की तरफ आकर्षित किया जाता है|
हित समूहन कृत्य को संपन्न करने वाले संस्था- राजनीतिक दल
राजनीतिक संप्रेषण (Political Communication)
इसके द्वारा लोगों की मांगे सरकार (राजनीतिक प्रणाली) तक तथा सरकार की आवश्यक सूचनाएं, निर्णय जनसाधारण तक पहुंचाई जाती है|
इस कृत्य को संपन्न करने वाली संरचना- जनसंचार के साधन
Note- राजनीतिक संप्रेषण राजनीतिक प्रणाली के आगत और निर्गत कृत्यों के संपर्क सेतु का निर्माण करती है|
निर्गत कृत्य (शासन कार्य)-
आमंड के अनुसार तीन निर्गत कृत्य व उससे जुड़ी संरचनाएं-
निर्गत कृत्य सरकार के परंपरागत कृत्य है|
इस तरह राजनीतिक प्रणाली में निर्गत कृत्य सरकारी उप प्रणालियां संभालती हैं, जबकि आगत कृत्य गैर सरकारी उप प्रणालियां संभालती हैं|
डेविड ईस्टन आगत व निर्गत दोनों कृत्यों को बराबर महत्व देता है, जबकि आमंड आगत कृत्यों को ज्यादा महत्व देता है|
आमंड के अनुसार आगत कृत्यों का सरोकार राजनीति की अनौपचारिक संस्थाओं से है, जिनका तुलनात्मक राजनीति के परंपरागत अध्ययन में ध्यान नहीं दिया गया, अत: आधुनिक उपागम में इन पर ध्यान देना आवश्यक है|
आमंड के अनुसार किसी भी राजनीतिक प्रणाली में कृत्य आवश्यक है, इनके बिना राजनीतिक प्रणाली टिकी नहीं रह सकती है|
आमंड ने संरचनात्मक क्रियात्मक उपागम को विकासात्मक उपागम की संज्ञा दी है, क्योंकि आमंड ने एक विकसित राजनीतिक प्रणाली का प्रतिरूप दिया है| किसी विकासशील देश की राजनीतिक प्रणाली का इस प्रारूप से तुलना करके वहां के राजनीतिक विकास के स्तर को मापा जा सकता है|
जो संरचनाएं राजनीतिक प्रणाली के स्थायित्व में सहायक हैं उनको कृत्यात्मक तथा जो बाधा उपस्थित करती हैं, उन्हें अपकृत्यात्मक (Dysfunctional), संरचनात्मक कार्यात्मक विश्लेषण में कहा गया है|
आमंड के अनुसार राजनीति व्यवस्था की विशेषताएं-
राजनीतिक व्यवस्थाओं की सार्वभौमिकता
राजनीतिक संरचनाओं की सार्वभौमिकता
राजनीतिक कार्यों की सार्वभौमिकता
राजनीतिक संरचनाओं की बहूकार्यात्मकता, अर्थात एक ही संरचना द्वारा अनेक कार्य करना| जैसे राजनीतिक दल सरकार संचालन के साथ-साथ जन जागृति के कार्य भी करते है|
राजनीतिक व्यवस्थाओं की संस्कृति मिश्रित होती है| अर्थात परंपरागत और आधुनिक के गुण साथ-साथ पाए जाते हैं|
Note- डेविड ईस्टन का मॉडल केवल पाश्चात्य उदारवादी प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर लागू होता है, जबकि आमंड का मॉडल विकासशील व पिछड़े देशों पर लागू होता है|
संरचनात्मक-क्रियात्मक विश्लेषण की आलोचना-
यह सिद्धांत प्रस्तुत प्रणाली को बनाए रखने के पक्ष में है, यथास्थिति को उचित ठहराता है तथा सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा नहीं देता है|
संरचनात्मक क्रियात्मक विश्लेषण के विरोध स्वरूप प्रिंसटन विश्वविद्यालय के विद्वानों ने राजनीतिक विकास की अवधारणा दी है|
साम्यवादी देशों के विद्वानों ने भी इस सिद्धांत की आलोचना की है|
यंग के अनुसार प्रकार्यवादियों में शाश्वत प्रकार्यवादिता (Universal functionalism) की मान्यता का दोष पाया जाता है|
मर्टन के अनुसार यह उपागम नियंत्रण, शक्ति, नीति निर्माण, प्रभाव के विश्लेषण में सक्षम नहीं है|
हॉल्ट एवं रिचर्डसन के मत में आमंड संरचनाओं की व्याख्या प्रकार्यों की दृष्टि से करता है, जो अनुचित है, क्योंकि इस तरह कभी भी संभाव्यता सिद्धांत का निर्माण नहीं किया जा सकता है|
इन आलोचनाओं के होते हुए भी यह विश्लेषण तुलनात्मक शासन और राजनीति के अध्ययन में उपयोगी है|
राजव्यवस्थाओं का वर्गीकरण-
आमंड व कोलमैन ने राजव्यवस्थाओं के पांच प्रकार या मॉडल स्वीकार किए हैं, जो निम्न है-
राजनीतिक प्रजातंत्र (Political democracies)-
उदाहरण- जापान, इजरायल, भारत आदि|
अभिभावक प्रजातंत्र (Tutelary democracy)-
इसमें लोकतंत्र की आकारात्मक संरचनाओं के होते हुए भी कार्यपालिका और सेवी वर्ग (ब्यूरोक्रेसी) में ही शक्तियों का केंद्रण होता है|
व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका की स्थिति दुर्बल होती है|
उदाहरण- घाना, नाइजीरिया आदि|
आधुनिकीकरणशील अल्पतंत्र (Modernizing oligarchy)-
इसमें प्रजातंत्रात्मक संविधान स्थगित रहता है तथा सेवी वर्ग या सेना का प्रभाव रहता है|
ये प्रजातंत्र और आधुनिकता लाने का दम भरते हैं|
उदाहरण- पाकिस्तान, म्यांमार, टर्की, सूडान आदि
सर्वाधिकारवादी अल्पतंत्र (Totalitarian oligarchy)-
उदाहरण- उत्तरी कोरिया, भूतपूर्व नाजी जर्मनी व फांसी इटली आदि|
परंपरागत अल्पतंत्र (Traditional oligarchy)-
ये प्रायः राजतंत्रात्मक, वंश परंपरागत तथा परंपराधारित होते हैं|
इसमें राजनीतिक भर्ती का आधार प्रस्थिति एवं रक्तवंश होता है|
उदाहरण- नेपाल, सऊदी अरब आदि|
आलमंड व कोलमैन के अनुसार विकसित एवं विकासशील देशों की संरचनाओ एवं प्रकार्यो में भी अंतर होता है, जो निम्न है-
अमेरिका और ब्रिटिश विकसित व्यवस्थाओं की अनौपचारिक संरचनाए औपचारिक, प्राथमिक एवं द्वितीय संरचनाओं द्वारा अनुप्राणित (Penetrated) तथा उत्संस्करित (Acculturated) होती है|
जबकि अपश्चिमी (विकासशील) व्यवस्थाओं में इसका उल्टा होता है| यहां राजनीतिक प्रकार्य भी प्राय शासन संरचनाओं द्वारा संपन्न किए जाते हैं| इनमें शहरों एवं ग्रामों का भेद पाया जाता है| इनमें प्रशासन की संरचनाओं का अधिक महत्व होता है|
राजव्यवस्थाओं का संभाव्यता सिद्धांत-
प्रतिपादक- आमंड व कोलमैन
आमंड व कोलमैन का मत है कि संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक विचारबंध के माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था के विश्लेषण में औपचारिक तर्कशास्त्र एवं गणित का प्रयोग किया जा सकता है|
इससे अध्ययन में प्रमाणिकता, सूक्ष्मता, निश्चयात्मकता और यथार्थता लायी जा सकती है|
आमंड व कोलमैन ने विशिष्ट कार्यों को विशिष्ट संरचनाओं द्वारा उत्पन्न किए जाने की संभाव्यताएं बतायी है तथा उनके द्वारा संभावित कार्यों की विभिन्न शैलियों को बताया है तथा उनके संबंधों के विषय में संभाव्यतापरक विवरण दिए जा सकते हैं|
इनके मत में अब इतनी मात्रा में तत्व एवं आंकड़े उपलब्ध है कि उनके आधार पर विभिन्न संभाव्यता विवरण संभव है तथा उनसे परिकल्पनात्मक सूचियां विकसित की जा सकती है व उनकी आनुभाविक जांच की जा सकती है|
Note- डेविड ट्रूमैन ने समूहों के तथा V O काई ने राजनीतिक दलों के विश्लेषण में यही किया है|
निष्पादन शैली-
सार्वभौमिक या एकदेशी (Universal or Particular)
विसृत (बिखरी हुई) या विशिष्ट (Diffuse or Specific)
उपलब्धि प्रधान या आरोपित (Achievement oriented or Ascribed)
भावात्मक रूप से तटस्थ या भावात्मक (Affective neutral or Affective)
समुदाय उन्मुख या स्वकीय उन्मुख (Collectivity oriented or self oriented)
संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक उपागम के विकास में योगदान-
टालकाट पारसन्स का योगदान-
टालकाट को आधुनिक युग का सर्वोत्कृष्ट सिद्धांत निर्माता माना जाता है|
टालकाट एक ऐसे समावेशी सिद्धांत का निर्माण करना चाहता है, जिसकी प्रस्तावना एवं प्रमेय/आमुख युक्तियुक्तपूर्वक अंतसम्बंधित हो| साथ ही वे पूर्वमान्य परिभाषाओं एवं अभिधारणाओ के सेट से मिश्रित हो|
इसके लिए पारसन्स क्रिया (Action) को अपनी विषय परिधि बनाता है|
पारसन्स के अनुसार क्रिया तीन व्यवस्थाओं से निर्मित होती है-
व्यक्ति व्यवस्था (Personality system)
समाज व्यवस्था (Social system)
संस्कृति व्यवस्था (Cultural system)
व्यक्ति व्यवस्था (Personality system)-
व्यक्ति केंद्रित क्रियाएं व्यक्ति व्यवस्था को जन्म देती है|
समाज व्यवस्था (Social system)-
सामूहिक स्तर पर कर्ताओ के मध्य स्थित संबंधों पर आधारित क्रियाएं समाज व्यवस्था को जन्म देती है|
संस्कृति व्यवस्था (Cultural system)-
संस्कृति व्यवस्था मूल्यों, मानको और प्रतीकों से विनिर्मित होती है|
यह सबसे महत्वपूर्ण व्यवस्था है, जो तीनों व्यवस्थाओं में संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है|
समाज व्यवस्था की सततता के लिए चार प्रकार की प्रकार्यात्मक अपेक्षाएं (Functional requisites) आवश्यक हैं, जो निम्न है-
प्रतिमान संधारण तथा तनाव प्रबंध (Pattern maintenance and tension management)-
ये अपेक्षाए व्यवस्था के सांस्कृतिक स्वरूप या विश्वास व्यवस्था को बनाए रखती है|
इस प्रकार्यात्मक अपेक्षा के संपादन के लिए समाजीकरण, सामाजिक दबावो, मूलभूत मानकों का सहारा लिया जाता है|
इससे संबंधित संरचनाएं- परिवार, शैक्षणिक, जातीय संस्थाएं
लक्ष्य- प्राप्ति (Goal attainment)-
यह प्रकार्यात्मक अपेक्षा व्यवस्था के उद्देश्यों, लक्ष्यों, नीतियों की उपलब्धि का निष्पादन करने वाली संरचनाओं द्वारा निष्पादित किया जाता है|
इससे संबंधित संरचनाएं- विधायिका, कार्यपालिका, राजनीतिक दल, दबाव समूह
अनुकूलन (Adaption)-
इसमें आर्थिक उत्पादन के साधनों का नियंत्रण व प्रबंध किया जाता है, ताकि व्यवस्था के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके|
इससे संबंधित संरचनाएं- बाजार, श्रमिक संघ, वित्तीय समितियां
एकीकरण (Integration)-
समाज व्यवस्था की संरचनाएं, व्यक्तिकार्य (roles) आदि विभिन्नीकृत एवं अन्योंन्याश्रित होते हैं, अत: उनमें एकीकरण स्थापित किया जाना चाहिए|
इससे संबंधित संरचनाएं- सामाजिक, धार्मिक व कानूनी संरचनाएं
प्रतिमान चर या शैली (Pattern Variable)-
विभिन्न इकाइयां, उपव्यवस्थाएं, व्यक्तिकार्य (Roles) आदि समग्र व्यवस्था से किस प्रकार समंजित व संतुलित होते हैं, जिसके लिए पारसन्स एक मानकीकृत शब्दावली प्रस्तुत करता है|
मानकीकृत शब्दावली में पांच विलोम-युग्मों अथवा प्रतिमान चरों या शैलियों को रखा है-
रॉबर्ट के मर्टन का योगदान-
यह पारसन्स का विद्यार्थी था, लेकिन पारसन्स से भिन्न विचार रखता है|
पारसन्स ऐसे सर्व समावेशी संवर्गों तथा संबंधों की खोज में लगे रहे, जो सामाजिक घटनाओं के किसी भी सेट की व्याख्या कर सके अर्थात सामान्य सिद्धांत का निर्माण हो सके, लेकिन मर्टन मध्यस्तरीय सिद्धांतों का प्रतिपादक है|
मर्टन ने प्रकार्यों के तीन प्रकार बताए हैं-
सुकार्य (Enfunction)
विकार्य (Dysfunction)
अकार्य (Non function)
सुकार्य (Enfunction)-
जो प्रकार्य व्यवस्था के अनुकूलन एवं समंजन में सहायक है|
विकार्य (Dysfunction)-
जो प्रकार्य व्यवस्था के अनुकूलन एवं समंजन में रुकावट पैदा करता है|
अकार्य (Non function)-
जो प्रकार्य अनावश्यक (Redundant) है, अर्थात न अनुकुल न प्रतिकूल|
इसके अलावा मर्टन ने प्रकार्यों को दो वर्गों में बांटा है-
अभिव्यक्त प्रकार्य
अप्रकट प्रकार्य
अभिव्यक्त प्रकार्य-
ये प्रकार्य व्यवस्था के अनुकूलन एवं सामंजन में सहायक होते हैं|
ये व्यवस्था में सहभागियों द्वारा अभीष्ट तथा अभिज्ञात होते हैं|
अप्रकट प्रकार्य-
ये व्यवस्था में सहभागियों द्वारा अनभीष्ट तथा अनभिज्ञात होते हैं|
यूनोमिया (eunomia) तथा डायनोमिया (dynomia)-
मर्टन समाज की स्वस्थ अवस्था को यूनोमिया तथा समाज की पतनावस्था को डायनोमिया कहते हैं|
अप्रतिमानता (Anomie)-
जब सामाजिक लक्ष्य स्पष्ट परिभाषित होते हैं, किंतु उन्हें प्राप्त करने के साधन स्पष्ट नहीं होते हैं, तब यह अवस्था समाज को भृष्टिकरण (Demoralization) की ओर ले जाती है| इसे मर्टन ने अप्रतिमानता कहा है|
प्रकार्यात्मक विकल्पों की (Functional alternative) अवधारणा-
प्रतिपादक- रॉबर्ट के मर्टन
इस अवधारणा के अनुसार किसी भी प्रकार्य को करने के अनेक विकल्प होते हैं|
जैसे विधि निर्माण का कार्य केवल विधानमंडल ही नहीं करते, बल्कि विधि निर्माण में राष्ट्राध्यक्ष, प्रशासकीय अधिकारी, न्यायालय आदि संरचनाए भाग लेती हैं|
अर्थात एक प्रकार्य अनेक संरचनाओं तथा एक संरचना अनेक प्रकार्यों से सम्बद्ध हो सकती है|
मेरियन जे लेवी का योगदान-
मेरियन जे लेवी ने संरचनाओं को अधिक महत्व देते हुए समाजो के तुलनात्मक विश्लेषण के लिए कुछ नई अवधारणाएं प्रस्तुत की है, जो निम्न है-
प्रकार्यात्मक अपेक्षाएं (Functional requisites)
संरचनात्मक अपेक्षाएं (Structural requisites)
प्रकार्यात्मक पूर्वपेक्षाएं (Functional Prerequisites)
संरचनात्मक पूर्वपेक्षाएं (Structural Prerequisites)
सुसंरचना तथा विसंरचना की अवधारणा-
जो व्यवस्था को बनाए रखने में सहायक है वह सुसंरचना, तथा जो बाधा उपस्थित करें वह है विसंरचना
डेविड ईस्टन व आमंड की तुलना-
डेविड ईस्टन इनपुट व आउटपुट दोनों का महत्वपूर्ण मानता है, जबकि आमंड इनपुट को महत्वपूर्ण मानता है|
आमंड का केंद्र बिंदु गैर-सरकारी यानी अनौपचारिक संस्थाएं हैं, जो इनपुट का कार्य करती है| आउटपुट का कार्य करने वाली सरकारी या औपचारिक संरचनाओं को आमंड ज्यादा महत्व नहीं देता है|
डेविड ईस्टन प्रकार्यों को महत्वपूर्ण मानता है, जबकि आमंड प्रकार्यों व संरचनाओं दोनों को महत्व देता है|
आमंड फीडबैक व पर्यावरण को इनपुट का हिस्सा मान लेता है, अलग से वर्णन नहीं करता है|
ईस्टन का मॉडल पाश्चात्य उदारवादी प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं पर लागू होता है, जबकि आमंड का मॉडल विकासशील व पिछड़े देशों पर लागू होता है|
Note- आमंड की राजनीतिक व्यवस्था की विशेषताएं USA से मिलती है|
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