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rajnitik siddhant ka patan aur utthan / राजनीतिक सिद्धांतों का पतन व उत्थान /Political Theory: Decay & Revival

 Rajnitik Siddhant ka Patan aur Utthan / राजनीतिक सिद्धांतों का पतन व उत्थान /Political Theory: Decay & Revival

    राजनीतिक सिद्धांतों का पतन व उत्थान

    • 1950 के दशक में राजनीतिक सिद्धांत के पतन से संबंधित विवाद उठा कि वर्तमान युग में राजनीतिक सिद्धांत का कोई भविष्य है या नहीं|

    • यह विवाद 1950 और 1960 के दशक में परंपरावाद व व्यवहारवाद के बीच रहा|

    • एक ओर प्रत्यक्षवादी, अनुभववादी, व्यवहारवादी (अधिकांश अमेरिकी विद्वान) राजनीतिक सिद्धांत के पतन की बात करते हैं तथा कहते हैं कि भविष्य में राजनीतिक सिद्धांत की आवश्यकता नहीं है|

    • दूसरी ओर कुछेक परंपरावादी (अधिकांशत ब्रिटेन के विद्वान) राजनीतिक सिद्धांत के पतन पर संदेह व्यक्त करते हैं तथा कहते हैं कि भविष्य में राजनीतिक सिद्धांतों की आवश्यकता है|

    • अंग्रेज परंपरावादी व अमेरिकी व्यवहारवादियों के मध्य यह विवाद राजनीतिक अध्ययन पद्धति को लेकर है|

    • परंपरावादी अपने विश्लेषण में मानकीय, ऐतिहासिक, आदर्शवादी व वैचारिक हैं, और इस कारण राजनीतिक तत्वों के अतीत, व्याख्यात्मक, आत्मपरक, विशिष्ट, आदर्श मूलक लक्षणों पर बल देते हैं|

    • दूसरी ओर व्यवहारवादी अपने विश्लेषण में वैज्ञानिक, आनुभविक, प्रत्यक्षवादी, विश्लेषणवादी हैं, और इस कारण राजनीतिक तत्वों के वर्तमान, विश्लेषणात्मक, वस्तुपरक, सामान्य, प्रक्रिया मूलक लक्षणों को महत्व देते हैं|


    •  व्यवहारवादियों का तर्क है कि राजनीतिक सिद्धांत-

    1. अति इतिहासवादी हो चुका है|

    2. उसमें नैतिक सापेक्षतावाद आ गया है|

    3. बहुतथ्यवाद इसकी एक अन्य कमजोरी है|

    4. पारंपरिक सोच अपर्याप्त हो चुकी है|

    5. राजनीतिक सिद्धांत तकनीकी क्रांति से उभरी समस्याओं का समाधान नहीं दे पाया है|

    • उपरोक्त कारणों से राजनीतिक सिद्धांतों का पतन हो चुका है| 


    • परंपरावादियों की व्यवहारवादियों के विरुद्ध कुछेक आपत्तियां हैं-

    1. व्यवहारवाद तथ्यों व आंकड़ों पर अधिक बल देता है|

    2. अति वैज्ञानिकता ने व्यवहारवाद को खोखला बना दिया है|

    3. राजनीतिक विश्लेषण में वस्तुपरकता संभव नहीं है|

    4. व्यवहारवाद विकासशील देशों की समस्याओं की अनदेखी करता है|

    5. व्यवहारवाद में अपनाए गए तथ्य राजनीतिक वास्तविकता को समझने में असमर्थ रहे हैं|

    • इन कारणों से राजनीतिक सिद्धांतों की आवश्यकता है, इसका पतन नहीं हुआ है|


    • राजनीतिक सिद्धांत में राजनीति दर्शन व राजनीतिक विज्ञान अर्थात तथ्य व मूल्य दोनों शामिल हैं|

    • यहां राजनीतिक सिद्धांतों के पतन का तात्पर्य है- सिद्धांतों का मूल्यों, मानको, आदर्शों व आलोचनात्मक मूल्यांकन तथा पुनर्निर्माण से अलग होना है|

    • अर्थात राजनीतिक सिद्धांत के पतन का तात्पर्य परंपरागत दृष्टिकोण या राजनीतिक दर्शन के पतन से संबंधित है|

    • लगभग 1950 से 1969 के मध्य राजनीतिक दर्शन या परंपरागत दृष्टिकोण के पतन की बात की गई|


    राजनीतिक सिद्धांत के पतन से संबंधित विचार-


    • डेविड ईस्टन व कोबान “राजनीतिक सिद्धांत का पतन हो चुका है|”

    • रॉबर्ट डहल व पीटर लॉसलेट “राजनीतिक सिद्धांतों की मृत्यु (मृतप्राय) हो चुकी है|” 

    • बर्लिन, बलांडेल, स्ट्रास “राजनीतिक सिद्धांत न तो मर रहा है, और न ही मृतप्राय हैं|”

    • रॉबर्ट डहल “आंग्लभाषी जगत में राजनीतिक सिद्धांत मर चुका है, साम्यवादी देशों में वह बंदी है और अन्यत्र मर रहा है|”

    • रीमर “राजनीतिक सिद्धांत ‘डॉग हाउस’ (Dog House) में चले गए|”

    • सीमोर लिप्सेट (Political Man 1959) “यूएसए ने उत्तम समाज के सभी मूल्य प्राप्त कर लिए हैं, अतः नए मूल्यों व सिद्धांतों की तलाश बेकार है|”

    • लियो स्ट्रास “राजनीतिक सिद्धांत पतन और शायद निधन की स्थिति में हो सकता है, किंतु पूर्णतया अदृश्य नहीं हो सकता है|”

    • बर्लिन “राजनीतिक दर्शन कभी भी समाप्त नहीं होगा|”

    • पी एच पैट्रिक “यदि पुरातन राजनीति सिद्धांत मृत्यु के मुख में पहुंच गया हो तो इसका दोषारोपण लोकतंत्र की विजय पर किया जाना चाहिए|”

    • I M Young (आयरिश मेरियम यंग) ने जॉन रॉल्स की कृति ‘ए थ्योरी ऑफ जस्टिस’ को राजनीतिक सिद्धांत के पुनर्जन्म का प्रतीक माना है और इस पुस्तक को अनूपजाऊ और उपजाऊ वर्षों के बीच एक मोड़ मानते हैं| आयरिश मेरियम यंग अमेरिकन नारीवादी व बहुसंस्कृतिवादि विचारक हैं|  इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है- Justice and Politics of Difference 1990

    • थर्सबे और गोल्ड “हमने जो देखा है वह राजनीतिक सिद्धांत की मृत्यु नहीं है, बल्कि उस राजनीतिक विश्लेषणात्मक दर्शन की मृत्यु है, जो नाजुक परिस्थितियों में राजनीतिक समस्याओं का विश्लेषण करने में असमर्थ है|” 

    • हरबर्ट स्पेंसर “ किसी सिद्धांत के हत्या तथ्यों द्वारा होती है|”



    राजनीतिक सिद्धांत के पतन पर सर्वाधिक चर्चित लेख-


    1. The Decline of modern Political Theory 1951- डेविड ईस्टन

    2. The Decline of Political Theory 1953- अल्फ्रेड कोबान



    निम्न बौद्धिक प्रवृत्तियों ने राजनीतिक सिद्धांतों के पतन को बढ़ावा दिया-


    1. विचारधारा- प्रमुख विचारधारा मार्क्सवादी विचारधारा है| जब कार्ल मार्क्स ने घोषणा की कि उनका इरादा विश्व की व्याख्या करना नहीं, बल्कि उसे बदलना है, तो उन्होंने सिद्धांत और व्यवहार के बीच का अंतर समाप्त कर दिया| 

    2. प्रत्यक्षवाद- प्रत्यक्षवाद के जनक काम्टे हैं| इन्होंने तथ्यों के अनुभववाद पर बल देकर राजनीतिक सिद्धांत के महत्व को समाप्त कर दिया| 

    3. नव प्रत्यक्षवाद या तार्किक प्रत्यक्षवाद- मैक्स वेबर व वियना सर्किल

    4. भाषा शास्त्रीय दर्शन- लुडविख विटजेस्टाइन, भाषाशास्त्रीय दर्शन भी परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत का आलोचक है| 

    5. व्यवहारवाद- डेविड ईस्टन



    राजनीतिक सिद्धांतों के पतन के समर्थक विचारक-


    1. डेविड ईस्टन

    2. अल्फ्रेड कोबान 

    3. पीटर लॉसलेट

    4. रॉबर्ट डहल

    5. सीमोर लिपसेट

    6. दांते जर्मिनो 



    राजनीतिक सिद्धांत के पतन के कारण-


    • निम्न विचारको ने राजनीतिक सिद्धांतों के पतन के कारण पर चर्चा की है-

    1. डेविड ईस्टन

    2. अल्फ्रेड कोबान 

    3. दांते जर्मिनो 

    4. सीमोर लिप्सेट 


    डेविड ईस्टन-


    • राजनीतिक सिद्धांतों के पतन के विवाद के प्रतिपादक डेविड ईस्टन है|

    • डेविड ईस्टन ने 1951 के अपने लेख ‘The decline of  Modern Political Theory’ में राजनीतिक सिद्धांतों के पतन की चर्चा की|


    • डेविड ईस्टन ने राजनीतिक सिद्धांतों के पतन के निम्न कारण बताएं-

    1. मूल कारण- इतिहासवाद

    2. नैतिक सापेक्षवाद

    3. अति तथ्यवाद

    4. विज्ञान व सिद्धांत के प्रति संशय 

    5. नए सिद्धांतों के निर्माण की उपेक्षा


    1. इतिहासवाद-

    • डेविड ईस्टन ने सिद्धांतों के पतन का मूल कारण इतिहासवाद को माना है|

    • डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीति सिद्धांत इतिहासवादी अर्थात ऐतिहासिक उपागम पर आधारित है| यह समकालीन समस्याओं के समाधान ढूंढने में असफल रहा है| इस कारण राजनीतिक सिद्धांत वर्तमान में अप्रासंगिक है| 

    • डेविड ईस्टन ने इतिहासवाद को चार भागों में बांटा है तथा निम्न इतिहासवाद के समर्थक विचारको को पतन का जिम्मेदार माना है-

    • इतिहासवाद के प्रकार-

    1. संस्थावादी- कार्लाइल व मेकलवेन

    2. अंतःक्रियावादी- एलेन

    3. भौतिकतावादी- डेनिंग व सेबाइन

    4. मूल्यवादी- ए डी लिंडसे


    1. संस्थावादी-

    • कार्लाइल व मेकलवेन प्रमुख संस्थावादी है|

    • संस्थावादी संस्थाओं के विकास पर तो चर्चा करते हैं, लेकिन संस्थाओं का विकास वर्तमान घटनाक्रम को किस प्रकार प्रभावित करता है, नहीं बताते| 


    1. अंतः क्रिया वादी

    • एलेन मुख्य अंतःक्रियावादी है|

    • अंतःक्रियावादी उन राजनीतिक विचारों को महत्वपूर्ण मानते हैं, जो संस्थाओं के साथ अंतः क्रिया कर उन्हें प्रभावित करते हैं|

    • अतः उनके लिए नवीन मूल्यों तथा सिद्धांत निर्माण का कोई महत्व नहीं है|


    1. भौतिकतावादी-

    • डनिंग व सेबाइन मुख्य भौतिकतावादी हैं|

    • इनके अनुसार सभी विचारकों के विचार अपने समय की परिस्थितियों से प्रभावित होते  हैं|

    • ये राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने वाली ऐतिहासिक परिस्थितियों के अध्ययन पर बल देते हैं|


    1. मूल्यवादी-

    • ए डी लिंडसे मुख्य मूल्यवादी है|

    • ये आधुनिक मूल्यों (लोकतंत्र, न्याय) को प्रासंगिक साबित करने के लिए इतिहास से प्रमाण जुटाते हैं| 


    1. नैतिक सापेक्षवाद-

    • डेविड ह्यूम व मैक्स वेबर को डेविड ईस्टन नैतिक सापेक्षवाद के जिम्मेदार ठहराते हैं|

    • ये मूल्यों के प्रति इतने समर्पित हैं, कि इन्होने तथ्यों के उल्लंघन के परिणामों पर विचार नहीं किया|

    • डेविड ह्यूम ने संशयवाद को बढ़ावा दिया, उन्होंने किसी भी प्रकार के सार्वभौम व वस्तुनिष्ट सत्य की संभावना को नकार दिया| 

    • मैक्स वेबर ने मूल्यों के प्रति सापेक्ष दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया|

    • वर्तमान में मूल्यों के बजाय तथ्यों पर बल देने की आवश्यकता है, अत: राजनीतिक सिद्धांत अप्रासंगिक है| 


    1. अति तथ्यवाद-

    • मुख्य संस्थावादी विचारक लार्ड जेम्स ब्राइस ने कहा था की “तथ्य तथ्य और अधिक तथ्य|”

    • डेविड ईस्टन ने इसे अतितथ्यवाद कहकर जेम्स ब्राइस की आलोचना की|

    • डेविड ईस्टन ने जेम्स ब्राइस को 19वीं सदी के ऐतिहासिक प्रत्यक्षवाद की उपज कहा| 

    • डेविड ईस्टन ने अति तथ्यवाद की इस प्रवृत्ति को ‘सैद्धांतिक कुपोषण’‘तथ्यों की निष्प्रयोज्जता’ कहा|

    • इस अति तथ्यवाद के कारण राजनीति सिद्धांत का सिद्धांत पक्ष प्राय: उपेक्षित रह गया| 

    • डेविड ईस्टन “अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक स्वतंत्र पैदा होता है, किंतु अतितथ्यवादी अतीत से बंधे होने के कारण वह सर्वत्र बंदी है|”


    1. विज्ञान व सिद्धांत के प्रति संशय (विज्ञान व सिद्धांत संबंधी भ्रम)-

    • डेविड ईस्टन के अनुसार सिद्धांतों के पतन का एक कारण आनुभविक वैज्ञानिक शोध के प्रति उदासीनता भी है|

    • वैज्ञानिक व आनुभविक शोध का उद्देश्य सिद्धांत निर्माण है| 

    • राजनीतिक सिद्धांत शास्त्रियों ने विज्ञान और सिद्धांत का प्रयोग गलत तरीके से किया है| 

    • डेविड ईस्टन के अनुसार अगर शोध के द्वारा सामान्य सिद्धांतों का निर्माण नहीं हुआ हो, व केवल तथ्यों का ढेर खड़ा किया गया हो या समरूपताओं की अंधाधुंध खोज की गई हो तो, यह हमें अनगढ़ अनुभववाद (Crude Empiricism) की ओर ले जाएगा|

    • डेविड ईस्टन “प्राकृतिक विज्ञानों की अपरिपक्व और गुलाम मानसिकता से की गई नकल से सामाजिक विज्ञान, विज्ञानवाद का शिकार हो जाएगा|


    1. नवीन सिद्धांतों के निर्माण की उपेक्षा-

    • परंपरागत राजनीति शास्त्री एक शताब्दी पूर्व के विचारों में ही उलझे रहे तथा भविष्य में क्या घटित होने वाला है, पर चर्चा नहीं की, अर्थात नवीन राजनीति सिद्धांतों के निर्माण की अपेक्षा की|

    • नवीन सिद्धांतों के निर्माण की उपेक्षा से भी राजनीतिक सिद्धांतों का पतन हुआ|


    • डेविड ईस्टन ने अपनी कृति ‘द पॉलिटिकल सिस्टम: एन इंक्वारी इनटू द स्टेट ऑफ पॉलिटिकल साइंस’ (राजनीतिक प्रणाली: राजनीतिक विज्ञान की दशा) 1953 में कहा कि समकालीन समाज में राजनीतिक सिद्धांत की कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि-

    1. राजनीतिक सिद्धांत कोरे चिंतन-मनन पर आधारित है|

    2. इसमें राजनीतिक यथार्थ के गहन निरीक्षण का नितांत अभाव है|

    3. परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत उस उथल-पुथल की उपज है, जो बीते युगो के इतिहास की विशेषता है| जैसे प्लेटो से पूर्व यूनान, 15वीं सदी के इटली, 16वीं व 17वी सदी सदी के इंग्लैंड और 18वीं सदी के फ्रांस में ऐसे उथल-पुथल के कारण ही राजनीतिक चिंतन को पनपने का अवसर मिला है|

    • इसलिए राजनीतिक सिद्धांत को वैज्ञानिक आधार पर स्थापित करने के लिए राजनीतिक सिद्धांतों को इतिहास की परंपरा से मुक्त करना आवश्यक है|


    • डेविड ईस्टन “कार्ल मार्क्स और स्टुअर्ट मिल के बाद कोई महान दार्शनिक पैदा नहीं हुआ, अतः पराश्रितों की तरह एक शताब्दी पुराने विचारों के साथ चिपके रहने से क्या फायदा|”

    • डेविड ईस्टन “परंपरावाद सिर्फ अटकल बाजी है|” 

    • डेविड ईस्टन “राजनीति विज्ञान के पास उसका विकास और एकीकरण करने तथा वर्तमान संकट और चुनौतियों का सामना करने के लिए एक भी राजनीतिक सिद्धांत नहीं है, इसका एक कारण एक शताब्दियों पुराने विचारों से चिपके रहना तथा दूसरा वे एक नया राजनीतिक संश्लेषण सिद्धांत देने में असमर्थ है|”

    • डेविड ईस्टन के मत में अर्थशास्त्रियों व समाज वैज्ञानिकों ने तो मनुष्य के यथार्थ व्यवहार का अध्ययन किया, लेकिन राजनीतिक वैज्ञानिक इस मामले में पिछड़े रहे| द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अर्थशास्त्रियों, समाज वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों ने तो निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई, लेकिन राजनीतिक वैज्ञानिकों ने नहीं|

    • अतः परंपरागत राजनीति की जगह राजनीतिक वैज्ञानिकों को अन्य सामाजिक वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान का निर्माण करना चाहिए|

    • लेकिन डेढ़ दशक बाद में डेविड ईस्टन ने राजनीतिक सिद्धांत के पुनरुत्थान की आवश्यकता अनुभव की, तथा 1969 में उत्तर-व्यवहारवादी क्रांति की घोषणा की| राजनीति विज्ञान को एक शुद्ध विज्ञान से ऊपर उठाकर अनुप्रयुक्त विज्ञान का रूप देने की मांग की और वैज्ञानिक अनुसंधान को समकालीन समाज की समस्याओं के समाधान में लगाने पर बल दिया|



    अल्फ्रेड कोबान-


    • लेख- ‘The decline of Political Theory’ 1953 

    • इन्होंने1953 में ‘पॉलिटिकल साइंस कवाटरनली’ में प्रकाशित अपने लेख ‘The decline of Political Theory’ 1953 में लिखा कि “समकालीन समाज में न तो पूंजीवादी प्रणालियों में और न ही साम्यवादी प्रणाली में राजनीतिक सिद्धांत की कोई प्रासंगिकता रह गई है|”

    • अल्फ्रेड कोबान का मानना है कि पूर्व में भी राजनीतिक सिद्धांत पतन की अवस्था से गुजरा है| प्लेटो व अरस्तु की रचनाओं से यह उत्कर्ष पर पहुंचा, पर रोमन काल में दरबारी गुटों व सैनिक तानाशाही के बीच हुए राजनीतिक संघर्ष ने सिद्धांतों का पतन कर दिया|


    • अल्फ्रेड कोबान के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत की आंतरिक क्षमता और राज्य का बाह्य वातावरण राजनीतिक सिद्धांत के पतन का कारण है-

    1. राजनीतिक सिद्धांत की आंतरिक क्षमता या विषय की आंतरिक दुर्बलताएं-

    1. व्यावहारिक राजनीति से अलगाव

    2. इतिहास का प्रभाव

    3. विज्ञान का प्रभाव


    1. राज्य का बाह्य वातावरण या पश्चिम की राजनीति स्थिति-

    1. नौकरशाही

    2. राजनीतिक दल

    3. लोकतंत्र का सैद्धांतिक संकट 


    • राजनीतिक सिद्धांतों के पतन के लिए कोबान ने निम्न कारक उत्तरदायी माने-


    1. पूंजीवादी प्रणाली में राजनीतिक सिद्धांतों के पतन का कारण-

    • पूंजीवादी प्रणालियां उदार लोकतंत्र के विचार पर आधारित हैं, परंतु आज के युग में लोकतंत्र का एक भी सिद्धांतकार विद्यमान नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र का 18 वीं सदी में जन्म हुआ पर 19 वी सदी में उस पर नए सिरे से विचार नहीं किया गया तथा 20 वीं सदी में लोकतंत्र को नाजीवाद व साम्यवाद ने चुनौती दी| इस प्रकार उत्पन्न लोकतांत्रिक संकट को कोबान ने राजनीतिक सिद्धांतों का संकट माना है|

    • तथा साथ ही इन प्रणालियों में एक विस्तृत अधिकारी तंत्र या नौकरशाही तथा विशाल सैनिक तंत्र हावी हो गया है, जिससे यहां राजनीतिक सिद्धांत ही कोई भूमिका नहीं है|


    1. साम्यवादी प्रणाली में राजनीतिक सिद्धांतों के पतन का कारण-

    • साम्यवादी प्रणाली में एक नई तरह के साम्यवादी दलीय संगठन और छोटे से गुटतंत्र का वर्चस्व है, अतः यहां भी राजनीतिक सिद्धांत ही कोई प्रासंगिकता नहीं है|

    • क्योंकि राजनीतिक सिद्धांत खुले समाज में पनपता है, लेकिन यह दोनों (पूंजीवादी प्रणाली व साम्यवादी प्रणाली) बंद समाज है, यहां स्वतंत्रता नहीं है|

    • कोबान “ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों में, पीटर द्वारा शासित रूस में तथा सीजर के रोमन साम्राज्य में राजनीतिक सिद्धांत के पनपने की उम्मीद नहीं की जा सकती|”


    1. राज्य के कार्यों में वृद्धि-

    • हेगल व कार्ल मार्क्स की दिलचस्पी तो सृष्टि के छोटे से हिस्से में थी, जैसे- हेगेल का सरोकार क्षेत्रीय राज्य से था तथा कार्ल मार्क्स का सरोकार सर्वहारा वर्ग से था|

    • परंतु समकालीन राजनीति इतने विविध समूह और इतने विशाल समुदाय से जुड़ी है, जिनका हेगेल व कार्ल मार्क्स के वैचारिक ढांचे से विश्लेषण नहीं किया जा सकता, अतः राजनीतिक सिद्धांत की प्रासंगिकता नहीं है|


    1. तार्किक प्रत्यक्षवाद-

    • तार्किक प्रत्यक्षवाद मैक्स वेबर व वियना सर्किल से जुड़ा हुआ है|

    • तार्किक प्रत्यक्षवादियो ने तथ्यों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए मूल्यों को अपने विचार क्षेत्र से बाहर कर दिया, इस तरह इन्होंने भी राजनीतिक सिद्धांत के पतन में योगदान दिया|


    1. इतिहास वाद-

    • डेविड ईस्टन की तरह कोबान ने भी इतिहासवाद को राजनीतिक सिद्धांत के पतन का कारण माना है|

    • इसके लिए कोबान ने हेगेल व कार्ल मार्क्स को दोषी माना है|

    • कोबान “राजनीति सिद्धांत में इतिहास स्वत: अशिष्ट मैकियावलीवाद को जन्म दे सकता है|”


    Note- अल्फ्रेड कोबान ने यह आशा व्यक्त कि की सारा खेल खत्म नहीं हुआ है| राजनीति विज्ञान को उन प्रश्नों के उत्तर देने हैं, जिनका उत्तर देने के लिए अन्य सामाजिक विज्ञान की तर्क प्रणाली असमर्थ है|”



    दांते जर्मिनो-


    • Book- Beyond Ideology: The revival of Political Theory 1967 (विचारधारा से परे: राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान)

    • दांते जर्मिनो ने अपनी इस पुस्तक में पहले राजनीतिक सिद्धांत के पतन के कारण बताए तथा उसके बाद सिद्धांतों के पुनरुत्थान पर बल दिया| 


    • इस कृति में दांते जर्मिनो ने राजनीतिक सिद्धांत के पतन के दो कारण बताएं-

    1. प्रत्यक्षवाद-

    • इसने मूल्यों को परे रख दिया तथा केवल तथ्यों पर बल दिया इस तरह राजनीतिक सिद्धांत के पतन में योगदान दिया|


    1. राजनीतिक विचारधाराओं का प्राधान्य-

    • दांते जर्मिनो ने राजनीतिक सिद्धांतों के पतन का कारण राजनीतिक विचारधाराओं का प्रधान्य माना है, जिसको इन्होंने विचारधारात्मक/ वैचारिक अपचयनवाद या ह्रासवाद (Ideological Reductionism) कहा है|

    • इसका तात्पर्य है कि विचारधारा, विचारों का एक निश्चित समूह तैयार कर देती हैं जिनका उल्लंघन कर नए विचारों व सिद्धांतों का निर्माण करना कठिन हो जाता है|

    • विचारधाराओं का उत्कर्ष रूप मार्क्सवाद के रूप में सामने आया|

    • राजनीतिक सिद्धांत में तार्किक बहस होती है, जिसके लिए विचारों का खुलापन आवश्यक है, लेकिन विचारधारा एक निश्चित समूह के विचारों का निर्माण करती है अर्थात विचारों का खुलापन नहीं रहता है|

    • विचारधारा विश्वास पर आधारित होती है, जो बंद समाज का निर्माण करती है|


    • राजनीतिक सिद्धांतों के पतन के लिए विचारधारात्मक अवसानवाद/ अपचयनवाद या ह्रासवाद के तहत दांते जर्मिनो ने तीन विचारको को दोषी ठहराया है-

    1. देसू द ट्रेसी

    2. ऑगस्ट काम्टे

    3. कार्ल मार्क्स 


    1. देसू द ट्रेसी-

    • फ्रांसीसी क्रांति में भागीदारी निभाने वाले इस फ्रेंच विचारक ने सबसे पहले अपनी पुस्तक Elements the Ideology 1801 में ‘विचारधारा’ शब्द दिया|

    • ट्रेसी ने विचारधारा को विचारों का विज्ञान कहा है|

    • विचारधारा, विचारों का समूह तथा एक ऐसा विज्ञान है जो मनुष्य की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियों को नियंत्रित व निर्देशित करता है|


    1. ऑगस्ट काम्टे-

    • फ्रांसीसी विचारक ऑगस्ट काम्टे ने प्रत्यक्षवाद का प्रतिपादन किया|

    • इन्होंने राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक व आनुभविक पद्धति पर बल दिया|

    • दांते जर्मिनो के अनुसार काम्टे ने विज्ञानवाद को एक विचारधारा का रूप दे दिया|

    • दांते जर्मिनो ने इसे ‘ऑगस्ट काम्टे का वैज्ञानिक मसीहावाद’ कहा है|

    • दांते जर्मिनो आनुभविक सोच को गलत नहीं मानते हैं, लेकिन आलोचनात्मक मानदंड के त्याग को गलत मानते हैं| वह कहते हैं कि अरस्तु ने भी 158 सविधानो का आनुभविक अध्ययन किया था, पर उसने आलोचनात्मक मानदंड का परित्याग नहीं किया| 


    1. कार्ल मार्क्स-

    • दांते जर्मिनो “मार्क्सवाद एक विचारधारा है, न कि राजनीतिक सिद्धांत|”

    • दांते जर्मिनो का मानना है कि मार्क्स ने आमूल परिवर्तनवादी विचारधारात्मक चिंतन के माध्यम से विचारधारात्मक अवसानवाद को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया| उनका वैज्ञानिक समाजवाद धर्म, दर्शन, तत्व शास्त्र आदि को वास्तविक नहीं, बल्कि भ्रम मानता है|


    • दांते जर्मिनो “राजनीति सिद्धांत न तो न्यूनतावादी है, न व्यवहारवादी है और ना ही कट्टरवादी विचारधारा है|”

    • दांते जर्मिनो ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध 1850 से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध 1945 तक के काल को राजनीतिक सिद्धांत के लिए बैरंग या अंधकारमय काल (Bleak Period) कहा है| 



    सीमोर लिप्सेट-

    • इन्होंने अपनी कृति ‘पॉलीटिकल मैन’ 1959 में तर्क दिया कि समकालीन समाज के लिए उपयुक्त मूल्य पहले ही तय किए जा चुके हैं|

    • यूएसए के लिए उत्तम समाज को हमने पा लिया है, वर्तमान लोकतंत्र का सक्रिय रूप ही उत्तम समाज की निकटतम अभिव्यक्ति है, अतः अब आगे बहस बेकार है, इसलिए राजनीतिक सिद्धांतों की कोई प्रासंगिकता नहीं है|




    राजनीतिक सिद्धांतों का पुनरुत्थान


    राजनीतिक सिद्धांतों के पुनरुत्थान पर चर्चा करने वाले विचारक या समर्थक-


    1. दांते जर्मिनो

    2. लियो स्ट्रॉस

    3. इसाह बर्लिन

    4. ज्या ब्लैंडेन 



    राजनीतिक सिद्धांतों के पुनरुत्थान में योगदान देने वाले विचारक-


    • प्रमुख विचारक- हन्ना आरेण्ट, जुविनेल, लियो स्ट्रॉस, एरिक वोएगलिन

    • अन्य विचारक- क्रिश्चयन बे, हर्बट मार्क्यूजे, जॉन रोल्स, C B मैकफर्सन, युर्गेन हेबरमास, एलेस्डेयर मैकिंटायर, माइकल वाल्ज़र, बर्लिन, ज्या ब्लॉन्डेल  



    लियो स्ट्रास-


    • स्ट्रास ने राजनीतिक दर्शन के महत्व पर बल दिया|

    • उन्होंने तर्क दिया कि ‘राजनीति का नया विज्ञान ही राजनीतिक के ह्रास का लक्षण’ है|

    • नए राजनीति विज्ञान ने प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण अपनाकर मानकीय विषयो की जो उपेक्षा की है, उससे पश्चिमी जगत के सामान्य राजनीतिक संकट का संकेत मिलता है तथा इसने संकट को बढ़ावा दिया है|

    • स्ट्रास के मत में अनुभवमूलक सिद्धांत समस्त मूल्यों की समानता पर बल देता है, लेकिन इसको यह नहीं पता कि कुछ विचार व मूल्य उच्च कोटि के होते हैं तथा कुछ निम्न कोटि के होते हैं| सभ्य मनुष्य व जंगली जानवर में तार्किक अंतर होता है|

    • लियो स्टार्स “यद्यपि राजनीतिक दर्शन पतन और शायद निधन की स्थिति में हो सकता है, लेकिन पूर्णतया अदृश्य नहीं हो गया है|”



    दांते जर्मिनो-


    • दांते जर्मिनो के अनुसार फ्रांस की क्रांति (1789) से लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध (1945) तक विचारधाराएं प्रबल रही तथा सिद्धांतों का पतन हुआ, पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विचारधारात्मक प्रभुत्व में कमी आई तथा लियो स्ट्रास, माइकल ओकशॉट, हन्ना आरेण्ट, जूवेनल, एरिक वोएगलिन आदि राजनीतिक दार्शनिकों की रचनाओं ने राजनीतिक सिद्धांतों का पुनरुत्थान किया है|

    • दांते जर्मिनो का मानना है कि राजनीतिक सिद्धांत, प्रत्यक्षवाद के साथ-साथ नहीं पनप सकता है क्योंकि प्रत्यक्षवाद आलोचनात्मक दृष्टिकोण से सरोकार नहीं रखता है|

    • इनके मत में राजनीतिक सिद्धांत की परंपरावादी और व्यवहारवादी धाराओं के बीच की खाई इतनी गहरी हो गई है, कि इनको जोड़ने की कोई संभावना नहीं है|

    • दांते जर्मिनो “राजनीति शास्त्र सचमुच राजनीति का आलोचनाशास्त्र है| सच्चा दार्शनिक वह है जो सुकरात की तरह सत्ताधारी के प्रति सत्य बोलने का बीड़ा उठाता है|”

    • व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान में मूल्य निरपेक्षता पर बल देकर राजनीतिक सिद्धांत के तात्विक कृत्य (क्रियात्मक पक्ष) से अपना नाता तोड़ लिया है अतः राजनीतिक सिद्धांत को पुनर्जीवित करने के लिए उस तात्विक कृत्य का पुनरुत्थान जरूरी है|


       दांते जर्मिनो के अनुसार निम्न कारणों से राजनीतिक सिद्धांत का पुनरुत्थान जरूरी है-

    • जर्मिनो का मत है कि राजनीतिक सिद्धांत की नई भूमिका को समझने के लिए उसका राजनीतिक दर्शन के रूप में अध्ययन करना चाहिए, क्योंकि-

    1. राजनीति सिद्धांत, सिद्धांतों का आलोचनात्मक अध्ययन है|

    2. इसका सरोकार उचित- अनुचित के प्रश्नों से है|

    3. यह व्यवहारवादी विज्ञान नहीं है|

    4. यह किसी की राय पर आधारित विचारधारा भी नहीं है|

    5. इसमें तथ्यों का ज्ञान अंतर्दृष्टि पर आधारित है|

    6. इसका सरोकार मनुष्य की उन समस्याओं से है, जिनका सामना वे अपने सामाजिक अस्तित्व के दौरान करते हैं|

    7. कोई भी राजनीतिक- दार्शनिक अपने युग के संघर्ष के प्रति तटस्थ नहीं रह सकता है|

    • अतः उपरोक्त कारणों से राजनीतिक सिद्धांत का उत्थान जरूरी है|


    हर्बट मार्क्यूजे-


    • कृति- ‘One Dimensional Man’ 1964

    • इसमें हर्बट मार्क्यूजे ने लिखा है कि जब सामाजिक विज्ञान की भाषा को प्राकृतिक विज्ञान की भाषा के अनुरूप डालने का प्रयत्न करते हैं, तब वह यथास्थिति का समर्थक बन जाता है| 

    • जब सामाजिक विज्ञान की परिभाषा ऐसे संक्रियाओं और व्यवहार के रूप में दी जाती है, जिनका निरीक्षण  व परिमापन किया जा सकता हो, तब इसमें आलोचनात्मक दृष्टिकोण की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती|

    • ऐसी अध्ययन प्रणाली अपना लेने पर सामाजिक विज्ञान, सामाजिक अन्वेषण का साधन नहीं रह जाता है, बल्कि सामाजिक नियंत्रण का साधन बन जाता है|

    • अतः आलोचनात्मक अध्ययन के लिए सिद्धांतों के पुनरुत्थान की आवश्यकता है|



    कार्ल पॉपर-


    • ऑस्ट्रिया मूल के ब्रिटिश दार्शनिक सर कार्ल रेमंड पॉपर ने नव प्रत्यक्षवाद के सत्यापन या जांच-पड़ताल के सिद्धांत में संशोधन करते हुए ‘मिथ्याकरण या मिथ्या दर्शन’ का सिद्धांत दिया|

    • इस सिद्धांत के अनुसार कोई सिद्धांत तभी तक सत्य व अंतिम है, जब तक कि उसका खंडन नहीं हो जाता|

    • अतः पुष्टिकरण या सत्यापन की बजाय खंडन, सत्य का पता लगाने या वैज्ञानिक अनुसंधान का सबसे उपयुक्त तरीका है|

    • किसी भी सिद्धांत का खंडन तभी हो पाएगा, जब राजनीति का आलोचनात्मक अध्ययन किया जाए|



    बर्लिन-

    • बर्लिन ने अपने लेख ‘Does Political Theory Still Exist 1962 में राजनीतिक सिद्धांत के पतन संबंधी विचार का खंडन किया है|

    • बर्लिन का मत है कि “राजनीतिक सिद्धांत जीवित है और जीवित रहेगा|”



    निष्कर्ष-

    • राजनीतिक सिद्धांत के पतन का यह विवाद उत्तर-व्यवहारवाद के उदय के साथ ही समाप्त हो गया, क्योंकि राजनीतिक सिद्धांतों के पतन की बात करने वाले मूल्यों की उपयोगिता तथा अति वैज्ञानिकता की जटिलताओं को समझ चुके है|

    • तथा दूसरी ओर राजनीतिक सिद्धांतों के बने रहने के समर्थकों ने कुछ सीमा तक वैज्ञानिक तत्वों को स्वीकार कर लिया है|



    कुछ तथ्य

    • Political Theory in dog house- Rimer 

    • Death of Political Theory- रॉबर्ट डहल 

    • Demise your Political Theory- पीटर लॉसलेट 

    • एरिक वोएगलिन “राज विज्ञान व राजनीति सिद्धांत एक दूसरे से अविभाज्य हैं, एक दूसरे के बिना संभव नहीं है|”


    • समकालीन दार्शनिकों द्वारा विरोध-


    विचारक

    विरोध

    1. लियो स्ट्रास

    प्रत्यक्षवाद (Positivism) का विरोध

    1. कार्ल पॉपर

    इतिहासवाद (Historicism) का विरोध

    1. माइकल ऑकशॉट 

    तर्कबुद्धिवाद (Rationalism) का विरोध

    1. वोएगलिन 

    प्रज्ञानवाद (Gnosticism) का विरोध

    1. हरबर्ट मार्क्यूजे 

    पूंजीवाद (Capitalism) का विरोध

    1. इसाह 

    नैतिक एकत्ववाद ( Moral Monism) का विरोध

    1. हेबरमास

    तार्किक प्रत्यक्षवाद व उत्तर आधुनिकतावाद का विरोध

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