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संविधान की प्रमुख विशेषताएं / Sanvidhaan Kee Pramukh Visheshataen / Salient features of the constitution || In Hindi || BY Nirban PK Sir

 संविधान की प्रमुख विशेषताएं (Salient features of the constitution) 

    • यद्यपि मूल संविधान (26 नवंबर 1949) में संविधान संशोधन द्वारा अनेक परिवर्तन किए गए हैं| इन संशोधनों में 42 वा  संशोधन 1976 महत्वपूर्ण है, जिसे मिनी कांस्टीट्यूशन कहा जाता है|


    • वर्तमान संविधान की निम्न विशेषताएं हैं-


    1. विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान-

    • मूल संविधान में 22 भाग, 8 अनुसूचियां व 395 अनुच्छेद थे|

    • वर्तमान संविधान में 22 भाग या 25 भाग, 395 अनुच्छेद व 12 अनुसूचियां है|

    • भारतीय संविधान एक विस्तृत दस्तावेज है| यह विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है|


    अमेरिका- 7 अनुच्छेद 

    कनाडा- 147 अनुच्छेद  

    स्वीटजरलैंड- 123 अनुच्छेद


    • भारतीय संविधान को विस्तृत बनाने के निम्न कारण है-

    1. भौगोलिक कारण- भारत का क्षेत्रफल काफी बड़ा है तथा इसमें उत्तर से दक्षिण तक तथा पूर्व से पश्चिम तक काफी विविधता पायी जाती है|

    2. ऐतिहासिक कारण- भारत शासन अधिनियम 1935 काफी विस्तृत दस्तावेज था, जिसमें 321 धाराएं तथा 10 अनुसूचियां थी|

    3. एकल सविधान- केंद्र व सभी राज्यों के लिए एक संविधान है| 

    4. कानून विशेषज्ञों का प्रभुत्व- संविधान सभा में B. R अंबेडकर जैसे काफी कानून विशेषज्ञों का प्रभुत्व होना|


    • NOTE- आइवर जेनिंग्स ने इसके बड़े होने को दुर्गुण कहा है और कहा है कि “भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है|”


    1. लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान-

    • इसका तात्पर्य यह है कि भारतीय संविधान, भारतीय जनता द्वारा निर्मित है और संविधान की अंतिम शक्ति भारतीय जनता में निहित है अर्थात प्रभुसत्ता भारतीय जनता में निहित है| 


    1. विभिन्न स्रोतों से लिए गए प्रावधान- 

    • डॉ. B.R अंबेडकर “भारत के संविधान का निर्माण विश्व के विभिन्न देशों के संविधानो को  छानने के बाद किया गया है|”

    • भारत के संविधान के प्रावधान विभिन्न देशों के संविधानों तथा भारत शासन अधिनियम 1935 से लिए गए हैं|

    • संविधान का अधिकांश ढांचागत हिस्सा भारत शासन अधिनियम 1935 से लिया गया है|


    • भारत के संविधान में विभिन्न स्रोतों से लिए गए प्रावधान- 

    1. भारत शासन अधिनियम 1935- संघीय तंत्र, राज्यपाल का कार्यालय, न्यायपालिका, लोक सेवा आयोग, आपातकालीन उपबंध व प्रशासनिक विवरण|


    1. ब्रिटेन का संविधान- संसदीय शासन, विधि का शासन, विधायी प्रक्रिया, एकल नागरिकता, मंत्रिमंडल प्रणाली, परमाधिकार लेख, संसदीय विशेषाधिकार, द्विसदनवाद


    1. संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान- मूल अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, न्यायिक पुनरावलोकन का सिद्धांत, उपराष्ट्रपति का पद, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को पद से हटाना, राष्ट्रपति पर महाभियोग


    1. आयरलैंड का संविधान- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति, राज्यसभा के लिए सदस्यों का नामांकन


    1. कनाडा का संविधान- सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था, अवशिष्ट शक्तियों का केंद्र में निहित होना, केंद्र द्वारा राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति, उच्चतम न्यायालय का परामर्शी न्याय निर्णयन


    1. ऑस्ट्रेलिया का संविधान- समवर्ती सूची, व्यापार, वाणिज्य, समागम की स्वतंत्रता, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक

    2. जर्मनी का वाइमर संविधान- आपातकाल के समय मूल अधिकारों का स्थगन


    1. रूस (पूर्व सोवियत संघ) का संविधान- मूल कर्तव्य, प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक) का आदर्श


    1. फ्रांस का संविधान- गणतंत्रात्मक, प्रस्तावना मे स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आदर्श


    1. दक्षिण अफ्रीका का संविधान- संविधान में संशोधन की प्रक्रिया, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन


    1. जापान का संविधान- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया| 


    • आलोचकों द्वारा भारत के संविधान को उधार के संग्रह का संविधान भी कहा जाता है, क्योंकि भारतीय संविधान का निर्माण विश्व के विभिन्न देशों के संविधानिक अनुभवों से ग्रहण करके किया गया है|

    • इस संदर्भ में भीमराव अंबेडकर का 4 नवंबर 1948 को दिया गया भाषण बड़ा महत्वपूर्ण है, जिसमें अंबेडकर ने कहा कि “लिखित संविधानो के इतिहास को प्रारंभ हुए बहुत अधिक समय नहीं हुआ है और ऐसे संविधान के मूलभूत सिद्धांतों पर राजनीति शास्त्री एकमत होते हैं, इसलिए किसी देश के संविधान से कुछ प्रावधानों को ग्रहण करना किसी प्रकार की साहित्यिक चोरी नहीं है|”


    1. नम्यता (लचीला) एवं अनम्यता (कठोर) के मध्य समन्वय-

    • विश्व में दो तरह के सविधान होते हैं- 

    1. लचीला (नम्य) सविधान- ऐसे संविधान में संशोधन की प्रक्रिया एक साधारण कानून निर्माण की तरह होती है| जैसे- ब्रिटेन का संविधान|

    2. कठोर (अनम्य) संविधान- ऐसे संविधान में संशोधन करने की विशेष प्रक्रिया होती है| जैसे- अमेरिका (USA) का संविधान

    • ब्रिटेन का संविधान विश्व का सबसे लचीला संविधान है, वहीं अमेरिका का संविधान विश्व का सबसे ज्यादा कठोर संविधान है|


    • भारतीय संविधान इन दोनों संविधानो का समन्वय है| भारत के संविधान में संशोधन 3 तरह से होता है-

    1. संसद के साधारण बहुमत से (मतदान का 50% से अधिक)

    2. संसद के विशेष बहुमत से (कुल सदस्यों का बहुमत तथा उपस्थित व मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों का ⅔ बहुमत)

    3. विशेष बहुमत और कुल राज्यों में कम से कम आधे राज्यों का अनुसमर्थन| 


                         NOTE- संशोधन का (II)  व (III) प्रावधान अनु. 368 के तहत आते हैं|


    1. एकात्मकता की ओर झुकाव वाली संघीय व्यवस्था

    • भारतीय संविधान में संघीय शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है|

    • अनु.1 में राज्यों का संघ (Union Of States) का प्रयोग किया गया है|

    • यह संघ से 2 तरीकों से भिन्न है-

    1. भारतीय संघ, राज्यों के बीच हुए किसी समझौते का निष्कर्ष नहीं है|

    2. किसी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है| 

    • भारतीय संविधान में संघीय विशेषता के साथ एकात्मकता की भी विशेषताएं पायी जाती है, अत: भारतीय संविधान एकात्मकता की ओर झुकाव वाला संघीय व्यवस्था है|


    भारतीय संघ को निम्न नाम दिए गए हैं-

    • K.C व्हीयर- एकात्मकता की भावना में संघ, अर्द्ध संघ

    • मॉरिस जोन्स- बारगेनिंग फ्रेडरेलिज्म (सौदेबाजी संघवाद)

    • ग्रेनविल ऑस्टिन- को-ऑपरेटिव फ्रेडरेलिज्म (सहकारी संघवाद)

    • आइवर जेनिंग्स- फ्रेडरेशन विद ए सेंट्रलाइजिंग टेडेसी (केंद्रीकरण की प्रवृत्ति वाला संघ) व सौहार्दपूर्ण संघ

    • अंबेडकर “सविधान को संघात्मक के तंग ढांचे में नहीं ढाला गया है|”

    • डी डी बसु “भारतीय संविधान संघात्मक व एकात्मक का मिश्रण है|”

    • चार्ल्स टार्लटन- विषम संघवाद (Asymmetric Federation) 

    • के संथानम- परमउच्चता संघ (Paramountcy Federation) 

    • पॉल एच एपलबी- अत्यंत संघीय (extremely federal)

    • S R बोम्मई वाद 1994 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संघवाद संविधान का मूल ढांचा है| 

     

    1. सरकार का संसदीय रूप- 

    • सरकार के दो रूप होते हैं-

    1. अध्यक्षीय प्रणाली

    2. संसदीय प्रणाली 


    1. अध्यक्षीय प्रणाली- इस प्रणाली में कार्यपालिका और विधायिका के मध्य शक्तियों का विभाजन होता है| कार्यपालिका के सदस्यों का चुनाव विधायिका से नहीं किया जाता है| जैसे- अमेरिका


    1. संसदीय प्रणाली- इस प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका के मध्य सहयोग व समन्वय होता है| कार्यपालिका के सदस्यों का चुनाव विधायिका में से ही किया जाता है| जैसे- ब्रिटेन


    • भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली अपनायी गयी है|

    • भारत की संसदीय शासन प्रणाली में दो तरह के प्रमुख है

    1. नाममात्र/ संवैधानिक- राष्ट्रपति (De.ज्यूरे)

    2. वास्तविक- P.M व मंत्री परिषद (De facto)


    • संसदीय प्रणाली को सरकार का वेस्टमिंस्टर रूप, उत्तरदायी सरकार, मंत्रिमंडलीय सरकार भी कहा जाता है|

                     

                          NOTE- वेस्टमिंस्टर लंदन में एक स्थान है, जहां ब्रिटिश संसद है| 


    • ब्रिटिश व भारतीय संसदीय प्रणाली में अंतर-

    1. ब्रिटिश संसद की तरह भारतीय संसद संप्रभु नहीं है|

    2. भारत का प्रधान निर्वाचित होता है (गणतंत्र), जबकि ब्रिटेन में उत्तराधिकारी व्यवस्था है|


    1. संसदीय संप्रभुता एवं न्यायपालिका की सर्वोच्चता में समन्वय व संविधान की सर्वोच्चता- 

    • संसदीय संप्रभुता का सिद्धांत- ब्रिटेन

    • न्यायपालिका की सर्वोच्चता का सिद्धांत- अमेरिका

    • भारतीय संविधान में इन दोनों के मध्य समन्वय/ संतुलन स्थापित किया गया है| भारत में सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति के माध्यम से संसदीय कानूनों को  असंवैधानिक घोषित कर सकता है| वहीं संसद अपनी संविधान संशोधन की शक्ति के द्वारा भारत के संविधान के बड़े भाग को संशोधित कर सकती है|

    • भारत में संविधान सर्वोच्च है, क्योंकि सरकार के तीनों अंग संविधान से शक्तियां प्राप्त करते हैं|


    1. एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका- 

    • भारतीय संविधान में एकीकृत व स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की गई है| भारत की न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है| इसके नीचे राज्य स्तर पर उच्च न्यायालय| उच्च न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायालय है|

    • यह न्यायालय का एकल तंत्र केंद्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य कानूनो को भी लागू करता है| 


    • Note- अमेरिका में संघीय न्यायिक व्यवस्था है| केंद्र के लिए संघीय न्यायपालिका और राज्यों के लिए राज्य न्यायपालिका है|


    1. मौलिक अधिकार- 

    • संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12- 35 तक 6 मौलिक अधिकार दिए गए हैं|


    1. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत- 

    • संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36- 51 तक राज्य के नीति निदेशक तत्वों का वर्णन है|


    • ग्रेनविल ऑस्टिन ने नीति निर्देशक तत्व व मौलिक अधिकार दोनों को राज्य की आत्मा कहा है| 

    • ग्रेनविल ऑस्टिन “मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्व भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों को एक सूत्र में पिरोकर सामाजिक क्रांति की जमीन को मजबूत करते हैं|”



    1. मौलिक कर्तव्य- 

    • संविधान के भाग 4 ‘क’ में अनुच्छेद 51 ‘क’ में 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है|


    1. एक धर्मनिरपेक्ष राज्य- 

    • भारत में धर्मनिरपेक्ष की जगह पथ निरपेक्ष शब्द है| भारत किसी धर्म विशेष को राज्य धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देता है, न किसी धर्म के साथ भेदभाव करता है|

    • संविधान के निम्न प्रावधान पंथनिरपेक्ष लक्षण दर्शाते हैं-

    1. प्रस्तावना

    2. अनुच्छेद-14

    3. अनुच्छेद- 15

    4. अनुच्छेद- 16 

    5. अनुच्छेद- 25

    6. अनुच्छेद- 26

    7. अनुच्छेद- 27

    8. अनुच्छेद- 28

    9. अनुच्छेद- 29

    10. अनुच्छेद- 30

    11. अनुच्छेद- 44


    1. सर्वभौमिक व्यस्क मताधिकार (अनुच्छेद 326)-  

    • सभी नागरिकों को जिसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है, बिना किसी भेदभाव के मताधिकार दिया गया है|


    Note- 61 वें संशोधन 1988 के द्वारा 1989 में मतदान करने की आयु 21 वर्ष से हटाकर 18 वर्ष कर दी है|


    1. एकल नागरिकता- 

    • संघीय तंत्र होने के बावजूद भी भारत में एकल नागरिकता है|

    • सभी भारतीयों को भारतीय नागरिकता दी गई है|

    • अमेरिका (USA) में व्यक्ति के पास देश व राज्य दोनों की नागरिकता होती है|


    1. स्वतंत्र निकाय-

    • भारतीय संविधान कुछ स्वतंत्र निकायों की स्थापना करता है-

    1. निर्वाचन आयोग (अनुच्छेद 324)

    2. संघ लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद315)

    3. राज्य लोक सेवा आयोग (अनुच्छेद 315)

    4. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (अनुच्छेद 148)

    1. आपातकालीन प्रावधान- 

    • आपातकाल की स्थिति से निपटने के लिए तथा देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रपति को तीन आपातकालीन शक्तियां दी गई है-

    1. राष्ट्रीय आपातकाल (अनु.- 352)

    2. राष्ट्रपति शासन (अनु. 356)

    3. वित्तीय आपातकाल (अनु. 360) 


    1. त्रिस्तरीय सरकार- 

    • मूल संविधान में दो स्तरीय सरकार की स्थापना की गई थी|

    1. केंद्र सरकार

    2. राज्य सरकार


    •  73 वे व 74 वे संशोधन 1992 में तीसरे स्तर स्थानीय सरकार की स्थापना की गई|


    • वर्तमान में त्रिस्तरीय सरकार-

    • केंद्र स्तर- केंद्र सरकार

    • राज्य स्तर- राज्य सरकार

    • स्थानीय स्तर- स्थानीय सरकार


    1. हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता देना- 

    • अनुच्छेद 343 ‘क’ में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है|

    • वर्तमान में आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को वैधानिक मान्यता प्राप्त है|




    संविधान के भाग  


    भाग

    विषय 

    अनुच्छेद 

    भाग- I

    संघ और उसका राज्य क्षेत्र

    1- 4

    भाग- II

    नागरिकता

    5- 11

    भाग-III

    मौलिक अधिकार

    12- 35

    भाग-IV

    नीति- निर्देशक तत्व

    36- 51

    भाग-IV ‘क’

    मौलिक कर्तव्य

    51’क’ 




    भाग - V

    संघ (The Union)

    52- 151


    अध्याय- 1 कार्यपालिका

    52-78


    अध्याय- 2 विधायिका/ संसद

    79-122


    अध्याय-3 राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां


    123


    अध्याय- 4 न्यायपालिका

    124-147


    अध्याय- 5 CAG

    148-151




    भाग- VI

    राज्य

    152- 237


    अध्याय-1 साधारण

    152


    अध्याय-2 कार्यपालिका

    153-167


    अध्याय-3 विधायिका 

    168-212


    अध्याय-4 राज्यपाल की विधायी शक्तियां

    213


    अध्याय-5 उच्च न्यायालय 

    214-232


    अध्याय- 6 अधीनस्थ न्यायालय

    233-237



    भाग-VIII    

    संघ राज्य क्षेत्र (UT) 

    239-242

    भाग-  IX

    पंचायतें 

    243-243 ण (O)

    भाग-  IX ‘क’

    नगरपालिकाए

    243त(P)- 243 य छ (ZG)

    भाग-  IX ‘ख’

    The Co-operative Societies

    243ZH- 243ZT

    भाग- X

    अनुसूचित जाति व जनजाति क्षेत्र

    244- 244क 

    भाग- XI

    संघ और राज्यों के बीच संबंध 

    अध्याय-1 विधायी संबंध  अध्याय-II प्रशासनिक संबंध 

    245-263   

    245-255  

    256-263                  


                

    भाग- XII

    वित्त, संपत्ति, सविदाएं और वाद

    264- 300’क’


    अध्याय-1 वित्त

    264- 291


    अध्याय- II ऋण उधार लेना

    292- 293


    अध्याय-  III संपत्ति, संविदाएं, अधिकार, बाध्यताएं और वाद

    294 -300


    अध्याय- IV संपत्ति का अधिकार

    300 ‘क’

                   

    भाग-  XIII

    भारत के राज्य क्षेत्र  के भीतर व्यापार, वाणिज्य एवं समागम

    301-307

    भाग-  XIV

    संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं

    अध्याय- I सेवाएं              

    अध्याय-  II लोक सेवा आयोग 

    308-323  


    308-314

    315-323

    भाग- XIV ‘क’

    अधिकरण

    323 क- 323 ख

    भाग-XV

    निर्वाचन

    324- 329 ‘क’

    भाग- XVI

    अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग एवं आंगल- भारतीयों के संबंध में विशेष उपबंध

    330-342 ‘A’




    भाग- XVII

    राजभाषा

    343- 351


    अध्याय- I संघ की भाषा

    343- 344


    अध्याय-II प्रादेशिक भाषाएं 

    345-347


    अध्याय- III सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय आदि की भाषा

    348 -349


    अध्याय- IV विशेष निर्देश

    350-351




    भाग- XVIII

    आपात उपबंध

    352-360 

    भाग-  XIX

    प्रकीर्ण

    361-367

    भाग-  XX

    संविधान का संशोधन

    368

    भाग- XXI

    अस्थायी, संक्रमणशील और विशेष उपबंध 

    369- 392

    भाग- XXII

    संक्षिप्त नाम, प्रारंभ, हिंदी में प्राधिकृत पाठ और निरसन

    393- 395




    NOTE- भाग- VII (भाग- ख राज्य से संबंधित) को 7वें संशोधन अधिनियम 1956 द्वारा विलोपित कर दिया गया|

    • भाग-  IV ‘क’ तथा भाग- XIV ‘क’ दोनों का समावेश 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा किया गया|

    • भाग- IX ‘क’ का समावेश 74 वें संशोधन 1992 द्वारा किया गया| 

    • भाग- IX ‘ख’ का समावेश 97 वें संशोधन 2011 द्वारा किया गया|



    अनुसूचियां


    • मूल संविधान में 8 अनुसूचियां थी किंतु वर्तमान संविधान में 12 अनुसूचियां है|


    • अनुसूची- I  (अनुच्छेद- 1 व अनुच्छेद- 4)

    • इसमें राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों का नाम तथा उनके राज्य क्षेत्र का वर्णन है|


    • अनुसूची- II  (अनुच्छेद-59(3), 65(3), 75(6), 97,125,148(3),158(3),164(5),186,221)

    • इसमें उच्च पदाधिकारियों के वेतन का वर्णन है, जो निम्न है- 

    1. भारत का राष्ट्रपति

    2. राज्यों के राज्यपाल

    3. लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

    4. राज्यसभा के सभापति और उपसभापति

    5. राज्य विधानसभाओं के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष

    6. राज्य विधान परिषदो के सभापति और उपसभापति

    7. सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश

    8. भारत का नियंत्रक और महालेखा परिक्षक


    • अनुसूची- III (अनु.75(4) ,99,124(6),148(2),164(3),188, 219)

    • इनमें विभिन्न पदाधिकारियों के द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप का वर्णन है, ये निम्न है-

    1. संघ के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्रारूप

    2. संघ के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्रारूप

    3. ‘क’ संसद के निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप

    ‘ख’ संसद के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप 

    1. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप

    2. भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप

    3. किसी राज्य के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्रारूप

    4. किसी राज्य के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्रारूप

    5. ‘क’ किसी राज्य की विधान मंडल के लिए निर्वाचन के लिए अभ्यार्थी द्वारा ली जाने वाली शपथ का  प्रारूप

    ‘ख’ राज्य के विधान मंडल के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप

    1. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा ली जाने वाली शपथ का प्रारूप


                         Note- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल की शपथ का उल्लेख तीसरी अनुसूची में नहीं है|


    • अनुसूची- IV [अनुच्छेद 4(1) 80(2)]

    • इस अनुसूची में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए राज्यसभा में स्थानों का आवंटन दिया गया है|

    • राजस्थान, उड़ीसा-10,10

    • पंजाब, असम, तेलगाना- 7, 7,7

    • हरियाणा, छत्तीसगढ़- 5, 5

    • गुजरात, MP, आंध्र प्रदेश- 11,11,11

    • पश्चिम बंगाल, बिहार -16,16

    • दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश- 3, 3, 3 

    • उत्तर पूर्व के राज्य (असम को छोड़कर) पांडिचेरी, गोवा, सिक्किम-1 ,1……..

    • जम्मू कश्मीर- 4

    • झारखंड- 6

    • तमिलनाडु-18

    • केरल- 9

    • महाराष्ट्र- 19

    • कर्नाटक-12

    • उत्तर प्रदेश-31 


    • अनुसूची- V (अनु. 244(1)) 

    • इस अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियो के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उपबंध दिए गए है|

     

    • अनुसूची- VI [244(2), अनु. 275(1)]

    • यह अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में उपबंधब करती है|

     

    • अनुसूची- VII  

    • यह संघात्मक शासन का प्रतीक है| इसमें केंद्र व राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया है-

    1. संघ सूची- 97 विषय (संघ सरकार कानून बना सकती है)

    2. राज्य सूची- 66 विषय (राज्य सरकार कानून बना सकती है)

    3. समवर्ती सूची- 47 विषय (दोनों सरकार कानून बना सकती है) 


    निम्न मामलों में राज्य सूची के विषय पर संसद कानून बना सकती है-


    • अनुच्छेद- 249 -

    • राज्यसभा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम ⅔ बहुमत द्वारा संकल्प घोषित कर दे कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक है की संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बनाए तो संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है|

    • ऐसा कानून 1 वर्ष तक प्रभावी रहेगा|

    • लेकिन प्रत्येक वर्ष में राज्यसभा ऐसा संकल्प पारित करके बार-बार समय बढ़ा सकती है|


    •  अनुच्छेद- 250

    • राष्ट्रीय आपातकाल (352) के समय संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती हैं|

    • ऐसी विधि आपातकाल समाप्ति के बाद छ माह तक रहती है|


    • अनुच्छेद- 252-

    • यदि दो या दो से अधिक राज्यों के विधान मंडल राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का संकल्प पारित कर दे, तो संसद राज्य सूची पर कानून बना सकती है

    • ऐसा कानून उन्हीं राज्यों पर लागू हो, जिन्होंने इसकी मांग की है तथा जिस राज्य विधान मंडल ने ऐसे संकल्प को स्वीकार कर लिया है|

    • समाप्त- राज्य विधान मंडल द्वारा पारित संकल्प के द्वारा| 


    • अनुच्छेद- 253-

    • अंतर्राष्ट्रीय संधि व समझौते को प्रभावी करने के लिए संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है 


    • समवर्ती सूची-

    • 42 वें संशोधन 1976 के द्वारा निम्न विषय राज्य सूची से समवर्ती सूची में जोड़े गए-

    1. शिक्षा

    2. वन व पर्यावरण

    3. वन्य जीव

    4. माप- तोल

    5. जनसंख्या नियंत्रण


    • अनुच्छेद- 254-

    • केंद्र व राज्य में समवर्ती सूची के विषय पर मतभेद होता है तो केंद्र का कानून मान्य होता है|

    • यदि राज्य राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति लेकर कानून बनाता है तो राज्य का कानून मान्य होगा|


    • अनुसूची- VIII  (अनु. 344(1), 351)

    • इसमें मूल रूप में 14 तथा वर्तमान में 22 भाषाओं का उल्लेख है| 

    • 15वीं भाषा- सिंधी 21 वे संशोधन 1967 के द्वारा जोड़ा 

    • 16 वी भाषा- नेपाली

    • 17 वी भाषा- मणिपुरी

    • 18वीं भाषा  कोकणी (गोवा में)

    16,17,18 तीनों भाषाएं 71 वें संशोधन 1992 के द्वारा जोड़ी गई |


    • 19वीं भाषा- बोडो

    • 20वी भाषा- डोगरी

    • 21वी भाषा- मैथिली

    • 22 वी भाषा- संथाली 

    • 19,20,21,22 चारों भाषाएं 92 वां संशोधन 2003 के द्वारा जोड़ी गई (BDMS )


                    NOTE- 8वीं अनुसूची में अंग्रेजी भाषा सम्मिलित नहीं है|

    • 96 वे संशोधन 2011 के द्वारा उड़िया की जगह ओड़िया (Odia) शब्द जोड़ा गया|


    14 भाषाएं-

    1. आसमियां

    2. बांग्ला

    3. गुजराती

    4. हिंदी

    5. कन्नड़

    6. कश्मीरी

    7. मलयालम

    8. मराठी

    9. ओडिया

    10. पंजाबी

    11. संस्कृत

    12. तमिल

    13. तेलुगू

    14. उर्दू


    • अनुसूची- IX

    • यह अनुसूची प्रथम संशोधन अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ी गई|

    • यह भूमि सुधार से संबंधित है और जमीदारी उन्मूलन से संबंधित है|

    • इसमें 284 कानून या अधिनियम है|

    • सामान्यतः इन 9 वी अनुसूची के अधिनियमो का न्यायिक पुनरावलोकन नहीं किया जा सकता है|


    Note- तमिलनाडु आरक्षण मामला 2007 में S.C ने निर्णय दिया कि 24 अप्रैल 1973 के बाद 9वीं अनुसूची में शामिल कानूनों का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है| 


    • अनुसूची- X  [अनु.102(2) और अनु. 191(2)]

    • यह अनुसूची 52वे संशोधन 1985 द्वारा 1 मार्च 1985 को जोड़ी गई|

    • इसमें दलबदल के आधार पर संसद और विधानमंडल के सदस्यों की निरहर्ता के बारे में उपबंध है|

    • दलबदल के आधार पर  संसद और विधानमंडल के अध्यक्ष/ सभापति का निर्णय अंतिम होगा|

    • इसे दलबदल रोधी कानून भी कहा जाता है|

     

    • निम्न मामलों में दलबदल नहीं माना जाएगा-

    1. यदि किसी दल के 1/3 सदस्य (सांसद/ विधायक) अलग दल का निर्णय करते हैं, तो उसे दल विभाजन माना जाएगा|

    2. यदि किसी दल के 2/3 सदस्य दूसरे दल में सम्मिलित होते हैं तो उसे दल विलय माना जाएगा| 


    • 91 वे संशोधन 2003- 

    1. 75(1)a- लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक मंत्री (प्रधानमंत्री सहित) नहीं होंगे|

    2. 75(1)b- दलबदल वाला मंत्री पद के लिए निरर्हित होगा |

    3. 164(1)a- विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक मंत्री (मुख्यमंत्री सहित) नहीं होंगे|

    4. 164(1)b- दलबदल वाला मंत्री पद के लिए निरर्हित होगा|


    • अनुसूची- XI

    • यह 73 वे संशोधन 1992 द्वारा जोड़ी गई|

    • यह पंचायती राज से संबंधित है|

    • इसमें 29 विषय है


    • अनुसूची- XII

    • यह 74 वे संशोधन 1992 द्वारा जोड़ी गई|

    • यह नगरपालिका से संबंधित है|

    • इसमें 18 विषय शामिल है| 

    अब तक भारतीय संविधान में 106 संविधान संशोधन हो चुके हैं-


    • प्रथम संविधान संशोधन, 1951

    • इस संशोधन में भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए वाक स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य के अधिकार तथा कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने के नए अधिकारों की व्यवस्था है।

    • इस संशोधन द्वारा दो नए अनुच्छेद 31क और 31ख तथा नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया, ताकि भूमि सुधार क़ानूनों को चुनौती न दी जा सकें।


    • 101वां संविधान संशोधन 2016- वस्तू व सेवा कर (GST) से संबंधित

    • 102 वां संविधान संशोधन 2018- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा (अनुच्छेद 338B जोड़ा गया)

    • 103 वां संविधान संशोधन 2019- आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को शैक्षणिक संस्थाओं व सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण

    • 104वां संविधान संशोधन 2019- लोकसभा व राज्य विधानसभा में अनुसूचित जाति व जनजाति का आरक्षण 2030 तक बढ़ाया गया तथा लोकसभा व राज्य विधानसभा में एंग्लो इंडियन का मनोनयन नहीं होगा|

    • 105 वां संविधान संशोधन 2021- सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की पहचान की राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों की शक्ति का संरक्षण| 


    • 106 वां संविधान संशोधन 2023-

    • यह 128 वे संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया गया तथा 106 वा संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में पारित हुआ| 

    • अधिनियम का नाम- नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 या महिला आरक्षण अधिनियम 2023 

    • लोकसभा में पारित-19 सितंबर 2023

    • राज्यसभा में पारित- 21 सितंबर 2023

    • राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर- 28 सितंबर 2023 

    • नोट- यह अधिनियम उस दिन लागू होगा, जो केंद्र सरकार अधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्धारित करेगी| 

    • प्रावधान-

    1. यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान करता है| 

    2. अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति में पहले से आरक्षित सीटें महिला आरक्षण के दायरे में रहेगी| 

    3. यह नई संसद भवन में पारित होने वाला प्रथम अधिनियम है| 

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