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Raajy ke Neeti Nideshak Tatv /राज्य के नीति निदेशक तत्व /DIRECTIVE PRINCIPLES OF STATE POLICY || InHindi || BY Nirban PK Sir

     राज्य के नीति निदेशक तत्व (DIRECTIVE PRINCIPLES OF STATE POLICY)

    • संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36- 51 तक राज्य के नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख है|

    • नीति निदेशक तत्व 1937 में निर्मित आयरलैंड के संविधान से लिए गए हैं, तथा आयरलैंड के सविधान मे इन्हें स्पेन के संविधान से ग्रहण किया है|

    • ये राज्य के लिए कर्तव्य या सकारात्मक आदेश है| राज्य नीतियां एवं कानून बनाते समय इनका ध्यान रखेगा|

    • भीमराव अंबेडकर “नीति निर्देशक तत्व भारत शासन अधिनियम 1935 में उल्लेखित अनुदेशो के समान है| ये अनुदेश गवर्नर जर्नल या गवर्नरो के लिए जारी किए गए थे|”

    • संविधान सभा में नीति निर्देशक तत्वों के लिए अलग समिति नहीं थी, बल्कि मूल अधिकारों की उप समिति (अध्यक्ष जे बी कृपलानी) द्वारा इनका निर्माण हुआ|

    • राष्ट्रीय संविधान कार्यकारण एवं समीक्षा आयोग (संविधान समीक्षा आयोग या वेंकटचलिया आयोग) की रिपोर्ट 2002 में राज्य के नीति निदेशक तत्व शीर्षक की जगह राज्य की नीति के निदेशक तत्व एवं अनुयोजन करने की अनुशंसा की थी|

    • नीति निदेशक तत्वों को प्रशासक के लिए आचार संहिता कहा जाता है|


    • नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य-

    • सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र के अंतर्गत लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना, न कि पुलिस राज्य की| तथा समाजवादी, आर्थिक, गांधीवादी एवं बौद्धिक उदारवादी लोकतंत्र की स्थापना करना|


    • ये वाद योग्य नहीं है, अर्थात इनकी प्रकृति गैर न्यायोचित है, फिर भी कानून की संवैधानिक मान्यता के विवरण में न्यायालय इन्हें देखता है|

    • भाग 4 सामाजिक, आर्थिक न्याय का प्रतीक है|

    • इस भाग से संविधान निर्माताओं की इच्छा या मंशा का पता चलता है|

    • इस भाग में गांधी के विचारों का उल्लेख मिलता है|

    • डॉक्टर B.R अंबेडकर ने इन तत्वों को विशेषता वाला बताया है|

    • ग्रेनविल ऑस्टिन ने निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों को संविधान की मूल आत्मा कहा है| 


    अनुच्छेद- 36- परिभाषा

    • इस भाग में राज्य का अर्थ वही है, जो भाग 3 में अनुच्छेद 12 के तहत है|



    अनुच्छेद- 37-    इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना-

    • नीति निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा लागू नहीं कराए जा सकते हैं|

    • किंतु ये शासन के लिए आधारभूत/ मूलभूत है, और राज्य का कर्तव्य होगा की विधि बनाते समय इनको लागू करें|



    अनुच्छेद- 38-    राज्य लोक कल्याण की अभिवृत्ति के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा-

    • 38(1)  

    • राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करेगा, जिससे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक  न्याय द्वारा लोक कल्याण की अभिवृद्धि हो सके|


    • 38(2)

    • (44 वें संशोधन 1978 द्वारा जोड़ा गया)

    • राज्य विशेष रूप से आय की असमानता को कम करने का प्रयास करेगा और विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले तथा विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए व्यक्तियों के समूह के बीच भी प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता को समाप्त करने का प्रयास करेगा|

     

    Note- एकमात्र अनुच्छेद जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय शब्द का उल्लेख है| इसके अलावा प्रस्तावना में इन शब्दों का उल्लेख है|



    अनुच्छेद- 39-   राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व-

    • राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि निम्न बातें सुनिश्चित हो सके-

    • 39(क) पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो|

    • 39(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व व नियंत्रण का बटवारा इस प्रकार किया जाए, जिससे कि सामूहिक हित की प्राप्ति हो सके|

    •  39(ग) आर्थिक व्यवस्था का संचालन इस प्रकार करें कि जिससे धन तथा उत्पादन के साधनों  का सकेंद्रण सर्वसाधारण के लिए अहितकारी न हो|

    • 39(घ) पुरुषों और स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन हो|

    • राजेश कुमार गोंड वाद 2014- समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत मौलिक अधिकार नहीं है|

    • 39(ड) पुरुषों और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य और शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो, और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसा कार्य न करना पड़े जो उनकी आयु या शक्ति के अनुकूल न हो|

    • 39(च) बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण, स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जाए व बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए (42 वें संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया)


    Note- अनुच्छेद 39(ख) व 39(ग) के आधार पर इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण व राजाओं के  प्रिवीपर्स समाप्त किया था|



    अनुच्छेद- 39 कसमान न्याय व निशुल्क विधिक सहायता (42 वे संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया)- 

    • राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि तंत्र इस प्रकार कार्य करें कि सभी को समान न्याय मिल सके तथा आर्थिक या अन्य किसी निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्ति के अवसर से वंचित ना रहे इसलिए राज्य निशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराएगा|


    • Note- निशुल्क विधिक सहायता के लिए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority) (NALSA) का गठन NALSA Act 1987 के तहत किया गया|


    • NALSA की स्थापना 1995 में की गई, यह नई दिल्ली में है|

    • इसका मुख्य कार्य समाज के कमजोर वर्गों को निशुल्क विधिक सहायता देना है|

    • NALSA के अलावा राज्य स्तर पर SALSA व जिला स्तर पर DALSA की स्थापना की गई|


    अनुच्छेद - 40     ग्राम पंचायतों का संगठन-

    • राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करेगा तथा उन्हें आवश्यक शक्तियों और अधिकार देगा जिससे कि वे  स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य कर सकें|

    • Note- 73वें संशोधन 1992 द्वारा ग्राम पंचायतों को संवैधानिक मान्यता दी गई|


    अनुच्छेद- 41     कुछ दशाओं में काम, शिक्षा, और लोक सहायता पाने का अधिकार-

    • राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य तथा विकास की सीमाओं के भीतर काम पाने का, शिक्षा पाने का, और बेकारी, बुढापा, बीमारी, निःशक्तता तथा अन्य कोई अभाव की दशा मे लोक सहायता पाने का अधिकार देगा| 


    • Note- निःशक्त के लिए लोक सहायता का उल्लेख केवल अनुच्छेद 41 में है तथा निःशक्त शब्द के लिए दिव्यांग शब्द का भी उपयोग किया जाता है  



    अनुच्छेद- 42      काम की न्याय संगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध-

    • राज्य काम की न्याय संगत तथा मानवोचित दशा तथा प्रसूति सहायता उपलब्ध कराएगा |



    अनुच्छेद- 43    कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि-

    • राज्य सभी कर्मकरो को काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर, अवकाश, सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर देने का प्रयास करेगा और विशेष रूप से गावों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक या सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेंगा|



    अनुच्छेद- 43(क)    उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना (42वे संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया)

    • राज्य द्वारा विधि या अन्य रीति के द्वारा उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों के भाग लेने को सुनिश्चित किया जाएगा|



    अनुच्छेद- 43(ख)    सहकारी समितियों का उन्नयन (97वे संशोधन 2012 के द्वारा जोड़ा गया)

    • राज्य सहकारी समितियो की स्थापना को बढ़ावा देगा|



    अनुच्छेद- 44     नागरिकों के एक सामान सिविल सहिंता-

    • राज्य, भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता लागू करने का प्रयास करेगा|


    • समान सिविल संहिता का अर्थ- देश के सभी नागरिकों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए कानून सभी धर्मों के लिए समान होने चाहिए|

    • अधिकतर मामले में समान सिविल संहिता है, कुछ  मामले जैसे- विवाह, उत्तराधिकार, संपत्ति संबंधी नियमों में एक समान सिविल संहिता नहीं है|

    • शाहबानो केस (1985), सरला मुदगल केस (1995), गोवा पादरी केस (2003), सायरा बानो केस (2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने एक समान सिविल संहिता की स्थापना की बात की है|

    • मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो वाद 1985- इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक लेने का अधिकार है तथा तलाक के बाद उन्हें भरण-पोषण भत्ता प्राप्त करने का अधिकार है| 

    • शाहबानो वाद में दिए गए निर्णय के प्रभाव को समाप्त करने के लिए मुस्लिम महिला (तलाक से संरक्षण) अधिनियम 1986 बनाया गया|

    • डेनियल लतीफी बनाम भारत संघ 2017 के मामले में 1986 के अधिनियम को चुनौती दी गई तथा न्यायालय ने निर्णय दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को पुनर्विवाह तक भरण-पोषण भत्ता दिया जाएगा|

    • सायरा बानो बनाम भारत संघ 2017 के मामले में तीन तलाक पर रोक लगाई गई है|



    अनुच्छेद- 45    प्रारंभिक शैशवावस्था की देखरेख 6 वर्ष से कम आयु के बालकों की शिक्षा का प्रावधान-

    • राज्य प्रारंभिक शैशवावस्था की देखरेख और सभी बालकों को उस समय तक जब तक कि वे 6 वर्ष की आयु पूर्ण न कर ले शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रयास करेगा| 

    • अर्थात राज्य 6 वर्ष आयु तक बच्चों की शिक्षा व प्रारंभिक शैशवावस्था की देखभाल की व्यवस्था करेगा


    • Note- 86 वें संशोधन 2002 से पहले अनुच्छेद 45- राज्य 6- 14 के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था करेगा|



    अनुच्छेद- 46    अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि-

    • राज्य जनता के दुर्बल वर्गों के, विशेष रुप से SC व ST के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभीवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय व शोषण से रक्षा करेगा|



    अनुच्छेद- 47    पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य-

    • इस अनुच्छेद में राज्य के तीन प्राथमिक कर्तव्यों का उल्लेख है-

    1. पोषाहार स्तर को ऊंचा करना|

    2. जीवन स्तर को ऊंचा करना|

    3. लोक स्वास्थ्य का सुधार करना


    • और विशेष रूप से मादक पेयों तथा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के, औषधि से भिन्न प्रयोग को रोकने का प्रयास करेगा|


    • Note- 1 जनवरी 1995 को Mid day Meal कार्यक्रम इसी आधार पर चलाया गया तथा गुटखा पर प्रतिबंध इसी आधार पर लगाया गया|



    अनुच्छेद- 48   कृषि व पशुपालन का संगठन-

    • राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा तथा विशेष रूप से गायों, बछड़ों व अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों का संरक्षण व सुधार करने का तथा उनका वध रोकने का प्रयास करेगा|



    अनुच्छेद- 48 (क)    पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा (42 वें संशोधन 1976 के द्वारा जोड़ा गया)

    • राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा|

    • Note- कर्तव्य व निदेशक तत्वों में समान



    अनुच्छेद- 49     राष्ट्रीय महत्व के संस्मारको, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण-

    • संसद द्वारा बनाई गई विधि के अधीन राष्ट्रीय महत्व वाले घोषित किए गए कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक स्मारक, स्थान या वस्तु का यथास्थिति, लुंठन, विरूपण, विनाश, अपसारण, व्ययन या निर्यात से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी|



    अनुच्छेद- 50    कार्यपालिका से न्यायपालिका पृथक्करण-

    • राज्य की लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने का राज्य द्वारा प्रयास किया जाएगा|


    सुप्रीम कोर्ट एडवोकेटस ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ 1993-  

    • अनुच्छेद 50 में राज्य व्यापक शब्द है, इसके अंतर्गत भारत सरकार, संसद, राज्य सरकार, विधानमंडल, सभी स्थानीय प्राधिकरण सम्मिलित है| कार्यपालिका से न्यायपालिका के प्रथक्करण की संकल्पना में अधीनस्थ न्यायालय, उच्चतर न्यायपालिका, न्यायपालिका की स्वतंत्रता सम्मिलित है|

    • अर्थात अनुच्छेद 50 का अर्थ है कि न्यायपालिका कार्यपालिका से बिल्कुल स्वतंत्रत हो, कार्यपालिका किसी भी प्रकार से न्यायपालिका के मामलों मे हस्तक्षेप ना करें|


    अनुच्छेद- 51      अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि-

    • राज्य निम्न का प्रयास करेगा-

    (क) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभीवृद्धि का|

    (ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का|

    (ग) अंतरराष्ट्रीय संधि व विधियों के प्रति आदर बढ़ाने का|

    (घ) अंतर्राष्ट्रीय विवादो को मध्यस्थता द्वारा निपटाने के लिए प्रोत्साहन देने का|


    • Note- अनुच्छेद 51 को भारतीय विदेश नीति का आधार कहते हैं|



    • सविधान निर्माताओं ने निर्देशक तत्वों को वाद योग्य नहीं बनाया इसका कारण-

    1. देश के पास इनको लागू करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है|

    2. देश में व्यापक विविधता व पिछड़ापन इनके क्रियान्वयन में बाधक था|

    3. स्वतंत्र भारत को नए निर्माण के कारण कई तरह से भारो से मुक्त रखना था| 



    मौलिक संविधान के बाद जोड़े गए नीति निर्देशक तत्व


    42 वें संशोधन 1976 द्वारा-

    • अनुच्छेद 39 क

    • अनुच्छेद 43 क

    • अनुच्छेद 48 क

    • अनुच्छेद 39F या च 

    44 वें संशोधन 1978 द्वारा-

    • अनुच्छेद 38(2) 


    86  वें संशोधन 2002 द्वारा-

    • अनुच्छेद 45

    इसमें केवल परिवर्तन किया गया नया अनुच्छेद नहीं जोड़ा गया|

    97 वें संशोधन  2012 द्वारा-

    • अनुच्छेद 43B

    मौलिक अधिकार व नीति निर्देशक तत्वों में सर्वोच्चता संबंधी विवाद-


    1. 1950- 1966 - (DPSP, FR पर प्रभावी)

    • इस काल में चंपाकम दोराईजी (1951), C.B बोर्डिंग (1960), सज्जन सिंहV/S राजस्थान वाद 1965 न्यायालय में आए|

    • इन मामलों में न्यायालय का निर्णय था कि नीति निदेशक तत्व लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है|

    • 1965 के सज्जन सिंह केस में सद्भावपूर्ण संरचना सिद्धांत (Harmonious Structure Theory)  आया, जिसके अनुसार DPSP को लागू करने के लिए FR में संशोधन हो सकता है|


    1. 1967-72-  (मौलिक अधिकार सर्वोच्च)

    • इस काल में गोलकनाथ V/S पंजाब राज्य 1967 केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि F.R सर्वोच्च है, इसलिए इनमें संशोधन नहीं हो सकता है|


    1. 1973- 79- (मूल ढांचा, DPSP सर्वोच्च)

    • केशवानंद भारती V/S  केरल राज्य (1973) वाद में S.C ने कहा कि F.R में संशोधन किए जा सकते हैं, लेकिन मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है| अर्थात पुन DPSP को सर्वोच्च माना|


    1. 1980- 90- (FR व DPSP एक दूसरे के पूरक)

    • मिनर्वा मिल्स V/S भारत संघ (1980) मामले में S.C ने कहा कि FR और DPSP एक दूसरे के पूरक है|

    • इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा- भाग 3 व भाग 4 के मध्य संतुलन व सामंजस्य संविधान का मूलभूत ढांचा है| 



    1. वर्तमान स्थिति-

    • केवल 39B वह 39C में वर्णित निदेशक तत्व ही मूल अधिकारों पर प्रभावी हैं, इन्हें लागू करने के लिए मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है

    • इसलिए कहा जाता है 39B व 39C के आने पर अनुच्छेद 14 व अनुच्छेद 19 चले जाते हैं, बाकि  स्थितियों में मूल अधिकार ही प्रभावी रहते हैं|


    नीति निर्देशक तत्वों के बारे में विद्वानों के कथन-

    • अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर “लोगों के लिए उत्तरदाई कोई भी मंत्रालय भाग 4 के उपबंधो की अवहेलना नहीं कर सकता है|”

    • B.R अंबेडकर “लोकप्रिय मत पर कार्य करने वाली सरकार निदेशक तत्वों की अवहेलना नहीं कर सकती है, नहीं तो मतदाताओं के समक्ष जवाब देना पड़ेगा|”

    • K.T शाह ने अतिरेक कर्मकांडी कहा है| “DPSP की तुलना ‘एक चेक. जो बैंक में है, उसका भुगतान बैंक संसाधनों की अनुमति पर ही संभव है|”

    • T .T. कृष्णामाचारी “ये भावनाओं का एक स्थायी कूड़ाघर है|” 

    • K.C व्हीयर “ये लक्षण और आशंकाओं का घोषणा पत्र है और धार्मिक उपदेश है| संसद और न्यायपालिका में संघर्ष को जन्म देते हैं|”

    • जेनिग्स ने इन्हें कर्मकांडी आकांक्षा/ पुण्यात्मा/ फेबियन समाजवाद की स्थापना करने वाला कहा है|

    • ऑस्टिन “इनका लक्ष्य सामाजिक क्रांति को स्थापित करने के समान है|”

    • नेहरू “यह समाज के समाजवादी ढांचे की स्थापना करते हैं|”

    • नसीरुद्दीन “ये सिद्धांत नव वर्ष प्रस्तावो की तरह है जो जनवरी में टूट जाते हैं|”

    • M C चांगला (पूर्व मुख्य न्यायाधीश) “यदि इन तत्वों का पूरी तरह पालन किया जाए तो पृथ्वी पर स्वर्ग लगने लगेगा|”

    • B.R अंबेडकर “ये आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं|”

    • ग्रेनविल ऑस्टिन “मूल अधिकार साधन, नीति निदेशक तत्व- साध्य” 

    • डॉ राजेंद्र प्रसाद “राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का उद्देश्य जनता के कल्याण को प्रोत्साहित करने पाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है|”

    • पंडित ठाकुर दास भार्गव के अनुसार “निदेशक तत्व संविधान के प्राण या सार तत्व है|”

    • K M पाणिकर ने निदेशक तत्वों को आर्थिक क्षेत्र में समाजवाद की संज्ञा दी है| 

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