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व्यवहारवाद / Behaviouralism In Hindi

 व्यवहारवाद / Behaviouralism In Hindi

    व्यवहारवाद का अर्थ-


    • रॉबर्ट ए डहल “व्यवहारवादी क्रांति परंपरागत राजनीति विज्ञान की असफलताओं के प्रति असंतोष का परिणाम है| इस क्रांति का उद्देश्य राजनीति विज्ञान को और अधिक वैज्ञानिक बनाना है|”

    • व्यवहारवाद, राजनीति के अध्ययन का एक आधुनिक उपागम है| 

    • इस उपागम की शुरुआत से राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा परिवर्तन आ गया कि इसे व्यवहारवादी क्रांति की संज्ञा दी जाती है|

    • व्यवहारवाद की उत्पत्ति,  विकास, अवसान का केंद्र अमेरिका है| 

    • व्यवहारवादी स्वयं राजनीति विज्ञान की व्याख्या नहीं देता है| यह केवल राजनीति के अध्ययन का ढांचा प्रस्तुत करता है|


    • इस अध्ययन के ढांचे की दो विशेषताएं हैं-

    1. अध्ययन का केंद्रीय विषय

    2. अध्ययन की पद्धति


    1. अध्ययन का केंद्रीय विषय-

    • व्यवहारवाद उन व्यक्तियों या क्रियाकर्ताओ के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है जो यथार्थ राजनीतिक क्षेत्र में तरह-तरह की भूमिका निभाते हैं|

    • इसके अलावा व्यवहारवाद में राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले सामाजिक तत्वों के अध्ययन पर भी बल दिया जाता है|

    • अतः व्यवहारवाद में किसी देश के विधान मंडल, कार्यपालिका, न्यायपालिका की रचना एवं शक्तियों के बजाय इससे जुड़े व्यक्तियों (विधायकों, मंत्रियों, अधिकारीतंत्र, न्यायाधीशों) के वास्तविक व्यवहार प्रतिमान का अध्ययन किया जाता है|

    • इसके अलावा मतदाताओं, हित समूहों, विशिष्ट वर्गो, राजनीतिक दलों, सामाजिक आंदोलनों के प्रतिभागियों और नेताओं आदि के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है|


    1. अध्ययन पद्धति-

    • अंतर विषयक उपागम या अंतर अनुशासनात्मक उपागम- व्यवहारवाद की अध्ययन पद्धति में अंतर विषयक उपागम का प्रयोग किया जाता है अर्थात राजनीति के स्वरूप को समझने के लिए अन्य समाज विज्ञानो, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, तर्कशास्त्र का भी प्रयोग किया जाता है|

    • मूल्य निरपेक्ष वैज्ञानिक पद्धति- व्यवहारवाद में मूल्यों एवं कल्पनाओं का कोई स्थान नहीं होता है| यह तथ्यों और वैज्ञानिकता पर बल देता है| व्यवहारवाद में वैज्ञानिक पद्धति व मूल्य निरपेक्ष उपागम का प्रयोग किया जाता है|

    • तार्किक प्रत्यक्षवाद- व्यवहारवादी तार्किक प्रत्यक्षवाद से विशेष रूप से प्रभावित हैं| तार्किक प्रत्यक्षवाद वियना विश्वविद्यालय के मेरिट्ज शिल्क के नेतृत्व में 1920 में वियना सर्किल के रूप में विकसित हुआ| कैंब्रिज विश्वविद्यालय में यह लुङिवख विट्जेस्टाइन के नेतृत्व में और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में यह A J एयर के नेतृत्व में आगे बढ़ा|

    • व्यवहारवाद अनुभवात्मक एवं क्रियात्मक है|



    व्यवहारवाद की परिभाषाएं- 


    • डेविड ट्रूमैन के अनुसार “व्यवहारवादी उपागम से अभिप्राय है, कि अनुसंधान व्यवस्थित हो तथा उसका प्रमुख आग्रह आनुभविक प्रणाली के प्रयोग पर होना चाहिए|”

    • हिंज युलाऊ “राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन का संबंध राजनीतिक संदर्भ में मानव के कार्यों, रुख, वरीयताओं एवं आकांक्षाओं से है|”

    • किर्क पेट्रिक “असंतोष ने क्षोभ को जन्म दिया व क्षोभ के परिणामस्वरुप क्षेत्र में परिवर्तन आया| 

                       “व्यवहारवाद एक दृष्टिकोण, एक चुनौती, एक अभिवृत्ति व सुधार आंदोलन है|”

    • डेविड ईस्टन “व्यवहारवादी शोध वास्तविक व्यक्ति पर अपना समस्त ध्यान केंद्रित करता है|”

    • डेविड ईस्टन “व्यवहारवाद एक बौद्धिक पद्धति व शैक्षणिक आंदोलन दोनों है|” 

    • डेविड ईस्टन ने व्यवहारवाद को छलनी (sieve) का रूप कहा है|

    • डेविड ईस्टन “परंपरावादी लेखकों ने संस्थाओं की पूजा की है और उन्हें ऐसी इकाई माना है, जो मानो उन इंसानो से न बनी हो, जो उन्हें बनाते हैं|”

    • डेविड ईस्टन ‘जितने व्यवहारवादी उतने अर्थ|’

    • रॉबर्ट डहल ने व्यवहारवाद को परंपरावाद के विरुद्ध एक आंदोलन या मनोभाव माना है|

    • सिबली “व्यवहारवाद परीक्षणीय वैज्ञानिक सिद्धांत तथा उसकी सत्यापन प्रक्रिया दोनों के निर्माण पर जोर देता है|”

    • जेम्स चार्ल्सवर्थ “हम इसकी वस्तुपरक एवं आगमनात्मक विधि से किसी वस्तु के क्या, कहां, कैसे और कब की खोज कर सकते हैं, यद्यपि उसमें क्यों को नहीं जान सकते| 


    रॉबर्ट डहल के अनुसार व्यवहारवाद-


    1. व्यवहारवाद परंपरावाद के विरुद्ध एक आंदोलन है, जिससे विशेषकर अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक संबद्ध है|

    2. व्यवहारवादी नवीन पद्धतियों एवं उपागम के विकास पर बल देते हैं, जिसकी सहायता से राजनीति विज्ञान में आनुभविक प्रस्थापनाओं तथा व्यवस्थित सिद्धांतों का विकास किया जा सके|

    3. इस आंदोलन का उद्देश्य राजनीति अध्ययन को आधुनिक मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र की तकनीकी व सिद्धांतों के निकट लाना है|

    4. यह एक ऐसा आंदोलन है जो राजनीति विज्ञान के आनुभविक तथ्यों को अधिक वैज्ञानिकता प्रदान करता है|


    व्यवहारवाद के उदय के कारण-


    • ऐतिहासिक दृष्टि से राजनीतिक चिंतन में व्यवहारवादी मान्यताओं के कुछ तथ्य अरस्तु, मेकियावेली, जॉन लॉक तथा मॉन्टेस्क्यू आदि के चिंतन में मिलते हैं|

    • किंतु एक सिद्धांत के रूप में व्यवहारवाद द्वितीय विश्वयुद्ध या बीसवीं सदी की देन है|

    • व्यवहारवाद को सिद्धांत के रूप में विकसित करने का श्रेय अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिकों (शिकागो संप्रदाय) को है|

    • मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत जे.बी. वाटसन द्वारा 1913 में जॉन हॉपीकन्स विश्वविद्यालय में की गयी।

    • व्यवहारवाद का जनक या प्रणेता डेविड ईस्टन को माना जाता है|

    • राजनीति विज्ञान में व्यवहारवाद शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग डेविड ईस्टन ने किया था|

    • डेविड ईस्टन के अनुसार “व्यवहारवाद वास्तविक व्यक्तियों पर अपना समस्त ध्यान केंद्रित करता है| व्यवहारवाद की अध्ययन इकाई मानव का ऐसा व्यवहार है, जिसका प्रत्येक व्यक्ति द्वारा पर्यवेक्षण, मापन और सत्यापन किया जा सकता है| व्यवहारवाद राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन से राजनीति की संरचना तथा प्रक्रियाओं आदि के बारे में वैज्ञानिक व्याख्या विकसित करना चाहता है|”

    • आर्थर बेंटले “परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत बंजर, औपचारिकतापूर्ण, प्राणहीन, बंध्या व स्थैतिक है|

    • डेविड ईस्टन ने परंपरावाद को ऐसी पुरातनपंथी धारा कहा जो सामाजिक अंधेपन को पैदा करती है, जिसकी आशा का आधार राजनीतिक नेतृत्व की व्यक्तिगत शक्ति अधिक है, समाज विज्ञान की भागीदारी कम है|

    • रोबर्ट डहल ने व्यवहारवादियों को आनुभविक सिद्धांतकार कहा है तथा नव परंपरावादियों को परानुभविक सिद्धांतकार कहा है| 

    • अर्नाल्ड ब्रेख्त ने माइकल ऑकशॉट, लिओ स्ट्रास, बार्कर आदि को व्यवसायिक भगोड़े की संज्ञा दी है| 


    • व्यवहारवाद के उदय के कारण निम्न है-

    1. परंपरागत अध्यन पद्धतियों के प्रति असंतोष

    2. अन्य समाज विज्ञानों से प्रेरणा

    3. पूंजीवाद के खिलाफ साम्यवाद का उदय

    4. राजनीतिक प्रभुत्व का विस्तार, यूरोपीय केंद्रित राजनीति का अवसान| 

    5. द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव 

    6. यूरोपीय शरणार्थी विद्वानों का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण 

    7. नवीन अध्यन पद्धतियों का प्रयोग, शोध की नवीन प्रणालियों व तकनीकों का विकास

    8. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद नवोदित एशिया, अफ्रीका, लेटिन अमेरिका के देशों की राजनीतिक समस्याओं एवं चुनौतियों का अध्ययन परंपरागत पद्धति द्वारा संभव नहीं था|


    व्यवहारवादी उपागम का विकास-


    • व्यवहारवादी उपागम का जन्म द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात हुआ|

    • इसके जन्म में 2 सहायक तत्व रहे

    1. द्वितीय विश्व युद्ध से पहले का अनुभववाद-

    • व्यवहारवाद एवं आधुनिक विज्ञान को परंपरागत विज्ञान से जोड़ देने का कार्य अनुभववादियों द्वारा किया गया| 

    • अनुभववाद, परंपरावाद की अंतिम कड़ी है एवं व्यवहारवाद की प्रथम कड़ी है| 

    • जेम्स ब्राइस ने अनुभववाद के बारे में कहा कि “जिसकी आवश्यकता है वे तथ्य है, तथ्य है, तथ्य है| 

    • अनुभववाद का आधुनिक संस्थापक जॉन लॉक को माना जाता है| 


    1. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान राजनीतिशास्त्रियों के यथार्थवादी अनुभव|


    • व्यवहारवाद उन समाजशास्त्रियों तथा राजनीतिशास्त्रियों की देन है, जो अनुभववादी थे और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अनेक प्रशासनिक पदों पर काम करते हुए यथार्थवादी अनुभव प्राप्त किए|

    • सन 1908 में प्रकाशित ग्राह्म वालेस की पुस्तक ‘ह्यूमन नेचर इन पॉलिटिक्स’ तथा A F बेंटले की पुस्तक ‘द प्रोसेस ऑफ गवर्नमेंट’ का व्यवहारवाद के विकास में महत्व है|

    • वालेस का मानना था कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन संस्थाओं के प्रसंग में नहीं बल्कि मानव व्यवहार के प्रसंग में किया जाना चाहिए|

    • बेंटले का मत था कि राजनीति के अध्ययन में सामाजिक समूहों की शासन के प्रति प्रतिक्रियाओं (सामाजिक समूह के व्यवहार) को स्थान दिया जाना चाहिए|

    • व्यवहारवाद के विकास में 1925 में प्रकाशित चार्ल्स मेरियम की पुस्तक ‘ न्यू एस्पेक्ट्स आफ पॉलिटिक्स’ का विशेष महत्व है, जिसे व्यवहारवाद की बाइबल कहा जाता है| 

    • चार्ल्स मेरियम ने राजनीतिक घटनाओं और तथ्यों के विश्लेषण के लिए मनोवैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण एवं तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया|

    • चार्ल्स मेरियम के अनुसार सामाजिक विज्ञान की सहायता से अमेरिकी परंपराओं को बगैर क्रांति का सहारा लिए आधुनिक बनाया जा सकता है| इसके लिए उन्होंने नागरिक शिक्षा पर बल दिया|

    • चार्ल्स मेरियम की पहल पर सामाजिक विज्ञान शोध परिषद की स्थापना 1923 (मैनहट्टन) में की गई| 

    • चार्ल्स मेरियम ने संयुक्त राज्य अमेरिका कि शिकागो विश्वविद्यालय को अपना केंद्र बनाया और व्यवहारवादी उपागम का विकास किया|

    • चार्ल्स मेरियम व उसके सहयोगियों के राजनीतिक दृष्टिकोण को शिकागो संप्रदाय कहा गया और बाद में इसे व्यवहारवाद का नाम दिया गया|

    • शिकागो संप्रदाय समूह में चार्ल्स मेरियम, लियोनार्ड व्हाइट, हैरोल्ड ग्रासनेल, क्विंसी राइट, हेराल्ड लॉसवेल, पैट्रिक शुमा, आमंड, हर्बर्ट साइमन, डेविड ट्रूमेन आदि शामिल

    • व्यवहारवाद के विकास में अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक रॉबर्ट ए डहल. डेविड ईस्टन और हिंज युलाऊ का भी योगदान है|

    • व्यवहारवाद के विकास में हर्बर्ट साइमन की पुस्तक एडमिनिस्ट्रेटिव बिहेवियर 1947 ’, लासवेल व कैप्लान की पुस्तक ‘पावर एंड सोसाइटी 1950’, कैटलिन की पुस्तक ‘ए स्टडी ऑफ द प्रिंसिपल ऑफ पॉलिटिक्स 1930’ तथा डेविड ईस्टन की पुस्तक ‘दी पॉलीटिकल सिस्टम 1953’ का भी योगदान था|

    • शिकागो विश्वविद्यालय के तीन विद्वान P V स्मिथ, चार्ल्स मेरियम, हेराल्ड लासवेल का व्यवहारवादी उपागम के विकास में महत्वपूर्ण योगदान था|

    • इन विद्वानों के बाद डेविड ईस्टन, आमंड, हालमैन, कार्ल डायच तथा एडवर्ड शिल्स आदि ने व्यवहारवादी अध्ययन को आगे बढ़ाया|

    • प्रमुख व्यवहारवादी विचारक हिंज युलाऊ ने माना कि ‘लंबे समय तक व्यवहारवादी क्रांति शिकागो विश्वविद्यालय की चारदीवारी तक सीमित रही थी|

    • चार्ल्स मेरियम को व्यवहारवाद का बौद्धिक पिता कहा जाता है|


    • चार्ल्स मेरियम ने अमेरिकी राजनीति विज्ञान को चार कालों, मनोदशाओं या अवस्थाओं में बांटा है-

    1. 1850 तक- दार्शनिक दृष्टिकोण की प्रधानता, निगमनात्मक पद्धति का काल

    2. 1850 से 1990 तक- ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक पद्धतियों के प्रयोग का काल

    3. 1900 से 1923 तक- प्रेक्षण, सर्वेक्षण, मापन का काल

    4. 1923 से द्वितीय विश्वयुद्ध तक- मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य की प्रधानता


    • रोबेर्ट डहल ने व्यवहारवाद के विकास में विकास के लिए निम्नलिखित 6 कारकों को उत्तरदायी माना है-

    1. चार्ल्स मेरियम का योगदान-

    • चार्ल्स मेरियम शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर थे| 

    • हेराल्ड लासवेल उनके सहकर्मी, व VOK जूनियर, आमंड, हर्बर्ट साइमन आदि उनके विद्यार्थी थे| 


    1. सामाजिक विज्ञान शोध परिषद की स्थापना-

    • इसकी स्थापना चार्ल्स मेरियम की पहल पर 1923 में की गई| 

    • इस परिषद ने अंत अनुशासनात्मक शोधव्यवहारवादी शोध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तुलनात्मक राजनीति शोध को बढ़ावा दिया| 


    1. यूरोपियन विद्वानों का अमेरिका में आगमन-

    • द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व बहुत से यूरोपीय विद्वानों ने विशेषकर जर्मनी के विद्वानों ने अमेरिका में शरण ली| 

    • इन विद्वानों में फ्रेंच न्यूमैन, पॉल लेजासफेल्ड, कार्ल डॉयच, मार्गेंथाऊ, हन्ना आरेण्ट आदि| 

    • ये विद्वान आगस्त काम्टे, इमाइल दुर्खीम, पैरेटो, मोस्का जैसे समाजशास्त्रीयों से प्रभावित है तथा इनके प्रत्यक्षवाद व समाजशास्त्रीय अवधारणा ने व्यवहारवाद को प्रेरित किया| 


    1. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की परिस्थितियां-

    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की परिस्थितिया, जैसे- अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण, शीतयुद्ध व विचारधारात्मक संघर्ष, परंपरागत राजनीति की सीमित उपादेयता ने व्यवहारवाद को बढ़ावा दिया| 


    1. सर्वेक्षण पद्धति का विकास-

    • सर्वेक्षण पद्धति के विकास ने व्यवहारवाद को बढ़ावा दिया| इससे मतदान व्यवहार का अध्ययन व्यवहारवादियों के अध्ययन का विशेष क्षेत्र बन गया| 


    1. विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों द्वारा व्यवहारवादी शोध के लिए आर्थिक सहायता 



    व्यवहारवाद की उत्पत्ति में विभिन्न विद्वानों का योगदान-


    • अरस्तु को व्यवहारवादियों का पितामह कहा जाता है|

    • प्रत्यक्षवाद, तार्किक प्रत्यक्षवाद, भाषाशास्त्र के अनुभववाद, वैज्ञानिकता व तथ्यात्मकता ने व्यवहारवाद को जन्म दिया| 

    • वाल्टर बेजहॉट (English Constitution 1867)- वाल्टर बेजहॉट ने राजनीतिक संस्थाओं पर सामाजिक परिस्थितियों के प्रभाव के विश्लेषण पर बल दिया| 

    • वुडरो विल्सन (Congressional Government 1885) “सत्ता, कांग्रेस की समितियों में है|”

    • जेम्स ब्राइस (American Commonwealth 1888) “मेरा उद्देश्य अमेरिका की संस्थाओं व उसकी जनता को बिल्कुल वैसा ही चित्रित करना है, जैसी वह है|”

    • लॉरेंस लावेल (Essays on government 1889) “शासन के वास्तविक यंत्र को तभी समझा जा सकता है, जब उसे उसकी क्रियाशील अवस्था में देखा जाय|”

    • ग्राहम वैलेस (Human Nature in Politics 1908) “राजनीति के लगभग सभी विद्यार्थी संस्थाओं का विश्लेषण करते हैं और मनुष्यों के विश्लेषण की अनदेखी करते हैं|”

    • आर्थर बेंटले (The Process of Government 1908) “राजनीति शोध व विश्लेषण की इकाई, समूह की गतिविधियां है|” बेंटले ने समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया| 

    • शिकागो स्कूल- इसने व्यवहारवाद की आधारशिला रखी| यहां स्मिथ, चार्ल्स मेरियम, हेराल्ड लॉसवेल ने  आनुभविक शोध को बढ़ावा दिया| 

    • चार्ल्स मेरियम को व्यवहारवाद का बौद्धिक पिता कहा जाता है| जिन्होंने सहकारी शोध और सहयोगात्मक प्रयत्न को बढ़ावा दिया| 

    • लासवेल ने चार्ल्स मेरियम को राजनीति में मनोविज्ञान के महत्व को समझने वाले विद्वानों में प्रथम माना है| 

    • कैटलिन ने राजनीति में शक्ति संबंधों के अध्ययन पर बल दिया| कैटलिन की पुस्तक- The Science and Method of Politics 1927, A Study of Principal of Politics 1930

    • हेराल्ड लासवेल की पुस्तक-

    1. Who gets, What, When, How 1936

    2. Power and Personality 1948

    3. Psychopathology and Politics 1950

    • हेराल्ड लासवेल दर्शन की राजनीति के बजाय विज्ञान की राजनीति के पक्षधर हैं| लासवेल ने राजनीति विज्ञान को नीति विज्ञान कहा है तथा राजनीतिक वैज्ञानिकों को मनोव्याधिनिवारक कहा है|

    • व्यवहारवाद का पिता डेविड ईस्टन को माना जाता है| ईस्टन का जन्म कनाडा में हुआ था, बाद में शिकागो विश्वविद्यालय अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर पद पर कार्य किया|


    व्यवहारवाद की विशेषताएं-


    • लासवेल ने 1936 में व्यवहारवाद का अध्ययन विषय यह बताया कि कौन, कब कहां और कैसे प्राप्त करता है|

    • व्यवहारपरक अध्ययन में मुख्यतः दो पृथक इकाइयों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है-

    1. शक्ति की इकाई- कोई व्यक्ति या समूह, अन्य व्यक्तियों या समूहों के व्यवहार को प्रभावित करने में कितना समर्थ है|

    2. निर्णयन की इकाई- जिसमें यह देखा जाता है कि कार्यवाही के अनेक विकल्प प्रस्तुत होने पर किसका चयन किया जाए|

    • इस प्रकार व्यक्ति और समूह की निर्णय प्रक्रिया को राजनीतिक व्यवहार का निर्णायक तत्व मानकर उसकी व्याख्या दी जाती है|

    • व्यवहारवाद में राजनीतिक प्रक्रिया में राज्य और समाज के भीतर स्थापित समूह और संस्थाओं की भूमिका का भी अध्ययन किया जाता है|

    • व्यवहारवाद में राजनीतिक शक्तियों के साथ साथ राज्य की गतिविधियों को प्रभावित करने वाली सामाजिक और आर्थिक शक्तियों का भी अध्ययन किया जाता है|

    • व्यवहारवाद में मनुष्यों के कार्यकलाप का निरीक्षण किया जाता है|

    • व्यवहारवाद में प्रतिरूपो (models), परिमापन की विधियों और कंप्यूटरों का विस्तृत प्रयोग किया जाता है|

    • व्यवहारवाद समस्त सामाजिक विज्ञानो में एकता की तलाश करता है|


    डेविड ईस्टन के अनुसार व्यवहारवाद की विशेषताएं-


    • डेविड ईस्टन व्यवहारवाद की कुल 8 विशेषताएं बतायी है| 

    • डेविड ईस्टन की व्यवहारवाद की इन विशेषताओं को व्यवहारवाद की बौद्धिक आधारशिला (Intellectual Foundation stones) कहा जाता है| ये बौद्धिक आधारशिला डेविड ईस्टन के लेख Current meaning of behaviouralism में वर्णित है| डेविड ईस्टन ने इनको व्यवहारवादी धर्म (Behavioural Credo) कहा है|


    • ये 8 विशेषताएं निम्न है-

    1. नियमन (Regularties)-

    • व्यवहारवाद के अनुसार मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन व व्याख्या करने के लिए नियमों व सिद्धांतों का निर्माण किया जा सकता है, क्योंकि राजनीतिक व्यवहार में कुछ सामान्य तत्व पाए जाते हैं|


    1. सत्यापन (Verification)-

    • मानव के राजनीतिक व्यवहार के लिए बनाए गए नियमों की जांच सर्वेक्षण व प्रयोगात्मक परीक्षण के द्वारा की जा सकती है, उनका सत्यापन किया जा सकता है|

    • व्यवहारवादियों का सत्यापन सिद्धांत तार्किक प्रत्यक्षवाद या नव प्रत्यक्षवाद से प्रभावित है| 


    1. तकनीकों का प्रयोग (Use of Techniques)-

    • व्यवहारवादियों के अनुसार अध्ययन की तकनीकों में सुधार किया जाए तथा ऐसी शुद्ध व वैज्ञानिक तकनीकों का निर्माण किया जाए, जिनका प्रयोग अध्ययन कर्ता निरपेक्ष एवं तटस्थ भाव से कर सकें|]


    1. परिमाणीकरण (Quantification)-

    • परिमाणीकरण द्वारा अध्ययन के लिए एकत्रित किए गए तथ्यों, आंकड़ों तथा सामग्री का पुन:  सुक्ष्म पर्यवेक्षण किया जाता है ताकि इन्हें अधिक यथार्थ एवं शुद्ध बनाया जा सके|


    1. क्रमबद्धीकरण या व्यवस्थीकरण (Systemisation)-

    • शोध कार्य क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित होना चाहिए| पहले शोध किया, जाए फिर सिद्धांत का निर्माण किया जाए| इस प्रकार क्रमबद्ध अध्ययन के द्वारा मानव के राजनीतिक व्यवहार के संदर्भ में कार्य व कारण का संबंध स्थापित किया जा सकता है|


    1. मूल्य निर्धारण (Values)-

    • व्यवहारवादियों के मत में शोधकर्ता को अपने व्यक्तिगत मूल्यों को अलग रखकर शोध कार्य करना चाहिए|

    • अर्थात अध्ययन मुल्य निरपेक्ष, तटस्थ व वस्तुनिष्ठ होना चाहिए|


    1. विशुद्ध विज्ञान (Pure science)-

    • व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान को एक विशुद्ध विज्ञान का रूप देना चाहते हैं|


    1. समग्रता (Integration)

    • व्यवहारवाद की मान्यता है कि समस्त मानव व्यवहार एक पूर्ण इकाई है, इसका खंडों में अध्ययन नहीं करना चाहिए| अतः उसकी सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य प्रकार की गतिविधियों को उसके संपूर्ण जीवन के व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर ही समझा जा सकता है|

    • अर्थात किसी राजनीतिक व्यवहार या घटना के व्यवस्थित अध्ययन के लिए उसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन आवश्यक है| 


    • Note- इन आठ विशेषताओं में स्तरीकरण (Stratification) शामिल नहीं है| 



    किर्क पेट्रिक के अनुसार व्यवहारवाद की विशेषताएं- (चार विशेषताएं)

    1. यह इस बात पर बल देता है कि राजनीति अध्ययन और शोध कार्यों में विश्लेषण की मौलिक इकाई संस्थाएं न होकर व्यक्ति होना चाहिए|

    2. यह सामाजिक विज्ञानों को व्यवहारवादी विज्ञानों के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान की अन्य सामाजिक विज्ञान के साथ एकता पर बल देता है|

    3. यह तथ्यों के पर्यवेक्षण, वर्गीकरण और माप के लिए अधिक परिशुद्ध प्रविधियों के विकास और उपयोग पर बल देता है और इस बात का प्रतिपादन करता है कि जहां तक संभव हो सांख्यिकीय या परिमाणात्मक सूत्रीकरणो का उपयोग किया जाना चाहिए|

    4. यह राजनीति विज्ञान के लक्ष्य को एक व्यवस्थित आनुभविक सिद्धांत के रूप में परिभाषित करता है|


    व्यवहारवाद की आलोचना-


    • व्यवहारवाद के प्रमुख आलोचक निम्न है- अर्नेस्ट ब्रेख्त, लियो स्ट्रास, माइकल ऑकशॉट, वोएगलिन, जूवेनेल, हन्ना आरेण्ट, क्रिश्चियन बे, मार्गेंथाउ, यूजीन मिहान, सिबली आदि|


    • व्यवहारवाद की निम्न आलोचना की जाती है-

    1. अत्याधिक शब्दाडम्बर-

    • व्यवहारवादी विचारको ने ऐसी भारी-भरकम शब्दावली का प्रयोग किया है, जिससे यह शब्दाडम्बर से ज्यादा कुछ नहीं लगता|

    • डॉ S P वर्मा “तटस्थता एवं निष्पक्षता प्राप्त करने के लिए अनुभववादी सिद्धांतवादियो ने एक नया उलझाने वाला फूहड़ शब्दजाल आविष्कृत कर लिया|”


    1. राजनीतिक व्यवहार की गलत धारणा-

    • मनुष्य के व्यवहार के नियम बनाना तथा उसका आकलन एवं गणना, गणितीय रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते|

    • मानव व्यवहार के सुनिश्चित सिद्धांत एवं भविष्यवाणी संभव नहीं है|


    1. प्राविधिक तकनीकों पर अत्यधिक बल-

    • नवपरंपरावादी राजनीतिशास्त्री, व्यवहारवादियों पर प्राविधिक तकनीकों पर अत्यधिक बल देने का आरोप लगाते हैं|


    1. राजनीति विज्ञान विशुद्ध विज्ञान नहीं है-

    • राजनीति विज्ञान के तथ्य प्राकृतिक विज्ञानों के तथ्यों की तुलना में अधिक जटिल, अत्यधिक परिवर्तनशील होते हैं, अतः राजनीतिक विज्ञान विशुद्ध विज्ञान नहीं है|

    • कार्ल पॉपर “राजनीति वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी अगर- मगर की स्थिति से आगे नहीं जा सकती| इनकी भविष्यवाणी छलनी में पानी ले जाने के समान है|”


    1. मूल्य निरपेक्ष अध्ययन संभव नहीं है

    • लियो स्ट्रास “मूल्य निरपेक्षता का परिणाम गटर की विजय हो सकता है और यही हुआ|”


    1. अन्य पद्धतियों के महत्व को नकारना-

    • सिबली “आज क्या है, कल क्या था, भविष्य में क्या होगा और कैसा होना चाहिए की जानकारी के लिए केवल व्यवहारवाद से काम नहीं चलेगा| हमें राजनीतिक चिंतन इतिहास, नीति, दर्शन, सांस्कृतिक इतिहास, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विवरण और प्रत्यक्ष राजनीतिक अनुभव आदि सभी से सहायता लेनी होगी|”


    1. अत्यधिक खर्चीली पद्धति- 

    • इसमें अध्ययन की शुद्धता के लिए बार-बार पर्यवेक्षण किए जाते हैं|


    1. राजनीति विज्ञान के स्वतंत्र अस्तित्व को खतरा-

    • व्यवहारवादियों के कारण राजनीति विज्ञान एक स्वतंत्र विषय के रूप में अपने अस्तित्व को खो सकता है|



    • व्यवहारवाद के आलोचकों में सिबली प्रमुख हैं जिनका लेख ‘व्यवहारवाद की सीमाएं’ (The limitation of Behaviouralism) हैं|


    • सिबली “राजनीतिक विज्ञान की विषय वस्तु मनुष्य की राजनीतिक गतिविधियां हैं, जिसका परिमापन नहीं किया जा सकता|”

    • अल्फ्रेड कॉबान “व्यवहारवाद राजनीति के खतरनाक चक्कर से बचने के लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों द्वारा आविष्कृत युक्ति है|”

    • लियो स्ट्रास “व्यवहारवाद अच्छाई के ज्ञान का तिरस्कार करता है और जीवन के प्रति शून्यवादी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है|”

    • लियो स्ट्रास “व्यवहारवादी मूल्य निरपेक्षता की आड़ में अपने सिद्धांतों में मूल्य घुसा रहे हैं|” 

    • लियो स्ट्रास ने व्यवहारवादियों को लोकतंत्रशाही कहा है|

    • लियो स्ट्रास “नया राजनीति विज्ञान अपने घर को जलता देख कर हंस रहा है, किंतु दो तथ्यों के आधार पर इसे माफ किया जा सकता है| पहला इसे यह नहीं मालूम कि इसका घर जल रहा है और दूसरा यह भी नहीं मालूम कि वह हंस रहा है|”

    • लियो स्ट्रास “ये ऐसे इंजीनियर है, जो पुल बनाने में केवल पदार्थ का ध्यान रखते हैं, उपयोग का नहीं|”

    • क्रिश्चियन बे “व्यवहारवादी राजनीति नकली या छद्म राजनीति है, यह केवल यथास्थिति का पक्षधर है|” 

    • अर्नेस्ट अर्नाल्ड ब्रेख्त ने व्यवहारवाद को 20वीं सदी की दुखद घटना माना है, क्योंकि तटस्थता के चक्कर में इसने नाजीवाद, फासीवाद व साम्यवाद की आलोचना नहीं की|

    • हन्ना आरेण्ट ने व्यवहारवादियों की कार्य पद्धति को ‘सर्वाधिकारवाद पनपाने की आधारशिला कहा है|’


    • रॉबर्ट डहल ने भविष्यवाणी की थी कि व्यवहारवादी अवधारणा राजनीति विज्ञान के अध्ययन में समाहित होकर स्वभाविक मृत्यु को प्राप्त हो जाएगी इसके अवसान का कारण इसकी असफलता नहीं बल्कि सफलता होगी| 


    व्यवहारवाद का महत्व व योगदान-


    1. व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को नई भाषा, नई शैली, नई अवधारणा, नई पद्धतियां तथा नई   तकनीकें दी है| जैसे व्यवहारवाद के कारण व्यवस्था सिद्धांत, संरचनात्मक प्रकार्यवाद, समूह विश्लेषण जैसे प्रतिमानो का विकास हुआ है| 

    डॉ S P वर्मा “व्यवहारवादियो ने राजनीति विज्ञान में अनुसंधान के नए क्षेत्र को निकाला है और नई अध्ययन तकनीकों का विकास किया है|”

    1. व्यवहारवाद ने नवीन राजनीति विज्ञान की स्थापना की है|

    2. अंतर अनुशासनात्मक दृष्टिकोण की स्थापना की है|

    डेविड ईस्टन “व्यवहारवादी उपागम संपूर्ण समाज विज्ञानों में विश्लेषणात्मक एवं व्याख्यात्मक सिद्धांत के प्रारंभ का सूचक है|”




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