संघवाद : केंद्र राज्य संबंध
संघ व क्षेत्रीय सरकारों के संबंधों के आधार पर शासन व्यवस्था दो प्रकार की होती है-
संघात्मक शासन व्यवस्था-
इस शासन व्यवस्था में दोहरी सरकार पाई जाती है|
केंद्र स्तर पर केंद्र सरकार तथा राज्य स्तर पर राज्य सरकार|
तथा दोनों सरकारों के मध्य शासन में शक्तियों का विभाजन होता है
उदाहरण- अमेरिका, स्वीटजरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, ब्राजील, अर्जेंटीना आदि|
एकात्मक शासन व्यवस्था-
इस शासन व्यवस्था में राज्य सरकारे नहीं होती हैं तथा केंद्र व राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन नहीं होता है|
उदाहरण- ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, चीन, इटली, बेल्जियम, नार्वे, स्वीडन, स्पेन आदि|
संघवाद-
फेडरेशन शब्द लैटिन भाषा के फोएड्स से बना है, जिसका अर्थ है- समझौता,
अर्थात संघीय व्यवस्था में केंद्र-राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन एक समझौते के तहत होता है|
संघीय व्यवस्था दो तरह की होती है-
केंद्रोंन्मुखी/ एकीकरण-
इसमें छोटे-छोटे राज्य एक समझौते के तहत मिलकर बड़ा राज्य बनाते हैं तथा शक्तियों तथा शासकीय मामलों का विभाजन समझौते के द्वारा होता है|
उदाहरण- अमेरिका
Note- अमेरिका को संघात्मक शासन व्यवस्था का जनक कहते हैं|
अमेरिका विश्व का पहला व प्राचीनतम संघीय शासन व्यवस्था वाला देश है|
1787 में बना था, 50 राज्य हैं, मूल 13 राज्य थे|
केंद्रविमुखी संघवाद/ विभेदीकरण-
इसमें बड़े राज्य का विभाजन शासन सुविधा की दृष्टि से छोटे-छोटे राज्यों में किया जाता है तथा शासन एवं शक्तियों का विभाजन संविधान के अनुसार किया जाता है|
उदाहरण- कनाडा (1867 में बना, 10 प्रांत मूल 4 प्रांत), भारत
संघवाद की विशेषताएं-
निम्न विशेषताएं है-
दोहरी सरकार-
केंद्र स्तर- केंद्र सरकार
राज्य स्तर- राज्य सरकार
लिखित संविधान
केंद्र व राज्य सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन
संविधान की सर्वोच्चता व कठोर संविधान
स्वतंत्र व दोहरी न्यायपालिका
द्विसदनीय विधायिका
राज्य व केंद्र का अलग संविधान/ दोहरा संविधान
दोहरी नागरिकता
Note- संघात्मक शासन व्यवस्था में संघ की इकाइयों को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है-
राज्य- अमेरिका
कैन्टन- स्वीटजरलैंड
प्रांत- कनाडा
गणतंत्र- रूस
भारत में संघवाद-
भारत में संघीय शासन का सर्वप्रथम प्रयोग भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत किया गया था, पर रियासती राजाओं ने संघ में मिलने से मना कर दिया था, अत: भारत में संघीय व्यवस्था सिरे नहीं चढ़ी|
साइमन कमीशन 1927-28, बटलर समिति 1929-30 ने समूचे भारत के लिए फेडरल (संघ) का समर्थन किया|
भारत में संघीय व्यवस्था को अपनाया गया है, लेकिन भारतीय संविधान में कहीं भी संघ (Federation) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है|
Note- S.R बोम्मई बनाम भारत संघ 1994 के मामले में SC द्वारा ये निर्णय दिया कि संघात्मक शासन व्यवस्था संविधान की आधारभूत संरचना है| (साथ ही प्रस्तावना संविधान की आधारभूत संरचना है)
भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 में राज्यों का संघ (Union Of State) शब्द का प्रयोग किया गया है|
डॉ. B.R अंबेडकर के अनुसार राज्यों का संघ दो बातों में संघ से भिन्न है-
अमेरिका की तरह, भारत में संघ तथा राज्यों के बीच समझौता नहीं हुआ है|
किसी भी राज्य को अलग होने का अधिकार नहीं है|
भारतीय संघीय व्यवस्था कनाडाई मॉडल पर आधारित है, जिसमें एक सशक्त केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था पाई जाती है| अर्थात एकात्मकता की ओर झुकाव वाली संघीय व्यवस्था पाई जाती है|
भारत शासन अधिनियम 1935 के द्वारा भारत में संघात्मक शासन प्रणाली की शुरुआत होती है|
भारतीय संघ के बारे में विभिन्न विद्वानों के कथन-
K.C व्हीयर (पुस्तक-Federal government) ने भारत को अर्द्ध संघात्मक व्यवस्था कहा है|
K.C व्हीयर “भारत मुख्यत: एकात्मक राज्य है, जिसमें संघीय विशेषताएं नाममात्र की है| भारत का संविधान संघीय कम है और एकात्मक अधिक| अर्थात अर्ध संघात्मक है|”
नॉर्मन डी पामर “भारतीय संघीय व्यवस्था ‘प्रशासनिक संघ’ है, क्योंकि संकटकाल में केंद्र का राज्यों पर प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित हो जाता है|”
ग्रेनविले ऑस्टिन व ए.एच.बर्च ने सहकारी संघवाद या सहयोगी संघ कहा है|
ग्रेनविले ऑस्टिन “संविधान बनाने में भारत का मूल योगदान यह है कि इसकी संविधान सभा ने चयन और समायोजन की कला को दर्शाते हुए सर्वसम्मति पर आधारित निर्णय के माध्यम से एक सुखद संघ का निर्माण किया|”
पॉल एच एप्लबी- केंद्रीकरण की मजबूत प्रवृत्ति के साथ संघ कहा है|
प्रो एलेक्जेंड्रोविच- सच्चा संघ कहा है|
मॉरिस जॉन्स- सौदेबाजी पर आधारित संघ कहा है या सहमति वाला संघ
आइवर जेनिंग्स (पुस्तक-Some Characteristic of Indian Constitution)- अत्यंत संघीय कहा है|
आइवर जेनिंग्स “भारत ऐसा संघ है, जिसमें केंद्रीयकरण की तीव्र प्रवृत्ति पाई जाती है|”
M.V पायली- संविधान का ढांचा संघात्मक है, किंतु आत्मा एकात्मक है|
के. संथानम “भारत के संघात्मक राज्य होने में कोई संदेह नहीं है|”
के. संथानम- परमोच्च संघवाद
डॉ. भीमराव अंबेडकर “शांति काल में भारतीय संविधान संघीय है, तथा आपातकाल के दौरान यह एकात्मक हो जाता है|”
डगलस बर्नी “भारतीय शासन प्रणाली संघीय गठबंधन सरकारों के दौर में अर्द्ध-परीसंघीय की स्थिति में आ गई प्रतीत होती है, जिसमें राज्य सरकारे अधिक शक्तिशाली होने लगती है|”
चार्ल्स टार्लटन “भारतीय संघवाद विषम संघवाद है|”
राजेंद्र प्रसाद “व्यक्तिगत रूप से मैं इस बात को कोई महत्व नहीं देता कि इसे आप संघीय संविधान या एकात्मक संविधान अथवा किसी अन्य नाम से पुकारते हैं| यदि संविधान हमारे उद्देश्यों को पूरा करता रहे तो नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता|”
Note- भारत के संघवाद में संघात्मक प्रवृत्तियों के साथ-साथ एकात्मकता प्रवृतियां भी पाई जाती है|
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएं-
निम्न विशेषताएं हैं-
दोहरी शासन व्यवस्था/ दोहरी सरकार-
केंद्र स्तर (केंद्र सरकार)- केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय महत्व के मामले|
राज्य स्तर पर (राज्य सरकार)- राज्य सरकार के पास स्थानीय महत्व के मामले|
लिखित व कठोर संविधान-
शक्तियों का विभाजन-
केंद्र व राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन सातवीं अनुसूची में किया गया है|
सातवीं अनुसूची में तीन सूचियां है-
संघ सूची- 97 विषय (वर्तमान 100 विषय)
राज्य सूची- 66 विषय (वर्तमान 61 विषय)
समवर्ती सूची- 47 विषय (वर्तमान 52 विषय)
संविधान की सर्वोच्चता-
भारत न न्यायपालिका सर्वोच्च है और न ही संसद सर्वोच्च है, जबकि सविधान सर्वोच्च है|
द्विसदनीय व्यवस्था-
भारत में केंद्र तथा कुछ राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था पाई जाती है|
केंद्र में द्विसदन-
राज्यसभा
लोकसभा
राज्यों में द्विसदन-
विधानसभा
विधान परिषद
स्वतंत्र न्यायपालिका-
भारतीय सविधान की एकात्मक विशेषताएं-
सशक्त केंद्र-
शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में|
संघ सूची में ज्यादा विषय
संघ सूची में महत्वपूर्ण विषय
समवर्ती सूची पर केंद्र कानून की प्राथमिकता|
अवशिष्ट शक्तियां केंद्र में निहित होना|
एकल सविधान-
पूरे भारत के लिए एक सविधान है|
सविधान का लचीलापन-
राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व की असमानता-
राज्यसभा में प्रत्येक राज्य का अनुपात जनसंख्या के आधार पर है, न कि संघवाद की तरह सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व|
आपातकालीन प्रावधान-
एकल नागरिकता-
एकीकृत न्यायपालिका-
अखिल भारतीय सेवाएं-
अनुच्छेद 309- अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की सेवा शर्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है|
अनुच्छेद 310- अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं तथा राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद पर बने रहते हैं|
अनुच्छेद 311- अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को नियुक्त करने वाले के अधीनस्थ द्वारा नहीं हटाया जा सकता है|
अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों पर राज्य सरकार का आंशिक नियंत्रण होता है| राज्य सरकारे उनका स्थानांतरण कर सकती है| उन्हें पद स्थापन की प्रतीक्षा (APO) मे रख सकती है, केंद्र सरकार की अनुमति से निलंबित कर सकती हैं, लेकिन उन्हें बर्खास्त नहीं कर सकती है|
वर्तमान में तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं-
IAS
IPS
Note- 1947 में भारतीय सिविल सेवा (ICS) के ये दो नए नाम दिए गए|
IFS- 1966 में तीसरी अखिल भारतीय सेवा स्थापित की गई|
सरदार पटेल को अखिल भारतीय सेवाओं का जनक कहा जाता है|
एकीकृत लेखा जांच मशीनरी-
CAG केंद्र व राज्य दोनों स्तरों पर लेखा परीक्षण करता है|
राज्यपाल की नियुक्ति-
नियुक्ति- राष्ट्रपति द्वारा
केंद्र सरकार का एजेंट होता है|
एकीकृत निर्वाचन मशीनरी-
अनुच्छेद 324- चुनाव आयोग संसद व राज्य विधान मंडल दोनों के चुनाव करवाता है|
राज्य के विधेयकों पर वीटो-
अनुच्छेद 200- राज्यपाल द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखना|
अनुच्छेद 201- राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधेयकों पर वीटो का प्रयोग|
संघ व इसके राज्य क्षेत्र-
संविधान के भाग-1 में अनु-1 से अनु-4 तक संघ व उसके राज्य क्षेत्रों का वर्णन है|
अनुच्छेद-1 संघ का नाम तथा उसका राज्य क्षेत्र-
भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा|
राज्य और उनके राज्य क्षेत्र वे होंगे, जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट है|
भारत के राज्य क्षेत्र में-
(क) राज्यों के राज्य क्षेत्र,
(ख) पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र और,
(ग) ऐसे अन्य राज्य क्षेत्र जो अर्जित किए जाएं, समाविष्ट होंगे|
व्याख्या-
अनुच्छेद- 1(1)
संघ का नाम- भारत अर्थात इंडिया
इसमें भारत के लिए राज्यों का संघ शब्द का प्रयोग किया गया है|
राज्यों का संघ-
इसका अर्थ है कि भारतीय संविधान का ढांचा संघीय है|
लेकिन डॉ. बी.आर अंबेडकर के अनुसार संघीय राज्य (Federal) की जगह राज्यों का संघ (Union of State) शब्द के प्रयोग के दो कारण हैं-
भारत, राज्यों के बीच किसी समझौते का परिणाम नहीं है, जैसे कि अमेरिकी संघ
राज्यों को संघ से विभक्त होने का कोई अधिकार नहीं है|
अनुच्छेद- 1(2)-
राज्य और उनके राज्य क्षेत्र का विस्तार से वर्णन अनुसूची-1 में दिया गया है|
संविधान की पहली अनुसूची में राज्यों (28) एवं संघ शासित क्षेत्र (8) के नाम व उनके क्षेत्र का विस्तार से वर्णन दिया गया है|
अनुच्छेद- 1(3)-
भारत के राज्य क्षेत्र निम्न शामिल होंगे-
(क) राज्यों का राज्यक्षेत्र|
(ख) संघ राज्यों का राज्यक्षेत्र|
(ग) ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएं|
अनुच्छेद- 2 नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना- संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी|
व्याख्या-
संसद विधि द्वारा (ऐसे राज्यक्षेत्र, जो भारत का हिस्सा नहीं है) संघ में नये राज्य का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी|
नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना के लिए संसद कुछ निबंधन और शर्ते भी लगा सकती है|
अर्थात अनुच्छेद -2 संसद को निम्न शक्ति प्रदान करता है-
नये राज्यों को भारत संघ में शामिल करना|
नये राज्यों का गठन करना|
अनुच्छेद 2A/ (क) सिक्किम का संघ के साथ सहयुक्त किया जाना- (36 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 की धारा 5 द्वारा 26-4-1975 से निरसित)
व्याख्या-
35 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1974 के द्वारा अनु.2A तथा 10 वीं अनुसूची जोड़ी गई| इस संशोधन अधिनियम के द्वारा सिक्किम को ‘सम्बद्ध राज्य’ का दर्जा दिया गया|
36 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1975 द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था|
इस संशोधन के द्वारा पहली अनुसूची तथा चौथी अनुसूची (राज्यसभा में सीटें) में संशोधन किया गया तथा अनु-371‘च’ जोड़ा गया
इसके द्वारा (36 वे 1975) अनु 2A तथा अनुसूची-10 को समाप्त कर दिया गया|
सिक्किम-
1947 तक सिक्किम पर चोग्याल वंश का शासन था|
1947 में ब्रिटिश शासन समाप्त होने पर भारत द्वारा रक्षित राज्य बनाया गया| सरकार ने इसके रक्षा, विदेशी मामले, संचार का उत्तरदायित्व लिया|
35 वे-1974 के द्वारा सम्बद्ध राज्य बनाया
36 वे-1975 के द्वारा पूर्ण राज्य बनाया
अनुच्छेद- 3 नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन-
संसद विधि द्वारा-
किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी|
किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी|
किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी|
किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी|
किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी|
व्याख्या-
यह अनुच्छेद संसद को निम्न शक्ति प्रदान करता है, जो संसद विधि बना कर कर सकती हैं-
नये राज्यों का निर्माण- संसद विधि बनाकर निम्न तरह से नया राज्य बना सकती है-
किसी राज्य में उसका राज्य क्षेत्र अलग करके
दो या दो से अधिक राज्यों और राज्यों के भागों को मिलाकर
किसी राज्य क्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर
किसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ाना
किसी राज्य के क्षेत्र को घटाना
किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन करना
किसी राज्य के नाम में परिवर्तन करना
परंतु-
इस प्रयोजन के लिए कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में नहीं रखा जा सकता है|
संबंधित राज्य के विधानमंडल के विचार भी जानना जरूरी है| यह विचार राज्य विधान मंडल द्वारा राष्ट्रपति द्वारा तय समयाविधि में देना आवश्यक है|
राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल का मत मानने के लिए बाध्य नहीं है|
लेकिन ध्यान रहे कि यह केवल राज्य के संबंध में लागू है, संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में नही|
Note
इस अनुच्छेद के खंड (a) से खंड (e) में उल्लेखित राज्य के अंतर्गत राज्य व संघ राज्य क्षेत्र दोनों आते हैं|
Note-
इस अनुच्छेद के अंतर्गत संसद किसी भी राज्य का विभाजन, गठन, पुनर्गठन, एकीकरण, पुन: एकीकरण आदि कर सकती है|
डॉ सुब्रहमण्यम बनाम गवर्नमेंट ऑफ इंडिया वाद, AIR 2014 आंध्र प्रदेश-
आंध्रप्रदेश का विभाजन असंवैधानिक नहीं है, क्योंकि यह-
सम्यक विधिक प्रक्रिया द्वारा किया गया है,
विधि के अनुरूप किया गया है, तथा
संविधान में इसका प्रावधान है|
अनुच्छेद- 4 पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और परिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां-
अनुच्छेद दो या अनुच्छेद 3 में निर्दिष्ट किसी विधि में पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधो को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हो तथा ऐसे अनुपूरक, अनुषंगिक और परिणामिक उपबंध भी (जिनके अंतर्गत ऐसी विधि से प्रभावित राज्य या राज्यों के संसद में और विधानमंडल या विधान मंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में उपबंध है) अंतर्विष्ट हो सकेंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे|
पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी|
व्याख्या-
अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के तहत बनाई गई विधियों में निम्न भी शामिल होंगे-
पहली व चौथी अनुसूची के संशोधन के उपबंध शामिल होंगे|
तथा ऐसे अनुपूरक, अनुषांगिक, परिणामिक उपबंध भी शामिल होंगे, जिन्हें संसद आवश्यक समझे|
ऐसी विधि से प्रभावित राज्य या राज्यों के संसद में और विधानमंडल या विधानमंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में भी उपबंध शामिल होंगे|
अनु.2 व अनु. 3 के अंतर्गत संसद द्वारा बनाई गयी विधियां सामान्य बहुमत तथा साधारण विधायी प्रक्रिया के तहत बनायी जाएगी| इसके लिए अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता नहीं होगी|
केंद्र- राज्य संबंध-
Note- भारत में सबसे पहले नेहरू समिति ने संघीय प्रावधानों की बात की थी|
सविधान के भाग 11, भाग 12 व भाग 13 में केंद्र-राज्य संबंधों का उल्लेख है|
केंद्र राज्य संबंध-
विधायी संबंध- भाग 11 [(अध्याय 1), ( अनुच्छेद 245- 255)]
प्रशासनिक संबंध- भाग 11 [( अध्याय 2),( अनुच्छेद 256- 263)]
वित्तीय संबंध- भाग 12 [( अनुच्छेद 264- 300A)]
व्यापार-वाणिज्यक संबंध- भाग 13 [(अनुच्छेद 301- 307)]
केंद्र व राज्यों के मध्य विधायी संबंध-
अनुच्छेद 245-
संसद संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग तथा राज्य विधानमंडल संबंधित संपूर्ण राज्य या उसके किसी भाग के लिए विधि बना सकती है|
अनुच्छेद 246-
246(1)- संसद 7वीं अनुसूची की संघ सूची पर कानून बना सकती है|
246(2)- समवर्ती सूची पर संसद व राज्य विधानमंडल दोनों विधि बना सकती है|
246(3)- राज्य विधान मंडल राज्य सूची पर विधि बना सकती है|
246(4)- भारत का एक ऐसा क्षेत्र जो किसी भी राज्य के अंतर्गत नहीं आता है, वहां संसद कानून बना सकती है, चाहे राज्य सूची का ही विषय क्यों ना हो|
संघ सूची-
राष्ट्रीय महत्व के मामले
मूल विषय- 97
वर्तमान विषय-100
प्रमुख विषय- रक्षा, बैंकिंग, विदेशी मामले, मुद्रा, आणविक ऊर्जा, बीमा, संचार, केंद्र- राज्य व्यापार एवं वाणिज्य, जनगणना, लेखा- परीक्षा, डाकघर, रेलवे, नागरिकता आदि|
Note- 2 क, 92 क, 92ख, 92 ग नयी प्रविष्टि जोड़ी गयी तथा प्रविष्टि 33 लोप कर दिया गया|
राज्य सूची-
स्थानीय महत्व के विषय व विविधता वाले विषय
मूल विषय- 66
वर्तमान- 61 विषय
प्रमुख विषय- सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस (रेलवे पुलिस, ग्रामीण पुलिस), जन स्वास्थ्य, सफाई, कृषि, जेल, स्थानीय शासन, मत्स्य पालन, बाजार
Note- 7वा संविधान संशोधन 1956 द्वारा प्रविष्टि 36 का लोप
42 वा 1976 द्वारा 11, 19, 20, 29 का लोप
समवर्ती सूची-
ऐसे विषय जिन पर संपूर्ण देश में विधायिका की एकरूपता वांछनीय है, परंतु अनिवार्य नहीं
मूल विषय- 47
वर्तमान विषय- 52
प्रमुख विषय- आपराधिक कानून प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, विवाह, तलाक, जनसंख्या नियंत्रण, परिवार नियोजन, बिजली, श्रम कल्याण, आर्थिक एवं सामाजिक योजना, दवा, अखबार, पुस्तक एवं छापा, प्रेस एवं अन्य
Note- 42 वा संविधान संशोधन 1976 के द्वारा राज्य सूची के पांच विषयो को समवर्ती सूची में शामिल किया गया-
शिक्षा
वन
नाप एवं तोल
वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण
न्याय का प्रशासन (उच्चतम व उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सभी न्यायालयो का गठन)
नयी प्रविष्टि- 11( क), 17( क), 17(ख), 20( क), 33(क)
Note- सामान्यतः समवर्ती सूची पर केंद्र का कानून प्रभावी होता है| लेकिन यदि राज्य द्वारा बनाया गया विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के लिए आरक्षित है तथा राष्ट्रपति की सहमति मिल जाती हैं तो राज्य का कानून प्रभावी होगा| (अनुच्छेद 254)
अनुच्छेद 247-
संसद द्वारा बनाई गई विधियों के अच्छे प्रशासन के लिए संसद विधि के द्वारा अतिरिक्त न्यायालयो की स्थापना कर सकती है|
अनुच्छेद 248 अवशिष्ट विधायी शक्तियां (रेजीडयरी पावर्स)-
संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची में जिन विषयों का उल्लेख नहीं है, उन पर कानून बनाने की शक्ति संसद के पास है|
ऐसे विषय पर संसद विधि के द्वारा कर भी लगा सकती है|
अवशिष्ट शक्तियां कनाडा के संविधान पर आधारित है|
जैसे- साइबर कानून, अंतरिक्ष
अनुच्छेद 249-
राज्यसभा अपने उपस्थिति तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से राज्य सूची के किसी विषय के बारे में यह घोषित कर दे कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक है कि इस विषय पर संसद कानून बनाए, तो संसद राज्य सूची के ऐसे विषय पर कानून बना सकती है|
यह कानून 1 वर्ष के लिए होगा|
संसद ऐसा कानून संपूर्ण भारत के लिए या उससे किसी भाग के लिए बना सकती है|
इसे कितनी बार, 1-1 वर्ष के लिए बढ़ाया जा सकता है|
अनुच्छेद 250-
संसद, राष्ट्रीय आपदा (अनुच्छेद 352) के समय राज्य सूची के किसी विषय पर संपूर्ण भारत या उसके भाग के लिए कानून बना सकती है|
लेकिन आपातकाल की समाप्ति के बाद यह कानून छह माह से ज्यादा प्रभावी नहीं रह सकता है|
अनुच्छेद 251-
संसद द्वारा अनुच्छेद 249 व 250 के तहत बनायी गयी विधि राज्य विधान मंडल के विधि बनाने पर प्रतिबंध नहीं लगाती हैं, लेकिन केंद्र व राज्यों के मध्य विवाद होने पर केंद्रीय विधि मान्य होगी|
अनुच्छेद 252-
दो या दो से अधिक राज्यों के प्रतिवेदन पर संसद, राज्य सूची के किसी विषय पर विधि बना सकती है|
लेकिन ऐसी विधि केवल प्रतिवेदन करने वाले राज्यों पर ही लागू होगी|
यदि ऐसी विधि को बाद में किसी राज्य विधान मंडल द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उस राज्य पर भी यह विधि लागू होगी|
Note- ऐसी विधि का संशोधन व निरसन राज्यों के कहने पर संसद द्वारा किया जा सकेगा, राज्य विधान मंडल द्वारा नहीं|
अनुच्छेद 253-
अंतरराष्ट्रीय संधि, समझौते, करार या अभिसमय आदि को लागू करने के लिए संसद संपूर्ण भारत या उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकती हैं| (चाहे विषय राज्य सूची से जुड़ा हो)
अनुच्छेद 254-
समवर्ती सूची के विषय या ऐसे विषय जिनके संबंध में कानून बनाने के लिए संसद सक्षम है, के संबंध संसद व राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी गयी विधियों में टकराव/ मतभेद होता है, तो संसद का कानून प्रभावी होगा|
समवर्ती सूची के विषय के संबंध में राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी गयी विधि यदि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित है तथा राष्ट्रपति के अनुमति मिल जाती है तो राज्य विधान मंडल का कानून प्रभावी होगा|
अनुच्छेद 255-
संसद या राज्य विधानमंडल के किसी विधेयक पर राष्ट्रपति या राज्यपाल की अनुमति मिलने पर इस कारण अविधिमान्य नहीं हो सकता की संविधान द्वारा अपेक्षित कोई सिफारिश नहीं की गई थी या पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी|
अर्थात विधेयक पर एक बार राष्ट्रपति या राज्यपाल की सहमति मिलने पर वह हर हाल में विधिमान्य होगा|
केंद्र व राज्यों के मध्य कार्यकारी/ प्रशासनिक संबंध-
संविधान के भाग 11 में अध्याय 2 में 256- 263 तक केंद्र व राज्यों के मध्य प्रशासनिक संबंधों का उल्लेख है|
अनुच्छेद 256-
प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार किया जाएगा कि संसद द्वारा बनायी गयी विधियों (जो उस राज्य में लागू है) का उल्लंघन न हो|
तथा संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को ऐसे निदेश देने तक होगा, जो भारत सरकार आवश्यक समझे|
अनुच्छेद 257-
प्रत्येक राज्य द्वारा कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार किया जाएगा, जिससे संघ की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में अड़चन न हो|
संघ की कार्यपालिका राज्य की कार्यपालिका को राष्ट्रीय या सैनिक महत्व के संचार साधनो के निर्माण के लिए निर्देश दे सकती है|
संघ की कार्यपालिका, राज्य की कार्यपालिका को रेलों के संरक्षण के बारे में निर्देश दे सकती है|
निर्देश पालन में निर्धारित खर्चे से अधिक खर्च होने पर केंद्र सरकार द्वारा S.C के मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्धारित राशि राज्यों को दी जाएगी|
अनुच्छेद 258-
राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार की सहमति से उस राज्य सरकार को या उसके अधिकारियों/ प्राधिकारीयो को संघीय कार्य सोप सकता है|
अनुच्छेद 258 ‘क’-
किसी राज्य का राज्यपाल संघ सरकार की सहमति से राज्य कार्यपालिका कार्य को, संघ सरकार को या उसके अधिकारियों को सौंप सकता है|
अनुच्छेद 259-
7 वा 1956 द्वारा निरसित |
अनुच्छेद 260-
भारत सरकार विदेशी राज्य क्षेत्र की सरकार से करार करके, विदेशी राज्य क्षेत्र के कार्यपालिका, विधायी, न्यायिक कार्यों का भार अपने ऊपर ले सकती हैं|
अनुच्छेद 261-
पूरे भारत में संघ के और प्रत्येक राज्य के सार्वजनिक कार्यों, अभिलेखों और न्यायिक कार्यवाहीयो को पूरी मान्यता दी जाएगी|
इसके संबंध में संसद विधि बनाएगी|
अनुच्छेद 262- (जल संबंधी विवाद)
अंतर्राज्यीय नदी या नदी-दून के या उसके जल का प्रयोग, वितरण, नियंत्रण के संबंध में किसी विवाद या परिवाद के न्याय निर्णय के लिए संसद विधि बनाकर उपबंध करें|
इसके आधार पर अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 बनाया गया|
जल विवादों के हल के लिए नदी जल बोर्डो का गठन किया जाता है, जिसका अध्यक्ष S.C का अवकाश प्राप्त न्यायधीश होता है|
संसद विधि बनाकर यह उपबंध कर सकती है कि उच्चतम न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय ऐसे विवाद के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा|
अनुच्छेद 263- राज्यो के बीच समन्वय के लिए अंतर्राज्यीय परिषद-
निम्न कार्यों के लिए राष्ट्रपति आदेश के द्वारा अंतर्राज्यीय परिषद का गठन किया जा सकता है-
राज्यों के बीच उत्पन्न विवादों की जांच करने व सलाह देने के लिए|
कुछ या सभी राज्यों के अथवा संघ और एक या अधिक राज्यों के सामान्य हित से संबंधित विषयो के अन्वेषण व विचार विमर्श करने के लिए
इस अनुच्छेद के आधार पर पहली बार जून 1990 में अंतर्राज्यीय परिषद की स्थापना की गई|
जिसकी पहली बैठक 10 अक्टूबर 1990 को हुई|
अंतर्राज्यीय परिषद के सदस्य-
अध्यक्ष- प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत 6 कैबिनेट स्तर के मंत्री|
सभी राज्यो व केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री/ उपराज्यपाल/ प्रशासक
अंतर्राज्यीय परिषद की बैठक साल में तीन बार होनी चाहिए|
बैठक के लिए कम से कम 10 सदस्य होने आवश्यक है|
Note- अंतर्राज्यीय परिषद का गठन सरकारिया आयोग की सिफारिश पर हुआ था|
Note- अंतर्राज्यीय परिषद की बैठके निरंतर नहीं होती है और इसकी सलाह भी बाध्यकारी नहीं होती है
अंतर्राज्यीय परिषद ने निम्न मुद्दों पर विचार किया है-
अनुच्छेद 356 का प्रयोग अंतिम विकल्प के रूप में हो|
केंद्र करो से प्राप्त आय का 29.5% हिस्सा राज्यों को देना चाहिए|
केंद्र- राज्य के मध्य वित्तीय संबंध- (भाग- 12, अनुच्छेद 264- 300 क)
अनुच्छेद 265-
कोई कर विधि के प्राधिकार के बिना अधिरोपित या संग्रहित नहीं किया जा सकता है|
अर्थात सरकार संसद की अनुमति से ही कर लगा सकती है|
अनुच्छेद 266- (संचित निधि व लोक लेखा)
इसमें भारत व राज्यों के लिए संचित निधि व लोक लेखा का प्रावधान है
266(1) संचित निधि (केंद्र व राज्य दोनों)- संचित निधि में निम्न शामिल होगा/ निम्न से मिलकर बनेगी-
भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व
भारत सरकार द्वारा हुंडिया निर्गमित करके प्राप्त धनराशि
उधार या अर्थोपाय अग्रिम के लिए गए उधार से प्राप्त धनराशि
उधारों के प्रतिसंदाय (ब्याज) से प्राप्त धनराशि
Note- राज्य संचित निधि, राज्य द्वारा इन चारों प्रावधानों द्वारा प्राप्त धनराशि से मिलकर बनेगी| 266(1)
266(2) लोक लेखा (केंद्र और राज्य दोनों के लिए)- भारत सरकार/ राज्य सरकार द्वारा प्राप्त अन्य लोक राशियां, भारत के लोक लेखे या राज्य के लोक लेखे में जमा होगी|
266(3)- भारत की संचित निधि या राज्य की संचित से कोई धनराशि विधि के अनुसार संविधान में उल्लेखित प्रयोजनों के लिए ही विनियोजित (खर्च) की जा सकती है| अर्थात भारत की संचित निधि पर संसद का, राज्य की संचित निधि पर विधानमंडल का अधिकार व नियंत्रण होता है|
अनुच्छेद 267- ‘आकस्मिकता निधि’
267(1) ‘भारत की आकस्मिक निधि’
संसद विधि के द्वारा आकस्मिक निधि की स्थापना करेगी|
आकस्मिक निधि में संसद विधि द्वारा निर्धारित धनराशि समय-समय पर जमा होगी|
अनुच्छेद 115 तथा अनुच्छेद 116 के अधीन संसद द्वारा निर्धारित व्यय के लंबित रहने पर इस निधि से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए राष्ट्रपति अग्रिम धनराशि दे सकते हैं|
अर्थात संसद के सत्र में न होने पर इस निधि से खर्च किया जा सकता है|
इस निधि पर पूरा नियंत्रण राष्ट्रपति का होता है|
267(2) ‘राज्य की आकस्मिक निधि’
विधानमंडल विधि के द्वारा आकस्मिक निधि की स्थापना करेगा|
इसमें विधान मंडल द्वारा निर्धारित धनराशि जमा होगी|
अनुच्छेद 205 व अनुच्छेद 206 के अधीन व्यय लंबित रहने पर राज्यपाल अग्रिम दे सकता है|
अर्थात राज्य की आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का नियंत्रण होता है|
Note- आकस्मिक निधि का गठन 1950 में किया गया था| (आकस्मिक निधि अधिनियम 1950 के द्वारा)
Note-
संघ सूची के विषयो पर कर संसद लगा सकती है| (15 विषय है)
राज्य सूची के विषयो पर कर राज्य विधान मंडल लगा सकती है| (20 विषय)
समवर्ती सूची पर दोनों कर लगा सकती है| (3 विषय)
अवशिष्ट विषयों (उपहांर कर, समृद्धि कर, व्यय कर) पर संसद लगा सकती है|
Note-
संविधान के महत्वपूर्ण कर जैसे- आयकर, सीमा कर केंद्र के पास है, जबकि कम महत्वपूर्ण कर जैसे- मनोरंजन कर, विद्युत कर, चुंगी कर राज्यों के पास है| अत: कुछ अनुच्छेदों में यह है प्रावधान है कि केंद्र सरकार करो से प्राप्त आय का एक भाग राज्य सरकारो को प्रदान करें, ये अनुच्छेद निम्न है-
अनुच्छेद 268- संघ सरकार द्वारा उद्धग्रहित किए जाने वाले, किंतु राज्यों द्वारा संग्रहित और विनियोजित किए जाने वाले शुल्क-
268(1)- स्टाम्प शुल्क तथा औषधीय और प्रसाधन पर उत्पाद शुल्क, जिनका वर्णन संघ सूची में है, भारत सरकार द्वारा लगाए जाएंगे|
ऐसे शुल्क संघ क्षेत्र में आते हैं, तो भारत सरकार द्वारा संग्रहित किए जाएंगे|
ऐसे शुल्क जिन- जिन राज्यों में आते हैं, उसी राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित किए जाएंगे|
268(2)- किसी राज्य के भीतर लगाए गए ऐसे शुल्क, उसी राज्य को सौंप दिए जाएंगे|
Note- स्टाम्प शुल्क- विनियम पत्रों, चैक, बीमा, शेयरो पर लगाने वाला स्टाम्प शुल्क, औषधीय व प्रसाधन की वस्तुओं में एल्कोहल व नारकोटिक्स भी शामिल है|
अनुच्छेद 268 ‘क’
88 वे 2003 के द्वारा जोड़ा गया|
संघ द्वारा उद्धग्रहित सेवा कर तथा संघ एवं राज्य द्वारा विनियोजित एवं संकलित-
268 क(1)- सेवा कर भारत सरकार द्वारा लगाया जाएगा| तथा सेवा कर भारत सरकार द्वारा तथा राज्यो द्वारा संकलित एवं विनियोजित किए जाएंगे|
268 क(2)- भारत सरकार व राज्य सरकारों द्वारा सेवा करो का संकलन एवं विनियोजन के अनुपात का निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा|
Note- अनुच्छेद 268 (क) का 101 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2016 की धारा 7 के द्वारा लोप कर दिया गया है|
अनुच्छेद 269-
संघ द्वारा उद्धग्रहित और संग्रहित, किंतु राज्यों को सोपे जाने वाले कर-
वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर कर तथा वस्तुओं के पारेषण पर कर भारत द्वारा लगाया जाएगा, एकत्रण भी भारत सरकार द्वारा किया जाएगा| परंतु ऐसे कर राज्यों को सौंप जाएंगे|
Note- वस्तुओं का क्रय-विक्रय तथा पारेषण पर लगने वाला कर अंतर्राज्यीय व्यापार में लगेगा|
अनुच्छेद 269 (A)- अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल और सेवा कर का उद्ग्रहण और संग्रहण
101 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2016 के द्वारा जोड़ा गया|
अंतरराज्यिक व्यापार या वाणिज्य के दौरान माल और सेवा कर भारत सरकार द्वारा उदग्रहित और संग्रहित किए जाएंगे तथा माल और सेवा कर परिषद की सिफारिश के आधार पर संघ और राज्यों के बीच विभाजित किए जाएंगे
अनुच्छेद 270-
संघ द्वारा उद्धग्रहित एवं संघ व राज्यों के बीच वितरित किया जाने वाला कर-
संघ सूची मे उल्लेखित सभी कर व शुल्क (अनुच्छेद 268, 268 ‘क’, 269, 269‘क’ को छोड़कर) संघीय सरकार लगाएगी तथा एकत्रित भी करेगी|
परंतु वित्त आयोग की सिफारिश पर राशि को केंद्र और राज्यों के मध्य वितरित करेगी|
जैसे- आयकर
Note- 10 वे वित्त आयोग की सिफारिश पर 80 वे संविधान संशोधन अधिनियम 2000 के द्वारा यह निर्धारित किया गया कि ऐसे करो से प्राप्त धनराशि का 29% भाग राज्यों को दिया जाना आवश्यक है| इसे अवमूल्यन की वैकल्पिक योजना कहा जाता है|
अनुच्छेद 271-
अनुच्छेद 269 व 270 में उल्लेखित करो व शुल्को पर संसद अधिभार लगाकर वृद्धि कर सकती है|
वृद्धि से प्राप्त अतिरिक्त धनराशि भारत की संचित निधि में जमा होगी|
अनुच्छेद 273-
जूट तथा जूट उत्पादकों पर निर्यात शुल्क से प्राप्त राशि असम, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल राज्यों को सौंपने की बजाए राजस्व में सहायता अनुदान के रूप में दी जाती है|
यह राशि भारत की संचित निधि पर भारित होती है|
संघ सरकार द्वारा राज्यों को दो तरह का अनुदान भी दिया जाता है-
अनुच्छेद 275 - ‘विधिक अनुदान’
किसी राज्य को आवश्यकता पड़ने पर संघ सरकार राज्यों को अनुदान प्रदान करेगी|
यह अनुदान वित्त आयोग की सलाह पर दिया जाता है|
यह सहायता राशि अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग हो सकती है|
यह राशि भारत की संचित निधि पर भारित होती है|
अनुच्छेद 282- विवेकाधीन अनुदान
संघ व राज्य दोनों, लोक प्रयोजन के लिए अनुदान दे सकते हैं|
केंद्र सरकार राज्यों को अनुदान उपलब्ध करा सकती है, लेकिन बाध्य नहीं है|
अनुच्छेद 280- ‘वित्त आयोग का गठन’
वित्त आयोग एक संवैधानिक, सलाहकारी व अर्द्ध न्यायिक निकाय है|
वित्त आयोग का गठन संविधान प्रारंभ के 2 वर्षों के भीतर उसके बाद प्रत्येक 5 वर्ष में राष्ट्रपति करेगा| जिसमें एक अध्यक्ष और 4 सदस्य होंगे| कुल सदस्य 5 होंगे|
सदस्यों की योग्यता तथा चयन रीति का निर्धारण संसद कानून बनाकर करेगी|
इसके आधार पर संसद ने वित्त आयोग (विधिक प्रावधान) अधिनियम 1951 बनाया है, जिसके अनुसार सदस्यों की निम्न योग्यताएं होनी चाहिए-
अध्यक्ष- यह सार्वजनिक मामलों का अनुभवी होना चाहिए|
सदस्य-
किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या इस पद के लिए योग्य व्यक्ति|
भारत के लेखा एवं वित्त मामलों का विशेष ज्ञान रखने वाला|
प्रशासन और वित्तीय मामलों का व्यापक अनुभव रखने वाला|
अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञाता व्यक्ति|
आयोग के कार्य- यह निम्न मामलों में राष्ट्रपति को सिफारिश करता है-
(क) केंद्र व राज्यों के मध्य करो के विभाजन के बारे में|
(ख) भारत की संचित निधि से राज्यों को दिए जाने वाले सहायता अनुदान के बारे में|
(खख) राज्य के वित्त आयोग की गई सिफारिशों के आधार पर राज्यों में पंचायतों के संसाधनों की अनुपूर्ति के लिए, राज्य की संचित निधि को बढ़ाने के आवश्यक उपायों के बारे में|
(ग) राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य में नगर पालिकाओं के संसाधनों की अनुपूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि के बढ़ाने के आवश्यक उपायों के बारे में|
(घ) सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा सोपे पर गए कार्यों के बारे में|
अनुच्छेद 281-
राष्ट्रपति वित्त आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगा|
Note- वित्त आयोग की सिफारिश सलाहकारी है, बाध्यकारी नहीं है|
प्रथम वित्त आयोग-
प्रथम वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से 22 नंबर 1951 को हुआ|
अध्यक्ष- K.C नियोगी
14 वा वित्त आयोग-
गठन- 2 जनवरी 2014
अध्यक्ष- Y.V रेड्डी
यह 2015- 2020 के लिए गठित किया गया था|
15 दिसंबर 2014 को अपनी रिपोर्ट दी|
प्रमुख सिफारिश- राज्यों को अनुदान प्रदर्शन के आधार पर दिया जाए|
15 वा वित्त आयोग-
गठन- 22 नवंबर 2017
अध्यक्ष- N.K.सिंह
सदस्य- शशिकांत दास, डॉ अनूप सिंह, डॉ अशोक लाहिड़ी, डॉ रमेश चंद्र|
15 वे वित्त आयोग की विशेष बातें-
इसमें 2011 की जनगणना के आधार पर राज्यों के बीच संसाधनों के आवंटन की अनुशंसा की गई है, जो अभी तक 1971 थी
इस जनगणना से दक्षिणी राज्यों को नुकसान होने की संभावना है, जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण में काफी सफलता पाई है|
उद्देश्य-
G.S.T. का केंद्र व राज्यों की वित्तीय स्थिति पर होने वाले असर का आकलन करेगा|
15 वा वित्त आयोग 1 अप्रैल 2020 से लागू हुआ|
अनुच्छेद 285-
संघ की संपत्ति को राज्य के कर से छूट|
अनुच्छेद 289-
राज्य की संपत्ति को संघ के कर से छूट|
अनुच्छेद 292-
केंद्र सरकार विदेशों से उधार ले सकती हैं|
अनुच्छेद 293-
राज्य सरकारे भारत सरकार की अनुमति से विदेशों से उधार ले सकती हैं|
अनुच्छेद 300(क)-
संपत्ति का अधिकार
केंद्र व राज्यों के मध्य व्यापार-वाणिज्य संबंध- (भाग 13, अनुच्छेद 301- 307 तक)
अनुच्छेद 301-
भारत के राज्य क्षेत्रों में सर्वत्र व्यापार, वाणिज्य और समागम की बिना किसी बाधा के स्वतंत्रता होगी|
अनुच्छेद 302-
एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच या भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भाग के भीतर व्यापार-वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर संसद लोकहित में प्रतिबंध लगा सकती है|
अनुच्छेद 303-
संसद या राज्य विधान मंडल व्यापार-वाणिज्य के संबंध में ऐसी विधि नहीं बना सकती है, जो एक-दूसरे राज्य में भेद करती है|
लेकिन भारत के किसी क्षेत्र में माल की कमी से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए संसद राज्यों के बीच विभेद के लिए विधि बना सकती है|
अनुच्छेद 304- राज्यों के बीच व्यापार, वाणिज्य और समागम पर निर्बंधन
राज्य विधान मंडल विधि द्वारा निम्न प्रतिबंध लगा सकता है-
अन्य राज्यों या संघ राज्यों से आयात किए गए माल पर कोई ऐसा कर अधिरोपित कर सकता है, जो उस राज्य में विनिर्मित या उत्पादित वैसे ही माल पर लगता है, लेकिन आयात व विनिर्मित या उत्पादित माल के बीच भेद नहीं होना चाहिए|
किसी राज्य के साथ व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर लोकहित में प्रतिबंध लगा सकता हैं| लेकिन ऐसा विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के विधानमंडल में नहीं रखा जा सकता है|
अनुच्छेद 305- विद्यमान विधियों और राज्य के एकाधिकार का उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति-
राष्ट्रपति आदेश दे सकता है, कि अनुच्छेद 301 तथा 303 के तहत बनाई गई विधि वर्तमान विद्यमान विधि पर प्रभाव ना डालें|
अनुच्छेद 306-
7 वा 1956 द्वारा निरक्षित
अनुच्छेद 307- अनुच्छेद 301- 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए प्राधिकारी की नियुक्ति-
संसद अनुच्छेद 301 से अनुच्छेद 304 के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए किसी प्राधिकारी की नियुक्ति कर सकती है तथा उसको आवश्यक शक्तियों व कार्य सौंप सकती है|
संघ-राज्य संबंधों पर बने आयोग-
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग- 1966 (ARC-1-Administration Report Commission)
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन 1966 में किया गया|
इसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई थे|
बाद में जब मोरारजी देसाई उपप्रधानमंत्री बन गए तो K. हनुमंतराव को इसका कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था|
इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1969 में केंद्र सरकार को सौंपी|
इसमें केंद्र-राज्य संबंधों को सुधारने के लिए 22 सिफारिशें प्रस्तुत की|
प्रमुख सिफारिशें-
अनुच्छेद-263 के अंतर्गत अंतर्राज्यीयपरिषद का गठन किया जाए|
राज्यपाल के रूप में गैर-दलीय व्यक्ति को नियुक्त किया जाए|
राज्यपाल के अनुरोध पर राज्य में केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती हो|
राज्यों को ज्यादा वित्तीय संसाधन देकर केंद्र पर निर्भरता कम की जाए|
Note- इस आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए M.C शीतलवाड़ के अधीन एक दल का गठन किया गया था|
राजमन्नार समिति- 1969-
इस समिति का गठन तमिलनाडु सरकार ने 1969 में डॉक्टर V.P. राजमन्नार की अध्यक्षता में किया|
गठन का उद्देश्य-
केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने एवं राज्यों को स्वायत्तता दिलवाने के लिए सविधान में संशोधन के सुझाव देने हेतु|
1971 में इस समिति ने अपने रिपोर्ट तमिलनाडु सरकार को सौंपी
रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें-
अनुच्छेद 356, 357, 365 को समाप्त किया जाए|
अंतर्राज्यीय परिषद का गठन किया जाए|
अखिल भारतीय सेवाओं को समाप्त किया जाए|
राज्यपाल के कार्यकाल के संबंध में प्रसादपर्यंत शब्द को समाप्त किया जाए|
अवशिष्ट शक्तियां राज्यों को दी जाए|
वित्त आयोग को स्थायी निकाय बनाया जाए|
Note- 1975 मे राजमन्नार ने पुन: उपयुक्त सिफारिशें J.P (जयप्रकाश) नारायण को सौंपी थी|
सहाय समिति- 1971-
तत्कालीन राष्ट्रपति V.V गिरी द्वारा 1971 में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल भगवान सहाय की अध्यक्षता में इसका गठन किया गया|
सहाय समिति ने राज्यपाल पद को सुद्ढ़ करने की अनुशंसा की|
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव 1973-
इस प्रस्ताव में राज्यों को स्वायत्तता देने को कहा तथा
केंद्र के पास मात्र रक्षा, संचार एवं मुद्रा हो, इसके अतिरिक्त अन्य सभी विषय राज्यों को सौंप दिए जाने चाहिए|
पश्चिमी बंगाल मेमोरेंडम (समरण पत्र) 1977-
1977 में पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों पर एक स्मरण पत्र प्रकाशित किया तथा उसे केंद्र सरकार को प्रेषित किया|
इस स्मरण पत्र में प्रमुख सुझाव निम्न थे-
अनुच्छेद 1 में उल्लेखित (Union Of Stale) शब्द की जगह Federation (फेडरेशन) शब्द का प्रयोग किया जाए|
केंद्र के पास केवल रक्षा, विदेशी मामले ,संचार, आर्थिक समन्वय संबंधी विषय होने चाहिए|
अनुच्छेद 356, 357, 360 को समाप्त कर दिया जाए|
अनुच्छेद 3 के तहत नए राज्यों के निर्माण तथा वर्तमान राज्यों के पुनर्गठन में राज्यों की सहमति अनिवार्य बनायी जाए|
केंद्र राजस्व का 75% राज्यों को दिया जाए|
राज्यसभा को लोकसभा के बराबर शक्ति दी जाए|
अखिल भारतीय सेवाएं समाप्त कर दी जाए|
सरकारिया आयोग 1983-
1983 में केंद्र सरकार ने SC के पूर्व न्यायाधीश R.S सरकारिया की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन किया गया|
तीन सदस्यीय आयोग था-
अध्यक्ष- R S सरकारिया
B शिवरमन
S.R. सेन
आयोग ने 1987 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसको अधिकारिक तौर पर 1988 में जारी किया गया|
आयोग ने केंद्र-राज्यों संबंधों की सुधार की दिशा में 247 सिफारिशें प्रस्तुत की-
प्रमुख सिफारिशें-
राष्ट्रीय एकता, अखंडता के लिए मजबूत केंद्र होना आवश्यक है|
अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-सरकारी परिषद की स्थापना की जाए|
अनुच्छेद 356 का प्रयोग अंतिम विकल्प के रूप में किया जाए|
अखिल भारतीय सेवाओं को सुद्ढ़ किया जाए, कुछ अन्य सेवाओं का निर्माण किया जाए|
क्षेत्रीय परिषदे बनानी चाहिए
समवर्ती सूची पर कानून बनाने से पहले केंद्र को राज्य से परामर्श करना चाहिए|
राज्यपाल की नियुक्ति में मुख्यमंत्री की सलाह की व्यवस्था को संविधान में जोड़ा जाए|
राज्यपाल विधानसभा में बहुमत की स्थिति पर सरकार को भंग नहीं कर सकता है|
राज्यपाल के 5 वर्ष के कार्यकाल को बिना ठोस कारण के बाधित नहीं किया जाए|
त्रिभाषा फार्मूला समान रूप से लागू करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए|
द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग-
गठन- 31 अगस्त 2005
अध्यक्ष- कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली
इसने अपनी रिपोर्ट में 15 सिफारिशें की है-
सूचना का अधिकार अच्छे शासन की कुंजी है|
शासन में नैतिकता को शामिल किया जाए (नैतिक संहिता)
ई- प्रशासन को बढ़ावा दिया जाए
प्रशासन को जनकेंद्रित बनाना|
वित्तीय प्रबंधन व्यवस्था को मजबूत करना|
Note- वीरप्पा मोइली के त्यागपत्र के बाद V. रामचंद्रन को इसका कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया|
पूंछी आयोग 2007-
अप्रैल 2007 में केंद्र सरकार द्वारा केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पूंछी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया|
आयोग ने 30 मार्च 2010 को अपनी रिपोर्ट में 273 सिफारिशें की थी|
प्रमुख सिफारिशें-
सशक्त राज्यों के साथ सशक्त केंद्र हो|
अनुच्छेद 355, 356 में संशोधन किया जाए, जिससे कम समय के लिए ही राज्यों का शासन केंद्र अपने अंतर्गत ले सके|
अमेरिकी होलेंड सिक्योरिटी की तर्ज पर एक विभाग का गठन किया जाए|
पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत किया जाए|
क्षेत्रीय परिषदे-
क्षेत्रीय परिषद सांविधिक निकाय है (न कि संवैधानिक)
इनका गठन राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत हुआ है|
इनका अध्यक्ष केंद्रीय गृहमंत्री होता है|
क्षेत्रीय परिषद के सदस्य-
अध्यक्ष- गृहमंत्री (केंद्र सरकार का)
क्षेत्र के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री|
क्षेत्र के प्रत्येक राज्य से दो अन्य मंत्री|
क्षेत्र में स्थित प्रत्येक केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक या उपराजयपाल|
इसके अलावा निम्न व्यक्ति सलाहकार के रूप में शामिल हो सकते हैं- (बैठक में बिना मताधिकार)
योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा मनोनीत व्यक्ति|
क्षेत्र में स्थित प्रत्येक राज्य सरकार के प्रमुख सचिव|
क्षेत्र में प्रत्येक राज्य के विकास आयुक्त|
Note- प्रत्येक राज्य का मुख्यमंत्री, क्रमानुसार 1 वर्ष के लिए उपाध्यक्ष होता है|
क्षेत्रीय परिषदों का उद्देश्य-
राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों तथा केंद्र के बीच सहभागिता तथा समन्वयता को बढ़ावा देना|
अंतर राज्यीय विकास में सहायता करना|
अंतर राज्यीय विवादों का समाधान करना
क्षेत्रीय परिषदें केवल परामर्शदात्री निकाय है|
भारत में वर्तमान में 5 क्षेत्रीय परिषदे है-
उत्तर क्षेत्रीय परिषद-
मुख्यालय- नई दिल्ली
सदस्य(8)- पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर, लद्दाख
मध्य क्षेत्रीय परिषद-
मुख्यालय- इलाहाबाद
सदस्य(4)- मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद-
मुख्यालय- कोलकाता
सदस्य(4)- बिहार, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, झारखंड
पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद-
मुख्यालय- मुंबई
सदस्य(4)- महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा, दमन एवं दीव तथा दादरा नगर हवेली
दक्षिण क्षेत्रीय परिषद-
मुख्यालय- चेन्नई
सदस्य(6)- कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल, पुद्दुचेरी, तेलंगाना
पूर्वोत्तर क्षेत्रीय परिषद-
इसका गठन पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम 1971 के द्वारा किया गया|
सदस्य (8)- असम, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा तथा सिक्किम|
राज्यों के मध्य विवाद-
बेलगांव विवाद-
बेलगांव वर्तमान में कर्नाटक का भाग है| बेलगांव को लेकर कर्नाटक व महाराष्ट्र में विवाद है|
यहां मराठी भाषी ज्यादा संख्या में है, इसलिए महाराष्ट्र इसकी मांग कर रहा है|
बेलगाम विवाद समाधान के लिए केंद्र सरकार ने 1966 में महाजन आयोग का निर्माण किया|
मेहर चंद महाजन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे|
पर अब तक इस विवाद का समाधान नहीं हुआ है|
कांसरगोड़ा विवाद-
यह केरल में है, जिसे कर्नाटक प्राप्त करना चाहता है|
चंडीगढ़ विवाद-
इसे लेकर पंजाब व हरियाणा के मध्य विवाद है, जिसके समाधान के लिए शाह आयोग बना था 1966 में|
रंगापानी क्षेत्र विवाद-
यह विवाद असम व नागालैंड के मध्य है|
रंगापानी असम में है, जिसे नागालैंड अपना बताता है|
विवाद के समाधान के लिए बी के सुंदरम आयोग बना था|
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