राजनीतिक सिद्धांत का अर्थ समझने से पहले हमें राजनीति व सिद्धांत का अर्थ समझना चाहिए|
राजनीति का अर्थ-
राजनीति का संबंध मनुष्य के सार्वजनिक जीवन से है|
राजनीति सार्वजनिक गतिविधि है|
राजनीति हमारे सार्वजनिक जीवन का वह क्षेत्र या आयाम है, जहां हम अपने हितों के लिए संघर्ष करते हैं तथा वस्तु या संसाधनों पर अपना दावा करते हैं|
राजनीति के अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द Politics की उत्पत्ति ग्रीक शब्द Polis व Politia से हुई है|
Polis शब्द का अर्थ नगर राज्य (अर्थात समग्र रूप में राज्य अथवा समुदाय) से है|
प्राचीन यूनान में Polis अथवा City State राजनीतिक संगठन का सबसे लोकप्रिय व सामान्य स्वरूप था, जो सामान्य हित की भावना को दर्शाता था|
राजनीति का प्राचीन कालीन अर्थ-
नगर राज्य तथा उससे संबंधित जीवन, घटनाओं, व्यवहारों एवं समस्याओं का अध्ययन अथवा ज्ञान ही राजनीति है|
आधुनिक समय में राजनीति का अर्थ-
आधुनिक समय में राजनीति का संबंध राज्य, सरकार, प्रशासन, व्यवस्था के अंतर्गत समाज के विभिन्न संदर्भों व संबंधों के व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध ज्ञान एवं अध्ययन से है|
नामकरण-
Politics (राजनीति) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अरस्तू ने किया|
राजनीति विज्ञान को अरस्तू ने Master Science (सर्वोच्च विज्ञान) व शिखरस्थ विज्ञान (Architectonic Science) कहा है|
अरस्तु ने राजनीति को दर्शन से अलग करके स्वायत्त विषय का रूप दिया, इसलिए अरस्तु को राजनीति विज्ञान का पिता कहा जाता है|
Politics को Political Science नाम देने का श्रेय प्रबुद्ध अराजकतावादी विचारक विलियम गॉडविन व नारीवादी विचारक मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट (पति व पत्नी) को है|
इरिक रोवे ने Politicology शब्द दिया, जिसका अर्थ है- राजनीति विज्ञान या राजविज्ञान
एमरसन ने राजनीति विज्ञान को महानतम विज्ञान कहा है|
अल्फ्रेड जार्जिया ने राजनीति विज्ञान को विज्ञानो की महारानी कहा है|
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने इसे वर्तमान सभ्यता को सुरक्षित रखने वाला विज्ञान कहा है|
राजनीतिक विज्ञान का पहला आधुनिक प्रयोग मॉन्टेस्क्यू, एडम स्मिथ, एडम फर्ग्यूसन, डेविड ह्यूम के कार्य में मिलता है| जहां इसका अर्थ है- विधायिका का विज्ञान (The Science of Legislator)|
राजनीतिक संस्था-
राजनीतिक संस्था से तात्पर्य ऐसी कोई सार्वजनिक संस्था, जिसके पास फैसला करने की शक्ति या प्राधिकार हो|
राजनीति क्या है-
राज्य और सरकार के रूप में राजनीति-
डेविड ईस्टन की राजनीति की परिभाषा “समाज के मूल्यों के प्रामाणिक वितरण के विज्ञान” के रूप में राजनीति को राज्य तथा सरकार तक सीमित रखती है|
वाइजमैन, रफेल राजनीति को सीमित साधनों का बंटवारा करने की प्रक्रिया मानते हैं|
संघर्ष के समाधान व समझौते की कला के रूप में राजनीति : उदारवादी-
उदारवादी इसे समझौते की कला कहते हैं, अर्थात यह परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करने वाली गतिविधि है|
उदारवादी समाज की बहुलवादी धारणा का समर्थन करते हैं, अर्थात एक समाज में अनेक समूह होते हैं तथा उनके अलग-अलग हित होते हैं|
लास्की “राजनीति समझौते की कला है|”
एंड्र्यू हेवुड तथा क्रिक भी राजनीति को संघर्ष के समाधान के रूप में मानते हैं|
एंड्र्यू हेवुड “राजनीति की महता इस बात से है कि यह विश्व में प्रतिद्वंद्विता का एक स्रोत होने के साथ-साथ विवादों को हल करने तथा बेहतर समाजों के निर्माण करने की एक कार्यप्रणाली भी है|”
एंड्र्यू हेवुड “राजनीति एक ऐसी क्रिया है, जिसके माध्यम से लोग अपने जीवन में उन सामान्य नियमों का निर्माण, परीरक्षण तथा संशोधन करते हैं, जो आवश्यक है|”
एंड्र्यू हेवुड “राजनीति संघर्ष के समाधान की एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा प्रतिद्वंदी हितों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है|”
क्रिक “राजनीति संघर्ष के समाधान करने का एक विशिष्ट तरीका है|”
हन्ना आरेण्ट राजनीति को बल तथा हिंसा के बजाय विमर्श तथा अनुनय के माध्यम से निर्णय करने वाला तंत्र मानती है|
हन्ना आरेण्ट “राजनीति के बिना स्वतंत्रता असंभव है|”
सामान्य हित के उद्यम के रूप में राजनीति-
सामान्य हित का विचार नया नहीं है, बल्कि अरस्तु, मैक्यावली, रूसो के कार्यों में सामान्य हित की अवधारणा रही है|
सामान्य हित की अवधारणा प्रजातंत्रवाद के विचार के साथ स्पष्ट रूप से विकसित हुई|
प्रजातंत्रवादी सकारात्मक स्वतंत्रता पर बल देते हैं, जिसमें व्यक्ति एवं उनके निजी हित समग्र समुदाय के सामान्य हित के अधीन है|
अरस्तु ने अपनी कृति पॉलिटिक्स में लिखा है कि “सिटी स्टेट (City State) एक विशेष प्रकार का समुदाय है तथा वह सभी समुदायों की भांति किसी विशेष हित के लिए स्थापित किया गया है| सिटी स्टेट का हित सर्वाधिक प्रमाणिक हित है, जिसमें अन्य सभी हित सम्मिलित हैं|”
सिसरो (रोमन लेखक व राजनीतिज्ञ) “सामान्य हित राज्य का सर्वोच्च कानून होता है|”
आधुनिक काल में सामान्य हित के विचार को व्यक्तिवादियों, उपयोगितावादियों, आदर्शवादियों तथा समाजवादियों के लेखन में देखा जा सकता है|
जॉन लॉक और एडम स्मिथ जैसे व्यक्तिवादियों ने समाज के हित को व्यक्ति के हित के रूप में देखा है|
जर्मी बेंथम ने सामान्य हित को “अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख” के रूप में माना है|
इमानुएल कांट ने अपने अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सहयोग के सिद्धांत के माध्यम से सामान्य हित प्राप्ति के प्रयास का उदाहरण दिया है| इमानुएल कांट ने अपने निबंध Toward Perpetual Peace (टुवर्ड पर्पेचुअल पीस) 1795 में संप्रभु राज्यों के मध्य स्थायी शांति स्थापित करने की आवश्यकता के लिए तर्क दिए हैं|
आदर्शवादी ग्रीन “सामान्य हित तभी प्राप्त हो सकता है, जब राज्य सभी अवरोधों के समक्ष स्वयं एक अवरोध बन जाए|”
शक्ति के रूप में राजनीति-
राजनीति का अर्थ शक्ति प्रयोग से भी है|
यथार्थवादी, व्यवहारवादी, नारीवादी, मार्क्सवादी, अभिजनवादी व उत्तर आधुनिकतावादी मिशेल फूको राजनीति को शक्ति के रूप में स्पष्ट करते हैं|
यथार्थवादी व अधिकांश व्यवहारवादी राजनीति को शक्ति का विज्ञान ही मानते हैं|
व्यवहारवादियों के अनुसार ‘राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है|’
शक्तिवादी दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति युद्धहीन संघर्ष है, जिसमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति से संबंधित समस्याएं सुलझायी जाती है|
राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है| समर्थक- मैक्स वेबर, जॉर्ज केटलिन, हेराल्ड लासवेल, रॉबर्ट डहल, हैंस जे मार्गेनथो|
यथार्थवादी विचारक-
थ्यूसिडाइस, कौटिल्य, मैक्यावली, हॉब्स, मैक्स वेबर, हैंस जे मार्गेनथो
यथार्थवादियों के अनुसार शक्ति हिंसा के रूप में है, अर्थात शक्ति का प्रदर्शन हिंसा के रूप में करते हैं|
मैक्यावली “राजनीति बस सत्ता पाने और उसे बनाए रखने के बारे में है|”
मैक्स वेबर (Politics as Vocation 1919) “राजनीति हार्डबोर्ड की जैसी मजबूत, लेकिन धीमी बोरिंग है|”
मैक्स वेबर “राजनीतिक एक व्यवसाय है|”
व्यवहारवादी विचारक-
चार्ल्स मेरियम, लासवेल, कैटलीन, डेविड ईस्टन, रॉबर्ट डहल
इनके अनुसार शक्ति का संबंध ताकत व राज्य के साधनों के वितरण से है, अर्थात इनके अनुसार राजनीति राज्य के संसाधनों के वितरण का साधन है|
डेविड ईस्टन “राजनीति का संबंध समाज में मूल्यों के अधिकारिक आवंटन से है|”
कैटलिन व लासवेल “राजनीति शक्ति की तलाश है|”
लासवेल “राजनीति प्रभाव व प्रभावी का अध्ययन|”
रॉबर्ट डहल “राजनीति उस समय अस्तित्व में आती है, जब लक्ष्य व साधन विवादास्पद होते हैं|”
रॉबर्ट डहल “एक राजनीतिक व्यवस्था मानव संबंधों का कोई भी सतत प्रतिमान है, जो कि एक सार्थक मात्रा में शक्ति, शासन या सत्ता के साथ अंतर्ग्रस्त होता है|”
रॉबर्ट डहल “लोकतंत्र में राजनीति प्रभाव तलाश करने की समरचना पर आधारित होती है|’
लासवेल व रॉबर्ट डहल “राजनीति में शक्ति, नियंत्रण, अधिकार तथा प्रभाव सम्मिलित होते हैं|”
लासवेल व केपलान (Power and Society 1950) “राजनीति विज्ञान शक्ति को आकार देने व उसे साझा करने के रूप में है|”
डेविड हेल्ड ने मानवीय संगठन की संभावनाओं पर विमर्श एवं संघर्ष के विषय के रूप में राजनीति को एक व्यवहारिक गतिविधि के रूप में माना है|
मार्क्सवादी विचारक : वर्ग के साधन के रूप में राजनीति-
मार्क्सवादी शक्ति को एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग पर नियंत्रण के रूप में मानते हैं|
वर्ग सिद्धांत के अनुसार आर्थिक शक्ति राजनीतिक शक्ति का आधार है|
मार्क्सवाद के अनुसार समाज हमेशा दो वर्गों में बंटा रहता है- संपन्न और असंपन्न| राजनीति तथा राज्य समाज के विभाजन का परिणाम है तथा ये दोनों शक्तिशाली वर्ग के हितों को निरंतर संरक्षण देते हैं|
लेनिन “राजनीति अर्थशास्त्र की केंद्रीय अभिव्यक्ति व घनीभूत अर्थनीति है|”
कार्ल मार्क्स “राजनीति अधिसंरचना है|”
मार्क्स व एंजिल (The German ideology 1846) “प्रत्येक युग में शासक वर्ग के विचार ही प्रधान विचार होते हैं|”
एंटोनियो ग्राम्शी ने पूंजीवादी वर्चस्व के अति सूक्ष्म स्रोतों को समझाने के लिए आधिपत्य (Hegemony) की अवधारणा को प्रस्तुत किया है| ये राजनीति को सर्वोत्तम गतिविधि मानते है|
नारीवादी विचारक-
नारीवादी शक्ति को पुरुष द्वारा महिला पर नियंत्रण के रूप में मानते है|
उग्र नारीवादी कैट मिलेट (पुस्तक- Sexual Politics, 1970) “राजनीति, शक्ति संरचनात्मक संबंध है, जिसमें एक समूह (महिला) पर दूसरा समूह (पुरुष) नियंत्रण करता है|”
उत्तर आधुनिकतावाद विचारक-
उत्तर आधुनिकतावादी मिशेल फूको “राजनीति शक्ति आधारित उत्पीड़न और शोषण की प्रक्रिया है|”
बहुलवादी विचारक-
बहुलवादियों के अनुसार एक उदारवादी लोकतांत्रिक समाज में विभिन्न समूहों में शक्ति बंटी होती है|
अभिजनवादी-
पैरेटो, मोस्का, मिशेल्स
अभिजनवादी मार्क्सवादियों के समान मानते हैं कि लोगों का एक छोटा समूह बहुसंख्या पर शासन व नियंत्रण रखता है| परंतु अभिजनवादियों के अनुसार विशिष्ट वर्ग की शक्ति का स्रोत सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक, संगठनात्मक अथवा व्यवसायिक भी हो सकता है|
राजनीतिक शक्ति-
एलन बॉल (Modern Politics and Government 1988) “राजनीतिक अध्ययन में राजनीतिक शक्ति की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि राजनीति संघर्ष का समाधान है तो किसी राजनीतिक समुदाय के भीतर शक्ति का वितरण निर्धारित करता है, कि संघर्ष का समाधान किस प्रकार होना है|”
शक्ति दृष्टिकोण का अवलोकन (कमियां)-
शक्ति दृष्टिकोण में सटीकता का अभाव है| वर्नन वॉन डायक के अनुसार “शक्ति उत्पन्न होने के स्रोत मौन रूप से स्वीकृत शिष्टता के नियमों से लेकर अंतरिक्षयानो के प्राधिकरण तक में देखे जा सकते हैं तथा यह स्वयं को ऐसी स्थितियों में व्यक्त करती है, जिनका संबंध खाने की मेज पर नमक देने की प्रार्थना से लेकर, राज्यों के मध्य पुरजोर थर्मोन्यूक्लियर आघातों के आदान- प्रदान तक में होता है|”
यह दृष्टिकोण समस्त राजनीति को सत्ता (शक्ति) के संघर्ष तक सीमित रखता है|
जॉर्ज बर्नार्ड शॉ “राजनीति धूर्तो का अंतिम आश्रय है|”
टी ब्रेनन ने इसे संभाव्य की कला कहा है|
बिस्मार्क “राजनीति संभावना की कला है|”
बर्टेंड जोविनेल (Pure Theory of Politics 1963) “विवाद ही राजनीति की जड़ है|”
हेनरी एडम्स “राजनीति घृणितो का व्यवस्थित संगठन है|”
बेंटले (The Process of Government 1908) “राजनीति अन्तर्समूहो का संघर्ष (Inter group conflict) है|”
हन्ना आरेण्ट
हन्ना आरेण्ट (परंपरावादी विचारक, पुस्तक- The Human Condition 1958) “राजनीति स्वतंत्र और समान नागरिकों के बीच अंतर्क्रिया है|” अर्थात यह सार्वजनिक गतिविधि है|
हन्ना आरेण्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों के दो भाग-
सैद्धांतिक
व्यवहारिक- राजनीति व्यावहारिक गतिविधि है|
हन्ना आरेण्ट के अनुसार व्यावहारिक गतिविधि के तीन सोपान है-
श्रम (Labour)- दैनिक कार्य, पदसोपान में सबसे नीचे
कार्य (Work)- संस्थाओं के निर्माण जैसे स्थायी कार्य
क्रिया (Action)- सार्वजनिक कार्य, राजनीतिक का संबंध इसी से है, पदसोपान में सबसे ऊपर
माइकल ऑकशॉट “राजनीति एक सीमाहीन समुद्र है, अर्थात राजनीति ऐसी गतिविधि है, जिसमें लोग असीम व गहरे समुद्र में तैरते हैं, उसमें शरण लेने के लिए न तो कोई बंदरगाह है, न आश्रय स्थल| उसका न आरंभ होता है न अंत| सारी कोशिश जहाज को संतुलित रखते हुए तैरते रहना है| समुद्र में मित्र व शत्रु दोनों है|”
अर्नेस्ट बार्कर “राजनीति नैतिकता का ही व्यापक रूप है|”
क्वन्सी राइट “राजनीति समूहों को नियंत्रित या प्रभावित करने की कला है, ताकि दूसरों के विरुद्ध कुछ लोगों के उद्देश्यों की वृद्धि हो सके|”
जी स्टोकर (Why Politics Matters: Making Democracy Work 2006) “राजनीति को निराश करने के लिए बनाया गया है, इसके परिणाम अक्षर गड़बड़, अस्पष्ट और कभी अंतिम नहीं होते|”
जॉन डन “राजनीति लगातार निराशाजनक है|”
अर्नाल्ड ब्रेख्त (जर्मन न्यायविद) “राजनीति अंतरवैयक्तिक संचारणीय ज्ञान है|”
सर अर्नेस्ट बैन ने मजाक में कहा है कि “राजनीति किसी भी समस्या को ढूंढ निकालती है, चाहे उसका अस्तित्व हो या ना हो, फिर उसका गलत कारण बताने व उसका गलत हल ढूंढ निकालने की कला है|”
वाल्टर लिपमैन “कोई भी राजविज्ञान को बहुत गंभीरता से नहीं देखता, क्योंकि कोई भी इस बात से कायल नहीं होता कि वह एक विज्ञान है या उसका राजनीति पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव है, संभवत स्वयं राजविज्ञानी भी नहीं|”
डेविड मिलर “राज्य को आधुनिक विश्व में राजनीति का प्रमुख केंद्र मानते है|”
रॉबर्ट गुडिन “राजनीति मिशन युक्त अनुशासन (विषय) है|”
बर्नार्ड क्रिक “राजनीति एक मानवीय क्रिया है|”
राजनीति की तीन आधारभूत संकल्पनाएं-
शक्ति- इसमें वैधता, प्राधिकार शामिल हैं|
व्यवस्था- इसमें राज्य, सरकार, प्रशासन शामिल है|
न्याय
राजनीति का आधार: मानव की प्रकृति-
अरस्तु के अनुसार मनुष्य सदा भलाई या अच्छाई (Good) चाहता है| मनुष्य पोलिस (राज्य) में इसलिए रहता है कि वह मानव की सर्वाधिक व्यापक भलाई चाहता है| अच्छाई से आनंद (Happiness) मिलता है| सम्मान, सुख और विवेक उस आनंद के उपकरण है|
हॉब्स ने मानव प्रकृति का चित्रण वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार किया है| उसने गति के नियमों को मानव की अभिप्रेरणाओं एवं प्रयोजनों पर लागू किया है|
ह्यूम मानव स्वभाव के सिद्धांतों को सर्वत्र और सदा एक-सा मानता है| वह राजनीति को विज्ञान के रूप में देखता है| वह तथ्यों को प्रत्यक्ष इन्द्रिय ज्ञान, प्रभाव या अनुभव पर आधारित मानता है|
मानव प्रकृति के विषय में फ्रॉम और हरबर्ट मार्क्यूजे सिगमंड फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक आंदोलन से बड़े प्रभावित हुए है| वे मानव की प्रकृति को चेतना (Consciousness) का अंग मानते हैं|
प्लेटो, फ्रॉम और मार्क्यूजे मूल्यों को राजनीतिक संस्थाओं की नीव मानते हैं, जिन्हें समुदाय के अंतर्गत प्राप्त किया जा सकता है| ये मूल्य मिलकर मानव का शुभ बनाते हैं|
- एलेन गेवर्थ के अनुसार प्रत्येक नैतिक व्यक्ति को मानना चाहिए कि (1) एक नैतिक कर्ता के रूप में कार्य करने के लिए स्वायत्तता एवं कल्याण की मूल आवश्यकताओं को संतुष्ट करना आवश्यक है, इसलिए (2) मुझे स्वतंत्रता एवं कल्याण उपलब्ध रहना चाहिए| इसके लिए दो स्थितियों का होना आवश्यक है- 1 हस्तक्षेप का अभाव, 2 उन मूल वस्तुओं का प्रावधान, जो उसकी स्वतंत्रता एवं कल्याण को बनाए रखने के लिए आवश्यक है| इन्हें अधिकार माना जा सकता है| इस अधिकार को विवेक और सार्वभौमिकता के आधार पर सभी पर लागू किया जा सकता है|
सिद्धांत का अर्थ-
सिद्धांत के अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द Theory की उत्पत्ति यूनानी या ग्रीक भाषा के Theoria से हुई है, जिसका अर्थ एक सुकेंद्रित मानसिक दृष्टिकोण है, अर्थात मनन की अवस्था में समझने या ग्रहण करने के लिए गंभीरता पूर्वक सोच विचार करना|
अर्नाल्ड ब्रेख्त (What is theories) के अनुसार सिद्धांत शब्द की व्यापक एवं संकीर्ण व्याख्या हो सकती है|
व्यापक अर्थ में किसी विचारक के समस्त विचार, जिसमें तथ्यों का वर्णन, व्याख्या, विचारक का इतिहास बोध, उनके मूल्य और उनके उद्देश्य, नीतियां तथा मूल तत्वों से संबंधित दूसरे सभी तत्व शामिल हैं|
संकीर्ण अर्थ में विचारों की व्याख्या है|
सिद्धांत का आधार चिंतन होता है, सिद्धांत व्यवहार नहीं है|
राजनीति सिद्धांत का अर्थ-
राजनीति के विविध पक्षों के व्यवस्थित अध्ययन को राजनीतिक सिद्धांत कहते हैं|
किसी घटना की व्याख्या करना, घटना का औचित्य बताना आदि राजनीतिक सिद्धांत से संबंधित है|
राजनीतिक सिद्धांत के एक पाठ में तीन तत्व होते हैं-
तथ्यात्मक कथन
क्या होने की संभावना है
क्या होना चाहिए
सेबाइन-
सेबाइन “व्यापक तौर पर राजनीति सिद्धांत का अर्थ उन सब बातों से है, जो कि राजनीति से संबंधित है या प्रासंगिक है और संकीर्ण दृष्टि से इसका अर्थ राजनीतिक समस्याओं की विधिवत छानबीन से है|”
सेबाइन ने अपने लेख What is Political Theory में राजनीति सिद्धांत को ‘चिर स्थाई महत्व का विषय’ बताया है|
सेबाइन “राजनीति सिद्धांत राजनीतिक समस्याओं का अनुशासित अन्वेषण है|’
काइडन-
काइडन ने सिद्धांत को बौद्धिक आशुलिपि कहा है, जिसके द्वारा शीघ्र एवं प्रभावपूर्ण ढंग से विचार विनियम किया जा सकता है|
काइडन ने सिद्धांत को सभ्य मानव जाति की प्रगति का आवश्यक उपकरण माना है|
काइडन के अनुसार सिद्धांत यथार्थ का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करता है|
मीहान-
मीहान “सिद्धांत मूल रूप से एक विचारात्मक उपकरण या बौद्धिक टूल (Intellectual tool) है, जिससे राजनीतिक जीवन के तथ्यों को सुव्यवस्थित व क्रमबद्ध किया जाता है|
मीहान के अनुसार सिद्धांत के द्वारा पृथक दिखने वाली प्रेक्षणीय घटनाएं एक साथ लायी एवं सुव्यवस्थित ढंग से परस्पर संसम्बद्ध कर दी जाती है|”
मीहान “सिद्धांत अपने आदर्श रूप में एक निर्माण की क्रिया है और कला की कृति है|”
कार्ल पॉपर-
कार्ल पॉपर ने सिद्धांत को एक प्रभार का जाल बताया है, जिससे जगत को पकड़ा जा सके, ताकि उसको समझा जा सके|
कार्ल पॉपर के अनुसार सिद्धांत एक अनुभवपरक व्यवस्था के प्रारूप (Mode) की अपने मन की आंख पर बनाई गई रचना है|
कोहेन-
कोहेन के अनुसार सिद्धांत शब्द एक खाली चेक के समान है, जिसका संभावित मूल्य उसके उपयोगकर्ता एवं उसके उपयोग पर निर्भर है|” (क्योंकि सिद्धांत शब्द के अनेक अर्थ है)|
अर्नाल्ड ब्रेख्त-
पुस्तक- Political Theory: The Foundation of Twentieth Century Political Thought 1959
अर्नाल्ड ब्रेख्त/ ब्रेश्ट ने केवल वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत का समर्थन किया है|
इन्होंने वैज्ञानिक मूल्य सापेक्षवाद का प्रतिपादन किया है, अर्थात सिद्धांत निर्माण में तथ्य व मूल्य दोनों होते हैं|
ब्रेख्त के अनुसार सिद्धांत एक ऐसी प्रस्तावना या प्रस्तावनाओ का समूह है, जो विषय सामग्री के संदर्भ में प्रत्यक्षत: पर्यवेक्षित अथवा अप्रकट अंतसंबंधो या किसी विषय की व्याख्या करता है|
अर्नाल्ड ब्रेख्त विज्ञान के दो अर्थ बताता है- व्यापक एवं संकुचित
व्यापक अर्थ में विज्ञान में शुद्ध तर्क, अंतर्ज्ञान, स्वयं साक्ष्य एवं धर्म प्रकाशन आदि शामिल किये जा सकते हैं|
संकुचित अर्थ में विज्ञान केवल वैज्ञानिक पद्धति, आनुभाविक पर्यवेक्षण, तर्कपूर्ण युक्तियों आदि पर ही आधारित हो सकता है|
अर्नाल्ड ब्रेख्त राजनीति विज्ञान को संकुचित अर्थ में विज्ञान मानता है|
ब्रेख्त के अनुसार विज्ञान या राजनीति विज्ञान अंतरवैयक्तिक संचारणीय ज्ञान है| अर्थात विज्ञान ऐसा विशेष और विश्वसनीय ज्ञान है, जिसे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को समझा सकता है|
ब्रेख्त के अनुसार वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्राप्त ज्ञान की कसौटी अंतरवैयक्तिक संचारणीयता है|
ब्रेख्त वैज्ञानिक पद्धति में अन्य ऐतिहासिक, मानवशास्त्रीय और मनोवैज्ञानिक पद्धतियों के समुचित प्रयोग को तर्कसंगत मानता है और वैज्ञानिक पद्धति के निष्कर्षों में सीमित संभाव्यता को स्वीकार करता है|
मौरिस डुवर्जर-
मौरिस डुवर्जर के अनुसार सिद्धांत अवलोकन, प्रयोग और तुलना के परिणामों को एकरस बनाता है|
लियो स्ट्रास-
“राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक मामलों के स्वरूप को जानने के लिए सच्चा प्रयास है|”
रॉबर्ट डहल-
“सिद्धांत चरों के सेट में वर्तमान अंत:संबंधों का सामान्यीकृत कथन है|”
“सिद्धांत परिवर्त्यों (Variables) का अंतर्संबद्धता-विषयक सामान्यीकृत विवरण है|”
क्विंटन-
क्विंटन की दृष्टि से सिद्धांत विभिन्न संशिष्ट रीतियों में तथा तार्किक ढंग से परस्पर संबंधित विवरणों की व्यवस्था या समुच्चय होते हैं|
पोलस्बी-
पोलस्बी ने वैज्ञानिक सिद्धांत को ‘सामान्यकरणों के निगमनात्मक जाल के रूप’ में कहा है, जिससे ज्ञात घटनाओं के कतिपय प्रकारों की व्याख्या अथवा पूर्वकथन किया जा सकता हो|
इजाक-
“राजसिद्धांत सामान्यीकरणों का समुच्चय होता है, जिसमें हमारे द्वारा प्रत्क्षत: परिचित तथा परिचालनात्मक रूप से परिभाषित अवधारणाएं व सैद्धांतिक अवधारणाएं होती है|”
हैम्पल-
“वैज्ञानिक सिद्धांत में त्रुटिविहीन निगमनात्मक रूप से विकसित व्यवस्था तथा व्याख्या होती है, जो इसके शब्दों और वाक्यों को आनुभाविक अर्थ प्रदान करती हैं|”
गिटर व मैनहीम-
“सिद्धांत एक ऐसा अवधारणात्मक उपकरण (Conceptual Apparatus) है, जो किसी अनुभव के क्षेत्र में व्याख्या एवं पूर्वकथन करना संभव बनाता है|”
नोवुर्ड हैंसन-
“सिद्धांत प्रेक्षित सामग्री के विषय में बुद्धिगम्य, व्यवस्थित तथा अवधारणात्मक प्रतिमान होता है|”
ब्लूम-
“सिद्धांत अंत: संबंधित व्याख्यात्मक प्रस्तावना की व्याख्या/ व्यवस्था है|”
केटलिन: व्यापक दृष्टिकोण
पुस्तक- Systematic Politics 1962
कैटलिन सिद्धांत के व्यापक दृष्टिकोण का प्रतिपादन करता है|
“राजनीतिक सिद्धांत में सामान्य समझ (Common sense) एवं मूल्य निर्धारण दोनों शामिल हैं|”
कैटलिन राजनीति के दो भाग बताता है-
व्यवहार
सिद्धांत
कैटलिन राज सिद्धांत के पुन: दो भाग बताता है-
राजनीति दर्शन
राजनीति विज्ञान
कैटलिन मार्गेंथाऊ के इस विचार से सहमत नहीं है, कि समस्त राजसिद्धांत राजनीति विज्ञान के अंतर्गत समाहित हो जाता है|
गुटे व हैट : पद्धति वैज्ञानिक उदारता-
गुटे व हैट ने सिद्धांत को पद्धतिवैज्ञानिक एवं व्यापक दृष्टि से देखा है तथा उसमें उदारतापूर्वक शोध की सभी प्रक्रियाओं को शामिल किया है|
वे सिद्धांत में उन सभी प्रस्तावनाओं को शामिल कर लेते हैं, जो किसी ने किसी अंश में व्याख्या करने की चेष्टा करती हो|
गुटे व हैट के अनुसार “कोई भी प्रस्तावना जो 1 अभिनवीकरण (Orientation) 2 अवधारणीकरण (Conceptualization) 3 वर्गीकरण 4 पर्यवेक्षणों का सारांशीकरण 5 पूर्वकथन 6 रिक्तता संकेतीकरण 7 तथ्यों के संग्रह, अनुक्रम एवं संबंध-स्थापन अथवा 8 तथ्यों के मध्य तर्कपूर्ण संबंधों के समायोजन का कार्य करती है, उसे सिद्धांत माना जा सकता है|”
एंड्रयू हैकर : समन्वय-
एंड्रयू हैकर ने अपने ग्रंथ Political Theory में राजनीतिक सिद्धांत में समन्वय पर बल दिया है|
एंड्रयू हैकर ने राजनीतिक सिद्धांत के दो अर्थ बताए है-
विचारों का इतिहास (पुरातन संदर्भ में)
राजनीतिक व्यवहार का यथार्थ एवं व्यवस्थित अध्ययन (आधुनिक संदर्भ में)
हैकर के अनुसार सिद्धांतशास्त्री किसी न किसी रूप में वैज्ञानिक एवं दार्शनिक दोनों की भूमिका निभाता है|
एंड्रयू हैकर “राजनीति सिद्धांत में तथ्य और मूल्य दोनों समाहित हैं, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं|”
एंड्रयू हैकर “राजनीति सिद्धांत एक ओर बिना किसी पक्षपात के अच्छे राज्य तथा समाज की तलाश है, तो दूसरी ओर राजनीतिक एवं सामाजिक वास्तविकताओं की पक्षपात रहित जानकारी की तलाश है|”
एंड्रयू हैकर “राजनीतिक सिद्धांत आवेगहीन तथा तटस्थ क्रियाकलाप है|”
Note- इसी व्यापक संदर्भ को अपनाते हुए एलेक्स एन ड्रेगनीश व जॉन सी वाल्के ने राजनीति सिद्धांत को राजनीतिक चिंतन का अधिकतम अंतर्भावी पद माना है, जिसमें दर्शन, विज्ञान और राजनीति की कला तीनों का बोध होता है|
डेविड ईस्टन: सिद्धांत एक अवधारणात्मक रूपरेखा-
पुस्तक-
The Political System 1953
A Framework of Political Analysis 1965
Varieties of Political Theory 1965
A System Analysis of Political Life 1965
डेविड ईस्टन ने राजविज्ञान में एक अनुभव-अभिमुख सामान्य सिद्धांत के निर्माण पर बल दिया, इस कारण इन्हें राजनीतिक विज्ञान का टालकोट पार्सन्स माना जाता है|
डेविड ईस्टन “सिद्धांत के अभाव में स्वयं अमेरिकी राजविज्ञानी स्वतंत्र पैदा होता है, किंतु अति तथ्यवादी अतीत से बंधा होने के कारण वह सर्वत्र बंदी है|”
डेविड ईस्टन ने सिद्धांत निर्माण के लिए अवधारणात्मक विचारबंध या वैचारिक रूपरेखा (Conceptual framework) का विचार दिया है|
अवधारणात्मक विचारबंध में अवधारणाएं या प्रत्यय (Concepts) एवं प्रारूप (Models) मिले होते हैं, जिसका उद्देश्य सिद्धांत का निर्माण करना होता है|
डेविड ईस्टन “सिद्धांत एक संवर्गों (Categories) का प्रखर आनुभाविक संगति लिए एक ऐसा तर्कपूर्ण एकीकृत सेट है, जो कि राजनीतिक जीवन का विश्लेषण एक राजनीतिक व्यवहार व्यवस्था के रूप में करना संभव बनाता है|”
अवधारणात्मक विचारबंध-
डेविड ईस्टन के अनुसार आधुनिक राजविज्ञानी का लक्ष्य एक व्यवस्थित सिद्धांत का निर्माण होना चाहिए|
ईस्टन सिद्धांत को दो रूप में ग्रहण करता है-
मूर्त व्यवस्थाओं के विश्लेषण के लिए- इस अर्थ में वह सिद्धांत की सहायता से वास्तविक राजनीति की सततता या निरंतरता का अध्ययन करता है, अर्थात राज्यव्यवस्थाएं स्थिर और बदलते हुए पर्यावरण में अपने आप को एक लंबे समय तक कैसे बनाए रखती है? का अध्ययन|
अमूर्त विश्लेषण के लिए- इस अर्थ में वह सिद्धांत को यथार्थ राजव्यवस्था की शाब्दिक या प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति मानता है, जिसका उद्देश्य व्यवस्था की जीवन-प्रक्रियाओं का विवेचन करना है| ईस्टन इसे अवधारणात्मक विचारबंध या विश्लेषण की संरचना कहता है|
ओरन आर यंग-
“वैज्ञानिक सिद्धांत सामान्यतः परिवर्त्यों (Variables) का विवरण, परिवर्त्यों के मध्य सम्बन्धो तथा परिवर्त्यों की अंतरक्रियाओ के पूर्वकथित परिणामो का विचारक्रम है|”
गिडियन सौबर्ग व रोजर नेट-
“सिद्धांत तर्क संगतिपूर्ण अन्तर्सम्बन्धित प्रस्तावनाओ या विवरणों का सेट है|”
बर्टेंड जूवेनल व कार्ल मार्क्स : असामान्य स्थितियां-
बर्टेंड जूवेनल व कार्ल मार्क्स के विचारों को असामान्य कहा गया है, क्योंकि ये परंपरागत सिद्धांत से भिन्न है|
बर्टेंड जूवेनल-
फ्रांसीसी विचारक बर्टेंड जूवेनल ने अपनी पुस्तक Pure Theory of Politics 1963 में राजनीति के विशुद्ध सिद्धांत की धारणा दी है, इसका अर्थ है कि राजनीति का आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की तरह, किन्तु यथार्थ राजनीति की जटिलताओं में उलझे बिना विशुद्ध वैचारिक दृष्टि का अध्ययन किया जाना चाहिए|
राजनीतिक का अध्ययन अलग से इतिहास की तरह किया जाना चाहिए, उसमें विभिन्न संरूपणों, विभिन्न वस्तुओं के मध्य पारस्परिक संबंधों तथा गतिजो या गत्यात्मक तत्वों को खोजा जाना चाहिए|
कार्ल मार्क्स-
कार्ल मार्क्स ने सिद्धांत को बौद्धिकीकरण या तार्किकीकरण की प्रक्रिया माना है| राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक तथ्यों से पूर्व का ही नहीं, अपितु पश्चात का विषय है|
गार्नर-
“राजनीति सिद्धांत उन लोगों के अंतज्ञान, आंकड़ों और सूझबूझ को एक संगत व्याख्यात्मक राजनीतिक जीवन या राजनीतिक व्यवहार के सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है, जो राजनीतिक जीवन की वास्तविकताओं का अध्ययन करते हैं तथा जिनके आधार पर भविष्यवाणियां की जा सकती हैं|”
डेविड हेल्ड-
“राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक जीवन विषयक अवधारणाओ और सामान्य सिद्धांतों का बुना हुआ जाल है, जिसमें हम सरकार, राज्य और समाज की मुख्य विशेषताओं, उनकी प्रकृति व उद्देश्य से संबंधित विचारों, मान्यताओं तथा मनुष्य के राजनीतिक सामर्थ्य का अध्ययन करते हैं|”
हन्ना आरेण्ट-
“व्याख्यात्मक और मानकीय कार्य राजनीतिक सिद्धांत की विशेषताएं हैं|”
भीखु पारेख-
“मानवीय व्यवहार और सामाजिक बदलाव के सबसे सामान्य स्वरूप के बारे में अंतर्दृष्टि और समझ को राजनीतिक सिद्धांत की चिंतनशील भूमिका कहते हैं|”
बल्हम-
“राजनीति सिद्धांत राजनीतिक विषयवस्तु की व्याख्या है, राजनीति सिद्धांत विश्व के लिए एक वैचारिक ढांचा है, संदर्भो की व्यवस्था है, जिसके बिना हम किसी घटना को यह भी नहीं कह पाएंगे कि वह राजनीतिक थी या नहीं, क्यों घटित हुई अथवा अच्छी थी या बुरी, न हीं इस बात का अनुमान कर पाएंगे कि अब आगे क्या होगा|”
राजनीतिक विज्ञान कोश-
“राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक घटनाचक्र का मूल्यांकन, उनकी व्याख्या और भविष्यवाणी करने वाले चिंतन का समूह है| राजनीतिक शास्त्र के उपक्षेत्र के रूप में इसका संबंध राजनीतिक विचारों, मूल्यों व संकल्पनाओं और राजनीतिक व्यवहार की व्याख्या तथा भविष्यवाणी से है|”
राजनीति सिद्धांत का संबंध राजनीतिक क्षेत्र से है, अर्थात व्यक्ति का राजनीतिक जीवन, उसका राजनीतिक व्यवहार तथा विचार, उसके द्वारा स्थापित सरकार तथा सरकार के कार्यकलाप|
राजनीति सिद्धांत का उद्देश्य एक अच्छे समाज में एक अच्छे राज्य का निर्माण करना है|
राजनीति सिद्धांत किसी घटनाचक्र के अध्ययन के लिए विवरण, व्याख्या और अन्वेषण की विधियों का प्रयोग करता है|
राजनीतिक सिद्धांत में संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का समावेश होता है|
यह राजनीतिक गतिविधियों की प्रक्रियाओ व प्रभावो का औपचारिक और क्रमबद्ध विश्लेषण है|
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक तथ्यों को व्याख्या, क्रमबद्धता व अर्थ प्रदान करता है|
राजनीतिक सिद्धांत के कार्य क्षेत्र और विषय वस्तु का संबंध राजनीतिक विश्व के घटनाक्रम से भी है अर्थात इसमें राष्ट्र-राज्यों, अंतरराष्ट्रीय कानून, विश्व राजनीतिक अर्थव्यवस्था का शासन तंत्र पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता है|
राजनीति सिद्धांत का नकारात्मक अर्थ-
नकारात्मक अर्थ में राजनीतिक सिद्धांत में राजनीति को सामान्यता तिकड़मी, छल कपट, षड्यंत्र, अविश्वास, सनकी व्यवहार जैसे तत्वों से जोड़ा जाता है|
राजनीति सिद्धांत के तत्व-
अर्नाल्ड ब्रेच (ब्रेख्त) के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत की प्रमुख इकाई-
समूह- राजनीतिक सिद्धांत का आधार व्यक्ति ना होकर, व्यक्तियों का समूह होता है|
संतुलन व समन्वय- विभिन्न समूहों के हितों में टकराव होता है, राजनीतिक सिद्धांत में हम परस्पर विरोधी हितों में संतुलन और समन्वय का अध्ययन करते हैं|
अवधारणाएं- राजनीतिक सिद्धांत का संबंध शक्ति, प्रभाव, नियंत्रण और न्याय जैसी अवधारणाओं से रहता है|
दर्शन और व्यावहारिकता- राजनीति सिद्धांत दर्शन और व्यावहारिकता का समन्वय है|
चयन और निर्णय प्रक्रिया-राजनीतिक सिद्धांत में चयन और निर्णय प्रक्रियाओं का अध्ययन होता है, इनके अध्ययन से शक्ति कहां केंद्रित है, का पता चलता है|
विशिष्ट वर्ग -राजनीतिक सिद्धांत में राजनीतिक कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों का अध्ययन करते हैं| कार्यकर्ताओं और प्रतिनिधियों के समूह को विशिष्ट वर्ग कहा जाता है|
शेल्डन वोलिन के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का विषय-सार-
इन्होंने राजनीति के विषय-सार में तीन तत्वों का वर्णन किया है-
यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जो समूहों, व्यक्तियों अथवा समाजों के बीच प्रतियोगी लाभ प्राप्ति के इर्द-गिर्द घूमती है|
यह एक ऐसी प्रक्रिया है ,जो परिवर्तन तथा अभाव की परिस्थितियों के दायरो द्वारा प्रभावित होती है|
यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे प्राप्त लाभ व इनके निष्कर्ष संपूर्ण समाज अथवा उसके एक भाग को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं|
सेबाइन-
पुस्तक- A History of Political Theory 1937
इनके अनुसार एक अच्छे राजनीतिक सिद्धांत में तीन बातें शामिल होती है-
तथ्यात्मकता
मूल्यात्मकता
कारणात्मकता
डेविड ईस्टन- इनके अनुसार राजनीतिक सिद्धांत के तीन तत्व है-
मूल्य या आदर्श
मूल्यों को प्राप्त करने वाले साधन
चयनित लक्ष्य व साधनों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करने का प्रयास
मीहान के अनुसार- इनके अनुसार विश्लेषणात्मक दृष्टि से मानव समाज संबंधी राजनीतिक विचारों में तीन तत्व होते हैं-
वर्णन
व्याख्या
मूल्यांकन
राजीव भार्गव के अनुसार-
भार्गव के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत शब्द आधारित व्यवस्थित चिंतन है|
भार्गव के अनुसार एक महा राजनीतिक सिद्धांत हो सकता है, जिसमें ऐसे मूल्य हो सकते हैं, जो पूरी मानवता को दिशा दें|
इनके अनुसार राजनीतिक सिद्धांत में तीन बातें होती है-
निर्देशात्मकता
मानकीयता
नैतिकता
राजनीति सिद्धांत की प्रकृति-
राजनीति सिद्धांत इतिहास है-
राजनीतिक सिद्धांत को इतिहास जार्ज सेबाइन ने कहा है|
सीले “इतिहास के माध्यम से ही राजनीति सिद्धांत क्या है, की व्याख्या होती है|”
इतिहास के संदर्भ में राजनीतिक सिद्धांत भविष्य की घटनाओ की भविष्यवाणी करने में महत्वपूर्ण है|
राजनीतिक सिद्धांत विज्ञान है-
डहल व डेविड ईस्टन राजनीति सिद्धांत को विज्ञान कहा है|
विज्ञान के संदर्भ में यह तथ्यों और अवधारणाओं की जांच करता है|
अरस्तु, बोदाँ, हॉब्स, मांटेस्क्यू, लेविस, सिजविक, ब्राइस, ब्लंटशली, जेलिनेक, गार्नर, पोलक, विलोबी आदि राजनीतिक सिद्धांत को विज्ञान मानते है|
व्यवहारवादी विचारक जैसे आर्थर बेंटले, जॉर्ज कैटलिन, चार्ल्स मेरियम, डेविड ईस्टन, रॉबर्ट डहल, कोलिन हे आदि राजनीतिक सिद्धांत को विज्ञान मानते हैं|
कोलिन हे (पुस्तक- Political Analysis 2002) विज्ञान के रूप में राजनीतिक सिद्धांत निष्पक्ष, अनुत्कट और वस्तुपरक ज्ञान को जन्म देता है|
राजनीति सिद्धांत दर्शन है-
लियो स्ट्रास ने राजनीति सिद्धांत को दर्शन कहा है|
समर्थक- माइकल ऑकशॉट, हन्ना आरेन्ट, लियो स्ट्रास, जोविनेल
लियो स्टार्स- मूल्य राजनीतिक सिद्धांत के अनिवार्य अवयव है|
दर्शन के संदर्भ में राजनीति सिद्धांत तत्वों की प्रकृति, अच्छाई, बुराई का विवेचन करता है|
राजनीतिक सिद्धांत के प्रकार-
वैज्ञानिकता की दृष्टि से-
वैज्ञानिक
विज्ञानेतर
सामयिकता के आधार पर-
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत- द्वितीय विश्व युद्ध तक, प्रमुख विचारक- प्लेटो, हॉब्स, रूसो
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, प्रमुख विचारक- डेविड ईस्टन, लॉसवेल, कार्ल डॉयच, हर्बर्ट साइमन आदि|
स्टीफन बेली के अनुसार (राजनीतिक प्रक्रिया के विभिन्न भागों पर बल देने के आधार पर)-
वर्णन प्रधान एवं व्याख्यात्मक- राजनीतिक समस्या के क्या और क्यों से संबंध रखते हैं|
मानसिक या आदर्शात्मक- चाहिए, या अच्छाई, अच्छे जीवन, मानव मूल्यों, आदर्श समाज के निर्माण से संबंधित
पूर्व शर्तों में अधिक रुचि रखने वाले
उपकरणात्मक- राजनीतिक समस्या के कैसे और कब में अभिरुचि रखने वाले
व्याख्यात्मक लक्षणों के आधार पर-
व्याख्यात्मक लक्षणों के आधार पर मीहान (पुस्तक- Contemporary Political Thought: A Critical Study: 1967) ने सिद्धांतों को दो भागों में बांटा है-
सिद्धांत (Theory)- यह सामान्यीकरणों का सेट होता है
सिद्धांत- सम (Quasi- Theories)- इन्हें अर्द्ध-सिद्धांत कहा जा सकता है, क्योंकि इनमें संरचनाए तो होती है, पर व्याख्यात्मकता का अभाव होता है| ये तीन प्रकार के हो सकते हैं-
वर्गीकरण
द्विभाजन
सादृश्य
सामान्यता के आधार पर-
W J M मेकेंजी ने सामान्यता के आधार पर सिद्धांत दो प्रकार बताएं है-
प्राचीन सिद्धांत- मार्क्सवादी, उदार या उग्र प्रजातंत्रवादी, प्राकृतिक कानून संबंधी सिद्धांत आदि|
अर्वाचीन सिद्धांत- पारसंस का संरचना प्रकार्यवादी, डेविड ईस्टन का सामान्य व्यवस्था सिद्धांत, ऑकशॉट का आदर्शवादी सिद्धांत, अर्थशास्त्रियों के विशिष्टात्मक अंतर्संबंध सिद्धांत
रॉबर्ट के मर्टन ने इन दोनों के बीच मध्यस्तरीय सिद्धांत का विचार दिया है| मध्यस्तरीय सिद्धांत जैसे- सूचना, संचार या संप्रेषण सिद्धांत, क्रीड़ा और गणितीय सिद्धांत, विनिश्चय निर्माण सिद्धांत, संगठन सिद्धांत, शक्ति सिद्धांत आदि|
ग्राहम के अनुसार-
ग्राहम ने सिद्धांतों को तीन आधारो पर वर्गीकृत किया है-
सामान्यता या क्षेत्र विस्तार के आधार पर- डेविड ईस्टन ने इनको एकल प्रकार के सामान्य सिद्धांत, संकुचित सिद्धांत तथा वृहद या व्यवस्थात्मक सिद्धांत के रूप में विभाजित किया है|
संरचनात्मक स्वरूपों के आधार पर
अवधारणात्मक विषय सामग्री के आधार पर
मीहान के अनुसार- दो प्रकार
पुराने सिद्धात- मूल्य, विचारधारा, चिंतन, दर्शन पर आधारित
नए सिद्धात- अनुभव, तथ्यों पर आधारित
मीहान के अनुसार नए व पुराने का वर्गीकरण सबसे पहले डेविड ईस्टन से शुरू हुआ|
डेविड ईस्टन का व्यापक वर्गीकरण-
डेविड ईस्टन ने सिद्धांतों को अनेक प्रकार से विभाजित करना संभव बताया है-
विकास की दृष्टि से-
अनुशासन के भीतर विकसित
अनुशासन के बाहर विकसित
क्षेत्र की दृष्टि से-
व्यष्टि
समष्टि
कार्यों की दृष्टि से-
स्थैतिक
गत्यात्मक
काल संरचना
प्रक्रिया संबंधी
व्यक्ति संबंधी
पृथक राजनीतिक व्यवस्था
तुलनात्मक व्यवस्था विषयक सिद्धांत
संरचनात्मक रूप में सिद्धांत सुगठित, तर्कपूर्ण एवं अंतर्संबद्धतायुक्त युक्त विचारों की अभिधारणात्मक व्यवस्था या प्रस्तावनाओ का एक परिभाषित सेट हो सकता है|
पदक्रम या स्तर की दृष्टि से-
लघु स्तरीय
मध्य स्तरीय
उच्च स्तरीय
डेविड ईस्टन के अनुसार- 2 भाग
मूल्य सिद्धांत-
इसका संबंध परंपरागत सिद्धांत से है, जो आदर्शात्मक है|
डेविड ईस्टन आदर्शात्मक सिद्धांतों को रचनात्मक मूल्य सिद्धांत कहते हैं|
डेविड ईस्टन “हम अपने मूल्यों को कोट की तरह उतार कर नहीं फेंक सकते|”
कारणात्मक सिद्धात-
यह आधुनिक राजनीति सिद्धांत से संबंधित है|
इसका संबंध राजनीतिक व्यवहार से संबंधित व्यवस्थित आनुभाविक ज्ञान से है|
डेविड ईस्टन “शोध व सिद्धांत घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं, अगर शोध से सामान्य सिद्धांत का निर्माण नहीं करके केवल समरूपताओं की अंधाधुंध खोज हो और तथ्यों के ढेर लग जाए तो यह अनगढ़ अनुभववाद की ओर ले जाएगा|”
डेविड ईस्टन “प्राकृतिक विज्ञानो की अपरिपक्व और गुलाम मानसिकता से की गई नकल से सामाजिक विज्ञान विज्ञानवाद का शिकार हो जाएगा|”
डेविड ईस्टन “शैक्षिक दृष्टि से राजनीतिक सिद्धांत बढ़ते हुए अति तथ्यवाद या आंकड़ेबाजी से निपटने में सहायता दे सकता है|”
राजीव भार्गव के अनुसार- तीन प्रकार
व्याख्यात्मक या वर्णनात्मक सिद्धांत
मानकीय सिद्धांत
चिंतन मूलक सिद्धांत
राजीव भार्गव ने सिद्धांतों को छोटे सिद्धांत (व्याख्यात्मक व मानकीय) व व्यापक सिद्धांत (व्याख्यात्मकता, मानकीयता, चिंतन मूलकता) में भी बांटा है|
डेविड ईस्टन ने नैरोगेज सिद्धांत व ब्रॉडगेज सिद्धांत की चर्चा की|
भीखु पारेख के अनुसार 1950 और 1960 के दशक में राजनीतिक सिद्धांत विचारक केंद्रित थे, व 1990 के बाद विचार केंद्रित हो गए हैं|
व्याख्यात्मकता की कसौटी-
मीहान ने व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को अपनाते हुए निम्नलिखित प्रयासों को सिद्धांत नहीं माना है-
परिभाषाओं की श्रृंखला (Definitions)- जैसे क्रीडा सिद्धांत में प्रस्तुत की जाती है|
कारक सूची (List of factors)- कारक सूची परिचालनीय व संगत नहीं है, तो सिद्धांत नहीं होती| जैसे- जनगणना और सांख्यिकी विभाग की तालिकाएं एवं आंकड़े
उपागम (Approaches)- यह आंशिक सिद्धांत है| जैसे शक्ति सिद्धांत, समूह सिद्धांत|
प्रारूप (Models)- जैसे- एंथनी डाउन्स द्वारा प्रस्तुत An Economic Theory of Democracy में आर्थिक उपागम
चिंतन (Speculation)- अमूर्त, अपुष्ट, अव्यवहारिक, कल्पना प्रधान चिंतन सिद्धांत नहीं है| जैसे- कार्ल पॉपर द्वारा रचित The Poverty of HIstoricism
अर्नाल्ड ब्रेश्ट ने भी अपनी वैज्ञानिक विधि की कसौटी पर उक्त सभी को वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं माना है|
राजनीतिक सिद्धांत के कार्य-
राजनीतिक सिद्धांत के तीन प्रमुख कार्य है-
समालोचना
पुनः निर्माण
वर्णन या व्याख्या
समालोचना- मनुष्य अपने जीवन और परिवेश को उन्नत करने के लिए समाज व्यवस्था का निर्माण करता है, कोई भी समाज व्यवस्था सर्वगुण संपन्न नहीं होती है, अतः प्रचलित व्यवस्था की आलोचना शुरू हो जाती है| यह समालोचना है|
पुनः निर्माण- आलोचना से नई व्यवस्था के निर्माण के सुझाव आते हैं तथा नई सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होता है, यह पुनर्निर्माण है|
वर्णन या व्याख्या- इसमें नई सामाजिक व्यवस्था की व्याख्या या वर्णन वैज्ञानिक पद्धति से की जाती है|
Note- समालोचना व पुनः निर्माण के कार्य राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत आते हैं तथा व्याख्या कार्य राजनीतिक विज्ञान के अंतर्गत आता है|
राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन का केंद्रीय विषय व पद्धतियां-
राजनीति सिद्धांत के अंग या शाखाएं-
राजनीतिक सिद्धांत के दो अंग है-
राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy)
राजनीतिक विज्ञान (Political Science)
राजनीतिक दर्शन-
इसको परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत भी कहते हैं|
दांते जर्मिनो परंपरागत सिद्धांत को अन्वेषण की परंपरा के रूप में स्पष्ट करते हैं, अर्थात इसके तहत अच्छे समाज, अच्छी शासन व्यवस्था, व्यक्ति-राज्य संबंध आदि विषय की खोज व अन्वेषण किया जाता है|
इसका संबंध परंपरागत, आदर्शात्मक या मानकीय राजनीति से है|
यह निर्देशात्मक है|
इसकी प्रकृति सार्वभौमिक होती है| जैसे-प्लेटो के न्याय की अवधारणा सर्वकालिक व सार्वभौमिक है|
राजनीतिक दर्शन मूल्यांकनपरकता पर आधारित होता है| डी डी रफेल “राजनीतिक दर्शन का मुख्य कार्य विश्वासो का आलोचनात्मक मूल्यांकन है|” दांते जर्मिनो के अनुसार “राजनीति शास्त्र सचमुच का आलोचना शास्त्र है|”
राजनीतिक दर्शन आत्मनिष्ठ या व्यक्तिनिष्ठ होता है, अर्थात प्रत्येक विचारक की अपनी अंतर्दृष्टि होती है, अपने कुछ आदर्श व मूल्य होते हैं|
राजनीति दर्शन का लक्ष्य उत्तम जीवन की प्राप्ति है|
राजनीति दर्शन का सरोकार तथ्यों व मूल्यों दोनों से है, लेकिन यह मूल्यों पर ज्यादा बल देता है और क्या होना चाहिए पर आधारित है||
राजनीतिक दर्शन का जनक प्लेटों को माना जाता है|
इसका प्रभाव प्राचीन काल से द्वितीय विश्वयुद्ध तक रहा|
राजनीतिक दर्शन द्वितीयक आंकड़ों (पुस्तकों से लिए गए) का अध्ययन करता है|
यह समष्टिवादी है, अध्ययन की बड़ी इकाई (जैसे राज्य) का अध्ययन करता है|
यह समस्याओं के अध्ययन में अधिक रुचि लेता है|
व्यवहारवादियों के अनुसार इसका पतन हो रहा है|
यह मूल्य तथा नैतिकता पर अधिक बल देता है|
राजनीतिक दर्शन के अध्ययन में चिंतन मूलक पद्धति की प्रधानता रहती है|
राजनीतिक दर्शन में यह निर्धारित किया जाता है, कि मनुष्य राजनीतिक स्थिति में क्या-क्या करते हैं और उन्हें क्या-क्या करना चाहिए| जैसे प्लेटो ने अपने युग की राजनीतिक त्रुटियों का विवरण देने के बाद न्याय की स्थापना के लिए आदर्श राज्य व्यवस्था का निरूपण किया था|
राजनीतिक दर्शन में तथ्यों का निरीक्षण करने के बाद शुभ-अशुभ, उचित-अनुचित के बारे में विवेक का प्रयोग करके वस्तुस्थिति की समालोचना करते हैं|
राजनीतिक दर्शन अवधारणाओं या संकल्पनाओं के स्पष्टीकरण में सहायता देता है|
जहां मूल्यों का विश्लेषण राजनीतिक दर्शन के आलोचनात्मक कृत्य का सूचक है, वही संकल्पनाओं या अवधारणाओं का स्पष्टीकरण इसके बौद्धिक कृत्य का सूचक है|
राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत संकल्पनाएँ, अनुभवातीत व मूल्य निर्णय से जुड़ी होती हैं|
राजनीतिक दर्शन उन शाश्वत समस्याओं से संबंधित है, जिनका सामना मानव अपने सामाजिक जीवन में करता है|
राजनीतिक विज्ञान-
इसको आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत या आनुभाविक राजनीतिक सिद्धांत या वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत भी कहा जाता है
राजनीति विज्ञान का जनक अरस्तु को माना जाता है|
इसका प्रभाव द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद व्यवहारवाद के साथ देखा जाता है|
इसका प्रभाव विशेष रुप से अमेरिकन विद्वानों में देखा जाता है|
राजनीति के अध्ययन के लिए विश्व में पहला अध्ययन केंद्र 1871 में पेरिस में ‘द फ्री स्कूल ऑफ़ पोलिटिकल साइंस’ स्थापित किया गया|
राजनीति विज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग गॉडविन ऑस्टिन और मेरी वुलस्टोनक्राफ्ट ने अपनी पुस्तक An Enquiry Concerning Political Justice 1793 में किया था|
अमेरिकन हरबर्ट बॉक्सटर ऐडम्स ने 1877 में हिस्टोरिकल एंड पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन की स्थापना के समय राजनीति विज्ञान शब्द का प्रयोग किया| इनको राजनीती विज्ञान को सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में एक विषय के रूप में महत्वपूर्ण बनाने का श्रेय दिया जाता है|
1886 में स्कूल ऑफ़ पोलिटिकल साइंस कोलंबिया (प्रो जॉन W बर्गस) ने द पॉलिटिकल साइंस कवाटरनली जनरल का आरंभ किया|
1903 में अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन की स्थापना हुई तथा इसने 1906 में अमेरिकन पॉलिटिकल साइंस रिव्यू नामक जनरल का प्रारंभ किया|
यूनेस्को के अंतर्गत इंटरनेशनल पॉलिटिकल साइंस की स्थापना 1949 में की गई|
राजनीति विज्ञान के समर्थक राजनीति के अध्ययन को स्वाधीन विषय के रूप में विकसित करना चाहते थे|
राजनीति विज्ञान तथ्य, वैज्ञानिकता पर बल देता है|
इसमें वस्तुनिष्ठ अध्ययन पर बल दिया जाता है|
यह प्राथमिक आंकड़ों (स्वयं के आंकड़े) पर बल देता है|
यह व्यष्टिवादी है, अर्थात अध्यन की छोटी इकाई पर बल देता है|
यह प्रक्रियाओं और व्यवहार पर बल देता है|
यह राजनीतिक संस्थाओं के बजाय राजनीतिक प्रक्रिया का विश्लेषण करता है|
राजनीति विज्ञान का अध्ययन अनुभवमूलक वैज्ञानिक पद्धति से किया जाता है|
राजनीतिक विज्ञान मनुष्यो व समूहों के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन करता है|
राजनीतिक विज्ञान निर्देशात्मकता की बजाय वर्णनात्मक होता है|
यह व्याख्यात्मक होता है|
राजनीतिक दर्शन का सरोकार तथ्यों के साथ-साथ आदर्शों, मानको, मूल्यों से भी है, जबकि राजनीति विज्ञान का सरोकार केवल यथार्थ या तथ्यों से है|
राजनीतिक दर्शन में अनेक व्याख्याएं और अनेक मान्यताएं साथ- साथ रहती हैं, जबकि राजनीति विज्ञान में कोई नई व्याख्या स्वीकार कर ली जाती है तो पुरानी व्याख्या त्याग दी जाती है|
एंड्रयू हैकर “परंपरागत राजनीति मुख्य रूप से मानकात्मक है, इसलिए इसका प्रतिपादक राजनीतिक दार्शनिक जैसा लगता है, आधुनिक राजनीति मुख्यतः व्यवहारात्मक व आनुभाविक है, अतः इसका प्रतिपादक राजनीतिक वैज्ञानिक जैसा लगता है|”
अब्राहम केप्लान (The Conduct of Enquiry: Methodology of Behavioral science 1963) “मूल्य चाहे सामान्य प्रश्नों से संबंधित हो या विशिष्ट समस्याओं से, अतुलनीय रूप में अधिक गवेषणा की मांग करते है|”
राजसिद्धांत का स्वरूप: वर्णन, व्याख्या एवं मूल्यांकन-
मीहान के अनुसार विश्लेषणात्मक दृष्टि से मानव समाज संबंधी राजनीतिक विचारों में तीन तत्व होते हैं-
वर्णन (Description)
व्याख्या (Explanation)
मूल्यांकन (Evolution)
वर्णन (Description)-
यह तथ्यों से संबंधित होता है और अवधारणाओं के माध्यम से किया जाता है|
व्याख्या (Explanation)-
इस प्रक्रिया द्वारा तथ्यों के मध्य संबंध स्थापित किया जाता है| और उनमें निहित क्यों और कैसे स्पष्ट किया जाता है|
मूल्यांकन (Evolution)-
यह तत्व घटना की सार्थकता अथवा निरर्थकता को प्रकट करता है|
राजनीतिक सिद्धांत का महत्व या उपयोगिता-
जर्मिनो “राजनीतिक सिद्धांत एक विज्ञान है, पर ऐसा विज्ञान नहीं जिसमें सभी प्रकार के नियमों की जांच करके उन्हें सिद्ध किया जा सके, यह तो समाजशास्त्र की कसौटी पर उतरने वाला विज्ञान है|”
प्लमनाज (द यूज ऑफ पॉलिटिकल थ्योरी, 1960) “राजनीतिक सिद्धांत न तो कल्पना उड़ान है, न हीं पूर्वाग्रहो का प्रदर्शन या कोई बौद्धिक खिलवाड़|”
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत, एक विज्ञान के रूप में निम्न कार्य करता है-
महत्वपूर्ण राजनीतिक कारकों की पहचान और उनके अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करना|
विभिन्न शोधकर्ताओं के बीच सैद्धांतिक रूपरेखा पर आम सहमति बनाना|
एक सैद्धांतिक रूपरेखा या कम से कम सुसंगत संकल्पना के समूह का निर्माण करना|
सी राइट मिल्स के अनुसार राजनीतिक सिद्धांत का महत्व-
राजनीतिक सिद्धांत सामाजिक वास्तविकता है, अर्थात जो कुछ संस्थाओं और कार्यों को उचित ठहराता है तथा अन्य पर प्रहार करता है|
यह एक नीतिशास्त्र है, अर्थात आदर्शों की वह रूपरेखा है, जिसके आधार पर मनुष्यो, घटनाओं, आंदोलनों को परखा जाता है|
यह एक क्रिया है, जो कि संस्थाओं, सुधार, क्रांति और संरक्षण के साधनों का निर्धारण करता है|
राजनीतिक सिद्धांत से हम मनुष्य, समाज और इतिहास का अध्ययन करते हैं|
राजनीतिक सिद्धांत का निम्न महत्व या उपयोगिता है-
राजनीतिक सिद्धांत ऐतिहासिक क्रांतियों का प्रेरणा स्रोत है| जैसे- लोकतंत्र, अंतर्राष्ट्रीय न्याय, व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए क्रांति|
लेस्ली स्टीफेन “राजनीतिक दर्शन साधारणत: किसी नई-नई क्रांति की संतान या आने वाली क्रांति का संकेत होता है|”
डेनिंग “जब कोई राजनीतिक प्रणाली, राजनीतिक दर्शन के रूप में ढल जाती है तो यही स्थिति आमतौर पर उस प्रणाली की मृत्यु का संदेश होती है|”
राजनीतिक सिद्धांत परस्पर सम्मान और सहिष्णुता को प्रोत्साहन देते हैं|
राजनीतिक सिद्धांत पारिभाषिक शब्दावली का अर्थ निर्धारण और संकल्पनाओं का स्पष्टीकरण करता है|
डीडी रफेल ने अपनी पुस्तक प्रॉब्लम्स ऑफ पॉलिटिकल फिलोसोफी 1976 में कहा कि “संकल्पनाओं का स्पष्टीकरण का कार्य घर की सफाई जैसा है|”
राजनीतिक सिद्धांत से इतिहास की व्याख्या और सामाजिक पुनर्निर्माण में सहायता मिलती है|
राजनीतिक सिद्धांत से राजनीतिक तर्क के निर्माण और परीक्षण में सहायता मिलती है|
राजनीतिक सिद्धांत शासन प्रणालियों को वैधता प्रदान करते हैं|
सामाजिक परिवर्तनो को समझने और उसकी व्याख्या करने में राजनीतिक सिद्धांत सहायक होते हैं|
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक समस्याओं के समाधान में सहायक होते हैं|
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक आंदोलनों में सहायक होता है|
राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक चेतना की वृद्धि में सहायक है|
राजनीतिक सिद्धांत विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों का औचित्य प्रमाणित करने में सहायक होता है|
राजनीतिक सिद्धांत वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करने में सहायक होता हैं|
राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक संस्थाओं और मानव व्यवहार का अध्ययन करने में उपयोगी होता है|
राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक विचारधाराओं की भविष्यवाणी करने में सहायक होता है|
राजनीतिक सिद्धांत राजनीति विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में अत्यावश्यक है|
अवधारणात्मक विचारबंध के रूप में राजनीतिक सिद्धांत तथ्य संग्रह एवं शोध को प्रेरणा और दिशा प्रदान करता है|
राजनीतिक सिद्धांत सभी पक्षों को संतोष, आत्मविश्वास एवं बौध प्रदान करता है|
लेनिन “क्रांतिकारी सिद्धांत के बिना क्रांतिकारी आंदोलन संभव नहीं है|”
स्टालिन “केवल सिद्धांत ही साम्यवादी आंदोलन को विश्वास, निर्देशन तथा विभिन्न घटनाओं को जोड़ने के अंत:सूत्र देता है|”
वैज्ञानिक राजसिद्धांत वास्तविकता को समझने में सहायक होते हैं|
सिद्धांत मानवता, शांति, विकास, बाहुल्य की समस्याओं को सुलझाने में सहायक है|
पिछले दो विश्व युद्धों के संदर्भ में ब्रेश्ट ने वैज्ञानिक सिद्धांत को मानवता के लिए महत्वपूर्ण अस्त्र माना है|
डेविड ईस्टन तथा V O Key ने स्पष्ट किया है कि तथ्यों का ज्ञान कोरी विद्वत्ता है, इसलिए महत्वपूर्ण तथ्यों के चयन तथा उन्हें व्यापक संदर्भ प्रदान करने के लिए संगतिपूर्ण सिद्धांत की आवश्यकता होती है|
सिद्धांत मूल्यांकन में सहायक है|
राजनीति सिद्धांत मानव समाज की राजनीतिक, सांविधानिक और वैज्ञानिक प्रगति के लिए आवश्यक है|
सिद्धांत अमूर्तिकरण या लघुपथ (Shortcut) है| शैटस्नीडर “सिद्धांत किसी महत्वपूर्ण बात को लघुत्तम रीति से करने का तरीका है|”
राजनीतिक सिद्धांत विज्ञान नहीं है-
समर्थक- चार्ल्स बियर्ड, बक्ल, मेटलैंड, जे एस मिल, बर्क आदि|
मेटलैंड “जब मैं राजनीतिक विज्ञान शीर्षक से युक्त किसी परीक्षा प्रश्नों को देखता हूं, तो मुझे प्रश्नों से नहीं बल्कि शीर्षक से खेद होता है|”
बर्क “जैसे सौंदर्यशास्त्र विज्ञान नहीं है, वैसे ही राजनीति का विज्ञान भी नहीं है|”
राजनीति सिद्धांत एक कला है-
समर्थक- बक्ल, ब्लंटशली, गेटेल, फ्रेडरिक पोलक, बिस्मार्क आदि|
बिस्मार्क “राजनीति विज्ञान नहीं, कला है|”
कैटलिन ने राजनीति सिद्धांत को कला, दर्शन और विज्ञान तीनों रूप में स्वीकार किया है|
Note “अर्नाल्ड ब्रेश्ट का मत है कि राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विज्ञान एक दूसरे के पर्याय नहीं हैं|
राजनीतिक सिद्धांत की स्थिति-
परम्परागत राजनीतिक सिद्धांत की स्थिति
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की स्थिति
परम्परागत राजनीति विज्ञान की स्थिति-
21 वी शताब्दी तक राजनीति विज्ञान का विशेष विकास नहीं हुआ| राजनीति विज्ञान के पास न तो कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक सिद्धांत है, न ही अपने अध्ययन उपकरण है, न हीं अपनी विकसित पद्धतियां|
संयुक्त राज्य अमेरिका के संदर्भ में डेविड ईस्टन ने कहा है कि “मध्य 20 वी शताब्दी में राजनीति विज्ञान एक ऐसा अनुशासन या विषय है, जो अपने स्वरूप को खोजने में लगा हुआ है|”
राजनीति विज्ञान को एक स्वायत अनुशासन के रूप में स्वीकृति 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मिलती है|
इस विषय की प्रथम विभागीय पीठ संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में 1856 में फ्रांसिस लाइबर की अध्यक्षता में स्थापित की गई|
अमेरिका में अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन 1903 में तथा 1923 में सोशल साइंस रिसर्च काउंसिल की स्थापना की गई|
संयुक्त राज्य अमेरिका में राजनीति विज्ञान की प्रगति-
संयुक्त राज्य अमेरिका में राजनीति विज्ञान का पृथक अनुशासन के रूप में अध्ययन 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आरंभ हुआ| 1940 तक यह इतिहास के उप क्षेत्र के रूप में था|
संयुक्त राज्य अमेरिका में परंपरागत राजनीति विज्ञान की चार धाराएं दिखाई देती है-
विधि-वादी धारा
सुधारवादी धारा
दार्शनिक या शाश्वतवाद धारा
अनुभववादी अथवा यथार्थवादी धारा
विधि-वादी धारा-
इस धारा का स्रोत यूरोप महाद्वीप, मुख्यतः जर्मनी था|
संबंधित विचारक- J W बर्गेस, जर्मी बेंथम, जॉन ऑस्टिन, W F विलोबी, R G गैटेल, J W गार्नर आदि|
इन्होने राज्य एवं सरकार के विश्लेषण में वैधानिक दृष्टिकोण को अपनाया| इनकी वैधानिकता में नैतिकता का पुट स्पष्टत: पाया जाता है|
सुधारवादी धारा-
इस धारा का स्रोत प्रथम महायुद्ध से उत्पन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्याएं थी, जिन्होंने कानूनी एवं औपचारिक संस्थाओ का तिरस्कार किया|
यह युग न्यू डील (1930- 1940) से संबंधित अमेरिकी प्रगतिवाद का था|
इस युग में विद्वान सुधारकों ने वाशिंगटन में डेरा लगाया और विभिन्न समस्याओं का विश्लेषण करके अपने समाधान प्रस्तुत किये|
दार्शनिक या शाश्वतवाद धारा-
यह एक अतीतकालीन परंपरा के रूप में सदैव विद्यमान रही|
अनुभववादी अथवा यथार्थवादी धारा-
यह व्यवहारवाद की पृष्ठभूमि के रूप में है|
इसकी और पहला महत्वपूर्ण कदम वुडरो विल्सन की कृति Congressional Government 1885 को माना जाता है, जिसमे विल्सन ने अमेरिकी संविधान की कड़ी आलोचना की थी|
1908 में ग्राहम वैलेस ने अपनी पुस्तक Human Nature in Politics में राजनीतिक विश्लेषण में समाज विज्ञान का दृष्टिकोण अपनाया|
1908 में ही आर्थर बेंटले ने The Process of government लिखी|
ग्राहम वेलेस ने मनोविज्ञान की प्रेरणा से राजनीतिक अध्ययन में व्यक्ति के व्यवहार को प्रमुखता दी है|
आर्थर बेंटली ने समाज विज्ञान की प्रेरणा से राजनीति में समूह के व्यवहार के अध्ययन को प्रमुखता दी|
आर्थर बेंटले ने परंपरागत राजनीति विज्ञान को शुष्क, औपचारिक, पाशविक, बंजर, प्रेतवत तथा स्थैतिक माना है|
आर्थर बेंटले ने समूह- प्रक्रियाओं का अध्ययन किया, जिसे डेविड ट्रूमैन ने अपनी पुस्तक The Governmental Process 1951 में अपनाया| ट्रूमैन ने पूर्ण प्रभुतावादी राज्य की न्यायशास्त्रीय धारणा से मुक्त होकर समूहों की स्वायत्तता की वास्तविकता को देखने पर बल दिया|
यथार्थवादी धारा का सबसे महत्वपूर्ण विद्वान चार्ल्स E मेरियम (New Aspect of Politics 1925) है, जिसे व्यवहारवादी उपागम का बौद्धिक स्रष्टा (Godfather) माना जाता है| मेरियम ने राजनीतिक प्रक्रियाओं के मनोवैज्ञानिक आयामों तथा उनके तथ्यात्मक परिमाणन (Measurement) की संभावनाओं को महत्वपूर्ण बताया तथा राजनीति विज्ञान में अंतरनुशासनात्मक दृष्टिकोण (अन्य प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानो की पद्धतियो से सहायता) को अपनाने पर बल दिया|
1928 में स्टुअर्ट राइस की पुस्तक Quantitative Methods in Political Science आयी, जो चार्ल्स मेरियम की पुस्तक New Aspect of Politics 1925 की प्रेरणा का परिणाम थी|
यथार्थवादी प्रवृत्ति G E G कैटलिन की पुस्तकों The Science and Method of Politics 1927 और A Study of the Principal of Politics 1930 में भी मिलती है| कैटलिन ने राजनीति विज्ञान का मूल तत्व शक्ति संबंधों को बताया|
शिकागो संप्रदाय के राजवैज्ञानिक हेराल्ड D लॉसवेल ने भी राजनीति विज्ञान को शक्ति के निर्धारण और सहभाग का अध्ययन बताया|
यथार्थवादी धारा, अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन व सोशल साइंस रिसर्च काउंसिल के प्रयासों से राजनीतिक विज्ञान एक अनुशासन के रूप में स्थापित हुआ|
द्वितीय विश्व युद्ध तक इसके अंतर्गत चार विशिष्ट क्षेत्रों को स्वीकार किया गया-
राजनीतिक दर्शन या सिद्धांत
राष्ट्रीय सरकारों का शासन
तुलनात्मक सरकार
अंतरराष्ट्रीय संबंध
फ्रेंक J सोरोफ “इस कालावधि के राजविज्ञानी अपने आपको यथार्थ जगत का एक मिशन लिए हुए कार्योन्मुख व्यवहारिक व्यक्ति मानते थे, परंतु उनका ध्यान विज्ञानतत्व का विकास अथवा सिद्धांत निर्माण नहीं था|”
चार्ल्स E मेरियम ने अमेरिकी राजविज्ञान के उक्त चार कालो, मनोदशाओ या अवस्थाओं को निम्न प्रकार बताया है-
1850 तक- दार्शनिक दृष्टिकोण की प्रधानता एवं निगमनात्मक पद्धतियों का काल
1850 से 1900 तक- ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक पद्धतियों के प्रयोग का काल
1900- 1923 तक- प्रेक्षण, सर्वेक्षण और मापन का काल
1923 से द्वितीय विश्व युद्ध तक- मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य की प्रधानता
चार्ल्स E मेरियम ने मनोविज्ञान के आधार पर अन्य अनुशासनो की पद्धति को अपनाकर राजनीति का विज्ञान बनाने की प्रेरणा दी|
क्रिक “राजनीति विज्ञान का विकास अपने समाज के मूल्यों तथा परिवेश से प्रभावित होता हैं|”
डेविड ईस्टन: राजनीति विज्ञान का अवरुद्ध विकास-
डेविड ईस्टन ने राजनीतिक विज्ञान के विकास में गतिरोध उत्पन्न होने के दो प्रमुख कारण बताए है-
इतिहासवादिता या भूतवाद (Historicism)-
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीति विज्ञान के पास उसका विकास और एकीकरण करने तथा वर्तमान संकटों और चुनौतियों का सामना करने के लिए एक राजनीतिक सिद्धांत नहीं है, क्योंकि वे शताब्दियों पुराने विचारों से चिपके हुए हैं|
एक अवधारणात्मक विचारबंध या वैचारिक रूपरेखा का न होना-
राजवैज्ञानिक एक नया राजनीतिक संश्लेषण या सिद्धांत देने में असमर्थ है|
विकासशील देशों में राजविज्ञान: भारत-
विकसित देशों की तुलना में एशिया और अफ्रीका के देशों में राजविज्ञान के अध्ययन-अध्यापन की स्थिति बड़ी शोचनीय है|
भारत में समाज विज्ञान विशेषत: राजविज्ञान चार दुर्बलताओं से ग्रसित है-
उसकी अस्पष्ट एवं अनिश्चित भूमिका
संगति का अभाव
अक्षमता
श्रोताओं एवं पाठकों की कमी
रजनी कोठारी के अनुसार राजविज्ञान का संगठनात्मक ढांचा, राजविज्ञानियों के कार्य की मात्रा एवं गुण तथा निष्ठा असंतोषप्रद है|
आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की स्थिति-
परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत को एक ओर परंपरावादी विचारों तथा इतिहासवादियों ने बांध रखा है और दूसरी ओर उसे तथ्यों और आकड़ो की भरमार ने उलझा रखा है| एक वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत ही राजनीति विज्ञान को अविश्वसनीयता, अस्पष्टता, पिछड़ेपन आदि दोषों से छुटकारा दिला सकता है|
कैटलिन “किसी भी विज्ञान की परिपक्वता उसके सामान्य सिद्धांत की एकरूपता एवं अमूर्तिकरण की स्थिति से जानी जाती है|”
डेविड ईस्टन “किसी भी विज्ञान की अभिवृद्धि, आनुभविक अनुसंधान एवं सिद्धांत दोनों के विकास तथा उनके मध्य घनिष्ठ संबंध पर निर्भर करती है|”
ब्लूम ने सिद्धांत को न केवल जो कुछ हो रहा है उसका मूल्यांकन करने का, बल्कि राजनीतिक चयन करने का उपकरण माना है|”
मीहान (The Foundation of Political Analysis 1971) “एक व्याख्यात्मक सिद्धांत के बिना अपने वातावरण को चाहे वह भौतिक हो अथवा सामाजिक नहीं समझा जा सकता|”
डेविड ईस्टन (A Framework for Political Analysis 1965) “शैक्षिक दृष्टि से राजसिद्धांत बढ़ते हुए अतितथ्यवाद तथा आंकड़ेबाजी से निबटने में सहायता दे सकता है|”
सिद्धांत निर्माण का विरोध-
राजनीतिक सिद्धांत के निर्माण एवं विकास का विरोध अनेक विचारकों ने किया है|
एडमंड बर्क व डेनिंग सिद्धार्थ निर्माण तथा उसका अनुकरण करने की प्रवृत्ति को राजनीतिक व्यवस्था के लिए घातक मानते है|
एडमंड बर्क के सम्मुख सिद्धांत का स्वरूप निर्देशनात्मक और डेनिंग के सम्मुख सिद्धांत का स्वरूप अयथार्थवादी था|
एडमंड बर्क व डेनिंग के अनुसार सिद्धांत अनिश्चित और अविश्वसनीय होने के कारण किसी भी समस्या का समुचित समाधान नहीं बताते हैं| वे प्राय: एक पक्षीय होते है|
उग्र-तथ्यवादियों या अति-तथ्यवादियों ने सिद्धांत निर्माण की असम्भावता पर बल दिया है| उनके अनुसार सिद्धांत तथ्यों को तोड़-मरोड़ देता है और उनकी वास्तविकता पर पर्दा डाल देता है| सिद्धांत वास्तव में व्यक्तिपरक विचारवाद या विचारधाराए है, सिद्धांत नहीं|
सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया-
सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया को सिद्धांत निर्माण, सिद्धांतीकरण भी कहा जाता है|
सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया (अवधारणात्मक विचारबंध) क्रमशः निम्न है-
तथ्यों का पर्यवेक्षण
तथ्यों का वर्गीकरण
जांच एवं सत्यापन
सामान्यीकरण
कार्यकारी प्राक्कल्पना
व्याख्या
सिद्धांत निर्माण
ज्ञान के रूप में प्रयोग
राजविज्ञान में सिद्धांत तीन प्रकार के पाए जाते हैं-
शाश्वत
संभावनात्मक
प्रवृत्तिमूलक
सिद्धांत निर्माण की प्रक्रिया के चार आयाम होते हैं-
प्रमाणिकता (Validity)
जांचशीलता (Testability)
व्यापकता (Generality)
अवधारणात्मक रूपरेखा (Conceptual framework)
शैक्षिक क्षेत्र के रूप में राजसिद्धांत-
शैक्षिक क्षेत्र की दृष्टि से राज्य सिद्धांत में दो दृष्टिकोण पाए जाते हैं-
क्षेत्रात्मक दृष्टिकोण
द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण
क्षेत्रात्मक दृष्टिकोण-
राजविज्ञान में राजसिद्धांत एक महत्वपूर्ण उपक्षेत्र माना जाता है|
इसका परंपरागत स्वरूप पर्याप्त रूप से विकसित है, किंतु आधुनिक स्वरूप शैक्षिक दृष्टि से उतना अधिक विकसित नहीं है|
एक शैक्षिक उपक्षेत्र के रूप में अध्ययन करने का दृष्टिकोण कार्ल डायच व लिरोय रिसलबाश ने अपने निबंध Empirical Theory में प्रस्तुत किया है|
द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण-
राजनीतिक सिद्धांत का विकास द्वंद्वात्मक क्रम में हुआ-
वाद- शास्त्रीय युग, 19वीं शताब्दी तक का काल
प्रतिवाद- व्यवहारवादी क्रांति, द्वितीय महायुद्ध तक का काल
संवाद- द्वितीय महायुद्ध के बाद का काल, प्रतिव्यवहारवादी आंदोलन, शास्त्रीययुग के योगदान पर पुनर्विचार, शोध पद्धतियां एवं वैज्ञानिक मूल्य सापेक्षवाद
आधुनिक राजसिद्धांत के लक्ष्य-
व्यवहारवादी तथा विशुद्ध राजनीतिक सिद्धांत के निर्माता इस बात से सहमत नहीं है, कि वैज्ञानिक राजनीतिक सिद्धांत का कोई लक्ष्य हो सकता है|
जैसे कैटलिन ने इसे मूल्यों या लक्ष्यों का प्रश्न मानकर उसे राजदर्शन के क्षेत्र में डाल दिया है| वह राजनीति विज्ञान को केवल साधनों तक ही सीमित रखता है|
किन्तु अर्नाल्ड ब्रेश्ट ने मूल्य-प्रथकतावाद की कटु आलोचना की है तथा इस प्रवृत्ति को उसने 20वी शताब्दी की सबसे बड़ी दुखांत घटना (Great Tragedy) बताया है|
फिर भी आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के निम्न लक्ष्य है-
सैद्धांतिक दृष्टि से सामान्य लक्ष्य राजनीतिक व्यवस्था का एक सुसंगत प्रतिबिंब प्रस्तुत करना है|
समस्त राजव्यवस्था पर लागू होने वाले वैज्ञानिक राजसिद्धांत एक दूरगामी या सामान्य लक्ष्य है|
राज्य सिद्धांत के विशिष्ट, तात्कालिक एवं क्रियात्मक लक्ष्य- शांति स्थापना, विकासशील देशों के लिए राजनीतिक विकास हेतु एक अधिक पर्याप्त सिद्धांत का विकास करना, आत्म रूपांतरित होना सीखाना|
राजनीतिक सिद्धांत और अन्य संबंधित शब्द-
राजनीतिक सिद्धांत सामान्तया: गहन संकट के समय विकसित होता है|
सेबाइन ने दो महत्वपूर्ण कालखंडो की पहचान की है, जब राजनीतिक सिद्धांत समृद्ध और विविध था-
पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व ग्रीस या यूनान
17वीं शताब्दी का इंग्लैंड
“सेबाइन” दोनों कालखंडो में भारी उथल-पुथल भरे परिवर्तन हुए| पहले में नगर राज्य एक नए राजनीतिक रूप में साम्राज्य से ढक रहा था, जिसे फिलिप और उसके पुत्र सिकंदर स्थापित करने में लगे थे| दूसरे में राष्ट्रीय आधार पर पहला संवैधानिक राज्य और बौद्धिक या वैज्ञानिक परिवर्तन विकसित होने लगे, जिन्होंने 1914 तक पश्चिमी दुनिया को नियंत्रित किया|”
राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक विज्ञान, राजनीतिक दर्शन और राजनीतिक विचारधारा शब्दों में अंतर है-
राजनीतिक सिद्धांत और राजनीतिक विज्ञान-
राजनीतिक विज्ञान राजनीति और राजनीतिक व्यवहार के बारे में संभाव्य सामान्यीकरण और नियम प्रदान करने का प्रयास करता है, जबकि राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक घटनाओं, प्रक्रियाओं और संस्थाओं तथा वास्तविक राजनीतिक व्यवहार पर दार्शनिक या नैतिक मापदंडों के माध्यम से विचार करता है|
जर्मिनो “राजनीतिक सिद्धांत वह सबसे उपयुक्त शब्द है, जो उस बौद्धिक परंपरा को दर्शाता है, जो तात्कालीन व्यवहारिक चिंताओं की सीमा पार कर मानव के सामाजिक अस्तित्व को एक समालोचनात्मक दृष्टिकोण से देखने की संभावना को स्वीकार करता है|”
जर्मिनो “राजनीतिक सिद्धांत पूर्ण अर्थों में राजनीतिक विज्ञान है और सिद्धांत के बिना कोई विज्ञान नहीं हो सकता| जैसे हम सिद्धांत को या तो चिंतन की प्रक्रिया के रूप में या उस चिंतन के संग्रह किए गए परिणामों के रूप में देख सकते हैं, उसी प्रकार राजनीतिक सिद्धांत को वैध रूप में और सटीक रूप में राजनीतिक विज्ञान का पर्यायवाची माना जा सकता है|”
राजनीतिक दर्शन-
राजनीतिक दर्शन मानकात्मक राजनीतिक सिद्धांत का एक भाग है|
यह न्याय क्या है, क्या सही है जैसे सामान्य प्रश्नों का उत्तर देता है|
वोलिन “राजनीतिक दर्शन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे सबसे अच्छी तरह से समझा जा सकता है, यदि हम उन विविध तरीकों का विश्लेषण करें, जिनसे मान्यता प्राप्त आचार्यों ने इसका अभ्यास किया है|”
वोलिन “राजनीतिक दर्शन और दर्शन के बीच घनिष्ठ और सतत संबंध है| इसका श्रेय प्लेटो को जाता है, जिन्होंने रिपब्लिक में दिखाया कि व्यक्ति का कल्याण समुदाय के कल्याण से अविभाज्य रूप से जुड़ा है|”
क्रिक “राजनीतिक सिद्धांत सामान्य राजनीतिक जीवन से उत्पन्न दृष्टिकोणों और कार्यों को समझाने तथा किसी विशेष संदर्भ में उनका सामान्यीकरण करने का प्रयास करता है, जबकि राजनीतिक दर्शन उन सिद्धांतों के बीच टकराव को सुलझाने या समझाने का प्रयास करता है, जो विशेष परिस्थिति में समान रूप से स्वीकार्य प्रतीत हो सकते हैं|”
Note- हर राजनीतिक दार्शनिक एक सिद्धांतकार होता है, बल्कि हर राजनीतिक सिद्धांतकार एक राजनीतिक दार्शनिक नहीं होता है|
राजनीतिक चिंतन-
राजनीतिक चिंतन पूरे समुदाय का चिंतन है, जिसमें पेशेवर राजनीतिज्ञों, राजनीतिक टिप्पणीकारो, सामाजिक सुधारको और समुदाय के आम लोगों की रचनाएं और भाषण शामिल होते हैं|
जबकि राजनीतिक सिद्धांत एकल व्यक्ति द्वारा दी गई कल्पना को संदर्भित करता है|
राजनीतिक विचारधारा-
राजनीतिक विचारधारा एक व्यवस्थित और सर्वसमावेशी सिद्धांत है, जो मानव स्वभाव और समाज का पूर्ण और सार्वभौम रूप से लागू होने वाला सिद्धांत प्रस्तुत करने का प्रयास करती है|
जॉन लॉक को प्राय आधुनिक विचारधारा का जनक कहा जाता है|
मार्क्सवाद विचारधारा का एक शास्त्रीय उदाहरण है|
सभी राजनीतिक विचारधाराए राजनीतिक दर्शन होती है, लेकिन सभी राजनीतिक दर्शन विचारधारा नहीं होती है|
अन्य विचारधाराए- फासीवाद, नाजीवाद, साम्यवाद, उदारवाद आदि|
राजनीतिक विचारधारा कट्टरपंथी होती है, जो राजनीतिक दर्शन की तरह आलोचनात्मक मूल्यांकन स्वीकार नहीं करती है, क्योंकि इसका उद्देश्य एक आदर्श समाज की प्राप्ति होता है|
जर्मीनो व सेबाइन के अनुसार राजनीतिक विचारधारा, राजनीतिक सिद्धांत का खंडन है|
जर्मीनो राजनीतिक सिद्धांतकार और प्रचारक के बीच अंतर करते हैं| सिद्धांतकार के पास विषयों की गहरी समझ होती है, जबकि प्रचारक केवल तात्कालिक प्रश्नों से जुड़ा होता है|
इसी आधार पर जर्मीनो ने अरस्तु, एक्वीनास, मेकियावाली, हॉब्स, रूसो, हीगल को सिद्धांतकार मानते हैं, जबकि इनके समकालीन फेलियास ऑफ चाल्सडेन, जाइल्स ऑफ रॉम, जियोवानी बोटेरो, सर रॉबर्ट फिल्मर, मेरी जीन मार्क्विस डी कॉन्डोर्से, और जोसेफ मेरी काउंट डी मैस्ट्रे को प्रचारक माना है|
इसी संदर्भ में जर्मीनो कार्ल मैनहाइम के ज्ञान के समाजशास्त्र सम्बन्धी सिद्धांत को अस्वीकार करते हैं, ज्ञान का समाजशास्त्र सिद्धांत यह मानता है कि विश्वास संरचनाओं की सामाजिक उत्पत्ति होती है, सामाजिक विज्ञान का ज्ञान सिद्धांतकार की वर्गीय उत्पत्ति पर निर्भर करता है, जिससे वस्तुनिष्ठता निष्क्रिय हो जाती है|
जर्मीनो “यद्यपि ज्ञान के समाजशास्त्र द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्य जन आंदोलनो के कुछ प्रचारकों की सोच को समझने में स्पष्ट रूप से प्रासंगिक है, लेकिन वे प्लेटो या हीगल को समझने में कम महत्व रखते हैं|”
हैकर “प्लेटो की तरह जर्मीनो भी मात्र मत (Opinion) और ज्ञान (Knowledge) के बीच अंतर करते है|
हैकर “राजनीतिक सिद्धांत निष्पक्ष और निर्लिप्त होता है| एक विज्ञान के रूप में राजनीतिक यथार्थ का वर्णन करता है, एक दर्शन के रूप में यह अच्छे जीवन की सुरक्षा के लिए आचरण के नियम निर्धारित करता है|”
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