जीवन परिचय-
जन्म- 2 अक्टूबर 1869 में, काठियावाड़ गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर एक धार्मिक विचारधारा वाले परिवार में|
पूरा नाम- मोहनदास कर्मचंद गांधी
माता का नाम- पुतली बाई
पिता- करमचंद उत्तमचंद गांधी, जो पोरबंदर राज्य के दीवान थे|
महात्मा गांधी आधुनिक भारत के महान जननायक, समाज-सुधारक, नैतिक दार्शनिक थे|
1876 में गांधीजी अपने माता-पिता के साथ राजकोट चले गए, जहां उनकी प्राथमिक शिक्षा हुई और यही इनकी सगाई कस्तूरबा के साथ हो गई तथा 1883 में गांधीजी का विवाह 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा से हो गया|
1887 में गांधीजी बैरिस्टर की शिक्षा के लिए लंदन चले गये| विदेश जाने से पहले गांधीजी ने अपनी माता पुतलीबाई के समक्ष प्रतिज्ञा ली कि “मैं शराब, मांस तथा नारी का सेवन नहीं करूंगा|”
गांधीजी 10-11 जून 1891 को लंदन से लौटे तथा उन्होंने अपना व्यवसायिक जीवन 1891 में बैरिस्टर के रूप में प्रारंभ किया| काठियावाड़ व बम्बई में वकालत की|
1893 में दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी के मुकदमे की पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गये|
दक्षिण अफ्रीका में नटाल के सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत किए जाने वाले प्रथम भारतीय महात्मा गांधी थे|
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी को रंग-भेद की नीति का सामना करना पड़ा|
जब गांधीजी ने समाचार पत्रों में पढ़ा कि नेटाल सरकार भारतीयों को मताधिकार से वंचित करने के लिए कानून बनाने वाली है, तब रंगभेद की नीति के खिलाफ आवाज उठाने के उद्देश्य से 22 अगस्त 1894 को दक्षिणी अफ्रीका में ‘नटाल इंडियन कांग्रेस’ की स्थापना की|
1899 में बोअर युद्ध के समय इंडियन एंबुलेंस कोर गठन किया, जिसने युद्ध में उल्लेखनीय सेवा कार्य किए किया और उसके उपलक्ष में गांधीजी को बोअर युद्ध पदक प्रदान किया|
गांधीजी ने 1904 में जोहांसबर्ग के डरबन शहर में आदर्श कृषि बस्ती तथा ‘फिनिक्स आश्रम’ की स्थापना की| फिनिक्स आश्रम गांधीजी का पहला आश्रम था, जहां प्रत्येक आश्रमवासी को अपने हाथ से काम करते हुए व्यक्तिगत श्रम और सहयोग के आधार पर काम करना पड़ता था|
1906 में जोहांसबर्ग में गांधीजी ने एशियाटिक रजिस्ट्रेशन एक्ट (इस क़ानून के तहत भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका में अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य कर दिया गया था) के विरुद्ध ‘सत्याग्रह’ का पहली बार प्रयोग किया|
1906 में गांधीजी ने जुलू विद्रोह के समय ‘इंडियन स्ट्रेचर बेअरर कोर’ की स्थापना की| इसी कारण इनको अंग्रेजों द्वारा जुलू विद्रोह पदक प्रदान किया गया|
1910 में टॉलस्टॉय फार्म की स्थापना ट्रांसवाल, दक्षिण अफ्रीका में की|
9 जून 1914 को गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से वापस भारत लौटे| इसी कारण 9 जून को प्रवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है|
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गांधीजी ने अंग्रेजो के प्रति सहयोग की नीति अपनाई थी| इसी कारण 1915 में अंग्रेजों ने गांधीजी को ‘केसर ए हिंद स्वर्ण पदक’ प्रदान किया|
फरवरी 1916 में गांधीजी ने भारत में पहली सार्वजनिक सभा के तहत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन में भाग लिया|
भारत में ‘सत्याग्रह’ का सर्वप्रथम प्रयोग गांधीजी ने 1917 में चंपारण (बिहार) में किया| यह सत्याग्रह नील की खेती करने वाले भारतीय कृषकों पर अंग्रेजो द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों के विरुद्ध किया गया था| यह सत्याग्रह गांधीजी ने राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर किया था| यह प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन था|
सन 1918 में अहमदाबाद मिल मजदूरो के लिए अहिंसक आंदोलन (प्लेग बोनस को लेकर) चलाया| यह गांधीजी की प्रथम भूख हड़ताल थी|
1918 में खेड़ा जिले गुजरात में ‘कर न दो’ आंदोलन चलाया| यह गांधीजी का प्रथम असहयोग आंदोलन था|
25 मई 1915 साबरती आश्रम की स्थापना अहमदाबाद में कोचरब नामक स्थान पर की| जुलाई 1917 को इसे साबरमती नदी के किनारे स्थानांतरित किया गया|
1919 में खिलाफत आंदोलन किया|
फरवरी 1919 में गांधीजी ने रोलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह की प्रतिज्ञा की| 1919 में रोलेट एक्ट के विरोध स्वरूप केसर ए हिंद, बोअर युद्ध व जुलू विद्रोह पदक लौटा दिए|
रोलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल 1919 देशव्यापी हड़ताल हुई तथा भारतव्यापी सत्याग्रह आंदोलन छेड़ दिया गया| 13 अप्रैल अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ तथा 18 अप्रैल को सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया गया| यह प्रथम जन आंदोलन था|
1920 में तिलक की मृत्यु के बाद भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर गांधीजी के हाथों में आयी|
1920 में असहयोग आंदोलन चलाया| लेकिन 5 फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चोरा चोरी नामक स्थान पर हुए हिंसक आंदोलन के कारण असहयोग आंदोलन वापस ले लिया|
नवंबर 1920 में गांधीजी ने अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की|
मार्च 1922 में गांधीजी द्वारा यंग इंडिया समाचार पत्र में प्रकाशित लेखों को आधार बनाकर सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया और 6 वर्ष का कारावास हुआ तथा उन्हें यरवदा जेल में रखा, जहां से 1924 में रिहा किया गया|
गांधीजी ने दिसंबर 1924 में केवल एक बार बेलगांव सम्मेलन में कांग्रेस की अध्यक्षता की|
12 मार्च 1930 को गांधीजी ने 78 अनुयायियों के साथ नमक कानून बंद करने व पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति करने के लिए दांडी यात्रा प्रारंभ की|
6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया| दांडी यात्रा का आदर्श वाक्य था- ‘अंत तक लड़ो’|
नमक कर की समाप्ति के लिए 5 मार्च 1931 को गांधी-इरविन समझौता हुआ तथा भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने का अधिकार मिल गया|
गांधी-इरविन समझौते को सरोजिनी नायडू ने ‘दो महात्माओं का मिलन’ कहा तथा KM मुंशी ने ‘युग प्रवर्तन घटना’ कहा|
1931 में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया|
1932 में मैकडोनाल्ड का सांप्रदायिक पंचाट आया| तब मैकडोनाल्ड के सांप्रदायिक पंचाट के विरोध में यरवदा जेल (पुणे) में आमरण अनशन शुरू किया तथा इसी के संबंध में 1932 में गांधीजी व अंबेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ|
1932 में पूना समझौता के बाद गांधीजी ने जी डी बिरला की अध्यक्षता में अखिल भारतीय अस्पृश्यता विरोधी संघ बनाया जो बाद में हरिजन सेवक संघ में बदल गया| अंबेडकर स्वर्ण हिंदुओं की बहुलता की वजह से इस संघ को नापसंद करते थे|
1936 में वर्धा (महाराष्ट्र) में सेवाग्राम की स्थापना की|
1937 में वर्धा शिक्षा योजना प्रारंभ की|
15 अक्टूबर 1940 को गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की, जिसमें विनोबा भावे प्रथम सत्याग्रही बने|
1942 में गांधीजी ने जीवन का अंतिम अहिंसक संघर्ष भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तथा करो या मरो का नारा दिया|
Note- 1920 के असहयोग आंदोलन का नारा था- स्वराज एक वर्ष में, 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन का नारा था- अभी या कभी नहीं|
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी|
वैज्ञानिक आइंस्टीन ने गांधीजी के बारे में कहा है कि “आगे आने वाली पीढ़ियां शायद ही विश्वास कर सकेगी, कि उन जैसे हाड-मास का पुतला कभी इस भूमि पर पैदा हुआ था|”
गांधीजी की मृत्यु पर डॉ.स्टेनले जॉन्स ने कहा कि “हत्यारे की गोलियां महात्मा गांधी और उनके विचारों का अंत करने के लिए चलाई गई थी, परंतु उनका फल यह हुआ कि वे विचार स्वतंत्र हो गए और मानव जाति की थाती बन गए| हत्यारे ने महात्मा गांधी की हत्या करके उन्हें अमर बना दिया| मृत्यु से वे अपने जीवन की अपेक्षा अधिक बलशाली हो गए|”
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि “हमारे जीवन से प्रकाश चला गया|”
गांधीजी को महात्मा की उपाधि रविंद्र नाथ टैगोर तथा राष्ट्रपिता की उपाधि सुभाष चंद्र बोस ने दी थी|
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को बापू की उपाधि दी|
गांधीजी को वन मैन आर्मी माउंटबेटन ने, अर्धनंगा फकीर फ्रैंक मॉरिस ने, देशद्रोही फकीर चर्चिल ने, प्रोफेशनल लीडर रोमा रोला ने कहा|
गांधीजी की रचनाएं-
हिंद स्वराज-
लेखन 1909, प्रकाशन 1938
इसकी रचना गांधीजी ने लंदन से दक्षिणी अफ्रीका जाते हुए SS कलिन्डन जहाज में की| गुजराती भाषा में लिखी गयी है|
गांधीजी पर प्लेटो के संवादों का प्रभाव था, इसी कारण हिंद स्वराज को संवाद शैली में गांधीजी ने लिखा है| इसमें पाठक (हिंसक राष्ट्रवादी योद्धा) प्रश्न पूछता है तथा गांधीजी संपादक के रूप में उत्तर देते हैं|
इसी पुस्तक में लिखा हुआ है कि “स्वराज आपकी मुट्ठी में है|”
हिंद स्वराज पुस्तक बाद में अंग्रेजी में Indian Home Rule के नाम से प्रकाशित हुई|
इस पुस्तक में गांधीजी ने विशाल उद्योगों, मशीनीकरण, पाश्चात्य सभ्यता, साम्राज्यवाद, धर्मनिरपेक्षता, ब्रिटिश संसद आदि की आलोचना की है|
गांधीजी ने इस पुस्तक के बारे में लिखा है कि “मेरी यह छोटी सी किताब इतनी निर्दोष है कि यह बच्चों के हाथ में दी जा सकती है| यह द्वेष की जगह प्रेमधर्म सिखाती है और पशुबल के खिलाफ टक्कर लेने के लिए यह आत्मबल को खड़ा करती है|”
सत्य के साथ मेरे प्रयोग (My Experience With Truth)
1927 में लिखी गयी| यह गांधीजी की आत्मकथा है|
यह पुस्तक भी गुजराती भाषा में लिखी गई है|
आरोग्य दर्शन- जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में फैले प्लेग के समय वहां अस्पताल की स्थापना की| तथा गांधीजी ने आहार विज्ञान पर अनेक लेख गुजराती में लिखे, जो हिंदी में आरोग्य दर्शन नामक पुस्तक में संकलित हो प्रकाशित हुए|
एथिकल रिलिजन
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह
सर्वोदय
रचनात्मक कार्यक्रम
मेरे समकालीन
गीता बोध
गीता की महिमा
गीता-माता
अनासक्ति योग
मंगल प्रभात
अनीति की राह पर
सत्याग्रह
शांति और युद्ध में अहिंसा (Non violence in peace and war)
सांप्रदायिक एकता
सत्य ही ईश्वर है
अस्पृश्यता निवारण
खादी
गोखले माय पॉलीटिकल गुरु
इंडिया ऑफ माय ड्रीम 1947
समाचार पत्र-
इंडियन ओपिनियन- अंग्रेजी भाषा में, फीनिक्स आश्रम, डरबन शहर से प्रकाशन किया
यंग इंडिया- अंग्रेजी भाषा में साप्ताहिक पत्र था|
हरिजन- अंग्रेजी भाषा में
नवजीवन- गुजराती भाषा का मासिक पत्र था
हरिजन सेवक
हरिजन बंधु
गांधीजी पर प्रभाव-
गांधीजी ने रामायण से मर्यादा एवं सदाचार पूर्ण जीवन, तथा राम राज्य के आदर्श की प्रेरणा ली|
महाभारत से असत्य एवं अनीति पर सदैव सत्य एवं सुनीति की विजय के आदर्श को ग्रहण किया| गांधीजी को गीता का परिचय सर्वप्रथम एडविन अर्नाल्ड के ग्रंथ स्वर्गीय संगीत (Song of Celestial) से मिला|
श्रीमद् भागवद गीता से आत्मा की अमरता तथा निष्काम कर्मयोग की अवधारणाएं ग्रहण की|
पतंजलि योगशास्त्र से पंच यम- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, तथा अपरिग्रह को ग्रहण किया|
जैनवाद से अहिंसा के आग्रह को ग्रहण किया|
वैष्णववाद से विश्व बंधुत्व के दृष्टिकोण को ग्रहण किया|
उपनिषदो से अपरिग्रह व असंग्रह का विचार लिया
बाइबल से न्याय के लिए अहिंसक संघर्ष की प्रेरणा प्राप्त की| गांधीजी ने लंदन में रहते हुए बाइबिल का अध्ययन किया तथा जिसके अंतर्गत ‘न्यू टेस्टामेंट’ में अहिंसा का प्रतिपादन करते हुए ईसा मसीह द्वारा ‘पर्वत पर दिए गए प्रवचन’ (Sermon on Mount) का उन पर बेहद प्रभाव पड़ा|
बाइबल से ग्रहण किया ‘पाप से घृणा, करो पापी से नहीं|’
गांधीजी यूनानी विचारक प्लेटो व चीनी विचारक ‘लाओत्से तथा कन्फ्यूशियस’ से प्रभावित हुए|
प्लेटो के आदर्शवाद और नैतिक मूल्यों के प्रति सरोकार से बहुत प्रभावित थे| गांधीजी ने प्लेटो की पुस्तक अपोलोजी का गुजराती भाषा में सत्यवान नामक शीर्षक से अनुवाद किया है|
रस्किन और टॉलस्टाय से औद्योगिक सभ्यता के प्रति तिरस्कार के भाव एवं निष्क्रिय प्रतिरोध के विचारों को ग्रहण किया|
जॉन रस्किन की पुस्तक (Unto The Last) में वर्णित वकील के कार्य का वही महत्व है, जो नाई के कार्य का होता है, क्योंकि आजीविका कमाने का हक दोनों का एक सा है, से प्रभावित हुए, तथा इस पुस्तक से तीन आधारभूत निष्कर्ष ग्रहण किये-
व्यक्ति का हित सदैव सार्वजनिक हित में निहित होता है|
समाज की रचना एवं अस्तित्व की दृष्टि से आजीविका के मानसिक साधन व शारीरिक साधन दोनों का समान महत्व है|
जीवन का वास्तविक आनंद केवल शारीरिक श्रम एवं सादगी द्वारा ही प्राप्त हो सकता है तथा मजदूर और किसान का सादा जीवन ही सच्चा जीवन है| (शारीरिक श्रम का महत्व)
सर्वोदय की धारणा भी रस्किन से प्रभावित है|
ईसाई संत व दार्शनिक अराजकतावादी टॉलस्टॉय (पुस्तकें- God within you, What to do और उपन्यास War and Peace) से भी गांधीजी प्रभावित हुए| टॉलस्टॉय की तरह गांधीजी भी एक दार्शनिक अराजकतावादी थे, अर्थात आदर्श समाज में राज्य को अनिवार्य नहीं मानते थे| गांधीजी को दार्शनिक अराजकतावादी गोपीनाथ धवन ने अपनी पुस्तक The Political Philosophy of Mahatma Gandhi में कहा|
गांधीजी की मानव प्रकृति तथा सत्याग्रह की अवधारणा ईसाई धर्म से प्रभावित थी| हिंदू धर्म की तरह ईसाई धर्म भी घृणा के स्थान पर प्रेम का मार्ग दर्शाता है|
हेनरी डेविड थोरु की पुस्तक ड्यूटी ऑफ सिविल डिसऑबीडिएंस से भी गांधीजी प्रभावित है|
ब्रिटिश आदर्शवादी विचारक टी एच ग्रीन का प्रभाव भी गांधीजी पर पड़ा है| गांधीजी, ग्रीन के इस विचार से सहमत थे कि राजनीतिक दायित्व अपने मूल रूप में नागरिकों तथा राज्य के बीच एक पारस्परिक क्रिया है, तथा राजनीतिक दायित्व एक ऐच्छिक क्रिया है| गांधीजी का सर्वोदय ग्रीन के कॉमन गुड अथवा सामान्य कल्याण के सिद्धांत से मिलता जुलता है |
बेंथम व मिल का प्रभाव भी गांधीजी पर दिखता है| बेंथम के इस विचार से गांधीजी सहमत है कि मनुष्य न केवल अन्य प्राणियों की तरह सुख-दुख की अनुभूति कर सकता है, बल्कि उसमें विवेक तथा तर्क करने की क्षमता भी होती है जो उसे अन्य प्राणियों से भिन्न व श्रेष्ठ बनाता है| मिल के इस कथन से भी सहमत हैं, कि ‘सामाजिक हित में व्यक्ति हित भी शामिल होता है|’
रूसो की प्राकृतिक अवस्था की ओर लौटने की अवधारणा से भी गांधीजी प्रभावित थे| रूसो ने एक शासन मुक्त समाज की कल्पना की है, जिसे रूसो ने मनुष्य की गोल्डन एज अथवा स्वर्ण युग का नाम दिया है, जबकि गांधीजी ने शासन मुक्त समाज को आत्मा का राज्य, परमात्मा का राज्य, सत्य व अहिंसा का राज्य, न्याय का राज्य, रामराज की संज्ञा दी है|
गांधीजी ने निष्क्रिय प्रतिरोध (Passive resistance) का मार्ग आयरलैंड की महिलाओं के सिन-फिन नामक आंदोलन से अपनाया|
गांधीजी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा में श्रवण पितृभक्ति नाटक से यह सीखा कि यदि इंसान को किसी की नकल करनी हो तो ऐसे प्रसंगों की करें, जिससे व्यक्ति का नैतिक विकास हो सके|
सत्यवादी हरिश्चंद्र नाटक का प्रभाव भी गांधीजी पर पड़ा है|
गांधीजी की अध्ययन पद्धति-
गांधीजी का संपूर्ण चिंतन मूलतः अध्यात्मवादी है और उसकी अध्ययन पद्धति मूलतः निगमनात्मक है| कुछ अंशों में उसकी अध्ययन पद्धति अनुभवात्मक भी है|
गांधीजी के आध्यात्मिक एवं मानवतावादी विचार-
ईश्वर संबंधी विचार-
गांधीजी के अनुसार ईश्वर ‘आस्तिकों की आस्तिकता’ के साथ ‘नास्तिकों की नास्तिकता’ है|
गांधीजी के शब्दों में “ईश्वर वर्णन से परे ही कोई ऐसी चीज है, जिसे हम अनुभव तो कर सकते हैं, किंतु जान नहीं सकते|”
गांधीजी ने ईश्वर को पूर्ण तथा निर्द्वन्द्व अध्यात्मिक सत्ता माना है|
गांधीजी के शब्दों में ‘सत्य ही ईश्वर है’| उनके अनुसार सत्य और ईश्वर में कोई भेद नहीं था|
गांधीजी के अनुसार “हम हवा और पानी के बिना रह सकते हैं, किंतु ईश्वर के बिना नहीं रह सकते हैं|”
गांधीजी ने ईश्वर को दरिद्रनारायण कहा|
गांधीजी ने ईश्वर का समाजीकरण व मानवीकरण किया|
धर्म संबंधी विचार-
गांधीजी ने धर्म शब्द का उपयोग शाश्वत सत्य, सापेक्षिक सत्य, नैतिक शक्ति, अहिंसा, कर्तव्य, विभिन्न सद्गुण, सदाचारपूर्ण जीवन आदि अर्थों में किया है|
गांधीजी का दृष्टिकोण गहन रूप से धार्मिक था|
गांधीजी ने मानवतावादी धर्म का पोषण किया है
गांधीजी के अनुसार धर्म-
धर्म का स्रोत ईश्वर है|
धर्म का एक सामान्य स्रोत ईश्वर होने के कारण सभी धर्मों के मूल लक्षण समान है|
सत्य और अहिंसा धर्म के आवश्यक लक्षण हैं| जो धर्म सत्य व अहिंसा का विरोधी है, वह धर्म नहीं है|
व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धर्म आत्मज्ञान की प्राप्ति है|
धर्म साधन तथा ईश्वर साध्य है|
गांधीजी ने धर्म व राजनीति को अपृथक्करणीय माना है|
गांधीजी का धर्म मानव सेवा का धर्म था|
गांधीजी “मैं मानव गतिविधि से अलग किसी धर्म को नहीं जानता|”
गांधीजी “मेरे लिए नैतिकता, नीति और धर्म पर्यायवाची पद है, धर्म के बिना नैतिक जीवन उसी प्रकार है, जिस प्रकार रेत पर निर्मित एक भवन|"
धर्म संसार के नैतिक अनुशासन की व्यवस्था है|
मानव संबंधी विचार-
गांधीजी के मानव संबंधी निम्न विचार हैं-
मानव में अच्छाई और बुराई दोनों पाई जाती हैं|
मनुष्य प्रकृति से मूलतः नैतिक एवं अहिंसक प्राणी है|
मनुष्य एक विचारशील व विकासशील प्राणी है, इस दृष्टि से अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है|
सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं|
मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है|
कर्म संबंधी विचार-
व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है|
व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है|
अकर्म की तुलना सद्कर्म सदैव श्रेष्ठ है|
मानव का सर्वोत्तम कर्म आत्म ज्ञान की प्राप्ति करना है
गीता में निहित अनासक्त कर्मयोग सर्वोत्तम कर्म सिद्धांत है|
गांधीजी ने पुनर्जन्म में भी विश्वास किया है| उन्होंने कहा कि “इस सिद्धांत में उतना ही विश्वास है, जितना कि अपने वर्तमान शरीर के अस्तित्व में|”
मानव सेवा संबंधी विचार-
मानव सेवा सर्वोत्तम धर्म है तथा ईश्वर की सेवा है|
लोक सेवा या मानव सेवा का एक विशिष्ट रूप राष्ट्र सेवा है|
लोक सेवा सर्वोदय की पूर्व शर्त है|
साध्य एवं साधन संबंधी विचार-
गांधीजी ने साध्य एवं साधन दोनों कि पवित्रता पर बल दिया है, तथा साध्य से पहले साधन की पवित्रता के आदर्श को स्वीकारा|
गांधीजी “साधन को बीज माना जा सकता है और साध्य को वृक्ष और जैसा बीज बोओगे, वैसा ही वृक्ष होगा|
सत्य संबंधी गांधीजी के विचार-
सत्य गांधीजी के दर्शन का केंद्रीय तत्व है|
गांधीजी ने सत्य के दो प्रकार बताए हैं-
निरपेक्ष सत्य- इसका अर्थ ‘सत्य ही ईश्वर’ है, अर्थात ईश्वर से संबंधित है|
सापेक्ष सत्य- यह मानव के लौकिक जीवन से संबंधित सत्य है|
मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य ब्रह्मा अर्थात निरपेक्ष सत्य को जानना है|
गांधीजी “सत्य एक विशाल वृक्ष है, उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है, त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते दिखाई देते है|”
गांधीजी “यह एक बड़ा कठिन प्रश्न है, किंतु स्वयं अपने लिए मैंने इसे हल कर लिया है, तुम्हारी अंतरात्मा जो कहती है, वही सत्य है|”
सत्य को पारस्परिक प्रेम एवं सद्भाव से प्राप्त किया जा सकता है|
गांधीजी “अहिंसा के मार्ग के अलावा सत्य को प्राप्त करने का कोई और मार्ग नहीं है|”
गांधीजी के मत में सत्यपरायण व्यक्ति मन, वचन और आचरण तीनों से सत्य के प्रति समर्पित रहेगा|
अहिंसा संबंधी गांधीजी के विचार-
अहिंसा का अर्थ है- ‘हिंसा का अभाव’
गांधीजी के अनुसार अहिंसा का नकारात्मक अर्थ- “किसी को कभी नहीं मारना, न सताना तथा बुरे विचार, जल्दबाजी, झूठ, घृणा जैसी बुराइयों से दूर रहना|”
जबकि अहिंसा का सकारात्मक अर्थ- “अहिंसा प्रेम की पराकाष्ठा है|” सकारात्मक अहिंसा में मन, वचन, कर्म की अहिंसा तथा सामाजिक भलाई व कल्याण शामिल है|
इस प्रकार गांधीजी अहिंसा को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अर्थों में स्वीकारा है, तथा नकारात्मक अहिंसा के बजाय सकारात्मक अहिंसा पर ज्यादा बल दिया है|
गांधीजी के अनुसार अहिंसा निर्बल व्यक्ति का आश्रय नहीं है, बल्कि शक्तिशाली का अस्त्र है| यह भौतिक शक्ति को अध्यात्मिक शक्ति के आगे झुकाने की कला है|
यदि हिंसा एवं कायरता के बीच चुनाव करना हो तो गांधीजी हमेशा हिंसा का पक्ष लेते थे|
गांधीजी ने अहिंसा के तीन रूप बताएं है-
जागृत अहिंसा- यह अहिंसा का सर्वोत्कृष्ट रूप है| यह बहादुर व्यक्तियों के अहिंसा है| इसमें व्यक्ति में प्रहार की क्षमता होती है पर नैतिक दृढ़ता के कारण ऐसा वह नहीं करता है| प्रबुद्ध अहिंसा वीर पुरुषों के अहिंसा है|
औचित्य पूर्ण अहिंसा- यह असहाय व्यक्तियों के निष्क्रिय प्रतिरोध की नीति है| इसे व्यवहारिक अहिंसा भी कहा जाता है| यह परिस्थितियों की मांग पर आधारित होती है तथा आवश्यकता पड़ने पर इसमें हिंसा का प्रयोग हो सकता है|
कायरों की अहिंसा- यह सबसे निकृष्ट अहिंसा है| इसमें कायर व्यक्ति संकट का सामना करने के बजाय भाग जाता है| गांधी के अनुसार कायरो की अहिंसा के बजाय, तो वीरों की हिंसा ज्यादा सही है|
महात्मा गांधी “जिस तरह हिंसा के प्रशिक्षण में मारने की कला सीखनी होती है, उसी तरह अहिंसा के प्रशिक्षण में मरने की कला सीखनी चाहिए|”
गांधीजी की सत्याग्रह की अवधारणा-
सत्याग्रह का अर्थ है- सत्याग्रह में दो शब्द है सत्य और आग्रह| सत्य का अर्थ है- सच्चाई और आग्रह का अर्थ है- हठ, बल, निवेदन अथवा शक्ति| अर्थात सत्याग्रह का अर्थ ‘सत्य के लिए आग्रह करना’ या सत्य पर अडिंग रहना या सच्चाई के लिए हठ, बल, निवेदन, शक्ति का प्रयोग करना|
गांधीजी “विरोधी को पीड़ा में देखकर नहीं, अपितु स्वयं को पीड़ा में डालकर सत्य की रक्षा करना सत्याग्रह है|”
गांधीजी “सत्याग्रह तो बल प्रयोग के सर्वथा विपरीत होता है| हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है|”
गांधीजी “मेरे लिए सत्याग्रह का नियम, प्रेम का नियम है, जो एक शाश्वत नियम है|”
गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सत्य और अहिंसा को व्यवहारिक रूप देने के लिए सत्याग्रह को साधन के रूप में अपनाया है|
गांधीजी ने सत्याग्रह की विधि को स्वराज प्राप्ति के लिए अपनाया|
सत्याग्रह का मतलब है कि अत्याचारी का प्रतिरोध करना, उसके सामने सर को न झुकाना तथा उसकी बात न मानना है, तथा अहिंसा के माध्यम से अत्याचारी का ह्रदय परिवर्तित करना है|
सत्याग्रही के लक्षण-
सत्याग्रह एक आध्यात्मिक अस्त्र है| आदर्श सत्याग्रही के बारे में गांधी का विचार है कि “एक पूर्ण सत्याग्रही को यदि सभी प्रकार पूर्ण नहीं तो, लगभग एक पूर्ण मनुष्य होना चाहिए|”
सत्याग्रह सामाजिक क्रांति का गांधीवादी तरीका है तथा यह सत्य, अहिंसा पर आधारित है|
एक सत्याग्रही के निम्न लक्षण होने चाहिए-
सत्याग्रही को ईश्वर में श्रद्धा व विश्वास होना चाहिए|
मन, वाणी, कर्म के स्तर पर सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की शक्ति में अडिंग आस्था होनी चाहिए|
आत्म बल होना चाहिए|
पूर्ण अनुशासित होना चाहिए|
आत्म बल एवं अनुशासन के लिए निम्न 11 व्रतों का पालन करना चाहिए- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शारीरिक श्रम, निर्भयता, अस्वाद, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी, तथा अस्पृश्यता निवारण|
वीर पुरुष हो, सादगी पूर्ण जीवन हो|
सत्याग्रह के प्रकार या साधन-
असहयोग- इसमें बहिष्कार, धरना, हड़ताल शामिल है|
सविनय अवज्ञा-
गांधीजी के शब्दों में- सविनय अवज्ञा आंदोलन सशस्त्र क्रांति का एक पूर्ण प्रभावशाली एवं रक्तहीन विकल्प है|”
सविनय अवज्ञा आंदोलन का अर्थ ऐसे कानून का उल्लंघन, जो स्वयं अन्यायपूर्ण है|
सविनय अवज्ञा का उद्देश्य सत्ताधारियों का हृदय परिवर्तन करना है|
गांधीजी ने सविनय अवज्ञा की अवधारणा हेनरी डेविड थोरु से ली है|
हिजरत-
इसका अर्थ है- अपने स्थायी व परंपरागत निवास स्थान को छोड़कर अन्य किसी इलाके में जाकर बस जाना| गांधीजी ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए 1928 में बारदोली के सत्याग्रहियो को, 1935 में केंथा के हरिजनों को, 1939 में लंबडी, विट्ठलगढ़ एवं जूनागढ़ की जनता को हिजरत के साधन अपनाने की सलाह दी थी|
उपवास या अनशन-
गांधीजी ने उपवास को सत्याग्रह का सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक अस्त्र माना है|
स्वराज पर गांधीजी के विचार-
गांधीजी के अनुसार स्वराज्य का अर्थ- विदेशी शासन से राजनीतिक, सांस्कृतिक, नैतिक स्वाधीनता प्राप्त करना है| यदि कोई समाज राजनीतिक दृष्टि से तो स्वाधीन है, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से पराधीन है तो वह स्वाधीन होते हुए भी स्वराज्य विहीन होगा|
गांधीजी के मत में ‘स्वराज्य’ सच्चे लोकतंत्र का पर्याय था| उनके अनुसार स्वराज तब आएगा, जब कही भी सत्ता का दुरुपयोग होने पर सब लोग उसका विरोध करना सीख जाएंगे|
व्यक्ति के स्तर पर स्वराज्य का अर्थ व्यक्ति का अपने ऊपर पूर्ण नियंत्रण होना|
गांधीजी के मध्य में स्वराज के चार पहलू हैं तथा एक भी पहलू नहीं होगा तो स्वराज अपना स्वरूप खो देगा| ये चार पहलू निम्न है-
राजनीतिक स्वराज
आर्थिक स्वराज
नैतिक स्वराज
सामाजिक स्वराज
सर्वोदय पर गांधीजी के विचार-
गांधीजी ने सर्वोदय की प्रेरणा जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अन टू द लास्ट’ (1860) से ग्रहण की है|
सर्वोदय का अर्थ है ‘सबका उदय’
गांधीजी सर्वोदय में निम्न वर्गों के कल्याण पर बल देता है तथा ऐसी व्यवस्था की कल्पना करता है, जिसमें धनवान वर्ग स्वेच्छा से अपना धन निर्धन वर्ग के कल्याण के लिए समर्पित कर देगा और इसमें सभी का उत्थान होगा| अर्थात सर्वोदय वर्ग सहयोग पर बल देता है|
सर्वोदय को ‘गांधियन समाजवाद’ भी कहा जाता है, जिसका आधार है- ट्रस्टीशिप का सिद्धांत|
गांधीजी के राजनीतिक विचार-
धर्म व राजनीति-
गांधीजी ने धर्म व राजनीति की घनिष्ठता पर बल देते हुए राजनीति के आध्यात्मिकरण की आवश्यकता पर बल दिया है|
गांधीजी के मत में धर्म व राजनीति अप्रथक्करणीय है|
गांधीजी ने धर्म व नैतिकता को राजनीति के साथ मिलाया तथा इससे ‘सत्य की प्रभुसत्ता’ कहा|
गांधीजी के अनुसार “वे लोग जो यह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है, वे नहीं जानते कि धर्म का अर्थ क्या है|”
गांधीजी “मेरे लिए धर्म विहीन राजनीति का कोई अस्तित्व नहीं है| राजनीति धर्म के अधीन है| धर्म से अलग हुई राजनीति मृत्यु-जाल है, क्योंकि वह आत्मा को मारती है|”
धर्म और राज्य-
गांधीजी धर्म और राज्य को एक-दूसरे से अलग रखना चाहता है, अर्थात धर्मराज्य का विरोध करता है|
गांधीजी ने पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रस्तुत धर्मनिरपेक्ष राज्य से भी असहमति प्रकट की है, क्योंकि यह राज्य को आध्यात्मिक नैतिक मूल्य से मुक्त रखने का समर्थन करता है|
गांधीजी ने सर्वधर्म समभाव राज्य का समर्थन किया है अर्थात राज्य को सभी धर्मों के प्रति आस्था रखनी चाहिए||
राज्य पर विचार-
गांधीजी राज्य को हिंसक व अनैतिक संस्था बताता है, अतः गांधीजी ने ‘अराजकतावादी समाज व्यवस्था’ का समर्थन किया है|
राज्य आत्मा रहित मशीन है| राज्य व्यक्ति के नैतिक विकास का विनाश कर देता है|
गांधीजी के मत में ‘राज्य एक आवश्यक बुराई तथा नकारात्मक साधन’ है|
राज्य का एकमात्र महत्व समाज में अशांति व अव्यवस्था को रोकना है|
गांधी के मत में नैतिक दृष्टि से व्यक्ति और राज्य में परस्पर विरोध पाया जाता है और व्यक्ति के पूर्ण नैतिक विकास के लिए राज्य का अंत कर दिया जाये| अर्थात एक राज्य-विहीन समाज में ही व्यक्ति का नैतिक विकास हो सकता है
गांधीजी ने व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन माना है तथा राज्य की सीमित, नियंत्रित, मर्यादित प्रभुसत्ता को स्वीकार किया है|
गांधीजी ने अहिंसात्मक राज्य (रामराज्य) का समर्थन किया है| राज्य का सर्वोत्तम उद्देश्य या साध्य ‘सर्वोदय’ है| यह केवल रामराज्य में ही संभव है|
गांधीजी के मत में “राजनीति ने लोगों को सर्प की कुंडली की तरह जकड़ लिया है, जिससे कोई बाहर नहीं निकल सकता|”
गांधीजी के मत में राज्य विशुद्ध रक्षात्मक होना चाहिए| राज्य को स्वास्थ्य एवं शिक्षा के प्रति भी सरोकार नहीं रखना चाहिए| स्वास्थ्य एवं शिक्षा को निजी पहल पर छोड़ना ही श्रेयकर होगा|
गांधीजी का राज्य समाज का वह रूप है, जिसकी चारित्रिक विशेषताएं आत्म शासन एवं आत्म नियंत्रण, स्वैच्छिक सहायता एवं त्याग की भावना हो, न की प्रतिस्पर्धा और बल प्रयोग, जो कि आधुनिक राज्य की चारित्रिक विशेषताएं हैं|
राज्य का कार्य क्षेत्र-
गांधीजी राज्य के न्यूनतम कार्यक्षेत्र का समर्थन करता है|
व्यक्ति के नैतिक उत्थान की दृष्टि से, स्वराज्य की दृष्टि से, लोकतंत्र की दृष्टि से राज्य को न्यूनतम कार्य करने चाहिए|
राज्य व समाज-
गांधीजी ने राज्य व समाज के मध्य विभेद को स्वीकार किया है|
गांधीजी ने भारतीय समाज के आध्यात्मिक प्रभुत्व की तुलना, पश्चिमी समाज के राजनीतिक प्रभुत्व से की है|
गांधीजी ने पश्चिमी राजनीतिक शक्ति का वर्णन पशुबल के रूप में किया है तथा भारतीय समाज का महिमामंडन किया है, जिसमें राजा एवं तलवारें नैतिकता की तलवार से निम्न थे|
अधिकार एवं कर्तव्य पर विचार-
गांधीजी ने आध्यात्मिक एवं नैतिक श्रेणी के अधिकारों का समर्थन किया है| तथा अधिकारों को राज्य द्वारा अनुलंघनीय माना है|
गांधीजी ने ‘कर्तव्य-सापेक्ष’ अधिकारों पर बल दिया है| अर्थात अधिकारों का मूल स्रोत कर्तव्य है|
स्वतंत्रता पर विचार-
गांधीजी ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया है|
मात्र व्यक्तिगत स्वतंत्रता ही मनुष्य को पूर्णत: समाज की सेवा में स्वैच्छिक रूप से समर्पित कर सकती है|
गांधीजी “यदि व्यक्तिगत स्वतंत्रता मनुष्य से छीनी जाती है, तो मनुष्य एक स्वचालित यंत्र बन जाता है और समाज नष्ट हो जाता है|
गांधीजी “संभवत कोई भी समाज व्यक्तिगत स्वतंत्रता के निषेध पर निर्मित नहीं हो सकता है, यह मनुष्य की प्रकृति के विपरीत है|”
शासन संबंधी विचार-
गांधीजी ने सभी प्रकार के अधिनायकतंत्रों एवं समग्रतावादी शासनो की निंदा की है|
पश्चिमी लोकतंत्र की आलोचना-
गांधीजी ने पश्चिमी लोकतंत्र की निंदा की है| उदारवादी लोकतंत्र को गांधीजी ने मछली बाजार कहा है, जिसमें लोग अपने स्वहित के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं|
गांधीजी ने ब्रिटेन के लोकतंत्र को बुरा कहा है| जिसमें सिर गिनने में विश्वास होता है, जिसे 51 प्रतिशत मत प्राप्त होता है, वही विजेता होता है, अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के सामने झुकना पड़ता है|
लोकतंत्र की आलोचना करते हुए गांधीजी कहते हैं कि “यूरोपीय देशों में जनता के हाथों में राजनीतिक सत्ता रहती है, किंतु स्वराज्य नहीं रहता है|”
गांधीजी के मत में लोकतंत्र का अर्थ दल का शासन हो गया है, जिसमें भी विशेष रूप से प्रधानमंत्री का| प्रत्येक दल सौदेबाजी एवं सनसनीपरकता के बल पर फल-फूल रहा है|
गांधीजी के मत में जीवन की भौतिकवादी अधीनस्थता ने पश्चिमी लोकतंत्रों को औपनिवेशिक विश्व के शोषण की ओर धकेला है| लोग शासक वर्ग अथवा जातियों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर शोषित हो रहे हैं|
गांधीजी “लोकतंत्र सर्वोत्तम रूप में साम्राज्यवाद की नाजीवादी एवं फासीवादी प्रवृत्तियों को छिपाने का लबादा मात्र है|”
ब्रिटिश संसद की आलोचना-
गांधीजी ने ब्रिटिश संसद की भी आलोचना की है| संसद को उन्होंने वेश्या, बांझ और बंजर कहा है|
गांधीजी ने कार्लाइल के आरोप को दोहराते हुए ‘संसद को बातचीत की दुकान’ कहा है, जिसमें लोग एक दूसरे के साथ आश्चर्यजनक खेल खेलते हैं|
लोकतंत्र में सुधार-
गांधीजी के मत में लोकतंत्र का तात्पर्य है कि सबसे दुर्बल व्यक्ति को भी सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के समान अवसर मिलने चाहिए|
गांधीजी ने लोकतंत्र में बहुसंख्यक सिद्धांत को पीछे छोड़ कर सर्वसहमति, सहयोग एवं सर्वजन हित का अनुसरण किया है|
गांधीजी ने लोकतंत्र में निम्न सुधारों पर बल दिया है-
लोकतंत्र को अहिंसात्मक होना चाहिए|
लोकतंत्र सर्वसहमति, सहयोग एवं सर्वजनहित पर आधारित होना चाहिए|
जनता में परस्पर सहिष्णुता होनी चाहिए|
जनता में जागरूकता होनी चाहिए|
शासक एवं जनता को सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए|
लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप शिक्षा पद्धति अपनाई जानी चाहिए|
राष्ट्रवाद एवं अंतरराष्ट्रवाद संबंधी विचार-
राष्ट्रीय समुदाय का विकसित रूप अंतरराष्ट्रीय समुदाय है-
गांधीजी के मत में सामाजिक विकास क्रम में प्रथम इकाई परिवार है, उसके बाद क्रमश उच्च समुदाय निम्न है- जाति⇾ गांव ⇾ प्रदेश ⇾ राष्ट्र ⇾ अंतरराष्ट्रीय समुदाय
राष्ट्रीय समुदाय से अंतरराष्ट्रीय समुदाय श्रेष्ठ नैतिक समुदाय है|
अंतर्राष्ट्रीयवादी होने की पूर्व शर्त राष्ट्रवादी होना है|
“वसुधैव कुटुंबकम” के आदर्श का अनुसरण करना चाहिए|
गांधीजी ने एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की धारणा को स्वीकारा है, जिसमें राष्ट्रों के आपसी संबंध समता, न्याय, बंधुत्व, शांति एवं मानवीय एकता के नैतिक मूल्यों के अनुरूप हो|
गांधीजी के राजनीतिक आदर्श-
पूर्ण आदर्श समाज या दार्शनिक अराजकतावाद-
अराजकता का सामान्य अर्थ है- राज्य या राज्य शक्ति का अभाव|
गांधीजी मूलतः दार्शनिक या प्रशांत अराजकतावादी विचारक है, उनका पूर्ण आदर्श समाज एक अराजकतावादी समाज अर्थात राज्य विहीन समाज है| इसे बौद्धिक अराजकतावादी समाज भी कहते हैं
लेकिन गांधीजी के मत में ऐसे समाज की स्थापना संभव नहीं है|
आदर्श राज्य या उप आदर्श समाज-
गांधीजी ने आदर्श राज्य के रूप में ‘रामराज्य’ की धारणा प्रस्तुत की है, जो एक अहिंसात्मक समाज व्यवस्था है| इसको ‘ग्राम स्वराज्य’ भी गांधीजी ने कहा है|
गांधीजी का रामराज्य गांवो का एक संघ होगा|
गांधी ने मैसूर रियासत को रामराज के तुल्य माना है|
महात्मा गांधी “शहरों में व्यक्ति रहते हैं, लेकिन गांव में देवता का निवास होता है|”
गांधीजी के लिए रामराज्य का अर्थ-
राजनीतिक रूप में हर रूप और स्वरूप में अंग्रेजी सेना के नियंत्रण को हटाना|
आर्थिक रूप में अंग्रेज पूंजीपतियों और पूंजी तथा साथ में उनके भारतीय समकक्षो से मुक्ति|
नैतिक रुप में सशस्त्र सेनाओं से मुक्ति| उनका मानना था कि स्वयं की राष्ट्रीय सेना द्वारा शासित देश भी कभी स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं|
गांधीजी के आर्थिक विचार-
गांधीजी के आर्थिक विचारों को ‘गांधीवादी अर्थशास्त्र’ कहा जाता है|
गांधीजी ने अपने आर्थिक विचारों को ‘मानवीय अर्थशास्त्र’ (होमो इकोनॉमिक्स) कहा है|
गांधीजी के आर्थिक विचार निम्न है-
नीतिशास्त्र का नियंत्रण-
गांधीजी अर्थशास्त्र पर नीतिशास्त्र का नियंत्रण स्थापित करना चाहता है|
आर्थिक समानता-
गांधीजी आर्थिक समानता पर बल देता है|
आर्थिक समानता का अर्थ “सभी व्यक्तियों की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए|”
गांधीजी “मेरे ख्याल में हिंदुस्तान और सारे संसार की अर्थव्यवस्था ऐसी होनी चाहिए, जिसमें बिना खाने और बिना कपड़े के कोई भी रह न पाए|”
आर्थिक न्याय का सिद्धांत-
यह सिद्धांत आर्थिक समानता का पूरक है|
प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति हो सके, इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति के निम्न नैतिक कर्तव्य है-
केवल शारीरिक श्रम के द्वारा जीविका का अर्जन करना|
व्यक्ति को अपनी आर्थिक आवश्यकताओं को यथासंभव सीमित रखना|
अस्तेय व्रत का पालन करना|
अपरिग्रह व्रत का पालन करना|
मशीनीकरण का विरोध-
गांधीजी ने नैतिक एवं आर्थिक आधार पर मशीनीकरण का विरोध किया है|
गांधीजी के अनुसार “मशीनीकरण सांप की बाँवी की तरह है, जिसमें एक से लेकर सैकड़ों सांप हो सकते हैं| जहां मशीनें होती हैं, वहां बड़े शहर, ट्राम, रेले और बिजली की रोशनी होती है|”
गांधीजी के अनुसार मशीनीकरण के निम्न दोष हैं-
मशीनों ने मानव श्रम का स्थान ले लिया है|
मनुष्य, मशीनों पर निर्भर हो गया है|
मशीनों से मानव की वैयक्तिकता और उसकी सामुदायिकता की भावना नष्ट हो रही है|
मशीनों से समाज में असंतोष, हिंसा, संघर्ष की प्रवृत्ति को बल मिला है|
औद्योगिकरण पर विचार-
गांधीजी ने बड़े उद्योगो का विरोध किया है, क्योंकि औद्योगिकरण से बेरोजगारी व केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ती है|
गांधीजी के मत में कुटीर उद्योगों से ही विकेंद्रित अर्थव्यवस्था और विकेंद्रित समाज की रचना संभव हो सकती है|
गांधीजी के मत में लघु उद्योग हमें प्रौद्योगिकी की बुराई से बचाने के अलावा त्वरित रोजगार भी उपलब्ध कराएंगे|
अर्थात गांधीजी ने केंद्रीयकरण का विरोध किया है तथा विकेंद्रीकरण का समर्थन किया है|
गांधीजी ने स्वदेशी का समर्थन किया है|
रेलवे व्यवस्था पर विचार-
गांधीजी ने रेलवे को अस्वीकार किया है, जो उनके अनुसार समाज में नैतिक दुराचार के विस्तार का माध्यम बन गया था|
गांधीजी का मत था कि भारत में रेलवे की स्थापना सार्वजनिक हित के लिए नहीं हुई है, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद की नींव मजबूत करने के लिए हुई है|
रोटी के लिए शारीरिक श्रम का सिद्धांत-
गांधीजी ने श्रम पर बहुत अधिक बल दिया है, उनके अनुसार श्रम वास्तविक धन है, जो धन को जन्म देता है| धन का स्वामी वह है, जो उत्पादकता के साथ निश्चित मात्रा में अपना श्रम लगाता है|
गांधीजी के मत में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका का उपार्जन शारीरिक श्रम के द्वारा ही करना चाहिए| इसे गांधीजी ने ‘पसीने की रोटी’ कहा है|
न्यायसिता/ ट्रस्टीशिप/ प्रन्यास/ संरक्षता का सिद्धांत -
गांधीजी आर्थिक समानता की स्थापना के लिए ट्रस्टीशिप सिद्धांत का समर्थन करता है| वह पूंजीपतियों के ह्रदय परिवर्तन की बात करता है| उसके अनुसार व्यक्ति की संपत्ति समाज की देन है व धनी व्यक्ति संपत्ति का केवल ट्रस्टी (संरक्षक) होता है|
पूंजीपति संपत्ति को संपूर्ण समाज की धरोहर मानकर उसका प्रयोग लोक कल्याण के लिए करें| तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति से अधिक धन को गरीबों में बांट दें|
गांधीजी हिंसा द्वारा पूंजीपतियों को समाप्त करने के पक्ष में नहीं है| गांधीजी ने लिखा है कि “यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि राज्य हिंसा द्वारा पूंजीवाद का दमन करता है, तो वह स्वयं हिंसा की कुंडली में फंस जाएगा और फिर कभी अहिंसा का विकास करने में सफल नहीं होगा|”
अपरिग्रह का सिद्धांत-
व्यक्ति को सामाजिक संपदा से उतना ही ग्रहण करना चाहिए, जितना उसकी तत्कालीन आवश्यकता की पूर्ति के लिए अनिवार्य हो|
अस्तेय का सिद्धांत-
यह नियम अपरिग्रह का पूरक है| अस्तेय का अर्थ- ‘चोरी न करना है|’ अर्थात मनुष्य को कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं रखनी चाहिए|
शिक्षा संबंधी गांधीजी के विचार-
गांधीजी ने आंग्लशिक्षा पद्धति की आलोचना की है| गांधीजी ने कहा है कि “मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी|”
गांधीजी ने भारतीयों के अध्यात्मिक व सांस्कृतिक मूल्यों तथा जनता की भौतिक आवश्यकताओं के अनुरूप एक विशुद्ध भारतीय शिक्षा पद्धति की स्थापना की है|
गांधीजी ने अपनी शिक्षा योजना को दो भागों में बांटा है -
बुनियादी शिक्षा
उच्च शिक्षा
बुनियादी शिक्षा को भी दो भागों में बांटा है -
प्राथमिक शिक्षा
माध्यमिक शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए तथा बुनियादी शिक्षा निशुल्क होनी चाहिए| शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए|
शिक्षा शारीरिक श्रम तथा बुनियादी दस्तकारी (हस्तकला शिक्षा, कुटीर उद्योग की शिक्षा) के आधार पर दी जानी चाहिए|
Note- बुनियादी शिक्षा योजना (वर्धा शिक्षा योजना) 1937 में प्रस्तुत की गई| इस समिति के अध्यक्ष डॉ जाकिर हुसैन थे|
आधुनिक सभ्यता पर गांधीजी के विचार-
गांधीजी ने भौतिकवादी सभ्यता की आलोचना की है|
उपभोक्तावाद व भौतिकतावाद के कारण गांधीजी ने पाश्चात्य सभ्यता को शैतानी सभ्यता कहा है|
गांधीजी “आधुनिक सभ्यता बुराई एवं अंधकार की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है, यह अनैतिक है|”
गांधीजी सादे, नैतिक, पवित्र जीवन के प्राचीन आदर्शो के अनुयायी थे|
वर्ण व्यवस्था पर गांधीजी के विचार-
गांधीजी भारतीय वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे| उन्होंने वर्ण व्यवस्था को कर्म पर नहीं, बल्कि जन्म पर आधारित माना है|
गांधीजी जाति व्यवस्था के भी पक्षधर थे|
लेकिन वे वर्ण व जातीय श्रेणीबद्धता, ऊंच-नीच के पक्षधर नहीं थे|
गांधीजी का मत था कि वर्ण व्यवस्था एक वैज्ञानिक व्यवस्था है और वंशानुक्रम का नियम एक शाश्वत नियम है| यदि मनुष्यों ने अपने पैतृक कार्य छोड़ दिए तो इससे स्वभाविक कार्य प्रतिभा का विनाश होगा क्योंकि नाई का बेटा या कुम्हार का बेटा अनुभवों का लाभ उठा जल्द विशेषज्ञ बन जाते हैं|
गांधीजी स्त्री स्वतंत्रता, समानता व सशक्तिकरण के पक्षधर थे पर वह स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता व पुरुषों के साथ प्रतियोगिता के समर्थक नहीं थे| घर को ही उनका पूर्ण कार्य क्षेत्र मानते थे|
रूसो की सामान्य इच्छा व गांधीजी-
गांधीजी ने रूसो की सामान्य इच्छा के उत्साह का समर्थन किया है|
दोनों ने समुदाय के हित पर बल दिया है|
किंतु रूसो ने समुदाय को राज्य के साथ मिला दिया है, जबकि गांधीजी ने दोनों को पृथक रखा है|
रूसो के लिए सद्गुणी जीवन का निर्माण करने एवं उसका पोषण करने के लिए राज्य का अस्तित्व आवश्यक है, लेकिन गांधीजी इसके विपरीत हैं, वे राज्य को नैतिकता का नाश करने वाला मानते हैं|
केंद्रीकरण का विरोध तथा विकेंद्रीकरण का समर्थन-
गांधीजी के मत में केंद्रीकरण हिंसा को बढ़ाता है, क्योंकि इसने समाज की अन्य विभिन्न इकाइयों की समानांतर इच्छाओं को नष्ट कर दिया है|
गांधीजी “यदि भारत को अहिंसक मार्ग से आगे बढ़ना है, तो उसे विकेंद्रीकरण करना ही होगा क्योंकि समाज के अहिंसक ढांचे में एक प्रणाली के रूप में केंद्रीकरण असंगत है|”
गांधीजी राजनीतिक व आर्थिक दोनों ही प्रकार के केंद्रीकरण के विरोधी थे|
गांधीजी के मत में विकेंद्रीकरण लोगों को अपना उत्तरदायित्व समझने एवं अहिंसक बनने के लिए प्रेरित करेगा|
गांधीजी ने पंचायती राज की प्रणाली से प्रत्येक गांव को गणतंत्र में परिवर्तन करने के द्वारा समाज में शक्ति के विकेंद्रीकरण की वकालत की है|
गांधीजी पंचायतों को संपूर्ण शक्ति देने का समर्थन करते हैं|
लोकतंत्र पर गांधीजी के विचार-
लोकतंत्र को गांधीजी ने ‘समुद्री लहरों का सिद्धांत’ कहा है|
गांधीजी ने दलीय प्रणाली की बजाय, दलविहीन लोकतंत्र का समर्थन किया है|
गांधीवाद व मार्क्सवाद-
समानता -
सामाजिक न्याय, राज्यविहीन समाज, मानवतावाद, शारीरिक श्रम का महत्व व अंतरराष्ट्रीयता के संबंध में दोनों में समानता पाई जाती है|
गांधीजी ने मार्क्स को पढ़ा था तथा लिखा कि “मुझे स्वयं को गरीब से गरीब व्यक्ति के स्तर तक लाना है, पिछले 50 वर्ष या इससे अधिक वर्षों से मैं यही करने का प्रयास कर रहा हूं, इसी कारण में अग्रणी साम्यवादी होने का दावा करता हूं|”
गांधीजी ने मार्क्सवादी क्रांति के बजाय ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया है, जो पूंजीपतियों के हृदय परिवर्तन पर आधारित है|
असमानताएं-
गांधी आध्यात्मिकवादी है मार्क्स भौतिकवादी|
गांधी का धर्म में अटूट विश्वास था, लेकिन मार्क्स के अनुसार धर्म अफीम है|
गांधी वर्ग सहयोग पर बल देता है, जबकि मार्क्स वर्ग संघर्ष पर बल देता है|
किशोरीलाल मशरूवाला “गांधीवाद और मार्क्सवाद एक दूसरे से उतने ही भिन्न है, जितना हरा रंग, लाल रंग से भिन्न है|”
गांधी जी के कथन-
“सृष्टि में एकमात्र सत्य की ही सत्ता है|”
“बिना अहिंसा के सत्य की खोज नामुमकिन है|”
“सत्याग्रह, सत्ता प्राप्त करने के लिए नहीं होता, बल्कि सत्ता को शुद्ध करने और उसका सदुपयोग करने के लिए होता है|”
“मैं अर्थविद्या और नीतिविद्या में कोई भेद नहीं करता|”
“स्वराज्य ब्रिटिश संसद का उपहार नहीं होगा, यह भारत की पूर्ण अभिव्यक्ति की घोषणा होगा|”
“मैं मिट्टी के एक कण से नई कांग्रेस खड़ी कर सकता हूं|”
“अहिंसा के साथ सत्याग्रह को मिला दे तो विश्व आपके कदमों में होगा|”
“मैं राजनीतिज्ञों में संत तथा संतों में राजनीतिज्ञ हूं|”
“अधिकांश धार्मिक व्यक्तियों, जिनसे मैं मिला हूं छदम वेश में राजनीतिक है, मैं राजनीति का चोला ओढ़े धार्मिक व्यक्ति हूँ|”
“गांधीवाद जैसी कोई चीज नहीं है|”
“मुझे मेरे दोस्तों चापलूसो, अनुयायियों से बचाना|”
“मैं कोलंबस और स्टीवेंसन की जाति का हूं, जो भयंकर से भयंकर कठिनाइयों के सामने भी आशावान बने रहते थे|”
गांधीजी से प्रभावित व्यक्ति-
मार्टिन लूथर किंग
नेल्सन मंडेला
माइकल शूमाकर
अमेरिकी विचारक नोम चोम्स्की
गांधीजी पर विभिन्न लेखकों की पुस्तक-
The Gandhian Way- जे.बी कृपलानी
Gandhi The Last Phase- प्यारेलाल नैयर
In Search of Gandhi- रिजार्ड एटनबरे
The life of Mahatma Gandhi- लुई फिशर (गांधीजी की जीवनी)
At the feet of Mahatma Gandhi- राजेंद्र प्रसाद
India after Gandhi - रामचंद्र गुहा
The good Boatman- राजमोहन गांधी
Gandhi and Marx- किशोरीलाल मशरूवाला
Gandhi’s Political Philosophy a Critical Evolution- भिक्खु पारेख
Why Gandhi Still matters - राजमोहन गांधी
The Mahatma Gandhi and the Ism- ई एम एस नंबूदिरिपाद
Mahatma versus Gandhi- दिनकर जोशी
Gandhi and civil disobedience the Mahatma in Indian politics 1928-1934- जुडिथ मार्गरेट ब्राउन
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