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संयुक्त राज्य अमेरिका: काँग्रेस || Sanyukt Raajy Amerika: Kaangres || United States: Congress || BY Nirban PK Sir In hindi

 संयुक्त राज्य अमेरिका: काँग्रेस

    • संयुक्त राज्य अमेरिका की व्यवस्थापन शक्तियाँ कांग्रेस में निहित है। 

    • संविधान में कहा गया है "इसके अन्तर्गत आवंटित की गई समस्त विधायिकी शक्तियां संयुक्त राज्य की एक काँग्रेस में निहित होंगी, जिसका निर्माण एक सीनेट व प्रतिनिधि सभा के रूप में होगा।" 

    • अमेरिकी शासन व्यवस्था में कांग्रेस की शक्तिशाली भूमिका होने के बावजूद वह ब्रिटिश संसद् की तरह सर्वोच्च नहीं है, क्योंकि उसके द्वारा निर्मित कानून संविधान विरोधी होने पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैधानिक घोषित किए जा सकते हैं। 



    काँग्रेस की शक्तियाँ और कार्य-

    • अमेरिकी कांग्रेस की शक्तियां व कार्य निम्न है- 

    1. विधायी शक्तियाँ (Legislature Powers)-

    • ये निम्नलिखित पाँच भागों में विभक्त की जा सकती हैं-

    1. अभिव्यक्त शक्तियाँ-

    • ये शक्तियाँ संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है| जैसे- कर लगाने एवं वसूल करने की, युद्ध की घोषणा करने की, डाकघरों की स्थापना करने की, वैदेशिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का संचालन करने की, विदेशी मुद्रा का मूल्य निर्धारण करने की शक्तियाँ आदि। 


    1. निहित शक्तियाँ-

    • ये शक्तियाँ अभिव्यक्त शक्तियों में निहित होती हैं| 

    • अभिव्यक्त शक्तियों के प्रयोग के लिए ये शक्तियां आवश्यक हैं|  

    • न्यायालय की व्याख्याओं ने अभिव्यक्त शक्तियों में निहित शक्तियों का स्पष्टीकरण किया है। 

    • उदाहरण- संविधान में उल्लेख है कि "काँग्रेस को वाणिज्य-व्यवसाय का नियंत्रण करने का अधिकार है। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने निहित अर्थ की लगभग 100 से भी अधिक निर्णयात्मक व्याख्याएँ दी हैं, उनके द्वारा काँग्रेस को बड़े विस्तृत अधिकार प्राप्त हो गए है| 


    1. समवर्ती शक्तियाँ-

    • ये वे शक्तियों हैं, जिन पर राज्य विधान मंडलों और कांग्रेस दोनों को विधि-निर्माण करने का अधिकार है। 


    1. निर्देशात्मक एवं अनिर्देशात्मक शक्तियाँ- 

    • संविधान द्वारा कांग्रेस को दिए गए अधिकार अधिकांशतः अनिर्देशात्मक हैं, अर्थात कांग्रेस चाहे तो उन्हें प्रयोग में ला सकती है और चाहे तो नहीं। उदाहरणार्थ, काँग्रेस को ऋण लेने का अधिकार है, परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वह ऋण ले ही|

    • काँग्रेस को निर्देशात्मक अधिकार भी प्राप्त हैं। उदाहरणार्थ, संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को अपील सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हैं और कांग्रेस के नियमों के अन्तर्गत होने पर ही किसी मामले की अपील सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख की जा सकती है।


    1. संशोधन की शक्तियाँ-

    • संविधान में तब तक संशोधन नहीं किया जा सकता, जब तक कि उस संशोधन को काँग्रेस के दो-तिहाई बहुमत द्वारा स्वीकार न किया जाये। 


    1. देश की सुरक्षा का अधिकार-

    • देश की सुरक्षा के सम्बन्ध में कांग्रेस की शक्तियाँ प्रायः असीमित है। 

    • काँग्रेस सेनाओं का निर्माण और उनकी व्यवस्था कर सकती है। 

    • वह जन-सेना तथा सैनिक दलों का निर्माण कर सकती है और राज्यों की सेना के संगठन की भी व्यवस्था कर सकती है। 

    • काँग्रेस ही युद्ध की घोषणा करती है|

    • काँग्रेस प्रत्येक समर्थ व्यक्ति को राष्ट्रीय-सुरक्षा में भाग लेने अथवा सैनिक सेवा के लिए बाध्य कर सकती है| 

    • वही देश की सेना के व्यय के लिए धन स्वीकार करती है। 

    • वही यह निश्चय करती है, कि सेना का कितनी संख्या में रखना उपयोगी होगा और सेना को किन शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित किया जाए। 


    1. महाभियोग लगाने का अधिकार- 

    • काँग्रेस को राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति एवं संघीय सरकार के अन्य उच्च पदाधिकारियों पर तथा न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने का अधिकार प्राप्त है| 


    1. निर्वाचन सम्बन्धी अधिकार-

    • राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन के समय किसी व्यक्ति को पूर्ण बहुमत प्राप्त न होने पर काँग्रेस को उनमें से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनने का अधिकार है। 

    • काँग्रेस को सीनेटरों और प्रतिनिधियों के चुनाव के समय, स्थानों और विधि के सम्बन्ध में भी कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है|

    • और कांग्रेस का प्रत्येक सदन अपने सदस्यों की निर्वाचन सम्बन्धी योग्यता निश्चित करता है और निर्णय करता है कि उनका चुनाव वैध है या अवैध ?


    1. सन्धियों का अनुसमर्थन या पुष्टि का अधिकार- 

    • सीनेट राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित सन्धियों की पुष्टि करती है और व्यवहार में राष्ट्रपति उनको वास्तविक रूप में स्वीकृत करने से पूर्व सीनेट का समर्थन प्राप्त कर लेते हैं| 

    • बिना सीनेट की स्वीकृति के राष्ट्रपति किसी सन्धि या युद्ध की घोषणा नहीं कर सकता|


    1. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ-

    • शक्ति-विभाजन के सिद्धान्त के होते हुए भी काँग्रेस बहुत हद तक कार्यकारिणी के विभागों पर नियन्त्रण रखती है। 

    • वह विनियमों द्वारा मन्त्रिमण्डल की छोटी से छोटी बात का विनियमन कर सकती है| जैसे- विभागों की संख्या नियत करना, उनके आन्तरिक संगठन की व्यवस्था करना, मन्त्रियों और अन्य उच्चाधिकारियों का वेतन नियत करना, कार्यक्षेत्र नियत करना आदि। 

    • राष्ट्रपति द्वारा की जाने वाली समस्त उच्चवर्गीय नियुक्तियों के लिए, सीनेट की अनुमति लेना आवश्यक है|


    1. वित्तीय अधिकार- 

    • काँग्रेस को कर लगाने, वसूल करने और चुकाने का अधिकार है| 

    • काँग्रेस द्वारा लगाए गए कर सारे देश पर लागू होते हैं, किंतु कांग्रेस राज्यों के आयात पर कर नहीं लगा सकती। 

    • राष्ट्रीय बजट को पारित काँग्रेस करती है। काँग्रेस को उसमे सशोधन करने का अधिकार प्राप्त है। 


    1. व्यापार-व्यवसाय सम्बन्धी शक्तियाँ-

    • काँग्रेस अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को नियन्त्रित करने के लिए कानूनों का निर्माण कर सकती है । 

    • वह माप-तौल को नियमित करने, कॉपीराइट और पेटेन्ट के नियमों की व्यवस्था करने, कारखानों में मजदूरों के कार्य की दशा आदि के सम्बन्ध में नियम बना सकती है।


    1. राज्य सम्बन्धी शक्ति- 

    • नये राज्यों को संघ में शामिल करने और विभिन्न राज्यों में प्रादेशिक परिवर्तन करने का अधिकार काँग्रेस को प्राप्त है|


    1. न्यायिक शक्तियाँ- 

    • काँग्रेस की प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और दूसरे संघीय अधिकारियों पर महाभियोग लगा सकती है, जिसकी सीनेट जाँच करती है। 

    • काँग्रेस संघीय कानूनों के तहत अपराधों की व्याख्या कर सकती है, परन्तु उसे सामान्य अपराधों की व्याख्या का अधिकार प्राप्त नहीं है, क्योंकि यह राज्यों के क्षेत्र में शामिल है। 

    • काँग्रेस सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या निश्चित करती है। 



    सीनेट-

    • यह कांग्रेस का द्वितीय सदन है|


    संगठन-

    • अमेरिका की सीनेट का निर्माण राज्यों की समानता के संघीय सिद्धान्त के आधार पर हुआ है| 

    • सीनेट में प्रत्येक राज्य को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त है| 

    • सभी राज्य अपने-अपने यहाँ से दो प्रतिनिधि चुनकर सीनेट के लिए भेजते हैं। 

    • संविधान के अनुच्छेद 5 में स्पष्ट उल्लेख है कि "किसी राज्य को उसकी सहमति के बिना सीनेट में प्रतिनिधित्व की समानता से वंचित नहीं किया जा सकता है|”

    • लार्ड ब्राइस "सीनेट शासन में गुरुत्वाकर्षण का केन्द्र है। एक ओर तो वह प्रतिनिधि सभा की लोकतन्त्रात्मक असावधानी और धृष्टता पर और दूसरी ओर राष्ट्रपति की महत्वाकांक्षाओं पर रोक लगाने वाली एक सत्ता है।" 

    • वर्तमान समय में अमेरिका में 50 राज्य हैं, और सीनेट के सदस्यों की संख्या 100 है। 


    योग्यताएं-

    1. व्यक्ति कम से कम 9 वर्ष से संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहा हो, 

    2. उसकी आय 30 वर्ष से कम न हो 

    3. और उस राज्य का निवासी हो, जिससे उसका निर्वाचन हुआ हो। 


    • निर्वाचित होने पर सदस्य अमेरिकी शासन के किसी वैधानिक पद को ग्रहण नहीं कर सकता। 


    कार्यकाल-

    • सीनेट स्थायी सदन है| 

    • सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष है, किन्तु प्रति दूसरे वर्ष एक तिहाई सदस्य अपने पद को रिक्त कर देते हैं और उनका स्थान नव-निर्वाचित सदस्य ग्रहण करते हैं|


    निर्वाचन-

    • संविधान के 17वें संशोधन 1913 के अनुसार अब सीनेटरों का निर्वाचन प्रत्यक्ष मतदाताओं द्वारा होता है। 

    • सीनेट का सदस्य पुनः निर्वाचित हो सकता है|


    पदाधिकारी-

    • उप-राष्ट्रपति सीनेट का पदेन सभापति होता है। 

    • उसे वाद-विवाद में भाग लेने का अधिकार नहीं है और न ही मतदान करने का। 

    • समान मत आने पर उसको निर्णायक मत देने का अधिकार है। 

    • अस्थायी/ सामयिक अध्यक्ष -उप-राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में अध्यक्ष-पद ग्रहण करने के लिए सीनेट के सदस्य अस्थायी/ सामयिक अध्यक्ष (President Pro Tempore) का निर्वाचन करते हैं, जो प्रायः बहुमत दल का सदस्य होता है। 

    • सीनेट के सचिव, सार्जेण्ट-एट-आर्म्स आदि अन्य पदाधिकारी भी होते हैं। 


    गणपूर्ति-

    • सीनेट की बैठक के लिए गणपति सीनेट का बहुमत (51) है| 


    सीनेट की शक्तियाँ एवं भूमिका-

    • सीनेट की शक्तियों को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

    1. व्यवस्थापन सम्बन्धी शक्ति

    2. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति

    3. न्यायपालिका सम्बन्धी शक्ति


    1. व्यवस्थापन सम्बन्धी शक्तियाँ-

    • काँग्रेस के दोनों सदन समान पदीय हैं और व्यवस्थापन के क्षेत्र में उनकी शक्तियाँ समान हैं।

    • कोई भी विधेयक उस समय तक अधिनियम (कानून) नहीं बन सकता, जब तक वह सीनेट की स्वीकृति प्राप्त नहीं कर लेता। 

    • वित्त-विधेयक यद्यपि प्रतिनिधि सभा में ही प्रस्तावित किए जाते हैं, तथापि सीनेट उन्हें स्वीकृति प्रदान करती है, उनमें संशोधन कर सकती है अथवा उन्हें निरस्त कर सकती है|

    • सीनेट वित्त-विधेयक की प्रारम्भिक धारा में कोई भी संशोधन नहीं कर सकती, परन्तु शेष विधेयक में वह इतना संशोधन कर सकती है कि उसका रूप ही बदल जाये। 

    • मुनरो "सीनेट काँग्रेस की एक समकक्ष शाखा है, अधीनस्थ शाखा नहीं है और निम्न सदन के साथ राष्ट्रीय विधान (कानून) बनाने का कार्य करती है।" 


    1. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियों-

    • कार्यपालिका सम्बन्धी महत्वपूर्ण शक्तियों ने सीनेट को संसार के समस्त उच्च सदनों में अधिक शक्तिशाली बना दिया

    • राष्ट्रपति द्वारा विदेशों के साथ की गई संधियाँ तब तक लागू नहीं की जाती, जब तक उन्हें सीनेट अपने दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदित न कर दे। 

    • इस शक्ति ने उसे राष्ट्र के वैदेशिक मामलों के नियंत्रण और निर्देशन करने की शक्ति प्रदान करते हुए विदेश नीति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति की शक्ति पर नियंत्रण स्थापित कर दिया। 

    • सन्धियों के संबंध में सीनेट की शक्ति का उल्लेख करते हुए जॉन हे का मत है कि "सीनेट में आने वाली सन्धि अखाड़े में जाने वाले साँड के समान है। यह नहीं कहा जा सकता कि उस पर अंतिम प्रहार किस प्रकार और कब होगा, किन्तु एक बात सुनिश्चित है कि वह अखाड़े से बाहर नहीं जायेगी।" 

    • लॉस्की का मत है "अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में प्रभावी होने के कारण विश्व की कोई भी विधानसभा सीनेट की बराबरी नहीं कर सकती।"

    • सीनेट की दूसरी कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति राष्ट्रपति द्वारा की हुई नियुक्तियों के पुष्टिकरण की है। इस पुष्टिकरण के लिए केवल साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।

    • तीसरी शक्ति विविध विभागों के विरुद्ध शक्तियों की जाँच से सम्बन्धित है| इस बारे में सीनेट का निर्णय अंतिम होता है। सीनेट को सब प्रकार के कार्यों में जाँच-पड़ताल करने का अधिकार है। 

    • सीनेट को यह भी अधिकार है कि वह राष्ट्रपति से किसी विदेशी शक्ति से किसी विषय पर वार्ता करने की प्रार्थना करे, परन्तु आरम्भन (Initiative) की शक्ति सीनेट क पास न होकर राष्ट्रपति के पास होती है। 

    • सीनेट की अन्तिम कार्यकारी शक्ति युद्ध की घोषणा सम्बन्धी है। इस विषय में प्रतिनिधि सभा के साथ सीनेट भी युद्ध की घोषणा किए जाने से पहले उसे अपनी स्वीकृति प्रदान करती है। 


    Note- सैद्धान्तिक रूप से सीनेट की शक्ति यद्यपि प्रतिनिधि सभा के समकक्ष ही है, परन्तु सन्धियों के अनुसमर्थन या पुष्टि करने की शर्तों के साथ सीनेट का महत्व इस शक्ति की दृष्टि से प्रतिनिधि सभा से बढ़ जाता है। 


    1. अन्वेषण सम्बन्धी शक्तियाँ/ न्यायपालिका सम्बन्धी शक्ति

    • सीनेट राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, राजदूत, मन्त्रिमण्डल के सदस्यों, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों एवं अन्य उच्च सिविल अफसरों के अभियोगों के मुकदमे सुनने के लिए न्यायालय का कार्य करती है। 

    • प्रतिनिधि सभा द्वारा दोषारोपण करके प्रस्तावों को सीनेट के समक्ष रखा जाता है और सीनेट दो-तिहाई बहुमत से इन महाभियोगों पर निर्णय देती है| 

    • महाभियोग की सुनवाई के समय सीनेट का अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता है और इस सदन के कोरम के लिए दो-तिहाई सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है। 

    • गेलोवे ने “सीनेट की इन अन्वेषण शक्तियों को कार्यपालिका के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाली कड़ी बताया है।" 


    1. अन्य अधिकार-

    • सीनेट संविधान संशोधन प्रक्रिया में भाग लेती है|

    • संघ में नए राज्य के प्रवेश की स्वीकृति देती है 

    • और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए किए गए मतदान की गणना करती है। 

    • यदि उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन में किसी व्यक्ति को पूर्ण बहुमत प्राप्त न हो तो दो सर्वाधिक मत पाने वाले प्रत्याशियों में से किसी एक को उप-राष्ट्रपति निर्वाचित करती है। 

    • सीनेट ही अपने निर्वाचनों, निर्वाचन-विवरणों और सदस्यों की योग्यताओं का निर्धारण करती है। 


    सीनेट का मूल्यांकन- 

    • सीनेट एक अत्यन्त सक्षम और प्रभावशाली संस्था है, जो एक ओर तो प्रतिनिधि सभा की व्यवस्थापन सम्बन्धी उतावलेपन को रोकती है दूसरी ओर राष्ट्रपति की तानाशाही महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाए रहती है| किन्तु ये सब कुछ होते हुए भी सीनेट दोष-रहित संस्था नहीं है। 

    • इसके मुख्य दोष को निम्न है-

    1. सीनेट धनी वर्ग का क्लब है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पूँजीपति ही राजनीतिक व्यवस्था के वास्तविक स्वामी हैं। सीनेट उनका प्रतिनिधित्व करती है। 

    2. सीनेट में सभी राज्यों के दो-दो प्रतिनिधि हैं, परन्तु यह प्रतिनिधित्व लोकतंत्र की भावना के अनुकूल नहीं है, क्योंकि इस प्रकार सीनेट राज्यों की प्रतिनिधि संस्था हो जाती है, जनता की नहीं।

    3. जब दोनों सदनों में किसी विधेयक पर गतिरोध पैदा हो जाए तो संविधान में ऐसे गतिरोध को समाप्त करने की कोई व्यवस्था नहीं दी गई है। प्रायः विरोध की व्यवस्था में सीनेट की स्थिति अधिक प्रभावी रहती है। 

    4. सीनेट जितना समय नष्ट करती है, उतना बहुत कम सदन करते हैं। इससे सार्वजनिक धन का अनुचित व्यय होता है। 

    5. अधिकार होते हुए भी प्रशासन के सम्बन्ध में सीनेट का कोई उत्तरदायित्व नहीं है, जो अनुचित है। 

    6. सीनेट के प्रति शिष्टाचार जैसी परम्परा को न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। इससे सीनेटर राष्ट्रपति पर अनुचित प्रभाव डालने में सफल हो जाते हैं और अनेक बार ऐसी नियुक्तियाँ भी हो जाती हैं, जिसे योग्यता क्रम के अनुसार नहीं माना जा सकता है। 


    • परन्तु उपर्युक्त दोषों के होते हुए भी सीनेट एक सफल, विशाल और अद्वितीय द्वितीय सदन है और इसने संविधान निर्माताओं के उद्देश्य की पूर्ति की है | 


    फिलीबस्टर-

    • यह एक डच शब्द है जिसका अर्थ- समुद्री डाकू या अगडेबाज|

    • विधेयक कार्यवाही में विलंब या उसे अवरुद्ध करने के लिए सीनेट में इसके प्रयोग का लंबा इतिहास है|



    प्रतिनिधि सभा-

    • प्रतिनिधि सभा संयुक्त राज्य अमेरिका का निम्न सदन है । 

    • इसकी स्थिति इंग्लैण्ड के लोकसदन तथा भारत की लोकसभा की तुलना में कमजोर है। 

    • पैटेर्सन के अनुसार "प्रतिनिधि सभा लघु रूप में अमेरिकी राष्ट्र है, यह अमेरिकी जीवन की सुन्दर तस्वीर है, जिसमें वहाँ की सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा स्वाभाविक विभिन्नताओं, उग्रताओं तथा मध्यम-अवस्थाओं का पूर्ण चित्रण है। इसके सदस्य विभिन्न राज्यों से जनसंख्या के आधार पर चुने जाने के कारण इसमें अमेरिकी जीवन की विविधता दिखाई देती है।" 


    प्रतिनिधि सभा का संगठन-

    • प्रतिनिधि सभा की सदस्य संख्या स्थाई रूप से 435 निश्चित कर दी गई है|

    • प्रतिनिधि सभा में राज्यों को जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व दिया गया है|

    • मूल संविधान में यह व्यवस्था की गई थी, जो अभी तक बनी हुई है कि अमेरिकी संघ की प्रत्येक इकाई का एक सदस्य कम से कम प्रतिनिधि सभा में शामिल होगा चाहे, उसकी जनसंख्या कितनी ही क्यों ना हो|

    • प्रतिनिधि सदन के कुल 435 सदस्यों को मताधिकार प्राप्त सदस्य कहा जाता है|

    • इनके अलावा 6 गैर-मताधिकार प्राप्त प्रतिनिधि या रेजिडेंट कमिश्नर भी प्रतिनिधि सभा में शामिल है|


    सदस्यों की योग्यताएँ-

    • प्रतिनिधि सभा का सदस्य बनने के लिए निम्नांकित योग्यताओं का होना आवश्यक है-

    1. वह व्यक्ति कम से कम 7 वर्ष से संयुक्त राज्य अमेरिका का नागरिक हो। इस सम्बन्ध में यह आवश्यक नहीं है कि वह अमेरिका का जन्मजात नागरिक हो।

    2. व्यक्ति की आयु कम से कम 25 वर्ष हो। 

    3. निर्वाचन के समय वह उस राज्य का निवासी हो, जहाँ से वह चुनाव लड़ रहा हो। 


    • वर्तमान समय में अधिकांश राज्यों में यह परम्परा-सी बन गई है कि उम्मीदवार न केवल उस राज्य का बल्कि उस निर्वाचन क्षेत्र का भी निवासी होना चाहिए जहाँ से वह चुनाव लड़ रहा है। इसे स्थानीयता का नियम' (Locality Rule) कहा जाता है। 

    • इन योग्यताओं के अतिरिक्त यह व्यवस्था भी है कि व्यक्ति उन विशेष निवास योग्यताओं को भी पूर्ण करता हो जो राज्य-विशेष निर्धारित करे। 


    • संविधान में कुछ निर्योग्यताएँ (Disqualifications) भी उपबन्धित की गई हैं-

    1. कोई व्यक्ति संयुक्त राज्य की सेवा में रहते हुए काँग्रेस के किसी सदन का सदस्य उस समय तक नहीं हो सकता जब तक वह उस पद पर आसीन हो, 

    2. कोई भी सदस्य अपनी सदस्यता काल में किसी ऐसे सार्वजनिक पर पर नियुक्त नहीं हो सकता जिसका निर्माण उसी काल में हुआ हो अथवा जिस पद का वेतन अपने सदस्यता-काल में वह अपनी व्यवस्थापिका की सदस्यता के प्रभाव के कारण अधिक करवा ले। 


    कार्यकाल-

    • प्रतिनिधि सभा के सदस्य प्रति दूसरे वर्ष चुने जाते हैं, अर्थात् सभा का कार्यकाल केवल 2 वर्ष है | 

    • इस निश्चित अवधि को घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। प्रतिनिधि सभा को इसकी अवधि पूर्व विघटित नहीं किया जा सकता। 


    प्रतिनिधि सभा का चुनाव-

    • प्रतिनिधि सभा के सदस्य व्यस्क मताधिकार के आधार पर एकल सदस्य निर्वाचन क्षेत्र फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली द्वारा चुने जाते हैं|

    •  26 वें संविधान संशोधन के अनुसार अब अमेरिका में 18 वर्ष की आयु प्राप्त प्रत्येक स्त्री-पुरुष को मताधिकार प्राप्त| है|


    ऑन ईयर और ऑफ ईयर-

    • संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस के दोनों सदनों और राष्ट्रपति के निर्वाचन हमेशा सम वर्षों (2016, 2018) में होते हैं|

    • जिस साल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सीनेट के एक तिहाई और प्रतिनिधि सभा के पूरे सदन के लिए निर्वाचन होता है तो उस वर्ष को ऑन ईयर निर्वाचन कहते हैं|

    • तथा जिस साल राष्ट्रपति का निर्वाचन नहीं होता है केवल सीनेट के एक तिहाई सदस्यों और प्रतिनिधि सभा का निर्वाचन होता है तो उसे ऑफ ईयर निर्वाचन कहते हैं|


    गणपूर्ति- कुल तत्कालीन सदस्यों का बहुमत सदन की गणपूर्ति होता है|


    अधिवेशन-

    • सीनेट के साथ ही प्रतिनिधि सदन का अधिवेशन 3 जनवरी को प्रारंभ होता है और तब तक चलता है जब तक दोनों सदन एक साथ स्थगित पर सहमत ना हो जाए|

    • यदि असहमत रहते हैं तो संविधान राष्ट्रपति को कांग्रेस के स्थगन की अनुमति देता है| 


    जैरीमेन्डरिंग-

    • प्रतिनिधि सभा के चुनाव क्षेत्रों के गठन से संबंधित एक प्रथा जैरीमेन्डरिंग है|

    • प्रतिनिधि सभा के सदस्य एकल सदस्य निर्वाचन क्षेत्र से चुने जाते हैं और इन चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण अमेरिका में राज्य विधान मंडलों द्वारा किया जाता है|

    • व्यवहार में सत्ताधारी दल प्रत्येक 10 वर्ष बाद चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण इस प्रकार से करता है कि विरोधी दल के समर्थकों की संख्या को थोड़े से चुनाव क्षेत्रों में सीमित कर दिया जाए और समर्थकों को अधिक से अधिक क्षेत्रों में इस प्रकार फैला दिया जाए कि थोड़े-थोड़े बहुमत से अधिक संख्या में अपने उम्मीदवार विजयी हो|

    • इस प्रकार जैरीमेन्डरिंग में नेता मतदाताओं का चयन करते हैं ना कि मतदाता नेताओं का|



    प्रतिनिधि सभा की शक्तियों और भूमिका- 

    • प्रतिनिधि-सभा की शक्तियाँ और उसके कार्य सीनेट के समान व्यापक नहीं हैं। 

    • कुछ क्षेत्रों में यद्यपि वह सीनेट के समकक्ष है तथापि अन्य क्षेत्रों में वह सीनेट से बहुत कम शक्तिशाली है। 

    • प्रतिनिधि सभा की मुख्य शक्तियाँ निम्नानुसार है- 


    1. व्यवस्थापन सम्बन्धी शक्तियाँ-

    • व्यवस्थापन क्षेत्र में सीनेट एवं प्रतिनिधि सभा को समान शक्तियाँ प्राप्त हैं, केवल वित्त-विधेयकों का प्रस्तुतीकरण प्रतिनिधि सभा में ही हो सकता है, सीनेट में नहीं। 

    • व्यवस्थापन क्षेत्र में ब्रिटिश लोकसदन स्पष्टतः प्रतिनिधि सभा से अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि उसे व्यवस्थापन क्षेत्र में अंतिम निर्णय का अधिकार प्राप्त है। 

    • सांविधानिक विधेयकों के सम्बन्ध में भी प्रतिनिधि सभा की शक्ति सीनेट के ही समकक्ष है। 

    • दोनों सदनों में किसी बात पर मतभेद हो जाता है तो उसका निर्णय दोनों सदनों की एक सम्मिलित समिति द्वारा किया जाता है और यदि सम्मिलित समिति में कोई समझौता नहीं हो पाता तो अन्त में सीनेट की ही विजय होती है। 

    • दोनों ही सदनों को संयुक्त रूप से युद्ध की घोषणा करने का भी अधिकार प्राप्त है। 


    1. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ-

    • सीनेट की तुलना में प्रतिनिधि-सभा की कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ नहीं के बराबर हैं। 

    • सन्धियों के अनुसमर्थन, राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों की स्वीकृति एवं विविध विभागों की जाँच-पड़ताल आदि से सम्बन्धित कार्यकारी शक्तियाँ केवल सीनेट को ही प्राप्त हैं, प्रतिनिधि सभा को नहीं। 

    • जब राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचन लड़ने वाले प्रत्याशी को निर्वाचकों की पूर्ण संख्या का बहुमत प्राप्त न हो तो प्रतिनिधि-सभा सबसे अधिक मत पाने वाले तीन प्रत्याशियों में से एक को राष्ट्रपति पद के लिए छाँट सकती है। 

    • प्रतिनिधि सभा अपने सदस्यों की योग्यता की जाँच-पड़ताल करती है और उनके चुनावों की वैधानिकता की भी जाँच करती है। 


    1. न्यायिक शक्तियाँ-

    • न्यायिक क्षेत्र में प्रतिनिधि सभा को केवल महाभियोग से सम्बन्धित अधिकार प्राप्त हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं अन्य उच्च अधिकारियों पर वह महाभियोग का आरोप ही लगा सकती है, परन्तु शेष सब कुछ अर्थात् अभियोग को सुनने, अभियोग की जाँच करने एवं उस पर निर्णय देने का अधिकार सीनेट को प्राप्त है। 

    • इसके अतिरिक्त प्रतिनिधि सभा अपने सदस्यों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही भी कर सकती है और किसी भी ऐसे व्यक्ति को सजा दे सकती है, जिसके व्यवहार से सदन की कार्यवाही में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप अथवा व्यवधान पड़ता हो। 


    1. संविधान संशोधन की शक्ति-

    • प्रतिनिधि सभा व सीनेट मिलकर दो-तिहाई बहुमत से संविधान में संशोधन कर सकती है। 


    1. अन्य शक्तियाँ-

    • वह अपने सदस्यों के कार्यप्रणाली के नियम निर्धारित कर सकती है तथा सदस्यों की योग्यता तय कर सकती है तथा चुनाव सम्बन्धी विवादों का निर्णय कर सकती है। 


    प्रतिनिधि-सभा का अध्यक्ष-

    • इंग्लैण्ड के समान ही अमेरिका में भी निचले सदन का अध्यक्ष स्पीकर कहलाता है, परन्तु इंग्लैण्ड के स्पीकर की अपेक्षा अमेरिका का स्पीकर बहुत अधिक शक्तिशाली है। 

    • पद के प्रभाव की दृष्टि से वह राष्ट्रपति के बाद दूसरा व्यक्ति माना जाता है|

    • उत्तराधिकार के रूप में उपराष्ट्रपति के बाद राष्ट्रपति का पद स्पीकर या अध्यक्ष को ही मिलता है। 


    अध्यक्ष का निर्वाचन-

    • सिद्धान्त में तो प्रतिनिधि-सभा ही अपने अध्यक्ष का चुनाव करती है, परन्तु व्यवहार में दलीय कॉकस (Caucus) द्वारा यह निर्धारित कर लिया जाता है कि कौन व्यक्ति अध्यक्ष बनेगा। 

    • देश के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों की बैठकों में अध्यक्ष पद के लिए दलीय प्रत्याशी का चयन किया जाता है | 

    • बाद में जब अध्यक्ष का निर्वाचन करने के लिए प्रतिनिधि सभा की बैठक होती है, तो दल अपने-अपने प्रत्याशी का नाम प्रस्तावित करते हैं। 

    • मतदान के बाद जिसे बहुमत प्राप्त होता है, वह अध्यक्ष निर्वाचित हो जाता है। 

    • ऑग व रे के शब्दों में "अमेरिकी स्पीकर के पद का विकास भिन्न रूप में हुआ है तथा वह दलीय आधार पर हुआ है। रीड व कैनन के समय तो स्पीकर का स्थान राष्ट्रपति के बाद ही माना जाता था।" 


    अध्यक्ष के अधिकार एवं कर्तव्य- 

    • अध्यक्ष के अधिकार एवं कर्तव्य निम्न है-

    1. अध्यक्ष प्रतिनिधि सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है| अध्यक्ष सदन की बैठकों को आरंभ और समाप्त करता है तथा सदस्यों को भाषण देने की अनुमति प्रदान करता है|

    2. सदन में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने का मुख्य दायित्व अध्यक्ष का है| 

    3. अध्यक्ष नियमों की व्याख्या करता है व उन्हें लागू करता है| किसी नियम पर अध्यक्ष द्वारा दी गई व्यवस्था को सदन का बहुमत अस्वीकार कर सकता है, अतः ब्रिटिश अथवा भारतीय अध्यक्ष की भांति अमेरिकी अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं होता है|

    4. अध्यक्ष बराबर मत आने की स्थिति में अपना निर्णायक मत दे सकता है तथा दलीय व्यक्ति होने के कारण उसका मत अपने दल के पक्ष में ही जाता है| 



    प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष की ब्रिटिश लोकसदन के अध्यक्ष से तुलना-

    1. ब्रिटेन में लोकसदन का अध्यक्ष दलीय आधार पर नहीं चुना जाता, जबकि अमेरिका में प्रतिनिधिं-सभा का अध्यक्ष दलीय आधार पर निर्वाचित होता है। 

    2. ब्रिटिश लोकसदन का अध्यक्ष निर्वाचन के पश्चात् निर्दलीय व्यक्ति हो जाता है, किन्तु अमेरिका में वह निर्वाचित होने के बाद दलीय व्यक्ति बना रहता है। 

    3. ब्रिटिश लोकसदन का अध्यक्ष सदन की कार्यवाही में निष्पक्ष होकर कार्य करता है, जबकि अमेरिकी अध्यक्ष कभी भी निष्पक्ष नहीं होता। वह सदन में भी दलीय व्यक्ति के रूप में कार्य करता है। 

    4. ब्रिटेन में अध्यक्ष सक्रिय दलीय राजनीति में कभी भाग नहीं लेता, जबकि अमेरिकी अध्यक्ष सदन में अपने दल का नेतृत्व करता है और अपने दल के विधेयकों तथा प्रस्तावों को पास (पारित) करवाने में योगदान करता है| 

    5. प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष लोकसदन के अध्यक्ष की भाँति पुनः निर्विरोध नही चुना जाता। उसे चुनाव लड़ना पड़ता है और अपने निर्वाचकों का भी ध्यान रखना पड़ता है। 

    6. प्रतिनिधि सभा का अध्यक्ष नियमों का निर्माण और क्रियान्वयन बहुत कुछ अपने विवेक के आधार पर करता है, जबकि ब्रिटिश लोकसदन का अध्यक्ष अपने कर्तव्यों की पूर्ति के लिए नियमानुसार निष्पक्ष रूप से कार्य करता है। 

    7. ब्रिटिश लोकसदन का अध्यक्ष किसी भी सदस्य को उसका नाम लेकर निलम्बित कर सकता है, जबकि प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। 


    दोनों ही अध्यक्षों में समानताएँ-

    • दोनों ही अध्यक्ष सदन की अध्यक्षता करने, सदन में शान्ति और व्यवस्था को बनाये रखने, सदन की प्रतिष्ठा तथा गरिमा को बनाये रखने, विवादास्पद संवैधानिक मुद्दों पर निर्णय देना तथा सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं। 




    विधि-निर्माण प्रक्रिया 

    • विधि-निर्माण का दायित्व मूलत: कांग्रेस का है। कांग्रेस के दोनों ही सदन इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं। 

    • संयुक्त राज्य अमेरिका में किसी भी विधयेक को पारित होने से पूर्व निम्नलिखित प्रक्रियाओं में होकर क्रमशः जाना पड़ता है-

    1. प्रस्तावना 

    2. चुनाव व प्रथम वाचन 

    3. समिति अवस्था 

    4. कलेण्डर अवस्था 

    5. द्वितीय वाचन

    6. तृतीय वाचन

    7. विधेयक दूसरे सदन में

    8. विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष 


    1. प्रस्तावना या प्रस्तुतीकरण-

    • अमेरिकी कांग्रेस में विधि-निमार्ण प्रक्रिया की प्रथमावस्था विधेयक के प्रस्तुतीकरण की है। 

    • वित्त-विधेयक को छोड़कर अन्य कोई भी विधयक कांग्रेस के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है | 

    • वित्त-विधेयक सर्वप्रथम केवल प्रतिनिधि-सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। 

    • विधेयक-

    1. कांग्रेस के किसी भी सदस्य द्वारा, 

    2. कांग्रेस की किसी भी स्थायी समिति द्वारा, अथवा

    3. राष्ट्रपति या किसी कार्यकारी अधिकारी के कहने पर कांग्रेस की निर्मित विशेष समिति द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। 


    • विधेयक को प्रस्तुत करने की प्रणाली निम्नानुसार है-

    1. यदि सदस्य विधेयक को सीनेट में प्रस्तावित करना चाहते हैं तो वह उसकी एक प्रति सचिव की मेज पर रखे 'सन्दूक पर डाल देते हैं। 

    2. यदि सदस्य विधेयक को प्रतिनिधि सभा में प्रस्तावित करना चाहते हैं तो उसकी एक प्रति लिपिक की मेज पर रखे सन्दूक में डाल देते हैं, जिसे हूपर (Hooper) कहते हैं। 


    • दोनों दशाओं में अन्तर केवल यही है कि सीनेट में उक्त व्यक्ति को सचिव' कहा जाता है और प्रतिनिधि सभा में उसे 'क्लर्क'।


    1. चुनाव व प्रथम वाचन- 

    • यह दूसरा चरण होता है। 

    • प्रस्तुतीकरण के बाद सदन का लिपिक विधेयकों को विषयवार छाँट लेता है। 

    • तत्पश्चात् वह उन्हें सरकारी सूचना के रूप में छपवा लेता है। इस प्रकार विधेयक का प्रथम वाचन समाप्त हो जाता है। 


    1. समिति अवस्था- 

    • संयुक्त राज्य अमेरिका में विधेयक का तीसरा चरण समिति अवस्था का होता है। प्रथम वाचन के बाद विधेयक उस विषय समिति के पास जाता है, जिससे सम्बन्धित वह विषय होता है। 

    • अमेरिका में समितियाँ विषयवार बनाई जाती हैं। 

    • यदि विवाद उत्पन्न हो जाए कि विधेयक किस समिति को सुपुर्द किया जाना है, इसका निर्णय सदन का अध्यक्ष करता है। उसके निर्णय के विरुद्ध सदन से अपील की जा सकती है। 


    1. सूचीकरण अथवा कलेण्डर अवस्था- 

    • विधेयक का यह चौथा चरण सूचीकरण है। 

    • इस स्तर में विधेयक को निम्नलिखित पाँच सूचियों में से किसी एक में रख दिया जाता है-

    1. संघीय सूची- इसमें राजस्व, विनियोग तथा सार्वजनिक सम्पत्ति से सम्बन्धित विधेयक समाहित होते हैं। 

    2. सदन सूची- इसमें प्रथम श्रेणी की सूची के आने वाले विधेयकों को छोड़कर अन्य सभी सार्वजनिक विधेयक शामिल होते हैं, जिनका सम्बन्ध वित्त से नहीं होता है। 

    3. सम्पूर्ण सदन सूची- इसमें वे विधेयक रखे जाते हैं जो स्थानीय विषय व निजी निगमों आदि से सम्बन्धित होते हैं, अर्थात् सार्वजनिक या सम्पूर्ण राष्ट्रीय हितों से सम्बन्धित नहीं होते हैं। 

    4. सहमति सूची- जिन विधेयकों में कोई विरोध नहीं होता, उनको अन्य सूची से निकाल कर इस सूची में रखा जा सकता है अर्थात् जो विधेयक राष्ट्रीय महत्त्व के होते हैं और जिन्हें सर्वसम्मति से पारित किया जाना होता है वे इसमें सम्मिलित किये जाते हैं।

    5. निबटान सूची- इसमें वे विधेयक रखे जाते हैं जिन्हें सदन के बहुमत द्वारा समितियों के पास से निकाला जाता है| यदि कोई विधेयक समिति के पास 30 दिन तक रहा हो तो उसका प्रस्तावक सदन के बहुमत से उस विधेयक को समिति के पास निकाल सकता है।


    1. द्वितीय वाचन- 

    • विधेयकों का वर्गीकरण करने और उन्हें उचित सूची में रखने के बाद नियत दिनांक को सदन उन पर विचार करता है। 

    • इसके लिए सदन सम्पूर्ण सदन की समिति के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ऐसा प्रत्येक विधेयक के विषय में होता है। 

    • सम्पूर्ण सदन की समिति विधेयक के सिद्धान्तों व स्वरूप पर पूरी तरह विचार करती है। 

    • द्वितीय वाचन की अवस्था में सदस्य विधेयक के पक्ष और विपक्ष में बोलते हैं और उसमें संशोधन के सुझाव प्रस्तुत करते हैं। 


    1. तृतीय वाचन-

    • विधेयक का यह छठा स्तर तृतीय वाचन का होता है| यह वाचन केवल औपचारिक होता है। 

    • विधेयक के सिद्धान्त पर केवल मोटे रूप से ही विचार किया जाता है। 

    • यदि कोई सदस्य विधेयक के पूरे पढ़े जाने की माँग न करे तो केवल विधेयक का शीर्षक ही पढ़ दिया जाता है। 

    • इसके बाद अध्यक्ष, सदन का अन्तिम निर्णय लेता है। इसकी चार रीतियाँ- मौखिक मतदान, खड़े होकर, गणना द्वारा एवं 'हाँ' या 'ना' द्वारा। 


    1. विधेयक दूसरे सदन में- 

    • तृतीय वाचन के बाद विधेयक दूसरे सदन में भेजा जाता है। 

    • दूसरे सदन में भी विधेयक को प्रायः उन्हीं अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है, जिन अवस्थाओं में उसे पहले वाले सदन में गुजरना पड़ा था। 

    • दूसरा सदन विधेयक को पहले वाले सदन को पुनः विचारार्थ लौटा सकता है, अथवा उसे किसी समिति को भेज सकता है, जहाँ विधेयक पूर्णतः समाप्त भी हो सकता है।


    1. सम्मेलन समिति के समक्ष- 

    • यदि किसी विधेयक के सम्बन्ध में दोनों सदनों में गत्यावरोध पैदा हो जाए तो एक सम्मेलन समिति का निर्माण किया जाता है, जिसमें दोनों सदनों के बराबर-बराबर प्रतिनिधि होते हैं। 

    • यह समिति विवादग्रस्त विषयों पर गुप्त रूप से वाद-विवाद करती है और समाधान करने के उपायों पर विचार करती है। 

    • यह समिति समाधान करने में सफल रहती है तो उसके सदस्य उसे अपने-अपने सदनों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। यदि प्रत्येक सदन समिति द्वारा प्रस्तावित सुझावों को स्वीकार कर लेता है तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है। 

    • किन्तु यदि ये सुझाव स्वीकृत नहीं होते हैं तो विधेयक का वहीं अन्त हो जाता है। 


    1. विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष-

    • दोनों सदनों की स्वीकति के पश्चात विधेयक को राष्ट्रपति के हस्ताक्षरों के लिए भेज दिया जाता है और उसकी स्वीकति मिल जाने पर वह अधिनियम का रूप धारण कर लेता है। 

    • विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं-

    1. वह 10 दिन के भीतर विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे दे। 

    2. वह विधेयक को अस्वीकार कर दे और कारण बताते हुए उसे कांग्रेस को पुनःविचारार्थ लौटा दे। 

    Note- विधेयक उसी सदन को लौटाया जाता है जिसने उसे प्रारम्भ किया था| किन्तु यदि कांग्रेस के दोनों सदन अपने दो-तिहाई बहुमत से विधेयक को पुनः स्वीकृत कर दे तो राष्ट्रपति सहमति देने के लिए बाध्य है|

    1. राष्ट्रपति तटस्थ रहने के उद्देश्य से विधेयक पर न तो हस्ताक्षर करता है और न उसे लौटाता है। ऐसी दशा में विधेयक स्वतः राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत मान लिया जाता है और कानून बन जाता है। 



    समिति प्रणाली 

    • अमेरिकी समितियों की शक्ति तथा भूमिका, ग्रेट ब्रिटेन की तुलना में अधिक शक्तिशाली तथा प्रभावी है।

    • ग्रेट ब्रिटेन में विधि-निर्माण में जो भूमिका मन्त्रिमण्डल की है, वही कार्य अमेरिका में समितियों द्वारा सम्पादित किया जाता हैं। 


    समितियाँ :प्रकार-

    • अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों प्रतिनिधि सभा और सीनेट में पृथक्-पृथक् रूप से समितियों की व्यवस्था की गई है। 

    • इन समितियों की नियुक्ति स्वयं सदन करता है। उनमें बहुमत दल और अल्पमत दल दोनों के ही सदस्य होते हैं। 

    • समितियों के बारे में संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। बल्कि उत्पत्ति और इसका विकास आवश्यकताओं का परिणाम है। 

    • अमेरिका में प्रायः निम्नलिखित 7 महत्त्वपूर्ण समितियाँ पाई जाती हैं-


    1. स्थायी समितियाँ-

    • इनका अमेरिकी समिति व्यवस्था में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

    • ब्रिटेन की तुलना में अमेरिका में इनकी संख्या अधिक है, किन्तु इनमें सदस्य संख्या अपेक्षाकृत कम है| 

    • साधारणत: इसमें 12 से लेकर 30 तक सदस्य होते हैं|

    • फर्ग्युसन व मैकहेनरी के शब्दों में “स्थायी समितियाँ वे बड़ी चलनी हैं जो प्रस्तावित विधान (कानून) के एक बड़े भाग का सूक्ष्म परीक्षण करती हैं।" 

    • स्थायी समितियों की नियुक्ति सदन स्वयं करता है, पर वास्तव में राजनीतिक दल अपनी शक्ति के आधार पर निर्णय करते हैं। सदन तो केवल उनका अनुमोदन करता है। 

    • इन समितियों के सभापति बहुमत दल के प्रमुख नेता होते हैं। 


    1. नियम समिति-

    • इस महत्त्वपूर्ण समिति में लगभग 15 सदस्य होते हैं। 

    • इसका मुख्य कार्य कांग्रेस की कार्य-विधि के सम्बन्ध में विभिन्न प्रकार के नियमों का निर्माण करना होता है।


    1. प्रवर या विशिष्ट समितियाँ-

    • इन समितियों की नियुक्ति समय-समय पर किसी विशेष उद्देश्य से की जाती है। 

    • सदस्यों की नियुक्ति सदन का अध्यक्ष करता है। अपना काम पूरा करते ही वे समाप्त हो जाती है तथा इसकी सदस्य संख्या निश्चित नहीं है। 


    1. सम्पूर्ण सदन की समिति- 

    • यह समिति वित्त विधेयकों सहित महत्त्वपूर्ण एवं विवादग्रस्त विषयों पर विचार-विमर्श करती है। 

    • सदन के सभी सदस्य समिति के सदस्य होते हैं। 

    • जब कोई सदस्य इस समिति के लिए प्रस्ताव करता है और सदन समिति का रूप धारण कर लेता है। 

    • सदन और समिति में अन्तर केवल इतना ही होता है कि सदन की बैठक में सदन का अध्यक्ष सभापतित्व करता है, जबकि समिति की बैठक में वह नहीं बैठता। उसके स्थान पर समिति के द्वारा चुना हुआ कोई व्यक्ति सभापतित्व करता है।


    1. सम्मेलन समिति-

    • इस समिति का निर्माण उस समय किया जाता है जब किसी विधेयक पर कांग्रेस के दोनों सदनों में मतभेद होता है। 

    • इस समिति में दोनों सदनों में से बराबर-बराबर संख्या में सदस्य लिये जाते हैं| प्रायः तीन-तीन सदस्य, किन्तु विशेष दशा में पाँच-पाँच सदस्य भी लिये जाते हैं। 

    • समिति की बैठकें गुप्त होती हैं और इसकी कार्यवाही का कोई लेखा नहीं रखा जाता। 


    1. संयुक्त समितियाँ-

    • ऐसे विषयों की जाँच के लिए, जिनमें संयुक्त कार्यवाही की आवश्यकता हो या जिन पर दोनों सदनों का समवर्ती अधिकार क्षेत्र हो, कांग्रेस द्वारा संयुक्त समितियों का निर्माण किया जाता है। कार्य की समाप्ति पर ये समितियाँ भी समाप्त हो जाती हैं। 


    1. संचालन समितियाँ- 

    • अमेरिका में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का पृथक्करण होने के कारण ब्रिटेन की तरह मन्त्रिमण्डल विधि-निर्माण का कार्य नहीं करता, अतः वहाँ पर संचालन समिति का निर्माण किया जाता है, जिसका कार्य बहुमत-दल की तरफ से विधि निर्माण करना होता है। 

    • इस समिति का चयन सदन के बहुमत दल द्वारा अपने दल के सदस्यों में से किया जाता है और सदन के बहुमत दल का नेता इसका अध्यक्ष हाता है | 

    • बहुमत दल की ओर से यही समिति विधेयकों को सदन में प्रस्तुत करती है और अपने दल के समर्थन पर उसे सदन में पारित भी कराती है। 


    महत्त्व एवं मूल्यांकन-

    • समितियों के महत्त्व को विश्लेषित करते हुए थॉमस वी. रीड ने लिखा है कि “समितियाँ सदन की आँख, कान, हाथ और कभी-कभी बुद्धि का कार्य भी करती हैं।" 

    • विल्सन ने समितियों को लघु व्यवस्थापिकाएँ कहा था। 


    • अमेरिका की समिति व्यवस्था प्रभावशाली होते हुए भी उसमें निम्न दोष है-

    1. एक समिति के कार्यों और दूसरी समिति के कार्यों के बीच प्रायः सामंजस्य नहीं होता। अतः समितियों द्वारा एक ही विषय पर अपने कानूनों में परस्परं संघर्ष तथा भ्रम फैलने की सम्भावना रहती है। 

    2. समितियाँ सदन के सब विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। 

    3. अनेक समितियाँ प्रायः निष्क्रिय रहती हैं उनके पास कोई कार्य नहीं रहता। 


    समितियों का अध्यक्ष- 

    • संयुक्त राज्य अमेरिका में समितियों के अध्यक्ष का पद विशेष महत्त्व रखता है।

    • वह वरिष्ठता के आधार पर समिति का अध्यक्ष बनता है और समिति की बैठक बुलाने तथा समिति के विभिन्न कर्मचारियों के चयन के लिए कार्यवाही करता है। 

    • समिति के अन्तर्गत नियुक्त की जाने वाली उपसमितियों के सदस्यों की भी नियुक्ति उसी के द्वारा होती है। 

    • सदन में वही विधेयकों का संचालन करता है। 

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