जीवन परिचय
पूरा नाम- निकोलो मेकियावली
जन्म-
3 मई 1469 ईस्वी में
इटली के फ्लोरेंस नगर में प्राचीन टस्कन वंश से संबंधित परिवार में
पिता-
पिता बर्नाडो, वकील था, जिनका तत्कालीन गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में विश्वास था|
मैक्यावली का जन्म ऐसे समय हुआ था, जिस समय यूरोप में आधुनिक युग की शुरुआत हो रही थी तथा बौद्धिक पुनर्जागरण और धर्म सुधार आंदोलन चल रहे थे|
पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप ईश्वर की अपेक्षा मानव अध्ययन पर, परलोक के बजाय इहलोक के अध्ययन पर बल दिया गया तथा राज्य को धर्म से अलग किया गया|
पुनर्जागरण के समय जन्म के कारण मैक्यावली को पुनर्जागरण की संतान भी कहा जाता है|
मैक्यावली उच्च शिक्षा से वंचित रहा था| अपने पिता की तरह इनका भी गणतंत्र शासन व्यवस्था की ओर झुकाव था|
1498 ईस्वी में फ्लोरेंस में गणतंत्र की स्थापना हुई (फ्रांसो मारियो सावोनारोला के द्वारा)| इससे पहले फ्लोरेंस में लोरेंजो द मेडीची का राजतंत्र था|
फ्लोरेस में गणराज्य की स्थापना के बाद इनकी पहली नियुक्ति नगर परिषद के सचिव पद पर हुई तथा बाद में गणराज फ्लोरेंस की सैनिक गतिविधियों की संचालक काउंसिल ऑफ टेन (Council Of Ten) के सचिव पद पर कार्य किया|
राजदूत के रूप में मैक्यावली 24 बार फ्रांस, रोम, जर्मनी के दरबारों में गया और व्यावहारिक राजनीति का ज्ञान प्राप्त किया| इस दौरान मैक्यावली को जूलियस द्वितीय जो पुनर्जागरण के सक्रिय पॉप थे, जर्मनी के राजा मैक्स मिलियन, फ्रांस के राजा लुई और सीजर बॉर्जिया, रॉड्रिगो बॉर्जिया के अवैध पुत्र पॉप अलेक्जेंडर बॉर्जिया आदि से मुलाकात का मौका मिला, जिनसे मैक्यावली प्रभावित हुए|
मैक्यावली को इतिहास के अध्ययन में गहरी रुचि थी|
1512 में फ्लोरेंस में मैडिची राजतंत्र या कुलीनतंत्र की स्थापना के बाद मैक्यावली को अपना पद छोड़ कर जेल जाना पड़ा| जेल से रिहा होने के बाद निर्वासित जीवन गरीबी एवं जंगली लोगों के साथ व्यतीत हुआ|
अपने ग्रामीण आवास ‘सेनको सियानो’ में अनेक विद्वानों का साहित्य पढ़ा तथा उनका राजनीतिक विश्लेषण भी किया| इसी समय उसने अपने ग्रंथों की भी रचना की|
मेडिची शासक लोरेंजो द्वितीय के शासन काल में मैक्यावली को फ्लोरेंस का इतिहास लिखने का काम दिया गया| ऐसा इसलिए किया गया कि मैक्यावली राज्य के विरुद्ध कोई विरोधी गतिविधि ना करें, क्योंकि मेडिची शासक मैक्यावली के इस कथन से परिचित थे कि “खाली बैठा राजनीतिज्ञ एक तिमीगिल की भांति, पानी के जहाज को डुबाने के मनसूबे बनाता रहता है, यदि उसे खेलने के लिए कोई खाली बर्तन नहीं दिया जाता|”
1526 ईस्वी में मेडिसी शासकों ने मैकियावेली को ‘सुपरिंटेंडेंट ऑफ द वॉल्स’ का सचिव बना दिया|
शेष जीवनकाल मैक्यावली ने लेखन कार्य में व्यतीत किया|
मैक्यावली अपने राजनीतिक जीवन में स्वयं एक विफल व्यक्ति सिद्ध हुआ था|
22 जून 1527 ईस्वी को मैक्यावली की मृत्यु हो गई|
मैकियावेली की कब्र पर लिखा हुआ है कि “कोई भी शब्द इस महान व्यक्ति की बराबरी नहीं कर सकते|”
मैक्यावली की रचनाएं-
The Art Of War (1521 ई.)
The History of Florence (1525 ई.)
Discourses On Livy (1531 ई.) इसका पूरा नाम- ‘Discourses on the first ten books of Titus Livias’
द प्रिंस (The Prince) 1513 में लिखी तथा 1532 में प्रकाशन हुआ (मृत्यु के बाद)
The Golden Anes
बेल-फागेर नामक नाटक
Note- मैकियावेली ने 1513 में The Prince, 1516 में Discourses On Livyऔर 1521 में The Art Of War लिख ली थी, परंतु ये तीनों उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई थी|
The Art Of War- यह युद्ध कला पर लिखी एक उत्कृष्ट रचना है|
The history of Florence-
इसमें इटली के अतीत व वर्तमान इतिहास का वर्णन है| इस पुस्तक के अध्ययन से पता चलता है कि मैक्यावली को प्राचीन रोमन साम्राज्य पर गर्व था तथा इटली के विभिन्न स्वायत्त प्रदेशों की परस्पर फूट व कलह का उसे बहुत खेद था|
हिस्ट्री आफ फ्लोरेंस में मैकियावेली ने समाज में टकराव का कारण जनता और कुलीन शासको के बीच टकराव को बताया है| कार्ल मार्क्स ने इस रचना को महान बताया है क्योंकि इसमें पूंजीपति और गरीबों के बीच संघर्ष तथा गरीबों की तरफदारी से मानव खुशी संभव बताई गई है|
The Prince-
मैक्यावली के राजनीतिक विचारों के संदर्भ में ‘द प्रिंस’ व ‘डिसकोर्सेज ऑन लिवि’ पुस्तक महत्वपूर्ण है|
द प्रिंस में कुल 26 अध्याय, तीन भाग (प्रथम राजतंत्र, द्वितीय किराए की सेना, तृतीय राजदर्शन की व्याख्या), राजतंत्र के बारे में वर्णन
प्रमुख पात्र- सीजर बारजिया
द प्रिंस का इटावली भाषा में शीर्षक- इल प्रिंसिप
द प्रिंस में मैक्यावली ने सशक्त व निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया है|
‘द प्रिंस’ में मैक्यावली ने इटली की पतनशील व्यवस्था का विवरण दिया है तथा व्यवस्था की स्थापना के लिए निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया है|
जब मैक्यावली राजदूत के रूप में कार्य कर रहा था, उसी समय 1502 में इनकी मुलाकात फ्रांस के ड्यूक ऑफ सीजर बारजिया से हुई |
बारजिया की प्रेरणा से ही The prince की रचना मैक्यावली ने की|
The prince में बारजिया को आदर्श राजा के रूप में चित्रित किया गया है|
इसमें मैक्यावली ने राज्य की सुरक्षा व एकता पर जोर दिया है|
यह मैक्यावली की प्रसिद्ध व महान कृति है| इसमें मैक्यावली आदर्श शासक बारजिया को राज्य की स्थापना कैसे होगी के बारे में बताता है|
अर्थात इसमें शासन कला/ राज्य कला का वर्णन है|
ग्राम्शी “द प्रिंस के बारे में मूल बात यह है कि यह एक व्यवस्थित ही नहीं बल्कि जीवित रचना है, जिसमें राजनीतिक विचारधारा और राजनीतिक विज्ञान ‘मिथक’ (myth) का नाटकीय रूप धारण करते हैं|”
राजतंत्र के लिए मैक्यावली ‘परतंत्र राज्य’ शब्द का प्रयोग करता है तथा परतंत्र राज्य के लोग शक्ति व दंड के भय से कानूनों का पालन करते हैं|
डिसकोर्सेज ऑन लिवि-
इसमें मैक्यावली गणतंत्र सरकार का पक्ष लेते हैं| तथा इस पुस्तक में गणतंत्र सरकार, नागरिक अधिकारों, जनता की भागीदारी, लोकतंत्र व स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है|
मैक्यावली को चुनाव में बड़ी आस्था थी, वे कहते हैं कि प्रिंस के मुकाबले मजिस्ट्रेटटो के चुनाव में जनता कम गलती करती है|
डिसकोर्सेज ऑन लिवि पुस्तक में मैक्यावली आजादी व गणतंत्र पर बल देता है|
गणतंत्र राज्य के लिए मैक्यावली स्वतंत्र राज्य शब्द का प्रयोग करते हैं| स्वतंत्र राज्य में लोग सद्गुणी होते हैं तथा वे स्वेच्छा से कानूनों का पालन करते हैं|
डिसकोर्सेज में मैक्यावली कहता है कि “जनता की आवाज ईश्वर की आवाज होती है| जनता का शासन (गणतंत्र), प्रिंस (राजतंत्र) के शासन से अधिक उपयुक्त होता है|”
मैक्यावली के मत में आदर्श गणतंत्र रोमन साम्राज्य था|
Note-
इन दोनों रचनाओं का लक्ष्य ‘शक्तिशाली राज्य को स्थायी कैसे बनाए रखा जाए’ है| इन दोनों रचनाओं में मैक्यावली का संपूर्ण राजदर्शन मिलता है| (द प्रिंस+ डिसकोर्सेज ऑन लिवि)
द प्रिंस व डिसकोर्सेज, इन दोनों कृतियों को मैक्यावली ने 1513 में लिखना शुरू किया था|
प्रिंस 1513 में पूरी हो गई थी|
द प्रिंस लोरेंजो द मेडिसी को संबोधित की गई थी|
इन दोनों कृतियों में मैकियावेली ने यह सुझाव दिया कि किसी देश के लिए उपयुक्त शासन प्रणाली का चयन करते समय वहां के लोगों के चरित्र को ध्यान में रखना चाहिए|
डिसकोर्सेज ऑन लिवी मैं मैक्यावली ने यह मान्यता रखी कि “जिस देश के लोग सच्चरित्र हो, उनके लिए गणतंत्र उपयुक्त होगा क्योंकि वही सर्वोत्तम शासन प्रणाली है| परंतु जिस देश के लोग नितांत स्वार्थी, लालची और धूर्त हो, उन्हें वश में रखने के लिए राजतंत्र का सहारा लेना चाहिए| अर्थात सिद्धांत: मैकियावेली गणतंत्र शासन प्रणाली को सर्वोत्तम मानता है|
मैक्यावली ने अध्ययन पद्धति में अनुभववाद और इतिहास का समन्वय किया है| अतः मैक्यावली की अध्ययन पद्धति को ‘अनुभूतिप्रधान ऐतिहासिक ‘अध्ययन पद्धति कहते हैं| इसके साथ ही इनकी अध्ययन पद्धति निरीक्षणात्मक या अवलोकनात्मक भी है|
प्रोफेसर डेनिंग तथा सेबाइन इसकी अध्ययन पद्धति को ऐतिहासिक नहीं मानते हैं|
डेनिंग “मैक्यावली की पद्धति देखने में जितनी ऐतिहासिक लगती है, यथार्थ रूप में उतनी नहीं है| उसके पर्यवेक्षण अधिकतर ऐतिहासिक न होकर अपने समय के थे|”
सेबाइन- सेबाइन के अनुसार मैक्यावली की अध्ययन पद्धति पर्यवेक्षणात्मक थी|
मैक्यावली : अपने युग का शिशु-
मैक्यावली के चिंतन और उसके दर्शन पर उसकी युगीन परिस्थितियों का बहुत अधिक प्रभाव था| इसलिए डेनिंग ने लिखा है कि “यह प्रतिभा- संपन्न फ्लोरेंस निवासी वास्तविक अर्थ में अपने काल का शिशु था|”
सेबाइन ने मैक्यावली को ‘युग परिवर्तन का शिशु’ कहा है|
डब्लू डी जॉन्स “मैक्यावली अपने युग का श्रेष्ठ निचोड़ है|” “मैक्यावली पुनर्जागरण का शिशु था|”
मैक्यावली के प्रत्येक विचार अथवा सिद्धांतों में हमें इटली की तत्कालीन परिस्थितियों की स्पष्ट झलक दिखाई देती है|
मैक्यावली के चिंतन पर निम्न प्रभाव पड़े हैं, जिनके कारण अपने समय का शिशु कहलाया-
पुनर्जागरण (रेनेसा) या ज्ञान का पुनरुत्थान-
पुनर्जागरण यूरोप का एक सांस्कृतिक आंदोलन था, जो 14वी शताब्दी से इटली में शुरू हुआ और बाद में फ्रांस, स्पेन, जर्मनी और उत्तरी यूरोप तक फैल गया|
पुनर्जागरण ने धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया| पुनर्जागरण के कारण यूरोप के इतिहास में अंधकार युग (Dark age) का अंत हो गया|
मैक्यावली के समय यूरोप में शक्ति, ज्ञान के पुनरुत्थान (पुनर्जागरण) तथा धार्मिक सुधारों की शुरुआत हो चुकी थी| इनकी शुरुआत इटली से हुई थी तथा 15 वीं सर्दी में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा|
मैक्यावली का फ्लोरेंस उस समय पुनरुत्थान का प्रधान नगर और इटली की संस्कृति का माना हुआ केंद्र था|
पुनर्जागरण के काल में साहित्य, कला, दर्शन, राजनीति एवं विज्ञान के क्षेत्र में मध्ययुग के आदर्शों का अंत हो रहा था एवं यूनान तथा रोम के प्राचीन आदर्शों में लोगों की आस्था बढ़ रही थी| राजनीति क्षेत्र में सामंतवाद का अंत होकर राष्ट्रीय राज्य की स्थापना हो रही थी तथा राजनीतिक क्षेत्र में धर्म और नैतिकता, चर्च और बाइबिलवाद के प्रभाव को समाप्त किया जा रहा था| धार्मिक सत्ता तथा नैतिकता की जगह बुद्धि, विवेक, तार्किकता ने ग्रहण कर ली थी|
पुनर्जागरण से राजनीति में मानववाद को बढ़ावा मिला|
मैक्यावली ने राजनीति को तत्वमीमांसा और धर्ममीमांसा के प्रतिमानो से मुक्त करके ऐतिहासिक एवं यथार्थवादी आधार प्रदान किया|
लॉस्की “संपूर्ण पुनर्जागरण मैक्यावली में ही है|”
Note- एच जी वेल्स ने 1910 में न्यू मैक्यावली उपन्यास लिखा है|
पुनरुत्थान का मैक्यावली के चिंतन पर निम्न प्रभाव पड़े-
व्यावहारिकता पर बल देते हुए यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाया|
चर्च और धर्म पर कठोर प्रहार किया और घोषित किया कि मानव स्वयं अपने श्रेष्ठ जीवन का निर्माता है| मैक्यावली कहता है कि “मानव स्वयं ही अपने जीवन का निर्माता है, यह विश्व विकासशील है और इसमें उन्हीं का अस्तित्व रहता है जो अस्तित्व के लिए संघर्ष करते हैं|”
राजनीति को धार्मिकता, नैतिकता, आचार-शास्त्र आदि से पृथक रखा|
मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करता है तथा उसे अपने जीवन तथा धन की सुरक्षा के लिए राजकीय संरक्षण प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार है|
राजतंत्र की पुनर्स्थापना-
पुनरुत्थान व मैक्यावली के समय यूरोप में राजनीतिक परिवर्तन भी हुए| इनके समय सामंतशाही व्यवस्था को समाप्त कर निरकुंश राजतंत्रों की स्थापना हुई|
इंग्लैंड में हेनरी सप्तम, फ्रांस में लुई एकादश, चार्ल्स अष्टम व लुई द्वादश ने, स्पेन में फर्डिनेंड ने निरंकुश राजतंत्र की स्थापना कर ली थी|
जिसका प्रभाव ‘द प्रिंस’ में दिखता है| इस रचना में निरकुंश तथा शक्तिशाली राजतंत्र का समर्थन किया गया है|
इटली का विभाजन-
मैक्यावली के समय इटली पांच राज्यों में बटा हुआ था|
नेपल्स राज्य
मिलान राज्य
रोमन चर्च का क्षेत्र
वेनिस गणराज्य
फ्लोरेंस गणराज्य
इटली के इन राज्यों की राजनीति एक दूसरे से मिलती-जुलती थी तथा प्राचीन नगर राज्यों से भिन्न थी, इसी कारण मैक्यावली ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ फ्लोरेंस’ में कहा है कि “तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में फ्लोरेंस का इतिहास अत्यंत मूल्यवान प्रमाणित हो सकता है|”
ये पांचो राज्य आपस में लड़ते-झगड़ते थे, इस वजह से इटली बड़ा ही दुर्बल राज्य बन गया, जिस पर फ्रांस और स्पेन हमेशा आक्रमण करने की ताक में रहते थे|
इस घटना से प्रभावित होकर मैक्यावली ने इटली को एकता के सूत्र में बांधने के लिए शक्तिशाली व निरकुंश राजतंत्र की स्थापना की बात ‘द प्रिंस’ पुस्तक में की|
इसके अलावा इटलीवासी भी दो गुटों में बटे हुए थे-
गिब्बेलींस- यह गुट राजा का समर्थक था|
ग्युल्फस- यह गुट पोप का समर्थक था
इटालियन समाज की दुर्दशा-
मैक्यावली के समय इटालियन समाज में नीति-परायणता, ईमानदारी और देशभक्ति का अभाव था| स्वयं पॉप का चरित्र अपवित्र हो चुका था|
इससे प्रभावित होकर मैक्यावली ने पोप को राज्य के अधीन करने पर बल दिया| शक्तिशाली राष्ट्रीय सेना की आवश्यकता महसूस की|
एक ऐसी शक्तिशाली व निरकुंश सरकार की स्थापना की बात की, जो देश को सबल व एक बनाने के लिए, शांति स्थापित करने के लिए, उचित-अनुचित सभी प्रकार के साधन अपना सकती है|
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि मैक्यावली अपने युग का शिशु था|
मैक्यावली के मानव स्वभाव संबंधी विचार-
मैक्यावली मानव स्वभाव के संबंध में सार्वभौमिक अहमवाद की अवधारणा का प्रतिपादन करता है|
मैक्यावली मानवीय स्वभाव का एक पक्षीय व्यक्तिगत निराशावादी चित्रण प्रस्तुत करता है, तथा मानव स्वभाव संबंधी मैक्यावली की धारणा इटली निवासियों तथा राजनीतिज्ञों के व्यवहारों के पर्यवेक्षण पर आधारित है|
प्रिंस के 17 वे अध्याय में मैक्यावली लिखता है कि “सामान्यतः मनुष्यों के बारे में यह कहा जा सकता है, कि वे कृतघ्न, चलायमान, मिथ्यावादी, डरपोक और स्वार्थलिप्सु होते हैं| वे तभी तक आपके बने रहते हैं जब तक की सफलता आपके पास है| वे तभी तक आपके लिए अपना रक्त, संपत्ति, जीवन आदि का बलिदान करने के लिए प्रस्तुत रहेंगे, जब तक इसकी आवश्यकता नहीं है| मनुष्य तब तक किसी से प्रेम करता है, जब तक की उनका स्वार्थ सिद्ध होता है|”
मैक्यावली के अनुसार नएपन की इच्छा, डर और प्रेम मानवीय व्यवहार तय करते हैं|
मैक्यावली का मानना था कि मानव प्रकृति एक जैसी रहती है, जबकि इतिहास विकास और पतन के बीच झूलता रहता है|
जहां प्लेटो व अरस्तु की धारणा है कि शिक्षा के द्वारा मानव को सुधारा व प्रशिक्षित किया जा सकता है जबकि मैक्यावली का मानना है कि व्यक्ति को सुधारा नहीं जा सकता|
मैक्यावली के मत में ‘मानव मस्तिष्क भूतकाल की पूजा करता है, वर्तमान की आलोचना करता है और भविष्य की इच्छा करता है|’
प्रिंस में मैक्यावली लिखता है कि “लोग न केवल डरपोक और अज्ञानी होते हैं, वरण स्वभाव से दुराचारी होते हैं, वे आवश्यकता पड़ने पर ही सच्चरित्र दिखाई पड़ते हैं| लोग अपनी वासनाओं के दास और प्रथम श्रेणी के स्वार्थी होते है|”
मैक्यावली “मनुष्य स्वभाव से ईर्ष्यालु होते हैं और दूसरों को समृद्ध होते नहीं देख सकते|”
मैक्यावली “मनुष्य अपनी इच्छाओं की अपरिमितता की वजह से अपराध कर बैठते हैं|”
इस प्रकार मैक्यावली के अनुसार मनुष्य का स्वभाव निम्न है-
मनुष्य जन्म से बुरा होता है|
मानव प्रकृति से घोर स्वार्थी, विजयाकांक्षी, आलसी, जिम्मेदारियों से कतराने वाला कायर एवं दुष्ट होता है|
मानव दुर्बलता, मूर्खता, दुष्टता का समिश्रण है|
मनुष्य की स्वार्थ भावना और अहंकार उसके सारे क्रियाकलापों का मूल है|
मनुष्य सद्गुण तथा परोपकार जैसी बातों से अपरिचित है|
मनुष्य एक पशु के समान है, जिसमें अंतर्निहित अच्छाई नाममात्र की भी नहीं है|
भय, शक्ति, अभिमान, स्वार्थ ही उसकी प्रेरक शक्तियां हैं|
मनुष्य व्यवहार में धोखेबाज और मन से अस्थिर है|
मनुष्य को केवल धन से प्रेम होता है प्रत्येक व्यक्ति उस दिन का इंतजार करता है जब बाप मरता है और बैल बंटते हैं| मैक्यावली इस संबंध में कहता है कि “मनुष्य पिता की मृत्यु का दुख आसानी से भूल जाता है पर पित्र धन की हानि नहीं भूलते|”
मैक्यावली के मत में मानव नैतिक तर्क के बजाय जुनून के अनुसार कार्य करता है| ऐसे चार जुनून है, जो मानव व्यवहार के नियंत्रित करते हैं-
प्रेम (Love)
घृणा (Hatred)
भय (Fear)
तिरस्कार या अवमानना (Contempt)
मैक्यावली के मत में प्रिंस को प्रेम व भय को तो बढ़ावा देना चाहिए तथा घृणा व अवमानना से बचना चाहिए|
मानव स्वभाव की इस धारणा के आधार पर मैक्यावली कहता है कि एक राजनीतिज्ञ को इस स्वार्थ भावना को ध्यान में रखकर एक मनुष्य की दूसरे मनुष्य से रक्षा करनी चाहिए|
मैक्यावली के अनुसार प्रेम और भय दो विशेष शक्तियां हैं, जिससे मनुष्य से काम निकाला जा सकता है या मनुष्य को वश में किया जा सकता है| जो शासक प्रेम करेगा उसका दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा तथा जो शासक भयंकर (भय पैदा करने वाला) होगा जनता उसकी आज्ञा तुरंत मानेगी| किंतु मैक्यावली के अनुसार शासक द्वारा भय का सहारा लेना सर्वश्रेष्ठ है|
सफल शासक को संपत्ति और जीवन की सुरक्षा की ओर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए|
मैक्यावली का शासक भी एक मानव है जो इन सब दुर्गुणों से युक्त है अतः सच्चा शासक वही है जो शक्ति, धोखा, और पक्षपात लेकर चले तथा साथ ही लोमड़ी की तरह चालाक और शेर की तरह शक्तिशाली हो|
डिसकोर्सेज में भी मानव स्वभाव के इस तरह के विचार मैक्यावली ने व्यक्त किए हैं|
आलोचना-
मैक्यावली ने मानव स्वभाव के एक पक्ष का ही वर्णन किया है, जबकि मानव में सदगुण भी पाए जाते हैं|
मैक्यावली के धर्म और नैतिकता संबंधी विचार-
मैक्यावली ने राजनीति को धर्म एवं नैतिकता से पृथक किया तथा राजनीति को धर्म व नैतिकता से पृथक करने वाले सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले मैक्यावली प्रथम विचारक है| इसलिए मैक्यावली को प्रथम यथार्थवादी भी कहा जाता है|
गेटेल “राजनीतिक क्षेत्र में मैक्यावली यथार्थवादी था| उसका विश्वास था कि राज्य का अस्तित्व स्वयं अपने लिए होना चाहिए|”
मैक्यावली ने पूर्ण सत्तावाद का समर्थन किया|
इस मामले में वह अरस्तु के निकट है|
मैक्यावली “हम इटालियन, रोम के चर्च और उसके पादरियों के प्रति इसलिए अनुग्रहित है कि उन्होंने हमें अधार्मिक और बुरा बनाया है, लेकिन हम पर उनका इससे भी बड़ा एक कर्जा है और जो हमारी बर्बादी का कारण बनेगा और वह यह है कि चर्च ने हमारे देश को आज भी विभाजित रखा है|“
मैक्यावली के मत में राजनीति अपने अंतर्निहित नियमों से संचालित होती है| उसे समझने के लिए मानव प्रकृति का विश्लेषण जरूरी है|
मैक्यावली को राजनीतिक विश्लेषण में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग का प्रवर्तक माना जाता|
विलियम टी ब्लूम ने अपनी कृति ‘Theories of Political System : Classics of Political Thought and Modern Political Analysis’ में मैक्यावली को आधुनिक व्यवहारवाद का अग्रदूत माना है|
मैक्यावली ने नैतिकता को दो भागों में बांटा है-
व्यक्तिगत नैतिकता
जन नैतिकता
व्यक्तिगत नैतिकता-
इसमें शासक के दृष्टिकोण और मापदंड को रखा गया है| मैक्यावली के अनुसार शासक नैतिकता के किसी बंधन में नहीं बंधा है| राजा को तो राज्य की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए साधन तो हमेशा आदरणीय माने जाएंगे| अर्थात शासक साध्य की प्राप्ति के लिए नैतिक व अनैतिक साधनों का प्रयोग कर सकता है| राजसत्ता को बनाए रखने के लिए शासक साम, दाम, दंड, भेद, बेईमानी, हत्या, प्रवचना आडंबर आदि किसी भी उपाय का प्रयोग कर सकता है|
जननैतिकता या सार्वजनिक नैतिकता-
जनता की नैतिकता यह है कि वह राज्य की अज्ञाओ का पालन करें| आज्ञा पालन में ही संपूर्ण जनता का कल्याण है|
मैक्यावली के अनुसार पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, लोक-परलोक, अच्छा-बुरा, शत्रु-मित्र आदि के विचार डरपोक मनुष्य के लिए है, राजा को इनका दास नहीं होना चाहिए|
मैक्यावली के अनुसार राजा का प्रमुख कार्य राज्य की सुरक्षा, जीवन की सुरक्षा व कल्याण है|
मैक्यावली डिसकोर्सेज में लिखता है कि “मैं विश्वास करता हूं कि जब जीवन संकट में हो तो राजाओं और गणराज्यों को सुरक्षा के लिए विश्वासघात तथा कृतघ्नता का प्रदर्शन करना चाहिए|”
मैक्यावली के अनुसार राजा को नैतिकता का दिखावा करना चाहिए, लेकिन नैतिक होना जरूरी नहीं है| राजा इस तरह का आचरण करें कि जनता को लगे कि राजा तो विश्वास, अनुकंपा, सच्चरित्रता, दयालुता और धार्मिकता की साकार प्रतिमा है|
मैक्यावली लिखता है कि “न तो कोई प्राकृतिक कानून है और न ही सार्वभौम रूप में स्वीकृत कोई अधिकार| राजनीति को नैतिकता से पूर्णतया पृथक करना चाहिए| साध्य ही साधनों का औचित्य है|”
उपरोक्त वर्णन का यह अर्थ नहीं है कि मैक्यावली नैतिकता का विरोधी था वह तो केवल राजनीति से नैतिकता को अलग करता है| जैसे डिसकोर्सेज में कहा है कि “जो राजा और गणराज्य अपने को भ्रष्टाचार से मुक्त रखना चाहते हैं, उन्हें सर्वप्रथम समस्त धार्मिक संस्कारों की विशुद्धता को सुरक्षित रखना चाहिए और उनके प्रति उचित श्रद्धाभाव दर्शाना चाहिए, क्योंकि धर्म की हानी होते हुए देखने से बढ़कर किसी देश के विनाश का और कोई लक्षण नहीं है|”
इस संबंध में सेबाइन का कहना है कि “वह अनैतिक नहीं नैतिकता का विरोधी था, और अधार्मिक नहीं धर्मनिरपेक्ष था|”
डेनिंग के शब्दों में “मैक्यावली राजनीति में अनैतिक नहीं है, वरन वह धर्म और नैतिकता से उदासीन है|”
फ्रेडरिक पोलक ने मैक्यावली के विचारों को वैज्ञानिक तटस्थता की संज्ञा दी है|
मैक्सी ने लिखा है कि “राजनीति का नैतिकता से विच्छेद और सामयिकता के नियम को राजनीति की कला का निर्देशक तत्व बनाना मैक्यावली का अनगढपन था, लेकिन यह राजनीति के प्रति एक अत्यंत मूल्यवान सेवा थी|”
मैक्यावली चर्च व पॉप का विरोधी था, धर्म का विरोधी नहीं था| वह धर्म को राजसत्ता के सफल संचालन का एक आवश्यक साधन मानता है| राज्य साध्य है, धर्म उसका साधन है|
धर्म के प्रति मैक्यावली का रुख उपयोगितावादी था| उनका मानना था कि लोग धर्म के कारण नियंत्रण में रहते हैं| लोग राजा के बजाय देवताओं से ज्यादा डरते हैं|
मैक्यावली “जिस देश के लोग ईश्वर से नहीं डरते, वह विनाश के पथ पर अग्रसर होता है|”
मैक्यावली “जहां धर्म होता है, वहां सेना को अनुशासन में रखना बहुत आसान होता है, इसके विपरीत जहां सेना तो होती है, पर धर्म नहीं होता वहां अनुशासन लागू करना कठिन हो जाता है|”
मैक्यावली द्वारा राजनीति से नैतिकता के पृथक्करण के निम्न कारण थे-
राज्य के हित को सब मनुष्यों के हित से ऊपर समझता था|
मैक्यावली का दृष्टिकोण यथार्थवादी था|
शक्ति को असाधारण महत्व दिया था|
आलोचना में डॉ. मुर्रे ने लिखा है कि “मैक्यावली स्पष्टदर्शी थे पर दूरदर्शी नहीं थे| उन्होंने चालाकी को राजनीति की कला मान लेने की भूल की है|”
मैक्यावली के राज्य संबंधी विचार-
आधुनिक संदर्भ में राज्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मैक्यावली ने किया था| मैक्यावली ने राष्ट्र-राज्य की अवधारणा दी|
मैक्यावली ने राज्य के लिए Stato शब्द का प्रयोग किया है|
मैक्यावली ने राजनीति को शक्ति के उपार्जन, परिरक्षण और प्रसार की विधि माना है|
गेटेल ने अपनी कृति हिस्ट्री ऑफ़ पोलिटिकल थॉट 1953 में लिखा है कि “मैकियावेली को राजनीतिक दर्शन में उतनी रुचि नहीं थी, जितनी व्यावहारिक नीतियों में थी| उसने राज्य की मूल प्रकृति पर उतना ध्यान नहीं दिया जितना शासन के संयंत्र और उसे संचालित करने वाली शक्तियों पर दिया है|”
प्रिंस में मैक्यावली ने लिखा है कि “शासक का कार्य प्रजा को इस ढंग से नियंत्रित करना है कि कोई तुम्हें हानि नहीं पहुंचा पाए और ऐसा कोई कारण भी ना हो जिससे वह तुम्हें हानि पहुंचाना चाहे|”
मैक्यावली के मत में राजनीति का लक्ष्य सार्वजनिक उपयोगिता है, अर्थात समुदाय की सुरक्षा और कल्याण|
मैक्यावली के मत में राजनीति का उद्देश्य एक सुदृढ़ शासन स्थापित करना है|
मैक्यावली “स्वतंत्र सहमति राज्य की आधारशिला और छल कपट तथा हिंसा कुछ असाधारण उपचार है|”
मैकियावेली “मनुष्य एक राजनीतिक जीव है और गैर राजनीतिक उद्देश्य और मूल्यों की घोषणा करना भी धोखा और धूतर्ता है|”
राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति-
मैक्यावली राज्य को कृत्रिम संस्था मानता है, जिसे मनुष्य ने अपनी असुविधा को दूर करने के लिए बनाया है|
राज्य की उत्पत्ति का कारण मनुष्य का स्वार्थ है| असभ्य जातियों का संगठन करने के लिए, मनुष्य की धृष्टता और स्वार्थपरता को सीमित एवं नियंत्रित करने के लिए शक्तिशाली व निरकुंश राज्य की उत्पत्ति हुई है|
राज्य की उत्पत्ति के विषय में मैक्यावली की मान्यता है कि पहली सरकार तो शायद संयोग से बनी होगी| मनुष्य आरंभ में बिखरी हुई स्थिति में जीते होंगे, किंतु जैसे ही उनकी जनसंख्या बढ़ी जाने-अनजाने में उन्होंने अपनी आत्मरक्षा के लिए शक्तिशाली के सामने समर्पण कर दिया होगा| बाद में शक्तिशाली की आज्ञाकारिता की लोगो को एक आदत बन गई होगी| इस प्रकार तथाकथित न्याय और अपराधिक कानून का उदय सामान्य व्यक्तियों द्वारा शक्तिशाली मनुष्य के सामने समर्पण की मजबूरी का एक पहलू मात्र है|
अरस्तु की भांति मैक्यावली भी राज्य को अन्य संस्थाओं से उच्च मानता है| सभी संस्थाएं राज्य के प्रति उत्तरदायी हैं, जबकि राज्य किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है| मनुष्य का सर्वोच्च कल्याण राज्य में ही हो सकता है, अतः व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपने को राज्य की सेवा में सौंप दें|
मैक्यावली के अनुसार राज्य परिवर्तनशील है और उसके उत्थान एवं पतन का लंबा इतिहास है|
राज्य के प्रकार-
मैक्यावली राज्यों को दो भागों में बांटता है- (1) स्वस्थ राज्य (2) अस्वस्थ राज्य
स्वस्थ राज्य-
यह राज्य युद्धशील होता है और निरंतर संघर्ष में लगा रहता है| यह तेजस्वी और गतिशील होता है यह राज्य एकता का प्रतीक होता है, क्योंकि छोटे-मोटे स्वार्थों के कारण इसके निवासी आपस में लड़ते-झगड़ते नहीं हैं|
अस्वस्थ राज्य
यह राज्य शिथिल होता है, अर्थात युद्धरत नहीं होता है, जिसमें व्यक्ति छोटे-मोटे स्वार्थों के लिए संघर्षरत रहते है|
साम्राज्यवाद या राज्य का विस्तार (विवर्धन का सिद्धांत)-
मैक्यावली के अनुसार राज्य चाहे गणतंत्रात्मक हो या राजतंत्रात्मक उसे सदैव प्रसरणशील होना चाहिए| यदि कोई राज्य विस्तार नहीं करेगा तो उसका पतन हो जाएगा|
राज्य और राजा को नई भूमि पर अधिकार करना चाहिए तथा उपनिवेश बसाने चाहिए|
विस्तार के लिए समुचित सैन्य संगठन और साम, दाम, दंड, भेद आदि कूटनीतिक शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए|
मैक्यावली की साम्राज्यवाद की धारणा प्लेटो के विपरीत है| जैसे फोस्टर के शब्दों में “प्लेटो के लिए राज्य विस्तार की भावना जहां राज्य के रोग का लक्षण है, वहां मैक्यावली के लिए राज्य विस्तार राज्य के स्वास्थ्य का लक्षण है|”
सरकार के रूप-
आदर्श शासन की स्थापना के उद्देश्य से मैक्यावली ने शासनतंत्रों अथवा सरकारों का वर्गीकरण किया है
अरस्तु का अनुसरण करते हुए सरकारों को शुद्ध और विकृत श्रेणियों में बांटकर सरकार के कुल 6 रूप बताए हैं|
मैक्यावली के मत में सर्वोत्तम आदर्श राज्य गणतंत्र (Republic) है|
अरस्तु, पॉलीबियस और सिसरो की तरह मैक्यावली ने भी मिश्रित सरकार को सर्वश्रेष्ठ माना है| मिश्रित सरकार की श्रेष्ठता का परिणाम रोम सरकार को मैक्यावली ने बताया|
मैक्यावली ने केवल दो ही सरकारों का विस्तार से वर्णन किया है|
राजतंत्र का वर्णन प्रिंस में
गणतंत्र का वर्णन डिसकोर्सेज में
राजतंत्र- राजतंत्र को मैक्यावली ने दो भागों में बांटा है-
पैतृक राजतंत्र (2) कृत्रिम राजतंत्र
पैतृक राजतंत्र- यह वह राजतंत्र है, जिसमें शासक वंश के आधार पर बनता है|
कृत्रिम राजतंत्र- यह वह राजतंत्र है, जहां दूसरे राज्य को परास्त करके शासक बनता है|
गणतंत्र-
डेनिंग “अरस्तु की भांति मैक्यावली का झुकाव गणराज्य व्यवस्था की ओर है, इस संबंध में उसके विचार यूनानीयों से मिलते हैं|”
मैक्यावली के अनुसार गणतंत्र शासन वही सफल हो सकता है जहां धन एवं संपत्ति की दृष्टि से लोगों में समानता होती है तथा जनता धर्मपरायण होती है|
मैक्यावली राजतंत्र की अपेक्षा गणतंत्र को उत्कृष्ट मानता है, जिसके निम्न कारण है-
जहां राजतंत्र में एक व्यक्ति या उसका परिवार लाभ उठाता है, वही गणतंत्र में सभी व्यक्तियों को शासन में भाग लेने का अधिकार होता है|
एक राजा की अपेक्षा समग्र रूप से जनता अधिक समझदार होती है|
गणतंत्र शासन में सरकार स्थायी होती है|
विदेशी राज्यों से की गई संधियां गणतंत्र में अधिक स्थायी होती हैं|
राजनीतिक और कानूनी संस्थाओं को बनाए रखने की क्षमता गणतंत्र में ज्यादा होती है|
इन दोनों के अलावा मैक्यावली ने कुलीनतंत्र का कट्टर विरोध किया है, क्योंकि सामान्यतः कुलीनतंत्र में शासक लोग कोई काम नहीं करते हैं वह दूसरे के श्रम की चोरी द्वारा अपना जीवन बिताते हैं|
मैक्यावली के इन तीनों शासन प्रणाली के विचारों के संबंध में सेबाइन ने कहा है कि “मैक्यावली ने गणतंत्र का जहां संभव हो, और राजतंत्र का जहां आवश्यक हो, समर्थन किया है, किंतु कुलीनतंत्र के संबंध में उसकी राय विपरीत है|”
नागरिक सेना या सैनिक शक्ति-
मैक्यावली नागरिकों की शक्तिशाली सेना जनतावाहिनी (People’s militia) के निर्माण पर बल देता है |
मैक्यावली के अनुसार 17 से 40 वर्ष की आयु के बीच के सभी समर्थ नागरिकों को सैनिक शिक्षा दी जानी चाहिए|
मैकियावेली कोंडोटरेर व्यवस्था के आलोचक थे, जिसमें भाड़े के सैनिकों का प्रावधान था| मैक्यावली के मत में भाड़े के सैनिकों पर निर्भर रहना राज्य के लिए खतरनाक है, राज्य के विनाश का कारण है|
संप्रभुता और विधि-
मैक्यावली ने स्पष्ट रूप से संप्रभुता शब्द का प्रयोग कहीं नहीं किया है, किंतु उसने राजा की शक्तियों के बारे में जो वर्णन किया है, उससे संप्रभुता का आभास होता है|
मैक्यावली की संप्रभुता एकात्मक, लौकिक, धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र चेतना से युक्त है|
अंतरराष्ट्रीय मामलों में मैक्यावली सीमित संप्रभुता को स्वीकार करता है|
विधि की भी परिभाषा मैक्यावली ने कहीं भी नहीं दी है| विधि के संबंध में इनका विचार अत्यंत संकुचित है| इनके अनुसार विधि नागरिक है तथा शासक द्वारा निर्मित है| विधि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च है|
मैक्यावली ने प्राकृतिक कानून सिद्धांत और देवी कानून सिद्धांत का खंडन कर सकारात्मक कानून सिद्धांत अर्थात राज्य निर्मित कानून की स्थापना की है|
मैक्यावली ने तर्क दिया है कि “विधि का शासन विवेकशील प्राणी के लिए स्वाभाविक है, परंतु इसे स्थापित करने के लिए शक्ति की जरूरत है|”
सर्व शक्तिशाली विधि-निर्माता या विधायक-
मैक्यावली शक्तिशाली विधायक पर बल देता है, क्योंकि सफल राज्य की स्थापना एक आदमी के द्वारा की जा सकती हैं|
बुद्धिमान विधायक द्वारा बनाए गए कानून नागरिकों के कार्यों को विनियमित व नियंत्रित करते हैं तथा उनमें नागरिकता तथा नैतिक गुणों का विकास और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण भी करते हैं|
विधि निर्माता राज्य के साथ-साथ संपूर्ण समाज का, समाज की नैतिक, धार्मिक और आर्थिक संस्थाओं का निर्माता होता है|
आदर्श राज्य का शासक या आदर्श शासक-
मैक्यावली के अनुसार आदर्श राजा वह है, जो किन्हीं भी उपायों से राज्य की शक्ति, सम्मान और प्रतिष्ठा को बढ़ाता है तथा राज्य का निरंतर विस्तार करता है|
अपने ग्रंथ ‘द प्रिंस’ में उसने आदर्श शासक की निम्न विशेषताएं बताई हैं-
मनुष्य मानवता व पशुता के अंगों से मिलकर बना होता है| मैकियावेली ने यूनानी पौराणिक कथाओं के नराश्व का दृष्टांत दिया, जिसमें शरीर घोड़े का तथा गर्दन पर मनुष्य का सिर होता है, अतः राजा शरीर से शेर की तरह ताकतवर तथा दिमाग से लोमड़ी की तरह धूर्त होना चाहिए| (यूनानी पौराणिक कथाओं के चरित्र- चिरॉन व सेंटॉर)
राजा को अधिकाधिक शक्ति अर्जित करनी चाहिए|
क्रूरतापूर्वक कार्य करने में राजा को कभी संकोच नहीं होना चाहिए|
लोगों की घृणा से बचने के लिए राजा को कभी भी उनकी संपत्ति और उनकी स्त्रियों के सतीत्व को हाथ नहीं लगाना चाहिए|
राजा को प्रतिवर्ष समय-समय पर मनोरंजन के लिए मेले लगाने चाहिए|
युद्ध में प्राप्त माल को प्रजा और सैनिकों में उदारतापूर्वक वितरित कर देना चाहिए|
राजा को सामाजिक रूढ़ियों तथा परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए|
राजा को वाणिज्य, व्यवसाय, कृषि की उन्नति में रुचि लेना चाहिए, किंतु स्वमं इसके चक्कर में ना पड़े|
राजा नवीन राज्य पर अधिकार करे तो वहां के पुराने संविधान में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए|
राजा की अंतर्राष्ट्रीय नीति, शक्ति संतुलन बनाए रखने की होनी चाहिए| राजा पड़ोसी राज्य को आपस में संधि ना करने दें| पड़ोसी राज्यों के आंतरिक मामलों में निरंतर हस्तक्षेप करता रहे| पड़ोसियों को शक्ति तथा प्रलोभन से मित्र बना ले|
राजा जनता में लोकप्रिय होना चाहिए|
राजा को चापलूसो से बचना चाहिए|
भ्रष्टाचार और नागरिक सद्गुण-
मैक्यावली के मत में सभ्यता का मतलब भ्रष्टाचार है|
मैक्यावली कहता है कि शहर में रहने वालों के बजाय ग्रामीण सरल लोगों के बीच काम करना ज्यादा आसान है तथा धूर्त लोगों के बजाय अच्छे लोगों पर गणतंत्र की स्थापना करना ज्यादा आसान है|
मैक्यावली ने अपनी पुस्तक डिसकोर्सेज में बिना मूल्य के धन को भ्रष्टाचार का स्रोत माना है|
मैक्यावली ने धन की तुलना महिला से की है|
मैक्यावली के मत में धनी लोगों के बजाय गरीबों में ज्यादा गुण है, क्योंकि वे सादा जीवन जीते हैं|
मैक्यावली के अनुसार भ्रष्टाचार का अर्थ है- हिंसा, अराजकता, असमानता, शांति और न्याय की कमी, अनुशासन की कमी, बेईमानी, धर्म के प्रति अनादर|
भ्रष्टाचार का सामना असाधारण अधिकारों वाले प्रिंस के द्वारा ही किया जा सकता है|
शासक में नागरिक सद्गुण, ऐसे लड़ाकू गुण हैं, जो बाहरी हमले और आंतरिक विखंडन के खिलाफ राज्य का बचाव करते हैं|
नागरिक सद्गुण साहस, शक्ति व बुद्धि के समन्वय का प्रतीक है|
इतिहास का महत्व-
इतिहास की ओर मैक्यावली का रुख व्यवहारिक था|
मैक्यावली के मत में इतिहास का सावधानी से परीक्षण करने पर भावी बुराइयों के खिलाफ ऐसे उपाय पेश किए जा सकते हैं, जो पिछले बुराइयों पर लागू किए गए थे, साथ ही वर्तमान के आधार पर इन बुराइयों को दूर किया जा सकता है|
अर्थात अतीत के इतिहास को परखने से हमें वर्तमान और भविष्य की समस्याओं की कुंजी मिल सकती है|
गणतंत्र और आजादी का सिद्धांत-
मैक्यावली गणतंत्रीय शासन के प्रशंसक थे, जिसके तहत प्राचीन रोमन लोगों ने अद्वितीय शक्ति और महानता प्राप्त की थी|
डिसकोर्सेज ऑन लिवि पुस्तक में मैक्यावली ने प्राचीन रोम में आजादी के विकास का वर्णन किया है|
मैक्यावली के मत में आजादी शक्तिशाली राज्य के साथ शक्तिशाली व्यक्ति भी पैदा करती है|
मैक्यावली के मत में आजादी को स्वार्थ से खतरा है|
मैक्यावली ने सार्वत्रिक कल्याण को आजादी की पूर्व आवश्यक शर्त माना है|
मैक्यावली के मत में व्यक्तिगत आजादी सार्वजनिक पदों में हिस्सेदारी से मिल सकती है|
हिंसा, बल और बदमाशी तथा सावधानी की आवश्यकता-
मैकियावेली सम्मान और शक्ति को सत्ता पाने का साधन मानता है|
मैक्यावली बल, हिंसा और बदमाशी को सत्ता बनाए रखने तथा शासन चलाने के लिए आवश्यक तो मानता है, लेकिन बल प्रयोग असाधारण स्थिति में ही किया जाए इसका समर्थन करता है|
मैक्यावली के मत में हिंसा या बल के प्रयोग को नियंत्रित तो कर सकते हैं, लेकिन हिंसा के प्रयोग को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता|
मैक्यावली ने सावधानी से निरंकुश हिंसा का प्रयोग करने की सलाह दी है, वरना अस्थिरता पैदा हो जाएगी| बार-बार बल प्रयोग करने से उद्देश्य प्राप्ति बाधित भी होती है|
मैक्यावली “केवल खुल्लम-खुल्ला बल प्रयोग से भी शायद ही कोई व्यक्ति अज्ञात अंधेरे कोनों से निकलकर सत्ता के सिंहासन पर जाकर बैठ सका हो|”
मैक्यावली सत्ता और संपदा प्राप्त करने के लिए शैतानी और धोखाधड़ी को शक्ति की तुलना में अधिक उपयोगी बताता है| अर्थात मैकियावेली शारीरिक बल का प्रयोग सापेक्ष दृष्टि से गौण रूप में ही उचित बतलाता है|
मैकियावेली के शब्दों में “मैं यह बात बिल्कुल सही मानता हूं कि बल और बदमाशी के प्रयोग के बिना मनुष्य शायद ही कभी अपनी नीचता से ऊपर उठ सके| पर भेंटस्वरूप या पैतृक अधिकार से कुछ पा लेने पर उसका आचरण दूसरी प्रकार का हो जाए यह संभव हो सकता है|”
मैक्यावली ने भ्रष्टाचार के निदान और सद्गुण के पुनर्जीवन के लिए हिंसा को एक शॉक थेरेपी माना है|
युद्ध-
मैक्यावली के मत में सरकार को विदेशी मामलों में बल प्रयोग सावधानी से करना चाहिए|
युद्ध राजा को अपने स्रोतों को ध्यान में रखकर करना चाहिए|
आवश्यक युद्ध से बचना एक बड़ी गलती होगी, लेकिन युद्ध को अनावश्यक रूप से लंबा चलाना भी भारी भूल होगी|
परिवर्तन का सिद्धांत और भाग्य (Fortune) एक स्त्री के रूप में तथा सद्गुण (virtue) का किला-
भाग्य को मैक्यावली ने स्त्री के समान बताया है, जिसकी ओर वीर पुरुष आकर्षित होते हैं|
सद्गुण और भाग्य को मैक्यावली ने पुरुष और स्त्री के समान बताया है|
मैक्यावली के अनुसार भाग्य बहादुर लोगों की सहायता करता है, लेकिन भाग्य उन लोगों को नष्ट कर देता है जो अपने हितों की उचित रक्षा नहीं करते हैं|
भाग्य पर नियंत्रण वे ही रख पाते हैं, जिनमें परिवर्तन की क्षमता होती है|
मैक्यावली इतिहास के चक्रीय सिद्धांत में विश्वास रखते हैं, अर्थात उनका मानना है कि परिवर्तन अवश्यम्भावी है, कोई भी व्यवस्था स्थाई नहीं है, चाहे वह गणतंत्र हो या राजतन्त्र|
भाग्य एक स्त्री के समान है, उस पर विजय पाना है तो जबरदस्ती कब्जा करना होगा|
नागरिक सद्गुण वह गुण या कौशल है, जो व्यक्ति को भाग्य के प्रहारों का सामना करने और किसी भी माध्यम से भाग्य पर काबू पाने में सक्षम बनाता है|
भाग्य की तुलना मैक्यावली उस पहाड़ी व जंगली झरने से भी करता है, जो मैदानो में बाढ़ लाता है| भाग्यवादी व्यक्ति हर वर्ष इसे ईश्वरीय प्रकोप मानकर सहते रहते है, जबकि सदगुण वाले कर्मठ व्यक्ति इस पर बांध बनाकर इसे रोक लेते हैं, अर्थात सद्गुणों का किला आपको सफल बनाता है|
सुधारों की आवश्यकता-
मैकियावेली सामयिक परिवर्तनों द्वारा सुधार की आवश्यकता पर विशेष बल देता है|
वह कानूनी परिवर्तनों को सामाजिक विकास का गतिशील तत्व बताता है|
मैक्यावली का कहना है कि रोम का अनुभव यह निष्कर्ष देता है, कि जो लोग एक स्वतंत्र राज्य में उपलब्ध सरकार (चाहे मिश्रित सरकार हो या लोकप्रिय) को सुधारना चाहते हैं, उन्हें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए|
उनके अनुसार परिवर्तन करते समय पुराने ढांचे को बनाए रखना जरूरी है, क्योंकि ढांचा और मूलात्मा दोनों ही बदल जाएंगे तो राज्य का भी विघटन बढ़ेगा और संभवतः राज्य का ही पतन हो जाएगा|
मानवता और परोपकार-
मैक्यावली का मत है कि प्रेम और भय दोनों ही मनुष्य को वश में करने के साधन हैं|
मैकियावेली का मत है कि हिंसा, धोखाधड़ी, हत्या आदि की आवश्यकता और उपयोगिता सदैव रहेगी, लेकिन इनसे जो प्राप्त होता है, वह सीमित होता है|
इनके मत में दया, उदारता, मानवता और परोपकार से भी मनुष्य को वश में किया जा सकता है, तथा इनके प्रयोग से शासन सत्ता को एक अधिक सशक्त आधार मिलता है|
मैकियावेली “ऐसे प्रांतों और शहरों को भी जहां न कोई सेना थी, न युद्ध का साजो-सामान अथवा शक्ति प्रदर्शन का कोई प्रयास था, उन्हें भी मनुष्य ने अपनी उदारता, परोपकार तथा दयाभाव से जीतकर दिखलाया है|”
मैक्यावली सिद्धांत: विश्वसनीय, दयावान, धर्मपरायण और न्यायप्रिय प्रशासक की सराहना करता है, परंतु स्वार्थी और लालची लोगों को वश में करने के लिए वह राजा को भी धूर्त बन जाने की सलाह देता है|
मैक्यावली का मूल्यांकन-
आधुनिक युग के पिता या आधुनिक राजनीतिक चिंतक के रूप में-
मैक्यावली को आधुनिक राजनीति या आधुनिक राजनीतिक चिंतन का जनक कहा जाता है|
राजनीतिक चिंतन के इतिहास में मैक्यावली की प्रसिद्ध कृति प्रिंस को राजनीतिक सिद्धांत की प्रथम आधुनिक कृति माना जाता है, तथा मैक्यावली को पहला आधुनिक विचारक माना जाता है|
मैक्यावली की आधुनिकता का सबसे प्रमुख लक्षण है- ऐतिहासिक विधि का प्रयोग
फ्रांसिस डब्ल्यू कोकर ने ‘रीडिंग्स इन पॉलिटिकल फिलोसोफी’1938 के अंतर्गत लिखा है कि “इस प्रसिद्ध कृति (प्रिंस) को इसलिए आधुनिक कहा जाता है, क्योंकि इसके निष्कर्षों की पुष्टि इतिहास और समकालीन राजनीति के संदर्भों से की गई है|”
विलियम ए डेनिंग ने अपनी कृति ‘हिस्ट्री ऑफ़ पोलिटिकल थ्योरी’ 1923 में लिखा है कि “मैकियावेली की राय में राजनीति विज्ञान की सही विधि थी ऐतिहासिक विधि|”
मैक्यावली से पहले ऐतिहासिक विधि की नींव अरस्तु ने रखी थी, लेकिन अरस्तु व मेकियावेली की ऐतिहासिक विधि में भिन्नता है| जहां अरस्तु ने राजनीति चिंतन में सामाजिक संगठन के आदर्श पर विशेष बल दिया है, अर्थात उसके चिंतन में नीतिशास्त्र की प्रधानता थी, परंतु मैकियावेली ने राजनीति को नीतिशास्त्र से बिल्कुल अलग कर दिया|
मैक्यावली को आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का जनक मानने का दूसरा कारण है- राष्ट्र-राज्य का विचार| इटली के एकीकरण के लिए उन्होंने ‘एक राष्ट्र एक राज्य’ का सिद्धांत दिया|
राज्य शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग मैक्यावली ने किया| सेबाइन के अनुसार “मैक्यावली ने राज्य को वह अर्थ प्रदान किया जो आधुनिक राजनीतिक व्यवहार में राज्य के साथ जुड़ा हुआ है|”
मैक्यावली पहला राजनीतिक है, जिसने मध्य युग के विचारों का खंडन किया तथा आधुनिक युग का श्रीगणेश किया|
डेनिंग- उसे मध्य युग और आधुनिक युग का संबंध-विच्छेद करने वाला प्रथम विचारक मानता है|
प्रोफेसर जॉन्स- मैक्यावली को राजनीतिक सिद्धांतवादी न मानते हुए भी आधुनिक राजनीतिक सिद्धांतों के पिता की संज्ञा से विभूषित करता है|
मैक्यावली को मध्यकाल का अंतिम चिंतक व आधुनिक युग का प्रथम यथार्थवादी कहा जाता है|
हालांकि कुछ विद्वान बोंदा को आधुनिक युग के श्रीगणेश का श्रेय देते हैं, क्योंकि बोंदा ने ही सबसे पहले आधुनिक राष्ट्रों की मूल विशेषता ‘संप्रभुता’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया था, परंतु वास्तव में मैक्यावली ही आधुनिक युग का प्रेणता है क्योंकि उसने सर्वप्रथम व्यावहारिक राजनीति पर जो विचार प्रकट किए, उसका पालन आज भी राजनीतिज्ञों द्वारा किया जा रहा है|
इस विषय में जोंस का कहना है कि बोंदा की अपेक्षा मैक्यावली आधुनिक युग का प्रतिनिधित्व अधिक अच्छी तरह से करता है, केवल इसलिए कि जहां मैक्यावली आधुनिक युग के भवन तक पहुंच गया वहां बोंदा अभी उसकी दहलीज पर ही खड़ा हुआ है|
केटलिन- केटलिन मैक्यावली को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक मानता है|
राजनीति विज्ञान को मैक्यावली की देन-
मैक्यावली पहला विचारक जिसने सर्वप्रथम मध्यकालीन विचारधारा पर प्रहार किया, दैवी कानून का खंडन किया, पोपशाही व उसकी निरकुंशता को चुनौती दी, सामंतवाद का खंडन किया|
राजनीति से धर्म एवं नैतिकता का पृथक्करण मैक्यावली की देन है|
गैटिल के अनुसार “मैक्यावली प्रथम आधुनिक राजनीतिक विचारक था, जिसने प्रभुतासंपन्न, संगठित, धर्मनिरपेक्ष, राष्ट्रीय एवं स्वतंत्र अस्तित्ववादी राज्य की कल्पना की थी|”
मैक्यावली ने एक तरफ तो राज्य को सर्वोच्च बताया और दूसरी और व्यक्ति और जीवन की सुरक्षा के अधिकार की घोषणा की|
मैक्यावली ने अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सीमित प्रभुता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया|
उसने राज्य को साध्य और साधन दोनों माना है|
शक्ति राजनीति का प्रथम एवं सबसे स्पष्ट प्रतिपादक भी मैक्यावली ही था|
प्रोफेसर डनिंग- प्रिंस सबसे पहली रचना है, जिसने मध्ययुगीन चिंतन प्रणाली का परित्याग किया है|
लियो स्ट्रास ने मैकियावली को आधुनिकता की प्रथम लहर का प्रवर्तक बताया है|
लियो स्ट्रास- आधुनिकता की तीन लहरे-
लियो स्ट्रास ने अपने लेख Three waves of Modernity 1975 में आधुनिकता की तीन लहरें बताई है|
लियो स्ट्रास की कृतियां-
Thought on Machivali 1958
History of Political Philosophy 1963
What is Political Philosophy 1957
आधुनिकता की प्रथम लहर-
इसमें उदारवाद (Liberalism) का उदय हुआ|
इसमें प्रकृति के नियंत्रण (Control over Nature) पर बल दिया गया|
मैक्यावली व फ्रांसीसी बेकन इस लहर के प्रवर्तक है|
मुख्य दार्शनिक- हॉब्स
अन्य दार्शनिक- जॉन लॉक, मिल आदि|
आधुनिकता की द्वितीय लहर-
समाजवाद या साम्यवाद (Socialism/ Communism) का उदय
मानव के नियंत्रण (Control over Man) पर बल
प्रवर्तक- J J रूसो
अन्य- कार्ल मार्क्स
आधुनिकता की तृतीय लहर-
फासीवाद (Fascism) का उदय
प्रकृति व मनुष्य दोनों के नियंत्रण पर बल
प्रवर्तक- जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे
मैक्यावली की कमियां या आलोचना-
निम्न कमियां है-
मानव स्वभाव संबंधी धारणा एकांगी और संकीर्ण है|
मैक्यावली ने धर्म और नीतिशास्त्र के प्रति घोर उपेक्षा प्रदर्शित की है|
राज्य संबंधी विचार दोषपूर्ण है|
ऐतिहासिक पद्धति का गलत तरीके प्रयोग किया है| उसने इतिहास का उपयोग पूर्व कल्पित निष्कर्षों की पुष्टि में किया है, इसके प्रणयन में नहीं है|
मैकियावेली के राजनीति शास्त्र के नीतिशास्त्र से पृथक्करण का प्रभाव अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर दुर्भाग्यपूर्ण पड़ा है|
20 वीं सदी में इसका विस्फोटक प्रभाव दो महायुद्ध के रूप में हुआ| हिटलर और मुसोलिनी ने मैक्यावली के ग्रंथों से प्रेरणा लेकर अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मानव जाति का संहार किया|
गेटेल के शब्दों में “मैक्यावली ने सार्वजनिक और निजी नैतिकता के बीच जो दीवार खड़ी कर दी है, वह व्यावहारिक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में आज तक कायम है|”
ऐतिहासिक विधि का प्रयोग करते समय वह वैज्ञानिक पद्धति का सही-सही निर्वाह नहीं कर पाया|
मैक्यावली ने प्रभुसत्ता की अवधारणा प्रस्तुत नहीं की उसने राष्ट्र-राज्य का विचार तो दिया लेकिन राज्य में सर्वोच्च कानूनी शक्ति की आवश्यकता की ओर ध्यान नहीं दिया|
मैक्यावली ने शासक को शक्तिशाली बनाने पर ही ध्यान दिया, किंतु शासक की शक्ति और चरित्र को संयत कैसे रखा जाए इसकी चिंता नहीं कि अर्थात उनके विचार में संविधानवाद का अभाव है|
मैक्यावली का उद्देश्य शासन कला का वर्णन करना था, राज्य के सिद्धांत का निरूपण करना नहीं|
फोस्टर (Master of Political Thought 1941) ने लिखा है कि “मैकियावेलीवाद का सार तत्व केवल यह है कि यह शक्ति के उपार्जन और रक्षा के लिए तकनीकी नियमों की प्रणाली प्रस्तुत करता है| यह जरूरी नहीं कि ऐसी नियमावली नैतिक प्रतिमान के विपरीत ही हो|”
हिटलर, मुसोलिनी के साथ-साथ चर्चिल भी मैकियावेली से प्रभावित थे| चर्चिल ने कहा था कि “सफल राजनीतिक वह है, जो पहले तो भविष्यवाणी कर सके फिर यह सिद्ध कर सके कि वैसा क्यों नहीं हुआ|” यह कथन मैक्यावली से प्रभावित है|
मैक्यावली से संबंधित कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
हेगेल “मैक्यावली महान व वास्तविक प्रतिभाशाली व्यक्ति था, जिसका उद्देश्य राष्ट्र-राज्य की स्थापना था, जो एक सर्वोच्च व महान उद्देश्य था| मैक्यावली Men of genius था|”
गार्नर के अनुसार State शब्द जो कि Stato से बना है, उसका प्रथम प्रयोग मैक्यावली ने ही किया था|
विलियम शेक्सपियर ने मैक्यावली को ‘हत्यारा मैक्यावली’ कहा है| शेक्सपियर ने कहा है कि “खुसट मैक्यावली खुद शैतान को ही दिया दिखाता है| उसने शैतान को मैक्यावली के प्रथम नाम पर ओल्ड निक बताया है|
धर्म व नैतिकता संबंधी विचारों के कारण लियो स्ट्रास ने मैक्यावली को बुराई का शिक्षक कहा है|
फ्रांसीसी विचारक स्पिनोजा ने प्रिंस का पदार्पण करने के कारण मैक्यावली को जनता का मित्र बताते हैं|
मांटेस्क्यू ने डिसकोर्सेज ऑन लिवि में आजादी का उल्लेख करने के कारण मैक्यावली को आजादी का प्रेमी कहा है|
ग्राम्शी ने द मॉडर्न प्रिंस पुस्तक लिखी है तथा अपनी कृति प्रिजन नोटबुक में कहा है कि “आधुनिक युग में नया प्रिंस व्यक्ति ना होकर राजनीतिक दल (साम्यवादी पार्टी) होगा जो नए प्रकार के राज्य की स्थापना करेगा|
क्रोचे ने कार्ल मार्क्स को सर्वहारा का मैक्यावली कहा है|
जेंटिल (Gentile) ने मैक्यावली को निरंकुशता के बजाय लोकतांत्रिक सरकार का समर्थक माना है|
मैक्सी ने मैक्यावली को यथार्थवादी राजनीति का देवदूत कहा है|
रूसो ने मैक्यावली को गणतंत्रवादी व अच्छा नागरिक बताया है|
गैटिल के अनुसार मैक्यावली का राज्य विषयक सिद्धांत राज्य का सिद्धांत होने के बजाय राज्य की रक्षा का सिद्धांत अधिक है|
मैक्यावली ने अपनी पुस्तक आर्ट ऑफ वार में षड्यंत्र को फौजी युद्ध का दर्जा दिया है|
मैक्यावली को शैतान का शिष्य (Devil's disciple) तथा तानाशाहों का शिक्षक (Despot’s tutor) भी कहा जाता है|
एलन के अनुसार मैक्यावली की राज्य अवधारणा पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष राज्य की थी|
क्विंटन स्किनर ने मैक्यावली को 17वी सदी के नव रोमनवादियों का ‘बौद्धिक धर्मपिता’ कहा है|
फॉस्टर “राजनीतिक सिद्धांत के क्षेत्र में मैक्यावली पुनर्जागरण का प्रतिनिधि है|”
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