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अध्याय-1 संविधान क्यों और कैसे? Class 11 Political Science NCERT सार नोट्स


 भारत का संविधान



सिद्धांत और व्यवहार



Class 11









राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)- 2005-

  • बच्चों के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ा जाए|

  • पढ़ाई में दुहराने अथवा रट्टा के बजाय सामाजिक- आर्थिक और अवधारणागत समझ को बढ़ाने- बनाने पर जोर दिया जाए|



राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986-

  • बाल केंद्रित शिक्षा व्यवस्था पर बल| 



  • उद्देशिका में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा- 2 द्वारा (3- 1- 1977) से प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य के स्थान पर ‘संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य’ प्रतिस्थापित किया गया| 

  • उद्देशिका में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा- 2 द्वारा (3- 1- 1977) से राष्ट्र की एकता शब्द के स्थान पर ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ शब्द प्रतिस्थापित किया गया|


  • नागरिकों के मूल कर्तव्य अनुच्छेद 51 ‘क’ के अंतर्गत 10 मौलिक कर्तव्य 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 की धारा 11 के द्वारा (3- 1- 1977) से अंत स्थापित किए गए| 

  • 11 वां (ट) मौलिक कर्तव्य 86 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2002 की धारा- 4 द्वारा (1-4- 2010) से अंत स्थापित | 

  • 11 वां (ट) मौलिक कर्तव्य- यदि माता-पिता या संरक्षक है, 6 से 14 वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें|
























अध्याय- 1   संविधान क्यों और कैसे?



संविधान की आवश्यकता क्यों?

  1. संविधान तालमेल बढ़ाता है और भरोसा दिलाता है

  2. निर्णय निर्माण शक्ति की विशिष्टताएँ 

  3. सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ

  4. समाज की आकांक्षाएं और लक्ष्य

  5. राष्ट्र की बुनियादी पहचान


  1. संविधान तालमेल बढ़ाता है और भरोसा दिलाता है-

  • संविधान का पहला काम यह है कि वह बुनियादी नियमों का वह समूह उपलब्ध कराये। जिससे समाज के सदस्यों में एक न्यूनतम समन्वय और विश्वास बना रहे| 

  • एक समाज के सदस्य एक दूसरे से अनेक तरह से भिन्न होते हैं, जैसे- धर्म, धार्मिक निष्ठा, व्यवसाय, शौक, संपत्ति, आयु, लिंग आदि के आधार पर| 

  • समाज के सदस्यों में जीवन के विभिन्न पहलूओं को लेकर विवाद होता है| जैसे- संपत्ति कितनी रखी जाए, बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य या माता-पिता की इच्छा पर, सुरक्षा पर कितना खर्च किया जाए या पार्क बनाए जाएं| 

  • इन भिन्नताओं व विवादों के समाधान व सदस्यों को शांतिपूर्वक रहने के लिए कुछ बुनियादी नियमों पर सहमति की आवश्यकता होती है| इन बुनियादी नियमों की जानकारी सदस्यों को देने व न्यायालय द्वारा लागू करवाने के प्रावधान संविधान उपलब्ध कराता है|


  1. निर्णय-निर्माण शक्ति की विशिष्टताएं- 

  • संविधान का दूसरा काम यह स्पष्ट करना है, कि समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी| संविधान यह भी तय करता है कि सरकार कैसे निर्मित होगी

  • संविधान कुछ ऐसे बुनियादी सिद्धांतों का समूह है, जिसके आधार पर राज्य का निर्माण व शासन होता है|

  • संविधान यह तय करता है कि कानून कौन बनाएगा| जैसे- राजतंत्र में कानून का निर्माण राजा करता है, पूर्व सोवियत संघ के संविधान में निर्णय करने का अधिकार केवल एक पार्टी को, लोकतांत्रिक संविधानों में जनता को कानून बनाने व निर्णय लेने का अधिकार होता है|

  • संविधान यह भी तय करता है कि जनता निर्णय कैसे ले| जैसे- सभी लोगों के सहमति (प्राचीन यूनान में) या निर्वाचित प्रतिनिधियों की सहमति| 

  • संविधान यह भी तय करता है कि प्रतिनिधियों का चयन कैसे हो, कुल कितने प्रतिनिधि हो|


  1. सरकार की शक्तियों पर सीमाएँ-

  • संविधान का तीसरा काम यह है कि सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किए जाने वाले कानूनो पर कुछ सीमाएं लगाए| ये सीमाएं इस रूप में मौलिक होती है कि सरकार कभी उसका उल्लंघन नहीं कर सकती| 

  • सरकार अनुचित और अन्यायपूर्ण कानून न बना सके, इसके लिए संविधान सरकार की कानून निर्माण शक्ति पर कई तरीकों से प्रतिबंध लगाता है| जैसे-

  1. नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार,

  2. नागरिकों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार करने के विरुद्ध सुरक्षा,

  3. नागरिकों के लिए कुछ मौलिक स्वतंत्रताएं| जैसे- भाषण की स्वतंत्रता, काम की स्वतंत्रता, संगठन बनाने की स्वतंत्रता| इन स्वतंत्रताओं पर केवल आपातकाल में ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है| 


  1. समाज की आकांक्षाएं और लक्ष्य-

  • संविधान का चौथा काम यह है कि वह सरकार को ऐसी क्षमता प्रदान करें, जिससे सरकार जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए उचित परिस्थितियों का निर्माण कर सकें|

  • आधुनिक संविधान (जैसे भारतीय संविधान) सरकार को एक ऐसा सक्षम ढांचा भी प्रदान करते हैं, जिससे सरकार कुछ सकारात्मक कार्य कर सके और समाज की आकांक्षाओं और लक्ष्यों को अभिव्यक्ति दे सके| उदाहरण-

  1. भारत में जातिगत भेदभाव को समाप्त करना| 

  2. समाज के प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी भौतिक जरूरतें पूरी करना| 

  3. राज्य के नीति निर्देशक तत्व भी सरकार से लोगों की कुछ आकांक्षाएं पूरी करने की अपेक्षा करते हैं| 


  • संविधान के सरकार को समर्थ बनाने वाले प्रावधान-

  • दक्षिण अफ्रीका का संविधान सरकार को अनेक उत्तरदायित्व सौंपता है| जैसे-पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना, अन्यायपूर्ण भेदभाव से सुरक्षा, सभी के लिए पर्याप्त आवास व स्वास्थ्य सुविधा| 

  • इंडोनेशिया में सरकार की जिम्मेदारी है कि राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था बनाए व संचालन करें, सरकार गरीब व अनाथ बच्चो की देखभाल करें| 


  1. राष्ट्र की बुनियादी पहचान-

  • संविधान किसी समाज या राष्ट्र की बुनियादी पहचान होता है| 

  • संविधान कुछ बुनियादी नियमों और सिद्धांतों के द्वारा समाज की मूलभूत राजनीतिक पहचान बनाता है| 

  • संवैधानिक नियम एक ऐसा विशाल ढांचा प्रदान करते हैं, जिसके अंतर्गत हम अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं, लक्ष्य और स्वतंत्रताओं का प्रयोग करते हैं| 

  • संविधान अनेक बुनियादी राजनीतिक और नैतिक नियम स्वीकार करता है| 

  • राष्ट्रीय पहचान की अवधारणा अलग-अलग संविधानों में अलग-अलग ढंग की होती है| जैसे- जर्मनी का निर्माण जर्मन नस्ल के आधार पर हुआ है, वहीं भारतीय संविधान जातीयता या नस्ल को नागरिकता के आधार रूप में मान्यता नहीं देता है| 

  • इसी तरह इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता खत्म होने पर एक नए संविधान की रचना में विभिन्न जातीय समूहों में काफी संघर्ष दिखाई दिया| 



संविधान की सत्ता-

  • संविधान द्वारा किए जाने वाले कार्य ही संविधान की सत्ता है| 



संविधान क्या है?

  • संविधान दस्तावेज या दस्तावेजों का पुंज है, जिसमें राज्य के बारे में अनेक प्रावधान है| 

  • अधिकतर देशों में संविधान एक लिखित दस्तावेज के रूप में होता है, जिसमें राज्य के बारे में अनेक प्रावधान है| जैसे राज्य का गठन कैसे होगा, राज्य किन सिद्धांतों का पालन करेगा| 

  • लेकिन कुछ देशों जैसे इंग्लैंड के पास ऐसा कोई लिखित दस्तावेज नहीं है, जिसे संविधान कहा जा सके, बल्कि उनके पास दस्तावेजों और निर्णयों की लंबी श्रृंखला है, जिसे सामूहिक रूप से संविधान कहा जा सकता है| 



संविधान कितना प्रभावी है?

  • विश्व के अनेक संविधान केवल कागज पर होते हैं, प्रभावी नहीं होते हैं| 

  • संविधान का प्रभावी होना अनेक कारणों पर निर्भर है| जैसे-


  1. संविधान को प्रचलन में लाने का तरीका-

  • संविधान को बनाया किसने, उसके पास बनाने की शक्ति कितनी थी, संविधान अस्तित्व में आया कैसे आदि बाते संविधान के प्रभावी होने को तय करती है| 

  • सैनिक शासको या अलोकप्रिय नेताओं द्वारा बनाए गए संविधान निष्प्रभावी होते हैं, क्योंकि उनके पास लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती है| 

  • विश्व के सर्वाधिक सफल संविधान भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका के हैं, क्योंकि इन संविधानों का निर्माण एक सफल राष्ट्रीय आंदोलन के बाद हुआ था| 

  • संविधान बनाने वालों का प्रभाव भी एक हद तक संविधान की सफलता की संभावना सुनिश्चित करता है| जैसे- भारत, क्योंकि कुछ देशों ने संविधान पर पूर्ण जनमत संग्रह करवाया, लेकिन भारतीय संविधान पर ऐसा कोई जनमत संग्रह नहीं हुआ, क्योंकि इसे लोगों की ओर से प्रबल शक्ति प्राप्त थी तथा यह बहुत ही लोकप्रिय नेताओं की सहमति और समर्थन पर आधारित था| 


  1. संविधान के मौलिक प्रावधान-

  • संविधान के मौलिक प्रावधान भी संविधान की सफलता सुनिश्चित करते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति का संविधान के प्रति आदर या अनादर भी मौलिक प्रावधानों पर निर्भर है| जैसे-

  • जिस संविधान में बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करने की अनुमति है, वहां अल्पसंख्यक संविधान का आदर नहीं करेंगे| 

  • कोई संविधान कुछ लोगों या छोटे समूह को ज्यादा सुविधाएं देता है, उनकी शक्ति मजबूत करता है, तो उसे जनता की निष्ठा नहीं मिलेगी| 

  • किसी समूह की पहचान को दबाया जाये तो, वह संविधान का आदर नहीं करेगा| 

  • जो संविधान अपने सभी नागरिकों की स्वतंत्रता और समानता की जितनी सुरक्षा करता है, उसकी सफलता की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी|


  1. संस्थाओं की संतुलित रूपरेखा-

  • सफल संविधान के लिए संस्थाओं की संतुलित रूपरेखा होनी चाहिए, किसी एक संस्था को सारी शक्तियों पर एकाधिकार नहीं होना चाहिए| जैसे- भारतीय संविधान शक्ति को कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका तथा स्वतंत्र निकाय जैसे निर्वाचन आयोग में बांट देता है| 

  • इस तरह विभिन्न संस्थाओं में अवरोध और संतुलन ने भारतीय संविधान की सफलता सुनिश्चित की है| 

  • संविधान में शक्तियों का बंटवारा इस तरह से होना चाहिए कि कोई एक समूह संविधान को नष्ट न कर सके, क्योंकि संविधान को अपनी शक्ति बढ़ाने के चक्कर में जनता नहीं, बल्कि प्राय: एक छोटा समूह ही नष्ट कर देता है|

  • संविधान में बाध्यकारी मूल्य, नियम और प्रक्रियाओं के साथ अपनी कार्यप्रणाली में लचीलापन का संतुलन होना चाहिए, जिससे वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढाल सके|

  • अतः संविधान की सत्ता मान्य हो, इसके लिए-

  1. संविधान बनाने वाले लोग विश्वसनीय हो| 

  2. शक्तियों का बंटवारा हो|

  3. संविधान लोगों के आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप हो|



Note- सितंबर 2005 में कीगल कार्टूंस ने इराक के संविधान को ताश के पत्तों के महल के रूप में दिखाया|


 

नेपाल के संविधान निर्माण का विवाद-

  • 1948 के बाद से नेपाल में पांच संविधान बनाए जा चुके हैं- 1948, 1951, 1959, 1962, 1990| लेकिन ये सभी संविधान नेपाल नरेश द्वारा प्रदान किए गए| 

  • 1990 में संविधान द्वारा नेपाल में बहुदलीय लोकतंत्र की शुरुआत की गई, पर अनेक क्षेत्रों में अंतिम शक्ति नरेश के पास रही| 

  • राजा ने अक्टूबर 2002 में समस्त शक्तियों को अपने हाथ में ले लिया था| 

  • कई राजनीतिक दल और संगठन नई संविधान सभा के गठन की मांग कर रहे थे, जिसमें नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी सबसे आगे थी| 

  • 2008 में नेपाल ने राजतंत्र को खत्म कर दिया, अंततः 2015 में नेपाल ने नए संविधान को अपनाया| 



भारतीय संविधान कैसे बना?

  • भारतीय संविधान औपचारिक रूप से संविधान सभा ने बनाया, जिसे अविभाजित भारत में निर्वाचित किया गया था| 

  • संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और 14 अगस्त 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा के रूप में पुन: बैठक हुई| 

  • संविधान सभा के सदस्य 1935 में स्थापित प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए थे| 

  • संविधान सभा की रचना ब्रिटिश मंत्रिमंडल की एक समिति कैबिनेट मिशन द्वारा प्रस्तावित योजना अनुसार हुई| 


  • कैबिनेट मिशन योजनानुसार-

  • प्रत्येक प्रान्त, देशी रियासत या रियासतों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीट दी गई|

  • ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष शासन वाले प्रांतो को 292 तथा देशी रियासतों को 93 सीटे आवंटित हुई|  

  • प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों (मुसलमान, सिख और सामान्य) में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बांटा गया|

  • समानुपातिक प्रतिनिधित्व और एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा प्रांतीय विधानसभाओं में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने अपने प्रतिनिधियां को चुना| 

  • देशी रियासतों के प्रतिनिधियो के चुनाव का तरीका उनके परामर्श से तय किया गया|



संविधान सभा में वाद- विवाद के दौरान 25 नवंबर 1949 को अंबेडकर ने कहा “अपने राजनीतिक लोकतंत्र को हमें सामाजिक लोकतंत्र का रूप भी देना चाहिए| राजनीतिक लोकतंत्र तब तक स्थायी नहीं रह सकता है, जब तक कि उसका आधार सामाजिक लोकतंत्र न हो| सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसका अर्थ जीवन के उस मार्ग से है, जो स्वतंत्रता, समता और बंधुता को जीवन के सिद्धांत के रूप में स्वीकार करता है| स्वतंत्रता, समता और बंधुता के सिद्धांतों को इन तीनों के एक संयुक्त रूप से पृथक- पृथक रूप में नहीं समझना चाहिए| ये तीनों मिलकर एक ऐसा संयुक्त रूप बनाते हैं कि इनमें से एक को दूसरे से अलग करना लोकतंत्र के मूल प्रयोजन को ही विफल कर देना है| स्वतंत्रता को समता से अलग नहीं किया जा सकता है, समता को स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता है| और न ही स्वतंत्रता और समता को बंधुता से अलग किया जा सकता है| समताविहीन स्वतंत्रता कुछ व्यक्तियों की अनेक व्यक्तियों पर प्रभुता को जन्म देगी| स्वतंत्रता विहीन समता व्यक्तिगत पहल को नष्ट कर देगी| बंधुता के बिना स्वतंत्रता और समता अपना स्वभाविक मार्ग ग्रहण नहीं कर सकते|”



संविधान सभा का स्वरूप-

  • 3 जून 1947 की माउंटबेटन योजना के अनुसार विभाजन के बाद पाकिस्तान के क्षेत्र से चुनकर आये प्रतिनिधि संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे|  

  • संविधान सभा के वास्तविक सदस्यों की संख्या घटकर 299 रह गयी (31 अक्टूबर1947 को स्वतंत्रता के बाद पुनर्गठित संविधान सभा में)|

  • 26 नवंबर 1949 को 284 सदस्य उपस्थित थे| जिन्होंने अंतिम रूप से पारित संविधान पर 24 जनवरी 1950 को हस्ताक्षर किए| 

  • भारत के संविधान में नागरिकता की एक नई अवधारणा दी, जिसके अंतर्गत अल्पसंख्यक सुरक्षा के साथ धार्मिक पहचान बनाए रखेंगे|

  • भारतीय संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गए थे, लेकिन ज्यादा प्रतिनिधिपरक बनाने के लिए सभी धर्मों को प्रतिनिधित्व दिया गया| 

  • संविधान सभा में अनुसूचित जातियों के 28 सदस्य थे| 

  • संविधान सभा में कांग्रेस का वर्चस्व तथा कांग्रेस को 82 प्रतिशत सीटे प्राप्त थी| 



संविधान सभा के कामकाज की शैली-

  • संविधान सभा में निर्णय विचार-विमर्श, बहस, वाद- विवाद के आधार पर लिए गए| 

  • पूरे देश के हित (सार्वजनिक हित) को ध्यान में रखकर विचार- विमर्श किया गया|

  • संविधान के सभी प्रावधानों पर काफी वाद- विवाद हुआ, लेकिन केवल एक ही प्रावधान सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार बिना किसी वाद- विवाद के पास हो गया| 



संविधान सभा की कार्यविधि-

  • संविधान सभा की कार्यविधि में सार्वजनिक विवेक का महत्व स्पष्ट दिखाई देता है| 

  • विभिन्न मुद्दों के लिए संविधान सभा की आठ मुख्य कमेटियों थी, जिनकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल या अंबेडकर करते थे| 

  • इन सभी के विचार हर बात पर एक दूसरे के समान नहीं थे, फिर भी सबने एक साथ मिलकर कार्य किया| 

  • अंबेडकर कांग्रेस और गांधीजी के कड़े आलोचक थे और उन पर अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिए पर्याप्त काम न करने का आरोप लगाते थे|

  • इस बात का प्रयास किया गया कि फैसले आम राय से हो तथा कोई भी प्रावधान किसी खास हित समूह के पक्ष में न हो| कई प्रावधानों पर निर्णय मत विभाजन से भी लिया गया|  

  • संविधान सभा की बैठके 166 दिनों तक चली| 



संविधान सभा में वाद- विवाद के दौरान 26 नवंबर 1949 को डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा “जैसा मैंने महसूस किया, शायद ही किसी ने किया हो कि प्रारूप समिति के सदस्यों विशेषकर इसके सभापति डॉ. अंबेडकर ने अस्वस्थ होने के बावजूद कितने उत्साह और लगन के साथ कार्य किया| डॉ अंबेडकर को प्रारूप समिति में शामिल करने और इसके सभापति बनाने के निर्णय से बेहतर और कोई निर्णय नहीं हो सकता था| उन्होंने न केवल अपने चयन को न्यायोचित सिद्ध किया, बल्कि उन्होंने जो कार्य किया उसे भी गरिमा प्रदान की| इस संबंध में समिति के अन्य सदस्यों में परस्पर भेद करना पक्षपातपूर्ण होगा| मैं जानता हूं कि उन सभी ने उतने ही उत्साह और लगन के साथ कार्य किया, जितना कि उसके सभापति ने| वे सभी देश की कृतज्ञता के पात्र हैं|”



राष्ट्रीय आंदोलन की विरासत-

  • भारतीय संविधान सभा ने उन सिद्धांतों को मूर्त रूप और आकार दिया, जो उसने राष्ट्रीय आंदोलन से विरासत में प्राप्त किए थे| 

  • राष्ट्रीय आंदोलन से जिन सिद्धांतों को संविधान सभा में लाया गया, उसका सर्वोत्तम सारांश हमें नेहरू द्वारा 1946 में प्रस्तुत उद्देश्य प्रस्ताव में मिलता है| 

  • उद्देश्य प्रस्ताव में संविधान सभा के उद्देश्यों को परिभाषित किया गया था तथा संविधान की सभी आकांक्षाओं और मूल्यों को समाहित किया गया था| 

  • उद्देश्य प्रस्ताव के आधार पर हमारे संविधान में समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र, संप्रभुता और सार्वजनिक पहचान जैसी बुनियादी प्रतिबद्धताओं को संस्थागत रूप दिया गया| 


  • उद्देश्य प्रस्ताव के मुख्य बिंदु-

  • भारत एक स्वतंत्र, संप्रभु गणराज्य है| 

  • भारत ब्रिटेन के अधिकार में आने वाले भारतीय क्षेत्रों, देसी रियासतों और देशी रियासतों के बाहर के ऐसे क्षेत्र जो हमारे संघ का अंग बनना चाहते हैं का एक संघ होगा| 

  • संघ की इकाइयां स्वायत होंगी और उन सभी शक्तियों का प्रयोग और कार्यों का संपादन करेगी, जो संघीय सरकार को नहीं दी गई| 

  • संप्रभु और स्वतंत्र भारत तथा उसके संविधान की समस्त शक्तियों और सत्ता का स्रोत जनता है| 

  • भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय; कानून के समक्ष समानता; प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तथा कानून और सार्वजनिक नैतिकता की सीमाओं में रहते हुए भाषण, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, व्यवसाय, संगठन और कार्य करने की मौलिक स्वतंत्रता की गारंटी और सुरक्षा दी जाएगी|

  • अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्र, दलित व अन्य पिछड़े वर्गों को समुचित सुरक्षा दी जाएगी|  

  • गणराज्य की क्षेत्रीय अखंडता तथा थल, जल और आकाश में इसके संप्रभु अधिकारों की रक्षा सभ्य राष्ट्रों के कानून और न्याय के अनुसार की जाएगी| 

  • विश्व शांति और मानव कल्याण के विकास के लिए देश स्वेच्छापूर्वक और पूर्ण योगदान करेगा| 

 


संस्थागत व्यवस्थाएं-

  • संविधान सभा ने मूल सिद्धांत यह रखा कि सरकार लोकतांत्रिक रहे और जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध हो| 

  • संविधान सभा ने शासन के विभिन्न अंगों विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के बीच संतुलन स्थापित करने पर विचार-मंथन किया| 

  • संविधान सभा ने संसदीय शासन व्यवस्था और संघात्मक व्यवस्था को स्वीकार किया| 

  • संसदीय शासन व्यवस्था विधायिका एवं कार्यपालिका के बीच तथा संघात्मक व्यवस्था केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का वितरण करती है| 



संविधान में विभिन्न देशों के सविधानों से लिए गए प्रावधान-

  • शासकीय संस्थाओं की सर्वाधिक संतुलित व्यवस्था स्थापित करने में हमारे संविधान निर्माताओं ने दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ सीखने में कोई संकोच नहीं किया तथा विभिन्न देशों से निम्न प्रावधान लिए-


  • ब्रिटिश संविधान-

  • सर्वाधिक मत के आधार पर चुनाव में जीत का फैसला

  • सरकार का संसदीय स्वरूप

  • कानून के शासन का विचार

  • विधायिका में अध्यक्ष का पद और उनकी भूमिका

  • कानून निर्माण की विधि


  • अमेरिका का संविधान-

  • मौलिक अधिकारों की सूची

  • न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति और न्यायपालिका की स्वतंत्रता 


  • आयरलैंड का संविधान-

  • राज्य के नीति निर्देशक तत्व


  • फ्रांस का संविधान-

  • स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का सिद्धांत 


  • कनाडा का संविधान-

  • एक अर्द्ध-संघात्मक सरकार का स्वरूप (सशक्त केंद्रीय सरकार वाली संघात्मक व्यवस्था)

  • अवशिष्ट शक्तियों का सिद्धांत



क्या भारतीय संविधान उधार का था?

  • विभिन्न देशों से प्रावधान लेने के कारण भारतीय संविधान पर उधार के संविधान का आरोप लगाया जाता है| 

  • लेकिन उन प्रावधानों को लेना कोई नकलची मानसिकता का परिणाम नहीं था, क्योंकि प्रत्येक प्रावधान को भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप सिद्ध किया गया था| 

  • इस तरह संविधान सभा में संकुचित दृष्टिकोण के बजाय संपूर्ण विश्व से सर्वोत्तम चीजे ग्रहण की, जो भारत का सौभाग्य था| 

  • इस आरोप का विरोध करते हुए अंबेडकर ने संविधान सभा में वाद- विवाद के दौरान 4 नवंबर 1948 को कहा कि “हम पूछना चाहेंगे कि विश्व-इतिहास के इस पड़ाव पर बनाए गए संविधान में क्या कुछ नया भी हो सकता है| आज इस समय बने संविधान में यदि कुछ नया हो सकता है तो वह यह है कि उसमें केवल कुछ ऐसे परिवर्तन किए जाएं जो कर्मियों को दूर करें और उसे देश की आवश्यकता के अनुरूप बना सके|”


  • Note- भारत का संविधान दक्षिण अफ्रीका के लिए एक प्रतिमान (मॉडल) रहा| 





Notes available for RPSC School lecturers and UGC-Net Political Science Subject 9660895656


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