उत्तर व्यवहारवाद (Post-Behaviouralism)
व्यवहारवाद की स्थापना के लगभग 20 वर्षों बाद स्वयं व्यवहारवाद के समर्थकों ने यह अनुभव किया कि इसमें अनेक आधारभूत कमियां हैं| परिणामस्वरूप व्यवहारवाद के प्रति असंतोष का जन्म हुआ और अनेक पुराने व्यवहारवादियो ने व्यवहारवाद के स्थान पर उत्तर-व्यवहारवाद की स्थापना की|
उत्तर व्यवहारवाद का अर्थ-
डेविड ईस्टन ने उत्तर व्यवहारवाद को व्यवहारवाद के प्रति एक प्रक्रिया के रूप में नहीं, अपितु मूल व्यवहारवादी आंदोलन में सार्थक सुधार के रूप में स्वीकार किया है|
उत्तर व्यवहारवाद में तथ्य एवं मूल्य दोनों का समावेश किया गया है|
उत्तर व्यवहारवाद, व्यवहारवाद का इसलिए सुधार करता है, क्योंकि व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान की कठोर वैज्ञानिक शोध पद्धति का प्रयोग कर विशुद्ध विज्ञान का रूप देने का प्रयास किया|
उत्तर व्यवहारवाद का मत है कि शोध किसी भी पद्धति से किया जाए, उसे प्रासंगिकता की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए| डेविड ईस्टन इसे ‘प्रासंगिकता का सिद्धांत या प्रसंगिकता धर्म’ कहा है|
उत्तर व्यवहारवाद एक सुधार आंदोलन तथा नवीन दिशा संकेत है, जिसके दो आधार हैं-
कार्यवाहियां
प्रासंगिकता
डेविड ईस्टन “उत्तर व्यवहारवाद भविष्योन्मुखी है, जो राजनीति विज्ञान को विकास की नई दिशा में बढ़ाना चाहता है| यह अतीत (व्यवहारवाद) की उपलब्धियों को स्वीकार करते हुए उसमें कुछ नया जोड़ना चाहता है|”
माइकल हैंस व थियोडोर एल बेकर “1970 के बाद का व्यवहारवाद संश्लेषणात्मक एवं बहूपद्धति विज्ञानात्मक है| इन्होंने उत्तर व्यवहारवाद का द्वंदात्मक विश्लेषण किया है-
वाद- परंपरावाद 1950 तक
प्रतिवाद- व्यवहारवाद 1969 तक
संवाद- उत्तर व्यवहारवाद 1969 के बाद
उत्तर व्यवहारवादी क्रांति के उदय के कारण-
उत्तर-व्यवहारवाद के जनक डेविड ईस्टन माने जाते हैं|
डेविड ईस्टन उत्तर-व्यवहारवाद को भी व्यवहारवाद की तरह ‘एक आंदोलन व बौद्धिक प्रवृत्ति’ कहते हैं|
सितंबर 1969 में न्यूयॉर्क में अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन के 65 वें अधिवेशन में डेविड ईस्टन ने अध्यक्षीय भाषण में तत्कालीन राजनीतिक अनुसंधान की स्थिति पर गहरा असंतोष व्यक्त किया, जिसमें राजनीति के अध्ययन को कठोर वैज्ञानिक अनुशासन में डालने की कोशिश की जा रही थी| उसे नई दिशा देने के लिए डेविड ईस्टन ने उत्तर व्यवहारवादी क्रांति की घोषणा की|
डेविड ईस्टन के अध्यक्षीय भाषण का शीर्षक था-’The New Revolution in Political Science’|
डेविड ईस्टन “उत्तर व्यवहारवाद भविष्य की ओर उन्मुख है| यह एक वास्तविक क्रांति है, न कि व्यवहारवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया| यह विकास है, न कि अनुरक्षण| आगे की दिशा में कदम है, न कि पीछे हटने की प्रवृत्ति|”
उत्तर व्यवहारवाद व्यवहारवाद का संशोधन है, न कि व्यवहारवाद के विरुद्ध है|
उत्तर व्यवहारवाद में परंपरावाद व व्यवहारवाद दोनों के गुण हैं|
यह परंपरावाद का पुनरुत्थान भी नहीं है|
डेविड ईस्टन ने अपनी पुस्तक The Political System में उत्तरव्यवहारवाद के तीन स्रोत बताएं है-
राजनीति विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान बनाने के प्रयासों के प्रति असंतोष
भावी समस्याओं का समाधान ढूंढने की उत्कृष्ट इच्छा
एक बौद्धिक प्रवृत्ति तथा राजनीतिक वैज्ञानिकों के समूह के रूप में संचालित आंदोलन
उत्तर व्यवहारवाद की उत्पत्ति के प्रमुख कारण निम्न है-
व्यवहारवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया या असंतोष-
1960 के दशक में अमेरिकी समाज में बहुत उथल-पुथल मची| 1962 का क्यूबा का मिसाइल संकट, अश्वेतों का नागरिक अधिकार आंदोलन, युवाओं का हिप्पी कल्चर व इनमें अमेरिकन सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध प्रति संस्कृति की प्रवृत्ति ने अमेरिकन समाज में भयंकर संकट खड़ा कर दिया|
व्यवहारवादियों के पास इसका कोई समाधान नहीं था| इस कारण व्यवहारवाद के प्रति असंतोष उत्पन्न हुआ|
व्यवहारवाद की अध्ययन पद्धतियों से असहमति-
व्यवहारवादी केवल तथ्यों के संग्रहण, शुद्ध विज्ञान, तटस्थता पर बल दे रहे थे|
व्यवहारवादी अध्ययन व शोध के लिए केवल वही विषय चुन रहे थे, जिनमें वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग हो सके, जिसके बारे में तथ्य उपलब्ध हो सके| इस प्रकार व्यवहारवादी पद्धतिशास्त्र के बंदी हो गए|
व्यवहारवादी शोध के प्रति असंतोष-
व्यवहारवादियो ने केवल तथ्यों पर बल दिया तथा मूल्यों की उपेक्षा की|
व्यवहारवाद में विश्व मानवता के प्रति दायित्वों की उपेक्षा-
व्यवहारवादी क्रांति के समय विश्व अनेक संकटों एवं समस्याओं से घिर गया| जैसे- आणविक युद्ध का भय है, अमेरिका में काले और गोरे का भेद, तानाशाही की बढ़ती संभावना, जनसंख्या विस्फोट आदि|
व्यवहारवादियो ने इन समस्याओं के अध्ययन की ओर ध्यान नहीं दिया|
1962 में थॉमस एस कुहन की पुस्तक ‘The Structure of Scientific Revolution’ प्रकाशित हुई| इसमें कुहन ने प्रतिमान (Paradigm) की अवधारणा दी| इस अवधारणा के तहत कुहन ने कहा कि विज्ञान कुछ निश्चित पूर्व धारणाओं पर आधारित होता है| वैज्ञानिक समुदाय उनका परीक्षण किए बगैर इन्हें स्वीकार कर लेता है| नए शोधकर्ता के प्रश्न व उसकी पद्धति इन्हीं पूर्व धारणाओं द्वारा निर्देशित होती है| कुहन ने इसे ही प्रतिमान (Paradigm) कहा है|
नए शोध व तथ्यों द्वारा इन प्रतिमानो (Paradigm) को बदला जाना चाहिए|
कुहन के इन तर्कों से व्यवहारवादियों द्वारा मान्य सत्यापन सिद्धांत खंडित हो गया|
उत्तर व्यवहारवाद की विशेषताएं-
डेविड ईस्टन ने उत्तर व्यवहारवाद को एक क्रांति कहा, जिसके 2 लक्षण बताएं-
शोध की सार्थकता या प्रासंगिकता (Relevance)
क्रियानिष्ठता या कर्म (Action)
डेविड ईस्टन उत्तर व्यवहारवाद की 7 मान्यताओं या विशेषताओं का उल्लेख किया है, जिन्हें प्रासंगिकता के सिद्धांत या प्रासंगिकता धर्म (Credo of Relevance) कहा है|
प्रासंगिकता धर्म में तीन मूल तत्व है-
प्रासंगिकता
सार तत्व
कर्म
ये 7 विशेषताएं निम्न है-
प्रविधि (तकनीक) से पूर्व सार-
उत्तर-व्यवहारवादी राजनीतिक अनुसंधान में तकनीक से ज्यादा सार तत्व पर बल देते हैं|
उत्तर व्यवहारवादियों का मानना है कि यदि कोई अनुसंधान तकनीकी दृष्टि से उच्च कोटि का हो लेकिन समय सामयिक समस्याओं के समाधान में सहायक न हो तो उसको छोड़ देना ही बेहतर होगा, अर्थात ये समय सामयिक समस्याओं के समाधान को महत्वपूर्ण मानते हैं|
व्यवहारवादी कहते हैं कि “अस्पष्ट होने से, गलत होना अच्छा है|” जबकि उत्तर व्यवहारवाद में का कहना है कि “अप्रासंगिक होने से, अस्पष्ट होना ज्यादा अच्छा है|”
सामाजिक परिवर्तन पर बल-
व्यवहारवाद सामाजिक स्थिरता पर बल देता रहा, अतः उसने अपना ध्यान तथ्यों के विश्लेषण तक सीमित रखा|
लेकिन उत्तर व्यवहारवाद ने सामाजिक परिवर्तन पर बल दिया, इसलिए तथ्यों को विस्तृत सामाजिक संदर्भ के साथ जोड़कर देखने पर बल दिया|
समस्याओं के विश्वसनीय निदान की आवश्यकता-
उत्तर व्यवहारवादियों के अनुसार विश्व की समस्याओं जैसे- आणविक युद्धों का भय, शस्त्रों की दौड़, बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, बढ़ता प्रदूषण, अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद आदि के निदान की आवश्यकता है|
मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका-
उत्तर व्यवहारवादियो ने मूल्य निरपेक्ष ज्ञान की अवधारणा को मानवता विरोधी मानकर उसका विरोध किया तथा मूल्य सापेक्ष ज्ञान के अर्जन पर बल दिया|
बुद्धिजीवियों की भूमिका-
उत्तर व्यवहारवाद राजनीति वैज्ञानिकों से यह मांग करता है, कि बुद्धिजीवियों के नाते उन्हें समाज में बड़े-बड़े काम करने हैं|
यदि तटस्थता के नाम पर राजनीतिक वैज्ञानिक सामाजिक समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रखेंगे तो समाज में उनकी स्थिति ‘टांका लगाने वाले मिस्त्रियों’ के समान हो जाएगी|
कर्मनिष्ठ विज्ञान-
व्यवहारवादियो ने राजनीति विज्ञान को केवल चिंतन (मनन) विज्ञान बना दिया तथा इसके क्रियात्मक पक्ष की उपेक्षा की|
लेकिन उत्तर व्यवहारवादियों ने राजनीति के क्रियात्मक पक्ष पर बल दिया तथा इस बात पर बल दिया कि राजनीतिक वैज्ञानिकों द्वारा सामाजिक समस्याओं को समझ लेने के बाद समाधान कार्यवाही भी करना जरूरी है|
डेविड ईस्टन के अनुसार “जानने का अर्थ है प्राप्त ज्ञान को कर्म रूप में लागू करना और कार्य करने का अर्थ है समाज के पुनर्निर्माण और पुनर्गठन में व्यस्त होना|”
व्यवसाय का राजनीतिकरण-
उत्तर व्यवहारवादियो ने राजनीति के व्यवसायीकरण व सभी व्यवसायों के राजनीतिककरण पर बल दिया है, जिसका अर्थ है कि राजनीतिक वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों से संबंधित संघों, शिक्षण संस्थाओं तथा विश्वविद्यालयों आदि को सामाजिक दायित्वों की पूर्ति के लिए अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता को खुले रुप में स्वीकार करना चाहिए|
जेम्स ब्राइस ने अपनी पुस्तक Modern Democracy में लिखा है कि “राजनीति विज्ञान का तात्पर्य, तथ्य, तथ्य और अधिक तथ्य है|”
व्यवहारवादी और उत्तर व्यवहारवादी दृष्टिकोणों में अंतर-
उत्तर व्यवहारवाद की आलोचना-
डेविड ईस्टन 1997 में प्रकाशित अपने लेख ‘The future of Post Behavioural Phase in Political Science’ में उत्तर व्यवहारवाद की आलोचना करते हुए लिखा कि “राजनीति विज्ञान का लंगर खो गया है, उसका कोई फोकस नहीं रह गया है|”
उत्तर व्यवहारवादियों ने व्यवहारवादियों की प्रतिबद्धता की भावना को खत्म कर दिया|
रोबर्ट गुडिन व्यवहारवाद, उत्तर व्यवहारवाद आदि को ‘क्रांति’ कहने के स्थान पर राजनीति विज्ञान की ‘बड़ी घटनाएं’ कहना उचित समझते हैं|
डेविड ईस्टन “उत्तर आधुनिकतावाद; विज्ञान का अंत, इतिहास का अंत व वस्तुनिष्ठता की समाप्ति का उद्घोष है|”
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