संसद
- संविधान के भाग 5 में, अनुच्छेद 79 से 122 में संसद के गठन, संरचना, अवधि, अधिकारियों, प्रक्रिया विशेषाधिकारों व शक्ति आदि के बारे में वर्णन है 
संसद का गठन- (अनुच्छेद 79)
- संसद का गठन लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति से मिलकर होगा| 
- संसद के तीन अंग- 
- राष्ट्रपति 
- राज्यसभा 
- लोकसभा 
- संसद के दो सदन- 
- राज्यसभा- उच्च सदन, दूसरा चेंबर, बड़ों की सभा, स्थायी सदन 
- लोकसभा- निचला सदन, पहला चेंबर, चर्चित सभा, अस्थायी सदन 
Note- 1954 से पहले राज्यसभा को राज्य परिषद व लोकसभा को जनता का सदन कहते हैं|
- संसद केंद्र सरकार का विधायी अंग है| 
- ब्रिटेन की संसदीय पद्धति पर आधारित है, जिसे सरकार का वेस्टमिनिस्टर मॉडल भी कहते हैं| 
संसद की संरचना - दो सदन
- राज्यसभा (अनुच्छेद 80) 
- लोकसभा (अनुच्छेद 81) 
राज्यसभा की संरचना- (अनुच्छेद 80)
- सदस्य संख्या- अनुच्छेद 80(1) 
अधिकतम- 250
- निर्वाचित सदस्य- 238 
- मनोनीत सदस्य- 12 
- वर्तमान सदस्य संख्या- 245 
- निर्वाचित सदस्य- 233 
- राज्यों से- 225 
- संघ शासित क्षेत्रों- 8 
- मनोनीत सदस्य- 12 
- अनुच्छेद 80(2)- राज्यों व संघ राज्यों के प्रतिनिधियों से भरे जाने वाले स्थानों का आवंटन चौथी अनुसूची के अनुसार होगा| 
- अनुच्छेद 80(3)- राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला, समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को नामनिर्देशित करेगा| 
- राज्यसभा की पहली महिला नाम निर्देशित सदस्य रुकमणी देवी अरुंडेल थी, जिसका कार्यकाल 1952 से 1962 रहा| पृथ्वीराज कपूर पहले अभिनेता थे, जो राज्यसभा के लिए नाम निर्देशित किए गए| 
राज्यसभा की चुनाव प्रणाली-
- राज्यों का प्रतिनिधित्व- अनुच्छेद 80(4)- राज्यसभा में राज्यों के प्रतिनिधियों का निर्वाचन राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है| 
- संघ राज्यों का प्रतिनिधित्व- अनुच्छेद 80(5)- संघ शासित क्षेत्रों के प्रतिनिधियों का चुनाव संसद द्वारा बनायी गयी विधि से होगा| 
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार इनका चुनाव भी आनुपातिक पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है| 
- संघ शासित क्षेत्र में से दिल्ली, पुद्दुचेरी व जम्मू कश्मीर के प्रतिनिधि ही राज्यसभा में चुने जाएंगे| दिल्ली- 3, पुद्दुचेरी- 1, जम्मू कश्मीर- 4 
NOTE- राज्यसभा में राज्यों के लिए सीटों का बंटवारा जनसंख्या के अनुपात में किया जाता है| इसलिए प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या अलग-अलग है|
लोकसभा की संरचना- अनुच्छेद 81
- सदस्य संख्या- अधिकतम- 552 
- निर्वाचित सदस्य- 550 
- राज्यों से- 524 
- संघ शासित क्षेत्र- 26 
- मनोनीत सदस्य- 2 
- वर्तमान सदस्य संख्या- 545 
- निर्वाचित सदस्य- 543 
- राज्यों से- 524 
- संघ शासित क्षेत्र- 19 
- मनोनीत सदस्य- 2 
Note- 104 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2019 द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन के मनोनयन को समाप्त कर दिया है|
लोकसभा की चुनाव प्रणाली-
- राज्यों में चुनाव प्रणाली- प्रादेशिक क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा 
प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र- 81(1)-
- लोकसभा के निर्वाचन के लिए प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है| 
- प्रत्येक राज्य को प्राप्त सीट व जनसंख्या में अनुपात सभी राज्यों में समान होना चाहिए| 
- प्रत्येक राज्य को लोकसभा में सीटों का आवंटन उस राज्य की जनसंख्या के अनुपात में किया जाएगा| (60 लाख से कम जनसंख्या पर यह उपबंध लागू नहीं होगा|) 
- सभी प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों को प्राप्त सीटों व जनसंख्या का अनुपात एक राज्य के अंदर समान होना चाहिए| 
- Note- यहां जनसंख्या का आशय अंतिम जनगणना से है| 
संघ राज्य क्षेत्रों में चुनाव प्रणाली-
- इन क्षेत्रों की चुनाव प्रणाली संसद द्वारा बनायी गयी विधि के अनुसार होगी| 
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार यहां भी चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन के द्वारा होता है | 
- NOTE- सभी संघ शासित राज्यों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व है| 
अनुच्छेद 82 (प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन)
- प्रत्येक जनगणना के पश्चात लोकसभा में सीटों का आवंटन तथा प्रत्येक राज्य का प्रादेशिक क्षेत्रों में विभाजन का पुन: समायोजन किया जाता है| 
- 42 वें संशोधन 1976 के द्वारा लोकसभा में स्थानों का आवंटन और प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन 1971 की जनगणना के आधार पर 2000 तक स्थिर कर दिया गया| 
- 84 वे संशोधन 2001 के द्वारा राज्यों का लोकसभा में सीटों का आवंटन 1971 की जनगणना के आधार पर 2026 तक स्थिर कर दिया है| 
- 87 वे संविधान संशोधन 2003 के द्वारा राज्यों का प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन 2001 की जनगणना के आधार पर 2026 तक स्थिर कर दिया| 
- इस कार्य के लिए राष्ट्रपति द्वारा परिसीमन आयोग की नियुक्ति की जाती है| यह कार्य राष्ट्रपति चुनाव आयोग के सहयोग से करते हैं| 
- अब तक चार परिसीमन आयोग बन चुके हैं- 1952, 1962, 1972 व 2002| चौथे परिसीमन आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह थे| 
अनुच्छेद 331
- यदि राष्ट्रपति कि राय में आंग्ल भारतीयो का लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है तो दो आंग्ल भारतीय राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जा सकते हैं| 
- Note- 104 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2019 द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन के मनोनयन को समाप्त कर दिया है| 
संसद के सदनों की अवधि- (अनुच्छेद 83)
- राज्यसभा- 
- यह एक स्थायी सदन है, जिसका विघटन नहीं होता है| 
- इसके1/3 सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त हो जाते हैं तथा खाली सीटें चुनाव या मनोनयन द्वारा भरी जाती है| 
- राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है| 
- Note- सविधान में राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल निर्धारित नहीं था| सदस्यों का कार्यकाल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के आधार पर 6 वर्ष किया गया| 
- लोकसभा- 
- यह एक अस्थायी सदन है| 
- इसका कार्यकाल आम चुनाव के बाद हुई पहली बैठक से 5 वर्ष होगा| 
- इसके सदस्यों का कार्यकाल भी 5 वर्ष होगा| 
- लेकिन राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष से पहले भी किसी भी समय लोकसभा को विघटित किया जा सकता है| अनुच्छेद 85(2) 
- आपातकाल के दौरान लोकसभा की अवधि एक बार में 1 वर्ष के लिए बढ़ायी जा सकती है| 
- आपातकाल समाप्त होने पर विस्तार 6 महीने की अवधि से अधिक नहीं होगा| 
- 42 वे सविधान संशोधन 1976 के द्वारा लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष किया गया था| 
- 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा लोकसभा का कार्यकाल फिर से 5 वर्ष कर दिया | 
संसद सदस्यों की योग्यता/ अहर्ता- (अनुच्छेद 84)
- वह भारत का नागरिक हो और निर्वाचन आयोग द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता हो| 
- न्यूनतम आयु- 
- राज्यसभा- 30 वर्ष 
- लोकसभा- 25 वर्ष 
- ऐसी अन्य योग्यताएं होनी चाहिए, जो संसद द्वारा विधि बनाकर निर्धारित की जाए| 
- संसद ने इसके लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 बनाया| 
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951- इसके अनुसार संसद सदस्यों में निम्न योग्यताएं होनी चाहिए- 
- उस व्यक्ति को संघ या राज्य क्षेत्र के उस क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता होना चाहिए| 
Note- वर्ष 2003 में सरकार ने राज्यसभा के निर्वाचन के लिए यह बाध्यता समाप्त कर दी|
- कोई व्यक्ति आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसे उसी केटेगरी का होना चाहिए| 
संसद सदस्यों की निरर्हताएं- अनुच्छेद 102(1)
- लाभ का पद धारण करता है| (भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन) 
- न्यायालय द्वारा घोषित विकृतिचित है| 
- वह अनुमोचित दिवालिया हो| 
- वह भारत का नागरिक ना रहे या किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से ग्रहण कर ले या किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा को अभिस्वीकार किए हुए हो| 
- संसद द्वारा बनायी गयी किसी विधि द्वारा निरर्हित किया जा सकता है| 
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार निरर्हताएं-
- चुनावी अपराध या चुनाव में भ्रष्ट आचरण के तहत दोषी करार नहीं दिया हो| 
- उसे किसी अपराध के लिए 2 वर्ष या उससे अधिक की सजा न हुई हो| (लेकिन प्रतिबंधात्मक निषेध विधि के अंतर्गत बंधीकरण निरर्हता नहीं है) 
- वह निर्धारित समय के अंदर चुनावी खर्च का ब्यौरा देने में असफल नहीं रहा हो| 
- उसकी सरकारी ठेका, काम या सेवा में कोई दिलचस्पी न हो| 
- वह निगम में लाभ के पद या निदेशक या प्रबंध निदेशक के पद पर ना हो जिसमें सरकार का 25% हिस्सा हो| 
- उसे भ्रष्टाचार या निष्ठाहीन होने के कारण सरकारी सेवाओं से बर्खास्त न किया गया हो| 
- उसे विभिन्न समूहों में शत्रुता बढ़ाने या रिश्वतखोरी के लिए दंडित न किया हो| 
- उसे छुआछूत, दहेज व सती जैसे सामाजिक अपराधों का प्रचार करने और इसमें संलिप्त न पाया गया हो| 
अनुच्छेद 103- किसी भी सदस्य में उपरोक्त निरर्हताओ संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति का फैसला अंतिम होगा, लेकिन राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की परामर्श के अनुसार फैसला देगा|
दल बदल के आधार पर निरर्हता- अनुच्छेद 102(2)
- किसी संसद सदस्य को दसवीं अनुसूची में उल्लेखित दलबदल के आधार पर निरर्ह ठहराया जा सकता है, यदि वह- 
- जिस राजनीतिक दल के टिकट पर चुना गया, उस राजनीतिक दल का त्याग स्वेच्छा से करता है| 
- अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है या नहीं करता| 
- निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाए| 
- नामनिर्देशित सदस्य 6 महीने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है| 
Note- दल बदल के आधार पर निरर्हता का फैसला सभापति या अध्यक्ष द्वारा दिया जाता है| 1992 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि सभापति या अध्यक्ष के निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती|
सदनों के स्थानों का रिक्त होना (अनुच्छेद 101)-
- निम्न कारणों से पद रिक्त हो सकता है- 
- दोहरी सदस्यता- 
- कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य नहीं हो सकता है| किसी एक सदन के स्थान रिक्त करने के लिए संसद विधि बनाएगी| 
- इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में निम्न प्रावधान है- 
- दोनों सदनों में चुने जाने पर व्यक्ति को 10 दिन में एक सदन से त्यागपत्र देना पड़ेगा, नहीं तो राज्यसभा से उसकी सीट खाली हो जाएगी| 
- किसी सदन का सदस्य दूसरे सदन में चुना जाता है, तो पहले सदन से उसका पद रिक्त हो जाएगा| 
- कोई व्यक्ति एक ही सदन की 2 सीटों पर चुने जाने पर एक सीट को खाली करेगा, अन्यथा दोनों सीटें रिक्त मानी जाएंगी| 
- समानांतर सदस्यता प्रतिषेध अधिनियम 1950 (राष्ट्रपति के द्वारा निर्मित)- 
- इसके अनुसार कोई व्यक्ति संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य एक साथ नहीं हो सकेगा| ऐसा होने पर 14 दिन में विधानमंडल से सीट खाली करेगा अन्यथा संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी| 
- निरर्हता- 
- कोई सदस्य अनुच्छेद 102(1) अनुच्छेद 102(2) के तहत निरर्ह घोषित कर दिया जाए| 
- पदत्याग- 
- कोई सदस्य सभापति या अध्यक्ष को त्यागपत्र दे दे| 
- लेकिन सभापति या अध्यक्ष को ऐसा लगे कि त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो त्यागपत्र को अस्वीकार कर सकता है| 
- अनुपस्थित- 
- बिना सदन की अनुमति के कोई सदस्य 60 दिनों तक सदन के सभी अधिवेशनो में अनुपस्थित रहता है| 
- लेकिन 60 दिन के समय में सत्रावसान समय व लगातार 4 दिन से अधिक स्थगन के समय को नहीं गिना जाएगा| 
संसद सदस्यों द्वारा शपथ/ प्रतिज्ञान- ( अनुच्छेद 99)
- संसद के दोनों सदनों का प्रत्येक सदस्य अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में निर्धारित प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है कि मैं- 
- भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा व निष्ठा रखूंगा, रखूंगी| 
- भारत की प्रभुता व अखंडता को अक्षुण्य रखूंगा| 
- कर्तव्यों का श्रद्धा पूर्वक निर्वहन करुंगा| 
अनुच्छेद 104-
- निम्न परिस्थितियों में कोई सदन में बैठता है या मत देता है तो प्रतिदिन ₹500 जुर्माना देना होगा- 
- शपथ लेने से पहले 
- अगर वह जानता है कि वह अहर्ता नहीं रखता है या निरर्हित कर दिया गया है| 
- अगर वह जानता है कि संसदीय विधि के तहत उसे मत देने या संसद में बैठने का अधिकार नहीं है| 
वेतन -भत्ते- (अनुच्छेद 106)
- संसद के दोनों सदनों के सदस्यों का वेतन -भत्ता संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है| 
संसद के पीठासीन अधिकारी-
लोकसभा के पीठासीन अधिकारी-
लोकसभा अध्यक्ष- (अनुच्छेद 93)
- निर्वाचन (अनुच्छेद 93)- लोकसभा द्वारा यथाशीघ्र लोकसभा के सदस्यों के बीच एक सदस्य का चुनाव अध्यक्ष के लिए किया जाता है| 
- पद रिक्ति के दौरान अन्य सदस्य को लोकसभा अध्यक्ष चुना जाता है| 
- Note- लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति घोषित करता है| 
- कार्यकाल- 
- सविधान में उल्लेख नहीं 
- सामान्यतः 5 वर्ष 
- शपथ- लोकसभा अध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेता है| 
- त्यागपत्र (अनु 94)- उपाध्यक्ष को 
- पद से हटाना (अनुच्छेद 94)- लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प के द्वारा, लेकिन ऐसा संकल्प लाने से कम से कम 14 दिन पूर्व इसकी सूचना अध्यक्ष को देनी पड़ेगी| 
Note- लोकसभा अध्यक्ष अपने पद पर लोकसभा के विघटन के पश्चात नई लोकसभा की प्रथम बैठक के ठीक पहले तक अपने पद पर रहता है|
- अनुच्छेद 96- 
- जब अध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प विचारधीन है, तो अध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा| 
- ऐसी स्थिति में उसे प्रथमत: मत देने का अधिकार होगा, लेकिन मतों की बराबर की स्थिति में मत देने का अधिकार नहीं होगा| 
- संसद में बोलने व कार्यवाहियो में भाग लेने का अधिकार होगा| 
- वेतन- भत्ते- (अनुच्छेद 97) 
- संसद विधि बना कर निर्धारित करेगी| 
- वेतन भत्ता भारत की संचित निधि भारित होगा| 
- अध्यक्ष के कार्य- 
- लोकसभा का पीठासीन अधिकारी होता है| 
- लोकसभा के अध्यक्ष को शक्तियां तीन स्रोतों से मिलती है- 
- भारत के संविधान से 
- लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम से 
- संसदीय परंपराओं से 
- सामान्य स्थिति में मत नहीं देता है, लेकिन मत बराबर की स्थिति में निर्णायक मत देता है| 
- गणपूर्ति के अभाव में सदन का स्थगन करता है| 
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है| अनुच्छेद 118(4) 
- धन विधेयक का निर्धारण करता है| 
- लोकसभा की सभी संसदीय समितियों के सभापति नियुक्त करता है| 
लोकसभा उपाध्यक्ष-
- निर्वाचन (अनुच्छेद 93)- लोकसभा द्वारा द्वारा यथाशीघ्र एक सदस्य को उपाध्यक्ष के रूप में चुना जाता है| 
- उपाध्यक्ष का पद रिक्त होने पर यथास्थिति किसी अन्य सदस्य को चुना जाएगा| 
- Note- उपाध्यक्ष के चुनाव की तारीख लोकसभा अध्यक्ष निर्धारित करता है| 
- कार्यकाल- 
- सविधान में उल्लेख नहीं 
- सामान्यतः 5 वर्ष 
- शपथ- उपाध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं ली जाती है| 
- त्यागपत्र (अनुच्छेद 94)- किसी भी समय अध्यक्ष को हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना त्यागपत्र दे सकता है| 
- पद से हटाना (अनुच्छेद94)- लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प के द्वारा, लेकिन ऐसा संकल्प लाने से कम से कम 14 दिन पूर्व उपाध्यक्ष को सूचना देनी पड़ेगी| 
- अनुच्छेद 96- 
- जब उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन हो तो उपाध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा| 
- वेतन- भत्ते (अनुच्छेद 97)- 
- संसद विधि बना कर निर्धारित करेगी| 
- वेतन भत्ता भारत की संचित निधि पर भारित होगा| 
- उपाध्यक्ष के कार्य (अनुच्छेद 95)- 
- अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उस पद के कर्तव्यों का पालन करना| 
- लोकसभा की किसी बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में बैठक की अध्यक्षता करना| 
Note- उपाध्यक्ष का पद रिक्त होने पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त लोकसभा का सदस्य, अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करेगा|
- उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा की प्रक्रिया नियमों के द्वारा अवधारित व्यक्ति अध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगा| 
सामयिक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर)-
- यह अल्पकालीन पद है, जिसका संविधान में उल्लेख नहीं है| 
- राष्ट्रपति सामान्यतः लोकसभा के वरिष्ठतम (कार्यकाल के आधार पर) सदस्य को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करता है| 
- प्रोटेम स्पीकर को शपथ राष्ट्रपति दिलाता हैं| 
- इसका मुख्य कार्य नए सदस्यों को शपथ दिलवाना है| 
राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी
राज्यसभा सभापति (अनुच्छेद 89)-
- अनुच्छेद 89- भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है| 
- कार्यकाल- 5 वर्ष 
- शपथ- सभापति के रूप में शपथ नहीं लेता है| 
- त्यागपत्र- राष्ट्रपति को 
- पद से हटाना- उप राष्ट्रपति को पद से हटाया जाएगा, न की सभापति को | 
- अनुच्छेद 92- 
- जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का संकल्प विचारधीन है, तो राज्यसभा की बैठकों में पीठासीन नहीं होगा| 
- मत देने का बिल्कुल हकदार नहीं होगा| (प्रथमत: व निर्णायक दोनों मामलों में) 
- बोलने और कार्यवाहीयो में भाग लेने का अधिकार होगा| 
NOTE- सभापति एक ऐसा पद है जो राज्यसभा का सदस्य न होते हुए भी राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है व निर्णायक मत देता है|
- वेतन- भत्ते ( अनुच्छेद 97)- 
- संसद विधि बनाकर निर्धारित करेगी| 
- वेतन भत्ता भारत की संचित निधि पर भारित होगा| 
उपसभापति (अनुच्छेद 89)-
- निर्वाचन (अनुच्छेद 89)- राज्यसभा सदस्य यथाशीघ्र अपने में से किसी एक सदस्य को उपसभापति चुनते हैं| 
- कार्यकाल - 
- सविधान में उल्लेख नहीं 
- राज्यसभा सदस्य के रूप में 6 वर्ष 
- शपथ- उपसभापति के रूप में शपथ नहीं होती है| 
- त्यागपत्र- सभापति को अपने हस्ताक्षर सहित लेख के द्वारा 
- पद से हटाना- राज्यसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प के द्वारा, लेकिन ऐसा संकल्प लाने से कम से कम 14 दिन पूर्व उपसभापति को इस आश्य की सूचना देनी होगी 
- अनुच्छेद 92- 
- जब उपसभापति को हटाने का संकल्प विचारधीन है, तब उपसभापति पीठासीन नहीं होगा| 
- वेतन-भत्ते (अनुच्छेद 97)- 
- संसद विधि बनाकर निर्धारित करेगी| 
- भारत की संचित निधि पर भारित होगा| 
- उपसभापति के कार्य (अनुच्छेद 91)- 
- सभापति का पद रिक्त होने पर सभापति पद के कर्तव्य का पालन करना| 
- राज्यसभा की किसी बैठक में सभापति की अनुपस्थिति में सभापति के रूप में कार्य करना| 
- Note- उपसभापति का पद रिक्त होने पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति सभापति पद के कर्तव्य का पालन करता है| 
- उपसभापति के किसी बैठक में अनुपस्थित होने पर राज्यसभा के प्रक्रिया नियमों द्वारा निर्धारित व्यक्ति सभापति के रूप में कार्य करेगा| 
लोकसभा से संबंधित कुछ तथ्य-
- लोकसभा सदस्यों का चुनाव First Past The Post (अग्रता ही विजेता) के आधार पर होता है| 
- लोकसभा को भावनाओं का सदन, निम्न सदन, लोगों की सभा, प्रथम हाउस भी कहते हैं| 
- आम जनता के भाग लेने के कारण लोकसभा चुनाव के लिए आम चुनाव शब्द का प्रयोग किया जाता है| 
- लोकसभा के प्रथम आम चुनाव अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक हुए थे| 
- प्रथम लोकसभा का गठन- 17 अप्रैल 1952 
- लोकसभा की प्रथम बैठक- 13 मई 1952 
- लोकसभा व संसद का जनक- G.V मावलंकर 
- अंतरिम संसद की अध्यक्षता- G.V मावलंकर 
- लोकसभा का प्रथम प्रोटेम स्पीकर- G.V मावलंकर 
- लोकसभा का प्रथम अध्यक्ष- G.V मावलंकर 
- Note- G.V मावलंकर एकमात्र ऐसे लोकसभा के अध्यक्ष है, जिन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव लगाया गया, लेकिन प्रस्ताव असफल रहा है| 
- ऐसे लोकसभा अध्यक्ष जिनकी पद पर रहते हुए मृत्यु हुई - 
- G.V मावलंकर 
- G.M.C.बाल योगी (Ganti Mohana Chandra) 
- मीरा कुमार पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष बनी तथा दूसरी सुमित्रा महाजन थी| 
- नीलम संजीव रेड्डी दो बार लोकसभा के स्पीकर रहे| दूसरी बार स्पीकर का पद त्याग कर के राष्ट्रपति बने| 
- प्रथम लोकसभा में कुल सदस्य- 489 
- कांग्रेस को प्राप्त सीटें- 364 
- भा.क.पा को प्राप्त सीटें-16 
- Note- अम्बेडकर व आचार्य कृपलानी जैसी हस्तियां प्रथम लोकसभा चुनाव में हार जाते हैं| 
- लोकसभा अध्यक्ष- 
- प्रथम अध्यक्ष- G.V मावलंकर 
- वर्तमान अध्यक्ष- ओम बिरला 
- लोकसभा उपाध्यक्ष- 
- प्रथम उपाध्यक्ष- अनंत शयनम अंयगर 
- वर्तमान उपाध्यक्ष- पद रिक्त है 
- लोकसभा की विशेष शक्तियां- 
- सरकार उसी दल की बनती है, जो लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल होता है| 
- मंत्रिपरिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है| [75(3)] 
- धन विधेयक केवल लोकसभा में रखा जाता है| 
- राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद 352) को समाप्त करने का प्रस्ताव केवल लोकसभा में रखा जाता है| (1/10 सदस्य प्रस्ताव रखेंगे) 
राज्यसभा से संबंधित कुछ तथ्य-
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) 1951 के अनुसार राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव खुला मतदान प्रणाली से होता है| 
- राज्यसभा का गठन- 3 अप्रैल 1952 
- प्रथम बैठक- 13 मई 1952 
- सभापति- 
- प्रथम सभापति- राधाकृष्णन 
- वर्तमान सभापति- श्री जगदीप धनखड़ 
- उपसभापति- 
- प्रथम उपसभापति- S.V कृष्णामूर्ति राव 
- वर्तमान उपसभापति- हरिवंश नारायण 
- राज्यसभा की विशेष शक्तियां- 
- अनुच्छेद 249- राज्य सूची के विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित राज्यसभा उपस्थित व मतदान के ⅔ बहुमत से कर सकती हैं| 
- अनुच्छेद 312- नयी अखिल भारतीय सेवाओं का गठन राज्यसभा उपस्थित व मतदान के 2/3 बहुमत से कर सकती है| 
संसद में नेता-
- सदन में नेता- 
- लोकसभा- प्रधानमंत्री या प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कोई मंत्री (लोकसभा का सदस्य) 
- राज्यसभा- प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत मंत्री (राज्यसभा का सदस्य) 
- विपक्ष का नेता- 
- राज्यसभा व लोकसभा दोनों सदनों में एक-एक विपक्ष का नेता होता है| 
- विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के सदस्य कुल सदस्यों के 10वें हिस्से के करीब होने चाहिए, तभी ही विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता मिलती है| 
- कार्य- सरकार के कार्यों की उचित आलोचना करना एवं वैकल्पिक सरकार की व्यवस्था करना| 
- राज्यसभा में पहली बार 18 दिसंबर 1969 को विपक्षी दल के नेता के रूप में श्याम नंदन मिश्र को मान्यता मिली| 
- लोकसभा में पहली बार 17 दिसंबर 1969 को विपक्षी दल के नेता के रूप में राम सुभग सिंह को मान्यता मिली| 
- आइवर जेनिंग्स ने विपक्ष के नेता को वैकल्पिक प्रधानमंत्री कहा है| 
- Note- विपक्ष के नेता को अमेरिका में अल्पसंख्यक नेता कहा जाता है| 
छाया मंत्रिमंडल (शैडो केबिनेट)-
- यह ब्रिटेन में अनोखी संस्था है| इसे विपक्षी दल द्वारा सरकार के साथ तुलना के लिए बनाया जाता है| (भारत में ऐसी संस्था नहीं है) 
व्हिप (सचेतक)-
- सत्ता राजनीतिक दल व विपक्षी राजनीतिक दल दोनों में एक- एक व्हिप होता है| 
- कार्य- 
- पार्टी के नेताओं को बड़ी संख्या में उपस्थित रखना| 
- संबंधित मुद्दों पर पक्ष या खिलाफ में पार्टी के नेताओं को तैयार करना| 
- संसद सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करना व नजर रखना| 
- सदस्यों द्वारा निर्देशों के पालन न करने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही करना| 
संसद के सत्र-
- आहुत करना (अनुच्छेद 85(1)- 
- संसद के प्रत्येक सदन के सत्र को राष्ट्रपति समय-समय पर आहुत (बुलाना) करता है 
- वर्ष में कम से कम दो सत्र होने चाहिए, क्योंकि संसद के दोनों सदनों के दो सत्रों के मध्य अधिकतम 6 माह का अंतराल हो सकता है| 
- संसद का सत्र प्रथम बैठक से लेकर सत्रावसान (या लोकसभा के मामले में विघटन) के मध्य की समयावधि है| 
- अवकाश- एक सत्र के सत्रावसान से लेकर दूसरे सत्र के प्रारंभ होने के मध्य की समयावधि है| 
- संसद के एक सत्र में काफी बैठके होती है तथा प्रत्येक बैठक में दो सत्र होते हैं- 
- सुबह की बैठक (11-1 बजे तक) 
- दोपहर के भोजन के बाद की बैठक (2 से 6:00 बजे तक ) 
- सामान्यतः वर्ष मे तीन सत्र होते हैं- 
- बजट सत्र (फरवरी से मई)- 
- प्रथम सत्र 
- सबसे महत्वपूर्ण सत्र 
- बजट प्रस्तुत व पारित 
- सबसे लंबा सत्र 
- सत्र के आरंभ में राष्ट्रपति का अभिभाषण (अनुच्छेद 87) 
- मानसून सत्र (जुलाई से सितंबर)- 
- शीतकालीन सत्र (नवंबर से दिसंबर) 
- सबसे छोटा सत्र 
- अंतिम सत्र 
- विशेष सत्र - 
- संसद का विशेष सत्र- 
- प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा बुलाया जाता है| 
- किसी विशेष कार्य की चर्चा की जाती है या पारित किया जाता है| 
- लोकसभा का विशेष सत्र- 
- अनुच्छेद 352 मे वर्णन 
- 44वे संविधान संशोधन 1978 द्वारा स्थापित 
- जब आपातकाल को जारी न रखने का प्रस्ताव लोकसभा के कम से कम 1/10 सदस्य लाते हैं तब राष्ट्रपति 14 दिन के अंदर लोकसभा का विशेष सत्र बुलाता है| 
- सत्र का स्थगन- 
- लोकसभा अध्यक्ष या सभापति द्वारा किया जाता है| 
- सत्र समाप्त नहीं होता है| निश्चित या अनिश्चित समय के लिए निलंबित होता है| (कुछ घंटे, दिन या सप्ताह) 
- यह सिर्फ बैठक को समाप्त करता है, न कि सत्र को 
- किसी विधेयक या विचारधीन काम पर प्रभाव नहीं डालता है| (अगली बैठक में किया जा सकता है|) 
- सत्रावसान- 
- राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है| 
- सत्र समाप्त हो जाता है | 
- यह भी किसी विधेयक पर प्रभाव नहीं डालता है, लेकिन बचे काम के लिए अगले सत्र में नया नोटिस देना पड़ता है| 
NOTE- ब्रिटेन में सत्रावसान के कारण विधेयक या लंबित कार्य समाप्त हो जाते हैं|
विघटन-
- लोकसभा का विघटन [85(2)] होता है, राज्यसभा का नहीं क्योंकि राज्य सभा स्थायी सदन है| 
- सत्रावसान के विपरीत विघटन से लोकसभा का जीवनकाल समाप्त हो जाता है तथा चुनाव द्वारा नयी लोकसभा का गठन किया जाता है| 
- लोकसभा के विघटन का कारण- 
- 5 वर्ष का कार्यकाल या राष्ट्रीय आपदा के समय बढ़ाया गया कार्यकाल समाप्त होने पर विघटन 
- राष्ट्रपति द्वारा विघटन (अनुच्छेद 85(2) 
- लोकसभा विघटन के प्रभाव- 
- सभी विधेयक, प्रस्ताव, संकल्प, नोटिस, याचिका आदि समाप्त हो जाते हैं| 
- लेकिन लंबित विधेयक और सभी लंबित आश्वासन जिनकी जांच सरकारी आश्वासन संबंधी समिति द्वारा की जानी है, समाप्त नहीं होते हैं| 
- लोकसभा के विघटन पर समाप्त होने वाले विधेयक- 
- लोकसभा में विचाराधीन विधेयक (चाहे लोकसभा में रखे गए हो या राज्यसभा द्वारा हस्तांतरित किए गए हो) समाप्त हो जाते हैं| 
- लोकसभा में पारित किंतु राज्यसभा में विचाराधीन विधेयक समाप्त हो जाते हैं| 
- विघटन पर समाप्त न होने वाले विधेयक- 
- विधेयक पर दोनों सदनों में असहमति कारण विघटन से पूर्व राष्ट्रपति ने संयुक्त बैठक बुलाई हो| 
- राज्यसभा में विचाराधीन विधेयक लेकिन लोकसभा द्वारा पारित न हो| 
- दोनों सदनों द्वारा पारित लेकिन राष्ट्रपति ने पुनर्विचार के लिए लौटा दिया हो| 
- दोनों सदनों द्वारा पारित लेकिन राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए विचाराधीन विधेयक| 
गणपूर्ति कोरम [अनुच्छेद-100(3)(4)]-
- यह वह न्यूनतम सदस्य संख्या है, जिसकी उपस्थिति होने पर ही सदन का कार्य संपादित होता है| 
- यह पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्य संख्या का दसवां भाग होता है| 
- लोकसभा- 55 सदस्य कम से कम 
- राज्यसभा- 25 सदस्य कम से कम 
- गणपूर्ति न होने पर अध्यक्ष या सभापति द्वारा सदन का स्थगन कर दिया जाता है| 
सदन में मतदान [अनुच्छेद 100(1)]-
- सभी मामलों पर प्रत्येक सदन में या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत (50% से अधिक) से निर्णय लिया जाता है| 
- लेकिन राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग, संविधान संशोधन कार्यवाही में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है| 
- संसद का पीठासीन अधिकारी पहले प्रयास में मत नहीं देता है, लेकिन मत बराबर होने की स्थिति में निर्णायक मत देता है| 
संसद में भाषा (अनु- 120)
- हिंदी या अंग्रेजी (अंग्रेजी संविधान लागू होने की तिथि से 15 वर्ष तक यानी 1965 तक) 
- पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष/ सभापति) किसी सदस्य को मातृभाषा में बोलने का अधिकार दे सकता है| 
- राजभाषा अधिनियम, 1963 हिंदी के साथ अंग्रेजी की निरंतरता की अनुमति देता है| 
लेम-डक सत्र (पंगु सत्र)-
- वर्तमान लोकसभा का अंतिम सत्र 
- वर्तमान के जो सदस्य नयी लोकसभा हेतु निर्वाचित नहीं हो पाते हैं वे लेम डक कहलाते हैं| 
संसदीय कार्यवाही या प्रक्रिया-
- प्रक्रिया के नियम (अनु- 118)- 
- 118(1)- संसद का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया व कार्य संचालन के नियम स्वयं बनाएगा 
- Note- इसके लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 बनाया गया| 
- 118(2)- नियम बनाने से पहले डोमिनियन भारत के विधानमंडल के नियमों के अनुसार संसद के नियम होंगे| 
- 118(3)- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के नियम राष्ट्रपति, अध्यक्ष व सभापति से परामर्श करके बनाएगा| 
- 118(4)- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करेगा| 
- अनु 121- 
- उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के आचरण पर चर्चा संसद में नहीं की जा सकती| 
- अनु 122 - ‘न्यायालय द्वारा संसद की कार्यवाहीयो की जांच करना’ 
- संसद की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है| 
- संसद का ऐसा अधिकारी जिसमें संसद की प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति निहित है| उन शक्तियों के प्रयोग के बारे में न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती| 
- प्रश्नकाल- 
- औपचारिक या प्रक्रिया नियमो में उल्लेख है| 
- संसद की बैठक का प्रथम घंटा (11:00 से 12:00 तक) प्रश्नकाल के लिए निर्धारित है| 
- संसद द्वारा सरकार पर नियंत्रण करने का साधन है| 
- प्रश्नकाल में संसद सदस्य प्रश्न पूछते हैं तथा मंत्री उत्तर देते हैं| 
- प्रश्न की सूचना कम से कम 15 दिन पूर्व लोकसभा महासचिव या राज्यसभा महासचिव को दी जाएगी 
- यह सूचना लिखित रूप में दी जाएगी, जिनमें निम्न बातों का उल्लेख होता है- 
- प्रश्न का पाठ 
- प्रश्न जिस मंत्री को संबोधित हो उसके पद का नाम 
- वह तिथि, जिसको प्रश्न के उत्तर के लिए प्रश्न सूची में रखवाने का विचार है| 
- कोई सदस्य एक ही दिन के लिए प्रश्नों की एक से अधिक सूचनाएं देता है, तो प्रश्न सूची में रखे जाने के लिए प्राथमिकता| 
- अध्यक्ष या सभापति प्रश्न पूछने के दिन का निर्धारण करता है| 
- प्रश्नकाल नहीं होगा- 
- लोकसभा के चुनाव के बाद के प्रथम सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा| 
- जिस दिन बजट रखा जाता है| 
- शनिवार व रविवार के दिन| 
- राष्ट्रपति के अभिभाषण के दिन| 
- प्रश्नकाल में तीन तरह के प्रश्न होते हैं- 
- तारांकित प्रश्न- प्रश्न पर तारा अंकित होता है| प्रश्न मौखिक होता है तथा उत्तर भी मौखिक दिया जाता है तथा पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं| 1 दिन में अधिकतम 20 प्रश्न पूछे जा सकते हैं| 
- अतारांकित प्रश्न- प्रश्न लिखित होते हैं तथा तारांकित नहीं होता है| उत्तर लिखित रिपोर्ट द्वारा दिए जाते हैं तथा पूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं| एक दिन अधिकतम 230 प्रश्न पूछे जा सकते हैं| 
- अल्प सूचना के प्रश्न- उत्तर मौखिक तथा कम से कम 10 दिन का पूर्व नोटिस देकर पूछे जाते हैं| 
Note- इनके अलावा गैर सरकारी सदस्यों से भी प्रश्न पूछे जा सकते हैं|
- शून्यकाल- 
- यह अनौपचारिक साधन है, जिसका प्रश्नकाल की तरह प्रक्रिया नियमों में उल्लेख नहीं है| 
- प्रश्नकाल के तुरंत बाद शुरू होता है| 
- संसदीय प्रक्रिया में यह नवाचार भारत की देन है, जो 1962 से शुरू हुआ| 
- इसमें बिना पूर्व सूचना के अविलंबनीय लोक महत्व के प्रश्न उठाये जा सकते हैं| 
- शून्यकाल की समयावधि निश्चित नहीं होती है| 
- प्रोफेसर N G रंगा के शब्दों में “शून्यकाल का आरंभ होना एक अत्यंत विलक्षण और उत्तेजक घटना है| 
- औचित्य प्रसन्न- 
- यह विपक्षी सदस्य द्वारा सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए उठाया जाता है| जब सदन संचालन के नियमों का पालन नहीं करती है| 
- इस प्रश्न पर बहस की अनुमति नहीं होती है| 
- आधे घंटे की चर्चा- 
- पर्याप्त लोक महत्व के मामलों पर चर्चा के लिए अध्यक्ष सप्ताह में 3 दिन निर्धारित कर सकता है| 
- इसके लिए सदन में कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान नहीं होता है| 
- आपातकालीन चर्चा या 2 घंटे की चर्चा- 
- इसमें संसद सदस्य किसी जरूरी सार्वजनिक महत्व के मामलों को बहस के लिए रख सकते हैं| 
- इसमें 2 घंटे से ज्यादा चर्चा नहीं की जा सकती है| 
- अध्यक्ष सप्ताह में 3 दिन उपलब्ध करा सकता है| 
- विशेष उल्लेख या नियम 377- 
- ऐसा मामला जो व्यवस्था प्रश्न व औचित्य प्रश्न नहीं है, प्रश्नकाल के दौरान नहीं उठाया जाता, आधे घंटे की बहस में नहीं, तो ऐसे मामलों को विशेष उल्लेख के तहत राज्यसभा में उठाया जा सकता है| 
- प्रस्ताव- 
- किसी विषय पर सदन में चर्चा करने के लिए मंत्री या गैर सरकारी सदस्य द्वारा प्रस्ताव लाया जाता है, सदन अपना मत या निर्णय प्रस्ताव को स्वीकृत या अस्वीकृत करके देता है| 
- सदस्यों द्वारा लाए गए प्रस्तावों की तीन श्रेणियां हैं- 
- महत्वपूर्ण प्रस्ताव- 
- स्वतंत्र प्रस्ताव होता है| 
- महत्वपूर्ण मामले जैसे राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग, मुख्य निर्वाचन आयोग को हटाना आदि मामलों में लाया जाता है| 
- स्थापन्न प्रस्ताव- 
- यह मूल प्रस्ताव का स्थान लेता है| 
- इसे सदन स्वीकार कर ले तो मूल प्रस्ताव स्थगित हो जाता है| 
- पूरक प्रस्ताव- 
- इसे मूल प्रस्ताव के संदर्भ में लाया जाता है जिसका अपना कोई अर्थ नहीं होता है| 
- कटौती प्रस्ताव- 
- किसी सदस्य द्वारा प्रस्ताव पर वाद-विवाद को रोककर मतदान के लिए रखने के लिए कटौती प्रस्ताव लाया जाता है| 
- सामान्यतया कटौती प्रस्ताव चार प्रकार के होते हैं- 
- साधारण कटौती- जिस विषय या मामले पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है, उसको मतदान के लिए रखने के लिए किसी सदस्य द्वारा यह प्रस्ताव लाया जाता है| 
- घटकों में कटौती प्रस्ताव- इस मामले में किसी प्रस्ताव पर चर्चा से पूर्व घटकों का एक समूह बना लिया जाता है तथा वाद-विवाद केवल इन्हीं घटकों पर होता है और संपूर्ण भाग पर मतदान होता है| 
- कंगारू कटौती- इस प्रकार के प्रस्ताव में केवल महत्वपूर्ण खंडों पर ही बहस तथा मतदान होता है और शेष खंडों का पारित मान लिया जाता है| 
- गिलोटिन प्रस्ताव- किसी विधेयक के चर्चा न हुए भाग पर मतदान से पूर्व चर्चा कराने के लिए गिलोटिन प्रस्ताव लाया जाता है| 
- विशेषाधिकार प्रस्ताव- 
- यह किसी मंत्री द्वारा संसदीय विशेषाधिकारो के उल्लंघन पर किसी सदस्य द्वारा लाया जाता है| 
- इसका लाने का उद्देश्य मंत्री की निंदा करना है| 
- ध्यानाकर्षण प्रस्ताव- 
- यह प्रस्ताव किसी मंत्री का ध्यान अविलंबनीय लोक महत्व के मामले पर आकृष्ट करने के लिए किसी सदस्य द्वारा पीठासीन अधिकारी की पूर्व अनुमति से लाया जाता है| 
- यह भारतीय नवचार है, जो 1954 से शुरू हुआ| 
- इसका प्रक्रिया नियमों में उल्लेख है| 
- काम रोको प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव- 
- यह किसी अविलंबनीय लोक महत्व के मामले पर सदन में चर्चा करने के लिए सदन की कार्यवाही को स्थगित करने के लिए लाया जाता है| 
- इस प्रस्ताव पर 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है| 
- यह किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है| 
- इसको कोई भी सदस्य पेश कर सकता है| 
- इस प्रस्ताव पर ढाई घंटे से कम चर्चा नहीं होती है| 
- अविश्वास प्रस्ताव- 
- मंत्रीपरिषद को हटाने के लिए लोकसभा द्वारा (विपक्षी दल) द्वारा लाया जा सकता है| 
- प्रस्ताव पर 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है| 
- प्रस्ताव को पेश करने के बाद लोकसभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकृति आवश्यक है| 
- स्वीकारोक्ति के बाद 14 दिन के अंदर चर्चा करना आवश्यक है | 
- लोकसभा में पारित होने पर संपूर्ण मंत्रीपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ेगा| 
- यह संपूर्ण मंत्रीपरिषद के विरुद्ध लाया जाता है| 
- विश्वास प्रस्ताव- 
- यह विरोधी दल द्वारा नहीं, बल्कि सरकार द्वारा लाया जाता है| 
- इसका संसदीय प्रक्रिया नियमों में उल्लेख नहीं है| 
- सर्वप्रथम 1979 में प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने विश्वास मत प्राप्त करने या बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था पर चौधरी चरण सिंह ने विश्वास मत प्राप्त करने के बजाय इस्तीफा दे दिया था| 
- नरसिम्हा राव ने विश्वास मत हासिल कर लिया था, पर वी पी सिंह (1990), एच डी देवगौड़ा (1997) तथा अटल बिहारी वाजपेयी (1999) विश्वास मत में पराजित हो गए थे| 
- निंदा प्रस्ताव- 
- मंत्रीपरिषद की कुछ नीतियों या कार्यों की निंदा करने के लिए लाया जाता है| 
- यह किसी एक मंत्री या मंत्रियों के एक समूह या संपूर्ण मंत्री परिषद के विरुद्ध लाया जा सकता है| 
- लोकसभा द्वारा पारित होने पर मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना आवश्यक नहीं है| 
- लोकसभा को स्वीकार करने का कारण बताना आवश्यक है अविश्वास प्रस्ताव में कारण बताना आवश्यक नहीं है| 
- धन्यवाद प्रस्ताव- 
- प्रत्येक आम चुनाव के बाद लोकसभा के प्रथम सत्र एवं प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रथम सत्र राष्ट्रपति संयुक्त सदनों को संबोधित करता है| 
- संबोधन में पूर्ववर्ती वर्ष और आने वाले वर्ष में सरकार की नीतियों व योजनाओं को राष्ट्रपति बताता है| 
- दोनों सदनों में राष्ट्रपति के संबोधन पर चर्चा करने के लिए धन्यवाद प्रस्ताव लाया जाता है| 
- इस प्रस्ताव का पारित होना आवश्यक है| 
- नियम 193- 
- इसके अंतर्गत लोकसभा में चर्चा, परंतु मतदान नहीं होता है| 
- नियम 184- 
- इसके अंतर्गत लोकसभा में चर्चा के साथ मतदान भी होता है| 
- संकल्प- 
- साधारण लोक महत्व के मामलों पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए कोई भी सदस्य संकल्प ला सकता है| 
- संकल्प के तीन प्रकार हैं- 
- गैर सरकारी संकल्प- यह संकल्प गैर सरकारी सदस्य द्वारा लाया जाता है| इस पर बहस शुक्रवार या दोपहर के बाद बैठक में की जा सकती हैं| 
- सरकारी संकल्प- यह संकल्प किसी मंत्री द्वारा लाया जाता है| इसे सोमवार से गुरुवार तक किसी भी दिन लाया जा सकता है| 
- सांविधिक संकल्प- इसे मंत्री या गैर सरकारी सदस्य द्वारा लाया जा सकता है| इसे सविधान के उपबंध या अधिनियम के तहत लाया जाता है| 
- निम्नलिखित के लिए संकल्प पेश किए जाते हैं- 
- राष्ट्रपति पर महाभियोग (अनुच्छेद 61) 
- उपराष्ट्रपति को पद से हटाया जाना (अनुच्छेद 67) 
- राज्यसभा के उपसभापति को पद से हटाया जाना (अनुच्छेद 90) 
- अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को पद से हटाया जाना (अनुच्छेद 94) 
- राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों का निरनुमोदन (अनुच्छेद 123) 
- संसद द्वारा राज्य सूची के किसी विषय के संबंध में विधान बनाना (अनुच्छेद 249) 
- आपात स्थिति की घोषणा (अनुच्छेद 352) तथा किसी राज्य के संवैधानिक तंत्र के सफल होने पर (अनुच्छेद 356) या वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360) पर जारी की गई घोषणा| 
- संकल्प एवं प्रस्ताव में अंतर- 
- सभी संकल्प महत्वपूर्ण प्रस्ताव होते हैं, जबकि सभी प्रस्ताव महत्वपूर्ण नहीं होते हैं| 
- सभी संकल्पों को सभा की स्वीकृति के लिए रखा जाना अनिवार्य है, जबकि सभी प्रस्तावों को सभा की स्वीकृति के लिए रखा जाना अनिवार्य नहीं है| 
- युवा संसद योजना- 
- चौथे अखिल भारतीय व्हिप सम्मेलन की अनुशंसा पर युवा संसद योजना प्रारंभ की गई| 
- सर्वप्रथम 1966- 67 मे दिल्ली के विश्वविद्यालयों में प्रारंभ की गई| 
- प्रत्येक राज्य के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में आयोजन 
उद्देश्य-
- युवा पीढ़ी को संसद की कार्यवाही से अवगत कराना| 
- छात्र समुदाय में लोकतंत्र के आधारभूत मूल्यो को समझाना 
- Note- इस योजना को समझाने के लिए संसदीय कार्य मंत्रालय राज्यों को जरूरी प्रशिक्षण देता है| 
संसद में विधायी प्रक्रिया-
- पेश करने वाले के आधार पर विधेयक दो प्रकार के होते हैं- 
- सरकारी विधेयक 
- गैर सरकारी विधेयक 
- दोनों समान प्रक्रिया के तहत सदन में पारित होते हैं, लेकिन कुछ अंतर है 
- सदन में प्रस्तुत विधेयक चार प्रकार के होते हैं- 
- साधारण विधेयक 
- वित्त विधेयक 
- धन विधेयक 
- संविधान संशोधन विधेयक 
- साधारण विधेयक- 
साधारण विधेयक संसद में पेश होने से लेकर पारित होकर कानून बनने तक निम्न चरणों से
गुजरता है-
- पेश करना- 
- संसद के किसी भी सदन में सरकारी या गैर सरकारी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है| 
- इस चरण में 3 पाठन होते हैं- 
- प्रथम पाठन- 
- इसमें विधेयक का प्रस्तुतीकरण एवं उसका राजपत्र में प्रकाशन होता है| 
- कोई चर्चा नहीं होती है| 
- द्वितीय पाठन- 
- सबसे महत्वपूर्ण पाठन है| 
- इस चरण में विधेयक की विस्तृत समीक्षा की जाती है तथा बहस भी की जाती है| 
- विस्तार पूर्वक विधेयक पर खंडवार चर्चा की जाती है| 
- तृतीय पाठन- 
- विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है| 
- कोई संशोधन नहीं किया जाता है| 
- बहुमत से स्वीकार होने पर पीठासीन अधिकारी द्वारा दूसरे सदन में भेजा जाता है| 
- दूसरे सदन में विधेयक- 
- दूसरे सदन में भी प्रथम, द्वितीय ,तृतीय, पाठन होते हैं| 
- दूसरे सदन के पास चार विकल्प होते है- 
- विधेयक को उसी रूप में पारित कर दें| 
- संशोधन के साथ पारित कर प्रथम सदन मे पुन विचारार्थ भेज दे| 
- विधेयक को अस्वीकार कर दे 
- कोई भी कार्यवाही न कर, विधेयक को लंबित कर दे 
- Note- यदि प्रथम सदन द्वितीय सदन के संसोधनों को अस्वीकृत कर दें या द्वितीय सदन विधेयक को अस्वीकृत कर दे या 6 माह तक कोई कार्यवाही न करें तो गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है| 
- इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक बुलाई जाती है अनुच्छेद 108 के तहत| 
- राष्ट्रपति की स्वीकृति- 
- दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है- 
- अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं- 
- विधेयक पर स्वीकृति दे दे| 
- स्वीकृति सुरक्षित कर ले| 
- पुनः विचार के लिए लौटा दे| (धन विधेयक को छोड़कर) 
- धन विधेयक- 
- परिभाषा (अनुच्छेद 110)- निम्न विधेयक धन विधेयक होते है- 
- किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन 
- केंद्रीय सरकार द्वारा उधार लिए गए धन का विनियमन 
- भारत की संचित निधि या आकस्मिक निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा कराना या उससे धन निकालना 
- भारत की संचित निधि से विनियोग 
- भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि मे वृद्धि| 
- भारत की संचित निधि या लोक लेखे में किसी प्रकार की धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे व्यय या केंद्र व राज्य की निधियों का लेखा परीक्षण| 
- उपरोक्त किसी विषय का आनुषंगिक विषय| 
- निम्न कारणों से कोई विधेयक धन विधेयक नहीं माना जाएगा- 
- जुर्माना या अन्य शास्तयो का अधिरोपण करता है| या 
- अनुज्ञप्तियो के लिए फीसों या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग करता है| या 
- किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है| 
- धन विधेयक विशेषताएं- 
- धन विधेयक का निर्णय लोकसभा अध्यक्ष करता हैं| 
- अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है| 
- अध्यक्ष के निर्णय को किसी न्यायालय, संसद या राष्ट्रपति द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है| 
- धन विधेयक केवल लोकसभा में राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश या सहमति के बाद प्रस्तुत किया जाता है| 
- धन विधेयक को केवल सरकारी सदस्य (मंत्री) द्वारा ही प्रस्तुत किया जा सकता है| 
- राज्यसभा केवल धन विधेयक पर विचार व सिफारिश कर सकती है संशोधन या अस्वीकृत नहीं कर सकती है| 
- 14 दिन के अंदर राज्यसभा द्वारा स्वीकृति देना आवश्यक है, अन्यथा विधेयक को पारित समझा जाता है| 
- धन विधेयक जब राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति स्वीकृति दे सकता है या सुरक्षित रख सकता है लेकिन पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता है| 
- धन विधेयक पर संयुक्त बैठक नहीं बुलायी जा सकती है| 
- धन विधेयक की अस्वीकृति पर मंत्रीपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है| 
Note- वैसे प्रस्तुत करने से पहले राष्ट्रपति अनुमति दे देता है, अत सामान्यतः राष्ट्रपति स्वीकृति दे ही देता है|
Note- अनुच्छेद 110 में धन विधेयक की परिभाषा है, जबकि अनुच्छेद 109 में इसके पारित होने की प्रक्रिया है|
- वित विधेयक- 
- राजस्व व व्यय से संबंधित विधेयक, आगामी वित्त वर्ष में नए कर लगाने, करो में संशोधन आदि से संबंधित विषय वित्त विधेयक के अंतर्गत आते हैं| 
- वित्त विधेयक तीन प्रकार- 
- धन विधेयक (अनुच्छेद 110) 
- वित्त विधेयक I (अनुच्छेद 117(1)) 
- वित्त विधेयक II (अनुच्छेद 117(3)) 
Note- सभी धन विधेयक वित विधेयक होते हैं. लेकिन सभी वित विधेयक धन विधेयक नहीं होते हैं|
- अनुच्छेद 117(1) वित विधेयक I- 
- अनुच्छेद 110 में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंद करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुर: स्थापित किया जा सकता है| 
- ऐसा विधेयक राज्यसभा में पुर: स्थापित नहीं किया जा सकता है| 
- परंतु कर घटाने या उत्सादन के लिए उपबंद करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की आवश्यकता नहीं है| 
- स्पष्टीकरण- 
- वित्त विधेयक-1 में शामिल है- 
- वे सभी मामले जो अनुच्छेद 110 में है| 
- ऋण संबंधी खंड हो| 
- वित्त विधेयक-1 भी लोकसभा में राष्ट्रपति की सहमति से प्रस्तुत किया जाएगा| 
- अन्य सभी मामलों में वित्त विधेयक-1 सामान्य विधेयक की तरह है| 
- लेकिन इसमें प्रस्तावित कर को कम या समाप्त करने वाले संशोधन के प्रस्ताव के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश की आवश्यकता नहीं है|. 
- अनुच्छेद 117(3) वित विधेयक II- 
- भारत की संचित निधि से व्यय करना पड़े ऐसे विधेयक को किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जा सकता है जब तक उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है| 
- स्पष्टीकरण- 
- भारत की संचित निधि पर भारित व्यय (लेकिन ऐसा मामला नहीं होता जिसका उल्लेख अनुच्छेद 110 में होता है) से संबंधित विधेयक राष्ट्रपति की अनुशंसा के बिना किसी भी सदन द्वारा पारित नहीं किया जा सकता है| 
- अन्य सभी मामलों में वित्त विधेयक-II सामान्य विधेयक की तरह होता है| 
NOTE- अनुच्छेद 117(1) व(3) के अंतर्गत बाकि सभी प्रक्रिया साधारण विधेयक की ही होती है|
- सविधान संशोधन विधेयक- 
- संविधान संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख भाग- 20 में, अनुच्छेद 368 के अंतर्गत है| 
- संसद संविधायी शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान के किसी भी उपबंध मे परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन कर सकती है| 
- Note- केसवानंद भारती मामला (1973)- सविधान संशोधन के द्वारा संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता है| 
- संविधान संशोधन विधेयक पर प्रक्रिया- 
- संविधान संशोधन का आरंभ संसद के किसी भी सदन में किया जा सकता है, लेकिन विधानमंडल में नहीं| 
- मंत्री या गैर सरकारी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है| 
- राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है| 
- दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होना आवश्यक (कुल सदस्य संख्या का बहुमत तथा सदन में उपस्थित या मत देने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत) 
- विधेयक संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर है, तो आधे राज्य विधानमंडलों से सामान्य बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए| 
- संयुक्त बैठक ही नहीं बुलायी जा सकती हैं| 
- दोनों सदनों द्वारा पारित या विधानमंडल की सस्तुति (जहां आवश्यक) के बाद राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा| 
- राष्ट्रपति विधेयक पर सहमति देने के लिए बाध्य है| वे विधेयक को न तो अपने पास रख सकते हैं और न हीं संसद के पास पुनः विचार के लिए भेज सकते हैं (24 वा संविधान संशोधन 1971 अधिनियम द्वारा बाध्यकारी) 
- संशोधनों के प्रकार- 
- सामान्यत संशोधन तीन प्रकार के होते हैं- 
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन 
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन 
- संसद के विशेष बहुमत एवं आधे राज्य विधान मंडलों की सस्तुति से संशोधन 
Note- केवल 2 और 3 प्रकार ही अनुच्छेद 368 के अंतर्गत आते हैं तथा प्रकार 1 अनुच्छेद 368 के अंतर्गत नहीं आता है|
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन- 
- इसके अंतर्गत निम्न संशोधन आते हैं- 
- नये राज्य का प्रवेश व गठन 
- नये राज्य का निर्माण और राज्य के क्षेत्र, सीमाओं, नाम में परिवर्तन 
- राज्य विधान परिषद का निर्माण या उसकी समाप्ति 
- दूसरी अनुसूची में संशोधन 
- संसद में गणपूर्ति 
- संसद सदस्यों के वेतन व भत्ते 
- संसद के प्रक्रिया नियम 
- संसद, संसद के सदस्यों, संसद समितियां के विशेषाधिकार 
- संसद में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग 
- उच्चतम न्यायालय में अवर न्यायाधीशों की संख्या 
- उच्चतम न्यायालय के न्याय क्षेत्र को ज्यादा महत्व देना| 
- राजभाषा का प्रयोग 
- नागरिकता की प्राप्ति व समाप्ति 
- संसद व राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचन 
- निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण 
- केंद्रशासित प्रदेश 
- पांचवी अनुसूची 
- छठी अनुसूची 
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन- 
- कुल सदस्य संख्या का बहुमत तथा उपस्थित व मतदान करने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत से संशोधन किया जा सकता है| 
- इसके अंतर्गत निम्न संशोधन शामिल है- 
- मूल अधिकार 
- राज्य के नीति निदेशक तत्व 
- वे सभी उपबंध जो प्रथम एवं तृतीय श्रेणी से संबंधित नहीं है| 
- संसद के विशेष बहुमत एवं आधे राज्यों की स्वीकृति द्वारा- 
- संघीय ढांचे से संबंधित उपबंधो मे संशोधन इस प्रक्रिया के द्वारा होता है| 
- राज्यों द्वारा स्वीकृति देने की समय सीमा निर्धारित नहीं है| 
- इसके अंतर्गत निम्न शामिल है- 
- राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं उसकी प्रक्रिया 
- केंद्र व राज्य की कार्यकारिणी शक्ति का विस्तार 
- उच्चतम व उच्च न्यायालय 
- केंद्र व राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन 
- सातवीं अनुसूची से संबंधित कोई विषय 
- संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व 
- संविधान संशोधन करने की संसद की शक्ति (अर्थात स्वयं अनुच्छेद 368) 
- मूल अधिकारों में संशोधन या संविधान की मूल संरचना (ढांचा)- 
- क्या संसद मूल अधिकारों में संशोधन कर सकती हैं, इसके उत्तर के लिए निम्न मामले देखने पड़ेंगे- 
- शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951)- 
- इसमें संपत्ति के अधिकार समाप्ति को चुनौती दी गई है| 
- उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी की मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है| 
- यह अनुच्छेद 13 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा, क्योंकि संविधान संशोधन विधि नहीं है| 
- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967)- 
- इसमें 7 वे संविधान संशोधन को चुनौती दी गई| 
- इसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मूल अधिकार श्रेष्ठ व प्रतिरक्षित है| इस तरह संसद मूल अधिकारों को कम या समाप्त नहीं कर सकती है| 
- अर्थात संविधान संशोधन अधिनियम अनुच्छेद 13 के तहत विधि है| 
- 24 वा संविधान संशोधन (1971)- 
- संसद ने इस फैसले पर 24 वा संशोधन अधिनियम 1971 बनाकर प्रतिक्रिया दी, और कहा कि संसद को मूल अधिकारों को कम या समाप्त करने का अधिकार है या सविंधान संशोधन अनुच्छेद 13 के अंतर्गत विधि नहीं है| 
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)- 
- इसमें गोलकनाथ मामले को पलट दिया तथा 24 वे संविधान संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रख दिया| 
- S.C ने कहा कि संसद मूल अधिकारों को कम या समाप्त कर सकती है| 
- मूल ढांचे का नया सिद्धांत प्रतिपादित हुआ| 
- तथा कहा कि संसद अनुच्छेद 368 के तहत संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन करने में सक्षम नहीं है| 
- 42वां संविधान संशोधन अधिनियम (1976)- 
- इस संशोधन के द्वारा संसद ने मूल ढांचे के सिद्धांत पर प्रतिक्रिया व्यक्त की| 
- अनुच्छेद 368 को संशोधित कर संसद ने घोषणा की कि संशोधन को मूल अधिकारों से जोड़ने के आधार पर किसी न्यायालय में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है| 
- अर्थात 368 के तहत संशोधन न्यायिक समीक्षा के परे है| 
- मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)- 
- 42 वें संविधान संशोधन को अवैध ठहराया| 
- अर्थात मूल ढांचे में संशोधन न्यायिक समीक्षा के बाहर नहीं है| 
- वामन राव बनाम भारत संघ (1981)- 
- उच्चतम न्यायालय ने मूल ढांचे की बात को पुन: कहा| 
- और स्पष्ट किया कि मूल ढांचे का प्रावधान केशवानंद भारती मामले की फैसले की तारीख (24 अप्रैल 1973) के बाद प्रभावी होगा| 
- मूल ढांचे का विशेष गुण- 
- अनुच्छेद 368 के तहत संसद की वर्तमान स्थिति यह है, कि वह मूल ढांचे को प्रभावित किए बगैर मूल अधिकारों समेत संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है| 
- अनेक न्यायिक फैसलों से मूल ढांचे में निम्न को शामिल किया है- 
- संविधान की सर्वोच्चता 
- भारतीय राजपद्धति की संप्रभु, लोकतांत्रिक एवं गणतांत्रिक प्रकृति 
- संविधान की धर्मनिरपेक्ष छवि 
- विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की शक्तियों में विभाजन 
- सविधान का संघीय रूप 
- राष्ट्र की एकता व अखंडता 
- कल्याणकारी राज्य (सामाजिक-आर्थिक न्याय) 
- न्यायिक समीक्षा 
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सम्मान 
- संसदीय प्रणाली 
- विधि का शासन 
- मूल अधिकार एवं निदेशक तत्वों के बीच सामंजस्य एवं संतुलन 
- समानता का सिद्धांत 
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन 
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता 
- संविधान संशोधन के संबंध में संसद की शक्तियां 
- न्याय उपलब्धता 
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (अनुच्छेद 108)- 
- दोनों सदनों में किसी विधेयक पर गतिरोध की स्थिति होने पर संयुक्त बैठक बुलाई जाती है| 
- गतिरोध निम्न कारण से हो सकता है- 
- विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकार कर दिया जाए| 
- प्रथम सदन दूसरे सदन के संशोधनों को मानने को तैयार न हो| 
- दूसरे सदन द्वारा बिना विधेयक पास किए 6 महीने से ज्यादा समय हो गया हो| 
- संयुक्त बैठक राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती है| 
- संयुक्त बैठक साधारण व वित्त विधेयक पर ही बुलाई जाती है| धन विधेयक व संविधान संशोधन विधेयक पर नहीं| 
- यदि लोकसभा विघटन होने के कारण विधेयक छूट जाता है तो संयुक्त बैठक नहीं बुलाई जाएगी 
- लेकिन राष्ट्रपति विघटन से पूर्व संयुक्त बैठक का नोटिस जारी कर देते हैं, तो संयुक्त बैठक बुलायी जा सकती है| 
- दोनों सदनों की संयुक् बैठक की अध्यक्षता- 
- लोकसभा अध्यक्ष [अनुच्छेद 118(4)] 
- उपाध्यक्ष (लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति रहने पर) 
- उपसभापति (उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में) 
- उपसभापति भी न हो तो संयुक्त बैठक में उपस्थित सदस्य निर्णय करेंगे की अध्यक्षता कौन करेगा | 
Note- सभापति संयुक्त बैठक की अध्यक्षता नहीं कर सकते हैं|
- संयुक्त बैठक में गणपूर्ति- दोनों सदनों की कुल संख्या का 1/10 भाग 
- संयुक्त बैठक की कार्यवाही- लोकसभा के प्रक्रिया नियमों के अनुसार 
- संयुक्त बैठक में संशोधन केवल दो परिस्थितियों में- 
- वे संशोधन जिस पर दोनों सदन अंतिम निर्णय न ले पाये हो| 
- वे संशोधन जो विधेयक के पारित होने में विलंब कारणों से अनिवार्य हो गए हो| 
- अब तक तीन बार संयुक्त बैठक बुलायी जा चुकी है- 
- दहेज प्रतिषेध विधेयक 1960- 
- कारण- राज्यसभा द्वारा किए गए संशोधन से लोकसभा सहमत नहीं थी| 
- बैंक सेवा आयोग विधेयक 1977- 
- कारण- लोकसभा द्वारा पारित लेकिन राज्यसभा द्वारा अस्वीकार 
- आतंकवाद निवारण विधेयक 2000 
- कारण- लोकसभा द्वारा पारित लेकिन राज्य सभा द्वारा अस्वीकार 
- संसद में बजट-
- अनुच्छेद 112 में उल्लेख 
- अनुच्छेद 112 या संविधान में बजट शब्द का उल्लेख नहीं है बल्कि बजट के स्थान पर वार्षिक वित्तीय विवरण शब्द का प्रयोग किया गया है| 
- बजट में वित्तीय वर्ष के दोरान भारत सरकार की अनुमानित प्राप्तियो और व्यय का विवरण होता है| 
- वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है| 
- बजट में निम्न शामिल होंगे- 
- राजस्व एवं पूंजी की अनुमानित प्राप्तियां 
- राजस्व बढ़ाने के उत्पाद व साधन 
- खर्च का अनुमान 
- वास्तविक प्राप्तियां एवं खर्च का विवरण (समाप्त हो चुके वर्ष की) 
- आने वाले साल के लिए आर्थिक एवं वित्तीय नीति, कर व्यवस्था, खर्च की योजना एवं नई परियोजना| 
- भारत में दो तरह की बजट होते हैं- 
- आम बजट 
- रेलवे बजट 
- रेलवे बजट को आम बजट से एकवर्थ समिति (1919) की सिफारिश पर 1921 में अलग किया गया| 
- 2018 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रेलवे बजट को आम बजट के साथ पेश किया| 
- बजट के संवैधानिक उपबंध 
- राष्ट्रपति इसे हर वित्त वर्ष में संसद के दोनों सदनों में पेश करवायेगा| 
- बिना राष्ट्रपति की सिफारिश के कोई अनुदान की मांग नहीं की जा सकती| 
- विधि निर्मित विनियोग के अलावा भारत की संचित निधि से कोई धन नहीं निकाला जाएगा| 
- कर निर्धारण वाला विधेयक राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है| 
- संसद किसी कर को कम या समाप्त कर सकती है बढ़ा नहीं सकती है| 
- विधि प्राधिकृत के सिवाए किसी कर की उगाही या संग्रहण नहीं किया जाएगा| 
- बजट में व्यय अनुमान को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय और संचित निधि से किए गए व्यय को अलग-अलग दिखाना होगा| 
- बजट में राजस्व खाता से व्यय और अन्य खातों से व्यय को अलग दिखाना होगा| 
- संचित निधि पर भारित व्यय [अनु 112(3)] 
- संचित निधि से व्यय- 
- संचित निधि पर भारित व्यय 
- संचित निधि से किए गए व्यय 
- संचित निधि पर भारित व्यय पर मतदान नहीं होता है, केवल चर्चा होती है| 
- अन्य व्यय पर मतदान व चर्चा दोनों हो सकते हैं| 
- संचित निधि में भारित व्यय में निम्न शामिल होंगे- 
- राष्ट्रपति की परिलब्धियां (वेतन) और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय 
- सभापति, उपसभापति, लोकसभा अध्यक्ष, एवं उपाध्यक्ष के वेतन-भत्ते 
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, पेंशन 
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन 
- CAG के वेतन, भत्ते एवं पेंशन 
- ऐसे ऋण जिनका दायित्व भारत सरकार पर है| 
- किसी न्यायालय एवं मध्यस्थ अभिकरण के निर्णय, डिक्री या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशि 
- कोई अन्य जो संविधान द्वारा, संसद द्वारा, विधि द्वारा भारित व्यय घोषित किया जाए| 
- बजट पारित होने की प्रक्रिया- 
- बजट का प्रस्तुतीकरण- 
- राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों में पेश करवाया जाता है| 
- वित्त मंत्री सदन में भाषण देता है, जिसे बजट भाषण कहा जाता है| 
- बजट भाषण के बाद वित्त मंत्री लोकसभा में बजट पेश करता है| 
- राज्यसभा में बाद में पेश किया जाता है| 
- आम बहस- 
- दोनों सदन तीन-चार दिन आम बहस या चर्चा करते हैं| 
- मतदान नहीं होता है| 
- विभागीय समितियों द्वारा जांच- 
- आम बहस के बाद सदन 3 से 4 सप्ताह तक स्थगित हो जाता है| 
- इस समय विभागीय समितियां अनुदान की मांग आदि की जांच करती है| 
- एक रिपोर्ट तैयार कर दोनों सदनों के विचारार्थ रखती है| 
- अनुदान की मांगों पर मतदान- 
- अनुदान की मांगों पर मतदान केवल लोकसभा में होता है राज्यसभा में नहीं| 
- आम बजट में 109 मांगे (103 आम नागरिक +6 सेना खर्च) 
- रेल बजट में 32 मांगे| 
- प्रत्येक मांग पर लोकसभा में अलग से मतदान होता है| 
- संसद सदस्य अनुदान मांगों पर कटौती के लिए निम्न कटौती प्रस्ताव ला सकते हैं- 
- नीति कटौती प्रस्ताव- 
- यह मांग की नीति के प्रति असहमति व्यक्त करता है| 
- इसमें मांग की राशि को ₹1 करने के लिए कहा जाता है| 
- संसद सदस्य कोई वैकल्पिक नीति भी पेश कर सकते हैं| 
- आर्थिक कटौती प्रस्ताव- 
- इसे तब लाया जाता है, जब प्रस्तावित व्यय से अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है| 
- इसमें मांग की राशि को एक निश्चित सीमा तक कम करने के लिए कहा जाता है| (मांग की राशि में एक मुश्त कटौती/ पूर्ण समाप्ति/ मांग के किसी मद में कटौती) 
- सांकेतिक कटौती प्रस्ताव- 
- यह प्रस्ताव भारत सरकार के किसी दायित्व से संबंधित होता है| 
- इसमें मांग की राशि में ₹100 की कमी करने के लिए कहा जाता है| 
- गिलोटिन- 
- अनुदान मांगों पर मतदान के लिए 26 दिन निर्धारित है| 
- अंतिम दिन सभी मांगो को अध्यक्ष द्वारा पेश व निपटान कराया जाता है| 
- चाहे चर्चा हो गयी या नहीं 
- इसे गिलोटिन के नाम से जाना जाता है| 
- विनियोग विधेयक (अनुच्छेद 114)- 
- अनुदान राशियों एवं भारत की संचित निधि पर भारित व्यय को संचित निधि से निकालने के लिए विनियोग विधेयक पुर: स्थापित किया जाता है| 
- विनियोग विधेयक धन विधेयक होता है अत: इसके पारित होने की प्रक्रिया धन विधेयक के समान है| 
- वित्त विधेयक का पारित होना- 
- वित्त विधेयक बजट के आम पक्ष को विधिक मान्यता देता है और बजट को प्रभावी स्वरूप देता है| 
- अन्य अनुदान- 
अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान (अनुच्छेद 115)-
- अनुपूरक अनुदान- 
- जब किसी विशेष सेवा हेतु विनियोग अधिनियम द्वारा प्राधिकृत राशि चालू वित्तीय वर्ष में अपर्याप्त पायी जाए तथा अनुपूरक व्यय कि आवश्यकता पड़ जाए| 
- अतिरिक्त अनुदान- 
- जब किसी नई सेवा के लिए बजट में व्यय परीकल्पित न किया गया हो और चालू वित्तीय वर्ष में अतिरिक्त व्यय की आवश्यकता पड़ गई हो| 
- अधिक अनुदान- 
- जब चालू वित्तीय वर्ष में बजट में किसी के मद लिए निर्धारित व्यय से अधिक व्यय हो जाए| 
लेखानुदान, प्रत्यानुदान, अपवादानुदान (अनुच्छेद 116)-
- लेखानुदान- 
- बजट निर्माण में संसद में काफी समय लग जाता है| यह अप्रैल तक खिंच जाता है| इस स्थिति से निपटने की शक्ति सविधान ने लोकसभा को दी है| लोकसभा द्वारा लेखानुदान के द्वारा विशेष कार्यों के लिए अग्रिम ऋण दिया जाता है| 
- प्रत्यानुदान- 
- जब किसी सेवा या मद के लिए आकस्मिक रूप से धन की तुरंत एवं अत्यधिक आवश्यकता होती है, तो प्रत्यानुदान की मांग रखी जाती है| 
- यह लोक सभा द्वारा कार्यपालिका को दिया ब्लैंक चेक होता है| 
- अपवादानुदान- 
- यह विशेष प्रयोजन के लिए मंजूर किया जाता है| यह वर्तमान वित्तीय वर्ष या सेवा से संबंधित नहीं होता है| 
- निधियां-
- भारतीय संविधान में तीन तरह की निधियों की व्यवस्था है- 
- भारत की संचित निधि [अनुच्छेद 266(1)] 
- भारत का लोक लेखा [अनुच्छेद 266(2)] 
- भारत की आकस्मिकता निधि (अनुच्छेद 267) 
- भारत की संचित निधि [अनुच्छेद 266(1)]- 
- यह एक ऐसी निधि है, जिसमें से प्राप्तियां उधार ली जाती है और भुगतान जमा किया जाता है| 
- संचित निधि में निम्न शामिल होंगे- 
- भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व 
- भारत सरकार द्वारा लिए गए सभी उधार 
- उधारो के प्रतिसंदायो से उस सरकार द्वारा प्राप्त सभी धनराशि| 
- भारत का लोक लेखा [अनुच्छेद 266(2)]- 
- भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी अन्य लोक धन राशियां (संचित निधि को छोड़कर) लोक लेखा में जमा होंगे| 
- भारत की आकस्मिकता निधि (अनुच्छेद 267) - 
- संविधान, संसद को आकस्मिक निधि के गठन का अधिकार देता है| 
- यह निधि भारत की आकस्मिकता निधि अधिनियम 1950 द्वारा 1950 में गठित की गई| 
- आकस्मिक निधि राष्ट्रपति के अधिकार में रहती है| 
- राष्ट्रपति किसी अप्रत्याशित व्यय के लिए इससे अग्रिम दे सकता है| 
- भारत की आकस्मिक निधि में कितनी धन राशि हो, इसका निर्धारण संसद विधि बनाकर करती है| 
- संसदीय समितियां- 
- संसदीय समितियां सामान्यतया दो प्रकार की होती है- 
- स्थायी समितियां 
- अस्थायी या तदर्थ समितियां 
- स्थायी समिति- 
- यह स्थायी होती हैं, प्रत्येक वर्ष इनका गठन किया जाता है| 
- अस्थायी या तदर्थ समिति- 
- यह अस्थायी होती है तथा कार्य पूरा होने पर समाप्त कर दी जाती है| 
- यह दो प्रकार की होती हैं- 
- जांच समितियां- विभिन्न मामलों की जांच के लिए संयुक्त समिति गठित की जाती है| जैसे- स्टाक घोटाला, बोफोर्स घोटाला 
- सलाहकार समिति- यह किसी विधेयक पर प्रवर या संयुक्त समिति होती है जिसका गठन किसी विधेयक विशेष पर चर्चा के लिए किया जाता है| 
- लोक लेखा समिति- 
- स्थापना- 
- 1921, (भारत सरकार अधिनियम 1919 के तहत) 
- कुल सदस्य- 
- 22 सदस्य 
- लोकसभा से 15 
- राज्यसभा से 7 
- सदस्यों का चुनाव- 
- संसद का प्रत्येक सदन प्रत्येक वर्ष अपने सदस्यों में से एकल संक्रमणीय सिद्धांत के आधार पर चुनता है| 
- इस समिति में सभी दलों का प्रतिनिधित्व होता है| 
- किसी मंत्री को नहीं चुना जाता है| 
- सदस्यों का कार्यकाल- 
- 1 वर्ष होता है| 
- अध्यक्ष का चुनाव- 
- सदस्यों के बीच में किसी को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा| 
- 1966- 67 तक अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल से चुना जाता था| 
- 1967 से विपक्षी दल से चुना जाने लगा है| 
- कार्य- 
- नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट की जांच करना 
- आर्थिक घोटाले, अनियमितता, भ्रष्टाचार, अपव्यय, अकुशलता, अनावश्यक व्यय से संबंधित शिकायतों की जांच करना| 
- Note- इन कार्यों में समिति को CAG द्वारा सहायता दी जाती है| 
- प्राक्कलन समिति- 
- गठन- 1950 
- तत्कालीन वित्त मंत्री जॉन मथाई की सिफारिश पर 
- सदस्य- 
- मुलत 25 
- वर्तमान- 30 (1956 से) 
- सभी सदस्य लोकसभा से होते हैं| 
- सदस्यों का चुनाव- 
- लोकसभा सदस्यों के बीच में से एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के द्वारा (कोई मंत्री सदस्य के रूप में नहीं चुना जाता) 
- सदस्यों का कार्यकाल- 
- 1 वर्ष होता है| 
- अध्यक्ष का चुनाव- 
- सदस्यों के बीच में से लोकसभा अध्यक्ष द्वारा 
- सत्तारूढ़ दल का सदस्य होता है| 
- कार्य- 
- बजट में सम्मिलित अनुमानों की जांच करना| 
- लोक व्यय मितव्ययिता के सुझाव देना| 
- अतः इसे सतत आर्थिक समिति भी कहते हैं| 
- समिति अपनी रिपोर्ट संसद को देती है| 
- सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति- 
- गठन- 1964 
- कृष्ण मैनन समिति के सुझाव पर 
- सदस्य- 
- मुलत 15 (10 लोकसभा+ 5 राज्यसभा) 
- वर्तमान 22 (15 लोकसभा+ 7 राज्यसभा) 1974 से 
- सदस्यों का निर्वाचन- 
- संसद के सदस्यों में से एकल संक्रमणीय सिद्धांत के आधार पर 
- कोई मंत्री सदस्य नहीं बन सकता है| 
- कार्यकाल- 
- 1 वर्ष का होता है| 
- सभापति- 
- सदस्यों के बीच में से एक को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा 
- सभापति लोकसभा का सदस्य होना चाहिए| 
- कार्य- 
- सरकारी उपक्रमों के लेखा व रिपोर्ट का परीक्षण 
- सरकारी उपक्रम पर CAG की रिपोर्ट का परीक्षण 
- सरकारी उपक्रमों का व्यवसाय के सिद्धांतों एवं वाणिज्य प्रयोग के तहत काम का परीक्षण| 
- लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सोपे गए लोक लेखा समिति और प्राकलन समिति से संबंधित अन्य कार्य| 
- संसद का सचिवालय (अनुच्छेद 98)- 
- अनुच्छेद 98(1)- संसद के प्रत्येक सदन का प्रथक सचिवालय होगा| 
- अनुच्छेद 98(2)- संसद विधि बनाकर सचिवालय में भर्ती व नियुक्त व्यक्तियों के सेवा शर्तों के नियम बना सकती है| 
- अनुच्छेद 98(3)- जब तक संसद नियम नहीं बनाती, तब तक राष्ट्रपति अध्यक्ष या सभापति से परामर्श करके भर्ती व सेवा शर्तों के नियम बना सकता है| 
- महासचिव- 
- प्रत्येक सदन के सचिवालय का प्रशासनिक प्रमुख महासचिव होता है| 
- भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को महासचिव नियुक्त किया जाता है| 
- नियुक्ति- 
- राज्यसभा महासचिव की नियुक्ति सभापति द्वारा 
- लोकसभा महासचिव की नियुक्ति अध्यक्ष द्वारा 
- दर्जा- 
- दोनों महासचिवों का दर्जा कैबिनेट सचिव (भारत सरकार का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी) के समकक्ष होता है| 
Note- 1990 से पहले सचिव का दर्जा किसी विभाग के सचिव के समकक्ष था|
- सचिवालय की स्थापना 1952 में की गई थी| 
- कार्य- 
- महासचिव, अध्यक्ष या सभापति के संवैधानिक एवं सांविधिक उत्तरदायित्वो के निर्वहन में सहायता करता है| 
- वर्तमान महासचिव- 
- राज्यसभा महासचिव- P C मोदी 
- लोकसभा महासचिव- श्री उत्पल कुमार सिंह 
- लोकसभा में प्रथम महिला महासचिव- श्रीमती स्नेहलता श्रीवास्तव 
- राज्यसभा में प्रथम महिला महासचिव- V.S रामा देवी 
अन्य तथ्य-
- लोकसभा में अनुच्छेद 330 के तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिया गया है| 2001 की जनगणना के अनुसार वर्तमान में SC की 84 व ST की 47 सीटें आरक्षित हैं| 
- लोकसभा में राजस्थान से कुल 25 स्थान आवंटित है, जिसमें से 4 अनुसूचित जातियों के लिए तथा 3 अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं| 
- राज्यसभा में राजस्थान को 10 स्थान आवंटित है| 
- त्रिशंकु संसद- जब आम चुनाव के बाद किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए स्पष्ट बहुमत ना मिले तो वह त्रिशंकु संसद होती है| 
- फ्लोर क्रॉसिंग (पक्ष त्याग)- दलबदल करना या अपनी पार्टी के विपरीत दूसरी पार्टी के हित में गतिविधियां करना तथा उसकी सदस्यता लेना| 
- डेड लॉक (deadlock)- किसी विधेयक पर दोनों सदनों में गतिरोध की स्थिति को डेड लोक कहा जाता है| 
- लोकसभा में सर्वाधिक सीटें (80 सीटें) उत्तर प्रदेश राज्य को प्राप्त है| दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है जिसको 48 सीटें प्राप्त है| 
- राज्यसभा में सर्वाधिक सीटें उत्तर प्रदेश को 31 सीटें प्राप्त है| दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है जिसको 19 सीटें प्राप्त हैं| 

 
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