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जॉन स्टूअर्ट मिल (John Stuart mill) (1806-1873)

जॉन स्टूअर्ट मिल (John Stuart mill) (1806-1873)




जीवन परिचय-

  • जन्म-  

  • 20 मई 1806 

  • लंदन (इंग्लैंड) में


  • पिता- जेम्स मिल (विख्यात बेंथमवादी व बेंथम का शिष्य था)

  • गुरु- बेंथम

  • इसके पिता जेम्स मिल ने इनको बचपन से ही बेंथम के आदर्शों के अनुसार ढालने का प्रयत्न किया|

  • बाल्यावस्था से ही जे एस मिल की अध्ययन में गहन रुचि थी|

  • मात्र 8 वर्ष की अवस्था में मिल ने जेनोफोन, हेरोडोटस, आइसोक्रेट्स के ग्रंथों व प्लेटो के 6 संवादों का अध्ययन पूर्ण कर लिया|

  • 11 वर्ष की अवस्था में लिवि द्वारा लेटिन भाषा में लिखित ‘रोमन इतिहास’ पढ़ना शुरू किया|

  • 13 वर्ष की अवस्था में एडम स्मिथ व रिकार्डो की अर्थशास्त्र संबंधी पुस्तकों, तर्कशास्त्र, मनोविज्ञान का अध्ययन प्रारंभ किया|

  • 16 वर्ष की आयु में मिल ने उपयोगितावादी सोसाइटी बनाई|

  • मिल ने बेंथम की पुस्तक ‘कानून के सिद्धांत’ को पढ़ा इस पुस्तक के बारे में मिल ने अपनी ‘आत्मकथा’ में लिखा है कि “इस पुस्तक के अध्ययन से मेरे जीवन में और मानसिक विकास में नवयुग का श्रीगणेश हुआ|”

  • 17 वर्ष की आयु ईस्ट इंडिया कंपनी में एक क्लर्क के रूप में नियुक्त हुआ तथा सन 1856 में अपने विभाग का अध्यक्ष बन गया|

  • 1830 में मिल श्रीमती हेरियट टेलर से मिले तथा दोनों 20 वर्ष तक अच्छे मित्र रहे|

  • श्रीमती टेलर के पति की मृत्यु के बाद 1851 में दोनों विवाह सूत्र में बंध गये|

  • मिल ने अपना प्रसिद्ध निबंध ‘On liberty’ श्रीमती टेलर को समर्पित किया है|

  • जीवन के अंतिम दिन फ्रांस के ‘एविंगनॉन’ नामक नगर में पत्नी की कब्र के पास व्यतीत किए|

  • 1873 में मिल की मृत्यु हो गई|

  • मिल 1865 में संसद का सदस्य निर्वाचित हुआ तथा 1865 से 1868 तक संसद के सदस्य के रूप में आयरलैंड में भूमि सुधार, किसानों की स्थिति में सुधार के कार्य किए|

  • मिल उपयोगितावाद के अंतिम समर्थक थे तथा साथ ही व्यक्तिवाद के प्रथम समर्थक माने जाते हैं|

  • संसद में उग्र विचारक के रूप में प्रसिद्ध था| प्रधानमंत्री ग्लेडस्टन ने एक बार कहा था कि “जब मिल का भाषण होता था तो मुझे सदैव यह अनुभूति होती थी कि मैं किसी संत का प्रवचन सुन रहा हू|” 

  • मिल पर अपने पिता जेम्स मिल, अपने गुरु बेंथम तथा अपनी पत्नी हैरियट टेलर का प्रभाव पड़ा है|



रचनाएं-

  1. Plato's dialogue (1834)

  2. The system of Logic (1843)

  3. Some unsettled questions in political economy

  4. The Principle of Political economy (1848)-


Note- An Introduction to Political Economy- रूसो

          Critical of Political Economy- कार्ल मार्क्स


  1. Enfranchisement Of women

  2. On the improvement in the Administration of India 1858

  3. A treatise On Liberty या On Liberty 

  4. Thoughts on Parliamentary Reforms 

  5. Consideration of representative government (1861)

  6. Utilitarianism (उपयोगितावाद) (1863) 

  7. Examination of Hamilton’s Philosophy (1865)

  8. Auguste Comte And Positivism 

  9. Subjection of women (1869)

  10. Autobiography

  11. Three Essays on Religion 

  12. Letters


The System of Logic (1843)- 

  • न्यायिक अनुसंधान पर लिखा गया ग्रंथ है|

  • इस पुस्तक में मिल ने लॉक के अनुभववाद, ह्यूम के सहयोगी मनोविज्ञान तथा न्यूटन के भौतिकशास्त्र को शामिल किया है|


The Principle of Political Economy 1848-

  • 1868 में इसका चतुर्थ संस्करण आया, जिसमें कल्याणकारी अर्थशास्त्र का समर्थन किया गया है| 

  • Note- 1848 में कार्ल मार्क्स का कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो भी आया था| 


On Liberty (1859)-

  • राजनीति शास्त्र पर लिखित महत्वपूर्ण कृति है|

  • On Liberty को अपनी पत्नी हैरियट टेलर को समर्पित करते हुए मिल लिखता है कि “मेरे लेखों में जो भी सर्वोत्तम है, उसकी वह प्रेरक थी और आंशिक रूप में उसकी लेखिका भी थी| वह मेरी मित्र और पत्नी थी जिसकी सत्यं और शिव की उत्कृष्ट भावना मेरी सबसे प्रबल प्रेरणा रही थी, जिसकी प्रशंसा ही मेरा प्रथम पुरस्कार है|”

  • On Liberty पुस्तक में स्वतंत्रता संबंधी विचार तथा हानि के सिद्धांत का उल्लेख किया गया है|


Consideration of Representative Government

  • इस पुस्तक में प्रतिनिधि सरकार, आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का वर्णन है|


The Subjection of Women (1869)-

  • इसको मिल ने अपनी सौतेली बेटी हेलेन टेलर के सहयोग से लिखा था|

  • इसमें मिल ने महिला मताधिकार का समर्थन किया है|


  • मिल की रचनाओं के संबंध में मैक्सी ने लिखा है कि “अपने आचार शास्त्र एवं राजनीति संबंधी विचारों में मिल में हमें एक संघर्ष दिखाई देता है और यह संघर्ष है- उसकी बौद्धिक सामग्री, जो उसने उन उपयोगितावादी गुरुजनों से विरासत में प्राप्त की थी, जिनके लिए उसने ह्रदय में प्रेम था और जिस पर वह खुले मस्तिष्क तथा संवेदनात्मक पर्यवेक्षण के कारण पहुंचा था|”



अध्ययन पद्धतियों का वर्गीकरण-

  • मिल ने चार प्रकार की अध्ययन पद्धतियां बताई हैं-

  1. रासायनिक अध्ययन पद्धति

  2. ज्यामितिक अध्ययन पद्धति

  3. भौतिक अध्ययन पद्धति

  4. ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति


  • मिल के अनुसार रासायनिक पद्धति केवल रसायनशास्त्र के लिए उपयोगी है| ज्यामितिक अध्ययन पद्धति का भी प्रयोग राजनीतिशास्त्र में नहीं किया जा सकता क्योंकि यह निगमनात्मक है| अतः मिल के अनुसार भौतिक एवं ऐतिहासिक पद्धतियों का प्रयोग ही राजनीतिशास्त्र में किया जा सकता है|

  • भौतिक पद्धति निगमनात्मक व आगमनात्मक दोनों का मिश्रण है तथा ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति आगमनात्मक होती है|


Note- मिल ने अपनी रचनाओं में भौतिक एवं ऐतिहासिक पद्धति का मिश्रण प्रयोग किया है| इन दोनों के समन्वय को समाजशास्त्रीय पद्धति कहते हैं|



J.S. मिल के उपयोगितावादी विचार-

  • मिल ने अपने उपयोगितावादी संबंधी विचार अपने ग्रंथ Utilitarianism में दिए है| 

  • मिल बेंथम के उपयोगितावाद में संशोधन करता है| संशोधन के चक्कर में वह उपयोगितावाद का स्वरूप ही बदल देता है| इस पर वेपर कहता है कि “उपयोगितावाद पर लगाए गए आरोपों से उसकी रक्षा करने की इच्छा से मिल ने संपूर्ण उपयोगितावाद को ही एक तरफ फेंक दिया|”

  • मिल उपयोगितावाद के स्थान पर व्यक्तिवाद पर अधिक बल देता है, इसलिए मिल को ‘अंतिम उपयोगितावादी’ तथा ‘प्रथम व्यक्तिवादी’ दार्शनिक माना जाता है|

  • मिल के अनुसार “वही कार्य उसी अनुपात में सही है, जिस अनुपात में सुख की वृद्धि करता है|”


मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में निम्न संशोधन किए

  1. सुखों में मात्रात्मक ही नहीं, गुणात्मक अंतर भी होता है-

  • बेंथम जहां सुखों में केवल मात्रात्मक अंतर स्वीकार करता है, वही मिल मात्रात्मक व गुणात्मक दोनों अंतर स्वीकार करता है| मिल के अनुसार शारीरिक सुखों की अपेक्षा मानसिक सुख श्रेष्ठ होता है|

  • मिल के अनुसार “एक संतुष्ट शुकर की अपेक्षा एक असंतुष्ट मनुष्य होना कहीं अच्छा है, एक संतुष्ट मूर्ख की अपेक्षा एक असंतुष्ट सुकरात होना कहीं अच्छा है| और यदि मूर्ख और शूकर का मत इसके विपरीत है तो इसका कारण यह है कि वे केवल अपना पक्ष ही जानते हैं, जबकि सुकरात व मानव दोनों ही पक्षों को समझता है|”


  1. सुखों की गणना पद्धति में परिवर्तन- 

  • मिल के द्वारा सुखों में गुणात्मक भेद मान लेने पर बेंथम के सुखवादी मापक यंत्र का कोई महत्व नहीं रहता है| मिल के अनुसार सुखवादी मापक यंत्र से सुखों को नहीं मापा जा सकता है, बल्कि विद्वानों के प्रमाण ही सुखों की जांच के सही आधार है|


  1. बेंथम के सिद्धांत का उद्देश्य सुख या आनंद प्राप्ति है तथा मिल के सिद्धांत का उद्देश्य शालीनता और सम्मान है

  • मिल के अनुसार जीवन का अंतिम उद्देश्य उपयोगितावाद ही नहीं है, बल्कि शालीनता है|

  • मिल के अनुसार “वह आनंद श्रेष्ठ है, जो शालीनता व सम्मान में वृद्धि करें|”

  • वेपर के अनुसार “मिल नैतिक उद्देश्यों को सुख या प्रसन्नता से ऊंचा मानता है|”

  • मिल राज्य को नैतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक नैतिक संस्थान मानता है| राज्य का उद्देश्य उपयोगिता नहीं, वरन व्यक्ति में नैतिक गुणों का विकास करना है|


  1. मिल की नैतिकताएं बेंथम से अधिक संतोषजनक है

  • बेंथम ने नैतिक बाधा का कारण केवल मनुष्य की स्वार्थपरता को माना है जबकि मिल नैतिकता में बाधा का कारण भय, स्मृति, स्वार्थ, प्रेम, सहानुभूति तथा धार्मिक भावनाएं माना है|


  1. स्वतंत्रता उपयोगिता से अधिक उच्च और मौलिक- 

  • बेंथम जहां स्वतंत्रता को उपयोगितावाद से निम्न मानता है, वहीं मिल स्वतंत्रता को उपयोगितावाद से उच्च मानता है|


  1. सामाजिक सुख अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होता है-

  • मिल का मत है कि व्यक्ति अपने सुख के लिए कार्य करता है, लेकिन वह सुख सामाजिक सुख का रूप धारण कर लेता है| जैसे किसी व्यक्ति को कष्ट में देखकर मनुष्य उसकी सहायता करता है तो इस कार्य से उसे स्वयं को भी सुख प्राप्त होता है| इस प्रकार मिल के अनुसार सामाजिक सुख अप्रत्याशित रूप से प्राप्त होता है|


  1. मिल का उपयोगितावाद नैतिक है तो बेंथम का उपयोगितावाद राजनीतिक है-


  1. मिल द्वारा अंतःकरण के तत्व पर बल- 

  • बेंथम ने उपयोगितावाद के भौतिक पक्ष पर बल देते हुए बाह्य पक्ष पर बल दिया है, वही मिल ने आंतरिक पक्ष पर बल दिया है| मिल के मत में नैतिक व शुभ कार्यों से हमारे अंतःकरण को सुख व शांति प्राप्त होती है|


  1. व्यक्तिगत सुखों के स्थान पर सामूहिक सुख पर बल- 

  • मिल ने बेंथम के समान व्यक्तिक सुख पर अधिक बल न देकर सामाजिक हित पर बल देता है तथा सामाजिक सुख में ही व्यक्तिगत सुख की कल्पना करता है, मिल के अनुसार सुख साध्य है तथा नैतिकता साधन है व नैतिकता पूर्णत: सामाजिक है|

  • मिल के अनुसार उपयोगितावादी मानदंड व्यक्ति का अधिकतम सुख न होकर, अधिकतम सामूहिक सुख है| 

 

  1. बेंथम ने फ्रांसीसी उपयोगितावादियों द्वारा वर्णित मानव प्रकृति का सरल चित्रण किया है, जबकि मिल ने ह्यूम के परिष्कृत उपयोगितावाद का अनुसरण किया है| 


  1. बेंथम ने सुख (Pleasure) व आनंद (Happiness) को एक माना है, वहीं मिल ने दोनों को अलग-अलग माना है|


  1. सुख के प्रकार-

  • मिल के अनुसार सुख दो प्रकार के होते हैं-

  1. नैतिक सुख- जैसे काव्य पाठ

  2. भौतिक सुख- जैसे पुष्पीन का खेल 

  • मिल के अनुसार नैतिक या आध्यात्मिक सुख, भौतिक सुख से उच्च स्तर का होता है|


  • इस प्रकार मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद में संशोधन किया, जिसके संबंध में मिल ने कहा कि “मैं वह पीटर हूं, जो अपने स्वामी को नहीं मानता|”


मिल के उपयोगितावादी विचारों का मूल्यांकन-

  • एबेन्स्टाइन “मिल ने अपने जीवन या चिंतन का प्रारंभ उपयोगितावादी के रूप में किया और अंत  समाजवादी के रूप|”

  • सेबाइन “मिल ने बेंथम के सिद्धांत में अत्यधिक परिवर्तन तो किए किंतु स्वयं कोई नया सिद्धांत देने में असमर्थ रहा|”

  • वेपर “उसकी रचनाओं में राज्य का नकारात्मक चरित्र लोप हो जाता है|”

  • मैक्सी “मिल की उपयोगितावाद की पुनर्समीक्षा में बेंथम की मान्यताओं का बहुत कम अंश रह गया|”

  • वेपर “मिल ने राज्य को नैतिक उद्देश्य से युक्त नैतिक संस्था बना दिया|” 



मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार-

  • मिल ने स्वतंत्रता संबंधी विचार अपनी पुस्तक On Liberty में प्रस्तुत किए है|

  • मिल नकारात्मक स्वतंत्रता का पक्षधर है, जिसका तात्पर्य है प्रतिबंधों का अभाव|

  • मिल ने मानव स्वतंत्रता के व्यक्तिवादी रूप का प्रतिपादन किया है, इसलिए सेबाइन ने कहा है कि “मिल का व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन उपयोगितावादी समर्थन से कुछ अधिक है|”

  • मिल को प्राय व्यक्ति की स्वतंत्रता का दूत कहा जाता है, किंतु बार्कर का कहना है कि “मिल सारहीन (खोखली) स्वतंत्रता का दूत है|”

  • मिल के मत में व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतंत्रता की आवश्यकता है|

  • मिल के मत में “व्यक्ति अपने शरीर व मस्तिष्क का स्वयं ही स्वामी है|” 

  • मिल “अपने तरीके से अपनी भलाई करने की स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति को हो, बशर्तें कि ऐसा करते समय अन्य लोगों के प्रयासो में बाधा उत्पन्न ना हो|”

  • मिल “खाने व कपड़े पहनने के बाद स्वतंत्रता मानव प्रकृति की आवश्यकता है|” 

  • व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए राज्य और समाज के हस्तक्षेप से रक्षा होना जरूरी है| 

  • राज्य या समाज केवल ‘आत्मरक्षा’ तथा दूसरे की स्वतंत्रता में बाधक होने पर ही हस्तक्षेप कर सकता है इसके अलावा व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए|

  • मिल के अनुसार स्वतंत्रता व्यक्ति पर व्यक्ति की प्रभुसत्ता है|

  • बेंथम जहां स्वतंत्रता को सुख प्राप्ति का साधन मानता है, वही मिल स्वतंत्रता को साध्य मानता है| 


  • मिल स्वतंत्रता के दो प्रकार बताता है- 

  1. विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

  2. कार्यों की स्वतंत्रता


  1. विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-

  • इसमें भाषण व प्रकाशन की स्वतंत्रता भी शामिल है| 

  • मिल विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध न लगाने के पक्ष में है, चाहे वह विचार समाज के अनुकूल हो या प्रतिकूल| 

  • मिल के अनुसार यदि संपूर्ण समाज एक ओर हो और अकेला व्यक्ति दूसरी ओर, तो भी उस व्यक्ति को विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए|

  • मिल “मानव की विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना वर्तमान व भविष्य की पीढ़ी को लूटने के समान है|”

  • विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानसिक स्वास्थ्य व समाज की प्रगति के लिए आवश्यक है|

  • कोई व्यक्ति आंशिक सत्य बोलता है, यहां तक मिथ्या भाषण करता है तो भी राज्य को प्रतिबंध नहीं लगाने चाहिए| सनकी व्यक्ति को भी विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए|

  • मिल कहता है कि “स्वतंत्रता को खतरा सरकार से नहीं बल्कि बहुमत के अत्याचार से है| कोई भी समाज जिसमें सनकीपन, मजाक व तिरस्कार का विषय न हो, वह पूर्ण समाज नहीं हो सकता|”

  • मिल “सार्वजनिक स्वतंत्रता को तानाशाही शासन के बजाय लोकतंत्र में ज्यादा खतरा है, क्योंकि स्वशासन आते ही लोग अपनी स्वतंत्रता के प्रति शिथिल हो जाते हैं|”


  • Note- मिल से पूर्व फ्रांसीसी विचारक अलेक्सी द टॉकवील ने भी अपनी रचना ‘Democracy in America’ में बहुमतवाद के खतरे पर चर्चा की है|


  • मिल ने निम्नलिखित तर्कों के आधार पर विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन किया है-

  1. विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने का अर्थ सत्य पर प्रतिबंध लगाना है| सत्य पर प्रतिबंध का अर्थ है, समाज की उपयोगिता का दमन करना|

  2. सत्य का विराट रूप है, उसके विविध पक्ष हैं|

  3. सत्य के पूर्ण व वास्तविक रूप को समझने के लिए उसके विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना आवश्यक है और उसके लिए व्यक्ति को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए|

  4. वाद-विवाद एवं विचार विमर्श के द्वारा सत्य की खोज की जा सकती है|

  5. समाज सुधारक, समाज को सुधारने के लिए समाज में प्रचलित रूढ़िवादी विचारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं को बदलना चाहते हैं और यह परिवर्तन विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से ही सकता है| 

  6. मिल के मत में इतिहास भी स्वतंत्रता के पक्ष में अपना समर्थन प्रदान करता है| मिल ने सुकरात, ईसा मसीह और मार्टिन लूथर का उदाहरण देकर अपने तर्क की पुष्टि की है| 


  1. कार्यों की स्वतंत्रता-

  • मिल कार्य की स्वतंत्रता को विचारों की स्वतंत्रता का पूरक मानता है| उनके अनुसार सोचने, समझने, बोलने, कार्य करने की स्वतंत्रता एक ही प्रधान तत्व के सोपान है, इसमें किसी की उपेक्षा नहीं की जा सकती| 

  • मिल व्यक्ति के कार्य को दो भागों में बांटता है

  1. स्व विषयक कार्य 

  2. पर विषयक कार्य


  1. स्व विषयक कार्य- 

  • ऐसे कार्य जिनका प्रभाव केवल स्वयं व्यक्ति पर पड़ता है| जैसे- कपड़े पहनना, शिक्षा प्राप्त करना, सिगरेट पीना, धार्मिक कार्य आदि| 

  • स्व विषयक कार्यों में राज्य का किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए|

  • स्व विषयक कार्य समाज में नवीनता लाते हैं, जिससे समाज की प्रगति होती है| 

  • इस संबंध मिल कहता है कि “जिस प्रकार विज्ञान की प्रगति का आधार नवीन अविष्कार है, उसी प्रकार समाज में भी जीवन और गति का आधार नवीनता में निहित है|”


  1. पर विषयक या पर संबंधी कार्य (हानि का सिद्धांत)

  • वे कार्य जिनसे समाज व अन्य व्यक्ति प्रभावित होते हैं, अर्थात अन्य व्यक्तियों को हानि पहुंचती हो, इसे हानि का सिद्धांत भी कहा जाता है|

  • ऐसे कार्यों में राज्य हस्तक्षेप कर सकता है, क्योंकि ऐसे कार्य दूसरे की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचा सकते हैं|

  • मिल “किसी सभ्य समुदाय के किसी सदस्य के ऊपर अधिकृत रूप से शक्ति का उपयोग करने का एकमात्र उद्देश्य अन्य को नुकसान पहुंचने से रोकना है|”


  • मिल ने कार्यों की स्वतंत्रता को चरित्र निर्माण व विकास की दृष्टि से न्यायपूर्ण बतलाया है|


Note- अपना पूर्ण अहित करने वाले व्यक्तिगत कार्यों पर भी राज्य रोक लगा सकता है| जैसे- आत्महत्या का कार्य|


Note- बुरी आदतों अथवा क्रियाओं को रोकने के लिए राज्य को परोक्ष रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए| जैसे- निवारणात्मक उपाय, शिक्षा-प्रचार, प्रोत्साहन, चित्र प्रदर्शन आदि प्रमुख उपाय|


  • मिल प्रथा, परंपरा, रूढ़ियों के नियंत्रण से भी व्यक्ति को मुक्त करना चाहता है क्योंकि इससे उसका विकास दब जाता है|

  • मिल की स्वतंत्रता नकारात्मक है, क्योंकि कानून का अभाव ही स्वतंत्रता है|

  • मिल पिछड़े हुए राष्ट्रों के लोगों को स्वतंत्रता प्रदान करने के पक्ष में नहीं है|

  • राष्ट्रीय प्रगति और सामाजिक उद्देश्य के लिए स्वतंत्रता का अपहरण किया जा सकता है|

  • मिल “जिसने एक बार स्वतंत्रता का स्वाद चख लिया हो, वह उसे किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं होगा|”


  • मिल की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध-

  1. हानि का सिद्धांत

  2. राज्य की सुरक्षा पर संकट

  3. सामाजिक कर्तव्य पालन में रुकावट

  4. व्यक्ति का जाने-अनजाने स्वयं का पूर्ण अहित

  5. स्वतंत्रता केवल बालिग व्यक्ति के लिए है|

  6. बच्चों, दिव्यांगों, मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति, अशिक्षित व पिछड़े हुए समाज पर स्वतंत्रता का सिद्धांत लागू नहीं होता| 

  7. मिल के मत में बहुसंख्यक लोग परंपराओं, रीति-रिवाजों के गुलाम होते हैं, इसलिए स्वतंत्रता का उपयोग सिर्फ अल्पसंख्यक व्यक्ति ही कर सकते हैं|


मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की आलोचना- 

  1. अर्नेस्ट बार्कर “मिल, उसकी बचत के लिए पर्याप्त गुंजाइश छोड़ देने पर भी, हमें कोरे स्वातंत्र्यवादी और काल्पनिक व्यक्तिवाद का ही पैगंबर प्रतीत होता है|”

  2. बार्कर “मिल सारहीन (खोखली) स्वतंत्रता और काल्पनिक स्वतंत्रता का दूत है|”

  3. बार्कर “अधिकारों के बारे में मिल के पास कोई स्पष्ट दर्शन नहीं था, जिसके आधार पर स्वतंत्रता की धारणा को कोई यथार्थ रूप प्राप्त होता|” 

  4. सेबाइन ने व्यक्ति के कार्य के विभाजन को ‘बचकाना कार्य’ कहा है|

  5. सनकी व्यक्ति को स्वतंत्रता देने के संबंध में लेस्ली स्टेफेन ने कहा है कि “सनकी व्यक्ति उस प्रकार बेडौल कटे हुए शहतीर के समान है, जिसका राज्य में कोई उपयोग नहीं हो सकता|”

  6. प्रोफेसर मैक्कन “सनकीपन व्यक्तिवाद का प्रहसन है|” 


मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों का महत्व- 

  • इन त्रुटियों के होने के बावजूद भी मिल की स्वतंत्रता संबंधी विचारों का महत्व है|

  • मैक्सी “मिल के स्वतंत्रता संबंधी अध्याय को राजनीति साहित्य में बहुत ही उच्च स्थान प्राप्त है, इसने वही उच्चता प्राप्त की है जो मिल्टन, स्पिनोजा, वाल्टेयर, रूसो, पेन, जेफरसन ने प्राप्त की थी|”

  • वेपर “विचार और वाद-विवाद की स्वतंत्रता के समर्थन में इससे अधिक श्रेष्ठ ग्रंथ कभी नहीं लिखा गया है|”

  • वेपर “मिल प्रजातंत्र की बुराइयों से प्रजातंत्र की रक्षा चाहता है|”

  • ई मैकडोनाल्ड ने मिल की रचना ऑन लिबर्टी को ‘उदारवाद का सबसे महान घोषणापत्र’ कहा है|”



मिल के राज्य संबंधी विचार-

  • मिल ने अपने दर्शन में समाज शब्द का प्रयोग राज्य के अर्थ में किया है, अर्थात उसकी समाज संबंधी धारणा ही राज्य संबंधी धारणा है| 

  • मिल के अनुसार राज्य स्वार्थ की अपेक्षा मानव इच्छा का परिणाम अधिक है|

  • मिल राज्य व उसकी संस्थाओं की उत्पत्ति प्राकृतिक व मानव द्वारा निर्मित बताने वालों के बीच का मार्ग अपनाया है|

  • मिल के मत में राज्य का विकास हुआ है और यह विकास जड़ वस्तुओं की तरह न होकर चेतन वस्तुओं की तरह हुआ है| इस प्रकार राज्य का उदय स्वाभाविक रूप में हुआ है किंतु विकास में मानवीय प्रयत्नों का योग है|

  • मिल के मत में राज्य की उत्पत्ति मानव हित के लिए हुई है|

  • राजनीति यंत्र राज्य स्वयं कार्य नहीं करता है, बल्कि जिन सामान्य व्यक्तियों द्वारा इसका निर्माण हुआ है वही इसका संचालन करते हैं|

  • राजनीतिक संस्थाओं के निर्माण में मानव इच्छा के महत्व को दर्शाते हुए मिल ने लिखा है कि “एक निष्ठावान व्यक्ति ऐसी सामाजिक शक्ति है जो 99 कोरे स्वार्थी व्यक्तियों के बराबर हैं|”

  • राज्य के सकारात्मक पक्ष पर मिल बल देता है, वह राज्य के हस्तक्षेप को पूर्णत निषिद्ध न कर, कुछ स्थितियों में हस्तक्षेप की अनुमति दे देता है| मिल के मत में राज्य को कुछ नैतिक कार्य करने पड़ते हैं तथा राज्य का संविधान ऐसा हो कि जिससे नागरिकों के सर्वोत्तम नैतिक व बौद्धिक गुणों का विकास हो सके| इस प्रकार राज्य नैतिक लक्ष्ययुक्त एक नैतिक संस्था है|

  • मिल सार्वजनिक कल्याण की दृष्टि से व्यापार व उद्योग पर सरकार नियंत्रण स्वीकार करता है, वह कारखानों के लिए कानून तथा कार्यों के घंटों की सीमा का समर्थन करता है|


  • मिल राज्य के रचनात्मक व निषेधात्मक दोनों प्रकार के कार्य बताता है-

  1. रचनात्मक कार्य- वे कार्य जो ऐसे स्वतंत्र वातावरण का निर्माण करें, जिसमें विचार मंथन, सत्यान्वेषण, अनुभव वृद्धि, चरित्र निर्माण हो सके|

  2. निषेधात्मक कार्य- वे कार्य जिसमें व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाये जाते है|


  •  मिल के अनुसार राज्य के निम्न कार्य है- 

  1. राज्य बाह्य आक्रमण तथा आंतरिक अशांति से देश की रक्षा के लिए सेना की व्यवस्था करें|

  2. सार्वजनिक व्यवस्था के लिए पुलिस की व्यवस्था करें|

  3. अत्यंत उपयोगी व कम से कम कानून बनाने के लिए विधानमंडल का निर्माण करें|

  4. दंड के लिए न्यायालय की स्थापना करें|

  5. व्यक्ति को कानून का महत्व बताएं|

  6. दुष्परिणामों को रोकने के लिए चेतावनी देने का कार्य करें|


  • मिल के अनुसार शेष कार्य व्यक्ति स्वयं अच्छे से कर सकता है| अतः मिल राज्य के कार्य क्षेत्र को बहुत ही सीमित कर देता है|



मिल के अनुसार शासन की सर्वश्रेष्ठ प्रणाली-

  • मिल के मत में कोई एक शासन प्रणाली सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकती है| मिल के शब्दों में “ऐसा कहने का अर्थ है कि सब प्रकार के समाजों के लिए किसी एक प्रकार की शासन प्रणाली उपयुक्त होगी, यह होगा कि राजनीति विज्ञान पर एक विशुद्ध शास्त्र लिखा जाय|”

  • मिल के अनुसार वहीं शासन प्रणाली सर्वश्रेष्ठ है, जो नागरिकों को राजनीति शिक्षा प्रदान करें तथा अधिकार और कर्तव्य का ज्ञान कराएं और वह शासन प्रणाली जनता के नैतिक गुणों और बुद्धि का विकास करने वाली हो|



मिल के प्रतिनिध्यात्मक शासन संबंधी विचार-

  • मिल ने प्रतिनिधि शासन संबंधी विचारों का वर्णन अपने ग्रंथ कंसीडरेशन ऑफ रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट में दिए है|

  • बहुसंख्यको के प्रति मिल का अविश्वास इसी लेख में है| 

  • मिल ने लोकतंत्र को व्यवहार व सिद्धांत दोनों दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ शासन माना है|

  • मिल “लोकतंत्र प्रगति के लिए जरूरी है, इसमें बुद्धि व क्षमता का विकास होता है| अन्य किसी भी शासन प्रणाली की अपेक्षा लोकतंत्रिक उत्तम एवं उच्च कोटि के राष्ट्रीय चरित्र का विकास करता है|”

  • मिल के मत में वैसे तो प्रत्यक्ष प्रजातंत्र सच्चा प्रजातंत्र है, लेकिन यह आधुनिक विशाल राज्यों में संभव नहीं है| अतः मिल की दृष्टि से सर्वोत्तम शासन अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि प्रजातंत्र है|

  • इस तरह मिल प्रत्यक्ष लोकतंत्र के बजाय प्रतिनिधि लोकतंत्र का समर्थक है|


  • मिल ने प्रतिनिधि शासन व्यवस्था के निम्न लक्षण बताए हैं-

  1. वे लोग, जिनके लिए ऐसी सरकार का निर्माण किया जाए, ऐसी सरकार को स्वीकार करने के इच्छुक हो या इतने अनिच्छुक न हो कि इसकी स्थापना में बाधा पैदा करें|

  2. ऐसी सरकार के स्थायित्व के लिए वे लोग सब कुछ करने के इच्छुक हैं|

  3. ऐसी सरकार की शर्तों को पूरा करने के लिए वे लोग तैयार रहें|


  • मिल के अनुसार प्रतिनिध्यात्मक सरकार के प्रमुख तत्व निम्न है-

  1. संपूर्ण या जनता के बड़े भाग का सरकार के कार्यों में सहयोग

  2. संपूर्ण या जनता के बड़े भाग के पास सरकार का नियंत्रण

  3. समय-समय पर लोगों के द्वारा प्रतिनिधि चुनना

  4. अंतिम शक्ति जनता में निहित होना

  5. सरकार के अंगों के कार्यों का निश्चित बंटवारा

  6. एक संगठित विरोधी दल

  7. आनुपातिक प्रतिनिधित्व

  8. सार्वजनिक एवं खुला मतदान

  9. निष्पक्ष न्यायपालिका

  10. अल्पसंख्यकों की रक्षा


  • मिल के अनुसार प्रतिनिधि सरकार ‘सहभागिता व सक्षमता सिद्धांत’ पर आधारित होती है| 

  1. सहभागिता-

  • प्रतिनिधि लोकतंत्र में लोग शासन कार्यों में भागीदारी निभाते हैं| 

  • सहभागिता में वृद्धि के लिए मिल ने आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का समर्थन किया  है| 

  • Note- आनुपातिक प्रतिनिधित्व सिद्धांत सर्वप्रथम लंदन के वकील थामस हेयर ने दिया था| हेयर ने यह सिद्धांत अपनी पुस्तक A Treatise on the Election of Representatives Parliamentary and Municipal 1859 में दिया था| 


  1. सक्षमता-

  • इसमें नागरिकों के गुणों, कौशलों व योग्यताओं का पूर्ण उपयोग होता है| 



  • प्रतिनिधि सरकार के अस्तित्व के लिए मिल ने उदारवादी समाज के निर्माण पर बल दिया है| सेबाइन के शब्दों में “व्यक्ति और सरकार के बीच उदारवादी समाज के निर्माण की सूझ वास्तव में मिल की अपनी खोज थी|”

  • मिल कार्यपालिका की निरंकुशता पर अंकुश रखने के लिए सतर्क व्यवस्थापिका चाहते हैं, जो कार्यपालिका के कार्यों की आलोचना करें तथा आवश्यकता पड़ने पर कार्यपालिका को भंग कर दे|

  • मिल के अनुसार प्रतिनिधि लोकतंत्र इसलिए श्रेष्ठ है, कि अन्य किसी शासन व्यवस्था की अपेक्षा इसमें नैतिक व बौद्धिक विकास की अधिक संभावना रहती है|


प्रतिनिधि सरकार के कार्य-

  • मिल ने प्रतिनिधि सरकार के निम्न कार्य बताएं- 

  1. व्यक्तियों के विकास के कार्य करें|

  2. ऐसे कानून का निर्माण करें जिससे व्यक्ति के चरित्र का विकास हो|

  3. कानून का निर्माण कम से कम करें|

  4. प्रतिनिधि सभा सरकार पर नियंत्रण रखें|



निर्वाचन के संबंध में मिल के विचार-

  • मिल के अनुसार निर्वाचन पद्धति ऐसी हो, जिससे सरकार के संचालन के लिए सर्वश्रेष्ठ, बुद्धिमान और क्षमतावान व्यक्ति ही पहुंच सके|

  • मिल संसद के सदस्यों को जनता का प्रत्यायुक्त (Delegate) नहीं मानता है, क्योंकि श्रेष्ठतर बुद्धि के लोगों को कम प्रतिभाशाली जनता के अधीन रखा जाना उचित नहीं है|

  • मिल ने निर्वाचन की अनुपातिक प्रतिनिधित्व और बहुल मतदान (एक व्यक्ति को एक से अधिक मतदान) प्रणाली का सुझाव दिया है, क्योंकि मिल लोकतंत्र में बहुमत की निरंकुशता को लेकर चिंतित था तथा बहुमत अज्ञानी व अशिक्षित होता है, जबकि शिक्षित वर्ग व ज्ञानी वर्ग अल्पमत में होता है, इसलिए अल्पमत को प्रतिनिधित्व देने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व और बहुल मतदान प्रणाली का समर्थन करता है|

  • मिल “शिक्षा पाने का लाभ तो मिलना चाहिए| कुशल श्रमिक को एक अतिरिक्त मत, फोरमैन को दो अतिरिक्त मत, लेखकों, कलाकारों, विश्वविद्यालय स्नातकों को पांच मत मिलने चाहिए|”

  • मिल वयस्क मताधिकार देने के पक्ष में नहीं है, वह केवल शिक्षित व संपत्तिवान लोगों को ही मताधिकार देना चाहता है|

  • मिल मताधिकार में लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है महिला मताधिकार का समर्थन करता है मिल ने कहा कि “महिलाओं की अयोग्यता किसी भी प्रकार उनकी बौद्धिक प्रतिभा की कमी का लक्षण नहीं है, बल्कि उनकी सदियों की दासता का परिणाम है|” 

  • मिल बहुल मतदान का इसलिए समर्थन करता है, क्योंकि शिक्षित व्यक्तियों को अशिक्षित व्यक्ति की तुलना में कम से कम बराबर मत मिले|

  • प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक तथा अधिक से अधिक पांच मत देने का अधिकार हो, तथा विद्वान को मूर्ख से ज्यादा मत देने का अधिकार हो|

  • मिल ने खुले मतदान का समर्थन किया है|

  • द्विसदनीय संसद का समर्थन करता है| मिल के मत में एक सदन साधारण लोगों का प्रतिनिधि सदन हो तो दूसरा सदन राजनीतिज्ञों और ऐसे व्यक्तियों का सदन हो जिन्होंने प्रशासकीय और राजनीतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किए हो|

  • मतदाताओं के लिए शिक्षा की योग्यता के साथ-साथ सरकारी संपत्ति की भी योग्यता निर्धारित की जाय, क्योंकि संपत्तिवान व्यक्ति, संपत्तिहीन व्यक्ति की तुलना में अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से अपना मत का प्रयोग करता है| अतः मिल मताधिकार को शिक्षित, संपत्तिवान व कर देने वाले लोगों तक ही सीमित करना चाहता है|

  • व्यक्ति को मतदान करते समय न्यायधीश की भांति कार्य करना चाहिए|

  • वेपर के शब्दों में “मिल ने मतदान को एक कर्तव्य कहा है|”


  • मिल ने तीन समूहों को मताधिकार से वंचित करने की सलाह दी है-

  1. जो कर नहीं देते हैं|

  2. जो सरकारी अथवा सार्वजनिक सहायता पर निर्भर हैं| 

  3. शराबियों के समान नैतिक व कानूनी भटकाव वाले, अपराधी किस्म के लोग| 



विधि या सहिंताकरण आयोग-

  • मिल के अनुसार प्रतिनिधि सभा (संसद) का कार्य शासन करना नहीं है, क्योंकि उसमें शासन करने की योग्यता नहीं है| उसका प्रमुख कार्य सरकार का निरीक्षण और नियंत्रण करना है| इसका कार्य विधि निर्माण भी नहीं है, क्योंकि यह विधि निर्माण की योग्यता नहीं रखती है| इसलिए विधि निर्माण का कार्य एक विशिष्ट आयोग को करना चाहिए, जिसके सदस्य लोक सेवा से संबंधित हो| विधि आयोग द्वारा निर्मित विधियों को पारित करने का कार्य प्रतिनिधि सभा संसद को करना चाहिए|

  • मिल के अनुसार प्रतिनिधि सभा यानी संसद को शिकायत समिति (A Committee of Grievances) और सम्मति सभा (A Congress of Opinion) के रूप में कार्य करना चाहिए|



राजनीतिक अर्थव्यवस्था संबंधी मिल के विचार- 

  • जे एस मिल राजनीतिक क्षेत्र में तो विचार एवं अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करके व्यक्तिवाद व उदारवाद का समर्थन करता है| वहीं आर्थिक क्षेत्र में उदारवादी मूल्यों के साथ समाजवादी मूल्यों का समावेश करता है, इसी कारण जे एस मिल को गुण सापेक्ष समाजवाद का अधिवक्ता कहा जाता है|

  • आर्थिक क्षेत्र में मिल पर व्यक्तिवाद की जगह समाजवाद की छाप दिखती है, इसलिए बार्कर कहता है कि “स्टूअर्ट मिल व्यक्तिवादी व समाजवादी युग को जोड़ने वाली कड़ी है|”

  • मिल के मत में व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का उपयोग करके इच्छानुकूल उत्पादन का अधिकार है|

  • मिल के मत में संपत्ति एक सामाजिक संस्था है तथा मानव जाति के लिए आवश्यक है| व्यक्ति अपनी संपत्ति दूसरे को दे सकता है|

  • मिल भू संपत्ति का भी समर्थन करता है|

  • मिल पूंजीपतियों व श्रमिकों के बीच सामंजस्य पैदा करने का प्रयास करता है| उसने प्रतिस्पर्धी व्यापार का समर्थन किया|



स्त्री समानता के बारे में मिल के विचार-

  • ‘The Subjection of women’ पुस्तक में मिल स्त्री समानता का समर्थन करता है| 

  • मिल ने तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्त्री समानता का समर्थन किया है-

  1. मताधिकार

  2. शिक्षा

  3. नौकरी

  • मिल के मत में स्वतंत्रता सबसे मूल्यवान होती है, जबकि स्त्री पीड़ित होती हैं और उसे समाज द्वारा अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन का मौका नहीं मिलता है| स्त्रियों की स्थिति दासो से भी बुरी है| 

  • मिल इंग्लैंड में स्त्रियों की निम्नतर स्थिति की आलोचना करता है|

  • रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट में मिल ने लिखा है कि “यौन अंतर राजनीतिक अधिकारों के बंटवारे का आधार नहीं होना चाहिए|”

  • प्रिंसिपल ऑफ पॉलीटिकल इकोनामी में मिल ने औद्योगिक कार्यों में स्त्री पुरुष समानता का समर्थन किया है| मिल कहता है कि सामाजिक पूर्वाग्रहों के कारण स्त्रियों को कम वेतन मिलता है इस प्रकार वे पुरुषों की अनुगामिनी बन जाती हैं|

  • मिल कहता है कि “यदि स्त्री को पूर्ण आजादी मिल जाए और वे अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर सके तो समाज के पास गुणवत्ता का भंडार काफी बढ़ जाएगा|”

  • मिल के अनुसार महिला असमानता प्राकृतिक नहीं है, बल्कि सामाजिक है, जो पितृसत्तात्मक समाज की देन है|

  • मिल “परिवार तानाशाही की पाठशाला है|”



मिल का मूल्यांकन- 

राजनीतिक चिंतन को मिल की देन-

  • राजनीतिक दर्शन को मिल की सबसे महत्वपूर्ण देन व्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी महत्ता का प्रतिपादन है|

  • मिल एक उदारवादी विचारक था| इसने प्रत्येक व्यक्ति के महत्व का प्रतिपादन किया है| कुछ थोड़े से रचनाशील व मौलिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों के कार्य को महत्व दिया है| इसके संबंध में मिल कहता है कि “यह थोड़े से लोग ही पृथ्वी के लवण है, इनके बिना जीवन प्रगतिहीन हो जाएगा|”

  • जार्ज एच. सेबाइन उदारवादी के रूप में मिल का मूल्यांकन करता है| सेबाइन के मत में उदारवादी दर्शन में मिल का योगदान चार बातों में है-

  1. उपयोगितावादी सिद्धांत में नैतिक भावना का मिश्रण कर उसने कांट के समान ही मानव व्यक्तित्व को मान्यता दी है और नैतिक उत्तरदायित्व से उसका संबंध स्पष्ट किया है|

  2. उसने सामाजिक व राजनीतिक स्वतंत्रता को स्वयं में अच्छा बताया|

  3. स्वतंत्रता केवल व्यक्तिगत नहीं, वरन सामाजिक अच्छाई है |

  4. स्वतंत्र समाज में उदारवादी राज्य का कार्य नकारात्मक नहीं वरन सकारात्मक है|

  • बोव्ले(Bowle) “यदि लेखकों की योग्यता का निर्णय इस बात से होता है कि उनका नीति पर क्या प्रभाव पड़ता है तो मिल का स्थान निश्चित रूप से ही ऊंचा है| एक न्यायशास्त्री, अर्थशास्त्री तथा राजनीतिक दार्शनिक के रूप में उसे अपने युग में एक अवतार समझा जाता था|”

  • मिल ने उपयोगितावाद के तर्कशास्त्र को विकसित किया और आगमनात्मक पद्धति की त्रुटियां दूर की|

  • मिल की सर्वोच्च देन उसका व्यक्तिवाद है, जिसे उदारवाद भी कहा जाता है|



आलोचना-

  • मताधिकार के लिए शैक्षणिक और संपत्ति संबंधी योग्यता को लागू करना सही नहीं है|

  • सार्वजनिक व खुला मतदान उचित नहीं है| 

  • बहुल मतदान प्रणाली अव्यावहारिक है

  • C.L वेपर ने मिल को ‘एक असंतुष्ट प्रजातंत्रवादी कहा है|’ क्योंकि मिल सभी समाजों (देशों) के लिए लोकतंत्र की व्यवस्था को उपयुक्त नहीं मानता है| अत: मिल कहता है “लोकतंत्र उपहार नहीं, एक आदत है, यह कुलीनों द्वारा ही संभव है|” 

  • वेपर व डेनिंग ने मिल के ‘नारी स्वतंत्रता’ संबंधी विचारों का विरोध किया है|



मिल से संबंधित कुछ अन्य तथ्य-

  • जहां बेंथम संरक्षणात्मक लोकतंत्र का समर्थक है, वहीं मिल विकासात्मक लोकतंत्र का समर्थक है|

  • स्त्री समानता के मिल के विचार का बंकिम चंद्र चटर्जी ने समर्थन किया है| बंकिम चंद्र चटर्जी के विचार में सब्जेक्शन ऑफ वूमेन में जो कुछ कहा गया है, उसमें और कुछ भी जोड़ने की जरूरत नहीं है, सिवाय इसके कि भारतीय स्त्रियों का शोषण सौवां हिस्सा अधिक होता है| 

  • मिल उदारवादी के साथ-साथ एक अनिच्छुक लोकतांत्रिक, एक बहुलवादी, सहकारी समाजवादी, कुलीनवादीनारीवादी विचारक हैं|

  • हेराल्ड लास्की ने लिखा है कि “मिल एक ऐसा समुद्र है जिसमें बेंथम व जेम्स मिल तो क्या, कॉलरिज,  सेंट साइमन, ऑगस्ट काम्टे, टॉकवील जैसी कितनी ही धाराएं समाहित हैं|”

  • अल ग्रे ने कहा है कि “यदि कोई उदारवादी है, तो वह अवश्य ही मिल है|”

  • मिल की कृति प्रिंसिपल ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी तथा कार्ल मार्क्स की कृति कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो दोनों कृतियां एक ही वर्ष 1848 में प्रकाशित हुई|

  • मिल भारत के धार्मिक रीति-रिवाजों में दखल देने के विरोधी थे|

  • सिबली ने मिल के प्रतिनिध्यात्मक शासन की योजना को अरस्तु की पॉलिटी से बहुत अधिक नजदीक माना है|

  • लिंडसे ने मिल की स्वतंत्रता को सकारात्मक स्वतंत्रता माना है, जो एक उचित सीमा तक समाज के नियंत्रण में रहकर विकसित होती है|

  • डेविडसन ने मिल की स्वतंत्रता के सिद्धांत के आधार पर ही उसे व्यक्तिवाद का प्रमुख अधिवक्ता कहा है|

  • जोड़ के अनुसार मिल की स्वतंत्रता उपयोगितावादी सिद्धांत पर आधारित है|

  • मिल प्रथम व्यक्तिवादी तथा अंतिम उपयोगितावादी था| मिल शुरू में नकारात्मक उदारवादी था पर जीवन के अंतिम दौर में सकारात्मक उदारवादी हो गया तथा राज्य द्वारा युक्तिसंगत हस्तक्षेप का समर्थन करने लगा, पर फिर भी उसने सामंतवाद की आलोचना की, ना कि पूंजीवाद पर नियंत्रण की वकालत की| वे ट्रेड यूनियनों व  हड़ताल के अधिकार के समर्थक जरूर थे| 

  • इस कारण कहा जाता है कि इंग्लिश समाजवाद (फेबियनवाद) मिल के समष्टिवाद (हल्का-फुल्का राज्य नियंत्रण) से प्रेरित है, ना कि मार्क्स के साम्यवाद से| 

  • बार्कर “मार्क्स नहीं मिल ही इंग्लिश समाजवाद (फेबियन वाद) का आरंभिक बिंदु है|”

  • मिल जीवन के अंतिम वर्षों में नकारात्मक उदारवाद से समाजवाद की ओर झुक गया था| तथा मिल ने अपनी Autobiography में लिखा है कि “पहले मैं लोकतंत्र का समर्थक था, बिल्कुल भी समाजवादी नहीं था, अब मैं पहले की अपेक्षा कम लोकतांत्रिक तथा ज्यादा समाजवादी हूं|”





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