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Periyar E.V. Ramaswamy Naicker/ पेरियार ई.वी रामास्वामी नायकर (1879-1973)

 Periyar E.V. Ramaswamy Naicker/

पेरियार ई.वी रामास्वामी नायकर

(1879-1973)

    जीवन परिचय-

    • जन्म

    • 1879 ई. में, 

    • मद्रास प्रांत (तमिलनाडु) के कोयंबटूर जिले में सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी जाति में (नायडू परिवार में)

    • मूल नाम

    • इरोड वेंकट नायकर रामास्वामी (EV नायकर रामास्वामी)


    • पेरियार आधुनिक भारत के जननायक और सामाजिक क्रांतिकारी थे|

    • उन्होंने वर्णव्यवस्था, मूर्ति पूजा, हिंदू पौराणिक कथाओं पर तीव्र प्रहार किया|

    • उनके अनुयायी उनको आदरपूर्वक ‘पेरियार’ के रूप में संबोधित करते हैं| तमिल शब्द पेरियार का अर्थ है- सम्मानित व्यक्ति या मान्यवर या महात्मा या महर्षि|

    • भारत में रामास्वामी ब्राह्मण विरोधी कार्यकर्ता, तर्कवादी व अपनी बात को आक्रमक ढंग से बोलने वाले वक्ता के रूप में जाने जाते हैं|

    • ये रूढ़िगत विचारों के विरोधी थे| ये पहले गांधीजी से जुड़े, लेकिन बाद में महात्मा गांधी के धुर विरोधी बन गये थे|

    • 1925 में नायकर ने द्रविड़ स्वाभिमान व आत्मसम्मान आंदोलन की शुरुआत की, तब उसके अनुयायियों ने गांधी का उपहास उड़ाते हुए नायकर को ‘तंथाई परियार’ यानी महान व्यक्ति का नाम दिया|

    • जाति और धर्म संबंधी आमूल परिवर्तनकारी विचारों के कारण A P जनार्दनम ने इन्हें ‘20 वीं सदी का महान दावेदार’ तथा ‘झरोड़ का शेर’ कहा|

    • अपनी युवावस्था में अपने पिता द्वारा घर पर दिये गये ब्राह्मण भोज में विघ्न डालकर बनारस भाग गये तथा बनारस (काशी) की इस यात्रा के बाद में वे नास्तिक हो गये|

    • 1970 में यूनेस्को ने इन्हें सम्मानित करते हुए ‘नए युग का पैगंबर’, ‘दक्षिण एशिया का सुकरात’‘समाज सुधार आंदोलन का पिता’ कहा |

    • पेरियार ने ‘आत्म सम्मान आंदोलन’ का प्रचार करते हुए 1925 में साप्ताहिक पत्र ‘कुड़ी अरासु (Kudi Arasu) तमिल में शुरू किया|

    • 1928 में अंग्रेजी जनरल Revolt शुरू किया|



    रचनाएं-

    1. Why were Women Enslaved (महिलाओं को गुलाम क्यों बताया गया)

    2. Periyar on Buddhism

    3. Thought of Periyar 



    सामाजिक भेदभाव का खंडन-

    • पेरियर ने जाति प्रथा, सामाजिक भेदभाव व ब्राह्मणवाद का खंडन किया|

    • इन्होंने ब्राह्मणों के धार्मिक वर्चस्व को चुनौती देने के लिए ‘आत्मसम्मान विवाहोत्सव’ आयोजित किये, अंतर्जातीय विवाह पर बल दिया, जो बिना ब्राह्मण पुरोहित खर्चे के होते थे|

    • उनका कहना था कि खर्च विवाह के बजाय संतान की शिक्षा पर करना चाहिए|

    • कांग्रेस के अस्पृश्यता उन्मूलन और जनसाधारण के उत्थान के कार्यक्रम से प्रभावित होकर 1920 में पेरियार कांग्रेस में सम्मिलित हो गये|

    • गांधीजी के असहयोग आंदोलन में पूरी निष्ठा के साथ हिस्सा लिया और खादी के प्रयोग को बढ़ावा दिया| 1921 में उन्हें मद्रास प्रेसिडेंट की कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी चुना गया था| 


    वायकॉम सत्याग्रह-

    • गांधीजी के सत्याग्रह से प्रेरित होकर उन्होंने वायकॉम सत्याग्रह चलाया|

    • वायकॉम (कोट्टायम, केरल) तत्कालीन त्रावणकोर की एक रियासत थी|

    • यहाँ लकड़ी के स्तंभों वाला एक मंदिर था| इस मंदिर का नियंत्रण दक्षिण भारत की चरम रूढ़िवादी जाति नंबूदरी ब्राह्मणों के पास था|

    • इस मंदिर में निम्न जाति के लोगो को प्रवेश की इजाजत नहीं थी, साथ ही निम्न जाति को मंदिर के पास की सड़क पर आने-जाने अनुमति नहीं थी|

    • इस मंदिर में प्रवेश तथा सड़क पर निम्न जाति के आने जाने की अनुमति की मांग लेकर 1920 में कांग्रेस ने सत्याग्रह प्रारंभ कर दिया| 

    • कांग्रेस ने प्रतिकात्मक व नाममात्र का दलित नेतृत्व उभारने के लिए पेरियार को भी इसमें शामिल कर लिया| 

    • 1924 में गांधीजी भी इसमें शामिल हुए| यह पहला अवसर था जब गांधीजी ने अस्पृश्यता का सार्वजनिक विरोध किया था|

    • जहां गांधी सिर्फ सड़कों पर निम्न जाति को आने-जाने का अधिकार दिलाना चाहते हैं, वही पेरियार ने दलितों के लिए मंदिर खोलने का भी आह्वान किया|

    • लेकिन पेरियार ने उपस्थित अस्पृश्यो से भी कहा कि ‘वह मूर्ख है जो वहां पूजा करना चाहते थे|

    • पेरियार को बंदी बना लिया गया तथा त्रावणकोर रियासत में कैद कर दिया|

    • कांग्रेस की नजर में वायकॉम सत्याग्रह रूढ़िवादी बाधाओं को तोड़ने में सफलता का प्रतीक था, जबकि पेरियार के मुताबिक यह ऊंचे दर्जे का धोखा था, गांधीजी ने निम्न जातियों के साथ गद्दारी की थी|

    • अंबेडकर ने भी वायकॉम सत्याग्रह में भाग लिया था|



    निरीश्वरवादी- 

    • साम्यवादियों व मार्क्स की तरह पेरियार ईश्वर व धर्म की सत्ता में विश्वास नहीं करते थे|

    • उनके अनुसार ईश्वर ने कभी भी किसी को अपना दर्शन नहीं दिया और ईश्वर व धर्म की उत्पत्ति का मूल कारण भय, अज्ञान और गरीबी है| जिसने भी ईश्वर का अविष्कार किया वह मूर्ख है| जो ईश्वर का प्रचार करता है, वह दुष्ट है| जो ईश्वर की पूजा करता है, वह बर्बर है|

    • उन्होंने व्यक्ति के विवेकशील चिंतन पर बल दिया|



    वर्णाश्रम धर्म पर प्रहार-

    • नायकर ने वर्णाश्रम को सामाजिक भेदभाव का प्रतीक मानते हुए इसकी कटु आलोचना की|

    • कांग्रेस के अस्पृश्यता उन्मूलन को नायकर ने वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने का एक उपाय माना था|

    • गांधीजी ने 1927 में वर्णाश्रम धर्म में आस्था व्यक्त की थी| उन्होंने गैर ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि ब्राह्मणों के प्रति रोष प्रकट करते समय उन्हें वर्णाश्रम धर्म को नष्ट करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह हिंदू धर्म की आधारशिला है|

    • लेकिन गांधीजी के मत में वर्णाश्रम अंतर्जातीय विवाह या अंतर्जातीय प्रतिभोज के विरुद्ध नहीं था|

    • लेकिन इसके विपरीत नायकर का विश्वास था कि तमिल प्रदेश में वर्णाश्रम धर्म, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ब्राह्मणों का वर्चस्व स्थापित करता है और सभी गैर ब्राह्मणों को शूद्र का दर्जा देता है| वर्णाश्रम धर्मपालन के कारण सारे गैर ब्राह्मण केवल ब्राह्मणों की सेवा करने और अपमानजनक जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाएंगे|

    • नायकर के मत में वर्णाश्रम धर्म, अस्पृश्यता और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओ का जन्म देता है|


    हिंदु प्रतीकों को निशाना बनाने वाला-

    • पेरियार ब्राह्मणों को आर्य उत्पत्ति तथा बाकि गैर ब्राह्मणों को द्रविड़ नस्ल का मानते थे|

    • इनके मत में इन आर्यों ने ही सामाजिक विषमता व सामाजिक शोषण पर आधारित वर्ण व जाति व्यवस्था को जन्म दिया है| इसी कारण वे ब्राह्मण वर्चस्व के विरोधी थे तथा हिंदू प्रतीकों को निशाना बनाते थे| राम की बजाय रावण को आदर्श मानते थे| मनुस्मृति को जलाते थे|



    आमूल उदारवादी- 

    • पेरियार मानवीय विवेक और स्वतंत्रता के समर्थक थे| इसलिए जन्म आधारित जातिवादी व्यवस्था और छुआछूत के प्रबल विरोधी थे|

    • तमिलनाडु के ‘गुरुकल प्रकरण’ में इन्होंने हिंदू गुरुकुलों में बरते जाने वाले जातीय भेदभाव का विरोध किया|

    • पेरियार के मत में धर्म अंधविश्वास, माननीय शोषण, रूढ़ियो, कुरुतियों का पोषक है|

    • उनके अनुसार “व्यक्ति को कोई विचार इसलिए स्वीकार नहीं करना चाहिए कि यह पूर्वजों द्वारा, धर्म के द्वारा अथवा धर्म ग्रंथों द्वारा बताया गया है, बल्कि विवेकीय ज्ञान इसके निर्धारण का एकमात्र आधार है|



    नारी अधिकारों के समर्थक-

    • पेरियार महिलाओं के उत्थान के समर्थक हैं|

    • पेरियार ने नारी शिक्षा, तलाक, महिलाओं का संपत्ति में अधिकार का समर्थन किया| इसके साथ यह भी कहा कि महिलाओं की लैंगिकता व गर्भाधान पर नियंत्रण का भी सम्मान हो|

    • पेरियार ने पितृसत्तात्मक का विरोध किया| तथा कहा कि “क्या बिल्लियों ने कभी चूहों को आजाद किया है? लोमड़ियों ने कभी बकरियों को आजादी दी है? क्या श्वेत लोगों ने भी भारतीयों को समृद्ध किया है? क्या ब्राह्मणों ने कभी गैर ब्राह्मणों को न्याय दिया है? तो इस बात को लेकर यकीन मानिये की पुरुष कभी भी महिलाओं को मुक्त नहीं करेंगे|



    आत्मसम्मान आंदोलन के प्रेणता-

    • पेरियार ने 1925 में आत्मसम्मान आंदोलन चलाया था| जिसका लक्ष्य था- मद्रास प्रांत के गैर ब्राह्मण तमिलों के मन में द्रविड़ परंपरा का गौरव जगाना|

    • आधिकारिक रूप से आत्मसम्मान आंदोलन के पांच उद्देश्य थे, जो निम्न है-

    1. कोई ईश्वर नहीं

    2. कोई धर्म नहीं

    3. कोई गांधी नहीं

    4. कोई कांग्रेस नहीं

    5. कोई ब्राह्मण नहीं


    • गौण उद्देश्य था- पितृसत्ता का उन्मूलन

    • आत्मसम्मान आंदोलन के प्रचार के लिए पेरियार ने ‘कुड़ी अरासु’ व ‘रिवोल्ट’ का प्रकाशन शुरू किया| 

    • आत्मसम्मान आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने हिंदू पौराणिक कथाओं का खंडन किया|

    • ब्राह्मणवाद पर प्रहार के लिए सांकेतिक आंदोलन चलाए| जैसे मनुस्मृति को कई बार चलाया गया|

    • पुराणकथाओं के कई चरित्रों की नई व्याख्या दी| जैसे-

    • रावण को द्रविड़ जाति के आदर्श के रूप में चित्रित किया गया|

    • राम को आर्य जाति के दुष्ट के रूप में चित्रित किया गया|

    • हिंदू देवी- देवताओं के चरित्र पर कीचड़ उछालने की कोशिश की|


    • वर्णव्यवस्था को मिटाने के लिए नाम के साथ जाति सूचक शब्द नहीं लगाने पर बल दिया| इस सुझाव को तमिल में गैर ब्राह्मणों के साथ-साथ ब्राह्मणों ने भी स्वीकार किया|



    गांधी का विरोध-

    • वायकॉम सत्याग्रह के बाद पेरियार ने खुद को गांधी व कांग्रेस से अलग कर लिया| 

    • गांधी के अनुयायी जहां सफेद कपड़े पहनते थे, पेरियार ने अपने समर्थकों को काले कपड़े पहनाये|

    • गांधीजी के राष्ट्रीय आंदोलन के विपरीत वे क्षेत्रवाद को बढ़ावा दे रहे थे|



    कांग्रेस का विरोध-

    • 1925 में नायकर को पता चला कि श्रेमादेवी गुरुकुल में सामाजिक भेदभाव बरता जा रहा है|

    • यहां गैर-ब्राह्मणों को ब्राह्मण लड़कों के साथ बैठाकर भोजन करने की अनुमति नहीं थी|

    • कांग्रेस के सदस्यों में इस मामले में हस्तक्षेप करने का साहस नहीं था|

    • नायकर ने कांग्रेस कमेटी में यह संकल्प पारित कर दिया कि जो भी संगठन राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लेगा, वह जन्म के आधार पर लोगों में भेदभाव नहीं करेगा| लेकिन इससे गुरुकुल प्रश्न का हल नहीं हुआ| ब्राह्मण सदस्यों ने इसमें रुचि नहीं दिखायी|

    • ब्राह्मण वर्चस्व व हिंदू रूढ़ियों के खिलाफ आमूलवादी कदम ना उठाने के कारण पेरियार कांग्रेस के विरोधी बन गये|

    • पेरियार ने स्वराज्य की राष्ट्रवादी मांग को ‘स्थानीय प्रभुओ की साजिश’ (Conspiracy of Local Elites) कहा| 

    • 1925 में पेरियार ने कांग्रेस छोड़ दी|



    भाषा विवाद- 

    • पेरियार हिंदी विरोधी आंदोलन के अग्रणी थे|

    • देश की आजादी के बाद संविधान निर्माण के समय जब हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जा रहा था तो पेरियार ने इसका विरोध किया|

    • इससे पहले मद्रास प्रेसिडेंसी में जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के नेतृत्व में स्कूल स्तर पर हिंदी की शिक्षा दी गयी तो इसका कड़ा विरोध किया गया| 


    • नायकर ने हिंदी विरोध के दो मुख्य कारण बताये-

    1. तमिल प्रदेश में हिंदी लागू करने का अर्थ है- संस्कृत का पुनरुत्थान

    2. मातृभाषा (द्रविड़ भाषा) की जगह हिंदी की पढ़ाई अनिवार्य करने का विचार द्रविड़ भाषाओं के महत्व को कम करने की चाल थी|


    • परंतु जब इन आपत्तियों की अनदेखी करके मद्रास स्कूल में हिंदी की पढ़ाई शुरू कर दी तब हिंदी विरोधी आंदोलन की शुरुआत 1937 में हुई| तथा यह आंदोलन तीन दशकों तक चला|

    • इसी आंदोलन की वजह से अन्ना दुरई, जो पेरियार के शिष्य थे, 1967 में तमिलनाडु के प्रथम गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे|



    द्रविड़िस्तान की मांग के रूप में प्रथकतावाद- 

    • यह भारत में प्रथम पृथकतावादी व क्षेत्रवादी आंदोलन था|

    • पेरियार ने जिन्ना के द्विराष्ट्र का समर्थन किया तथा प्रथकतावादी आंदोलन के रूप में एक संप्रभु राष्ट्र की मांग के लिए द्रविड़िस्तान या द्रविड़नाडु की अवधारणा को बढ़ावा दिया|

    • 1938 में पेरियार ने ‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया|

    • द्रविड़िस्तान में द्रविड़ भाषाएं बोलने वाले दक्षिण भारत के राज्य होने थे| यथा- आंध्रप्रदेश, तेलगाना, केरल व कर्नाटक| 

    • यह आंदोलन 1940 से 1960 तक चला था पर अन्य राज्यों ने तमिल वर्चस्व के भय के कारण इसमें रुचि नहीं ली| 



    जस्टिन पार्टी व द्रविड़ कड़गम का नेतृत्व-

    • जस्टिस पार्टी का गठन 1916 में हुआ था| इस पार्टी का उद्देश्य ब्राह्मण समुदाय की आर्थिक शक्ति व राज्य का विरोध और गैर ब्राह्मणों का सामाजिक उत्थान था|

    • 1937 में जस्टिस पार्टी का नेतृत्व पेरियार ने संभाला|

    • 1944 में पेरियार ने जस्टिस पार्टी को एक सामाजिक आंदोलन का रूप दे दिया तथा इसका नाम द्रविड़ कड़गम एसोसिएशन कर दिया| 

    • 1949 पेरियार और अन्नादुरई के मध्य मतभेद के कारण द्रविड़ कड़गम का विभाजन हो गया|

    • तथा 1949 में अन्नादुरई ने ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’ पार्टी की स्थापना कर दी|

    • Note- भारत का संविधान जलाने के कारण 1960 के दशक में पेरियार की 6 माह की जेल भी हुई|

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