राजनीति विकास (Political Development)
राजनीति विकास का अर्थ -
राजनीति विकास वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी विकासशील देश की राजव्यवस्था विकसित समाज की विशेषताएं अर्जित कर लेती हैं|
राजनीति विकास उदार परंपरा की देन है|
राजनीति विकास का उद्देश्य नवोदित एवं विकासशील देशों की राजनीतिक प्रक्रिया का विश्लेषण करना है|
राजनीति विकास अवधारणा की उत्पत्ति 1960 के बाद हुई है|
ग्रैबियल ए आमंड ने कहा है कि “राजनीति विकास की अवधारणा को विकासशील देशों के संदर्भ में एक नैतिक एवं राजनीतिक अच्छाई के रूप में विश्लेषण एवं विवेचन करना चाहिए|”
लूसियन पाई, आमंड, कोलमैन, रिग्स, माइनर-विनर, डेविड एप्टर आदि विद्वानों ने एशिया, अफ्रीका लेटिन अमेरिका के प्रमुख विकासशील देशों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परिस्थितियों का अध्ययन किया है|
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में सिद्धांत निर्माण की खोज का कार्य आमंड की अध्यक्षता में 1963 में ‘तुलनात्मक राजनीति की समिति’ की स्थापना से हुआ|
रोस्टॉव “विकासशील देशों को अपने स्वयं के विकास हेतु विकसित देशों के राजनीतिक व्यवहार के नियमों तथा संस्थात्मक संरचना को अपना लेना चाहिए| उसका कहना था कि औद्योगिक समाज अन्य समाजों के लिए राजनीति विकास के प्रारूप का निर्धारण करता है|”
आमंड और कोलमैन राजनीति विकास को लोकतंत्र का पर्याय कहते हैं|
रुपर्ट एमर्सन, लिप्सेट, कोलमेन, कटराइट ने राजनीति विकास को आर्थिक विकास की राजनीतिक पूर्व शर्त के रूप में समझाया है|
डेविड एप्टर, गुन्नार मिर्डल और लरनर जैसे समाजशास्त्रियों ने राजनीति विकास को राजनीतिक आधुनिकीकरण का पर्याय माना है|
बाइंडर राजनीति विकास को राष्ट्रीय राज्य का संगठक मानता है|
रिग्स ने राजनीति विकास की व्याख्या प्रशासकीय एवं कानूनी विकास के आधार पर की है|
साम्यवादी और तानाशाही व्यवस्थाओं के पक्षधर स्थायित्व व व्यवस्थित परिवर्तन को राजनीति विकास के साथ जोड़ते हैं|
डायच और फलर्स ने राजनीति विकास को जन संघटन एवं जन सहभागिता माना है|
राजनीति विकास की परिभाषाएं-
ल्यूशियन पाई “राजनीतिक विकास संस्कृति का विसरण और जीवन के पुराने प्रतिमानो को नई मांगों के अनुकूल बनाने, उन्हें उनके साथ मिलाने या उनके साथ सामंजस्य बैठाना है|”
अल्फ्रेड डायमंड “राजनीति विकास ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक राजनीतिक व्यवस्था में नवीन लक्ष्यों को निरंतर सफल रूप में प्राप्त करने की क्षमता रहती है|”
आमंड और पावेल “राजनीतिक विकास राजनीतिक संरचनाओं की अभिवृद्धि, विभेदीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का बढ़ा हुआ लौकिकीकरण है|”
जागवाराइव “राजनीतिक विकास एक प्रक्रिया के रूप में राजनीतिक आधुनिकीकरण तथा राजनीतिक संस्थाकरण का जोड़ है|”
मैकेंजी “राजनीतिक विकास उच्च स्तरीय अनुकूलन को प्राप्त करने की क्षमता है|
आइजनस्टड एक राजनीतिक व्यवस्था को ‘ परिवर्तनों को लगातार आत्मसात करने की क्षमता का संस्थात्मक प्रबंध मानता है|
राजनीतिक विकास की प्रकृति-
राजनीतिक विकास की प्रकृति के विषय में तीन दृष्टिकोण प्रचलित है-
एकमार्गीय
बहुमार्गीय
द्वंद्वात्मक
फिंकल व गेबल के अनुसार राजनीतिक विकास अर्धविकसित देशों में एक साथ ही सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों का कारण तथा परिणाम होता है|
ल्यूशियन पाई ने अपनी पुस्तक एस्पेक्ट्स आफ पॉलीटिकल डेवलपमेंट 1966 में राजनीति विकास की प्रकृति के संबंध में निम्न उल्लेख किया है-
आर्थिक विकास की राजनीतिक पूर्व शर्त के रूप में राजनीति विकास अर्थात राजनीति विकास एक ऐसी स्थिति को कहा गया है, जो आर्थिक उन्नति, प्रगति और समृद्धि में सहायक है|
औद्योगिक समाजों की विशेष राजनीति के रूप में राजनीति विकास अर्थात औद्योगिक विकास राजनीति विकास से जुड़ा हुआ है| रोस्टॉव ने इन दोनों को परस्पर संबंधित बताकर राजनीति विकास को समझाया है|
राजनीतिक आधुनिकीकरण के रूप में राजनीति विकास अर्थात राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण का ही एक रूप है| इसमें इन दोनों को समानार्थी मानकर राजनीति विकास की व्याख्या दी गई है|
राष्ट्रीय राज्य के प्रचालक के रूप में राजनीतिक विकास, इसमें राष्ट्रीयता की भावना और एक राष्ट्रीय राज्य के निर्माण से राजनीति विकास को जोड़ दिया जाता है|
प्रशासकीय और विधिक विकास के रूप में राजनीति विकास, इसमें राजनीतिक विकास को राजनीतिक संरचनाओं के विभेदीकरण और विशेषीकरण तथा सर्वव्यापी कानूनों के माध्यम से विधि के शासन की स्थापना के रूप में समझा जाता है|
जनसंचार और सहभागिता के रूप में राजनीतिक विकास, इसमें राजनीतिक विकास में जनसंचार और लोगों की सहभागिता बढ़ जाना सम्मिलित किया जाता है|
लोकतंत्र के निर्माण के रूप में राजनीतिक विकास, इसके अनुसार राजनीतिक संरचनाओं और प्रक्रियाओं को प्रतियोगी, स्वतंत्र तथा जन सहभागिता के लक्षणों से युक्त करने की प्रक्रिया ही राजनीतिक विकास है|
स्थायित्व और व्यवस्थित परिवर्तन के रूप में राजनीतिक विकास, इसमें राजनीतिक व्यवस्था की उस व्यवस्था को समझा जाता है, जिसमें परिवर्तन की सुनिश्चित और व्यवस्थित प्रविधियां प्रचलित रहती हैं तथा जहां अनावश्यक राजनीतिक उथल-पुथल नहीं होते है|
शक्ति संचारक के रूप में राजनीतिक विकास, इसमें यह देखा जाता है कि राजनीतिक व्यवस्था विकास के लिए कितनी शक्ति समाज से जुटा पाती है|
सामाजिक परिवर्तन की बहु-दिशायुक्त प्रक्रिया के एक पहलू के रूप में राजनीतिक विकास, इसमें राजनीतिक विकास को सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया से जोड़ा जाता है| आमंड, कॉलमैन, कॉर्न होजर आदि ने राजनीति विकास को सामाजिक परिवर्तन की बहू दिशायुक्त प्रक्रिया के एक पहलू के रूप में विवेचित किया है|
राजनीति विकास के प्रतिरूप (Models)-
राजनीतिक आधुनिकीकरण
राजनीतिक विकास
राजनीतिक आधुनिकीकरण-
इस प्रतिरूप के प्रवर्तक ‘जेम्स एस. कोलमैन और लूसियन पाई’ है|
यह प्रतिरूप लूसियन पाई और सिडनी वर्बा की कृति पॉलीटिकल कल्चर एंड पॉलीटिकल डेवलपमेंट 1965 में विकसित किया गया है|
लूसियन पाई को राजनीति विकास सिद्धांत का पिता माना जाता है|
इस प्रतिरूप में राजनीतिक विकास एवं आधुनिकीकरण की संकल्पनाओं को मिला दिया गया|
इस प्रतिरूप में यह मान्यता निहित है कि ‘आधुनिक व्यवस्था राज्य और समाज की समस्याओं को सुलझाने में अधिक कार्यकुशल सिद्ध होती है|’
जहां परंपरागत व्यवस्था का मुख्य सरोकार कर संग्रह, कानून और व्यवस्था तथा प्रतिरक्षा से था, वही आधुनिक व्यवस्था सरकार के परंपरागत कार्यों के अलावा अपने नागरिकों के जीवन को उन्नत करने में भी सक्रिय भूमिका निभाती है|
आधुनिक व्यवस्था के अंतर्गत जनसाधारण राजनीति के साथ निकट से जुड़े रहते हैं, अपनी मांगे और विचार सरकार तक पहुंचाने को तत्पर रहते हैं| सरकार की नीतियों के प्रति अपना समर्थन एवं विरोध व्यक्त करते हैं और सरकार अपने नागरिकों का समर्थन एवं सहयोग प्राप्त करने के लिए मूलतः वैधता का सहारा लेती है|
इस प्रतिरूप के अनुसार राजनीति विकास के तीन मुख्य लक्षण स्वीकार किए गए हैं-
समानता
क्षमता
विभेदीकरण
Note- इन तीनों के समुच्चय को विकास संलक्षण (Development Syndrome) की संज्ञा दी जाती है|
समानता-
जनता राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को निरूपित करने वाली और उसमें सहभागी बन जाए|
जनता राजनीतिक प्रक्रियाओं में अधिकाधिक रुचि लेने लग जाए|
जनता में समानता के सिद्धांतों के प्रति अधिक संवेदनशीलता आ जाए|
सर्वव्यापी नियमों को स्वीकृति मिल जाए|
जनता में उपरोक्त लक्षणों का आना राजनीतिक विकास का सूचक है|
ल्यूशियन पाई इसको समानता के रूप में अभिव्यक्त करते हैं अर्थात जिस राजनीतिक समाज में समानता हो, वह राजनीतिक दृष्टि से विकास वाला समाज माना जा सकता है|
क्षमता-
राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता के निम्न मापदंड पूरे होने पर व्यवस्था को विकसित व्यवस्था कहा जा सकता है| ये मापदंड निम्न है-
राजनीतिक व्यवस्था राजनीतिक मामलों का उचित प्रबंध कर सके|
राजनीतिक व्यवस्था राजनीतिक विवादों को नियंत्रित रख सके|
राजनीतिक व्यवस्था जनता की मांगों का उचित निपटान कर सके|
प्रशासकीय निपुणता
शासन की प्रभावकारिता व समर्थता
प्रशासनिक बुद्धि संगतता
विभेदीकरण-
इसमें निम्न विशेषताएं शामिल है-
राजनीतिक संरचनाएं अलग-अलग कार्यों के लिए अलग-अलग हो|
कार्यात्मक दृष्टि से कार्यों का विभाजन हो|
प्रकार्यात्मक सुनिश्चितता हो|
संरचनाओं और प्रक्रियाओं में एकीकरण व समन्वय हो|
राजनीतिक विकास के संकट-
लूसियन पाई के अनुसार प्रत्येक राजव्यवस्था के सामने निम्नलिखित 6 संकट रहते हैं, अगर कोई राज्यव्यवस्था इन संकटों से निपट लेती है, तो वहां राजनीतिक विकास हो जाता है|
संकट के उदाहरण लूसियन पाई ने यूके (ब्रिटेन) से लिए हैं| जो निम्न है-
आत्म परिचय या पहचान का संकट- देश के बजाय धर्म, वंश, जाति, भाषा को प्राथमिकता देना अर्थात राष्ट्रप्रेम का अभाव
वैधता या औचित्यपूर्णता का संकट- सत्ता को जन सहमति प्राप्त न होना
प्रविष्टि/ अंत: प्रवेश का संकट- Grass Root तक लोकतंत्र का विस्तार न होना
भागीदारी या सहभागिता का संकट- राजनीतिक गतिविधियों, नियम निर्माण व क्रियान्वयन में जनभागीदारी का अभाव|
एकीकरण का संकट- विभिन्न समूहों व दलों की मांगों के मध्य सामंजस्य व एकत्रीकरण ना होना|
वितरण का संकट- संसाधनों, पदों, अधिकारों व सम्मानों का सही वितरण ना होना
बाइंडर ने अपनी पुस्तक Crisis and Sequences in Political Development 1971 में राजनीति विकास के चार संकट बताए हैं-
पहचान का संकट
वैधता का संकट
राजनीतिक सहभागिता का संकट
अंत: प्रवेश का संकट
आलमंड व पॉवेल ने राजनीतिक विकास से संबंधित चार समस्याओं का उल्लेख किया है-
राज्य निर्माण संबंधी समस्या
निष्ठा और प्रतिबद्धता विषयक समस्या
सहभाग विषयक समस्या
वितरण विषयक समस्या
राजनीति विकास-
राजनीति विकास का यह प्रतिरूप G.A आमंड और G.B पॉवेल की देन है|
उन्होंने अपनी पुस्तक ‘कंपैरेटिव पॉलिटिक्स: ए डेवलपमेंट एप्रोच’ 1965 में राजनीतिक विकास के तीन लक्षण बताए हैं-
संरचनात्मक विभेदीकरण
संस्कृति का धर्मनिरपेक्षीकरण या तर्कोन्मुखीकरण
राजनीतिक प्रणाली की कार्य क्षमताओं का विस्तार
संरचनात्मक विभेदीकरण या भूमिका विभेदीकरण-
संरचनात्मक विभेदीकरण का तात्पर्य समाज के भीतर राजनीति की औपचारिक संरचनाओं का पृथक-पृथक रूप में विकास करना|
राजनीति विकास का यह लक्षण कोलमैन और लुसियन पाई के प्रतिरूप में ज्यों का त्यों पाया जाता है|
संस्कृति का धर्मनिपक्षीकरण या तर्कोन्मुखीकरण या लौकिकीकरण-
यह वह प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत मनुष्य अपनी राजनीतिक कार्यवाही में उत्तरोत्तर अधिक तर्कसंगत, विश्लेषणात्मक और अनुभवमुलक दृष्टिकोण अपनाने लगते हैं| तथा जनसाधारण धर्म और रीति-रिवाज के बंधनों से ऊपर उठकर समान नागरिकों के नाते शासन की गतिविधियों में भाग लेने लगते हैं|
राजनीतिक प्रणाली की कार्य क्षमताओं का विस्तार या उप व्यवस्था स्वायत्तता-
वह प्रवृत्ति जिसमें शासन, अपने समाज और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण से आने वाली मांगों का उपयुक्त उत्तर देने के लिए, और समाज में विभिन्न हितलाभो का उपयुक्त वितरण करने के लिए, व्यक्तियों और समूहों के व्यवहार को नियंत्रित करता है| और समाज और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों को अपने उपयोग में लाता है|
आमंड और पॉवेल ने राजनीतिक प्रणाली की 4 तरह की कार्य क्षमताओं का वर्णन दिया है-
विनियमन क्षमता- अर्थात व्यक्तियों और समूहों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए विधिसम्मत बल-प्रयोग की क्षमता|
दोहन क्षमता- अर्थात समाज और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण से जुड़े प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों को अपने उपयोग में लाने की क्षमता|
वितरण क्षमता- अर्थात व्यक्तियों और समूहों में तरह-तरह के हित-लाभ वितरित करने की क्षमता|
प्रत्युत्तर क्षमता- अर्थात समाज और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण से आने वाली मांगों का उपयुक्त उत्तर देने की क्षमता|
आमंड व जागवाराइव ने राजनीतिक विकास के तीन प्रमुख लक्षण बताएं है-
व्यक्ति कार्यों/ भुमिकाओं (Roles) का विभिन्नीकरण
उप-व्यवस्थाओं की स्वायत्तता
धर्मनिरपेक्षीकरण
राजनीति विकास और राजनीति ह्रास-
सेमुअल पी. हंटिंगटन ने अपनी पुस्तक ‘पॉलिटिकल आर्डर इन चेंजिंग सोसायटी’ 1968 के अंतर्गत राजनीतिक ह्रास के बारे में विचार व्यक्त किया है|
हंटिंगटन के अनुसार राजनीतिक विकास और आधुनिकीकरण में सीधा संबंध नहीं है|
राजनीतिक विकास का मुख्य लक्षण राजनीतिक व्यवस्था है| और इसमें मुख्य बाधा राजनीति अव्यवस्था से पैदा होती है, जिसे हंटिंगटन से राजनीति ह्रास की संज्ञा दी है|
हंटिंगटन के अनुसार राजनीति की मूल समस्या यह है, कि किसी देश में जिस गति से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन होता है, उसकी तुलना में राजनीति संस्थाओं का विकास पीछे रह जाता है|
हंटिंगटन के अनुसार अधिकतर विकासशील देश सामाजिक आधुनिकीकरण को राजनीतिक पतन की कीमत पर खरीद रहे हैं| आधुनिकता का अर्थ स्थिरता है, परंतु विकासशील देशों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अस्थिरता को जन्म देती है |
हंटिंगटन के अनुसार भारत प्रतिलोमी उदाहरण है, जहां आधुनिक संस्थाओं के रूप में राजनीतिक दल व नौकरशाही है जो काफी विकसित है पर राष्ट्रीय राज्य आधुनिकीकरण के संदर्भ में काफी पिछड़ा हुआ है|
हंटिंगटन के अनुसार यदि राजनीतिक सहभागिता और राजनीतिक संस्था निर्माण साथ-साथ चल सके तो राजनीतिक ह्रास को रोका जा सकता है|
हंटिंगटन के अनुसार राजनीतिक विकास व पतन के लक्षण-
राजनीति विकास के स्तर या अवस्थाएं-
हंटिंगटन के अनुसार-
हंटिंगटन ने राजनीतिक विकास के तीन चरण या अवस्थाएं मानी है-
सत्ता की बुद्धिसंगतता का स्तर- इसे हंटिंगटन सत्ता के केंद्रीकरण की अवस्था कहता है| इस स्तर पर सत्ता के स्रोत के रूप में एक केंद्रीय सत्ता अभिकरण स्थापित हो जाता है|
नये राजनीतिक कार्यों का विभिन्नकरण और उसके लिए विशिष्ट संरचनाओं का विकास- यह राजनीतिक विकास की प्रक्रिया का दूसरा स्तर है
अभिवृद्धि सहभागिता- यह सामाजिक समूहों और समाज के भागों को धीरे-धीरे केंद्रीय सत्ता में सम्मिलित करने का स्तर है|
आमंड के अनुसार-
आमंड ने राजनीति विकास की चार अवस्थाएं मानी है-
राज्य निर्माण का स्तर- इसमें निम्न सम्मिलित है-
केंद्रीय सत्ता का निर्माण
इस सत्ता का राजनीति में प्रवेशन
विभिन्न समूहों का केंद्रीय सत्ता के अधिकार क्षेत्र में एकीकरण होना
राष्ट्रीय निर्माण का स्तर- इसमें निम्न शामिल है-
निष्ठाए और प्रतिबद्धताए उत्पन्न करना
निवेशों का समर्थन बढ़ना
सहभागिता का स्तर- इसमें निम्न शामिल है-
राजनीतिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से सम्मिलित होना
सम्मिलित समूहों और समाज के स्तरों को व्यापक बनाना
वितरण का स्तर- इसमें निम्न शामिल है-
सामाजिक जीवन के लाभों को पुनः निर्धारित करना, ताकि लाभ तक सबकी पहुंच बन जाए
आरगेंसकी के अनुसार-
आरगेंसकी ने अपनी पुस्तक Stages of Political Development 1965 में विकास के चार स्तर बताए हैं-
आदिम एकीकरण की राजनीति-
इस अवस्था में सरकारें अपनी जनसंख्या पर प्रभावशाली राजनीतिक एवं प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करती है तथा केंद्रीय सत्ता की स्थापना करती है|
18 वीं सदी के मध्य तक का पश्चिम के राज्यों का विकास इसी स्तर का कहा जा सकता है|
औद्योगिकरण की राजनीति-
इस स्तर पर उद्योगों का विकास होता है तथा नए वर्गों का निर्माण होता है|
इस स्तर पर सहभागिता का विस्तार और राष्ट्रीय एकीकरण होता है|
इस स्तर के तीन प्रतिमान है-
बुजुर्वा या मध्यमवर्गीय मॉडल- इसमें बुजुर्वा या पूंजीपति वर्ग प्रधान होता है|
स्टालिन का मॉडल- इसमें श्रमिक वर्ग या सर्वहारा वर्ग प्रधान होता है|
समन्वयी मॉडल- यह इटली के संदर्भ में फासिज्म का विशेष प्रतिमान है| इसमें पूंजीपति वर्ग तथा सर्वहारा वर्ग में समन्वय रहता है तथा राज्य मध्यमवर्गीय कृषकों के हितों की रक्षा करता है|
राष्ट्रीय लोक कल्याण की राजनीति-
इस स्तर पर लोक कल्याण पर बल दिया जाता है|
इस स्तर के भी तीन प्रतिमान है-
जन लोकतंत्र प्रतिमान- इसमें मताधिकार का विस्तार और उपभोक्ता वस्तुओं तक सर्वसाधारण की पहुंच होती है|
नाजीवादी मॉडल- इस स्तर पर राज्य स्वेच्छाचारी तथा जनता की एकता का प्रतीक होता है|
साम्यवादी मॉडल- इसमें लोक कल्याणकारी राज्य के लक्षण, जनता की प्रतीकात्मक जन सहभागिता, सर्वाधिकारी शासन और साम्यवादी दल की अधिनायकता होती है|
समृद्धि की राजनीति या बहुलता का स्तर-
यह स्तर वैज्ञानिक प्रविधियां और अत्यधिक परिष्कृत उपकरणों से अत्यधिक उत्पादकता का है, जिसमें हर एक के लिए वस्तुओं की समान उपलब्धता रहती है| यह राजनीति विकास की सबसे जटिल अवस्था है|
C H डॉड के अनुसार-
इन्होंने अपनी पुस्तक Political Development 1972 में राजनीति विकास के तीन स्तर बताए हैं-
शासकीय शक्ति का स्तर- प्राचीन कालीन राजतंत्र में शक्ति सम्राट में तथा सामंतवाद के युग में शक्ति सामंत में निहित रहती थी|
राष्ट्रीय अभिज्ञान का स्तर- पूंजीवादी युग में शक्ति एक व्यक्ति में न होकर संपूर्ण जनता में होती है|
राजनीतिक सहभागिता का स्तर- यह राजनीतिक विकास का अंतिम स्तर है| इस स्तर पर व्यक्ति राजनीतिक रूप से सक्रिय होकर राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता है|
आइजेनस्टाड के अनुसार-
इन्होंने अपने लेख Breakdown of Modernization 1966 में राजनीतिक विकास अवरोध की संकल्पना प्रस्तुत की है|
इनके अनुसार विकासशील देशों ने आधुनिकीकरण के नाम पर पश्चिमी संस्थाओं को तो अपना लिया है, किंतु वहां का संरचनात्मक ढांचा लोगों के पुरातन सामाजिक, आर्थिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को परिवर्तित करने में असफल रहा| इसने अंततोगत्वा राजनीतिक अवरोध को जन्म दिया|
इनके अनुसार राजनीति विकास के दो स्तर है-
सीमित आधुनिकरण का स्तर-
इसमें मध्यम वर्ग के लोगों को निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना और सांस्कृतिक लौकिकीकरण तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास सम्मिलित है|
जन आधुनिकरण का स्तर-
इसमें जनसाधारण को निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाता है तथा बहुत बड़े पैमाने पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विस्तार और प्रसार शामिल है|
जॉन कॉस्ट्स्की के अनुसार-
पुस्तक- Political Change in Under developed Countries Nationalism and Communism 1962
इन्होंने परंपरागत एवं आधुनिक दोनों समाजों के राजनीतिक विकास को 5 वर्गों में विभाजित किया है-
परंपरागत कुलीनतंत्रात्मक अधिकारवादी अवस्था
राष्ट्रीय बुद्धिजीवियों के प्रभुत्व की संक्रांतिकालीन अवस्था
कुलीनतंत्रो की सर्वाधिकारवादी अवस्था
बुद्धिजीवियों की सर्वाधिकारवादी अवस्था
प्रजातंत्रात्मक अवस्था
एडवर्ड शील्स के अनुसार-
पुस्तक- Political development in the new States 1962
इन्होंने संक्रांतिकालीन राजव्यवस्थाओं का विश्लेषण करके उन्हें 5 वर्गों में बांटा है-
राजनीतिक प्रजातंत्र
अभिभावक प्रजातंत्र
आधुनिकीकरणशील अल्पतंत्र
सर्वाधिकारवादी अल्पतंत्र
परंपरागत कुलीनतंत्र
राजनीतिक विकास की समस्याएं-
सामान्यतया राजनीति विकास की निम्न समस्याएं हैं-
राष्ट्र निर्माण की समस्या
राजनीतिक व्यवस्था की क्षमता में वृद्धि की समस्या
समानता लाने की समस्या
सहभागिता संभव बनाने की समस्या
वैधता प्राप्त करने की समस्या
आधुनिकीकरण की समस्या
विकासशील राज्यों में राजनीतिक विकास की समस्याएं-
राजनीतिक विकास के मॉडल के चयन की समस्या
राजनीतिक स्थायित्व की समस्या
संरचनात्मक व्यवस्थाओं की सुस्थिर स्थापना की समस्या
राजनीतिक विकास के अभिकरण- राजनीतिक दल, हित समूह और दबाव समूह के समुचित रूप में संगठित होने और विकसित होने की समस्या
हिंसात्मक राजनीति की समस्या
राजनीति विकास के सूचक-
जो कारक राजनीति विकास की दिशा व मात्रा को प्रकट करते हैं, उन्हें राजनीति विकास का सूचक कहा जाता है|
जो कारक राजनीति विकास की गति व प्रक्रिया में बाधा डालते हैं, वे राजनीतिक ह्रास के सूचक होते हैं| इन्हें नकारात्मक सूचक भी कहते हैं|
राजनीतिक विकास के सूचक या सकारात्मक सूचक-
प्रादेशिक अखंडता
राष्ट्रीय एकीकरण
राजनीतिक भागीदारी में वृद्धि
मताधिकार में वृद्धि
जनसंचार की स्वायत्तता
स्थानीय शासन की स्वायत्तता
शक्तियों का विकेंद्रीकरण
जनता की सक्रिय भागीदारी
कानून का शासन
विधायिका की प्रभावशाली भूमिका
राजनीतिक ह्रास के सूचक या नकारात्मक सूचक
चुनावों में हेरा फेरी
उग्र व हिंसात्मक प्रदर्शन
राजनीति दलों एवं दबाव समूहों का विघटन
राजनीतिक दल-बदल
कानून के शासन का अभाव
शक्तियों का केंद्रीकरण
भ्रष्टाचार एवं अव्यवस्था
राजनीतिक हत्याएं
असहमति या विरोध का दमन
शासकों की पूजा
राजनीतिक विकास उपागम के उदय के कारण-
निम्न कारण है-
डेविड ईस्टन का ‘व्यवस्था सिद्धांत’ तथा आमंड का ‘संरचनात्मक- प्रकार्यात्मक उपागम’ विकसित पाश्चात्य देशों के अध्ययन तक सीमित हो गये, क्योंकि इन दोनों का पूरा ध्यान व्यवस्था अनुरक्षण व स्थायित्व पर है, जबकि विकासशील देशों में पूरी व्यवस्था को बदलने की आवश्यकता है|
स्टीफन क्लार्क सेन का ‘मार्क्सवादी-लेनिनवादी उपागम’ केवल साम्यवादी देशों के अध्ययन में उपयोगी है|
इन कारणों से तृतीय विश्व (विकासशील देशों) के देशों की राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन के लिए राजनीतिक विकास सिद्धांत का उदय हुआ|
राजनीतिक विकास के क्षेत्र में सिद्धांत की खोज का काम 1963 में उस समय आरंभ हुआ, जब ग्रेबियल आमंड की अध्यक्षता में ‘तुलनात्मक राजनीति की समिति’ (Committee on Comparative Politics) की स्थापना हुई|
इस समिति का उद्देश्य राजनीतिक विकास और उससे संबंधित अध्ययनों के क्षेत्र में काम करने वाले प्रमुख लेखकों को एकत्रित करना था|
1963 से 1966 के बीच इस समिति के तत्वाधान में प्रिस्टन विश्वविद्यालय प्रेस से राजनीतिक विकास के विभिन्न पक्षों पर पांच ग्रंथ प्रकाशित हुए, जिनका संबंध संचार, लोक सेवा, राजनीतिक आधुनिकरण, शिक्षा, राजनीतिक संस्कृति व राजनीतिक दल व्यवस्था आदि विषयों से था|
प्रिस्टन विश्वविद्यालय प्रेस के राजनीतिक विकास विषय पर प्रकाशित ग्रंथ-
Communication and Political Development 1963- लूसियन पाई
Bureaucracy and Political Development 1963- ला पालोम्बरा
Educational Political Development 1965- कॉलमैन
Political Culture and Political Development 1965- लूसियन पाई व सिडनी वर्बा
Political Parties and Political Development 1965- ला पालोम्बरा व मायरन विनर
Note - राजनीतिक विकास सिद्धांत का उदय 1960 से 1970 के मध्य प्रिंसटन विश्वविद्यालय (USA) में हुआ|
प्रमुख प्रोफेसर व अध्ययन वाले देश-
Note- इन सब विचारको ने Third Word के देशों का अध्ययन किया है, लेकिन उनका राजनीतिक विकास को देखने का नजरिया ‘पूंजीवादी उदारवादी’ है|
राजनीतिक विकास से संबंधित विद्वान-
लुसियन पाई-
राजनीतिक विकास सिद्धांत के पिता माने जाते हैं |
पुस्तक- Aspects of Political Development 1966
पाई के मत में राजनीतिक विकास का अर्थ ‘सांस्कृतिक प्रसार और जीवन के पुराने प्रतिमानों को नई मांगों के साथ अनुकूलित, संबंधित और समायोजित’ करना था|
पाई के मत में राजनीतिक विकास की दिशा में पहला कदम राष्ट्रवाद पर आधारित राज्य व्यवस्था (Nation State) का विकास करना था|
पाई ने राजनीतिक विकास के तीन लक्षण बताए हैं, जिनको वह विकास संलक्षण (Development Syndrome) कहता है|
पाई ने राजनीतिक विकास के 6 संकट बताएं हैं|
ग्रेबियल आमंड-
पुस्तक-
Politics of Developing Area 1960- आमंड व कॉलमैन
Comparative Politics: A Development Approach 1966- आमंड व पावेल
आमंड के मत में राजनीतिक विकास का तात्पर्य है- भूमिका विभिन्नीकरण व संस्कृति का लौकीकीकरण
आमंड ने पावेल के साथ विभिन्न चयनित के राज्यव्यवस्थाओं का, आदिकाल से लेकर वर्तमान तक विकासात्मक विश्लेषण किया है|
आमंड अपने विकासात्मक उपागम को संभाव्यात्मक ही कहता है|
आमंड व पावेल ने अपनी पुस्तक Comparative Politics: A Development Approach 1966 में संरचनात्मक विभिन्नीकरण व संस्कृति के लौकीकीकरण की मात्रा के आधार तीन प्रकार की राजव्यवस्थाएं बताई हैं-
आदिम व्यवस्थाएं (Primitive System)
परंपरागत व्यवस्थाएं (Traditional System)
आधुनिक व्यवस्थाएं (Modern System)
आदिम व्यवस्थाऍ-
इसमें अन्तर्विरामी अथवा आवर्तक राजनीतिक संरचनाएं पायी जाती हैं |
इसमें संरचनात्मक विभिन्नीकरण न्यूनतम मात्रा में होता है|
इसकी संस्कृति विसृत (बिखरी हुई) व संकुचित होती है|
इसके भी तीन प्रकार है-
आदिम जत्थे- एस्किमो
खंडित व्यवस्थाएं- द सूडान
पिरामिडीय व्यवस्थाएं- घाना
परंपरागत व्यवस्थाएं-
इसमें विभिन्नीकृत शासकीय राजनीतिक संरचनाए पाई जाती हैं |
इसमें प्रजाभावी (Subject) संस्कृति होती है|
इसके भी तीन प्रकार है-
पैतृक व्यवस्थाएं- अफ्रीका औगाडोंगू
केंद्रीकृत नौकरशाही- टयूडरकाल UK
सामंती व्यवस्था-12वीं सदी का फ्रांस
आधुनिक व्यवस्थाएं-
इसमें विभिन्नीकृत राजनीतिक संरचनाएं पाई जाती हैं| (राजनीतिक दल, हित समूह, जन संचार)
इसमें सहभागी राजनीतिक संस्कृति होती है|
इसके भी तीन प्रकार हैं-
लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं-
उच्च उपव्यवस्था स्वायतता- UK व USA
सीमित उपव्यवस्था स्वायतता- फ्रांस (चौथा गणराज्य)
निम्न उपव्यवस्था स्वायतता- मैक्सिको
अधिनायकवादी व्यवस्थाएं-
इसमें नियंत्रित उपव्यवस्था व प्रजाभाव-सहभागी संस्कृति होती है|
रेडिकल सर्वाधिकारवादी- USSR
रूढ़िवादी सर्वाधिकावादी- जर्मनी
रूढ़िवादी अधिनायकवादी- स्पेन
आधुनिककीकृत अधिनायकवादी- ब्राज़ील
थोपी हुई गतिशीलता युक्त आधुनिक व्यवस्थाएं-
घाना, नाइजीरिया
आलोचना-
गोल्डर ने आमंड के सिद्धांत को ‘यथास्थितिवाद’ एवं पूंजीवादी विश्लेषण योजना’ मानते हुए प्रकार्यवादियो को औद्योगिक समाज के समाजशास्त्रीय अनुदार सिपाही माना है|
रन्सीमैन ने इसे ‘मार्क्सवाद का विकल्प’ कहा है|
सैमुअल पी हंटिंगटन-
पुस्तक-
Political Development and Political Decay 1965 (लेख)
Political Order in Changing Society 1967 (पुस्तक)
हंटिंगटन “राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का राजनीतिक व्यवस्था द्वारा समाधान खोजने की क्षमता का नाम है|”
हंटिंगटन ने अपने लेख Political Development and Political Decay 1965 में राजनीतिक विकास को एकल मार्गीय/ एकल रेखीय मानने पर विरोध किया है| इनके मत में राजनीतिक विकास के साथ-साथ राजनीतिक ह्रास/ पतन भी होता है|
हंटीगटन के मत में राजनीतिक विकास में दो प्रक्रियाएं साथ-साथ चलनी चाहिए-
सामाजिक संगठन
आर्थिक विकास
यदि ये दोनों प्रक्रियाएं समानांतर नहीं चलती है, तो संस्थाकरण सही तरीके से नहीं हो पाता है और राजनीतिक ह्रास की स्थिति पैदा हो जाती है|
Gap Hypothesis (गैप परिकल्पना)-
हंटीगटन के मत में बढ़ती जनाकांक्षा व उनकी पूर्ति के मध्य खाई उत्पन्न हो जाती हैं या गैप आ जाता है, तो यह राजनीतिक ह्रास का कारण है|
अतः राजनीतिक सहभागिता व संस्था निर्माण साथ-साथ चलने चाहिए, तभी राजनीतिक विकास होता है|
इस तरह हंटीगटन राजनीतिक विकास को संस्थानीकरण व प्रक्रियाओं से जोड़ देता है|
Note- हंटीगटन के मत में प्लेटो उन गिने-चुने सिद्धांतवादियों में से हैं, जिसनें राजनीतिक पतन का स्पष्ट सिद्धांत प्रस्तुत किया था|
माइनर विनर-
पुस्तक-
Party Politics in India 1957
The Politics of Scarcity : Public Pressure and Political Response in India 1962
State Politics in India 1968
Sons of the Soil 1978
माइनर वीनर ने भी राजनीतिक संस्थाकरण को राजनीतिक विकास का आवश्यक तत्व माना है|
फ्रांसीसी पुकुयामा-
पुस्तक-
The Origins of Political Order 2011
Political Order and Political Decay 2014
फ्रांसीसी फुकुयामा हंटिंगटन से प्रभावित थे|
इन्होंने राजनीतिक विकास के घटक व राजनीतिक पतन के कारणों का उल्लेख किया है-
राजनीतिक विकास के घटक-
राज्य निर्माण- सशक्त व आधुनिक राज्य
विधि का शासन
उत्तरदायी शासन/ लोकतंत्र
राजनीतिक विकास का सर्वोत्तम उदाहरण डेनमार्क है|
राजनीतिक विकास का तात्पर्य है- स्थिरता/ अर्थात स्थिर राज्य ही राजनीतिक रूप से विकसित राज्य है|
स्थिरता के लिए तीनों घटकों में संतुलन आवश्यक है|
राजनीतिक पतन की कारण-
विसंस्थांकरण (Deinstitutionalization)-
कारण- केंद्रीय सत्ता का अभाव, शक्तिशाली संस्थाओं द्वारा सार्वजनिक के बजाय निजी हित में कार्य करना|
पुनर्विरासतीकरण (Repartimonialization)-
कारण- मनुष्य की सामाजिक प्राणी वाली प्रवृत्ति, जिसके कारण वह रिश्तेदारों का चयन करता है या ‘पारस्परिक परोपकारिता’ करता है|
फ्रेड W रिग्स-
पुस्तक- The Ecology of Development 1964
रिग्स ने विकासशील देशों की राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन किया है|
रिग्स में अपनी पुस्तक ‘The Ecology of Development 1964’ में राजनीतिक विकास का वर्णन किया है|
इनके मत में राजनीतिक विकास की मात्रा का विकासशील व्यवस्था पर विकास परिणामों के पडने वाले प्रभाव के अनुपात द्वारा मापन किया जा सकता है|
रिग्स ने व्यवस्था के द्वारा अपने पर्यावरण को रूपांतरित करने की योग्यता तथा स्वयं की विशेषताओं को पर्यावरण के द्वारा निश्चित किए जाने के मध्य अनुपात के रूप में राजनीतिक विकास को बताया, अर्थात रूपांतरण योग्यता जितनी ज्यादा उतना ही ज्यादा राजनीतिक विकास|
रिग्स ने अपने लेख Administrative Development 1963 में बताया कि विकास की व्यवस्थाओं का परिमाणात्मक निर्धारण किया जा सकता है|
राजनीतिक विकास का द्वंद्वात्मक सिद्धांत-
रिग्स ने राजनीतिक विकास के तीन आयाम बताए हैं-
समानता
क्षमता
विभिन्नीकरण
राजनीतिक विकास का मूल आधार ‘संरचनात्मक विभिन्नीकरण’ है| जितना ज्यादा संरचनात्मक विभिन्नीकरण होगा, उतनी ही अधिक समस्या समाधान व लक्ष्य प्राप्ति की क्षमता होगी|
विभेदीकरण के स्तर में वृद्धि होने पर सामानता व क्षमता के स्तर में वृद्धि होगी|
विकास फंद (Development Trap)-
समानता तथा क्षमता में संतुलन जरूरी है, तभी राजनीतिक विकास होता है|
इनमें संतुलन न होने पर राजव्यवस्था या तो क्षमता की ओर या समानता की ओर झुक जाएगी तथा विकास फंद में फस जाएगी|
क्षमता अभिजन वर्ग से संबंध रखती है और असामानतावर्धक होती है, इन्हें दक्षिणपंथी बल कहा जाता है |
दूसरी ओर उप-अभिजनो, लोकप्रिय आंदोलनो के रूप में बहुसंख्यक जनता के द्वारा समानता के स्तर में वृद्धि की मांग उठायी जाती है, अतः उनको वामपंथी बल कहा जाता है|
विकास फंद में फंसी हुई राजव्यवस्था बायें से दाएं तथा दाएं से बायें अधर में झूलती रहती है|
रिग्स द्वारा प्रयुक्त हीगलवादी द्वंद्वात्मक प्रक्रिया में दक्षिणपंथी शक्तियां ‘वाद’ है, तथा वामपंथी शक्तियां ‘प्रतिवाद’ है तथा संरचनात्मक विभेदीकरण संवाद है| और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है|
Note- रिग्स संरचनावादी है, इसलिए उसने संरचनात्मक विभेदीकरण को राजनीतिक विकास का मेरुदंड माना है|
कार्ल डायच-
पुस्तक- The Nerves of Government 1963
इन्होंने राजनीतिक विकास में आधिकाधिक सूचनाओं को आत्मसात करने तथा उनका उपयोग करने की क्षमता पर बल दिया है, ताकि व्यवस्था कुशलतापूर्वक अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके|
डेविड ए एक्टर-
पुस्तक- The Politics of Modernization 1965
एप्टर आधुनिकीकरण को औद्योगिकरण व राजनीतिक विकास से अलग मानता है |
एप्टर के Thought का क्रम-
विकास- आधुनिकरण- औद्योगिकरण- आधुनिकरण की राजनीति
आइजन्स्टैंड-
पुस्तक- Breakdown of Modernization 1966
इन्होंने विभंग (Breakdown) की अवधारणा दी है|
राजनीतिक विकास की संक्रियात्मक शर्तें-
आइजन्स्टैड ने राजनीतिक विकास की निम्न संक्रियात्मक शर्तें बतायी हैं-
संचार साधनों का पर्याप्त पुनर्गठन
देश में शिक्षा का पर्याप्त विकास
नये विकासात्मक कार्यों के लिए समाज के निम्न और साधारण क्षेत्रो से पर्याप्त संख्या में जनसाधारण का नियोजन|
अभिजन वर्ग की कृत्यात्मकता का अनवरत रूप से निर्वाह हो
अभिजनों के पास विकास की दृढ़ योजना हो|
राजनीतिक विकास के अपकृत्यात्मक कार्य
आइजन्स्टैड ने कुछ ऐसे अपकृत्यात्मक कार्यों की चर्चा की है, जो राजनीतिक विकास के मार्ग में बाधक सिद्ध हो सकती है-
सत्ता का बार-बार हस्तांतरण, जिससे व्यवस्था को स्थिरता के भंग होने की आशंका रहती है|
शासन अभिजनो में बहुत अधिक स्वस्वार्थता और भ्रष्टाचार अथवा उनके सिद्धांतो और व्यवहार में बहुत अधिक अंतर
ऊंचे प्रकार्यो, अवसरो और पुरस्कारों के वितरण में न्याय की भावना की कमी|
जग्वाराइब-
जग्वाराइब ने राजनीतिक विकास की 8 विशेषताएं बतायी है, जिनको तीन भागों में बाटा है-
संक्रियात्मक परिवर्ती (Operational)
विकासोन्मुख परिवर्ती
संरचनात्मक विभेदीकरण
सामर्थ्य
सहभागी परिवर्ती (Participational)
राजनीतिक गत्यात्मक
राजनीतिक एकीकरण
राजनीतिक प्रतिनिधित्व
दिशा निदेशक परिवर्ती (Directional)
राजनीतिक उच्च कोटिता
विकासोन्मुख अभिवृत्ति
जग्वाराइब ने संरचनात्मक विभेदीकरण के तीन स्तर बताए हैं-
अंतर-समाजीय (Inter-Societal)
समाजान्तरिक (Intra-Societal)
व्यवस्थागत (Intra-Systemic)
W रोस्टोव-
पुस्तक- The Stages of Economic Growth 1960
इन्होंने विकास के 6 चरण बताए हैं-
परंपरागत समाज-
श्रम प्रधान, कृषि प्रधान, निम्न तकनीकी
संक्रांतिकाल (Pre take of stage)-
कृषि प्रधान, अल्प औद्योगिकरण
उत्कृष्ट अवस्था (Take of stage)-
पूर्ण औद्योगिकरण
प्रौढ़ता की ओर प्रेरणा की अवस्था (Post Take of stage)-
पर्याप्त पूंजी, अमीरी, उच्च तकनीकी
जनपूंज उपयोग (Mass Consumption)
पूर्ण उपभोग
गुणवता की खोज-
महत्वपूर्ण शब्द-
परिभाषा का संकट या अर्थ/ परिभाषा का भ्रम (Semantic Confusion)- लूसियन पाई
परिभाषित प्राथमिकताओं की समस्या (Problem of Definition of Priorities)- J B नेटाल
विकास संलक्षण- लूसियन पाई
भूमिका विभिन्नीकरण एवं संस्कृति का लौकिकीकरण- आमंड
विभंग (Breakdown)- आइज़न्स्टैड
विकास फंद- रिग्स
राजनीतिक ह्रास/ पतन- हंटिंगटन
Gap Hypothesis- हंटिंगटन
Social Plugin