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अरस्तु (The Aristotle) (384ईसा पूर्व- 322 ईसा पूर्व) In Hindi

    जीवन परिचय-

    • जन्म- 

    • 384 ईसा पूर्व 

    • मेसिडोनिया/ मकदूनिया की सीमा पर स्थित स्टेगिरा नामक यूनानी शहर में|


    • पिता- 

    • निकोमैक्स

    • निकोमैक मकदूनिया के राजा एमंट्स तृतीय या फिलिप के राजदरबार में वैद्य थे|


    • अरस्तु प्लेटो का शिष्य था| अरस्तु 367 ईसा पूर्व में 17 वर्ष की अवस्था में एथेंस चला गया तथा प्लेटो की अकादमी में सम्मिलित हो गया|

    • अरस्तु ने जीवन के अगले 20 वर्ष तक (प्लेटो की मृत्यु 347 ईसा पूर्व तक) अकादमी में अध्ययन, अध्यापन किया|

    • प्लेटो अपने शिष्य अरस्तु की योग्यता से प्रभावित था, इसलिए प्लेटो ने अरस्तु को अकादमी का मस्तिष्क या शरीरधारी बुद्धिमता या अकादमी का नोस (Naus) या बुद्धि का साक्षात अवतार कहा|

    • अरस्तु ने पुस्तकों का संग्रह कर पुस्तकालय बनाया था, इस कारण प्लेटो अरस्तु के निवास स्थान को विद्यार्थी का घर/ पाठक का घर कहता है|

    • अरस्तु को राजनीति विज्ञान का जनक कहा जाता है| 

    • अरस्तु ने कई विषयों पर लिखा है, इस कारण अरस्तु को सभी जानकारियों या ज्ञानो का गुरु (Master of them know) कहा जाता है|

    • मैक्सी ने अरस्तु को प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक कहा है|

    • कैटलिन ने अरस्तु को मध्यम वर्ग का दार्शनिक कहा है|

    • अरस्तु को अपने पिता से चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा मिली थी, इसलिए अरस्तु का विज्ञान के प्रति झुकाव था| यही कारण है कि उसने नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र के विवेचन में जीवविज्ञान और आयुर्विज्ञान के दृष्टांतो का प्रयोग किया है|

    • अरस्तु को तुलनात्मक राजनीति का पिता कहा जाता है, क्योंकि अरस्तु ने 158 संविधानो का तुलनात्मक अध्ययन किया था|

    • अरस्तु को संविधानवाद का पिता भी कहा जाता है| 

    • अरस्तु ने राजनीति विज्ञान को सर्वोच्च विज्ञान (Master of science) या परम विद्या (Master Art) या Architectonic science (वास्तुकारी विज्ञान) कहा है|

    • अरस्तु “मनुष्य का शुभ राजनीति शास्त्र का ध्येय होना चाहिए|”

    • प्लेटो की मृत्यु के बाद (347 ईसा पूर्व) अकादमी में उचित स्थान नहीं मिलने के कारण अरस्तु ने अकादमी छोड़ दी थी तथा एशिया माइनर चले गए, क्योंकि अकादमी का निर्देशन प्लेटो के भतीजे स्यूसिप्पस के हाथ में आ गया था|

    • एशिया माइनर के नगर एटारनोस (Atarneus) के निरंकुश शासक हर्मियस के पास अरस्तु रहने लगा,  हर्मियस अरस्तु का पहले शिष्य रहा था| 

    • एटारनोस (Atarneus) के शासक हर्मियस के साथ अरस्तु के घनिष्ठ संबंध थे| हर्मियस ने ही अरस्तु का परिचय सिकंदर से कराया था|

    • अकादमी या एथेंस छोड़ देने के बाद 346 ईसा पूर्व में अरस्तु मकदूनिया/ मेसिडोनिया के राजकुमार  अलेक्जेंडर या सिकंदर का शिक्षक बना तथा सिकंदर के परामर्शदाता तथा चिकित्सक के रूप में कार्य करता रहा|

    • सिकंदर मेसिडोनिया के राजा फिलिप का पुत्र था तथा 13 वर्ष की आयु में अरस्तु का शिष्य बना था| 

    • हर्मियस ने अरस्तु से सीखा था कि ‘एक व्यक्ति में शासक के क्या गुण होते है, नगर राज्य में अर्थव्यवस्था का क्या महत्व होता है, अन्य देशों के साथ संबंध कैसे बनाए जाते हैं आदि|

    • 342 ईसा पूर्व अरस्तु के मित्र हर्मियस को एक ईरानी ने धोखे से पकड़ लिया और सुसा ले जा कर हत्या कर दी| इस घटना से अरस्तु दुखी हुए तथा हर्मियस पर एक गीत का काव्य लिखा| इस घटना से अरस्तु की यह धारणा बनी कि ‘विदेशी बर्बर जातियां यूनानीयों के शासन में ही रहनी चाहिए’ तथा इस सिद्धांत का प्रतिपादन अरस्तु ने अपने ग्रंथ पॉलिटिक्स में किया|

    • अरस्तु ने सिकंदर को यूनानीयों का नेता और बर्बर जातियों का स्वामी बनने की शिक्षा दी|

    • सिकंदर अरस्तू को पिता तुल्य आदर देता था| जैसा कि प्लूटार्क ने लिखा है कि “सिकंदर का अरस्तु के प्रति उतना ही प्रेम और उतनी ही श्रद्धा थी, जितनी की अपने पिता के प्रति थी| सिकंदर का कहना था कि यदि उसने अपने पिता से जीवन पाया है तो गुरु ने उसे जीवन की कला दी है|”

    • विश्व विजय के लिए निकले सिकंदर के साथ अरस्तु भी घूमता रहा और इस बीच अरस्तु ने भारत के भी दर्शन किए थे|

    • 12 वर्षों तक विभिन्न स्थानों के भ्रमण के बाद 335 ईसा पूर्व में अरस्तु वापस एथेंस आ गया और वहां मेसीडोनियन दल में सम्मिलित हुआ तथा एथेंस में अपनी शिक्षण संस्थान लिसियम/ लाइसियम की स्थापना की|



    अरस्तु की शिक्षण संस्थान-

    • नाम- लिसियम/ लाइसियम(Lyceum)

    • 335 ईसा पूर्व में एथेंस लौटने के बाद अरस्तु ने लिसियम/ लाइसियम नामक शिक्षण संस्थान की स्थापना|

    • लिसियम में विशेष रुप से दर्शनशास्त्र को पढ़ाया जाता था| दर्शनशास्त्र के अलावा जीव विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञान को भी पढ़ाया जाता था|

    • अरस्तु 12 वर्षों तक लिसियम का प्रधान रहा|

    • एथेंस में लिसियम/ लाइसियम का स्थान 4 बड़े दार्शनिक विश्वविद्यालयों में दूसरा था|

    • अरस्तु को सिकंदर की सहायता मिलती रही थी, सिकंदर ने 800 बुद्धिमान लोगों को अरस्तु की सहायता के लिए लगा रखा था|

    • 328 ईसा पूर्व में सिकंदर ने अरस्तु के भतीजे कैलिस्टनीज की हत्या करा दी थी, जिससे लिसियम में सिकंदर विरोधी वातावरण उत्पन्न हो गया था| 


    • 323 ईसा पूर्व में सिकंदर की मृत्यु हो गई| सिकंदर ने चिरोनिया के युद्ध (338 ईसा पूर्व) में विजय के बाद एथेंस पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था, इसलिए एथेंसवासी सिकंदर से नाराज थे|

    • सिकंदर की मृत्यु के बाद अरस्तु को एथेंसवासी विरोधियों के षड्यंत्र (विरोधी एथेंसवासी अरस्तु पर देवों का अपमान अभियोग लगाने की तैयारी में थे) का सामना करना पड़ा, इसलिए वह एथेंस से भागकर कैलियस (chelies) चला गया|

    • 323 ईसा पूर्व में लिसियम या एथेंस से भागते हुए अरस्तु ने कहा कि “मैं एथेंस वासियों को दर्शन के विरुद्ध दूसरी बार अपराध करने का अवसर नहीं दूंगा|”


    • अरस्तु की प्रमुख दिलचस्पी मानव व्यवहार, राजनीतिक संस्थाओं, संविधान, राजनीतिक स्थिरता के कारकों में थी|

    • जहां प्लेटो आदर्शवादी और मूलगामी थे, जबकि अरस्तु वास्तविकतावादी और उदार थे|


    • विवाह- अरस्तु का विवाह 344 ईसा पूर्व हर्मियस या हिप्पीयस की बहन या भतीजी पिथियास से हुआ| 


    • अरस्तु ने राजनीति शास्त्र को नीति शास्त्र से पृथक कर उसे स्वतंत्र रूप प्रदान किया|

    • डनिंग “राजनीतिक सिद्धांतों के इतिहास में अरस्तु का सर्वप्रमुख महत्व इस तथ्य में है कि उसने राजनीति को एक स्वतंत्र विज्ञान का स्वरूप प्रदान किया है|”

    • डनिंग “पश्चिमी जगत में राजनीति विज्ञान अरस्तु से ही प्रारंभ होता है|”

    • फॉस्टर “मानव इतिहास में संभवत अरस्तु की बौद्धिक उच्चता के समान कोई दूसरा नहीं है|”

    • दांते ने अरस्तु को बुद्धिमान वैज्ञानिकों का गुरु कहा है|

    • कैटलिन “कन्फ्यूशियस के बाद अरस्तु सामान्य ज्ञान और मध्यम मार्ग का सबसे बड़ा प्रतिपादक है|”

    • कैटलिन ने अरस्तु को विद्या का महानतम और प्रथम सर्वज्ञानी कहा है|

    • द्यूरान्त “अरस्तु को वैज्ञानिक दिमाग विकसित करने का हर मौका मिला, जिससे विज्ञान के जन्मदाता बन सके|”

    • हैकर “यदि प्लेटो प्रथम राजनीतिक दार्शनिक होने का दावा कर सकते हैं, तो बिना शक के अरस्तु प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक है|”


    • मृत्यु- 322 ईसा पूर्व में कैलियस (chelies) में अरस्तु की मृत्यु हो गई|

    • डायगनिस लार्टियस का कहना है कि इस वृद्ध दार्शनिक ने एकदम निराश होकर विषपान द्वारा आत्महत्या कर ली थी| 



    अरस्तु द्वारा राजनीतिशास्त्र को सर्वोच्च विज्ञान या परम विद्या कहने का कारण-


    • अरस्तु के अनुसार राजनीति शास्त्र का सरोकार मानव जीवन के साध्य से है, जबकि अन्य विज्ञान इसके लिए केवल उपयुक्त साधन प्रदान करते हैं| 

    • मनुष्य सदजीवन की प्राप्ति के लिए राजनीतिक समुदाय के रूप में रहते हैं वे सदजीवन की प्राप्ति के लिए जो-जो करते हैं, जो-जो नियम, संस्थाएं और संगठन बनाते हैं, उन सब का अध्ययन राजनीति शास्त्र के विचार क्षेत्र में आता है|

    • अरस्तु ने साध्यो के श्रेणी तंत्र का विचार दिया है| इस विचार के अनुसार अन्य विधाओं के साध्य अंततोगत्वा राजनीति शास्त्र के साथ में विलीन हो जाते हैं तथा राजनीति शास्त्र साध्यो की श्रेणी तंत्र में सबसे ऊपर होता है|



    अरस्तु की रचनाएं-

    • फॉस्टर “अरस्तु की महानता उसके जीवन में नहीं, किंतु उसकी रचनाओं में प्रदर्शित होती है|”

    • कैटलिन “अरस्तु विद्या का सर्वश्रेष्ठ एवं प्रथम विश्वकोशी था|”

    • अरस्तु ने कला, खगोलशास्त्र. जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, रसायन शास्त्र, संवैधानिक इतिहास, ज्ञान शास्त्र, नीति शास्त्र, बौद्धिक इतिहास, भाषा, कानून, तर्क, गणित, यांत्रिकी, पराभौतिकी, प्राकृतिक इतिहास, शरीर शास्त्र, राजनीति शास्त्र, मनोविज्ञान और प्राणी विज्ञान पर रचनाएं लिखी| तथा गति, स्थान और काल पर व्यापक शोध कार्य किया|

    • डायगनिस लार्टियस ने अरस्तु की रचनाओं की संख्या 400 बताई है |

    • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने अरस्तु के समूचे ग्रंथ संग्रह को 3500 पृष्ठ व 12 भागों में प्रकाशन किया है|

     

    प्रमुख ग्रंथ-

    • राजनीति पर- Politics, The Constitution

    • साहित्य पर- Eademus or Soul, Protepicus, Poetics, Rhetoric

    • तर्कशास्त्र व दर्शन पर- Physics, De Anima (मनोविज्ञान से सम्बंधित), The Prior Metaphysics, Categories, Interpretation, The Posterior Analytics, TheTopics

    • भौतिक विज्ञान पर- Meteorology

    • शरीर विज्ञान पर- Histories of Animals

    • नीति शास्त्र पर- Nicomachus Ethics, उडेनियन एथिक्स या ऑन द सोल



    1. The Politics- 

    • इसका मुख्य विषय नगर- राज्य (पोलिस) है|

    • इसमें राज्य के उदय और स्वभाव, आदर्श राज्य और उसके संविधान और नागरिकता इत्यादि पर विचार किया गया है|


    1. The Constitution

    • इसमें 158 संविधानो का तुलनात्मक अध्ययन है| संविधानो में प्रमुखत: एथेंस का संविधान है| वर्तमान में एकमात्र एथेंस का संविधान ही उपलब्ध है|


    1. Nicomachus Ethics व उडेनियन एथिक्स- 

    • Nicomachus Ethics में मानव आत्मा के अध्ययन पर जोर दिया गया है| आत्मा की अमरता उडेनियन एथिक्स का केंद्र है| अरस्तु ने आत्मा को प्राकृतिक और शरीर से अलग बताया है और यह विश्वास प्रकट किया है कि मृतकों का अस्तित्व जीवितो से बेहतर होता है| 

    • इन दोनों कृतियों में व्यक्तिगत खुशी पर विचार किया है, जबकि द पॉलिटिक्स में राज्य को खुशी का स्त्रोत बताया है|



    अरस्तु की अध्ययन पद्धति-

    • अरस्तु ने निम्न अध्यन पद्धतियों का प्रयोग किया है-

    1. आगमनात्मक अध्ययन पद्धति

    • यह विशिष्ट से सामान्य की ओर चलने वाली अध्यन पद्धति है| इसको उदगमनात्मक अध्ययन पद्धति भी कहते हैं| यह वैज्ञानिक अध्ययन पद्धति है|


    1. ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति- 

    • किसी भी क्रांति के कारणों की जांच हेतु अरस्तु ने इतिहास का सहारा लिया है| 

    • राजनीतिक चिंतन में ऐतिहासिकता का सहारा संभवत सर्वप्रथम अरस्तु ने लिया है, इस कारण अरस्तु को ऐतिहासिक विधि का जनक भी कहा जाता है|


    1. तुलनात्मक अध्ययन पद्धति

    • अरस्तु ने 158 संविधानो का तुलनात्मक अध्ययन किया है|


    1. सौद्देश्यात्मक व सादृश्यात्मक अध्ययन पद्धति-

    • सौद्देश्यात्मक अध्ययन पद्धति में यह माना जाता है कि प्रत्येक वस्तु अथवा विषय का अपना उद्देश्य होता है|   

    • सादृश्यात्मक अध्ययन पद्धति के अंतर्गत अरस्तु ने अपने विचारों के समर्थन में प्राणी जगत तथा चिकित्सा शास्त्र से सादृश्य प्रस्तुत किए हैं|


    1. वैज्ञानिक अध्ययन पद्धति-   

    • मैक्सी के शब्दों में “अरस्तु के पॉलिटिक्स ग्रंथ का एक महानतम गुण यह है, कि इसकी रचना में वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया है|”


    1. विश्लेषणात्मक अध्ययन पद्धति- 

    • इस पद्धति के अंतर्गत वस्तु के निर्माणकारी तत्वों का अध्ययन करके उस वस्तु का अध्ययन किया जाता है|  

    • अरस्तु राज्य को एक पूर्ण वस्तु मानकर उसके निर्माणकारी तत्वों जैसे- ग्रामों, परिवारों, नागरिकों का अध्ययन करता है|


    1. अनुभवमुलक अध्ययन पद्धति- 

    • ज्ञान प्राप्त करने का वह तरीका जिसमें ज्ञानेंद्रियों के अनुभव के आधार पर कोई निष्कर्ष निकाला जाता है|



    अरस्तु की रचना पॉलिटिक्स (The Politics)

    • अरस्तु की सभी रचनाओं में पॉलिटिक्स उसकी सर्वश्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण रचना है| इसमें पहली बार राजनीति को एक वैज्ञानिक रूप दिया गया है|

    • पॉलिटिक्स का मुख्य विषय नगर राज्य (Polis) है|

    • जहां प्लेटों राजनीति और नैतिकता में कोई भेद नहीं समझता था, वहीं इस ग्रंथ में अरस्तु ने राजनीति को नैतिकता से व दर्शनशास्त्र से पृथक किया है| प्रोफेसर बार्कर ने पॉलिटिक्स को राजनीति के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ रचना कहा है| 

    • जेलर “अरस्तु की पॉलिटिक्स प्राचीन काल में विरासत में प्राप्त होने वाली एक सर्वाधिक मूल्यवान निधि है और राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में प्राप्त होने वाला महानतम योगदान है|” 

    • फॉस्टर “यदि यूनानी राजनीतिक दर्शन का सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधित्व करने वाला कोई ग्रंथ हो सकता है तो वह पॉलिटिक्स है|”

    • टेलर “पॉलिटिक्स के अतिरिक्त अरस्तु का कोई दूसरा ग्रंथ एक बहुमुखी विषय की विवेचना में इतना साधारण कोटि का नहीं रहा है तथा सत्य यह है कि सामाजिक विषयों में उसकी अभिरुचि तीक्षण नहीं थी|”

    • बार्कर ने पॉलिटिक्स को राजनीतिक चिंतन के क्षेत्र में महान कार्य की संज्ञा दी है|

    • कार्ल पॉपर “अरस्तु की पॉलिटिक्स में प्लेटोवादी कुलीन तंत्र, संतुलित सामंतवाद व जनतांत्रिक विचार है, लेकिन जैव व्यक्तिवाद नहीं है|”

    • प्रोफेसर बाउल “पॉलिटिक्स सर्वाधिक प्रभावशाली और महान ग्रंथ है तथा इसका गंभीर अध्ययन अपेक्षित है|”

    • मैकलवेन “पॉलिटिक्स अत्यंत महत्वपूर्ण भी नहीं है तो भी राजनीति दर्शन के शास्त्रीय ग्रंथों में अत्यंत हैरानी पैदा करने वाला ग्रंथ तो है ही|”  

    • केनी “पॉलिटिक्स एक पिछड़ी हुयी बेमेल रचना है|”

    • मेकलवेन ने पॉलिटिक्स को भ्रमपूर्ण कृति कहा है| 


    • पॉलिटिक्स में कुल 8 पुस्तकें है, जिन्हें विषय की दृष्टि से बार्कर के अनुसार तीन वर्गों में बांटा जा सकता है-

    1. प्रथम वर्ग- पहली, दूसरी और तीसरी पुस्तके प्रथम वर्ग में आती है|

    1. प्रथम पुस्तक- राज्य की प्रकृति, राज्य के उद्गम और आंतरिक संगठन तथा दास प्रथा का वर्णन|

    2. दूसरी पुस्तक- प्लेटो द्वारा प्रतिपादित आदर्श राज्य एवं स्पार्टा, क्रिट, कार्थेज आदि तत्कालीन राज्यों की समीक्षा|

    3. तीसरी पुस्तक- राज्यों का वर्गीकरण, नागरिकता व न्याय के स्वरूप का विवेचन|


    1. दूसरा वर्ग- चौथी, पांचवी, छठी पुस्तकें

    1. चौथी पुस्तक- विभिन्न प्रकार की वास्तविक शासन प्रणालियों का वर्णन|

    2. पांचवी पुस्तक- विभिन्न शासन प्रणाली में होने वाले वैधानिक परिवर्तनों और क्रांति के कारणों का प्रतिपादन

    3. छठी पुस्तक- लोकतंत्र और अल्पतंत्रों को सुस्थिर बनाए जाने वाले उपायों का वर्णन (क्रांति रोकने के उपाय)|


    1. तीसरा वर्ग- सातवीं और आठवीं पुस्तकें

    1. सातवीं व आठवीं पुस्तक- इन पुस्तकों में आदर्श राज्य (Polity) और उसके सिद्धांतों का विवेचन है|


    • सामूहिक निर्णय बुद्धि का सिद्धांत-

    • पॉलिटिक्स में अरस्तु ने सर्वोच्च सत्ता को जनता के हाथों में मानकर सामूहिक निर्णय बुद्धि का सिद्धांत दिया है| 

    • अरस्तु “समिति अपने सबसे बुद्धिमान सदस्य से भी बुद्धिमान होती है|”

    • अरस्तु कहता है कि जनता की सामूहिक बुद्धि सबसे बुद्धिमान शासक से भी बेहतर होती है| 


    • Note- लेकिन अरस्तू ने निकोमैक्स एथिक्स पुस्तक में बुजुर्गों व बुद्धिमानों के विचारों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना है|


                   अरस्तु के राज्य संबंधी विचार

    • पॉलिटिक्स की प्रथम पुस्तक में अरस्तु ने राज्य संबंधी सिद्धांतों का वर्णन किया है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य का जन्म विकास के कारण हुआ है| राज्य एक स्वाभाविक एवं प्राकृतिक संस्था है|

    • राज्य के उद्देश्य व कार्य नैतिक हैं तथा राज्य सभी संस्थाओं में श्रेष्ठ और उच्च है|

    • अपने गुरु प्लेटो के समान अरस्तु का लक्ष्य भी सोफिस्टो के इस मत का खंडन करना है कि राज्य एक परंपराजनित व कृत्रिम संस्था है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य राजनीतिक संगठन का उच्चतम स्वरूप है और सामाजिक विकास का चरम बिंदु|


    राज्य की उत्पत्ति व विकास

    • अपने गुरु प्लेटो की भांति अरस्तु भी सोफिस्टो के इस मत का खंडन करता है कि राज्य समझौते का परिणाम है|

    • अरस्तु के अनुसार व्यक्ति अपनी प्रकृति से ही एक राजनीतिक प्राणी है और राज्य व्यक्ति की इसी प्रवृत्ति का ही परिणाम है| 

    • मानव प्रकृति की व्याख्या करने के लिए अरस्तू ने ‘जून पॉलिटिकोन’ (Zoon Politikon) शब्द का प्रयोग किया है|

    • ‘जून पॉलिटिकोन’ (Zoon Politikon) का अर्थ है- राजनीतिक प्राणी

    • अरस्तु के अनुसार राज्य का जन्म विकास का परिणाम है और इस विकास का क्रम परिवार से आरंभ होता है| 

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य प्रकृति की उपज है और व्यक्ति स्वभाव से राजनीतिक प्राणी है|” 

    • अरस्तु के अनुसार राज्य की उत्पत्ति जीवन की आवश्यकताओं से होती है| अरस्तु के शब्दों में “केवल जीवन मात्र की आवश्यकता के लिए राज्य उत्पन्न होता है और अच्छे जीवन की उपलब्धि के लिए कायम रहता है|”

    • भौतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, यौन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वामी तथा दास और स्त्री एवं पुरुष एक दूसरे की तरफ आकृष्ट होते हैं तथा परिवार का जन्म होता है| अर्थात राज्य निर्माण की शुरुआत परिवार से होती है|

    • कई परिवार मिलकर ग्राम का निर्माण करते हैं फिर कई ग्राम मिलकर नगर- राज्य को जन्म देते हैं|

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य एक पूर्ण और आत्मनिर्भर परिवारों और ग्रामों का समूह है, जिसका तात्पर्य एक सुखी और सम्मान पूर्ण जीवन से है|”

    • अरस्तु “जब अनेक गांव एक ही संपूर्ण समुदाय के रूप में संयुक्त होते हैं जो इतना बड़ा होना चाहिए कि वह बिल्कुल या करीब-करीब आत्मनिर्भर हो तब राज्य अस्तित्व में आता है| इसकी उत्पत्ति मात्र जीवन की आवश्यकताओं से होती है, परंतु उसका अस्तित्व सदजीवन की सिद्धि के लिए बना रहता है|”


    • निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए परिवार, ग्राम और राज्य की उत्पत्ति होती है

     

      संस्था की उत्पत्ति

                            उद्देश्य          

    1  परिवार या कुटुंब

    प्रजनन तथा अल्प भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति ( क)

    2  ग्राम

    क +  न्याय के लिए ग्राम पंचायत तथा धार्मिक उत्सव आदि (ख)

    3  नगर- राज्य

    क + ख +  न्याय,  सैनिक संरक्षण, विद्या तथा कलाओं का विकास|


    • अरस्तु के अनुसार राज्य मनुष्य की सामाजिकता का परिणाम है| सर्वप्रथम विवाह पद्धति के आधार पर अरस्तू ने सबसे पहले सामाजिक संस्था परिवार की स्थापना की, जिसमें पति- पत्नी, संतान और दास एक साथ रहते हैं|

    • राज्य के विकास का स्वरूप सावयवी (Organic), जैविक है| व्यक्ति, परिवार और ग्राम इसके अंग हैं|

    • बार्कर “राजनीतिक विकास जैविक विकास है |राज्य तो मानो पहले से ही ग्राम, परिवार और व्यक्ति के रूप में भ्रूणावस्था मे होता है| राजनीतिक विकास की प्रक्रिया ऐसी है मानो राज्य आरंभ से लेकर अंत तक विभिन्न रूपों को धारण करता है और प्रत्येक रूप इसको पूर्णता के अधिक से अधिक निकट ले जाता है|”

    • इस प्रकार अरस्तु का राज्य उत्पत्ति संबंधी विचार विकासवादी सिद्धांत के अनुरूप है|


     अरस्तु के अनुसार राज्य की विशेषताएं-

    1. राज्य की प्रकृति-   

    • अरस्तु राज्य को प्राकृतिक, स्वाभाविक, जैविक संस्था मानता है|

    • अरस्तु राज्य को एक कायोनोनिया (koinonia) अर्थात ऐसा समुदाय मानता है, जिसके बिना जीवन संभव नहीं है |

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य स्वाभाविक है और इसके बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है| जो व्यक्ति राज्य के बाहर रहता है वह या तो पशु है या देवता|

    • सेबाइन “जिस प्रकार बंजूफल (acron) के लिए बंजू (oak) वृक्ष में विकसित होना स्वाभाविक है उसी प्रकार मानव प्रकृति की उच्चतम शक्तियों का विकास राज्य में होना स्वभाविक है|”


    1. राज्य सर्वोच्च समुदाय के रूप में-

    • अरस्तु राज्य को ‘समुदायों का समुदाय’ तथा ‘सर्वोच्च समुदाय’ मानता है |

    • राज्य मनुष्य की बौद्धिक, नैतिक, आध्यात्मिक सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है| 

    • राज्य का उद्देश्य परमसुख और संपूर्ण विकास तथा पूर्ण आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना है| 


    1. राज्य व्यक्ति से पूर्व का संगठन है- 

    • अरस्तु मनोवैज्ञानिक, बौद्धिक व तर्क की दृष्टि से राज्य को व्यक्ति का पूर्ववर्ती मानता है|

    • अरस्तु का तर्क है कि राज्य समग्रता है तथा व्यक्ति उसका अंग है| अर्थात राज्य और व्यक्ति का संबंध शरीर व अंगों का है| व्यक्ति का राज्य से पृथक कोई महत्व नहीं होता है|

    • अरस्तु का कहना है कि “समय की दृष्टि से परिवार पहले हैं, परंतु प्रकृति की दृष्टि से राज्य पहले हैं|”


    1. राज्य अंतिम एवं पूर्ण संस्था है-

    • अरस्तु ने नगर- राज्यों को सामाजिक और राजनीतिक विकास की चरम सीमा माना है|

    • अरस्तु के अनुसार परिवार से बने नगर-राज्यों के बाद कोई विकास नहीं होता है|


    1. राज्य का जैविक रूप -

    • अरस्तु राज्य को एक जीव की तरह मानता है तथा उसके अंगों की तरह व्यक्ति को मानता है|

    • Note- अरस्तु हेगेल की तरह राज्य को अति प्राणी भी नहीं मानता है, वह केवल राज्य को व्यक्ति के ऊपर मानता है|


    1. राज्य आत्मनिर्भर है-

    • अरस्तू का राज्य मनुष्य की सभी आवश्यकताओं (आर्थिक, नैतिक, भौतिक, आध्यात्मिक आदि)  की पूर्ति करने में आत्मनिर्भर है|

    • अरस्तु ने आत्मनिर्भरता शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है| इसके लिए अरस्तू ने यूनानी शब्द ‘Autarkia’ का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ है- ‘पूर्ण निर्भरता

    • अरस्तु के शब्दों में “आत्मनिर्भरता वह गुण है, जिसके कारण और जिसके द्वारा जीवन वांछनीय बन जाता है और उसमें किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रह जाता है|”


    1.  राज्य विभिन्नता में एकता है-

    • प्लेटो की तरह अरस्तु एकता की स्थापना की बात नहीं करता है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य नागरिकों की कुछ बातों का नियंत्रण व नियमन करें तथा कुछ बातों के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करें| 

    • अर्थात अरस्तु प्लेटो की तरह राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्वीकार नहीं करता है|

    • राज्य विभिन्न तत्वों से मिलकर बना है, यदि उनमें एकता स्थापित की जाए तो राज्य एक निम्न स्तर का समुदाय बन जाएगा राज्य नहीं रहेगा|

    • इस प्रकार सभी तत्वों का महत्व रहे इसलिए अरस्तु राज्य के विभिन्नता में एकता का सिद्धांत अपनाता है

    • अरस्तु के शब्दों में “राज्य तो स्वभाव से ही बहुआयामी होता है| एकता की ओर अधिकाधिक  बढ़ना तो राज्य का विनाश करना होगा|”


    1. नगर- राज्य सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीति संगठन है-

    • प्लेटो की भांति अरस्तु के लिए भी नगर-राज्य सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीतिक संगठन था|

    • अरस्तु का यह नगर-राज्य समस्त विज्ञान, कला, गुणों और पूर्णता में एक साझेदारी है|


    1. राज्य एक क्रमिक विकास है-

    • राज्य का विकास क्रमिक रूप से होता है| परिवार, परिवार से ग्राम, ग्राम से नगर-राज्य का निर्माण होता है| 


    1. राज्य एक आध्यात्मिक संगठन है- 

    • अरस्तु के अनुसार राज्य मानव समुदाय हैं, अतः इसका उद्देश्य मानव सद्गुणों या अच्छी शक्तियों का विकास करना है|

    • अरस्तु “राज्य नैतिक जीवन व आध्यात्मिक समुदाय है|”


    1. संविधान राज्य की पहचान है-

    • अरस्तु के मत में संविधान राज्य की पहचान है और संविधान में परिवर्तन राज्य में परिवर्तन करने के समान है| 


    1. राज्य और शासन में भेद-

    • अरस्तु ने राज्य और शासन में स्पष्ट भेद किया है| जहां राज्य समस्त नागरिकों और गैर नागरिकों का समूह है वहां शासन उन नागरिकों का समूह है जिनके हाथ में सर्वोच्च राजनीतिक सत्ता है|

     

    राज्य के उद्देश्य एवं कार्य-

    • अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्देश्य मानव के श्रेष्ठ जीवन या सद्गुणी जीवन की प्राप्ति है|

    • राज्य सद्गुणी जीवन की प्राप्ति के लिए मनुष्यों का नैतिक संगठन है|

    • राज्य का लक्ष्य सदस्यों की अधिकतम भलाई करना है|

    • अरस्तु के अनुसार “राज्य की सत्ता उत्तम जीवन के लिए है ना कि केवल जीवन व्यतीत करने के लिए|”

    • न्याय व्यवस्था स्थापित करना, व्यक्ति के दोषों को दूर करना तथा उच्च जीवन की सुविधाएं प्रदान करना, मनुष्य को सच्चरित्र बनाना राज्य का कर्तव्य है|

    • अरस्तु के अनुसार राज्य एक सकारात्मक अच्छाई है, अतः इसका कार्य केवल बुरे कामों अथवा अपराधों को रोकना ही नहीं है, वरन मानव को नैतिकता और सद्गुणों के मार्ग पर आगे बढ़ाना है|

    • अपने सदस्यों के लिए पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन की व्यवस्था करना राज्य का कर्तव्य है|

    • उत्तम एवं आनंद पूर्ण जीवन का निर्माण करना राज्य का कर्तव्य है|

    • अरस्तु ने राज्य का एक प्रमुख कार्य नागरिकों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना माना है|

    • फॉस्टर के शब्दों में “लॉक (व्यक्तिवादी) के विचार से शिक्षा राज्य का कार्य नहीं है, लेकिन अरस्तू के विचार से यह उसका प्रमुख कार्य है|”

    • अरस्तु ने राज्य का यह कार्य भी माना है कि वह नागरिक के लिए अवकाश जुटाने का प्रयत्न करें| ए के रोगर्स के अनुसार “अरस्तु के अनुसार राज्य का उद्देश्य श्रेष्ठ जीवन का निर्माण है और यह अवकाश से ही संभव है|”



    राज्य और व्यक्ति का संबंध

    • अरस्तु ने राज्य और व्यक्ति में गहरा संबंध बताया है|

    • एक व्यक्ति की तरह राज्य में भी साहस, आत्म नियंत्रण तथा न्याय के गुण होने चाहिए|

    • राजा को भी व्यक्ति के समान आत्मनिर्भर और नैतिक जीवन व्यतीत करना चाहिए|

    • राजा भी व्यक्ति के समान नैतिक नियमों की पालना करता है|


    • रस्तु ने मानव मस्तिष्क या आत्मा को तीन भागों में बांटा है-

    1. जड़ अवस्था (Vegetative Soul)    

    2. पशु अवस्था (Animal Soul)

    3. बौद्धिक अवस्था (Intellectual Soul)       


    • अरस्तु राज्य के विकास की तुलना मानव मस्तिष्क या आत्मा की तीनों अवस्था से करता है|


    1. जड़ अवस्था- जिस तरह जड़ अवस्था में मानव जाति को आगे बढ़ाता है, उसी तरह परिवार भी जाति को आगे बढ़ाता है

    2. पशु अवस्था- जिस तरह पशु अवस्था में गतिशीलता होती है, उसी तरह ग्राम में भी गतिशीलता पाई जाती है|

    3. बौद्धिक अवस्था- इस अवस्था में बुद्धि का विकास होता है, उसी तरह नगर- राज्य में भी बुद्धि का विकास होता है|


    • Note- Politics के तीसरे खंड में अरस्तू ने राज्य को ‘स्वतंत्र लोगों का समुदाय’ (Association of freeman) कहा है|


     

    अरस्तु के दास प्रथा संबंधी विचार 


    • दासता, परिवार एवं संपत्ति संबंधी विचार अरस्तु ने पॉलिटिक्स की प्रथम पुस्तक में दिए हैं|

    • अरस्तु के दासता संबंधी विचार उनकी रूढ़िवादिता के प्रमाण हैं, क्योंकि उस समय दास प्रथा तत्कालीन यूनानी जीवन का एक विशेष अंग थी|

    • अरस्तु दास प्रथा का कट्टर समर्थक था| अरस्तु के शब्दों में “जिस प्रकार वीणा आदि वाद्य यंत्रों की सहायता के बिना उत्तम संगीत उत्पन्न नहीं हो सकता, उसी प्रकार दासो के बिना स्वामी के उत्तम जीवन का तथा बौद्धिक एवं नैतिक गुणों का विकास संभव नहीं है|” 

    • जहां प्लेटो रिपब्लिक में दासो का कहीं कोई वर्णन नहीं करता, परंतु लॉज में तत्कालीन समाज का एक वर्ग मानता है, वहां अरस्तु खुद दासो का स्वामी था तथा दास प्रथा को उचित मानते हैं| यह उनकी व्यवहारिकता का परिचय है|

    • बार्कर का मत में “प्लेटो ने द रिपब्लिक की पांचवी पुस्तक में यूनानी द्वारा यूनानी को गुलाम बनाए जाने का विरोध किया तथा द लॉज में उन्होंने दासो के संरक्षण के लिए विधान की आवश्यकता को मान्यता दी| प्लेटो ने दासो को अविकसित मस्तिक वाला बताकर बच्चों के साथ वर्गीकृत किया| 

    • अरस्तु से पहले होमर ने दासता का समर्थन किया था| लेकिन सोफिस्ट विचारक दासता के विरोधी थे| सोफिस्ट विचारक दासता को प्राकृतिक नहीं, बल्कि सामाजिक व परंपरागत मानते थे|

    • अरस्तु दासता को प्राकृतिक मानता था|

    • अरस्तु “दास की स्थिति स्वामी तथा पशु से भिन्न है| विवेक न होने के कारण स्वामी से भिन्न है और विवेक को समझ सकने के कारण पशु से भिन्न है |”


    दास कौन-

    • अरस्तु दास को पारिवारिक संपत्ति मानता है| अरस्तु के अनुसार संपत्ति दो प्रकार की है-

    1.    सजीव संपत्ति- इसमें हाथी, घोड़े, अन्य पशु एवं दास सम्मिलित हैं|

    2.    निर्जीव संपत्ति- मकान, खेत और अन्य अचल संपत्ति इसमें आती है|


    • अरस्तु के अनुसार दास ”स्वामी केवल दास का स्वामी है, दास नहीं है, जबकि दास केवल अपने स्वामी का दास ही नहीं बल्कि पूर्णरूपेण से उसी का है| जो अपनी प्रकृति से अपना नहीं बल्कि दूसरे का है और फिर भी मनुष्य है वह निश्चित ही स्वभाव से दास है|”


    इस प्रकार दास-

    • दास मनुष्य तो है, परंतु स्वामी रूपी साध्य का साधन है|

    • दास पूरा का पूरा स्वामी का होता है, वह आंशिक रूप से भी अपना नहीं होता है|

    • दास एक सजीव संपत्ति है|

    • संपत्ति होने के नाते दास को खरीदा-बेचा जा सकता है|


    • टेलर के अनुसार “अरस्तु जिन दासो की चर्चा करता है वे पारिवारिक नौकर और छोटे-छोटे व्यवसायों में मजदूरी करने वाले श्रमिक जैसे लोग हैं, वह उन दासो की चर्चा नहीं करता जो उत्पीड़ित और क्रूरता के शिकार रहे हैं|”


    दास प्रथा के आधार-

    • निम्न तथ्यों के आधार पर अरस्तु ने दास-प्रथा के औचित्य को सिद्ध किया है|

    1. दास प्रथा एक स्वाभाविक व्यवस्था है-

    • अरस्तु के अनुसार “दास प्रथा प्राकृतिक है, विषमता प्रकृति का नियम है, कुछ व्यक्ति जन्म से स्वामी तो कुछ अन्य व्यक्ति जन्म से दास होते हैं|”

    • जो व्यक्ति जन्म से अयोग्य, बुद्धिहीन, अकुशल, आज्ञा मानने वाले होते हैं, जिनका शरीर शारीरिक श्रम के लिए बना होता है वह दास होता है तथा जो व्यक्ति जन्म से योग्य, कुशल, बुद्धिमान, आज्ञा देने वाला होता है तथा जिनका शरीर शारीरिक श्रम के लिए बेकार होता है, वे स्वामी होते हैं|

    • अर्थात बौद्धिक व शारीरिक क्षमता में असमानता के आधार पर स्वामी-दास का संबंध आरंभ होता है|


    1. दास प्रथा दोनों पक्षों के लिए लाभकारी है-

    1. स्वामी के लिए उपयोगी- बुद्धिमान व्यक्तियों को राज्य कार्य संचालन के लिए विश्राम एवं समय या अवकाश की आवश्यकता होती है अतः दास उनके आर्थिक कार्य (खेती, घरेलू कार्य आदि) करके उनको समय व विश्राम या अवकाश उपलब्ध कराता है| इसलिए स्वामी के लिए दास आवश्यक है|

    2. दास के लिए उपयोगी- दास निरबुद्धि, अयोग्य, विवेक रहित, संयम रहित होते है, अतः दास का कल्याण तभी होगा जब वह योग्य, विवेकपूर्ण, संयमी स्वामियों के संरक्षण में रहेंगे|


    1. नैतिक दृष्टि से भी दास प्रथा आवश्यक है- 

    • अरस्तु के अनुसार स्वामी व दास के नैतिक स्तर में पर्याप्त भिन्नता है अतः स्वामी का कर्तव्य है कि दासो के प्रति स्नेहपूर्ण व दयालु रहे तथा उनका नैतिक विकास करें तथा दास का कर्तव्य है कि स्वामी की आज्ञा का पालन करके अपना नैतिक विकास करें|


    1. दासता समाज के लिए हितकर व्यवस्था है-

    • दासता के फलस्वरुप कुछ श्रेष्ठ लोगों को घरेलू कार्यों से मुक्ति मिल जाती है और वे अपना समय समाज विकास कार्य में लगा सकते हैं|


    1. विवेक के आधार पर दासता का औचित्य-

    • विवेक के आधार पर बड़े का छोटे पर, आत्मा का शरीर पर अधिकार होता है, उसी तरह स्वामी का दास पर अधिकार होता है|


    दासता के प्रकार-

    • अरस्तु के अनुसार दासता दो प्रकार की होती है-

    1. स्वाभाविक दासता या प्राकृतिक दासता (Natural Slavery)- जो व्यक्ति जन्म से ही मंदबुद्धि, अयोग्य, अकुशल होते हैं, वे स्वभाविक दास होते हैं|

    2. वैधानिक दासता (Legal Slavery)- युद्ध में अन्य राज्य को पराजित कर लाए गए युद्ध बंदी भी दास बनाए जा सकते हैं, जो वैधानिक दास होंगे|


    •  निम्न को दास नहीं बनाया जा सकता- 

    1. यूनानीयों को दास नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि उनका जन्म स्वामी बनने के लिए हुआ है|

    2. नैतिक व बौद्धिकगुणों से युक्त बंदी को दास नहीं बनाया जा सकता|

    3. अन्यायपूर्ण कारणों से हुए युद्ध के बंदियों को दास नहीं बनाया जा सकता|


    दासता के प्रति अरस्तु की मानवीय व्यवस्थाएं- 

    • दास प्रथा का समर्थक होने के बावजूद भी अरस्तु दासो के लिए निम्न मानवीय व्यवस्था करता है-

    1. अरस्तु क्रूर दास प्रथा का समर्थक नहीं है| अरस्तु के अनुसार स्वामी को दासो के प्रति स्नेहशील एवं मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए तथा स्वामी को दास की भौतिक व शारीरिक सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए|

    2. दासो की संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए, सीमित संख्या में दास होने चाहिए|

    3. दासता प्राकृतिक है, वंशानुगत नहीं है, अतः दास की संतान सदैव दास नहीं होती|

    4. दास की योग्य व बुद्धिमान संतान को मुक्त कर दिया जाना चाहिए| इस इस विचार को रॉस ने क्रांतिकारी बताया है| 

    5. समस्त दासो का अपने सम्मुख अंतिम लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्ति होना चाहिए|

    6. अरस्तु का मत है कि दास प्रथा स्थायी नहीं है और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ समाप्त हो जाएगी|


    दास प्रथा की आलोचना-

    1. दासता प्राकृतिक नहीं होती, क्योंकि बुद्धि में असमानता होने पर भी प्राकृतिक समानता होती है|

    2. अरस्तु जन्म से दास या स्वामी बताता है, जो गलत है|

    3. अरस्तु कहता है की आज्ञा मानने वाले दास हैं, ऐसे में तो आधुनिक औद्योगिक समाज में अधिकतर जनता दास हो जाएगी|

    4. मनोवैज्ञानिक आधार पर भी यह सिद्धांत गलत है|

    5. दास प्रथा समानता और स्वतंत्रता के मानव सिद्धांतों पर भीषण आघात करती है|

    6. दास प्रथा संबंधी विचार अवैज्ञानिक है|

     

    • मैक्सी “दास प्रथा के बारे में मैक्सी ने कहा है कि “इस पुस्तक को ही अवैध कर देना चाहिए|”

    • प्रोफ़ेसर मेकलवेन “अरस्तु ने स्वामी व दास के विभाजन से श्रम को दंडित कर दिया है|”

    • प्रोफेसर थियोडोर “अरस्तु ने दासता के बचाव के नाम पर जातीय अहंकार की पुष्टि की है|”

    • प्रोफेसर रॉस “अरस्तु में जो स्तुति योग्य नहीं है, वह है उसका मानव जाति को कुल्हाड़ी से दो भागों में काट डालना|”

    • इबन्सटीन “अरस्तु की दासता संबंधी स्वीकृति यह सिद्ध करती है, कि वह किस प्रकार बुद्धिमान व महान दार्शनिक अपने समय की संस्थाओं को तर्क द्वारा औचित्य पूर्ण बताता है|”

    • कार्ल पॉपर अरस्तु के दासता संबंधी विचारों को रूढ़िवादी व प्रतिक्रियावादी मानते हैं| कार्ल पॉपर के अनुसार “अरस्तु के विचार सचमुच प्रतिक्रियावादी हैं| उन्हें बार-बार इस सिद्धांत का विरोध करना पड़ता है कि कोई भी आदमी प्रकृति से दास नहीं होता| इसके अलावा वे स्वयं एथेंस के जनतंत्र में दासता विरोधी रुझानों को इंगित करते हैं|”


    Note- अरस्तु के मत में दास सजीव संपत्ति या उपकरण था, जो दस्तकार की तरह उत्पादन नहीं करता था, बल्कि वह घर में सिर्फ जीवित रहने के लिए काम में मदद करता था| स्वामी की सेवा के अलावा दास का कोई दूसरा हित नहीं था| 

    Note- अरस्तु का मत है कि मालिक और दास के संबंध शासक और प्रजा के संबंधों से अलग होते हैं, प्रजा के विपरीत दास मालिक का यंत्र मात्र होता है|

    Note- एथिक्स पुस्तक में अरस्तु ने कहा है कि दास अपने मालिक का मित्र बन सकता है|

    Note- द पॉलिटिक्स की सातवी पुस्तक में अरस्तु ने सलाह दी है कि अच्छा काम करने पर उन्हें इनाम के रूप में आजाद कर देना चाहिए|



    अरस्तु के संपत्ति संबंधी विचार

    • प्लेटो और अरस्तू दोनों ही राजनीतिक विश्लेषण के लिए आर्थिक गतिविधियां महत्वपूर्ण मानते हैं| आर्थिक गतिविधि अच्छाई से संबंधित थी, जबकि राजनीति बहुआयामी संपूर्ण अच्छे जीवन से संबंधित थी|

    • अरस्तु प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने राजनीतिक संस्थाओं के आर्थिक आधार पर ध्यान दिया| 

    • अरस्तु संपत्ति को सदजीवन का साधन मानता है| 

    • अरस्तु के अनुसार संपत्ति राज्य के अथक प्रयोग में लाए जाने वाले साधनों का सामूहिक नाम है|

    • संपत्ति परिवार का आवश्यक अंग है, जिसके बिना दैनिक जीवन संभव नहीं है| परिवार के अस्तित्व के लिए संपत्ति आवश्यक है, क्योंकि यदि परिवार के पास निजी संपत्ति नहीं होगी तो वह शीघ्र ही छिन्न-भिन्न हो जाएगा|

    • संपत्ति और परिवार मानव को प्रकृति प्रदत है|

    • अरस्तु प्लेटो के संपत्ति साम्यवाद की कटु आलोचना करता है|

    • अरस्तु ने संपत्ति, परिवार तथा संविधान संबंधित सभी क्षेत्रों में मध्यम मार्ग अपनाया है|

    • अरस्तु के अनुसार संपत्ति श्रेष्ठ जीवन यापन का साधन है, न कि साध्य, इसलिए संपत्ति का सीमित मात्रा में संग्रह किया जाना चाहिए|

    • संपत्ति का संग्रह उतना ही हो जो श्रेष्ठ जीवन यापन या आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें उससे ज्यादा नहीं


    संपत्ति की विशेषताएं-

    • अरस्तु ने संपत्ति की दो विशेषताएं बताई हैं-

    1. संपत्ति की समाज में प्रतिष्ठा होनी चाहिए तथा नागरिकों की दृष्टि में स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए|

    2. राज्य की ओर से संपत्ति के संरक्षण की उचित व्यवस्था होनी चाहिए| 


    • संपत्ति के प्रकार- अरस्तु ने दो प्रकार बताए हैं-

    1. सजीव संपत्ति

    2. निर्जीव संपत्ति


     संपत्ति का उपार्जन-

    • अरस्तु के अनुसार संपत्ति का उपार्जन दो तरीके से किया जा सकता है-

    1. मानवीय अथवा प्राकृतिक तरीके से- इस प्रकार की संपत्ति का उपार्जन मनुष्य प्रकृति की सहायता से अपने परिश्रम के द्वारा करता है| जैसे- कृषि, पशुपालन के द्वारा अर्जित संपत्ति|

    2. दानवीय अथवा अप्राकृतिक तरीके से- इस प्रकार की संपत्ति का उपार्जन बिना प्रकृति की सहायता से दूसरे मनुष्य के शोषण से किया जाता है| जैसे- धन पर ब्याज लेना, व्यापार से धन कमाना|


    •  अरस्तु प्राकृतिक तरीके से संपत्ति के अर्जन का समर्थक है तथा अप्राकृतिक तरीके से संपत्ति के अर्जन की आलोचना करता है|

      

     संपत्ति का विनिमय-

    • अरस्तु के अनुसार संपत्ति विनिमय के दो तरीके हैं-

    1. नैतिक विनिमय- यह विनिमय न्याय सिद्धांतो को ध्यान में रखकर किया जाता है| इस विनिमय से अधिकाधिक लोगों को लाभ होता है|

    2. अनैतिक विनिमय- इसमें बनिया वर्ग आ जाता है, जो वस्तुओं के क्रय-विक्रय से अच्छा लाभ कमा लेता है| अरस्तु के अनुसार राज्यों को अनैतिक विनिमय पर कठोर प्रतिबंध लगा देना चाहिए| 


     संपत्ति का वितरण-

    • अरस्तु ने संपत्ति के विवरण के तीन तरीके बताए हैं-

    1. सार्वजनिक स्वामित्व और सार्वजनिक प्रयोग|

    2. सार्वजनिक स्वामित्व और व्यक्तिगत प्रयोग|

    3. व्यक्तिगत स्वामित्व और सार्वजनिक प्रयोग|


    • अरस्तु ने तीसरे प्रकार के विभाजन अर्थात व्यक्तिगत स्वामित्व और सार्वजनिक प्रयोग का समर्थन किया है| इसको अरस्तु ने व्यावहारिक बताया है, क्योंकि व्यक्तिगत स्वामित्व से संपत्ति का उत्पादन बढ़ेगा तथा उदारता, दानशीलता, अतिथि सत्कार जैसे सद्गुणों का विकास होगा|

    • संपत्ति का निजी स्वामित्व मनुष्य को उसकी सुरक्षा और अभिवृद्धि की प्रेरणा देता है|

    • संपत्ति के सार्वजनिक प्रयोग के संबंध में अरस्तु कहता है कि “उत्तम मनुष्य संपत्ति के उपयोग के विषय में यह स्वीकार करके चलेंगे की मित्रों के बीच तेरे मेरे का कोई फर्क नहीं होता है|” 

    • सार्वजनिक कल्याण के लिए संपत्ति का सार्वजनिक उपयोग होना चाहिए|


    • अरस्तु “व्यक्तिगत संपत्ति सामूहिक संपत्ति से अधिक उपयोगी है, बशर्ते कि उसका प्रयोग सार्वजनिक क्षेत्र में परंपराओं और रीति-रिवाजों द्वारा और राजनीतिक क्षेत्र में उचित कानूनों द्वारा नियंत्रित हो|”

    • अरस्तु “जब प्रत्येक का विशेष स्वार्थ होगा तो व्यक्ति अधिक प्रगति करेंगे, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य पर पूरा ध्यान देगा|”

    • फॉस्टर “अरस्तु निजी संपत्ति को एक साधन या एक यंत्र मानते हुए इस बात पर बल देता है कि सच्ची संपत्ति सदा ही सीमित मात्रा में होनी चाहिए|” 

    संपत्ति के विचार का निष्कर्ष-

    • डेनिंग के अनुसार “अरस्तु ने उत्पादन और विनिमय के आरंभिक विचारों को उचित ढंग से प्रस्तुत किया है तथा संपत्ति के प्रयोग और विनिमय के महत्व के अंतर को भी समझाने में सफल हुआ है, वह पूंजी के महत्व का मूल्यांकन करने में पूर्णतया असफल हुआ है, और इसलिए ब्याज के बारे में उसके विचार अति प्राचीन और असंगत हैं|” 

    • हीटर “लेवलस को यदि अंशत छोड़ दिया जाए तो अरस्तु से लेकर 18 वीं सदी के अंत तक यह आमतौर पर माना जाता था कि व्यक्ति के पास थोड़ी और पर्याप्त संपत्ति होना राज्य के फायदे के लिए है|”

    अरस्तु के संपत्ति संबंधी विचार की आलोचना

    • निजी संपत्ति के बारे में अरस्तु का यह विचार जरूरत से ज्यादा आशावादी प्रतीत होता है कि संपत्ति के स्वामी स्वेच्छा से उसे सामान्य उपयोग के लिए उपलब्ध कराएंगे| 



    अरस्तु के परिवार संबंधी विचार 

    • अरस्तु ने संपत्ति व परिवार को व्यक्तिगत विशेषता माना है|

    • अरस्तु के अनुसार स्त्री-पुरुष एवं स्वामी-दास के योग जो संस्था बनती है, वह परिवार है|

    • परिवार सामाजिक जीवन या राजनीतिक जीवन का प्रथम सोपान है| 

    • परिवार प्राकृतिक संस्था है|

    • परिवार नागरिकों की प्रथम पाठशाला है अर्थात व्यक्ति नागरिकता की प्रथम शिक्षा परिवार से ही ग्रहण करता है|

    • अरस्तु “पुरुष एवं स्त्री के बीच में नैसर्गिक मित्रता दिखाई पड़ती है|”

     

    • Note- जहां प्लेटो परिवार को प्रगति में बाधक मानता है तथा परिवार साम्यवाद की बात करता है, वही अरस्तु परिवार को उचित, आवश्यक, प्रेरणा स्रोत समझता है|


    • अरस्तु के अनुसार परिवार एक त्रिकोणात्मक संबंधों का स्वरूप है-

    1.    पति और पत्नी|

    2.    स्वामी और दास|

    3.    माता-पिता और संतान


    • परिवार असमानता वाला समूह है जहां लिंग, आयु व क्षमता की वजह से अंतर पाया जाता है| अरस्तु के अनुसार “परिवार असमानता का क्षेत्र था, जिससे अधिक महत्वपूर्ण समानता का क्षेत्र राज्य (पोलीस) विकसित होता है|”

    • परिवार की सदस्यता नैसर्गिक है, अर्थात जन्म से व्यक्ति परिवार का सदस्य बन जाता है|

    • अरस्तु के अनुसार परिवार पितृसत्तात्मक है तथा परिवार का वयोवृद्ध पुरुष परिवार का मुखिया होता है| क्योंकि पुरुष, स्त्री की अपेक्षा अधिक गुणवान और समर्थ होता है, दास बुद्धिहीन होता है, बच्चे अनुभवहीन होते हैं|

    • अरस्तु के अनुसार परिवार के सदस्यों में पूर्णतया मित्रता का वातावरण होना चाहिए तथा मुखिया का पूर्ण अनुशासन और नियंत्रण होना चाहिए|

    • मुखिया की भूमिका अलग-अलग होती है जैसे डेनिंग के अनुसार “जब पति, पत्नी को निर्देशित करता है तो उसकी भूमिका संवैधानिक सलाहकार की होती है, जब पुत्र को निर्देशित करता है तो उसकी भूमिका अधिनायकवादी की होती है, जब दास को निर्देशित करता है तो उसकी भूमिका निरंकुश की होती है|”

    • अरस्तु स्त्री-पुरुष समानता का पक्षधर नहीं है, वह स्त्री को पुरुष से कम आकता है| शासन के अयोग्य बताता है तथा घर की चारदीवारी तक सीमित करता है और पुरुष का स्त्री पर नियंत्रण स्थापित करता है| इस संबंध में अरस्तू के विचार हेगेल से मिलते हैं| 

    • अरस्तु ने स्त्री को अनुत्पादक पुरुष कहा है| उसके अनुसार पुरुष सक्रिय होता है तथा स्त्री निष्क्रिय होती है स्त्री का प्रमुख कार्य लैंगिक प्रजनन है|

    • स्त्रियों के नैतिक गुण पुरुषों के बराबर नहीं होते हैं| अरस्तु ने सोफॉकल्स का यह वक्तव्य दोहराया है कि “नम्र-चुप्पी स्त्री का आभूषण है|” 

    • अरस्तु के अनुसार परिवार नैसर्गिक कुलीनतंत्र था, जहां पुरुषों को महत्वपूर्ण बातें बोलने का अधिकार था और बाकि काम स्त्रियों का था|

    • अरस्तु राज्य नियंत्रित परिवार की बात करता है, परिवार की सदस्य संख्या तथा विवाह की आयु के संबंध में राज्य को नियम बनाना चाहिए| विवाह के लिए पुरुष व स्त्री में 20 वर्ष का अंतर होना चाहिए| विवाह के समय स्त्री की आयु 17 वर्ष तथा पुरुष की आयु 37 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए|

    • प्लेटो के समान अरस्तु ने भी विवाह को राज्य के लिए श्रेष्ठ संतान पैदा करने का स्रोत माना है|

    • अरस्तु के अनुसार स्त्री-पुरुष में वही संबंध होता है, जो स्वामी और दास में, शारीरिक श्रम करने वाले और मानसिक कार्य करने वाले में| स्त्री की संकल्प शक्ति क्षीण होती है अतः वह स्वतंत्र रहने के योग्य नहीं है|

    • अरस्तु बौद्धिक कार्य को, शारीरिक कार्य से श्रेष्ठ मानता है|

     


    अरस्तु के नागरिकता (ग्रीक शब्द Politai) संबंधी विचार-

    • अरस्तु ने अपने ग्रंथ पॉलिटिक्स की तीसरी पुस्तक में नागरिकता संबंधी विचार दिए हैं| 

    • अरस्तु के अनुसार राज्य बाह्य दृष्टि से नागरिकों का एक समुदाय (koinonia) है| 


    • नागरिक कौन है? यह बताने से पहले अरस्तु ने यह बताया कि नागरिक कौन नहीं है, उसके बाद अरस्तू ने बताया कि नागरिक कौन है?

    • अरस्तु के अनुसार निम्न नागरिक नहीं है-

    1. राज्य में निवास करने से नागरिकता नहीं मिलती है, क्योंकि स्त्री, बच्चे, दास और विदेशी जिस राज्य में रहते हैं, वहां के नागरिक नहीं माने जाते हैं|

    2. किसी पर अभियोग चलाने का अधिकार रखने वाले व्यक्ति को भी नागरिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि संधि द्वारा यह अधिकार विदेशियों को दिया जा सकता है|

    3. जिसके माता-पिता किसी दूसरे राज्य के नागरिक हैं, उनको भी नागरिक नहीं माना जा सकता|

    4. निष्कासित तथा मताधिकार से वंचित व्यक्ति भी नागरिक नहीं हो सकते हैं|

    5. किसी भौतिक या आर्थिक गतिविधि में सक्रिय व्यक्ति को भी नागरिक नहीं माना जा सकता, अर्थात व्यापारी, शिल्पी, श्रमिक भी नागरिक नहीं होते| 

    6. राज्य में जन्म लेने मात्र से कोई व्यक्ति नागरिक नहीं बन सकता है|

    7. संपत्तिहीन व्यक्ति नागरिक नहीं हो सकता है|

    8. दास नागरिक नहीं हो सकते हैं|

    9. संपत्ति प्राप्त करने के अप्राकृतिक तरीकों जैसे ब्याज आदि में संलग्न व्यक्ति नागरिक नहीं हो सकते हैं|

    10. स्त्रियों व बच्चे नागरिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनका बौद्धिक स्तर निम्न होता है|

    11. सभी वृद्ध व्यक्ति नागरिक नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनकी शारीरिक क्षमता निम्न होती है|

     

    • Note- नागरिकता की उपरोक्त निषेधात्मक व्याख्या करने का अरस्तु का उद्देश्य तत्कालीन प्रचलित नागरिकता की अवधारणाओं का खंडन करना था|


    • अरस्तु के अनुसार निम्न नागरिक हैं- 

    • अरस्तु के अनुसार “नागरिक वही है जो न्याय व्यवस्था एवं व्यवस्थापिका के एक सदस्य के रूप में भाग लेता है- दोनों में या एक में, क्योंकि दोनों ही प्रभुता के कार्य है| अर्थात-

    1. नागरिक राज्य का क्रियाशील सदस्य होते हुए न्यायिक, प्रशासनिक और सार्वजनिक कार्य में भाग लेता है|

    2. वह साधारण सभा का सदस्य होने के नाते विधायी कार्यों में भाग लेता है|


    • अरस्तु की नागरिकता के संबंध में यह धारणा तत्कालीन यूनानी राज्यों की प्रत्यक्ष प्रजातंत्र व्यवस्था के अनुरूप है| एथेंस में शासन संबंधी मामलों पर विचार के लिए एक्स्लेसिआ (Ecclesia) नामक सभा होती थी तथा न्याय के लिए हेलिया (helia) नामक सभा होती थी जिसमें 30 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले नागरिक भाग लेते थे|

    • इस प्रकार अरस्तु की नागरिकता कर्तव्य पर आधारित है तथा सीमित है व शासक वर्ग के लिए है|

    • नागरिक के पास उच्च बौद्धिक स्तर, नैतिक शक्ति, व्यवहारिक बुद्धि, अवकाश, दास, संपत्ति होना जरूरी है|

    • यहां अवकाश का अर्थ छुट्टियां नहीं है जबकि ज्ञान, चित्रकला, राजनीति, शासन कार्य, नैतिक कार्य अर्थात बौद्धिक कार्यों के लिए समय की उपलब्धता अवकाश है| 


    नागरिकता पर प्लेटो और अरस्तू के विचारों में अंतर-

    1. नागरिकता संबंधी प्लेटो के विचार व्यापक, जबकि अरस्तू के विचार संकीर्ण| प्लेटो अपने आदर्श राज्य में दास, अशिक्षित, अराजनीतिक व्यक्ति को भी नागरिकता देता है, लेकिन अरस्तु एक सर्वोच्च राज्य में अशिक्षित, अराजनीतिक व्यक्ति, दासो तथा श्रमिकों को नागरिकता के अधिकार से वंचित कर देता है|

    2. प्लेटो के अनुसार एक अच्छा व्यक्ति एक अच्छा नागरिक है, जबकि अरस्तु के एक नागरिक और एक अच्छे व्यक्ति के गुणों में अंतर हो सकता है| एक अच्छे व्यक्ति के गुण सभी जगह समान रहते हैं, जबकि एक अच्छे नागरिक के गुण संविधान के स्वरूप के अनुसार बदल सकते हैं|

    3. प्लेटो के अनुसार शासन योग्यता कुछ ही नागरिकों में है, जबकि अरस्तु के अनुसार शासन योग्यता सभी नागरिकों में है|

    4. प्लेटो सैद्धांतिक योग्यता पर बल देता है, तो अरस्तु व्यवहारिक योग्यता पर बल देता है|


    अरस्तु के नागरिकता संबंधी विचारों की आलोचनाएं-

    1. नागरिकता के विचार अत्यंत अनुदार और अभिजात तंत्रीय हैं|

    2. अत्यंत सीमित और संकुचित नागरिकता है| बार्कर के शब्दों में “बहुजन सुलभ नागरिकता का नीचा आदर्श प्लेटो और अरस्तू के उस भव्य आदर्श से कहीं अधिक मूल्यवान है जो मुट्ठी भर लोग ही प्राप्त कर सकते हैं|”

    3. अरस्तु के अनुसार नागरिक न्यायाधीश भी है तथा विधि निर्माण करने वाला भी, यह आधुनिक शासन प्रणालियों की दृष्टि से सही नहीं है|

    4. नागरिकों के केवल कर्तव्यों पर बल दिया गया है, अधिकारों पर नहीं|

    5. यह राज्य के जैविक सिद्धांत के विपरीत है|

    6. यह अवधारणा स्त्री विरोधी है| 

    7. प्रतिनिधि लोकतंत्र में अपनाना संभव नहीं है|

    8. यह धनिकतंत्रीय दृष्टिकोण है, जो केवल उन्हीं लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जिनके पास धन है|

     

    • फॉस्टर “अरस्तु का नागरिक समुदाय प्लेटो के दोनों संरक्षक वर्गों का प्रतिरूप है, बस अरस्तू ने संरक्षक वर्ग के मध्य दीवार खड़ी नहीं की है|”

    • मैकलवेन “अरस्तु के राजनीतिक चिंतन के समस्त भागों में पॉलिटिक्स की तीसरी पुस्तक में उल्लेखित समस्त नागरिकता संबंधी विषयक सामान्य सिद्धांत अत्यंत मूलभूत हैं और कुछ अर्थों में अत्यंत स्थायी|”

     

    • Note- अरस्तु ने पॉलिटिक्स की प्रथम पुस्तक में राज्य को ‘समुदायों का समुदाय’ कहता है, जबकि पॉलिटिक्स की तीसरी पुस्तक में राज्य को ‘स्वतंत्र मनुष्यों का समुदाय या नागरिकों की सामूहिक संस्था’ कहा है|



    अरस्तु के कानून संबंधी विचार 

    • अरस्तु के कानून संबंधी विचार उनकी पुस्तक पॉलिटिक्स, एथिक्स और रिटोरिक (अलंकारशास्त्र) में मिलते हैं| 

    • अरस्तु अपने गुरु प्लेटों के विपरीत कानून के महत्व पर अत्यधिक बल देता है| जहां प्लेटो की रिपब्लिक में कानून का कोई स्थान नहीं है तथा लॉज में कानून की महत्ता नजर आती है, वहीं अरस्तु ने पॉलिटिक्स में कानून की संप्रभुता स्थापित की है|

    • अरस्तु कानून संबंधी विचारों में प्लेटो की लॉज से अत्यधिक प्रभावित था| अरस्तु ने लॉज में प्लेटो के इस सुझाव से शिक्षा ली, कि नैतिक और सभ्य जीवन के लिए कानून आवश्यक है| 

    • अरस्तु ने कानून की सर्वोच्चता को श्रेष्ठ शासन का चिन्ह माना है|

    • अरस्तु के अनुसार शासन एक व्यक्ति के हाथ में हो या कुछ व्यक्ति के हाथ में या बहुत लोगों के हाथ में, शासन कानून के अनुसार होना चाहिए|

    • अरस्तु कानून को आवश्यक बुराई नहीं समझता है, बल्कि श्रेष्ठ जीवन के लिए अनिवार्य अच्छाई समझता है|

    • संवैधानिक शासन प्रजाजन का गौरव बढ़ाता है| 

    • संवैधानिक शासन इच्छुक प्रजाजनों के ऊपर शासन करता है, अर्थात सहमति के द्वारा शासन करता है|

    • अरस्तु के अनुसार “कानून का शासन एक नागरिक के शासन से बेहतर होता है, वे कानून के संरक्षक या देखरेख करने वाले होते हैं|” 

    • अरस्तु के मत में प्रजा के ऊपर संवैधानिक शासन दासों पर मालिक के शासन से अलग होता है, क्योंकि दासों के पास स्वयं शासन करने का तर्क नहीं होता, यह पति के शासन से भी अलग होता है| 

    • सेबाइन “प्लेटो के विपरीत अरस्तु का कहना था कि जनता की सामूहिक बुद्धि सबसे बुद्धिमान शासक से भी बेहतर होती है, क्योंकि एक अच्छे राज्य में राजनयिक उस समुदाय के कानून और परंपरा से अलग नहीं हो सकता है, जिस पर वह शासन करता है|”

    • अरस्तु के मत में “जो कानून को शासन करने देता है, वह ईश्वर और तर्क बुद्धि को शासन करने देता है, परंतु जो मनुष्य को शासन करने देता है वह एक तरह से पशुओं को शासन करने देता है, क्योंकि लालसा एक हिंसक पशु है और राग-द्वेष मनुष्य के मन को भ्रष्ट कर देते हैं| कानून तर्क बुद्धि का द्योतक है जो किसी लालसा से विचलित नहीं होता|”

     

    Note- विधि के शासन की आधुनिक संकल्पना का निरूपण 19वीं शताब्दी के दौरान ब्रिटिश न्यायवेता ए वी

    डायसी ने इंग्लैंड की शासन प्रणाली के संदर्भ में किया था|


    अरस्तु के अनुसार संवैधानिक शासन के तीन मुख्य तत्व हैं-

    1. यह संपूर्ण जनता की भलाई के लिए होता है, वर्ग विशेष के लिए नहीं|

    2. यह एक विधि सम्मत शासन होता है|

    3. प्रजा दबाव से नहीं, बल्कि इच्छा से शासित होगी|


    • अरस्तु ने कानून उन बंधनों का सामूहिक नाम दिया है, जिसके अनुसार व्यक्तियों के कार्य का नियमन होता है| 

    • अरस्तु कानून और विवेक-बुद्धि को समान तथा पर्यायवाची मानता है| जिस तरह कानून व्यक्तियों के कार्य के नियमन का भौतिक बंधन है, उसी तरह विवेक बुद्धि मानव कार्यों का अध्यात्मिक बंधन है|


            कानून का मूल स्रोत- 

    • अरस्तु ने कानून का मूल स्रोत संहिताकार (Law Maker) को माना है, न कि शासक को| अरस्तु स्थायी तथा अपरिवर्तनशील कानून के पक्ष में है|


         कानून की प्रकृति

    • अरस्तु के अनुसार राज्य एक नैतिक समुदाय है अतः आदर्श कानून भी प्राकृतिक, स्थायी तथा अपरिवर्तनशील होना चाहिए|

    • जबकि वास्तविक राज्यों में कानून प्राकृतिक न होकर, संविदा तथा लोकाचार पर आधारित होते हैं| अर्थात यथार्थ जगत में केवल साधारण लोगों का ही शासन पाया जाता है, अतः व्यवहारिक दृष्टि से विधि का शासन ही उत्तम है| 

    • वही सर्वोत्तम राज्य के लिए अरस्तु प्राकृतिक तथा लोकाचार पर आधारित कानूनों को महत्वपूर्ण स्थान देता है|

    • अरस्तु सविधान तथा राज्य को एक ही मानता है| वह संविधान या राज्य के लिए कानून आवश्यक मानता है| अरस्तु राज्य या संविधान पर कानून की संप्रभुता स्थापित करता है|

    • इस प्रकार अरस्तु कानून की संप्रभुता स्थापित करता है तथा राज्य की सर्वोच्चता को कानून की मर्यादा रेखा में बांधता है|


    Note- विधि के शासन का सर्वप्रथम वर्णन अरस्तु ने किया था| विधि के शासन के कारण ही अरस्तु को संविधानवाद का पिता कहा जाता है|




    अरस्तु की न्याय संबंधी धारणा-

    • अरस्तु ने अपने ग्रंथ पॉलिटिक्स में न्याय शब्द का उल्लेख किया है, किंतु न्याय की समुचित व्याख्या अपने ग्रंथ एथिक्स में की है |

    • अरस्तु न्याय को ‘सद्गुणों का समूह’ मानता है|

    • बार्कर “अरस्तु के लिए न्याय कानूनी न्याय से कुछ अधिक है, इसमें कुछ नैतिक विचार सम्मिलित हैं, जो साधुता शब्द में निहित है|”

     

    • अरस्तु न्याय को दो भागों में बांटता है

    1. सामान्य न्याय (Righteousness)

    2. विशेष न्याय


    1. सामान्य न्याय या पूर्ण न्याय-

    • सामान्य न्याय संपूर्ण अच्छाई का दूसरा नाम है| इसका संबंध नैतिकता या सद्गुण से है|

    • सामान्य न्याय का आशय पड़ोसी के प्रति किए जाने वाले भलाई के सभी कार्यों से है| 

    • अरस्तु अच्छाई के सभी कार्यों, सभी सद्गुणों तथा समग्र साधुता को सामान्य न्याय कहता है|

    • पूर्ण या सामान्य न्याय केवल आदर्श राज्य में ही मिल सकता है|


    1. विशेष न्याय- 

    • यह न्याय वास्तविक राज्य में पाया जाता है|

    • यह न्याय अनुपातिक समानता है, अर्थात व्यक्ति को जो मिलना चाहिए वही उसको मिले तो यह विशिष्ट न्याय है| 


    • विशिष्ट न्याय को अरस्तु पुन: 2 भागो में बांटता है-

    1. वितरणात्मक न्याय

    2. संशोधनात्मक न्याय


    1. वितरणात्मक न्याय या अनुपातिक न्याय-  

    • इस न्याय का संबंध राज्य के पद, सम्मान, पुरस्कार, लाभ के बंटवारे से है|

    • अरस्तु इन सब का अनुपातिक समानता के आधार पर वितरण करना चाहता है, अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को पद, पुरस्कार, सम्मान, लाभ उस अनुपात में मिलना चाहिए, जिस अनुपात में उसने अपनी योग्यता और धन से राज्य को लाभ पहुंचाया है|

    • पदों का बंटवारा विधायिका (Ecclesia) के द्वारा किया जाएगा तथा बटवारा रेखागणित के आधार पर होगा| 

    • अरस्तु के अनुसार “एक सद्गुणपूर्ण राज्य न तो प्रजातंत्र और न ही धनिकतंत्र की व्यवस्था को स्वीकार करेगा, अपितु राज्य के अंदर उपाधियों व पदों का वितरण केवल कुशल तथा सद्गुणी व्यक्तियों में ही करेगा|”


    1. संशोधनात्मक न्याय या सुधारात्मक न्याय-

    • न्याय का यह रूप नागरिकों के आपसी संबंधों को नियंत्रित करता है|

    • यह न्याय व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों में उत्पन्न दोषो को दूर करता है|

    • संशोधनात्मक न्याय न्यायपालिका (Helia) के द्वारा प्रदान किया जाएगा तथा अंकगणित के आधार पर न्याय होगा| 


    • संशोधनात्मक न्याय भी दो प्रकार का होता है-  

    1. ऐच्छिक न्याय- इसके अंतर्गत व्यक्तियों में आपस में किए गए संधि समझौते आते हैं, जिसको तोड़ने पर न्यायालय ठीक करता है| ऐच्छिक संशोधनात्मक न्याय का संबंध दीवानी मुकदमो से है|

    2. अनैच्छिक संशोधनात्मक न्याय- जब एक नागरिक अन्य नागरिक के साथ धोखा, मारपीट, चोरी, डकैती, हत्या जैसे अपराध करता है, तो न्यायालय अपराधी को दंड देकर न्याय की स्थापना करता है, अर्थात इस न्याय का संबंध फौजदारी मुकदमों से है|


    • Note- अरस्तु न्याय के संबंध में यथास्थितिवादी व रूढ़िवादी है| वितरणनात्मक न्याय में वह आवश्यकता के बजाय योग्यता पर बल देता है, जबकि संशोधनात्मक न्याय में वर्तमान स्थिति में परिवर्तन आने पर न्यायपालिका वापस से यथास्थिति की स्थापना कर देती है, इसलिए अरस्तु रूढ़िवादी व यथास्थिति का समर्थक है| 

    • Note- अरस्तु के अनुसार न्याय समान के साथ समान व्यवहार तथा असमान के साथ असमान  व्यवहार है|

    • Note- प्लेटो के न्याय में कर्तव्य पर बल दिया गया है, अरस्तु के न्याय में अधिकारों पर बल दिया गया है| 



    अरस्तु के शिक्षा संबंधी विचार- 

    • पॉलिटिक्स की पांचवी पुस्तक में अरस्तु ने शिक्षा संबंधी विचारों का उल्लेख किया है|

    • अरस्तु के अनुसार शिक्षा सर्वोत्तम या आदर्श राज्य के लिए एक अनिवार्य तत्व है तथा नागरिकों के चरित्र के निर्माण के लिए आवश्यक है|

     

    अरस्तु के अनुसार शिक्षा का मूल सिद्धांत-

    1. शिक्षा की व्यवस्था ऐसी हो, जिससे राज्य के निवासी स्वयं को राज्य का योग्यतम सदस्य बनाकर स्वयं का और राज्य का विकास कर सकें तथा सभी नागरिकों के लिए एक जैसी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए|

    2. शिक्षा का राजनीतिक उद्देश्य नागरिकों को नैतिक व चरित्रवान बनाना है|

    3. शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को संविधान या सरकार के अनुकूल बनाना है|

     

    शिक्षा के उद्देश्य-

    • अरस्तु के अनुसार शिक्षा के निम्न उद्देश्य हैं-

    1. व्यक्ति का सर्वांगीण विकास तथा आत्म विकास|

    2. लोगों को उत्तम नागरिक बनाना|

    3. नागरिकों को आज्ञा पालन और शासन करने की शिक्षा देना|

    4. शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो कि प्रत्येक व्यक्ति को विवेक को विकसित करने का अवसर मिले|

    5. व्यक्ति में उदारता, सहनशीलता, न्याय प्रियता, विनम्रता आदि गुणों का विकास करना|

    6. शिक्षा: व्यायाम, संगीत, कला के विकास में सहायक है|


    अरस्तु की शिक्षा योजना-

    • अरस्तु ने राज्य नियंत्रित शिक्षा का समर्थन किया है तथा निशुल्क- अनिवार्य, सार्वभौमिक शिक्षा पर बल दिया है|

    • अरस्तु की शिक्षा बच्चे के जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है|

    • अरस्तु की शिक्षा सप्तवर्षीय परिवर्तन के साथ हैं |

    • अरस्तु की शिक्षा योजना को तीन भागों में बांटा गया है-

    1. जन्म से 7 वर्ष तक की शिक्षा

    2. 8 से 14 वर्ष तक की शिक्षा

    3. 15 से 21 वर्ष तक की शिक्षा


    1. जन्म से 7 वर्ष की शिक्षा-

    • 7 वर्ष की शिक्षा परिवार में माता-पिता के पास होनी चाहिए|

    • इसमें बच्चे को भोजन, अंग संचालन, ठंड का अभ्यास कराना चाहिए| 

    • बच्चे को खेल, कहानियों के माध्यम से शिक्षा दी जानी चाहिए|

    • Note- इसी काल में बौद्धिक शिक्षा आरंभ कर देनी चाहिए|


    1. 8 से 14 वर्ष तक की शिक्षा-

    • इस काल में शरीर गठन पर अरस्तु ने बल दिया है|

    • तथा किशोरों के नैतिक विकास की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, साथ ही पढ़ाई, लिखाई चित्रकला, संगीत की शिक्षा भी दी जानी चाहिए|

    • Note- अरस्तु नैतिक जीवन की उन्नति के लिए संगीत को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करता है|


    1. 15 से 21 वर्ष तक की शिक्षा-

    • इस अवस्था में छात्रों को उस सरकार के अनुरूप शिक्षा दी जाए, जिसकी अधीनता में उन्हें रहना है|

    • तथा छात्रों के शारीरिक व मानसिक विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाए|

    • इस समय पढ़ना, लिखना, चित्रकला, संगीत, अंकगणित, रेखागणित की शिक्षा दी जाए|

    • अरस्तु की शिक्षा का कार्यक्रम 21 वर्ष तक समाप्त हो जाता है, लेकिन अरस्तु के अनुसार शिक्षा जन्म से लेकर अंत तक चलती रहती है|


     अरस्तु की शिक्षा योजना की आलोचना-

    1. अरस्तु ने संगीत पर अत्यधिक और अनावश्यक बल दिया है| जैसे बार्कर ने कहा है कि “संगीत शिक्षा पर महत्व देते हुए अरस्तु अपने गुरु प्लेटो से चार कदम आगे बढ़ गया है|”

    2. साहित्य की उपेक्षा

    3. बौद्धिक शिक्षा की अवधि कम है|

    4. सीमित शिक्षा है, अर्थात केवल नागरिकों के लिए शिक्षा है|

    5. शिक्षा का पूर्ण राज्यकरण अलोकतांत्रिक है|




    अरस्तु: संविधान का अर्थ और संविधानो का वर्गीकरण-


    • अरस्तु ने पॉलिटिक्स की तीसरी पुस्तक के छठे से आठवें अध्याय में संविधान संबंधी अवधारणा दी है|

    • संविधान के लिए अरस्तु के द्वारा प्रयुक्त शब्द यूनानी भाषा का पॉलिटिया (Politeia) है|

    • अरस्तु ने संविधान के दो पहलू बताए हैं- 1 नैतिक पहलू  2 राजनीतिक पहलू

    1. नैतिक पहलू के अनुसार संविधान का अर्थ जीवन पद्धति है, अर्थात जीवन व्यतीत करने का तरीका|

    2. राजनीतिक पहलू से संविधान का अर्थ  है ‘राज्य के पदों का बंटवारा’|


    • अरस्तु का मुख्यतया संबंध राजनीतिक पहलू से है, अरस्तु के अनुसार “संविधान राज्य के पदों की वह व्यवस्था है, जिससे यह निर्धारित किया जाता है कि राज्य का कौनसा पद विशेष कर सर्वोच्च पद, किसे मिले|

    • अरस्तु ने राज्य और सरकार में भेद किया है, जहां राज्य उसमें निवास करने वाले लोगों का समुदाय हैं जबकि सरकार उन नागरिकों का समूह है जिनके हाथों में राजनीतिक शक्ति और शासन संचालन का कार्य होता है| उच्च राजनीतिक पदों वाले व्यक्तियों में परिवर्तन आने पर सरकार में परिवर्तन आ जाता है परंतु जब संविधान में परिवर्तन आता है तो राज्य में भी परिवर्तन आ जाता है|

    • इस प्रकार अरस्तु राज्य और संविधान को पर्यायवाची मानता है|


    संविधानों का वर्गीकरण-

    • अरस्तु के संविधानों का वर्गीकरण प्लेटो के स्टेट्समैन में दिए गए वर्गीकरण से प्रभावित था|


    • अरस्तु ने संविधानो का वर्गीकरण दो आधारों पर किया है-

    1. संख्या के आधार पर- अर्थात शासन सत्ता कितने व्यक्तियों में निहित है|

    2. लक्ष्य या उद्देश्य के आधार पर- दो प्रकार

    1. स्वाभाविक रूप- सर्वसाधारण का हित

    2. विकृत रूप- स्वार्थ सिद्धि 

     

                  संख्या  
    स्वाभाविक या विशुद्ध संविधान
    विकृत संविधान
    1 एक व्यक्ति का शासन
    1 राजतंत्र ( Monarchy)
    4.निरंकुश तंत्र (Tyranny)
    2 कुछ व्यक्तियों का शासन
    2  कुलीनतंत्र या अभिजात तंत्र (Aristocracy)
    5 अल्पतंत्र या स्वार्थी तंत्र  (Oligarchy)
    3 अनेक व्यक्तियों का शासन
    3 संयत प्रजातंत्र (Polity)
    6 अतिवादी लोकतंत्र 
    (democracy)

    • इस प्रकार अरस्तू ने संविधानो को 6 भागों में बांटा है|

    • अरस्तु राजतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानता है, लेकिन राजतंत्र सुलभ नहीं है, क्योंकि कोई सर्वगुण संपन्न शासक मिल भी जाए तो उसका उत्तराधिकारी भी ऐसा होगा आवश्यक नहीं है|

    • अतः अरस्तु मध्यम मार्ग अपनाता है और संयतप्रजातंत्र (Polity) को सर्वोत्तम संविधान बताता है|

    • अरस्तु पॉलिटी को बचाव राज्य कहता है, जो स्वर्णिम मध्यमान (Golden mean) पर आधारित है, इसमें मिश्रित सविधान है और मध्यम वर्ग का शासन है तथा इसमें कानून की सर्वोच्चता है|

    • कार्ल पॉपर के अनुसार सबसे अच्छी व्यवस्था पॉलिटी में प्लेटोवादी कुलीनतंत्र, संतुलित सामंतवाद व लोकतांत्रिक विचार सम्मिलित हैं, लेकिन जैव व्यक्तिवाद नहीं है

    • Note-अरस्तु के मिश्रित संविधान के विचारों को बाद में रोमन विचारको पॉलीबियस व सिसरो, मध्ययुगीन विचारक सेंट थॉमस एक्विनास और आधुनिक विचारक मैकियावेली ने भी स्वीकार किया है| 


    संविधानो का परिवर्तन चक्र-

    • अरस्तु के अनुसार कोई भी संविधान या राज्य स्थायी नहीं है, ये एक निश्चित क्रम में बदलते रहते हैं|

    • आरंभ में राजतंत्र स्थापित होगा, उसके बाद क्रमश निरंकुश तंत्र-- कुलीन तंत्र-- अल्प तंत्र-- संयत प्रजातंत्र-- अतिवादी प्रजातंत्र की स्थापना होती है| इसके बाद उन्हें पुन: राजतंत्र स्थापित हो जाता है और यह परिवर्तन चक्कर चलता रहता है|


    अरस्तु के वर्गीकरण के अन्य आधार-

    1. आर्थिक आधार- धनिकतंत्र में धनीको का तथा जनतंत्र में गरीबों का शासन होता है|


    1. मौलिक गुण या तत्व- विभिन्न संविधानो में विभिन्न तत्व पाए जाते हैं| जैसे-

    1. जनतंत्र में समानता और स्वतंत्रता

    2. कुलीनतंत्र में गुण

    3. धनिकतंत्र में धन

    4. संयत प्रजातंत्र में धन व स्वतंत्रता


    1. शासन संबंधी कार्य प्रणाली- जैसे कहीं ऊंचे पदों का निर्वाचन अधिक संपत्ति वाले कर सकते हैं तो कहीं कम संपत्ति वाले कर सकते हैं|

      

    अरस्तु के वर्गीकरण की आलोचना-

    • गार्नर “अरस्तु राज्य और सरकार में भेद नहीं कर पाता है, फलस्वरुप उसके द्वारा किया गया वर्गीकरण राज्यों का वर्गीकरण न होकर सरकारों का वर्गीकरण है|”

    • सिनक्लेयर “अरस्तु का वर्गीकरण व्यवहारिक नहीं है|”

    • सिले “अरस्तु ने अपने समय के नगर-राज्यों का वर्गीकरण किया था, जो वर्तमान राज्यों पर लागू नहीं होता है|

    • डनिंग “इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पॉलिटिक्स में एक रूप का दूसरे रूप से स्पष्ट रूप में अंतर नहीं किया गया है|

    • बलंटशली “अरस्तु के वर्गीकरण में हमें केवल लौकिक राज्यों का ही वर्गीकरण मिलता है, परलौकिक का नहीं|



    अरस्तु का सर्वोत्तम आदर्श राज्य (The Best Ideal State)-

    • अरस्तु ने पॉलिटिक्स की सातवीं व आठवीं पुस्तक में आदर्श राज्य का वर्णन किया है|

    • अरस्तु सर्वोत्तम आदर्श राज्य में आदर्श को व्यवहारिकता के साथ मिश्रित कर देता है|

    • अरस्तु के अनुसार सर्वोत्तम सविधान या राज्य तो मध्यम वर्ग को प्रधानता देने वाला संयत प्रजातंत्र (Polity) है, लेकिन इसका विकास सभी जगह संभव नहीं है| अतः अरस्तु सर्वोत्तम आदर्श राज्य की संकल्पना प्रस्तुत करता है|

    • अरस्तु आदर्श राज्य में कुछ विशेष परिस्थितियों का होना आवश्यक मानता है| सेबाइन के शब्दों में “अरस्तु आदर्श राज्य पर ही नहीं, बल्कि राज्य के आदर्शों पर पुस्तक लिखता है|”

    • प्लेटो का लॉज का उपादर्श राज्य तथा अरस्तु का आदर्श राज्य काफी मिलता-जुलता है| जैसे सेबाइन ने  कहा है कि “अरस्तु जिसे आदर्श राज्य मानता है, वह प्लेटो का उपादर्श या द्वितीय सर्वश्रेष्ठ राज्य है|”

    • प्रोफेसर हरमन “अरस्तु अपना संबंध काल्पनिक राज्य के विस्तृत निर्माण के बजाय अच्छे राज्य के आदर्शों से अधिक रखा है|”

    • सिनक्लेयर “राज्य के विषय में प्लेटो जहां (लॉज) छोड़ता है, अरस्तु वहां से प्रारंभ करता है|”


    अरस्तु के सर्वोत्तम राज्य की विशेषताएं-

    1. जनसंख्या- प्लेटो की तरह अरस्तु जनसंख्या निर्धारित तो नहीं करता है, वह जनसंख्या के बारे में कहता है कि जनसंख्या न बहुत अधिक और न ही बहुत कम होनी चाहिए|


    1. प्रदेश/ भूमि- राज्य का क्षेत्र आवश्यकतानुसार होना चाहिए न तो अधिक बड़ा और न अधिक छोटा| भूमि समुद्र के पास होनी चाहिए| भूमि इतनी छोटी हो कि जिसे ऊंचे स्थान से देखी जा सके| भूमि ऐसे स्थान पर हो जहां स्थल और जल दोनों भागों से पहुंचा जा सके| भूमि दो भागों में बटी हुई हो-

    1. सार्वजनिक भूमि- पूजा गृह एवं राज्य उपयोगी भूमि|

    2. व्यक्तिगत भूमि- शेष भूमि


    1. जनता का चरित्र- आदर्श राज्य के नागरिकों का चरित्र यूनानी विशेषताओं के अनुरूप हो, जिसमें उत्तरी जातियों का साहस और एशियन लोगों के विवेक का मिश्रण हो|


    1. राज्य में आवश्यक वर्ग- अरस्तु के आदर्श राज्य में 6 प्रकार की आवश्यकताएं प्रमुख है तथा इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 6 वर्ग प्रमुख हैं-

     

    आवश्यकता

    वर्ग


    1.भोजन

    कृषक

    नागरिक नहीं है|

    2. कला-कौशल

    शिल्पी

    नागरिक नहीं है|

    3. शस्त्र  

    योद्धा

    नागरिक है|

    4.संपत्ति

    संपत्तिशाली वर्ग

    नागरिक है|

    5. देव-पूजा

    पुरोहित

    नागरिक है|

    6 सार्वजनिक हित

    प्रशासक

    नागरिक है|

     

    • Note- अरस्तु का सामाजिक वर्गीकरण आयु के अनुसार-

    1. युवावस्था- योद्धा

    2. प्रौढ़ावस्था- शासन कार्य

    3. वृद्धावस्था- देव पूजा अर्थात पुरोहित का कार्य 


    • अथार्त एक व्यक्ति ही विभिन्न अवस्था में विभिन्न कार्य करेगा|


    1. शिक्षा- राज्य का उद्देश्य शुभ जीवन की प्राप्ति है, जो शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है| अरस्तु 0- 21 वर्ष की शिक्षा योजना बताता है|


    1. अन्य विशेषताएं-    

    • बाह्य आक्रमण से बचाव के लिए रक्षा के अच्छे साधन होने चाहिए|

    • पानी, सड़कों, किलो की राज्य में व्यवस्था हो|

    • आदर्श राज्य में शासन की 3 संस्थाएं हो-

    1. लोकप्रिय सभा- समस्त नागरिकों की सभा|

    2. मजिस्ट्रेटो की संस्था|

    3. न्यायपालिका|




    अरस्तु के क्रांति संबंधी विचार-

    • अरस्तु ने अपनी रचना पॉलिटिक्स की पांचवी पुस्तक में क्रांति संबंधी विचारों का प्रतिपादन किया है|

    • प्रोफ़ेसर मैक्सी “अरस्तु ने जितने विवेकपूर्ण ढंग से क्रांति के कारणों का विश्लेषण किया है, उतने ही विवेकपूर्ण ढंग से उसने इसके निराकरण के उपायों पर भी प्रकाश डाला है|”

    • क्रांति के प्रति अरस्तु का दृष्टिकोण यथार्थवादी था, इसी कारण से पोलॉक मानता है कि “अरस्तु ही वह प्रथम दार्शनिक है, जिसने राजनीति को नीतिशास्त्र (आचारशास्त्र) से पृथक किया है|“


    क्रांति का अर्थ- 

    • क्रांति संबंधित अरस्तु की धारणा वर्तमान क्रांति संबंधी धारणा से भिन्न है|

    • अरस्तु के अनुसार क्रांति का अर्थ “संविधान में प्रत्येक प्रकार छोटा-बड़ा परिवर्तन है|”


    • Note- प्लेटो परिवर्तन को पतन और भ्रष्टाचार से जोड़ते हैं, दूसरी और अरस्तू परिवर्तन को अनिवार्य और आदर्शों की शिक्षा में गति मानते हैं| 


    क्रांति का उद्देश्य- 

    • रस्तु निम्न उद्देश्य बताता है-

    1. संविधान या राज्य का परिवर्तन करना, जैसे राजतंत्र को निरंकुश तंत्र|

    2. संविधान में परिवर्तन ना करके केवल शासक वर्ग को बदल देना|

    3. तत्कालीन संविधान को और व्यवहारिक व वास्तविक बनाना|

    4. संविधान में छोटे-मोटे परिवर्तन लाना


    क्रांति के प्रकार- 

    • अरस्तु ने क्रांति के निम्न प्रकार बताए हैं-

    1. आंशिक और पूर्ण क्रांति- संविधान पूर्ण बदल दिया जाए तो पूर्ण क्रांति तथा संविधान का महत्वपूर्ण भाग बदल दिया जाए तो आंशिक क्रांति|


    1. रक्तपूर्ण क्रांति और रक्तहीन क्रांति

    1. रक्तपूर्ण क्रांति- सशस्त्र विद्रोह एवं रक्तपात द्वारा संविधान में परिवर्तन|

    2. रक्तहीन क्रांति- बिना रक्तपात के शांतिपूर्वक परिवर्तन


    1. व्यक्तिगत और अव्यक्तिगत क्रांति-

    1. व्यक्तिगत क्रांति- जब किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को हटाकर संविधान बदला जाए|

    2. अव्यक्तिगत क्रांति- बिना शासक बदले सविधान में किए जाने वाला परिवर्तन|


    1. वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रांति- इसमें संविधान में परिवर्तन वर्ग विशेष को हटाने के लिए किया जाता है| जैसे धनिकतंत्र को हटाकर प्रजातंत्र की स्थापना करना|


    1. वैचारिक या वाग्वीरो की क्रांति- जब कुछ करिश्माती नेता अपने भाषणों से लोगों को प्रभावित कर परिवर्तन करें तो उसे वैचारिक/ वाग्वीरो की क्रांति कहते हैं|


    क्रांति के कारण-

    • अरस्तु ने क्रांति के कारणों को तीन भागों मे विभाजित किया है-

    1. क्रांति के मूल कारण

    2. क्रांति के सामान्य कारण

    3. विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रांति के विशिष्ट कारण

     

    1. क्रांति के मूल कारण-  

    • अरस्तु के अनुसार क्रांति का मूल कारण समानता की भावना या विषमता है|

    • समानता दो प्रकार की होती है

    1. संख्यात्मक समानता

    2. आनुपातिक/ योग्यता संबंधी समानता


    1. संख्यात्मक समानता- इसमें सभी व्यक्तियों को समान माना जाता है तथा अधिकार, धन संपत्ति आदि में समानता होनी चाहिए|

    2. अनुपातिक समानता- इसमें सभी व्यक्तियों को अधिकार, धन, संपदा आदि योग्यता के अनुपात में मिलने चाहिए, न कि सभी को समान| अरस्तु आनुपातिक समानता पर बल देता है|


    • जब एक वर्ग को यह लगता है कि उसके साथ असमानता हो रही है, तो वह समानता की स्थापना के लिए विद्रोह कर देता है|   


    1. क्रांति के सामान्य कारण-  

    • अरस्तु ने क्रांति के सामान्य कारण निम्न बताए हैं-

    1. शासको में भ्रष्टाचार व लाभ की लालसा

    2. सम्मान की लालसा

    3. श्रेष्ठता की भावना

    4. घृणा और परस्पर विरोधी विचारधाराएं

    5. भय- अपराधी को दंड का भय तथा कुछ व्यक्तियों को अन्याय होने का भय

    6. द्वेष भावना

    7. जातियों की विभिन्नता

    8. राज्य के किसी अंग की अनुपात से अधिक वृद्धि

    9. निर्वाचन संबंधी षड्यंत्र

    10. अल्पपरिवर्तनों की उपेक्षा

    11. विदेशियों को आने की खुली छूट

    12. पारिवारिक विवाद

    13. शासक वर्ग की असावधानी

    14. मध्यम वर्ग का अभाव

    15. शक्ति संतुलन- विरोधी वर्ग में शक्ति संतुलन होना भी क्रांति का कारण बन जाता है| 


    1. विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रांति के विशिष्ट कारण-

    1. राजतंत्र में क्रांति के कारण- राजपरिवार के आंतरिक झगड़े, पारिवारिक कलह|

    2. निरकुशतंत्र में क्रांति के कारण- शासक द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग करना, जनता पर अत्याचार करना|

    3. कुलीनतंत्र में क्रांति के कारण- विभिन्न वर्गों में सामंजस्य का अभाव, योग्य पुरुषों का अपमान|

    4. अल्पतंत्र में क्रांति का कारण-  योग्यता की जगह, जन्म या वंश को अधिक महत्व, निर्धनो का शोषण| 

    5. संयत प्रजातंत्र में क्रांति का कारण- शासक जब अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए शासन करता है, सर्वजन हित के लिए नहीं करता है|

    6. अतिवादी प्रजातंत्र में क्रांति का कारण- जनसाधारण के हितों की अनदेखी करना, नारेबाजी को महत्व देना|


    क्रांतियों को रोकने के उपाय-

    • मैक्सी “आधुनिक राजनीतिक विचारक शायद ही क्रांति रोकने का अरस्तु के उपायो के अतिरिक्त कोई अन्य ठोस उपाय बता सके|”

    • प्रोफेसर डनिंग “अरस्तु क्रांतियों को उत्पन्न करने वाले कारणों की विस्तृत सूची देने के पश्चात उसके समान ही प्रभावोत्पादक उसको रोकने वाले उपायों की सूची भी देता है|” 


    • अरस्तु ने क्रांति रोकने के निम्न उपाय बताए हैं-

    1. शक्ति पर नियंत्रण- शक्तियों का विभाजन होना चाहिए, एक वर्ग के पास अधिक शक्तियां नहीं होनी चाहिए|

    2. जनता में संविधान के प्रति आस्था बनाये रखना- शिक्षा के द्वारा ऐसा किया जा सकता है|

    3. लाभ, सम्मान, पदों का न्यायपूर्ण वितरण|

    4. राज्यों को परिवर्तनों के प्रारंभ से बचाना चाहिए, क्योंकि परिवर्तनों के प्रारंभ से ही क्रांति होती है| 

    5. आर्थिक असमानता को कम करना|

    6. समाज में मध्यम वर्ग को बढ़ावा देना|

    7. दो विरोधात्मक प्रवृत्ति के लोगों के हाथों में सत्ता देना, जैसे- अमीर व गरीब, प्रतिभाशाली व धनिक| 

    8. धनोपार्जन की भावना का दमन करना|

    9. राज्य अधिकारियों का कार्यकाल कम अवधि का रखना| अरस्तु के अनुसार अधिकारी वर्ग को 6 माह से अधिक शासन करने के लिए न दिया जावे|

    10. क्रांति रोकने के मनोवैज्ञानिक उपाय अपनाये जाये|

    11. क्रांति रोकने के उपायों में अरस्तु राज्य की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करता है| राज्य की सुरक्षा के लिए अरस्तु व्यक्तिगत हस्तक्षेप का भी समर्थन करता है|

    12. अरस्तु राजतंत्र में क्रांति रोकने के दो साधन बताता-

    1. अत्याचार के द्वारा, विदेशी सेना के प्रदर्शन के द्वारा

    2. सद्भावना व प्रेम के द्वारा|

    1. विधि के शासन की स्थापना

    2. विदेशी समस्याओं की तरफ जनता का ध्यान केंद्रित करना| अरस्तु के शब्दों में “शासक जो राज्य की चिंता करते हैं, उन्हें चाहिए कि वे नए खतरो का अन्वेषण करें, दूर के भय को समीप लाए ताकि जनता पहरेदार की तरह अपनी रक्षा के लिए सदा सचेत और तत्पर रहें|"

    3. राजतंत्र में क्रांति रोकने के लिए अरस्तू ने राजा के संयत व्यवहार पर बल दिया है| 

    4. निरंकुश तंत्र में क्रांति रोकने के लिए निरंकुश शासक को शासन की समस्त बागडोर अपने हाथ में रखते हुए भी इस तरह का अभिनय करना चाहिए कि वह राजा है, निरंकुश नहीं|

    5. प्रजातंत्र में क्रांति रोकने के लिए अरस्तु ने सुझाया है कि संपन्न लोगों के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाए तथा उनकी संपत्ति को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया जाए|

    6. धनिकतंत्र में क्रांति को रोकने के लिए गरीबों का पूरा ध्यान रखना उचित होगा| 



    ज्ञान की तीन श्रेणियां-

    • अरस्तु ने ज्ञान व मानव गतिविधियों की तीन श्रेणियां बताई हैं-

    1. सैद्धांतिक ज्ञान (Theoria/ Thinking)

    • इसमें सिद्धांत निर्माण आता है, इसमें साध्य के बारे में सोचा जाता है तथा तर्क के आधार पर अंतिम सत्य का पता किया जाता है| 

    • धर्मशास्त्र (Theology), गणित व भौतिक विज्ञान विषय सैद्धांतिक ज्ञान में सम्मिलित हैं|

    • अरस्तु इसे प्रथम दर्शन (First Philosophy) कहता है| 


    1. उत्पादक ज्ञान (Poiesis/ Making)- 

    • इसमें ज्ञान का निर्माण किया जाता है| अलंकारशास्त्र व साहित्य का ज्ञान इसमें होता है|

    • अलंकार शास्त्र में वाक् कला, भाषण कला व तर्क कला का अध्ययन किया जाता है|

    • एक अच्छा वक्ता में अपने श्रोताओं को प्रभावित करने के लिए तीन अलग-अलग क्षेत्र का ज्ञान होना चाहिए, जो निम्न है-

    1. Logos- श्रोताओं से तार्किक अपील 

    2. Ethos- वक्ता की विश्वसनीयता

    3. Pathos- श्रोताओं से भावनात्मक अपील


    • इन तीनों को अलंकारिक त्रिकोण (Rhetorical Triangle) कहा जाता है| 


    1. व्यवहारिक ज्ञान (Praxis/ Doing)- 

    • इसमें सिद्धांत या साध्य को व्यवहार में ढाला जाता है| इसमें नीति शास्त्र व राजनीति विषय सम्मिलित है |

    • व्यवहारिक ज्ञान ही सर्वोच्च ज्ञान है 

     


    अरस्तु के अनुसार खुशी या यूडीमोनिया का स्वरूप-

    • अरस्तु ने अच्छाई को खुशहाली के बराबर माना है |

    • एथिक्स और पॉलिटिक्स में अरस्तु ने मानव खुशहाली के व्यवहारिक विज्ञान पर जोर दिया है| 

    • मेंकेटायर के शब्दों में “सुकरात के समान प्लेटो और अरस्तू खुशी हासिल करने के लिए आत्मा की सेवा के पक्ष में थे|” 

    • अरस्तु की दृष्टि में खुशी दो गुणों से हासिल हो सकती है- 1 नैतिक गुण  2 बौद्धिक गुण| बौद्धिक गुण अंतिम कारणों का ज्ञान था, जिसमें व्यावहारिक बुद्धि (फ्रोनेसिस) या गुणकारी नैतिक व्यवहार एवं बुद्धि (सोफिया) या शाश्वत अपरिवर्तनीय वस्तु का ज्ञान शामिल है|



    युद्ध का विरोध-

    • अरस्तु केवल शांति की स्थापना के लिए युद्ध का समर्थन करता है|

    • अरस्तु के शब्दों में “युद्ध होना चाहिए शांति की खातिर व काम होना चाहिए अवकाश की खातिर|” 



    स्वर्णिम मध्यमान का नियम या औसत का तर्क (Rule of Golden mean)-

    • अरस्तु ने अपने राजनीतिक चिंतन में मध्यम मार्ग को अपनाया है|

    • संविधानो में भी मध्यम मार्ग को अपनाते हुए Polity को सर्वश्रेष्ठ सविधान माना है|

    • अरस्तु ने मिश्रित सविधान व मध्यम वर्ग के शासन का समर्थन किया है|



    कार्योत्पादन सिद्धांत या कार्यकारण भाव का सिद्धांत या कारण का चतुष्कोणी सिद्धांत-

    • इस सिद्धांत के माध्यम से अरस्तू अपने Teleological Approach (सौद्देश्यात्मक सिद्धांत) की व्याख्या करता है कि कोई भी कार्य इसलिए होता है कि उसका एक निश्चित अंतिम उद्देश्य होता है जो पदार्थ की Form में निहित होता है|

    • अरस्तु ने प्लेटो के ‘डॉक्ट्रिन ऑफ़ फॉर्म्स’ की कटु आलोचना की है|

    • प्लेटो के संकल्पना सिद्धांत (डॉक्ट्रिन ऑफ़ फॉर्म्स) की आलोचना अरस्तु तीन तर्कों के आधार पर करता है-

    1. जो बात सामान्य है, तो वह महत्वपूर्ण या ठोस कैसे हो सकती है?

    2. प्लेटो उन तत्वों को संकल्पना के बाहर मानता है, जिनसे वस्तु बनती है, जब ये तत्व बाहर थे तो वस्तु के अंदर कैसे चले जाते हैं?

    3. फॉर्म या विचार, जिनमें स्वयं कोई गति तत्व नहीं होता है, किसी संघटना का कारण कैसे हो सकता है|


    • प्लेटो की अस्पष्टता के समाधान के लिए अरस्तू ने Matter और Form अंतर किया है-

    1. Matter (पदार्थ)- यह एक ऐसी कच्ची वस्तु है, जिससे निश्चित वस्तु बनती है अर्थात गति या परिणाम का आधार है|

    2. Form (आत्मा या स्वरूप)- यह आकारहीन व अपरिभाषित है तथा पदार्थ के अंदर रहती है| Form ही पदार्थ को अन्य पदार्थ से भिन्न बनाता है| फॉर्म में ही वस्तु का अंतिम उद्देश्य निहित होता है|


    • Note- आत्मा के लिए प्लेटो ने Idea शब्द प्रयोग किया है तथा अरस्तू ने Form शब्द प्रयोग किया है|


    • अरस्तु के अनुसार Matter Potentiality (संभाव्यता) है और फॉर्म एक्चुअलिटी (वास्तविकता) है|

    • पदार्थ की संभाव्यता फॉर्म द्वारा ही अभिन्न आकार ग्रहण करती है|


    • अरस्तु के कार्योंत्पादन या गति व परिणाम के चार कारण हैं, जो क्रमशः निम्न है-

    • इन कारणों को हम चांदी से प्याला बनने तक की प्रक्रिया के माध्यम से समझ सकते हैं| यहां चांदी मैटर है तथा प्याला फॉर्म है|

    1. भौतिक कारण (Material Cause)-

    • पदार्थ, जिससे वह बना है, भौतिक कारण होता है|

    • अर्थात कच्ची व अनिर्मित चांदी भौतिक कारण है|


    1. निमित्त कारण (Efficient Cause)-

    • यह गति का कारण है|

    • निमित्त कारण ही पदार्थ को अंतिम उद्देश्य की ओर ले जाता है, जो Form में निहित है|

    • स्वर्णकार निमित्त कारण उत्पन्न करता है अर्थात वह चांदी को प्याले का आकार देने का प्रयास करता है|

    • इस तरह मनुष्य कलाकार के रूप में निमित्त कारण को जन्म देता है|


    1. औपचारिक या स्वरूप कारण (Formal Cause)-

    • वस्तु का या पदार्थ का सार औपचारिक कारण होता है|

    • अर्थात सुनार के मस्तिष्क में प्याले का स्वरूप|


    1. अंतिम कारण (Final Cause)-

    • वह उद्देश्य जिसकी और गतिविधि लक्षित है अर्थात प्याला|



    प्लेटो व अरस्तु की तुलना-

    • फास्टर “प्लेटो का चिंतन अरस्तु पर इतना छाया हुआ है कि उसके अलावा शायद ही कोई ऐसा महान दार्शनिक हुआ हो जिस पर किसी दूसरे विचारक का चिंतन इस हद तक हावी हो, पर इस बात का मतलब यह नहीं है कि अरस्तु प्लेटो की हर बात से सहमत था|”

    • फ्रेडरिक सेलेगल “हम या तो प्लेटों के अनुयायी हो सकते हैं या अरस्तु के|” इसका अभिप्राय है कि दोनों महान विचारक दो ऐसी प्रथक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न और विपरीत हैं|

    • मैक्सी “राजनीतिक चिंतन में जहां प्लेटो आदर्शवादियों, कल्पनावादियों, क्रांतिकारियों तथा स्वप्नलोकवादियों का जनक है, वहां अरस्तु यथार्थवादियों, विज्ञानवादियों, व्यवहारवादियों तथा उपयोगितावादियों का जनक है|”

    • विल ड्यूरान्त “दर्शन के प्रति झुकाव तथा स्नेह के कारण हमारे महत्वकांक्षी नवयुवक (अरस्तु) के मन में अपने आध्यात्मिक पिता के विरुद्ध एक प्रकार का विरोधाभास जागृत हो गया था और वह यह संकेत करने लगा था कि प्लेटो के साथ विवेक का अवसान न होगा, जबकि प्लेटो अपने शिष्य के विषय में कहने लगा था कि अरस्तु गधे के उस बच्चे की तरह है, जो अपनी मां का दूध पी लेने के बाद उसे लात मार देता है|”

    • फास्टर “अरस्तु सबसे बड़ा प्लेटोवादी है और प्लेटो का जितना गहरा प्रभाव उसके ऊपर पड़ा है उतना उसके अतिरिक्त शायद किसी भी दूसरे विचारक पर किसी दूसरे का प्रभाव नहीं पड़ा है|”

    • सेबाइन “अरस्तु के दार्शनिक लेखन का प्रत्येक पृष्ठ प्लेटों के साथ उसके संबंध का साक्षी है|”

    • डनिंग “प्लेटो के द्वारा जिन विचारों को सुझाव, संकेत या दृष्टांत के रूप में विकसित किया गया है, उन्हीं की विवेचना करने का कार्य अरस्तु ने किया है|”

    • बार्कर “पॉलिटिक्स में पूर्ण रूप से नई बात उतनी ही कम है जितनी मैग्नाकार्टा में है| इसमें कुछ भी नया नहीं है, दोनों का उद्देश्य पूर्ववर्ती विकास को संहिताबद्ध करना है| दूसरे शब्दों में ‘पॉलिटिक्स’ मुख्य रूप से ‘लॉज’ के विचारों का अनुसरण मात्र है|”


     प्लेटो तथा अरस्तु के विचारों में समान तत्व-

    • प्लेटो तथा अरस्तु के विचारों में निम्न समान तत्व है-

    1. दोनों यूनानी परिस्थितियों की उपज  हैं|

    2. दोनों के राजनीतिक विचारों का आधार नगर-राज्य है|

    3. दोनों राज्य नियंत्रित शिक्षा पर बल देते हैं तथा शिक्षा के द्वारा नागरिकों के चरित्र को उन्नत करने पर बल देते हैं|

    4. दोनों ही शारीरिक श्रम करने वालों की उपेक्षा करते हैं|

    5. नैतिक जीवन में दोनों की गहरी आस्था है|

    6. दोनों ही विचारको ने लोकतंत्र की कटु आलोचना की है|

    7.  दोनों ही विचारक कुलीनतंत्र के समर्थक हैं|


    प्लेटो और अरस्तू के विचारों में असमान तत्व-

    • मैक्सी ने लिखा है कि “जहां प्लेटो अपनी कल्पना को उड़ान भरने देता है, वहां अरस्तु व्यवहारिक एवं  सुस्त हैं, जहां प्लेटो बहुभाषी हैं, अरस्तु तथ्यगत है|”

    • प्लेटो तथा अरस्तु के विचारों में निम्न असमान तत्व है-

    1. प्लेटो कल्पनावादी है, अरस्तु यथार्थवादी है| फ्रेडरिक पॉलक के अनुसार “प्लेटो गुब्बारे में बैठकर नए प्रदेश में घूमता हुआ कभी-कभी निहारिका के आवरण को चीर कर किसी दृश्य को अत्यंत स्पष्टता से देख सकता ,है किंतु अरस्तु एक श्रमजीवी उपनिवेशवादी की भांति उस क्षेत्र में जाता है और मार्ग का निर्माण करता है|”

    2. प्लेटो की पद्धति निगमनात्मक है, अरस्तु की पद्धति आगमनात्मक है|

    3. प्लेटो अतिमानव की खोज करता है, अरस्तु अतिविज्ञान का अन्वेषक है|

    4. प्लेटो क्रांतिकारी हैं, अरस्तु रूढ़िवादी हैं|

    5. प्लेटो दार्शनिक राजा की संप्रभुता में आस्था रखता है, अरस्तु कानून की प्रभुता का समर्थक है| 

    6. प्लेटो एक तत्ववादी है राज्य की एकता का समर्थक है, अरस्तु विविधता का समर्थक है|

    7. प्लेटो राजनीति को नीतिशास्त्र का अंग मानता है, लेकिन अरस्तू ने राजनीतिक विचारों को नैतिक विचारों से पृथक करने का प्रयास किया है|

    8. प्लेटो राज्य को व्यक्ति का वृहद रूप मानता है, जबकि अरस्तु इसे परिवार का वृहद रूप मानता है|



    अरस्तु पर प्लेटो का प्रभाव-

    • अरस्तु पर प्लेटो की लॉज का प्रभाव पड़ा है |

    • बार्कर के अनुसार अरस्तु के ग्रंथ पॉलिटिक्स पर लॉज के निम्न प्रभाव हैं-

    1. प्लेटो की भांति अरस्तु ने भी विधि की प्रभुता स्वीकार की है|

    2. अरस्तु ने कहा है कि “राज्य और उसकी विधि से रहित मनुष्य या तो पशु है या देवता” यह लॉज के एक अवतरण से मिलता है|

    3. परिवार से राज्य के विकास का विवरण भी लॉज से मिलता है|

    4. दोनों ने माना है कि युद्ध का लक्ष्य शांति की स्थापना करना है, युद्ध साध्य नहीं है|

    5. मिश्रित संविधानो की कल्पना दोनों में समान है, दोनों ने ही स्पार्टा का उदाहरण दिया है|



    अरस्तु का मूल्यांकन-

    1. अरस्तु प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक के रूप में- 

    • एंड्रयू हैकर “यदि प्लेटो प्रथम दार्शनिक होने का दावा कर सकता है तो अरस्तु के प्रथम राजनीतिक वैज्ञानिक होने में बहुत ही कम संदेह है| पश्चिमी जगत में राजनीति विज्ञान अरस्तु से ही प्रारंभ हुआ है|”

    • डेनिंग “राजनीतिक अवधारणाओं के इतिहास में अरस्तु का विशेष महत्व इस तथ्य में निहित है कि उसने राजनीति को एक स्वतंत्र विज्ञान का चरित्र प्रदान किया है|” 

    • मैक्सी ने अरस्तु को पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन के इतिहास का पहला राजनीतिक वैज्ञानिक कहा है|” 


    1. राजनीति विज्ञान को अरस्तु की देन-

    1. मनुष्य को राजनीतिक प्राणी बताने वाला प्रथम विचारक अरस्तु है|   

    2. राज्य की अंतिम समस्या व्यक्ति की स्वतंत्रता और राज्य की सत्ता में सामंजस्य स्थापित करना है, बताने वाला प्रथम विचारक है|

    3. कानून की सर्वोच्चता, प्रभुता तथा विधि का शासन के सिद्धांत प्रतिपादन किया|

    4. जनमत को विद्वानों और विशेषज्ञों की राय से अधिक महत्व दिया|

    5. अरस्तु का मध्यम मार्ग का विचार वर्तमान राजनीतिक नियंत्रण एवं संतुलन के विचार का जनक है, केटलिन “कन्फ्यूसियस के बाद सामान्य ज्ञान और मध्यम मार्ग का सर्वोच्च सुधारक अरस्तु ही है|” केटलिन ने अरस्तु को मध्यमवर्गीय सामान्य ज्ञान का दार्शनिक कहा है|

    6. अरस्तु को ‘आधुनिक व्यक्तिवाद का जनक’ कहा जाता है|

    7. शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत अरस्तु ने दिया तथा शासन के तीन अंग बताएं-

                                              (A) सभा              (B) प्रशासक              (C)  न्याय कर्ता 

    1. अरस्तु उपयोगितावादी विचारों का प्रेरक है| अरस्तु को उपयोगितावादियों का अग्रज माना जाता है|

    2. राजनीति और अर्थशास्त्र के पारस्परिक संबंधों के आधार पर राजनीति में आर्थिक प्रभाव को बड़ा महत्व दिया|

    3. अरस्तु के राजदर्शन में एक शाश्वत तत्व संविधानवाद हैं| बार्कर ने कहा है कि अरस्तु की देन को यदि एक शब्द में आंका जाए तो वह शब्द ‘संविधानवाद’ है| 


    1. अरस्तु का प्रभाव

    निम्न प्रभाव है-  

    1. पॉलीबियस का मिश्रित सरकार का सिद्धांत अरस्तु के ‘पॉलिटिक्स’ पर आधारित है|

    2. दांते की मोनार्की पर अरस्तु के तर्कशास्त्र का प्रभाव है|

    3. मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है, इस मंतव्य का प्रभाव एक्विनास और मार्सिलियो पर पड़ा है |

    4. सेंट टॉमस एक्विनास अरस्तु को दार्शनिक कहता है और उसके संपूर्ण चिंतन पर अरस्तु का इतना अधिक प्रभाव है की टॉमस एक्विनास को ‘मध्य युग का अरस्तु’ अथवा ‘ईसाई अरस्तु’ कहा जाता है| मैक्सी ने अपनी रचना Political Philosophies मे मध्यकाल का अरस्तु कहा है| 

    5. आधुनिक युग के जीन बांदा, लॉक, रूसो, मांटेस्क्यू, बर्क, कार्ल मार्क्स आदि विचारको पर भी अरस्तु का प्रभाव पड़ा है|

    अरस्तु से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य 

    • प्लेटो के अनुसार अकादमी के दो भाग थे- उसका धड विद्यार्थी थे व दिमाग अरस्तु 

    • अरस्तु की शिक्षण संस्थान lyceum को lukeion (ल्यूकीओन) भी कहते हैं| यह विद्यालय भेड़ियों से पशुओं की रक्षा करने वाले देवता लीसीयस के मंदिर के उद्यान में स्थित था|

    • अरस्तु प्राय अपने शिष्यों के साथ उद्यान में घूमते हुए पढ़ाता था, अतः इसे भ्रमणशील दार्शनिक का विद्यालय भी कहा जाता है|

    • अरस्तु ने अपने मित्र एक्सनोक्रीटीज को लीसीयम का अध्यक्ष बनाया था|

    • रिटोरिक्स पुस्तक में अरस्तु ने दो प्रकार के कानून बताएं हैं- 1 विशिष्ट कानून  2 वैश्विक कानून|

    • अरस्तु के अनुसार संपत्ति अपने आप में एक आनंद देने वाली वस्तु है| 

    • अरस्तु के अनुसार व्यक्ति जब कानून व न्याय की अवज्ञा करता है, तो सबसे बुरा पशु बन जाता है| 

    • अरस्तु ने एथिक्स पुस्तक में मनुष्य को एक राजनीतिक प्राणी कहा है|

    • बर्लिन ने अपने लेख ‘Hedgehog and the Fox’ 1953 में प्लेटों को कांटेदार जंगली चूहा (Hedgehog) कहता है जो केवल एक बड़ी चीज जानता है जबकि अरस्तु को लोमड़ी की श्रेणी में रखता है जो बहुत कुछ जानता है|

    • डेनिंग के अनुसार प्लेटो कल्पनावादी एवं संश्लेषणवादी है, तथा अरस्तु तथ्यवादी व विश्लेषणवादी है|

    • अरस्तु के अनुसार कानून आवेगहीन (Dispassionate Reason) विवेक है|

    • अरस्तु के आदर्श राज्य पर प्लेटो के साथ-साथ अपने पूर्ववर्ती विचारको फेलियास ऑफ चेल्सीडॉम (Phaleas of chalcidom) एवं हिप्पोडेम्स ऑफ मिलटेस (hippodamus of miletus) के विचारों का भी प्रभाव रहा है|

    • पॉलिटिक्स का ग्रीक से हिंदी अनुवाद भोलानाथ शर्मा ने किया है|

    • अरस्तु की पॉलिटिक्स का 11 वीं सदी का फारसी अनुवाद जयपुर शहर संग्रहालय में उपलब्ध है|

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