राष्ट्रपति (PRESIDENT)
- भारत के संविधान के भाग 5 में अनुच्छेद 52 से 78 तक संघीय कार्यपालिका का वर्णन है| 
- भारत की संघीय कार्यपालिका राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रीपरिषद एवं महान्यायवादी से मिलकर बनती है| 
- संविधान के भाग- 5, अनुच्छेद 52- 62 तक राष्ट्रपति के बारे में उल्लेख है| 
- राष्ट्रपति संवैधानिक या राज्य प्रमुख होता है| 
- राष्ट्रपति नाममात्र का या औपचारिक प्रमुख होता है| 
- Note- राय साहब राम जवाया कपूर बनाम पंजाब राज्य 1955, यू एन राव बनाम इंदिरा गांधी 1975, शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य1974 आदि वादो में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान ने राष्ट्रपति को औपचारिक प्रधान बनाया है| 
- राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है| 
- राष्ट्र की एकता, अखंडता, सुदृढ़ता का प्रतीक होता है| 
- राष्ट्रपति भवन ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस की डिजाइन पर 1911 में नई दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा के पश्चात वायसराय के निवास के लिए बनाया गया था| 1950 तक वायसराय इस भवन में ही रहते थे| यह दिल्ली स्थित रायसीना की पहाड़ी पर बना हुआ है| 
- हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के निकट धरबरा में राष्ट्रपति का ग्रीष्मकालीन निवास है जिसे द रिट्रीट बिल्डिंग कहा जाता है| जबकि शीतकालीन निवास हैदराबाद (तेलंगाना) में स्थित राष्ट्रपति आवास को राष्ट्रपति नीलयम कहा जाता है| यह रेजिडेंसी हाउस के नाम से भी जाना जाता है| प्राय वर्ष में एक बार सामान्यतः दिसंबर-जनवरी में राष्ट्रपति दक्षिणी भारत प्रवास हेतु जाते हैं| 
अनुच्छेद 52- राष्ट्रपति पद का प्रावधान
- भारत का एक राष्ट्रपति होगा| 
- यह सबसे छोटा अनुच्छेद है| 
Note-
- के टी शाह राष्ट्रपति नाम की जगह भारत संघ का मुख्य कार्यपालक और राज्य का अध्यक्ष शब्द प्रयुक्त करने के पक्ष में थे| के टी शाह वयस्क मताधिकार द्वारा राष्ट्रपति निर्वाचन के पक्षधर थे| 
- राष्ट्राध्यक्ष के लिए राष्ट्रपति शब्द संविधान निर्माण के समय सबसे पहले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 30 अप्रैल 1947 को संविधान सभा की संघ संविधान समिति की बैठक में सुझाया था| 
- अंततः संविधान सभा ने डॉ अंबेडकर और के एम पणिक्कर के सुझाव पर ‘भारतीय गणतंत्र के अध्यक्ष’ के बदले ‘भारत के राष्ट्रपति’ पदनाम को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया| 
अनुच्छेद 53- संघ की कार्यपालिका शक्ति
- 53(1) संघ की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होंगी| जिसका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा| 
- 53(2) संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित है| अर्थात राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का प्रधान होता है 
अनुच्छेद 54- राष्ट्रपति का निर्वाचन
- राष्ट्रपति का निर्वाचन निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है, निर्वाचक मंडल में निम्न शामिल होंगे- 
- 54(a) संसद की दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य और 
- 54 (b) सभी राज्यों की विधानसभाओ के निर्वाचित सदस्य 
- Note- केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली व पुदुचेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्य 
- स्पष्टीकरण- अनुच्छेद 54 व 55 में राज्य के अंतर्गत दिल्ली व पुड्डुचेरी भी शामिल है| 
Note- 70 वे संविधान संशोधन 1992 के द्वारा दिल्ली, पांडिचेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचन में शामिल किए गए थे|
Note- संवैधानिक उपबंध के अनुसार राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में संघ राज्य क्षेत्र के प्रतिनिधि के तौर पर दिल्ली और पुडुचेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग नहीं लेते हैं, अपितु उन्हें अनुच्छेद 54 (B) के अधीन राज्य के रूप में माना गया है, इसलिए राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में उन्हें स्थान प्राप्त है|
- चुनाव में कौन भाग नहीं लेगा- 
- दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य- 
- लोकसभा (2) 
- राज्यसभा (12) 
- विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य (राज्यपाल एक एंग्लो इंडियन को मनोनीत कर सकता है) 
- दिल्ली, पुडुचेरी विधानसभा के मनोनीत सदस्य 
- सभी विधान परिषदो के सभी सदस्य 
- निर्वाचित 
- मनोनीत 
Note- 25 जनवरी 2020 के पश्चात लोकसभा और राज्य विधानसभा में आंग्ल भारतीयों के मनोनयन के प्रावधान नहीं रहा है| (104वां संविधान संशोधन 2019)
Note- डेरेक ओ ब्रायन पहले ऐसे आंग्ल भारतीय हैं, जिन्होंने वर्ष 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में मत दिया था| क्योंकि ये उस समय राज्यसभा के सदस्य थे| 2011 में पश्चिमी बंगाल से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए थे|
राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया या रीति (अनुच्छेद-55)-
- 55 (3) एकल संक्रमणीय या एकल हस्तातरीणय आनुपातिक प्रतिनिधित्व गुप्त मतदान प्रणाली के द्वारा| 
- राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रुप से होता है| 
- किसी उम्मीदवार को राष्ट्रपति के चुनाव मैं निर्वाचित होने के लिए मतों का निश्चित भाग (कोटा) प्राप्त करना आवश्यक है| 
- निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य को एक मतपत्र दिया जाता है| 
- मतदाता सभी उम्मीदवारों को वरीयता क्रम में मत देते हैं| (1,2,3,4…..) 
- एक मतदाता उतनी वरीयता में मत दे सकता है, जितने की उम्मीदवार हैं| 
- प्रथम चरण में प्रथम वरीयता के मतों की गणना होती है, निर्धारित कोटा न मिलने पर सबसे कम मत मिले उम्मीदवार के मतों को रद्द कर इसके द्वितीय वरीयता के मतों का हस्तांतरण अन्य में कर दिया जाता है| यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक निर्धारित कोटा प्राप्त नहीं होता है| 
- समरूपता या एकरूपता या समतुल्यता का सिद्धांत- राष्ट्रपति के निर्वाचन में सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व समान हो तथा राज्यों व संघ के मध्य भी समानता हो, इसके लिए विधायकों व सांसदों का मत मूल्य निर्धारित किया जाता है- 
- जनसंख्या का आधार वर्ष- 1971 (2026 तक यही आधार रहेगा) 
- राजस्थान के विधायक का मत मूल्य = 129, राजस्थान के समान छत्तीसगढ़ के विधायक का मत मूल्य 129 है| 
- सर्वाधिक मत मूल्य उत्तर प्रदेश का तथा सबसे कम सिक्किम का है| 
- उत्तर प्रदेश के विधायक का मत मूल्य- 208 
- सिक्किम के विधायक का मत मूल्य- 7 
- एक सांसद का मतमूल्य = 700 
अनुच्छेद- 71- राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित विवाद-
- राष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित सभी विवादों की जांच व फैसले उच्चतम न्यायालय द्वारा किए जाते हैं तथा S.C का फैसला अंतिम होगा (5 न्यायाधीशों की बैच द्वारा) 
- यदि S.C द्वारा राष्ट्रपति की नियुक्ति अवैध ठहरायी जाती है, तो अवैध ठहराने से पूर्व किए गए कार्य अवैध नहीं माने जाएंगे| 
- राष्ट्रपति के चुनाव संबंधित विवाद की शिकायत 30 दिन के अंदर की जा सकती है| 
- शिकायत केवल राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार या निर्वाचक मंडल के सदस्य द्वारा ही की जा सकती है| 
- कम से कम 20 निर्वाचक मंडल के सदस्य ही शिकायत कर सकते हैं| 
- N B खरे बनाम भारतीय निर्वाचन आयोग वाद 1958- इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जो व्यक्ति न तो उम्मीदवार है और न ही निर्वाचक है, वह राष्ट्रपति निर्वाचन की वैधता को चुनौती देने के लिए याचिका दायर नहीं कर सकता| 
- निर्वाचित करने वाले निर्वाचक गण के सदस्यों में से किसी भी कारण से विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर राष्ट्रपति के चुनाव को चुनौती नहीं दी जा सकती है| 
Note- राष्ट्रपति का चुनाव, चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है (अनु- 324)
- चुनाव आयोग के पीठासीन अधिकारी बारी-बारी से लोकसभा महासचिव/ राज्यसभा महासचिव होता है| 
राष्ट्रपति पद के लिए योग्यता (अनु- 58)-
- 58 (1) कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए पात्र तभी होगा, जब वह- 
(क) भारत का नागरिक हो|
(ख) आयु 35 वर्ष हो|
(ग) लोकसभा सदस्य बनने की योग्यता हो|
- 58 (2) संघ सरकार या राज्य सरकार या स्थानीय या अन्य प्राधिकरी के अधीन किसी लाभ के पद पर न हो| 
- वर्तमान राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या राज्यपाल या संघ व राज्य का मंत्री लाभ का पद नहीं माना जाएगा| 
Note- लाभ के पद को संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है| लाभ के पद के निर्धारण का अधिकार संसद को है|
Note- राष्ट्रपति चुनाव में नामांकन के लिए निम्न आवश्यक है (राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम (संशोधन) 1997 के अनुसार)-
- 50 प्रस्तावक 
- 50 अनुमोदक 
- प्रस्तावक और अनुमोदक निर्वाचक मंडल के ही सदस्य होते हैं| 
- जमानत राशि-15000 (RBI में जमा) 
- 1/6 मत प्राप्त न करने वाले उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त हो जाती है| (जमानत राशि जब्त होने पर RBI के पास जाती है) 
राष्ट्रपति द्वारा शपथ (अनु- 60) -
- (अनुसूची- तीन में राष्ट्रपति शपथ का उल्लेख नहीं है) 
- राष्ट्रपति निम्न की शपथ लेता है- 
- राष्ट्रपति पद के कर्तव्य पालन की 
- पूरी योग्यता से संविधान और विधि के परिरक्षण, संरक्षण, प्रतिरक्षण की 
- भारत की जनता की सेवा व कल्याण में निरत रहने की 
- राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अनुपस्थिति में S.C के वरिष्ठतम न्यायधीश द्वारा शपथ दिलाई जाती है| 
- राष्ट्रपति द्वारा शपथ 25 जुलाई को ली जाती है 
- कारण- 1977 में नीलम संजीव रेड्डी (एकमात्र निर्विरोध राष्ट्रपति) ने 25 जुलाई को शपथ ली, तब से यह परंपरा बन गई है| 
Note- अन्य किसी व्यक्ति को, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है अथवा राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वाह करता है, इसी प्रकार शपथ लेनी पड़ती है|
राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें (अनु- 59)
- संसद या राज्य विधायिका का सदस्य नहीं होना चाहिए| 
- लाभ का पद धारण नहीं करेगा| 
- बिना किराया आधिकारिक निवास (राष्ट्रपति भवन) आवंटित तो होगा तथा संसद द्वारा निर्धारित उपलब्धियां, भत्ते, विशेषाधिकार प्राप्त होंगे| 
- उसकी उपलब्धियों और भत्ते पदाविधि (कार्यकाल) के दौरान कम नहीं किए जाएंगे| 
Note- 1 फरवरी 2018 से-
- राष्ट्रपति का वेतन 5 लाख रुपए 
- उपराष्ट्रपति- 4 लाख रुपए 
- राज्यपाल- 3.5 लाख रुपए 
- यह वेतन 1 जनवरी 2016 से प्रभावी होगा 
राष्ट्रपति का कार्यकाल या पदाविधि- (अनु- 56)
- पद धारण करने की तिथि से 5 वर्ष 
- नए राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक वर्तमान राष्ट्रपति पद पर बना रहता है, चाहे उसका कार्यकाल 5 वर्ष का हो चुका हो| 
अनुच्छेद 57- पुनर्निवार्चन के लिए पात्रता
- राष्ट्रपति पद पर कोई भी व्यक्ति पुननिर्वाचित हो सकता है| लेकिन कितनी बार, इस बारे में संविधान मौन है| 
- अब तक केवल राजेंद्र प्रसाद ही दो बार निर्वाचित हुए हैं| 
राष्ट्रपति पद की रिक्तता (अनुच्छेद- 62)
- निम्न कारण से पद रिक्त हो सकता है- 
- त्यागपत्र देने पर- राष्ट्रपति त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को संबोधित कर हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा देता है और उपराष्ट्रपति द्वारा त्यागपत्र की सूचना तुरंत लोकसभा अध्यक्ष को दी जाती है| (अनु- 56) 
- 5 वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने पर (अनु- 56) 
- महाभियोग द्वारा पद से हटाने पर (अनु 61) 
- मृत्यु होने पर 
- पद ग्रहण करने के योग्य न हो या निर्वाचन अवैध घोषित हो| (अनु 71) 
- अन्य किसी कारण से अनुपस्थित हो| 
- राष्ट्रपति का पद कार्यकाल पूरा होने पर रिक्त होता है, तो कार्यकाल पूर्ण होने से पहले चुनाव कराये जाने चाहिए| किसी कारण से चुनाव में देरी होने पर वर्तमान राष्ट्रपति ही पद पर बना रहेगा| उपराष्ट्रपति को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने का मौका नहीं मिलेगा| 
- यदि उसका पद मृत्यु, त्यागपत्र, निष्कासन अथवा अन्य कारण से रिक्त होने पर नये राष्ट्रपति का चुनाव 6 माह में हो जाना चाहिए| 
- 6 माह तक उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बनेगा (अनुछेद 65)| 
Note- नये राष्ट्रपति का कार्यकाल भी 5 वर्ष का होगा (शेष कार्यकाल नहीं) (अनुच्छेद 62(2))
- यदि राष्ट्रपति बीमारी, अनुपस्थिति या अन्य कारण से कार्य करने में असमर्थ है तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य राष्ट्रपति द्वारा पुन: पद ग्रहण तक किया जाएगा| 
Note- उपराष्ट्रपति का पद का रिक्त हो तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अथवा पद रिक्ति पर S.C का वरिष्ठतम न्यायधीश कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा|
- कार्यवाहक राष्ट्रपति को वेतन-भत्ते, शक्तियां राष्ट्रपति के समान प्राप्त होगी| 
- अब तक एक मुख्य न्यायधीश मो.हिदायतुल्लाह ने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया है| 
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया (अनुच्छेद 61)-
- राष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया 
- आधार- सविधान का अतिक्रमण (इस शब्द को सविधान में परिभाषित नहीं किया गया है) 
- Note- अनुच्छेद 56 (1)(b) में उल्लेखित है कि संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में उल्लेखित महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा| इसके अलावा अनुच्छेद 61 में भी संविधान का अतिक्रमण शब्द उल्लेखित है| 
- महाभियोग का आरोप किसी भी सदन में आरंभ किया जा सकता है| 
- जिस भी सदन ने आरोप लगाए हैं, उसके 1/4 सदस्यों के इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर होने चाहिए| 
- महाभियोग पर चर्चा से पूर्व राष्ट्रपति को 14 दिन पूर्व लिखित सुचना देना जरुरी है| 
- प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्य संख्या के ⅔ बहुमत से पारित कर दूसरे सदन में भेजा जाता है| 
- दूसरा सदन आरोपों की जांच करता है, राष्ट्रपति स्वयं या अपने प्रतिनिधि द्वारा अपना पक्ष रख सकता है| 
- दूसरा सदन आरोपों को सही पाता है तथा कुल सदस्य संख्या के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित करता है तो राष्ट्रपति को संकल्प पारित करने की तिथि से पद त्याग करना पड़ेगा| 
- महाभियोग प्रक्रिया अर्द्ध-न्यायिक प्रक्रिया है| होने के कारण- 
- महाभियोग प्रक्रिया में संसद विधायी प्रक्रिया के साथ जांच भी करती है अर्थात न्यायपालिका की तरह कार्य करती है, इसलिए अर्द्ध-न्यायिक प्रक्रिया है| 
- संसद के दोनों सदनों के नामांकित सदस्य जो चुनाव में भाग नहीं लेते, लेकिन महाभियोग में भाग लेते हैं| 
- राज्य विधानसभाओं, दिल्ली, पुदुचेरी, विधानसभाओं के सदस्य जिन्होंने चुनाव भाग लिया था, महाभियोग प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं| 
राष्ट्रपति के विशेषाधिकार (अनुच्छेद 361)
- राष्ट्रपति अपने पद की शक्तियों के प्रयोग और कर्तव्य पालन के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है| 
Note- लेकिन अनुच्छेद 61 के अधीन संसद के किसी सदन द्वारा नियुक्त किसी न्यायालय, न्यायिक अधिकरण या निकाय द्वारा राष्ट्रपति के आचरण का पुनर्विलोकन किया जा सकेगा| (महाभियोग आरोप का अन्वेषण)
- राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार की दांडिक (फौजदारी) कार्यवाही प्रारंभ या चालू नहीं रखी जा सकती है| 
- राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उसकी गिरफ्तारी या कारावास के लिए किसी भी न्यायालय से नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है| 
- राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने से पहले या पश्चात व्यक्तिगत हैसियत से किए गए कार्य के खिलाफ सिविल या दीवानी कार्यवाही की जा सकती है, लेकिन इसके लिए 2 माह पूर्व सूचना देनी होगी| सूचना में कार्यवाही की प्रकृति, पक्षकार का नाम, निवास स्थान तथा मामले की जानकारी लिखित रूप में देनी होगी| 
राष्ट्रपति की शक्तियां/ कार्य-
- अनुच्छेद 53- 
- संघ की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा| 
- अनुच्छेद 74- 
- 74 (1)राष्ट्रपति को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद होगी, मंत्रीपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होगा | 
- राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा (बाध्यकारी- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976) 
- परंतु राष्ट्रपति ऐसी सलाह पर एक बार पुनर्विचार के लिए कह सकता है, पुनर्विचार के पश्चात दी गई सलाह पर कार्य करना जरूरी है| (44 वा संविधान संशोधन अधिनियम 1978) 
- शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य वाद 1974 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि भारत में संसदीय शासन व्यवस्था है, इस कारण से राष्ट्रपति और राज्यपालों को अपनी मंत्रीपरिषद की परामर्श पर ही कार्य करना चाहिए| 
- अनुच्छेद 75- 
- राष्ट्रपति P.M की नियुक्ति करेगा| 
- P.M की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा| 
- P.M व मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेंगे| 
- P.M व मंत्रियों को शपथ दिलाता है| (तीसरी अनुसूची) 
- Note-प्रधानमंत्री को जब तक लोकसभा में बहुमत है तब तक नहीं हटाया जा सकता तथा मंत्रियों को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर ही हटाता है| 
- अनुच्छेद 76- 
- महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 
- शपथ राष्ट्रपति द्वारा 
- राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर बना रहेगा| 
- अनुच्छेद 77- 
- भारत सरकार के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम पर किए जाएंगे| 
- राष्ट्रपति के नाम पर दिए गए आदेश और अन्य अनुदेश वैध हो इसके लिए नियम बना सकता है| 
- भारत सरकार के कार्य सुविधापूर्वक किए जाने तथा मंत्रियों में उक्त कार्यों के आवंटन के लिए नियम बना सकता है| 
- अनुच्छेद 78- 
- प्रधानमंत्री का निम्न मामलों में राष्ट्रपति को जानकारी देने का कर्तव्य होगा- 
- केंद्र सरकार के सभी प्रशासनिक व विधायी प्रस्तावों की जानकारी राष्ट्रपति को दें| 
- राष्ट्रपति द्वारा मांगे जाने पर प्रशासन व विधायी प्रस्तावों की जानकारी राष्ट्रपति को दे| 
- किसी विषय पर किसी मंत्री द्वारा विनिश्चय किया हो, लेकिन मंत्रीपरिषद में विचार नहीं किया हो ऐसे विषय की जानकारी राष्ट्रपति के मांगे जाने पर देना| 
- अनुच्छेद 148- 
- भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को नियुक्त करेगा व शपथ दिलाएगा| 
- अनुच्छेद 155- 
- सभी राज्यों में राज्यपाल नियुक्त करेगा| 
- दिल्ली, पुदुचेरी, अंडमान निकोबार दीप समूह, जम्मू कश्मीर, लद्दाख में उपराज्यपाल नियुक्त करेगा| तथा लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दमन दीव व दादर नगर हवेली में प्रशासकों को नियुक्त करेगा| (अनुच्छेद 239) 
Note- ये सभी राज्यपाल, उपराज्यपाल, प्रशासक राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर बने रहेंगे|
Note- दिल्ली के मुख्यमंत्री की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 239कक के खंड 5 के तहत राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जबकि पुडुचेरी के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 की धारा 45 के तहत की जाती है| यह अधिनियम संसद ने अनुच्छेद 239क द्वारा प्रदत शक्ति के अंतर्गत बनाया था| लेकिन 31 अक्टूबर 2019 से बने जम्मू और कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र में मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा किए जाने का प्रावधान है|
- वह अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीनों अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है| (अनुच्छेद 338) 
- राष्ट्रपति अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीनों सदस्यों की नियुक्ति करता है| (अनुच्छेद 338 ‘क’) 
- राष्ट्रपति अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और तीनों अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है| (अनुच्छेद 338B) (102 वां संविधान संशोधन 2018) 
- वह केंद्र-राज्य, विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग के लिए एक अंतर्राज्यीय परिषद की नियुक्ति कर सकता है (अनु 263) 
- अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में प्रतिवेदन देने के लिए आयोग की नियुक्ति| अनुच्छेद 339(1) 
- समय-समय पर सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जांच के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन| (अनुच्छेद 340) 
- अनुच्छेद 79- 
- संसद का गठन- संसद का गठन राष्ट्रपति और दो सदन सदन (लोकसभा व राज्यसभा) से मिलकर होगा| अर्थात राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है| 
- अनुच्छेद 80(3)- 
- राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्यसभा में मनोनीत या नामनिर्देशित करता है| 
- अनुच्छेद 331- 
- यदि राष्ट्रपति की राय में आंग्ल भारतीय समुदाय का लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो लोकसभा में 2 आंग्ल भारतीयों को मनोनीत या नामनिर्देशित कर सकता है| 
- 104वां संविधान संशोधन 2019 द्वारा आंग्ल भारतीयों के मनोनयन के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है| 
- एंग्लो इंडियन की परिभाषा अनुच्छेद 366 में दी गई है (अनु-366 में कई शब्दों को परिभाषित किया गया) 
- एंग्लो इंडियन- ऐसा व्यक्ति जिसका पिता या पितृ-परंपरा में कोई अन्य पुरुष यूरोपीय उद्भव का है, जो भारतीय राज्य क्षेत्र में स्थायी अधिवासी हो तथा माता भारतीय हो, ऐसे माता-पिता से जन्मा व्यक्ति एंग्लो इंडियन होगा| 
- अनुच्छेद 85 ‘संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन’ 
- 85 (1)- राष्ट्रपति उचित समय व स्थान पर (जो राष्ट्रपति ठीक समझे) संसद के प्रत्येक सदन को अधिवेशन के लिए आहूत करेगा (बुलाना) 
- 85 (2)(क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा| 
- 85(2)(ख) लोकसभा का विघटन कर सकेगा| 
- अनुच्छेद 86– सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति को अधिकार 
- 86(1) राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा| 
- 86(2) राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदन को लंबित विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश भेज सकेगा| 
Note- राष्ट्रपति विधायी विषयों के अलावा अन्य मामले पर भी संदेश भेज सकता है| सदन संदेश द्वारा अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा|
- अनुच्छेद 87- ‘राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण’ 
- 87(1) राष्ट्रपति लोकसभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन के बाद प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और संसद को उसके आह्वान का कारण बताएगा| 
- अनुच्छेद 99- संसद सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान 
- राष्ट्रपति या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति द्वारा संसद के प्रत्येक सदस्य को शपथ दिलायी जाती है| 
- अनुच्छेद 108- 
- किसी विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में मतभेद होने पर राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है| 
- अनुच्छेद 111 विधेयक पर अनुमति 
- जब कोई विधेयक सदन के दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए आता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं - 
- विधेयक पर अनुमति दे सकता है| 
- विधेयक पर अनुमति रोक सकता है| 
- वह विधेयक (यदि विधेयक धन विधेयक नहीं है) को संदेश के साथ संसद को पुनर्विचार हेतु लौटा सकता है| 
Note- लेकिन यदि संसद इस विधेयक को संशोधन या बिना संशोधन के पारित कर पुन: राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य है|
- विधेयक पर राष्ट्रपति द्वारा अनुमति देने की समय सीमा निर्धारित नहीं है| 
- राष्ट्रपति के पास संसद द्वारा पारित विधेयकों पर वीटो शक्ति होती है| 
वीटो शक्ति (निषेधाधिकार शक्ति)-
- वीटो लेटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है रोकना| वैसे सविधान में वीटो शक्ति का उल्लेख नहीं| 
- विश्व में कार्यकारी प्रमुखों के पास चार प्रकार की वीटो शक्तियां प्राप्त हैं- 
- विशेषित वीटो (Qualified Veto) 
- आत्यंतिक वीटो (Absolute Veto) 
- निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto) 
- जेबी वीटो (Pocket Veto) 
Note - भारतीय कार्यकारी प्रमुख (राष्ट्रपति) के पास विशेषित वीटो की शक्ति नहीं बाकि तीन शक्तियां प्राप्त है| विशेषित वीटो का प्रयोग अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है|
- विशेषित वीटो- 
- इसमें राष्ट्रपति विधेयक पर स्वीकृति देने से मना कर देता है, तो विधायिका द्वारा 2/3 बहुमत से इस वीटो को समाप्त किया जा सकता है| 
- यह अमेरिका के राष्ट्रपति को प्राप्त है| 
- आत्यंतिक वीटो- 
- इसमें भी राष्ट्रपति विधेयक पर स्वीकृति देने से मना कर देता है| 
- यह दो मामलों में प्रयोग किया जाता है- 
- गैर- सरकारी सदस्यों के विधेयक के संबंध में 
- सरकारी विधेयक के संबंध में जब मंत्रिपरिषद भंग हो जाये या त्यागपत्र दे दे और नया मंत्रीपरिषद पुराने मंत्रीपरिषद के विधेयक पर अनुमति न देने की सलाह राष्ट्रपति को दें| 
- Note- ब्रिटेन के क्राउन के पास आत्यंतिक वीटो का परमाधिकार है 
- निलंबनकारी वीटो- 
- राष्ट्रपति जब किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाता है, तब इस वीटो का प्रयोग किया जाता है | 
- संसद सामान्य बहुमत से इस वीटो का अध्यारोहण (समाप्त) कर सकती है| 
- Note– फ्रेंच राष्ट्रपति का वीटो इस प्रकार का है| 
- जेबी वीटो- 
- इस मामले में राष्ट्रपति न सहमति देता है, न ही अस्वीकृत करता है और न ही लौटाता है, परंतु अनिश्चित काल के लिए निलंबित कर देता है| ऐसी परिस्थिति में विधेयक समाप्त हो जाता है| 
- सन 1986 राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह द्वारा इस वीटो का प्रयोग सर्वप्रथम किया गया था| जैलसिंह ने राजीव गांधी सरकार के भारतीय डाक (संशोधन) विधेयक के संदर्भ में वीटो का प्रयोग किया था| इस विधेयक के अनुसार डाकिया किसी भी लिफाफे को खोल कर देख सकता था| 
- यह अमेरिका के राष्ट्रपति पर आधारित शक्ति है, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति की स्वीकृति समय-सीमा 10 दिन है, लेकिन भारत में कोई समय-सीमा नहीं है| 
Note- संविधान संशोधन विधायकों के संबंध में राष्ट्रपति के पास किसी भी प्रकार की वीटो शक्ति प्राप्त नहीं है| 24 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1971 द्वारा इस प्रकार के विधेयक पर राष्ट्रपति को अनुमति देने के लिए बाध्यकारी बना दिया है|
राज्य विधायिका के विधेयकों पर राष्ट्रपति का वीटो-
- अनुच्छेद 200- जब कोई विधेयक राज्य विधायिका द्वारा पारित होकर राज्यपाल के पास आता है तो राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैं– 
- विधेयक पर अनुमति दे सकता है| 
- विधेयक पर अनुमति रोक सकता है| 
- विधेयक को (धन विधेयक को छोड़कर) पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है| 
- विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है| 
- अनुच्छेद 201- जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित किया जाता है, तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं- 
- विधेयक पर अनुमति दे सकता है| 
- विधेयक पर अनुमति रोक सकता है| 
- विधेयक (धन विधेयक को छोड़कर) को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है| 
Note- राज्य विधायिका यदि विधेयक को पुन: पारित (संशोधन या बिना संशोधन के) कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है अर्थात राज्य विधायिका राष्ट्रपति के वीटो को निरस्त नहीं कर सकती है|
- यह शक्ति कनाडा के गवर्नर जनरल को प्राप्त है| 
- अनुच्छेद 123 ‘अध्यादेश जारी करने की शक्ति’ 
- संसद के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति- 
- जब संसद का एक या दोनों सदन सत्र में नहीं है तथा राष्ट्रपति को समाधान हो जाता है कि तुरंत कार्यवाही करना आवश्यक है तो राष्ट्रपति अध्यादेश प्रख्यापित करेगा| 
- अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के अधिनियम का होता है| किन्तु ऐसा अध्यादेश- 
- (क) अध्यादेश को संसद की पुन: बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा| यदि संसद अध्यादेश पारित कर देती है तो कानून बन जाता है| यदि संसद कोई कार्यवाही नहीं करती है तो पुन: बैठक के 6 सप्ताह में अध्यादेश समाप्त हो जाएगा| संसद इसका निरनुमोदन कर देती है तो 6 सप्ताह से पहले ही समाप्त हो जाएगा| 
- (ख) राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश किसी भी समय वापस लिया जा सकता है| 
स्पष्टीकरण- अनुच्छेद 123
- राष्ट्रपति अध्यादेश मंत्रिपरिषद की सलाह पर जारी करता है व वापस लेता है| 
- अध्यादेश अधिनियम की तरह भूतलक्षी (पूर्ववर्ती) हो सकता है| 
- यह किसी अधिनियम या विधि या अध्यादेश का संशोधन या निरसन कर सकता है| 
- अध्यादेश सविधान संसोधन के लिए जारी नहीं किया जा सकता है| 
- “तुरंत कार्यवाही” का संबंध अनुच्छेद 352 के अधीन आपात से नहीं है| अत: राष्ट्रीय आपात न होने पर भी अध्यादेश जारी किया जा सकता है| 
- राष्ट्रपति अध्यादेश उन्हीं विषयों पर जारी कर सकता है, जिन पर संसद को विधि बनाने की शक्ति है| 
- अध्यादेश नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकता है, क्योंकि अनुच्छेद 13 क के अधीन विधि शब्द के अंतर्गत अध्यादेश भी है| 
- दिल्ली और पुडुचेरी संघ राज्यक्षेत्र में उपराज्यपाल इस निमित्त राष्ट्रपति के अनुदेश मिलने के पश्चात ही अध्यादेश जारी कर सकता है| 
- लेकिन जम्मू कश्मीर संघ क्षेत्र के उपराज्यपाल को राष्ट्रपति के इस प्रकार के निर्देश की आवश्यकता नहीं है| 
- R C कूपर्स बनाम भारत संघ वाद 1970- राष्ट्रपति का समाधान असदभावपूर्ण होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है| 
- इंदिरा सरकार ने 123(4) जोड़कर यह अधिकथित किया कि राष्ट्रपति का समाधान अंतिम होगा और किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है| (38 वां संविधान संशोधन 1975) 
- जनता सरकार ने इसे पलट दिया कि राष्ट्रपति के समाधान को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है| (44 वा संविधान संशोधन 1978) 
- अंतिम परिणाम यह है कि (कूपर्स वाद) राष्ट्रपति के समाधान को असद्भावपूर्ण होने पर न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है| 
D.C वधवा बनाम बिहार राज्य 1987-
- 1967 से 1981 के बीच बिहार के राज्यपाल ने 256 अध्यादेश जारी कर दिए थे| बार-बार अध्यादेश जारी करके अध्यादेशो को 1 से 14 वर्ष तक प्रभावी बनाए रखा था| 
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आध्यादेशों को विधानसभा द्वारा विधेयक पारित करने का प्रयास न करके बार-बार जारी करना संविधान का उल्लंघन है| अतः पुनः प्रकाशित अध्यादेश रद्द होने चाहिए| 
- अध्यादेश द्वारा विधि बनाने की शक्ति को विधायिका की विधायी शक्ति का विकल्प नहीं बनाना चाहिए| 
- S.C ने कहा कि ‘अध्यादेश राज’ को समाप्त किया जाय| 
- अध्यादेश अधिकतम 6 माह 6 सप्ताह तक हो सकता है क्योंकि 6 सप्ताह की अवधि, सदन की पुन: बैठक के बाद से गिनी जाती है तथा दो सत्रों के मध्य अधिकतम अंतर छ: माह हो सकता है| 
अनुच्छेद 124-
- उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है| 
अनुच्छेद 217-
- प्रत्येक उच्च न्यायालय (H.C) के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है| 
अनुच्छेद 222-
- राष्ट्रपति CJI से परामर्श करने के बाद H.C के किसी न्यायाधीश का स्थानांतरण अन्य H.C में कर सकता है| 
अनुच्छेद 72 ‘क्षमा संबंधी शक्ति’
- राष्ट्रपति निम्न मामलों में सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, परिहार, विराम, प्रविलंबन (निलंबन), लघुकरण कर सकता है- 
- सैन्य न्यायालय द्वारा दिए गए दंड के मामले में 
- केंद्रीय कार्यपालिका की शक्ति के विस्तार वाले विषय पर दिए गए दंड के मामले में| 
- मृत्युदंड के मामले में| 
- क्षमा- इसमें दोषी के सभी दंड पूर्णतया माफ कर दिए जाते हैं| 
- लघु करण- इसमें दंड का स्वरूप बदल कर दंड को कम किया जाता है| जैसे- मृत्युदंड को कठोर कारावास में बदलना या कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना 
- परिहार- दंड की प्रकृति में परिवर्तन किए बिना दंड को बदलना| जैसे- 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में बदलना| 
- विराम- किसी विशेष परिस्थिति में दंड को कम करना| जैसे- शारीरिक अपंगता, महिला की गर्भावस्था 
- प्रविलंबन (निलंबन)- किसी दंड (विशेषकर मृत्युदंड) पर अस्थायी रोक लगाना, ताकि दोषी को क्षमा याचना का समय मिल सके| 
- श्री हरण उर्फ़ मुरूगन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया वाद 2001- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 72 व 161 के अधीन दाखिल की गई दया याचिका के निस्तारण में विलंब संविधान के अनुच्छेद 21 के विरुद्ध है| 
- केहर सिंह वाद 1989- इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति पर कुछ सिद्धांत निर्धारित किए- 
- किसी अपराधी को राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है| 
- क्षमादान राष्ट्रपति की विवेकीय शक्ति है, इसमें न्यायालय के मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती| 
- इस शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से करेगा| 
- क्षमादान की याचिका एक बार रद्द होने पर दोबारा दायर नहीं होगी| 
- मारूराम वाद- अनुच्छेद 72 का न्यायिक पुनरावलोकन हो सकता है, अगर क्षमादान का निर्णय अतर्कसंगत व मनमाना है तो| 
- यह राष्ट्रपति का स्वविवेक शक्ति नहीं है, इससे संबंधित मामले गृह मंत्रालय के अधीन है| 
- दया याचिका के संदर्भ में निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति हेतु कोई अवधि निर्धारित नहीं है| 
अनुच्छेद 143- “उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति”
- इस अनुच्छेद के द्वारा राष्ट्रपति दो मामलों में उच्चतम न्यायालय से राय ले सकता है- 
- सार्वजनिक महत्व के किसी मामले पर विधिक प्रश्न उठने पर 
- सविधान प्रारंभ से पहले (1947 से 1950 के बीच) की गई संधि और करारो से संबंधित विवाद हो| [भारत सरकार व शाही शासन के बीच की संधिया] 
- प्रथम मामले में उच्चतम न्यायालय सलाह दे भी सकता है तथा यदि पूछा गया प्रश्न व्यर्थ या अनावश्यक है तो मना भी कर सकता है| (कावेरी जलविवाद वाद 1992) 
- द्वितीय मामले में राष्ट्रपति को S.C द्वारा अपने मत देना अनिवार्य है| 
- दोनों ही मामलों में S.C की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं होती है अर्थात यह सलाह है, निर्णय नहीं| 
- अनुच्छेद 143 के अंतर्गत सलाह देने के लिए पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ का गठन किया जाता है| 
- सलाह राष्ट्रपति मंत्रीपरिषद की सिफारिश पर या स्वविवेक के आधार पर मांग सकता है| 
- स्वविवेक से इसलिए मांग सकता है, कि राष्ट्रपति संविधान के संरक्षण की शपथ लेता है| 
बेरुबारी वाद 1958-
- यह समझौता जवाहरलाल नेहरू व गुलाम नूर (पाकिस्तान का राष्ट्रपति) के मध्य हुआ था, जिसमें भारत का बेरुबारी स्थान पाकिस्तान को देने का समझौता किया गया| इस पर मंत्रिमंडल के कहने पर राजेंद्र प्रसाद (तत्कालीन राष्ट्रपति) ने S.C से अनुच्छेद 143 के तहत सलाह मांगी थी| 
- अनुच्छेद 110- धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही लोकसभा में पेश किया जाता है| 
- अनुच्छेद 112- वार्षिक वित्तीय विवरण (केंद्रीय बजट) को राष्ट्रपति वित्त मंत्री द्वारा संसद के समक्ष रखवाता है| 
- अनुच्छेद 267- आकस्मिक निधि से खर्चा राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही किया जाता है| 
- अनुच्छेद 280- वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति प्रत्येक 5 वर्ष में करता है| 
- अनुच्छेद 151- CAG अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, राष्ट्रपति इसे संसद के समक्ष रखवाता है| 
- अनुच्छेद 53(2)- राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर (समादेश) होता है| 
- वह तीनों सेनाओं (थल, जल, वायु सेना) के प्रमुखों की नियुक्ति करता है| 
- राष्ट्रपति युद्ध व युद्ध की समाप्ति की घोषणा करता है| 
- अंतरराष्ट्रीय संधिया व समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाते हैं| 
- राजदूतो व उच्चायुक्तो की नियुक्ति करता है| 
- Note- राष्ट्रमंडल देशों में उच्चायुक्त व अन्य देशों में राजदूत नियुक्त होते हैं| 
- विदेशी राजदूत राष्ट्रपति को परिचय पत्र देते हैं व राष्ट्रपति उनका स्वागत करता है| 
- राष्ट्रपति को आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिए तीन तरह की आपातकालीन शक्तियां संविधान के भाग- 18 के अंतर्गत दी गयी हैं- 
- राष्ट्रीय आपात (अनु- 352) 
- राष्ट्रपति शासन (अनु- 356) 
- वित्तीय आपात (अनु- 360) 
- राष्ट्रीय आपात (अनु- 352)- 
- अनु 352(1)- यदि राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से संपूर्ण भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह आपात की उद्घोषणा कर सकता है| 
- राष्ट्रीय आपातकाल संपूर्ण देश अथवा केवल इसके किसी एक भाग पर लागू किया जा सकता है (42वां संशोधन 1976) 
- स्पष्टिकरण- राष्ट्रपति यह उद्घोषणा वास्तविक युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह न होने पर भी कर सकता है जब राष्ट्रपति को लगे कि निकट भविष्य में ऐसा हो सकता है| (यह प्रावधान 38 वें संशोधन 1975 के द्वारा जोड़ा गया|) 
- बह्य आपातकाल- जब राष्ट्रीय आपात की घोषणा युद्ध व बाह्य आक्रमण के आधार पर हो| 
- आंतरिक आपातकाल- जब आपात की घोषणा सशस्त्र विद्रोह के आधार पर हो| 
- अनु- 352(3)- राष्ट्रीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर ही करेगा| (44वां संशोधन 1978) 
- संसदीय अनुमोदन- संसद के दोनों सदनों द्वारा आपातकाल की घोषणा का अनुमोदन एक माह में कर देना चाहिए, वरना आपातकाल समाप्त हो जाएगा| [अनू 352 (4)] 
- Note- प्रारंभ में यह अवधि 2 माह थी, लेकिन 44 वें संशोधन 1978 के द्वारा इसे एक माह कर दिया| 
- अनु 352(5)- दोनों सदनों द्वारा पारित होने पर यह उद्घोषणा 6 माह तक जारी रहेगी| प्रत्येक 6 माह में संसद के पुन: अनुमोदन से इसे अनंतकाल तक बढ़ाया जा सकता है 
Note- यह आवधिक संसदीय अनुमोदन 44 वे संशोधन 1978 के द्वारा जोड़ा गया, पहले अवधि मंत्रिपरिषद की इच्छा पर निर्भर थी|
Note- यदि लोकसभा का विघटन बिना अनुमोदन किए हो जाता हैं तथा राज्यसभा इसका अनुमोदन कर देती है तो यह लोकसभा के पुनर्गठन के बाद पहली बैठक से 30 दिन तक उद्घोषणा जारी रह सकती है| इस अवधि में लोकसभा द्वारा अनुमोदन कर देना चाहिए| (यह एक माह व छह माह दोनों मामलों में है)
- अनुच्छेद 352(6)- आपातकाल उद्घोषणा और इसके जारी रखने का प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत से पारित होना चाहिए| उस सदन के कुल सदस्यों का बहुमत तथा उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों का 2/3 बहुमत| 
- उद्घोषणा की समाप्ति- 
- अनुच्छेद 352(2)- राष्ट्रपति आपातकाल की उद्घोषणा को किसी भी समय दूसरी उद्घोषणा से समाप्त कर सकता है| 
- अनुच्छेद 352(7)- लोकसभा आपातकाल को समाप्त करने का प्रस्ताव पारित कर दे, तो राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा वापस ले लेगा| 
- अनुच्छेद 352(8)- आपातकाल समाप्ति के प्रस्ताव पर लोकसभा के 1/10 सदस्य हस्ताक्षर करके लिखित सूचना निम्न को देते हैं- 
- यदि लोकसभा सत्र में है, तो लोकसभा अध्यक्ष को| 
- यदि लोकसभा सत्र में नहीं है, तो राष्ट्रपति को| 
- ऐसे संकल्प पर विचार करने के लिए लोकसभा की विशेष बैठक सूचना प्राप्त होने के 14 दिन के भीतर बुलायी जाएगी| 
- राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा का प्रभाव- 
- केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रभाव- 
अनुच्छेद 353- कार्यपालिका शक्ति पर प्रभाव
- संघ की कार्यपालिका शक्तियों का विस्तार किसी भी राज्य को राज्य कार्यपालिका शक्तियों के प्रयोग के बारे में निर्देश देने तक हो जाता है| 
- Note- राज्य कार्यपालिका का निलंबन नहीं होता है| 
- संसद राष्ट्रीय आपात के दौरान संघ या संघ के अधिकारियों और प्राधिकारियों को संघ सूची के बाहर के विषयों पर बनाए गए कानूनों को लागू करने की शक्ति व कर्तव्य दे सकती है| (अनुच्छेद 353) 
- Note- इन दोनों प्रावधानों का विस्तार आपातकाल लागू होने वाले राज्य क्षेत्र तक ही नहीं वरन किसी भी राज्य पर हो सकता है| (42 वें संशोधन 1976 के द्वारा यह व्यवस्था की गई) 
अनुच्छेद 250- विधायी शक्ति पर प्रभाव
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद को राज्यसूची के विषय पर भी संपूर्ण भारत क्षेत्र या इसके किसी भाग पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है| 
- Note- यह विधि या कानून आपातकाल की समाप्ति के बाद 6 माह तक ही प्रभावी रहती है| 
- Note- विधानमंडल का निलंबन नहीं होता है| 
अनुच्छेद 354- वित्तीय शक्तियों पर प्रभाव
- राष्ट्रपति आपातकाल के दौरान राजस्व के संवैधानिक वितरण (अनुच्छेद 268, 269) को संशोधित कर सकता है| 
- राष्ट्रपति के ऐसे आदेश को संसद के दोनों सदनों के सभा पटल पर रखा जाना आवश्यक है| 
- यह संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहता है| 
- लोकसभा और राज्य विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव- 
- अनुच्छेद 83- लोकसभा का कार्यकाल सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे एक समय में 1 वर्ष के लिए (कितने भी समय तक) संसद विधि बनाकर बढ़ा सकती है| 
- अनुच्छेद 172- संसद विधि बनाकर विधानसभा का कार्यकाल सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे एक बार में 1 वर्ष (कितने भी समय तक) के लिए बढ़ा सकती है| 
- Note- आपातकाल की समाप्ति के बाद लोकसभा व विधानसभा का बढ़ा कार्यकाल अधिकतम 6 माह तक ही रह सकता है| 
- पांचवी लोकसभा (1971-77) का कार्यकाल दो बार बढ़ाया गया था| 
- इस लोकसभा का कार्यकाल 18 मार्च 1976 को समाप्त हो गया था| उसे 1 वर्ष के लिए 18 मार्च 1977 तक लोकसभा (कालावधि विस्तारण) अधिनियम 1976 द्वारा बढ़ाया गया| 
- फिर 1 वर्ष 18 मार्च 1978 तक लोकसभा (कालावधि विस्तारण) संशोधन अधिनियम द्वारा बढ़ाया गया| 
- हालांकि यह लोकसभा 5 वर्ष 10 माह 6 दिन के विस्तार के बाद 18 जनवरी 1977 को विघटित हो गई| 
- इस समय भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी| 
- मौलिक अधिकारों का प्रभाव- 
अनुच्छेद 358-
- जब राष्ट्रीय आपात की घोषणा की जाती है तो अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत: मौलिक अधिकार स्वत: निलंबित हो जाते हैं 
- 19 में प्रदत 6 स्वतंत्रताओं का निलंबन केवल युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही होता है, सशस्त्र विद्रोह के आधार पर नहीं होता है| (44 वें संशोधन 1978) 
- आपातकाल के दौरान अनुच्छेद-19 से असंगत विधियों के साथ-साथ कार्यकारी निर्णय को भी चुनौती नहीं दी जा सकती| (44 वां 1978) 
अनुच्छेद 359-
- यह अनुच्छेद (अनुच्छेद 20, 21 छोड़कर) राष्ट्रीय आपात के समय मूल अधिकारों के लागू करने के लिए न्यायालय में जाने के अधिकार को निलंबित करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकृत करता है| 
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत मूल अधिकार निलंबित नहीं होते हैं, उनका लागू होना निलंबित होता है| 
- राष्ट्रपति आदेश के माध्यम से किसी भी मूल अधिकार के लागू करने के लिए न्यायालय में जाने के अधिकार को निलंबित कर सकता है| 
- यह निलंबन आपातकाल की अवधि तक या आदेश में वर्णित अल्पाविधि तक लागू किया जा सकता है 
- निलंबन का आदेश पूरे देश या किसी भाग पर लागू किया जा सकता है| 
- आदेश को संसद के प्रत्येक सदन में रखना होता है| 
- अनुच्छेद 359 के तहत निलंबन तीनों परिस्थितियों (युद्ध, बाह्य आक्रमण व सशस्त्र विद्रोह) में किया जा सकता है| 
- Note- 44 वा संशोधन 1978 अनुच्छेद 20, अनुच्छेद 21 के लागू करवाने के लिए न्यायालय में जाने के अधिकार के निलंबन को प्रतिबंधित करता है| 
अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात अब तक तीन बार लग चुका है-
- 26 अक्टूबर 1962- 
- NEFA (नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) अब अरुणाचल प्रदेश में चीनी आक्रमण के कारण| (बाह्य आक्रमण) 
- राष्ट्रपति- सर्वपल्ली राधाकृष्णन 
- प्रधानमंत्री- जे.एल नेहरू 
- यह 10 जनवरी 1968 तक जारी रहा था, इसलिए 1965 में पाकिस्तान युद्ध के समय आपातकाल नहीं लगाना पड़ा| 
- 25 दिसंबर 1971- 
- पाकिस्तान आक्रमण के समय (बाह्य आक्रमण के आधार) 
- राष्ट्रपति- V.V गिरी 
- प्रधानमंत्री- इंदिरा गांधी 
- 25 जून 1975- 
- आंतरिक अशांति के कारण 
- राष्ट्रपति- फखरुद्दीन अली अहमद 
- प्रधानमंत्री- इंदिरा गांधी 
- आंतरिक अशांति का कारण- कुछ व्यक्ति पुलिस और सशस्त्र बलों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन और सामान्य कार्यकरण के विरुद्ध भड़का (उत्प्रेरित) कर रहे हैं| 
- दूसरी और तीसरी घोषणा 21 मार्च 1977 को वापस ले ली गई| 
- Note- 44 वें संशोधन 1978 के द्वारा आंतरिक अशांति की जगह सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया| 
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356)- 
- अन्य नाम- राज्य आपात या संवैधानिक आपात 
- यदि राष्ट्रपति को किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाने पर कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें उस राज्य का शासन संविधान के उपबंध के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है, तो राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा की जा सकती है| 
- अर्थात किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है| 
राष्ट्रपति शासन लगाने के दो आधार हैं-
- अनुच्छेद 355- बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्य की रक्षा करने का संघ का कर्तव्य 
- संघ का कर्तव्य है कि वह प्रत्येक राज्य की बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से संरक्षा करें तथा प्रत्येक राज्य की सरकार का संविधान के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करें| 
- अनुच्छेद 365- ‘संघ द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन करने में या उनको प्रभावी करने में असफलता का प्रभाव’- 
- संघ कार्यपालिका, शक्ति के प्रयोग के संबंध में राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है| निर्देशों का पालन न करने पर राष्ट्रपति यह मान सकता है कि शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चल रहा है| 
- संसदीय अनुमोदन तथा समयाविधि- 
अनुच्छेद 356 (3)-
- संसद के दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति शासन की घोषणा का अनुमोदन 2 माह के भीतर कर देना चाहिए अन्यथा घोषणा समाप्त हो जाएगी| 
अनुच्छेद 356 (4)
- संसदीय अनुमोदन के पश्चात यह घोषणा 6 माह तक चलती है| प्रत्येक 6 माह के बाद पुन: संसदीय अनुमोदन के द्वारा इस घोषणा को अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है| 
- NOTE- यदि लोकसभा का विघटन हो जाता है तथा राज्यसभा ने निश्चित समय में स्वीकृति दे देती है तो राष्ट्रपति शासन की घोषणा लोकसभा की पुन: बैठक के 30 दिन तक रहेगी इस दौरान लोकसभा द्वारा इस घोषणा का अनुमोदन कर देना चाहिए| 
- राष्ट्रपति शासन की घोषणा तथा इसे जारी रखने का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों द्वारा सामान्य बहुमत से पारित किया जाता है (अर्थात सदस्यों की उपस्थिति तथा मतदान का बहुमत) 
अनुच्छेद 356(5)-
- 44 वां संशोधन 1978 के द्वारा यह प्रावधान जोड़ा गया कि राष्ट्रपति शासन को 1 वर्ष से ज्यादा निम्न दो परिस्थितियों में ही बढ़ाया जा सकता है- 
- यदि पूरे भारत या इसके किसी भाग में अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपात लगा हो| 
- चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे कि संबंधित राज्य में विधानसभा के चुनाव के लिए कठिनाइयां उपस्थित हैं| 
- राष्ट्रपति शासन उद्घोषणा की समाप्ति 
- राष्ट्रपति द्वारा इस उद्घोषणा को दूसरी उद्घोषणा द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकता है| 
- राष्ट्रपति शासन के परिणाम- 
- अनुच्छेद 356 (क)- राष्ट्रपति संबंधित राज्य सरकार के राज्यपाल तथा अन्य प्राधिकारियों के सभी शक्तियां या कार्य अथवा कोई शक्ति या कार्य अपने हाथ में ले लेता है| 
- अनुच्छेद 356 (ख)- राष्ट्रपति घोषणा कर सकता है कि विधानमंडल की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी| 
- अनुच्छेद 356 (ग)- राष्ट्रपति संबंधित राज्य के किसी भी निकाय या प्राधिकारी से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का निलंबन कर सकता है, जिसे करना वह आवश्यक या वांछनीय समझे| 
- Note- राष्ट्रपति उच्च न्यायालय से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों का निलंबन नहीं कर सकता है| 
- Note- मंत्री परिषद को भंग किया जा सकता है 
अनुच्छेद 357- राष्ट्रपति शासन के अधीन विधायी शक्तियों का प्रयोग -
- विधानसभा का निलंबन या भंग किया जा सकता है| 
- अनुच्छेद 357(क)- संसद, राज्य के लिए विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा राष्ट्रपति द्वारा निमित अधिकारी को दे सकती है| 
- अनुच्छेद 357 (ख)- राष्ट्रपति या राष्ट्रपति द्वारा निमित अधिकारी, संघ या उसके अधिकारियों, प्राधिकारियों को शक्ति या कर्तव्य प्रदान करने के लिए विधि बना सकते हैं| 
- अनुच्छेद 357 (ग)- लोकसभा का सत्र न होने पर राज्य की संचित निधि से व्यय के लिए संसद की मंजूरी लंबित रहने तक ऐसे व्यय को राष्ट्रपति प्राधिकृत कर सकता है| 
- Note- संसद/ राष्ट्रपति/ अन्य विशेष प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कानून राष्ट्रपति शासन की समाप्ति के बाद भी प्रभाव में रहता है जब तक विधानमंडल या अन्य प्राधिकारी द्वारा उसका परिवर्तन/ निरसन/ संशोधन नहीं कर दिया जाता है| 
- अनुच्छेद 356 का प्रयोग- 
अब तक लगभग इसका प्रयोग 125 से अधिक बार किया जा चुका है
- सर्वप्रथम राष्ट्रपति शासन का प्रयोग 1951 में पंजाब राज्य में किया गया था| प्रथम आम चुनाव 1952 से पहले ही लग गया था| इसका अनुमोदन अंतरिम संसद द्वारा किया गया था| इस राष्ट्रपति शासन के साथ विधानसभा निलंबित हो गई| 
- आम निर्वाचन के पश्चात आंध्र प्रदेश पहला राज्य था जहां दल बदल और मुख्यमंत्री टी प्रकाशम के विरुद्ध विधानसभा द्वारा अविश्वास पारित होने के कारण 15 नवंबर 1954 को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था| 
- सबसे ज्यादा बार राष्ट्रपति शासन- 
- मणिपुर, केरल (पूर्व त्रावणकोर कोचीन स्टेट सहित), पंजाब (पूर्व पेप्सू स्टेट सहित) 10 बार 
- उत्तर प्रदेश 10 बार 
- बिहार 8 बार 
- Note- यद्यपि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन 10 बार पर लगा है किंतु अनुच्छेद 356 का प्रयोग 8 बार हुआ है| जब राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 से मणिपुर संघ राज्य क्षेत्र बना उसके बाद दो बार संघ राज्य क्षेत्र अधिनियम 1963 की धारा 51 के तहत राष्ट्रपति ने संघ राज्य क्षेत्र मणिपुर का प्रशासन सीधे अपने अधीन ले लिया| वही पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम 1971 द्वारा 21 जनवरी 1972 को राज्य बनने के बाद अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया गया| 
- सबसे अधिक समय- 
- जम्मू एंड कश्मीर 6 वर्ष 264 दिन 
- पंजाब 4 वर्ष 259 दिन 
- सबसे कम समय 
- कर्नाटक 7 दिन 
- तेलगाना व छत्तीसगढ़- यहां 356 के तहत राष्ट्रपति शासन नहीं लगा है| 
- राजस्थान में चार बार लग चुका है- 
- 1967 मुख्यमंत्री- मोहनलाल सुखाड़िया (सबसे कम समय लगा) 
- 1977 मुख्यमंत्री- हरिदेव जोशी 
- 1980 मुख्यमंत्री- भैरोंसिंह शेखावत 
- 1992 मुख्यमंत्री- भैरोंसिंह शेखावत (सबसे अधिक समय लगा) 
- दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)- 
- 69 वां संशोधन 1992 में दो नए अनुच्छेद जोड़े गए- 239AA व 239AB 
- 239AB- इस अनुच्छेद के तहत दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगता है| 
- S.R बोम्बई बनाम भारत संघ 1994- इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लागू करने के संबंध में निम्न निर्णय दिए- 
- राष्ट्रपति शासन लागू करने की राष्ट्रपति की घोषणा न्यायिक समीक्षा योग्य है| 
- संसद के दोनों सदनों के द्वारा घोषणा का अनुमोदन करने से पहले विधानसभा को भंग नहीं किया जा सकता है| 
- न्यायालय द्वारा राष्ट्रपति के अतार्किक कार्यों पर रोक लगाई जा सकती है| 
- न्यायालय राष्ट्रपति की घोषणा को असंवैधानिक और अवैध पाता है, तो विघटित विधानसभा और मंत्रीपरिषद पुन: कार्य करने लगेगी| 
- अनुच्छेद 356 के अधीन शक्तियों का प्रयोग विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए| 
- वित्तीय आपात (अनुच्छेद 360)- 
- उद्घोषणा का आधार- 
- यदि राष्ट्रपति को समाधान हो जाता है कि भारत या इसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग में वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है, तो राष्ट्रपति द्वारा वित्तीय आपात की घोषणा की जा सकती है| 
- 38 वे संशोधन 1975- राष्ट्रपति की वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने की संतुष्टि अंतिम और निर्णायक है, जिसे किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है| 
- 44 वा संशोधन 1978- इस संशोधन के द्वारा 38 वें संशोधन वाले प्रावधान को समाप्त कर दिया तथा कहा कि राष्ट्रपति की संतुष्टि न्यायिक समीक्षा योग्य है| 
- संसदीय अनुमोदन- 
- अनुच्छेद 360(2)- उद्घोषणा के बाद 2 माह में संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृति मिलना आवश्यक है नहीं तो घोषणा समाप्त हो जाएगी| 
- यदि वित्तीय आपात की उद्घोषणा के अनुमोदन के बिना लोकसभा विघटित हो जाए और राज्यसभा अनुमोदन कर दे तो इस उद्घोषणा का पुनर्गठित लोकसभा की प्रथम बैठक के 30 दिन में लोकसभा द्वारा अनुमोदन कर देना चाहिए अन्यथा यह उद्घोषणा समाप्त हो जाती है| 
- यदि संसद के दोनों सदन अनुमोदन कर देते हैं तो यह घोषणा अनिश्चित काल के लिए प्रभावी जाती है| 
- अनिश्चित काल के लिए प्रभावी होने के कारण- 
- इसकी अधिकतम समय सीमा निर्धारित नहीं है| 
- इसको जारी रखने के लिए पुन: अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है| 
- समाप्ति- राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय दूसरी उद्घोषणा द्वारा इसको वापस लिया जा सकता है 
- वित्तीय आपात घोषणा के प्रभाव- 
- अनुच्छेद 360 (4)- 
- (क) (1)-किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी वर्ग या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतन व भत्तों में कमी की जा सकती है| 
- (क) (2)- राज्य विधान मंडल द्वारा पारित धन विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित किया जा सकते हैं| 
- (ख)- संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी वर्ग या किसी वर्ग के व्यक्तियों के (जिसमें S.C व H.C के न्यायधीश भी आते हैं) वेतन भत्ते कम किए जा सकते हैं 
- अनुच्छेद 360 (3)- अनुच्छेद 360 (a)‘क’ के अंतर्गत कम करने के निर्देश संघ की कार्यपालिका देती है| 
- अनुच्छेद 360(4) ‘ख’ के अंतर्गत निर्देश राष्ट्रपति दे सकता है| 
- अब तक एक बार भी अनुच्छेद 360 का प्रयोग नहीं किया गया है| 
अब तक बने राष्ट्रपति
- राजेंद्र प्रसाद (24 जनवरी 1950 से 14 मई 1962)- 
- संविधान सभा द्वारा व आम चुनाव द्वारा निर्वाचित एकमात्र राष्ट्रपति है| 
- देश के प्रथम राष्ट्रपति 
- तीन बार (सबसे अधिक बार) राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति| 
- सबसे लंबे कार्यकाल वाले राष्ट्रपति| 
- इनको राजेंद्र बाबू या देश रत्न कहा जाता है| 
- 1962 में सेवानिवृत्ति के बाद इनको भारत रत्न मिला| 
- राजेंद्र प्रसाद की कृतियां- 
- बापू के कदमों में बाबू 
- इंडिया डिवाइडेड 
- सत्याग्रह ऐट चंपारण 
- गांधीजी की देन 
- भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र 
- राधाकृष्णन (14 मई 1962 से 13 मई 1967)- 
- प्रथम गैर राजनीतिक राष्ट्रपति रहे| 
- दार्शनिक होने के कारण इनको दार्शनिक राजा भी कहा जाता है 
- उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बनने वाले प्रथम व्यक्ति| 
- 5 सितंबर का शिक्षक दिवस इनके जन्म दिवस को मनाया जाता है| 
- इनको 1931 में शूरवीर की उपाधि दी| 
- 1954 में इस को भारत रत्न दिया गया| 
- प्रथम आपातकाल (भारत-चीन युद्ध 1962) लगा था| 
- डॉ जाकिर हुसैन (13 मई 1967 से 3 मई 1969)- 
- देश के प्रथम मुस्लिम (अल्पसंख्यक) राष्ट्रपति 
- सबसे कम कार्यकाल वाले राष्ट्रपति 
- 1963 में भारत रत्न व पदम विभूषण दिया गया| 
- पद पर रहते हुए निधन होने वाले प्रथम राष्ट्रपति थे| 
- एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति जिसने किसी भी प्रधानमंत्री को नियुक्त नहीं किया या शपथ नहीं दिलवाई| 
- राष्ट्रपति विशेष अभिभाषण (अनुच्छेद 87) हिंदी में पढ़ने वाले पहले राष्ट्रपति| 
कार्यवाहक राष्ट्रपति-
- V.V गिरी (तत्कालीन उपराष्ट्रपति) 
- मो.हिदायतुल्ला (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश) 
Note- इनके निधन के बाद दो कार्यवाहक राष्ट्रपति बने थे| V.V गिरी ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में शामिल हो जाने के कारण त्यागपत्र दे दिया था|
- वराहगिरी वेकंट गिरी [(3 मई 1969- 20 जुलाई 1969) (कार्यवाहक राष्ट्रपति) 
- (24 अगस्त 1969 - 24 अगस्त 1974), (राष्ट्रपति) 
- दूसरी वरीयता के आधार पर निर्वाचित होने वाले एकमात्र राष्ट्रपति| 
- 1975 में इन को भारत रत्न सम्मान दिया गया 
- एकमात्र ऐसे व्यक्ति जिन्होंने उपराष्ट्रपति, कार्यवाहक राष्ट्रपति, निर्वाचित राष्ट्रपति तीनों रूप में कार्य किया| 
- द्वितीय आपातकाल (भारत- पाक युद्ध 1971) लगा था| 
- फखरुद्दीन अली अहमद- (24 अगस्त 1974- 11 फरवरी 1977) 
- दूसरे मुस्लिम तथा पद रहते हुए निधन होने वाले दूसरे राष्ट्रपति| 
- इनके समय 25 जून 1975 से आंतरिक आपातकाल लगा था| 
- सबसे ज्यादा अध्यादेश जारी करने वाले राष्ट्रपति| 
- कार्यवाहक राष्ट्रपति 
- B.D जती (बसप्पा दानप्पा जती) (11 फरवरी 1977- 25 जुलाई 1977) 
- नीलम संजीव रेड्डी- (25 जुलाई 1977- 25 जुलाई 1982)- 
- निर्विरोध निर्वाचित होने वाले एकमात्र राष्ट्रपति 
- राष्ट्रपति बनने से पहले लोकसभा अध्यक्ष रहे थे| 
- देश की खराब आर्थिक स्थिति के कारण इन्होंने सैलरी का 30% हिस्सा ही लिया था| 
- ज्ञानी जैल सिंह (25 जुलाई 1982- 25 जुलाई 1987) 
- प्रथम सिख राष्ट्रपति थे| 
- इनके कार्यकाल में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर सिख समुदाय के गुस्से का शिकार होना पड़ा था| 
- पहले गृहमंत्री, जो राष्ट्रपति बने| 
- आर वेकंट रमन- (रामास्वामी वेंकट रमण) (25 जुलाई 1987– 25 जुलाई 1992) 
- सबसे अधिक उम्र में राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति 
- इसने चार प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य किया था| (राजनीति अस्थिरता का दौर) (राजीव गांधी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, पी वी नरसिम्हा राव) 
- इनके समय मताधिकार की न्यूनतम आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई (61 वा संशोधन 1988) 
- शंकर दयाल शर्मा (25 जुलाई 1992- 25 जुलाई 1997) 
- इनके समय पंचायती राज्य व शहरी स्वशासन से संबंधित 73 वां व 74वां संशोधन 1992 हुआ | 
- इनके समय भी 4 प्रधानमंत्री रहे (नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेई, देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल) 
- K.R (कोचेरिल रमन) नारायण (25 जुलाई 1997– 25 जुलाई 2002) 
- भारत के प्रथम दलित राष्ट्रपति 
- यह पूर्व में चीन के राजदूत रह चुके थे| 
- इनके निर्वाचन में पहली बार दिल्ली और पुडुचेरी विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों ने भाग लिया| इसी निर्वाचन से 50-50 प्रस्तावक व अनुमोदक और 15000 जमानत राशि का प्रावधान किया गया| 
- A.P.J अब्दुल कलाम (25 जुलाई 2002- 25 जुलाई 2007) 
- प्रथम वैज्ञानिक जो राष्ट्रपति बने| 
- इन्हे मिसाइल मैन भी कहा जाता है| 
- इन्होंने ‘अग्नि की उड़ान’ पुस्तक लिखी| 
- विजन 2020 का नारा दिया| 
- राष्ट्रपति बनने से पहले 1997 में भारत रत्न दिया गया| 
- पदम विभूषण (1990), पदम भूषण (1981) दिया गया| 
- पूरा नाम- अब्दुल फकीर जैनुला अबद्दीन अब्दुल कलाम 
- प्रतिभा पाटिल- (प्रतिभा देवी सिंह पाटिल) (25 जुलाई 2007 - 25 जुलाई 2012) 
- देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति 
- राजस्थान की प्रथम महिला राज्यपाल (2004 - 2007) 
- प्रणव मुखर्जी (25 जुलाई 2012- 25 जुलाई 2017) 
- प्रथम वित्तमंत्री, जो राष्ट्रपति बने थे 
- पुस्तक- ‘द कोलिएशन ईयर्स’1996-2012 
- रामनाथ कोविंद (25 जुलाई 2017- 25जुलाई 2022) 
- दूसरे दलित राष्ट्रपति थे | 
- 1994- 2006 तक राज्यसभा सदस्य रहे| 
- 2015- 2017 तक बिहार के राज्यपाल रहे थे| 
- राज्यपाल से राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्ति| 
- मुख्य न्यायधीश J.S खेहर ने इनको शपथ दिलायी थी| 
- राजनीतिक पार्टी- भारतीय जनता पार्टी 
- द्रौपदी मुर्मू (25जुलाई 2022…..) 
- भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने वाली जनजातीय समुदाय से संबंधित पहली महिला हैं| 
- मुर्मू, प्रतिभा पाटिल के बाद भारत की राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने वाली दूसरी महिला हैं| 
- देश की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति हैं। 
- भारत की आजादी के बाद पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति 
- झारखंड के राज्यपाल रही 
- ओडिशा विधानसभा व मंत्रिमंडल की सदस्य रही 
- भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया 
- चीफ जस्टिस एनवी रमना ने शपथ दिलाई। 
- डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ जाकिर हुसैन, वीवी गिरी, आर वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा व के आर नारायण राष्ट्रपति बनने से पूर्व उपराष्ट्रपति थे| 
- सर्वाधिक राष्ट्रपति तमिलनाडु से रहे हैं| तमिलनाडु से 3 राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, वेंकटरमन व अब्दुल कलाम रहे हैं| 




 
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