जर्मी बेंथम (Jeremy Bentham) 1748 -1832
जीवन परिचय-
जन्म-
15 फरवरी 1748
लंदन में एक धनी वकील परिवार में हुआ|
15 वर्ष की आयु में सन 1763 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के क्वींस महाविद्यालय से स्नातक की, जिसके पश्चात लिकन्स इन (Lincoln’s Inn) से बेरिस्ट्री की उपाधि ली तथा 1772 से वकालात शुरु कर दी|
बेंथम ने 1790 में फ्रांस में न्यायिक प्रतिष्ठान की स्थापना के लिए एक नई योजना (A New Plan for the Organisation of the Judicial Establishment) तैयार की थी, इसलिए 1792 में फ्रांस की राष्ट्रीय संसद ने बेंथम को ‘फ्रांसीसी नागरिक’ की उपाधि प्रदान की|
जेम्स मिल बेंथम का प्रमुख शिष्य था| महान अर्थशास्त्री रिकार्डों भी बेंथम का अनुयायी था| बेंथम ने रिकार्डों के बारे में कहा है कि “मैं मिल का आध्यात्मिक पिता था और मिल रिकार्डो का आध्यात्मिक पिता था, इस प्रकार रिकार्डो मेरा अध्यात्मिक पोत्र था|”
बेंथम को उपयोगितावाद का जनक माना जाता है|
बेंथम व्यक्तिवाद व उदारवाद का समर्थक, सुधारवादी विधिवेता तथा यथार्थवादी विचारक था|
बेंथम की प्रसिद्धि इंग्लैंड के बजाय दूसरे देशों में ज्यादा और शीघ्र फैली| हैजलिट “उसका नाम इंग्लैंड में कम, यूरोप में अधिकतर तथा चिली के मैदानों एवं मैक्सिको की खानों में अधिकतम हुआ है|”
6 जून 1832 को बेंथम की मृत्यु हो गयी| इसकी मृत्यु पर डॉयल ने कहा कि “इसके शिष्य समूह ने एक पितामह और एक अध्यात्मिक नेता के रूप में उसका सम्मान किया| उसकी एक देवता के रूप में प्रतिष्ठा हुई|”
बेंथम की रचनाएं-
बेंथम एक महान लेखक था| उसने नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि विषयों पर ग्रंथों की रचना की है|
मेरी पी.मैक के अनुसार 1770 से 1832 तक बेंथम प्रतिदिन 15 बड़े पृष्ठ लिखता था|
बेंथम के लेखों की पांडुलिपिया जो 148 बक्सों में बंद है, आज भी लंदन विश्वविद्यालय और ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है|
बेंथम की प्रमुख रचनाएं निम्न है-
Fragments on government (1776)
(शासन पर विचार)
इस पुस्तक में प्रसिद्ध विधिशास्त्री ब्लैकस्टोन की कानूनी टीका (Commentaries of English Law) की आलोचना की है|
इस पुस्तक का प्रकाशन बिना लेखक के नाम से हुआ था|
A defence of usury (1787)
An introduction to the principles of morals and legislation (1789)
यह बेंथम की सर्वोत्कृष्ट कृति मानी जाती है|
Discourses on civil and panel legislation (1802)
A theory of punishment and rewards (1811)
A treatise On judicial evidence (1813)
Easy on political tactics (1791)
Principles of international law
Constitutional code (1830)
Rationale of Evidence (1827)-
यह बेंथम की अंतिम पुस्तक थी, जिसका संपादन जे एस मिल ने किया|
Westminster Review- यह उपयोगितावाद से संबंधित समाचार पत्र था, जिसको बेंथम ने जेम्स मिल के साथ मिलकर निकाला था|
बेंथम ने अपनी कृतियों में कानून, संप्रभुता, न्याय प्रक्रिया, दंड, अधिकार, संसदीय सरकार आदि पर उपयोगितावाद पर आधारित विभिन्न रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं|
वेपर के अनुसार “बेंथम की कृतियां महत्वपूर्ण, सरल तथा मनोरंजक है|”
वैज्ञानिक औचित्य की दृष्टि से बेंथम ने विकास को आवश्यक समझा है तथा विकास को वह नवीन शब्द (New Lingo) की संज्ञा देता है|
मिस ड्यूमोंट (Dument) ने बेंथम की पुस्तकों का फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया, जिसके कारण बेंथम के विचार पुर्तगाल, स्पेन, दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप और रूस तक प्रचारित हुए|
बेंथम का उपयोगितावाद
उपयोगितावाद का विकास-
उपयोगितावाद 19वीं शताब्दी का दर्शन है| लेकिन आचारशास्त्र के सिद्धांत के रूप में इसका संबंध प्राचीन यूनान के एपिक्यूरियन संप्रदाय से माना जाता है| एपिक्यूरियन चिंतन के अनुसार ‘मनुष्य पूर्णतया सुखवादी है, वह सुख की ओर दौड़ता है तथा दुख से बचना चाहता है|’
17 वी सदी के सामाजिक अनुबंधनवादियों ने भी उपयोगितावादी परंपरा का कुछ विकास किया| हॉब्स ने मनोवैज्ञानिक भौतिकवाद के आधार पर मनुष्य को पशुवत आचरण करने वाला एक सुखवादी प्राणी बताया है|
18 वीं सदी के एक विचारक कंबरलैंड ने राज्य की उपयोगिता की तुलना में उसके नैतिक अस्तित्व और विवेकपूर्ण चेतना के सिद्धांतों को गौण बताया है|
डेविड ह्यूम ऐसे प्रथम आधुनिक विचारक है जिसने सर्वप्रथम अपनी पुस्तक Treatise of human 1739 में उपयोगितावादी दर्शन का स्पष्ट प्रतिपादन किया तथा मानव स्वभाव का केंद्र-बिंदु उपयोगितावाद को बताया है| (उपयोगितावाद का प्रथम विचारक)
हचेसन ने सबसे पहले ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ नामक वाक्यांश का प्रयोग किया| उसके बाद प्रीस्टले ने शासन की नीतियों के आधार के रूप में इस वाक्य का समर्थन किया|
सर्वप्रथम सुख और दुख शब्द प्रीस्टले ने दिए|
लेस्ली स्टीफैन के अनुसार “उपयोगितावाद का जैसा युक्ति संगत रूप डेविड ह्यूम प्रस्तुत किया वैसा 19वीं शताब्दी का अन्य कोई विचारक नहीं कर सका|”
वेपर के अनुसार “उपयोगितावाद के प्रवर्तक डेविड ह्यूम, प्रीस्टले और हचिसन थे|”
उपयोगितावाद क्या है-
उपयोगितावाद एक ब्रिटिश विचारधारा है|
डेविडसन “उपयोगितावाद में सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित है| उपयोगितावाद अधिकाधिक व्यक्तियों को सुख पहुंचाने में रुचि रखता है तथा व्यवहारिक कार्यों द्वारा बौद्धिक आधार पर लोगों की दशा सुधारने एवं सक्रिय राजकीय कानूनों द्वारा जन समूह के स्तर को ऊंचा उठाने में विश्वास करता है|”
इनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना “उपयोगितावाद आचारशास्त्र का एक सिद्धांत है, जो यह प्रतिपादित करता है कि जो कुछ उपयोगी है, वह श्रेष्ठ है और उपयोगिता विवेकपूर्वक निर्धारित की जाती है| सामाजिक. आर्थिक और राजनीतिक सिद्धांत एवं नीतियां उपयोगिता के सिद्धांत पर ही आधारित होनी चाहिए|”
हेलोवेल ने उपयोगितावाद को नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र को एक व्यापक वैज्ञानिक अनुभववाद के आधार पर प्रतिष्ठित करने का एक प्रयास कहा है|
उपयोगितावाद एक ऐसा दर्शन है, जो किसी वस्तु के नैतिक और भावात्मक पक्ष पर ध्यान न देकर उसके यथार्थवादी पक्ष को ही देखता है| उपयोगितावाद ने सुखवाद से प्रेरणा ली है|
उपयोगितावाद में किसी भी कार्य या वस्तु की उपयोगिता को सुख-दुख की मात्रा से आका जाता है|
अर्थात अच्छा कार्य वह है जिससे सुख प्राप्त होता है तथा बुरा कार्य वह है जिससे दुख प्राप्त होता है|
उपयोगितावाद प्रयोगात्मक और व्यवहार प्रधान है| इसका संबंध वास्तविकता से है, न कि काल्पनिक और अमूर्त सिद्धांतों से|
उपयोगितावादी सिद्धांत को मानने वाले सभी लोग व्यक्तिवादी हैं, जो यह मानते हैं कि राज्य व्यक्ति के लिए है, न कि व्यक्ति राज्य के लिए|
उपयोगितावाद के अनुसार किसी राजनीतिक कार्य का महत्व तभी है, जब उससे जनकल्याण हो तथा इसके अनुसार जनकल्याण लोगों के व्यैक्तिक सुखों का संग्रह मात्र है|
इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया गया है तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर केवल सार्वजनिक व्यवस्था और शांति का ही बंधन है है|
अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख ही उपयोगितावाद के अनुसार राज्य की प्रकृति तथा श्रेष्ठता की कसौटी है|
उपयोगितावाद से संबंधित प्रमुख विचारक-
डेविड ह्यूम, प्रीस्टले, हचिसन, पेले, हॉलबैक, हैल्युटियस, बेंथम, जेम्स मिल, जॉन ऑस्टिन, जॉर्ज ग्रोट, जॉन स्टूअर्ट मिल, मॉल्सबर्थ, एलेग्जेंडर बैन आदि|
बेंथम का उपयोगितावाद-
प्रीस्टले द्वारा रचित ‘Easy on government’ का बेंथम पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा है|
बेंथम ने ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ का अपना प्रिय वाक्यांश प्रीस्टले की पुस्तक ‘Easy on government’ से ग्रहण किया था| प्रीस्टले ने यह वाक्य हचिसन से लिया था|
उपयोगितावाद को लोकप्रिय करने व शक्तिशाली रूप देने का श्रेय बेंथम को दिया जाता है| इसी कारण उपयोगितावाद को बेंथमवाद भी कहा जाता है|
बेंथम का उपयोगितावाद सुख-दुख की मात्रा पर आधारित है| मानव के सभी कार्यों की कसौटी उपयोगिता है| जिस कार्य से मनुष्य को सुख प्राप्त होता है वह कार्य उपयोगी व उचित है तथा जिस कार्य से मनुष्य को दुख प्राप्त होता है वह कार्य अनुपयोगी व अनुचित है| यह उपयोगितावाद का सिद्धांत मानव कार्यों के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यों में भी लागू होता है|
बेंथम ने अपनी रचना ‘Principle of Moral and Legislation’ पुस्तक में मानव जीवन के दो स्वामी बताता है- सुख और दुख|
बेंथम के अनुसार किसी वस्तु की उपयोगिता का एकमात्र मापदंड यह है, कि वह कहां तक सुख में वृद्धि करती है और दुख को कम करती है|
बेंथम “अगर किसी चीज से मनुष्यों के सुखों के कुल योग में वृद्धि होती है या दुखों के कुल योग में कमी होती है तो वह चीज उसके हित में है|”
बेंथम के विचारों में सुख स्वयं जीवन का साध्य है, शेष सभी वस्तुएं सदाचार सुख प्राप्ति के साधन है|
इस प्रकार उपयोगितावाद स्वहित, अहमदवाद, व्यक्तिवाद पर आधारित है|
बेंथम के अनुसार सुख चार साधनों से प्राप्त किए जा सकते हैं-
धर्म द्वारा
राजनीति द्वारा
नैतिक कार्य से
भौतिक साधनों से (शारीरिक स्रोत)
सुख की प्राप्ति के साधन के आधार पर सुख चार प्रकार का है-
धर्म प्रदत सुख
राजनीति प्रदत सुख
नैतिक सुख
प्राकृतिक /भौतिक सुख
बेंथम के अनुसार सुख-दुख मात्रात्मक है गुणात्मक नहीं| बेंथम का कथन है कि “सुख की मात्रा बराबर होने पर बच्चों का खेल पुष्पिन और काव्य का अध्ययन एक कोटी के हैं|”
सुख दुख का वर्गीकरण और उसका मापदंड-
बेंथम का मानना है कि सुख-दुख को मापा जा सकता है| उपयोगितावाद में प्रत्येक कार्य के परिणाम पर विचार किया जाता है| उसी को उपयोगी माना जाता है, जो सुख में वृद्धि करें तथा दुख में कमी करें अत: उपयोगितावाद को परिणामवाद भी कहा जाता है|
बेंथम ने सुख व दुख को दो भागों में बांटा है- (1) सामान्य व (2) जटिल
सामान्य सुख के 14 प्रकार बताए हैं- 1 इंद्रिय सुख 2 वैभव सुख 3 कौशल का सुख 4 मित्रता का सुख 5 यश का सुख 6 शक्ति या सत्ता का सुख 7 कल्पना का सुख 8 धार्मिक सुख 9 दया का सुख 10 निर्दयता का सुख 11 स्मृति सुख 12 आशा का सुख 13 संपर्क का सुख 14 सहायता का सुख
सामान्य दुख के 12 प्रकार बताए हैं- 1 दरिद्रता 2 भावना 3 हिचकिचाहट 4 शत्रुता 5 अपयश 6 धार्मिकता 7 दया 8 स्मृति 9 कल्पना 10 आशा 12 संपर्क
बेंथम ने सुख-दुख की मात्रा निर्धारित करने के लिए सुखवादी मापक यंत्र (Felicific calculus) प्रस्तुत किया है| इसे Hedonic Calculus भी कहा जाता है|
बेंथम ने सुख मापने का मानचित्र दिया है, जिसको Spring of Action कहा जाता है|
सुख-दुख का मापदंड निर्धारित करने के 7 आधार-
बेंथम ने अपनी पुस्तक Principal of Morals and Legislation के चतुर्थ अध्याय में सुख-दुख का मापदंड निर्धारित करने के 7 तत्व बताए हैं-
तीव्रता (2) कालावधि (3) निश्चितता (4) समय की निकटता अथवा दूरी (5) जनन शक्ति (उर्वरता) (6) विशुद्धता (7) विस्तार
प्रथम 6 आधार व्यक्तिगत सुख-दुख के मापदंड हैं, जबकि 7वां समूह के सुख दुख (अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख) का मापदंड है|
बेंथम के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का उद्देश्य अधिकतम सुख प्राप्त करना होता है|
बेंथम सुख-दुख का अंतर 32 लक्षणों के आधार पर बताया है|
बेंथम ने राज्य का उद्देश्य ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ माना है| राज्य के वही कार्य उपयोगी है, जो अधिकतम व्यक्तियों को सुख पहुंचाते हैं|
विधायक को कानून बनाते समय भी अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का ध्यान रखना चाहिए|
इस तरह बेंथम का उपयोगितावाद सुखवाद, व्यक्तिवाद, मात्रात्मक व परिणामवाद पर आधारित है|
बेंथम के उपयोगितावादी सिद्धांत की आलोचना-
बेंथम के अनुसार मनुष्य के संपूर्ण व्यवहार को सुख-दुख निर्धारित करते हैं, जो सही नहीं है|
अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का पता लगाना कठिन है|
सुख भौतिक न होकर मानसिक होता है|
सुखों के गुणात्मक भेद की उपेक्षा की है|
सुखों को मापा नहीं जा सकता है| डेविडसन के अनुसार “8 दुखों में से 4 सुखों को घटाने की बात मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं हो सकती है|”
व्यक्ति और समाज की उपयोगिता के बीच सामंजस्य का अभाव| मैक्सी “बेंथम ने, जहां कहीं भी उन्हें दोनों के बीच का चयन का अवसर मिला है व्यक्तिवादी हित को प्रधानता दी है| वे दोनों के मध्य संतुलन स्थापित नहीं कर सके|”
बहुमत के अत्याचार को प्रोत्साहन| हेलोवेल “बेंथम का सिद्धांत बहुमत के अत्याचार को प्रोत्साहित करने वाला सिद्धांत है|” जॉन रॉल्स तथा रोबर्ट नॉजिक भी बहुमत के अत्याचार के संबंध में बेंथम के आलोचक हैं|
मौलिकता का अभाव, क्योंकि इन्होंने अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख हचिसन से ग्रहण किया है|
बेंथम के राजनीतिक विचार-
बेंथम के राजनीतिक विचारों को दो भागों में बांटा जा सकता है-
निषेधात्मक (2) विधेयात्मक
निषेधात्मक राजनीतिक विचार- इसमें उन विचारों को शामिल करते हैं, जिसमें पूर्ववर्ती राजनीतिक धारणाओं का खंडन किया है|
विधेयात्मक राजनीतिक विचार- इसमें बेंथम द्वारा प्रतिपादित राज्य, विधि, प्रभुसत्ता संबंधी विचारों को शामिल करते हैं|
निषेधात्मक राजनीतिक विचार-
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का खंडन-
बेंथम की आदर्शवादी और काल्पनिक सिद्धांतों में कोई रुचि नहीं थी| बेंथम ने जीवन की व्यवहारिक समस्याओं को अधिक महत्व दिया है|
बेंथम ने विशेष रुप से जॉन लॉक द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक अधिकार को पूर्णत अमान्य ठहराया है|
बेंथम प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा को मूर्खतापूर्ण, कल्पित, आधारहीन अधिकार एवं आध्यात्मिक तथा अराजक विभृम, शब्दाडंबर मात्र, कुबुद्धि अर्थहीन विचार और प्रमाद का गड़बड़ घोटाला बताया है|
बेंथम के अनुसार प्राकृतिक अधिकार “बैशाखियों के सहारे खड़ा बकवास मात्र है|” , “प्राकृतिक अधिकार अलंकारिक बकवास है|” , “प्राकृतिक अधिकार व प्राकृतिक कानून आतंकवादी भाषा के समान है, जिस पर कोई सीमा नहीं होती|”
बेंथम प्राकृतिक अधिकारों का खंडन अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख के आधार पर करता है| बेंथम के अनुसार प्राकृतिक अधिकारों से व्यक्ति के सुख में कोई वृद्धि नहीं होती है|
बेंथम ने वैधानिक अधिकारों का समर्थन किया है| बेंथम के अनुसार अधिकार मानव के सुखममय जीवन के वे नियम है जिन्हें राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होती है| राज्य ही अधिकारों का स्रोत होता है| कोई भी अधिकार राज्य के ऊपर नहीं है|
बेंथम पूर्णत: समानाधिकार का भी खंडन करता है| बेंथम के अनुसार पूर्ण समानता संभव नहीं है और पूर्ण समानता सब प्रकार के शासन तंत्र की विरोधी है|
स्वतंत्रता का विरोध-
बेंथम फ्रेंच क्रांतिकारियों के नारे ‘स्वतंत्रता, समानता भातृत्व’ की आलोचना करता है तथा कहता है कि “सुख ही अंतिम उद्देश्य है और स्वतंत्रता की उपयोगिता सुख (सुख में वृद्धि) की कसौटी है|”
स्वतंत्रता के संबंध में बेंथम का कहना है कि “मनुष्य बिना एक भी अपवाद के, दासता की स्थिति में जन्म लेते हैं|”
बेंथम बेंथम “व्यक्ति सुरक्षा चाहते हैं, न कि स्वतंत्रता|”
बेंथम ने प्राकृतिक स्वतंत्रता व नागरिक स्वतंत्रता के मध्य अंतर किया है| बेंथम के अनुसार “प्राकृतिक स्वतंत्रता मेरी वह स्वतंत्रता है जिसके अनुसार मैं इच्छा अनुसार कुछ भी कर सकता हूं पर नागरिक स्वतंत्रता के अनुसार मैं वही कर सकता हूं जो मेरे समुदाय के हित में हो|”
Note- बेंथम ने प्राकृतिक कानूनों की भी आलोचना की है|
अनुबंधनवादी धारणा का खंडन-
बेंथम ने अनुबंध सिद्धांत को शुद्ध कल्पना एवं झूठ बताया है| बेंथम ने लिखा है कि “प्राकृतिक अवस्था इतनी अवास्तविक है, कि उसे नहीं माना जा सकता|”
बेंथम के अनुसार राज्य, राजनीतिक समाज, अधिकार, कर्तव्य आदि किसी समझौते के परिणाम नहीं है| व्यक्ति राजाज्ञा का पालन इसलिए नहीं करता है कि उसके पूर्वजों ने कोई समझौता किया था, बल्कि इसलिए करता है कि ऐसा करना उसके लिए उपयोगी है| इस प्रकार राजाज्ञा का पालन व्यक्ति की आदत बन जाती है| अतः आज्ञा पालन की आदत ही समाज और राज्य का आधार है, समझौता नहीं|
बेंथम “मैंने प्राथमिक संविदा छोड़ दी है और इस मिथ्या प्रलाप को आवश्यकता वाले उन व्यक्तियों के मनोरंजन के लिए छोड़ दिया है|”
ईसाई नैतिकता का विरोध-
बेंथम नैतिकता तथा धर्म का विरोधी है| बेंथम के मत में नैतिकता व धर्म तभी स्वीकारणीय है, जब व्यक्ति का सुख बढ़ाएं तथा दुख कम करें|
बेंथम का उपयोगितावाद धर्मनिरपेक्ष राज्य का समर्थक है|
विधेयात्मक राजनीतिक विचार-
राज्य संबंधी विचार-
बेंथम के राज्य संबंधी विचारों का आधार उपयोगितावाद है|
बेंथम के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का कारण आज्ञा पालन की आदत है| लोगों में आज्ञा पालन की आदत इसलिए आती है कि वह उनके लिए उपयोगी है और सामान्य सुख को बढ़ाने वाली है| राज्य की आज्ञा पालन से होने वाली हानि, अवज्ञा से होने वाली हानि से कम है|”
बेंथम के अनुसार राज्य एक कृत्रिम संस्था है| राज्य मनुष्यों का एक ऐसा समूह है, जिसे मनुष्य ने अपने सुख वृद्धि के लिए संगठित किया है|
राज्य का उद्देश्य ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ है| अधिकतम सुख राज्य के सदस्यों के व्यक्तिगत सुखों का योग मात्र है, जिसमें समाज का सामूहिक हित शामिल नहीं है|
बेंथम राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य मानता है|
वेपर के अनुसार “बेंथम का राज्य ऐसा राज्य नहीं ,है जिसमें स्वतंत्रता को स्वयं एक उद्देश्य माना जाए, बेंथम के राज्य का उद्देश्य अधिकतम सुख है, अधिकतम स्वतंत्रता नहीं|” वेपर ने बेंथम के राज्य को नकारात्मक राज्य कहा है|
बेंथम व्यक्ति के कल्याण को समाज का कल्याण मानता है, इस तरह बेंथम व्यक्तिवाद का समर्थक है|
बेंथम राज्य को एक संप्रभु संस्था मानता है| उसने राज्य को ‘वैधानिक संप्रभु’ कहा है, उसकी संप्रभुता असीमित व निरपेक्ष है|
बेंथम के अनुसार राज्य एक विधि-निर्माता निकाय है, न कि एक नैतिक समुदाय|
बेंथम के अनुसार यदि सरकार अपने कर्तव्य अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का पालन नहीं करती है तो जनता को उसकी आज्ञा की अवहेलना का अधिकार है|
कानून संबंधी विचार-
बेंथम वैधानिक कानून का समर्थक है|
बेंथम कानून को संप्रभु का आदेश मानता है| राज्य संप्रभु है तथा विधि-निर्माता निकाय है| संप्रभु के आदेशों (कानूनों) की पालना करना प्रत्येक नागरिक कर्तव्य है, क्योंकि आज्ञापालन में ही उसका और सबका कल्याण निहित है|
बेंथम मुख्यतः दो प्रकार का कानून मानता है-
दैवीय कानून
मानवीय कानून|
दैवीय कानून रहस्यमय और ज्ञानातीत होते हैं, उनका स्वरूप भी निश्चित नहीं होता है अतः मानवीय कानूनों का निश्चित रूप राज्य के लिए आवश्यक है|
मानवीय कानून भी चार प्रकार के होते हैं-
संवैधानिक कानून
नागरिक कानून
फौजदारी कानून
अंतरराष्ट्रीय कानून
बेंथम के अनुसार कानून की परिभाषा- “कानून एक राजनीतिक समाज के आदेशों के रूप संप्रभु की इच्छा की अभिव्यक्ति है, जिसका सदस्य स्वभाव से पालन करते हैं|”
बेंथम के मत में कानून एक प्रतिबंध है, जो स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है क्योंकि राज्य का उद्देश्य अधिकतम सुख है, अधिकतम स्वतंत्रता नहीं| यहां बेंथम जॉन लॉक, रूसो, मांटेस्क्यू की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का खंडन करता है|
बेंथम के मत में विधि का औचित्य उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर करना चाहिए| विधियों की उपयोगिता तीन प्रकार से सिद्ध होती हैं-
वह राज्य के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान करें|
उससे लोगों की आवश्यकता की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो|
प्रत्येक नागरिक एक दूसरे के साथ समानता का अनुभव करें|
बेंथम आर्थिक क्षेत्र में अस्हस्तक्षेप की नीति को अपनाकर मुक्त व्यापार एवं स्वच्छंद प्रतियोगिता का समर्थन करता है|
बेंथम ने कानून के दो कार्य बतलाए हैं-
स्वहित
परहित
बेंथम के अनुसार विधि निर्माता को विधि निर्माण में चार बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
आजीविका या जीवन सामग्री
सुरक्षा
प्रचुरता या संपन्नता
समानता| इनकी प्रधानता का क्रम आजीविका, सुरक्षा, प्रचुरता, समानता होना चाहिए|
बेंथम ने इंग्लैंड की तत्कालीन कानून व्यवस्था की आलोचना की है|
बेंथम ने श्रेष्ठ कानून के 6 लक्षण बताए हैं-
कानून जनता की आशा-आकांक्षा या विवेक बुद्धि के विपरीत नहीं होना चाहिए|
कानूनों की जनता को जानकारी होनी चाहिए, इसके लिए कानून का प्रचार-प्रसार करना चाहिए|
कानूनों में विरोधाभास नहीं होना चाहिए|
कानून सरल, स्पष्ट भाषा में होना चाहिए|
कानूनों को व्यावहारिक होना चाहिए|
कानूनों का पालन होना चाहिए तथा उल्लंघन पर आवश्यक दंड व्यवस्था होनी चाहिए|
न्याय संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम के न्याय संबंधी विचार सुधारात्मक थे| बेंथम ब्रिटिश न्याय पद्धति की आलोचना करके न्याय व्यवस्था में सुधार करना चाहता है|
ब्रिटिश न्याय पद्धति के बारे में बेंथम ने कहा कि “इस देश में न्याय बेचा जाता है और बड़े महंगे दामों पर बेचा जाता है, जो व्यक्ति मूल्य नहीं चुका सकता, वह न्याय भी प्राप्त नहीं कर सकता है|”
बेंथम की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना वकील खुद बनना चाहिए|
वह न्यायिक औपचारिकता को समाप्त करना चाहता है, तथा औपचारिक वकालत के स्थान पर अनौपचारिक कार्यवाही का समर्थक है| वह वादी- प्रतिवादी में समझौता कराने के पक्ष में है|
बेंथम के अनुसार न्यायाधीशों और अदालत के अन्य अधिकारियों को वेतन के स्थान पर फीसे दी जाय|
बेंथम जूरी प्रथा के विरुद्ध था| वह एक ही न्यायाधीश द्वारा किसी मुकदमे का निर्णय किए जाने का समर्थक था| न्यायाधीशों की पीठ के बजाय एक न्यायधीश अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करेगा|
वह न्यायाधीशों को बुद्धि शून्य, अल्पदृष्टि, दुराग्रही, आलसी कहता है| जिनकी बुद्धि न्याय-अन्याय में भेद करने में असमर्थ है अर्थात न्यायाधीशों के प्रति बेंथम में सम्मान भाव नहीं था|
बेंथम जजों को व्यवसायियों के तौर पर जज एंड कंपनी कहता था|
वैसे न्याय व्यवस्था संबंधी विचार बेंथम के जीवन काल में उचित सम्मान नहीं पा सके, लेकिन न्याय-प्रणाली और विधि सुधार के इतिहास में बेंथम का स्थान सबसे ऊंचा है| सर हेनरीमैन के शब्दों में “बेंथम के समय से आधुनिक काल तक विधि व्यवस्था में जितने भी सुधार हुए हैं उसमें से मुझे एक भी ऐसा नहीं लगता, जिसमें प्रेरणा बेंथम से प्राप्त न हुई हो|”
सेबाइन “बेंथम का न्यायशास्त्र विषयक कार्य उसका सबसे महान कार्य है|“
संप्रभुता संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम ने अपनी पुस्तक Fragment on Government के चतुर्थ अध्याय में राज्य की संप्रभुता को सर्वोच्च सत्ता कहा है|
बेंथम संप्रभुता को निरपेक्ष एवं असीमित मानता है| संप्रभुता का प्रत्येक कार्य वैध है| संप्रभुता के संबंध में बेंथम सर्वोत्तम सत्ता का उल्लेख नहीं करता है|
बेंथम राज्य की विधि निर्माण क्षमता को संप्रभुता मानता है, किंतु उसे भी उपयोगिता की कसौटी पर कसता है|
बेंथम राज्य की संप्रभुता पर केवल जनहित के आधार पर ही प्रतिबंध लगाता है|
बेंथम की संप्रभुता निरंकुश नहीं है, बेंथम के शब्दों में “यदि विशाल जनमत किसी विधि का विरोध करता है तो संप्रभुता का कर्तव्य है कि उसे कानून का रूप कदापि न दे|”
इस तरह बेंथम ने संप्रभुता को हॉब्स की तरह असीमित, अदेय, निरपेक्ष एवं अभिभाज्य बताया है तथा शक्ति विभाजन को अस्वीकार किया है, लेकिन संप्रभुता को निरंकुश नहीं माना है|
बेंथम की दंड संबंधी धारणा-
बेंथम इंग्लैंड की तत्कालीन दंड व्यवस्था का आलोचक था| बेंथम की दंड व्यवस्था निवारक सिद्धांत तथा सुधारात्मक सिद्धांत का मिश्रण थी|
बेंथम उपयोगिता के आधार पर दंड और अपराध की विवेचना करता है| उसके अनुसार सभी प्रकार के दंड स्वयं में एक बुराई है, लेकिन वह उससे भी बड़ी बुराई का निराकरण करते हैं, इसलिए दंड उचित है|
बेंथम की दंड व्यवस्था की निम्न विशेषताएं हैं-
दंड की मात्रा अपराध के अनुपात में हो तथा दंड समान भाव से दिया जाए|
दंड अनावश्यक व निर्दयतापूर्ण नहीं होना चाहिए|
दंड आदर्श होना चाहिए, जिससे अपराधी व अन्य लोगों को शिक्षा मिले|
दंड में सुधार की भावना निहित हो|
अपराध से पीड़ित पक्ष की क्षतिपूर्ति कराई जानी चाहिए|
दंड जनमत के अनुकूल होना चाहिए|
दंड ऐसा हो कि भूल का पता लगने पर दंड को निरस्त या कम किया जा सके|
मृत्युदंड तभी दिया जाना चाहिए जब वह सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से पूर्णत:आवश्यक हो|
राजनीतिक समाज व प्राकृतिक समाज-
बेंथम राजनीतिक समाज व प्राकृतिक समाज में अंतर करता है|
राजनीतिक समाज-
बेंथम “जब कुछ लोग किसी ज्ञात व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा, जिसका एक निश्चित स्वरूप है (शासक या सरकार) की आज्ञा पालन के अभ्यस्त हैं ,तब ऐसी प्रजा व शासक को राजनीतिक समाज कहा जाएगा|”
प्राकृतिक समाज-
जब व्यक्ति वार्तालाप के तो अभ्यस्त होते हैं, पर किसी निश्चित शासक के आज्ञा पालन के अभ्यस्त न हो तो, उसे प्राकृतिक समाज कहा जाएगा|”
बेंथम के मत में नागरिक राज्य के आदेशों का पालन दो आधारों पर करते हैं-
आज्ञाकारिता (Imperation)- राज्य नागरिकों की इच्छा की पूर्ति करता है तथा उनके सुखों को बढ़ाता है|
शारीरिक दंड (Contrectatin)- भय की वजह से व दुखों से बचने के लिए
आज्ञाकारिता पर आधारित राजनीतिक समाज ज्यादा अच्छा होता है|
बेंथम के अन्य सुधारवादी विचार-
शासन संबंधी सुधार-
बेंथम एक सुधारवादी विचारक था, जिसने अनेक राजनीतिक तथा शैक्षणिक सुधारों का समर्थन किया था|
बेंथम ने राजतंत्र, कुलीनतंत्र और लोकतंत्र में राजतंत्र व कुलीन तंत्र को निकृष्ट बताया है, क्योंकि राजतंत्र व कुलीनतंत्र में अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख की धारणा साकार नहीं हो सकती है|
बेंथम लोकतंत्र (गणतंत्र) का समर्थक था तथा पुरुष व्यस्क मताधिकार, वार्षिक संसदीय निर्वाचन, गुप्त मतदान, नियुक्तियों के लिए प्रतियोगिता परीक्षा आदि वैधानिक उपायों से लोकतंत्र की स्थापना करने के समर्थक थे|
बेंथम गुप्त मतदान प्रणाली का समर्थन करता है तथा महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में नहीं था|
बेंथम ने एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य का समर्थन किया है|
एक सदनीय संसद का समर्थन करता है तथा लार्ड सभा के अंत की कहता है|
बेंथम विधायकों के अधिकारों में वृद्धि का समर्थन करता है, ताकि वे नागरिक अधिकारों को सुरक्षित रख सके| उनके अनुसार विधायक ‘नैतिक ओवरसीवर’ (अलग करना) और ‘निर्देशक’ होते हैं|
जेल व्यवस्था में सुधार-
कैदियों के लिए औद्योगिक व शिल्प-शिक्षण का सुझाव बेंथम ने दिया|
कैदियों के चरित्र सुधार के लिए नैतिक व धार्मिक शिक्षा का समर्थन किया|
पेनोप्टिकॉन (Panopticon) योजना- अपराधियों के दैनिक जीवन को व्यवस्थित करने के लिए बेंथम ने एक योजना बनाई, जिसको पेनोप्टिकॉन (Panopticon) योजना कहा जाता है| इस योजना के अनुसार कारागार की इमारतें अर्धचंद्राकार बनाई जाए, जिससे कि जेल का अधिकारी अपने निवास स्थान से सभी जेल की कोठरियों पर भली-भांति दृष्टि रख सकें|
बेंथम ने पेनोप्टिकॉन या इंस्पेक्शन हाउस को उपयोगिता का आधार माना है, क्योंकि इससे दुख का वैज्ञानिक मापन किया जा सकता है|
मिशेल फूको ने पनोप्टिकॉन योजना को ‘पूंजीवादी राज्य की दंड व्यवस्था का उच्चतम रूप’ बताया है|
शिक्षा व्यवस्था में सुधार-
बेंथम ने दो प्रकार की शिक्षा योजना प्रस्तुत की-
प्रथम गरीब व अनाथो के लिए
द्वितीय मध्यम व उच्च वर्गों के लिए|
बालकों के चरित्र निर्माण, कला कौशल एवं व्यवसायिक शिक्षा का समर्थन किया|
बेंथम के अनुसार शिक्षा का वहन राज्य करे तथा शिक्षा का उद्देश्य जीवन को सहचारी और अनुशासित बनाना होना चाहिए|
बेंथम ने शिक्षा में मॉनिटर पद्धति का समर्थन किया अर्थात उच्च कक्षा के बुद्धिमान छात्र निम्न कक्षा के छात्रों को पढ़ाये|
मानवतावादी के रूप में बेंथम-
बेंथम उपनिवेशवाद के विरोधी थे|
उपनिवेशवाद को बेंथम शोषक व शोषित दोनों के लिए ही खतरनाक मानते थे|
जब बेंथम के मित्र जेम्स मिल इस्ट इंडिया कंपनी में अधिकारी बने तो, बेंथम ने भारतीय उपनिवेशवाद में रुचि ली| बेंथम ने भारत में कानूनी व अन्य सुधार लागू करने के लिए 1827 में भारत के तात्कालिक गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक को प्रेरित किया|
दार्शनिक आमूल परिवर्तनवादी के रूप में-
सेबाइन ने बेंथम को दार्शनिक आमूल परिवर्तनवाद का प्रणेता कहा है|
आमूल परिवर्तनवादी ऐसे विचारक होते हैं, जो अपने समय के प्रचलित विचारों को पूर्णतया बदल देते हैं|
बेंथम ने ब्रिटेन में प्रचलित तात्कालिक कानून, न्याय, दंड व्यवस्था आदि विचारों का खंडन किया है|
बेंथम ने प्राकृतिक अधिकारों, प्राकृतिक अवस्था, प्राकृतिक कानून का खंडन करके वैधानिक अधिकारों व वैधानिक कानूनो की स्थापना की है|
बेंथम ने फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर ‘दार्शनिक आमूल परिवर्तन सुधारवादी’ (Philosophical radicalism) नामक दल की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक संस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन करना और परिवर्तन को ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित’ की कसौटी पर कसना|
डॉयल “बेंथम आमूल परिवर्तनवादी सुधार ग्रुप के प्रमुख राजनीतिक दार्शनिक थे| रूसो के समान वास्तविकता से भागकर उन्होंने रहस्यवाद की शरण नहीं ली, बल्कि उन्होंने समस्याओं पर वैज्ञानिक की तरह से विचार किया|”
बेंथम के अधिकार संबंधी विचार-
बेंथम वैधानिक अधिकारों का समर्थन करता है तथा अधिकारों का निर्धारण उपयोगिता के आधार पर होना चाहिए| बेंथम के अनुसार “अधिकार मनुष्य के सुखमय जीवन के वे नियम है, जिन्हें राज्य के कानूनों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है|”
बेंथम संपत्ति के अधिकार का उपयोगिता के आधार पर समर्थन करता है| निजी संपत्ति का समर्थन करता है, क्योंकि निजी संपत्ति अधिकतम सुख प्राप्ति का एक साधन है|
बेंथम ने अधिकारों के दो प्रकार बताए हैं-
वैधानिक अधिकार- ऐसे अधिकार जो संप्रभु द्वारा निर्मित होते हैं| वैधानिक अधिकार का विषय बाह्य आचरण होता है|
नैतिक अधिकार- इनका विषय आंतरिक आचरण है|
पूर्ण स्वतंत्रता तथा पूर्ण समानता देना असंभव है, क्योंकि बेंथम के अनुसार एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वतंत्र पैदा हुआ हो|
बेंथम अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी समावेश करता है तथा अधिकारों और कर्तव्यों को अन्योन्याश्रित मानता है|
स्त्री संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम ने स्त्रियों के उद्धार पर बल दिया है|
बेंथम के मत में स्त्री- पुरुष के बीच प्राकृतिक भेद स्त्रियों के दमन का आधार नहीं हो सकता है|
बेंथम ने शासन में महिलाओं की समान हिस्सेदारी का समर्थन किया है|
बेंथम ने अपनी पुस्तक पार्लियामेंट रिफॉर्म्स में स्त्री मताधिकार का समर्थन किया है, किंतु अपनी कृति कांस्टीट्यूशनल कोड में बेंथम कहता है कि स्त्री मताधिकार के लिए अभी सही समय नहीं आया है, अतः स्त्री मताधिकार नहीं दिया जा सकता है| इस तरह बेंथम स्त्रियों के मताधिकार का समर्थक नहीं था|
बेंथम ने स्त्रियों के लिए शिक्षा का समर्थन किया है तथा इसके लिए 1816 में क्रिस्टोमैथिया नामक नया पाठ्यक्रम तैयार किया
बेंथम का मूल्यांकन
बेंथम की आलोचना-
बेंथम की निम्न आलोचनाएं की जाती हैं-
बेंथम ने उपयोगितावाद सिद्धांत को बहुत अधिक भौतिकवादी बनाने के चक्कर में नैतिकता को तिलांजलि दे देता है| यदि कुछ बदमाश एक सज्जन को लूटने में आनंद का अनुभव करते हैं, तो बेंथम की दृष्टि में यह सही है|
रॉबर्ट एच मरे के अनुसार “यदि हम बेंथम की तरह अंतरात्मा की अवहेलना करने लगे तो नैतिक और अनैतिक कृत्यों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा, हालांकि उपयोगिता की दृष्टि से कुछ कार्य वांछनीय होंगे कुछ नहीं होंगे|”
जॉन रॉल्स “उपयोगितावाद में सामूहिक हित की वृद्धि के लिए व्यक्ति के हित की बलि दे दी जाती है|”
बेंथम का उपयोगितावाद केवल मात्रात्मक सुख का समर्थक है, गुणात्मक सुख का नहीं|
बेंथम का सुखवादी मापदंड दोषपूर्ण है|
बेंथम किसी भी कार्य के औचित्य को सुख-दुख की मात्रा को निर्धारित करने वाले कारको को निश्चित अंक देकर, उसका योग निकालकर निर्धारित करना चाहता है, जो सही नहीं है| मेक्कन के अनुसार “राजनीति में अंकगणित का प्रयोग उतना ही निरर्थक है, जैसे अंकगणित में राजनीति का|“
बेंथम का उपयोगितावाद सिद्धांत अव्यवहारिक व अमनोवैज्ञानिक है|
बेंथम का उपयोगितावादी सिद्धांत समाज के बहुमत के अत्याचारों को प्रोत्साहित करने वाला है|
वेपर के अनुसार “बेंथम के दर्शन में मौलिकता का अभाव है, वह अपने पूर्ववर्ती सिद्धांतों को पूरी तरह से गले के नीचे उतार तो गया था, परंतु उनको पचा नहीं पाया|”
मैक्सी “बेंथम का उपयोगितावाद भेड़िया समाज में भेड़ियापन तथा साधु समाज में साधुता को महत्व देता है, जबकि मिल प्रत्येक अवस्था में साधुपन को महत्व देता है|”
कार्लाइल “बेंथम का सुखवादी दर्शन ‘सूअरों का दर्शन (Pig Philosophy)’ है|”
कार्ल मार्क्स ने बेंथम को “अति दंभी, नीरस, मोटी जीभ वाला, सामान्य पूंजीवादी, बुद्धिजीवी कहा है|”
जोहान गोटे ने बेंथम को “अत्यंत गया गुजरा आमूलवादी गधा कहा है|”
एमर्सन (Emerson) ने बेंथम के दर्शन को ‘बदबूदार (Stinking)’ बताया है|
लियोन ट्रोट्स्की ने बेंथम के उपयोगितावादी दर्शन को ‘खाना बनाने की किताब’ (A philosophy of social cookbook recipes) बताया है|
नीत्शे “बेंथम फटे कंबल की आत्मा, जोकर का चेहरा है, वह बिल्कुल मामूली सा है, उसमें न गुण है न ही आत्मा है|”
बेंथम की राजनीतिक चिंतन को देन-
राजनीतिक दर्शन को बेंथम की निम्न देन है-
उपयोगितावाद के दार्शनिक संप्रदाय की स्थापना करने और उसे एक वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय बेंथम को ही है| हालवी के अनुसार “बेंथम कि यह बहुमूल्य देन है, कि उसने उपयोगिता के सिद्धांत द्वारा एक वैज्ञानिक नियम, एक क्रियाशील प्रशासन, वास्तविकता और औचित्य की खोज की है|”
बेंथम ने राज्य को मनुष्य के लिए माना है|
बेंथम ने लोकतंत्र (गणतंत्र) व लोकतांत्रिक संस्थाओं का समर्थन किया है| बेंथम के शब्दों में ”इस कुटिल संसार को गणतंत्र का जाल बिछाकर ही सुधारा जा सकता है|”
वेपर के अनुसार “बेंथमवाद जनता के प्रतिनिधियों में विश्वास नहीं करता है, वह उन्हें जनता को लूटने वाला मानता है|”
बेंथम के उपयोगितावाद का भारत पर भी प्रभाव पड़ा है| लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भारत में अधिकांश सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सुधार बेंथम के विचारों से प्रभावित होकर किए हैं| बैंटिक ने बेंथम को लिखा था कि “वास्तव में भारत का गवर्नर जनरल होकर मैं नहीं, बल्कि आप जा रहे हैं|”
बेंथम ने मैक्यावली की तरह राजनीति को धर्म व नैतिकता से पृथक किया है| नैतिकता व धर्म तभी उचित है, जब वे व्यक्तियों का सुख बढ़ाएं तथा दुख को कम करें|
बेंथम ही वह पहला आधुनिक विचारक है, जिसने राजनीति शास्त्र में अनुसंधान और गवेषणा को महत्व दिया है तथा सार्वजनिक नीति के क्षेत्र में गवेषणात्मक पद्धति लागू की है और अनुभववादी तथा आलोचनात्मक पद्धति का सूत्रपात किया है|
बेंथम ने प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया है|
शिक्षा में ‘मॉनिटर पद्धति’ का समर्थन किया है अर्थात बुद्धिमान छात्र पढ़ाएं|
जेल सुधार की ‘पनोप्टिकन’ योजना प्रस्तुत की है|
बेंथम का यह विचार बहुत महत्वपूर्ण और सर्वथा आधुनिक है कि राज्य को अपना औचित्य स्थापित करने के लिए यह सिद्ध करना होगा कि वह वर्तमान समाज की उपयुक्त सेवा कर रहा है| इस तरह बेंथम ने सेवाधर्मी राज्य के विचार को बढ़ावा दिया है जो कल्याणकारी राज्य की संकल्पना के रूप में विकसित हुआ है|
सेबाइन ने बेंथम को ‘दार्शनिक आमूल परिवर्तनवादी’ (दार्शनिक उग्रवादी) कहा है, क्योंकि बेंथम ने अपने समय में प्रचलित प्राकृतिक अधिकार की धारणा व ब्रिटेन में प्रचलित अनेक सिद्धांतों में परिवर्तन किया है|
कैटलिन ने बेंथम के दर्शन को ‘व्यक्तिवादी व अहस्तक्षेप का सिद्धांत’ कहा है|”
आईवर ब्राउन ने बेंथम को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था कि “बेंथमवाद से उसका भद्दापन निकाल दिया जाए, तो फिर विशुद्ध मानवतावाद के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं देगा|”
बेंथम से संबंधित कुछ अन्य तथ्य-
जे एस मिल ने बेंथम को “प्रगतिशील दार्शनिक, मानवता का महान कल्याणकारी, यथास्थिति का शत्रु तथा स्थापित चीजों पर प्रश्नचिन्ह” लगाने वाला बताया है|
प्रशंसा करने के बावजूद भी मिल ने यह भी कहा है कि “बेंथम ऐसा लड़का था जो कभी बड़ा ही नहीं हुआ जिसे न बाहरी अनुभव था, न अंदरूनी और जो निजी आय के सहारे बिना कभी बड़े हुए एक हिजड़े का जीवन व्यतीत करता रहा|”
बेंथम ने स्वयं को ‘रानी चौक का भिक्षु’ तथा ‘महत्वकांक्षियों में सबसे महत्वकांक्षी’ कहते थे|
फ्रांसीसी दार्शनिक क्लॉड एड्रियन हेल्वेंटियस उनके प्रेरणा स्त्रोत थे| हेल्वेंटियस से बेंथम ने यह सीखा कि कानून बनाना सबसे महत्वपूर्ण लौकिक कार्य है तथा कानून के द्वारा समाज में कोई भी सुधार लाया जा सकता है|
राजा राममोहन राय से बेंथम की मित्रता थी तथा दोनों में पत्र व्यवहार भी था| राजा राममोहन राय, बेंथम के प्राकृतिक अधिकारों संबंधी विचार तथा उपयोगितावाद से प्रभावित थे|
बेंथम की सुधारवादी योजनाओं तथा गांधीजी की सुधारवादी योजनाओं में समानता के कारण ब्रोनोवस्की व मजलिस ने लिखा है कि “महात्मा गांधी आधुनिक बेंथम कहे जा सकते हैं|”
विम किमलिका का मत है कि बेंथम का यह विचार गलत है कि मनुष्य केवल सुख चाहता है|
बेंथम को ‘मुक्त व्यापारियों का पिता’ भी कहा जाता है|
बेंथम “युद्ध व तूफान पढ़ने के लिए श्रेष्ठतम हो सकते हैं, लेकिन सहन करने के लिए शांति व सुरक्षा ही श्रेष्ठ होती है|”
वेपर “बेंथम ने ज्ञान संबंधी विचारधारा को लॉक व ह्यूम से, सुख-दुख का सिद्धांत हेल्वेटियस से, सहानुभूति व असहानुभूति का विचार ह्यूम से लिया है|”
बेंथम की इच्छा अनुसार उसके शरीर को जंतु विज्ञान प्रयोगशाला को दे दिया गया| जहां से उनके कंकाल को लंदन विश्वविद्यालय में सुरक्षित रखा गया, जो आज भी सुरक्षित है| बेंथम के अस्थि पंजर (कंकाल) लंदन यूनिवर्सिटी में उस कपड़े से ढककर रखा है, जिनको वह पहन कर अपनी प्रिय डॉबीन छड़ी लेकर हर सुबह अपने वेस्टमिंस्टर गार्डन में घूमा करते थे|
बेंथम अपने खाने के कमरे को ‘दुकान’, चाय के बर्तन को ‘डिक’ काम करने वाले टेबल को ‘केरोसियो’ कहा करते थे तथा उनकी टेबल को एक ऊंची जगह पर रखा गया था जिसके चारों ओर चलने का नीचा रास्ता बना हुआ था जिससे वह ‘हिलती खाई या कुआं’ कहते थे|
बेंथम ने कहा कि “सारी खुशियां और दुख ले लेने से, इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं और बिना इच्छा के कोई कार्य नहीं होता है|”
बेंथम “उपयोगिता का नैतिक विश्व में वही स्थान है, जो गणित में रेखा गणित का स्थान है|”
ह्यूम “बेंथम के सिद्धांत ने, आधुनिक राजनीतिक चिंतन के दो विषय एक साथ लाए- 1 व्यक्तिवाद, 2 आधुनिक सार्वभौम राज्य|”
बेंथम के सिद्धांतों ने समाजवादी विचारों को भी प्रभावित किया है| इसी कारण बेत्रिस वेव ने बेंथम को सिडनी वेब का बौद्धिक पिता कहा है|
बेंथम को विधिशास्त्र का न्यूटन भी कहा जाता है|
बेंथम के उपयोगितावादी सिद्धांत का जेम्स मिल ने इतिहास, जॉन स्टुअर्ट मिल ने राजनीति, रिकार्डो ने अर्थशास्त्र, सैमुअल रोमिले व ऑस्टिन ने विधिक क्षेत्र में प्रयोग किया है|
जन्म-
15 फरवरी 1748
लंदन में एक धनी वकील परिवार में हुआ|
15 वर्ष की आयु में सन 1763 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के क्वींस महाविद्यालय से स्नातक की, जिसके पश्चात लिकन्स इन (Lincoln’s Inn) से बेरिस्ट्री की उपाधि ली तथा 1772 से वकालात शुरु कर दी|
बेंथम ने 1790 में फ्रांस में न्यायिक प्रतिष्ठान की स्थापना के लिए एक नई योजना (A New Plan for the Organisation of the Judicial Establishment) तैयार की थी, इसलिए 1792 में फ्रांस की राष्ट्रीय संसद ने बेंथम को ‘फ्रांसीसी नागरिक’ की उपाधि प्रदान की|
जेम्स मिल बेंथम का प्रमुख शिष्य था| महान अर्थशास्त्री रिकार्डों भी बेंथम का अनुयायी था| बेंथम ने रिकार्डों के बारे में कहा है कि “मैं मिल का आध्यात्मिक पिता था और मिल रिकार्डो का आध्यात्मिक पिता था, इस प्रकार रिकार्डो मेरा अध्यात्मिक पोत्र था|”
बेंथम को उपयोगितावाद का जनक माना जाता है|
बेंथम व्यक्तिवाद व उदारवाद का समर्थक, सुधारवादी विधिवेता तथा यथार्थवादी विचारक था|
बेंथम की प्रसिद्धि इंग्लैंड के बजाय दूसरे देशों में ज्यादा और शीघ्र फैली| हैजलिट “उसका नाम इंग्लैंड में कम, यूरोप में अधिकतर तथा चिली के मैदानों एवं मैक्सिको की खानों में अधिकतम हुआ है|”
6 जून 1832 को बेंथम की मृत्यु हो गयी| इसकी मृत्यु पर डॉयल ने कहा कि “इसके शिष्य समूह ने एक पितामह और एक अध्यात्मिक नेता के रूप में उसका सम्मान किया| उसकी एक देवता के रूप में प्रतिष्ठा हुई|”
बेंथम एक महान लेखक था| उसने नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि विषयों पर ग्रंथों की रचना की है|
मेरी पी.मैक के अनुसार 1770 से 1832 तक बेंथम प्रतिदिन 15 बड़े पृष्ठ लिखता था|
बेंथम के लेखों की पांडुलिपिया जो 148 बक्सों में बंद है, आज भी लंदन विश्वविद्यालय और ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है|
बेंथम की प्रमुख रचनाएं निम्न है-
Fragments on government (1776)
इस पुस्तक में प्रसिद्ध विधिशास्त्री ब्लैकस्टोन की कानूनी टीका (Commentaries of English Law) की आलोचना की है|
इस पुस्तक का प्रकाशन बिना लेखक के नाम से हुआ था|
A defence of usury (1787)
An introduction to the principles of morals and legislation (1789)
यह बेंथम की सर्वोत्कृष्ट कृति मानी जाती है|
Discourses on civil and panel legislation (1802)
A theory of punishment and rewards (1811)
A treatise On judicial evidence (1813)
Easy on political tactics (1791)
Principles of international law
Constitutional code (1830)
Rationale of Evidence (1827)-
यह बेंथम की अंतिम पुस्तक थी, जिसका संपादन जे एस मिल ने किया|
Westminster Review- यह उपयोगितावाद से संबंधित समाचार पत्र था, जिसको बेंथम ने जेम्स मिल के साथ मिलकर निकाला था|
बेंथम ने अपनी कृतियों में कानून, संप्रभुता, न्याय प्रक्रिया, दंड, अधिकार, संसदीय सरकार आदि पर उपयोगितावाद पर आधारित विभिन्न रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं|
वेपर के अनुसार “बेंथम की कृतियां महत्वपूर्ण, सरल तथा मनोरंजक है|”
वैज्ञानिक औचित्य की दृष्टि से बेंथम ने विकास को आवश्यक समझा है तथा विकास को वह नवीन शब्द (New Lingo) की संज्ञा देता है|
मिस ड्यूमोंट (Dument) ने बेंथम की पुस्तकों का फ्रेंच भाषा में अनुवाद किया, जिसके कारण बेंथम के विचार पुर्तगाल, स्पेन, दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप और रूस तक प्रचारित हुए|
उपयोगितावाद 19वीं शताब्दी का दर्शन है| लेकिन आचारशास्त्र के सिद्धांत के रूप में इसका संबंध प्राचीन यूनान के एपिक्यूरियन संप्रदाय से माना जाता है| एपिक्यूरियन चिंतन के अनुसार ‘मनुष्य पूर्णतया सुखवादी है, वह सुख की ओर दौड़ता है तथा दुख से बचना चाहता है|’
17 वी सदी के सामाजिक अनुबंधनवादियों ने भी उपयोगितावादी परंपरा का कुछ विकास किया| हॉब्स ने मनोवैज्ञानिक भौतिकवाद के आधार पर मनुष्य को पशुवत आचरण करने वाला एक सुखवादी प्राणी बताया है|
18 वीं सदी के एक विचारक कंबरलैंड ने राज्य की उपयोगिता की तुलना में उसके नैतिक अस्तित्व और विवेकपूर्ण चेतना के सिद्धांतों को गौण बताया है|
डेविड ह्यूम ऐसे प्रथम आधुनिक विचारक है जिसने सर्वप्रथम अपनी पुस्तक Treatise of human 1739 में उपयोगितावादी दर्शन का स्पष्ट प्रतिपादन किया तथा मानव स्वभाव का केंद्र-बिंदु उपयोगितावाद को बताया है| (उपयोगितावाद का प्रथम विचारक)
हचेसन ने सबसे पहले ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ नामक वाक्यांश का प्रयोग किया| उसके बाद प्रीस्टले ने शासन की नीतियों के आधार के रूप में इस वाक्य का समर्थन किया|
सर्वप्रथम सुख और दुख शब्द प्रीस्टले ने दिए|
लेस्ली स्टीफैन के अनुसार “उपयोगितावाद का जैसा युक्ति संगत रूप डेविड ह्यूम प्रस्तुत किया वैसा 19वीं शताब्दी का अन्य कोई विचारक नहीं कर सका|”
वेपर के अनुसार “उपयोगितावाद के प्रवर्तक डेविड ह्यूम, प्रीस्टले और हचिसन थे|”
उपयोगितावाद एक ब्रिटिश विचारधारा है|
डेविडसन “उपयोगितावाद में सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित है| उपयोगितावाद अधिकाधिक व्यक्तियों को सुख पहुंचाने में रुचि रखता है तथा व्यवहारिक कार्यों द्वारा बौद्धिक आधार पर लोगों की दशा सुधारने एवं सक्रिय राजकीय कानूनों द्वारा जन समूह के स्तर को ऊंचा उठाने में विश्वास करता है|”
इनसाइक्लोपीडिया अमेरिकाना “उपयोगितावाद आचारशास्त्र का एक सिद्धांत है, जो यह प्रतिपादित करता है कि जो कुछ उपयोगी है, वह श्रेष्ठ है और उपयोगिता विवेकपूर्वक निर्धारित की जाती है| सामाजिक. आर्थिक और राजनीतिक सिद्धांत एवं नीतियां उपयोगिता के सिद्धांत पर ही आधारित होनी चाहिए|”
हेलोवेल ने उपयोगितावाद को नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र को एक व्यापक वैज्ञानिक अनुभववाद के आधार पर प्रतिष्ठित करने का एक प्रयास कहा है|
उपयोगितावाद एक ऐसा दर्शन है, जो किसी वस्तु के नैतिक और भावात्मक पक्ष पर ध्यान न देकर उसके यथार्थवादी पक्ष को ही देखता है| उपयोगितावाद ने सुखवाद से प्रेरणा ली है|
उपयोगितावाद में किसी भी कार्य या वस्तु की उपयोगिता को सुख-दुख की मात्रा से आका जाता है|
उपयोगितावाद प्रयोगात्मक और व्यवहार प्रधान है| इसका संबंध वास्तविकता से है, न कि काल्पनिक और अमूर्त सिद्धांतों से|
उपयोगितावादी सिद्धांत को मानने वाले सभी लोग व्यक्तिवादी हैं, जो यह मानते हैं कि राज्य व्यक्ति के लिए है, न कि व्यक्ति राज्य के लिए|
उपयोगितावाद के अनुसार किसी राजनीतिक कार्य का महत्व तभी है, जब उससे जनकल्याण हो तथा इसके अनुसार जनकल्याण लोगों के व्यैक्तिक सुखों का संग्रह मात्र है|
इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया गया है तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर केवल सार्वजनिक व्यवस्था और शांति का ही बंधन है है|
अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख ही उपयोगितावाद के अनुसार राज्य की प्रकृति तथा श्रेष्ठता की कसौटी है|
डेविड ह्यूम, प्रीस्टले, हचिसन, पेले, हॉलबैक, हैल्युटियस, बेंथम, जेम्स मिल, जॉन ऑस्टिन, जॉर्ज ग्रोट, जॉन स्टूअर्ट मिल, मॉल्सबर्थ, एलेग्जेंडर बैन आदि|
प्रीस्टले द्वारा रचित ‘Easy on government’ का बेंथम पर बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा है|
बेंथम ने ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ का अपना प्रिय वाक्यांश प्रीस्टले की पुस्तक ‘Easy on government’ से ग्रहण किया था| प्रीस्टले ने यह वाक्य हचिसन से लिया था|
उपयोगितावाद को लोकप्रिय करने व शक्तिशाली रूप देने का श्रेय बेंथम को दिया जाता है| इसी कारण उपयोगितावाद को बेंथमवाद भी कहा जाता है|
बेंथम का उपयोगितावाद सुख-दुख की मात्रा पर आधारित है| मानव के सभी कार्यों की कसौटी उपयोगिता है| जिस कार्य से मनुष्य को सुख प्राप्त होता है वह कार्य उपयोगी व उचित है तथा जिस कार्य से मनुष्य को दुख प्राप्त होता है वह कार्य अनुपयोगी व अनुचित है| यह उपयोगितावाद का सिद्धांत मानव कार्यों के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यों में भी लागू होता है|
बेंथम ने अपनी रचना ‘Principle of Moral and Legislation’ पुस्तक में मानव जीवन के दो स्वामी बताता है- सुख और दुख|
बेंथम के अनुसार किसी वस्तु की उपयोगिता का एकमात्र मापदंड यह है, कि वह कहां तक सुख में वृद्धि करती है और दुख को कम करती है|
बेंथम “अगर किसी चीज से मनुष्यों के सुखों के कुल योग में वृद्धि होती है या दुखों के कुल योग में कमी होती है तो वह चीज उसके हित में है|”
बेंथम के विचारों में सुख स्वयं जीवन का साध्य है, शेष सभी वस्तुएं सदाचार सुख प्राप्ति के साधन है|
इस प्रकार उपयोगितावाद स्वहित, अहमदवाद, व्यक्तिवाद पर आधारित है|
धर्म द्वारा
राजनीति द्वारा
नैतिक कार्य से
भौतिक साधनों से (शारीरिक स्रोत)
धर्म प्रदत सुख
राजनीति प्रदत सुख
नैतिक सुख
प्राकृतिक /भौतिक सुख
बेंथम के अनुसार सुख-दुख मात्रात्मक है गुणात्मक नहीं| बेंथम का कथन है कि “सुख की मात्रा बराबर होने पर बच्चों का खेल पुष्पिन और काव्य का अध्ययन एक कोटी के हैं|”
बेंथम का मानना है कि सुख-दुख को मापा जा सकता है| उपयोगितावाद में प्रत्येक कार्य के परिणाम पर विचार किया जाता है| उसी को उपयोगी माना जाता है, जो सुख में वृद्धि करें तथा दुख में कमी करें अत: उपयोगितावाद को परिणामवाद भी कहा जाता है|
बेंथम ने सुख व दुख को दो भागों में बांटा है- (1) सामान्य व (2) जटिल
सामान्य सुख के 14 प्रकार बताए हैं- 1 इंद्रिय सुख 2 वैभव सुख 3 कौशल का सुख 4 मित्रता का सुख 5 यश का सुख 6 शक्ति या सत्ता का सुख 7 कल्पना का सुख 8 धार्मिक सुख 9 दया का सुख 10 निर्दयता का सुख 11 स्मृति सुख 12 आशा का सुख 13 संपर्क का सुख 14 सहायता का सुख
सामान्य दुख के 12 प्रकार बताए हैं- 1 दरिद्रता 2 भावना 3 हिचकिचाहट 4 शत्रुता 5 अपयश 6 धार्मिकता 7 दया 8 स्मृति 9 कल्पना 10 आशा 12 संपर्क
बेंथम ने सुख-दुख की मात्रा निर्धारित करने के लिए सुखवादी मापक यंत्र (Felicific calculus) प्रस्तुत किया है| इसे Hedonic Calculus भी कहा जाता है|
बेंथम ने सुख मापने का मानचित्र दिया है, जिसको Spring of Action कहा जाता है|
बेंथम ने अपनी पुस्तक Principal of Morals and Legislation के चतुर्थ अध्याय में सुख-दुख का मापदंड निर्धारित करने के 7 तत्व बताए हैं-
तीव्रता (2) कालावधि (3) निश्चितता (4) समय की निकटता अथवा दूरी (5) जनन शक्ति (उर्वरता) (6) विशुद्धता (7) विस्तार
प्रथम 6 आधार व्यक्तिगत सुख-दुख के मापदंड हैं, जबकि 7वां समूह के सुख दुख (अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख) का मापदंड है|
बेंथम के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का उद्देश्य अधिकतम सुख प्राप्त करना होता है|
बेंथम सुख-दुख का अंतर 32 लक्षणों के आधार पर बताया है|
बेंथम ने राज्य का उद्देश्य ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ माना है| राज्य के वही कार्य उपयोगी है, जो अधिकतम व्यक्तियों को सुख पहुंचाते हैं|
विधायक को कानून बनाते समय भी अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का ध्यान रखना चाहिए|
इस तरह बेंथम का उपयोगितावाद सुखवाद, व्यक्तिवाद, मात्रात्मक व परिणामवाद पर आधारित है|
बेंथम के अनुसार मनुष्य के संपूर्ण व्यवहार को सुख-दुख निर्धारित करते हैं, जो सही नहीं है|
अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का पता लगाना कठिन है|
सुख भौतिक न होकर मानसिक होता है|
सुखों के गुणात्मक भेद की उपेक्षा की है|
सुखों को मापा नहीं जा सकता है| डेविडसन के अनुसार “8 दुखों में से 4 सुखों को घटाने की बात मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं हो सकती है|”
व्यक्ति और समाज की उपयोगिता के बीच सामंजस्य का अभाव| मैक्सी “बेंथम ने, जहां कहीं भी उन्हें दोनों के बीच का चयन का अवसर मिला है व्यक्तिवादी हित को प्रधानता दी है| वे दोनों के मध्य संतुलन स्थापित नहीं कर सके|”
बहुमत के अत्याचार को प्रोत्साहन| हेलोवेल “बेंथम का सिद्धांत बहुमत के अत्याचार को प्रोत्साहित करने वाला सिद्धांत है|” जॉन रॉल्स तथा रोबर्ट नॉजिक भी बहुमत के अत्याचार के संबंध में बेंथम के आलोचक हैं|
मौलिकता का अभाव, क्योंकि इन्होंने अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख हचिसन से ग्रहण किया है|
बेंथम के राजनीतिक विचारों को दो भागों में बांटा जा सकता है-
निषेधात्मक (2) विधेयात्मक
निषेधात्मक राजनीतिक विचार- इसमें उन विचारों को शामिल करते हैं, जिसमें पूर्ववर्ती राजनीतिक धारणाओं का खंडन किया है|
विधेयात्मक राजनीतिक विचार- इसमें बेंथम द्वारा प्रतिपादित राज्य, विधि, प्रभुसत्ता संबंधी विचारों को शामिल करते हैं|
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का खंडन-
बेंथम की आदर्शवादी और काल्पनिक सिद्धांतों में कोई रुचि नहीं थी| बेंथम ने जीवन की व्यवहारिक समस्याओं को अधिक महत्व दिया है|
बेंथम ने विशेष रुप से जॉन लॉक द्वारा प्रतिपादित प्राकृतिक अधिकार को पूर्णत अमान्य ठहराया है|
बेंथम प्राकृतिक अधिकारों की अवधारणा को मूर्खतापूर्ण, कल्पित, आधारहीन अधिकार एवं आध्यात्मिक तथा अराजक विभृम, शब्दाडंबर मात्र, कुबुद्धि अर्थहीन विचार और प्रमाद का गड़बड़ घोटाला बताया है|
बेंथम के अनुसार प्राकृतिक अधिकार “बैशाखियों के सहारे खड़ा बकवास मात्र है|” , “प्राकृतिक अधिकार अलंकारिक बकवास है|” , “प्राकृतिक अधिकार व प्राकृतिक कानून आतंकवादी भाषा के समान है, जिस पर कोई सीमा नहीं होती|”
बेंथम प्राकृतिक अधिकारों का खंडन अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख के आधार पर करता है| बेंथम के अनुसार प्राकृतिक अधिकारों से व्यक्ति के सुख में कोई वृद्धि नहीं होती है|
बेंथम ने वैधानिक अधिकारों का समर्थन किया है| बेंथम के अनुसार अधिकार मानव के सुखममय जीवन के वे नियम है जिन्हें राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होती है| राज्य ही अधिकारों का स्रोत होता है| कोई भी अधिकार राज्य के ऊपर नहीं है|
बेंथम पूर्णत: समानाधिकार का भी खंडन करता है| बेंथम के अनुसार पूर्ण समानता संभव नहीं है और पूर्ण समानता सब प्रकार के शासन तंत्र की विरोधी है|
स्वतंत्रता का विरोध-
बेंथम फ्रेंच क्रांतिकारियों के नारे ‘स्वतंत्रता, समानता भातृत्व’ की आलोचना करता है तथा कहता है कि “सुख ही अंतिम उद्देश्य है और स्वतंत्रता की उपयोगिता सुख (सुख में वृद्धि) की कसौटी है|”
स्वतंत्रता के संबंध में बेंथम का कहना है कि “मनुष्य बिना एक भी अपवाद के, दासता की स्थिति में जन्म लेते हैं|”
बेंथम बेंथम “व्यक्ति सुरक्षा चाहते हैं, न कि स्वतंत्रता|”
बेंथम ने प्राकृतिक स्वतंत्रता व नागरिक स्वतंत्रता के मध्य अंतर किया है| बेंथम के अनुसार “प्राकृतिक स्वतंत्रता मेरी वह स्वतंत्रता है जिसके अनुसार मैं इच्छा अनुसार कुछ भी कर सकता हूं पर नागरिक स्वतंत्रता के अनुसार मैं वही कर सकता हूं जो मेरे समुदाय के हित में हो|”
Note- बेंथम ने प्राकृतिक कानूनों की भी आलोचना की है|
अनुबंधनवादी धारणा का खंडन-
बेंथम ने अनुबंध सिद्धांत को शुद्ध कल्पना एवं झूठ बताया है| बेंथम ने लिखा है कि “प्राकृतिक अवस्था इतनी अवास्तविक है, कि उसे नहीं माना जा सकता|”
बेंथम के अनुसार राज्य, राजनीतिक समाज, अधिकार, कर्तव्य आदि किसी समझौते के परिणाम नहीं है| व्यक्ति राजाज्ञा का पालन इसलिए नहीं करता है कि उसके पूर्वजों ने कोई समझौता किया था, बल्कि इसलिए करता है कि ऐसा करना उसके लिए उपयोगी है| इस प्रकार राजाज्ञा का पालन व्यक्ति की आदत बन जाती है| अतः आज्ञा पालन की आदत ही समाज और राज्य का आधार है, समझौता नहीं|
बेंथम “मैंने प्राथमिक संविदा छोड़ दी है और इस मिथ्या प्रलाप को आवश्यकता वाले उन व्यक्तियों के मनोरंजन के लिए छोड़ दिया है|”
ईसाई नैतिकता का विरोध-
बेंथम नैतिकता तथा धर्म का विरोधी है| बेंथम के मत में नैतिकता व धर्म तभी स्वीकारणीय है, जब व्यक्ति का सुख बढ़ाएं तथा दुख कम करें|
बेंथम का उपयोगितावाद धर्मनिरपेक्ष राज्य का समर्थक है|
राज्य संबंधी विचार-
बेंथम के राज्य संबंधी विचारों का आधार उपयोगितावाद है|
बेंथम के अनुसार राज्य की उत्पत्ति का कारण आज्ञा पालन की आदत है| लोगों में आज्ञा पालन की आदत इसलिए आती है कि वह उनके लिए उपयोगी है और सामान्य सुख को बढ़ाने वाली है| राज्य की आज्ञा पालन से होने वाली हानि, अवज्ञा से होने वाली हानि से कम है|”
बेंथम के अनुसार राज्य एक कृत्रिम संस्था है| राज्य मनुष्यों का एक ऐसा समूह है, जिसे मनुष्य ने अपने सुख वृद्धि के लिए संगठित किया है|
राज्य का उद्देश्य ‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ है| अधिकतम सुख राज्य के सदस्यों के व्यक्तिगत सुखों का योग मात्र है, जिसमें समाज का सामूहिक हित शामिल नहीं है|
बेंथम राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य मानता है|
वेपर के अनुसार “बेंथम का राज्य ऐसा राज्य नहीं ,है जिसमें स्वतंत्रता को स्वयं एक उद्देश्य माना जाए, बेंथम के राज्य का उद्देश्य अधिकतम सुख है, अधिकतम स्वतंत्रता नहीं|” वेपर ने बेंथम के राज्य को नकारात्मक राज्य कहा है|
बेंथम व्यक्ति के कल्याण को समाज का कल्याण मानता है, इस तरह बेंथम व्यक्तिवाद का समर्थक है|
बेंथम राज्य को एक संप्रभु संस्था मानता है| उसने राज्य को ‘वैधानिक संप्रभु’ कहा है, उसकी संप्रभुता असीमित व निरपेक्ष है|
बेंथम के अनुसार राज्य एक विधि-निर्माता निकाय है, न कि एक नैतिक समुदाय|
बेंथम के अनुसार यदि सरकार अपने कर्तव्य अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का पालन नहीं करती है तो जनता को उसकी आज्ञा की अवहेलना का अधिकार है|
कानून संबंधी विचार-
बेंथम वैधानिक कानून का समर्थक है|
बेंथम कानून को संप्रभु का आदेश मानता है| राज्य संप्रभु है तथा विधि-निर्माता निकाय है| संप्रभु के आदेशों (कानूनों) की पालना करना प्रत्येक नागरिक कर्तव्य है, क्योंकि आज्ञापालन में ही उसका और सबका कल्याण निहित है|
बेंथम मुख्यतः दो प्रकार का कानून मानता है-
दैवीय कानून
मानवीय कानून|
दैवीय कानून रहस्यमय और ज्ञानातीत होते हैं, उनका स्वरूप भी निश्चित नहीं होता है अतः मानवीय कानूनों का निश्चित रूप राज्य के लिए आवश्यक है|
मानवीय कानून भी चार प्रकार के होते हैं-
संवैधानिक कानून
नागरिक कानून
फौजदारी कानून
अंतरराष्ट्रीय कानून
बेंथम के अनुसार कानून की परिभाषा- “कानून एक राजनीतिक समाज के आदेशों के रूप संप्रभु की इच्छा की अभिव्यक्ति है, जिसका सदस्य स्वभाव से पालन करते हैं|”
बेंथम के मत में कानून एक प्रतिबंध है, जो स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है क्योंकि राज्य का उद्देश्य अधिकतम सुख है, अधिकतम स्वतंत्रता नहीं| यहां बेंथम जॉन लॉक, रूसो, मांटेस्क्यू की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का खंडन करता है|
बेंथम के मत में विधि का औचित्य उपयोगितावादी सिद्धांत के आधार पर करना चाहिए| विधियों की उपयोगिता तीन प्रकार से सिद्ध होती हैं-
वह राज्य के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा प्रदान करें|
उससे लोगों की आवश्यकता की वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो|
प्रत्येक नागरिक एक दूसरे के साथ समानता का अनुभव करें|
बेंथम आर्थिक क्षेत्र में अस्हस्तक्षेप की नीति को अपनाकर मुक्त व्यापार एवं स्वच्छंद प्रतियोगिता का समर्थन करता है|
बेंथम ने कानून के दो कार्य बतलाए हैं-
स्वहित
परहित
बेंथम के अनुसार विधि निर्माता को विधि निर्माण में चार बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
आजीविका या जीवन सामग्री
सुरक्षा
प्रचुरता या संपन्नता
समानता| इनकी प्रधानता का क्रम आजीविका, सुरक्षा, प्रचुरता, समानता होना चाहिए|
बेंथम ने इंग्लैंड की तत्कालीन कानून व्यवस्था की आलोचना की है|
बेंथम ने श्रेष्ठ कानून के 6 लक्षण बताए हैं-
कानून जनता की आशा-आकांक्षा या विवेक बुद्धि के विपरीत नहीं होना चाहिए|
कानूनों की जनता को जानकारी होनी चाहिए, इसके लिए कानून का प्रचार-प्रसार करना चाहिए|
कानूनों में विरोधाभास नहीं होना चाहिए|
कानून सरल, स्पष्ट भाषा में होना चाहिए|
कानूनों को व्यावहारिक होना चाहिए|
कानूनों का पालन होना चाहिए तथा उल्लंघन पर आवश्यक दंड व्यवस्था होनी चाहिए|
न्याय संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम के न्याय संबंधी विचार सुधारात्मक थे| बेंथम ब्रिटिश न्याय पद्धति की आलोचना करके न्याय व्यवस्था में सुधार करना चाहता है|
ब्रिटिश न्याय पद्धति के बारे में बेंथम ने कहा कि “इस देश में न्याय बेचा जाता है और बड़े महंगे दामों पर बेचा जाता है, जो व्यक्ति मूल्य नहीं चुका सकता, वह न्याय भी प्राप्त नहीं कर सकता है|”
बेंथम की मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना वकील खुद बनना चाहिए|
वह न्यायिक औपचारिकता को समाप्त करना चाहता है, तथा औपचारिक वकालत के स्थान पर अनौपचारिक कार्यवाही का समर्थक है| वह वादी- प्रतिवादी में समझौता कराने के पक्ष में है|
बेंथम के अनुसार न्यायाधीशों और अदालत के अन्य अधिकारियों को वेतन के स्थान पर फीसे दी जाय|
बेंथम जूरी प्रथा के विरुद्ध था| वह एक ही न्यायाधीश द्वारा किसी मुकदमे का निर्णय किए जाने का समर्थक था| न्यायाधीशों की पीठ के बजाय एक न्यायधीश अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करेगा|
वह न्यायाधीशों को बुद्धि शून्य, अल्पदृष्टि, दुराग्रही, आलसी कहता है| जिनकी बुद्धि न्याय-अन्याय में भेद करने में असमर्थ है अर्थात न्यायाधीशों के प्रति बेंथम में सम्मान भाव नहीं था|
बेंथम जजों को व्यवसायियों के तौर पर जज एंड कंपनी कहता था|
वैसे न्याय व्यवस्था संबंधी विचार बेंथम के जीवन काल में उचित सम्मान नहीं पा सके, लेकिन न्याय-प्रणाली और विधि सुधार के इतिहास में बेंथम का स्थान सबसे ऊंचा है| सर हेनरीमैन के शब्दों में “बेंथम के समय से आधुनिक काल तक विधि व्यवस्था में जितने भी सुधार हुए हैं उसमें से मुझे एक भी ऐसा नहीं लगता, जिसमें प्रेरणा बेंथम से प्राप्त न हुई हो|”
सेबाइन “बेंथम का न्यायशास्त्र विषयक कार्य उसका सबसे महान कार्य है|“
संप्रभुता संबंधी बेंथम के विचार-
बेंथम ने अपनी पुस्तक Fragment on Government के चतुर्थ अध्याय में राज्य की संप्रभुता को सर्वोच्च सत्ता कहा है|
बेंथम संप्रभुता को निरपेक्ष एवं असीमित मानता है| संप्रभुता का प्रत्येक कार्य वैध है| संप्रभुता के संबंध में बेंथम सर्वोत्तम सत्ता का उल्लेख नहीं करता है|
बेंथम राज्य की विधि निर्माण क्षमता को संप्रभुता मानता है, किंतु उसे भी उपयोगिता की कसौटी पर कसता है|
बेंथम राज्य की संप्रभुता पर केवल जनहित के आधार पर ही प्रतिबंध लगाता है|
बेंथम की संप्रभुता निरंकुश नहीं है, बेंथम के शब्दों में “यदि विशाल जनमत किसी विधि का विरोध करता है तो संप्रभुता का कर्तव्य है कि उसे कानून का रूप कदापि न दे|”
इस तरह बेंथम ने संप्रभुता को हॉब्स की तरह असीमित, अदेय, निरपेक्ष एवं अभिभाज्य बताया है तथा शक्ति विभाजन को अस्वीकार किया है, लेकिन संप्रभुता को निरंकुश नहीं माना है|
बेंथम की दंड संबंधी धारणा-
बेंथम इंग्लैंड की तत्कालीन दंड व्यवस्था का आलोचक था| बेंथम की दंड व्यवस्था निवारक सिद्धांत तथा सुधारात्मक सिद्धांत का मिश्रण थी|
बेंथम उपयोगिता के आधार पर दंड और अपराध की विवेचना करता है| उसके अनुसार सभी प्रकार के दंड स्वयं में एक बुराई है, लेकिन वह उससे भी बड़ी बुराई का निराकरण करते हैं, इसलिए दंड उचित है|
बेंथम की दंड व्यवस्था की निम्न विशेषताएं हैं-
दंड की मात्रा अपराध के अनुपात में हो तथा दंड समान भाव से दिया जाए|
दंड अनावश्यक व निर्दयतापूर्ण नहीं होना चाहिए|
दंड आदर्श होना चाहिए, जिससे अपराधी व अन्य लोगों को शिक्षा मिले|
दंड में सुधार की भावना निहित हो|
अपराध से पीड़ित पक्ष की क्षतिपूर्ति कराई जानी चाहिए|
दंड जनमत के अनुकूल होना चाहिए|
दंड ऐसा हो कि भूल का पता लगने पर दंड को निरस्त या कम किया जा सके|
मृत्युदंड तभी दिया जाना चाहिए जब वह सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से पूर्णत:आवश्यक हो|
राजनीतिक समाज व प्राकृतिक समाज-
बेंथम राजनीतिक समाज व प्राकृतिक समाज में अंतर करता है|
राजनीतिक समाज-
बेंथम “जब कुछ लोग किसी ज्ञात व्यक्ति या व्यक्तियों की सभा, जिसका एक निश्चित स्वरूप है (शासक या सरकार) की आज्ञा पालन के अभ्यस्त हैं ,तब ऐसी प्रजा व शासक को राजनीतिक समाज कहा जाएगा|”
प्राकृतिक समाज-
जब व्यक्ति वार्तालाप के तो अभ्यस्त होते हैं, पर किसी निश्चित शासक के आज्ञा पालन के अभ्यस्त न हो तो, उसे प्राकृतिक समाज कहा जाएगा|”
बेंथम के मत में नागरिक राज्य के आदेशों का पालन दो आधारों पर करते हैं-
आज्ञाकारिता (Imperation)- राज्य नागरिकों की इच्छा की पूर्ति करता है तथा उनके सुखों को बढ़ाता है|
शारीरिक दंड (Contrectatin)- भय की वजह से व दुखों से बचने के लिए
आज्ञाकारिता पर आधारित राजनीतिक समाज ज्यादा अच्छा होता है|
बेंथम एक सुधारवादी विचारक था, जिसने अनेक राजनीतिक तथा शैक्षणिक सुधारों का समर्थन किया था|
बेंथम ने राजतंत्र, कुलीनतंत्र और लोकतंत्र में राजतंत्र व कुलीन तंत्र को निकृष्ट बताया है, क्योंकि राजतंत्र व कुलीनतंत्र में अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख की धारणा साकार नहीं हो सकती है|
बेंथम लोकतंत्र (गणतंत्र) का समर्थक था तथा पुरुष व्यस्क मताधिकार, वार्षिक संसदीय निर्वाचन, गुप्त मतदान, नियुक्तियों के लिए प्रतियोगिता परीक्षा आदि वैधानिक उपायों से लोकतंत्र की स्थापना करने के समर्थक थे|
बेंथम गुप्त मतदान प्रणाली का समर्थन करता है तथा महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में नहीं था|
बेंथम ने एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य का समर्थन किया है|
एक सदनीय संसद का समर्थन करता है तथा लार्ड सभा के अंत की कहता है|
बेंथम विधायकों के अधिकारों में वृद्धि का समर्थन करता है, ताकि वे नागरिक अधिकारों को सुरक्षित रख सके| उनके अनुसार विधायक ‘नैतिक ओवरसीवर’ (अलग करना) और ‘निर्देशक’ होते हैं|
कैदियों के लिए औद्योगिक व शिल्प-शिक्षण का सुझाव बेंथम ने दिया|
कैदियों के चरित्र सुधार के लिए नैतिक व धार्मिक शिक्षा का समर्थन किया|
पेनोप्टिकॉन (Panopticon) योजना- अपराधियों के दैनिक जीवन को व्यवस्थित करने के लिए बेंथम ने एक योजना बनाई, जिसको पेनोप्टिकॉन (Panopticon) योजना कहा जाता है| इस योजना के अनुसार कारागार की इमारतें अर्धचंद्राकार बनाई जाए, जिससे कि जेल का अधिकारी अपने निवास स्थान से सभी जेल की कोठरियों पर भली-भांति दृष्टि रख सकें|
बेंथम ने पेनोप्टिकॉन या इंस्पेक्शन हाउस को उपयोगिता का आधार माना है, क्योंकि इससे दुख का वैज्ञानिक मापन किया जा सकता है|
मिशेल फूको ने पनोप्टिकॉन योजना को ‘पूंजीवादी राज्य की दंड व्यवस्था का उच्चतम रूप’ बताया है|
बेंथम ने दो प्रकार की शिक्षा योजना प्रस्तुत की-
प्रथम गरीब व अनाथो के लिए
द्वितीय मध्यम व उच्च वर्गों के लिए|
बालकों के चरित्र निर्माण, कला कौशल एवं व्यवसायिक शिक्षा का समर्थन किया|
बेंथम के अनुसार शिक्षा का वहन राज्य करे तथा शिक्षा का उद्देश्य जीवन को सहचारी और अनुशासित बनाना होना चाहिए|
बेंथम ने शिक्षा में मॉनिटर पद्धति का समर्थन किया अर्थात उच्च कक्षा के बुद्धिमान छात्र निम्न कक्षा के छात्रों को पढ़ाये|
बेंथम उपनिवेशवाद के विरोधी थे|
उपनिवेशवाद को बेंथम शोषक व शोषित दोनों के लिए ही खतरनाक मानते थे|
जब बेंथम के मित्र जेम्स मिल इस्ट इंडिया कंपनी में अधिकारी बने तो, बेंथम ने भारतीय उपनिवेशवाद में रुचि ली| बेंथम ने भारत में कानूनी व अन्य सुधार लागू करने के लिए 1827 में भारत के तात्कालिक गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक को प्रेरित किया|
सेबाइन ने बेंथम को दार्शनिक आमूल परिवर्तनवाद का प्रणेता कहा है|
आमूल परिवर्तनवादी ऐसे विचारक होते हैं, जो अपने समय के प्रचलित विचारों को पूर्णतया बदल देते हैं|
बेंथम ने ब्रिटेन में प्रचलित तात्कालिक कानून, न्याय, दंड व्यवस्था आदि विचारों का खंडन किया है|
बेंथम ने प्राकृतिक अधिकारों, प्राकृतिक अवस्था, प्राकृतिक कानून का खंडन करके वैधानिक अधिकारों व वैधानिक कानूनो की स्थापना की है|
बेंथम ने फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर ‘दार्शनिक आमूल परिवर्तन सुधारवादी’ (Philosophical radicalism) नामक दल की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक संस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन करना और परिवर्तन को ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम हित’ की कसौटी पर कसना|
डॉयल “बेंथम आमूल परिवर्तनवादी सुधार ग्रुप के प्रमुख राजनीतिक दार्शनिक थे| रूसो के समान वास्तविकता से भागकर उन्होंने रहस्यवाद की शरण नहीं ली, बल्कि उन्होंने समस्याओं पर वैज्ञानिक की तरह से विचार किया|”
बेंथम वैधानिक अधिकारों का समर्थन करता है तथा अधिकारों का निर्धारण उपयोगिता के आधार पर होना चाहिए| बेंथम के अनुसार “अधिकार मनुष्य के सुखमय जीवन के वे नियम है, जिन्हें राज्य के कानूनों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है|”
बेंथम संपत्ति के अधिकार का उपयोगिता के आधार पर समर्थन करता है| निजी संपत्ति का समर्थन करता है, क्योंकि निजी संपत्ति अधिकतम सुख प्राप्ति का एक साधन है|
बेंथम ने अधिकारों के दो प्रकार बताए हैं-
वैधानिक अधिकार- ऐसे अधिकार जो संप्रभु द्वारा निर्मित होते हैं| वैधानिक अधिकार का विषय बाह्य आचरण होता है|
नैतिक अधिकार- इनका विषय आंतरिक आचरण है|
पूर्ण स्वतंत्रता तथा पूर्ण समानता देना असंभव है, क्योंकि बेंथम के अनुसार एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो स्वतंत्र पैदा हुआ हो|
बेंथम अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी समावेश करता है तथा अधिकारों और कर्तव्यों को अन्योन्याश्रित मानता है|
बेंथम ने स्त्रियों के उद्धार पर बल दिया है|
बेंथम के मत में स्त्री- पुरुष के बीच प्राकृतिक भेद स्त्रियों के दमन का आधार नहीं हो सकता है|
बेंथम ने शासन में महिलाओं की समान हिस्सेदारी का समर्थन किया है|
बेंथम ने अपनी पुस्तक पार्लियामेंट रिफॉर्म्स में स्त्री मताधिकार का समर्थन किया है, किंतु अपनी कृति कांस्टीट्यूशनल कोड में बेंथम कहता है कि स्त्री मताधिकार के लिए अभी सही समय नहीं आया है, अतः स्त्री मताधिकार नहीं दिया जा सकता है| इस तरह बेंथम स्त्रियों के मताधिकार का समर्थक नहीं था|
बेंथम ने स्त्रियों के लिए शिक्षा का समर्थन किया है तथा इसके लिए 1816 में क्रिस्टोमैथिया नामक नया पाठ्यक्रम तैयार किया
बेंथम की निम्न आलोचनाएं की जाती हैं-
बेंथम ने उपयोगितावाद सिद्धांत को बहुत अधिक भौतिकवादी बनाने के चक्कर में नैतिकता को तिलांजलि दे देता है| यदि कुछ बदमाश एक सज्जन को लूटने में आनंद का अनुभव करते हैं, तो बेंथम की दृष्टि में यह सही है|
रॉबर्ट एच मरे के अनुसार “यदि हम बेंथम की तरह अंतरात्मा की अवहेलना करने लगे तो नैतिक और अनैतिक कृत्यों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा, हालांकि उपयोगिता की दृष्टि से कुछ कार्य वांछनीय होंगे कुछ नहीं होंगे|”
जॉन रॉल्स “उपयोगितावाद में सामूहिक हित की वृद्धि के लिए व्यक्ति के हित की बलि दे दी जाती है|”
बेंथम का उपयोगितावाद केवल मात्रात्मक सुख का समर्थक है, गुणात्मक सुख का नहीं|
बेंथम का सुखवादी मापदंड दोषपूर्ण है|
बेंथम किसी भी कार्य के औचित्य को सुख-दुख की मात्रा को निर्धारित करने वाले कारको को निश्चित अंक देकर, उसका योग निकालकर निर्धारित करना चाहता है, जो सही नहीं है| मेक्कन के अनुसार “राजनीति में अंकगणित का प्रयोग उतना ही निरर्थक है, जैसे अंकगणित में राजनीति का|“
बेंथम का उपयोगितावाद सिद्धांत अव्यवहारिक व अमनोवैज्ञानिक है|
बेंथम का उपयोगितावादी सिद्धांत समाज के बहुमत के अत्याचारों को प्रोत्साहित करने वाला है|
वेपर के अनुसार “बेंथम के दर्शन में मौलिकता का अभाव है, वह अपने पूर्ववर्ती सिद्धांतों को पूरी तरह से गले के नीचे उतार तो गया था, परंतु उनको पचा नहीं पाया|”
मैक्सी “बेंथम का उपयोगितावाद भेड़िया समाज में भेड़ियापन तथा साधु समाज में साधुता को महत्व देता है, जबकि मिल प्रत्येक अवस्था में साधुपन को महत्व देता है|”
कार्लाइल “बेंथम का सुखवादी दर्शन ‘सूअरों का दर्शन (Pig Philosophy)’ है|”
कार्ल मार्क्स ने बेंथम को “अति दंभी, नीरस, मोटी जीभ वाला, सामान्य पूंजीवादी, बुद्धिजीवी कहा है|”
जोहान गोटे ने बेंथम को “अत्यंत गया गुजरा आमूलवादी गधा कहा है|”
एमर्सन (Emerson) ने बेंथम के दर्शन को ‘बदबूदार (Stinking)’ बताया है|
लियोन ट्रोट्स्की ने बेंथम के उपयोगितावादी दर्शन को ‘खाना बनाने की किताब’ (A philosophy of social cookbook recipes) बताया है|
नीत्शे “बेंथम फटे कंबल की आत्मा, जोकर का चेहरा है, वह बिल्कुल मामूली सा है, उसमें न गुण है न ही आत्मा है|”
राजनीतिक दर्शन को बेंथम की निम्न देन है-
उपयोगितावाद के दार्शनिक संप्रदाय की स्थापना करने और उसे एक वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय बेंथम को ही है| हालवी के अनुसार “बेंथम कि यह बहुमूल्य देन है, कि उसने उपयोगिता के सिद्धांत द्वारा एक वैज्ञानिक नियम, एक क्रियाशील प्रशासन, वास्तविकता और औचित्य की खोज की है|”
बेंथम ने राज्य को मनुष्य के लिए माना है|
बेंथम ने लोकतंत्र (गणतंत्र) व लोकतांत्रिक संस्थाओं का समर्थन किया है| बेंथम के शब्दों में ”इस कुटिल संसार को गणतंत्र का जाल बिछाकर ही सुधारा जा सकता है|”
वेपर के अनुसार “बेंथमवाद जनता के प्रतिनिधियों में विश्वास नहीं करता है, वह उन्हें जनता को लूटने वाला मानता है|”
बेंथम के उपयोगितावाद का भारत पर भी प्रभाव पड़ा है| लॉर्ड विलियम बैंटिक ने भारत में अधिकांश सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सुधार बेंथम के विचारों से प्रभावित होकर किए हैं| बैंटिक ने बेंथम को लिखा था कि “वास्तव में भारत का गवर्नर जनरल होकर मैं नहीं, बल्कि आप जा रहे हैं|”
बेंथम ने मैक्यावली की तरह राजनीति को धर्म व नैतिकता से पृथक किया है| नैतिकता व धर्म तभी उचित है, जब वे व्यक्तियों का सुख बढ़ाएं तथा दुख को कम करें|
बेंथम ही वह पहला आधुनिक विचारक है, जिसने राजनीति शास्त्र में अनुसंधान और गवेषणा को महत्व दिया है तथा सार्वजनिक नीति के क्षेत्र में गवेषणात्मक पद्धति लागू की है और अनुभववादी तथा आलोचनात्मक पद्धति का सूत्रपात किया है|
बेंथम ने प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया है|
शिक्षा में ‘मॉनिटर पद्धति’ का समर्थन किया है अर्थात बुद्धिमान छात्र पढ़ाएं|
जेल सुधार की ‘पनोप्टिकन’ योजना प्रस्तुत की है|
बेंथम का यह विचार बहुत महत्वपूर्ण और सर्वथा आधुनिक है कि राज्य को अपना औचित्य स्थापित करने के लिए यह सिद्ध करना होगा कि वह वर्तमान समाज की उपयुक्त सेवा कर रहा है| इस तरह बेंथम ने सेवाधर्मी राज्य के विचार को बढ़ावा दिया है जो कल्याणकारी राज्य की संकल्पना के रूप में विकसित हुआ है|
सेबाइन ने बेंथम को ‘दार्शनिक आमूल परिवर्तनवादी’ (दार्शनिक उग्रवादी) कहा है, क्योंकि बेंथम ने अपने समय में प्रचलित प्राकृतिक अधिकार की धारणा व ब्रिटेन में प्रचलित अनेक सिद्धांतों में परिवर्तन किया है|
कैटलिन ने बेंथम के दर्शन को ‘व्यक्तिवादी व अहस्तक्षेप का सिद्धांत’ कहा है|”
आईवर ब्राउन ने बेंथम को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था कि “बेंथमवाद से उसका भद्दापन निकाल दिया जाए, तो फिर विशुद्ध मानवतावाद के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं देगा|”
जे एस मिल ने बेंथम को “प्रगतिशील दार्शनिक, मानवता का महान कल्याणकारी, यथास्थिति का शत्रु तथा स्थापित चीजों पर प्रश्नचिन्ह” लगाने वाला बताया है|
प्रशंसा करने के बावजूद भी मिल ने यह भी कहा है कि “बेंथम ऐसा लड़का था जो कभी बड़ा ही नहीं हुआ जिसे न बाहरी अनुभव था, न अंदरूनी और जो निजी आय के सहारे बिना कभी बड़े हुए एक हिजड़े का जीवन व्यतीत करता रहा|”
बेंथम ने स्वयं को ‘रानी चौक का भिक्षु’ तथा ‘महत्वकांक्षियों में सबसे महत्वकांक्षी’ कहते थे|
फ्रांसीसी दार्शनिक क्लॉड एड्रियन हेल्वेंटियस उनके प्रेरणा स्त्रोत थे| हेल्वेंटियस से बेंथम ने यह सीखा कि कानून बनाना सबसे महत्वपूर्ण लौकिक कार्य है तथा कानून के द्वारा समाज में कोई भी सुधार लाया जा सकता है|
राजा राममोहन राय से बेंथम की मित्रता थी तथा दोनों में पत्र व्यवहार भी था| राजा राममोहन राय, बेंथम के प्राकृतिक अधिकारों संबंधी विचार तथा उपयोगितावाद से प्रभावित थे|
बेंथम की सुधारवादी योजनाओं तथा गांधीजी की सुधारवादी योजनाओं में समानता के कारण ब्रोनोवस्की व मजलिस ने लिखा है कि “महात्मा गांधी आधुनिक बेंथम कहे जा सकते हैं|”
विम किमलिका का मत है कि बेंथम का यह विचार गलत है कि मनुष्य केवल सुख चाहता है|
बेंथम को ‘मुक्त व्यापारियों का पिता’ भी कहा जाता है|
बेंथम “युद्ध व तूफान पढ़ने के लिए श्रेष्ठतम हो सकते हैं, लेकिन सहन करने के लिए शांति व सुरक्षा ही श्रेष्ठ होती है|”
वेपर “बेंथम ने ज्ञान संबंधी विचारधारा को लॉक व ह्यूम से, सुख-दुख का सिद्धांत हेल्वेटियस से, सहानुभूति व असहानुभूति का विचार ह्यूम से लिया है|”
बेंथम की इच्छा अनुसार उसके शरीर को जंतु विज्ञान प्रयोगशाला को दे दिया गया| जहां से उनके कंकाल को लंदन विश्वविद्यालय में सुरक्षित रखा गया, जो आज भी सुरक्षित है| बेंथम के अस्थि पंजर (कंकाल) लंदन यूनिवर्सिटी में उस कपड़े से ढककर रखा है, जिनको वह पहन कर अपनी प्रिय डॉबीन छड़ी लेकर हर सुबह अपने वेस्टमिंस्टर गार्डन में घूमा करते थे|
बेंथम अपने खाने के कमरे को ‘दुकान’, चाय के बर्तन को ‘डिक’ काम करने वाले टेबल को ‘केरोसियो’ कहा करते थे तथा उनकी टेबल को एक ऊंची जगह पर रखा गया था जिसके चारों ओर चलने का नीचा रास्ता बना हुआ था जिससे वह ‘हिलती खाई या कुआं’ कहते थे|
बेंथम ने कहा कि “सारी खुशियां और दुख ले लेने से, इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं और बिना इच्छा के कोई कार्य नहीं होता है|”
बेंथम “उपयोगिता का नैतिक विश्व में वही स्थान है, जो गणित में रेखा गणित का स्थान है|”
ह्यूम “बेंथम के सिद्धांत ने, आधुनिक राजनीतिक चिंतन के दो विषय एक साथ लाए- 1 व्यक्तिवाद, 2 आधुनिक सार्वभौम राज्य|”
बेंथम के सिद्धांतों ने समाजवादी विचारों को भी प्रभावित किया है| इसी कारण बेत्रिस वेव ने बेंथम को सिडनी वेब का बौद्धिक पिता कहा है|
बेंथम को विधिशास्त्र का न्यूटन भी कहा जाता है|
बेंथम के उपयोगितावादी सिद्धांत का जेम्स मिल ने इतिहास, जॉन स्टुअर्ट मिल ने राजनीति, रिकार्डो ने अर्थशास्त्र, सैमुअल रोमिले व ऑस्टिन ने विधिक क्षेत्र में प्रयोग किया है|
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