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दबाव समूह (Pressure Group) BY Nirban PK Sir || In Hindi

दबाव समूह (Pressure Group)

    • दबाव समूह एक संगठित या असंगठित समूह होता है, जो सरकार पर सामूहिक प्रत्यनो से दबाव डालकर अपने हितों की पूर्ति का प्रयास करते हैं|

    • दबाव समूह राजनीति से नहीं जुड़ा होता है, ना ही इनका उद्देश्य राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति होता है|

    • इनका स्वरूप राजनीतिक नहीं होता है|

    • इनका एकमात्र उद्देश्य अपने विशेष हितों की पूर्ति करना होता है|

    • दबाव समूह अमेरिकी राजनीति व्यवस्था की देन है|

    • दबाव समूहों का अध्ययन 1960 के दशक से ज्यादा होने लगा|


    • दबाव समूह के अन्य नाम- प्रभावक गुट, हितेषी समूह, हित समूह, उत्प्रेरक गुट, संगठित समूह 


    • बहुलवादी दबाव समूह के स्थान पर केवल समूह शब्द का प्रयोग करते हैं|

    • फायनर ने दबाव समूहों को ‘अज्ञात साम्राज्य’ की संज्ञा दी है तथा तीसरा सदन कहा है|

    • मैकीन ने इन्हें अदृश्य सरकार कहा है|

    • सैलिन ने दबाव समूहों को अनौपचारिक सरकार कहा है|

    • एलेन बॉल ने दबाव समूहों को ‘प्रभावक गुट’ कहा है|

    • रॉडी गैर ने इन्हें ‘सरकारी संचार सूत्र’ कहा है|

    • एलेन पाटर ने इन्हें ‘संगठित समूह’ कहा है|

    • हैरी एकस्टीन ने दबाव समूहों को राजनीतिक और गैर राजनीतिक के मध्य स्तरीय प्रक्रिया कहा है|

    • जे के गालब्रेथ ने दबाव समूहों को प्रति संतुलनकारी शक्ति कहा है| 

    • थोरस्टीन सेलिन व रिचर्ड लैंबर्ट ने दबाव समूहों को गैर सरकारी शासन कहा है| 

    • ओदगार्द (ऑडीगार्ड) एवं उनके सहयोगियों के अनुसार “एक दबाव समूह उन लोगों का औपचारिक संगठन होता है, जिसके एक या एक से अधिक सामान्य उद्देश्य होते हैं और जो घटनाक्रम को, विशेष रूप से विधि निर्माण तथा प्रशासनिक कार्यों को प्रभावित करने में प्रयत्नशील रहते हैं, जिससे कि वे अपने हितों की रक्षा कर सके और उन्हें प्रोत्साहन भी दे सकें|”

    • माइनर वाइनर “हित या दबाव समूह से हमारा तात्पर्य शासन के ढांचे से बाहर स्वैच्छिक रूप से संगठित ऐसे समूहों से होता है, जो प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति तथा नामजगदी, विधि निर्माण और सार्वजनिक नीति के क्रियान्वयन को प्रभावित करने में प्रत्यनशील रहते हैं|”

    • कार्ल जे फ्रेडरिक “क्या कूड़ा ढोने वाले और क्या राजनीतिक विज्ञान के अध्येता, सभी दबाव समूहों को हेय दृष्टि से देखते हैं| इन्हें ऐसी पाश्विक शक्ति माना जाता है, जो लोकतंत्र की आधारशिला को नष्ट करते हैं|”

    • मेनकर ऑल्सन “लोग हित समूहों में लोकहित के लिए शामिल होते हैं|”


    • USA में इन संगठित समूहो के लिए हित समूह शब्द का प्रयोग किया जाता है, जबकि ब्रिटेन में इन्हें दबाव समूह कहा जाता है| 


    हित समूह- जब कोई संघ अपने हितों की पूर्ति के लिए राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करता है, तो उसे हित समूह कहते हैं|

    दबाव समूह- जब यह संगठन हित पूर्ति के लिए सरकार पर दबाव डालता है, तो इससे दबाव समूह कहते हैं|



    समूह सिद्धांत-

    • प्रतिपादन- ऑर्थर बेंटले ने अपनी पुस्तक The Process of Government 1908 में किया|

    • इस पुस्तक में उन्होंने सर्वप्रथम समूहों के आनुभविक अध्ययन पर बल दिया|

    • इसके पश्चात व्यवहारवादी डेविड ट्रूमैन ने अपनी पुस्तक The Governmental Process 1951 में समूहों का सबसे विस्तृत अध्ययन किया|

    • इसके बाद V O K जूनियर ने अपनी पुस्तक Political Parties and Pressure Group में दबाव समूहों का विवेचन किया| 

    • डेविड ईस्टन ने समूहों व संगठनों की आंतरिक राजनीतिक व्यवस्था को पैरा पॉलिटिकल व्यवस्था (Pra- Political System) के रूप में परिभाषित किया है| 

    • ऑर्थर बेंटले ने समूह की कल्पना व्यक्तियों के समूह के रूप में नहीं, बल्कि गतिविधियों के समूह (Group as a Mass Of Activity) के रूप में की है| 



    दबाव समूह के लक्षण या विशेषताएं-

    1. दबाव समूह का उद्देश्य सदैव सीमित एवं विशिष्ट होता है|

    2. दबाव समूह संगठित या असंगठित हो सकते हैं|

    3. इनकी सदस्यता सीमित होती है| जैसे श्रमिक संघो में केवल श्रमिक तथा वाणिज्य मंडल में केवल व्यापारी होते हैं|

    4. दबाव समूह गैर राजनीतिक संगठन होते हैं|

    5. प्रत्येक दबाव समूह का हित निश्चित होता है तथा हित पूर्ति हेतु सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं|

    6. दबाव समूहों की सदस्यता ऐच्छिक होती है तथा ये सर्वव्यापक प्रवृत्ति के होते हैं| 

    7. इनका कार्यकाल अनिश्चित होता है| 

    8. ये राजनीतिक दलों की वैचारिक पर वित्तीय सहायता करते हैं| 



    राजनीतिक दल एवं दबाव समूह में अंतर

    1. राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं, जबकि दबाव समूह का सत्ता से कोई संबंध नहीं है|

    2. राजनीतिक दलों का स्वरूप राजनीतिक होता है, जबकि दबाव समूह का स्वरूप गैर राजनीतिक होता है|

    3. राजनीतिक दल औपचारिक तथा दबाव समूह अनौपचारिक होते हैं|

    4. राजनीतिक दलों के उद्देश्य सार्वजनिक तथा दबाव समूह के उद्देश्य निजी होते हैं| 

    5. दबाव समूह अपने संगठन व कार्यक्रम में राजनीतिक दलों की अपेक्षा अधिक सुव्यवस्थित होते हैं|

    6. एक व्यक्ति, एक समय पर एक राजनीतिक दल का सदस्य होता है, जबकि एक व्यक्ति अनेक दबाव समूहों का सदस्य हो सकता है|

    7. राजनीतिक दल उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए केवल संवैधानिक साधनों का प्रयोग करते हैं, जबकि दबाव समूह संवैधानिक एवं गैर संवैधानिक दोनों तरीके अपनाते हैं|

    8. आमंड के अनुसार “दबाव समूह हित प्रकटीकरण का कार्य करते हैं, जबकि राजनीतिक दल हित संयुक्तिकरण का कार्य करते हैं|

    9. दबाव समूहों का आकार व सदस्य संख्या राजनीतिक दलों की अपेक्षा कम होती है| 



    दबाव समूह के कार्य करने के तरीके- 

    1. प्रेस, समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि प्रचार-प्रसार के साधनों का उपयोग अपने हित की पूर्ति हेतु करते हैं|

    2. नीति निर्माताओं के समक्ष अपने पक्ष को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आंकड़े प्रकाशित करवाते है|

    3. विचार-विमर्श, वाद-विवाद के लिए गोष्ठिया, सेमिनार, वार्ताएं तथा भाषण आदि आयोजित करते है|

    4. लॉबिंग- लॉबिंग से अभिप्राय है ‘सरकार को प्रभावित करना’ यह दबाव निर्माण की पद्धति है, जो अमेरिका में पाई जाती है| अमेरिकी सीनेट के सदस्यों को प्रभावित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है|

    5. कभी-कभी दबाव समूह उग्र आंदोलन तथा प्रदर्शन भी करते हैं|

    6. अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दबाव समूह रिश्वत, घूस व बेईमानी के तरीके भी अपनाते हैं|

    7. दबाव समूह ऐसे सदस्यों को चुनावों में लिए दलीय प्रत्याशी मनोनीत करवाने में मदद करते हैं, जो आगे चलकर संसद में उनके हितों की अभिवृद्धि में सहायक हो|



     दबाव समूहों का वर्गीकरण- 


    समूह कई प्रकार के होते हैं-

    1. सांप्रदायिक समूह-

    • इनकी सदस्यता जन्म आधारित होती है| जैसे- परिवार, जनजातीय, जातियां, जातीय समूह

    • आयरलैंड, इटली व विकासशील देशों में इनका प्रभाव ज्यादा है| 


    1. संस्थागत समूह-

    • इनका निर्माण विभिन्न संस्थाओं के अंदर होता है| जैसे- नौकरशाही, विधायिका, कार्यपालिका, सेना आदि| 

    • ये समूह सरकारी मशीनरी का हिस्सा होते हैं| 

    • ये अधिनायकवादी शासन व्यवस्थाओ में ज्यादा प्रभावशाली होते हैं| 


    1. सहयोगी या साहचर्य समूह-

    यह समूह उन लोगों द्वारा बनाए जाते हैं, जो साझा लेकिन सीमित हितो को प्राप्त करना चाहते हैं| 

    • इन समूहों को सामान्यता: औद्योगिक समाज की एक विशेषता के रूप में देखा जाता है| 

    • ऐसे समूहों को सामान्यता: हित समूह कहा जाता है| 

    • मजदूरों, शिक्षकों, वकीलों, किसानो, व्यवसायियों आदि के दबाव समूह इसी प्रकार के समूह है| 


    • इन्हें दो भागो में बांटा जाता है

    1. अनुभागीय और प्रचार समूह 

    2. अंदरूनी और बाहरी समूह


    1. अनुभागीय और प्रचार समूह-

    अनुभागीय समूह (Sectional Group)-

    • अनुभागीय समूह को सुरक्षात्मक या कार्यात्मक समूह भी कहा जाता है| 

    • ये सामान्यतः अपने सदस्यों के हितों को बढ़ाने व उनकी रक्षा करने के लिए कार्य करते हैं| 

    • ये समाज के एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं| जैसे- श्रमिक, व्यापारी, शिक्षक, डॉक्टर संघ आदि| 

    • उदाहरण- ट्रेड यूनियन,व्यापारिक संघ



    प्रचार समूह-

    • साझा मूल्यों, आदर्शो या सिद्धांतों को बढ़ाने के लिए प्रचार समूहों की स्थापना की जाती है| 

    • इन्हें कारण या दृष्टिकोण समूह भी कहा जाता है| 

    • संयुक्त राज्य अमेरिका में इनको सार्वजनिक हित समूह कहा जाता है| 

    • ये सामूहिकता को बढ़ावा देते हैं| 

    • अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शामिल होने पर इन समूहों को सामान्यतः NGO’s कहा जाता है| 

    • उदाहरण- गर्भपात पर पसंद, नागरिक स्वतंत्रता के पक्ष में अभियान, टीवी पर सेक्स और हिंसा के खिलाफ अभियान, प्रदूषण, पशु क्रूरता, पारंपरिक या धार्मिक मूल्यों की रक्षा के लिए विरोध अभियान आदि| 


    1. अंदरूनी और बाहरी समूह-

    अंदरूनी समूह-

    • अंदरुनी समूह सरकारी निकायों से नियमित परामर्श या प्रतिनिधित्व के माध्यम से सरकार तक नियमित विशेषाधिकार प्राप्त और संस्थागत पहुंच का लाभ उठाते हैं| 

    • यदि सरकार द्वारा इनके विचारों की उपेक्षा की जाती है, तो तीव्र विरोध करते हैं| 


    बाहरी समूह

    • बाहरी समूह से या तो सरकार द्वारा परामर्श नहीं किया जाता है, या केवल अनियमित रूप से परामर्श किया जाता है| 

    • सामान्यतः ये वरिष्ठ लेवल तक पहुंच नहीं रखते हैं| 

    • औपचारिक पहुंच के कमी के कारण इन समूहों की नीति प्रक्रिया तक पहुंच नहीं होती है| 



    विभिन्न विचारको द्वारा वर्गीकरण-

    1. आमंड का वर्गीकरण (चौमुखा वर्गीकरण)

    • G.A आमंड ने दबाव समूहों की चार श्रेणियां बतायी हैं-

    1. संस्थात्मक दबाव समूह

    2. समुदायात्मक दबाव समूह 

    3. गैर समुदायात्मक दबाव समूह

    4. प्रदर्शनात्मक दबाव समूह 


    1. संस्थात्मक दबाव समूह

    • यह दबाव समूह राजनीतिक दलों, व्यवस्थापिकाओ, कार्यपालिकाओ, नौकरशाही तथा सेना के अंदर बनते हैं

    • यह अनौपचारिक संगठन होते हैं


    1. समुदायात्मक दबाव समूह (Associational pressure group)

    • यह दबाव समूह विशेष व्यक्तियों के हितो का प्रतिनिधित्व करने के लिए औपचारिक रूप से संगठित होते हैं|

    • इनका औपचारिक संगठन, ऑफिस, सविधान सब होता है |

    • ये विश्व में सबसे शक्तिशाली दबाव समूह है|

    • जैसे- व्यवसायिक समूह (फिकी), औद्योगिक संघ, मजदूर संघ


    1. गैर समुदायात्मक दबाव समूह (Non Association Pressure group)-

    • ऐसे समूह वर्ग, रक्त संबंध, धर्म, क्षेत्रीयता व हित संचार के किसी अन्य परंपरागत आधार पर बनते हैं|

    • ये दबाव समूह विकासशील व पिछड़े देशों में अधिक प्रभावी होते हैं|

    • यह औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार का संगठन है|

    • जैसे- जाट महासभा, क्षत्रिय महासभा आदि|


    1. प्रदर्शनात्मक दबाव समूह (Anomic Pressure group)

    • ऐसे समूह भीड़ व प्रदर्शन के रूप में अचानक ही प्रकट होते हैं और विलुप्त होते हैं|

    • ये अनौपचारिक संगठन होते हैं|

    • जैसे- छात्र समूह, उग्रवादी गुट आदि|



    1. रोबर्ट सी बोन का वर्गीकरण

    • बोन ने दबाव समूह के दो प्रकार बताए हैं-

    1. परिस्थिति जन्य दबाव समूह- ऐसे दबाव समूह अपने सदस्यों की रक्षा और सुधार से संबंधित होते हैं| जैसे- कृषक दबाव समूह, छात्र संगठन


    1. अभिवृत्ति जन्य दबाव समूह- ये समूह कम से कम समय में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार को मजबूर करने का प्रयास करते हैं| जैसे- महिला दबाव समूह, पर्यावरण आंदोलन



    1. जीन ब्लाण्डेन का वर्गीकरण- दो प्रकार 

    1. सामुदायिक

    2. असामुदायिक या संघात्मक दबाव समूह 


    1. सामुदायिक-

    1. रुढिगत

    2. संस्थात्मक


    1. असामुदायिक-

    1. संरक्षणात्मक

    2. उत्थानात्मक



    1. पीटर ऑडीगार्ड का वर्गीकरण- दो प्रकार

    1. सेक्शनल दबाव समूह- स्थायी  

    उदाहरण- व्यवसायिक संगठन, औद्योगिक संगठन


    1. कॉज दबाव समूह- अस्थायी, एक ही हित की रक्षा हेतु गठित, मांग पूरी होने पर खत्म 

    उदाहरण-मजदूर संघ


    1. कार्ल फ्रेडरिक का वर्गीकरण-

    • फ्रेडरिक ने दबाव समूहों का वर्गीकरण दो वर्गों में किया है-

    1. सामान्य दबाव समूह

    2. विशिष्ट दबाव समूह 


    1. मोरिस डुवर्जर का वर्गीकरण-

    1. अनन्य दबाव समूह-ऐसे दबाव समूह, जो सदैव कार्य करते हैं, वह अनन्य दबाव समूह कहलाते हैं| 

    2. आंशिक दबाव समूह- जो सदैव कार्य नहीं करते हैं, बल्कि किसी समय विशेष पर दबाव का प्रयोग करते हैं |


    कृत्रिम दबाव समूह या आभासी दबाव समूह-

    • डुवर्जर ने कृत्रिम दबाव समूह या आभासी दबाव समूह के विचार का प्रतिपादन किया| इसके अनुसार दबाव समूह में विशेषज्ञ होते हैं, जो लॉबिंग या दबाव का प्रयोग स्वयं के लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए करते हैं| ये व्यवसायिक लॉबिस्ट होते हैं|



    विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं में दबाव समूहों की भूमिका-

    • लोकतांत्रिक व्यवस्था में दबाव समूह अधिक प्रभावी होते हैं, जबकि सर्वाधिकारवादी व्यवस्था में दबाव समूह कम प्रभावशाली होते हैं|


    अध्यक्षात्मक व्यवस्था (USA) में दबाव समूहों की भूमिका-

    • विश्व में दबाव समूहों का सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका में ही पाया जाता है|

    • दबाव समूहों द्वारा लाबिंग का प्रयोग भी यही सर्वाधिक होता है|

    • कारण- ऐसी व्यवस्थाओं में राजनीतिक दलों का सदस्यों पर कठोर नियंत्रण नहीं होता है| अतः नेताओं की टांगे तिजोरियों में और तिजोरी की चाबी धनवान समूहों के हाथों में होती है|

    • वुड्रो विल्सन “कांग्रेस की इच्छाएं, मूलत: गुटों की इच्छाएं है|”

    • वुड्रो विल्सन “अमेरिका की सरकार ऐसा शिशु है, जो हित समूहों की देखरेख में पलता है|”

    • राष्ट्रपति आइजन हावर अमेरिका को सैन्य औद्योगिक संकुल कहता है|”

    • विकसित देशों में साहचर्यात्मक (Associational) समूह ज्यादा होते हैं| जैसे- औद्योगिक समूह, व्यवसायिक समूह 


            

               संसदीय प्रणाली में दबाव समूह की भूमिका-

    • ऐसी शासन प्रणाली में कठोर दलीय नियंत्रण होता है, विहिप की वजह से लॉबिंग कम प्रभावी होता है|

    • अधिकतर विकासशील देशों में समूहों का विकास प्रारंभिक अवस्था में है| यहां गैर साहचर्यात्मक (Non Associational) समूह अधिक होते हैं| जैसे- जातीय, धार्मिक, सांप्रदायिक समूह 



    हित समूह

    • मनुष्यों के ऐसे संगठित समूह जो अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं, उन्हें हित समूह कहते हैं|

    • जब कोई हित समूह अत्यधिक सक्रिय हो जाता है और अन्य समूहों के हितों को पीछे धकेल कर अपने हितों की सिद्धि के लिए सरकार पर अपना दबाव बढ़ा देता हैं तो उसे दबाव गुट या दबाव समूह कहते हैं|

    • अत्यधिक प्रभावशाली दबाव समूह को अब लॉबी कहा जाता है|

    • हित समूह मनुष्यों के ऐसे संगठित समूह है, जिनका ध्येय शासन के निर्णयो को प्रभावित करना है, परंतु वे स्वयं अपने सदस्यों को शासन के पदों पर स्थापित करने का प्रयत्न नहीं करते हैं|



     राजनीतिक दल व हित समूह में अंतर-

    1. राजनीतिक दल समुदाय के बहुत सारे वर्गों के बहुत सारे हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं, हित समूहों का उद्देश्य विशेषोन्मुखी होता है या वे विशेष समूह के विशेष हित से सरोकार रखते हैं|

    2. कोई व्यक्ति अपने विशेष राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित होकर किसी एक राजनीतिक दल का सदस्य हो सकता है, परंतु वह भिन्न-भिन्न हितों की रक्षा के लिए जितने हित समूहों का सदस्य बनना चाहे बन सकता है|

    3. राजनीतिक दलों के पास ऐसे सिद्धांत, नीतियां और कार्यक्रम होते हैं, जिनकी सहायता से वे समुदाय की महत्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाना चाहते है| हित समूह अपने सदस्यों के विशिष्ट हितों की रक्षा के लिए या कभी-कभी सब लोगों के हित के विचार से शासन के दृष्टिकोण, कानून, नीति या निर्णय में कुछ परिवर्तन करना चाहते हैं|

    4. राजनीतिक दल अपनी नीतियों और कार्यक्रम को कार्यान्वित करने की लिए स्वयं शक्ति अर्जित करना चाहते हैं, परंतु हित समूह ऐसा प्रयत्न नहीं करते हैं|


    • विकसित देशों में हित समूहों की उन्नत परंपरा है और वहां की राजनीति में ये समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|

    • आर्थर बेंटली ने 1908 में अपनी कृति प्रोसेस ऑफ गवर्नमेंट में हित समूहों का पहला व्यवस्थित अध्ययन प्रस्तुत किया था|



    समकालीन विश्व में हित समूहों की भूमिका

    • उदारवादी, समाजवादी और विकासशील देशों में हित समूहों की भूमिका भिन्न-भिन्न है|


    • उदारवादी देशों में हित समूह-

    • उदार-लोकतंत्र के अंतर्गत हित समूहों की गतिविधि राजनीति का महत्वपूर्ण अंग मानी जाती है|

    • हित समूहों की गतिविधियां कृत्यात्मक प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देती है| कृत्यात्मक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत यह मांग करता है कि इन सभाओं में भिन्न-भिन्न उद्योगों, व्यवसायो या अन्य कृत्यों से जुड़े हुए लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए|


    • उदारवादी देशों में हित समूहों की भूमिका के दो प्रतिरूप हैं-

    1. बहुलवाद

    2. समवायवाद


    1. बहुलवाद-

    • ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के हित समूह की भूमिका बहुलवाद की श्रेणी में आती है|

    • इस व्यवस्था के अंतर्गत हित समूह सरकार और जनसाधारण के बीच संपर्क की कड़ी का कार्य करते हैं|

    • इसके अंतर्गत निर्णय प्रक्रिया नीचे से ऊपर की ओर (व्यक्ति से सरकार) अग्रसर होती है|

    • जान केनेडी का विचार था कि अमेरिका के संगठित हित समूह लोकतंत्रीय प्रक्रिया का आवश्यक अंग है, वे नागरिकों के प्रतिनिधित्व को निरर्थक नहीं बनाते बल्कि सार्थक बनाते हैं|


    1. समवायवाद-

    • स्केंडेनेवियन देशों (नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क) और नीदरलैंड के हित समूहों की भूमिका समवायवाद के अंतर्गत आती है|

    • इस व्यवस्था के अंतर्गत हित समूह सरकार और सत्ता के दलालों के बीच संपर्क की कड़ी का कार्य करते हैं|

    • इसके अंतर्गत निर्णय प्रक्रिया ऊपर से नीचे की ओर अग्रसर होती है|



    • समाजवादी देशों में हित समूह-

    • समाजवादी या साम्यवादी देशों में केवल एक ही हित- अर्थात सर्वहारा या कामगार वर्ग के हित को मान्यता दी जाती है और उसे व्यक्त करने का एकाधिकार साम्यवादी दल या कम्युनिस्ट पार्टी को प्राप्त है| अतः वहां स्वाधीन हित समूहों को पनपने का अवसर नहीं मिल पाता है|


    • विकासशील देशों में हित समूह-

    • विकासशील देश या तीसरी दुनिया में हित समूह अभी अपनी आरंभिक अवस्था में है|

    • वहां के परंपरागत समाजों में हित स्पष्टीकरण की विशेष गुंजाइश नहीं थी|

    • लैटिन अमेरिकी देशों में हित समूह को अपना कार्य करने के लिए कानूनी मान्यता प्राप्त करनी पड़ती है| ऐसी शर्तें हित समूहों के विकास में रूकावट डालती है|



    भारतीय राजनीति में दबाव समूह-

    • माइनर वीनर ने अपनी पुस्तक Pressure group in India व Politics of Scarcity (अभाव की राजनीति) में दबाव समूहों का उल्लेख किया है|

    • रॉबर्ट कोचनीक ने अपनी पुस्तक Business and Politics में दबाव समूहों का अध्ययन किया है, जिसमें अधिकतर व्यवसायिक संगठन है|

    • मॉरिस जॉन्स ने अपनी पुस्तक The Government and Politics in India में कहा है कि “यदि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को समझना है तो गैर-सरकारी व अज्ञात संगठनों की गतिविधियों का अध्ययन जरूरी है|”


    भारतीय दबाव समूहों की विशेषताएं-

    1. स्वतंत्र अस्तित्व का अभाव|

    2. जाति, समुदाय, धर्म तथा क्षेत्रीय दबाव समूहों की अधिकता 

    3. दलों के माध्यम से सरकार को प्रभावित करते हैं|

    4. आपसी एकता का अभाव|

    5. सैद्धांतिकता का अभाव|

    6. हिंसात्मक साधनों का प्रयोग



    • भारत में विभिन्न हितों वाले दबाव समूह पाए जाते हैं|  जैसे-


    1. व्यवसायिक दबाव समूह-

    • फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया फूडग्रेन डीलर्स (फेईफड़ा)- यह अनाज डीलरों का प्रतिनिधित्व करता है

    • ऑल इंडिया मैन्युफैक्चर्स ऑर्गेनाइजेशन (ऐमो)- मध्यमवर्गीय व्यवसायों से संबंधित मामलों को उठाता है|

     

    1. मजदूर या किसान समूह-

    1. भारतीय किसान यूनियन

    2. ऑल इंडिया किसान सभा 


    1. छात्र संगठन-

    1. नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया- कांग्रेस से संबंधित

    2. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद- भाजपा से संबंधित


    1. व्यापार संघ-

    1. इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस- कांग्रेस से संबंधित

    2. हिंद मजदूर परिषद- भाजपा से संबंधित


    1. पेशेवर समितियां-

    1. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन

    2. बार काउंसिल ऑफ इंडिया 


    1. आदिवासी संगठन-

    1. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी मणिपुर

    2. ट्राईबल संघ ऑफ असम

    3. झारखंड मुक्ति मोर्चा 


    1. विचारधारा आधारित समूह-

    1. पर्यावरण सुरक्षा संबंधित समूह- नर्मदा बचाओ आंदोलन और चिपको आंदोलन

    2. गांधी पीस फाउंडेशन


    1. विलोम समूह- ऐसे दबाव समूह जो समाज में राजनीतिक व्यवस्था के विरुद्ध समानांतर व्यवस्था बना लेते हैं, उन्हें विलोम समूह कहा जाता है| 

    1. आल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन

    2. जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट


    1. भाषा समूह-

    1. हिंदी साहित्य सम्मेलन

    2. अंजुमन तारीक ए उर्दू

    3. नागरी प्रचारिणी सभा


    1. जातीय समूह-

    1. हरिजन सेवक संघ

    2. मारवाड़ी एसोसिएशन


    1. पंथीय समूह-

    1. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

    2. शिरोमणि अकाली दल

    3. जमात-ए-इस्लामी

    4. विश्व हिंदू परिषद

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