राज्य: प्रकृति एवं कार्य
राज्य की अवधारणा-
राज्य शब्द का अंग्रेजी रूपांतरण State है| State शब्द लैटिन भाषा के States से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ व्यक्ति के सामाजिक स्तर से होता है, परंतु धीरे-धीरे इसका अर्थ बदलता गया और वर्तमान में इसका अर्थ संपूर्ण समाज के स्तर से हो गया है|
राज्य की अवधारणा राजनीति शास्त्र का केंद्रीय तत्व है|
राज्य के लिए प्राचीन यूनानी दार्शनिकों ने पोलिस (Polis), रोमनो ने सिविटास (Civitas), हॉब्स ने कॉमनवेल्थ (commonwealth), बोदाँ ने Republica आदि शब्दों का प्रयोग किया है|
प्लेटो ने आदर्श राज्य को Kallipolis (सुंदर राज्य या अधिकतम खुश समुदाय) कहा है| प्लेटो ने द लॉज़ में वर्णित उप आदर्श राज्य को मैग्नीशिया (Magnesia) कहा है|
अरस्तु ने राज्य को Koinonia कहा है|
आधुनिक संदर्भ में ‘राज्य’ शब्द का सर्वप्रथम उपयोग इटली के राजनीतिक विचारक मैक्यावली ने 16वीं सदी के प्रारंभ में अपनी पुस्तक The Prince (1513) में किया था|
मैक्यावली ने राज्य के लिए STATO शब्द का प्रयोग किया|
लॉक व रूसो ने राज्य के लिए समुदाय (Civil Society) शब्द का प्रयोग किया|
हेगेल ने राष्ट्र-राज्य (Nation- State) शब्द का प्रयोग किया है|
17 वी सदी में फ्रांस और इंग्लैंड में राज्य को एक राजनीतिक इकाई के रूप में मान्यता प्राप्त हुई|
व्यवहारवादी राज्य के लिए राजनीतिक व्यवस्था शब्द का प्रयोग करते हैं|
राज्य की परिभाषा-
अरस्तु “राज्य परिवारों तथा ग्रामों का एक संघ होता है, जिसका उद्देश्य एक पूर्ण तथा आत्मनिर्भर जीवन की स्थापना है|”
बोदाँ “राज्य परिवारों तथा उनकी संयुक्त संपत्ति का एक ऐसा समुदाय है, जो सर्वोच्च सत्ता तथा विवेक द्वारा शासित होता है”
सिसरो “राज्य एक ऐसा बहुसंख्यक समुदाय है, जो अधिकारों की समान भावना तथा लाभ उठाने में आपसी सहायता द्वारा जुड़ा हुआ है|
संत आगस्टाइन “राज्य ऐसे व्यक्तियों के समझौते द्वारा निर्मित संस्था है, जिन्होंने इसका निर्माण अपने संगठन और कर्तव्यों के प्रयोग और मत के लिए तथा पारस्परिक संपर्क के लाभ की प्राप्ति के लिए किया है|”
ब्लंटशली “एक निश्चित प्रदेश के राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोग राज्य हैं|”
फिल्लमोर “राज्य मनुष्यों का वह समुदाय है, जो पृथ्वी के किसी निश्चित भाग पर स्थायी रूप से बसा हो, जो कानूनों, आदतों, तथा रीति-रिवाजों द्वारा बंधा हुआ हो, जो एक संगठित सरकार द्वारा अपनी सीमा के अंदर सब व्यक्तियों तथा वस्तुओं पर स्वतंत्र प्रभुसत्ता का प्रयोग एवं नियंत्रण करता हो तथा संसार के अन्य समुदायों के साथ युद्ध और संधि करने तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्थापित करने का अधिकार प्राप्त हो|”
हालैंड “राज्य असंख्य मनुष्यों का एक संगठन है, जिसका एक निश्चित प्रदेश पर अधिकार होता है जिसमें बहुसंख्यको अथवा एक निश्चित वर्ग की इच्छा, उनकी संख्या अथवा उनके वर्ग के कारण विरोधियों के विरुद्ध चलती है|”
बर्गेस “राज्य एक संगठित इकाई के रूप में मानव जाति का विशिष्ट भाग है|”
वुड्रो विल्सन “पृथ्वी के किसी निश्चित भाग में शांतिमय जीवन के लिए संगठित जनता को राज्य कहा जाता है|”
विलोबी “राज्य मनुष्यों के उस समाज को कहते हैं, जिनमें एक सत्ता पाई जाती है, जो अपने अंतर्गत व्यक्तियों तथा व्यक्ति समूहों के कार्य पर नियंत्रण रखती हो, लेकिन वह स्वयं किसी भी नियंत्रण से मुक्त हो|”
लास्की “राज्य एक भूमिगत समाज है, जो शासक और शासित में बटा है और अपनी सीमाओं के क्षेत्र में आने वाली अन्य संस्थाओं पर सर्वोच्चता का दावा करता है|”
हाल “स्वतंत्र राज्य के लक्ष्य ये है कि उनका निर्माण करने वाला समाज स्थाई रूप से राजनीतिक ध्येय की प्राप्ति के लिए संगठित है, उसका एक निश्चित प्रदेश होता है और बाहरी नियंत्रण से मुक्त होता है|”
ओपनहेम “जब किसी देश में बसने वाले लोग अपनी संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न सरकार के अंतर्गत रहते हैं, तब वहां राज्य की स्थापना होती है|
गार्नर “राजनीतिशास्त्र और सार्वजनिक कानून की धारणा के रूप राज्य थोड़े या अधिक संख्या वाले संगठन का नाम है, जो स्थायी रूप से पृथ्वी के निश्चित भाग में रहता हो| वह बाहरी नियंत्रण से संपूर्ण स्वतंत्र या लगभग स्वतंत्र हो, उसकी एक संगठित सरकार हो, जिसकी आज्ञा का पालन अधिकतर जनता स्वभाव से करती हो|”
गार्नर (पुस्तक- Political Science and government 1928) “राजनीति विज्ञान का आरंभ व अंत राज्य से होता है|”
गेटेल “राजनीति विज्ञान राज्य का विज्ञान है|”
प्लेटो ने राज्य को मानव आत्मा का विकसित रूप कहा है|
संत ऑगस्टीन “राज्य की स्थापना मनुष्य के पापमय जीवन से मुक्ति प्रदान करने के लिए ईश्वर द्वारा की गई|”
एक्वीनास “राज्य की शक्ति का अंतिम स्रोत ईश्वर है|”
हीगल “राज्य एक नैतिक जीव है, जिसकी अपनी इच्छा होती है और वह है इच्छा है सामान्य इच्छा|”
TH ग्रीन “राज्य का आधार शक्ति नहीं सदिच्छा है|”
समझौतावादियों (हॉब्स ,लॉक) के अनुसार राज्य कृत्रिम संस्था है|
आदर्शवादियों के अनुसार राज्य विवेक की परिणति है|
राज्य को प्राकृतिक संस्था मानने वाले अरस्तु, प्लेटो, रूसो, सिसरो आदि हैं|
सर्वाधिकारवादी (मुसोलिनी, हिटलर) राज्य को सर्वोच्च संस्था मानते हैं|
व्यक्तिवादी राज्य को आवश्यक बुराई मानते हैं|
आस्टिन, बोदाँ, हालैंड, बेंथम ने राज्य को कानूनी संस्था कहा है|
बेंथम “राज्य व्यक्तियों का वह समूह है जो सुख की प्राप्ति और स्थायित्व के लिए संगठित होता है और अपने इस उद्देश्य की सिद्धि वह कानून के माध्यम से करता है कानून आज्ञा भी है और नियंत्रण भी|”
मार्क्सवादी राज्य को शोषण का यंत्र मानते हैं|
लेनिन “राज्य एक ऐसा यंत्र है, जो एक वर्ग को पराधीन और आज्ञाकारी बनाने के लिए निर्मित किया गया है|”
मार्क्स “राज्य वर्ग संघर्ष का परिणाम है और वर्ग का निर्माण शोषण के आधार पर होता है|”
राबर्ट डहल “राज्य मानव संबंधों का एक सतत प्रतिमान है, जिसमें शक्ति, नियम या सत्ता अंतर्निहित होती है|”
शक्ति सिद्धांत के प्रतिपादक राज्य को ‘संप्रभु क्षेत्रात्मक समूह’ मानते हैं|
डेविड ईस्टन “राज्य को समाज में मूल्यों का अधिकारिक आवंटन करने वाली व्यवस्था कहते हैं|
गिलक्राइस्ट “राज्य, राजनीति विज्ञान की ऐसी अवधारणा तथा नैतिक वास्तविकता है, जो वहां स्थापित होती है जहां कि एक निश्चित भूभाग में लोग निवास करते हैं| ऐसी सरकार की छाया में रहते हैं जो आंतरिक विषयों में अपनी प्रभुता को अभिव्यक्त करते हैं तथा बाह्य दृष्टि से अन्य सरकार से मुक्त है|”
मैम्स वेबर “राज्य वह इकाई है, जिसके पास दंडकारी शक्ति का एकाधिकार होता है|”
हरबर्ट स्पेंसर “राज्य पारस्परिक निश्चितता वाली एक सुरक्षात्मक कंपनी है|”
आमंड “राजनीतिक व्यवस्था स्वतंत्र समुदायों में प्राप्त अंतः क्रियाओं कि वह व्यवस्था है जो वैध भौतिक बाध्यता का प्रयोग करती है या प्रयोग करने की धमकी देकर एकीकरण और अनुकूलन का कार्य करती है|”
राज्य के तत्व-
गार्नर के अनुसार राज्य के चार तत्व होते हैं-
जनसंख्या
निश्चित भू-भाग/ क्षेत्रफल
सरकार
प्रभुसत्ता
जनसंख्या (Population)-
जनसंख्या राज्य का आवश्यक एवं महत्वपूर्ण तत्व है, बिना जनसंख्या के राज्य नहीं बन सकता है|
एक राज्य के लिए जनसंख्या कितनी होनी चाहिए, इसका कोई निश्चित मानदंड नहीं होता है, लेकिन राज्य की जनसंख्या उसके साधनों के अनुपात हो तो अच्छा होता है|
प्लेटो ने अपनी पुस्तक लॉज में उप आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 निर्धारित की है|
रूसो 10,000 जनसंख्या को आदर्श मानता है|
प्लेटो के अनुसार कोई भी राज्य पहाड़ों, नदियों, वृक्षों, चट्टानों से नहीं बनता है, वह अपने नागरिकों से बनता है|
अरस्तु के अनुसार राज्य की जनसंख्या न तो अधिक होनी चाहिए न अत्यधिक कम| जनसंख्या उतनी ही होनी चाहिए कि वह आत्मनिर्भर जीवन व्यतीत कर सके|
गार्नर के अनुसार जनसंख्या उतनी होनी चाहिए, जितनी की राज्य के संगठन के निर्वाह के लिए आवश्यक हो|
R.H सोल्टेज “जनसंख्या का गणित तीन तत्वों से संबंधित है साधनों की प्राप्ति, आशा अनुरूप जीवन स्तर, सुरक्षा एवं उत्पादन की आवश्यकता|”
रूसो ने नागरिक और प्रजा में भेद किया है नागरिकों के रूप में लोगों को अधिकार प्राप्त है और प्रजा के रूप में उनके कर्तव्य|
निश्चित- भू-भाग (Territory)
राज्य का दूसरा महत्वपूर्ण तत्व भू-भाग है|
जनसंख्या की तरह आदर्श राज्य का क्षेत्रफल कितना है इसका निश्चित मानदंड नहीं है|
प्लेटो, रूसो छोटे आकार वाले राज्य का समर्थन करते हैं| वही आधुनिक समय में आज बड़े राज्य बहुतायत मिलते हैं|
भू क्षेत्र के अंतर्गत प्राकृतिक सम्पदाएं, खनिज पदार्थ, वन, नदियां, पहाड़, समुद्र, बंदरगाह, वायुमंडल, आकाश आदि सभी तत्व आ जाते हैं|
सरकार (Government)-
सरकार राज्य का तीसरा अंग है|
सरकार द्वारा राज्य की इच्छा प्रकट होती है तथा क्रियान्वित होती है, तथा समाज में शांति की स्थापना होती है|
गार्नर “सरकार राज्य का वह साधन है, जिसके द्वारा राज्य के उद्देश्य, यथार्थ सामान्य नीतियों और सामान्य हितों की पूर्ति होती है|”
ब्लंटशली “यदि किसी समाज में शासक एवं शासित वर्ग नहीं है, तो वह राज्य न बनकर अराजक व्यवस्था को प्राप्त होगा|”
गिडिंग “सरकार राज्य की अभिव्यक्ति है|”
सरकार कैसी हो इसका निश्चित नियम नहीं है| जहां भारत, इंग्लैंड, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड, फ्रांस, इटली आदि में लोकतंत्र है, वहीं चीन, फिनलैंड, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी, पोलैंड में कम्युनिस्ट पार्टी (साम्यवादी पार्टी) लंबे समय से सत्तारूढ़ है|
सरकार कैसी हो इस संबंध में अलेक्जेंडर पॉप का कहना है कि “सरकार के प्रकार के विषय में मूर्खों को लड़ने दो|”
प्रभुसत्ता/ राजसत्ता (Sovereignty)
प्रभुसत्ता राज्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है|
प्रभुसत्ता/ संप्रभुता राज्य का प्राण है, क्योंकि इसके बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है|
गैटिल “संप्रभुता ही राज्य को अन्य समुदायों से अलग करती है|”
गार्नर “प्रभुसत्ता राज्य के संपूर्ण क्षेत्र में विस्तृत होती है तथा एक राज्य के अंतर्गत स्थित सभी व्यक्तियों और समुदायों पर उसकी अधीनता होती है|”
संप्रभुता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ज्यां बोदाँ ने सन 1576 में प्रकाशित अपनी पुस्तक Six Books Concerning Republic में किया|
बोदाँ “संप्रभुता नागरिकों तथा प्रजाजनो के ऊपर विधि द्वारा मर्यादित सर्वोच्च शक्ति है|”
संप्रभुता दो प्रकार की होती है
बाह्य संप्रभुता
आंतरिक संप्रभुता
इस प्रकार राज्य के लिए चारो तत्व आवश्यक है इनमें से एक भी तत्व न होने पर राज्य का अस्तित्व नहीं रह सकता है|
जैसे -
स्वतंत्रता से पूर्व भारत राज्य नहीं था|
उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, आदि राज्य नहीं है|
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) राज्य नहीं है|
डॉ. विलोबी इन चारों तत्वों के अलावा प्रजा द्वारा स्वाभाविक रूप से आज्ञा पालन को भी राज्य का तत्व मानता है|
बार्कर न्याय को आधुनिक राज्य की सभ्यता की कसौटी मानता है|
विलोबी ने राज्य के तीन तत्व बताएं हैं-
जनसमुदाय
शासन तंत्र या सरकार
लिखित या अलिखित संविधान
ब्लंटशली राज्य के चार तत्व बताएं हैं-
भूखंड
जनता
एकता
संगठन
सिजविक ने राज्य के तीन तत्व बताएं हैं-
सरकार
भूखंड
जनता
राज्य और सरकार में अंतर-
निम्न अंतर है-
राज्य अमूर्त व सरकार मूर्त है -
राज्य एक अमूर्त धारणा है. जबकि सरकार मूर्त यंत्र है जो व्यक्तियों के निश्चित योग से बनती है|
सरकार राज्य का एजेंट होती है सरकार के माध्यम से राज्य की इच्छा प्रकट होती है|
सरकार राज्य का एक अंग है, जबकि राज्य अपने आप में व्यापक अवधारणा है|
राज्य के पास प्रभुसत्ता है, जबकि सरकार के पास प्रभुसत्ता नहीं है|
सरकार परिवर्तनशील होती है, जबकि राज्य स्थायी होता है|
राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, जबकि सरकार की सदस्यता अनिवार्य नहीं है व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है|
राज्य के लिए निश्चित क्षेत्र होना अनिवार्य है जबकि सरकार के लिए अनिवार्य नहीं है|
सरकार का विरोध किया जा सकता है, लेकिन राज्य का विरोध नहीं किया जा सकता है|
R.M मैकाइवर (द वेब ऑफ गवर्नमेंट 1947) “जब हम राज्य की बात करते हैं तो हमारा तात्पर्य एक संगठन से होता है, सरकार उसका प्रशासनिक अंग है|”
राज्य (State) और समाज (Society) में अंतर-
राज्य एक राजनीतिक व्यवस्था है, जबकि समाज एक सामाजिक व्यवस्था है|
समाज से उन मनुष्यों का ज्ञान होता है जो परस्पर सामाजिक बंधन में रहते हैं, जबकि राज्य, समाज का वह यंत्र है जिसके द्वारा समाज में शांति स्थापित होती है|
राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है, जबकि समाज के पास प्रभुसत्ता नहीं होती है|
समाज राज्य से पहले बना है| समाज उस समय भी था जब मनुष्य घुमक्कड़ था, संगठित नहीं था, कबीलों के रूप में रहता था, जबकि राज्य का विकास बाद में हुआ है, जब मनुष्य ने सभ्यता से तथा संगठित होकर रहना सीखा|
राज्य मनुष्य के राजनीतिक पहलू से संबंधित है, समाज नैतिक पहलू से|
समाज के लिए क्षेत्र आवश्यक नहीं है, राज्य के लिए है, तथा समाज स्थानीय भी हो सकता है व अंतरराष्ट्रीय भी हो सकता है|
राज्य का निर्माण समाज से होता है इसलिए समाज एक प्राथमिक साहचर्य है|
मनुष्य राज्य के बिना जीवित रह सकता है, परंतु समाज के बिना जीवित नहीं रह सकते|
अरस्तु “मनुष्य स्वभाव से एक राजनीतिक प्राणी है|”
R.M मैकाइवर (The Modern State 1925) “सामाजिक जीवन के कुछ ऐसे रूप हैं जैसे कि परिवार, चर्च या क्लब जो न तो अपनी उत्पत्ति के लिए राज्य के ऋणी हैं, न अपने निर्माण की प्रेरणा के लिए|”
राज्य, समाज के अनेक समुदायों में एक है|
समाज एक वृहत व्यवस्था है जबकि राज्य इसकी एक उप व्यवस्था है|
समाज सहयोग पर आधारित है जबकि राज्य बल प्रयोग पर|
बार्कर ने राज्य और समाज को नैतिक उद्देश्य की दृष्टि से समान माना है|
मैकाइवर “रक्त संबंध समाज को जन्म देता है और समाज से अंततोगत्वा राज्य की उत्पत्ति होती है|”
राज्य के पास दंडकारी शक्ति होती है, जबकि समाज के पास केवल रीति रिवाज और नैतिक दबाव का बल होता हैI
मोंटेवीडियो कन्वेंशन-
राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों पर मोंटेवीडियो कन्वेंशन अमेरिकी राज्यों के सातवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान 26 दिसंबर 1933 को मोंटेवीडियो, उरुग्वे में हस्ताक्षरित एक संधि है|
अंतर्राष्ट्रीय विधि के क्षेत्र में राज्य की परिभाषा मोंटेवीडियो कन्वेंशन (Montevideo Convention) 1933 में मिलती है| इस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1 में राज्य की 4 विशेषताएं दी गई है-
परिभाषित भू- क्षेत्र
प्रभावी शासन
स्थायी आबादी
अन्य राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने की क्षमता
डेविड हेल्ड के अनुसार आधुनिक राष्ट्र-राज्य की विशेषताएं-
डेविड हेल्ड ने आधुनिक राष्ट्र-राज्य की 4 विशेषताएं बतायी है-
भू-क्षेत्रीयता (Territoriality)
हिंसा के साधनों का नियंत्रण
शक्ति की अवैयक्तिक संरचना
विधि सम्मतता (Legitimacy)
एंड्रयू हेवुड के अनुसार राज्य की विशेषताएं-
एंड्रयू हेवुड ने राज्य के पांच विशेषताएं बतायी है-
राज्य संप्रभु होता है|
राज्य के संस्थान ‘स्वीकृति पूर्वक सार्वजनिक’ होते हैं|
राज्य का कार्य विधि सम्मता से जुड़ा है|
राज्य प्रभुत्व का साधन है|
राज्य एक भू-क्षेत्रीय संस्था है|
राज्य की प्रकृति या स्वरूप (Nature Of State)-
राज्य की प्रकृति के संबंध में विचारको में मतभेद है, राज्य की प्रकृति से संबंधित अवधारणाएं निम्न है-
राज्य का जैविक या आंगिक सिद्धांत-
प्रमुख समर्थक-प्लेटो, अरस्तु, थॉमस हॉब्स, रूसो, ब्लंटशली, मनुस्मृति, शुक्राचार्य, कौटिल्य
अन्य समर्थक- आदर्शवादी विचारक- हेगेल, कांट, ग्रीन
इसमें राज्य की तुलना जीवित प्राणी से की जाती है और व्यक्तियों या उनके समूह को इस प्राणी के अंग माना जाता है|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य एक नैतिक एवं प्राकृतिक संस्था है|
इसमें राज्य पहले तथा व्यक्ति बाद में होता है|
इसमें राज्य साध्य तथा व्यक्ति साधन होता है|
भारतीय राजनीतिक चिंतन में मनुस्मृति, शुक्रनीति, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज्य के सप्तांग सिद्धांत का विवरण मिलता है|
पश्चिमी चिंतन में आंगिक सिद्धांत का विचार सबसे पहले प्राचीन यूनानी दार्शनिकों ने रखा था| इसका एक विकृत संस्करण फासिस्टवाद के रूप में सामने आया|
प्लेटो ने कहा कि “राज्य मानव आत्मा का वृहत रूप है|”
अरस्तु ने कहा कि “राज्य के संदर्भ में व्यक्ति या परिवार की स्थिति वैसी ही है जैसे शरीर के संदर्भ में उनके किसी अंग की होती है| यदि व्यक्ति को राज्य से अलग कर दिया जाए तो उसकी हालत वैसे ही हो जाएगी जैसे शरीर से कट जाने पर हाथ-पैर की होती है|”
अरस्तु ने राज्य को एक प्राकृतिक संस्था मानते हुए मनुष्य को राजनीतिक प्राणी कहा है|
थॉमस हॉब्स ने आंगिक सिद्धांत को एक सीमा तक स्वीकार किया है हॉब्स ने राज्य की तुलना दैत्याकार जलीय जंतु लेवियाथन या तिमिगिल से की है, जो एक कृत्रिम मनुष्य है|
ज्यां जाक रूसो ने भी आंगिक सिद्धांत का प्रयोग किया है तथा तर्क दिया है कि मनुष्य की तरह राज्य भी ‘इच्छा शक्ति से प्रेरित’ होता है|
एडमंड बर्क ने कहा है कि “राज्य का ऐतिहासिक विकास जीवित प्राणी के विकास के तुल्य हुआ है|”
जर्मन आदर्शवादी J G फिक्टे तथा जे.के ब्लंटशली ने आंगिक सिद्धांत का प्रयोग किया है|
फिक्टे ने कहा है कि “समाज के बाहर व्यक्ति का अस्तित्व निरर्थक है जैसे किसी प्राणी का प्रत्येक अंग पूरे शरीर को संभालता है, पूरा शरीर प्रत्येक अंग का पोषण करता है वैसे ही समाज में प्रत्येक नागरिक पूरे समाज को सहारा देता है और पूरा समाज प्रत्येक नागरिक की देखरेख करता है|”
ब्लंटशली ने कहा कि “राज्य मानव शरीर का हूबहू रूप है|”
ब्लंटशली ने राज्य की तुलना पुरुष से तथा चर्च की तुलना स्त्री से की है और इस आधार पर स्त्री मताधिकार का विरोध किया है|
जीववैज्ञानिक संप्रदाय से जुड़े अंग्रेज विचारक हर्बट स्पेंसर ने अपनी पुस्तक Principle of Sociology 1876 में राज्य को जीवित प्राणी माना है तथा प्राकृतिक प्राणी और राज्य रूपी प्राणी की तुलना की है|
स्पेंसर के अनुसार-
जैसे जीवित प्राणी में कोशिका होती है, वैसे ही राज्य में व्यक्ति होते हैं|
मानव शरीर के अंगों की तरह राज्य के सदस्य भी परस्पर अंर्तसंबंधित होते हैं|
मानव शरीर की तरह राज्य की रचना भी सरल से जटिल की ओर होती है|
अरस्तु “जैसे शरीर के विभिन्न अंग अपनी क्षमताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न कार्य संपन्न करते हैं, वैसे ही समाज में प्रथक-प्रथक व्यक्ति अपनी क्षमताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं|”
आदर्शवादी विचारक हेगेल के अनुसार “जैसे प्राणी का विकास उनके अंगों के विभेदीकरण का परिणाम है, वैसे राज्य का विकास भी समाज की विभिन्न संस्थाओं के विभेदीकरण की परिणति है|”
राज्य का पूर्णसत्तावादी सिद्धांत-
यह सिद्धांत राज्य की सर्वोच्च, सर्वोपरि और असीम सत्ता को उचित ठहराता है|
अरस्तु एवं प्लेटो ने व्यक्ति को राज्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित किया है| इनके अनुसार व्यक्ति राज्य के अंतर्गत ही सर्वोत्तम जीवन जी सकता है और अपने सर्वोत्तम साध्य की प्राप्ति कर सकता है|
हेगेल ने राज्य को ‘विवेक की साक्षात प्रतिमा और धरती पर ईश्वर की शोभायात्रा’ कहा है तथा राज्य को साध्य माना है|
राज्य का शक्ति सिद्धांत -
मैक्यावली, ट्राट्स्की ने राज्य को शक्ति का प्रतीक माना है|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य की उत्पत्ति एवं विकास शक्ति के द्वारा होता है|
वाल्टेयर “प्रथम राजा एक शक्तिशाली योद्धा था|”
लीकॉक “राज्य का जन्म एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य को गुलाम बनाने तथा एक निर्बल कबीले पर बलशाली कबीले की विजय से हुआ है|”
जैंक्स “ऐतिहासिक दृष्टि से यह सिद्ध करना तनिक भी कठिन नहीं है, कि आधुनिक राजनीतिक समाजों का मूल सफल युद्धों में है|”
डेविड ह्यूम “युद्ध कालीन नेता ने जब शांति स्थापित होने के पश्चात भी दूसरे समूह के ऊपर अपना अधिकार स्थापित रखा तब राज्य की उत्पत्ति हुई|”
ब्लुंटशली “शक्ति राज्य संगठन का एक आवश्यक तत्व है, बिना शक्ति के न तो कोई राज्य उत्पन्न होता है और ना कोई राज्य स्थायी रह सकता है|”
राज्य का दैवीय सिद्धांत-
यह राज्य की उत्पत्ति का सबसे प्राचीन सिद्धांत है|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य को ईश्वर ने स्थापित किया है तथा राज्य का शासन ईश्वर स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से करता है|
इस प्रकार का राजा सर्वाधिकारवादी, स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश होता है|
गैटिल “दैवी सिद्धांत के अनुसार राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है, इस कारण राजा ईश्वर के प्रति उत्तरदायी हैं|”
दैवीय सिद्धांत के समर्थकों में यहूदी सर्वप्रथम है| यहूदी ग्रंथ Old Testament में लिखा गया है कि ईश्वर ही राजा को नियुक्त करता है|
ग्रीक व रोम में भी इस सिद्धांत को मान्यता दी गई है|
रोम के लोगों के अनुसार ईश्वर अप्रत्यक्ष रूप से राज्य का संचालन करता है|
मिस्र के प्राचीन निवासी राजा को साक्षात ईश्वर समझते थे तथा राजा को सूर्य पुत्र समझा जाता था|
प्राचीन चीन में राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि, अवतार अथवा वंशज माना जाता है|
ईसाई धर्म के अनुसार ईश्वर ने राजा को जन्म दिया है|
भारतीय वेदों में राजा को विभिन्न देवताओं की प्रतिकृति बताया है|
शतपथ ब्राह्मण में राजा को चक्रवर्ती कहा है जिसमें विष्णु के चक्कर की राजा को उपमा दी गई है|
महाभारत के शांतिपर्व व आदिपर्व में उल्लेखित है कि पृथ्वी का पालन करने के लिए राजा ‘पृथु’ को ईश्वर ने अपने प्रतिनिधि के रूप में पृथ्वी पर भेजा|
मनुस्मृति में कहा गया है कि लोगों को अराजकता से बचाने के लिए ईश्वर ने राजा का सृजन किया|
बाइबल में ईश्वर को राज्य की समस्त शक्तियों का स्रोत और राजा को उसका प्रतिनिधि माना है|
भारत में राजा को सूर्य पुत्र और नेपाल में राजा को विष्णु अवतार कहा है|
सेंट पाल “ईश्वर की शक्ति के अतिरिक्त कोई शक्ति नहीं है|”
प्लूटार्क “एक नगर भूमि के बिना तो संभव है, परंतु ईश्वर में विश्वास के बिना राज्य की स्थापना नहीं हो सकती है|
रॉबर्ट फिल्मर ने अपनी पुस्तक पैट्रियाक (1880) में ‘आदम’ को पृथ्वी का पहला राजा माना है|
इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम ने अपनी पुस्तक The True Law of A Free Monarchy में लिखा है कि “राजा पृथ्वी पर ईश्वर की श्वास लेती प्रतिमा है या पृथ्वी पर ईश्वर की जागृत और चेतनाशील प्रतिमा है|”
फ्रांस के राजा लुई 14 वे ने भी राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि कहा है|
राज्य का विधिशास्त्रीय या कानूनी सिद्धांत-
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य एक कानूनी व्यक्ति है, जिसका मुख्य कार्य कानून का निर्माण, लागू करना तथा कानूनी अधिकारों की रक्षा करना है|
W.W विलोबी ने अपनी पुस्तक ‘फंडामेंटल कॉन्सेप्ट्स ऑफ पब्लिक ला’ में इस सिद्धांत का समर्थन किया है|
प्रभुसत्ता के बहुलवादी सिद्धांत ने इस सिद्धांत का खंडन किया है|
सर हेनरी मैन, क्रैब, अस्टिन, बेंथम, विलोबी कानूनी सिद्धांत के समर्थक हैं|
राज्य का यंत्रीय सिद्धांत या कृत्रिम सिद्धांत-
समर्थक- समझौतावादी विचारक, उपयोगितावाद विचारक
यह सिद्धांत राज्य की तुलना यंत्र या मशीन से करता है, जिसे मनुष्य ने अपने लाभ की दृष्टि से सोच-समझकर बनाया है|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य एक सामाजिक एवं कृत्रिम संस्था है|
इसके अनुसार राज्य साधन है, राज्य मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है|
इस सिद्धांत ने व्यक्तिवाद को बढ़ावा दिया जो आगे चलकर उदारवाद के रूप में विकसित हुआ|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य व्यक्ति की इच्छा की अभिव्यक्ति है|
इस सिद्धांत के अनुसार राज्य का अपना कोई हित नहीं होता है बल्कि राज्य तो अपना संगठन करने वाले व्यक्तियों एवं समूहों के परस्पर विरोधी हितों में सामंजस्य स्थापित करने का साधन है|
व्यक्तिवादियो ने राज्य को विभिन्न व्यक्तियों के हितों में सामंजस्य का साधन माना है|
आधुनिक बहुलवाद ने राज्य को विभिन्न समूहों के हितों में तालमेल पैदा करने वाला साधन माना है|
उदारवादी- व्यक्तिवादी दृष्टिकोण-
इस दृष्टिकोण के प्रवर्तक- जॉन लॉक, एडम स्मिथ, जरमी बेंथम, हर्बट स्पेंसर
इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य का निर्माण सब व्यक्तियों ने मिलकर व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से किया है|
राज्य एक साधन है तथा व्यक्ति साध्य है|
इस सिद्धांत के अनुसार ‘राज्य एक आवश्यक बुराई है|’ क्योंकि राज्य व्यक्ति की स्वतंत्रता में कटौती करता है इसलिए बुराई है लेकिन राज्य न हो तो लोग एक दूसरे को सताने लगेंगे, धोखा देंगे, जीवन एवं संपत्ति को हानि पहुंचाएंगे इसलिए राज्य आवश्यक है|
राज्य को आवश्यक बुराई सबसे पहले थॉमस पैन ने कहा था|
इस दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्य विवेकशील प्राणी है|
लॉक को उदारवाद का जनक कहा जाता है| लॉक के अनुसार “राजनीतिक सत्ता की उत्पत्ति नागरिक समाज से होती है| मनुष्यों की स्वतंत्रता को कायम रखना राज्य का कर्तव्य है|”
एडम स्मिथ को ‘अर्थशास्त्र का जनक’ कहा जाता है| इन्होंने अपनी कृति वेल्थ ऑफ नेशन (1776) के अंतर्गत ‘अहस्तक्षेप की नीति और व्यक्तिवाद’ का प्रबल समर्थन किया है|
एडम स्मिथ ने ‘आर्थिक मानव की संकल्पना’ प्रस्तुत की है, इस संकल्पना के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में व्यापार की सहज प्रवृत्ति पायी जाती है ताकि वह अधिक से अधिक लाभ कमा सकें|
प्राकृतिक स्वतंत्रता की संकल्पना- एडम स्मिथ ने उद्योग एवं व्यापार की स्वतंत्रता को प्राकृतिक स्वतंत्रता कहा है और यह राष्ट्रीय समृद्धि के लिए अनिवार्य है| अतः सरकार को उद्योग, व्यापार के मामले में अहस्तक्षेप की नीति का अनुसरण करना चाहिए|
हर्बट स्पेंसर ने ‘न्यूनतम शासन’ पर बल दिया है| उसने राज्य की उत्पत्ति ऐसे अनुबंध से मानी है जैसे किसी सीमित दायित्व कंपनी की तरह| हर्बट स्पेंसर ने चार्ल्स डार्विन के जीवन संघर्ष में योग्यतम की उत्तरजीविता सिद्धांत के आधार पर कहा है कि राज्य को कल्याणकारी कार्य नहीं करने चाहिए, क्योंकि कल्याणकारी कार्य सामाजिक विकास में बाधक होते हैं| व्यक्ति जो जीवन संघर्ष में पिछड़ जाता है उसे मर जाने दिया जाए|
हर्बट स्पेंसर “कानून एक पाप है तथा कानून बनाने वाला पापी|”
फ्रीमेन “वहीं राज्य सबसे अच्छा है, जिसका शासन सबसे कम है|”
सामाजिक-लोकतंत्रीय दृष्टिकोण-
उदारवादी दृष्टिकोण के अंतर्गत सामाजिक-लोकतंत्रीय दृष्टिकोण राज्य के अहस्तक्षेप सिद्धांत का खंडन करते हुए नागरिकों के कल्याण के लिए कल्याणकारी राज्य या राज्य की सकारात्मक भूमिका पर बल देता है|
इस सिद्धांत के प्रमुख प्रतिनिधि- H.J. लॉस्की है|
J.S मिल, T.H ग्रीन, L.T हाबहाउस, ग्रेसियस, किमलिका, अल्थ्यूजीस भी इस दृष्टिकोण के समर्थक हैं|
नव उदारवादी दृष्टिकोण-
इसको स्वेच्छातंत्रवाद भी कहते हैं
यह विचारधारा 1980 के दशक से अमेरिका और ब्रिटेन में उभरकर आयी|
इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य को आर्थिक गतिविधियों में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए तथा मुक्त बाजार व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाय|
प्रवर्तक- आईजिया बर्लिन, F.A हेयक, मिल्टन फ्रीडमैन, रॉबर्ट नोजिक|
मार्क्सवादी दृष्टिकोण-
इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य कृत्रिम संस्था है, जो प्रभुत्वशाली (शक्तिशाली या शोषित) वर्ग का उपकरण है तथा पराधीन वर्ग के शोषण का यंत्र है|
प्रवर्तक- कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, V.I लेनिन
मार्क्स “राज्य शक्ति पर आधारित है और पूंजीपति इस शक्ति का प्रयोग मजदूरों के शोषण के लिए करते हैं|”
लेनिन- ये रूसी समाजवाद के जनक माने जाते हैं| लेनिन कहा है कि “राज्य पूंजीपतियों के हाथ में शोषण का एक यंत्र है, जिससे जनता के अधिकांश भाग पर शासन करते हैं|”
अराजकतावादी दृष्टिकोण-
ये राज्य को अनावश्यक बुराई मानते हैं|
ये व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए राज्य को किसी भी रूप में नहीं रखना चाहते हैं|
समर्थक- प्रूधों, बाकुनिन, रस्किन, थोरो, टालस्टाय
डेविड थोरो “वह सरकार सबसे अच्छी है, जो बिल्कुल भी शासन नहीं करती|”
मातृ प्रधान सिद्धांत-
इस सिद्धांत के समर्थक- मैक्लीनन, मार्गन, जैंक्स
इस सिद्धांत के अनुसार आदिम समाज मातृप्रधान थे| वैवाहिक संबंध अस्थाई थे तथा बहुपति विवाह प्रचलित था| रक्त संबंध स्त्रियों से चलता था|
जैंक्स ने ऑस्ट्रेलिया की प्रथा से इसे सिद्ध करने का प्रयास किया है|
पितृ प्रधान सिद्धांत-
इस सिद्धांत के अनुसार प्राचीन समाज की इकाई परिवार थी|
प्रमुख समर्थक- हेनरी मैन
हेनरी मैन के अनुसार “प्राचीन समय में समाज, परिवारों का समूह था तथा परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति मुखिया होता है| परिवार से गोत्र और गोत्र से कबीले का निर्माण हुआ तथा कबीलों से राज्य की उत्पत्ति हुई|”
लीकॉक “पहले एक गृहस्थी, उसके बाद पितृ प्रधान परिवार, उसके पश्चात एक वंश के लोगों का कबीला और अंत में राष्ट्र बना|”
मैकाइवर “परिवार प्रथम सामाजिक इकाई थी| प्रारंभिक परिवार ही सरकार का आदि रूप है और सरकार परिवार का विस्तृत रूप है|”
अरस्तु “सर्वप्रथम परिवार का जन्म होता है| जब कई परिवार मिलते हैं तो ग्राम की उत्पत्ति होती है और जब कई ग्राम मिलकर एक बड़े और लगभग पूर्णत: आत्मनिर्भर समाज में संयुक्त हो जाते हैं तब राज्य का जन्म होता है|”
समुदायवादी सिद्धांत-
बहुलवादी विचारक राज्य को एक समुदाय मानते हैं|
प्रमुख समर्थक- क्रैब, डिग्वी, लिंडसे, विलोबी, बार्कर, मेटलैंड, लॉस्की
विकासवादी/ ऐतिहासिक सिद्धांत-
प्रमुख समर्थक- गार्नर, मैक्सी, वाल्टर बैजहॉट
गार्नर “राज्य न तो ईश्वर की सृष्टि है, न यह उच्च कोटि के शारीरिक बल का परिणाम है, न किसी समझौते से निर्मित हुआ है, न परिवारों का विस्तृत रूप है, न ही कोई यांत्रिक निर्माण हुआ है, बल्कि यह तो ऐतिहासिक या क्रमिक विकास का परिणाम है|”
राज्य का आदर्शवादी दृष्टिकोण-
हीगल राज्य के आदर्शवादी दृष्टिकोण से संबंधित हैं|
हीगल ने सामाजिक अस्तित्व के 3 लक्षण बताएं है-
परिवार
नागरिक समाज
राज्य
हीगल के मत में परिवार के भीतर एक विशेष परोपकारिता होती है, जो लोगों को अपने बच्चों या बुजुर्ग रिश्तेदारों की भलाई के लिए अपने स्वयं के हितों को अलग रखने के लिए प्रोत्साहित करती है|
जबकि नागरिक समाज सार्वभौमिक अहमवाद के रूप में दूसरों के हितों से पहले स्वयं के हितो को रखते हैं|
वही हीगल ने राज्य को पारस्परिक सहानुभूति सार्वभौमिक परोपकारिता पर आधारित एक नैतिक मनुष्य के रूप में माना है|
राज्य से संबंधित कुछ विचार-
माओत्से तुंग “शक्ति (सत्ता) बंदूक की नली से निकलती है|”
बिस्मार्क “राज्य का आधार रक्त और लोहा होना चाहिए|”
गिलक्राइस्ट “राज्य, सरकार वास्तव में सभी संस्थाएं मानव चेतना का परिणाम होती है|”
बोदाँ “शक्ति केवल डाकुओं के गिरोह का संगठन कर सकती है, राज्य का नहीं”
ओपनहीमर ने अपनी पुस्तक The State में कहा है कि राज्य वह संगठन है, जिससे एक वर्ग अन्य वर्गों के ऊपर अपना अधिपत्य स्थापित करता है|
राज्य एक वर्ग संगठन है- कार्ल मार्क्स व ओपनहीमर
राज्य शक्ति व्यवस्था है- यथार्थवादी, मैकियावेली, ट्राटस्की, नीत्शे
राज्य कल्याणकारी व्यवस्था है- आधुनिक उदारवादी व प्रजातांत्रिक समाजवादी
राज्य एक समुदाय है- बहुलवादी विचारक- लॉस्की, क्रेब, लिंडसे, बार्कर, गियर्क, मेटलैंड
राज्य सर्वसत्तात्मक है- सब कुछ राज्य के भीतर है बाहर कुछ नहीं- मुसोलिनी
राज्य एक यंत्र या मशीन है- समझौतावादी
राज्य पुरुष वर्चस्व का यंत्र है- नारीवादी
राज्य विचारधारात्मक वर्चस्व है- ग्राम्शी
राज्य आत्मा रहित मशीन है- महात्मा गांधी
राज्य के कार्य-
राज्य के कार्य का व्यक्तिवादी सिद्धांत-
इस सिद्धांत का केंद्रीय विषय व्यक्ति है| यूनानी चिंतक प्रोटागोरस के अनुसार “व्यक्ति सभी वस्तुओं का मापदंड है|”
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति राज्य के लिए नहीं बल्कि राज्य व्यक्ति के लिए है| व्यक्ति साध्य और राज्य साधन है |
इसके अनुसार राज्य का कार्य है कि वह व्यक्ति के विकास हेतु आवश्यक दशाओं का निर्माण करें उसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करें|
लीकॉक के अनुसार “शासन का एकमात्र कर्तव्य नागरिकों की हिंसा एवं छल से रक्षा करना है|”
राज्य के कार्य का उदारवादी सिद्धांत-
उदारवाद व्यक्ति स्वतंत्रता का पक्षधर है तथा राज्य के सीमित हस्तक्षेप का समर्थन करता है|
उदारवाद को दो भागों में बांट सकते हैं-
प्रारंभिक उदारवाद या नकारात्मक उदारवाद के अनुसार राज्य के कार्य-
प्रारंभिक उदारवादियों में जॉन लॉक, एडम स्मिथ, जर्मी बेंथम, स्पेंसर आदि को शामिल करते है|
ये राज्य के सीमित कार्यों का समर्थन करते हैं|
पुलिस राज्य का समर्थन करते हैं, तथा राज्य को अकल्याणकारी संस्था मानते हैं|
सकारात्मक उदारवाद के अनुसार राज्य के कार्य-
यह सिद्धांत व्यक्ति के विकास के लिए व्यक्ति के कार्यों में राज्य का हस्तक्षेप स्वीकार करता है| इस सिद्धांत को आधुनिक उदारवाद भी कहा जाता है|
सकारात्मक उदारवाद में मिल, T.H ग्रीन, लॉस्की, मैकाइवर आदि को शामिल करते हैं|
ग्रीन के अनुसार राज्य का कार्य- बाधाओं को बाधित करने के साथ-साथ उन बाह्य परिस्थितियों को बनाए रखना जो व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक है| इन बाह्य परिस्थितियों में स्वास्थ्य, मकान, काम के घंटे, काम का उचित वातावरण, बच्चों तथा औरतों के उद्योग में काम करने पर प्रतिबंध को ग्रीन ने शामिल किया है, जिसमें राज्य हस्तक्षेप कर सकता है|
लॉस्की के अनुसार राज्य के कार्य-
राज्य को उद्योग पर नियंत्रण रखना चाहिए, वरना उद्योग राज्य पर नियंत्रण कर लेंगे|
राज्य द्वारा लोगों के संपदा अर्जन पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, लेकिन संपन्न वर्ग पर भारी कर लगाकर आर्थिक विषमताओं को कम करना चाहिए|
राज्य वर्ग संस्था नहीं है|
राज्य सामान्य हित के कार्य करें|
मैकाइवर के अनुसार कार्य-
मैकाइवर ने अपनी पुस्तक ‘द माडर्न स्टेट’ 1926 में कहा है कि ‘आधुनिक राज्य का कार्य विभिन्न सहचरो के हितों में सामंजस्य स्थापित करना है|’
मैकाइवर ने ‘द वैब ऑफ गवर्नमेंट’ 1947 में कहा है कि ‘कला, साहित्य, संस्कृति, धर्म के क्षेत्र में राज्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए|’
मैकाइवर सेवाधर्मी राज्य का समर्थक था| उसने कहा कि जब तक आधुनिक राज्य की लोकतंत्रीय व्यवस्था को अक्षुण्य रखा जाता है तब तक पूंजीवाद की बुराइयों से डरने की आवश्यकता नहीं है|
राज्य के कार्यों का लोक कल्याणकारी सिद्धांत-
व्यक्तिवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया और उदारवाद के सकारात्मक स्वरूप का परिणाम लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा है|
कल्याणकारी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आर्कबिशप टैम्पिल ने अपनी कृति Citizen and churchman में अधिनायको के सत्तावादी राज्य के विरुद्ध किया|
इस दिशा में सर्वाधिक महत्व विलियम वेबरीज रिपोर्ट (1942-43) का है, इसमें पांच महा बुराइयों अभाव, रोग, दरिद्रता, अज्ञान, बेकारी के प्रभाव के उन्मूलन में राज्य की सकारात्मक भूमिका का आग्रह किया|
बेवरिज रिपोर्ट इंग्लैंड की एटली सरकार द्वारा लागू किए जाने के कारण ब्रिटेन को पहला लोक कल्याणकारी राज्य माना जाता है|
लोक कल्याणकारी राज्य के प्रमुख कार्य निम्न है-
शांति और सुव्यवस्था की स्थापना
राज्य की बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा करना
सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा सहायता आदि उपलब्ध कराना
मद्यपान, छुआ-छूत पर रोक, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों पर रोक|
कृषि, उद्योग, व्यापार का नियमन और विकास|
यातायात तथा संचार की व्यवस्था करना|
न्यूनतम जीविका निर्वाह उपलब्ध कराना|
संस्कृति, साहित्य और कला के विकास में सहयोग देना|
अन्य सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना|
इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य के विस्तृत कार्य होते हैं|
लोक कल्याणकारी राज्य सिद्धांत के प्रवर्तक- J.S मिल, T.H ग्रीन, L.T हाबहाउस, H.J लॉस्की, R.H टॉनी, J.M कीन्स और J.K गेलब्रेथ आदि|
राज्य के कार्यों का समाजवादी सिद्धांत-
जोड के अनुसार “समाजवाद एक ऐसा टोप बन गया है, जिसकी शक्ल बहुत अधिक पहने जाने के कारण बिगड़ चुकी हैं|
रैम्जेम्योर “समाजवाद एक गिरगिट की तरह है, जो वातावरण के अनुरूप अपना रंग बदल लेता है|”
समाजवादी राज्य के प्रमुख कार्य निम्न है-
वर्ग संघर्ष समाप्त करना|
उत्पादन एवं वितरण के साधनों का समाजीकरण|
श्रम की उत्पादकता को बढ़ाना|
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास|
पूंजीवादी वर्ग की समाप्ति|
अंतरराष्ट्रीय जगत में अन्याय के विरुद्ध संघर्ष|
समाज और व्यक्ति के विकास के लिए अधिकतम कार्य करना|
जोड ने समाजवादी राज्य के निम्न कार्य बताएं-
उत्पादन के साधनों के व्यक्तिगत स्वामित्व का उन्मूलन करना|
उद्योगों का संचालन व्यक्तिगत लाभ के लिए न करके समुदाय की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु करना|
व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामाजिक सेवा की भावना स्थापित करना|
नारीवाद एवं राज्य-
नारीवादी राज्य को पितृसत्तात्मक मानते हैं|
उदारवादी नारीवादी-
इनके अनुसार राज्य तटस्थ होता है|
इनके अनुसार महिलाओं को कानूनी व राजनीतिक समानता न मिलने का कारण राज्य के कानून पुरुषों के पक्ष में पूर्वाग्रह से भरे है|
इनके अनुसार राज्य पुरुष-महिला के बीच समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है|
जैसे- भारत में संसद में महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग और महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार|
रेडिकल नारीवादी-
इनके अनुसार राज्य पितृसत्तात्मक है|
महिला व पुरुषों के बीच असमानता की शुरुआत परिवार के भीतर से होती है|
राज्य पुरुष वर्चस्व कायम रखने वाला यंत्र है|
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