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Phraans Kee Vyavasthaapika : Sansad || फ्रान्स की व्यवस्थापिका : संसद || Legislature of France: Parliamen || BY Nirban PK Sir || In Hindi

 फ्रान्स की व्यवस्थापिका : संसद


    • फ्रान्स की व्यवस्थापिका या विधायिका को संसद के नाम से जाना जाता है।


    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : चतुर्थ गणतन्त्र तक की स्थिति-

    • 1302 में फिलिप चतुर्थ के राज्यकालीन जो स्टेटस जनरल नामक संस्था थी, उसका रूप बहुत कुछ संसद जैसा ही था| लेकिन इस संस्था के द्वारा नियमित रूप से कार्य नहीं किया जाता था| 

    • महान क्रांति के बाद सन् 1791 से फ्रांस में अनेक संवैधानिक प्रयोग और नई-नई व्यवस्था का निरूपण किया गया। 

    • 1791 के संविधान में एक सदनात्मक संसद की व्यवस्था की गई| 

    • 1795 में डाइरेक्ट्री में सर्वप्रथम द्विसदनात्मक संसद की स्थापना की गई| 

    • और नैपोलियन ने सम्राट होने पर उसके चार सदन कर दिए। उसके पतन के बाद संसद को पुनः द्विसदनात्मक बना दिया गया| 

    • 1848 के द्वितीय गणतन्त्र में फिर से एक सदनात्मक संसद की व्यवस्था की गई|

    • 1852 में द्वितीय साम्राज्य के अन्तर्गत संसद को तीन सदनों में बाँट दिया गया । 

    • तृतीय गणतंत्र (1875) में बहुत वाद-विवाद के बाद द्विसदनात्मक संसद की स्थापना का निर्णय किया गया। प्रथम सदन को प्रतिनिधि सभा (Chamber of Deputies) और द्वितीय सदन को सीनेट कहा गया।

    • चतुर्थ गणतन्त्र (1946) में कुछ परिवर्तनों के साथ पूर्ववर्ती व्यवस्था को ही कायम रखा गया। प्रथम सदन को राष्ट्रीय सभा (National Assembly) तथा द्वितीय सदन को गणतंत्र परिषद (Council of Republic) संज्ञा दी गई। 


    पंचम गणतन्त्र (1958) में संसद-

    • पंचम गणतन्त्र में संसद का स्वरूप द्विसदनात्मक है। 

    • द्वितीय सदन का नाम बदलकर तृतीय गणतन्त्र की भांति पुनः सीनेट (Senate) रख दिया गया है और प्रथम सदन का नाम राष्ट्रीय सभा (National Assembly) ही है। 

    • तथा गणतंत्र परिषद की तुलना में सीनेट की शक्तियों में बहुत वृद्धि कर दी गई| 

    • पंचम गणतंत्र के संविधान में दोनों सदनों के कार्यकाल और सदस्यों की संख्या आदि संविधान के द्वारा निश्चित नहीं की गई| धारा 25 में कहा गया कि संसद के दोनों सदनों के कार्यकाल, सदस्यों की संख्या, उनके भत्ते तथा चुनाव के लिए आवश्यक योग्यताएं और अयोग्यताएं संसद द्वारा निर्मित कानून
      (संस्थात्मक अधिनियम) के द्वारा निर्धारित होंगे| 


    वर्तमान संसद की रचना (Composition of the Present Legislature)-

    • संविधान की धारा 24 के अनुसार फ्रांस की संसद के दो सदन है-

    1. राष्ट्रीय सभा (National Assembly)

    • निम्न और लोकप्रिय सदन

    • पंचम गणतन्त्र में इसकी कुल सदस्य संख्या 465 निर्धारित की गई थी, लेकिन वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 577 है|

    • इसके सदस्यों का निर्वाचन व्यापक, प्रत्यक्ष, समान और गुप्त मताधिकार के आधार पर होता है। सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान किया गया है। 

    • सम्पूर्ण देश को समान 577 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि निर्वाचित होता है। 

    • राष्ट्रीय सभा के चुनाव हेतु एकल सदस्य निर्वाचन क्षेत्र और द्वितीय मतपत्र योजना को अपनाया गया है|  इस पद्धति के अनुसार समस्त देश को 577 निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है| क्षेत्रों के अंतर्गत प्रथम मतदान में किसी भी उम्मीदवार को मतदान के 50% से अधिक मत प्राप्त नहीं होते हैं तो केवल पंजीकृत मतदाताओं के एक चौथाई से अधिक मत प्राप्त करने वाली उम्मीदवारों में दोबारा मतदान होता है| दोबारा मतदान में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है| 

    • चुनाव के दूसरे दौर में वे दल चुनाव में भाग नहीं ले सकते हैं, जिन्हें पहले दौर में 10% से कम मत मिले थे|

    • राष्ट्रीय सभा के चुनाव व्यस्क मताधिकार के आधार पर होते हैं और फ्रांस में 18 वर्ष की आयु प्राप्त प्रत्येक व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त है| 

    • राष्ट्रीय सभा के सदस्यों को डेप्यूटीज अर्थात प्रतिनिधि कहा जाता है| 


    1. सीनेट (Senate)-

    • द्वितीय सदन अर्थात् सीनेट में स्थानीय स्वशासन की इकाइयों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। 

    • इसकी सदस्य संख्या राष्ट्रीय सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से कम और आधे से अधिक नहीं हो सकती है। 

    • वर्तमान में सीनेट में कुल 348 सदस्य है|

    • 348 सदस्यों में से 326 फ्रांस के विभागों से, 10 फ्रांस के समुद्र पार राज्य क्षेत्रों से, और 12 फ्रांस के बाहर रहने वाले नागरिकों में से चुने जाते हैं| 

    • सदस्यों का निर्वाचन व्यापक अप्रत्यक्ष मताधिकार के आधार पर होता है। 

    • फ्रान्स के प्रादेशिक विभागों तथा प्रवासी नागरिकों का प्रतिनिधित्व इसी सदन में होता है। 


    • कार्यकाल-

    राष्ट्रीय सभा का कार्यकाल -

    • वर्तमान संविधान के अन्तर्गत राष्ट्रीय सभा का कार्यकाल 5 वर्ष का है|

    • लेकिन इस अवधि से पूर्व भी इसका प्रधानमन्त्री और संसद के दोनों सदनों के सभापतियों की मंत्रणा से राष्ट्रपति द्वारा विघटन किया जा सकता है।

    • इसके भंग करने में राष्ट्रपति का प्रमुख हाथ होता है। प्रधानमन्त्री और सदनों के सभापतियों को केवल परामर्श देने का अधिकार है। 

    • राष्ट्रीय सभा के विघटित होने के कम से कम 20 दिन बाद या अधिक से अधिक 40 दिन बाद इसका पुनर्निर्वाचन होना आवश्यक है। 

    • पुनर्निर्वाचन के पश्चात् एक वर्ष के अन्दर सदन का पुनः विघटन नहीं किया जा सकता है। 


    सीनेट का कार्यकाल-

    • सीनेट एक स्थायी सदन है। 

    • इसके सदस्य 9 वर्ष के लिए निर्वाचित किए जाते थे| लेकिन अब कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया गया है| प्रति 3 वर्ष पश्चात सदन के आधे सदस्य अवकाश ग्रहण कर लेंगे तथा उनके स्थान पर इतनी ही संख्या में सदस्य निर्धारित प्रणाली द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होंगे| 

    • सीनेट का विघटन नहीं हो सकता। 

    • इसकी बैठकें राष्ट्रीय सभा के साथ होती हैं। बैठकें सार्वजनिक और गुप्त दोनों प्रकार की होती हैं। 


    • चुनाव-

    राष्ट्रीय सभा का चुनाव-

    • राष्ट्रीय सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर जनता द्वारा चुने जाते हैं। 

    • वर्तमान में फ्रान्स की राष्ट्रीय सभा के 577 प्रतिनिधियों का चुनाव करने के लिए 'दो बार मतदान के साथ एक सदस्यीय' पद्धति का प्रयोग होता है। इसके अनुसार प्रथम मतदान में वह उम्मीदवार विजयी घोषित होता है जिसे कम से कम डाले हुए मतों का 50 प्रतिशत +1 मत मिले और एक सप्ताह बाद होने वाले दूसरे मतदान में जिसे सबसे अधिक मत मिलें, वह उम्मीदवार विजयी होता है। 

    • राष्ट्रीय सभा के लिए प्रत्याशी की आयु कम से कम 23 वर्ष होना आवश्यक है। 


    सीनेट के सदस्यों का चुनाव-

    • व्यवस्थापिका के द्वितीय सदन सीनेट के सीनेटरों का चुनाव सर्वव्यापी मताधिकार चुनाव द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से होगा| 

    • सीनेट के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से प्रादेशिक इकाइयों और विदेशी फ्रैंच लोगों द्वारा चुने जाते हैं। 

    • सीनेट के लिए प्रत्याशी की आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए| 


    सदस्यों के अधिकार-

    • संसद के सदस्यों को अनेक विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियाँ प्राप्त हैं। 

    • संसद में प्रकट किए गए विचारों के आधार पर न तो किसी संसद सदस्य को गिरफ्तार किया जा सकता है, न रोका जा सकता है और न ही उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है। 

    • किसी भी सदन के सदस्य को बिना सदन की अनुमति के बन्दी नहीं बनाया जा सकता। 

    • जिस समय संसद का अधिवेशन नहीं हो रहा हो उस समय किसी सदस्य को राष्ट्रीय सभा की कार्यकारिणी से अनुमति लेकर ही गिरफ्तार किया जा सकता है 

    • और यदि सभा चाहे तो गिरफ्तार किये जाने पर भी संसद सदस्य छूट सकता है। 


    अधिवेशन 

    • फ्रांसीसी सदन की आमतौर से वर्ष में दो बैठकें होती हैं। 

    • संसद का प्रथम आधवेशन अक्तूबर के पहले मंगलवार से आरम्भ होकर दिसम्बर के तीसरे शुक्रवार तक चलता है। 

    • संसद का दितीय अधिवेशन अप्रैल के अन्तिम मंगलवार से लगभग 3 माह तक चलता है। 

    • द्वितीय अधिवेशन या तो प्रधानमन्त्री के अनुरोध पर या राष्ट्रीय सभा के बहुमत के निर्णय पर बुलाया जाता है। 

    • अधिवेशनों का उद्घाटन और समापन राष्टपति के द्वारा किया जाता है। 

    • राष्ट्रीय सभा के द्वारा निमंत्रित अधिवेशन 12 दिन से अधिक नहीं चल सकता|और यदि कार्यक्रम पहले ही समाप्त हो जाता है तो अधिवेशन का भी उसी समय समापन हो जाता है। 

    • प्रधानमन्त्री चाहे तो कार्यक्रम समाप्त होने के बाद भी अधिवेशन की अवधि बढ़ा सकता है, लेकिन ऐसा वह 12 दिन समाप्त होने के पहले ही कर सकता है। 

    • संसद के दोनों सदन गुप्त अधिवेशन भी कर सकते हैं, यदि प्रधानमंत्री ऐसी इच्छा प्रकट करे अथवा संसद के 1/10 सदस्य इस पक्ष में अपनी राय दे दें। 



    सदनों के प्रधान या सभापति


    राष्ट्रीय सभा-

    • फ्रान्स की राष्ट्रीय सभा का एक सभापति (The President) होता है। 

    • संविधान की धारा 32 के अनुसार राष्ट्रीय सभा का प्रधान या सभापति उसके प्रथम सत्र की पहली ही बैठक में चुना जाता है। 

    • चुनाव गुप्त मतदान द्वारा होता है। 

    • पहले और दूसरे मतदान में सदन के कुल सदस्यों का पूर्ण बहुमत आवश्यक है, परन्तु तीसरे मतदान में केवल सापेक्ष बहुमत ही पर्याप्त है। 


    • राष्ट्रीय सभा के प्रधान या सभापति के प्रमुख कार्य हैं-

    • सदस्यों को बोलने की अनुमति देना, 

    • सदन के नियमों का पालन कराना, 

    • किसी प्रश्न पर मतदान लेना, 

    • सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाए. 

    • सदन में अनुशासन की व्यवस्था करना आदि । 

    • सभापति के कुछ परामर्शदात्री कार्य भी हैं। जैसे- देश में संकटकालीन घोषणा करने से पूर्व और राष्ट्रीय सभा को विघटित करने से पूर्व सभापति से राष्ट्रपति मंत्रणा या परामर्श करता है। 


    सीनेट- 

    • सीनेट का सर्वोच्च पदाधिकारी सदन का सभापति होता है। 

    • संविधान की धारा 2 के अन्तर्गत सीनेट के प्रधान या सभापति का चुनाव प्रत्येक 3 वर्ष बाद होता है, जब उसके आधे सदस्य चुनकर आते हैं| 


    • सीनेट के सभापति के कार्य-

    • सीनेट का सभापति सीनेट की बैठकों की अध्यक्षता करता है|

    • विधि-निर्माण के कार्य को सुचारु रूप से संचालित करता है|

    • सदन में अनुशासन तथा शांति बनाए रखता है। 

    • नवीन संविधान के अन्तर्गत उसे दो प्रमुख शक्तियाँ दी गई हैं, जो कि पूर्ववर्ती शासन व्यवस्था में उसे प्राप्त नहीं थीं-

    1. उसे यह अधिकार प्राप्त है कि यदि किसी कारणवश राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाए तो वह अस्थायी रूप से फ्रान्स के राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा| 

    2. उसकी दूसरी प्रमुख शक्ति यह है कि सीनेट का सभापति राष्ट्रपति का एक प्रमुख परामर्शदाता है। राष्ट्रीय सभा को विघटित करने के लिए और संकटकालीन घोषणा से पूर्व वह राष्ट्रपति को परामर्श देता है। 



    संसद के कार्य और शक्तियाँ-

    • संविधान के पाँचवें अध्याय में अनुच्छेद 34 में संसद और सरकार के मध्य सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि विधियों का निर्माण संसद करेगी। 

    • संविधान में संसद के तीन प्रमुख कार्य गिनाए गए हैं-

    1. संविधानिक विधियों सहित समस्त विधियों का निर्माण (धारा 34)

    2. युद्ध और सैनिक शासन की घोषणा करना (धारा 35 व 36); 

    3. वित्त का नियंत्रण (धारा 34 व 39)- संविधान में यह व्यवस्था है कि वित्तीय विधेयक राष्ट्रीय सभा में ही प्रारम्भ या पुनर्स्थापित किए जा सकते हैं। 


    विधि निर्माण सम्बन्धी कार्य-

    • धारा 3 के अनुसार राष्ट्रीय संप्रभुता जनता में निवास करती है और जनता इसका प्रयोग अपने प्रतिनिधियों तथा जनमत संग्रह के द्वारा करती है| 

    • पंचम गणतंत्र की संसद ब्रिटिश संसद की तरह सर्वशक्तिशाली नहीं है| संविधान में उन विषयो की सूची दी गई है, जिन पर संसद कानून निर्माण कर सकती है और शेष विषय कार्यपालिका द्वारा अध्यादेश और आज्ञपत्तियाँ जारी करने के लिए छोड़ दिए गए हैं| 


    • संविधान के अनुच्छेद 34 में जिन विषयों पर संसद को कानून निर्माण करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, वे हैं-

    1. नागरिकों के नागरिक अधिकार व मौलिक स्वतन्त्रताएँ सम्बन्धी विधियाँ

    2. राष्ट्रीय प्रतिरक्षा के हित में नागरिकों से की गई अपेक्षाएँ एवं उनकी सम्पत्ति सम्बन्धी विधियाँ

    3. व्यक्तियों की जातीयता, स्तर एवं वैधानिक क्षमता, वैवाहिक विधियाँ, उत्तराधिकार एवं भेंट सम्बन्धी विधियाँ 

    4. नागरिकों द्वारा किए जाने वाले अपराध एवं विधियों का उल्लंघन सम्बन्धी विधियाँ

    5. सब प्रकार के करों का आरोपण, मात्रा व उनकी संग्रह पद्धति, मुद्रा व्यवस्था सम्बन्धी विधियाँ

    6. विभिन्न सार्वजनिक-निगमात्मक संस्थाओं का निर्माण सम्बन्धी विधियाँ

    7. संसद और स्थानीय सभाओं के लिए निर्वाचन व्यवस्थाएँ सम्बन्धी विधियाँ

    8. उद्योगों एवं दूसरे कार्यों का राष्ट्रीयकरण सम्बन्धी विधियाँ

    9. स्थानीय संस्थाओं का प्रशासन सम्बन्धी विधियाँ

    10. राष्ट्रीय प्रतिरक्षा का संगठन सम्बन्धी विधियाँ

    11. राज्य के नागरिकों व सैनिक अधिकारियों को दिए जाने वाले मौलिक आश्वासन सम्बन्धी विधियाँ

    12. शिक्षा, सम्पत्ति सम्बन्धी नियम व उत्तरदायित्व सम्बन्धी विधियाँ

    13. नागरिक व व्यावसायिक उत्तरदायित्व, श्रम एवं श्रमिक संघ सम्बन्धी विधियाँ

    14. सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी विधियाँ आदि।


    वित्तीय कार्य-

    • संसद वित्तीय कानूनों का निर्माण कर राज्य के राजस्व और व्यय के बारे में निर्णय कर सकती है। 

    • संसद राज्य के आर्थिक व सामाजिक उद्देश्यों के विषयों पर कानून बना सकेगी। 


    वैदेशिक कार्य-

    • संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार शान्ति सन्धियाँ, व्यापारिक संधियाँ, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से सम्बन्धित संधियाँ व समझौते एवं अन्य प्रकार की संधियाँ उस समय तक लागू नहीं हो सकती, जब तक संसद उन पर अपनी स्वीकृति न दे दे। 

    • अनुच्छेद 52 के द्वारा संसद को वैदेशिक सम्बन्धों पर नियंत्रण करने की शक्ति मिल गई है। 


    संविधान संशोधन संबंधी कार्य-

    • धारा 89 में संवैधानिक संशोधन के लिए दो पद्धतियों का वर्णन किया गया है| 

    1. प्रथम पद्धति के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा संसद में प्रस्तावित संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा 3/5 बहुमत से पारित किया जाना चाहिए| 

    2. दूसरी पद्धति के अनुसार प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर राष्ट्रपति या संसद का कोई सदस्य संशोधन विधेयक प्रस्तावित कर सकता है| यदि इसे संसद के दोनों सदन पारित कर दें व जनमत संग्रह में निर्वाचकों का बहुमत इसे स्वीकार कर ले तो यह संविधान का अंग बन जाता है| 


    प्रशासन संबंधी कार्य-

    • फ्रांसीसी संसद प्रशासन संबंधी नीति निर्धारण करती है और प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय प्रशासन पर नियंत्रण रखती है| 

    • संसद द्वारा प्रशासन संबंधी विभिन्न प्रस्तावो पर वाद-विवाद तथा विचार-विमर्श किया जाता है| 

    • मंत्रीपरिषद राष्ट्रीय सभा के प्रति उत्तरदायी है| 

    • राष्ट्रीय सभा निंदा प्रस्ताव (Vote of Censure) पारित करके मंत्रीपरिषद को भंग कर सकती है| निंदा प्रस्ताव राष्ट्रीय सभा के कुल बहुमत द्वारा पारित किया जाता है| 


    Note- फ्रांस की संसद में भारत और ब्रिटेन की भाँति प्रश्नोत्तरकाल की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रति सप्ताह एक निश्चित अवधि (जिसमें मन्त्रियों से प्रश्न पूछे जा सकते हैं) के अतिरिक्त संसद का कार्यक्षेत्र केवल विधि निर्माण तक ही सीमित है।" 



    संसद की शक्तियों को सीमित करने वाले अनुच्छेद- 

    • उपर्युक्त अध्ययन से तो यही प्रतीत होता है कि फ्रान्स की संसद की विधायी क्षमता का क्षेत्र बड़ा व्यापक हैकिन्तु संविधान के अनेक उपबन्ध संसद की शक्तियों को सीमित करते हैं, जो निम्न है-

    1. धारा 16 के अनुसार कार्यपालिका संकटकाल में उन विषयों पर कानून का निर्माण कर सकती है, जो संविधान द्वारा संसद को सौंप गए हैं| 

    2. धारा 11 के अनुसार राष्ट्रपति कुछ विशेष विषयो से संबंधित विधेयको को मंत्रिमंडल अथवा संसद के दोनों सदनों के संयुक्त प्रस्ताव पर जनमत संग्रह के लिए भेज सकता है और जनमत संग्रह में बहुमत द्वारा विधेयक का समर्थन किए जाने पर राष्ट्रपति सामान्य विधि की भांति इसकी घोषणा करता है| 

    3. अनुच्छेद 34 सरकार को यह सत्ता प्रदान करता है कि अधिनियम जारी करके संसद द्वारा निर्मित विधियों को विस्तृत तथा संशोधित कर सकती है, किन्तु उसे ऐसे मामलों में राज्य-परिषद् का परामर्श अनिवार्य रूप से लेना होगा। 

    4. संविधान के अनुच्छेद 37 व 38 सरकार को व्यापक विधायी सत्ता प्रदान करते हैं और इस भाँति इस क्षेत्र में संसद की क्षमता को कम करते हैं। 

    5. अनुच्छेद 38 के अनुसार "सरकार किसी विशेष समय पर, और किसी विशेष समय के लिए अपने कार्यक्रम को उन अध्यादेशों तथा आज्ञप्तियों द्वारा कार्यान्वित करने के लिए संसद से माँग कर सकती है, जो साधारणतः विधि क्षेत्र के अन्तर्गत ही सम्मिलित हैं। 

    6. धारा 39 के अनुसार “प्रधानमंत्री तथा संसद सदस्यों को विधि का सूत्रपात करने का अधिकार है, किन्तु राज्य-परिषद् के परामर्श करने के बाद सरकारी विधेयकों पर मंत्रीमण्डल की सभाओं में विचार किया जाएगा और इसके बाद ही उन्हें फिर राष्ट्र-परिषद या सीनेट के सचिवालय के पास भेजा जा सकेगा। 

    7. धारा 40 यह व्यवस्था करती है कि "संसद सदस्यों द्वारा उठाए गए विधेयक या संशोधन ऐसी स्थिति में असाम्य होंगे, जब वे राष्ट्र के आर्थिक साधनों को कम करें या सार्वजनिक व्यय को बढ़ावें।

    8. अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि “यदि विधि-निर्माण के दौरान में यह ज्ञात हो जाए कि किसी सदस्य द्वारा निजी हैसियत में पेश किया गया कोई विधेयक या किसी विधेयक के बारे में कोई संशोधन, संसद की सत्ता के बाहर है या वह सरकार को हस्तान्तरित की गई विधायी शक्तियों के प्रतिकूल है तो सरकार उसे अविहित घोषित कर सकती है। 

    9. धारा 48 के अनुसार “सरकार द्वारा प्रस्तुत या स्वीकृति प्राप्त विधेयकों को सदनों की कार्य सूचियों में सरकार की इच्छानुसार प्राथमिकता दी जावेगी। 

    10. वित्तीय क्षेत्र में भी संविधान संसद की शक्तियों पर आवश्यक प्रतिबन्ध लगाते हुए सरकार की स्थिति को सुदृढ़ बनाता है। वित्तीय विधेयक के बारे में “यदि संसद 70 दिन के भीतर कोई निर्णय नहीं ले पाती तो सरकार अध्यादेश के द्वारा उसको प्रवर्तित किया जा सकता है। 


    • नवीन संविधान के अन्तर्गत किसी भी नई सरकार के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह प्रारम्भ में ही राष्ट्रीय सभा का विश्वास प्राप्त करे। 

    • संविधान केवल यही व्यवस्था करता है कि नई सरकार को राष्ट्रीय सभा के समक्ष अपनी नीतियों की घोषणा कर देनी चाहिए| 

    • यदि सरकार के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता हो तो यह जरूरी है कि उस पर राष्ट्रीय सभा के कम से कम 1/10 सदस्यों के हस्ताक्षर हों व प्रस्ताव के पारित होने के लिए पूरे सदन का पूर्ण बहुमत मिले। 

    • अविश्वास प्रस्ताव पर मत लेने के लिए यह अनिवार्य है कि प्रस्ताव प्रस्तुत होने के बाद कम से कम 48 घंटे बीत चुके हों । 

    • मतदान का यह सम्पूर्ण प्रबन्ध इस भाँति होता है कि सरकार के विरोधी सदस्य खुलकर सामने आ जाते हैं, क्योंकि उनके लिए यह आवश्यक है कि वे खुले रूप में मतदान करें। तटस्थ या मौन रहने वाले सदस्यों को सरकार समर्थक सदस्य मान लिया जाता है । 

    • संविधान के द्वारा बनाई गई उपर्युक्त व्यवस्थाओं का स्पष्ट अर्थ संसद के मुकाबले में कार्यपालिका या मंत्रीपरिषद् को अधिक शक्ति सम्पन्न बनाना है। इस बारे में आलोचकों का यह तर्क है कि "1958 के संविधान निर्माताओं ने मंत्रीपरिषद को स्थायित्व प्रदान करने के लिए संसदात्मक लोकतन्त्र की हत्या कर दी है, उन्होंने पानी के साथ बच्चों को भी टब से बाहर फेंक दिया है।" 



    दोनों सदनों में सम्बन्ध-

    • पंचम गणतंत्र में द्वितीय सदन अर्थात् सीनेट को नया स्वरूप प्रदान किया गया है। 

    • तृतीय गणतंत्र की भाँति, वर्तमान संविधान में दोनों सदनों को लगभग समान स्तर का बना दिया गया है। 

    • युद्ध की घोषणा, शान्ति की स्थापना और सन्धि या समझौता करने में दोनों सदनों के समान अधिकार हैं। 

    • राष्ट्रपति के निर्वाचन और उस पर महाभियोग के सम्बन्ध में भी दोनों सदनों को समान अधिकार दिए गए हैं। 

    • लेकिन मंत्रीमण्डल केवल राष्ट्रीय सभा के प्रति उत्तरदायी है, सीनेट के प्रति नहीं। 

    • इसी प्रकार विधेयको के सम्बन्ध में भी राष्ट्रीय सभा को निर्णायक अधिकार दिए गए हैं, सीनेट इस क्षेत्र में उसके समकक्ष नहीं है। 

    • वित्त विधेयक केवल राष्ट्रीय सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, लेकिन सीनेट को उन पर विचार-विमर्श करने और संशोधन करने का अधिकार है। सीनेट को उस पर 15 दिन के भीतर अपना निर्णय दे देना होता है। 

    • आंगिक विधियों (Organic Laws) को भी सर्वप्रथम राष्ट्रीय सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है । 

    • साधारण विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं| दोनों सदनों में उन पर विचार होता है, परन्तु मतभेद की स्थिति में राष्ट्रीय सभा की स्थिति सर्वोच्च रहती है। 


    दोनों सदनों की संयुक्त समिति-

    • दोनों सदनों के बीच मतभेद के कारण उपस्थित हुए गतिरोध को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री दोनों सदनों की एक संयुक्त समिति की बैठक बुलाता है|

    • जिसमें दोनों का समान प्रतिनिधित्व रहता है। 

    • इस संयुक्त समिति द्वारा विधेयक का जो रूप निर्णित किया जाता है, उसी रूप में उस विधेयक को सरकार दोनों सदनों में अनुमोदन के लिए पुनः प्रस्तुत करती है। 

    • यदि फिर भी दोनों सदनों में मतभेद रहे तो सरकार उस विधेयक के दोनों सदनों के एक और वाचन के बाद राष्ट्रीय सभा को उस विधेयक पर अन्तिम निर्णय करने का अधिकार देती है। 

    • इस प्रकार अन्ततः राष्ट्रीय सभा की स्थिति सीनेट से श्रेष्ठ मानी जाती है।



    विधायी प्रक्रिया-


    1. विधेयक का प्रस्तुतीकरण-

    • विधायी प्रक्रिया में सबसे पहले विधेयक के प्रस्तुतीकरण की स्थिति होती है। 

    • प्रधानमंत्री और संसद के सदस्यों को विधि-निर्माण में पहल करने का अधिकार है। 

    • सरकारी विधेयकों (Government Bills) पर पहले मंत्रीपरिषद में विचार होता है और फिर उन्हें संसद के किसी भी सदन के सचिवालय में जमा करा दिया जाता है, 

    • लेकिन वित्त विधेयकों को राष्ट्रीय सभा में ही आरम्म किया जा सकता है।


    1. विधेयक को समिति को सौंपना-  

    • विधेयक के प्रस्तुतीकरण के बाद उसे सदन की किसी भी एक नियमित अथवा स्थायी समिति के सुपुर्द कर दिया जाता है। सरकार या सदन की प्रार्थना पर विधेयक को किसी तदर्थ समिति के सुपुर्द भी किया जा सकता है। 


    1. विधेयक पर सदन में विचार-

    • सरकारी विधेयक पर समिति की रिपोर्ट आ जाने पर सदन में विचार मंत्री द्वारा की जाने वाली घोषणा के बाद होता है|

    • विधेयक का संचालन मंत्री स्वयं करता है और वह उसमें संशोधन भी प्रस्तावित कर सकता है। 

    • सदन में पहले विधेयक के सामान्य सिद्धान्तों पर वाद-विवाद होता है। तत्पश्चात् सदन विधेयक की एक-एक धारा पर मतदान करता है और अन्त में उसके संशोधित रूप में सम्पूर्ण विधेयक पर मतदान होता है । 

    • एक सदन में पास होने के बाद विधेयक दूसरे सदन में अर्थात् सीनेट से राष्ट्रीय सभा में या राष्ट्रीय सभा से सीनेट में जाता है, जहाँ उस पर समान प्रक्रिया के अनुसार विचार होता है। 

    • दोनों सदनों द्वारा एक ही रूप में पारित किए जाने पर विधेयक को राष्ट्रपति लागू करता है और वह कानून का स्वरूप धारण कर लेता है। 


    दोनों सदनों में मतभेद होने पर-

    • यदि किसी सरकारी अथवा संसदीय या निजी सदस्य के विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद हो तो उसे दूर करने के लिए संविधान की धारा 45 के अन्तर्गत व्यवस्था की गई है। 

    • दोनों सदनों में मतभेद के परिमामस्वरूप जब कोई विधेयक प्रत्येक सदन में दो वाचन होने के बाद भी पास नहीं हो पाता अथवा यदि किसी विधेयक के विषय को सरकार प्रथम वाचन के बाद ही "अविलम्ब कार्रवाही वाला अर्थात् आवश्यक” घोषित कर देती है, तो प्रधानमंत्री को अधिकार है कि वह दोनों सदनों के बराबर सदस्यों की एक संयुक्त समिति की बैठक आयोजित करें, जिसका कार्य वाद-विवाद होने वाले शेष मामलों पर नए रूप का प्रस्ताव रखना होता है| 

    • संयुक्त समिति द्वारा विधेयक का जो रूप तैयार किया जाता है, उसे सरकार दोनों सदनों की स्वीकृति के लिए पुनः प्रस्तुत करती है। 

    • यदि संयुक्त समिति सहमति पर आधारित रूप स्वीकार न कर सके तो सरकार उस पर राष्ट्रीय सभा और सीनेट द्वारा एक नया वाचन होने के बाद राष्ट्रीय सभा को उस पर अन्तिम निर्णय करने के लिए कह सकती है। 

    • इस प्रकार विधि निर्माण के मामलों में राष्ट्रीय सभा ही अन्तिम अधिकार रखती है। 


    आंगिक कानून-

    • आंगिक कानूनों को संस्थागत कानून भी कहते हैं|

    • आंगिक कानून वे कानून कहलाते हैं, जो संविधान में वर्णित उपबंधों का स्पष्टीकरण करते हैं| यह संविधान संशोधन की आवश्यकता को कम करते हैं| कुछ आंगिक कानूनों का संबंध राष्ट्रपति के कार्यकाल, पुन: निर्वाचन, निर्वाचक मंडल की रचना, निम्न सदन के उम्मीदवारों के लिए योग्यताएं, उच्च सदन के निर्वाचन आदेश से हैं|

    • आंगिक कानूनों को धारा 46 के अनुसार निम्न दशाओं के अन्तर्गत पारित एवं संशोषित किए जाने की व्यवस्था है-

    1. सरकारी अथवा संसदीय विधेयक को, जिस सदन में वह पेश किया गया हो उस सदन द्वारा विचार एवं मतदान के लिए उसके पेश करने के 15 दिन के बाद लाया जाएगा। 

    2. उसके सम्बन्ध में अन्य विधेयकों जैसी प्रक्रिया का ही पालन होगा, लेकिन दोनों सदनों में मतभेद होने की स्थिति में राष्ट्रीय सभा उसके अन्तिम वाचन में अपने सदस्यों के पूर्ण बहुमत से उसे स्वीकार करेगी। 

    3. सोनेट के सम्बन्ध में भी आंगिक कानून दोनों सदनों द्वारा इसी प्रकार पास किए जाएंगे। ऐसे कानूनों को उसकी संवैधानिकता पर संवैधानिक परिषद द्वारा घोषणा किए जाने के बाद ही लागू किया जाएगा। 


    वित्त विधेयक- 

    • वित्त विधेयक अथवा बजट के सम्बन्ध में यह व्यवस्था है कि उसके प्रारूप को राष्ट्रीय सभा के सम्मुख  अक्टूबर के प्रथम मंगलवार तक अवश्य पहुँच जाना चाहिए। 

    • उसके तुरन्त बाद उसे समिति को भेज दिया जाता है|

    • लेकिन सदन में उस पर 15 दिन बाद ही वाद-विवाद शुरू हो सकता है। 

    • संविधान की धारा 47 के अनुसार यह व्यवस्था है कि वित्त विधेयकों को आंगिक कानूनों के लिए विहित दशाओं के अन्तर्गत पेश किया जाएगा। 

    • यदि राष्ट्रीय सभा विधेयक के प्रस्तुत किए जाने के 40 दिन के भीतर उस पर प्रथम वाचन में निर्णय करने में असफल रहे, तो सरकार उसे सीनेट में प्रस्तुत करेगी और सीनेट को उस पर 15 दिन के भीतर निर्णय देना होगा। 

    • इसके बाद विधेयक के सम्बन्ध में धारा 45 में दी गई प्रक्रिया अर्थात् साधारण प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। 

    • यदि विधेयक पर संसद 70 दिन के भीतर भी कोई निर्णय नहीं कर पाए तो विधेयक को सरकार अध्यादेश द्वारा लागू किया जा सकता है। 


    संसद की कॉन्ग्रेस-

    • फ्रांस में संसद की कांग्रेस उस निकाय को नाम दिया गया, जब संसद के दोनों सदन सीनेट और राष्ट्रीय सभा संविधान संशोधन या फ्रांस के राष्ट्रपति के अभिभाषण को सुनने के लिए एक साथ मिलते हैं| इसमें कुल 925 (348+ 577) होते हैं| राष्ट्रीय सभा के अधिकारी और अध्यक्ष इसके पदाधिकारी होते हैं| यद्यपि संविधान संशोधन जनमत संग्रह के माध्यम से किए जाते हैं| 


    वैकल्पिक सदस्य-

    • फ्रांस के दोनों सदनों के सदस्यों के द्वारा अपना एक वैकल्पिक उम्मीदवार बनाया जाता है जो उनकी मृत्यु या त्यागपत्र आदि के बाद पद संभाले| 


    निर्वाचित पद संचय-

    • फ्रांस के दोनों सदनों के सदस्य अनेक निर्वाचित पदों पर बने रहते हैं| वे संसद सदस्य होने के साथ-साथ मेयर आदि भी बन जाते हैं अतः संसदीय कार्य में कम रुचि लेते हैं| 


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